Sunday, May 2, 2010

उत्तेजक कहानिया -बाली उमर की प्यास पार्ट--4

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बाली उमर की प्यास पार्ट--4

गतांक से आगे.......................

ठीक पिच्छले दिन वाले टाइम पर ही तरुण ने नीचे आकर आवाज़ लगाई... मुझे पता था कि वो शाम को ही आएगा.. पर क्या करती, निगोडा दिल उसके इंतजार में जाने कब से धड़क रहा था.. मैं बिना अपनी किताबें उठाए नीचे भागी.. पर नीचे उसको अकेला देखकर मैं हैरान रह गयी...

"रिंकी नही आई क्या?" मैने बड़ी अदा से अपनी भीनी मुस्कान उसकी और उच्छली....

"नही.. उसका फोन आ गया था.. वो बीमार है.. आज स्कूल भी नही गयी वो!" तरुण ने सहज ही कहा....

"अच्च्छा... क्या हुआ उसको? कल तक तो ठीक थी..." मैने उसके सामने खड़ी होकर अपने हाथों को उपर उठा एक मादक अंगड़ाई ली.. मेरा सारा बदन चटक गया.. पर उसने देखा तक नही गौर से... जाने किस मिट्टी का बना हुआ था....

"पता नही.. आओ!" कहकर वो कमरे में जाने लगा....

"उपर ही चलो ना! चारपाई पर तंग हो जाते हैं..." मैं बाहर ही खड़ी थी..

"कहा तो था कल भी, कि चेर डाल लो... यहीं ठीक है.. कल यहाँ चेर डाल लेना.." उसने कहा और चारपाई पर जाकर बैठ गया...

"आ जाओ ना.. उपर कोई भी नही है..." मैं दोनो हाथों को दरवाजे पर लगाकर खड़ी हो गयी... आज भी मैने स्कूल ड्रेस ही डाली थी.. मेरी स्कर्ट के नीचे दिख रही घुटनो तक की चिकनी टाँगें किसी को भी उसके अंदर झाँकने को लालायित कर सकती थी.. पर तरुण था कि मेरी और देख ही नही रहा था," उपर टेबल भी है और चेर्स भी... चलो ना उपर!" मैने आग्रह किया....

अब की बार वो खड़ा हो गया.. अपने चस्में ठीक किए और 2 कदम चल कर रुक गया," चलो!"

मैं खुशी खुशी उसके आगे आगे मटकती हुई चलकर सीढ़ियाँ चढ़ने लगी.. यूँ तो मेरी कोशिश के बिना भी चलते हुए मेरी कमर में कामुक लचक रहती थी... जान बूझ कर और बल खाने से तो मेरे पिच्छवाड़े हाहाकार मच रहा होगा.. मुझे विस्वाश था....

उपर जाने के बाद वो बाहर ही खड़ा रह गया.. मैने अंदर जाने के बाद मुड़कर देखा," आओ ना.. अंदर!" मैने मुस्कुरकर उसको देखा... मेरी मुस्कुराहट में हरपाल एक कातिल निमंत्रण रहता था.. पर जाने क्यूँ वह समझ नही पा रहा था... या फिर जानबूझ कर मुझे तडपा रहा हो.... शायद!

तरुण अंदर आकर कुर्सी पर बैठ गया.. टेबल के सामने...

"कौनसी बुक लेकर आउ पहले!" मेरे चेहरे पर अब भी वैसी ही मुस्कान थी...

"साइन्स ले आओ! पहले वही पढ़ लेते हैं.." तरुण ने मेरे चेहरे के भावों को पढ़ने की पहली बार कोशिश सी की... मुझे बड़ा आनंद आया.. मेरी और उसको यूँ लगातार देखते पाकर....

"ठीक है..." मैने कहा और बॅग में किताब ढूँढने लगी... किताब मुझे मिल गयी पर मैने उसके देखने के ढंग से उत्साहित होकर नही निकली," पता नही कहाँ रख दी... रात को मैं पढ़ रही थी.. हूंम्म्म? " मैने थोड़ा सोचने का नाटक किया और उसकी तरफ पीठ करके अपने घुटने ज़मीन पर रखे और नितंबों को उपर उठा आगे से बिल्कुल झुक कर बेड के नीचे झाँकने लगी... ठीक उसी तरह जिस तरह अनिल चाचा ने मम्मी को झुका रखा था उस दिन; बेड पर....

इस तरह झुक कर अपने नितंब उपर उठाने से यक़ीनन मेरी स्कर्ट जांघों तक खिसक आई होगी.. और उसको मेरी चिकनी गदराई हुई गोरी जांघें मुफ़्त में देखने को मिली होंगी... मैं करीब 30-40 सेकेंड तक उसी पोज़िशन में रहकर बेड के नीचे नज़रें दौड़ती रही...

जब मैं खड़ी होकर पलटी तो उसका चेहरा देखने लायक था.. उसने नज़रें ज़मीन में गाड़ा रखी थी... उसके गोरे गाल लाल हो चुके थे.. ये इस बात का सबूत था कि उसने 'कुच्छ' ना 'कुच्छ' तो ज़रूर देखा है...

"यहाँ तो नही मिली.. क्या करूँ?" मैं उसकी और देख कर एक बार फिर मुस्कुराइ.. पर उसने कोई रेस्पॉन्स ना दिया....

"मुझे अलमारी के उपर चढ़ा दोगे क्या? क्या पता मम्मी ने उपर फैंक दी हो..." मेरे मॅन में सब कुच्छ क्लियर था कि अब की बार क्या करना है...

"रहने दो.. मैं देख लेता हूँ.." वो कहकर उठा और अलमारी को उपर से पकड़ कर कोहनियाँ मोड़ उपर सरक गया,"नही.. यहाँ तो कुच्छ भी नही है... छ्चोड़ो.. तुम मेथ ही ले आओ.. कल तक ढूँढ लेना..."

मैने मायूस सी होकर मेथ की किताब बॅग से निकाल कर टेबल पर पटक दी.. अब काठ की हांड़ी बार बार चढ़ाना तो ठीक नही है ना....

"वो पढ़ने लगा ही था की मैने टोक दिया," यहाँ ठीक से दिखाई नही दे रहा.. सामने बेड पर बैठ जाउ क्या?"

"लगता है तुम्हारा पढ़ने का मंन है ही नही.. अगर नही है तो बोल दो.. बेकार की मेहनत करने का क्या फ़ायडा..." तरुण ने हल्की सी नाराज़गी के साथ कहा....

मैने अपने रसीले होन्ट बाहर निकाले और मासूम बन'ने की आक्टिंग करते हुए हां में सिर हिला दिया," कल कर लेंगे पढ़ाई.. आज रिंकी भी नही है.. उसकी समझ में कैसे आएगा नही तो?"

"ठीक है.. मैं चलता हूँ.. अब जब रिंकी ठीक हो जाएगी.. तभी आउन्गा..." वह कहकर खड़ा हो गया....

"अरे बैठो बैठो... एक मिनिट..." मैने पूरा ज़ोर लगाकर उसको वापस कुर्सी पर बिठा ही दिया... वो पागल हुआ हो ना हो.. पर मैं उसको छ्छू कर मदहोश ज़रूर हो गयी थी.....

"क्या है अब!" उसने झल्ला कर कहा....

"बस एक मिनिट..." मैने कहा और किचन में चली गयी.....

कुच्छ ही पलों बाद में अपने हाथों में चाय और बिस्किट्स लेकर उसके सामने थी.. मैने वो सब टेबल पर उसके सामने परोस दिया.. परोस तो मैने खुद को भी दिया ही था उसके सामने, पर वो समझे तब ना!

"थॅंक्स.. पर इसकी क्या ज़रूरत थी...." उसने पहली बार मुस्कुरा कर मेरी और देखा... मैं खुस होकर उसके सामने बेड पर बैठ गयी...

"अंजलि! तुम स्कूल क्यूँ नही जाती...? रिंकी बता रही थी..." चाय की पहली चुस्की लेते हुए उसने पूचछा....

"अब क्या बताउ?" मैने बुरा सा मुँह बना लिया....

"क्यूँ क्या हुआ?" उसने हैरत से मेरी और देखा.. मैने कहा ही इस तरह से था की मानो बहुत बड़ा राज मैं च्चिपाने की कोशिश कर रही हूँ.. और पूच्छने पर बता दूँगी....

"वो...." मैने बोलने से पहले हल्का सा विराम लिया," पापा ने मना कर दिया..."

"पर क्यूँ?" वह लगातार मेरी ओर ही देख रहा था.....

"वो कहते हैं कि...." मैं चुप हो गयी और जानबूझ कर अपनी टाँगों को मोड़ कर खोल दिया... उसकी नज़रें तुरंत झुक गयी.. मैं लगातार उसकी और देख रही थी.. नज़रें झुकने से पहले उसकी आँखें कुच्छ देर मेरी स्कर्ट के अंदर जाकर ठहरी थी... मेरी पॅंटी के दर्शन उसको ज़रूर हुए होंगे....

कुच्छ देर यूँही ही नज़रें झुकी रहने के बाद वापस उपर उठने लगी.. पर इस बार धीरे धीरे... मैने फिर महसूस किया.. मेरी जांघों के बीच झँकता हुआ वो कसमसा उठा था.... उसने फिर मेरी आँखों में आँखें डाल ली....

"क्या कहते हैं वो.." उसकी नज़रें बार बार नीचे जा रही थी...

मैने जांघें थोड़ी सी और खोल दी...," वो कहते हैं कि मैं जवान हो गयी हूँ.. आप ही बताओ.. जवान होना ना होना क्या किसी के हाथ में होता है... ये क्या कोई बुरी बात है.... मैं क्या सच में इतनी जवान हो गयी हूँ कि स्कूल ही ना जा सकूँ?"

एक बार फिर उसने नज़रें झुका कर स्कर्ट के अंदर की मेरी जवानी का जयजा लिया... उसके चेहरे की बदली रंगत ये पुष्टि कर रही थी की उसका मन भी मान रहा है कि मैं जवान हो चुकी हूँ; और पके हुए रसीले आम की तरह मुझे चूसा नही गया तो मैं खुद ही टूटकर गिरने को बेताब हूँ.....

"ये तो कोई बात नही हुई... ज़रूर कोई दूसरी वजह रही होगी... तुमने कोई शरारत की होगी.. तुम छिपा रही हो..." अब उसकी झिझक भी खुल सी गयी थी.. अब वह उपर कम और मेरी जांघों के बीच ज़्यादा देख रहा था.. उसकी जांघों के बीच पॅंट का हिस्सा अब अलग ही उभरा हुआ मुझे दिखाई दे रहा था....

"नही.. मैने कोई शरारत नही की.. वो तो किसी लड़के ने मेरे बॅग में गंदी गंदी बातें लिख कर डाल दी थी.. वो पापा को मिल गया..." पूरी बेशर्मी के साथ बोलते बोलते मैने उसके सामने ही अपनी स्कर्ट में हाथ डाल अपनी कछि को ठीक किया तो वो पागला सा गया....

"आ..ऐसा क्या किया था उसने...? मतलब ऐसा क्या लिखा था..." अब तो उसकी नज़रें मेरी कछि से ही चिपक कर रह गयी थी.....

"मुझे शरम आ रही है... !" मैने कहा और अपनी जांघों को सिकोड कर वापस आलथी पालती लगा ली... मुझे लग रहा था कि अब तक वो इतना बेसबरा हो चुका होगा कि कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर कहेगा या करेगा....

मेरा शक ग़लत नही था... मेरी कछे के दर्शन बंद होते ही उसका लट्तू सा फ्यूज़ हो गया... कुच्छ देर तो उसको कुच्छ सूझा ही नही... फिर अचानक उठते हुए बोला," अच्च्छा! मैं चलता हूँ... एक बात बोलूं?"

"हां..!" मैने शर्मकार अपनी नज़रें झुका ली.. पर उसने ऐसा कुच्छ कहा कि मेरे कानो से धुआँ उठने लगा...

"तुम सच में ही जवान हो चुकी हो.. जब कभी स्कर्ट पहनो तो अपनी टाँगें यूँ ना खोला करो.. वरना तुम्हारे पापा तुम्हारा टूवुशन भी हटवा देंगे..." उसने कहा और बाहर निकलने लगा....

मैने भागकर उसकी बाँह पकड़ ली," ऐसा क्यूँ कह रहे हो..?"

वो दरवाजे के साथ खड़ा था और मैं अपने दोनो हाथों से उसके हाथ पकड़े उसके सामने खड़ी थी....

"मैने सिर्फ़ सलाह दी है.. बाकी तुम्हारी मर्ज़ी...!" उसने सिर्फ़ इतना ही कहा और अपनी नज़रें मुझसे हटा ली.....

"तुम्हे मैं बहुत बुरी लगती हूँ क्या?" मैने भरभरा कर कहा... उसके इस कदर मुझे लज्जित करके उठने से मैं आहत हुई थी... आज तक तो किसी ने भी नही किया था ऐसा... दुनिया मुझे एक नज़र देखने को तरसती थी और मैने उसको अपनी दुनिया ही दिखा दी थी... फिर भी!

"अब ये क्या पागलपन है... छ्चोड़ो मुझे...!" उसने हल्का सा गुस्सा दिखाते हुए कहा....

नारी कुच्छ भी सहन कर सकती है.. पर अपने बदन की उपेक्षा नही.. मेरे अंदर का नारी-स्वाभिमान जाग उठा.. मैं उस'से लिपट गयी.. चिपक गयी," प्लीज़.. बताओ ना.. मैं सुन्दर नही हूँ क्या? क्या कमी है मुझमें.. मुझे तड़पाकर क्यूँ जा रहे हो....."

मेरी चूचिया उसमें गाड़ी हुई थी... मैं उपर से नीचे तक उस'से चिपकी हुई थी.. पर उसस्पर कोई असर ना हुआ," हटो! अपने साथ क्यूँ मुझे भी जॅलील करने पर तुली हुई हो... छ्चोड़ो मुझे... मैं आज के बाद यहाँ नही आने वाला..." कहकर उसने ज़बरदस्ती मुझे बिस्तेर की तरफ धकेला और बाहर निकल गया....

मेरी आँखें रो रो कर लाल हो गयी... वह मुझे इस कदर जॅलील करके गया था कि मैं घर वालों के आने से पहले बिस्तेर से उठ ही ना सकी.....

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जब दो दिन तक लगातार वो नही आया तो पापा ने उसको घर बुलाया....," तुम आते क्यूँ नही बेटा?" मैं पास खड़ी थरथर काँप रही थी.. कहीं वो पापा को कुच्छ बता ना दे.....

"वो क्या है चाचा जी... आजकल मेरे एग्ज़ॅम की भी तैयारी करनी पड़ रही है.. और रात को धर्मपाल के घर जाना होता है.. उनकी बेटियों को पढ़ाने के लिए.. इसीलिए टाइम कम ही मिल पाता है..." बोलते हुए उसने मेरी तरफ देखा.... मैने आँखों ही आँखों में उसका धन्यवाद किया.....

"हूंम्म... कौनसी क्लास में हैं उसकी बेटियाँ?" पापा ने पूचछा....

"एक तो इसकी क्लास में ही है.. दूसरी इस साल कॉलेज जाने लगी है.. उसको इंग्लीश पढ़ाकर आता हूँ...." उसने जवाब दिया....

"तो तू ऐसा क्यूँ नही करता.. उनको भी यहीं बुला ले... नीचे कमरा तो खाली है ही अपना.. जब तक चाहे पढ़ा....!" पापा ने कहा....

"नही... वो यहाँ नही आएँगी चाचा... मुझे डबल पे करते हैं वो.. उनके घर रात को पढ़ाने के लिए... उन्होने मेरे घर आने से भी मना कर दिया था...." तरुण ने बताया....

"ओह्ह.. तो ठीक है.. मैं धर्मपाल से बात कर लूँगा... अंजलि भी वहीं पढ़ लेगी.. वो तो अपना ही घर है..." पापा ने जाने कैसे ये बात कह दी... मुझे बड़ा अजीब सा लगा था...," पर तुम्हे घर छ्चोड़ कर जाना पड़ेगा अंजू को.. रात की बात है और लड़की की जात है...."

तरुण ने हां में सिर हिला दिया... और मेरा रात का टूवुशन सेट हो गया... धर्मपाल चाचा के घर.....


धर्मपाल चाचा की दोनो लड़कियाँ बड़ी खूबसूरत थी... बड़ी को मेरे मुक़ाबले की कह सकते हैं.. मीनाक्षी... पिच्छले साल ही हमारे स्कूल से बारहवी की परीक्षा पास की थी... उसका यौवन भी मेरी तरह पूरे शबाब पर था... पर दिल से कहूँ तो वो मेरी तरह चंचल नही थी... बहुत ही शर्मीली और शरीफ स्वाभाव की थी.... घर बाहर सब उसको मीनू कहते थे.... प्यार से...

छ्होटी मेरी उमर की ही थी.. पर शरीर में मुझसे थोड़ी हल्की पड़ती थी... वैसे सुंदर वो भी बहुत थी और चंचल तो मुझसे भी ज़्यादा... पर उसकी चंचलता में मेरी तरह तड़प नही थी.. उन्मुक्त व्यवहार था उसका.. पर बच्चों की तरह... घर वालों के साथ ही आस पड़ोस में सबकी लाडली थी वो.. प्रियंका! हम सब उसको पिंकी कहते थे...

अगले दिन में ठीक 7 बजे नहा धोकर टूवुशन जाने के लिए तैयार हो गयी.. यही टाइम बताया था तरुण ने. मंन ही मंन मैं 3 दिन पहले वाली बात याद करके झिझक सी रही थी.. उसका सामना करना पड़ेगा, यही सोच कर मैं परेशान सी थी.. पर जाना तो था ही, सो मैने अपना बॅग उठाया और निकल ली....

धर्मपाल चाचा के घर जाकर मैने आवाज़ लगाई,"पिंकी!"

तभी नीचे बैठक का दरवाजा खुला और पिंकी बाहर निकली," आ गयी अंजू! आ जाओ.. हम भैया का इंतजार कर रहे हैं..." उसने प्यार से मेरी बाँह पकड़ी और अंदर ले गयी..

मैं मीनू की तरफ देख कर मुस्कुराइ.. वो रज़ाई में दुबकी बैठी कुच्छ पढ़ रही थी...

"तुम भी आज से यहीं पढ़ोगी ना अंजू? पापा बता रहे थे...!" मीनू ने एक नज़र मुझको देखा और मुस्कुरा दी....

"हां... दीदी!" मैने कहा और पिंकी के साथ चारपाई पर बैठ गयी..," यहीं पढ़ाते हैं क्या वो!"

जवाब पिंकी ने दिया," हां.. उपर टी.वी. चलता रहता है ना... वहाँ शोर होता है...इसीलिए यहीं पढ़ते हैं हम! तुम स्कूल क्यूँ नही आती अब.. सब टीचर्स पूछ्ते रहते हैं.. बहुत याद करते हैं तुम्हे सब!"

हाए! क्या याद दिला दिया पिंकी ने! मैं भी तो उन्न दीनो को याद कर कर के तड़पति रहती थी.. टीचर्स तो याद करते ही होंगे! खैर.. प्रत्यक्ष में मैं इतना ही बोली," पापा कहते हैं कि एग्ज़ॅम्स का टाइम आ रहा है... इसीलिए घर रहकर ही पढ़ाई कर लूँ...

"सही कह रही हो.. मैं भी पापा से बात करूँगी.. स्कूल में अब पढ़ाई तो होती नही..." पिंकी ने कहा....

"कब तक पढ़ाते हैं वो.." मैने पूचछा....

"कौन भैया? वो तो देर रात तक पढ़ाते रहते हैं.. पहले मुझे पढ़ाते हैं.. और जब मुझे लटके आने शुरू हो जाते हैं हे हे हे...तो दीदी को... कयि बार तो वो यहीं सो जाते हैं...!" पिंकी ने विस्तार से जानकारी दी....

मीनू ने हमें टोक दिया," यार.. प्लीज़! अगर बात करनी है तो बाहर जाकर कर लो.. मैं डिस्टर्ब हो रही हूँ..."

पिंकी झट से खड़ी हो गयी और मीनू की और जीभ दिखा कर बोली," चल अंजू.. जब तक भैया नही आ जाते.. हम बाहर बैठते हैं...!"

हम बाहर निकले भी नही थे कि तरुण आ पहुँचा... पिंकी तरुण को देखते ही खुश हो गयी," नमस्ते भैया..!"

सिर्फ़ पिंकी ने ही नमस्ते किए थे.. मीनू ने नही.. वो तो चारपाई से उठी तक नही... मैं भी कुच्छ ना बोली.. अपना सिर झुकाए खड़ी रही....

तरुण ने मुझे नीचे से उपर तक गौर से देखा.. मुझे नही पता उसके मॅन में क्या आया होगा.. पर उस दिन में उपर से नीचे तक कपड़ों से लद कर गयी थी.. सिर्फ़ उसको खुश करने के लिए... उसने स्कर्ट पहन'ने से मना जो किया था मुझे..

"आओ बैठो!" उसने सामने वाली चारपाई पर बैठ कर वहाँ रखा कंबल औध लिया.. और हमें सामने बैठने का इशारा किया...

पिंकी और मैं उसके सामने बैठ गये.. और वो हमें पढ़ाने लगे.. पढ़ाते हुए वो जब भी कॉपी में लिखने लगता तो मैं उसका चेहरा देखने लगती.. जैसे ही वह उपर देखता तो मैं कॉपी में नज़रें गाड़ा लेती... सच में बहुत क्यूट था वो.. बहुत स्मार्ट था!

उसको हमें पढ़ते करीब तीन घंटे हो गये थे.. जैसा कि पिंकी ने बताया था.. उसको 10:00 बजते ही नींद आने लगी थी," बस भैया.. मैं कल सारा याद कर लूँगी.. अब नींद आने लगी है...."

"तेरा तो रोज का यही ड्रम्मा है... अभी तो 10:30 भी नही हुए..." तरुण ने बड़े प्यार से कहा और उसके गाल पकड़ कर खींच लिए... मैं अंदर तक जल भुन गयी.. मेरे साथ क्यूँ नही किया ऐसा.. जबकि मैं तो अपना सब कुच्छ 'खिंचवाने' को तैयार बैठी थी... खैर.. मैं सब्र का घूँट पीकर रह गयी.....

"मैं क्या करूँ भैया? मुझे नींद आ ही जाती है.. आप थोड़ा पहले आ जाया करो ना!" पिंकी ने हंसते हुए कहा.. ताज्जुब की बात थी उसको मर्द के हाथ अपने गालों पर लगने से ज़रा सा भी फ़र्क़ नही पड़ा.. उसकी जगह मैं होती तो... काश! मैं उसकी जगह होती....

"ठीक है.. कल अच्छे से तैयार होकर आना.. मैं टेस्ट लूँगा.." कहते हुए उसने मेरी तरफ देखा," तुम क्यूँ मुँह फुलाए बैठी हो.. तुम्हे भी नींद आ रही है क्या?"

मैने उसकी आँखों में आँखें डाली और कुच्छ देर सोचने के बाद उत्तर दिया.. इशारे से अपना सिर 'ना' में हिलाकर... मुझे नींद भला कैसे आती.. जब इतना स्मार्ट लड़का मेरे सामने बैठा हो....

"तुम्हे पहले छ्चोड़ कर आउ या बाद में साथ चलोगि..." वह इस तरह बात कर रहा था जैसे पिच्छली बातों को भूल ही गया हो.. किस तरह मुझे तड़पति हुई छ्चोड़ कर चला आया था घर से... पर फिर भी मुझे उसका मुझसे उस घटना के बाद 'डाइरेक्ट' बात करना बहुत अच्च्छा लगा....

"आ.. आपकी मर्ज़ी है...!" मैने एक बार फिर उसकी आँखों में आँखें डाली....

"ठीक है.. चलो तुम्हे छ्चोड़ आता हूँ... पहले.." वह कहकर उठने लगा था की तभी चाची नीचे आ गयी," अरे.. रूको! मैं तो चाय बनाकर लाई थी की नींद खुल जाएगी.. पिंकी तो खर्राटे ले रही है..."

चाची ने हम तीनो को चाय पकड़ा दी और वहीं बैठ गयी..," अंजू! अगर यहीं सोना हो तो यहाँ सो जाओ! सुबह उठकर चली जाना... अब रात में कहाँ जाओगी.. इतनी दूर..."

"मैं छ्चोड़ आउन्गा चाची.. कोई बात नही..." तरुण चाय की चुस्की लेता हुआ बोला....

"चलो ठीक है.. तुम अगर घर ना जाओ तो याद करके अंदर से कुण्डी लगा लेना.. मैं तो जा रही हूँ सोने... उस दिन कुत्ते घुस गये थे अंदर..." चाची ने ये बात तरुण को कही थी.. मेरे अचरज का ठिकाना ना रहा.. कितना घुल मिल गया था तरुण उन्न सबसे.. अपनी जवान बेटी को उसके पास छ्चोड़ कर सोने जा रही हैं चाची जी... और उपर से ये भी छ्छूट की अगर सोना चाहे तो यहीं सो सकता है... मैं सच में हैरान थी... मुझे डाल में कुच्छ ना कुच्छ तो होने का शक पक्का हो रहा था... पर मैं कुच्छ बोली नही....

"आए पिंकी.. चल उपर...!" चाची ने पिंकी के दोनो हाथ पकड़ कर उसको बैठा दिया... पिंकी इशारा मिलते ही उसके पिछे पिछे हो ली.. जैसे उसकी आदत हो चुकी हो....

"चलो!" तरुण ने चाय का कप ट्रे में रखा और खड़ा हो गया... मैं उसके पिछे पिछे चल दी....

रास्ते भर हम कुच्छ नही बोले.. पर मेरे मन में एक ही बात चक्कर काट रही थी..," अब मीनू और तरुण अकेले रहेंगे... और जो कुच्छ चाहेंगे.. वही करेंगे....
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अगले दिन मैने बातों ही बातों में पिंकी से पूचछा था," मीनू कहाँ सोती है?"

"पता नही.. पर शायद वो भी उपर ही आ जाती हैं बाद में.. वो तो हमेशा मुझसे पहले उठ जाती हैं... क्यूँ?" पिंकी ने बिना किसी लाग लपेट के जवाब दे दिया...

"नही, बस ऐसे ही.. और तुम?" मैने उसकी बात को टाल कर फिर पूचछा....

"मैं.. मैं तो कहीं भी सो जाती हूँ.. उपर भी.. नीचे भी... तुम चाहो तो तुम भी यहीं सो जाया करो.. फिर तो मैं भी रोज नीचे ही सो जाउन्गि.. देखो ना कितना बड़ा कमरा है..." पिंकी ने दिल से कहा....

"पर.. तरुण भी तो यहाँ सो जाता है ना.. एक आध बार!" मेरी छानबीन जारी थी...

"हां.. तो क्या हुआ? यहाँ कितनी चारपाई हैं.. 6!" पिंकी ने गिन कर बताया...

"नही.. मेरा मतलब.. लड़के के साथ सोने में शर्म नही आएगी क्या?" मैने उसका मॅन टटोलने की कोशिश की....

"धात! कैसी बातें कर रही हो.. 'वो' भैया हैं.. और मम्मी पापा दोनो कहते हैं कि वो बहुत अच्छे हैं.. और हैं भी..मैं भी कहती हूँ!" पिंकी ने सीना तान कर गर्व से कहा....

मेरी समझ में कुच्छ नही आ रहा था.. मैं खड़ी खड़ी अपना सिर खुजाने लगी थी.. तभी मीनू नीचे आ गयी और मैने उसको चुप रहने का इशारा कर दिया....


क्रमशः ..................

Theek pichhle din wale time par hi Tarun ne neeche aakar aawaj lagayi... mujhe pata tha ki wo sham ko hi aayega.. par kya karati, nigoda dil uske intjaar mein jane kab se dhadak raha tha.. Main bina apni kitabein uthaye neeche bhagi.. par neeche usko akela dekhkar main hairan rah gayi...

"Rinki nahi aayi kya?" Maine badi ada se apni bheeni muskaan uski aur uchhali....

"Nahi.. uska fone aa gaya tha.. wo bimar hai.. aaj school bhi nahi gayi wo!" Tarun ne sahaj hi kaha....

"Achchha... kya hua usko? kal tak toh theek thi..." Maine uske saamne khadi hokar apne hathon ko upar utha ek madak angdayi li.. mera sara badan chatak gaya.. par usne dekha tak nahi gour se... jane kis mitti ka bana hua tha....

"Pata nahi.. aao!" Kahkar wo kamre mein jane laga....

"Upar hi chalo na! charpayi par tang ho jate hain..." Main bahar hi khadi thi..

"Kaha toh tha kal bhi, ki chair daal lo... yahin theek hai.. kal yahan chair daal lena.." Usne kaha aur charpayi par jakar baith gaya...

"Aa jao na.. upar koyi bhi nahi hai..." Main dono hathon ko darwaje par lagakar khadi ho gayi... aaj bhi maine school dress hi daali thi.. meri skirt ke neeche dikh rahi ghutno tak ki chikni taangein kisi ko bhi uske andar jhankne ko lalayit kar sakti thi.. par Tarun tha ki meri aur dekh hi nahi raha tha," upar table bhi hai aur chairs bhi... chalo na upar!" Maine aagrah kiya....

Ab ki baar wo khada ho gaya.. apne chasmein theek kiye aur 2 kadam chal kar ruk gaya," Chalo!"

Main khushi khushi uske aage aage matakti huyi chalkar seedhiyan chadhne lagi.. yun toh meri koshish ke bina bhi chalte huye meri kamar mein kamuk lachak rahti thi... jaan boojh kar aur bal khane se toh mere pichhwade hahakar mach raha hoga.. mujhe visvash tha....

Upar jane ke baad wo bahar hi khada rah gaya.. maine andar jane ke baad mudkar dekha," Aao na.. andar!" Maine muskurakar usko dekha... Meri muskurahat mein harpal ek katil nimantran rahta tha.. par jane kyun wah samajh nahi pa raha tha... ya fir jaanboojh kar mujhe tadpa raha ho.... shayad!

Tarun andar aakar kursi par baith gaya.. table ke saamne...

"Kounsi book lekar aaun pahle!" Mere chehre par ab bhi waisi hi muskaan thi...

"Science le aao! pahle wahi padh lete hain.." Tarun ne mere chehre ke bhawon ko padhne ki pahli baar koshish si ki... Mujhe bada anand aaya.. meri aur usko yun lagataar dekhte pakar....

"Theek hai..." Maine kaha aur bag mein kitab dhoondhne lagi... kitab mujhe mil gayi par maine uske dekhne ke dhang se utsahit hokar nahi nikali," pata nahi kahan rakh di... Raat ko main padh rahi thi.. hummmm? " Maine thoda sochne ka natak kiya aur uski taraf peeth karke apne ghutne jameen par rakhe aur nitambon ko upar utha aage se bilkul jhuk kar bed ke neeche jhankne lagi... theek usi tarah jis tarah Anil chacha ne mummy ko jhuka rakha tha uss din; bed par....

iss tarah jhuk kar apne nitamb upar uthane se yakeenan meri skirt janghon tak khisak aayi hogi.. aur usko meri chikni gadrayi huyi gori jaanghein muft mein dekhne ko mili hongi... main kareeb 30-40 second tak usi position mein rahkar bed ke neeche najrein doudati rahi...

jab main khadi hokar palti toh uska chehra dekhne layak tha.. usne najrein jameen mein gada rakhi thi... uske gore gaal laal ho chuke the.. ye iss baat ka saboot tha ki usne 'kuchh' na 'kuchh' toh jaroor dekha hai...

"Yahan toh nahi mili.. kya karoon?" Main uski aur dekh kar ek baar fir muskurayi.. par usne koyi response na diya....

"Mujhe almari ke upar chadha doge kya? kya pata mummy ne upar faink di ho..." Mere mann mein sab kuchh clear tha ki ab ki baar kya karna hai...

"Rahne do.. main dekh leta hoon.." wo kahkar utha aur almari ko upar se pakad kar kohniyan mod upar sarak gaya,"Nahi.. yahan toh kuchh bhi nahi hai... chhodo.. tum math hi le aao.. kal tak dhoondh lena..."

Maine mayoos si hokar math ki kitab bag se nikal kar table par patak di.. ab kath ki haandi baar baar chadhana toh theek nahi hai na....

"Wo padhane laga hi tha ki maine tok diya," Yahan theek se dikhayi nahi de raha.. Saamne bed par baith jaaun kya?"

"Lagta hai tumhara padhne ka mann hai hi nahi.. agar nahi hai toh bol do.. bekar ki mehnat karne ka kya faayda..." Tarun ne hulki si narajgi ke sath kaha....

Maine apne rasile hont bahar nikale aur maasoom ban'ne ki acting karte huye haan mein sir hila diya," Kal kar lenge padhayi.. Aaj rinki bhi nahi hai.. uski samajh mein kaise aayega nahi toh?"

"Theek hai.. main chalta hoon.. ab jab Rinki theek ho jayegi.. tabhi aaunga..." Wah kahkar khada ho gaya....

"Arey baitho baitho... ek minute..." Maine poora jor lagakar usko wapas kursi par bitha hi diya... wo pagal hua ho na ho.. par main usko chhoo kar madhosh jaroor ho gayi thi.....

"Kya hai ab!" Usne jhalla kar kaha....

"Bus ek minute..." Maine kaha aur kitchen mein chali gayi.....

kuchh hi palon baad mein apne hathon mein chay aur biscuits lekar uske saamne thi.. Maine wo sab table par uske saamne paros diya.. paros toh maine khud ko bhi diya hi tha uske saamne, par wo samjhe tab na!

"Thanx.. par iski kya jarurat thi...." Usne pahli baar muskura kar meri aur dekha... main khus hokar uske saamne bed par baith gayi...

"Anjali! tum School kyun nahi jati...? Rinki bata rahi thi..." Chay ki pahli chuski lete huye usne poochha....

"Ab kya bataaun?" Maine bura sa munh bana liya....

"Kyun kya hua?" Usne hairat se meri aur dekha.. maine kaha hi iss tarah se tha ki mano bahut bada raaj main chhipane ki koshish kar rahi hoon.. aur poochhne par bata doongi....

"Wo...." Maine bolne se pahle hulka sa viram liya," papa ne mana kar diya..."

"Par kyun?" Wah lagataar meri aur hi dekh raha tha.....

"Wo kahte hain ki...." Main chup ho gayi aur jaanboojh kar apni taangon ko mod kar khol diya... uski najrein turant jhuk gayi.. main lagataar uski aur dekh rahi thi.. najrein jhukane se pahle uski aankhein kuchh der meri skirt ke andar jakar thahari thi... Meri panty ke darshan usko jaroor huye honge....

Kuchh der yunhi hi najrein jhuki rahne ke baad wapas upar uthne lagi.. par iss baar dheere dheere... maine fir mahsoos kiya.. meri janghon ke beech jhankta hua wo kasmasa utha tha.... usne fir meri aankhon mein aankhein daal li....

"Kya kahte hain wo.." uski najrein baar baar neeche ja rahi thi...

maine jaanghein thodi si aur khol di...," Wo kahte hain ki main jawan ho gayi hoon.. aap hi batao.. jawan hona na hona kya kisi ke hath mein hota hai... ye kya koyi buri baat hai.... main kya sach mein itni jawaan ho gayi hoon ki School hi na ja sakoon?"

Ek baar fir usne najrein jhuka kar skirt ke andar ki meri jawani ka jayja liya... uske chehre ki badli rangat ye pushti kar rahi thi ki uska man bhi maan raha hai ki main jawaan ho chuki hoon; aur pake huye rasile aam ki tarah mujhe toda nahi gaya toh main khud hi tootkar girne ko betaab hoon.....

"Ye toh koyi baat nahi huyi... jaroor koyi dusri wajah rahi hogi... tumne koyi shararat ki hogi.. tum chhipa rahi ho..." Ab uski jhijhak bhi khul si gayi thi.. ab wah upar kam aur meri jaanghon ke beech jyada dekh raha tha.. Uski jaanghon ke beech pant ka hissa ab alag hi ubhara hua mujhe dikhayi de raha tha....

"Nahi.. maine koyi shararat nahi ki.. wo toh kisi ladke ne mere bag mein gandi gandi baatein likh kar daal di thi.. wo papa ko mil gaya..." Poori besharmi ke sath bolte bolte maine uske saamne hi apni skirt mein hath daal apni kachchhi ko theek kiya toh wo pagla sa gaya....

"aa..aisa kya kiya tha usne...? matlab aisa kya likha tha..." Ab toh uski najrein meri kachchhi se hi chipak kar rah gayi thi.....

"Mujhe sharam aa rahi hai... !" Maine kaha aur apni jaanghon ko sikod kar wapas aalthi paalthi laga li... Mujhe lag raha tha ki ab tak wo itna besabra ho chuka hoga ki kuchh na kuchh jaroor kahega ya karega....

Mera shak galat nahi tha... meri kachchhi ke darshan band hote hi uska lattoo sa fuse ho gaya... kuchh der toh usko kuchh soojha hi nahi... fir achanak uthte huye bola," achchha! main chalta hoon... ek baat bolun?"

"Haan..!" Maine sharmakar apni najrein jhuka li.. par usne aisa kuchh kaha ki mere kaano se dhuan uthne laga...

"Tum sach mein hi jawaan ho chuki ho.. jab kabhi skirt pahno toh apni taangein yun na khola karo.. warna tumhare papa tumhara tuition bhi hatwa denge..." usne kaha aur bahar nikalne laga....

Maine bhagkar uski baanh pakad li," Aisa kyun kah rahe ho..?"

Wo darwaje ke sath khada tha aur main apne dono hathon se uske hath pakde uske saamne khadi thi....

"Maine sirf salaah di hai.. baki tumhari marji...!" Usne sirf itna hi kaha aur apni najrein mujhse hata li.....

"Tumhe main bahut buri lagti hoon kya?" Maine bharbhara kar kaha... uske iss kadar mujhe lajjit karke uthne se main aahat huyi thi... aaj tak toh kisi ne bhi nahi kiya tha aisa... duniya mujhe ek najar dekhne ko tarasti thi aur maine usko apni duniya hi dikha di thi... fir bhi!

"Ab ye kya pagalpan hai... chhodo mujhe...!" Usne hulka sa gussa dikhate huye kaha....

Nari kuchh bhi sahan kar sakti hai.. par apne badan ki upeksha nahi.. mere andar ka nari-swabhimaan jaag utha.. main uss'se lipat gayi.. chipak gayi," pls.. batao na.. main sunder nahi hoon kya? kya kami hai mujhmein.. mujhe tadapakar kyun ja rahe ho....."

Meri chhatiyan usmein gadi huyi thi... main upar se neeche tak uss'se chipki huyi thi.. par usspar koyi asar na hua," hato! apne sath kyun mujhe bhi jaleel karne par tuli huyi ho... chhodo mujhe... main aaj ke baad yahan nahi aane wala..." kahkar usne jabardasti mujhe bister ki taraf dhakela aur bahar nikal gaya....

Meri aankhein ro ro kar laal ho gayi... wah mujhe iss kadar jaleel karke gaya tha ki main ghar waalon ke aane se pahle bister se uth hi na saki.....

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Jab do din tak lagataar wo nahi aaya toh papa ne usko ghar bulaya....," tum aate kyun nahi beta?" Main paas khadi tharthar kaamp rahi thi.. kahin wo papa ko kuchh bata na de.....

"Wo kya hai chacha ji... aajkal mere exam ki bhi taiyari karni pad rahi hai.. aur raat ko dharmpal ke ghar jana hota hai.. unki betiyon ko padhane ke liye.. isiliye time kam hi mil pata hai..." Bolte huye usne meri taraf dekha.... Maine aankhon hi aankhon mein uska dhanyawad kiya.....

"Hummm... kounsi class mein hain uski betiyan?" papa ne poochha....

"Ek toh iski class mein hi hai.. dusri iss saal college jane lagi hai.. usko English padhakar aata hoon...." Usne jawab diya....

"Toh tu aisa kyun nahi karta.. unko bhi yahin bula le... neeche kamra toh khali hai hi apna.. jab tak chahe padha....!" papa ne kaha....

"Nahi... wo yahan nahi aayengi chacha... mujhe double pay karte hain wo.. unke ghar raat ko padhane ke liye... unhone mere ghar aane se bhi mana kar diya tha...." Tarun ne bataya....

"Ohh.. toh theek hai.. main dharmpal se baat kar loonga... Anjali bhi wahin padh legi.. wo toh apna hi ghar hai..." Papa ne jane kaise ye baat kah di... mujhe bada ajeeb sa laga tha...," Par tumhe ghar chhod kar jana padega anju ko.. raat ki baat hai aur ladki ki jaat hai...."

Tarun ne haan mein sir hila diya... aur mera Raat ka tuition set ho gaya... Dharmpal chacha ke ghar.....
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Dharmpal chacha ki dono ladkiyan badi khoobsoorat thi... badi ko mere mukable ki kah sakte hain.. Meenakshi... pichhle saal hi hamare school se barahwi ki pareeksha paas ki thi... uska youvan bhi meri tarah poore shabaab par tha... par dil se kahoon toh wo meri tarah chanchal nahi thi... bahut hi sharmeeli aur Shareef swabhav ki thi.... Ghar bahar sab usko meenu kahte the.... pyar se...

Chhoti meri umar ki hi thi.. par shareer mein mujhse thodi hulki padti thi... waise sundar wo bhi bahut thi aur chanchal toh mujhse bhi jyada... par uski chanchalta mein meri tarah tadap nahi thi.. unmukt vyavhaar tha uska.. par bachchon ki tarah... ghar walon ke sath hi aas pados mein sabki laadli thi wo.. Priyanka! hum sab usko pinki kahte the...

Agle din mein theek 7 baje naha dhokar tuition jane ke liye taiyaar ho gayi.. Yahi time bataya tha Tarun ne. Mann hi mann main 3 din pahle wali baat yaad karke jhijhak si rahi thi.. Uska saamna karna padega, yahi soch kar main pareshan si thi.. par jana toh tha hi, so maine apna bag uthaya aur nikal li....

Dharmpal chacha ke ghar jakar maine aawaj lagayi,"Pinki!"

Tabhi neeche baithak ka darwaja khula aur Pinki bahar nikali," Aa gayi Anju! aa jao.. hum bhaiya ka intjaar kar rahe hain..." Usne pyar se meri baanh pakdi aur andar le gayi..

Main Meenu ki taraf dekh kar muskurayi.. Wo Rajayi mein dubaki baithi kuchh padh rahi thi...

"Tum bhi aaj se yahin padhogi na Anju? Papa bata rahe the...!" Meenu ne ek najar mujhko dekha aur muskura di....

"Haan... didi!" Maine kaha aur pinki ke sath charpayi par baith gayi..," Yahin padhate hain kya wo!"

Jawab Pinki ne diya," Haan.. upar T.V. chalta rahta hai na... wahan shor hota hai...isiliye yahin padhte hain hum! Tum School kyun nahi aati ab.. sab teachers poochhte rahte hain.. bahut yaad karte hain tumhe sab!"

Haye! kya yaad dila diya pinki ne! main bhi toh unn dino ko yaad kar kar ke tadapti rahti thi.. teachers toh yaad karte hi honge! khair.. pratyaksh mein main itna hi boli," Papa kahte hain ki exams ka time aa raha hai... isiliye ghar rahkar hi padhayi kar loon...

"Sahi kah rahi ho.. main bhi papa se baat karoongi.. School mein ab padhayi toh hoti nahi..." Pinki ne kaha....

"kab tak padhate hain wo.." Maine poochha....

"koun bhaiya? wo toh der raat tak padhate rahte hain.. pahle mujhe padhate hain.. aur jab mujhe latke aane shuru ho jate hain he he he...toh didi ko... kayi baar toh wo yahin so jate hain...!" Pinki ne vistaar se jaankari di....

Meenu ne hamein tok diya," Yaar.. pls! agar baat karni hai toh bahar jakar kar lo.. main disturb ho rahi hoon..."

Pinki jhat se khadi ho gayi aur Meenu ki aur jeebh dikha kar boli," Chal Anju.. jab tak bhaiya nahi aa jate.. ham bahar baithte hain...!"

Ham bahar nikale bhi nahi the ki Tarun aa pahuncha... Pinki Tarun ko dekhte hi khush ho gayi," Namastey bhaiya..!"

Sirf Pinki ne hi namastey kiye the.. Meenu ne nahi.. wo toh charpayi se uthi tak nahi... Main bhi kuchh na boli.. apna sir jhukaye khadi rahi....

Tarun ne mujhe neeche se upar tak gour se dekha.. mujhe nahi pata uske mann mein kya aaya hoga.. par uss din mein upar se neeche tak kapdon se lad kar gayi thi.. Sirf usko khush karne ke liye... usne Skirt pahan'ne se mana jo kiya tha mujhe..

"Aao baitho!" Usne saamne wali charpayi par baith kar wahan rakha kambal audh liya.. aur hamein saamne baithne ka ishara kiya...

Pinki aur main uske saamne baith gaye.. aur wo hamein padhane lage.. Padhate huye wo jab bhi copy mein likhne lagta toh main uska chehra dekhne lagti.. jaise hi wah upar dekhta toh main copy mein najrein gada leti... Sach mein bahut cute tha wo.. bahut smart tha!

Usko hamein padhate kareeb teen ghante ho gaye the.. jaisa ki pinki ne bataya tha.. usko 10:00 bajte hi neend aane lagi thi," Bus bhaiya.. main kal sara yaad kar loongi.. ab neend aane lagi hai...."

"Tera toh roj ka yahi dramma hai... abhi toh 10:30 bhi nahi huye..." Tarun ne bade pyar se kaha aur uske gaal pakad kar kheench liye... main andar tak jal bhun gayi.. mere sath kyun nahi kiya aisa.. jabki main toh apna sab kuchh 'khinchwane' ko taiyaar baithi thi... khair.. main sabra ka ghoont peekar rah gayi.....

"Main kya karoon bhaiya? mujhe neend aa hi jati hai.. aap thoda pahle aa jaya karo na!" Pinki ne hanste huye kaha.. taajjub ki baat thi usko mard ke haath apne gaalon par lagne se jara sa bhi farq nahi pada.. uski jagah main hoti toh... Kash! main uski jagah hoti....

"theek hai.. kal achchhe se taiyaar hokar aana.. main test loonga.." Kahte huye usne meri taraf dekha," Tum kyun munh fulaye baithi ho.. tumhe bhi neend aa rahi hai kya?"

Maine uski aankhon mein aankhein daali aur kuchh der sochne ke baad uttar diya.. ishare se apna sir 'na' mein hilakar... Mujhe neend bhala kaise aati.. jab itna smart ladka mere saamne baitha ho....

"Tumhe pahle chhod kar aaun ya baad mein sath chalogi..." Wah iss tarah baat kar raha tha jaise pichhli baaton ko bhool hi gaya ho.. kis tarah mujhe tadapti huyi chhod kar chala aaya tha ghar se... par fir bhi mujhe uska mujhse uss ghatna ke baad 'direct' baat karna bahut achchha laga....

"aa.. aapki marji hai...!" Maine ek baar fir uski aankhon mein aankhein daali....

"Theek hai.. chalo tumhe chhod aata hoon... pahle.." Wah kahkar uthne laga tha ki tabhi chachi neeche aa gayi," Arey.. ruko! main toh chay banakar layi thi ki neend khul jayegi.. Pinki toh kharrate le rahi hai..."

Chachi ne hum teeno ko chay pakda di aur wahin baith gayi..," Anju! agar yahin sona ho toh yahan so jao! subah uthkar chali jana... ab raat mein kahan jaaogi.. itni door..."

"Main chhod aaunga chachi.. koyi baat nahi..." Tarun chay ki chuski leta hua bola....

"Chalo theek hai.. tum agar ghar na jao toh yaad karke andar se kundi laga lena.. main toh ja rahi hoon sone... uss din kutte ghus gaye the andar..." Chachi ne ye baat tarun ko kahi thi.. mere acharaj ka thikana na raha.. kitna ghul mil gaya tha Tarun unn sabse.. apni jawaan beti ko uske paas chhod kar sone ja rahi hain chachi ji... aur upar se ye bhi chhoot ki agar sona chahe toh yahin so sakta hai... main sach mein hairan thi... mujhe daal mein kuchh na kuchh toh hone ka shak pakka ho raha tha... par main kuchh boli nahi....

"Aey Pinki.. chal upar...!" Chachi ne Pinki ke dono hath pakad kar usko baitha diya... Pinki ishara milte hi uske pichhe pichhe ho li.. jaise uski aadat ho chuki ho....

"Chalo!" Tarun ne chay ka cup tray mein rakha aur khada ho gaya... Main uske pichhe pichhe chal di....

Raaste bhar hum kuchh nahi boley.. par mere man mein ek hi baat chakkar kaat rahi thi..," Ab Meenu aur Tarun akele rahenge... aur jo kuchh chahenge.. wahi karenge....
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Agle din maine baaton hi baaton mein Pinki se poochha tha," Meenu kahan soti hai?"

"Pata nahi.. par shayad wo bhi upar hi aa jati hain baad mein.. wo toh hamesha mujhse pahle uth jati hain... kyun?" Pinki ne bina kisi laag lapet ke jawaab de diya...

"Nahi, bus aise hi.. aur tum?" Maine uski baat ko taal kar fir poochha....

"Main.. main toh kahin bhi so jati hoon.. upar bhi.. neeche bhi... Tum chaho toh tum bhi yahin so jaya karo.. fir toh main bhi roj neeche hi so jaaungi.. dekho na kitna bada kamra hai..." Pinki ne dil se kaha....

"Par.. Tarun bhi toh yahan so jata hai na.. ek aadh baar!" Meri chhanbeen jari thi...

"Haan.. toh kya huaa? yahan kitni charpayi hain.. 6!" Pinki ne gin kar bataya...

"Nahi.. mera matlab.. ladke ke sath sone mein sharm nahi aayegi kya?" Maine uska mann tatolne ki koshish ki....

"Dhat! kaisi baatein kar rahi ho.. 'wo' bhaiya hain.. aur mummy papa dono kahte hain ki wo bahut achchhe hain.. aur hain bhi..main bhi kahti hoon!" Pinki ne seena taan kar garv se kaha....

Meri samajh mein kuchh nahi aa raha tha.. main khadi khadi apna sir khujane lagi thi.. Tabhi Meenu neeche aa gayi aur maine usko chup rahne ka ishara kar diya....











आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj





















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