Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--23

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बाली उमर की प्यास पार्ट--23


गतान्क से आगे................

" हांजी.. बुखार कैसे हो गया पिंकी? एग्ज़ॅम तुम्हारे वैसे चल रहे हैं.. ध्यान रखा कर ना सेहत का...!" हॅरी पिंकी की आँखों में देख मंद मंद मुस्कान फैंकता हुआ बोला... और दो डिब्बे उतार कर उनमें से गोलियाँ ढूँढने लगा...

"ववो.. बस ऐसे ही...!" पिंकी ने अपनी बात अधूरी छ्चोड़ी और मेरे चेहरे की और देखने लगी.. मैं क्या बोलती?

"ये लो.. अभी के लिए तो ये 3 खुराक दे रहा हूँ... कल दोपहर तक आराम ना लगे तो पेपर के बाद डॉक्टर को ज़रूर दिखा लेना...!" एक पूडिया में दवाई बाँध कर देता हुआ 'वो' बोला....

पिंकी ने चुपचाप दवाई हाथ में पकड़ी और मेरी कोख में कोहनी मार कर मुझे बोलने का इशारा किया... पर पता नही क्यूँ.. मैं उसके शालीन व्यवहार को देख कर इतनी दब गयी कि मेरी ज़ुबान ही ना निकली.... गाँव का डॉक्टर तो एक नंबर. का हरामी था... उसने मेरे साथ उस'से कुच्छ दिन पहले ही इलाज के बहाने बहुत ही कामुक हरकत की थी... मैं सोच रही थी कि ये भी कुच्छ ना कुच्छ तो ज़रूर ऐसा करेगा... आख़िर जब बुड्ढे डॉक्टर ही इलाज के बहाने हाथ सॉफ कर लेते हैं तो 'वो' तो गबरू जवान था.... पर ना.. उसने तो 2 मिनिट से पहले ही गोलियाँ पिंकी के हाथ में पकड़ाई और टेबल के इस तरफ आ गया....

"क्या बात है?" उसके खुद दरवाजे के पास जाने पर भी हम अंदर ही खड़े रहे तो उसने हमारी तरफ अचरज से देखा और वापस आ गया....," बोलो?"

"कककुच्छ नही... ववो... ययए.. तू बोल दे ना!" हकलाती हुई पिंकी अचानक रोनी सूरत बना कर मेरी तरफ देखने लगी....

"ऐसी क्या बात है यार..?" हॅरी मन ही मन हंसता सा हुआ वापस टेबल के उस पार चला गया..,"ओके... बैठो..!"

मैने पिंकी की तरफ एक बार देखा और हॅरी के सामने टेबल के दूसरी तरफ वाली चेर पर बैठ गयी.. मजबूरन पिंकी को भी बैठना पड़ा.....

"कुच्छ बोलॉगी या मुझे खुद ही अंदाज़ा लगाना पड़ेगा...!" हॅरी ने हंसते हुए कहा.. वो अचानक कुच्छ ज़्यादा ही खुश नज़र आने लगा था....

"ववो...." पिंकी बार बार कोशिश करके अपनी ज़ुबान को शब्द देने का प्रयास कर रही थी... पर मैं उसकी हालत समझ सकती थी.. जब मेरे मुँह से ही कुच्छ नही निकल रहा था तो 'वो' बेचारी कैसे बोलती...

"बोल भी दो अब.. तुम ऐसे बैठी रहोगी तो मुझे हार्ट अटॅक आ जाएगा.. सच बोल रहा हूँ.. तुम्हे नही पता मेरा दिमाग़ कहाँ कहाँ घूम रहा है...." हॅरी इस बार नर्वस होकर बोला....

"ववो..." पिंकी काफ़ी देर से टेबल के किनारों को अपने नाखूनो से खुरचे की कोशिश कर रही थी..,"आई... आई पिल....."

"पिंकीईईईईई?" हॅरी के चेहरे से मुस्कान यूँ गयी जैसे गढ़े के सिर से सींग... उसके चेहरे का रंग यूँ बदल गया जैसे 'आइ पिल' 'आइ पिल' ना होकर कोई आटम बॉम्ब हो...," कुच्छ देर जड़वत सा उसके चेहरे को घूरता हुआ हॅरी बोला," ययए क्या कह रही हो पिंकी....?"

"ना ही पिंकी कुच्छ बोली और ना ही मैं... मुझसे तो अपना सिर ही नही उठाया जा रहा था जब तक की अचानक हॅरी ने फफक कर जाने क्या कहानी बनानी शुरू कर दी...

"तुम्हे पता है पिंकी...." हॅरी का चेहरा ऐसा बना हुआ था जैसे अब रोया और अब रोया.... अपनी कही हर लाइन के बाद 'वो' गहरे दुख में डूबी हुई लाबी साँस ले रहा था... कभी कभी बीच में भी... मैं उसके चेहरे की तरफ देखने लगी थी.. पर पिंकी का सिर अब भी झुका हुआ था... हॅरी की आँखें पता नही क्यूँ नम होती जा रही थी..," एक लड़की थी... बहुत प्यारी... जब भी उसको देखता... जितनी बार भी देखा... मुझे उसका चेहरा अपना सा लगता था.... उसकी मुस्कान से भी मुझे उतना ही प्यार था.. जितना उसके गुस्से से.... उसको देख कर ऐसा लगता था जैसे..... रंग बिरंगे चेहरों से सजी इस दुनिया में 'वो' एक अलग ही चेहरा है... एक नन्ही काली जैसा नादान.... एक फूल जैसी मासूम... और.. और एक बच्चे की तरह शैतान.. पर.. उसकी नादानी में; उसकी मासूमियत में.. और.. उसकी शैतानियों में.. जाने क्या बात थी कि जितनी बार भी उसको देखता.. जितनी बार भी उसके बारे में सुनता... उसके लिए मेरा प्यार बढ़ता ही जाता.... पर कभी तरीके से बोल नही पाया.. क्यूंकी..... क्यूंकी मुझे डर लगता था..... डर लगता था कि अगर 'जवाब' में इनकार मिला तो क्या होगा!.... मेरे दोस्त.. हमेशा मुझे कहते थे.. कि मुझे अपने दिल की बात दिल में नही रखनी चाहिए... बोल देनी चाहिए... गुलबो को.. कहीं ऐसा ना हो की फिर देर हो जाए.... पर मुझे विश्वास था.. अपने प्यार पर... अपने सच्चे प्यार पर... मुझे विश्वास था.. कि 'वो' इतनी भी नादान नही हो सकती कि समय से पहले ही रास्ते से भटक जाए... समय से पहले ही....." अचानक हॅरी चुप हो गया और उसने अपनी आँखें बंद कर ली.. आँखें बंद होते ही उनमें से 2 आँसू निकल कर आए और उसके गालों पर ठहर गये.... मैं हैरानी से उसकी और देख रही थी... मेरी समझ में माजरा आ ही नही रहा था...

अचानक पिंकी अपनी चिर परिचित पैनी आवाज़ में बोली," मैने क्या किया है...?"

उसके बोलते ही हॅरी ने आँखें खोल दी.. उसकी आँखें हल्की हल्की लाल हो गयी थी.. बोला तो ऐसा लगा की खून का घूँट भरकर बोला हो," ना! तुमने कहाँ कुच्छ किया है पिंकी... आज कल तो सब जगह ऐसा होता है... तुमने कहाँ ग़लत किया... ग़लत तो मैं था.. ग़लत तो मेरे विचार थे.. तुम्हारे बारे में!"

"ये... ये क्या बोल रहे हो तुम..." पिंकी उत्तेजित होकर खड़ी हो गयी..," तो तुम मेरे बारे में बोल रहे थे... ये सब... मैने कुच्छ नही किया सुन लो.. 'वो तो मुझे.... 'वो' तो किसी ने मँगवाई थी.. देनी है तो दे दो.. वरना अपना काम करो.. !"

"क्य्ाआ? तो क्या सच में तुमने... मतलब..." हॅरी की आँखों में फिर से वही चमक लौट आई.. हां.. थोड़ा शर्मिंदा सा ज़रूर लग रहा था..... बोलते हुए हॅरी को पिंकी ने बीच में ही टोक दिया," म्म..मैं तुम्हारा 'सिर' फोड़ दूँगी हां!" गुस्से से पिंकी ने कहा और जाने उसके दिमाग़ में क्या आया.. वह हँसने लगी....

"सॉरी... एक मिनिट... " हॅरी ने बॅग में से एक बड़ा सा पत्ता निकाला और उसमें से एक छ्होटी सी गोली निकाल कर दे दी..,"ये लो..... सॉरी.. मैं बस यूँही सोच गया था...."

"चल अंजू.." पिंकी ने जैसे उसके हाथ से गोली झटक ली हो..," मेरे बारे में ऐसा सोचता है..." पिंकी बड़बड़ाई और मेरा हाथ पकड़ कर बाहर निकल आई...

"पिंकी... हमने उसको पैसे तो दिए ही नही....." मेरी खुशी का कोई ठिकाना नही था.. मेरी चिंता दूर जो हो गयी थी.....

"हां.. पैसे दूँगी उसको... अगर तेरा काम ना होता तो में 'ये' गोली उसी को खिला कर आती हां!" पिंकी गुस्से से धधकति हुई बोली...

"अरे... इसमें उसकी क्या ग़लती है... तुम ऐसी चीज़ बिना बात सॉफ किए माँगोगी तो कोई भी ये बात सोच लेगा...." मैने उसको समझाने की कोशिश की....

"वो बात नही है यार!" पिंकी का मूड उखड़ा हुआ था....

"तो.. और क्या कह दिया उसने...?" मैं असमन्झस में पड़ गयी....

"अच्च्छा.. तूने सुना नही क्या? क्या प्रेमलीला छेड़ के बैठ गया था अपनी...." पिंकी मेरी तरफ देख कर तरारे से बोली....

"ओह्हो.. फिर उसने तुझे तो कुच्छ नही कहा ना...."

"तुझे नही पता... 'वो' सारी बकवास मेरे बारे में ही कर रहा था... उसने पहले भी मुझे एक दो बार गुलबो कहा है... मैने मना कर दिया था कि मेरा नाम ना बिगाड़े.... !" पिंकी बोली....

"पर... तू उस'से लड़ाई करके आ गयी... उसने किसी को बोल दिया तो...?" मैं आशंका से बोली....

"नही बोलेगा वो!" पिंकी ने आत्मविश्वास से कहा.....

"क्यूँ? तुझे कैसे पता....?"

"इतना भी बुरा नही है... हे हे हे..." पिंकी हँसने लगी.....

"तू उसको इतना कैसे जानती है?" मैने हैरत से पूचछा.. पिंकी शर्तिया तौर पर उन्न लड़कियों में से नही थी जो हर जाने अंजाने लड़के का रेकॉर्ड लेकर घूमती हो.. हरीश के बारे में तो मुझे भी सिर्फ़ इतना ही पता था कि 'वो' अच्च्चे ख़ासे घर का लड़का था.. और करीब 3 साल से हमारे गाँव में किराए पर रह रहा था.. अपने दवाइयों के 'काम' के अलावा समाज सेवा में उसकी काफ़ी रूचि थी, इसीलिए जल्द ही उसको गाँव और बाहर के बहुत से लोग जान'ने लगे थे....

"क्या? मैं 'इतना' क्या जानती हूँ...?" पिंकी ने चलते चलते पूचछा...

"आ..आन.. मेरा मतलब तुझे कैसे इतना विश्वास है कि 'वो' किसी को कुच्छ नही बताएगा....?" मेरा सवाल फ़िज़ूल नही था...

"छ्चोड़.. घर आ गया है.. बाद में बात करेंगे... ले.. ये गोली खा ले अभी... उसकी बकवास मीनू को मत बताना...." पिंकी ने घर में घुसने से ठीक पहले अपने हाथ में संभाल कर रखी हुई गोली मुझे पकड़ा दी......

मैं जल्दी से घर जाकर खा पीकर वापस पिंकी के घर आ गयी और हम दोनो अगले दिन के पेपर की तैयारी करने लगे......

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भगवान और 'संदीप' की दया से मेरा चौथा 'पेपर' भी अच्च्छा हो गया.. हालाँकि उसने मुझसे कोई बात नही की थी.. पर मैने आधे टाइम के बाद मौका देख कर खुद ही अधिकार पूर्वक अपनी आन्सर शीट उसकी ओर सरका कर उसकी शीट लगभग छ्चीन ही ली... उसने कोई प्रतिक्रिया नही दी और उतनी ही स्पीड से मेरी शीट में लिखने लगा.. जितनी स्पीड से 'वो' अपना पेपर खींच रहा था....

पेपर के बाद खुशी खुशी हम दोनो जैसे ही एग्ज़ॅमिनेशन रूम से बाहर निकले.. इनस्पेक्टर मानव को सादी वर्दी में ऑफीस के बाहर खड़ा पाकर मैं चौंक गयी..,"आए.. इनस्पेक्टर!" मैने पिंकी के कानो में फुसफुसाया....

"कहाँ?" उसने जैसे ही अपनी नज़रें उठाकर चारों और घुमाई.. उसको मानव दिखाई दे गया...

"क्या करें...? हम इसके पास चलें या नही..?" पिंकी ने असमन्झस में खड़ी होकर मेरी राइ लेने की सोची...

"वो बात नही बतानी क्या? ढोलू वाली...!" मैने कहा ही था की तभी मानव की नज़र हम पर पड़ी.. उसने इशारे से हुमको वहीं रुकने को कह दिया...

कुच्छ देर बाद ही स्कूल खाली हो गया... मेरे मंन में पहले पेपर के बाद ऑफीस में हुई मस्ती की यादें ताज़ा हो गयी... उस दिन भी मैं और पिंकी पेपर के बाद ठीक वहीं खड़े थे.. जहाँ आज!

"इधर आना एक बार..." मानव ने हमें बुलाया और फिर ऑफीस के अंदर झाँक कर बोला,"आओ.. बाहर आ जाओ!"

हमारे ऑफीस के दरवाजे तक पहुँचते पहुँचते मेडम के साथ 'वो' सर भी खिसियाए हुए से बाहर निकल आए... हम दोनो ने आस्चर्य से एक दूसरी की आँखों में देखा... '2 दिन से तो ये आ ही नही रहे थे... फिर आज कैसे?'

मेरे हाथ अपने आप ही सर और मेडम को नमस्ते कहने के लिए उठ गये.. पर पिंकी ने सिर्फ़ मानव को नमस्ते की.. 'सर' कह कर....

"हूंम्म... माथुर साहब... अब बोलो!" मानव ने 'सर' को घूर कर देखा....

"अर्रे यार.. जो बात थी.. मैं बता चुका हूँ.. आप क्यूँ खम्खा इस मामले को खींच रहे हो... मैं कोई गैर थोड़े ही हूँ.. आपके शहर का ही रहने वाला हूँ... शाम को बात करते हैं ना साथ बैठ कर.... 'कोठी' पर आ जाना..." सर ने टालते हुए कहा....

"क्यूँ? कोठी पर क्या है? यहाँ क्यूँ नही....!" मानव ने कुटिल मुस्कान उसकी और उच्छली... हम दोनो चुपचाप उनकी बातें सुनते रहे....

"अर्रे इनस्पेक्टर भाई साहब.. कामन सेन्स है.. यहाँ मैं आपकी 'वो' सेवा थोड़े ही कर सकता हूँ जो मेरे अपने घर पर हो जाएगी.. छ्चोड़ो भी अब.. जाने दो लड़कियों को...!" सर ने मानव के कंधे पर थपकी लगाकर कहा...

"तुम्हारे फ़ायडे के लिए ही बोल रहा हूँ.... तुम मुझे यहीं सब कुच्छ बता दो तो अच्च्छा रहेगा.... 'वरना' शाम को थाने में तुम्हे 'वो' इज़्ज़त नही मिलेगी जो यहाँ दे रहा हूँ.. समझ रहे हो ना बात को....!" मानव ने गुर्राते हुए कहा...

"देखो इनस्पेक्टर.. मुझे इस बारे में कुच्छ नही पता.. मुझे जो बोलना था मैं बोल चुका हूँ...." सर भी मानव की टोन देख कर खिज से गये....

मानव ने तुरंत मेरी और देखा..,"हां अंजलि.. क्या बताया था मेडम ने तुम्हे.. अगले दिन...?"

मैने सकपका कर मेडम की ओर देखा और अपना सिर झुका लिया...," ज्जई.. सर.. मेडम ने बताया था कि हमारे जाने के बाद तरुण और 'सोनू' दोनो यहाँ आए थे.... उन्होने सर से अकेले में कुच्छ बात की थी... मेडम कह रही थी कि सर में और उन्न दोनो में 'उस' दिन वाली बात को लेकर कुच्छ समझौता हुआ था...!"

"और उसी दिन तरुण को मार दिया गया.. सोनू गायब हो गया.. है ना...?" मानव ने कन्फर्म किया....

मैने सिर झुकाए हुए ही 'हां' में हिला दिया... तभी मुझे 'सर' की आवाज़ सुनाई देने लगी..,"क्या यार.. तुम 'इस' रंडी की बात पर भरोसा करोगे.. साली कुतिया.. तीन बार तो 'डी.ई.ओ. बन'ने के चक्कर में मेरी कोठी पर 'रात' बिता चुकी है.. एम.पी. साहब के साथ... और ये दोनो... इनको भी कम मत समझना.." मैने नज़रें उठा कर 'सर' को देखा.. वो हमारी ओर देख कर बातों को चबा चबा कर बोल रहा था...," ये दोनो भी पूरे मज़े से........."

सर की बात पूरी नही हो पाई.. मानव का एक झन्नाटेदार थप्पड़ 'सर' के गाल पर पड़ा और उसका सर दीवार से जा टकराया...

सर लड़खदाया और फिर सीधा खड़ा होकर अपने गाल को सहलाने लगा.. उसके साँवली सूरत पर भी 'तीन' उंगलियों के निशान सॉफ दिखाई दे रहे थे.. जैसे वहाँ खून इकट्ठा हो गया हो..," तुम मुझे जानते हो इनस्पेक्टर.. फिर भी..." सर की बाईं आँख 'लाल' हो गयी थी..

"अभी कहाँ... अभी तो मुझे बहुत कुच्छ जान'ना है... शाम को चलकर 'थाने' आ जाना.. वरना... 'ये' सिर्फ़ ट्रैलोर था...." मानव गुर्रा रहा था....

"देखो इनस्पेक्टर साहब!.. मैं बता रहा हूँ... 'वो' इनको छ्चोड़ कर वापस आए थे... उन्होने मुझसे 'ये' कहा था कि '2' और लड़कियों का ऐसे ही पेपर करवाना है... और 'एक' दिन 'इसको.." उसने पिंकी की ओर इशारा करते हुए कहा," इसको पेपर टाइम के बाद रोक कर रखना है.... कैसे भी करके... उसने कहा था कि 'वो' दो लड़कों को और साथ लेकर आएँगे.. और इसका बलात्कार...." कहकर सर अपने गाल को सहलाने लगे...

मानव ने एक गहरी साँस ली..," और.....?"

"और.. उन्होने मुझसे 1 लाख रुपए माँगे थे.. मोबाइल क्लिप दिखा कर 'वो' मुझे ब्लॅकमेल करना चाह रहे थे...." सर ने उगल दिया....

"ओह्ह.. इसीलिए तुमने तरुण को मरवा दिया... और शायद सोनू को भी...!" मानव तमतमाया हुआ था....

"नही इनस्पेक्टर... मुझे इस बात के बारे में कुच्छ नही पता... मैं तो उनको 1 लाख रुपए दे ही देता... मेरे लिए एक लाख रुपैया कोई बड़ी बात नही है..."

"शाम को थाने आ जाना..." मानव ने कहा और हमारी ओर घूम गया..," तुम जाओ अब..."

मैं कुच्छ बोलने ही वाली थी की पिंकी ने मेरा हाथ पकड़ कर खींच लिया... स्कूल के मैं गेट पर जाते ही मैं बोली," वो ढोलू वाली बात भी तो बतानी है...!"

"नही छ्चोड़... मीनू फोन पर ही बता देगी.. मुझे तो इस'से डर लग रहा है... कितना खींच के दिया उसको..." पिंकी हँसने लगी....

"तो.. हमें थोड़े ही कुच्छ कहेंगे...!" मैं बोली...

"क्या पता... उस दिन 'स्कूल' वाली बात पूच्छने लगे तो...?" पिंकी ने मुझे 'बेचारी' सी नज़रों से देखा... तभी मानव ने हमारे पास आकर अपनी बाइक रोक दी..," यहाँ क्यूँ खड़ी हो...?"

हम दोनो सकपका गये.. तभी मेरे मुँह से अचानक निकल गया..," हमे... हमे अकेले जाते हुए डर लग रहा है....!"

मानव हँसने लगा..," आओ.. बैठो.. मैं छ्चोड़ देता हूँ..."

मैने पिंकी की और घबराकर देखा.. उसका पता नही था बाद में क्या का क्या बोलने लग जाए.. पिंकी ने हताशा में मुझे बैठने का इशारा किया... हम दोनो मानव के पिछे बैठे और गाँव की तरफ चल पड़े......

जैसे ही मानव ने गाँव के स्टॅंड पर बाइक रोकी.. पिंकी फटाक से उतर गयी.. सच कहूँ तो मेरा उतरने का मन नही कर रहा था.. उसकी फौलादी पीठ से सटी मेरी एक चूची मुझे 'कल' वाला रंग बिरंगा अहसास करा रही थी.... सारी रात दुखती रही मेरी योनि अब एक बार फिर मचलने लगी थी.. उसका दर्द कम होते ही विरह वेदना से वो एक बार फिर तड़प उठी थी... एक बार में ही उसको 'मूसल' की लत लग गयी थी शायद... अब गुज़ारा होना मुश्किल था...

मुझे दुखी मन से उतरते देख कर मानव ने पूच्छ लिया..," घर यहाँ से ज़्यादा दूर है क्या?"

"नही.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी तपाक से बोली... तो मैं कुच्छ बोल ना सकी... और उसके साथ चल पड़ी...

"एक मिनिट...!" मानव की आवाज़ आते ही हम घूम गये..

"एयेए... वो घर पर कौन कौन हैं...?" मानव ने अपने माथे को खुजाते हुए अपनी आँखों की हिचकिचाहट को छिपा लिया...

"पता नही.. सभी होंगे!" पिंकी धीरे से बोली....

"मैं घर ही छ्चोड़ आता हूँ.. आओ बैठो.." मानव के कहते ही मैं बाइक की ओर वापस चल पड़ी....

"नही.. सर.. हम चले जाएँगे...!" पिंकी ने दोहराया....

"एक कप चाय में तुम्हारा दूध ख़तम हो जाएगा क्या?" मानव खिसिया कर हँसने लगा....

पता नही मानव ने क्या सोच कर कहा और पिंकी ने क्या समझा.. पर मुझे तो जवान होने के बाद से ही 'दूध' का एक ही मतलब पता था.. मेरी चूचियो में झंझनाहट सी मच गयी...

पिंकी थोड़ी देर असमन्झस में वहीं खड़ी रही और फिर अपनी नज़रें नीची किए बाइक की और चल पड़ी... मज़ा आ गया!

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"अच्च्छा.. मैं चलता हूँ...!" मानव ने आनमने मंन से घर के अंदर झाँकते हुए कहा..

"नही सर... अब आ ही गये हैं तो चाय पीकर जाइए ना... 'वो' आपको कुच्छ बताना भी है..."घर पहुँचने के बाद पिंकी की आवाज़ में आत्मविश्वास सा आ गया था.....

शायद मानव को तो कहने भर की देर थी.. बाइक तो उसने पहले ही बंद कर रखी थी.. पिंकी के बोलते ही उसने वहीं स्टॅंड लगाया और हल्का हल्का मुस्कुराता हुआ घर के अंदर चला आया... नीचे कोई नही था...

"मम्मी..." पिंकी ने सीढ़ियों की तरफ मुँह करके ज़ोर से आवाज़ लगाई....

"मम्मी पापा नही हैं.. शहर गये हैं... पेपर कैसा हुआ...?" उपर से नीचे आती मीनू की मधुर आवाज़ हमारे कानो में गूँजी... पिंकी ने कोई जवाब नही दिया.. और सीढ़ियों में खड़ी खड़ी मीनू को नीचे उतरते देखती रही...


"वो 'लंबू' आया था क्या स्कूल में.. इन्न्णस्पेक्टोररर्र मानव!" मीनू पर जाने कौनसी मस्ती चढ़ि थी.. 'इनस्पेक्टर' इस तरह बोला जैसे 'ट्रॅक्टर' बोल रही हो... पिंकी की सिट्टी पिटी गुम हो गयी.. उसके मुँह से तो आवाज़ ही ना निकली... और जैसे ही मीनू सीढ़ियों से उतर कर नीचे आई.. उसकी तो हालत ही पतली हो गयी..,"वववू.. ववो.." मीनू ने हकलाते हुए कुच्छ कहने की कोशिश की और बचने का सबसे आसान तरीका उसको 'वापस' उपर भागना लगा...

पर वो जैसे ही तेज़ी से पलटी... मानव ने उसको टोक दिया...,"आ.. सुनो!"

मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... अभी अभी नाहकार आई मीनू 'बला' की हसीन कयामत लग रही थी... 'वो' अपने गीले बालों को तौलिए में लपेटे आई थी.. जो अब खिसक कर उसके कंधे पर आ गिरा था... और पानी की बूंदे 'टपक' कर उसके मादक कुल्हों को यहाँ वहाँ से पारदर्शी करती जा रही थी...हल्क सलेटी रंग के 'लोवर' के अंदर उसके मादक कसाव और मस्त गोलाई लिए हुए 'नितंबों' को क़ैद किए हुए उसकी 'पॅंटी' के किनारे बाहर से ही सॉफ नज़र आ रहे थे... अलग से ही दिख रहे उसके कहर धाते नितंबों के बीचों बीच गहरी होती 'खाई' का कटाव थोड़ी डोर जाकर 'अंधेरे' में गुम हो रहा था.... मैने चोर नज़रों से मानव की ओर देखा.. उसकी नज़रें भी वहीं जमी हुई थी...

"ज...जी सर...!" मीनू के पलटते ही उसके 'लब' थिरक उठे... मुझे मीनू उस दिन से पहले कभी इतनी खूबसूरत नही लगी थी... या फिर शायद आज मैं उसको 'मानव' की नज़रों से पढ़ने की कोशिश कर रही थी... बहुत दीनो बाद आज पहली बार मीनू मुझे 'टॉप' में नज़र आई थी... उसकी मद भरी गोल गोल चूचियो से लेकर उसके कमसिन पेट तक 'टॉप' उसके बदन से चिपका हुआ था...उसकी मांसल जांघों के बीच तिकोने आकर में उसका 'योनि' प्रदेश और नीचे की तरफ 'भगवान' की अनुपम कृति...; अबला 'नारी' को मिला ताकतवर 'मानव' को अपनी उंगलियों पर नचाने का 'पासपोर्ट' ; 'उस' लंबवत 'काम चीरे' का हल्का सा अहसास उसके लोवर के बाहर से ही हो रहा था....

काफ़ी देर तक मंत्रमुग्ध सा 'मानव' अधीर होकर मीनू को देखता ही रहा.. पिंकी भी मीनू के पिछे खड़ी इस तमाशे को समझने की कोशिश कर रही थी.... कम से कम 'डरी हुई' तो मीनू को कह ही नही सकते थे... पिंकी शायद ये समझ नही पा रही थी कि 'वो' शरमाई हुई सी क्यूँ है...

मीनू एक बार फिर से थोड़ी तिर्छि होकर बुदबुदाई..," ज्जई...."

"ववो.. इस... इन्न्णस्पेकओर्रर्ररर मानव उर्फ लंबू का एक प्याला चाय पीने का मंन कर रहा है..." बोलते हुए मानव ने ज्यों की त्यों मीनू की नकल उतारी....

"ज्ज.. ज्जई.. नही.. ववो.. मतलब.. मैं....... लाती हूँ....!" बुरी तरह झेंप कर मीनू के बदन में उपर से नीचे तक कंपन सा चालू हो गया था... उसके मदमस्त अंगों में अचानक ही थिरकन पैदा हो गयी थी....

"म्‍मैई लाती हूँ दीदी... " पिंकी ने कहा और मीनू का जवाब सुने बगैर ही उपर भाग गयी... मीनू कंपकँपति आवाज़ में बोलती रह गयी.. ,"सुन तो....!"

"बैठो तो सही यार..!" मानव ने मुस्कुराते हुए कहा...

"ज्जई.." मीनू ने बहूदे तरीके से तौलिया अपनी छातियो पर डाला और मेरे पिछे छिप कर बैठ गयी.. उसके गोरे गालों की रंगत गुलाबी हो चुकी थी....

"मुझे पता नही था तुम मेरे पिछे से मुझे 'इतनी' इज़्ज़त देती हो.. 'लंबू'.. वाह.. क्या नाम दिया है...!" मानव ने हंसते हुए कहा...

"ज्जई.. नही.. ववो तो मैं.. यूँही बोल गयी थी.." मीनू ने मिमियाते हुए इतनी धीरे बोला की शायद ही मानव को उसका जवाब सुना होगा...

"अब मेरा कुसूर भी बता दो.. यूँ नाराज़ होकर छिप कर क्यूँ बैठ गयी हो..!" मानव की आवाज़ में उल्लास था.. कामना थी.. शरारत थी!

मैं मानव का मतलब समझ कर वहाँ से उठने लगी तो मीनू ने मुझे कसकर पकड़ लिया..,"नही.." मीनू की आवाज़ भी उसके काँपते हाथों की तरह लरज रही थी...,"मैं अभी आई.." मीनू ने हड़बड़ाहट में कहा और उपर भाग गयी...

"बड़ी प्यारी है.. है ना!" मानव ने उसके जाने पर कहा तो मैने अचकचा कर उसकी तरफ देखा... ज़ालिम ने मुझ पर तो एक बार भी ध्यान नही धारा..,"आ.. सीसी..कौन.. म्मीनू..? हहान...!" मैं हड़बड़ाहट से बोली और अपनी उंगलियाँ मटकाने लगी...

तभी पिंकी चाय और नमकीन लेकर आ गयी.. आकर मेरे पास खड़ी हुई और झुक कर मेरे कान में बोली..," वो.. स्टूल रख इनके आगे...!"

मैं चारपाई से खड़ी हुई और स्टूल सरका कर मानव के आगे रख दिया.. पिंकी ने चाय और नमकीन उस पर रख दी और मेरे पास आकर बैठ गयी... थोड़ी देर बाद ही मीनू भी नीचे आ गयी.. एक अलग ही पहनावे में.. सलवार कमीज़ थी.. पर 'वो' भी उसने छांट कर ही पहनी लगती थी.. मैने उसको उस दिन से पहले 'वो' सूट डाले नही देखा था.. शायद नया सिलवाया होगा... चुननी से अपनी छातियो अच्छि तरह ढके मीनू नज़रें झुकाए हमारे पास आकर बैठ गयी...

मानव लगातार टकटकी बाँधे मीनू को देख कर मुस्कुरा रहा था.. मैने मीनू के चेहरे की ओर देखा.. अब भी लज्जा से 'लाल' चेहरा रह रह कर तिर्छि नज़रों से मानव की ओर देखने की कोशिश करता और उसको अपनी ही और देखता पाकर वापस झुक जाता... हर बार मीनू थोड़ी सी पिछे भी सरक जाती...

"ववो.. आपको एक और बात बतानी थी सर...!" मुझसे दोनो की आँखों ही आँखों में मजबूत होती जा रही 'प्रेम-डोर' रास ना आई और मैं बोल पड़ी....

"क्या? बोलो!" मानव ने चाय की चुस्की लेते हुए कहा....

मैं कुच्छ सोच कर बोलती.. इस'से पहले ही मीनू ने बोलना शुरू कर दिया..,"ववो..सर्र..."

बोलती हुई मीनू को मानव ने फिर टोक दिया...,"नही.. लंबू भी अच्च्छा लगता है..!"

उसके बाद तो मीनू बोल ही नही पाई... और मुझे ही बोलना पड़ा..," सोनू का मोबाइल गाँव के एक लड़के के पास है सर..!"

"ढोलू के पास है ना!" मानव का जवाब सुनकर मैं स्तब्ध रह गयी..,"आ.. आपको कैसे पता?"

"और नही तो डिपार्टमेंट क्या हमें घास चराने के पैसे देता है....!" मानव ने अजीब से लहजे में कहा.. पर आगे कुच्छ बोला नही...

"कहीं.. सोनू को उसी ने ना...." मैं मानव को आगे ना बोलते देख कर बोली.. पर उसने मुझे बीच में ही टोक दिया...,"जाँच चल रही है... अभी कुच्छ कहना मुश्किल है.... वैसे... ढोलू भी कल से ही घर से गायब है.. पोलीस आई थी रात को उसको लेने.. पर वह पहले ही गायब हो गया था.. शायद किसी तरह से उसको भनक लग गयी थी....!"

"ओह्ह.. अच्च्छा सर!" मैने भगवान का शुक्रा मनाया मैं कल रात उसके घर नही थी..,"पर... आपको कैसे पता चला ये सब...?"

"और कोई खास बात हो तो बताओ!" मानव ने मेरी बात पर ध्यान नही दिया... मैं मन मसोस कर रह गयी.....," नही.. औ तो कुच्छ नही है...." मैने कहा....

"ठीक है.. अभी चलता हूँ..." मानव ने खड़ा होकर मीनू की ओर देखा...

मीनू चुपचाप खड़ी हो गयी.. जैसे ही मानव दरवाजे तक पहुँचा.. मीनू शरमाते हुए बोली..," सॉरी!"

"ठीक है.. शुक्र है सॉरी तो बोला..." मानव ने मुस्कुरकर कहा और बाहर निकल गया.....

मानव के जाते ही मीनू पिंकी पर पिल पड़ी... पिंकी को चारपाई पर गिराया और तकिये से उसको 'धुन'ना शुरू कर दिया....

"क्यूँ मार रही हो दीदी.... मैने क्या किया है...?" पिंकी हंसते हुए बोली....

मीनू जब हटी तो बुरी तरह हाँफ रही थी... उसके गालों की रंगत अब भी गुलाबी थी और चूचिया तेज़ी से उठ बैठ रही थी...,"मैने क्या किया है..." मीनू उसकी नकल उतार कर बोली..,"बता नही सकती थी कि नीचे मानव आया है....!"

पिंकी ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी...,"मानव नही दीदी.. लंबू इन्न्णस्पेक्टोररर्र.. बोलो... हे हे हे...."

"बोलूँगी.. तुझे क्या है... लंबू लंबू लंबू..." मीनू ने कहा और फिर बिना किसी के कुच्छ कहे ही शर्मा कर कंबल में घुस गयी.....


क्रमशः...............

Gtaank se aage...................
" Haanji.. Bukhar kaise ho gaya Pinky? Exam tumhare waise chal rahe hain.. dhyan rakha kar na sehat ka...!" Harry Pinky ki aankhon mein dekh mand mand muskaan fainkta hua bola... aur do dibbe utar kar unmein se goliyan dhoondhne laga...

"wwo.. bus aise hi...!" Pinky ne apni baat adhoori chhodi aur mere chehre ki aur dekhne lagi.. main kya bolti?

"Ye lo.. abhi ke liye toh ye 3 khurak de raha hoon... Kal dopahar tak aaram na lage toh paper ke baad doctor ko jaroor dikha lena...!" Ek pudiya mein dawayi baandh kar deta hua 'wo' bola....

Pinky ne chupchap dawayi hath mein pakadi aur meri kokh mein kohni maar kar mujhe bolne ka ishara kiya... Par pata nahi kyun.. main uske shaleen vyavhaar ko dekh kar itni dab gayi ki meri juban hi na nikli.... Gaanv ka doctor toh ek no. ka harami tha... Usne mere sath uss'se kuchh din pahle hi ilaaj ke bahane bahut hi kamuk harkat ki thi... Main soch rahi thi ki ye bhi kuchh na kuchh toh jaroor aisa karega... Aakhir jab buddhe doctor hi ilaaj ke bahane hath saaf kar lete hain toh 'wo' toh gabru jawaan tha.... par na.. Usne toh 2 minute se pahle hi goliyan Pinky ke hath mein pakadayi aur table ke iss taraf aa gaya....

"Kya baat hai?" Uske khud darwaje ke paas jane par bhi hum andar hi khade rahe toh usne hamari taraf achraj se dekha aur wapas aa gaya....," Bolo?"

"kkkuchh nahi... wwo... yye.. tu bol de na!" Haklati huyi Pinky achanak roni soorat bana kar meri taraf dekhne lagi....

"Aisi kya baat hai yaar..?" Harry man hi man hansta sa hua wapas table ke uss paar chala gaya..,"OK... baitho..!"

Maine Pinky ki taraf ek baar dekha aur Harry ke saamne table ke dusri taraf wali chair par baith gayi.. majbooran Pinky ko bhi baithna pada.....

"Kuchh bologi ya mujhe khud hi andaja lagana padega...!" Harry ne hanste huye kaha.. wo achanak kuchh jyada hi khush najar aane laga tha....

"Wwo...." Pinki baar baar koshish karke apni juban ko shabd dene ka prayas kar rahi thi... par main uski halat samajh sakti thi.. jab mere munh se hi kuchh nahi nikal raha tha toh 'wo' bechari kaise bolti...

"Bol bhi do ab.. tum aise baithi rahogi toh mujhe heart attack aa jayega.. sach bol raha hoon.. tumhe nahi pata mera dimag kahan kahan ghoom raha hai...." Harry iss baar nervous hokar bola....

"Wwo..." Pinky kafi der se table ke kinaron ko apne naakhoono se khurache ki koshish kar rahi thi..,"aayi... aayi pill....."

"Pinkiiieeeeee?" Harry ke chehre se muskaan yun gayi jaise gadhe ke sir se seeng... Uske chehre ka rang yun badal gaya jaise 'i Pill' 'i Pill' na hokar koyi atom bomb ho...," kuchh der jadvat sa uske chehre ko ghoorta hua Harry bola," yye kya kah rahi ho Pinky....?"

"na hi Pinky kuchh boli aur na hi main... mujhse toh apna sir hi nahi uthaya ja raha tha jab tak ki achanak Harry ne fafak kar jane kya kahani banani shuru kar di...

"Tumhe pata hai Pinky...." Harry ka chehra aisa bana hua tha jaise ab roya aur ab roya.... Apni kahi har line ke baad 'wo' gahre dukh mein doobi huyi labi saans le raha tha... kabhi kabhi beech mein bhi... Main uske chehre ki taraf dekhne lagi thi.. par Pinky ka sir ab bhi jhuka hua tha... Harry ki aankhein pata nahi kyun nam hoti ja rahi thi..," Ek ladki thi... bahut pyari... Jab bhi usko dekhta... jitni baar bhi dekha... mujhe uska chehra apna sa lagta tha.... Uski muskaan se bhi mujhe utna hi pyar tha.. jitna uske gusse se.... usko dekh kar aisa lagta tha jaise..... rang birange chehron se saji iss duniya mein 'wo' ek alag hi chehra hai... Ek nanhi kali jaisa nadan.... ek phool jaisi masoom... aur.. aur ek bachche ki tarah shaitan.. Par.. uski nadani mein; uski masoomiyat mein.. aur.. uski shaitaaniyon mein.. jane kya baat thi ki jitni baar bhi usko dekhta.. Jitni baar bhi uske baare mein sunta... uske liye mera pyar badhta hi jata.... par kabhi tareeke se bol nahi paya.. kyunki..... kyunki mujhe darr lagta tha..... darr lagta tha ki agar 'jawaab' mein inkaar mila toh kya hoga!.... Mere dost.. hamesha mujhe kahte the.. ki mujhe apne dil ki baat dil mein nahi rakhni chahiye... bol deni chahiye... gulabo ko.. kahin aisa na ho ki fir der ho jaye.... Par mujhe vishvas tha.. apne pyar par... apne sachche pyar par... Mujhe vishvas tha.. ki 'wo' itni bhi nadan nahi ho sakti ki samay se pahle hi raaste se bhatak jaye... Samay se pahle hi....." Achanak Harry chup ho gaya aur usne apni aankhein band kar li.. Aankhein band hote hi unmein se 2 aansoo nikal kar aaye aur uske gaalon par thahar gaye.... Main hairani se uski aur dekh rahi thi... meri samajh mein maajra aa hi nahi raha tha...

Achanak Pinky apni chir parichit painy aawaj mein boli," Maine kya kiya hai...?"

Uske bolte hi Harry ne aankhein khol di.. Uski aankhein hulki hulki laal ho gayi thi.. bola toh aisa laga ki khoon ka ghoont bharkar bola ho," Na! tumne kahan kuchh kiya hai Pinky... aaj kal toh sab jagah aisa hota hai... tumne kahan galat kiya... galat toh main tha.. galat toh mere vichar the.. tumhare baare mein!"

"Ye... ye kya bol rahe ho tum..." Pinky uttejit hokar khadi ho gayi..," Toh tum mere baare mein bol rahe the... ye sab... Maine kuchh nahi kiya sun lo.. 'wo toh mujhe.... 'wo' toh kisi ne mangwayi thi.. deni hai toh de do.. warna apna kaam karo.. !"

"Kyaaaa? toh kya sach mein tumne... matlab..." Harry ki aankhon mein fir se wahi chamak lout aayi.. haan.. thoda sharminda sa jaroor lag raha tha..... Bolte huye harry ko Pinky ne beech mein hi tok diya," Mm..main tumhara 'sir' fod doongi haan!" Gusse se Pinky ne kaha aur jane uske dimag mein kya aaya.. wah hansne lagi....

"Sorry... Ek minute... " Harry ne bag mein se ek bada sa patta nikala aur usmein se ek chhoti si goli nikal kar de di..,"Ye lo..... Sorry.. main bus yunhi soch gaya tha...."

"Chal Anju.." Pinky ne jaise uske hath se goli jhatak li ho..," Mere baare mein aisa sochta hai..." Pinky badbadayi aur mera hath pakad kar bahar nikal aayi...

"Pinky... humne usko paise toh diye hi nahi....." Meri khushi ka koyi thikana nahi tha.. meri chinta door jo ho gayi thi.....

"Haan.. paise doongi usko... agar tera kaam na hota toh mein 'ye' goli usi ko khila kar aati haan!" Pinky gusse se dhadhakti huyi boli...

"Arey... ismein uski kya galati hai... tum aisi cheej bina baat saaf kiye maangogi toh koyi bhi ye baat soch lega...." Maine usko samjhane ki koshish ki....

"Woh baat nahi hai yaar!" Pinky ka mood ukhda hua tha....

"Toh.. aur kya kah diya usne...?" Main asamanjhas mein pad gayi....

"achchha.. tune suna nahi kya? kya Premleela chhed ke baith gaya tha apni...." Pinky meri taraf dekh kar tarare se boli....

"Ohho.. fir usne tujhe toh kuchh nahi kaha na...."

"Tujhe nahi pata... 'wo' sari bakwas mere baare mein hi kar raha tha... Usne pahle bhi mujhe ek do baar gulabo kaha hai... maine mana kar diya tha ki mera naam na bigaade.... !" Pinky boli....

"Par... tu uss'se ladayi karke aa gayi... usne kisi ko bol diya toh...?" Main aashanka se boli....

"Nahi bolega wo!" Pinky ne aatmvishvas se kaha.....

"Kyun? tujhe kaise pata....?"

"Itna bhi bura nahi hai... he he he..." Pinky hansne lagi.....

"Tu usko itna kaise jaanti hai?" Maine hairat se poochha.. Pinky shartiya tour par unn ladkiyon mein se nahi thi jo har jane anjane ladke ka record lekar ghoomti ho.. Harish ke baare mein toh mujhe bhi sirf itna hi pata tha ki 'wo' achchhe khase ghar ka ladka tha.. aur kareeb 3 saal se hamare gaanv mein kiraye par rah raha tha.. Apne dawayiyon ke 'kaam' ke alawa samaj sewa mein uski kafi ruchi thi, isiliye jald hi usko gaanv aur bahar ke bahut se log jaan'ne lage the....

"Kya? main 'itna' kya jaanti hoon...?" Pinky ne chalte chalte poochha...

"aa..aan.. mera matlab tujhe kaise itna vishvas hai ki 'wo' kisi ko kuchh nahi batayega....?" Mera sawaal fizool nahi tha...

"Chhod.. ghar aa gaya hai.. baad mein baat karenge... le.. ye goli kha le abhi... uski bakwas Meenu ko mat batana...." Pinky ne ghar mein ghusne se theek pahle apne hath mein sambhal kar rakhi huyi goli mujhe pakda di......

Main jaldi se ghar jakar kha peekar wapas Pinky ke ghar aa gayi aur hum dono agle din ke paper ki taiyari karne lage......

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Bhagwan aur 'Sandeep' ki daya se mera choutha 'paper' bhi achchha ho gaya.. Halanki usne mujhse koyi baat nahi ki thi.. par maine aadhe time ke baad mouka dekh kar khud hi adhikaar poorvak apni answer sheet uski aur sarka kar uski sheet lagbhag chheen hi li... usne koyi pratikriya nahi di aur utni hi speed se meri sheet mein likhne laga.. jitni speed se 'wo' apna paper kheench raha tha....

Paper ke baad khushi khushi hum dono jaise hi examination room se bahar nikle.. Inspector Manav ko sadi vardi mein office ke bahar khada pakar main chounk gayi..,"aey.. Inspector!" Maine Pinky ke kaano mein fusfusaya....

"Kahan?" Usne jaise hi apni najrein uthakar charon aur ghumayi.. usko manav dikhayi de gaya...

"Kya karein...? Hum iske paas chalein ya nahi..?" Pinky ne asamanjhas mein khadi hokar meri rai lene ki sochi...

"Wo baat nahi batani kya? Dholu wali...!" Maine kaha hi tha ki tabhi Manav ki nazar hum par padi.. usne ishare se humko wahin rukne ko kah diya...

Kuchh der baad hi school khali ho gaya... mere mann mein pahle paper ke baad office mein huyi masti ki yaadein taza ho gayi... Uss din bhi main aur Pinky paper ke baad theek wahin khade the.. jahan aaj!

"Idhar aana ek baar..." Manav ne hamein bulaya aur fir office ke andar jhank kar bola,"Aao.. bahar aa jao!"

Hamare office ke darwaje tak pahunchte pahunchte Madam ke sath 'wo' Sir bhi khisiyaye huye se bahar nikal aaye... Hum dono ne aascharya se ek doosri ki aankhon mein dekha... '2 din se toh ye aa hi nahi rahe the... fir aaj kaise?'

Mere hath apne aap hi Sir aur madam ko namastey kahne ke liye uth gaye.. par Pinky ne sirf Manav ko namastey ki.. 'Sir' kah kar....

"Hummm... Mathur sahab... Ab bolo!" Manav ne 'sir' ko ghoor kar dekha....

"Arrey yaar.. jo baat thi.. main bata chuka hoon.. aap kyun khamkha iss maamle ko kheench rahe ho... main koyi gair thode hi hoon.. aapke shahar ka hi rahne wala hoon... Sham ko baat karte hain na sath baith kar.... 'kothi' par aa jana..." Sir ne taalte huye kaha....

"Kyun? kothi par kya hai? yahan kyun nahi....!" Manav ne kutil muskaan uski aur uchhali... hum dono chupchap unki baatein sunte rahe....

"Arrey inspector bhai sahab.. common sense hai.. yahan main aapki 'wo' sewa thode hi kar sakta hoon jo mere apne ghar par ho jayegi.. chhodo bhi ab.. jaane do ladkiyon ko...!" Sir ne Manav ke kandhe par thapki lagakar kaha...

"Tumhare faayde ke liye hi bol raha hoon.... tum mujhe yahin sab kuchh bata do toh achchha rahega.... 'warna' Sham ko thaane mein tumhe 'wo' ijjat nahi milegi jo yahan de raha hoon.. samajh rahe ho na baat ko....!" Manav ne gurrate huye kaha...

"Dekho inspector.. mujhe iss bare mein kuchh nahi pata.. mujhe jo bolna tha main bol chuka hoon...." Sir bhi Manav ki tone dekh kar khij se gaye....

Manav ne turant meri aur dekha..,"Haan Anjali.. Kya bataya tha madam ne tumhe.. agle din...?"

Maine sakpaka kar madam ki aur dekha aur apna sir jhuka liya...," Jji.. Sir.. Madam ne bataya tha ki hamare jane ke baad Tarun aur 'Sonu' dono yahan aaye the.... Unhone Sir se akele mein kuchh baat ki thi... Madam kah rahi thi ki Sir mein aur unn dono mein 'uss' din wali baat ko lekar kuchh samjhouta hua tha...!"

"Aur usi din Tarun ko maar diya gaya.. Sonu gayab ho gaya.. hai na...?" Manav ne confirm kiya....

Maine sir jhukaye huye hi 'haan' mein hila diya... Tabhi mujhe 'Sir' ki aawaj sunayi dene lagi..,"kya yaar.. tum 'iss' randi ki baat par bharosa karoge.. sali kutiya.. teen baar toh 'D.E.O. ban'ne ke chakkar mein meri kothi par 'raat' bita chuki hai.. M.P. Sahab ke sath... aur ye dono... inko bhi kam mat samajhna.." Maine najrein utha kar 'Sir' ko dekha.. wo hamari aur dekh kar baaton ko chaba chaba kar bol raha tha...," Ye dono bhi poore maje se........."

Sir ki baat poori nahi ho payi.. Manav ka ek jhannatedaar thappad 'Sir' ke gaal par pada aur uska sir deewar se ja takraya...

Sir ladkhadaya aur fir seedha khada hokar apne gaal ko sahlane laga.. Uske sanwli soorat par bhi 'teen' ungaliyon ke nishan saaf dikhayi de rahe the.. jaise wahan khoon ikattha ho gaya ho..," Tum mujhe jaante ho inspector.. fir bhi..." Sir ki baayin aankh 'laal' ho gayi thi..

"Abhi kahan... abhi toh mujhe bahut kuchh jaan'na hai... Sham ko chalkar 'thane' aa jana.. warna... 'ye' sirf trailor tha...." Manav gurra raha tha....

"Dekho inspector sahab!.. main bata raha hoon... 'wo' inko chhod kar wapas aaye the... Unhone mujhse 'ye' kaha tha ki '2' aur ladkiyon ka aise hi paper karwana hai... aur 'ek' din 'isko.." Usne Pinky ki aur ishara karte huye kaha," isko paper time ke baad rok kar rakhna hai.... kaise bhi karke... usne kaha tha ki 'wo' do ladkon ko aur sath lekar aayenge.. aur iska balat...." Kahkar Sir apne gaal ko sahlane lage...

Manav ne ek gahri saans li..," aur.....?"

"Aur.. unhone mujhse 1 lakh rupaiye maange the.. Mobile clip dikha kar 'wo' mujhe blackmail karna chah rahe the...." Sir ne ugal diya....

"Ohh.. isiliye tumne Tarun ko marwa diya... aur shayad Sonu ko bhi...!" Manav tamtamaya hua tha....

"Nahi inspector... Mujhe iss baat ke baare mein kuchh nahi pata... Main toh unko 1 lakh rupaiye de hi deta... Mere liye ek lakh rupaiya koyi badi baat nahi hai..."

"Sham ko thane aa jana..." Manav ne kaha aur hamari aur ghoom gaya..," Tum jao ab..."

Main kuchh bolne hi wali thi ki Pinky ne mera hath pakad kar kheench liya... School ke main gate par jate hi main boli," Wo dholu wali baat bhi toh batani hai...!"

"Nahi chhod... Meenu fone par hi bata degi.. mujhe toh iss'se darr lag raha hai... kitna kheench ke diya usko..." Pinky hansne lagi....

"toh.. hamein thode hi kuchh kahenge...!" Main boli...

"Kya pata... uss din 'school' wali baat poochhne lage toh...?" Pinky ne mujhe 'bechari' si najron se dekha... Tabhi Manav ne hamare paas aakar apni bike rok di..," Yahan kyun khadi ho...?"

Hum dono sakpaka gaye.. tabhi mere munh se achanak nikal gaya..," Humein... humein akele jate huye darr lag raha hai....!"

Manav hansne laga..," aao.. baitho.. main chhod deta hoon..."

Maine Pinky ki aur ghabrakar dekha.. uska pata nahi tha baad mein kya ka kya bolne lag jaye.. Pinky ne hatasha mein mujhe baithne ka ishara kiya... Hum dono Manav ke pichhe baithe aur gaanv ki taraf chal pade......

Jaise hi Manav ne Gaanv ke stand par bike roki.. Pinky fatak se utar gayi.. Sach kahoon toh mera utarne ka man nahi kar raha tha.. Uski fouladi peeth se sati meri ek chhati mujhe 'kal' wala rang biranga ahsaas kara rahi thi.... Sari raat dukhti rahi meri yoni ab ek baar fir machalne lagi thi.. Uska dard kum hote hi virah vedna se wo ek baar fir tadap uthi thi... Ek baar mein hi usko 'moosal' ki lat lag gayi thi shayad... ab gujara hona mushkil tha...

Mujhe dukhi man se utarte dekh kar Manav ne poochh liya..," Ghar yahan se jyada door hai kya?"

"Nahi.. hum chale jayenge...!" Pinky tapak se boli... toh main kuchh bol na saki... aur uske sath chal padi...

"ek minute...!" Manav ki aawaj aate hi hum ghoom gaye..

"aaa... wo ghar par koun koun hain...?" Manav ne apne mathe ko khujate huye apni aankhon ki hichkichahat ko chhipa liya...

"Pata nahi.. Sabhi honge!" Pinky dheere se boli....

"Main ghar hi chhod aata hoon.. aao baitho.." Manav ke kahte hi main bike ki aur wapas chal padi....

"Nahi.. Ssir.. hum chale jayenge...!" Pinky ne dohraya....

"Ek cup chay mein tumhara doodh khatam ho jayega kya?" Manav khisiya kar hansne laga....

Pata nahi Manav ne kya soch kar kaha aur Pinky ne kya samjha.. par mujhe toh jawan hone ke baad se hi 'doodh' ka ek hi matlab pata tha.. Meri chhatiyon mein jhanjhanahat si mach gayi...

Pinky thodi der asamanjhas mein wahin khadi rahi aur fir apni najrein neechi kiye bike ki aur chal padi... Maza aa gaya!

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"Achchha.. main chalta hoon...!" Manav ne anmane mann se ghar ke andar jhankte huye kaha..

"Nahi Sir... ab aa hi gaye hain toh chay peekar jaayiye na... 'wo' aapko kuchh batana bhi hai..."Ghar Pahunchne ke baad Pinky ki aawaj mein aatmvishvas sa aa gaya tha.....

Shayad Manav ko toh kahne bhar ki der thi.. bike toh usne pahle hi band kar rakhi thi.. Pinky ke bolte hi usne wahin stand lagaya aur hulka hulka muskurata hua ghar ke andar chala aaya... Neeche koyi nahi tha...

"Mummy..." Pinky ne seedhiyon ki taraf munh karke jor se aawaj lagayi....

"Mummy papa nahi hain.. Shahar gaye hain... paper kaisa hua...?" Upar se Neeche aati Meenu ki madhur aawaj hamare kaano mein goonji... Pinky ne koyi jawab nahi diya.. aur Seedhiyon mein khadi khadi Meenu ko neeche utarte dekhti rahi...


"Wo 'lambu' aaya tha kya school mein.. Innnspectorrrr Manav!" Meenu par jane kounsi masti chadhi thi.. 'Inspector' iss tarah bola jaise 'tractor' bol rahi ho... Pinky ki sitti pitti gum ho gayi.. uske munh se toh aawaj hi na nikli... aur jaise hi Meenu seedhiyon se utar kar neeche aayi.. Uski toh halat hi patli ho gayi..,"wwwoo.. wwo.." Meenu ne haklate huye kuchh kahne ki koshish ki aur bachne ka sabse aasan tareeka usko 'wapas' upar bhagna laga...

Par wo jaise hi tezi se palti... Manav ne usko tok diya...,"aa.. Suno!"

Meenu ke kadam wahin thithak gaye... Abhi abhi nahakar aayi Meenu 'bala' ki haseen kayamat lag rahi thi... 'Wo' apne geele baalon ko touliye mein lapete aayi thi.. jo ab khisak kar uske kandhe par aa gira tha... Aur pani ki boonde 'tapak' kar uske madak kulhon ko yahan wahan se paardarshi karti ja rahi thi...Hulke saleti rang ke 'lower' ke andar uske madak kasav aur mast golayi liye huye 'nitambon' ko kaid kiye huye uski 'panty' ke kinare bahar se hi saaf nazar aa rahe the... Alag se hi dikh rahe uske kahar dhate nitambon ke beechon beech gahri hoti 'khayi' ka kataav thodi door jakar 'andhere' mein gum ho raha tha.... Maine chor najron se Manav ki aur dekha.. uski najrein bhi wahin jami huyi thi...

"j...ji sir...!" Meenu ke palate hi uske 'lab' thirak uthe... Mujhe Meenu uss din se pahle kabhi itni khoobsoorat nahi lagi thi... ya fir shayad aaj main usko 'manav' ki najron se padhne ki koshish kar rahi thi... Bahut dino baad aaj pahli baar Meenu mujhe 'top' mein najar aayi thi... Uski mad bhari gol gol chhatiyon se lekar uske kamsin pate tak 'top' uske badan se chipka hua tha...uski maansal jaanghon ke beech tikone aakar mein uska 'yoni' pradesh aur neeche ki taraf 'bhagwan' ki anupam kriti...; abla 'nari' ko mila takatwar 'manav' ko apni ungaliyon par nachane ka 'paasport' ; 'uss' lambwat 'kaam cheere' ka hulka sa ahsaas uske lower ke bahar se hi ho raha tha....

Kafi der tak mantramugdh sa 'Manav' adheer hokar Meenu ko dekhta hi raha.. Pinky bhi Meenu ke pichhe khadi iss tamashe ko samajhne ki koshish kar rahi thi.... Kum se kum 'dari huyi' toh Meenu ko kah hi nahi sakte the... Pinky shayad ye samajh nahi pa rahi thi ki 'wo' sharmayi huyi si kyun hai...

Meenu ek baar fir se thodi tirchhi hokar budbudayi..," jji...."

"wwo.. Iss... Innnspecorrrrrr Manav urf Lambu ka ek pyala chay peene ka mann kar raha hai..." Bolte huye Manav ne jyon ki tyon Meenu ki nakal utaari....

"jj.. jji.. nahi.. wwo.. matlab.. main....... lati hoon....!" Buri tarah jhenp kar Meenu ke badan mein upar se neeche tak kampan sa chalu ho gaya tha... Uske madmast angon mein achanak hi thirkan paida ho gayi thi....

"Mmain lati hoon didi... " Pinky ne kaha aur Meenu ka jawab sune bagair hi upar bhag gayi... Meenu kampkampati aawaj mein bolti rah gayi.. ,"Sun toh....!"

"Baitho toh sahi yaar..!" Manav ne muskurate huye kaha...

"Jji.." Meenu ne behude tareeke se touliya apni chhatiyon par dala aur mere pichhe chhip kar baith gayi.. Uske gore gaalon ki rangat gulabi ho chuki thi....

"Mujhe pata nahi tha tum mere pichhe se mujhe 'itni' ijjat deti ho.. 'lambu'.. wah.. kya naam diya hai...!" Manav ne hanste huye kaha...

"Jji.. nahi.. wwo toh main.. yunhi bol gayi thi.." Meenu ne mimiyate huye itni dheere bola ki shayad hi Manav ko uska jawaab suna hoga...

"AB mera kusoor bhi bata do.. yun naraj hokar chhip kar kyun baith gayi ho..!" Manav ki aawaj mein ullaas tha.. kaamna thi.. shararat thi!

Main Manav ka prayay samajh kar wahan se uthne lagi toh Meenu ne mujhe kaskar pakad liya..,"nahi.." Meenu ki aawaj bhi uske kaanpte haathon ki tarah laraj rahi thi...,"Main abhi aayi.." Meenu ne hadbadahat mein kaha aur upar bhag gayi...

"Badi pyari hai.. hai na!" Manav ne uske jaane par kaha toh maine achkacha kar uski taraf dekha... Zalim ne mujh par toh ek baar bhi dhyan nahi dhara..,"aa.. kk..koun.. Mmeenu..? hhaan...!" Main hadbadahat se boli aur apni ungaliyan matkane lagi...

Tabhi Pinky chay aur namkeen lekar aa gayi.. Aakar mere paas khadi huyi aur jhuk kar mere kaan mein boli..," Wo.. stool rakha inke aage...!"

Main charpayi se khadi huyi aur Stool sarka kar Manav ke aage rakh diya.. Pinky ne chay aur namkeen uss par rakh di aur mere paas aakar baith gayi... Thodi der baad hi Meenu bhi neeche aa gayi.. ek alag hi pahnawe mein.. Salwar kameej thi.. par 'wo' bhi usne chhant kar hi pahni lagti thi.. maine usko uss din se pahle 'wo' suit daale nahi dekha tha.. shayad naya silwaya hoga... Chunni se apni chhatiyan achchhi tarah dhake Meenu najrein jhukaye hamare paas aakar baith gayi...

Manav lagataar taktaki baandhe Meenu ko dekh kar muskura raha tha.. Maine Meenu ke chehre ki aur dekha.. ab bhi lajja se 'laal' chehra rah rah kar tirchhi najron se Manav ki aur dekhne ki koshish karta aur usko apni hi aur dekhta pakar wapas jhuk jata... Har baar Meenu thodi si pichhe bhi sarak jati...

"Wwo.. Aapko ek aur baat batani thi Sir...!" Mujhse dono ki aankhon hi aankhon mein majboot hoti ja rahi 'premdor' raas na aayi aur main bol padi....

"Kya? Bolo!" Manav ne chay ki chuski lete huye kaha....

Main kuchh soch kar bolti.. iss'se pahle hi Meenu ne bolna shuru kar diya..,"wwo..Sirr..."

Bolti huyi Meenu ko Manav ne fir tok diya...,"Nahi.. Lambu bhi achchha lagta hai..!"

Uske baad toh Meenu bol hi nahi payi... Aur mujhe hi bolna pada..," Sonu ka mobile gaanv ke ek ladke ke paas hai Sir..!"

"Dholu ke paas hai na!" Manav ka jawab sunkar main stabdh rah gayi..,"aa.. aapko kaise pata?"

"Aur nahi toh department kya hamein ghas charane ke paise deta hai....!" Manav ne ajeeb se lahje mein kaha.. par aage kuchh bola nahi...

"Kahin.. Sonu ko usi ne na...." Main Manav ko aage na bolte dekh kar boli.. par Usne mujhe beech mein hi tok diya...,"Jaanch chal rahi hai... Abhi kuchh kahna mushkil hai.... Waise... Dholu bhi kal se hi ghar se gayab hai.. Police aayi thi raat ko usko lene.. par wah pahle hi gayab ho gaya tha.. shayad kisi tarah se usko bhanak lag gayi thi....!"

"Ohh.. achchha Sir!" Maine bhagwan ka shukra manaya main kal raat uske ghar nahi thi..,"Par... aapko kaise pata chala ye sab...?"

"Aur koyi khas baat ho toh batao!" Manav ne meri baat par dhyan nahi diya... Main man masos kar rah gayi.....," Nahi.. au toh kuchh nahi hai...." Maine kaha....

"theek hai.. abhi chalta hoon..." Manav ne khada hokar Meenu ki aur dekha...

Meenu chupchap khadi ho gayi.. jaise hi Manav darwaje tak pahuncha.. Meenu sharmate huye boli..," Sorry!"

"Theek hai.. shukra hai Sorry toh bola..." Manav ne muskurakar kaha aur bahar nikal gaya.....

Manav ke jate hi Meenu Pinky par pl padi... Pinky ko charpayi par giraya aur takiye se usko 'dhun'na shuru kar diya....

"Kyun maar rahi ho didi.... Maine kya kiya hai...?" Pinky hanste huye boli....

Meenu jab hati toh buri tarah haanf rahi thi... Uske gaalon ki rangat ab bhi gulabi thi aur chhatiyan tezi se uth baith rahi thi...,"Maine kya kiya hai..." Meenu uski nakal utaar kar boli..,"Bata nahi sakti thi ki neeche Manav aaya hai....!"

Pinky zor zor se hansne lagi...,"Manav nahi didi.. Lambu Innnspectorrrr.. bolo... he he he...."

"Boloongi.. tujhe kya hai... lambu lambu lambu..." Meenu ne kaha aur fir bina kisi ke kuchh kahe hi sharma kar kambal mein ghus gayi.....


kramshah...............







आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj



















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