Monday, May 3, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--35

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बाली उमर की प्यास पार्ट--35


गतान्क से आगे..................

"अब देख ले इसकी करतूत..." मीनू खाना शुरू करते ही बोली...,"वापस क्यूँ बुला लिया उसको...? देख लेना अगर मम्मी पापा को पता चल गया तो मैं तो सीधा सीधा तेरा नाम ले दूँगी...!" मीनू जल्दी जल्दी खाना खा रही थी....

पिंकी का नीवाला उसके मुँह में जाते जाते रह गया.. वा आँखें निकल कर बोली..,"क्यूँ? ... मेरा नाम क्यूँ लोगि...?"

"और नही तो क्या? अच्च्छा भला जा रहा था.. क्या पड़ी थी तुझे उसको वापस बुलाने की... घर में हम तीन लड़कियाँ और ये अकेला मर्द...! किसी को भी पता चल गया तो क्या सोचेगा?" मीनू टुकूर टुकूर पिंकी की ओर देखते हुए बोली....

"मुझे नही पता.. भेज दो बेशक वापस..मेरा नाम क्यूँ लोगि..?" .. मैने तो...!"पिंकी ने बोलते हुए मेरी ओर देखा और अचानक चुप हो गयी...

"क्या मैने तो..? बोल अब!" मीनू तुनक कर बोली...

"कुच्छ नही...!" पिंकी ने अपना सिर झुका लिया....

"नही नही.. भेज अब तू ही वापस..! तू ही बुला कर लाई थी ना अंदर... अब तू ही बोल दे उसको.. चला जाएगा.. उसको खुद भी तो सोचना चाहिए..! है ना अंजू?" मीनू ने मुझसे पूचछा.. मैं खाली उसको देख कर रह गयी....

"ठीक है बोल देती हूँ...!" पिंकी ने गुस्से से खाली थाली ज़मीन पर पटक कर रखी और खड़ी हो गयी.. बोल देती हूँ अभी जाकर.. कि मीनू कह रही है आप चले जाओ...!" पिंकी ने कहा और बाहर निकलने लगी....

"आ पागल...!" मीनू उसके पिछे दौड़ती हुई बाहर निकली..,"रुक जा.. ऐसे थोड़े ही कहते हैं... अच्च्छा कुच्छ नही कहूँगी... बस! आजा!" मीनू उसको पकड़ कर ज़बरदस्ती अंदर खींच लाई....

"नही.. आप तो ऐसे कह रही हो जैसे... आपके लिए ही तो मैने उसको रोका है...!" तुनकती हुई पिंकी ने मेरे सामने ही मीनू की पोले खोल दी.... मैं आस्चर्य से मीनू के मुँह की ओर देखने लगी.....

"अच्च्छा.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे तूने मुझ पर अहसान कर दिया... मेरे लिए क्यूँ रोका है..? शर्म नही आती तुझे ऐसा बोलते हुए..." मीनू ने सकपका कर पिंकी को छ्चोड़ दिया.. पर पिंकी वहाँ से नही हिली....

"और नही तो क्या? मुझे पता है आप उनसे प्यार करती हो....!" पिंकी का चेहरा मुरझाया हुआ था लेकिन उसकी आँखों में चमक थी....

"मैं है ना तेरी...." मीनू दाँत पीस कर बनावटी गुस्से से बोली...,"क्या बकवास कर रही है तू... बित्ति भर की लड़की है.. ज़ुबान इतनी चला रही है.. तुझे पता चल गया 'प्यार' क्या होता है.. हाँ? आने दे मम्मी को.. कल तेरी खैर नही...." मीनू का चेहरा सफेद हो गया था..... हड़बड़ाहट में उसने एक चांटा पिंकी के गाल पर रसीद कर दिया... पिंकी चुप होकर मुस्कुराती हुई अपने गाल को सहलाने लगी...

"थोड़ी देर नीचे चलें...!" जैसे ही हुमारा खाना पूरा हुआ.. पिंकी ने कहा...

"जाओ जिसको जाना है..!.. बड़ी आई... मुझे नही जाना..." मीनू बड़बड़ाती हुई बोली..,"ये दूध ले जाना उसका.. और रज़ाई माँगे तो निकाल कर दे आना...!" मीनू अपना सा मुँह लेकर बैठ गयी....

"ठीक है.. हम तो जा रहे हैं.. आ जा अंजू.. रहने दे इसको यहीं...!" पिंकी ने उसको चिड़ते हुए सा कहा...

"नही.. मैं क्या करूँगी..? तुम जाकर दे आओ!" मीनू के बिना मुझे भी नीचे जाना अच्च्छा नही लगा....

"आ ना.. सुन तो!" पिंकी ने मुझे लगभग ज़बरदस्ती खींच लिया.. फिर ज़्यादा विरोध मैने भी नही किया था.. एक बार मीनू को देखा और उसके साथ बाहर निकल गयी... पिंकी ने दूध का गिलास भरा और हम दोनो नीचे चले गये.....

हम नीचे उतरे तो मानव चारपाई पर बैठा सीढ़ियों की ओर ही देख रहा था.. उसके हाथ में डाइयरी थी.... पिंकी ने उसको दूध का गिलास पकड़ाया और अलमारी से रज़ाई और कंबल उसके साथ वाली चारपाई पर रख दिए... मानव का ध्यान अब भी सीढ़ियों की ओर ही जमा हुआ था...,"मीनू सो गयी क्या?"

"नही उसने नीचे आने से मना कर दिया...!" पिंकी सीधे सीधे शब्दों में बोली....

"अच्च्छा?" मानव ने मुस्कुरकर कहा और फिर अपने होंटो पर उंगली करके हमें चुप रहने का इशारा किया... बात हमारी समझ में नही आई थी.. पर उसके इशारा करते ही हम दोनो चुप हो गये....

मानव ने चुपके से दूध का गिलास फर्श पर रखा और बिना जूते डाले खड़ा होकर आहट किए बगैर सीढ़ियों की ओर जाने लगा... तब तक भी हमारी समझ में नही आया था कि उसका इरादा क्या है....

जैसे ही मानव ने सीढ़ियों के पास जाकर अंदर झाँका.. हम अवाक रह गये.. हमें मीनू की चीख सी सुनाई दी..,"आआईय....!"

"हा हा हा... यहाँ छुप कर क्या सुन रही हो..! नीचे आ जाओ ना!" मानव हंसते हुए पलट कर अपनी चारपाई पर जा बैठा... शरमाई और सहमी हुई सी मीनू नीचे कमरे में आई और अलमारी में कुच्छ ढूँढने का दिखावा करने लगी...," म्मे तो अपना कुच्छ.. ढूँढने आई थी....!"

मीनू को रंगे हाथों पकड़े जाते हुए देख कर पिंकी जिस तरीके से खिलखिला कर हँसी.. मैं भी अपनी मुस्कान को छिपा कर ना रख सकी....

"क्या है...?" मीनू के गालों पर उड़े हुए रंग के साथ ही हल्की सी शर्म की लाली भी पसरी हुई थी...,"बताऊं क्या तुझे?"

"क्या?" पिंकी ढीठ होकर अब भी हंस रही थी....

"कल बताउन्गि तुझे...?" मीनू बड़बड़ाई और अलमारी से बिना कुच्छ लिए उपर जाने लगी....

"क्या हो गया यार? इतना गुस्सा क्यूँ?" मानव ने भी हंसते हुए ही कहा तो मीनू के कदम वहीं ठिठक गये... पर वो कुच्छ बोल नही पाई....

"बता दूँ दीदी?" पिंकी के चेहरे पर अब भी अजीब सी शैतानी झलक रही थी.. शायद उसको पता था कि मानव के आगे मीनू उसको कुच्छ नही कहेगी... या फिर उसको पता था कि मीनू का गुस्सा हाथी के दाँत हैं.... सिर्फ़ दिखाने के लिए...

मीनू ने पलट कर पिंकी को उंगली दिखाई...,"बहुत बोल रही है तू.. तुझे तो मैं....!"

"अब बता भी दो..! ऐसा क्या हो गया 15 मिनिट में ही....!"

"2 बातें हैं..." पिंकी मीनू की चेतावनी को अनसुना करते हुए मुस्कुराइ....

"अच्च्छा...! वो क्या?" मानव भी मीनू को परेशान करने के लिए पिंकी की तरफ हो गया...

"दीदी इसीलिए गुस्सा हैं क्यूंकी मैने आपको वापस...." पिंकी की इतनी बात सुनते ही मीनू क्रोधित होकर उसको मारने को दौड़ी... पर पिंकी के पास तो जैसे आज अचूक तरीका था.. बचने का... वो हंसते हुए ही भाग कर मानव के पास जाकर खड़ी हो गयी... और वहाँ तो जैसे मीनू के लिए लक्षमण रेखा खींची हुई थी.. मानव से कुच्छ दूरी पर ही उसके कदम ठिठक गये... मानव को अपनी तरफ देखता पाकर मीनू शर्म से झंझनती हुई वापस पलट गयी और मेरे पास आकर बैठ गयी..,"तुझे तो मैं...!" मीनू सचमुच गुस्सा हो गयी थी..,"झूठ बोल रही है ये.. मैने ऐसा नही बोला था...!" मीनू सफाई देने लगी.....

"क्या? मेरी तो बात ही समझ में नही आई... ठीक से बताओ ना!" मानव पिंकी की तरफ देख कर बोला....

"रहने दो... अब ये मना कर रही है तो.. फिर दूसरी बात होगी....!" पिंकी ने चटखारे लेकर कहा....

"तो वो ही बता दो....?" मानव ने बोलते हुए पिंकी का हाथ पकड़ना चाहा.. पर वो सकुचा कर पिछे हट गयी...

"ववो.. वो आप इसी से पूच्छ लेना.. मैं नही बता सकती....!" पिंकी शरारती लहजे से बोली....

"तुम ही बता दो यार...!" मानव मीनू की ओर देखता हुआ बोला....,"कुच्छ नही है.. बकवास कर रही है ये.. कल मम्मी को बताउन्गि तो एकदम सीधी हो जाएगी.. आपके सामने ही इसको ज़्यादा बातें आ रही हैं..." मीनू पिंकी को देख गुर्रकार बोली....

मानव ने एक गहरी साँस ली और मीनू की ओर देखता रहा.. पर मीनू उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी.. रह रह कर अपनी पलकें उठाती और वापस झुका लेती.. ऐसा लग रहा था जैसे दोनो एक दूसरे को आँखों ही आँखों में कुच्छ कहना चाहते हैं... पर शायद हम 'काँटे' बने हुए थे....

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शायद पिंकी भी वैसा ही सोच रही थी जैसा मैं..,"सॉरी दीदी.. अब कुच्छ नही बोलूँगी...!" कहते हुए वह धीरे धीरे उसके पास आकर खड़ी हो गयी.. मीनू ने कोई जवाब नही दिया....

"मैं अभी वापस आई..." पिंकी ने कहा और मेरा हाथ पकड़ कर बोली...,"आना अंजू एक बार...!"

"क्या?" मैने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश नही की.....

"आ तो एक बार... आप बैठो दीदी.. हम अभी आते हैं...!" पिंकी ने एक बार फिर से कहा तो मैं खड़ी होकर उसके साथ चल दी...

"म्‍म्माइन भी आ रही हूँ...!" मीनू हड़बड़ा कर हमारे साथ ही खड़ी हो गयी...

"ववो.. मीनू.. मुझे तुमसे बात करनी थी.. बैथोगि थोड़ी देर....!" मानव की ये बात तो हमें सुनाई दे गयी थी.. पर मीनू ने क्या जवाब दिया.. ये मुझे नही पता... हम उपर चढ़ चुके थे.... मीनू नही आई......

पिंकी जाते ही बिस्तेर पर रज़ाई लेकर लेट गयी... मैने खड़े खड़े ही उस'से पूचछा..," तू कुच्छ करने आई थी ना उपर?"

"नही.. ऐसे ही नींद आ रही है...!" पिंकी ने कहा और रज़ाई में चेहरा ढक लिया...

"पर तूने तो ये कहा था कि अभी आए.. मीनू वेट कर रही होगी हमारा...!" मैने भी अपनी रज़ाई लेकर बैठते हुए कहा.....

"वो तो मैने ऐसे ही कह दिया था... हमने एक मिनिट भी बेचारों को अकेले बात करने नही दी..." कहकर पिंकी हँसने लगी....

"आए.. एक बात बता.. मीनू क्या सच में मानव से प्यार करती है...?" मैने उत्सुकता से पूचछा....

"और नही तो क्या? ऐसे ही उसकी बातें कर कर के मेरे कान खाती है क्या? तुम्हे नही लगता?" पिंकी ने उल्टा मुझसे ही सवाल किया....

"ऐसी क्या बात करती है वो..?" मैने उसके चेहरे से रज़ाई हटा दी....

"अब क्या बताउ.. सारा दिन मानव ये.. मानव वो.. मानव इतना अच्च्छा है.. मानव उतना अच्च्छा है... सारा दिन.. मैं क्या समझती नही हून कुच्छ.. वो गुस्सा भी तुम्हे दिखाने के लिए ही कर रही थी.. मुझे सब पता है.. उसको बहुत अच्च्छा लगा होगा जब मैने कहा कि वो मानव से प्यार करती है...!" पिंकी मुस्कुराइ....

"ऐसे तो तू भी सारा दिन हॅरी ये.. हॅरी वो.. करती रहती है.. तो क्या तू भी...?" मैने जान बूझ कर उसको च्छेदा....

"चुप हो जा अब.. सो जा..." पिंकी मेरी बात सुनकर शर्मा गयी.. उसने तकिया अपने सिर के नीचे से निकाल कर अपने सीने से चिपकाया और करवट लेकर मुँह ढक लिया......

मैने जानबूझ कर पिंकी को ज़्यादा तंग नही किया... इधर उधर घूम कर मेरा दिमाग़ मानव और मीनू की जोड़ी पर आकर टिक गया... सच में बहुत ही प्यारे लगते थे दोनो एक साथ.. मानव का 'ये' पूच्छना कि मीनू मेरे बारे में क्या बातें करती है.. अब मेरी समझ में आ रहा था.. उस वक़्त तो मैं यही सोच बैठी थी कि 'वो' मुझ पर ही लाइन मार रहा है....

अचानक मुझे ख़याल आया.. मीनू आधे घंटे से नीचे ही बैठी है... 'कहीं मानव और मीनू....' सोच कर ही मेरे बदन में चिरपरिचित झुरजुरी सी दौड़ गयी.. 'मानव तो कुच्छ नशे में भी लग रहा था.. कहीं शुरू तो नही हो गया....?' मेरे मॅन में कौंधा....

वो कहते हैं ना... कि चोर चोरी से जाए हेराफेरी से ना जाए... कामवासना की लपटों में खुद को झुलसा लेने के बाद भी मेरे मंन में अजीब सा कोतुहल मच रहा था... 'च्छूप कर मानव और मीनू की बातें सुन'ने का...

आख़िर पता तो करूँ.. चक्कर क्या है.. मैं मंन ही मंन सोच ही रही थी की पिंकी उठ बैठी.. ये सोचकर कि कहीं पिंकी मुझे जागी देख कर बातें ना करने लग जाए.. मैने तुरंत आँखें बंद कर ली....

वो चुपचाप चारपाई से उठी और बाहर निकल गयी....

ये सोचकर कि वो पेशाब करने बाथरूम में गयी होगी.. मैं अपनी आँखें बंद किए पड़ी रही और उसके वापस आकर सो जाने का इंतज़ार करने लगी... पर हद तो तब हो गयी जब उसको गये हुए भी 10 मिनिट से उपर हो गये.....

"आख़िर माजरा क्या है?" मैने सोचा और जो कुच्छ मेरे मंन में आया.. मेरा माथा ठनक गया.... "कहीं पिंकी मुझे जानबूझ कर उपर लेकर तो नही आई थी...?" मंन में आते ही में झट से उठी और बाहर बाथरूम के पास जाकर देखा.. पर बाथरूम तो बाहर से बंद था....

"हे भगवान! दोनो बहने एक साथ....!" उस वक़्त यही बात मेरे मंन में आई थी.. मैने नीचे जाने का फ़ैसला कर लिया......

मैने वापस अंदर आकर अपनी शॉल ली और उसमें खुद को लपेट कर जैसे ही आहिस्ता से सीढ़ियों में कदम रखा... मेरी हँसी छ्छूटने को हो गयी...

पिंकी नीचे वाले दरवाजे की झिर्री में अपनी आँख लगाए कमरे में हो रही गतिविधियों को देखने की कोशिश कर रही थी... मैने उपर से ही हल्की सी आवाज़ की..,"श्ह्ह्ह्ह्ह!"

पिंकी बौखलाकर उच्छल सी पड़ी... मुझे देखा और शरमाई हुई सी धीरे धीरे चलकर उपर आ गयी.....

"क्या देख रही थी..." मैने धीरे धीरे हंसते हुए पूचछा....

"कककुच्छ नही.. ववो.. मीनू को मत बताना प्लीज़.. बहुत मारेगी मुझे!" पिंकी सकुचती हुई बोली....

"नही यार.. मैं नही बोलूँगी कुच्छ... पर मीनू अब तक उपर क्यूँ नही आई.. क्या कर रहे हैं दोनो..?" मैने होंटो पर शरारत भरी मुस्कान लाते हुए पूचछा....

"कुच्छ नही.. दोनो वहीं बैठे हैं जहाँ पहले बैठे थे..." पिंकी ने बत्तीसी निकाली...,"पर दरवाजा बंद कर रखा है..." पिंकी ने बताया....

"क्यूँ? दरवाजा क्यूँ बंद है फिर....? " मैने आँखें सिकोड कर पूचछा...

"वही तो मैं देखने गयी थी... ईडियट हैं दोनो!" पिंकी हँसने लगी.....

"चल कर एक बार फिर देखें...?" मैने पूचछा....

पिंकी खुश हो गयी...,"हां, चलो! मानव दीदी को पटाने की कोशिश कर रहा है... पर दीदी मान नही रही... भाव खा रही हैं.. हे हे हे...!" पिंकी ने हंसते हुए कहा और हम दोनो दबे पाँव नीचे चल पड़े....

नीचे जाते ही हम दोनो ने आगे पिछे खड़ी होकर दरवाजे की झिर्री से आँख लगा ली.... पिंकी अपने उपर से मुझे देखने देने के लिए थोडा झुकी हुई थी.. इस कारण मेरी एक जाँघ उसके नितंबों की दरार में धँसी हुई थी..... मैने एक हाथ दरवाजे के साथ दीवार पर रखा और दूसरा हाथ उसके कूल्हे पर रख कर अंदर का दृश्या देखने लगी......

"सच मीनू... तुम्हारी कसम यार!" ये पहली आवाज़ थी जो हुमने अपने आँख और कान दरवाजे पर लगाने के बाद मानव के मुँह से सुनी थी.. वा अभी भी मीनू से प्रायपत दूरी बनाए अपनी चारपाई पर बैठा अपनी उंगलियाँ मटका रहा था...," कुच्छ तो बोलो... प्लीज़...!"

मीनू अभी भी उसी चारपाई पर थी जिस पर आधे पौने घंटे पहले हम तीनो बैठे थे.... वा चुप चाप नज़रें झुकाए खिसियाई हुई सी अपने बायें हाथ से दाई बाजू को उपर नीचे खुजा रही थी... वो कुच्छ नही बोली....

"प्लीज़ यार.. कुच्छ बोल दो.. मेरा दिल बैठा जा रहा है... मैने तुमसे अपने दिल की बात कहने के लिए ही थोड़ी सी पी ली थी आज....!" मानव ने याचना सी की....

आख़िरकार हड़बड़ाई हुई सी मीनू के लब बोलने के लिए हीले...,"दरवाजा खोल दो प्लीज़.. मुझे डर लग रहा है...." कहते हुए उसने एक बार भी नज़रें उपर नही की....

"यार.. अगर जाना ही है तो दरवाजा खोल कर चली जाओ.. मैने कोई ताला थोड़े ही लगाया है.. कुण्डी ही तो लगा रखी है.. मैं कुच्छ नही बोलूँगा... पर अभी यहाँ से चला जाउन्गा.. तुम्हारी कसम.....!" मानव हताश सा होकर बोला....

"म्‍मैइन.. मैं जा थोड़े ही रही हूँ... पर दरवाजा खोल दो प्लीज़... अच्च्छा थोड़े ही लगता है ऐसे..." मीनू ने एक बार अपनी पलकें उपर की और मानव को देखते ही तुरंत झुका ली.... मैं मानव की जगह होती तो मीनू के कान के नीचे बजा कर बोलती.. ,"तुम खुद भी तो उठकर खोल सकती हो... जब खोलना ही नही चाहती तो ड्रामा करने की क्या ज़रूरत है.. आ जाओ ना बाहों में..." हे हे हे.... पर मानव था ही इस मामले में अनाड़ी.. ये तो मैने ट्यूबिवेल पर ही जान लिया था...

पर मानव ने कोई दूसरी ही डोर पकड़ रखी थी...,"सिर्फ़ एक बार बोल दो.. मुझसे प्यार करती हो या नही.... फिर में कुच्छ नही पूच्हूंगा...!" सुनते ही हम दोनो के कान खड़े हो गये.. हम दोनो एक दूसरी की आँखों में देख कर मुस्कुराए.. और फिर से दरवाजे की झिर्री ढूँढने लगे.....

मीनू इस बार भी चुप ही रही...

"बोल दो ना यार... मेरी जान लोगि क्या अब..? कुच्छ तो बोलो..." मानव बेकरार हो उठा था.....

पता नही मीनू ने अपने होन्ट हिला कर क्या कहा.. मानव को भी नही सुना.. हमें कैसे सुनता..,"क्या? क्या बोल रही हो...?" मानव उठकर उसके पास आ बैठा.. मीनू तुरंत च्छुईमुई की तरह मुरझा कर एक तरफ खिसक ली...

"बोलो ना प्लीज़.. क्या बोला था अभी...?" मानव ने मीनू का हाथ पकड़ लिया... मीनू के चेहरे का रंग देखते ही बन रहा था तब... कसमसकर उसने अपना हाथ च्छुदाने की कोशिश की.. पर असफल रही.. आख़िरकार अपना हाथ ढीला छ्चोड़ कर वा अचानक तरारे से बोली...,"तुम्हारा साथ तो सिर्फ़ अंजू दे रही है ना...! उसी को बोल दो ये सब भी अब... "

"क्या? उसने ऐसा बोला...!" मानव अचरज से भरकर बोला...

"उसने क्यूँ बोला..? तुम्ही तो आज दिल खोल कर तारीफ़ कर रहे थे उसकी.. जो साथ दे रही है.. उसी को बोलो ना..!" मीनू की लज्जा चिड़चिड़ेपन में बदल गयी....

"ओफ्फो.. वो बात..." मानव ने अपने माथे पर हाथ मारा...,"तुम भी ना... अच्च्छा तुम्ही बताओ.. अंजू जो कुच्छ तुम्हारे लिए कर रही है.. कोई दूसरी लड़की कर देती क्या?"

"वो तो ठीक है.. पर..." मीनू का मुँह अभी भी चढ़ा हुआ था... बोलते बोलते वो चुप हो गयी...

"पर क्या? बोलो..." मानव अचानक चारपाई से उठा और फिल्मी स्टाइल में मीनू के सामने ज़मीन पर एक घुटना टेक कर बैठ गया... शुक्रा रहा पिंकी की हँसी उसके होंटो से बाहर नही आई....

मीनू ने हड़बड़कर हटने की कोशिश की पर मानव ने अपने दोनो हाथ उसके घुटनो की बगल में चारपाई पर जमा दिए.. वह वहीं बैठी रहने पर मजबूर हो गयी.. उसने अपना चेहरा और भी झुका लिया.. ताकि मानव के नयन वानो से बच सके....

"इस बार तो जवाब में मीनू का रही सही आवाज़ भी नही निकली... होंटो को बस हिलाते हुए उसने अपना शर्म से लाल हो चुका चेहरा 'ना' में हिला दिया......

"एक बार इधर तो देखो, मीनू?" मानव उसकी आँखों में देखने की कोशिश करता हुआ बोला...

मीनू ने उसके 'प्यार' को इज़्ज़त बखसी और पल भर के लिए उस'से नज़रें चार कर ली... अनाड़ी से अनाड़ी भी उन्न आँखों की भाषा पढ़ सकता था... मानव पता नही किस बात का इंतज़ार कर रहा था.. बावलीपूछ! मेरे बदन में झुरजुरी सी उठी और एक पल के लिए पिछे हटकर अंगड़ाई सी ली.. जैसे ही मैने वापस झिर्री से आँख सटाई.. मुझे पिंकी की मनोस्थिति का भी अंदाज़ा हो गया... उसने थोडा पिछे हटकर वापस मेरी जाँघ के बीचों बीच अपने नितंब सटा दिए....

"तुम्हारी कसम मीनू... मैने तुमसे पहले 'प्यार' को कभी नही जाना... उस दिन जब तुम्हे पहली बार देखा था.. तब से ही तुम्हारा चेहरा मेरे दिल में बस गया था... वरना मैं कभी 'कातिल' को पकड़ने के लिए इतना लंबा रास्ता नही अपनाता.... सिर्फ़ तुम्हारे लिए.. तुम्हारी कसम...!

मम्मी अब घर में जल्द से जल्द अपनी 'बहू' देखना चाहती हैं... मैं विश्वास के साथ कह सकता हूँ कि उनके मंन में अपनी बहू की जो भी छवि होगी; तुमसे बेहतर नही हो सकती... मेरे बस उनको बताने भर की देर है.. वो दौड़े चले आएँगे यहाँ...!"

मानव के कहते कहते सुनहरे सपनो की सजीली डोर से बँधे मीनू के हाथ अपने आप ही रैंग रैंग कर मानव के हाथों पर जाकर टिक गये... पर नज़रें मिलाने का साहस वह अब भी नही कर पा रही थी.... उसकी गर्दन एक दम लंबवत झुकी हुई थी.. होन्ट खुले हुए थे.. शायद कुच्छ बोलना चाहते होंगे.. पर बोल नही पा रहे थे.....

मानव ने एक बार फिर बोलना शुरू किया...,"पर जब तक तुम हाँ नही कह देती.. मैं उनको यहाँ कैसे भेज सकता हूँ... कुच्छ बोलो ना प्लीज़.. कुच्छ तो बोलो... मेरे लिए पल पल काटना मुश्किल हो रहा है... मैं तुम्हे पाने को बेकरार हूँ.. अपने पहलू में... हमेशा हमेशा के लिए...... तुम्हे बाहों में लेकर उड़ना चाहता हूं... प्लीज़.. कुच्छ बोलो...."

हम दोनो साँस रोके मीनू की प्रतिक्रिया की प्रतीक्षा कर रहे थे... जब हमारा ही ये हाल था तो..मीनू का दिल तो बाग बाग हो गया होगा... अपने लिए प्रेम भरे शब्दों का अमृत कलश पीकर....

मीनू ने बिना कुच्छ बोले एक लंबी साँस ली... काश मानव उस गरम साँस के साथ चिपक कर बाहर निकले प्रेमाणुओं को ही पहचान लेता... किसी 'अया' जैसी मदभरी गहरी 'वो' साँस' उसकी बेकरारी और स्वीकृति का परिचायक ही तो थी.... उसके थिरक उठे अनबोल, अनमोल लबों पर 'प्यार' का संगीत ही तो बाज रहा था उस वक़्त.... उसकी छातियो में अचानक उभर कर दिखने लगा कसाव 'प्रण पीड़ा' का ढिंढोरा ही तो पीट रहा था.... और मानव के हाथों पर कंपन सहित लहरा उठी मीनू की हथेलिया क्या 'ना' बोल रही थी?

पर मानव ये सब समझ जाता तो उसको हम 'घोनचू' क्यूँ कहते भला... पर बंदा हिमम्मत गजब की दिखा रहा था... अपने हाथों पर रखे मीनू के हाथों की उंगलियों को मानव ने अचानक अपनी उंगलियों में फँसा लिया...," बोलो ना मीनू!"

इस बार मीनू के होंतों से निकली 'आह' सीधी उसके 'कलेजे' से निकल कर आई लगती थी... पर फिर भी वो उसको शब्द नही दे पाई,"म्म..मुझे नही पता...!" कहकर मीनू ने अपने हाथ च्छुड़वा लिए... और 'बेसहारा' हो गये मानव के हाथ 'धुमम' से मीनू की गदराई जांघों पर आ गिरे... गिरे ही क्या.. वो तो वहीं चिपक कर रहे गये जैसे... आअस्चर्य की बात तो ये थी की मीनू ने भी उनको वहाँ से हटाने का दुस्साहस नही किया....

"तुम्हे मेरी कसम.. जो दिल में है बोल दो... अब भी अगर तुमने नही बोला तो मैं अभी चला जाउन्गा...!" मानव ने अलटिमेटम सा दे दिया....

आईला... कसम दी थी या कोई कामदेव प्रदत्त प्रेमस्त्रा ही छ्चोड़ दिया 'घोनचू' ने... मानव की धमकी अभी पूरी भी नही हुई थी कि जाने कब से शरमाई, सकूचाई बैठी मीनू एक दम से चारपाई से नीचे सरक कर उसके पहलू में ही आ बैठी...छाती से चिपक कर मीनू ने एक बार फिर वैसी ही 'आह' भरी.. पर अब की बार 'आह' ने शब्दों का चोला पहन लिया था...,"आइ... लव यू मानव!"

उधर दोनो के दिल 'सारंगी' पर छिदि तान की भाँति झंझणा उठे होंगे और इधर चोरी छिपे प्रेम रस के सच्चे आनंद में डूबे हुए हम दोनो भी यौवन रस से भीग गये.... अब झिर्री से आँख हटाना तो क्या, पलकें झपकना भी हमें दुश्वार लग रहा था... पर मैने पिंकी के कसमसाते हुए नितंबों की थिरकन को अपनी जाँघ पर महसूस कर लिया था... जाने अंजाने ही 'वो' मेरी जाँघ को अपनी 'कच्ची मछ्लि' पर रगड़ कर वैसे ही आनंद उठना चाह रही होगी जैसा उस वक़्त मीनू को मिल रहा होगा.. उसके 'इतने' करीब जाकर....

अचानक मीनू अपने आपको मानव के बाहुपाश से मुक्त करवाने के लिए च्चटपटाने लगी..,"छ्चोड़ो अब.. दूर हटो.. अया.. हह"

उसकी च्चटपटाहत भी ठीक ही थी.... 'दूर' रहकर जवानी की तड़प को नियंत्रण में रखना जितना मुश्किल है... महबूब की बाहों में पिघल कर भी 'यौवन रस' में डूबी 'योनि' पर हो रहे जुदाई के ज़ुल्म को सहना उस'से लाख दर्जे मुश्किल होता है....,"प्लज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़... उन्हू.. छ्चोड़ दो ना.... जाने दो अब.. बोल दिया ना...!" मानव जैसे ही मीनू की बगल और घुटनो के नीचे हाथ डाल कर उसको बाहों में लेकर खड़ा हुआ... मस्ती से गन्गना उठी मीनू अपने पाँव हवा में पटाकने लगी......

शुक्र हुआ कि मानव कम से कम अब उसकी 'ना ना' को 'हाँ हाँ' समझने लगा था... मानव अपनी बाँह को उपर करते हुए मीनू के सुर्ख गुलाबी हो चुके चेहरे को अपने होंटो के करीब लाया और मीनू की 'बोलती' बंद कर दी..... इधर मेरा हाथ भी पिंकी के कूल्हे से सरक कर उसके कमसिन पेट पर जा चिपका था और पिंकी को मेरे करीब खींचने में जुट गया था.....

"आआअहह..." जैसे ही मानव मीनू के रसीले होंटो का रसास्वादन करके पिछे हटा.. मीनू आँखें फाड़ कर मानव के चेहरे को देखने की कोशिश करने लगी... कोशिश इसीलिए कह रही हूँ कि वह सच में अपनी आँखों को खोले रखने के लिए कोशिश ही कर रही थी... लगभग मदहोश हालत में मीनू बड़बड़ाई," मैं पागल हो जाउन्गि.. छ्चोड़ दो प्लीज़.... मुझसे सहन नही हो रहा ये सब...!"

मानव के होंटो से मीनू को 'पी' लेने की तृप्ति भी झलक रही थी और उसकी आँखों से 'अधूरी प्यास' भी..," अब नही जान... अब पिछे नही हटा जाएगा... आज ही.. अभी... प्लीज़... कर लेने दो मुझे मनमानी....!" मानव उसको अपनी गोद में लिए हुए ही चारपाई पर बैठ गया......

"अया... एक बार उपर जाकर देख तो आने दो.... कहीं कोई जाग ना रही हो अभी..." मीनू ने मानव की च्चती से चिपक कर जैसे ही ये शब्द बोले.. हम पर मानो पहाड़ सा टूट पड़ा.. स्वपन लोक से हम सीधे धरती पर आकर गिरे थे... पिंकी हड़बड़कर पीछे हटी और फुसफुसाई..,"भागो जल्दी.....!" और हम बिना आहट किए दो दो पैदियों को एक साथ लाँघते हुए अपने बिस्तेर में आकर दुबक गयी और रज़ाई औध ली.......

मीनू चुपके से आई... कुच्छ देर वहीं खड़ी रही और फिर हमारे कमरे में जल रही लाइट बंद करके तेज़ी से नीचे उतर गयी....

"गयी अंजू... अब वो क्या करेंगे....?" बेताब सी नज़रों से मुझे देखते हुए पिंकी ने पूचछा.....

"आओ, देखें....!" मैं झट से बिस्तेर से उठ कर खड़ी हो गयी.....

"नही.. अब मैं नही जाउन्गि..." पिंकी की बात पर मुझे आस्चर्य हुआ...,"क्यूँ? चल ना...!"

पिंकी ने 'ना' में सिर हिला दिया..,"मैं नही जाउन्गि.. तू भी मत जा....!"

"पर क्यूँ यार.. आ ना.. मज़े आएँगे..." मैने हाथ खींचते हुए उसको बैठाने की कोशिश की....

"नही.. मुझे सब पता है... अब 'वो' दोनो कपड़े निकल कर नंगे हो जाएँगे... मुझे शर्म आ रही है..!" पिंकी के कयामत ढा रहे उत्तेजित हो चुके चेहरे से बरबस ही भोलेपन का रस टपक पड़ा था.....

"तुझे नही जाना तो मत जा... मैं तो जाउन्गि...!" मैने कहा और बाहर आकर सीढ़ियाँ उतरने लगी....

पर सिवाय मायूसी के.. मेरे हाथ कुच्छ नही लगा... ज़ालिमों ने 'लाइट ऑफ' कर रखी थी.... फिर भी मैं काफ़ी देर तक दरवाजे से चिपकी खड़ी रही... दोनों का प्रथम प्रण मिलन अद्भुत रहा होगा... रह रह कर कमरे से आ रही मस्ती की मस्त किलकरियों , आआहएं.. पीड़जनक क्षणिक चीत्कार.. और आनंद में डूबी सिसकियाँ इस बात का सबूत थी.....

आवाज़ें आनी बंद होते ही मैं अपने हाथ मलते हुए उपर चढ़ने लगी....

क्रमशः...........................

gataank se aage..................

"Ab dekh le iski kartoot..." Meenu khana shuru karte hi boli...,"wapas kyun bula liya usko...? Dekh lena agar mummy papa ko pata chal gaya toh main toh seedha seedha tera naam le doongi...!" Meenu jaldi jaldi khana kha rahi thi....

Pinky ka niwala uske munh mein jate jate rah gaya.. wah aankhein nikal kar boli..,"Kyun? ... Mera naam kyun logi...?"

"Aur nahi toh kya? achchha bhala ja raha tha.. kya padi thi tujhe usko wapas bulane ki... Ghar mein hum teen ladkiyan aur ye akela mard...! kisi ko bhi pata chal gaya toh kya sochega?" Meenu tukur tukur Pinky ki aur dekhte huye boli....

"Mujhe nahi pata.. bhej do beshak wapas..Mera naam kyun logi..?" .. maine toh...!"Pinky ne bolte huye meri aur dekha aur achanak chup ho gayi...

"Kya maine toh..? bol ab!" Meenu tunak kar boli...

"kuchh nahi...!" Pinky ne apna sir jhuka liya....

"Nahi nahi.. bhej ab tu hi wapas..! tu hi bula kar layi thi na andar... ab tu hi bol de usko.. chala jayega.. usko khud bhi toh sochna chahiye..! hai na Anju?" Meenu ne Mujhse poochha.. main khali usko dekh kar rah gayi....

"Theek hai bol deti hoon...!" Pinky ne gusse se khali thali jameen par patak kar rakhi aur khadi ho gayi.. Bol deti hoon abhi jakar.. ki Meenu kah rahi hai aap chale jao...!" Pinky ne kaha aur bahar nikalne lagi....

"A pagal...!" Meenu uske pichhe doudti huyi bahar nikali..,"ruk ja.. aise thode hi kahte hain... achchha kuchh nahi kahoongi... bus! aaja!" Meenu usko pakad kar jabardasti andar kheench layi....

"Nahi.. aap toh aise kah rahi ho jaise... aapke liye hi toh maine usko roka hai...!" Thunakti huyi Pinky ne mere saamne hi Meenu ki pole khol di.... Main aascharya se Meenu ke munh ki aur dekhne lagi.....

"achchha.. tu toh aise bol rahi hai jaise tune mujh par ahsaan kar diya... mere liye kyun roka hai..? sharm nahi aati tujhe aisa bolte huye..." Meenu ne sakpaka kar Pinky ko chhod diya.. par Pinky wahan se nahi hili....

"aur nahi toh kya? mujhe pata hai aap unse pyar karti ho....!" Pinky ka chehra murjhaya hua tha lekin uski aankhon mein chamak thi....

"Main hai na teri...." Meenu daant pees kar banawati gusse se boli...,"kya bakwas kar rahi hai tu... bitti bhar ki ladki hai.. juban itni chala rahi hai.. tujhe pata chal gaya 'pyar' kya hota hai.. haan? aane de mummy ko.. kal teri khair nahi...." Meenu ka chehra safed ho gaya tha..... Hadbadahat mein usne ek chanta Pinky ke gaal par raseed kar diya... Pinky chup hokar muskurati huyi apne gaal ko sahlane lagi...

"Thodi der neeche chalein...!" Jaise hi humara khana poora hua.. Pinky ne kaha...

"Jao jisko jana hai..!.. badi aayi... mujhe nahi jana..." Meenu badbadati huyi boli..,"Ye doodh le jana uska.. aur rajayi maange toh nikal kar de aana...!" Meenu apna sa munh lekar baith gayi....

"Theek hai.. hum toh ja rahe hain.. aa ja Anju.. rahne de isko yahin...!" Pinky ne usko chidate huye sa kaha...

"Nahi.. main kya karoongi..? tum jakar de aao!" Meenu ke bina mujhe bhi neeche jana achchha nahi laga....

"aa na.. sun toh!" Pinky ne mujhe lagbhag jabardasti kheench liya.. fir jyada virodh maine bhi nahi kiya tha.. Ek baar Meenu ko dekha aur uske sath bahar nikal gayi... Pinky ne doodh ka gilas bhara aur hum dono neeche chale gaye.....

Hum neeche utare toh Manav charpayi par baitha seedhiyon ki aur hi dekh raha tha.. uske hath mein diary thi.... Pinky ne usko doodh ka gilas pakdaya aur almari se rajayi aur kambal uske sath wali charpayi par rakh diye... Manav ka dhyan ab bhi seedhiyon ki aur hi jama hua tha...,"Meenu so gayi kya?"

"Nahi usne neeche aane se mana kar diya...!" Pinky seedhe seedhe shabdon mein boli....

"Achchha?" Manav ne muskurakar kaha aur fir apne honton par ungali karke hamein chup rahne ka ishara kiya... baat hamari samajh mein nahi aayi thi.. par uske ishara karte hi hum dono chup ho gaye....

Manav ne chupke se doodh ka gilas farsh par rakha aur bina joote daale khada hokar aahat kiye bagair seedhiyon ki aur jane laga... Tab tak bhi hamari samajh mein nahi aaya tha ki uska irada kya hai....

Jaise hi Manav ne seedhiyon ke paas jakar andar jhanaka.. Hum awaak rah gaye.. Hamein Meenu ki cheekh si sunayi di..,"aaaayiii....!"

"ha ha ha... yahan chhup kar kya sun rahi ho..! neeche aa jao na!" Manav hanste huye palat kar apni charpayi par ja baitha... Sharmayi aur sahmi huyi si Meenu neeche kamre mein aayi aur almari mein kuchh dhoondhne ka dikhawa karne lagi...," Mmmain toh apna kuchh.. dhoondhne aayi thi....!"

Meenu ko range hathon pakde jate huye dekh kar Pinky jis tareeke se khilkhila kar hansi.. main bhi apni muskaan ko chhipa kar na rakh saki....

"Kya hai...?" Meenu ke gaalon par ude huye rang ke sath hi hulki si sharm ki laali bhi pasri huyi thi...,"Bataoon kya tujhe?"

"Kya?" Pinky deeth hokar ab bhi hans rahi thi....

"Kal bataaungi tujhe...?" Meenu badbadayi aur almari se bina kuchh liye upar jane lagi....

"Kya ho gaya yaar? itna gussa kyun?" Manav ne bhi hanste huye hi kaha toh Meenu ke kadam wahin thithak gaye... par wo kuchh bol nahi payi....

"Bata doon didi?" Pinky ke chehre par ab bhi ajeeb si shaitani jhalak rahi thi.. shayad usko pata tha ki Manav ke aage Meenu usko kuchh nahi kahegi... Ya fir usko pata tha ki Meenu ka gussa hathi ke daant hain.... sirf dikhane ke liye...

Meenu ne palat kar Pinky ko ungali dikhayi...,"Bahut bol rahi hai tu.. tujhe toh main....!"

"Ab bata bhi do..! aisa kya ho gaya 15 minute mein hi....!"

"2 baatein hain..." Pinky Meenu ki chetawani ko ansuna karte huye muskurayi....

"achchha...! wo kya?" Manav bhi Meenu ko pareshan karne ke liye Pinky ki taraf ho gaya...

"didi isiliye gussa hain kyunki maine aapko wapas...." Pinky ki itni baat sunte hi Meenu krodhit hokar usko maarne ko doudi... par Pinky ke paas toh jaise aaj achook tareeka tha.. bachne ka... wo hanste huye hi bhag kar Manav ke paas jakar khadi ho gayi... Aur wahan toh jaise Meenu ke liye lakshaman rekha kheenchi huyi thi.. Manav se kuchh doori par hi uske kadam thithak gaye... Manav ko apni taraf dekhta pakar Meenu sharm se jhanjhanati huyi wapas palat gayi aur mere paas aakar baith gayi..,"tujhe toh main...!" Meenu sachmuch gussa ho gayi thi..,"Jhooth bol rahi hai ye.. maine aisa nahi bola tha...!" Meenu safayi dene lagi.....

"Kya? meri toh baat hi samajh mein nahi aayi... theek se batao na!" Manav Pinky ki taraf dekh kar bola....

"Rahne do... ab ye mana kar rahi hai toh.. fir dusri baat hogi....!" Pinky ne chatkhare lekar kaha....

"Toh wo hi bata do....?" Manav ne bolte huye Pinky ka hath pakadna chaha.. par wo sakucha kar pichhe hat gayi...

"wwo.. wo aap isi se poochh lena.. main nahi bata sakti....!" Pinky shararati lahje se boli....

"Tum hi bata do yaar...!" Manav Meenu ki aur dekhta hua bola....,"Kuchh nahi hai.. bakwas kar rahi hai ye.. kal mummy ko bataaungi toh ekdum seedhi ho jayegi.. aapke saamne hi isko jyada baatein aa rahi hain..." Meenu Pinky ko dekh gurrakar boli....

Manav ne ek gahri saans li aur Meenu ki aur dekhta raha.. Par Meenu uss'se najrein nahi mila pa rahi thi.. rah rah kar apni palkein uthati aur wapas jhuka leti.. aisa lag raha tha jaise dono ek dusre ko aankhon hi aankhon mein kuchh kahna chahte hain... Par shayad hum 'kaante' bane huye the....

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Shayad Pinky bhi waisa hi soch rahi thi jaisa main..,"Sorry didi.. ab kuchh nahi bolungi...!" Kahte huye wah dheere dheere uske paas aakar khadi ho gayi.. Meenu ne koyi jawab nahi diya....

"Main abhi wapas aayi..." Pinky ne kaha aur mera hath pakad kar boli...,"aana Anju ek baar...!"

"Kya?" Maine apna hath chhudane ki koshish nahi ki.....

"aa toh ek baar... aap baitho didi.. hum abhi aate hain...!" Pinky ne ek baar fir se kaha toh main khadi hokar uske sath chal di...

"Mmmain bhi aa rahi hoon...!" Meenu hadbada kar hamare sath hi khadi ho gayi...

"wwo.. Meenu.. mujhe tumse baat karni thi.. baithogi thodi der....!" Manav ki ye baat toh hamein sunayi de gayi thi.. par Meenu ne kya jawaab diya.. ye mujhe nahi pata... Hum upar chadh chuke the.... Meenu nahi aayi......

Pinky jate hi bister par rajayi lekar late gayi... Maine khade khade hi uss'se poochha..," Tu kuchh karne aayi thi na upar?"

"Nahi.. aise hi neend aa rahi hai...!" Pinky ne kaha aur rajayi mein chehra dhak liya...

"Par tune toh ye kaha tha ki abhi aaye.. Meenu wait kar rahi hogi hamara...!" Maine bhi apni rajayi lekar baithte huye kaha.....

"Wo toh maine aise hi kah diya tha... Hamne ek minute bhi becharon ko akele baat karne nahi di..." Kahkar Pinky hansne lagi....

"Aey.. ek baat bata.. Meenu kya sach mein Manav se pyar karti hai...?" Maine utsukta se poochha....

"aur nahi toh kya? aise hi uski baatein kar kar ke mere kaan khati hai kya? tumhe nahi lagta?" Pinky ne ulta mujhse hi sawaal kiya....

"aisi kya baat karti hai wo..?" Maine uske chehre se rajayi hata di....

"ab kya bataaun.. Sara din Manav ye.. Manav wo.. Manav itna achchha hai.. Manav utna achchha hai... sara din.. main kya samajhti nahi hoon kuchh.. wo gussa bhi tumhe dikhane ke liye hi kar rahi thi.. Mujhe sab pata hai.. usko bahut achchha laga hoga jab maine kaha ki wo Manav se pyar karti hai...!" Pinky muskurayi....

"aise toh tu bhi sara din Harry ye.. harry wo.. karti rahti hai.. toh kya tu bhi...?" Maine jaan boojh kar usko chheda....

"Chup ho ja ab.. so ja..." Pinky meri baat sunkar sharma gayi.. Usne takiya apne sir ke neeche se nikal kar apne seene se chipkaya aur karwat lekar munh dhak liya......

Maine jaanboojh kar Pinky ko jyada tang nahi kiya... Idhar udhar ghoom kar mera dimag Manav aur Meenu ki jodi par aakar tik gaya... Sach mein bahut hi pyare lagte the dono ek sath.. Manav ka 'ye' poochhna ki Meenu mere baare mein kya baatein karti hai.. ab meri samajh mein aa raha tha.. Uss waqt toh main yahi soch baithi thi ki 'wo' mujh par hi line maar raha hai....

Achanak mujhe khayal aaya.. Meenu aadhe ghante se neeche hi baithi hai... 'Kahin Manav aur Meenu....' Soch kar hi mere badan mein chirparichit jhurjhuri si doud gayi.. 'Manav toh kuchh nashe mein bhi lag raha tha.. kahin shuru toh nahi ho gaya....?' Mere mann mein koundha....

Wo kahte hain na... ki chor chori se jaye heraferi se na jaye... Kaamwasna ki lapton mein khud ko jhulsa lene ke baad bhi mere mann mein ajeeb sa kotuhal mach raha tha... 'Chhup kar Manav aur Meenu ki baatein sun'ne ka...

aakhir pata toh karoon.. chakkar kya hai.. main mann hi mann soch hi rahi thi ki Pinky uth baithi.. Ye sochkar ki kahin Pinky mujhe jagi dekh kar baatein na karne lag jaye.. maine turant aankhein band kar li....

Wo chupchap charpayi se uthi aur bahar nikal gayi....

Ye sochkar ki wo peshab karne bathroom mein gayi hogi.. main apni aankhein band kiye padi rahi aur uske wapas aakar so jane ka intzaar karne lagi... par had toh tab ho gayi jab usko gaye huye bhi 10 minute se upar ho gaye.....

"aakhir maajra kya hai?" Maine socha aur jo kuchh mere mann mein aaya.. mera matha thanak gaya.... "Kahin Pinky mujhe jaanboojh kar upar lekar toh nahi aayi thi...?" Mann mein aate hi mein jhat se uthi aur bahar bathroom ke paas jakar dekha.. par bathroom toh bahar se band tha....

"Hey bhagwan! dono bahne ek sath....!" Uss waqt yahi baat mere mann mein aayi thi.. Maine neeche jane ka faisla kar liya......

Maine wapas andar aakar apni shawl li aur usmein khud ko lapet kar jaise hi aahista se seedhiyon mein kadam rakha... Meri hansi chhootne ko ho gayi...

Pinky neeche wale darwaje ki jhirri mein apni aankh lagaye kamre mein ho rahi gatividhiyon ko dekhne ki koshish kar rahi thi... Maine upar se hi hulki si aawaj ki..,"shhhhhh!"

Pinky boukhlakar uchhal si padi... Mujhe dekha aur sharmayi huyi si dheere dheere chalkar upar aa gayi.....

"Kya dekh rahi thi..." Maine dheere dheere hanste huye poochha....

"kkkuchh nahi.. wwo.. Meenu ko mat batana plz.. bahut maregi mujhe!" Pinky sakuchati huyi boli....

"Nahi yaar.. main nahi bolungi kuchh... Par Meenu ab tak upar kyun nahi aayi.. kya kar rahe hain dono..?" Maine honton par shararat bhari muskaan late huye poochha....

"Kuchh nahi.. dono wahin baithe hain jahan pahle baithe the..." Pinky ne batteesi nikali...,"Par darwaja band kar rakha hai..." Pinky ne bataya....

"Kyun? darwaja kyun band hai fir....? " Maine aankhein sikod kar poochha...

"Wahi toh main dekhne gayi thi... idiot hain dono!" Pinky hansne lagi.....

"Chal kar ek baar fir dekhein...?" Maine poochha....

Pinky khush ho gayi...,"Haan, chalo! Manav didi ko patane ki koshish kar raha hai... par didi maan nahi rahi... bhav kha rahi hain.. he he he...!" Pinky ne hanste huye kaha aur hum dono dabe paanv neeche chal pade....

Neeche jate hi hum dono ne aage pichhe khadi hokar darwaje ki jhirri se aankh laga li.... Pinky apne upar se mujhe dekhne dene ke liye thoda jhuki huyi thi.. Iss karan meri ek jaangh uske nitambon ki daraar mein dhansi huyi thi..... Maine ek hath Darwaje ke sath deewar par rakha aur dusra hath uske kulhe par rakh kar andar ka drishya dekhne lagi......

"Sach Meenu... Tumhari kasam yaar!" Ye pahli aawaj thi jo humne apne aankh aur kaan darwaje par lagane ke baad Manav ke munh se suni thi.. Wah abhi bhi Meenu se prayapt doori banaye apni charpayi par baitha apni ungaliyan matka raha tha...," Kuchh toh bolo... plz...!"

Meenu abhi bhi usi charpayi par thi jis par aadhe poune ghante pahle hum teeno baithe the.... Wah chup chap najrein jhukaye khisiyayi huyi si apne bayein hath se dayi baju ko upar neeche khuja rahi thi... Wo kuchh nahi boli....

"Plz yaar.. kuchh bol do.. mera dil baitha ja raha hai... maine tumse apne dil ki baat kahne ke liye hi thodi si pi li thi aaj....!" Manav ne yachna si ki....

Aakhirkaar hadbadayi huyi si Meenu ke lab bolne ke liye hile...,"Darwaja khol do plz.. mujhe darr lag raha hai...." Kahte huye usne ek baar bhi najarein upar nahi ki....

"Yaar.. agar jana hi hai toh darwaja khol kar chali jao.. maine koyi tala thode hi lagaya hai.. kundi hi toh laga rakhi hai.. main kuchh nahi bolunga... par abhi yahan se chala jaaunga.. tumhari kasam.....!" Manav hatash sa hokar bola....

"mmain.. main ja thode hi rahi hoon... par darwaja khol do plz... achchha thode hi lagta hai aise..." Meenu ne ek baar apni palakein upar ki aur Manav ko dekhte hi turant jhuka li.... Main Manav ki jagah hoti toh Meenu ke kaan ke neeche baja kar bolti.. ,"Tum khud bhi toh uthkar khol sakti ho... jab kholna hi nahi chahti toh drama karne ki kya jarurat hai.. aa jao na baahon mein..." he he he.... par Manav tha hi iss maamle mein anadi.. ye toh maine tubewell par hi jaan liya tha...

Par Manav ne koyi dusri hi dor pakad rakhi thi...,"Sirf ek baar bol do.. mujhse pyar karti ho ya nahi.... Fir mein kuchh nahi poochhoonga...!" Sunte hi hum dono ke kaan khade ho gaye.. hum dono ek dusri ki aankhon mein dekh kar muskuraye.. aur fir se darwaje ki jhirri dhoondhne lage.....

Meenu iss baar bhi chup hi rahi...

"Bol do na yaar... meri jaan logi kya ab..? kuchh toh bolo..." Manav bekaraar ho utha tha.....

Pata nahi Meenu ne apne hont hila kar kya kaha.. Manav ko bhi nahi suna.. hamein kaise sunta..,"Kya? kya bol rahi ho...?" Manav uthkar uske paas aa baitha.. Meenu turant chhuyimuyi ki tarah murjha kar ek taraf khisak li...

"Bolo na pls.. kya bola tha abhi...?" Manav ne Meenu ka hath pakad liya... Meenu ke chehre ka rang dekhte hi ban raha tha tab... kasmasakar usne apna hath chhudane ki koshish ki.. par asafal rahi.. aakhirkaar apna hath dheela chhod kar wah achanak tarare se boli...,"Tumhara sath toh sirf anju de rahi hai na...! usi ko bol do ye sab bhi ab... "

"Kya? usne aisa bola...!" Manav acharaj se bharkar bola...

"Usne kyun bola..? tumhi toh aaj dil khol kar taareef kar rahe the uski.. Jo sath de rahi hai.. usi ko bolo na..!" Meenu ki lajja chidchidepan mein badal gayi....

"Offoh.. wo baat..." Manav ne apne mathe par hath mara...,"Tum bhi na... achchha tumhi batao.. Anju jo kuchh tumhare liye kar rahi hai.. koyi dusri ladki kar deti kya?"

"Wo toh theek hai.. par..." Meenu ka munh abhi bhi chadha hua tha... bolte bolte wo chup ho gayi...

"Par kya? bolo..." Manav achanak charpayi se utha aur filmy style mein Meenu ke saamne jameen par ek ghutna tek kar baith gaya... Shukra raha Pinky ki hansi uske honton se bahar nahi aayi....

Meenu ne hadbadakar hatne ki koshish ki par Manav ne apne dono hath uske ghutno ki bagal mein charpayi par jama diye.. wah wahin baithi rahne par majboor ho gayi.. usne apna chehra aur bhi jhuka liya.. taki Manav ke nayan vaano se bach sake....

"Iss baar toh jawab mein Meenu ka rahi sahi aawaj bhi nahi nikli... Honton ko bus hilate huye usne apna sharm se laal ho chuka chehra 'na' mein hila diya......

"Ek baar idhar toh dekho, Meenu?" Manav uski aankhon mein dekhne ki koshish karta hua bola...

Meenu ne uske 'pyar' ko ijjat bakhsi aur pal bhar ke liye uss'se najarein char kar li... anadi se anadi bhi unn aankhon ki bhasha padh sakta tha... Manav pata nahi kis baat ka intzaar kar raha tha.. Bawlibooch! Mere badan mein jhurjhuri si uthi aur ek pal ke liye pichhe hatkar angdayi si li.. Jaise hi maine wapas jhirri se aankh satayi.. mujhe Pinky ki manosthiti ka bhi andaja ho gaya... Usne thoda pichhe hatkar wapas meri jangh ke beechon beech apne nitamb sata diye....

"Tumhari kasam Meenu... Maine tumse pahle 'pyar' ko kabhi nahi jana... Uss din jab tumhe pahli baar dekha tha.. tab se hi tumhara chehra mere dil mein bas gaya tha... Warna main kabhi 'Katil' ko pakadne ke liye itna lamba raasta nahi apnata.... Sirf tumhare liye.. tumhari kasam...!

Mummy ab ghar mein jald se jald apni 'bahu' dekhna chahti hain... Main vishvas ke sath kah sakta hoon ki unke mann mein apni bahu ki jo bhi chhavi hogi; tumse behtar nahi ho sakti... Mere bus unko batane bhar ki der hai.. wo doude chale aayenge yahan...!"

Manav ke kahte kahte sunhare sapno ki sajeeli dor se bandhe Meenu ke hath apne aap hi raing raing kar Manav ke hathon par jakar tik gaye... par najrein milane ka sahas wah ab bhi nahi kar pa rahi thi.... Uski gardan ek dum lambwat jhuki huyi thi.. hont khule huye the.. shayad kuchh bolna chahte honge.. par bol nahi pa rahe the.....

Manav ne ek baar fir bolna shuru kiya...,"Par jab tak tum haan nahi kah deti.. main unko yahan kaise bhej sakta hoon... kuchh bolo na plz.. kuchh toh bolo... mere liye pal pal kaatna mushkil ho raha hai... Main tumhe paane ko bekaraar hoon.. apne pahloo mein... hamesha hamesha ke liye...... Tumhe baahon mein lekar udna chahta hoon... Plz.. kuchh bolo...."

Hum dono saans roke Meenu ki pratikriya ki prateeksha kar rahe the... jab hamara hi ye haal tha toh..Meenu ka dil toh baag baag ho gaya hoga... Apne liye prem bhare shabdon ka amrit kalash peekar....

Meenu ne bina kuchh bole ek lambi saans li... Kass Manav Uss garam saans ke sath chipak kar bahar nikle premanuon ko hi pahchan leta... Kisi 'aaah' jaisi madbhari gahri 'wo' saans' uski bekarari aur sweekriti ka parichayak hi toh thi.... Uske thirak uthe anbol, anmol labon par 'pyar' ka sangeet hi toh baj raha tha uss waqt.... Uski chhatiyon mein achanak ubhar kar dikhne laga kasaav 'Pranay Peeda' ka dhindhora hi toh peet raha tha.... Aur Manav ke haathon par kampan sahit lahra uthi Meenu ki hatheliyan kya 'na' bol rahi thi?

Par Manav ye sab samajh jata toh usko hum 'ghonchu' kyun kahte bhala... Par banda himmmat gajab ki dikha raha tha... Apne hathon par rakhe Meenu ke hathon ki ungaliyon ko Manav ne achanak apni ungaliyon mein fansa liya...," Bolo na Meenu!"

Iss baar Meenu ke honton se nikli 'aah' seedhi uske 'kaleje' se nikal kar aayi lagti thi... par fir bhi wo usko shabd nahi de payi,"mm..mujhe nahi pata...!" Kahkar Meenu ne apne hath chhudwa liye... aur 'besahara' ho gaye Manav ke hath 'dhumm' se Meenu ki gadrayi jaanghon par aa gire... gire hi kya.. woh toh wahin chipak kar rahe gaye jaise... Aascharya ki baat toh ye thi ki Meenu ne bhi unko wahan se hatane ka dussahas nahi kiya....

"Tumhe meri kasam.. jo dil mein hai bol do... ab bhi agar tumne nahi bola toh main abhi chala jaaunga...!" Manav ne ultimatum sa de diya....

aaila... kasam di thi ya koyi kaamdev pradatt premastra hi chhod diya 'ghonchu' ne... Manav ki dhamki abhi poori bhi nahi huyi thi ki jane kab se sharmayi, sakuchayi baithi Meenu ek dum se charpayi se neeche sarak kar uske pahloo mein hi aa baithi...Chhati se chipak kar Meenu ne ek baar fir waisi hi 'aah' bhari.. par ab ki baar 'aah' ne shabdon ka chola pahan liya tha...,"I... Luv you Manav!"

Udhar dono ke dil 'saarangi' par chhidi taan ki bhanti jhanjhana uthe honge aur idhar chori chhipe prem ras ke sachche aanand mein doobe huye hum dono bhi youvan ras se bheeg gaye.... Ab jhirri se aankh hatana toh kya, palakein jhapkana bhi hamein dushwaar lag raha tha... Par maine Pinky ke kasmasate huye nitambon ki thirkan ko apni jaangh par mahsoos kar liya tha... Jane anjane hi 'wo' meri jaangh ko apni 'kachchi machhli' par ragad kar waise hi aanand uthana chah rahi hogi jaisa uss waqt Meenu ko mil raha hoga.. Uske 'ITNE' kareeb jakar....

Achanak Meenu apne aapko Manav ke baahupash se mukt karwane ke liye chhatpatane lagi..,"Chhodo ab.. door hato.. aaah.. hhhhh"

Uski chhatpatahat bhi theek hi thi.... 'Door' rahkar jawani ki tadap ko niyantran mein rakhna jitna mushkil hai... Mahboob ki baahon mein pighal kar bhi 'Youvan ras' mein doobi 'yoni' par ho rahe judayi ke julm ko sahna uss'se lakh darje mushkil hota hai....,"Plzzzzzzzzzzz... unhhoo.. chhod do na.... Jane do ab.. bol diya na...!" Manav jaise hi Meenu ki bagal aur ghutno ke neeche hath daal kar usko baahon mein lekar khada hua... Masti se gangana uthi Meenu apne paanv hawa mein patakne lagi......

Shukra hua ki Manav kam se kam ab uski 'na na' ko 'haan haan' samajhne laga tha... Manav apni baanh ko upar karte huye Meenu ke surkh gulabi ho chuke chehre ko apne honton ke kareeb laya aur Meenu ki 'bolti' band kar di..... Idhar mera hath bhi Pinky ke kulhe se sarak kar Uske kamsin pate par ja chipka tha aur Pinky ko mere kareeb kheenchne mein jut gaya tha.....

"aaaaahhhhh..." Jaise hi Manav Meenu ke raseele honton ka rasaswadan karke pichhe hata.. Meenu aankhein faad kar Manav ke chehre ko dekhne ki koshish karne lagi... koshish isiliye kah rahi hoon ki wah sach mein apni aankhon ko khole rakhne ke liye koshish hi kar rahi thi... Lagbhag madhosh halat mein Meenu badbadayi," Main pagal ho jaaungi.. chhod do plz.... Mujhse sahan nahi ho raha ye sab...!"

Manav ke honton se Meenu ko 'pi' lene ki tripti bhi jhalak rahi thi aur uski aankhon se 'adhoori pyaas' bhi..," Ab nahi jaan... ab pichhe nahi hata jayega... aaj hi.. abhi... plz... kar lene do mujhe manmani....!" Manav usko apni god mein liye huye hi charpayi par baith gaya......

"aaah... ek baar upar jakar dekh toh aane do.... Kahin koyi jaag na rahi ho abhi..." Meenu ne Manav ki chhati se chipak kar jaise hi ye shabd bole.. hum par maano pahad sa toot pada.. Swapan lok se hum seedhe dharti par aakar gire the... Pinky hadbadakar Pichhe hati aur fusfusayi..,"Bhago jaldi.....!" Aur hum bina aahat kiye do do paidiyon ko ek sath laanghte huye apne bister mein aakar dubak gayi aur rajayi audh li.......

Meenu chupke se aayi... Kuchh der wahin khadi rahi aur fir hamare kamre mein jal rahi light band karke tezi se neeche utar gayi....

"Gayi Anju... Ab wo kya karenge....?" Betaab si najron se mujhe dekhte huye Pinky ne poochha.....

"aao, dekhein....!" Main jhat se bister se uth kar khadi ho gayi.....

"Nahi.. ab main nahi jaaungi..." Pinky ki baat par mujhe aascharya hua...,"Kyun? chal na...!"

Pinky ne 'na' mein sir hila diya..,"Main nahi jaaungi.. tu bhi mat ja....!"

"Par kyun yaar.. aa na.. maje aayenge..." Maine hath kheenchte huye usko baithane ki koshish ki....

"Nahi.. mujhe sab pata hai... ab 'wo' dono kapde nikal kar nange ho jayenge... mujhe sharm aa rahi hai..!" Pinky ke kayamat dha rahe uttejit ho chuke chehre se barbas hi bholepan ka ras tapak pada tha.....

"Tujhe nahi jana toh mat ja... Main toh jaaungi...!" Maine kaha aur bahar aakar seedhiyan utarne lagi....

Par sivay mayoosi ke.. mere hath kuchh nahi laga... Zalimon ne 'light off' kar rakhi thi.... Fir bhi main kafi der tak darwaje se chipki khadi rahi... Donon ka pratham pranay milan adbhut raha hoga... Rah rah kar kamre se aa rahi masti ki mast kilkariyon , aaahein.. peedajanak kshanik cheetkaar.. aur aanand mein doobi siskiyan iss baat ka saboot thi.....

Aawajein aani band hote hi main apne hath malte huye upar chadhne lagi....

kramshah...........................









आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj


















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