Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--22

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बाली उमर की प्यास पार्ट--22

गतान्क से आगे................

"हां.. ऐसे..." मैने उसको किसी टीचर की तरह से हिदायत दी और एक बार फिर उसकी जांघों के दोनो ओर घुटने जमा कर बैठ गयी...

"मैं नीचे बैठूँगी.. तुम अपना 'ये' 'वहाँ' लगा देना..." मैने कहने के साथ ही अपने नितंबों को नीचे झुकाना शुरू कर दिया.... वह तिरच्छा होकर झुका और 'निशाना सेट करने लगा....

"यहाँ क्या हाईईईईईई..." मैं वापस उपर उठी.. थोड़ा नीचे करो नीचे..!" उसने तो अपना लिंग सीधा मेरे दाने पर टीका दिया था... मानो कोई नया सुराख करने की तैयारी में हो... मैने उसके होंटो को चूमा और फिर से नीचे बैठने लगी....

"बुद्धू...!" पीछे घुसाओगे क्या?" मैं तड़प कर बोली और अपनी योनि के साथ ही उसके लिंग का 'चार्ज' भी अपने ही हाथों में ले लिया... मैं जान गयी थी.. इसके भरोसे तो हो गयी 'गंगा' पार....

मैने उसका लिंग पकड़ा और अपनी योनि में दो चार बार घिसा कर जैसे ही छेद पर टीकाया.. वो अजीब से ढंग से बड़बड़ाया,"ऊऊऊऊऊऊऊऊऊऊओ"

"क्या हुआ?" मैने रुक कर उसकी आँखों में झाँका....

"कुच्छ नही... इसस्स्स्स्स्सस्स... मज़ा आ रहा है...!" उसने कहा और मेरे नितंबों को कसकर पकड़ लिया.....

"मैं मुस्कुराइ और छेद पर रखे सूपदे की तरफ से निसचिंत होकर उस पर धीरे धीरे बैठने लगी... पर मंज़िल उतनी आसान नही थी.. जितनी मुझे लग रही थी.. जैसे ही मेरी योनि का दबाव सूपदे पर बढ़ा.. मुझे योनि की फांकों में अत्यधिक दबाव महसूस होने लगा.. ऐसा लगा जैसे अगर और नीचे हुई तो ये फट जाएगी.. मैं वापस थोड़ी सी उपर उठ गयी..

"क्या हुआ?" संदीप ने आखें खोल कर पूचछा....

"डर हो रहा है...!" मैने बुरा सा मुँह बना लिया...

"खुद करोगी तो दर्द महसूस होगा ही.. मुझे तुम करने नही देती..."संदीप ने शिकायती लहजे में कहा....

"नही.. अब की बार पक्का करती हूँ..." लिंग को अंदर लेने के लिए तड़प रही मेरी योनि दर्द को एक पल में ही भूल गयी.. और फिर से उसके लिए अंदर ही अंदर फुदकने सी लगी...

"एक दम बैठ जाओ..!" संदीप ने हिदायत दी...

और में जोश में उसका कहा मान गयी.. जैसे ही मैने 'भगवान' का नाम लेकर अपनी योनि को इस बार लिंग पर ढीला छ्चोड़ा.. 'फ़च्छ' की आवाज़ के साथ 'उसका' आगे का 'लट्तू' मेरे अंदर घुस गया...

लाख कोशिश करने पर भी मेरी चीख निकले बिना ना रह सकी... गनीमत हुआ कि ज़्यादा तेज नही निकली... पर दर्द असहनीय था... मैने तुरंत उठने की कोशिश की पर जाने क्या सोचकर संदीप ने मुझे वहीं कस कर पकड़ लिया......

"आ.. क्या करते हो.. छ्चोड़ो मुझे.. बहुत दर्द हो रहा है..." मैं हड़बड़कर बोली...

"कुच्छ नही होगा जान.. जो होना था.. हो चुका... बस दो मिनिट... अभी सब ठीक हो जाएगा..." संदीप ने कहा और कसकर मुझे कुल्हों से पकड़े हुए मेरी चूचियो को चूसने लगा.....

"आ.. क्या कर रहे हो.. मैं मरी जा रही हूँ.. आगे रास्ता नही है.. मुझसे नही होगा...."

"मेरे दोस्त कहते हैं कि चूचियो चूसने से इसका दर्द कम हो जाता है...." उसने हटकर कहा और फिर से मेरे एक दाने को मुँह में ले लिया....

चूचियो में गुनगुनी सी गुदगुदी तो ज़रूर हुई थी.. पर मुझे नही लग रहा था कि मेरी योनि से `करीब 1.5 फीट उपर लटकी चूचियो को चूसने से वहाँ कुच्छ राहत मिलेगी... मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी योनि फैली ना हो; बुल्की फट ही गयी हो... मैने नीचे झुक कर देखा... उसका सारा का सारा लिंग तो बाहर ही था अभी.. सिर्फ़ लट्तू जाने से इतना दर्द हुआ है तो पूरा जाने में कितना दर्द होगा' सोच कर ही मैं तड़प उठी......,"मुझे नही होगा संदीप .. प्लीज़.. छ्चोड़ दो मुझे...."

"होगा कैसे नही.. जान.. देखो.. बस दो मिनिट.." उसने कहा और एक हाथ से मुझे पकड़े हुए वह नीचे की ओर दबाता हुआ दूसरे हाथ से मेरे बायें घुटने को धीरे धीरे दूर सरकाने लगा...

"आ.. क्या कर रहे हो.. मैं मर जाउन्गि ना...!" मैने छट-पटाते हुए कहा....

"कुच्छ नही होगा जान.. बस हो गया.. और दर्द नही होगा... एक मिनिट... बस.. बस.. एक मिनिट...." वह कहता गया और अपनी मनमर्ज़ी करता गया.....

मैं तब तक अपने हाथों से अपने आपको उसकी पकड़ से मुक्त करने की कोशिश करती रही जब तक कि वह खुद ही रुक नही गया....

"और मत करो ना संदीप.. तुम्हारी कसम.. बहुत दर्द हो रहा है....!"

"तुम्हारी कसम जान.. 2 मिनिट से ज़्यादा दर्द नही होगा अब..." कहते हुए उसने अपने दोनो हाथों से मुझे कसकर पकड़ा और मुझे लेकर सोफे से उठ गया....

"ययए.. ये क्या कर रहे हो...!" मैं सचमुच दर्द को भूल चुकी थी और सोच कर हैरान थी कि वो ऐसे खड़ा क्यूँ हुआ.. पर अगले ही पल मेरी सब समझ आ गया... सोफे की तरफ घूम कर वह आराम से मेरे साथ ही नीचे आता हुआ मुझे कमर के बल सोफे पर लिटा कर रुक गया...

मैने कोहनिया टीका कर उपर उठी... उसका लिंग अभी भी आधा बाहर था..," और मत करना प्लीज़.. मैने तो सोचा था कि सारा हो गया..."

"अरे सारा ही चला गया था जान.. ये तो खड़ा होने की वजह से निकल गया था.. कहते हुए उसने जैसे ही अपना लिंग अंदर धकेला.. मेरी योनि की तंग दीवारों में उठी आनंद की लहरों से मेरा पूरा बदन ही मदहोश होता चला गया...,"आआआआआहह" मैने पूरे आनंद के साथ एक लंबी सिसकी ली और मदोन्नमत होकर उसका सिर अपनी छाती पर झुका लिया....

"हो गया जान... आइ लव यू... तुमने कर ही दिया.... अया... बहुत मज़ा आ रहा है...."सच में ही मैं आनंद की उस प्रकस्ता पर थी कि सब कुच्छ भूल कर मेरा तन मंन वासना की रंगीन गलियों में खो सा गया था......

इस बार वह अपने 'मूसल' जैसे लिंग को जड़ तक मेरी योनि की फांकों से चिपका कर रुक गया....,"कैसा लग रहा है जान?"

मैने तड़प कर अपने बॉल नोच डाले.. मेरी आँखें तो पहले से ही पथराई हुई थी..... आनंद के जिस शिखर पर मैं खुद को उस वक़्त महसूस कर रही थी.. कुँवारी लड़की शायद ही उसके बारे में कल्पना भी कर सके.... अजीब सी हालत थी.. मैं बोलना चाहती थी.. पर मेरी ज़ुबान मेरी सिसकियों को शब्दों में ढालने में नाकाम थी... "अया... आआआयईीईईईईई... ऊऊहह मुऊम्म्म्ममय्ययी' जैसी ध्वनियाँ उसके धक्का लगाना बंद करते ही खामोश हो गयी... तड़प और बेकरारी से मैने अपने बालों को नोच डाला था... उसका ये विराम असहनीय था....

वह फिर भी मेरे जवाब की प्रतीक्षा करता रहा तो मुझसे रुका ना गया... पगलाई हुई सी कोहनियाँ टीका कर उपर उठी और आनन फानन में ही अपने नितंबों को उठा उठा कर पटाकने लगी... मेरे नितंबों की थिरकन के कारण अंदर बाहर हो रहे लिंग का हूल्का सा अहसास भी मुझे मरूभूमि में प्यासी के लिए सावन आने जैसा था.....

"आ.. आ...आ... आ.." मैं झल्लाई हुई अपने नितंबों को आगे पिछे करते हुए लिंग को खुद ही अंदर बाहर करती रही... जब तक कि वह मेरी मंशा को नही समझा और पूरे जोश के साथ मेरी जांघों के बीच बैठ कर सतसट धक्के लगाने लगा.....

वह सिसकने के साथ ही हाँफ भी रहा था.. पर मुझे खुद ही नही पता था कि मैं सिसक रही हूँ.. या बिलख रही हूँ... अपने ही मुँह से निकल रही अजीबोगरीब आधी आधूरी आहें मेरे ही कानों को बेगानी सी लग रही थी.....

वह धक्के लगाता जा रहा था और में पागलों की तरह कुच्छ का कुच्छ बड़बड़ाती जा रही थी..... उसने कयि बार आसन बदले.. कभी पंजों के बल बैठ जाता कभी घुटनो के बल... कभी मेरी चूचियो पर लेट कर धक्के लगाता और कभी मेरे घुटनों के नीचे से हाथ निकाल कर सोफे पर रख कर... हर आसन ने उस दिन मुझे नया जीवन दिया.. नया आनंद....

"ओह... आआहह.. मैं गया... मैं गया..." मेरे कानों को उसके तेज धक्के लगाते हुए आख़िर में कुच्छ इस तरह की आवाज़ें सुनी और 5-10 सेकेंड के बाद ही वो मेरी छाती पर पसर गया.... उस 'एक' पल के आनंद को में शब्दों में बयान नही कर सकती... मुझे भी ऐसा ही लगा था जैसे मैं गयी.. मैं गयी.. और गयी....

पर गये कहाँ.. हम दोनो तो एक दूसरे के इतने पास आ गये थे कि शरीर के साथ ही दिलों के बीच की दूरी भी कहीं खो गयी....

"आइ लव यू जान!" कुच्छ देर बाद जब संदीप में मेरी चूचियो पर एक प्यार भरा चुंबन देकर कहा तब ही शायद मैं उस अलौकिक दुनिया से वापस लौट कर आई थी..,"आ.. क्या हुआ.... हो गया क्या?" मैने कसमसा कर पूचछा....

"हां.. अंदर ही हो गया...."

"क्य्ाआ?" मैं उसके नीचे पड़ी हुई भी उच्छल सी पड़ी...,"अंदर निकाल दिया?"

"मुझे कुच्छ याद ही नही रहा... एक बार ध्यान आया था.. पर बाहर निकालने का मंन ही नही किया... उसके बाद तो कुच्छ याद ही नही...."वा मेरे उपर से अलग होता हुआ मायूसी से बोला....

"ययए.. क्या किया तुमने... अब मेरा क्या होगा...?" मैं बैठ कर नीचे झुकी और अपनी योनि में से बाहर टपक रहे उसके और मेरे प्रेमरस के मिश्रण को देखती हुई रोने लगी.....

संदीप को भी उस वक़्त कुच्छ सूझा ही नही.. शायद वह अपनी ग़लती पर शर्मिंदा था...

अचानक दरवाजे पर हुई 'खटखट' ने हम दोनो के होश ही उड़ा दिए... मैं बाकी सब कुच्छ भूल कर कांपति हुई अपने कपड़े ढूँढने लगी.....

"संदीप... ढोलू भैया... ...... चाची....." पिंकी की आवाज़ थी.... मेरे साथ ही संदीप के भी होश उड़ गये.... पर हम दोनो में से कोई कुच्छ नही बोला.....

"कौन है अंदर.... दरवाजा खोलो ना...." पिंकी की तीखी आवाज़ एक बार फिर मेरे कानों में पड़ी.....

"जल्दी करो..... और वहाँ अलमारी में छिप जाओ..."संदीप अपनी ज़िप बंद करता हुआ मेरे कानो में फुसफुसाया......

मैने हड़बड़ाहट में सलवार पहनी और अपनी कच्च्ची, ब्रा और कमीज़ को उठाकर अलमारी की ओर भागी.... संदीप के हाँफने की आवाज़ें मुझे अलमारी के अंदर भी सुनाई दे रही थी....

"हाआँ... क्या है..?" शायद संदीप ने दरवाजा खोल कर पूचछा होगा....

"इतनी देर क्यूँ लगा दी... ? क्या कर रहे थे...?" पिंकी की आवाज़ मुझे कमरे के अंदर से ही आती प्रतीत हो रही थी.....

"ववो.. हां.. कुच्छ नही... सो रहा था....."संदीप अब भी हूल्का हूल्का हाँफ रहा था.. जैसे कोई क्रॉस कंट्री रेस करके आया हो....

"तुम तो पसीने में भीगे हुए हो... कोई सपना देख रहे थे क्या? " कहने के साथ ही मुझे पिंकी की खनखनती हुई हँसी सुनाई दी......

"आहाआँ... वो.. एक.. बुरा सपना था...!" संदीप की साँसे अब तक संयमित हो चुकी थी.....

"वो.. मीनू ने शिखा दीदी की 'पॉल.साइन्स' की बुक मँगवाई है.....!" पिंकी ने कहा....

"पर.. वो तो... मुझे कैसे मिलेगी... ? कल आ जाएगी.. तब ले लेना ना!" संदीप हड़बड़ा कर बोला....

"मीनू ने दीदी के पास फोन किया है.. वो कह रही थी कि बड़ी अलमारी के बीच वाले खाने में रखी है... तुम देख तो लो!" पिंकी की ये बात सुनकर तो मेरी साँसें उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी.... शायद संदीप का भी ऐसा ही हाल हुआ होगा....,"वववो.. नही... वहाँ तो एक भी किताब नही है... इसमें तो सिर्फ़ कपड़े हैं.... हां.. कपड़े हैं सिर्फ़"

"अरे.. देख तो लो एक बार..." पिंकी ने कहा.... और अगले ही पल उसकी गुर्राती हुई आवाज़ आई..," तुम सुधरे नही हो ना!"

"म्‍मैइने क्या किया है...? तुम उधर क्यूँ जा रही हो...?" संदीप की आवाज़ से ही पता लग रहा था कि मामला बिगड़ने वाला है... पिंकी शायद अलमारी की ओर ही आ रही होगी.....

"ठीक है... मैं बाहर खड़ी होती हूँ... तुम देख कर दे दो..." पिंकी ने गुस्से से कहा और शायद बाहर निकल गयी.....

तभी अलमारी का दरवाजा थोड़ा सा खोला और भय से काँपते हुए मैने संदीप की ओर देखा.. उसने आँखों की आँखों में मुझे चुप रहने का इशारा किया और उपर वाले खाने में किताब ढूँढने लगा....

होनी को कुच्छ और ही मंजूर था.. अचानक उपर से मेरे उपर कुच्छ आकर गिरा और मैं ज़ोर से चीखी,"
ओईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईईई मुम्मय्यययी!"

जब तक मुझे मेरी ग़लती का अहसास होता.. पिंकी भाग कर अलमारी के सामने आ चुकी थी.. संदीप असमन्झस में खड़ा कभी दयनीय चेहरा बनाकर पिंकी की ओर और कभी गुस्से से मेरी ओर देखने लगा...

भय और शर्मिंदगी से थर थर काँप रही मैं नीचे वाले खाने के कोने में चिपकी हुई बड़ी मुश्किल से नज़रे उठा कर संदीप की और देखती हुई बोली..,"वववो.. चूहा....!"

पिंकी के चेहरे पर मेरे और संदीप के लिए ग्लानि के सपस्ट भाव झलक रहे थे.. अचानक उसने झपट्टा मार कर संदीप के हाथ से किताब छ्चीनी और बाहर भाग गयी......

"ययए... ये क्या किया तुमने?" संदीप गुस्से से दाँत पीसता हुआ चिल्लाया.....

"ववो.... वो.. उपर से चूहा कूद गया था.... मेरे उपर...!" मुझे अहसास था कि मैने क्या कर दिया है.. अब मैं संदीप से भी नज़रें नही मिला पा रही थी... चुपचाप बाहर निकली और अपना कमीज़ पहन कर खड़ी खड़ी रोने लगी.....

"तुम्हे शायद अंदाज़ा भी नही होगा कि तुमने क्या कर दिया... अब बात शिखा तक जाए बिना नही रहेगी... एक चूहे से डरकर.. तुमने ये.... शिट!.. निकलों यहाँ से जल्दी..." संदीप ने मुँह फेर कर कहा और अपने ही हाथों से अपना चेहरा नोचने लगा......

मेरी कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई... खुद ही अपने आँसू पौन्छे और अपनी ब्रा और पॅंटी को अपनी सलवार में टाँग ली .....फिर शॉल औधी और बे-आबरू सी होकर उसके घर से निकल गयी....

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मैं वहाँ से सीधी मीनू के घर ही गयी... पिंकी का चेहरा तमतमाया हुआ था और मीनू उस'से पूच्छ रही थी..,"बता ना क्या हुआ?"

मैं चुपचाप जाकर चारपाई पर बैठ गयी... मुझे भी इतनी चुप देख कर मीनू ने पूच्छ ही लिया...,"हद हो गयी.. छ्होटा सा काम करवाया था.. आते ही मुँह फूला कर बैठ गयी.. और अब तुझे क्या हो गया...? तुम दोनो की लड़ाई हुई है क्या?"

"नही दीदी.." मैने उस'से नज़रें मिलाए बिना ही सूना सा जवाब दिया और फिर पिंकी की और देख कर बोली," एक मिनिट बाहर आ जा पिंकी... तुझसे कुच्छ बात करनी है...!"

पिंकी ने मुझे घूर कर देखा.. पर कुच्छ बोली नही.. आँखों ही आँखों में मुझे गाली सी देकर वो फिर से एक तरफ देखने लगी.....

"सुन तो एक..." मैने इतना ही कहा था की पिंकी गुस्से में धधकति हुई बोली..,"मुझसे बात करने की ज़रूरत नही है तुझे... समझी..?"

"ऐसा क्या हो गया...? जब तू यहाँ से गयी थी तब तो सब ठीक था... तुम बाहर मिले हो क्या कहीं... रास्ते में...?" मीनू आशंकित होकर बोली....

अब जवाब तो दोनो के ही पास था... पर बोलती भी तो क्या बोलती.... मैने मीनू की बात को अनसुना कर दिया और एक बार फिर धीमी लरजती हुई आवाज़ में बोली,"पिंकी प्लज़्ज़्ज़.. एक बार मेरी बात सुन ले... फिर चाहे कुच्छ भी बोल देना.. किसी को भी...!"

पिंकी ने इस बार भी मेरी बात को अनसुना कर दिया....

मीनू को शायद अहसास हो गया की मामला कुच्छ ज़्यादा ही पर्सनल है....,"ठीक है.. तुम अपना झगड़ा निपताओ.. मैं उपर जाकर आती हूँ...."

मीनू के जाते ही मैं अपनी सोची हुई बात पर आ गयी..," तुझे पता है पिंकी..? सोनू का फोन ढोलू के पास है...!"

पिंकी की आँखों में हुल्के से आस्चर्य के भाव आए.. पर जितनी जल्दी आए थे.. उतनी ही जल्दी वो गायब भी हो गये.....

"मेरी बात तो सुन ले एक बार..." मैं जाकर जैसे ही उसके सामने बैठी.. उसने अपना मुँह फेर लिया... पर मामला अब थोड़ा सा शांत लगा.. शायद वह सोनू के मोबाइल के बारे में जान'ने को उत्सुक हो गयी थी...

"वो मैं उसको मोबाइल लौटने गयी थी... वो वहाँ ज़बरदस्ती करने लगा...!" मैने उल्टी तरफ से कहानी सुननी शुरू कर दी...

"कौनसा मोबाइल..? तेरे पास कहाँ से आया...?" पिंकी की बात में गुस्सा कम और उत्सुकता ज़्यादा होना ये बात साबित कर रहा था कि उसको बात सुन'ने में दिलचस्पी है....

"तू पूरी बात सुनेगी, तभी बताउन्गि ना... मेरी तरफ मुँह तो कर ले...!" मैने प्यार से उसके गालों पर हाथ लगा कर उसका चेहरा अपनी तरफ घुमा दिया... मेरी आँखों से आँखें मिलते ही उसने नज़रें झुका ली...,"बता!"

"वो उस दिन हम शिखा दीदी से मिलने गये थे ना... तो तुझे याद है मुझे ढोलू ने दूसरे कमरे में बुलाया था....?" मैने कहा...

"हां... तो?" उसने उपर... मेरी आँखों में देख कर पूचछा....

"वो.. भी ऐसे ही बकवास कर रहा था.. संदीप की तरह.. पर मैने सॉफ इनकार कर दिया... तुझे तो पता ही है 'वो' कैसा है....! उसने मुझे डरा धमका कर मेरे हाथ में एक मोबाइल पकड़ा दिया... कहने लगा मुझे तुमसे कुच्छ ज़रूरी बात करनी हैं... मैं डर गयी थी.. इसीलिए मैने अपने पास फोन छिपा लिया था.... आज 'उस' इनस्पेक्टर का नंबर. इस पर आया तो मैं डर गयी.. ज़रूर उसने 'सोनू' का नंबर. ही ट्राइ किया होगा....!" मैने कहा.....

"पर 'सोनू' का फोन ढोलू के पास कैसे आया... ?" पिंकी दिमाग़ लगाने की कोशिश करती हुई बोली....

"वही तो..! मैं बहुत डर गयी थी....! इसीलिए यहाँ से सीधी ढोलू को वो फोन वापस देने गयी थी... 'वो' तो मिला नही.. मैने संदीप को फोन देकर सब कुच्छ बता दिया.... मेरे डरे हुए होने का फ़ायडा उठाकर संदीप ने मुझे वहीं पकड़ लिया... मैने उसको मना किया तो कहने लगा कि 'वो' तुम्हे और गाँव वालों को बता देगा कि सोनू का फोन मेरे पास है...!"

"कमीना.. कुत्ता...!" पिंकी ने हमेशा उसकी ज़ुबान पर चढ़ि रहने वाली दो गालियाँ संदीप को दी और फिर बोली," फिर...?"

"फिर क्या?" मैने कहकर सिर झुका लिया....

"क्य्ाआ? उसने तुम्हारे साथ 'वो' कर दिया?" मेरे चेहरे के भावों को पढ़ती हुई पिंकी आस्चर्य से बोली....

"छ्चोड़ ना अब..?" मैं उसका ध्यान हटाने के इरादे से बोली..," अच्च्छा ही हुआ.. तू वहाँ चली गयी.. तुझे भी उसकी असलियत पता चल गयी... शायद मैं अपने आप 'ये' भी बात नही कह पाती.. और 'वो' भी की सोनू का मोबाइल ढोलू के पास है...." मैने अपने आप को सॉफ सॉफ बचाने की कोशिश की...

"चल... दीदी को बताते हैं...!" पिंकी ने कहा....

"प्लीज़... संदीप वाली बात मत बताना...!" मैने उसको मनाने की कोशिश की....

"क्या नंबर. था वो.." अचानक मीनू को दरवाजे की आड़ से हमारे सामने आते देख हम दोनो उच्छल पड़े... शायद उसने सब कुच्छ सुन लिया था...!

"मैने तात्कालिक शर्म से अपना सिर झुका लिया.. पर मीनू ने संदीप के बारे में कोई सवाल नही पूचछा....

"क्या नंबर. था..? बताती क्यूँ नही...?" मीनू आकर मेरे हाथ पर हाथ रख कर बोली...

"मुझे नंबर. नही पता दीदी.. पर उस पर इनस्पेक्टर की कॉल आई थी...." मैने कहा...

"अब कहाँ है फोन?" मीनू ने पूचछा...

"वो..वो मैं वापस दे आई....!" मैने कहा....

"एक मिनिट में आती हूँ..." मीनू ने कहा और उपर भाग गयी... कुच्छ देर बाद वापस आकर बोली..," सोनू वाला नंबर. तो बंद पड़ा है....

"हां दीदी.. फिर तो पक्का वही नंबर. है... मैने यहाँ से जाने से पहले ही उसको ऑफ किया था.... पर... आपको उस नंबर. का कैसे पता.....?" मैने पूचछा....

"ववो..." मीनू ने एक बार पिंकी की ओर देखा और फिर थोड़ी देर चुप रह कर बोलने लगी...,"तरुण ने मुझे 'वो' नंबर. दे रखा था.. एक आध बार उसके पास घर से फोने करने के लिए... 'वो' अक्सर सोनू के साथ ही रहता था ना.... उसी ने बताया था कि 'ये' सोनू का स्पेशल नंबर. है... उस नंबर. का किसी और को नही पता.....!"

"स्पेशल मतलब...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....

"पता नही.. 2 नंबर. होंगे उसके पास.. शायद.. पर 'वो' नंबर. किसी और के पास नही था.. तरुण कहता था....!" मीनू बोली...

"पर उसने सोनू का नंबर. क्यूँ दिया... उसके पास तो अपना मोबाइल था ना...!" मैने कहा....

"पहले नही था... उसने बाद में लिया था अपना!" मीनू ने जवाब दिया.....


"ओह्ह.. अच्च्छा..!" मैने सिर हिलाते हुए कुच्छ सोचा और फिर बोली," पर सोनू का नंबर. ढोलू के पास कैसे आया..? और सोनू कहाँ है...?"

"अब क्या पता..! मेरी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा... ... ववो इनस्पेक्टर के पास फोन करें?" मीनू बोली...

"रहने दो दीदी.. बार बार फोन करना अच्च्छा नही लगता.. कल 'वो' स्कूल में आएँगे तो हम बता देंगे...!" पिंकी ने हमारी बातों में हस्तक्षेप किया...

"ठीक है... तुम बता देना.. एक ही बात है..." मीनू के चेहरे पर बोलते हुए मायूसी सी झलक आई.. फिर अचानक कुच्छ सोच कर बोली," तू उपर जा ना पिंकी.. थोड़ी देर..!"

पिंकी ने तुरंत अपना चेहरा फूला लिया,"मैं कहीं नही जाउन्गि दीदी... मुझे पता है तुम क्या बात करने वाले हो...!"

"क्या बात? अर्रे.. ऐसी कुच्छ बात नही है.. तू जा ना एक बार!" मीनू चिड कर बोली...

"नही.. मैं नही जाउन्गि..." पिंकी भी आड़कर बैठ गयी...

मेरे दिमाग़ में भी काफ़ी देर से एक बात घूम रही थी.. मैने 2 पल रुक कर सोचा कि पिंकी के सामने कहूँ या नही... फिर मैने कह ही दिया..,"दीदी!"

"हां..." मीनू पिंकी को घूरते हुए मुझसे बोली....

"ववो... वो आप बता रहे थे कि...." मैं बीच में ही रुक कर पिंकी की ओर देखने लगी.....

"तू थोड़ी देर रुक जा.... देखती हूँ ये कब तक हमारे पास बैठी रहती है.. हम बाद में बात करेंगे...!" मीनू पिंकी को घूरते हुए बोली....

पिंकी खड़ी होकर गुस्से से पैर पटक'ने लगी..,"मुझे नही पता.. दोनो अकेले अकेले गंदी बातें करते हो और मुझे इस तरह भगा देते हो जैसे मैं गंदी हूँ... आने दो मम्मी को.. आज दोनो की पोले खोलूँगी... कर लो बात..." पिंकी ने कहते हुए अपनी मोटी मोटी आँखों में आँसू भर लिए और उपर जाने लगी...

मीनू ने भाग कर उसको सीढ़ियों के पास ही पकड़ लिया...,"सुन तो.. ऐसी बात नही है मेरे पिंकू... आजा... आ ना!" मीनू उसको वापस खींच लाई और अपनी गोद में बिठा लिया....

"है क्यूँ नही ऐसी बात...? आप हमेशा मेरे साथ ऐसा ही करते हो.. मैं भी तो अंजू की उमर की हूँ.. मुझे सब बातों का पता है... तुम दोनो से समझदार हूँ मैं!" उसकी गोद में बैठी हुई पिंकी मीनू की आँखों में आँखें डाल कर बोली...

"अच्च्छा ठीक है.. बैठी रह.. बस!" मीनू ने उसके गालों से आँसू सॉफ किए और फिर मेरी और देख कर बोली," संदीप ने ऐसे कैसे ज़बरदस्ती कर ली... तूने उसको कुच्छ भी नही कहा....?"

मैने तुरंत अपनी नज़रें झुका ली... मुझे लग नही रहा था कि जिस तरह से पिंकी को मैने कुच्छ भी कह दिया था.. उन्न बातों पर मीनू को विश्वास हुआ होगा... पिंकी साथ ना बैठी होती तो शायद मैं मीनू को थोड़ा सा सच भी बता देती.. पर पिंकी के सामने... तो सच बोलने का मतलब खुद को उसकी नज़रों से गिराना ही था...

"चल छ्चोड़.. अब तो हो ही गया.. पर तूने ध्यान तो रखा होगा ना?" मीनू मेरी असमन्झस को जान कर बोली...

"किस बात का दीदी..?" मैने पूचछा....

"वो.. तेरी एम.सी. कब की है...?" मीनू ने पूचछा.....

"एम.सी. क्या दीदी?" मैं समझ नही पाई....

"अरे तेरी 'डेट्स' कब आती हैं...?" उसने दोहराया....

"ववो.. वो तो कोई 10 दिन हो गये... क्यूँ?" मैने पूचछा....

"ले... तू तो गयी फिर... वो... तू समझ रही है ना.. मैं क्या पूच्छना चाहती हूँ..?" मीनू झल्ला कर बोली...

"नही... "मैने जल्दी जल्दी में कह दिया.. तभी उसकी बात शायद मेरी समझ में आ गयी," हाआँ... इसीलिए तो मैं आपसे ये पूच्छ रही थी कि....!" कह कर मैं फिर चुप हो गयी....

"क्या? ... बोल ना!"

"ववो.. आप बता रहे थे ना... कि 'गोलियाँ' आती हैं....!" मैने नज़रें चुराते हुए कहा....

"हे भगवान... अंदर ही?" मीनू गुस्से से बोली..," इतनी तो अकल होनी चाहिए थी ना.. हद कर दी यार...!"

मैं जवाब देती भी तो क्या देती.. हद तो अब पार कर ही चुकी थी मैं... कुच्छ देर वहाँ सन्नाटा छाया रहा.. फिर मुझे बोलना ही पड़ा..,"वो.. वो गोली मिल जाएगी ना?"

पिंकी मामले की नज़ाकत को भाँप कर मीनू की गोद से हटी और एक तरफ बैठ कर हम दोनो के चेहरों को देखने लगी...

"वो तो 24 घंटे के अंदर लेनी होती है.... और 'वो' अब मिलेगी कहाँ से...?" मीनू झल्ला उठी थी... शायद 'वो' दिल से मेरी चिंता कर रही थी....

"आप ले आना ना.. कल शहर से...!" मैने अनुनय से उसकी आँखों में देखा...

"मैं... तू पागल हो गयी है क्या?.. मैं जाकर ये बोलूँगी कि मुझे 'इपिल्ल' दे दो... मैं कहीं से भी शादी शुदा लगती हूँ क्या?.. ना.. मेरे बस का नही है.. जाकर ऐसे बोलना....!" मीनू ने सॉफ सॉफ कह दिया.. फिर मेरे चेहरे के रुनवासे भाव पढ़ कर बोली," मैं... मैं तो सिर्फ़ इतना कर सकती हूँ कि किसी सहेली को बोल दूँगी.. अगर किसी ने लाकर दे दी तो मैं ले आउन्गि...."

"ये.. 'इपिल्ल' क्या होती है दीदी?" पिंकी हमारी एक एक बात को पी रही थी....

"कुच्छ नही... गोली होती है एक.. उस'से 'बच्चा' होने का भय नही रहता.. अब ज़्यादा मत पूच्छना..." मीनू के कहा और चिंतित सी होकर बड़बड़ाती हुई उपर चली गयी....

मेरी आँखों के सामने अंधेरा सा छाता जा रहा था.... समझ में आ नही रहा था कि क्या करूँ और क्या नही.. मेरा वेहम इतना बढ़ गया कि पेट में 'पानी' हिलने की भी आवाज़ होती तो लगता जैसे 'बच्चा' बन रहा है... अब कल गोली आने का भी पक्का चान्स नही था... 24 घंटे के अंदर नही मिली तो मैं क्या करूँगी....' सोचते हुए मैने अपना माथा पकड़ा और सुबकने लगी...

"रो मत अंजू... उस 'कुत्ते कामीने' को मैं छ्चोड़ूँगी नही!" पिंकी ने मुझे सांत्वना देते हुए कहा....

"उस'से क्या होगा पिंकी...!" मैं सुबक्ते हुए ही बोली और अचानक सिर उठा कर बोली..," मैं संदीप को ही बोल दूँ तो?... वही लाकर देगा अब गोली भी.....!"

"ना...! उस'से अब कभी बात मत करना...." पिंकी ने गुस्सा उगलते हुए कहा..," इस'से अच्च्छा तो आप 'हॅरी' को बोल दो...!"

"हॅरी?... हॅरी कौन..?" मुझे ध्यान ही नही आया कि 'वो' किस हॅरी की बात कर रही है....

"अरे.. 'वो.. हरीश...! उसका यही काम है... क्या पता उसके पास 'इपिल्ल' भी मिल जाए..." पिंकी ने कहा....

"वो.. जिसने स्कूल में कॅंप लगवाया था डॉक्टर. मलिक का...?" मैने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था.....

"हां... उसका 'दवाइयों' का ही काम है... चल उसके पास चलते हैं... उसके पास नही होगी तो भी कहीं से 'आज' ही मंगवा देगा.....

"पर... पर अगर उसने किसी को बोल दिया तो?" मैने अपने डर की वजह उसको बताई....

"ऐसे कैसे बोल देगा? हम मना कर देंगे तो... चल.. अभी चलते हैं.. दीदी को बोल कर...!" पिंकी ने कहा और खड़ी हो गयी.....

"पर... फिर भी.. तुम्हारा वहाँ जाना ठीक नही है... क्या सोचेगा 'वो'? ये गोली कोई सिरदर्द बुखार की थोड़े ही है जो 'वो' तुम्हे दे देगा और किसी को बताना भूल जाएगा...!" मीनू को हमसे जिरह करते करीब 15 मिनिट हो चुके थे...

"नही बताएगा ना 'वो' दीदी.. मुझे पता है!" पिंकी ज़ोर देकर बोली....

"अच्च्छा... क्या पता है तुझे? ज़रा हमें भी बता दे...! 'तू' जानती नही इन्न लड़कों की फ़ितरत को... इन्हे तो बस एक बहाना चाहिए.. लड़की की कमज़ोरी मिली नही की सीधे 'घटीयपन' पर आ जाते हैं... भूल गयी तरुण को....?" मीनू ज़रा तीखे तेवर में बोली....

"पर.. दीदी... अंजू को दवाई भी तो चाहिए ना.. ! और किसी को बोल भी नही सकते...!" पिंकी की आवाज़ थोड़ी धीमी हो गयी...

"अच्च्छा.. एक काम करना.. उसके पास तुम'मे से एक ही जाना... अंजू.. तू ही चली जाना.. ये घर के बाहर खड़ी हो जाएगी... ठीक है...?" मीनू ने आख़िरकार हथियार डाल ही दिए....

मुझसे पहले ही पिंकी ने जवाब दे दिया..," हां.. ठीक है.. चल अंजू.. जल्दी!" पिंकी ने कहा और मुझे नीचे खींच लाई....

----------------------------------------------

हम 15 मिनिट में ही उस घर के पास पहुँच गये जहाँ हॅरी किराए के मकान में रहता था.. हमें दूर से ही हॅरी घर के बाहर ही दोस्तों के साथ बैठा दिखाई दे गया....

"अफ.. इसके साथ तो गाँव के और भी लड़के हैं... अब क्या करें...?" मैं चलते चलते धीरे से फुसफुसाई....

"सीधी चल.. थोड़ी आगे चलकर वापस आ जाएँगे... क्या पता तब तक चलें जायें..." पिंकी ने कहा और हम सीधे उनसे आगे निकल गये....

"ओये हॅरी.. देख.. तेरी गुलबो! आज उस तरफ का चाँद इधर कैसे निकल आया... हा हा हा... और उसके साथ रस-मलाई भी है.. हाए क्या मस्त कूल्हे हैं यार...!" उनसे आगे निकलते ही मेरे कानो में किसी लड़के के ये बोल पड़े... मेरी समझ में नही आया था कि 'उसने' गुलबो किसको कहा और रस-मलाई किसको... पर मुझे विश्वास था; 'वो' ज़रूर मेरे ही कुल्हों की तारीफ़ में आहें भर रहा होगा...

"ये लड़के कितने 'बकवास' होते हैं.. है ना अंजू!" शायद पिंकी ने भी ज़रूर 'वो' कॉमेंट सुना होगा....

"हां.." मैने मरी सी आवाज़ में उसकी बात का समर्थन किया... 'ये' यहाँ से नही गये तो...?" मैने पूचछा....

"क्या करें..?" पिंकी ने कुच्छ सोचते हुए बोला..," हां.. एक आइडिया है...!"

"क्या?" मैने उत्सुकता से पूचछा....

"हम 'उसको जाकर बोलते हैं कि बुखार की दवाई चाहिए... 'वो' लेने अंदर जाएगा तो हम उसको बोल देंगे....!" पिंकी ने खड़े होकर कहा...

"हां.. ये सही है....!" मैं उसका आइडिया सुनकर खुश हो गयी....

"चल.. चलते हैं....." पिंकी ने कहा और हम 'वापस' मूड गये....

हमें वापस उनकी तरफ आते देख सब लड़कों की आँखें अचानक चील कौओं जैसी खिल गयी... जैसे हमारे 'माँस' को खाने के लिए व्याकुल हो उठे हों... पर क्या करते.. हॅरी के बिना उस दिन गुज़रा तो था नही... हम जाकर लड़कों के सामने खड़े हो गये....

हम दोनो में से जब लगभग 10 सेकेंड तक आवाज़ नही निकली तो 'लड़कों' में दबे सुर में 'खीर खीर' शुरू हो गयी... मैने हड़बड़ा कर पिंकी के मुँह की ओर देखा... पिंकी तुरंत बोल पड़ी..,"वो.. बुखार की टॅबलेट मिल जाएगी क्या?"

"किसको हो गया...?" हॅरी ने अपनी चेर से खड़े होकर बड़े 'प्याआअर' से पूचछा...

"ववो.. मुझे ही..." पिंकी ने अचकचा कर झूठ बोला....

"हां.. हां.. क्यूँ नही....एक मिनिट.. मैं अभी लाया..." कहते हुए हॅरी ने मानो अपनी सारी विनम्रता को ही 'पिंकी' पर निचोड़ दिया... और जाने लगा...

"नही नही.. मैं साथ ही आ रही हूँ...!" पिंकी ने कहा और उसके पिछे हो ली... मैं ये सोचकर वहीं खड़ी रही कि मीनू ने एक को ही जाने को कहा था....

"तेरी तो लाइफ बन गयी प्यारे! जल्दी आजा.. पार्टी हो गयी आज तो.." मेरे पास खड़े लड़कों में से एक ने कहा और इस तरह सीटी बजाने लगा जैसे......

"कल्लूऊओ बेटा...."लड़कों में से एक ने कहा... मैं उनसे थोड़ी दूर हटकर अपना मुँह फेर कर खड़ी हो गयी थी...

"साले तेरी मा की... तरीके से मैं तेरा चाचा लगता हूँ.. .. देख भाल कर बोला कर.. नही तो मार लूँगा यहीं उल्टा डाल के... मेरा तो पहले ही काबू में नही है.. 'ऐसा 'पीस' देख के... साला इंडिया में क़ानून नही होना चाहिए था.. हे हे..!" एक की आवाज़ मुझे सुनाई दी.. मुझे ऐसे जुमले सुन'ने की आदत थी.. मैं समझ गयी थी कि किस 'पीस' की बात हो रही है...

"आबे वही तो मैं बोल रहा हूँ... 'साले' तू 'खरबूजे' तो देख एक बार... 'स्विफ्ट' के पिच्छवाड़े की 'तरह' मस्त 'गोलाई' है... इष्ह..."

तभी कोई तीसरी आवाज़ मुझे सुनाई दी...," छ्चोड़ो ना यार.. हॅरी का तो लगता है आज 'काम' बन गया... अकेली गयी है.... मुझे तो पक्का...." तभी 'वो' एकद्ूम चुप हो गया.... मुझे हॅरी की आवाज़ सुनाई दी...,"चाबी पड़ी होगी यहाँ... देखना..."

मैने पलट कर देखा.. पिंकी उसके पिछे ही थोड़ी दूर खड़ी थी.... हॅरी ने चाबी उठाई और वापस चल दिया... इस बार मैं भी वहाँ खड़ी ना रह सकी.... मैं भी पिंकी के साथ हो ली....


क्रमशः.........................................

Gataank se aage................

"Haan.. aise..." Maine usko kisi teacher ki tarah se hidayat di aur ek baar fir uski jaanghon ke dono aur ghutne jama kar baith gayi...

"Main neeche baithungi.. tum apna 'ye' 'wahan' laga dena..." Maine kahne ke sath hi apne nitambon ko neeche jhukana shuru kar diya.... wah tirchha hokar jhuka aur 'nishana set karne laga....

"Yahan kya haiiiiiii..." Main wapas upar uthi.. thoda neeche karo neeche..!" Usne toh apna ling seedha mere daane par tika diya tha... mano koyi naya surakh karne ki taiyari mein ho... maine uske honton ko chooma aur fir se neeche baithne lagi....

"Buddhu...!" Pichhe ghusaoge kya?" Main tadap kar boli aur apni yoni ke sath hi uske ling ka 'charge' bhi apne hi haathon mein le liya... main jaan gayi thi.. iske bharose toh ho gayi 'ganga' paar....

Maine uska ling pakda aur apni yoni mein do char baar ghisa kar jaise hi chhed par tikaya.. wo ajeeb se dhang se badbadaya,"
ooooooooooooooooooooo"

"Kya hua?" Maine ruk kar uski aankhon mein jhanka....

"Kuchh nahi... isssssssss... maja aa raha hai...!" Usne kaha aur mere nitambon ko kaskar pakad liya.....

"Main muskurayi aur chhed par rakhe supade ki taraf se nischint hokar uss par dheere dheere baithne lagi... par manjil utni aasan nahi thi.. jitni mujhe lag rahi thi.. Jaise hi meri yoni ka dabav supade par badha.. mujhe yoni ki faankon mein atyadhik dabav mahsoos hone laga.. aisa laga jaise agar aur neeche huyi toh ye fat jayegi.. main wapas thodi si upar uth gayi..

"Kya hua?" Sandeep ne aakhein khol kar poochha....

"Dar ho raha hai...!" Maine bura sa munh bana liya...

"Khud karogi toh dard mahsoos hoga hi.. mujhe tum karne nahi deti..."Sandeep ne shikayati lahje mein kaha....

"Nahi.. ab ki baar pakka karti hoon..." Ling ko andar lene ke liye tadap rahi meri yoni dard ko ek pal mein hi bhool gayi.. aur fir se uske liye andar hi andar fudakne si lagi...

"Ek dum baith jao..!" Sandeep ne hidayat di...

Aur mein josh mein uska kaha maan gayi.. jaise hi maine 'bhagwan' ka naam lekar apni yoni ko iss baar ling par dheela chhoda.. 'fachch' ki aawaj ke sath 'uska' aage ka 'lattoo' mere andar ghus gaya...

Lakh koshish karne par bhi meri cheekh nikle bina na rah saki... ganimat hua ki jyada tej nahi nikli... Par dard asahneey tha... maine turant uthne ki koshish ki par jane kya sochkar Sandeep ne mujhe wahin kas kar pakad liya......

"aah.. kya karte ho.. chhodo mujhe.. bahut dard ho raha hai..." Main hadbadakar boli...

"Kuchh nahi hoga jaan.. jo hona tha.. ho chuka... bus do minute... abhi sab theek ho jayega..." Sandeep ne kaha aur kaskar mujhe kulhon se pakde huye meri chhatiyon ko choosne laga.....

"aah.. kya kar rahe ho.. main mari ja rahi hoon.. aage raasta nahi hai.. mujhse nahi hoga...."

"Mere dost kahte hain ki chhatiyan choosne se iska dard kum ho jata hai...." Usne hatkar kaha aur fir se mere ek daane ko munh mein le liya....

Chhatiyon mein gunguni si gudgudi toh jaroor huyi thi.. par mujhe nahi lag raha tha ki meri yoni se `kareeb 1.5 feet upar latki chhatiyon ko choosne se wahan kuchh rahat milegi... Mujhe aisa lag raha tha jaise meri yoni faili na ho; bulki fat hi gayi ho... Maine neeche jhuk kar dekha... uska sara ka sara ling toh bahar hi tha abhi.. sirf lattoo jane se itna dard hua hai toh poora jane mein kitna dard hoga' soch kar hi main tadap uthi......,"Mujhe nahi hoga Sandeep .. plz.. chhod do mujhe...."

"Hoga kaise nahi.. jaan.. dekho.. bus do minute.." Usne kaha aur ek hath se mujhe pakde huye wah neeche ki aur dabata hua dusre hath se mere bayein ghutne ko dheere dheere door sarkane laga...

"Aah.. kya kar rahe ho.. main mar jaaungi na...!" Maine chhatpatate huye kaha....

"Kuchh nahi hoga jaan.. bus ho gaya.. aur dard nahi hoga... ek minute... bus.. bus.. ek minute...." Wah kahta gaya aur apni manmarzi karta gaya.....

Main tab tak apne hathon se apne aapko uski pakad se mukt karne ki koshish karti rahi jab tak ki wah khud hi ruk nahi gaya....

"Aur mat karo na Sandeep.. tumhari kasam.. bahut dard ho raha hai....!"

"tumhari kasam jaan.. 2 minute se jyada dard nahi hoga ab..." Kahte huye usne apne dono hathon se mujhe kaskar pakda aur mujhe lekar sofe se uth gaya....

"Yye.. ye kya kar rahe ho...!" Main sachmuch dard ko bhool chuki thi aur soch kar hairan thi ki wo aise khada kyun hua.. par agle hi pal meri sab samajh aa gaya... sofe ki taraf ghoom kar wah aaram se mere sath hi neeche aata hua mujhe kamar ke bal sofe par lita kar ruk gaya...

Maine kohniya tika kar upar uthi... Uska ling abhi bhi aadha bahar tha..," Aur mat karna pls.. maine toh socha tha ki sara ho gaya..."

"arey sara hi chala gaya tha jaan.. ye toh khada hone ki wajah se nikal gaya tha.. kahte huye usne jaise hi apna ling andar dhakela.. meri yoni ki tang deewaron mein uthi aanand ki lahron se mera poora badan hi madhosh hota chala gaya...,"aaaaaaaaaahhhhhhhhhhh" Maine poore aanand ke sath ek lambi siski li aur madonnamat hokar uska sir apni chhati par jhuka liya....

"Ho gaya jaan... I love you... tumne kar hi diya.... aaah... bahut maja aa raha hai...."Sach mein hi main aanand ki uss prakastha par thi ki sab kuchh bhool kar mera tan mann wasna ki rangeen galiyon mein kho sa gaya tha......

Iss baar wah apne 'moosal' jaise ling ko jad tak meri yoni ki faankon se chipka kar ruk gaya....,"Kaisa lag raha hai jaan?"

Maine tadap kar apne baal noch daale.. meri aankhein toh pahle se hi pathrayi huyi thi..... Aanand ke jis shikhar par main khud ko uss waqt mahsoos kar rahi thi.. kunwari ladki shayad hi uske baare mein kalpana bhi kar sake.... Ajeeb si halat thi.. Main bolna chahti thi.. par meri juban meri siskiyon ko shabdon mein dhalne mein nakaam thi... "aaah... aaaaayyiiiiiiiii... oooohhhhh muummmmmyyyy' jaisi dhwaniyan uske dhakka lagana band karte hi khamosh ho gayi... Tadap aur bekarari se maine apne baalon ko noch dala tha... uska ye viram asahneey tha....

Wah fir bhi mere jawaab ki prateeksha karta raha toh mujhse ruka na gaya... paglayi huyi si kohniyan tika kar upar uthi aur aanan faanan mein hi apne nitambon ko utha utha kar patakne lagi... Mere nitambon ki thirakan ke karan andar bahar ho rahe ling ka hulka sa ahsaas bhi mujhe marubhumi mein pyasi ke liye sawan aane jaisa tha.....

"aah.. aah...aah... aah.." Main jhallayi huyi apne nitambon ko aage pichhe karte huye ling ko khud hi andar bahar karti rahi... jab tak ki wah meri mansha ko nahi samjha aur poore josh ke sath meri jaanghon ke beech baith kar satasat dhakke lagane laga.....

Wah sisakne ke sath hi haanf bhi raha tha.. par mujhe khud hi nahi pata tha ki main sisak rahi hoon.. ya bilakh rahi hoon... apne hi munh se nikal rahi ajeebogareeb aadhi aadhoori aahein mere hi kaanon ko begaani si lag rahi thi.....

Wah dhakke lagata ja raha tha aur mein paaglon ki tarah kuchh ka kuchh badbadati ja rahi thi..... usne kayi baar aasan badle.. kabhi panjon ke bal baith jata kabhi ghutno ke bal... kabhi meri chhatiyon par late kar dhakke lagata aur kabhi mere ghutnon ke neeche se hath nikal kar sofe par rakh kar... Har aasan ne uss din mujhe naya jeewan diya.. naya aanand....

"ohhhhh... aaaahhhh.. main gaya... main gaya..." Mere kaanon ko uske tej dhakke lagate huye aakhir mein kuchh iss tarah ki aawajein suni aur 5-10 second ke baad hi wo meri chhati par pasar gaya.... Uss 'ek' pal ke anand ko mein shabdon mein bayan nahi kar sakti... mujhe bhi aisa hi laga tha jaise main gayi.. main gayi.. aur Gayi....

Par gaye kahan.. hum dono toh ek dusre ke itne paas aa gaye the ki shareer ke sath hi dilon ke beech ki doori bhi kahin kho gayi....

"I love you jaan!" Kuchh der baad jab Sandeep mein meri chhatiyon par ek pyar bhara chumban dekar kaha tab hi shayad main uss aloukik duniya se wapas lout kar aayi thi..,"aa.. kya hua.... ho gaya kya?" Maine kasmasa kar poochha....

"Haan.. andar hi ho gaya...."

"Kyaaaa?" Main uske neeche padi huyi bhi uchhal si padi...,"Andar nikal diya?"

"Mujhe kuchh yaad hi nahi raha... ek baar dhyan aaya tha.. par bahar nikalne ka mann hi nahi kiya... uske baad toh kuchh yaad hi nahi...."Wah mere upar se alag hota hua mayoosi se bola....

"Yye.. kya kiya tumne... ab mera kya hoga...?" Main baith kar neeche jhuki aur apni yoni mein se bahar tapak rahe uske aur mere premras ke mishran ko dekhti huyi rone lagi.....

Sandeep ko bhi uss waqt kuchh soojha hi nahi.. shayad wah apni galati par sharminda tha...

Achanak Darwaje par huyi 'khatkhat' ne hum dono ke hosh hi uda diye... Main baki sab kuchh bhool kar kaanpti huyi apne kapde dhoondhne lagi.....

"Sandeep... Dholu bhaiya... ...... chachi....." Pinky ki aawaj thi.... Mere sath hi Sandeep ke bhi hosh udd gaye.... par hum dono mein se koyi kuchh nahi bola.....

"Koun hai andar.... darwaja kholo na...." Pinky ki teekhi aawaj ek baar fir mere kaanon mein padi.....

"Jaldi karo..... aur wahan almari mein chhip jao..."Sandeep apni zip band karta hua mere kaano mein fusfusaya......

Maine hadbadahat mein salwar pahni aur apni kachchhi, bra aur kameej ko uthakar almari ki aur bhagi.... Sandeep ke haanfne ki aawajein mujhe almari ke andar bhi sunayi de rahi thi....

"Haaan... kya hai..?" Shayad Sandeep ne darwaja khol kar poochha hoga....

"Itni der kyun laga di... ? kya kar rahe the...?" Pinky ki aawaj mujhe kamre ke andar se hi aati prateet ho rahi thi.....

"Wwo.. haan.. kuchh nahi... So raha tha....."Sandeep ab bhi hulka hulka haanf raha tha.. jaise koyi cross country race karke aaya ho....

"Tum toh pasine mein bheege huye ho... koyi sapna dekh rahe the kya? " kahne ke sath hi mujhe Pinky ki khankhanati huyi hansi sunayi di......

"aahaaan... wo.. ek.. bura sapna tha...!" Sandeep ki saanse ab tak sanyamit ho chuki thi.....

"Wo.. Meenu ne Shikha didi ki 'Pol.Science' ki book mangwayi hai.....!" Pinky ne kaha....

"Par.. wo toh... mujhe kaise milegi... ? kal aa jayegi.. tab le lena na!" Sandeep hadbada kar bola....

"Meenu ne didi ke paas fone kiya hai.. wo kah rahi thi ki badi almari ke beech wale khane mein rakhi hai... tum dekh toh lo!" Pinky ki ye baat sunkar toh meri saansein upar ki upar aur neeche ki neeche rah gayi.... Shayad Sandeep ka bhi aisa hi haal hua hoga....,"Wwwo.. nahi... wahan toh ek bhi kitab nahi hai... ismein toh sirf kapde hain.... haan.. kapde hain sirf"

"Arey.. dekh toh lo ek baar..." Pinky ne kaha.... aur agle hi pal uski gurrati huyi aawaj aayi..," Tum sudhre nahi ho na!"

"Mmaine kya kiya hai...? tum udhar kyun ja rahi ho...?" Sandeep ki aawaj se hi pata lag raha tha ki maamla bigadne wala hai... Pinky shayad almari ki aur hi aa rahi hogi.....

"theek hai... Main bahar khadi hoti hoon... tum dekh kar de do..." Pinky ne gusse se kaha aur shayad bahar nikal gayi.....

Tabhi almari ka darwaja thoda sa khola aur bhay se kaanpte huye maine Sandeep ki aur dekha.. Usne aankhon ki aankhon mein mujhe chup rahne ka ishara kiya aur upar wale khane mein kitab dhoondhne laga....

Honi ko kuchh aur hi manjoor tha.. Achanak upar se mere upar kuchh aakar gira air main jor se cheekhi,"oyiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiiii mummyyyyy!"

Jab tak mujhe meri galati ka ahsaas hota.. Pinky bhag kar almari ke saamne aa chuki thi.. Sandeep asamanjhas mein khada kabhi dayneey chehra banakar Pinky ki aur aur kabhi gusse se meri aur dekhne laga...

Bhay aur sharmindagi se thar thar kaanp rahi main neeche wale khane ke kone mein chipki huyi badi mushkil se najre utha kar Sandeep ki aur dekhti huyi boli..,"Wwwo.. chooha....!"

Pinky ke chehre par mere aur Sandeep ke liye glani ke sapast bhav jhalak rahe the.. Achanak usne jhapatta maar kar Sandeep ke hath se kitab chheeni aur bahar bhag gayi......

"Yye... ye kya kiya tumne?" Sandeep gusse se daant peesta hua chillaya.....

"Wwo.... wo.. upar se chooha kood gaya tha.... mere upar...!" Mujhe ahsaas tha ki maine kya kar diya hai.. ab main Sandeep se bhi najrein nahi mila pa rahi thi... chupchap bahar nikali aur apna kameej pahan kar khadi khadi rone lagi.....

"Tumhe shayad andaja bhi nahi hoga ki tumne kya kar diya... ab baat shikha tak jaye bina nahi rahegi... Ek choohe se darkar.. tumne ye.... shit!.. niklon yahan se jaldi..." Sandeep ne munh fer kar kaha aur apne hi hathon se apna chehra nochne laga......

Meri kuchh bolne ki himmat hi na huyi... Khud hi apne aansoo pounchhe aur apni bra aur panty ko apni salwar mein taang li .....fir shawl audhi aur be-aabru si hokar uske ghar se nikal gayi....

--------------------------------

Main wahan se seedhi Meenu ke ghar hi gayi... Pinky ka chehra tamtamaya hua tha aur Meenu uss'se poochh rahi thi..,"Bata na kya hua?"

Main chupchap jakar charpayi par baith gayi... Mujhe bhi itni chup dekh kar Meenu ne poochh hi liya...,"Had ho gayi.. Chhota sa kaam karwaya tha.. aate hi munh fula kar baith gayi.. aur ab tujhe kya ho gaya...? Tum dono ki ladayi huyi hai kya?"

"Nahi didi.." Maine uss'se najrein milaye bina hi soona sa jawaab diya aur fir Pinky ki aur dekh kar boli," Ek minute bahar aa ja Pinky... Tujhse kuchh baat karni hai...!"

Pinky ne mujhe ghoor kar dekha.. par kuchh boli nahi.. aankhon hi aankhon mein mujhe gali si dekar wo fir se ek taraf dekhne lagi.....

"Sun toh ek..." Maine itna hi kaha tha ki Pinky gusse mein dhadhakti huyi boli..,"Mujhse baat karne ki jarurat nahi hai tujhe... Samajhi..?"

"aisa kya ho gaya...? Jab tu yahan se gayi thi tab toh sab theek tha... tum bahar mile ho kya kahin... Raste mein...?" Meenu aashankit hokar boli....

Ab jawab toh dono ke hi paas tha... par bolti bhi toh kya bolti.... Maine Meenu ki baat ko ansuna kar diya aur ek baar fir dheemi larajti huyi aawaj mein boli,"Pinky plzzz.. ek baar meri baat sun le... fir chahe kuchh bhi bol dena.. kisi ko bhi...!"

Pinky ne iss baar bhi meri baat ko ansuna kar diya....

Meenu ko shayad ahsaas ho gaya ki maamla kuchh jyada hi personal hai....,"Theek hai.. tum apna jhagda niptaao.. main upar jakar aati hoon...."

Meenu ke jate hi Main apni sochi huyi baat par aa gayi..," Tujhe pata hai Pinky..? Sonu ka fone Dholu ke paas hai...!"

Pinky ki aankhon mein hulke se aascharya ke bhav aaye.. par jitni jaldi aaye the.. utni hi jaldi wo gayab bhi ho gaye.....

"Meri baat toh sun le ek baar..." Main jakar jaise hi uske saamne baithi.. usne apna munh fer liya... par maamla ab thoda sa shant laga.. Shayad wah Sonu ke mobile ke baare mein jaan'ne ko utsuk ho gayi thi...

"Wo main usko mobile loutane gayi thi... wo wahan jabardasti karne laga...!" Maine ulti taraf se kahani sunani shuru kaar di...

"Kounsa mobile..? Tere paas kahan se aaya...?" Pinky ki baat mein gussa kum aur utsukta jyada hona ye baat sabit kar raha tha ki usko baat sun'ne mein dilchaspi hai....

"Tu poori baat sunegi, tabhi bataaungi na... meri taraf munh toh kar le...!" Maine pyar se uske gaalon par hath laga kar uska chehra apni taraf ghuma diya... Meri aankhon se aankhein milte hi usne najrein jhuka li...,"Bata!"

"Wo uss din hum Shikha didi se milne gaye the na... toh tujhe yaad hai mujhe dholu ne dusre kamre mein bulaya tha....?" Maine kaha...

"Haan... toh?" Usne upar... meri aankhon mein dekh kar poochha....

"Wo.. bhi aise hi bakwas kar raha tha.. Sandeep ki tarah.. par maine saaf inkaar kar diya... Tujhe toh pata hi hai 'wo' kaisa hai....! Usne mujhe dara dhamka kar mere hath mein ek mobile pakda diya... kahne laga mujhe tumse kuchh jaroori baat karni hain... Main darr gayi thi.. isiliye maine apne paas fone chhipa liya tha.... Aaj 'uss' inspector ka no. iss par aaya toh main darr gayi.. Jaroor usne 'Sonu' ka no. hi try kiya hoga....!" Maine kaha.....

"Par 'Sonu' ka phone Dholu ke paas kaise aaya... ?" Pinky dimag lagane ki koshish karti huyi boli....

"Wahi toh..! main bahut darr gayi thi....! Isiliye yahan se seedhi dholu ko wo fone wapas dene gayi thi... 'wo' toh mila nahi.. maine Sandeep ko fone dekar sab kuchh bata diya.... Mere dare huye hone ka faayda uthakar Sandeep ne mujhe wahin pakad liya... Maine usko mana kiya toh kahne laga ki 'wo' tumhe aur gaanv walon ko bata dega ki Sonu ka fone mere paas hai...!"

"Kamina.. kutta...!" Pinky ne hamesha uski juban par chadhi rahne wali do gaaliyan Sandeep ko di aur fir boli," Fir...?"

"Fir kya?" Maine kahkar sir jhuka liya....

"Kyaaaa? Usne tumhare sath 'wo' kar diya?" Mere chehre ke bhavon ko padhti huyi Pinky aascharya se boli....

"Chhod na ab..?" Main uska dhyan hatane ke iraade se boli..," Achchha hi hua.. tu wahan chali gayi.. tujhe bhi uski asliyat pata chal gayi... shayad main apne aap 'ye' bhi baat nahi kah paati.. aur 'wo' bhi ki Sonu ka mobile Dholu ke paas hai...." Maine apne aap ko saaf saaf bachane ki koshish ki...

"Chal... didi ko batate hain...!" Pinky ne kaha....

"Pls... Sandeep wali baat mat batana...!" Maine usko manane ki koshish ki....

"Kya no. tha wo.." Achanak Meenu ko darwaje ki aad se hamare saamne aate dekh hum dono uchhal pade... Shayad usne sab kuchh sun liya tha...!

"Maine taatkalik sharm se apna sir jhuka liya.. Par Meenu ne Sandeep ke baare mein koyi sawaal nahi poochha....

"Kya no. tha..? batati kyun nahi...?" Meenu aakar mere hath par hath rakh kar boli...

"Mujhe no. nahi pata didi.. par uss par inspector ki call aayi thi...." Maine kaha...

"Ab kahan hai fone?" Meenu ne poochha...

"Wo..wo main wapas de aayi....!" Maine kaha....

"Ek minute mein aati hoon..." Meenu ne kaha aur upar bhag gayi... kuchh der baad wapas aakar boli..," Sonu wala no. toh band pada hai....

"Haan didi.. fir toh pakka wahi no. hai... Maine yahan se jane se pahle hi usko off kiya tha.... Par... aapko uss no. ka kaise pata.....?" Maine poochha....

"Wwo..." Meenu ne ek baar Pinky ki aur dekha aur fir thodi der chup rah kar bolne lagi...,"Tarun ne mujhe 'wo' no. de rakha tha.. ek aadh baar uske paas ghar se fone karne ke liye... 'wo' aksar Sonu ke sath hi rahta tha na.... usi ne bataya tha ki 'ye' sonu ka special no. hai... Uss no. ka kisi aur ko nahi pata.....!"

"Special matlab...?" Maine utsukta se poochha....

"Pata nahi.. 2 no. honge uske paas.. shayad.. par 'wo' no. kisi aur ke paas nahi tha.. Tarun kahta tha....!" Meenu boli...

"Par usne Sonu ka no. kyun diya... uske paas toh apna mobile tha na...!" Maine kaha....

"Pahle nahi tha... Usne baad mein liya tha apna!" Meenu ne jawaab diya.....


"Ohh.. achchha..!" Maine sir hilate huye kuchh socha aur fir boli," Par Sonu ka no. Dholu ke paas kaise aaya..? aur Sonu kahan hai...?"

"Ab kya pata..! Meri toh kuchh samajh mein nahi aa raha... Man... wwo inspector ke paas fone karein?" Meenu boli...

"Rahne do didi.. baar baar fone karna achchha nahi lagta.. Kal 'wo' School mein aayenge toh hum bata denge...!" Pinky ne hamari baaton mein hastakshep kiya...

"Theek hai... tum bata dena.. ek hi baat hai..." Meenu ke chehre par bolte huye mayoosi si jhalak aayi.. fir achanak kuchh soch kar boli," Tu upar ja na Pinky.. thodi der..!"

Pinky ne turant apna chehra fula liya,"Main kahin nahi jaaungi didi... mujhe pata hai tum kya baat karne waale ho...!"

"Kya baat? arrey.. aisi kuchh baat nahi hai.. tu ja na ek baar!" Meenu chid kar boli...

"Nahi.. Main nahi jaaungi..." Pinky bhi adkar baith gayi...

Mere dimag mein bhi kafi der se ek baat ghoom rahi thi.. Maine 2 pal ruk kar socha ki Pinky ke saamne kahoon ya nahi... fir maine kah hi diya..,"Didi!"

"Haan..." Meenu Pinky ko ghoorte huye mujhse boli....

"Wwo... wo aap bata rahe the ki...." Main beech mein hi ruk kar Pinky ki aur dekhne lagi.....

"Tu thodi der ruk ja.... dekhti hoon ye kab tak hamare paas baithi rahti hai.. hum baad mein baat karenge...!" Meenu Pinky ko ghoorte huye boli....

Pinky khadi hokar gusse se pair patak'ne lagi..,"Mujhe nahi pata.. dono akele akele gandi baatein karte ho aur mujhe iss tarah bhaga dete ho jaise main gandi hoon... aane do mummy ko.. aaj dono ki pole kholoongi... kar lo baat..." Pinky ne kahte huye apni moti moti aankhon mein aansu bhar liye aur upar jane lagi...

Meenu ne bhag kar usko seedhiyon ke paas hi pakad liya...,"Sun toh.. aisi baat nahi hai mere pinku... aaja... aa na!" Meenu usko wapas kheench layi aur apni god mein bitha liya....

"Hai kyun nahi aisi baat...? aap hamesha mere sath aisa hi karte ho.. Main bhi toh Anju ki umar ki hoon.. mujhe sab baaton ka pata hai... Tum dono se samajhdaar hoon main!" Uski god mein baithi huyi Pinky Meenu ki aankhon mein aankhein daal kar boli...

"Achchha theek hai.. baithi rah.. bus!" Meenu ne uske gaalon se aansoo saaf kiye aur fir meri aur dekh kar boli," Sandeep ne aise kaise jabardasti kar li... tune usko kuchh bhi nahi kaha....?"

Maine turant apni najrein jhuka li... Mujhe lag nahi raha tha ki jis tarah se Pinky ko maine kuchh bhi kah diya tha.. unn baaton par Meenu ko vishvas hua hoga... Pinky sath na baithi hoti toh shayad main Meenu ko thoda sa sach bhi bata deti.. Par Pinky ke saamne... toh sach bolne ka matlab khud ko uski najron se girana hi tha...

"Chal chhod.. ab toh ho hi gaya.. par tune dhyan toh rakha hoga na?" Meenu meri asamanjhas ko jaan kar boli...

"Kis baat ka didi..?" Maine poochha....

"Wo.. Teri M.C. kab ki hai...?" Meenu ne poochha.....

"M.C. kya didi?" Main samajh nahi payi....

"Arey teri 'dates' kab aati hain...?" Usne dohraya....

"Wwo.. wo toh koyi 10 din ho gaye... kyun?" Maine poochha....

"Le... tu toh gayi fir... wo... tu samajh rahi hai na.. main kya poochhna chahti hoon..?" Meenu jhalla kar boli...

"Nahi... "Maine jaldi jaldi mein kah diya.. tabhi uski baat shayad meri samajh mein aa gayi," Haaan... isiliye toh main aapse ye poochh rahi thi ki....!" Kah kar main fir chup ho gayi....

"Kya? ... bol na!"

"WWo.. aap bata rahe the na... ki 'goliyan' aati hain....!" Maine najrein churate huye kaha....

"Hey bhagwaan... Andar hi?" Meenu gusse se boli..," Itni toh akal honi chahiye thi na.. had kar di yaar...!"

Main jawab deti bhi toh kya deti.. had toh ab paar kar hi chuki thi main... kuchh der wahan sannata chhaya raha.. fir mujhe bolna hi pada..,"Wo.. wo goli mil jayegi na?"

Pinky maamle ki najakat ko bhanp kar Meenu ki god se hati aur ek taraf baith kar hum dono ke chehron ko dekhne lagi...

"Wo toh 24 ghante ke andar leni hoti hai.... aur 'wo' ab milegi kahan se...?" Meenu jhalla uthi thi... shayad 'wo' dil se meri chinta kar rahi thi....

"Aap le aana na.. kal shahar se...!" Maine anunay se uski aankhon mein dekha...

"Main... tu pagal ho gayi hai kya?.. main jakar ye bolungi ki mujhe 'ipill' de do... main kahin se bhi shadi shuda lagti hoon kya?.. Na.. mere bus ka nahi hai.. jakar aise bolna....!" Meenu ne saaf saaf kah diya.. fir mere chehre ke runwase bhav padh kar boli," Main... main toh sirf itna kar sakti hoon ki kisi saheli ko bol doongi.. agar kisi ne lakar de di toh main le aaungi...."

"Ye.. 'ipill' kya hoti hai didi?" Pinky hamari ek ek baat ko pi rahi thi....

"Kuchh nahi... goli hoti hai ek.. uss'se 'bachcha' hone ka bhay nahi rahta.. ab jyada mat poochhna..." Meenu ke kaha aur chintit si hokar badbadati huyi upar chali gayi....

Meri aankhon ke saamne andhera sa chhata ja raha tha.... Samajh mein aa nahi raha tha ki kya karoon aur kya nahi.. mera waham itna badh gaya ki pate mein 'pani' hilne ki bhi aawaj hoti toh lagta jaise 'bachcha' ban raha hai... Ab kal goli aane ka bhi pakka chance nahi tha... 24 ghante ke andar nahi mili toh main kya karoongi....' sochte huye maine apna matha pakda aur subakne lagi...

"Ro mat Anju... uss 'kutte kamine' ko main chhodungi nahi!" Pinky ne mujhe santwana dete huye kaha....

"Uss'se kya hoga Pinky...!" Main subakte huye hi boli aur achanak sir utha kar boli..," Main Sandeep ko hi bol doon toh?... wahi lakar dega ab goli bhi.....!"

"Na...! Uss'se ab kabhi baat mat karna...." Pinky ne gussa ugalte huye kaha..," Iss'se achchha toh aap 'Harry' ko bol do...!"

"Harry?... Harry koun..?" Mujhe dhyan hi nahi aaya ki 'wo' kis Harry ki baat kar rahi hai....

"Arey.. 'wo.. Harish...! Uska yahi kaam hai... kya pata uske paas 'ipill' bhi mil jaye..." Pinky ne kaha....

"Wo.. jisne school mein camp lagwaya tha Dr. Malik ka...?" Maine theek hi andaja lagaya tha.....

"Haan... Uska 'dawaayiyon' ka hi kaam hai... Chal uske paas chalte hain... Uske paas nahi hogi toh bhi kahin se 'aaj' hi mangwa dega.....

"Par... par agar usne kisi ko bol diya toh?" Maine apne darr ki wajah usko batayi....

"aise kaise bol dega? Hum mana kar denge toh... chal.. abhi chalte hain.. didi ko bol kar...!" Pinky ne kaha aur khadi ho gayi.....

"Par... fir bhi.. tumhara wahan jana theek nahi hai... kya sochega 'wo'? ye goli koyi sirdard bukhar ki thode hi hai jo 'wo' tumhe de dega aur kisi ko batana bhool jayega...!" Meenu ko humse jirah karte kareeb 15 minute ho chuke the...

"Nahi batayega na 'wo' didi.. mujhe pata hai!" Pinky jor dekar boli....

"achchha... kya pata hai tujhe? jara hamein bhi bata de...! 'tu' janti nahi inn ladkon ki fitrat ko... inhe toh bus ek bahana chahiye.. ladki ki kamjori mili nahi ki seedhe 'ghatiyapan' par aa jate hain... bhool gayi Tarun ko....?" Meenu jara teekhe tewar mein boli....

"Par.. didi... Anju ko dawayi bhi toh chahiye na.. ! aur kisi ko bol bhi nahi sakte...!" Pinky ki aawaj thodi dheemi ho gayi...

"Achchha.. ek kaam karna.. uske paas tum'me se ek hi jana... Anju.. tu hi chali jana.. ye ghar ke bahar khadi ho jayegi... theek hai...?" Meenu ne aakhirkaar hathiyaar daal hi diye....

Mujhse pahle hi Pinky ne jawab de diya..," Haan.. theek hai.. chal Anju.. jaldi!" Pinky ne kaha aur mujhe neeche kheench layi....

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Hum 15 minute mein hi uss ghar ke paas pahunch gaye jahan Harry kiraye ke makaan mein rahta tha.. Hamein door se hi Harry ghar ke bahar hi doston ke sath baitha dikhayi de gaya....

"Uff.. iske sath toh gaanv ke aur bhi ladke hain... ab kya karein...?" Main chalte chalte dheere se fusfusayi....

"seedhi chal.. thodi aage chalkar wapas aa jayenge... kya pata tab tak chalein jaayein..." Pinky ne kaha aur hum seedhe unse aage nikal gaye....

"Oye Harry.. Dekh.. Teri Gulabo! aaj uss taraf ka chand idhar kaise nikal aaya... ha ha ha... aur uske sath ras-malayi bhi hai.. haye kya mast kulhe hain yaar...!" Unse aage nikalte hi mere kaano mein kisi ladke ke ye bol padey... meri samajh mein nahi aaya tha ki 'usne' Gulabo kisko kaha aur ras-malayi kisko... par mujhe vishvas tha; 'wo' jaroor mere hi kulhon ki taareef mein aahein bhar raha hoga...

"Ye ladke kitne 'bakwas' hote hain.. hai na Anju!" Shayad Pinky ne bhi jaroor 'wo' comment suna hoga....

"Haan.." Maine mari si aawaj mein uski baat ka samarthan kiya... 'ye' yahan se nahi gaye toh...?" Maine poochha....

"Kya karein..?" Pinky ne kuchh sochte huye bola..," Haan.. ek idea hai...!"

"Kya?" Maine utsukta se poochha....

"Hum 'usko jakar bolte hain ki bukhar ki dawayi chahiye... 'wo' lene andar jayega toh hum usko bol denge....!" Pinky ne khade hokar kaha...

"Haan.. ye sahi hai....!" Main uska idea sunkar khush ho gayi....

"Chal.. chalte hain....." Pinky ne kaha aur hum 'wapas' mud gaye....

Hamein wapas unki taraf aate dekh sab ladkon ki aankhein achanak cheel kouwon jaisi khil gayi... Jaise hamare 'maans' ko khane ke liye vyakul ho uthe hon... par kya karte.. Harry ke bina uss din gujara toh tha nahi... Hum jakar ladkon ke saamne khade ho gaye....

Hum Dono mein se jab lagbhag 10 second tak aawaj nahi nikli toh 'ladkon' mein dabe sur mein 'khir khir' shuru ho gayi... Maine hadbada kar Pinky ke munh ki aur dekha... Pinky turant bol padi..,"Wo.. bukhar ki tablet mil jayegi kya?"

"Kisko ho gaya...?" Harry ne apni chair se khade hokar bade 'pyaaaaar' se poochha...

"Wwo.. Mujhe hi..." Pinky ne achkacha kar jhooth bola....

"Haan.. haan.. kyun nahi....Ek minute.. Main abhi laya..." Kahte huye Harry ne mano apni sari vinamrata ko hi 'Pinky' par nichod diya... aur jane laga...

"Nahi nahi.. main sath hi aa rahi hoon...!" Pinky ne kaha aur uske pichhe ho li... Main ye sochkar wahin khadi rahi ki Meenu ne ek ko hi jane ko kaha tha....

"Teri toh life ban gayi pyare! jaldi aaja.. party ho gayi aaj toh.." Mere paas khade ladkon mein se ek ne kaha aur iss tarah seeti bajane laga jaise......

"Kallooooo beta...."Ladkon mein se ek ne kaha... main unse thodi door hatkar apna munh fer kar khadi ho gayi thi...

"Saale teri maa ki... tareke se main tera chacha lagta hoon.. .. dekh bhal kar bola kar.. nahi toh maar loonga yahin ulta daal ke... mera toh pahle hi kaabu mein nahi hai.. 'aisa 'piece' dekh ke... Sala india mein kanoon nahi hona chahiye tha.. he he..!" Ek ki aawaj mujhe sunayi di.. mujhe aise jumle sun'ne ki aadat thi.. main samajh gayi thi ki kis 'piece' ki baat ho rahi hai...

"Abey wahi toh main bol raha hoon... 'saale' tu 'kharbooje' toh dekh ek baar... 'Swift' ke pichhwade ki 'tarah' mast 'golayi' hai... ishhhhhhhhh..."

Tabhi koyi teesri aawaj mujhe sunayi di...," Chhodo na yaar.. Harry ka toh lagta hai aaj 'kaam' ban gaya... Akeli gayi hai.... Mujhe toh pakka...." Tabhi 'wo' ekdum chup ho gaya.... Mujhe harry ki aawaj sunayi di...,"Chabi padi hogi yahan... dekhna..."

Maine palat kar dekha.. Pinky uske pichhe hi thodi door khadi thi.... Harry ne chabi uthayi aur wapas chal diya... Iss baar main bhi wahan khadi na rah saki.... Main bhi Pinky ke sath ho li....






आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj






















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