बाली उमर की प्यास पार्ट--21
गतान्क से आगे...............
पर एक से शायद उसको सब्र नही हो रहा था... एक हाथ मेरी कमर के पिछे ले जाकर उसने मेरे कुल्हों पर रखा और नीचे से मुझे अपनी और खींचते हुए उपर से पिछे की और झुका लिया.. अब उसका पिछे वाला हाथ मुझे सहारा देने के लिए मेरी गर्दन पर था और दूसरे हाथ से उसने मेरी दूसरी चूची को किसी निरीह कबूतर की तरह दबोच लिया.....
मैं भी अधमरी सी होकर बड़बड़ाने लगी थी... मुझ पर अब 'प्यार का जादू सिर चढ़ कर बोलने लगा था और मैं संदीप के अलावा इस दुनिया का सब कुच्छ भूल चुकी थी... मीठी मीठी सिसकियाँ लेती हुई मैं आनंदित होकर रह रह कर सिहर सी जा रही थी.... मेरी हर सिसकी के साथ उसको मेरी रज़ामंदी का आभास होता और 'वो' और भी पागलकर जुट जाता....
करीब 5-6 मिनिट तक अपनी अल्हड़ मस्त चूचियो को बारी बारी से चुस्वाते रहने के बाद मैं पिछे झुकी हुई होने के कारण तंग हो गयी और उसके कॉलर पकड़ कर उपर उठने की कोशिश करने लगी... वह शायद मेरी दिक्कत समझ गया और मेरी चूची को मुँह से निकाल कर मुझे सीधी बैठा लिया...
मेरी चूचियो में जैसे खून उतर आया था और दोनो ही चूचिया संदीप के मुखरास (थूक) से सनी हुई थी... मैं मस्त हो चली थी.. मैने शरारत से उसकी आँखों में देखा और बोली," दिल भर गया हो तो मैं कुच्छ बोलूं...?"
उसने एक एक बार मेरी दोनो चूचियो के दानो को अपने होंटो में लेकर 'सीप' किया और फिर नशीले से अंदाज में मेरी ओर देख कर बोला..,"बोलो ना जान!"
मुझे उसके मुँह से ये सब सुन'ना बड़ा अच्च्छा लगा और मैने प्रतिक्रिया में तुरंत आगे होकर उसके होंटो को चूम लिया,"मुझे भी चूसना है....!" मैने कहा....
"क्या?" उसकी समझ में शायद आया नही था....
"ये" मैने लपक कर पॅंट के बाहर अकड़ कर झटके खा रहा उसका 'लिंग' पकड़ लिया...
"ओह्ह.. तुम्हे पता है कि लड़कियाँ इसको चूस्ति भी हैं?" उसने थोडा अचरज से कहा...
"नही... पर मेरा भी कुच्छ चूसने का दिल कर रहा है.. तुम्हारे पास मेरी तरह चूचिया तो हैं नही.. चूसने के लिए.. तो सोचा यही चूस लेती हूँ... आइस्क्रीम की तरह चूसूंगी.. हे हे हे...." मैने कहा और खिलखिला दी...
"आ जाओ.. नीचे घुटने टेक लो..." वा खुश होकर बोला.... मैने तुरंत वैसे ही किया और उसकी जांघों के उपर से हाथ निकाल कर उसकी कमर को पकड़े हुए उसकी दोनो टाँगों के बीच बैठ गयी.... मुझे 'पहले पेपर' वाली घटना याद आ गयी....
"एक मिनिट रूको..."कहकर वह उठा और अपनी पॅंट खींच कर निकाल दी और वापस मुझे अपनी टाँगों के बीच लेकर बैठ गया...
वह सोफे पर सरक कर इस तरह आगे आ गया था कि उसके सिर्फ़ नितंब ही सोफे पर टीके हुए थे... उसका लिंग पॅंट के बंधन से आज़ाद होने के बाद और भी बुरी तरह से फुफ्कारने लगा था... अंडरवेर के बीच वाले छेद से उसने पूरा का पूरा लिंग (उसके घुंघरुओं समेत) बाहर निकाल कर मेरे सामने कर दिया..," लो.. ये तुम्हारा ही है जान.. जी भर कर चूसो!"
मैने शरारत से उसकी आँखों में झाँकते हुए उसके लिंग को जड़ से मुट्ठी में पकड़ा और अपनी जीभ बाहर निकालकर उसके टमतरी सूपदे पर छलक आई एक और बूँद चाट ली.. वह सिहर उठा..,"अयाया.. ऐसे मत करो.. गुदगुदी हो रही है.. मुँह में ले लो...!"
"क्यूँ? मेरी मर्ज़ी है.. मुझे भी गुदगुदी हो रही थी... तुमने छ्चोड़ा था क्या मुझे.." मैं शरारत से बोली..,"अब ये मेरा है.. जैसे जी चाहेगा वैसे चूसूंगी....!"
"ओह्ह.. तो बदला ले रही हो.. ठीक है.. कर दो कत्ल.. कर लो मनमर्ज़ी..!" उसने आँख मार कर कहा.. तो मैं मुस्कुराइ और फिर से उसके लिंग को गौर से देखने लगी.....
"अमुन्ह्ह्ह्ह्ह" मैने उसके सूपदे पर अपने होंटो से इस तरह चुम्मि ली जैसे थोड़ी देर पहले उसके होंटो पर ली थी... उत्तेजना के मारे वह अपने नितंबों को हूल्का सा उपर उठाने पर मजबूर हो गया," इसस्शह"
"क्या हुआ?" मुझे उसकी हालत देख कर मज़ा आ रहा था...
"कुच्छ नही... बहुत ज़्यादा मज़ा आ रहा है.. इसीलिए काबू नही रख पाया....."वह वापस बैठता हुआ बोला....
मैने उसके लिंग को हाथ से पकड़ कर उसके पेट से मिला दिया और लिंग की जड़ में लटक रहे उसके घूंघारूओं को जीभ से जा च्छेदा...
"आअहह.. कैसे सीखा तुमने..? तुम तो ब्लू फिल्मों की तरह तडपा तापड़ा कर चूस रही हो... जल्दी ले लो ना!" उसने अपनी आँखें बंद कर ली और पिछे सोफे पर लुढ़क गया... शायद अब वह मुझसे जवाब सुन'ने की हालत में रहा ही नही था...
उसके पिछे लुढ़क जाने की वजह से अब उसका लिंग किसी तंबू की तरह छत की और तना हुआ था... बड़ा ही प्यारा दृश्या था... शायद जिंदगी भर 'उसको' भुला ना सकूँ... मैं आगे झुकी और अपनी जीभ निकाल कर जड़ से शुरू करके सूपदे तक अपनी जीभ को लहराती हुई ले आई.. और उपर आते ही फिर से सूपदे को वैसा ही एक चुम्मा दिया..... वह फिर से उच्छल पड़ा...,"ऐसे तो तुम मेरी जान ही ले लॉगी... आधे घंटे पहले ही निकाला था.. अब फिर ऐसा लग रहा है कि निकलने वाला है...."
मुझे उसकी नही.. अपनी फिकर थी... मैं खुद भी उसकी गोद में बैठे बैठे 2 बार झाड़ चुकी थी... और मुझे अब शरारत से उसके लिंग को गुदगुदाना अच्च्छा लग रहा था.... मैने एक बार फिर से उसके सूपदे को अपने होंटो से दूर करते हुए उसके लिंग को बीच से अपना मुँह पूरा खोल कर दाँतों के बीच दबोच लिया.. और हल्क हल्क दाँत उसकी मुलायम त्वचा में गाड़ने शुरू कर दिए....
"ऊओ हू हूओ.. आआआहह.. तुम इसको काट कर ले जाओगी क्या? क्यूँ मुझे तडपा रही हो..... जल्दी से चूसना ख़तम करो... बिना चोदे तुम्हे आज जाने नही दूँगा यहाँ से...." उसने पहली बार अश्लील शब्द का इस्तेमाल किया था... उसके मुँह से 'ये शब्द सुनकर मैं निहाल ही हो गयी...
मैने उसके लिंग को छ्चोड़ा और बोली," क्या किए बिना नही जाने दोगे?"
"श.. कुच्छ नही.. ऐसे ही मुँह से निकल गया था... मुझे लग रहा है कि मैं होश में ही नही हूँ आज...."
"नही.. बोलो ना! क्या किए बिना नही जाने दोगे मुझे..."मैं शरारत से मुस्कुराते हुए बोली....
"तुम्हे अच्च्छा लगा क्या? वो बोलना?" उसने मेरे गालों को अपने हाथों में लेकर बोला....
"हाँ..." मैने नज़रें झुका कर कहा और उसके 'पप्पू' जैसे सूपदे को अपने होंटो में दबा कर मुँह के अंदर ही अंदर उस पर जीभ फिराने लगी...
वह मस्त सा हो गया... मुझे जितना आनंदित होता 'वो दिखाई देता.. उतना ही ज़्यादा मज़ा मुझे उसके लिंग को छेड़ने में आ रहा था......
उसने अपने दोनो हाथ अपने कानो पर ले गया...," मर जाउन्गा जान.. आआआः... मुझे ये क्या हो रहा है... मा कसम.. तुझे चोदे बिना नही छ्चोड़ूँगा मैं... आज तेरी चूत 'मार' के रहूँगा... कितने दीनो से सपने देखता था कि किसी की चूत मिले.. और आज मिली तो ऐसी की सोच भी नही सकता था.... तेरी चूत मारूँगा जान.. आज तेरी चूत को अपने लौदे से फाड़ डाअलूँगा.... आआअहहाा... इसस्स्स्स्स्स्शह"
वो जो कुच्छ भी बोल रहा था.. मुझे सुनकर बड़ा मज़ा आ रहा था.... मैं उसके लिंग को अपने मुँह में लेकर उपर नीचे करती हुई चूस रही थी... जब उसका लिंग मेरे मुँह में अंदर घुसता तो उसकी आवाज़ कुच्छ और होती थी और जब बाहर आता तो कुच्छ और.... उसके लिंग को चूस्ते हुए मेरी लपर लपर और पागलों की तरह बड़बड़ा रहे संदीप की सिसकियों से हम दोनो और ज़्यादा मदहोश होते जा रहे थे...
"बस अब बंद करो जान... निकलने ही वाला है मेरा तो..." उसने अपने लिंग को मेरे मुँह से निकालने की कोशिश करते हुए कहा....
"बस दो मिनिट और..." मैने लिंग मुँह से निकाल लिया उसको बराबर से चूमने चाटने लगी......
"ओह्ह्ह... मर जाउन्गा जाअँ.. क्यूँ इतना तडपा रही हो.. मान जाओ ना..." संदीप ने मेरे दोनो कंधे कसकर पकड़ लिए और जैसे अचानक ही उसके हाथ अकड़ से गये... उसके लिंग को चाटने में खोई हुई मुझको अचानक उसकी नशों में उभर सा महसूस हुआ और जब तक मैं समझती.. उसके लिंग से निकल कर कामरस की तीन बौच्चरें मेरी शकल सूरत बिगाड़ चुकी थी.. पहली आकर सीधी मेरी आँख के पास लगी.. जैसे ही हड़बड़ा कर मैं थोड़ी पिछे हटी.. दूसरी मेरे होंटो पर और मेरे उठने से पहले गाढ़े रस की एक बौच्हर मेरी बाईं चूची को गिलगिला कर गयी...
"अफ.." मैने खड़ी होकर अपनी आँख से उसका रस पौंचछते हुए देखा... उसका लिंग अब भी झटके खा रहा था और हर झटके के साथ लगातार धीमी पड़ती हुई पिचकारियाँ निकल रही थी.....
"सॉरी जान... मैने तुम्हे पहले ही बोला था कि छ्चोड़ दो... मेरा निकलने वाला है..." संदीप मायूस होकर बोला....
मैने अपनी जीभ बाहर निकाल कर मेरे होंटो पर लगे उसके रस को चाट लिया और मुस्कुराते हुए बोली," कोई बात नही... पर इसको बैठने मत देना...!" उसके रस की बात कुच्छ अलग ही थी... 'वो' वैसा नही था जैसा मैने स्कूल में चखा था... उसकी अजीब सी गंध ने मुझे उसको जीभ से ही सॉफ करने पर मजबूर कर दिया.... होंटो को अच्छि तरह सॉफ करने के बाद मैं मुस्कुराइ और फिर से उसकी जांघों के बीच बैठ गयी......
संदीप का लिंग अब धीरे धीरे सिकुड़ने लगा था.. जैसे ही मैने उसको अपने कोमल हाथों में लिया; उसमें हुलचल सी हुई और उसका सिकुड़ना वहीं रुक गया..
"ऐसे तो बड़ा मासूम सा लग रहा है.." मैं उसको हाथ में पकड़े उपर नीचे करती हुई संदीप की आँखों में देख कर शरारत से मुस्कुराइ...
"ये सच मासूम ही है अंजू.. आज पहली बार किसी लड़की के हाथों में आया है.. और 'वो' जन्नत तो इसने कभी देखी ही नही है.. जिसके लिए ये फुदकता रहता है..." संदीप ने मेरी चूची को पकड़ कर हूल्का सा हिलाया.. मेरे अरमान थिरक उठे...
"जन्नत? कैसी जन्नत?" मैं जानबूझ कर बोली...
"वोही... लड़की की...."कहकर वो मुस्कुराने लगा...
"लड़की की क्या? ... खुल कर बोलो ना...!" जैसे ही उसने मेरे दानो को छेड़ना शुरू किया.. मैं तड़प उठी... लिंग का आकार फिर से बढ़ने लगा था... मैने पूरा लेने के चक्कर में अपने होन्ट खोले और उसका सारा लिंग 'खा' गयी...
"आअहह... तुमने.. ज़रूर पहले भी ऐसा किया है अंजू.. लगता नही कि तुम पहली बार कर रही हो... आआहह..." संदीप सिसक कर बोला...
मैं रूठ कर खड़ी हो जाना चाहती थी.. पर मेरी 'तालू' को गुदगुदते हुए लगातार भारी होते जा रहे 'लिंग' की मस्तानी अंगड़ाई ने मुझे मजबूर कर दिया कि मैं चुप चाप बैठी अपने मुँह में उसके 'नन्हे मुन्ने' को 'जवान' होता हुआ महसूस करती रहूं... उसका लिंग 'जड़' तक मेरे मुँह में छिपा हुआ था.. और उसके घुंघरू मेरी थोड़ी से सटे हुए लटक रहे थे जिन्हे मैने अपनी हथेली में च्छुपाया हुआ था....
लिंग के आकार में बढ़ते रहने के साथ ही संदीप की सिसकियाँ मेरे कानो में सुनाई देने लगी.. कुच्छ पल बाद ही 'वह' इतना बढ़ गया कि मेरी 'तालू' से आड़ जाने के बाद बड़ा होकर बाहर निकलने लगा.. और उसके घुंघरू मेरी तोड़ी से दूर जाने लगे....
"अंदर ही रखो ना जान... अंदर मज़ा आ रहा है..." संदीप ने तड़प कर मेरे सिर को पिछे से पकड़ लिया...
चाहती तो मैं भी यही थी.. पर क्या करूँ.. उसकी लंबाई के लायक मेरे मुँह में जगह कम होती जा रही थी... मैं अपनी नज़रों को अपनी नाक की नोक पर टिकाए बेबस सी उसको बाहर आते देखती रही.. मोटाई भी इतनी बढ़ गयी थी की मुझे अपने होंटो को.. जितना हो सकती थी.. उतना खोलना पड़ा....
अचानक संदीप को जाने क्या सूझा.. मेरे सिर को पिछे से तो वो पहले ही पकड़े हुए था.. ज़ोर लगाकर मेरे सिर को आगे की तरफ खींच लिया...
"गगग्गगूऊऊऊऊग़गगूऊऊऊऊवन्न्न्
"आआआआआहह..... क्या मज़ा था..." संदीप ने कहकर आँखें खोली और मेरी आँखों में पानी देख कर बोला..,"क्या हुआ जान...?"
मैने खड़ी होकर अपने आँसू पौन्छे.. और मेरे थूक में बुरी तरह गीले हो कर टपक से रहे उसके लिंग को देखते हुए मुँह बनाकर बोली..," हुंग! क्या हुआ!.. मेरा दम घुट जाता तो?"
"अर्रे.. ऐसे किसी का दम नही घुट'ता.. पहली बार लिया है ना... इसीलिए अजीब लगा होगा..."संदीप मासूमियत से बोला....,"अच्च्छा सॉरी... चलो ना.. अब सेक्स करें...?"
मेरी चिड़िया भी तब तक तीसरी बार रस उगलने के लिए तैयार हो रही थी...,"नही.. पहले वही बोलो.. जो तब बोल रहे थे..." मैं मचल कर एक बार फिर उसकी गोद में जा चढ़ि... मेरीचूचियो को अपनी आँखों के सामने रसीले संतरों की तरह लटक'ते देख वो एक बार फिर से बावला सा हो गया.. दोनो चूचियो को अपने हाथों में दबोच कर उनके गुलाबी दानों को घूरता हुआ बोला...,"सब कुच्छ बोल दूँगा.. पर काम शुरू होने के बाद..." उसने कहा और मेरे दानो को अपने दाँतों से हौले हौले कुतरने लगा.....
अचानक उसने अपने एक हाथ को आज़ाद करके मेरी सलवार के नाडे को पकड़ लिया.. और चूचियो से मुँह हटा कर बोला," खोल दूं ना?"
"नही!" मैने गुस्से से मुँह बना कर कहा...
"क्यूँ क्या हुआ?" उसके चेहरे का अचानक रंग सा उड़ गया....
"अर्रे सारे 'काम' दूसरे से पूच्छ कर करते हो क्या..? मैं चिड कर बोली और उसकी जांघों के दोनो और घुटने टीका कर उपर उठ गयी.. मेरी छ्होटी सी नाभि उसकी आँखों के ठीक सामने आ गई....
"ओह्ह.. हे हे हे... मैं तो बस ऐसे ही..."उसने थोड़ा झेंप कर बोला और मेरा नाडा अपनी ओर खींच लिया... हुल्की सी 'गाँठ खुलने की आवाज़ हुई और मेरी सलवार ढीली हो गयी.... शुक्रा है उसने मेरी सलवार को उपर ही पकड़ कर ये नही पूचछा..," नीचे खिसक जाने दूँ क्या?"
जैसे ही उसने नाडा खींच कर छ्चोड़ा... मेरी सलवार नीचे सरक कर मेरी जांघों में फँस गयी... बाकी काम पूरा करने में उसने एक सेकेंड भी नही लगाया... झट से मेरी सलवार को खींच कर घुटनो तक नीचे सरका दिया....
मेरी नज़रें संदीप की आँखों पर थी और उसकी आस्चर्य से फटी हुई सी आँखें मेरी जांघों में फाँसी हुई मेरी सफेद कछी पर... योनि के निचले हिस्से के बाहर कछी गीली हो चुकी थी.. और शायद कछी का रंग भी थोड़ा बदला हुआ था...
उसकी आँखें किसी नन्हे बच्चे के समान चमक उठी.. अपने हाथों से उसने मेरे नितंबो को कसकर पकड़ा और थोड़ा झुक कर कछी के उपर से ही एक प्यारा सा चुंबन ले लिया.... "आआअहह" मेरा बदन तृष्णा के मारे जल उठा.. और मैने भावुक होकर उसका सिर पकड़ लिया....
उसने नज़रें उपर करके मेरी नशीली हो चुकी आँखों में झाँका.. शायद कछी को नीचे करने की पर्मिशन ले रहा था.... जैसे ही मैं मुस्कुराइ उसने मेरी कछी में उपर से हाथ डाला और 'अपनी जन्नत' को अपनी नज़रों के सामने नंगी कर लिया.....
"वाआआः..." उसके मुँह से अपने आप ही निकल गया और बेदम सा होकर कुच्छ पल के लिए उसकी आँखों की पुतलियान सिकुड गयी... ठीक वैसे ही जैसे अंधेरे से अचानक प्रकाश में जाने पर सिकुड जाती हैं... उसकी मनचाही मुराद पूरी हो गयी... उसको अपनी मंज़िल का ज्योति बिंदु दिखाई दे गया...
वह आँखें फाडे स्थिर सा होकर मेरी चिड़िया को देखता ही रह गया.... देखता भी क्यूँ नही...? आख़िर उसने पहली बार 'ऐसी' नायाब चीज़ देखी थी जिसके लिए जाने कितने ही विश्वामित्रा स्वर्ग के सिंहासन तक को ठोकर मार देते हैं.... जिसके लिए मर्द 'भूखे' कुत्ते की तरह जीभ लपलपता घूमता रहता है.... 'जो' घर घर में होती है... पर सभ्य समाज में जिसको नाजायज़ तरीके से पाना 'आवरेस्ट' पर चढ़ने से कम नही.....
जिसके लिए दुनिया भर की अदालतों ने एक ही क़ानून बना रखा है... जिसके पास 'योनि' है.. उसकी बात पहले सुनी जाएगी.. उसकी बात पर ही पहले विश्वास किया जाएगा... 'योनि' को अपने साथ हुई ज़बरदस्ती को साबित करने के लिए कोई जखम दिखाने की ज़रूरत नही... सिर्फ़ 'योनि वाली' को एक इशारा करना पड़ेगा और 'भोगने' वाले की 'उम्रकैद' पक्की.... भला सर्वत्र विद्यमान होकर भी दुर्लभ ऐसी चीज़ को बिना तपस्या किया इतनी आसानी से; अपनी मर्ज़ी से; अपनी आँखों के सामने फुदकट्ी हुई देख कर कोई पागल नही होगा तो क्या होगा....
और योनि भी कोई ऐसी वैसी नही... जैसे इंपोर्टेड 'माल' हो... जैसे 'गहरे' सागर की कोई बंद 'सीप' हो जिसके अंदर 'मोती' तो मिलेगा ही मिलेगा.... जैसे तिकोने आकर में कोई माचिस की डिबिया हो.. छ्होटी सी.. पर बड़ी काम की और बड़ी ख़तरनाक... चाहे तो घर के घर जला कर खाक कर दे... चाहे तो अपने प्यार की 'दो' बूँद टपका कर किसी के घर को 'चिराग' से रोशन कर दे....
"ऐसे क्या देख रहे हो?" मैं मचल कर बोली....
"क्कुच्छ नही.... ययएए तो.. बड़ी प्यारी है..." योनि के उपरी हिस्से पर उगे हुए हल्क हल्क बालों को प्यार से सहलाते हुए वह बोला...
"हां.. जो भी है.. जल्दी करो ना !" मैं तड़प कर गहरी साँस लेती हुई बोली....
"म्मैने तो कभी सपने में भी नही सोचा था... इसके होन्ट तो उतने ही प्यारे हैं जीतने तुम्हारे उपर वाले...."
"होन्ट?" मैने तब पहली बार 'योनि' की फांकों को 'होन्ट' कहते किसी को सुना था... मैं थोड़ी नीचे झुक कर देखती हुई बोली...
"हां... ये..." कहते हुए संदीप ने योनि की एक फाँक को अपनी चुटकी में भर लिया... अंजाने में ही उसका अंगूठा मेरी फांकों के बीच च्छूपी हुई 'मदनमानी' (क्लाइटॉरिस) को छू गया और मैं आनंद से उच्छल पड़ी...,"क्या करते हो?"
"देख रहा हूँ बस!" पागला से गये संदीप ने भोलेपन से इस तरह कहा मानो चार आने में ही एक बार और 'हेमा मालिनी' को देखना चाहता हो...
समझ नही आया ना! दरअसल मेरी दादी बताती थी... मेरे जनम के कुच्छ टाइम पहले तक गाँव में एक डिब्बे वाला पिक्चर दिखाने आता था... उसको सब 12 मन की धोबन कहा करते.... पिक्चर देखने वाले बच्चों से 'वो' चार आने लेता और एक सुराख में आँख लगाने को कहता... 'बच्चे' के आँख लगाने पर वो बाहर एक पहियाँ सा घूमता और अंदर अलग अलग हीरो हेरोइनो के फोटो चलते नज़र आते... बच्चे उसको बड़े चाव से देखते थे... दादी बताती थी कि एक बार तुम्हारे पापा ने उस 'सुराख' से आँखें चिपकाई तो हटाने का नाम ही ना लिया... मशीन वाले ने काई बार उनको हटने के लिए कहा पर वो अपनी आँख वहीं गड़ाए बार बार यही कहते रहे...,"देख रहा हूँ ना! अभी हेमा मालिनी नही आई है..."
कुच्छ ऐसी ही हालत संदीप की थी.. मैं वासना की अग्नि में तड़प रही थी.. और 'वो' बार बार एक ही रट लगाए हुए था...,"बस एक बार और.. थोड़ी सी देख रहा हूँ..."
ऐसा नही था कि संदीप की हालत खराब ना हुई हो... योनि को देखते देखते ही उसकी साँसें उपर नीचे होने लगी थी.. उसके गाल उत्तेजना के मारे लाल होते जा रहे थे... नथुने फूले हुए थे.. पर वह जाने उसमें क्या ढूँढ रहा था... मैं उत्तेजना के चरम पर आ चुकी थी.. सहसा उसने दोनो हाथों से मेरी चिड़िया की फांकों को फैला दिया.. और मेरी योनि का चीरा करीब एक इंच चौड़ा हो गया.... खूनी रंग का मेरी योनि का अंदर का चिकना भाग देख कर तो वो मानो होश ही खो बैठा.. अंदर च्छूपी हुई हल्क भूरे रंग की 'दो' पत्तियाँ अब उसकी आँखों के सामने आ गयी.. उसने दोनो पट्टियों को चुटकियों में लिया और मेरी योनि की 'तितली' बना' दिया.. पट्टियों को बाहर की ओर मेरी योनि की फांकों पर चिपका कर... इसके साथ ही उसने अपनी एक उंगली 'पट्टियों' के बीच रखी और बोला...,"यही है ना...."
"हां हां.. यही है.. तुम जल्दि क्यूँ नही करते... कोई आ जाएगा तो?" मैं नाराज़ सी होकर बोली....
मेरी नाराज़गी से वह अचानक इतना डरा कि मेरी बात को आदेश मान कर 'सर्र्ररर' से उंगली अंदर कर दी... मैं हुल्की सी उचक कर सिसक पड़ी," आआहह....!"
बहुत ज़्यादा चिकनी होने के कारण एक ही झटके में मेरी योनि ने उंगली को बिना किसी परेशानी के पूरी निगल लिया... वह सहम कर मेरी और देखने लगा.. जैसे मेरी प्रतिक्रिया जान'ना चाहता हो.....
"उसको कब डालोगे...?" मैने तड़प कर कहा.....
"डालता हूँ.. थोड़ी देर उंगली से कर लूँ.. मेरे दोस्त कहते हैं कि पहले ऐसे ही करना चाहिए.. नही तो बहुत दर्द होता है....!" वह उंगली को बाहर निकाल कर फिर से अंदर फिसलता हुआ बोला.....
मैं झल्ला उठी.. अजीब नमूना हाथ लगा था उस दिन, पहली बार... मैं 'उसको' अंदर घुस्वाने के लिए तड़प रही थी और वो मुझे डराने पर तुला हुआ था," होने दो... फटेगी तो मेरी फटेगी ना... तुम्हारी क्यूँ...." मैं 'फट रही है' कहना चाहती थी... पर मंन में ही दबा गया... बहुत सेन्सिटिव केस था ना...
"अच्च्छा अच्छा.. ठीक है.. करता हूँ..." उसने सकपका कर अपनी उंगली बाहर निकाल ली.. और फिर से मेरी आँखों में देखने लगा," कैसे करूँ?"
"मुझे नीचे पटक कर घुसा दो... तुम तो बिल्कुल लल्लू हो!" मेरे मुँह से गुस्से और बेकरारी में निकल ही गया...
"सॉरी.. मैने कभी पहले किया नही है..." संदीप पर पड़ी डाँट का असर मुझे उसके टँटानाए हुए 'लिंग' पर भी सॉफ दिखाई दिया... 'वो' थोड़ा मुरझा सा गया... मुझे अपनी ग़लती पर गहरा अफ़सोस हुआ...,"सॉरी.. ऐसे ही गुस्से में निकल गया..." मैने उसके लिंग को पूचकार कर फिर से 'कुतुबमीनार' की तरह सीधा टाँग दिया..,"अच्च्छा.. एक मिनिट...!"
जैसे ही मैने कहा...मुझे प्यार से सोफे पर लिटाने की कोशिश कर रहा संदीप वहीं का वहीं रुक गया,"बोलो!"
मुझे ढोलू का मुझे अपनी गोद में लेकर लिंग पर बिठाना 'याद' आ गया.. मैने नीचे उतरी और मुड़कर जैसे ही अपनी सलवार और कच्च्ची को टाँगों से निकालने के लिए झुकी.. संदीप ने लपक कर मेरे नितंबों को पकड़ लिया,"ऐसे ठीक रहेगा अंजू.. यहाँ से बहुत अच्च्ची दिखाई देती है...!"
"क्या? मैने सलवार को निकाल कर सोफे पर डाला और उसकी तरफ सीधी खड़ी होकर पूचछा....
"ये.." वा मेरी योनि को मुथि में दबोच कर बोला...,"टेबल पर झुक जाओ.. तुम्हारी 'इस' का सुराख पिछे आ जाता है...!" वा खुश होकर बोला....
"ठीक है.. ये लो..."मैने कहा और टेबल पर सीधे हाथ रख कर मूड गयी...
"ऐसे नही.. पिछे से थोडा उपर हो जाओ.."वह नितंबों के बीच मेरी योनि पर हाथ रख कर उसको उपर उठाने की कोशिश करने लगा....
"और उपर कैसे होउ..? मेरी टांगे तो पहले ही सीधी हैं....."मैने कहा और मेरे दिमाग़ में कुच्छ आया..,"अच्च्छा.. ये लो.." मैने टेबल पर कोहनियाँ टीका ली....
"हां.. ऐसे!" वह खुश होकर बोला... और सोफे पर बैठ कर मेरे नितंबों पर हाथ फेरने लगा....
"अब करो ना...." मैने कसमसा कर अपने कूल्हे मटकाए....
"हां हां..." कहकर वो खड़ा हो गया और आगे होकर मेरे नितंबों के बीचों बीच उसके लिंग के स्वागत में खुशी के आंशु टपका रही योनि पर अपने लिंग का सूपड़ा रख दिया......
योनि और लिंग तो आख़िर एक दूसरे के लिए ही बने होते हैं... मेरी योनि जैसे अंदर ही अंदर दाहक रही थी.. जैसे ही उसको सूपड़ा अपने द्वार पर महसूस हुआ.. 'वो' बहक गयी.. और उसमें से टॅप टॅप करके प्रेमरस की बारिश सी होने लगी....,"आ.. कर दो ना संदीई...." मेरा बुरा हाल था... मुझे पता ही नही था की मैं कहा हूँ.. मेरा पूरा बदन मदहोशी से अकड़ सा गया था....
"हां... मैं अब धक्का लगाउन्गा... दर्द हो तो बता देना.... ठीक है..?" वो मुझे तड़पने में कोई कसर नही छ्चोड़ रहा था... उसका सूपड़ा अब भी मेरी योनि को चीरने से पहले इजाज़त माँग रहा था...
"जल्दी करो ना...." मैने कहा ही था कि उसने दबाव बढ़ा दिया... पर सूपड़ा तो अंदर नही गया.. उल्टा मैं पूरी ही थोड़ी आगे सरक गयी...
अपनी कोहनियों को वापस पिछे टीका कर मैं फिर से तैयार हुई..,"लो.. अब की बार करो..."
उसने फिर धक्का लगाया.. और मैं फिर से उसके दबाव को ना झेल पाने के कारण आगे सरक गयी...
"तुम आगे क्यूँ जा रही हो?" वा वापस सूपड़ा मेरी योनि पर टिकाते हुए बोला....
मैं तंग आकर सीधी खड़ी हो गयी...,"तुम सोफे पर बैठो.. मैं करती हूँ.." मैं बदहवास सी हालत में जल्दी जल्दी बोली....
"क्या?" वा समझ नही पाया और मेरी तरफ टुकूर टुकूर देखने लगा....
"तुम बैठो ना जल्दी.. मैं अपने आप घुसा लूँगी..." मैने उसका धक्का देकर सोफे पर धकेल दिया....
"ठीक है.. तुम खुद ही कर लो..."उसने किसी अच्छे बच्चे की तरह कहा और हाथ में पकड़ा हुआ अपना लिंग सीधा उपर की और तान कर बैठ गया.......
क्रमशः....................
Gataank se aage...............
Par ek se shayad usko sabra nahi ho raha tha... Ek hath meri kamar ke pichhe le jakar usne mere kulhon par rakha aur neeche se mujhe apni aur kheenchte huye upar se pichhe ki aur jhuka liya.. ab uska pichhe wala hath mujhe sahara dene ke liye meri gardan par tha aur dusre hath se usne meri dusri chhati ko kisi nireeh kabootar ki tarah daboch liya.....
Main bhi adhmari si hokar badbadane lagi thi... Mujh par ab 'pyar ka jaadu sir chadh kar bolne laga tha aur main Sandeep ke alawa iss duniya ka sab kuchh bhool chuki thi... Meethi meethi siskiyan leti huyi main aanandit hokar rah rah kar sihar si ja rahi thi.... Meri har siski ke sath usko meri rajamandi ka aabhas hota aur 'wo' aur bhi paglakar jut jata....
Kareeb 5-6 minute tak apni alhad mast chhatiyon ko bari bari se chuswate rahne ke baad main pichhe jhuki huyi hone ke karan tang ho gayi aur uske collar pakad kar upar uthne ki koshish karne lagi... Wah shayad meri dikkat samajh gaya aur meri chhatiyon ko munh se nikal kar mujhe seedhi baitha liya...
Meri chhatiyon mein jaise khoon utar aaya tha aur dono hi chhatiyan Sandeep ke mukhras (thook) se sani huyi thi... Main mast ho chali thi.. maine shararat se uski aankhon mein dekha aur boli," Dil bhar gaya ho toh main kuchh bolun...?"
Usne ek ek baar meri dono chhatiyon ke daano ko apne honton mein lekar 'sip' kiya aur fir nasheele se andaj mein meri aur dekh kar bola..,"Bolo na Jaan!"
Mujhe uske munh se ye sab sun'na bada achchha laga aur maine pratikriya mein turant aage hokar uske honton ko choom liya,"Mujhe bhi choosna hai....!" Maine kaha....
"Kya?" Uski samajh mein shayad aaya nahi tha....
"Ye" Maine lapak kar pant ke bahar akad kar jhatke kha raha uska 'ling' pakad liya...
"Ohh.. tumhe pata hai ki ladkiyan isko choosti bhi hain?" Usne thoda achraj se kaha...
"Nahi... par mera bhi kuchh choosne ka dil kar raha hai.. tumhare paas meri tarah chhatiyan toh hain nahi.. choosne ke liye.. toh socha yahi choos leti hoon... icecream ki tarah choosoongi.. he he he...." Maine kaha aur khilkhila di...
"Aa jao.. neeche ghutne take lo..." wah khush hokar bola.... Maine turant waise hi kiya aur uski jaanghon ke upar se hath nikal kar uski kamar ko pakde huye uski dono taangon ke beech baith gayi.... Mujhe 'pahle paper' wali ghatna yaad aa gayi....
"Ek minute ruko..."Kahkar wah utha aur apni pant kheench kar nikal di aur wapas mujhe apni taangon ke beech lekar baith gaya...
Wah sofe par sarak kar iss tarah aage aa gaya tha ki uske sirf nitamb hi sofe par tike huye the... uska ling pant ke bandhan se aazad hone ke baad aur bhi buri tarah se fufkaarne laga tha... underwear ke beech waale chhed se usne poora ka poora ling (uske ghunghruon samet) bahar nikal kar mere saamne kar diya..," Lo.. ye tumhara hi hai jaan.. ji bhar kar chooso!"
Maine shararat se uski aankhon mein jhante huye uske ling ko jad se mutthi mein pakda aur apni jeebh bahar nikalkar uske tamatari supade par chhalak aayi ek aur boond chat li.. wah sihar utha..,"aaaah.. aise mat karo.. gudgudi ho rahi hai.. munh mein le lo...!"
"Kyun? Meri marzi hai.. mujhe bhi gudgudi ho rahi thi... tumne chhoda tha kya mujhe.." Main shararat se boli..,"Ab ye mera hai.. jaise ji chahega waise choosoongi....!"
"Ohh.. toh badla le rahi ho.. theek hai.. kar do katl.. kar lo manmarzi..!" Usne aankh maar kar kaha.. toh main muskurayi aur fir se uske ling ko gour se dekhne lagi.....
"amunhhhhha" Maine uske supade par apne honton se iss tarah chummi li jaise thodi der pahle uske honton par li thi... uttejna ke maare wah apne nitambon ko hulka sa upar uthane par majboor ho gaya," issshhhhhhhhhhhhhhhhhhhhh"
"Kya hua?" Mujhe uski halat dekh kar maja aa raha tha...
"Kuchh nahi... bahut jyada maja aa raha hai.. isiliye kaabu nahi rakh paya....."Wah wapas baithta hua bola....
Maine uske ling ko hath se pakad kar uske pate se mila diya aur ling ki jad mein latak rahe uske ghungharuon ko jeebh se ja chheda...
"aaahhh.. kaise seekha tumne..? tum toh blue filmon ki tarah tadpa tapda kar choos rahi ho... jaldi le lo na!" Usne apni aankhein band kar li aur pichhe sofe par ludhak gaya... shayad ab wah mujhse jawab sun'ne ki halat mein raha hi nahi tha...
Uske pichhe ludhak jane ki wajah se ab uska ling kisi tambu ki tarah chhat ki aur tana hua tha... bada hi pyara drishya tha... shayad jindagi bhar 'usko' bhula na sakoon... main aage jhuki aur apni jeebh nikal kar jad se shuru karke supade tak apni jeebh ko lahrati huyi le aayi.. aur upar aate hi fir se supade ko waisa hi ek chumma diya..... Wah fir se uchhal pada...,"Aise toh tum meri jaan hi le logi... aadhe ghante pahle hi nikala tha.. ab fir aisa lag raha hai ki nikalne wala hai...."
Mujhe uski nahi.. apni fikar thi... main khud bhi uski god mein baithe baithe 2 baar jhad chuki thi... aur mujhe ab shararat se uske ling ko gudgudana achchha lag raha tha.... Maine ek baar fir se uske supade ko apne honton se door karte huye uske ling ko beech se apna munh poora khol kar daanton ke beech daboch liya.. aur hulke hulke daant uski mulayam twacha mein gadane shuru kar diye....
"Ooo hoo hooo.. aaaaaahh.. tum isko kaat kar le jaogi kya? kyun mujhe tadpa rahi ho..... jaldi se chusna khatam karo... bina chode tumhe aaj jane nahi doonga yahan se...." Usne pahli baar ashleel shabd ka istemaal kiya tha... uske munh se 'ye shabd sunkar main nihal hi ho gayi...
Maine uske ling ko chhoda aur boli," Kya kiye bina nahi jaane doge?"
"Ohh.. kuchh nahi.. aise hi munh se nikal gaya tha... mujhe lag raha hai ki main hosh mein hi nahi hoon aaj...."
"Nahi.. bolo na! kya kiye bina nahi jane doge mujhe..."Main shararat se muskurate huye boli....
"Tumhe achchha laga kya? wo bolna?" Usne mere gaalon ko apne hathon mein lekar bola....
"Haan..." Maine najrein jhuka kar kaha aur uske 'pappu' jaise supade ko apne honton mein daba kar munh ke andar hi andar uss par jeebh firane lagi...
Wah mast sa ho gaya... mujhe jitna aanandit hota 'wo dikhayi deta.. utna hi jyada maja mujhe uske ling ko chhedne mein aa raha tha......
Usne apne dono hath apne kaano par le gaya...," Mar jaaaunga jaan.. aaaaah... mujhe ye kya ho raha hai... maa kasam.. tujhe chode bina nahi chhodunga main... aaj teri choot 'maar' ke rahoonga... kitne dino se sapne dekhta tha ki kisi ki choot mile.. aur aaj mili toh aisi ki soch bhi nahi sakta tha.... teri choot maarunga jaan.. aaj teri choot ko apne loude se faad daaalunga.... aaaaahhhhhaaaa... isssssssshhh"
Wo jo kuchh bhi bol raha tha.. mujhe sunkar bada maja aa raha tha.... Main uske ling ko apne munh mein lekar upar neeche karti huyi choos rahi thi... jab uska ling mere munh mein andar ghusta toh uski aawaj kuchh aur hoti thi aur jab bahar aata toh kuchh aur.... Uske ling ko chooste huye meri lapar lapar aur pagalon ki tarah badbada rahe Sandeep ki siskiyon se hum dono aur jyada madhosh hote ja rahe the...
"Bus ab band karo jaan... nikalne hi wala hai mera toh..." Usne apne ling ko mere munh se nikalne ki koshish karte huye kaha....
"Bus do minute aur..." Maine ling munh se nikal liya usko barabar se choomne chaatne lagi......
"Ohhh... mar jaaunga jaaan.. kyun itna tadpa rahi ho.. maan jao na..." Sandeep ne mere dono kandhe kaskar pakad liye aur jaise achanak hi uske hath akad se gaye... Uske ling ko chatne mein khoyi huyi mujhko achanak uski nashon mein ubhar sa mahsoos hua aur jab tak main samajhti.. uske ling se nikal kar kaamras ki teen bouchharein meri shakal soorat bigad chuki thi.. pahli aakar seedhi meri aankh ke paas lagi.. jaise hi hadbada kar main thodi pichhe hati.. dusri mere honton par aur mere uthne se pahle gaadhe ras ki ek bouchhar meri bayin chhati ko gilgila kar gayi...
"Uff.." Maine khadi hokar apni aankh se uska ras pounchhte huye dekha... uska ling ab bhi jhatke kha raha tha aur har jhatke ke sath lagataar dheemi padti huyi pichkariyan nikal rahi thi.....
"Sorry jaan... maine tumhe pahle hi bola tha ki chhod do... mera nikalne wala hai..." Sandeep mayoos hokar bola....
Maine apni jeebh bahar nikal kar mere honton par lage uske ras ko chaat liya aur muskurate huye boli," Koyi baat nahi... par isko baithne mat dena...!" Uske ras ki baat kuchh alag hi thi... 'wo' waisa nahi tha jaisa maine school mein chakha tha... uski ajeeb si gandh ne mujhe usko jeebh se hi saaf karne par majboor kar diya.... honton ko achchhi tarah saaf karne ke baad main muskurayi aur fir se uski jaanghon ke beech baith gayi......
Sandeep ka ling ab dheere dheere sikudne laga tha.. Jaise hi maine usko apne komal hathon mein liya; usmein hulchal si huyi aur uska sikudna wahin ruk gaya..
"Aise toh bada masoom sa lag raha hai.." Main usko hath mein pakde upar neeche karti huyi Sandeep ki aankhon mein dekh kar shararat se muskurayi...
"Ye sach masoom hi hai Anju.. Aaj pahli baar kisi ladki ke hathon mein aaya hai.. aur 'wo' jannat toh isne kabhi dekhi hi nahi hai.. jiske liye ye fudakta rahta hai..." Sandeep ne meri chhati ko pakad kar hulka sa hilaya.. mere armaan thirak uthe...
"Jannat? kaisi jannat?" Main jaanboojh kar boli...
"Wohi... ladki ki...."Kahkar wo muskurane laga...
"Ladki ki kya? ... khul kar bolo na...!" Jaise hi usne mere daano ko chhedna shuru kiya.. main tadap uthi... Ling ka aakar fir se badhne laga tha... maine poora lene ke chakkar mein apne hont khole aur uska sara ling 'kha' gayi...
"Aaahhh... Tumne.. jaroor pahle bhi aisa kiya hai Anju.. lagta nahi ki tum pahli baar kar rahi ho... aaaahhh..." Sandeep sisak kar bola...
Main rooth kar khadi ho jana chahti thi.. par meri 'talu' ko gudgudate huye lagataar bhari hote ja rahe 'ling' ki mastaani angdayi ne mujhe majboor kar diya ki main chup chap baithi apne munh mein uske 'nanhe munne' ko 'jawaan' hota hua mahsoos karti rahoon... Uska ling 'jad' tak mere munh mein chhipa hua tha.. aur uske ghungharoo meri thodi se satey huye latak rahe the jinhe maine apni hatheli mein chhupaya hua tha....
Ling ke aakar mein badhte rahne ke sath hi Sandeep ki siskiyan mere kaano mein sunayi dene lagi.. kuchh pal baad hi 'wah' itna badh gaya ki meri 'talu' se ad jane ke baad bada hokar bahar nikalne laga.. aur uske ghunghroo meri thodi se door jane lage....
"Andar hi rakho na jaan... andar maja aa raha hai..." Sandeep ne tadap kar mere sir ko pichhe se pakad liya...
Chahti toh main bhi yahi thi.. par kya karoon.. uski lambayi ke layak mere munh mein jagah kam hoti ja rahi thi... Main apni najron ko apni naak ki nok par tikaye bebas si usko bahar aate dekhti rahi.. Motayi bhi itni badh gayi thi ki mujhe apne honton ko.. jitna ho sakti thi.. utna kholna pada....
Achanak Sandeep ko jane kya soojha.. Mere sir ko pichhe se toh wo pahle hi pakde huye tha.. Jor lagakar mere sir ko aage ki taraf kheench liya...
"
"aaaaaaaaaahhhhhhhh..... kya maja tha..." Sandeep ne kahkar aankhein kholi aur meri aankhon mein pani dekh kar bola..,"kya hua jaan...?"
Maine khadi hokar apne aansoo pounchhe.. aur mere thook mein buri tarah geele ho kar tapak se rahe uske ling ko dekhte huye munh banakar boli..," hunh! kya hua!.. mera dum ghut jata toh?"
"arrey.. aise kisi ka dum nahi ghut'ta.. pahli baar liya hai na... isiliye ajeeb laga hoga..."Sandeep masoomiyat se bola....,"Achchha sorry... Chalo na.. ab sex karein...?"
Meri chidiya bhi tab tak teesri baar ras ugalne ke liye taiyaar ho rahi thi...,"Nahi.. pahle wahi bolo.. jo tab bol rahe the..." Main machal kar ek baar fir uski god mein ja chadhi... meri chhatiyon ko apni aankhon ke saamne rasiley santron ki tarah latak'te dekh wo ek baar fir se bawla sa ho gaya.. dono chhatiyon ko apne hathon mein daboch kar unke gulabi daanon ko ghoorta hua bola...,"Sab kuchh bol doonga.. par kaam shuru hone ke baad..." Usne kaha aur mere daano ko apne daanton se houle houle kutarne laga.....
Achanak usne apne ek hath ko aajad karke meri salwar ke naade ko pakad liya.. aur chhatiyon se munh hata kar bola," khol doon na?"
"Nahi!" Maine gusse se munh bana kar kaha...
"Kyun kya hua?" Uske chehre ka achanak rang sa ud gaya....
"Arrey sare 'kaam' dusre se poochh kar karte ho kya..? Main chid kar boli aur uski janghon ke dono aur ghutne tika kar upar uth gayi.. Meri chhoti si nabhi uski aankhon ke theek saamne aa gai....
"Ohh.. he he he... Main toh bus aise hi..."Usne thoda jhenp kar bola aur mera nada apni aur kheench liya... hulki si 'gaanth khulne ki aawaj huyi aur meri salwar dheeli ho gayi.... Shukra hai usne meri salwar ko upar hi pakad kar ye nahi poochha..," Neeche Khisak jane doon kya?"
Jaise hi usne nada kheench kar chhoda... meri salwar neeche sarak kar meri janghon mein fans gayi... Baki kaam poora karne mein usne ek second bhi nahi lagaya... Jhat se meri salwar ko kheench kar ghutno tak neeche sarka diya....
Meri najrein Sandeep ki aankhon par thi aur uski aascharya se fati huyi si aankhein meri jaanghon mein fansi huyi meri safed kachchhi par... yoni ke neehle hisse ke bahar kachchhi geeli ho chuki thi.. aur shayad kachchhi ka rang bhi thoda badla hua tha...
Uski aankhein kisi nanhe bachche ke samaan chamak uthi.. apne hathon se usne mere nitamon ko kaskar pakda aur thoda jhuk kar kachchhi ke upar se hi ek pyara sa chumban le liya.... "aaaaahhhhh" Mera badan trishna ke maare jal utha.. aur maine bhawuk hokar uska sir pakad liya....
Usne najrein upar karke meri nasheeli ho chuki aankhon mein jhanaka.. Shayad kachchhi ko neeche karne ki permission le raha tha.... Jaise hi main muskurayi usne meri kachchhi mein upar se hath dala aur 'apni jannat' ko apni najron ke saamne nangi kar liya.....
"Waaaaah..." Uske munh se apne aap hi nikal gaya aur bedam sa hokar kuchh pal ke liye uski aankhon ki putliyan sikud gayi... theek waise hi jaise andhere se achanak prakash mein jane par sikud jati hain... Uski manchahi muraad poori ho gayi... Usko apni manzil ka jyoti bindu dikhayi de gaya...
Wah aankhein faade sthir sa hokar meri chidiya ko dekhta hi rah gaya.... Dekhta bhi kyun nahi...? Aakhir usne pahli baar 'aisi' nayab cheej dekhi thi jiske liye jane kitne hi vishvamitra swarg ke sinhasan tak ko thokar maar dete hain.... Jiske liye mard 'bhookhe' kutte ki tarah jeebh laplapata ghoomta rahta hai.... 'Jo' ghar ghar mein hoti hai... par sabhya samaj mein jisko najayaj tareeke se pana 'avrest' par chadhne se kum nahi.....
Jiske liye duniya bhar ki adaalaton ne ek hi kanoon bana rakha hai... Jiske paas 'yoni' hai.. uski baat pahle suni jayegi.. uski baat par hi pahle vishvas kiya jayega... 'yoni' ko apne sath huyi jabardasti ko sabit karne ke liye koyi jakham dikhane ki jarurat nahi... sirf 'yoni wali' ko ek ishara karna padega aur 'bhogne' wale ki 'umrakaid' pakki.... Bhala sarvatra vidyamaan hokar bhi durlabh aisi cheej ko bina tapasya kiya itni aasani se; apni marzi se; apni aankhon ke saamne fudakti huyi dekh kar koyi pagal nahi hoga toh kya hoga....
Aur yoni bhi koyi aisi vaisi nahi... jaise imported 'maal' ho... jaise 'gahre' sagar ki koyi band 'seep' ho jiske andar 'moti' toh milega hi milega.... Jaise tikone aakar mein koyi machis ki dibiya ho.. chhoti si.. par badi kaam ki aur badi khatarnaak... chahe toh ghar ke ghar jala kar khak kar de... chahe toh apne pyar ki 'do' boond tapka kar kisi ke ghar ko 'chirag' se roshan kar de....
"Aise kya dekh rahe ho?" Main machal kar boli....
"kkuchh nahi.... yyye toh.. badi pyari hai..." Yoni ke upari hisse par uge huye hulke hulke baalon ko pyar se sahlate huye wah bola...
"Haan.. jo bhi hai.. jaldi karo na !" Main tadap kar gahri saans leti huyi boli....
"MMaine toh kabhi sapne mein bhi nahi socha tha... iske hont toh utne hi pyare hain jitne tumhare upar wale...."
"Hont?" Maine tab pahli baar 'yoni' ki faankon ko 'hont' kahte kisi ko suna tha... main thodi neeche jhuk kar dekhti huyi boli...
"Haan... ye..." Kahte huye Sandeep ne yoni ki ek faank ko apni chutki mein bhar liya... anjane mein hi uska angootha meri faankon ke beech chhupi huyi 'madanmani' (clitoris) ko chhoo gaya aur main aanand se uchhal padi...,"kya karte ho?"
"Dekh raha hoon bus!" Pagla se gaye Sandeep ne bholepan se iss tarah kaha mano char aane mein hi ek baar aur 'Hema malini' ko dekhna chahta ho...
Samajh nahi aaya na! Darasal meri dadi batati thi... mere janam ke kuchh time pahle tak gaanv mein ek dibbe wala picture dikhane aata tha... usko sab 12 man ki dhoban kaha karte.... picture dekhne wale bachchon se 'wo' char aane leta aur ek suraakh mein aankh lagane ko kahta... 'bachche' ke aankh lagane par wo bahar ek pahiyan sa ghumata aur andar alag alag hero heroino ke foto chalte nazar aate... bachche usko bade chav se dekhte the... dadi batati thi ki ek baar tumhare papa ne uss 'surakh' se aankhein chipkayi toh hatane ka naam hi na liya... Machine wale ne kayi baar unko hatne ke liye kaha par wo apni aankh wahin gadaye baar baar yahi kahte rahe...,"Dekh raha hoon na! abhi hema malini nahi aayi hai..."
Kuchh aisi hi halat Sandeep ki thi.. Main wasna ki agni mein tadap rahi thi.. aur 'wo' baar baar ek hi rat lagaye huye tha...,"Bus ek baaar aur.. thodi si dekh raha hoon..."
Aisa nahi tha ki Sandeep ki halat kharaab na huyi ho... Yoni ko dekhte dekhte hi uski saansein upar neeche hone lagi thi.. Uske gaal uttejana ke maare laal hote ja rahe the... nathune foole huye the.. par wah jane usmein kya dhoondh raha tha... Main uttejana ke charam par aa chuki thi.. Sahsa usne dono hathon se meri chidiya ki faankon ko faila diya.. aur meri yoni ka cheera kareeb ek inch chouda ho gaya.... Khooni rang ka meri yoni ka andar ka chikna bhag dekh kar toh wo mano hosh hi kho baitha.. andar chhupi huyi hulke bhoore rang ki 'do' pattiyan ab uski aankhon ke saamne aa gayi.. usne dono pattiyon ko chutkiyon mein liya aur meri yoni ki 'titli' bana' diya.. pattiyon ko bahar ki aur meri yoni ki faankon par chipka kar... iske sath hi usne apni ek ungali 'pattiyon' ke beech rakhi aur bola...,"Yahi hai na...."
"Haan haan.. yahi hai.. tum jaldiu kyun nahi karte... koyi aa jayega toh?" Main naraj si hokar boli....
Meri narajgi se wah achanak itna dara ki meri baat ko aadesh maan kar 'sarrrrr' se ungali andar kar di... Main hulki si uchak kar sisak padi," aaaahhhh....!"
Bahut jyada chikni hone ke karan ek hi jhatke mein meri yoni ne ungali ko bina kisi pareshani ke poori nigal liya... wah saham kar meri aur dekhne laga.. jaise meri pratikriya jaan'na chahta ho.....
"Usko kab daaloge...?" Maine tadap kar kaha.....
"Daalta hoon.. thodi der ungali se kar loon.. mere dost kahte hain ki pahle aise hi karna chahiye.. nahi toh bahut dard hota hai....!" Wah ungali ko bahar nikal kar fir se andar fislata hua bola.....
Main jhalla uthi.. ajeeb namoona hath laga tha uss din, pahli baar... main 'usko' andar ghuswane ke liye tadap rahi thi aur wo mujhe darane par tula hua tha," Hone do... fategi toh meri fategi na... tumhari kyun...." Main 'fat rahi hai' kahna chahti thi... par mann mein hi daba gaya... bahut sensitive case tha na...
"Achchha achha.. theek hai.. karta hoon..." Usne sakpaka kar apni ungali bahar nikal li.. aur fir se meri aankhon mein dekhne laga," Kaise karoon?"
"Mujhe neeche patak kar ghusa do... tum toh bilkul lalloo ho!" Mere munh se gusse aur bekarari mein nikal hi gaya...
"Sorry.. maine kabhi pahle kiya nahi hai..." Sandeep par padi daant ka asar mujhe uske tantanaye huye 'ling' par bhi saaf dikhayi diya... 'wo' thoda murjha sa gaya... mujhe apni galati par gahra afsos hua...,"Sorry.. aise hi gusse mein nikal gaya..." Maine uske ling ko puchkaar kar fir se 'kutubminaar' ki tarah seedha taang diya..,"Achchha.. ek minute...!"
Jaise hi maine kaha...Mujhe pyar se sofe par litane ki koshish kar raha Sandeep wahin ka wahin ruk gaya,"Bolo!"
Mujhe Dholu ka mujhe apni god mein lekar ling par bithana 'yaad' aa gaya.. Maine neeche utari aur mudkar jaise hi apni salwar aur kachchhi ko taangon se nikalne ke liye jhuki.. Sandeep ne lapak kar mere nitambon ko pakad liya,"aise theek rahega Anju.. yahan se bahut achchhi dikhayi deti hai...!"
"Kya? Maine salwar ko nikal kar sofe par daala aur uski taraf seedhi khadi hokar poochha....
"Ye.." Wah meri yoni ko muthi mein daboch kar bola...,"Table par jhuk jaao.. tumhari 'iss' ka surakh pichhe aa jata hai...!" Wah khush hokar bola....
"Theek hai.. ye lo..."Maine kaha aur table par seedhe hath rakh kar mud gayi...
"Aise nahi.. pichhe se thoda upar ho jao.."Wah nitambon ke beech meri yoni par hath rakh kar usko upar uthane ki koshish karne laga....
"Aur upar kaise houn..? meri taange toh pahle hi seedhi hain....."Maine kaha aur mere dimag mein kuchh aaya..,"Achchha.. ye lo.." Maine table par kohniyan tika li....
"Haan.. aise!" Wah khush hokar bola... aur sofe par baith kar mere nitambon par hath ferne laga....
"Ab karo na...." Maine kasmasa kar apne kulhe matkaye....
"Haan haan..." Kahkar wo khada ho gaya aur aage hokar mere nitambon ke beechon beech uske ling ke swagat mein khushi ke aanshu tapka rahi yoni par apne ling ka supada rakh diya......
Yoni aur ling toh aakhir ek dusre ke liye hi bane hote hain... Meri yoni jaise andar hi andar dahak rahi thi.. jaise hi usko supada apne dwar par mahsoos hua.. 'wo' bahak gayi.. aur usmein se tap tap karke premras ki barish si hone lagi....,"Aah.. kar do na Sandeeee...." Mera bura haal tha... mujhe pata hi nahi tha ki main kaha hoon.. mera poora badan madhoshi se akad sa gaya tha....
"Haan... main ab dhakka lagaaunga... dard ho toh bata dena.... theek hai..?" Wo mujhe tadpane mein koyi kasar nahi chhod raha tha... uska supada ab bhi meri yoni ko cheerne se pahle ijajat maang raha tha...
"Jaldi karo na...." Maine kaha hi tha ki usne dabav badha diya... par supada toh andar nahi gaya.. ulta main poori hi thodi aage sarak gayi...
Apni kohniyon ko wapas pichhe tika kar main fir se taiyaar huyi..,"Lo.. ab ki baar karo..."
Usne fir dhakka lagaya.. aur main fir se uske dabav ko na jhel pane ke karan aage sarak gayi...
"Tum aage kyun ja rahi ho?" Wah wapas supada meri yoni par tikate huye bola....
Main tang aakar seedhi khadi ho gayi...,"Tum sofe par baitho.. main karti hoon.." Main badhawas si halat mein jaldi jaldi boli....
"Kya?" Wah samajh nahi paya aur meri taraf tukur tukur dekhne laga....
"Tum baitho na jaldi.. main apne aap ghusa loongi..." Maine uska dhakka dekar sofe par dhakel diya....
"Theek hai.. tum khud hi kar lo..."Usne kisi achchhe bachche ki tarah kaha aur hath mein pakda hua apna ling seedha upar ki aur taan kar baith gaya.......
kramshah....................
आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
Tags = राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ Raj sharma stories , kaamuk kahaaniya , rajsharma हिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | kamuk-kahaniyan.blogspot.com | सेक्स कथा | सेक्सी जोक्स | सेक्सी चुटकले | kali | rani ki | kali | boor | हिन्दी सेक्सी कहानी | पेलता | सेक्सी कहानियाँ | सच | सेक्स कहानी | हिन्दी सेक्स स्टोरी | bhikaran ki chudai | sexi haveli | sexi haveli ka such | सेक्सी हवेली का सच | मराठी सेक्स स्टोरी | हिंदी | bhut | gandi | कहानियाँ | चूत की कहानियाँ | मराठी सेक्स कथा | बकरी की चुदाई | adult kahaniya | bhikaran ko choda | छातियाँ | sexi kutiya | आँटी की चुदाई | एक सेक्सी कहानी | चुदाई जोक्स | मस्त राम | चुदाई की कहानियाँ | chehre ki dekhbhal | chudai | pehli bar chut merane ke khaniya hindi mein | चुटकले चुदाई के | चुटकले व्यस्कों के लिए | pajami kese banate hain | चूत मारो | मराठी रसभरी कथा | कहानियाँ sex ki | ढीली पड़ गयी | सेक्सी चुची | सेक्सी स्टोरीज | सेक्सीकहानी | गंदी कहानी | मराठी सेक्सी कथा | सेक्सी शायरी | हिंदी sexi कहानिया | चुदाइ की कहानी | lagwana hai | payal ne apni choot | haweli | ritu ki cudai hindhi me | संभोग कहानियाँ | haveli ki gand | apni chuchiyon ka size batao | kamuk | vasna | raj sharma | sexi haveli ka sach | sexyhaveli ka such | vasana ki kaumuk | www. भिगा बदन सेक्स.com | अडल्ट | story | अनोखी कहानियाँ | कहानियाँ | chudai | कामरस कहानी | कामसुत्रा ki kahiniya | चुदाइ का तरीका | चुदाई मराठी | देशी लण्ड | निशा की बूब्स | पूजा की चुदाइ | हिंदी chudai कहानियाँ | हिंदी सेक्स स्टोरी | हिंदी सेक्स स्टोरी | हवेली का सच | कामसुत्रा kahaniya | मराठी | मादक | कथा | सेक्सी नाईट | chachi | chachiyan | bhabhi | bhabhiyan | bahu | mami | mamiyan | tai | sexi | bua | bahan | maa | bhabhi ki chudai | chachi ki chudai | mami ki chudai | bahan ki chudai | bharat | india | japan |यौन, यौन-शोषण, यौनजीवन, यौन-शिक्षा, यौनाचार, यौनाकर्षण, यौनशिक्षा, यौनांग, यौनरोगों, यौनरोग, यौनिक, यौनोत्तेजना,
No comments:
Post a Comment