Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--17

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बाली उमर की प्यास पार्ट--17

गतांक से आगे.......................

मैने अपनी जेब में हाथ मार कर मोबाइल के कारण उभर सी गयी स्कर्ट को ठीक किया और बिना कोई जवाब दिए दरवाजा खोलकर बाहर निकल गयी..

संदीप पिंकी के साथ दूसरे कमरे में चुपचाप बैठा था.. पर मैं उसकी तरफ देख नही पाई..," चलें... पिंकी!"

"हाँ.. एक मिनिट.." पिंकी ने खड़े होकर मुझसे कहा और संदीप की ओर पलट गयी..," परसों तक आ जाएगी ना शिखा?"

"मैं.. बता दूँगा.." मुझे संदीप की आवाज़ आई.. मैं पहले ही बाहर की ओर अपना चेहरा घुमा चुकी थी.. पिंकी के बाहर आते ही हम सीढ़ियों से नीचे उतर गये...

"क्या कह रहा था ढोलू?" गली में आते ही पिंकी ने मुझसे पूचछा...

"एयेए.. हाआँ.. कुच्छ नही.. बस..." मैं उसका सवाल सुनकर हड़बड़ा गयी...

"तो फिर 10 मिनिट से उसके पास क्या कर रही थी...? अच्च्छा लड़का नही है वो.. इसके घर वाले भी इस'के काम धंधों से परेशान रहते हैं... तुझे ज़्यादा देर उसके पास नही रुकना चाहिए था..." पिंकी ने मुझे हिदायत सी देते हुए कहा....

"हां.. मुझे पता है.. पर मैं क्या करती.. इधेर उधर की बातें करता रहा.. पर्चे कैसे चल रहे हैं.. कोई दिक्कत तो नही है.. वग़ैरह वग़ैरह.. इसके पास तो रेवोल्वेर भी है.. मुझे दिखा रहा था.. बोल रहा था कि कोई प्राब्लम हो तो बता देना..." मैं अपने आप को बचाते हुए बातें बताने लगी...

"चल छ्चोड़.. हम दीदी को वो बात तो बताना भूल ही गये.. मनीषा वाली.." मैने बीच में ही रुक कर उसको बताया....

"अर्रे हाँ!.." पिंकी ने जवाब दिया..," चल.. जल्दी घर चल...

हम घर पहुँचे तो मीनू वापस आ चुकी थी.. घर के अंदर जाते ही वो मुझे कहने लगी..," चाचा मान गये.. कल तू मेरे साथ ही चलना..!"

मैने उसकी बात पर हल्की सी प्रतिक्रिया देते हुए कहा..," हाँ.. पर एक बात ग़लत हो गयी दीदी!"

"क्या?" मीनू ने चिंतित होते हुए पूचछा...

"वो.. हमने कल इनस्पेक्टर को ये कहा था ना कि तरुण परसों यहाँ से 11 बजे गया है......" मुझे मीनू ने बीच में ही रोक दिया..," एक मिनिट.. पिंकी.. मम्मी पापा तरुण के घर गये हैं.. तू चाय बना ला भाग कर...!"

"क्या दीदी? मुझे हमेशा अपने पास से उठा कर भगा देते हो.. मुझे सब पता है.. जो ये आपको बताएगी..." पिंकी ने अपना मुँह चढ़ा कर कहा....

"वो बात नही है पागल.. सच में चाय का दिल कर रहा है.. जब तक अंजू बात बता रही है.. तू भाग कर चाय बना ला.. प्ल्स!" मीनू ने याचना सी करते हुए कहा...

"ठीक है..!" पिंकी ने मुँह लटकाया और उपर चली गयी....

"तू पहले एक बात बता अंजू! कल अगर वो इनस्पेक्टर कुच्छ उल्टा सीधा बोलने लगा तो..?" मीनू ने पिंकी के जाते ही मुझसे कहा....

"क्या मतलब दीदी? मैं समझी नही" मैने कहा...

"वो.. मेरा कहने का मतलब है कि उसके पास वो 'लेटर्स' हैं.. अगर वो भी मुझे ब्लॅकमेल करने लगा तो..?" मीनू ने उदास होकर कहा...

"तो..." मैं चुपचाप उसके चेहरे को यूँही देखती रही..," मैं क्या बताउ दीदी?"

"चल छ्चोड़.. कल ही पता लगेगा.. उसके मॅन में क्या है.. तू क्या बता रही थी..." मीनू वापस मेरी बात पर आकर बोली...

" वो.. मानीषा है ना.. ट्रॅक्टर वाली....!" मैने कहा...

"हां.. क्या हुआ ?"

"उसने परसों रात 9:00 बजे के आसपास चौपाल में लड़ाई की आवाज़ सुनी थी.. उसने शायद इनस्पेक्टर को भी बता दी....!" मैने कहा...

"तो इसमें....!" मीनू बोलते बोलते अचानक रुकी और बात समझ में आते ही उसकी टोन बदल गयी," हे भगवान.. कब बताई उसने इनस्पेक्टर को ये बात?"

"शायद यहाँ आने से पहले ही उसको पता चल गया होगा.. तभी तो मुझे दोबारा ठीक से सोच कर बताने को बोल रहा था...!" मैने मीनू की तरह ही मरा सा मुँह बना कर कहा....

"ओह्ह.. इस'से तो हमारी झूठ पकड़ी जाएगी... इस बात पर तो हम अड़ भी सकते हैं.. पर अगर तरुण को किसी ने ग्यारह बजे से पहले ही मार दिया होगा तो हम ज़रूर झूठे हो जाएँगे... पोस्ट्मॉर्टम रिपोर्ट में तो सब कुच्छ आ जाएगा... फिर हम क्या कहेंगे...." मीनू रोने को हो गयी....

"एक बात कहूँ दीदी.. बुरा ना मानो तो.." मेरे दिमाग़ में कुच्छ आया था....

"हां.. बोल.. अब इस'से बुरा क्या होगा मेरे साथ..!" मीनू पूरी तरह हताश हो चुकी थी...

"वो.. मैं ये कह रही हूं कि उसको लेटर्स तो मिल ही चुके हैं... आप उसको सब सच सच क्यूँ नही बता देते.. कि वो आपको ब्लॅकमेल कर रहा था... उन्न लेटर्स के लिए.... फिर हम ये भी बोल देंगे कि हमने इसी बात को छिपाने के लिए झूठ बोला था..." मैने कहा....

मीनू कुच्छ देर तक चुपचाप बैठी सोचती रही... उसने मेरी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दी..," पर वो तो पिछे पड़ा है कि मुझे कातिल के बारे में पता है.. मैं कातिल कहाँ से लाकर दूँ उसको...."

तभी पिंकी चाय लेकर आ गयी," फँस गये ना हम दीदी?" उसने आते ही पूचछा...

"क्यूँ..? क्यूँ डरा रही है...?" मीनू ने हड़बड़ा कर कहा..

"नही.. वो 11 बजे वाली बात तो इनस्पेक्टर को पता लग गयी ना.. कि हमने झूठ बोला था...!"

मीनू ने पिंकी की बात का कोई जवाब नही दिया... तभी मैने प्रिन्सिपल मेडम की बात छेड़ दी..," एक बात और बताई है प्रिन्सिपल मेडम ने.. आज मुझे!"

"हां.. वो क्या कह रही थी तुझे.. अकेले में बुला कर...!" पिंकी ने पूचछा.....

" तरुण और सोनू परसों वापस स्कूल में गये थे.. सर से अकेले में कुच्छ बात की थी उन्होने.. मेडम कह रही थी कि ज़रूर उन्होने सर के साथ कोई समझौता किया था.. शायद उस रेकॉर्डिंग को दिखा कर ही डराया होगा उनको... तरुण उस दिन कह भी रहा था.. कि वो मास्टर अब कहाँ जाएगा बच कर...!" मैने उनको याद दिलाया...

"हाँ.. पर इस बात का क्या मतलब है?" मीनू ने मेरे बात बताने का मकसद पूचछा...

"मेडम बता रही थी कि उस मास्टर की पहुँच काफ़ी उपर तक है.. शराब के ठेके लेने जैसे कयि धंधे हैं उसके.. ऐसे आदमी ख़तरनाक तो होते ही हैं..." मैने आगे कहा....

"मतलब.. उस मास्टर ने तरुण को...." मीनू अचानक चुप हो गयी.. और फिर बोली..," पर उसको क्या पता कि तरुण हमारे पास आता है.. और उसको तरुण का घर भी कैसे पता होगा...." मीनू सोचते हुए बोली...

"मैं आज दिन भर यही सोच रही थी दीदी... सर को पता था कि तरुण हमारे गाँव का ही है.. फिर गाँव में आकर तरुण का घर पता करना मुश्किल नही है... हो सकता है उन्होने किसी को इस काम के लिए लगा दिया हो... और तरुण जब लेटर लेने के लिए घर गया हो तो वो आदमी तरुण के पिछे पिछे आ गया हो... और मौका देख कर मार कर चौपाल में...." मैने दिन भर इस बात पर की हुई मथापच्ची का निचोड़ उनको सुना दिया....

"हूंम्म्म..." मीनू मेरी बात पर सहमति जताते हुए बोली..," ज़रूर यही हुआ होगा.. तो क्या हम ये बात इनस्पेक्टर को बता दें..?"

"पर.. इस'से पिंकी की और मेरी पोले भी खुल जाएगी.. अगर वो इनस्पेक्टर सर के पास पहुँच गया तो..!" मैने डरते हुए कहा...

"फिर इस इनस्पेक्टर से पिच्छा कैसे च्चुड़ायें यार..? 'वो' तो मेरे पिछे ही पड़ा रहेगा.. जब तक कातिल नही पकड़ा जाता...!" मीनू रुनवासी सी होकर बोली....

"पहले कल आप सिर्फ़ वो ब्लॅकमेलिंग वाली बात बता कर देख लो दीदी.. बाद में सोच लेना..." मैने कहा...

"कल मेरे साथ चल तो रही है ना.. तू भी?" मीनू ने मुझसे पूचछा...

"हां.. चल पड़ूँगी दीदी.. पर प्लीज़.. ये बात मेरे सामने मत बताना उसको.. सर वाली..." मैने प्रार्थना सी की....

"चल ठीक है.. वो सब बाड़म आइन सोच लेंगे...."मीनू ने मेरी बात पर सहमति जताई....

"मैं घर जाकर आती हूँ दीदी... थोड़ी देर बाद आ जाउन्गि..." मैने खड़ी होकर कहा...

"चल ठीक है.. तेरे आने के बाद ही बात करेंगे...." मीनू बोली...

मैं घर के लिए निकली तो शाम ढलने लगी थी.. कयि तरह की बातों का भंवर सा इकट्ठा होकर मेरे दिमाग़ में उथल पुथल सी मचा रहा था.. अचानक मनीषा को अपने घर की दीवार से मुझे देखते पाकर मेरे कदम ठिठक गये.. मैं कुच्छ सोच कर पलट गयी और उसकी तरफ मुस्कुरकर बोली," कैसी हो मनीषा?"

शायद वह मुझे नही देख रही थी.. उसका ध्यान कहीं और ही था.. मेरे टोकने पर उसका ध्यान भंग हुआ..,"एयेए.. हां.. ठीक हूँ.." वह भी मेरी और मुस्कुरा दी...

एक बार मैने चलने की सोची... पर पता नही क्यूँ.. कुच्छ देर गली में खड़ी रही और फिर उनके आँगन में घुस गयी,"क्या कर रही हो?"

"कुच्छ नही.. " मुझे अंदर आई देख वह कुच्छ सकपका सी गयी..," ठंड जाने लगी है ना... अब कटिया को भी बाहर बाँधना है... उसी के लिए बाहर खूँटा गाड़ रहा हूँ.." उसने कहा और अपने थेग्लि (पॅचस) लगे हुए कुर्ते के हिस्से को छिपाने सी लगी.. घर का काम कर रही होने की वजह से ही शायद उसने इतने गंदे कपड़े डाल रखे थे....

शायद वह मेरे वापस जाने का इंतजार कर रही थी.. पर मेरे मंन में तो कुच्छ और ही चल रहा था..," वो तुमने परसों 9:00 बजे चौपाल से क्या आवाज़ें सुनी थी...?"

"एक मिनिट.. अंदर आ जाओ.. मैं 2 मिनिट में आती हूँ.." मनीषा ने नलके (हॅंडपंप) पर हाथ धोते हुए कहा और उपर भाग गयी... उसकी ये हरकत मेरी समझ में नही आई.. पर मैं उस'से परसों रात के बारे में जान'ना चाहती थी.. इसीलिए नीचे वाले कमरे में जाकर चारपाई पर बैठ गयी....

करीब पाँच मिनिट बाद वह नीचे आई और मुस्कुरकर मेरी और देखने लगी..

"तुम कपड़े बदलने ही गयी थी क्या?" मैने उसके पहने हुए नये कपड़ों की ओर देखते हुए पूचछा... उसने अपने हाथ पिछे छुपा रखे थे...

"हां.." उसने थोडा हिचक कर अपने हाथ आगे किए.. उसके हाथों में थमी एक प्लेट में कुच्छ मिठाई थी.. वह मेरे पास आकर बैठ गयी,"लो.. तुम्हारे लिए...!"

मैने मुस्कुरकर उसकी तरफ देखा और प्लेट में से एक बरफी उठा ली...

"तुम्हारे...... पेपर कैसे चल रहे हैं अंजू!" मेरी और प्यार से देखते हुए उसने पूचछा...

"अच्च्चे चल रहे हैं..! चाचा कहाँ हैं...?" मैने यूँही बात करने के लिए पूचछा....

"उपर पड़ा होगा दारू पीकर साअला!" उसने ज़मीन में देखते हुए कहा... उसके चेहरे के भाव ही बदल गये अचानक.. मुझे लगा मैने ग़लत बात छेड़ दी... पर अचानक ही मेरी और देखते ही उसकी मुस्कान फिर लौट आई," लो.. ना.. और खाओ! मैं शहर से लाया था.... आज!"

अपने लिए बोलते हुए वह कयि बार पुरषवचक शब्दों का प्रयोग कर देती थी.. पर गाँव में कोई उसकी इस बात पर हंसता नही था.. काम भी तो आख़िर वह कोल्हू के बैल की तरह करती थी.. ऐसा कौनसा काम था.. जो आदमी कर सकते थे और वह नही..!

मेरी दादी अक्सर बताती थी....उसकी मा के मरने के बाद घर के बदले माहौल ने बेचारी की स्थिति को बचपन में ही दयनीय सा बना दिया था... बाप पहले ही शराबी था.. कुनबे के नाम पर एक चाचा ही थे जिन्होने शहर में जाने के बाद कभी उनकी सुध ली ही नही.. गाँव वालों ने उसके बापू को बहुत समझाया था कि तेरे पल्ले एक बेटी है.. छ्चोड़ दे दारू! पर 'वो' कभी नही सुधरा.. अपनी आधी से ज़्यादा ज़मीन को तो वो दारू में घोल कर ही पी गया...

पर कहते हैं कि कुच्छ लोग नियती के बंजर खेत को अपनी मेहनत और संघर्ष के कुदाल (क़ास्सी) से पलट कर अपने जीने के लिए उसमें भी 2-4 मीठे फल उगा ही लेते हैं.. मनीषा उन्ही लोगों में से एक निकली.. जब से होश संभाला.. अपने घर को ही संभाल लिया..! बचे हुए खेतों में जी तोड़ कर मेहनत की.. अपने लिए 2 वक़्त की रोटी का भी जुगाड़ किया.. और अपने बाप के लिए शराब का भी.. पर बाकी ज़मीन बिकने ना दी... गाँव में सब उसकी मेहनत और जीने के जज़्बे की कद्र करते थे.....

"क्या हुआ? कहाँ खो गयी अंजू?" मनीषा की बात से मैं विचारों की दुनिया से निकल कर बाहर आई..," आ..आ.. कुच्छ नही.."

"और ले ना! अच्छि नही लगी क्या?" उसने हिचकते हुए पूचछा....

"नही.. बहुत अच्छि है.. मेरा पेट भर गया... वो बताओ ना मनीषा? परसों तुमने क्या सुना था चौपाल में.." मैने पूचछा...

उसने मिठाई की प्लेट उठकर स्लॅब पर रख दी और मेरे पास आकर बैठ गयी..," छ्चोड़ो ना.. जो होना था हो गया.. जिसको बताना था बता दिया.. तुम कुच्छ और बात करो.." बोलकर उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.. उसके हाथ मर्दों की तरह खुरदारे से थे.. और उनमें जान भी बहुत लग रही थी...

"नही.. फिर भी.. बेचारा तरुण.. बिना बात ही मारा गया.. हो सकता है उस वक़्त ही किसी ने उसको मार दिया हो...!" मुझे उसके हाथ की पकड़ कुच्छ अजीब सी लग रही थी.. मैने अपना हाथ छुड़ा लिया...

वह कुच्छ देर चुप रही..," ना.. उस वक़्त किसी ने किसी को नही मारा.. उस वक़्त तो वो चले गये थे.. वो तो नशेड़ी होंगे शायद.. 'ये' काम तो किसी ने बाद में ही किया है... यहाँ उसके पेट में कोई 10-10 बार चाकू घौंपेगा तो वो चीखेगा नही क्या..?" मनीषा ने विचलित सी होते हुए कहा...

"हां.. ये बात तो है.. वो कोई और ही होंगे फिर.." मैं मंन ही मंन खुश हो गयी... तूने इनस्पेक्टर को क्या क्या बताया है...?"

"छ्चोड़ ना अंजू.. क्यूँ इस बात को बार बार उठा रही है... वैसे भी तरुण अच्च्छा लड़का नही था.... तुझे तो पता ही होगा...!"

उसकी बात सुनकर मैं हड़बड़ा गयी..," क्क्या मतलब?"

"छ्चोड़ जाने दे.. तू और सुना!" वह मेरी और मुस्कुरकर प्यार से बोली..

"ठीक है.. मैं जा रही हूँ अब..!" मैं कहकर खड़ी हो गयी....

"आ जाया कर... कभी कभी.. मैं तो अकेला ही रहता हूँ..!" मनीषा ने मेरे साथ ही खड़े होते हुए कहा.... और मेरे साथ साथ बाहर आ गयी...

"हुम्म.. देखूँगी..!" मैने उसकी ओर मुस्कुरकर कहा और दरवाजे की तरफ चल दी..

मैनशा ने तुरंत ही फर्श से भैंसॉं का गोबर उठाना शुरू कर दिया.. मैं घर जाते हुए सोच रही थी.. बेचारी को काम के लिए लेट कर दिया....

"म्‍मह....म्‍म्म्मह....म्‍म्म्
ममह.." मैने अपने आपको उन्ही जाने पहचाने हाथों के चंगुल से छुड़ाने की जी तोड़ कोशिश की.. पर मैं कुच्छ ना कर सकी...

उसका एक हाथ पहले की तरह ही मेरे मुँह पर था.. और दूसरा मेरी कमर से होता हुआ मेरे पेट पर कसा हुआ था... वह मुझे लगभग पूरी ही उठा कर चौपाल की और घसीट'ने लगी.. पर उस दिन ऐसी हालत में भी मेरा ध्यान मेरी कमर में गढ़ी हुई उसकी सुगढ़ और कसी हुई चूचियो पर चला ही गया था... निसचीत तौर पर वह वही लड़की थी जिसने एक बार पहले भी मेरे साथ चौपाल में 'प्यार' का खेल खेला था....

दरअसल.. मैं करीब 8:00 बजे अपने घर से पिंकी के घर के लिए चली थी.. चौपाल के सामने आते ही जैसे ही कंबल में लिपटा हुआ एक साया मेरी और बढ़ा.. मैं एक दम घबरा गयी.. मैने डर कर भागने की कोशिश भी की पर मेरे कदम जड़वत से होकर ज़मीन से ही चिपके रह गये.. वह आई और मुझे किसी मूक खिलौने की भाँति चौपाल में उठा कर उसी जगह ले गयी.. जिस जगह वह पहली बार मुझे लेकर गयी थी...

मैं ना भी डरती.. पर उस दिन हालात बदल चुके थे.. दो दिन पहले ही चौपाल में तरुण की लाश मिली थी.. और कातिल का कुच्छ पता नही था.. 'क्या पता.. इसी ने...' .. ये सोच कर मेरी रूह तक सिहर उठी.. मेरा सारा बदन थर थर काँपने लगा..

काफ़ी देर तक वह मेरे पिछे खड़ी रह कर मेरे मुँह को दबाए हुए मेरे शरीर के साथ छेड़ छाड़ करती रही.. वह मेरी चूचियो को बारी बारी पकड़ कर हिलाते हुए उन्हे मसालती रही.. मेरे कानो में साँसें सी छ्चोड़ती हुई उन्हे हल्का हल्का काट'ती रही... पर पिच्छली बार की तरह वह ना तो मेरे शरीर में जवानी की आग भड़का सकी.. और ना ही मेरे दिल का डर ही दूर कर पाई.. मैं अब भी खड़ी खड़ी काँप रही थी...

थक हार कर उसने मेरे मुँह से हाथ हटाया और मुझे अपनी तरफ पलट लिया.. मेरे गालों को अपने हाथों में लिया और मेरे होंटो पर अपने होन्ट रख दिए.. अजीब सी वो सुखद अनुभूति भी मेरे मॅन से डर निकल नही पाई..

मैं थर थर काँप रही थी.. और इस डर को शायद वह भी समझ चुकी थी.. शायद इसीलिए बार बार मुझे छ्चोड़ कर.. पकड़ कर.. यहाँ वहाँ सहला कर.. मेरा डर दूर करने की कोशिश कर रही थी... वह मुझे विश्वास दिलाना चाह रही थी कि वह ज़बरदस्ती नही कर रही और मुझे उस'से डरना नही चाहिए... पर मेरी ये हालत थी कि मेरे होंटो से एक बोल भी निकल नही पा रहा था.....

अचानक उसने मेरी स्कर्ट को उपर उठा कर अपना हाथ अंदर डाला और मेरी जाँघ को पकड़ कर मेरी एक टाँग उपर उठा ली.. फिर दूसरे हाथ की उंगलियों को मेरे दूसरी तरफ से कछी में डाल कर नितंबों की दरार में मेरी योनि ढूँढने लगी.. उसको मिल भी गयी.. पर एकदम सूखी हुई सी.. जब मेरा गला तक डर के मारे सूख चुका था तो उसको तो सूखा रहना ही था...

शायद वो जैसा सोच रही थी.. मेरे साथ इतना सब कुच्छ करने के बाद भी वो कर नही पा रही थी.. उसकी पल पल में जगह बदल रही छेड़ छाड़ से उसकी झल्लाहट का पता चल रहा था..

अचानक उसने अपने हाथ में लेकर उपर उठाई हुई जाँघ को भी छ्चोड़ दिया.. और इसके साथ ही मुझे ज़मीन पर कुच्छ गिरने की आवाज़ आई.. आवाज़ का होना था कि वह तुरंत हड़बड़ा कर नीचे बैठी और मेरे पैरों के पास हाथ मार कर देखने लगी..

अचानक मुझे ध्यान आया.. मैने धीरे से अपनी स्कर्ट की जेब पर हाथ लगा कर देखा.. मोबाइल गायब था... 'ओह्ह!' मेरे मुँह से निकला और मेरी नज़रें झुक गयी...

अगले ही पल मेरी साँसें हलक में अटक कर रह गयी.. किस्मत कहें या बद किस्मती.. उसको मोबाइल मिल गया और शायद छ्छू कर देखते हुए उसका कोई बटन दब गया.....

"एम्म...एम्म...एम्म..." मेरे काँपते हुए होन्ट उसका नाम लेना चाहते थे.. पर इस'से पहले कि मैं पूरा बोल पाती.. उसने खड़ी होकर मेरे मुँह पर हाथ रख दिया..," ष्ह्ह्ह्ह्ह्ह.... जान से मार दूँगी.. अगर मेरा नाम लिया तो!"

उसने एक बार और बटन दबा कर मोबाइल की स्क्रीन ऑन करके देखा और उसको अपनी चूचियो में थूस लिया....

अब की बार मैने मनीषा का चेहरा बिल्कुल सॉफ देखा था.. और देखने के बाद तो मेरे होश ही उड़ चले थे... पर उसकी जान से मारने की धमकी के बाद मेरी आवाज़ निकलना तो दूर.. साँसें भी थम थम कर आ रही थी... मेरा पूरा शरीर पसीने में नहा चुका था...

"मैं.. मैं तुझसे बहुत प्यार करता हूँ अंजलि.. इतना प्यार की तुम सोच भी नही सकती.. सिर्फ़ तुम्हे एक बार देखने की खातिर घंटों अपने घर की दीवार से गली में देखता रहता हूँ.. पर तुम्हारे सामने ये सब बोलने की मेरी हिम्मत ही नही हुई..." मनीषा धीरे धीरे बोलने लगी...

मुझे उसकी बातें बहुत अजीब लग रही थी.. वो भी एक लड़की और मैं भी.. 'ये कैसा प्यार?' मैं मंन ही मंन भगवान से मुझे वहाँ से निकल लेने की प्रार्थना करती रही....

"तुम भी कुच्छ बोलो ना अंजू! मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे..?" मैनशा ने मेरे गाल पर हाथ रखा और अपना खुरदारा अंगूठा मेरे काँप रहे होंटो पर रख लिया...," बोलो ना कुच्छ.. ऐसे क्यूँ तडपा रही हो तुम..." लड़की की ज़ुबान से मर्दाना ज़ज्बात.. सचमुच बड़ा ही अजीब पल था वो.. मेरे लिए....

"म्म..म्‍म्म.. कैसे बोलूं..? त्त्तुम म्मुझे भी मार डोगी.." मुझे विश्वास हो चला था कि मनीषा ने तरुण को भी ऐसे ही मार दिया होगा.. बोलने पर..

"आए पागल.. तू तो मेरी जान है.. तुझे भला में कैसे मार सकता हूँ.. तू डर क्यूँ रही है अंजू?" मनीषा ने कह कर मुझे अपने सीने से चिपका लिया.. हमारी छातिया एक दूसरी की छातियो से टकरा गयी...

"त्तुम ही तो.... कह रही थी कि मैं बोली तो तुम जान से मार दोगि..." मैने डरते डरते कहा....

"हट पागल! वो तो मैं खुद ही डर गया था.. कि तुमने मुझे पहचान लिया.. उसका ये मतलब थोड़े ही था... प्लीज़.. कुच्छ बोलो ना!" मनीषा ने मेरे चेहरे को चुंबनो से लबरेज करते हुए कहा....

"मुझे जाने दो प्लीज़..!" मेरे मुँह से डरते डरते निकला...

"क्या? इसका मतलब तुम मुझसे प्यार नही करती! क्या तुम सच में मुझसे प्यार नही करती अंजू!" उसके शब्दों में निराशा और हताशा सॉफ झलक रही थी...

"नही.. करती हूँ..!" मैं अपनी कमर पर सख़्त होते उसके हाथों को महसूस करके काँप उठी..

"झूठ बोल रही हो ना तुम.. प्लीज़.. मुझे सच सच बता दो.. तुम मुझसे प्यार करती हो या नही.. प्लीज़ अंजू.. मैं तुम्हारे मुँह से 'हां' सुन'ने को तड़प रहा हूँ.." मनीषा बोलती रही..

"झूठ नही बोल रही.. तुम मुझे बहुत अच्छि लगती हो.. बहुत प्यारी.. सच में!" मुझे लगा, मेरे बचने का सिर्फ़ यही एक रास्ता है...

"फिर जाने देने के लिए क्यूँ बोल रही हो.. मुझसे प्यार करो ना.. उस दिन भी तो किया था तुमने.. कितनी अच्छि तरह.... कितना प्यारा है तुम्हारा शरीर... हर जगह से.. कितनी रसीली सी हो तुम...!" मनीषा मुझे ये सब बोलती हुई दुनिया का आठवाँ अजूबा लग रही थी.. हा! कोई लड़का होता तो.....

"पपता नही क्यूँ.. आज.. यहाँ अंधेरे में मुझे डर सा लग रहा है... मैं इसीलिए बोल रही थी बस.." मैने सफाई दी...

"मेरे घर चलतें हैं... नीचे कोई नही होता.. चलो!" मनीषा ने मुझे छ्चोड़ कर मेरा हाथ पकड़ कर मुझे कंबल में अपने साथ लपेटा और बाहर की ओर चलने लगी... ना तो मेरी 'ना' कहने की हिम्मत थी.. और ना ही मैं 'ना' कह पाई.. हां.. गली में उस वक़्त कोई आ जाता तो शायद मैं उस'से बचने की कोशिश कर लेती.. पर कोई नही आया.. हम चौपाल से निकले और उसके घर में घुस गये....

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अंदर कमरे में जाते ही उसने दरवाजा और खिड़कियाँ बंद की और कंबल उतार कर चारपाई पर रख दिया... मैने महसूस किया.. रोशनी में वो मुझसे नज़रें मिलने से कतरा रही थी..," कुच्छ लोगि तुम?" उसने चेहरा झुकाए हुए पूचछा...

"नही....." उसके इशारा करने के बाद में चारपाई पर जाकर बैठ गयी.. अब डर बाहर उतना नही था.. पर अंदर वैसे का वैसा ही था......

"मिठाई लाउ?" उसकी आँखें अब भी दीवार को ही देख रही थी....

"नही.. कुच्छ नही.. मुझे भूख नही है...!" मैने जवाब दिया...

मनीषा ने मेरे पास चारपाई पर बैठ कर मेरा हाथ अपने दोनो हाथों में लिया और उसको धीरे धीरे सहलाने लगी," कुच्छ बोलो ना.. तुम तो कुच्छ बोलती ही नही..."

"म्‍मैइन क्या बोलूं.. मेरी तो..." मैं बोलते हुए रुक गयी.. उसने बोलना शुरू कर दिया था..," बताओ ना.. मैं कैसा लगता हूँ तुम्हे? तुम्हे पता है मैं कब से तुमसे प्यार करता हूँ...?"

"तुम लड़की हो दीदी!" मैने हिम्मत करके बोल ही दिया..

"तो? ... तो क्या हुआ?" उसने पूचछा....

उसकी आवाज़ में हल्क से बदलाव से ही मैं डर गयी.. बड़ी मुश्किल से मैने अपनी बात को संभाला..," नही... कुच्छ नही हुआ... मैं तो बस... मैं तो ये पूच्छ रही थी कि तुम लड़कों की तरह 'ता हूँ'.. 'ता हूँ' क्यूँ बोलती हो?"

"अच्च्छा.. ये!" वो मुस्कुराते हुए बोली..," पता नही.. मुझे ऐसे ही बोलना अच्च्छा लगता है.. और खास तौर पर तब; जब मेरा..." वह बोलते हुए रुकी और नज़रें झुका ली," जब मेरा प्यार करने का मंन हो!"

"अच्च्छााअ.." मैने सिर हिलाते हुए जवाब दिया.. मेरा हाथ अब भी उसके हाथों में ही था.. जिसे वो अब तक बड़े प्यार से सहला रही थी....," एक बात बोल दूं.. गुस्सा नही होना..!" मैने बनावटी प्यार आँखों में उतार लिया...

"बोल ना! तेरी कसम.. बिल्कुल गुस्सा नही करूँगा...!" मनीषा ने बड़े प्यार से कहा...

"वो.. थोड़ी देर बाद मुझे जाना पड़ेगा.. नही तो पिंकी की मम्मी मेरे घर पर फोन करके पूछेगि...." मैने डरकर उसकी आँखों में देखने की कोशिश की..

कुच्छ देर वह यूँही मेरे चेहरे को प्यार से देखती रही.. फिर मेरे चेहरे को अपने हाथों में ले लिया..," ठीक है.. पर एक बार प्यार कर ले.. उसी दिन से तड़प रहा हूँ.. तुमसे प्यार करने के लिए...!" उसकी बात में आदेश भी था और प्रार्थना भी..

'ना' कहने की सोचने से भी डर लग रहा था मुझे.... पहली बार मुझे लग रहा था कि मनीषा 'पागल' है... मैने उसको निपटा देना ही ठीक लगा," ठीक है.. कर लो..!" मैने फीकी सी मुस्कुराहट चेहरे पर लाकर कहा...

"सारे कपड़े निकाल कर अच्छे से प्यार करेंगे.. ठीक है?" उसने पूचछा....

"पर.. पर कोई आ गया तो?" मैने जवाब में पूचछा..

"यहाँ तो दिन में भी कोई नही आता.. रात में कौन आएगा.. तुम डर क्यूँ रही हो?" उसने मुझे कंधों से पकड़ कर हिला दिया...

"ठीक है.." मैने कहा और अपनी शर्ट के बटन खोलने लगी...

"रूको.. मैं निकालूँगा.. प्यार से!" मनीषा ने कहा और मुझे खींच कर अपनी गोद में बैठा लिया.....
मेरी शर्ट को मेरे बदन से निकालने के बाद मनीषा ने मेरी एक चूची को अपने हाथ में पकड़ लिया," कितनी प्यारी है तू.. ब्रा कभी नही डालती क्या?"

मेरी चूची के दाने पर उसकी उंगली लगते ही वो जितना हो सकता था, तन कर खड़ा हो गया.. और सख़्त होकर छ्होटी किस्मीस के जैसा बन गया.. सिर्फ़ रंग का फ़र्क था.. 'दाना' एक दम गुलाबी था.. मैने उसको देखा और आँखें बंद करके बोली," नआई.."

"एक मिनिट ऐसे ही रह.." उसने कहा और मेरे 'दाने' को होंटो के बीच दबा लिया.. मेरी सिसकी निकल गयी," अया.."

"क्या हुआ? मैने तो दाँत से भी नही काटा.. ऐसे ही होंटो में लेकर देखा था.." उसने मेरे दाने से मुँह हटाया और मेरे गालों का चुंबन लेती हुई बोली..

मैं कुच्छ नही बोली.. आँखें बंद किए उसकी गोद मैं पड़ी रही..

"मज़ा आ रहा है ना.. अंजू?" उसने प्यार से मेरे बालों में हाथ फेरते हुए पूचछा...

मैने अपना सिर 'हां' में हिला दिया.. मज़ा नही आ रहा होता.. तो भी मुझे यही करना था..

"तेरा तो चेहरा ही इतना प्यारा है कि देख कर ही दिल मचल जाता है.. मैं तो कभी भी ये नही सोचता था कि तुझे रोशनी में भी प्यार कर पाउन्गा.. अब मुझे तू मिल गयी.. और कुच्छ नही चाहिए.. तेरी कसम!" मनीषा बोली...

मेरा ध्यान उसकी बातों से ज़्यादा मेरी चूचियो पर थिरक रहे उसके हाथ पर था... बड़े ही प्यार से वह मेरी सेब जैसी तनी हुई चूचियों को सहला रही थी. मेरे बदन में उसके हाथ के नीचे मेरी योनि तक चले जाने की तड़प बढ़ने लगी.. मैं थोड़ा सोच कर बोली," तुम भी निकाल दो ना!"

"नही.. तुम निकालो अपने हाथ से...!" उसने कहने के बाद मुझे अपनी गोद से नीचे उतार कर चारपाई पर बैठा दिया और मेरे सामने अपनी चूचिया तान कर अपने हाथ उपर उठा लिए... मैने उसकी कमीज़ नीचे से पकड़ी और उपर खींचते हुए निकाल दी... मैं उसकी चूचियो पर बँधे कपड़े को देख कर बोली," ये क्या है?" मोबाइल भी उसी कपड़े में फँसा हुआ सॉफ दिख रहा था...

"ये..?" मेरा इशारा समझ कर वह नीचे देख कर बोली," ये मैने इनको बाँध रखा है इस कपड़े में.. उपर उठी हुई मुझे अच्छि नही लगती!" उसने कहा और मुझे वापस अपनी गोद में खींच लिया... अगले ही पल उसने मेरी स्कर्ट का हुक खोला और मुझे उपर उठा कर स्कर्ट को मेरी टाँगों से बाहर निकाल दिया...

"आ.. आज तो तू मुझे पूरी नंगी देखने को मिलेगी..!" उसके मुँह से लार टपक कर मेरे नंगे पेट पर जा गिरी.. उसने मुझे एक बार फिर उपर उठाया और मेरी कछी भी नीचे सरका दी और मैने अपने पंजे उपर उठा दिए.. कछी चारपाई पर आ गिरी....

"हाए.. कितनी प्यारी है.. इस पर तो पूरी तरह 'झांतें' भी नही उगी हैं.. उउशह.....गोरी गोरी सी मक्खन जैसी..." कहते हुए उसने मेरी जांघों के बीच हाथ देकर मेरी योनि पर उंगलियाँ घुमाई..

"आआआअहह" मैने सिसक कर अपनी जांघें फैला दी... और अपनी योनि को देखने लगी.....

शायद ठंड की वजह से मेरी योनि सिकुड कर और भी छ्होटी सी हो गयी थी.. योनि की फांकों के सिकुड़ने की वजह से उनमें सिलवटें सी बनी हुई थी... और उनके बीच की नन्ही नही पत्तियाँ आपस में चिपकी हुई थी...

मनीषा ने अपनी एक उंगली और अंगूठे की सहायता से मेरी योनि की फांकों को फैलाकर उन्न पत्तियॉं को अलग अलग किया और सिसक कर उनके बीच अंगुली रख कर बोली..," हाए रे.. तेरा तो अंग अंग गुलाबी है.. तेरे होन्ट गुलाबी.. तेरे चूचक गुलाबी.. और तेरी ये भी अंदर से पूरी गुलाबी है... तू मुझे कैसे मिल गयी मेरी जाआआअन्न्न्न.." बोलते ही उसने मेरे होंटो पर अपने होन्ट रखे और मेरी रिसने लगी योनि में अपनी उंगली अंदर घुसा दी... आनंद के मारे मैं पागल सी हो गयी और मैने अपने नितंब उपर उठा दिए....

"मज़ा आया..?" उसने उंगली को बाहर करके फिर से अंदर सरका दिया और मेरे होन्ट छ्चोड़ कर पूचछा....

"आआआहाआआन.." मैने लंबी साँस ली और बोली...," तुम भी निकाल दो अपनी.. मैं भी ऐसे ही करूँगी तुम्हे...." कहकर आवेश में मैने उसकी चूचियो पर बँधे कपड़े पर दाँत गढ़ा दिए....

मेरी बात सुनकर वह बहुत खुश हुई.. मुझे अलग बिठाया और खड़ी होकर एक ही झटके में नाडा खोलते ही सलवार और पॅंटी.. दोनो निकाल दी... मुझसे सब्र नही हो रहा था...मैने उसी वक़्त आगे होकर अपना हाथ उसकी जांघों के बीच फँसा दिया... उसकी काले बालों वाली योनि में उंगली घुसाने के लिए....

"रूको तो एक मिनिट.. वहीं आ रहा हूँ.. चारपाई पर.." कह कर उसने अपनी सलवार अपनी कमीज़ के उपर रखी और चारपाई पर खड़ी हो गयी..," एक मिनिट.."उसने कहा और मुझे लिटा कर मेरी टाँगों की तरफ मुँह करके लेट गयी.. उसकी जांघों के बीच दुब्कि हुई उसकी योनि मेरी आँखों के सामने थी... मेरे जांघों पर हाथ लगते ही उसने अपनी जांघें खोल दी और मेरे नितंबों को पकड़ते हुए मुझे अपने चेहरे की ओर खींच लिया....

उसकी योनि की फाँकें साँवली सी थी और मेरी फांकों से दोगुनी मोटी भी.. मैने अपने दोनो हाथों से उसकी फांकों को अलग अलग किया और उसका छेद ढूँढा.. मुझे आस्चर्य हुआ.. मेरी योनि के मुक़ाबले दोगुनी योनि का छेद मेरी योनि के जितना ही था... अंदर से भी उसका रंग सांवला ही था.. उसकी योनि अंदर बाहर सारी रस से भीगी हुई थी... मैने अपनी एक उंगली को उसकी फांकों से रगड़ कर गीला किया और छेद पर रख कर अंदर धकेल दी....

मनीषा सिसक उठी और उसके मोटे मोटे नितंब थिरक उठे... पर अगले ही पल उच्छलने की बारी मेरी थी...

"आऐईईईईईईईईईई.. ये क्या कर रही हो.." मैने अपने नितंबों को उच्छाल कर मेरी जांघों के बीच घुसे हुए उसके मुँह से अलग किया....

".. अच्च्छा नही लगा क्या?" उसने मेरी तरफ देख कर पूचछा.....

"बहुत अच्च्छा.. लग रहा है.. पर सहन नही हो रहा.. गुदगुदी मच रही है.. मैने अपने नितंबो को वापस उसके हाथ में ढीला छ्चोड़ कर कहा....

"करने दो ना.. बहुत अच्छि गंध आ रही है.. तुम्हारी 'इस' में से.. चूसने दो ना थोड़ी सी देर.." मनीषा ने प्यार से कहा....

मैने आगे सरक कर अपनी जांघें खोल दी और गौर से उसकी योनि को देखती हुई अपनी उंगली अंदर बाहर करने लगी...

"अयाया...एक मिनिट बस..." कहकर वह उठी और मुझे सीधा करके लिटा लिया.. उसके बाद वह मेरे चेहरे के दोनो ओर दूर दूर अपने घुटने टिका कर मेरे उपर आ गयी... मैं बड़े प्यार से उसके ऊँचे उठे हुए नितंबों के बीच की गहरी दरार और पिच्चे की तरफ मुँह खोले खड़ी योनि को देखने लगी.. मैने अपना हाथ नीचे से बाहर निकाला और अपनी उंगली को योनि के आकर में उस पर घुमाने लगी...

उसने मेरी जांघों को पिछे की ओर करते हुए अपने हाथ इस तरह से उनमें फँसा लिए जैसे एक बार अनिल चाचा और सुन्दर ने मम्मी के साथ किया था.. मैं कल्पना करने लगी कि मेरी योनि भी मम्मी की योनि की तरह खुल कर उपर देखने लगी होगी....

अचानक वह उस पर झुकी और अपनी जीभ को मेरी योनि की दरारों में उपर नीचे चलाने लगी... मैने छॅट्पाटा कर नितंबों को अलग हटाने की कोशिश की.. पर मेरी जांघें मनीषा की बाजुओं में जकड़ी हुई थी.. मैं हिल तक नही सकी.... वह बेहिचक मेरी योनि को लपर लपर चाट'ते हुए धीरे धीरे मेरे छेद में जीभ घुसाने की कोशिश करने लगी.. मैं पागल सी हो गयी.. आनंद के मारे मैं सिसकियाँ लेते हुए अपने हाथ की मुट्ठी बनाकर उसके नितंबों पर पटापट मारने लगी.. पर उसने जी भर कर चूसने के बाद ही अपना मुँह वहाँ से हटाया...

"क्या हुआ? तुम तो करो उंगली से..." उसने कहा....

मेरी साँसें अनियंत्रित सी हो चुकी थी.. मैने हान्फ्ते हुए कहा..," मुझसे वहाँ जीभ सहन नही हो रही.. बहुत ज़्यादा गुदगुदी हो रही है.. मेरी चीख निकल जाएगी... तुम भी उंगली से करो.. मज़ा आता है..."

"अच्च्छा रूको..!" उसने कहा और उठकर बैठ गयी और मुझे भी बैठने को कहा...

मैने अपनी जांघें फैलाकर अपनी योनि को देखा.... उसकी सारी सिलवटें गायब हो चुकी थी.. मेरी योनि के रस और उसके थूक से सनी हुई 'वह' फूल कर छ्होटी सी डबल रोटी की तरह हो गयी थी...," करो ना उंगली...." मैने छॅट्पाटा कर कहा...

"अपनी टाँगें सीधी करो.."उसने कहा.. मैने कर ली...

मेरी एक जाँघ को अपनी एक जाँघ के उपर चढ़ा कर वह आगे सरक आई.. हम दोनो की योनियाँ एक दूसरी के आमने सामने थी.. मेरी समझा में नही आ रहा था.. वह क्या करना चाहती है....

"थोड़ी सी आगे आ जाओ.. मेरी चूत से अपनी चूत मिला लो.." उसने कहा...

मुझे थोडा सा टेढ़ा होना पड़ा.. पर मैने आगे सरक कर उसकी योनि से अपनी योनि मिला दी.. और उसके चेहरे की ओर देखने लगी....," अब?"

उसने जवाब नही दिया.. पर जैसे ही वह हिली.. उसकी योनि के कड़े और काले काले बाल मेरी योनि पर अंदर बाहर चुभने लगे.. पर उस चुभन में एक अलग ही मज़ा आया.. मैने थोड़ी सी और जांघें खोल दी और उसकी योनि से अपनी योनि बिल्कुल चिपका दी....

"ऐसे ही करो नाआअ... आआआः.. तुम भी.. मज़ा आ रहा है ना?" उसने अपने नितंबों को उपर नीचे करते करते हुए आँखें बंद करके पूचछा....


"हाआँ.. बहुत मज़ा आ रहा है... आआआहह.." मैं सिसकते हुए उस'से भी ज़्यादा तेज़ी से उपर नीचे होने लगी... उसके बाल 'योनि में घुस कर एक अलग ही मज़ा दे रहे थे... उसकी पता नही.. पर मेरी आँखें बंद थी.. और मैं बड़बड़ाते हुए लगातार उपर नीचे हो रही थी...

2 मिनिट से ज़्यादा मैं ऐसा नही कर पाई.. मैं भी थक चुकी थी और मेरी योनि ने भी अपने हाथ उठा दिए थे.. रस निकल कर मेरी और उसकी जांघों पर फैल गया...

मैं निढाल होकर गिर पड़ी....," बस.. बस..बस..."

उसने मेरा कहना मान लिया... उठकर अलग हुई और मेरे उपर लेट कर मेरी चूचियो को चूस्ते हुए एक उंगली मेरी योनि में उतरी और दूसरे हाथ से तेज़ी के साथ अपनी योनि में उंगली अंदर बाहर करने लगी.... मेरा बुरा हाल था.. और आख़िर आते आते उसका भी... कुच्छ देर बाद वह भी मेरी छातियाँ पर सिर रख कर हाँफने लगी......

" तुमने ये क्यूँ कहा कि तरुण अच्च्छा लड़का नही था..." मैने मौके का फाय्दा उठाते हुए पूचछा.....

"छ्चोड़ो ना.. बस मैने बता दिया ना कि नही था.. और जब तुम्हे पता ही है तो क्यूँ पूच्छ रही हो..." मनीषा ने अपनी साँसों पर काबू पाते हुए कहा और मेरी योनि में से अपनी उंगली निकाल ली....

"ंमुझे क्या पता? तुम ऐसे क्यूँ बोल रही हो...?" मैं उठ कर बैठ गयी....

"एक बात बताउ?" उसने कहा... मैं उसकी ओर देखने लगी....

"एक दिन तरुण तुम्हे चौपाल में लेकर गया था ना...?" उसने घूर कर मुझे देखते हुए कहा....

मुझसे कोई जवाब देते ना बना.. पर मुझे विश्वास हो गया कि जब हम दोनो बाहर खड़े थे.. तो जिस साए का मुझे आभास हुआ था.. वो वही थी.. मनीषा!

"मुझे सब पता है.. उस दिन मैं तेरी ताक में वहीं खड़ी थी.. चौपाल के दरवाजे पर.. पर तरुण तेरे साथ आ गया.. मुझे बड़ा दुख हुआ.. फिर जब तुम दोनो वहीं खड़े हो गये तो मैं चौपाल में घुस गयी.. कि कहीं तरुण देख ना ले.. थोड़ी देर बाद तरुण तुम्हे लेकर अंदर ही आ गया.. मैने तुम्हारी सारी बातें सुनी थी....!" मनीषा ने बताया....

मैं चुपचाप उसके चेहरे को घूरती रही...

"सच में बहुत कमीना था वो.. अच्च्छा हुआ जो मर गया...!" वह उठ कर अपने कपड़े पहन'ने लगी.. मैने भी अपना स्कर्ट उठा कर कछी ढूँढनी शुरू कर दी....

"कल फिर आओगी ना? मैं तुम्हारा इंतजार करूँगी..." मनीषा ने कपड़े पहनते ही मेरे पास आकर मुझे चूम लिया...

"ये.. मेरा मोबाइल...!" मैने उसकी बात टाल कर उसकी आँखों में देखते हुए कहा....

"हाँ..." उसने अपनी छातियो में हाथ डाल कर उसको निकाल कर मेरे हाथ में पकड़ा दिया," ये लो... मुझे याद नही रहा था... कल फिर आओगी ना?"

"कोशिश करूँगी.. पर अभी एग्ज़ॅम चल रहे हैं.... पक्का नही कह सकती..." मैने मजबूरी का वास्ता दिया...

"ठीक है.. पर अभी एक प्यारी सी 'चुम्मि' तो दे जाओ.." उसने मुझे दरवाजे के बाहर से वापस बुला लिया...

मैं जबरन मुस्कुराइ और वापस आकर उसके पास खड़ी हो गयी...

उसने थोड़ा सा नीचे झुक कर मेरे होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.. और मेरी कमर में हाथ डाल कर काफ़ी देर तक इन्हे चूस्ति रही.. और फिर अलग हटकर बोली," तुमसे मीठी चीज़ दुनिया में कोई नही हो सकती!


क्रमशः.....................

gataank se aage..................

Maine apni jeb mein hath maar kar mobile ke karan ubhar si gayi skirt ko theek kiya aur bina koyi jawab diye darwaja kholkar bahar nikal gayi..

Sandeep Pinky ke sath dusre kamre mein chupchap baitha tha.. par main uski taraf dekh nahi payi..," Chalein... Pinky!"

"Haan.. ek minute.." Pinky ne khade hokar mujhse kaha aur Sandeep ki aur palat gayi..," Parson tak aa jayegi na Shikha?"

"Main.. bata doonga.." Mujhe Sandeep ki aawaj aayi.. main pahle hi bahar ki aur apna chehra ghuma chuki thi.. Pinky ke bahar aate hi hum seedhiyon se neeche utar gaye...

"Kya kah raha tha Dholu?" Gali mein aate hi Pinky ne mujhse poochha...

"aaa.. haaan.. kuchh nahi.. bus..." Main uska sawaal sunkar hadbada gayi...

"Toh fir 10 minute se uske paas kya kar rahi thi...? Achchha ladka nahi hai wo.. iske ghar waale bhi iss'se kaam dhandhon se pareshan rahte hain... tujhe jyada der uske paas nahi rukna chahiye tha..." Pinky ne mujhe hidayat si dete huye kaha....

"haan.. mujhe pata hai.. par main kya karti.. idher udhar ki baatein karta raha.. parche kaise chal rahe hain.. koyi dikkat toh nahi hai.. wagairah wagairah.. iske paas toh revolver bhi hai.. mujhe dikha raha tha.. bol raha tha ki koyi problem ho toh bata dena..." Main apne aap ko bachate huye baatein batane lagi...

"Chal chhod.. hum didi ko wo baat toh batana bhool hi gaye.. Manisha wali.." Maine beech mein hi ruk kar usko bataya....

"Arrey Haan!.." Pinky ne jawaab diya..," Chal.. jaldi ghar chal...

Hum ghar pahunche toh Meenu wapas aa chuki thi.. ghar ke andar jate hi wo mujhe kahne lagi..," Chacha maan gaye.. kal tu mere sath hi chalna..!"

Maine uski baat par hulki si pratikriya dete huye kaha..," haan.. par ek baat galat ho gayi didi!"

"Kya?" Meenu ne chintit hote huye poochha...

"Wo.. humne kal inspector ko ye kaha tha na ki Tarun Parson yahan se 11 baje gaya hai......" Mujhe Meenu ne beech mein hi rok diya..," ek minute.. Pinky.. mummy papa Tarun ke ghar gaye hain.. tu chay bana la bhag kar...!"

"Kya didi? mujhe hamesha apne paas se utha kar bhaga dete ho.. mujhe sab pata hai.. jo ye aapko batayegi..." Pinky ne apna munh chadha kar kaha....

"Wo baat nahi hai pagal.. sach mein chay ka dil kar raha hai.. jab tak Anju baat bata rahi hai.. tu bhag kar chay bana la.. pls!" Meenu ne yaachna si karte huye kaha...

"Theek hai..!" Pinky ne munh latkaya aur upar chali gayi....

"Tu pahle ek baat bata Anju! Kal agar wo inspector kuchh ulta seedha bolne laga toh..?" Meenu ne Pinky ke jate hi mujhse kaha....

"Kya matlab didi? main samjhi nahi" Maine kaha...

"Wo.. mera kahne ka matlab hai ki uske paas wo 'letters' hain.. agar wo bhi mujhe blackmail karne laga toh..?" Meenu ne udaas hokar kaha...

"Toh..." Main chupchap uske chehre ko yunhi dekhti rahi..," Main kya bataaun didi?"

"Chal chhod.. kal hi pata lagega.. uske mann mein kya hai.. tu kya bata rahi thi..." Meenu wapas meri baat par aakar boli...

" Wo.. Mainsha hai na.. Tractor wali....!" Maine kaha...

"Haan.. kya hua ?"

"Usne parson raat 9:00 baje ke aaspaas choupal mein ladayi ki aawaj suni thi.. usne shayad inspector ko bhi bata di....!" Maine kaha...

"Toh ismein....!" Meenu bolte bolte achanak ruki aur baat samajh mein aate hi uski tone badal gayi," Hey bhagwan.. kab batayi usne inspector ko ye baat?"

"Shayad yahan aane se pahle hi usko pata chal gaya hoga.. tabhi toh mujhe dobara theek se soch kar batane ko bol raha tha...!" Maine Meenu ki tarah hi mara sa munh bana kar kaha....

"Ohh.. iss'se toh hamari jhooth pakdi jayegi... iss baat par toh hum ad bhi sakte hain.. par agar Tarun ko kisi ne gyarah baje se pahle hi maar diya hoga toh hum jaroor jhoothe ho jayenge... postmortom report mein toh sab kuchh aa jayega... fir hum kya kahenge...." Meenu rone ko ho gayi....

"Ek baat kahoon didi.. bura na maano toh.." Mere dimaag mein kuchh aaya tha....

"Haan.. bol.. ab iss'se bura kya hoga mere sath..!" Meenu poori tarah hatash ho chuki thi...

"Wo.. main ye kah rahi hoon ki Usko letters toh mil hi chuke hain... aap usko sab sach sach kyun nahi bata dete.. ki wo aapko blackmail kar raha tha... unn letters ke liye.... fir hum ye bhi bol denge ki humne isi baat ko chhipane ke liye jhooth bola tha..." Maine kaha....

Meenu kuchh der tak chupchap baithi sochti rahi... usne meri baat par koyi pratikriya nahi di..," Par wo toh pichhe pada hai ki mujhe kaatil ke baare mein pata hai.. main katil kahan se lakar doon usko...."

Tabhi Pinky chay lekar aa gayi," Fans gaye na hum didi?" Usne aate hi poochha...

"Kyun..? kyun dara rahi hai...?" Meenu ne hadbada kar kaha..

"Nahi.. wo 11 baje wali baat toh inspector ko pata lag gayi na.. ki humne jhooth bola tha...!"

Meenu ne Pinky ki baat ka koyi jawaab nahi diya... tabhi maine Principal madam ki baat chhed di..," Ek baat aur batayi hai Principal madam ne.. aaj mujhe!"

"Haan.. wo kya kah rahi thi tujhe.. akele mein bula kar...!" Pinky ne poochha.....

" Tarun aur Sonu parson wapas school mein gaye the.. Sir se akele mein kuchh baat ki thi unhone.. madam kah rahi thi ki jaroor unhone sir ke sath koyi samjhouta kiya tha.. shayad uss recording ko dikha kar hi daraya hoga unko... Tarun uss din kah bhi raha tha.. ki wo master ab kahan jayega bach kar...!" Maine unko yaad dilaya...

"Haan.. par iss baat ka kya matlab hai?" Meenu ne mere baat batane ka maksad poochha...

"Madam bata rahi thi ki uss master ki pahunch kafi upar tak hai.. sharaab ke theke lene jaise kayi dhandhe hain uske.. aise aadmi khatarnaak toh hote hi hain..." Maine aage kaha....

"Matlab.. uss master ne Tarun ko...." Meenu achanak chup ho gayi.. aur fir boli..," Par usko kya pata ki Tarun hamare paas aata hai.. aur usko Tarun ka ghar bhi kaise pata hoga...." Meenu sochte huye boli...

"Main aaj din bhar yahi soch rahi thi didi... Sir ko pata tha ki Tarun hamare gaanv ka hi hai.. Fir gaanv mein aakar Tarun ka ghar pata karna mushkil nahi hai... ho sakta hai unhone kisi ko iss kaam ke liye laga diya ho... aur Tarun jab letter lene ke liye ghar gaya ho toh wo aadmi Tarun ke pichhe pichhe aa gaya ho... aur mouka dekh kar maar kar choupal mein...." Maine din bhar iss baat par ki huyi mathapachchi ka nichod unko suna diya....

"Hummmm..." Meenu meri baat par sahmati jatate huye boli..," Jaroor yahi hua hoga.. toh kya hum ye baat inspector ko bata dein..?"

"Parr.. iss'se Pinky ki aur meri pole bhi khul jayegi.. agar wo inspector Sir ke paas pahunch gaya toh..!" Maine darte huye kaha...

"Fir iss inspector se pichha kaise chhudaayein yaar..? 'Wo' toh mere pichhe hi pada rahega.. jab tak kaatil nahi pakda jata...!" Meenu runwasi si hokar boli....

"Pahle kal aap sirf wo blackmailing wali baat bata kar dekh lo didi.. baad mein soch lena..." Maine kaha...

"Kal mere sath chal toh rahi hai na.. tu bhi?" Meenu ne mujhse poochha...

"Haan.. chal padoongi didi.. par plz.. ye baat mere saamne mat batana usko.. Sir wali..." Maine prarthna si ki....

"Chal theek hai.. wo sab baadm ein soch lenge...."Meenu ne meri baat par sahmati jatayi....

"Main ghar jakar aati hoon didi... thodi der baad aa jaaungi..." Maine khadi hokar kaha...

"Chal theek hai.. tere aane ke baad hi baat karenge...." Meenu boli...

Main ghar ke liye nikali toh sham dhalne lagi thi.. kayi tarah ki baaton ka bhanwar sa ikattha hokar mere dimag mein uthal puthal si macha raha tha.. Achanak Manisha ko apne ghar ki deewar se mujhe dekhte pakar mere kadam thithak gaye.. Main kuchh soch kar palat gayi aur uski taraf muskurakar boli," kaisi ho Manisha?"

Shayad wah mujhe nahi dekh rahi thi.. uska dhyan kahin aur hi tha.. mere tokne par uska dhyan bhang hua..,"aaa.. haan.. theek hoon.." Wah bhi meri aur muskura di...

Ek baar maine chalne ki sochi... par pata nahi kyun.. kuchh der gali mein khadi rahi aur fir unke aangan mein ghus gayi,"Kya kar rahi ho?"

"Kuchh nahi.. " Mujhe andar aayi dekh wah kuchh sakpaka si gayi..," Thand jane lagi hai na... Ab katiya ko bhi bahar baandhna hai... usi ke liye bahar khoonta gaad raha hoon.." Usne kaha aur apne thegli (patches) lage huye kurte ke hisse ko chhipane si lagi.. ghar ka kaam kar rahi hone ki wajah se hi shayad usne itne gande kapde daal rakhe the....

Shayad wah mere wapas jane ka intjaar kar rahi thi.. Par mere mann mein toh kuchh aur hi chal raha tha..," Wo tumne Parson 9:00 baje choupal se kya aawaajein suni thi...?"

"Ek minute.. andar aa jao.. main 2 minute mein aati hoon.." Manisha ne nalke (handpump) par hath dhote huye kaha aur upar bhag gayi... uski ye harkat Meri samajh mein nahi aayi.. Par main uss'se Parson raat ke baare mein jaan'na chahti thi.. isiliye neeche wale kamre mein jakar charpayi par baith gayi....

kareeb paanch minute baad wah neeche aayi aur muskurakar meri aur dekhne lagi..

"Tum kapde badalne hi gayi thi kya?" Maine uske pahne huye naye kapdon ki aur dekhte huye poochha... Usne apne hath pichhe chhupa rakhe the...

"Haan.." Usne thoda hichak kar apne hath aage kiye.. uske hathon mein thami ek plate mein kuchh mithayi thi.. wah mere paas aakar baith gayi,"Lo.. tumhare liye...!"

Maine muskurakar uski taraf dekha aur plate mein se ek barfi utha li...

"Tumhare...... paper kaise chal rahe hain Anju!" Meri aur pyar se dekhte huye usne poochha...

"Achchhe chal rahe hain..! chacha kahan hain...?" Maine yunhi baat karne ke liye poochha....

"Upar pada hoga daru peekar saaalaa!" Usne jameen mein dekhte huye kaha... Uske chehre ke bhav hi badal gaye achanak.. mujhe laga maine galat baat chhed di... par achanak hi meri aur dekhte hi uski muskaan fir lout aayi," Lo.. na.. aur khao! Main shahar se laya tha.... aaj!"

Apne liye bolte huye wah kayi baar purushvachak shabdon ka prayog kar deti thi.. par gaanv mein koyi uski iss baat par hansta nahi tha.. kaam bhi toh aakhir wah kolhu ke bail ki tarah karti thi.. aisa kounsa kaam tha.. jo aadmi kar sakte the aur wah nahi..!

Meri dadi aksar batati thi....Uski Maa ke marne ke baad Ghar ke badle mahoul ne bechari ki sthiti ko bachpan mein hi dayneey sa bana diya tha... baap pahle hi sharaabi tha.. kunbe ke naam par ek chacha hi the jinhone shahar mein jane ke baad kabhi unki sudh li hi nahi.. Gaanv waalon ne uske baapu ko bahut samjhaya tha ki tere palle ek beti hai.. chhod de daru! par 'wo' kabhi nahi sudhra.. apni aadhi se jyada jameen ko toh wo daru mein ghol kar hi pi gaya...

Par kahte hain ki kuchh log niyati ke banjar khet ko apni mehnat aur sangharsh ke kudaal (kassi) se palat kar apne jeene ke liye usmein bhi 2-4 meethe fal uga hi lete hain.. Manisha unhi logon mein se ek nikali.. jab se hosh sambhala.. apne ghar ko hi sambhal liya..! bache huye kheton mein ji tod kar mehnat ki.. apne liye 2 waqt ki roti ka bhi jugaad kiya.. aur apne baap ke liye sharaab ka bhi.. par baki jameen bikne na di... Gaanv mein sab uski mehnat aur jeene ke jajbe ki kadra karte the.....

"Kya hua? kahan kho gayi Anju?" Manisha ki baat se main vicharon ki duniya se nikal kar bahar aayi..," a..a.. kuchh nahi.."

"Aur le na! achchhi nahi lagi kya?" Usne hichakte huye poochha....

"Nahi.. bahut achchhi hai.. mera pate bhar gaya... wo batao na Manisha? Parson tumne kya suna tha choupal mein.." Maine poochha...

Usne mithayi ki plate uthkar slab par rakh di aur mere paas aakar baith gayi..," Chhodo na.. jo hona tha ho gaya.. jisko batana tha bata diya.. tum kuchh aur baat karo.." Bolkar usne mera hath pakad liya.. uske haath mardon ki tarah khurdare se the.. aur unmein jaan bhi bahut lag rahi thi...

"Nahi.. fir bhi.. bechara Tarun.. bina baat hi maara gaya.. ho sakta hai uss waqt hi kisi ne usko maar diya ho...!" Mujhe uske hath ki pakad kuchh ajeeb si lag rahi thi.. maine apna hath chhuda liya...

Wah kuchh der chup rahi..," Na.. uss waqt kisi ne kisi ko nahi mara.. uss waqt toh wo chale gaye the.. wo toh nashedi honge shayad.. 'ye' kaam toh kisi ne baad mein hi kiya hai... yahan uske pate mein koyi 10-10 baar chaku ghounpega toh woh cheekhega nahi kya..?" Manisha ne vichlit si hote huye kaha...

"Haan.. ye baat toh hai.. woh koyi aur hi honge fir.." Main mann hi mann khush ho gayi... Tune inspector ko kya kya bataya hai...?"

"Chhod na Anju.. kyun iss baat ko baar baar utha rahi hai... waise bhi Tarun achchha ladka nahi tha.... tujhe toh pata hi hoga...!"

Uski baat sunkar main hadbada gayi..," Kkya matlab?"

"Chhod jane de.. tu aur suna!" Wah meri aur muskurakar pyar se boli..

"theek hai.. main ja rahi hoon ab..!" Main kahkar khadi ho gayi....

"Aa jaya kar... kabhi kabhi.. main toh akela hi rahta hoon..!" Manisha ne mere sath hi khade hote huye kaha.... aur mere sath sath bahar aa gayi...

"Humm.. dekhoongi..!" Maine uski aur muskurakar kaha aur darwaje ki taraf chal di..

Mainsha ne turant hi farsh se bhainson ka gobar uthana shuru kar diya.. Main ghar jate huye soch rahi thi.. bechari ko kaam ke liye late kar diya....

"mmhhhhh....mmmmhhhhhh....
mmmmmhhhhhhhhhhh.." Maine apne aapko unhi jaane pahchane haathon ke changul se chhudane ki ji tod koshish ki.. par main kuchh na kar saki...

Uska ek hath pahle ki tarah hi mere munh par tha.. aur dusra meri kamar se hota hua mere pate par kasa hua tha... Wah mujhe lagbhag poori hi utha kar choupal ki aur ghaseet'ne lagi.. par uss din aisi halat mein bhi mera dhyan meri kamar mein gadi huyi uski sugadh aur kasi huyi chhatiyon par chala hi gaya tha... Nischit tour par wah wahi ladki thi jisne ek baar pahle bhi mere sath choupal mein 'pyar' ka khel khela tha....

Darasal.. Main kareeb 8:00 baje apne ghar se Pinky ke ghar ke liye chali thi.. choupal ke saamne aate hi jaise hi kambal mein lipta hua ek saya meri aur badha.. main ek dum ghabra gayi.. Maine darr kar bhagne ki koshish bhi ki par mere kadam jadvat se hokar jameen se hi chipke rah gaye.. Wah aayi aur mujhe kisi mook khiloune ki bhanti choupal mein utha kar usi jagah le gayi.. jis jagah wah pahli baar mujhe lekar gayi thi...

Main na bhi darti.. par uss din halaat badal chuke the.. do din pahle hi choupal mein Tarun ki lash mili thi.. aur kaatil ka kuchh pata nahi tha.. 'kya pata.. isi ne...' .. ye soch kar meri rooh tak sihar uthi.. mera sara badan thar thar kaanpne laga..

Kafi der tak wah mere pichhe khadi rah kar mere munh ko dabaye huye mere shareer ke sath chhedchhad karti rahi.. Wah meri chhatiyon ko bari bari pakar kar hilate huye unhe masalti rahi.. mere kaano mein saansein si chhodti huyi unhe hulka hulka kaat'ti rahi... par pichhli baar ki tarah wah na toh mere shareer mein jawani ki aag bhadka saki.. aur na hi mere dil ka darr hi door kar payi.. main ab bhi khadi khadi kaanp rahi thi...

Thak haar kar usne mere munh se hath hataya aur mujhe apni taraf palat liya.. Mere gaalon ko apne haathon mein liya aur mere honton par apne hont rakh diye.. Ajeeb si wo sukhad anubhuti bhi mere mann se darr nikal nahi payi..

main thar thar kaanp rahi thi.. aur iss darr ko shayad wah bhi samajh chuki thi.. Shayad isiliye baar baar mujhe chhod kar.. pakad kar.. yahan wahan sahla kar.. mera darr door karne ki koshish kar rahi thi... Wah mujhe vishvas dilana chah rahi thi ki wah jabardasti nahi kar rahi aur mujhe uss'se darna nahi chahiye... Par meri ye halat thi ki mere honton se ek bol bhi nikal nahi pa raha tha.....

Achanak usne meri skirt ko upar utha kar apna hath andar daala aur meri jaangh ko pakad kar meri ek taang upar utha li.. fir dusre hath ki ungaliyon ko mere dusri taraf se kachchhi mein daal kar nitambon ki daraar mein meri yoni dhoondhne lagi.. usko mil bhi gayi.. par ekdum sookhi huyi si.. jab mera gala tak darr ke maare sookh chuka tha toh usko toh sookha rahna hi tha...

Shayad wo jaisa soch rahi thi.. mere sath itna sab kuchh karne ke baad bhi wo kar nahi pa rahi thi.. uski pal pal mein jagah badal rahi chhed chhad se uski jhallahat ka pata chal raha tha..

achanak usne apne hath mein lekar upar uthayi huyi jaangh ko bhi chhod diya.. aur iske sath hi mujhe jameen par kuchh girne ki aawaj aayi.. aawaj ka hona tha ki wah turant hadbada kar neeche baithi aur mere pairon ke paas hath maar kar dekhne lagi..

Achanak mujhe dhyan aaya.. maine dheere se apni skirt ki jeb par hath laga kar dekha.. mobile gayab tha... 'Ohh!' mere munh se nikla aur meri najrein jhuk gayi...

Agle hi pal meri saansein halak mein atak kar rah gayi.. kismat kahein ya bad kismati.. usko mobile mil gaya aur shayad chhoo kar dekhte huye uska koyi button dab gaya.....

"Mmm...mmm...mmm..." Mere kaanpte huye hont uska naam lena chahte the.. par iss'se pahle ki main poora bol pati.. Usne khadi hokar mere munh par hath rakh diya..," Shhhhhhh.... Jaaaan se maar doongi.. agar mera naam liya toh!"

Usne ek baar aur button daba kar mobile ki screen on karke dekha aur usko apni chhatiyon mein thoos liya....

Ab ki baar maine Manisha ka chehra bilkul saaf dekha tha.. aur dekhne ke baad toh mere hosh hi udd chale the... Par uski jaan se maarne ki dhamki ke baad meri aawaj nikalna toh door.. saansein bhi tham tham kar aa rahi thi... mera poora shareer pasine mein naha chuka tha...

"Main.. Main tujhse bahut pyar karta hoon Anjali.. Itna pyar ki tum soch bhi nahi sakti.. Sirf tumhe ek baar dekhne ki khatir ghanton apne ghar ki deewar se gali mein dekhta rahta hoon.. par tumhare saamne ye sab bolne ki meri himmat hi nahi huyi..." Manisha dheere dheere bolne lagi...

Mujhe uski baatein bahut ajeeb lag rahi thi.. wo bhi ek ladki aur main bhi.. 'ye kaisa pyar?' main mann hi mann bhagwan se mujhe wahan se nikal lene ki prarthna karti rahi....

"Tum bhi kuchh bolo na Anju! main kaisa lagta hoon tumhe..?" Mainsha ne mere gaal par hath rakha aur apna khurdara angootha mere kaanp rahe honton par rakh liya...," Bolo na kuchh.. aise kyun tadpa rahi ho tum..." Ladki ki jubaan se mardana jajbaat.. sachmuch bada hi ajeeb pal tha wo.. mere liye....

"Mm..mmmain.. kaise boloon..? tttum mmujhe bhi maar dogi.." Mujhe vishvas ho chala tha ki Manisha ne Tarun ko bhi aise hi maar diya hoga.. bolne par..

"Aey pagal.. tu toh meri jaan hai.. tujhe bhala mein kaise maar sakta hoon.. tu darr kyun rahi hai Anju?" Manisha ne kah kar mujhe apne seene se chipka liya.. hamari chhatiyan ek dusri ki chhatiyon se takra gayi...

"ttum hi toh.... kah rahi thi ki main boli toh tum jaan se maar dogi..." Maine darte darte kaha....

"Hat pagal! wo toh main khud hi darr gaya tha.. ki tumne mujhe pahchan liya.. uska ye matlab thode hi tha... plz.. kuchh bolo na!" Manisha ne mere chehre ko chumbano se labrej karte huye kaha....

"Mujhe jane do plz..!" Mere munh se darte darte nikla...

"Kya? iska matlab tum mujhse pyar nahi karti! kya tum sach mein mujhse pyar nahi karti Anju!" Uske shabdon mein nirasha aur hatasha saaf jhalak rahi thi...

"Nahi.. karti hoon..!" Main apni kamar par sakht hote uske hathon ko mahsoos karke kaanp uthi..

"Jhooth bol rahi ho na tum.. pls.. mujhe sach sach bata do.. tum mujhse pyar karti ho ya nahi.. pls Anju.. main tumhare munh se 'haan' sun'ne ko tadap raha hoon.." Manisha bolti rahi..

"Jhooth nahi bol rahi.. tum mujhe bahut achchhi lagti ho.. bahut pyari.. sach mein!" Mujhe laga, mere bachne ka sirf yahi ek raasta hai...

"Fir jaane dene ke liye kyun bol rahi ho.. mujhse pyar karo na.. uss din bhi toh kiya tha tumne.. kitni achchhi tarah.... kitna pyara hai tumhara shareer... har jagah se.. kitni rasili si ho tum...!" Manisha mujhe ye sab bolti huyi duniya ka aathwan ajooba lag rahi thi.. haa! koyi ladka hota toh.....

"Ppata nahi kyun.. aaj.. yahan andhere mein mujhe darr sa lag raha hai... main isiliye bol rahi thi bus.." Maine safayi di...

"Mere ghar chaltein hain... neeche koyi nahi hota.. chalo!" Manisha ne mujhe chhod kar mera hath pakad kar mujhe kambal mein apne sath lapeta aur bahar ki aur chalne lagi... Na toh meri 'na' kahne ki himmat thi.. aur na hi main 'na' kah payi.. haan.. gali mein uss waqt koyi aa jata toh shayad main uss'se bachne ki koshish kar leti.. par koyi nahi aaya.. hum choupal se nikle aur uske ghar mein ghus gaye....

------------------------------

Andar kamre mein jaate hi usne darwaja aur khidkiyan band ki aur kambal utaar kar charpayi par rakh diya... Maine mahsoos kiya.. roshni mein wo mujhse najrein milane se katra rahi thi..," Kuchh logi tum?" usne chehra jhukaye huye poochha...

"Nahi....." Uske ishara karne ke baad mein charpayi par jakar baith gayi.. ab darr bahar utna nahi tha.. par andar waise ka waisa hi tha......

"Mithayi laaun?" Uski aankhein ab bhi deewar ko hi dekh rahi thi....

"Nahi.. kuchh nahi.. mujhe bhookh nahi hai...!" Maine jawaab diya...

Manisha ne mere paas charpayi par baith kar mera hath apne dono haathon mein liya aur usko dheere dheere sahlane lagi," Kuchh bolo na.. tum toh kuchh bolti hi nahi..."

"Mmain kya boloon.. Meri toh..." Main bolte huye ruk gayi.. usne bolna shuru kar diya tha..," Batao na.. main kaisa lagta hoon tumhe? tumhe pata hai main kab se tumse pyar karta hoon...?"

"Tum ladki ho didi!" Maine himmat karke bol hi diya..

"Toh? ... toh kya hua?" Usne poochha....

Uski aawaj mein hulke se badlaav se hi main darr gayi.. badi mushkil se maine apni baat ko sambhala..," nahi... kuchh nahi hua... main toh bus... main toh ye poochh rahi thi ki tum ladkon ki tarah 'ta hoon'.. 'ta hoon' kyun bolti ho?"

"Achchha.. ye!" wo muskurate huye boli..," pata nahi.. mujhe aise hi bolna achchha lagta hai.. aur khas tour par tab; jab mera..." Wah bolte huye ruki aur najrein jhuka li," jab mera pyar karne ka mann ho!"

"Achchhaaaaa.." Maine sir hilate huye jawab diya.. mera hath ab bhi uske hathon mein hi tha.. jise wo ab tak bade pyar se sahla rahi thi....," Ek baat bol doon.. gussa nahi hona..!" maine banawati pyar aankhon mein utaar liya...

"Bol na! teri kasam.. bilkul gussa nahi karoonga...!" Manisha ne bade pyar se kaha...

"Wo.. thodi der baad mujhe jana padega.. nahi toh Pinky ki mummy mere ghar par fone karke poochhegi...." Maine darkar uski aankhon mein dekhne ki koshish ki..

kuchh der wah yunhi mere chehre ko pyar se dekhti rahi.. fir mere chehre ko apne haathon mein le liya..," theek hai.. par ek baar pyar kar le.. usi din se tadap raha hoon.. tumse pyar karne ke liye...!" uski baat mein aadesh bhi tha aur prarthna bhi..

'na' kahne ki sochne se bhi darr lag raha tha mujhe.... pahli baar mujhe lag raha tha ki Manisha 'pagal' hai... Maine usko nipta dena hi theek laga," theek hai.. kar lo..!" Maine feeki si muskurahat chehre par lakar kaha...

"Sare kapde nikal kar achchhe se pyar karenge.. theek hai?" Usne poochha....

"Par.. par koyi aa gaya toh?" Maine jawab mein poochha..

"Yahan toh din mein bhi koyi nahi aata.. raat mein koun aayega.. tum darr kyun rahi ho?" usne mujhe kandhon se pakad kar hila diya...

"Theek hai.." Maine kaha aur apni shirt ke button kholne lagi...

"Ruko.. main nikaaloonga.. pyar se!" Manisha ne kaha aur mujhe kheench kar apni god mein baitha liya.....
Meri shirt ko mere badan se nikalne ke baad Manisha ne meri ek chhati ko apne hath mein pakad liya," Kitni pyari hai tu.. bra kabhi nahi daalti kya?"

Meri chhati ke daane par uski ungali lagte hi wo jitna ho sakta tha, tan kar khada ho gaya.. aur sakht hokar chhoti kismis ke jaisa ban gaya.. sirf rang ka fark tha.. 'dana' ek dam gulabi tha.. maine usko dekha aur aankhein band karke boli," Nayiii.."

"Ek minute aise hi rah.." Usne kaha aur mere 'daaney' ko honton ke beech daba liya.. meri siski nikal gayi," aaah.."

"Kya hua? maine toh daant se bhi nahi kaata.. aise hi honton mein lekar dekha tha.." Usne mere daaney se munh hataya aur mere gaalon ka chumban leti huyi boli..

Main kuchh nahi boli.. aankhein band kiye uski god main padi rahi..

"Maja aa raha hai na.. Anju?" Usne pyar se mere baalon mein hath ferte huye poochha...

Maine apna sir 'haan' mein hila diya.. maja nahi aa raha hota.. toh bhi mujhe yahi karna tha..

"Tera toh chehra hi itna pyara hai ki dekh kar hi dil machal jata hai.. main toh kabhi bhi ye nahi sochta tha ki tujhe roshni mein bhi pyar kar paaunga.. ab mujhe tu mil gayi.. aur kuchh nahi chahiye.. teri kasam!" Manisha boli...

Mera dhyan uski baaton se jyada meri chhatiyon par thirak rahe uske hath par tha... badey hi pyar se wah meri seb jaisi tani huyi chhatiyon ko sahla rahi thi. mere badan mein uske hath ke neeche meri yoni tak chale jane ki tadap badhne lagi.. main thoda soch kar boli," tum bhi nikal do na!"

"Nahi.. tum nikalo apne hath se...!" usne kahne ke baad mujhe apni god se neeche utar kar charpayi par baitha diya aur mere saamne apni chhatiyan taan kar apne hath upar utha liye... Maine uski kameej neeche se pakdi aur upar kheenchte huye nikal di... Main uski chhatiyon par bandhe kapde ko dekh kar boli," Ye kya hai?" mobile bhi usi kapde mein fansa hua saaf dikh raha tha...

"Ye..?" Mera ishara samajh kar wah neeche dekh kar boli," ye maine inko baandh rakha hai iss kapde mein.. upar uthi huyi mujhe achchhi nahi lagti!" Usne kaha aur mujhe wapas apni god mein kheench liya... agle hi pal usne meri skirt ka hook khola aur mujhe upar utha kar skirt ko meri taangon se bahar nikal diya...

"aah.. aaj toh tu mujhe poori nangi dekhne ko milegi..!" uske munh se laar tapak kar mere nange pate par ja giri.. Usne mujhe ek baar fir upar uthaya aur meri kachchhi bhi neeche sarkayi aur maine apne panje upar utha diye.. kachchhi charpayi par aa giri....

"Haye.. kitni pyari hai.. iss par toh poori tarah 'jhantein' bhi nahi ugi hain.. uushhhh.....gori gori si makkhan jaisi..." Kahte huye usne meri jaanghon ke beech hath dekar meri yoni par ungaliyan ghumayi..

"aaaaaaahhhh" maine sisak kar apni jaanghein faila di... aur apni yoni ko dekhne lagi.....

Shayad thand ki wajah se meri yoni sikud kar aur bhi chhoti si ho gayi thi.. yoni ki faankon ke sikudne ki wajah se unmein silwatein si bani huyi thi... aur unke beech ki nanhi nahi pattiyan aapas mein chipki huyi thi...

Manisha ne apni ek ungali aur angoothe ki sahayata se meri yoni ki faankon ko failakar unn pattiyon ko alag alag kiya aur sisak kar unke beech anguli rakh kar boli..," Haye re.. tera toh ang ang gulabi hai.. tere hont gulabi.. tere choochak gulabi.. aur teri ye bhi andar se poori gulabi hai... tu mujhe kaise mil gayi meri jaaaaaaannnn.." Bolte hi usne mere honton par apne hont rakhe aur meri risne lagi yoni mein apni ungali andar ghusa di... aanand ke maare main pagal si ho gayi aur maine apne nitamb upar utha diye....

"Maja aaya..?" Usne ungali ko bahar karke fir se andar sarka diya aur mere hont chhod kar poochha....

"AAAhaaaaaan.." Maine lambi saans li aur boli...," Tum bhi nikal do apni.. main bhi aise hi karoongi tumhe...."




















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1 comment:

Nikki Sharma said...
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