Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--20

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बाली उमर की प्यास पार्ट--20

गतांक से आगे.......................


"मेरा हाथ इतना ही बुरा लग रहा है तो लो.. छ्चोड़ दिया.." संदीप ने अपना हाथ वापस खींचा और मेरी और टुकूर टुकूर देखता रहा... उसने मुझे मेरी मर्ज़ी पर छ्चोड़ दिया था.. पर उसकी बात सुनकर मेरी उठकर जाने की हिम्मत ही नही हुई.. मैं सोफे पर बैठी आगे झुक कर टेबल को अपने नाखुनो से खुरचने लगी...

"तुम चिंता मत करना अंजू!" संदीप ने मुझे वहीं बैठे देख कर कहा...

मैने नज़रें उठाकर उसकी आँखों में आँखें डालने की कोशिश की.. पर मैं सफल ना हो सकी...,"क्क्क़ीस्स्स बात की..?" मैने हकलाते हुए पूचछा....

"वोही.. उस दिन मैने आकर अचानक दरवाजा खोल दिया था..." संदीप कुच्छ देर रुका और फिर बोला,"....और तुम और ढोलू...." उसके बाद वा कुच्छ नही बोला.. वह भी समझ गया था कि मैं समझ गयी हूँ....

"व्व..वो.. संदीप...! मैं और पिंकी शिखा से मिलने आए थे... ढोलू ने हमें नही बताया कि शिखा गाँव में नही है.. पिंकी को इस कमरे में बैठने की बोल कर उसने मुझे 'उस' कमरे में बुला लिया... मुझे.... मुझे नही पता था कि.. वो क्या करेगा.. सच्ची!" मैने कुच्छ झूठ भी तो नही बोला था ना!

"हां.. मुझे पता है.. 'वो' ऐसा ही है.. पर फिर भी.. मैं किसी को नही बताउन्गा.. !" संदीप ने कहा...

"ठीक है.."नज़रें झुकाए हुए मैं इतना ही बोल पाई...

"तुमने कभी...... किसी और के साथ किया है ऐसा?" संदीप थोड़ा झिझक कर बोला...

"क्क्या?" मैने जानते हुए भी पूच्छ ही लिया कि वो क्या कहना चाहता है....

"वोही.. जो उस दिन... कर रहे थे..!" संदीप की हिचकौले खाती साँसों में मेरे लिए एक निमंत्रण सा था.. मेरा मंन मचल उठा..,"नहियिइ" मैने उसकी आँखों में आँखें डाल कर जवाब दिया.. मेरे जवाब में उसके निमंत्रण को स्वीकारने की हुल्की सी ललक थी... तब भी वो नही समझा होगा तो उस'से बड़ा 'लल्लू' कोई हो ही नही सकता....

कुच्छ देर हम दोनो चुपचाप बैठे रहे.. ना तो मेरा 'वहाँ' से उठकर जाने का दिल किया.. और 'ना' ही उसने मुझे रोक कर रखने की कोई कोशिश ही की... कुच्छ देर बाद मैने ही चुप्पी तोड़ी..,"मैं जाऊं?"

संदीप शायद कहना कुच्छ और चाहता था.. पर निकला कुच्छ और..,"हां...... देख लो.... तुम्हारी मर्ज़ी है...!"

मैं मंन मसोस कर खड़ी हो गयी..," अच्च्छा! पढ़ लो... मैं जा रही हूँ..."

"एक मिनिट... एक मिनिट रूको.." संदीप ने अपनी किताबें बंद करके रख दी और एक लंबी सी साँस ले कर बोला...

"हां.. क्या?... बोलो!" मैं एक पल भी गँवाए बिना वापस बैठ गयी.. हालाँकि उसने सिर्फ़ मुझे रुकने के लिए कहा था....

"समझ नही आ रहा कैसे बोलूं?" उसने अपने लाल हो चुके चेहरे को हाथों से मसल्ते हुए कहा....

"क्या है? बोलो ना!.. मैं भी किसी को नही बोलूँगी..." मैं उसकी हालत को ताड़ कर बोली...

"पिंकी को भी नही बताओगि ना?" संदीप ने मेरी आँखों में देख कर पूचछा.. मैं उसको ही देख रही थी...

"नही.. किसी को भी नही.. तुम बोलो ना.. क्या बात है..?" मैं उसको उकसाने के लिए अपना हाथ उसकी टाँगों के पास रख कर उसकी और झुक सी गयी...

"वो... पता है? मेरे सारे दोस्तों ने.. 'वो' कर लिया है.. पर मैने आज तक नही किया..." संदीप हड़बड़ते हुए बोला...

"क्या? क्या नही किया?" मैं मासूम सी बनकर बोली....

"वही.. जो ढोलू उस दिन तुम्हारे साथ कर रहा था..." संदीप ने जवाब दिया...

"उसने कुच्छ नही किया.. तुम्हारी कसम!" मुझे ऐसा लगा जैसे मानो उसने शिकायती लहजे में अपनी बात कही हो...

"हां... वो तो... मैं आ गया था ना....!" संदीप ने सिर हिलाते हुए कहा....

"तुम्हे कोई लड़की पसंद हो तो उसके साथ कर लो..." मैने अपनी सूनी आँखों की सारी तड़प बोलते हुए उडेल दी...

"मुझे पिंकी बहुत पसंद है... पर 'वो'.... वो मानती ही नही....!" संदीप ने खुलासा किया....

"क्य्ाआआअ? तुमने पिंकी को बोली है कभी.. ये बात?" मैं हैरान होकर बोली...

"पिंकी को मत बोलना... 'वो' मेरी ऐसी तैसी कर देगी...!" संदीप बोला...

"नही बोलूँगी ना.. बताओ तो?" मैं उत्सुक होकर बोली.....

"वो.. पिच्छले साल एक बार 'चुम्मि' के लिए बोला था... उसका थप्पड़ आज तक याद है मुझे.. बड़ी मुश्किल से शिकायत करने से रोका था... उसके बाद 'वो' अब एग्ज़ॅम में ही जाकर बोली है मुझसे...!"

संदीप का बोलते हुए चेहरा देख कर ना चाहते हुए भी मेरी हँसी छ्छूट गयी....

"हंस क्यूँ रही हो?" उसने बुरा सा मान कर कहा....

"कुच्छ नही..." मैं अपनी हँसी पर काबू पाकर बोली," तो कोई और ढूँढ लो... सब लड़कियाँ तुम्हारी ही तो बात करती रहती हैं...." मैने उसकी और मुस्कुरकर अपनी सहमति जताई...

मेरी बात पर बिना कोई प्रतिक्रिया दिए उसने मेरा हाथ पकड़ लिया," तुम... तुम सच में बहुत प्यारी हो अंजू.. सारे लड़के भी तुम्हारी ही बात करते रहते थे.. तुम्हारे स्कूल आना छ्चोड़ने के बाद भी..."

"और तुम?" मैने नखरा सा दिखाते हुए अपना हाथ च्छुदा लिया..," तुम्हे तो बस पिंकी ही अच्छि लगती है ना?"

"ऐसी बात नही है अंजू.. वो तो बस उसके नेचर की वजह से.. तुमसे सुंदर तो कोई हो ही नही सकता... ये तो मैं भी मानता हूँ..." संदीप ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और फिर से मेरा हाथ अपने हाथ में ले लिया....

"झूठे!" मैने आँखें तरेर कर कहा...,"ऐसा क्या है मुझमें?"

"तुम्हारे होन्ट... शहद में डूबी हुई गुलाब की पंखुड़ियों जैसे तुम्हारे रसीले होन्ट.. मुझे बहुत प्यारे लगते हैं अंजू... तुम्हारी कसम...!" संदीप ने बेकरार सा होकर कहा....

अपनी ऐसी प्रशंसा सुनकर मैं इतरा सी गयी... उसकी और एक भीनी मुस्कान फैंक कर बोली,"तुम्हे तो पिंकी की 'चुम्मि' चाहिए ना!"

"हां.. वो पर... मैं तब सिर्फ़ उसी से बात करता था.. इसीलिए.. पर तुम सच में सबसे सुंदर हो अंजू.. तुम्हारी कसम..!" संदीप बेकरार सा होकर बोला...

मैं अंदर ही अंदर खुशी से मचलती जा रही थी.. संदीप का 'ऐसी' बातें भी मासूम सा बन कर कहना मुझे बहुत ही अच्च्छा लगा था.. उसकी बातों से ही लग रहा था कि वो भी मेरी ही तरह 'प्यार' के इस अनोखे खेल को सीखने के लिए पागल सा हुआ जा रहा है.. मैं उसकी बात सुनकर हंस पड़ी..," सिर्फ़ होन्ट अच्छे होने से क्या होता है.. और भी तो बहुत कुच्छ होना चाहिए... सुंदर होने के लिए..." दरअसल मैं उसके मुँह से अपने अंग अंग की तारीफ़ सुन'ना चाहती थी... 'अंग' अंग' की....

मेरी बात सुनकर वा बेचैन सा होकर मेरे करीब सरक आया," तुम्हारा सब कुच्छ तो इतना प्यारा है अंजू.. कभी आईने के सामने खड़ी होकर खुद को निहारो तो सही..." जैसे मैने कभी आईना देखा ही नही था.. पर मैं उसकी बातें खुश होकर सुनती रही... बोलते बोलते वा मेरी हथेली को अपनी हथेलियों में लेकर सहला रहा था," तुम्हारी ये काली बिल्लौरी आँखें... तुम्हारे गोरे गोरे गाल.. अंजाने में ही इनको चूमने के लिए मचल कर आगे लटक जाती तुम्हारी ये काले बालों की लट..... तुम्हारी पतली और लंबी गर्दन... और..." वा बोलता बोलता हिचक गया.. और फिर कुच्छ और ही बोलने लगा," तुम्हारी एक एक अदा के हज़ार दीवाने हैं.. तुम्हारी शरारती सी मुस्कान ने तुमको बदनाम कर दिया है.. स्कूल का हर लड़का तुम्हारे लिए पागल है अंजू....."

वा बोलता ही चला जाता अगर मैं उसको टोक ना देती...," क्या तुम भी?"

"हां अंजू... मैं भी.. पर झिझक के कारण कभी बोल नही पाया... मैं तो जाने कितने दीनो से तुम्हारे साथ 'वो' सब करने के सपने दखता हूँ.. जो मेरे दोस्त लड़कियों के साथ करते हैं...!" संदीप बहक सा गया...

मैं उसकी आँखों में घूरती हुई शिकायती लहजे में बोली," पर तुमने पहले तो कभी नही कहा ऐसा...!"

"हां.. मैं कभी नही कह पाया.. मेरी तो समझ में ही नही आता कि मेरे दोस्त कैसे इतनी जल्दी लड़कियों को ये सब बोल देते हैं.... पर 'उस' दिन.. ढोलू के साथ तुम्हे देखने के बाद मेरा 'जी' बहुत जला था.. मैने सोच रखा था कि मैं तुम्हे ज़रूर कह दूँगा.. सब कुच्छ.......... तुम्हे बुरा तो नही लग रहा ना?" संदीप रुक कर पूच्छने लगा....

"नही.. ढोलू का बुरा लग रहा था.. सच्ची.. तुम्हारा नही लग रहा... बोलो.. बोलते रहो.." मैं अपने हाथ को उसके हाथों में ढीला छ्चोड़ कर बोली...

"एक.... एक 'किस' दे दो अंजू!" उसने इस तरह कहा जैसे भीख माँग रहा हो.. मुझे उसका अंदाज बिल्कुल पसंद नही आया... वो तो एक मर्द था... तब तक नही समझेगा तो कब समझेगा... उसको तो तब तक मुझे अपनी बाहों में खींच लेना चाहिए था.....,"कोई आ गया तो?" मैने कहा... मैं नही चाहती कि मुझे पहल करके उसकी ओर बढ़ना पड़े.....

"कौन आएगा यहाँ? मम्मी पापा मामा के यहाँ गये हैं... कल शिखा को लेकर ही आएँगे... ढोलू का कुच्छ पता नही.. 'एक' मिनिट ही तो लगेगी.. प्लीज़!"

मुझे गुस्सा सा आ गया और मैं झल्ला कर बोली,"तो मैं कब मना कर रही हूँ... जो चाहिए ले लो...!"

सुनते ही संदीप की बाँच्चें खिल गयी.. उसने मेरी बाहों के नीचे से मेरी कमर में हाथ डाले और मुझे अपनी और खींच लिया... हमारे चेहरे आमने सामने थे.. वो मेरी आँखों में देखने लगा तो मैने आखें बंद कर ली... उसने 2 बार प्यार से मेरे होंटो के दोनो और बंद होंटो से चूमा और फिर अपने होन्ट मेरे उत्तेजना की अग्नि में थिरक रहे होंटो पर रख दिया....

मेरा पूरा बदन जैसे जल सा उठा.... उसके होंटो का स्पर्श मुझे अंदर तक गुदगुदाता सा चला गया.. मैने अपने हाथों से उसके कंधों को कसकर पकड़ लिया अया सिसकी निकालने की वजह से मेरे होन्ट हल्क से खुल गये....

खुल क्या गये! हमारे 2 जोड़ी होंटो को तो बस गुत्थम गुत्था होने का एक मौका चाहिए था... मेरी सिसकी निकलते ही संदीप ने मेरे उपर वाले होन्ट को कसकर अपने होंटो के बीच दबा लिया और मुझे अपने आगोश में खींचते हुए पागलों की तरह उसको चूसने लगा... कुच्छ पल से ज़्यादा मैं भी अपने आपको काबू में रख नही पाई... मैने हल्की सी सीत्कार के साथ ही अपने दाँत संदीप के होन्ट पर हल्क से गढ़ा दिए...

उसको इशारा भी मिल गया और बहाना भी... मुझे 'चूस्ते' हुए ही उसने मुझे मेरी कमर से पकड़ कर खींचा और अपनी जांघों पर बिठा लिया.. वा पैरों को सोफे से नीचे लटकाए बैठा था और मैं अपने पैरों को सोफे पर पसारे हुए नितंबों को उसकी जांघों के बीच टिकाए हुए मस्ती से उसमें खोई हुई थी.... उसका आकड़ा हुआ लिंग मेरे कुल्हों की बराबर में नितंब पर गढ़ा हुआ था...

सहसा उसने एक हाथ धीरे से मेरी चूची पर टीकाया और उसको हुल्‍के से दबा कर देखने लगा... 'आआआअहह' मेरी आँखें जैसे पथरा गयी.... काफ़ी देर से मैं जैसे साँस लेना ही भूल गयी थी... जैसे ही मैने अपने निचले होन्ट को ढीला छ्चोड़ा.. उसने रस से भर चुके मेरे होंटो के बीच अपनी जीभ घुसा दी... और मैं गर्मी में पिघलती जा रही किसी आइस्क्रीम की तरह उसकी जीभ को ही चूसने लगी......

मैं इस बार किसी भी हालत में ये मौका गँवाना नही चाहती थी.... मैने उसके गालों से एक हाथ हटाया और उसकी जीभ को चूस्ते हुए ही हाथ नीचे ले जाकर अपनी मुट्ठी में उसका लिंग पॅंट के अंदर ही दबोच लिया...

मेरे ऐसा करते ही वा हड़बड़ा कर झेंप सा गया और तुरंत पिछे हट गया... पर मेरे लिए अब पिछे हटना नामुमकिन था... उसने झुक कर मेरे हाथ की तरफ देखा.. पर मैने उसका लिंग छ्चोड़ा नही....

"रूको.... मैं दरवाजा बंद करके आता हूँ..." वह हान्फ्ते हुए बोला और मुझे एक तरफ सरका कर खड़ा हो गया... उसका लिंग अब भी 120 डिग्री के आंगल पर उपर की ओर तना हुआ था.....

मैं अपनी नज़रें झुकाए मस्ती में कुम्हलाई हुई सी मंद मंद मुस्कुराती रही.. मुझे उम्मीद थी कि अब खेल जहाँ पर रुका है.. वहीं से शुरू हो जाएगा.. पर वो तो नीरा 'लल्लू' निकला..

दरवाजा बंद करके वा मेरे पास आकर बैठ गया.. पर हमारे बीच की करीब 6 इंच की दूरी भी मेरे लिए असहाया सी थी... मैने तड़प कर उसकी आँखों में झाँका...

"तुम्हे.... बुरा तो नही लग रहा ना अंजू?" संदीप ने करीब 1 मिनिट तक चुपचाप रहने के बाद इस बेतुके सवाल से शुरुआत की.. 'अफ' ये शरीफ लड़के!

मैं जाने क्या क्या बोल देना चाहती थी... जाने क्या क्या कर लेना चाहती थी.. पर मुझे तब भी सीधी उंगली से मेरी जांघों के बीच फुदाक रही 'डिबिया' का घी निकल जाने की उम्मीद थी...,"अब.. बार बार पूच्छ क्यूँ रहे हो? ऐसे पूछोगे तो मैं मना कर दूँगी हां!" मैने अपना मुँह फूला कर उसको बंदैर्घूड़की दी....

"नही... पर मैं तुम्हारे साथ पूरा सेक्स करना चाहता हूँ... इसीलिए पूच्छ रहा था..."संदीप ने मासूम सा बनकर मेरा हाथ पकड़ लिया...

"पूरा सेक्स? वो क्या होता है?" मैने अंजान होने का नकाब पहन लिया....

"क्या? तुम्हे नही पता की 'पूरा सेक्स' कैसे होता है....?" संदीप आसचर्या से बोला....

"नही तो... बताओ ना जल्दी.. ऐसे टाइम क्यूँ खराब कर रहे हो..?" मैं अधीर होकर बोली....

"वो.. जो तुम ढोलू के साथ कर रही थी... वही.....!" संदीप ने कहा....

"वो तो मुझे ज़बरदस्ती अपनी गोद में बैठा रहा था... ऐसे तो मैं बैठ भी गयी हूँ तुम्हारी गोद में.. अपनी मर्ज़ी से ही...!" मुझसे अब मेरी तड़प बर्दास्त नही हो रही थी... मैं खुद ही उठी और उसकी गोद में दोनो तरफ पैर करके बैठ गयी... मेरे नितंब उसकी जांघों पर टीके हुए थे और उसकी जांघों के बीच की कड़ी हुई लंबाई मेरी जांघों के बीच सलवार के उपर से मेरी योनि से सटी हुई उपर की और उठी हुई थी... अजीब सा आनंद आ रहा था," उसने तो ऐसे बिठाया था मुझे अपनी गोद में..."

"बस!" वह खुश होकर बोला," क्या तुमने किसी के साथ 'सेक्स' नही किया कभी..." उसके सवाल ही ख़तम नही हो रहे थे....

मैं तुनक कर बोली..,"जितना किया है 'वो' बता दिया... अब जल्दी बताओ ना.. पूरा सेक्स कैसे होता है?"

"आइ लव यू जान..." कहते हुए वा एक बार फिर मेरे होंटो को चाटने लगा.. उसके ऐसा करते ही मैं सरक कर और आगे हो गयी.. ऐसा करने से उसका लिंग लंबाई के बल मेरी योनि की फांकों में आड़ गया... 'आऐईयईई.... ऊऊईीईई मुंम्म्मय्यययी...." मैं सीत्कार उठी....

"क्या हुआ?" वा मेरा चेहरा अपने दोनो हाथों में थाम कर बोला......

"कुच्छ नही.... यहाँ पता नही कैसी गुदगुदी हो रही है.....!" मैने बोलते हुए एक बार फिर उसका लिंग पकड़ कर अपनी योनि पर मसल दिया.. इसके साथ ही एक बार फिर मैं सिसक उठी..,"आआआआहहिईीईईईईईईईईईईईई" मेरी पलकें भारी सी होकर अपने आप ही बंद हो गयी.....

कुच्छ कुच्छ मेरे जैसा ही हाल उसका था...," अयाया... हां.. 'यहीं' तो होता है 'पूरा सेक्स'! इस'से तो सौ गुना ज़्यादा मज़ा आएगा.. 'वो' सब करने में... करें क्या?" उसने कहने के बाद मुझे कसकर पकड़ा और अपनी और खींच लिया.. मेरी सुडौल मस्त चूचिया उसकी जवान छाती में गाडते ही हम दोनो ही 'पागल' से हो गये.....

"हां.. कर लो पूरा सेक्स.. जल्दी करो ना!" मैं तड़प कर बोली....

"कपड़े निकालने पड़ेंगे... निकाल दूं..?" उसने फिर पूचछा!

कुच्छ देर मैं चुपचाप अपनी चूचियो के दानो को उसकी छाती में यूँही गड़ाए रही.. फिर अलग हटकर बोली," पहले तुम!"

"ंमुझे तो बस यही निकलना है... बाहर..." वह अपना हाथ हम दोनो के बीच फँसा कर उसके लिंग को पकड़े हुए मेरे हाथ को थाम कर बोला..," निकाल लूँ...?"

"हां.." मैने कहा और नितंबों को पिछे सरका कर नीचे देखने लगी.. मैने अपना हाथ हटा लिया....

"नही.. ऐसे मत देखो.. आँखें बंद कर लो.." उसने शर्मकार कहा...

'हे भगवान.. पता नही कैसा लड़का है..' मैने मंन ही मंन सोचा और अपनी नज़रें उपर उठा कर बंद कर ली.....,"लो!"

अगले ही पल मुझे उसकी पॅंट की ज़िप खुलने की आवाज़ सुनाई दी और उसके कुच्छ देर बाद 'उसका' मोटा और अकड़ कर लंबा होता जा रहा 'लिंग' मेरी मुट्ठी में था...

"आआहह..." वह अपने लिंग के मेरी मुट्ठी में क़ैद होते ही सिसक उठा...

"क्या हुआ?" मैने पूचछा.....

"मुझे भी 'यहाँ' वैसा ही मज़ा आ रहा है जैसा तुम्हे आया था.... आआहह.. हिलाओ मत.. निकल जाएगा!" वह अपना हाथ मेरी चूचियो पर ले आया और उन्हे टेन्निस बॉल की तरह दबा दबा कर देखने लगा..,"कैसा लग रहा है..?" उसने पूचछा....

"गरम गरम है..." मैं हंसते हुए बोली..

"अरे 'वो' नही.. मैं तुम्हारी चूचियो को दबा रहा हूँ तो कैसा लग रहा है...?"

"तुम बोलो मत अब... सब कुच्छ बहुत अच्च्छा लग रहा है मुझे... प्लीज़ जल्दी करो....!" मैं तड़प कर बोली....
"ठीक है..."संदीप ने कहा और मेरा कमीज़ उपर खींचने लगा...

वैसे तो मैं अंजान बन'ने का पूरा नाटक कर रही थी.. पर उत्तेजना और जल्दी करने के चक्कर में मेरे मुँह से निकल ही गया,"ययए.. रहने दो ना.. सिर्फ़ 'काम' की चीज़ निकाल लो..."

वह थोड़ी देर मुस्कुराया और मेरे गालों पर हल्क दाँत गढ़ाता हुआ बोला..," लड़की तो सारी ही 'काम' की होती है... सिर से लेकर पाँव तक.... मुझे तुम्हारे अंग अंग को चाटना है.. तुम्हारी इन्न... चूचियो को भी...."

"आआहह..." मेरे दिल में उसकी बात सुनकर गुदगुदी सी हुई और मैं सिसक उठी," तुम तो बड़े बेशर्म हो.. 'अपना' तो दिखाते हुए भी शर्मा रहे हो.." कहते हुए मैने उसको पिछे की ओर धकेला और अपने हाथ में थामे हुए उसके 'लिंग' को देखने लगी... जड़ के पास से मेरी मुट्ठी में फँसा उसका लिंग फुफ्कारें सी मार रहा था... गाढ़े साँवले रंग के उसके लिंग का मुँह किसी गाजर की तरह लाल था और आकार में किसी टमाटर जैसा... उसके मुँह पर बने माचिस की तीली जीतने मोटे च्छेद पर रस की एक बूँद आकर ठहरी हुई थी.. लिंग की नशों को देख कर ऐसा लग रहा था जैसे 'वो' किसी भी क्षण फट सकता है....

"अरे.. तुम इतने गोरे हो! फिर ये इतना काला क्यूँ है?" फट पड़ने को बेकरार उसके लिंग को छ्चोड़ कर मैने उसके नीचे लटके हुए घूंघारूओं को पकड़ लिया...

"आहहह.." वह सिसकने के बाद तोड़ा झेंप कर बोला..,"ये तो ऐसा ही हो जाता है.. तुम्हारी भी तो ऐसी ही होगी.. तुम कितनी गौरी हो!" कहते हुए उसने मेरी 'ना ना' के बावजूद मेरे कमीज़ को मेरे बदन से अलग कर ही दिया...

पता नही क्यूँ.. कुच्छ पल के लिए वह चुपचाप आँखें फाडे 'ब्रा' में क़ैद मेरी चूचियो के बीच की गौरी घाटी को घूरता रहा.. फिर अचानक हाथ पिछे ले जाकर मेरी 'ब्रा' की स्ट्रिप्स को मेरी कमर से उखाड़ देने पर उतारू हो गया...

"रूको.. मैं खोलती हूँ..." मुझे लगा वो तो खोलते खोलते ही कयि घंटे लगा देगा...

"जल्दी खोलो ना...!" जैसे ही मैने ब्रा खोलने के लिए अपना हाथ उसके लिंग से हटाया.. उसने खुद ही पकड़ लिया..,"लो.. खुल गयी..." मैने कहा और स्ट्रिप्स को अपनी बाहों के नीचे दबाकर अपना सिर झुका लिया...

जैसा मुझे डर था.. वही हुआ.. संदीप इतना बेशबरा हुआ जा रहा था कि उसने ब्रा को छाती से पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया... मैं झटके से उसकी तरफ आई.. पर फिर भी कंधे की एक स्ट्रीप चटक गयी..,"ओह.. क्या करते हो?" मैने दूसरे ब्रा को दूसरी बाजू से बाहर निकालते हुए कहा....

पर उसने तो जैसे कुच्छ सुना ही नही... उसका पूरा ध्यान ब्रा पर नही.. बुल्की ब्रा की क़ैद से निकलते ही फदाक उठी मेरी संतरे जैसी चूचियो पर था.. दूधिया रंग की मेरी चूचिया भी मानो उसको चिडा रही हों.. छ्होटी क़िस्स्मिस्स के आकर के दोनों दानो की चौन्च उसकी आँखों की ओर ही उठी हुई ही.... वा अब भी उन्हे ही आँखें फाडे घूर रहा था.. जैसे और कुच्छ करना ही ना हो....

"क्या है..?" मैने शर्मा कर अपनी चूचियो को अपनी हथेलियों में छिपा लिया.. तब जाकर कहीं उसके होश ठिकाने आए.. ठिकाने क्या आए.. होश तो उसके मानो तभी उड़े हों... मानो किसी ने उस'से जन्नत की खुशियाँ छीन ली हों.. उसने झपट्टा सा मारा और मेरे हाथ 'वहाँ' से हटा कर अपने टीका दिए...

"उफफफफफ्फ़....तुम तो पूरी की पूरी मक्खन हो मक्खन!" मेरी दोनो चूचियो को अपने एक एक हाथ में लपके हुए वह उन्हे 'प्यार से सहलाता हुआ बोला...," ये सबकी ऐसी ही होती हैं क्या?" उसने अपनी चुटकियों में मेरी चूचियो के दोनो दाने पकड़ लिए...

"धत्त.. मुझे क्या पता? मैं क्या सबकी देखती फिरती हूँ..." अपनी चूचियो से उसकी नज़रों का लगाव देख कर मैं गदरा सी गयी और मेरी चूचियो का कसाव हल्का सा बढ़ गया...

"मैं इन्हे चूस कर देख लूँ एक बार...?" वह अपने होंटो पर जीभ घूमता हुआ बोला... शायद अपनी लार को बाहर टपकने से रोक रहा होगा...

जवाब मैने नही, बुल्की मेरी चूचियो ने खुद ही दिया.. मेरे नितंब थोड़ा पिछे सरक गये और कमर थोड़ी आगे खिसक आई.. मैने अपनी चूचियो को आगे किया और उभार कर उसके होंटो से च्छुआ दिया.....

एक बार को तो भूखे शेर की भाँति उन्न पर टूट पड़ा... जितना मुँह खोल सकता था, खोल कर मेरी एक छाती को पूरा ही मुँह में तूसने की कोशिश की... और जितना ले पाया... अपनी आँखें बंद करके उसको पपोल'ने लगा......

क्रमशः.......................

gataank se aage.............


"Mera hath itna hi bura lag raha hai toh lo.. chhod diya.." Sandeep ne apna hath wapas kheencha aur meri aur tukur tukur dekhta raha... Usne mujhe meri marzi par chhod diya tha.. Par uski baat sunkar meri uthkar jane ki himmat hi nahi huyi.. Main sofe par baithi aage jhuk kar table ko apne naakhuno se khurachne lagi...

"Tum chinta mat karna Anju!" Sandeep ne mujhe wahin baithe dekh kar kaha...

Maine najrein uthakar uski aankhon mein aankhein daalne ki koshish ki.. par main safal na ho saki...,"Kkkisss baat ki..?" Maine haklaate huye poochha....

"Wohi.. uss din maine aakar achanak darwaja khol diya tha..." Sandeep kuchh der ruka aur fir bola,"....aur tum aur Dholu...." Uske baad wah kuchh nahi bola.. wah bhi samajh gaya tha ki main samajh gayi hoon....

"ww..wo.. Sandeep...! Main aur Pinky Shikha se milne aaye the... Dholu ne hamein nahi bataya ki Shikha gaanv mein nahi hai.. Pinky ko iss kamre mein baithne ki bol kar usne mujhe 'uss' kamre mein bula liya... Mujhe.... mujhe nahi pata tha ki.. wo kya karega.. sachchi!" Maine kuchh jhooth bhi toh nahi bola tha na!

"Haan.. mujhe pata hai.. 'wo' aisa hi hai.. par fir bhi.. main kisi ko nahi bataaunga.. !" Sandeep ne kaha...

"theek hai.."Najrein jhukaye huye main itna hi bol payi...

"Tumne kabhi...... kisi aur ke sath kiya hai aisa?" Sandeep thoda jhijhak kar bola...

"kkya?" Maine jaante huye bhi poochh hi liya ki wo kya kahna chahta hai....

"Wohi.. jo uss din... kar rahe the..!" Sandeep ki hichkoule khati saanson mein mere liye ek nimantran sa tha.. mera mann machal utha..,"Nahiiii" Maine uski aankhon mein aankhein daal kar jawaab diya.. mere jawab mein uske nimantran ko sweekaarne ki hulki si lalak thi... tab bhi wo nahi samjha hoga toh uss'se bada 'lalloo' koyi ho hi nahi sakta....

Kuchh der hum dono chupchap baithe rahe.. na toh mera 'wahan' se uthkar jane ka dil kiya.. aur 'na' hi usne mujhe rok kar rakhne ki koyi koshish hi ki... kuchh der baad maine hi chuppi todi..,"Main jaaoon?"

Sandeep shayad kahna kuchh aur chahta tha.. par nikla kuchh aur..,"haan...... dekh lo.... tumhari marji hai...!"

Main mann masos kar khadi ho gayi..," achchha! padh lo... main ja rahi hoon..."

"Ek Minute... Ek minute ruko.." Sandeep ne apni kitaabein band karke rakh di aur ek lambi si saans le kar bola...

"Haan.. kya?... bolo!" Main ek pal bhi ganwaye bina wapas baith gayi.. halanki usne sirf mujhe rukne ke liye kaha tha....

"Samajh nahi aa raha kaise bolun?" Usne apne laal ho chuke chehre ko hathon se masalte huye kaha....

"Kya hai? bolo na!.. main bhi kisi ko nahi boloongi..." Main uski halat ko taad kar boli...

"Pinky ko bhi nahi bataaogi na?" Sandeep ne meri aankhon mein dekh kar poochha.. main usko hi dekh rahi thi...

"Nahi.. kisi ko bhi nahi.. tum bolo na.. kya baat hai..?" Main usko uksaane ke liye apna hath uski taangon ke paas rakh kar uski aur jhuk si gayi...

"Wo... pata hai? mere saare doston ne.. 'wo' kar liya hai.. par maine aaj tak nahi kiya..." Sandeep hadbadate huye bola...

"Kya? kya nahi kiya?" Main masoom si bankar boli....

"Wahi.. jo dholu uss din tumhare sath kar raha tha..." Sandeep ne jawaab diya...

"Usne kuchh nahi kiya.. tumhari kasam!" Mujhe aisa laga jaise mano usne shikayati lahje mein apni baat kahi ho...

"Haan... wo toh... main aa gaya tha na....!" Sandeep ne sir hilate huye kaha....

"Tumhe koyi ladki pasand ho toh uske sath kar lo..." Maine apni sooni aankhon ki sari tadap bolte huye udel di...

"Mujhe Pinky bahut pasand hai... par 'wo'.... wo maanti hi nahi....!" Sandeep ne khulasa kiya....

"Kyaaaaaaa? Tumne Pinky ko boli hai kabhi.. ye baat?" Main hairaan hokar boli...

"Pinky ko mat bolna... 'wo' meri aisi taisi kar degi...!" Sandeep bola...

"Nahi bolungi na.. batao toh?" Main utsuk hokar boli.....

"Wo.. pichhle saal ek baar 'chummi' ke liye bola tha... uska thappad aaj tak yaad hai mujhe.. badi mushkil se shikayat karne se roka tha... uske baad 'wo' ab exam mein hi jakar boli hai mujhse...!"

Sandeep ka bolte huye chehra dekh kar na chahte huye bhi meri hansi chhoot gayi....

"Hans kyun rahi ho?" Usne bura sa maan kar kaha....

"Kuchh nahi..." Main apni hansi par kaabu pakar boli," Toh koyi aur dhoondh lo... sab ladkiyan tumhari hi toh baat karti rahti hain...." Maine uski aur muskurakar apni sahmati jatayi...

Meri baat par bina koyi pratikriya diye usne mera hath pakad liya," Tum... tum sach mein bahut pyari ho Anju.. sare ladke bhi tumhari hi baat karte rahte the.. tumhare school aana chhodne ke baad bhi..."

"Aur tum?" Maine nakhra sa dikhate huye apna hath chhuda liya..," Tumhe toh bus Pinky hi achchhi lagti hai na?"

"Aisi baat nahi hai anju.. wo toh bus uske nature ki wajah se.. tumse sunder toh koyi ho hi nahi sakta... ye toh main bhi maanta hoon..." Sandeep ne apna hath aage badhaya aur fir se mera hath apne hath mein le liya....

"Jhoothe!" Maine aankhein tarer kar kaha...,"Aisa kya hai mujhmein?"

"Tumhare hont... shahad mein doobi huyi gulaab ki pankhudiyon jaise tumhare rasile hont.. mujhe bahut pyare lagte hain Anju... tumhari kasam...!" Sandeep ne bekaraar sa hokar kaha....

Apni aisi prashansa sunkar main itra si gayi... uski aur ek bheeni muskaan faink kar boli,"Tumhe toh Pinky ki 'chummi' chahiye na!"

"Haan.. wo par... main tab sirf usi se baat karta tha.. isiliye.. par tum sach mein sabse sundar ho Anju.. Tumhari kasam..!" Sandeep bekaraar sa hokar bola...

Main andar hi andar khushi se machalti ja rahi thi.. Sandeep ka 'aisi' baatein bhi masoom sa ban kar kahna mujhe bahut hi achchha laga tha.. uski baaton se hi lag raha tha ki wo bhi meri hi tarah 'pyar' ke iss anokhe khel ko seekhne ke liye pagal sa hua ja raha hai.. main uski baat sunkar hans padi..," Sirf hont achchhe hone se kya hota hai.. aur bhi toh bahut kuchh hona chahiye... sundar hone ke liye..." Darasal main uske munh se apne ang ang ki taareef sun'na chahti thi... 'ang' ang' ki....

Meri baat sunkar wah bechain sa hokar mere kareeb sarak aaya," Tumhara sab kuchh toh itna pyara hai Anju.. kabhi aaine ke saamne khadi hokar khud ko nihaaro toh sahi..." Jaise maine kabhi aaina dekha hi nahi tha.. par main uski baatein khush hokar sunti rahi... bolte bolte wah meri hatheli ko apni hatheliyon mein lekar sahla raha tha," Tumhari ye kali billouri aankhein... tumhare gore gore gaal.. anjane mein hi inko choomne ke liye machal kar aage latak jati tumhari ye kaale baalon ki lat..... tumhari patli aur lambi gardan... aur..." wah bolta bolta hichak gaya.. aur fir kuchh aur hi bolne laga," Tumhari ek ek adaa ke hazaar deewane hain.. tumhari shararati si muskaan ne tumko badnaam kar diya hai.. School ka har ladka tumhare liye pagal hai Anju....."

Wah bolta hi chala jata agar main usko tok na deti...," kya tum bhi?"

"Haan Anju... main bhi.. par jhijhak ke karan kabhi bol nahi paya... Main toh jane kitne dino se tumhare sath 'wo' sab karne ke sapne dakhta hoon.. jo mere dost ladkiyon ke sath karte hain...!" Sandeep behak sa gaya...

Main uski aankhon mein ghoorti huyi shikayati lahje mein boli," Par tumne pahle toh kabhi nahi kaha aisa...!"

"Haan.. Main kabhi nahi kah paya.. meri toh samajh mein hi nahi aata ki mere dost kaise itni jaldi ladkiyon ko ye sab bol dete hain.... par 'uss' din.. Dholu ke sath tumhe dekhne ke baad mera 'ji' bahut jala tha.. maine soch rakha tha ki main tumhe jaroor kah doonga.. sab kuchh.......... tumhe bura toh nahi lag raha na?" Sandeep ruk kar poochhne laga....

"Nahi.. Dholu ka bura lag raha tha.. sachchi.. tumhara nahi lag raha... bolo.. bolte raho.." Main apne hath ko uske hathon mein dheela chhod kar boli...

"Ek.... Ek 'kiss' de do Anju!" Usne iss tarah kaha jaise bheekh maang raha ho.. mujhe uska andaj bilkul pasand nahi aaya... wo toh ek mard tha... tab tak nahi samjhega toh kab samjhega... usko toh tab tak mujhe apni baahon mein kheench lena chahiye tha.....,"Koyi aa gaya toh?" Maine kaha... main nahi chahti ki mujhe pahal karke uski aur badhna pade.....

"Koun aayega yahan? Mummy papa mama ke yahan gaye hain... kal shikha ko lekar hi aayenge... Dholu ka kuchh pata nahi.. 'ek' minute hi toh lagegi.. plz!"

Mujhe gussa sa aa gaya aur main jhalla kar boli,"Toh main kab mana kar rahi hoon... jo chahiye le lo...!"

Sunte hi Sandeep ki baanchhein khil gayi.. Usne meri baahon ke neeche se meri kamar mein hath daale aur mujhe apni aur kheench liya... hamare chehre aamne saamne the.. wo meri aankhon mein dekhne laga toh maine aakhein band kar li... Usne 2 baar pyar se mere honton ke dono aur band honton se chooma aur fir apne hont mere uttejana ki agni mein thirak rahe honton par rakh diya....

Mera poora badan jaise jal sa utha.... Uske honton ka sparsh mujhe andar tak gudgudata sa chala gaya.. maine apne hathon se uske kandhon ko kaskar pakad liya uar siski nikalne ki wajah se mere hont hulke se khul gaye....

khul kya gaye! hamare 2 jodi honton ko toh bus guttham guttha hone ka ek mouka chahiye tha... Meri siski nikalte hi Sandeep ne mere upar waale hont ko kaskar apne honton ke beech daba liya aur mujhe apne aagosh mein kheenchte huye paaglon ki tarah usko choosne laga... kuchh pal se jyada main bhi apne aapko kaabu mein rakh nahi payi... maine hulki si sitkaar ke sath hi apne daant Sandeep ke hont par hulke se gada diye...

Usko ishara bhi mil gaya aur bahana bhi... Mujhe 'chooste' huye hi usne mujhe meri kamar se pakad kar kheencha aur apni jaanghon par bitha liya.. Wah pairon ko sofe se neeche latkaye baitha tha aur main apne pairon ko sofe par pasare huye nitambon ko uski jaanghon ke beech tikaye huye masti se usmein khoyi huyi thi.... uska akda hua ling mere kulhon ki barabar mein nitamb par gada hua tha...

Sahsa usne ek hath dheere se meri chhati par tikaya aur usko hulke se daba kar dekhne laga... 'aaaaaaahhhh' meri aankhein jaise pathra gayi.... Kafi der se main jaise saans lena hi bhool gayi thi... jaise hi maine apne nichle hont ko dheela chhoda.. usne ras se bhar chuke mere honton ke beech apni jeebh ghusa di... aur main garmi mein pighalti ja rahi kisi icecream ki tarah uski jeebh ko hi choosne lagi......

main iss baar kisi bhi halat mein ye mouka ganwana nahi chahti thi.... Maine uske gaalon se ek hath hataya aur uski jeebh ko chooste huye hi hath neeche le jakar apni mutthi mein uska link pant ke andar hi daboch liya...

Mere aisa karte hi wah hadbada kar jhenp sa gaya aur turant pichhe hat gaya... par mere liye ab pichhe hatna namumkin tha... usne jhuk kar mere hath ki taraf dekha.. par maine uska ling chhoda nahi....

"Ruko.... main darwaja band karke aata hoon..." Wah haanfte huye bola aur mujhe ek taraf sarka kar khada ho gaya... uska ling ab bhi 120 degree ke angle par upar ki aur tana hua tha.....

Main apni najrein jhukaye masti mein kumhalayi huyi si mand mand muskurati rahi.. Mujhe ummeed thi ki ab khel jahan par ruka hai.. wahin se shuru ho jayega.. par wo toh nira 'lalloo' nikla..

Darwaja band karke wah mere paas aakar baith gaya.. par hamare beech ki kareeb 6 inch ki doori bhi mere liye asahaya si thi... Maine tadap kar uski aankhon mein jhanka...

"Tumhe.... bura toh nahi lag raha na Anju?" Sandeep ne kareeb 1 minute tak chupchap rahne ke baad iss betuke sawaal se shuruaat ki.. 'Uff' ye shareef ladke!

Main jane kya kya bol dena chahti thi... jane kya kya kar lena chahti thi.. par mujhe tab bhi seedhi ungali se meri jaanghon ke beech fudak rahi 'dibiya' ka ghee nikal jane ki ummeed thi...,"Ab.. baar baar poochh kyun rahe ho? Aise poochhoge toh main mana kar doongi haan!" Maine apna munh fula kar usko bandarghudaki di....

"Nahi... par main tumhare sath poora sex karna chahta hoon... isiliye poochh raha tha..."Sandeep ne masoom sa bankar mera hath pakad liya...

"Poora Sex? wo kya hota hai?" Maine anjaan hone ka nakaab pahan liya....

"Kya? Tumhe nahi pata ki 'Poora Sex' kaise hota hai....?" Sandeep Aascharya se bola....

"Nahi toh... batao na jaldi.. aise time kyun kharaab kar rahe ho..?" Main adheer hokar boli....

"Wo.. jo tum Dholu ke sath kar rahi thi... wahi.....!" Sandeep ne kaha....

"Wo toh mujhe jabardasti apni god mein baitha raha tha... aise toh main baith bhi gayi hoon tumhari god mein.. apni marzi se hi...!" Mujhse ab meri tadap bardaast nahi ho rahi thi... Main khud hi uthi aur uski god mein dono taraf pair karke baith gayi... Mere nitamb uski jaanghon par tike huye the aur uski jaanghon ke beech ki akdi huyi lambayi meri jaanghon ke beech salwar ke upar se meri yoni se sati huyi upar ki aur uthi huyi thi... ajeeb sa aanand aa raha tha," Usne toh aise bithaya tha mujhe apni god mein..."

"Bus!" Wah khush hokar bola," kya tumne kisi ke sath 'sex' nahi kiya kabhi..." Uske sawaal hi khatam nahi ho rahe the....

Main tunak kar boli..,"Jitna kiya hai 'wo' bata diya... ab jaldi batao na.. poora sex kaise hota hai?"

"I love you jaan..." Kahte huye wah ek baar fir mere honton ko chaatne laga.. Uske aisa karte hi main sarak kar aur aage ho gayi.. aisa karne se uska ling lambayi ke bal meri yoni ki faankon mein ad gaya... 'aaaiiiii.... ooooyiiiii mummmmyyyyy...." main sitkaar uthi....

"Kya hua?" Wah mera chehra apne dono hathon mein tham kar bola......

"Kuchh nahi.... yahan pata nahi kaisi gudgudi ho rahi hai.....!" Maine bolte huye ek baar fir uska ling pakad kar apni yoni par masal diya.. iske sath hi ek baar fir main sisak uthi..,"
aaaaaaaahhhhhhiiiiiiiiiiiiiiii" Meri palakein bhari si hokar apne aap hi band ho gayi.....

Kuchh kuchh mere jaisa hi haal uska tha...," aaaah... haan.. 'yahin' toh hota hai 'poora sex'! iss'se toh sou guna jyada maja aayega.. 'wo' sab karne mein... karein kya?" Usne kahne ke baad mujhe kaskar pakda aur apni aur kheench liya.. Meri sudoul mast chhatiyan uski jawaan chhati mein gadte hi hum dono hi 'pagal' se ho gaye.....

"Haan.. kar lo poora sex.. jaldi karo na!" Main tadap kar boli....

"Kapde nikalne padenge... nikal doon..?" Usne fir poochha!

Kuchh der main chupchap apni chhatiyon ke daano ko uski chhati mein yunhi gadaye rahi.. fir alag hatkar boli," Pahle tum!"

"Mmujhe toh bus yahi nikalna hai... bahar..." Wah apna hath hum dono ke beech fansa kar uske ling ko pakde huye mere hath ko tham kar bola..," Nikal loon...?"

"Haan.." Maine kaha aur nitambon ko pichhe sarka kar neeche dekhne lagi.. maine apna hath hata liya....

"Nahi.. aise mat dekho.. aankhein band kar lo.." Usne sharmakar kaha...

'hey bhagwan.. pata nahi kaisa ladka hai..' maine mann hi mann socha aur apni najrein upar utha kar band kar li.....,"Lo!"

Agle hi pal mujhe uski pant ki zip khulne ki aawaj sunayi di aur uske kuchh der baad 'uska' mota aur akad kar lamba hota ja raha 'ling' meri mutthi mein tha...

"aaaahhh..." Wah apne ling ke meri mutthi mein qaid hote hi sisak utha...

"Kya hua?" Maine poochha.....

"Mujhe bhi 'yahan' waisa hi maja aa raha hai jaisa tumhe aaya tha.... aaaahhh.. hilao mat.. nikal jayega!" Wah apna hath meri chhatiyon par le aaya aur unhe tennis ball ki tarah daba daba kar dekhne laga..,"kaisa lag raha hai..?" Usne poochha....

"Garam garam hai..." Main hanste huye boli..

"Arey 'wo' nahi.. main tumhari chhatiyon ko daba raha hoon toh kaisa lag raha hai...?"

"Tum bolo mat ab... sab kuchh bahut achchha lag raha hai mujhe... plz jaldi karo....!" Main tadap kar boli....
"Theek hai..."Sandeep ne kaha aur mera kameej upar kheenchne laga...

Waise toh main anjaan ban'ne ka poora natak kar rahi thi.. par uttejana aur jaldi karne ke chakkar mein mere munh se nikal hi gaya,"yye.. Rahne do na.. sirf 'kaam' ki cheej nikal lo..."

Wah thodi der muskuraya aur mere gaalon par hulke daant gadata hua bola..," Ladki toh sari hi 'kaam' ki hoti hai... sir se lekar paanv tak.... Mujhe tumhare ang ang ko chatna hai.. tumhari inn... chhatiyon ko bhi...."

"aaaahhh..." Mere dil mein uski baat sunkar gudgudi si huyi aur main sisak uthi," Tum toh bade besharm ho.. 'apna' toh dikhate huye bhi sharma rahe ho.." Kahte huye maine usko pichhe ki aur dhakela aur apne hath mein thame huye uske 'ling' ko dekhne lagi... Jad ke paas se meri mutthi mein fansa uska ling fufkaarein si maar raha tha... gaadhe saanwle rang ke uske ling ka munh kisi gajar ki tarah laal tha aur aakaar mein kisi tamatar jaisa... Uske munh par baney Machis ki teeli jitne mote chhed par ras ki ek boond aakar thahari huyi thi.. Ling ki nashon ko dekh kar aisa lag raha tha jaise 'wo' kisi bhi kshan fat sakta hai....

"Arey.. tum itne gorey ho! fir ye itna kala kyun hai?" Fat padne ko bekaraar uske ling ko chhod kar maine uske neeche latke huye ghungharuon ko pakad liya...

"Aahahhh.." Wah sisakne ke baad thoda jhenp kar bola..,"ye toh aisa hi ho jata hai.. tumhari bhi toh aisi hi hogi.. tum kitni gouri ho!" kahte huye usne meri 'na na' ke bawjood mere kameej ko mere badan se alag kar hi diya...

Pata nahi kyun.. kuchh pal ke liye wah chupchap aankhein faade 'bra' mein qaid meri chhatiyon ke beech ki gouri ghati ko ghoorta raha.. fir achanak hath pichhe le jakar meri 'bra' ki strips ko meri kamar se ukhad dene par utaaru ho gaya...

"Ruko.. Main kholti hoon..." Mujhe laga wo toh kholte kholte hi kayi ghante laga dega...

"Jaldi kholo na...!" Jaise hi maine bra kholne ke liye apna hath uske ling se hataya.. usne khud hi pakad liya..,"Lo.. khul gayi..." Maine kaha aur strips ko apni baahon ke neeche dabakar apna sir jhuka liya...

Jaisa mujhe darr tha.. wahi hua.. Sandeep itna beshabra hua ja raha tha ki usne Bra ko chhati se pakad kar apni aur kheench liya... main jhatke se uski taraf aayi.. par fir bhi kandhe ki ek strip chatak gayi..,"Ohhhhh.. kya karte ho?" Maine dusre bra ko dusri baju se bahar nikalte huye kaha....

Par usne toh jaise kuchh suna hi nahi... uska poora dhyan bra par nahi.. bulki bra ki qaid se nikalte hi fadak uthi meri santre jaisi chhatiyon par tha.. doodhiya rang ki meri chhatiyan bhi mano usko chida rahi hon.. chhoti kissmiss ke aakar ke donon daano ki chounch uski aankhon ki aur hi uthi huyi hi.... wah ab bhi unhe hi aankhein faade ghoor raha tha.. jaise aur kuchh karna hi na ho....

"Kya hai..?" Maine sharma kar apni chhatiyon ko apni hatheliyon mein chhipa liya.. tab jakar kahin uske hosh thikane aaye.. thikane kya aaye.. hosh toh uske mano tabhi ude hon... Maano kisi ne uss'se jannat ki khushiyan chhen li hon.. usne jhapatta sa mara aur mere hath 'wahan' se hata kar apne tika diye...

"uffffff....tum toh poori ki poori makkhan ho makkhan!" Meri dono chhatiyon ko apne ek ek hath mein lapke huye wah unhe 'pyar se sahlata hua bola...," ye sabki aisi hi hoti hain kya?" Usne apni chutkiyon mein meri chhatiyon ke dono daane pakad liye...

"dhatt.. mujhe kya pata? Main kya sabki dekhti firti hoon..." Apni chhatiyon se uski najron ka lagaav dekh kar main gadra si gayi aur meri chhatiyon ka kasav hulka sa badh gaya...

"Main inhe choos kar dekh loon ek baar...?" Wah apne honton par jeebh ghumata hua bola... shayad apni laar ko bahar tapakne se rok raha hoga...

Jawab maine nahi, bulki meri chhatiyon ne khud hi diya.. mere nitamb thoda pichhe sarak gaye aur kamar thodi aage khisak aayi.. Maine apni chhatiyon ko aage ki aur ubhar kar uske honton se chhua diya.....

Ek baar ko toh bhookhe sher ki bhanti unn par toot pada... jitna munh khol sakta tha, khol kar meri ek chhati ko poora hi munh mein thoosne ki koshish ki... aur jitna le paya... apni aankhein band karke usko papol'ne laga......

kramshah.......................






आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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