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ननद ने खेली होली--11
मैं अपनी बडी ननद लाली के चेहरे के उपर आते जाते भावों को देख रही थी। पहले तो जीत की पीठ हम लोगों के सामने थी लेकिन थोडी देर में गुड्डी पलटी तो वो एक दम सामने...पहले तो लग रहा था की उन्हे कुछ अन्कम्फर्टेबल लग रहा है...लेकिन कुछ भांग और दूबे भाभी के यहां की दारु की मस्ती...पीर जो रगड के होली हम लोगों ने उन के साथ खेली थी....और शायद मोबाइल की फोटुयें...अब उन्हे भी मजा आ रहा था। मुझसे बोलीं, तू भी जा ना, लेकिन मैं टाल गयी, अरे नहीं दीदी थोडी देर तो जीजा साली की होली हो ले ने दीजिये, फिर वहीं से मैने से ननदोई जी को ललकारा,
अरे आप साली की ब्रा से होली खेल रहे हैं...या साल्ली से।
सही..। बोलीं सलह्ज जी आप और दूसरा हाथ भी ब्रा में।
फ्रंट ओपेन ब्रा के फायदे भी होते हैं और नुकसान भी। गुड्डी का नुकस्सान हो गया और नन्दोई जी का फायदा। चटाक से उस टीन ब्रा का फ्रंट हुक चटाक से खुल गया...और दोनों गोरे जवानी के दुधिया कबूतर...फडफडा के...जैसे उडाने के पहले उनले पंखो पे किसी ने लाल गुलाबी रंग लगा दिये हों....गोरे उभारों पे जीजा की उंगलियों के लाल गुलाबी निशान....कुछ देर में एक हाथ स्कर्ट के अंदर चुनमुनिया की भी खॊज खबर ले रहा था। शरमा के उसने दोनों जांघे भींच ली पर हाथ तो पहंच ही चुका था।
दोनों जीजा, साली अपनी दुनिया में मस्त थे। मैं चुपके से आंगन में पहुंची। तीन बाल्टीयों मे मैने पहले से ही रंग घोल के रखा था...और एक बाल्टी तेजी से नन्दोई जी के उपर ....और जैसे ही वो गुड्डी को छॊड के मेरी ओर मुडे दूसरी बालटी का रग निशाना लगा के सीधे पाजामे पे....उनके तन्नाये खूंटे पे...पाजामा पैरों से एक दम चिपक गया और बालिश्त भर का ...इत्ती देर से किशोर साली के साथ रगडाइ मसलाइ का असर...उत्तेजित खूंटा साफ साफ...।
पीछे से गुड्डी और आगे से मैं।
बाजी अब पलट चुकी थी। मैने गुड्डी को समझाया ....पहले चीर हरण...बाकी होली फिर आराम से..।
और उधर जीत मेरे ननदोई जो काम साली के साथ कर रहे थे अब मेरे साथ कर रहे थे और उकसाया मैने ही था....क्यों ननदोई जी...साली का तो खूब मींज, मसला और सलाह्ज का...।
उनके दोनो हाथ मेरे ब्लाउज में मेरे मम्मों के साथ होली खेलने में लगे थे की मैने और गुड्डी ने मिल के उनके कुरते के चिथडे कर दिये।
फट तो मेरा ब्लाउज भी गया लेकिन मैने उनके दोनों हाथों को कस के पीछे कर के पकड लिया और गुड्डी ने उनके फटे हुये कुरते से ही कस के बांध दिया। आखिर 'प्रेसीडेंट गाइड' का अवार्ड मिला था और नाट बांधने में एक्सपर्ट थी। आगे पीछे कर के चेक भी कर लिया एक दम कसी किसी हालत में छुडा नहीं सकते थे वो।
आगे का मोर्चा गुड्डी ने संहाला, पीछे का मैने। चालाक वो, उसने अपने जीजा के कुरते की पूरी तलाशी ली। रंगों के ढेर सारे पैकेट, पेंट के ट्यूब, वार्निश, तरह के कल्रर के सूखे पेंट के पाउडर....बडी तैयारी से आये थे आप ...लेकिन चलिये आप पे ही लग जाये गा ये सारा। उनको दिखाते हुये उसने हथेली पे लाल और सुनहला रंग मिलाया और सीधे उनके छाती पे....वार्निश लगी उंगलियों से उनके निपल को रंगते, फ्लिक करते बोली,
जीजू....आपने तो सिर्फ मेरी ब्रा का हुक तोडा था लेकिन देखिये हम लोगों ने आप को पूरी तरह से टाप लेस कर दिया।
पीछे से मैं कडाही और तवे की कालिख लगे हाथों से उनकी पीठ और ....फिर मेरा हाथ पाजामे के अंदर चला गया। कडे कडे चूतड....दूसरा हाथ उसी तरह उनके निपल दबा पिंच कर रहे थे....जिस तरह से थोडी देर पहले वो दबा मसल रहे थे...।
मेरी देखा देखा देखी गुड्डी का भी हाथ पेट पे रंग लगाते लगाते फिसल के...।
मेरी उंगली तब तक..।
वो हल्के से चीखे...।
क्या बहोत दिनों से गांड नहीं मरवाई है क्या जो बचपन की प्रैक्टिस भूल गयी है ननदोई जी....मैने तो सुना था की मेरी ननद की ससुराल की चाहे लडकियां हो या मर्द बडे से बडा लंड हंसते घोंट जाते हैं ...और धक्का देके मैने पूरी अंगुली...आखिस रंग हर जगह लगबा था।
अरे गुड्डी सब जगह तो तुमने रंग लगा दिया ...लेकिन पाजामे के अंदर इनकी टांगों पे...क्या यहां पे इनकी छिनाल बहने आ के लगायेंगी।
अरे अभी लीजीये ....उन साल्लियों की हिम्मत मेरे जीजा जी को हाथ लगायें....और पाजामे का नाडा तो उसने खोल दिया लेकिन अभी भी वो कुल्हे में फंसा था...दोनों हाथों से पकड के मैने उसे नीचे खींच दिया।
अब वो सिर्फ चड्ढी में...और बो भी एक दम तनी हुयी...लग रहा था अब फटी तब फटी।
रंग लगे हाथों से मैने पहले तो चड्डी पे हाथ फेरा...फिर उनके बल्ज को कस कस के दबाया। बेचारे की हालत खराब हो रही थी। गुड्डी ने जो पाजामे के अंदर हाथ डाला था ...उसके रंग अभी भी चड्ढी पे थे।
क्यों हो जाय चीर हरण पूरा....आंख नचा के मैने गुड्डी से पूछा।
एक दम भाभी हंस के वो बोली। हाथों में लगा रंग खूल के चड्ढी पे वो साथ साथ लगा दबा रही थी।
लेकिन ये हक सिर्फ साली का है...हंस के मैने कहा।
ओ के..और अपने जीजा से वो चिपट गइ। उसके टीन बूब्स, उनकी खुली छाती से रगड रहे थे, और उठी स्कर्ट से ..पैंटी सीधे चड्ढी में से तन्नाये भाले की नोक पे.....हल्के हल्के रगडते...उसने अपने एक हाथ से अब उनके खूंटे को पकड के दबा दिया और द्सरा हाथ उनकी गर्द्नन पे लगा ....खींचते हुये....कान में हल्के से जीभ छुलाते पूछा...।
क्यों जीजू मार लिया जाय की ...छोड दिया जाय।
मैं जीत को पीछे से दबोचे थी। मेरे उभार कस के उनके पीठ पे रगड रहे थे ....और दोनों हाथ उनके निपल पे जैसे कोइ मर्द कस के पीछे से किसी औरत को पकड के स्तन मर्दन करे....।
अरे बिचारे अपनी छिनाल बहनों को छोड के ससुराल में मरवाने ही तो आये हैं...मार ले। मैने गुड्डी से उन्हे सुनाते कहा।
वो उन्हे छोड के दूर हट गयी, फिर अपने दोनों हाथों से चड्ढी के वेस्ट बैंड को पकड के नीचे सरकाया। पीछे से मैं भी उसका साथ दे रही थी। लेकिन फिर वो रुक गयी।
नितम्ब पूरे खुले गये थे और चड्ढी सिर्फ उत्तेजित लिंग पे लटकी थी। पीछॆ से मैं कस कस के उनके दोनों कडे चूतड दबा रही थी, दोनों हाथों से खींच के फैला रही थी।
आप सोच सकते हैं होली में एक ओर से किशोर नई नवेली साली और पीछे से मादक सलहज..।
एक झटके से उसने चड्ढी खींच के उपर छत पे फेंक दी।
जैसे कोइ बटन दबाने पे निकलने वाला चाकू स्प्रिंग के जोर से निकल आये ....पूरे बालिश्त भर का उनका लंबा मोटा लंड....।
देख मैं कह रही थी ना की इस पे जरा भी रंग नहीं लगा है ...ये काम सिर्फ साली का है....रंग दे इसको भी...इस लंड के डंडे को....मैने उसे चढाया।
एक दम भाभी....बिना शरमाये ..आंगन में बह रहे रंग उसने हाथ में लगा के दोनों हाथों से....फिर उसे लगा की शायद इससे काम नहीं चलेगा....तो दोनों हाथों में उसने खूब गाढा लाल रंग पोता...और मुट्ठी में ले के आगे पीछे...कुछ ही देर में वो लाल भभूका हो रहा था। मेरे ननदोइ का लंड मैं कैसे छोड देती....जब वह दूसरे कोट के लिये हाथ में रंग लगाती तो फिर मैं ....बैंगनी....काही...इतना कडा लग रहा था ....बहोत अच्छा...मै सोच रही थी...अगर हाथ में इतना अच्छा लग रहा है तो बुर में कितना अच्छा लगता होगा.जब गुड्डी ने फिर उसे अपने किशोर शरमाते झिझकते हाथों में पकड लिया तो मैं उनके लटकते बाल्स पे..।
थोडी ही देर में ५-६ कोट रंग उस पे भी लग गया था।
यहां से जाके अपनी बहन हेमा से हफ्ते भर चुसवाना....तब जाके छुटेगा ये रंग....साली सलहज का लगाया रंग है कोई मजाक नहीं।
लाली एक टक हम लोगों को देख रही थीं
अरे दुल्हन का घूंघट तो खोल ...और उसने एक बार में सुपाडे का चमडा खींच दिया और ...जोश से भरा, पहाडी आलू ऐसा खोब मोटा लाल सुपाडा..।
अरे तू ले ले इसको मुंह में बडा मस्त है...।
नहीं भाभी...अपनी बडी दीदी की ओर देख के वो हिचकी।
अरे छिनाल पना ना कर मुझे मालूम है, अभी थोडी देर पहले मुंह, गांड, चूत सब में न जाने कितनी बार इसी लंड को गटका होगा। धीमी आवाज में मैने उसे डांटा।
अरे नहीं भाभी भॊली सूरत बना के वो बोली, कहां...जीजू का मुंह में नहीं लिया था सिर्फ एक बार गांड में और दो बार चूत में....नदीदे की तरह वो उस मस्त सुपाडे को देख रहे थे।
तो ले ले ना...साल्ली है तो साल्ली का पहल हक है जीजा के लंड पे...मैने जोर से अबकी बोला।
वो अभी भी अपनी बडी दीदी को देख रही थी।
अरे पूछ ले ना अपनी दीदी से मना थोडे ही करेंगी....मैने फिर चढाया।
दीदी ...ले लूं...लंड की ओर ललचाइ निगाह से देखती वो बोली।
लाली कुछ नहीं बोली।
अरे साफ साफ बोल ना क्या लेना चाहती है तू, तब तो वो बोलेंगी। मैने फिर हड्काया।
लंड को पकड के अबकी हिम्मत कर वो बोली, दीदी, ले लूं....जीजा का लंड....मुंह में।
अरे ले ले...मेरी छोटी बहन है। तू नहीं लेगी तो क्या इनकी गदहा चोदी बहन लेगी...उसके तो वैसे ही ७०० यार हैं.....लाली भी अब मस्ती में आ गयी थीं।
गुड्डी ने रसदार लीची की तरह झट गडप कर लिया।
मैने भी पीछे से इनके हाथ खोल दिये....अब तो नन्दोइ जी ने कस के दोनों हाथों से उसका सर पकड के सटासट...गपागप ...उसका मुंह चोदना शुरु कर दिया था। और वो भी उसके गुलाबी गाल कस कस के फूल चिपक रहे थे....आधे से ज्यादा लंड वो गडप कर गयी थी और खूब मस्ती से चूस रही थी। जीभ नीचे से चाट रही थी...होंठ कस कस के लिंग को रगड रहे थे और चूस रहे थे, और उसकी बडी बडी कजरारी आंखे जिस तरह से अपने जीजू को देख के हंस रही थीं, खुश हो रही थीं....बस लग रहा था सारे जीजा साली की होली इसी तरह हो।
मैं मस्ती से उन दोनों की होली को देख रही थी और खुद मस्त हो रही थी
नन्दोइ जी भी कभी एक हाथ से ब्रा में उसके आधे खुले ढके रंगे पुते उरोज मसल दे रहे थे और कभी दोनों हाथों से उसका सर पकड कचकचा के उसका मुंह चोदते..।
अचानक किसी ने दोनों हाथों से पकड के मेरा पेटीकोट खींच दिया....ढीला तो ननदोई जी ने ही होली खेलते समय अंदर हाथ डालने के चक्कर में कर दिया था। जब तक मैं सम्हलूं सम्हलूं...साडी भी...ब्लाउज तो पहले ही नन्दोई जी ने फाड दिया था।
मैने देखा तो लाली, मंद मंद मुसकराते....दोनो हाथों में साडी और पेटीकोट पकडॆ...।
क्यों आगयीं अपने पति का साथ देने....मैंने छेडा।
ना अपनी प्यारी भाभी से होली खेलने...हंस के वो बोलीं....वहां तो दो भाभीयां थीं एक ननद ....अब यहां मुकाबला बराबर का होगा। हंसते हंसते वो बोलीं।
कहते हैं हिंदी फिल्मों मे विलेन यही गलती करता है....गलत मौके पे डायलाग बोलने की तब तक हीरो आखिरी वार कर देता है। मैने बहोत फिल्में घर से भाग भाग कर देखीं थीं।
एक झपट्टे में मैने एक हाथ उनके ब्लाउज पे डाला और दूसरा साडी की गांठ पे। सम्हलने के पहले ही ब्लाउज फ्ट चुका था और साडी भी खुली नहीं पर ढीली जरूर हो चुकी थी। ब्रा और पेटीकोट तो दूबे भाभी के यहां हुये होली की नजर चढ चुके थे।
पर लाली भी कम नहीं थीं..मेरी टांगों के बीच में टांग फंसा के गिराने की कोशिश की,गिरते गिरते...मैने उन्हे पकड लिया और मैं नीचे वो उपर।
हां ये पोज ठीक है...आंगन में फैले रंग बटोर के मेरे जोबन पे कस के लगाते वो बोलीं, उन की जांघे मेरी जांघों के बीच में और कस के रगड घिस्स..।
मजा तो मुझे भी आ रहा था....लेकिन साथ में मेरे हाथ आंगन में फर्श पे कुछ ढूंढ रहे थे...और आखिर में मैने पा लिया...रंग की गिरी हुयी पुडिया...आंगन में बह रहे रंग से ही उसे दोनों हाथों पे लगाया...और अचानक पूरी ताकत से उनके चेहरे पे और जब तक वो सम्हल पायें मैं उपर...और पहला काम तो मैने ये कहा किया की उनका फटा ब्लाउज और आधी खुली साडी पकड के निकाल दी और दूर फेंक दी.फिर एक हाथ से उनकी क्लिट और दूसरे से निपल कस के पिंच किये।
कुछ दर्द से और कुछ मजे से वो बिलबिला उठीं।
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