Saturday, May 1, 2010

कलयुग की कहानियाँ -मस्त मेनका पार्ट--16

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मस्त मेनका पार्ट--16


गतान्क से आगे......................

जब्बार ने मेनका & सोढी की मीटिंग करवा दी जिसमे मेनका उसे अपना हिस्सा बेचने को राज़ी हो गयी.जब्बार की तो खुशी का ठिकाना नही था.अब तो वो बेसब्री से उस दिन का इंतेज़ार कर रहा था जिस दिन मिल्स के पेपर्स उसके हाथों मे आते.

इधर मेनका ने सपरू साहब के साथ चुप-चाप डील साइन कर ली . इस डील के मुताबिक दशहरे के अगले दिन 1 फॉर्मल अनाउन्स्मेंट होनी थी जिसके बाद मिल्स के मालिक सपरू साहब हो जाते.मेनका ने अपनी वसीयत मे भी ज़रूरी बदलाव कर दिए.

और आख़िर दशहरे का दिन आ ही गया जब जब्बार का सपना पूरा होने वाला था.आज वो सुबह से ही बॉटल खोल कर बैठा था & अभी जब शाम के 4 बज रहे थे,पी कर पूरी तरह से नशे मे था.

"सोढी...साहब..आप ना होते तो मैं आज का दिन कभी नही देख पता.थन्क्यौ,सर!"

"अरे,जब्बार भाई इसमे थॅंक्स की क्या बात है,आपने हमारी मदद की हमने आपकी.बस."

"नही,सर.आपने मुझपे बहुत बड़ी कृपा की है...आज.. आज जाके मेरी मा की आत्मा को शांति मिलेगी..."

"जी...मैं समझा नही."

"सोढी साहब अपने मुझे अपनी दास्तान सुनाई थी ना कि कैसे राजा ने आपकी ज़िंदगी का रुख़ बदल दिया.आज मैं आपको अपनी कहानी सुनाता हूँ."

"मैं कोई 13-14 साल का था.मैं शहर मे अपनी मा के साथ रहता था,पिता तो थे ही नही.मा के लिए तो बस मैं ही सब कुच्छ था,हर वक़्त उसे बस मेरी ही फ़िक्र लगी रहती थी.पर 1 बात थी जो मुझे कभी-2 ख़टकती थी.मैं बड़ा हो रहा था & मैने 1 बात गौर की थी कि हर शनिवार को मा शाम 5 बजते कही चली जाती & दूसरे दिन दोपहर 2-3 बजे तक आती.पुच्छने पर टाल जाती कि पास के गाँव के मंदिर जाती है & चूँकि वाहा बहुत भीड़ रहती है इसीलिए उसे इतना समय लगता है.."

"...मा अपनी 1 सहेली के परिवार के पास मुझे छ्चोड़ कर जाती थी पर इधर कुच्छ महीनो से मैं अकेला ही घर पे रह जाता था,अब मैं बड़ा हो रह था & किसी और के घर पे रहना मुझे अच्छा नही लगता था.उस शनिवार भी मा शाम होते चली गयी.मैं घर पे यूही बैठा था कि तभी मेरा 1 दोस्त आ गया & मुझ से साथ मे बाज़ार चलने को कहने लगा.मा तो दूसरे दिन से पहले आती नही सो मैं उस के साथ चला गया."

"...हम काफ़ी देर तक बाज़ार मे घूमते रहे कि तभी 1 आलीशान कार की पिच्छली सीट के दरवाज़े को खोल कर अंदर बैठती मुझे मा नज़र आई.मैं उस तरफ बढ़ गया....मुझे हैरत हो रही थी मा इतनी शानदार कार मे!मैं उस कार की तरफ बढ़ ही रहा था कि तभी देखा कि दूसरी तरफ का दरवाज़ा खोल कर 1 शख्स कार के अंदर बैठा & बैठते ही मा को बाहों मे भर लिया...आगे मैं कुच्छ देख नही पाया क्यूकी कार के काले शीशे बंद हो गये थे & कार वाहा से निकल गयी."

"आप सोच भी नही सकते सोढी साहब मेरे दिल पे क्या गुज़री थी!कैसे-2 ख़याल आ रहे थे मेरे मन मे.पूरा हफ़्ता मैं इसी उधेड़बुन मे रहा & फिर से शनिवार आ गया.मैने सोच लिया कि इस बार इस मामले की तह तक ज़रूर पहुँचुँगा."

"..इस बार मा निकली तो मैने मा का पीछा लिया & पहुँच गया 1 शहर के सबसे पॉश इलाक़े मे 1 आलीशान कोठी के सामने.मा कार मे बैठ अंदर चली गयी थी & गाते पे गार्ड्स खड़े थे.मैं वही कोने मे छिप कर बैठ अंदर जाने का रास्ता सोचता रहा.घड़ी देखी तो पाया कि 9 बज रहे थे.मैने कोठी का 1 चक्कर लगाया & 1 जगह पाया कि दीवार पर चढ़ा जा सकता है.."

"..फिर सोढी साहब मैं जैसे-तैसे करके उस कोठी मे दाखिल हो गया & सावधानी से हर कमरे मे झाँकने लगा.1 कमरे से खिलखिलाने की आवाज़ आई तो मैं लपक कर वाहा पहुँचा.दरवाज़ा बंद था पर तभी मेरा ध्यान उस कमरे की बाल्कनी पे गया तो मैं किसी तरह उसपे पहुँच गया.वाहा 1 रोशनदन था,मैने पास पड़ी 1 कुर्सी पे चढ़ उस रोशनदन से झाँकने लगा.."

"अंदर हमारे दिवंगत राजा यशवीर के पिता पूरे नंगे घुटनो के बल बिस्तर पे खड़े थे.उनके 1 हाथ मे फोन का रिसीवर था जिस से वो किसी से बात कर रहे थे & दूसरे हाथ मे मेरी मा का सर जोकि उनके लंड पे उपर-नीचे हो रहा था.मैं तो सकते मे आ गया,कुच्छ होश नही रह..अपनी मा को उस हाल मे देख मुझे शर्मा कर हट जाना चाहिए थे पर मेरा तो दिमाग़ सुन्न हो गया था.."

"...तभी उन्होने रिसीवर रख दिया & दोनो हाथों से मेरी मा के सर को पकड़ अपनी कमर हिला उसके मुँह को चोदने लगे."

"ऐसी कौन सी ज़रूरी बात थी कि मुझ से भी ध्यान हटा दिया था?,मा उनसे पुच्छ रही थी."

"वो राजकुमार की पढ़ाई के बारे मे कुच्छ बात थी."

"1 राजकुमार तो आपका शहर मे भी है,हुज़ूर.,मा ने उनके लंड को हिलाते हुए कहा."

"कौन?,राजा सहब ने पूचछा"

"मेरा बेटा जब्बार भी तो आप ही का खून है तो वो भी तो राजकुमार हुआ.,मा ने लंड को दोनो हाथों मे भर अपने गाल से रगड़ा."

"राजा ने इतनी ज़ोर का थप्पड़ मा को मारा कि मा पलंग से नीचे गिर गयी,उसके होठ के कोने से खून बह रहा था."

"कान खोल के सुन ले.तू हमारी रखैल है & तेरा बेटा 1 रखैल का बेटा.कभी सपने मे भी उसकी बराबरी हुमारे राजकुमार से नही करना.समझी!,कह कर वो पलंग से नीचे उतरे & मेरी मा को उल्टा कर उसकी कमर पकड़ कर अपना लंड उसकी गंद मे पेल दिया."

"..बस उस दिन से मैने सोच लिया था कि राजकुल का विनाश कर दूँगा."

"बहुत दर्द भारी कहानी है,जब्बार साहब.चलिए राजा को उसके किए की सज़ा मिली.पूरा खानदान अपनेआप ही मौत के मुँह मे समाता चला गया."

"ग़लत,सोढी साहब.राजा यशवीर केवल अपनी मौत मारा है.उसकी दोनो औलादो को मैने उपरवाले के पास पहुँचाया है."

"क्या?"

"जी.बड़े लड़के यूधवीर की कार के ब्रेक्स फैल कर दिए थे.बहुत पेपड बेलने पड़े थे तब जा के कार से छेड़-खानी का मौका मिला था.लोगो को लगा कि आक्सिडेंट है & मेरा काम हो गया...& दूसरा लड़का विश्वजीत-उसको तो ऐसी ड्रग्स की लत लगाई की पुछो मत.राजा ने उसे हमारे चंगुल से निकल ही लिया था पर मैने उसे भी नही छ्चोड़ा.मार कर ही दम लिया."

जब्बार की शराब से खुलती ज़ुबान ने मलिका को चौकन्ना कर दिया,"डार्लिंग.अब बस करो.महल जाना है ना डील साइन करने.इस हालत मे तो खड़े भी नही हो पायोगे.",उसने ग्लास उसकी गिरफ़्त से अलग कर दिया.

"ओके.जानेमन.आज तो मैं तुम्हे महल की सैर कारवंगा.तुम मेरी रानी अब महल की रानी बनोगी.चलो,जाके तुम भी रानियो की तरह सारी पहन लो..जाओ!"

"पर मैं जा के क्या करूँगी?"

"पर-वार कुच्छ नही.तुम भी जाओगी.तुम रानी हो.जाओ सारी पहन कर आओ1"

सोढी ने मलिका को उसकी बात मान ने का इशारा किया.बस कुच्छ ही देर मे उन्हे मेनका से मिलने महल पहुँचना था.

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आज दशहरे का दिन था & पास के गाँव मे बहुत बड़ा मेला लगा था,जहा रावण को जलाया जाने वाला था.पूरा राजपुरा वही जा रहा था.मेनक ने भी महल के 1-1 नौकर को वही भेज दिया,यहा तक की गेट पे 1 गार्ड को भी नही रहने दिया.जब उन्होने उसके बारे मे पुचछा तो उसने कहा कि वो सेशाद्री साहब की फॅमिली के साथ आ जाएगी.

पूरा गाँव मेले की ओर जा रहा था & थोड़ी ही देर बाद राजपुरा मे सन्नाटा च्छा गया & महल मे भी.मेनका नही चाहती थी कि जब्बार महल आए तो कोई भी देखे.

"रानी साहिबा,मैं 1 घंटे बाद महल पहुँच जाऊँगा."

"ठीक है,सेशाद्री अंकल.हम आपके साथ ही दशहरे के मेले मे जाएँगे.",मेनका ने फोन रख दिया.तभी बाहर कोई कार रुकने की आवाज़ आई.

मेनका बाहर आई तो देखा कि कार से जब्बार,मलिका & सोढी उतर रहे हैं.

"नमस्कार रानी साहिबा.हम आ गये आपका भर हल्का करने.चलिए पेपर्स साइन करते हैं.",जब्बार नशे मे चूर बोले जा रहा था.

तीनो मेनका के साथ अंदर हॉल मे आकर बैठ गये.हॉल मे कुच्छ अजीब सी बू आ रही थी.मलिका बुरा सा मुँह बनाते हुए मेनका से बोली,"कुच्छ बदबू नही आ रही?"

"नही तो."

"ये लीजिए पेपर्स,साइन कीजिए & अगले 3 दीनो मे आपके बॅंक अकाउंट्स मे सारे पैसे जमा हो जाएँगे.",जब्बार ने कुच्छ काग़ज़ मेनका की तरफ बढ़ाए.

मेनका ने काग़ज़ उठाए & बगल की टेबल से 1 लाइटर उठाकर उन पेपर्स को आग लगा दी.

"ये क्या बहुड़गी है!",जब्बार चीखा.

"नीच इंसान!तूने ये सोच भी कैसे लिया कि हम तुझे,उस इंसान को...जिसने हमारे खानदान को तबाह कर दिया,उसे अपनी अमानत बेचेंगे.",मेनका ने जलते कागज़ात सोफे पे फेंक दिए जिस से कि सोफा धू-धू कर जलने लगा.आग तेज़ी से हॉल मे फैलने लगी तो मलिका को समझ मे आया कि वो बू पेट्रोल की थी.वो घबरा गयी...आख़िर ये रानी क्या चाहती है?

"हमे यहा से निकलना चाहिए,जब्बार.ये औरत पागल हो गयी है.खुद भी मरेगी हमे भी मारेगी.",उसने जब्बार का हाथ पकड़ कर बाहर निकलने का इशारा किया.

"तुम लोग कही नही जाओगे.यही इस आग मे जल्के अपने करमो की सज़ा पाओगे.",मेनका गर्जि.

"कुतिया!",जब्बार ने झपट कर मेनका को पकड़ लिया पर तभी 1 करारा हाथ उसके जबड़े पे पड़ा.सोढी ने उसे मारा था पर सोढी कहा...ये तो ...ये तो कोई और था.सोढी ने अपनी पगड़ी उतार फेंकी थी,जब्बार ने गौर से देखा तो उसकी आँखे हैरत से फैल गयी...ये तो राजा यशवीर सिंग था.इतने दिन ये आदमी भेस बदल कर उसके पास आता रहा,बात करता रहा और वो अपने सबसे बड़े दुश्मन को पहचान नही पाया!

किसी ने सही कहा है,विनाश काले विपरीत बुद्धि.

"जब्बार,तूने हमारे दोनो मासूम बेटो को मौत की नींद सुला दिया.उनका क्या कसूर था.हमारे पिताजी की ग़लती की सज़ा हमे देता.1 मर्द की तरह सामने से वार करता.पर नही तू 1 बुज़दिल चूहा है & आज चूहे की मौत मरेगा."

आग ने पूरे हॉल को अपने आगोश मे ले लिया था.मलिका नज़र बचा कर भागने ही वाली थी कि तभी राजा साहब ने उसे पकड़ लिया,"तूने भी विश्वा की हत्या की थी.तेरे दूसरे आशिक़ कल्लन ने हमे सब बताया था.चल!",राजा साहब ने उसे 1 रस्सी से बाँध वही फर्श पे पटक दिया.मलिका अपनी जान की भीख मांगती रही पर राजा साहब & मेनका जैसे बहरे हो गये थे.

थोड़ी ही देर मे मलिका की चीखें बढ़ती लपटो मे घुट गयी.

राजा साहब ने जब्बार को 1 जलती लकड़ी से जम कर पीटा & आख़िर मे उस लकड़ी से उसके चेहरे को झुलस कर मौत के घाट पहुँचा दिया.

"मेनका,चलो यहा से निकले.सेशाद्री के आने से पहले हमे निकलना होगा.हमारा हाथ पाकड़ो.",उन्होने मेनका का हाथ पकड़ा & जलते हुए हॉल से निकलने लगे कि तभी आग से खाक हो दीवार का 1 बड़ा हिस्सा उनके सामने गिरा,"यश..!",मेनका की चीख सुनाई दी ,फिर इतना धुआँ फैला कि कुच्छ नज़र नही आया कि दोनो कहा गये-निकल भी पाए की नही उस आग के तूफान से!

चारो तरफ बस आग ही आग थी.सेशाद्री तो ये नज़ारा देख बेहोश ही हो गये.किसी तरह उन्होने अपनी जेब से मोबाइल निकाला & पोलीस को फोन मिलाने लगे.

क्रमशः...................

mast menaka paart--16

gataank se aage......................

Jabbar ne Menaka & sodhi ki meeting karwa di jisme menaka use apna hissa bechne ko razi ho gayi.jabbar ki to khushi ka thikana nahi tha.ab to vo besabri se us din ka intezar kar raha tha jis din mills ke papers uske haathon me aate.

idhar menaka ne sapru sahab ke sath chup-chap deal sign kar li . is deal ke mutabik dusshehre ke agle din 1 formal announcement honi thi jiske baad mills ke maalik sapru sahab ho jate.menaka ne apni vasiyat me bhi zaruri badlav kar diye.

aur aakhir dussehre ka din aa hi gaya jab jabbar ka sapna pura hone wala tha.aj vo subah se hi bottle khol kar baitha tha & abhi jab sham ke 4 baj rahe the,pi kar puri tarah se nashe me tha.

"sodhi...sahab..ap na hote to main aj ka din kabhi nahi dekh pata.thankyou,sir!"

"are,jabbar bhai isme thanks ki kya bat hai,aapne humari madad ki humne aapki.bas."

"nahi,sir.aapne mujhpe bahut badi kripa ki hai...aaj.. aaj jake meri ma ki atma ko shanti milegi..."

"ji...main samjha nahi."

"sodhi sahab apne mujhe apni dastan sunai thi na ki kaise raja ne apki zindagi ka rukh badal diya.aaj main apko apni kahani sunata hun."

"main koi 13-14 saal ka tha.main shahar me apni ma ke sath rehta tha,pita to the hi nahi.maa ke liye to bas main hi sab kuchh tha,har waqt use bas meri hi fikr lagi rehti thi.par 1 bat thi jo mujhe kabhi-2 khatakti thi.main bada ho raha tha & maine 1 bat gaur ki thi ki har shanivar ko maa sham 5 bajte kahi chali jati & dusre din dopahar 2-3 baje tak ati.puchhne par taal jati ki paas ke ganv ke mandir jati hai & chunki vaha bahut bheed rehti hai isiliye use itna samay lagta hai.."

"...maa apni 1 saheli ke parivar ke paas mujhe chhod kar jati thi par idhar kuchh mahino se main akela hi ghar pe reh jata tha,ab main bada ho rah tha & kisi aur ke ghar pe rehna mujhe achha nahi lagta tha.us shanivar bhi maa sham hote chali gayi.main ghar pe yuhi baitha tha ki tabhi mera 1 dost aa gaya & mujh se sath me bazar chalne ko kehne laga.maa to dusre din se pehle aati nahi so main us ke sath chala gaya."

"...hum kafi der tak bazar me ghumte rahe ki tabhi 1 aalishan car ki pichhli seat ke darwaze ko khol kar andar baithti mujhe ma nazar aayi.main us taraf badh gaya....mujhe hairat ho rahi thi ma itni shandar car me!main us car ki taraf badh hi raha tha ki tabhi dekha ki dusri taraf ka darwaza khol kar 1 shakhs car ke andar baitha & baithte hi maa ko baahon me bhar liya...aage main kuchh dekh nahi paya kyuki car ke kale sheeshe band ho gaye the & car vaha se nikal gayi."

"aap soch bhi nahi sakte sodhi sahab mere dil pe kya guzri thi!kaise-2 khayal aa rahe the mere man me.pura hafta main isi udhedbun me raha & fir se shanivar aa gaya.maine soch liya ki is baar is mamle ki teh tak zarur pahunchunga."

"..is baar ma nikli to maine ma ka peechha liya & pahunch gaya 1 shahar ke sabse posh ilake me 1 aalishan kothi ke samne.maa car me baith andar chali gayi thi & gate pe guards khade the.masin vahi kone me chhip kar baith andar jane ka rasta sochta raha.ghdi dekhi to paya ki 9 baj rahe the.maine kothi ka 1 chakar lagaya & 1 jagah paya ki deewar par chadha ja sakta hai.."

"..phir sodhi sahab main jaise-taise karke us kothi me dakhil ho gaya & savdhani se har kamre me jhankne laga.1 kamre se khilkhilane ki avaz aayi to main lapak kar vaha pahuncha.darwaza band tha par tabhi mera dhyan us kamre ki balcony pe gaya to main kisi tarah uspe pahunch gaya.vaha 1 roshandan tha,maine paas padi 1 kursi pe chadh us roshandan se jhankne laga.."

"andar humare divangat raja yashveer ke pita pure nange ghutno ke bal bistar pe khade the.unke 1 hath me phone ka receiver tha jis se vo kisi se bat kar rahe the & dusre hath me meri maa ka sar joki unke lund pe upar-neeche ho raha tha.main to sakte me a gaya,kuchh hosh nahi rah..apni ma ko us hal me dekh mujhe sharma kar hat jana chahiye the par mera to dimagh sunn ho gaya tha.."

"...tabhi unhone receiver rakh diya & dono hathon se meri maa ke sar ko pakad apni kamar hila uske munh ko chodne lage."

"aisi kaun si zaruri baat thi ki mujh se bhi dhyan hata diya tha?,ma unse puchh rahi thi."

"vo rajkumar ki padhayi ke bare me kuchh baat thi."

"1 rajkumar to apka shahar me bhi hai,huzur.,maa ne unke lund ko hilate hue kaha."

"kaun?,raja sahb ne poochha"

"mera beta jabbar bhi to aap hi ka khun hai to vo bhi to rajkumar hua.,maa ne lund ko dono haathon me bhar apne gal se ragada."

"raja ne itni zor ka thappad maa ko mara ki ma palang se neeche gir gayi,uske hotho ke kone se khun beh raha tha."

"kaan khol ke sun le.tu hamari rakhail hai & tera beta 1 rakhail ka beta.kabhi sapne me bhi uski barabari humare rajkumar se nahi karna.samjhi!,keh kar vo palang se neeche utare & meri maa ko ulta kar uski kamar pakad kar apna lund uski gand me pel diya."

"..bas us din se maine soch liya tha ki rajkul ka vinash kar dunga."

"bahut dard bhari kahani hai,jabbar sahab.chaliye raja ko uskje kiye ki saza mili.pura khandan apneap hi maut ke munh me samata chala gaya."

"galat,sodhi sahab.raja yashveer kewal apni maut mara hai.uski dono aulado ko maine uparwale ke pas pahunchaya hai."

"kya?"

"ji.bade ladke yudhvir ki car ke brakes fail kar diye the.bahut papad belne pade the tab ja ke car se chhedkhani ka mauka mila tha.logo ko laga ki accident hai & mera kam ho gaya...& dusra ladka vishwajeet-usko to aisi drugs ki lat lagayi ki puchho mat.raj ne use humare changul se nikal hi liya tha par maine use bhi nahi chhoda.maar kar hi dum liya."

jabbar ki sharab se khulti zuban ne malika ko chaukanna kar diya,"darling.ab bas karo.mahal jana hai na deal sign karne.is halat me to khade bhi nahi ho payoge.",usne glass uski giraft se alag kar diya.

"ok.janeman.aaj to main tumhe mahal ki sair karaunga.tum meri rani ab mahal ki rani banogi.chalo,jake tum bhi raniyo ki tarah sari pehan lo..jao!"

"par main ja ke kya karungi?"

"par-var kuchh nahi.tum bhi jaogi.tum rani ho.jao sari pehan kar aao1"

sodhi ne malika ko uski bat man ne ka ishara kiya.bas kuchh hi der me unhe menaka se milne mahal pahunchna tha.

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aaj dusshehre ka din tha & paas ke ganve me bahut bada mela laga tha,jaha ravan ko jalaya jane wala tha.pura rajpura vahi ja raha tha.menak ne bhi mahal ke 1-1 naukar ko vahi bhej diya,yaha tak ki gate pe 1 guard ko bhi nahi rehne diya.jab unhone uske bare me puchha to usne kaha ki vo seshadri sahab ki family ke sath a jayegi.

pura ganv mele ki or ja raha tha & thodi hi der baad rajpura me sannata chha gaya & mahal me bhi.menaka nahi chahti thi ki jabbar mahal aye to koi bhi dekhe.

"Rani Sahiba,main 1 ghante baad mahal pahunch jaoonga."

"thik hai,seshadri uncle.hum aapke sath hi dusshehre mele me jaayenge.",menaka ne phone rakh diya.tabhi bahar koi car rukne ki aavaz aayi.

menaka bahar aayi to dekha ki car se jabbar,malika & sodhi utar rahe hain.

"namaskar rani sahiba.hum aa gaye aapka bhar halka karne.chaliye papers sign karte hain.",jabbar nashe me chur bole ja raha tha.

teeno menaka ke sath andar hall me aakar baith gaye.hall me kuchh ajeeb si bu aa rahi thi.malika bura sa munh banate hue menaka se boli,"kuchh badbu nahi aa rahi?"

"nahi to."

"ye lijiye papers,sign kijiye & agle 3 dino me aapke bank accounts me sare paise jama ho jayenge.",jabbar ne kuchh kagaz menaka ki taraf badhaye.

menaka ne kagaz uthaye & bagal ki table se 1 lighter uthakar un papers ko aag laga di.

"ye kya behudgi hai!",jabbar cheekha.

"neech insan!tune ye soch bhi kaise liya ki hum tujhe,us insan ko...jisne humare khandan ko tabah kar diya,use apni amanat bechenge.",menaka ne jalte kagazat sofe pe fenk diye jis se ki sofa dhu-dhu kar jalne laga.aag tezi se hall me failne lagi to malika ko samajh me aaya ki vo bu petrol ki thi.vo ghabra gayi...aakhir ye rani kya chahti hai?

"hume yaha se nikalna chahiye,jabbar.ye aurat pagal ho gayi hai.khud bhi maregi hume bhi maaregi.",usne jabbar ka hath pakad kar bahar nikalne ka ishara kiya.

"tum log kahi nahi jaoge.yahi is aag me jalke apne karmo ki saza paaoge.",menaka garji.

"kutiya!",jabbar ne jhapat kar menaka ko pakad liya par tabhi 1 karara hath uske jabde pe pada.sodhi ne use mara tha par sodhi kaha...ye to ...ye to koi aur tha.sodhi ne apni pagdi utar fenki thi,jabbar ne gaur se dekha to uski aankhe hairat se fail gayi...ye to raja yashveer singh tha.itne din ye aadmi bhes badal kar uske paas aata raha,baat karta raha aur vo apne sabse bade dushman ko pehchan nahi paya!

kisi ne sahi kaha hai,vinash kaale viprit buddhi.

"jabbar,tune humare dono masoom beto ko maut ki neend sula diya.unka kya kasoor tha.humare pitaji ki galti ki saza hume deta.1 mard ki tarah samne se vaar karta.par nahi tu 1 buzdil chuha hai & aaj chuhe ki maut marega."

aag ne pure hall ko apne aagosh me le liya tha.malika nazar bacha kar bhagne hi wali thi ki tabhi raja sahab ne use pakad liya,"tune bhi vishwa ki hatya ki thi.tere dusre aashiq kallan ne hume sab bataya tha.chal!",raja sahab ne use 1 rassi se bandh vahi farsh pe patak diya.malika apni jaan ki bhikh mangti rahi par raja sahab & menaka jaise bahre ho gaye the.

thodi hi der me malika ki cheekhen badhti lapto me ghut gayi.

raja sahab ne jabbar ko 1 jalti lakdi se jam kar peeta & aakhir me us lakdi se uske chehre ko jhulas kar maut ke ghat pahuncha diya.

"menaka,chalo yaha se nikale.seshadri ke aane se pehle hume nikalna hoga.humara hath pakdo.",unhone menaka ka hath pakda & jalte hue hall se nikalne lage ki tabhi aag se khak ho deewar ka 1 bada hissa unke samne gira,"yash..!",menaka ki cheekh sunai di ,phir itna dhuan faila ki kuchh nazar nahi aaya ki dono kaha gaye-nikal bhi paye ki nahi us aag ke toofan se!

charo taraf bas aag hi aag thi.seshadri to ye nazara dekh behosh hi ho gaye.kisi tarah unhone apni jeb se mobile nikala & police ko phone milane lage.

kramshah................












आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj






















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