Sunday, June 20, 2010

गर्ल'स स्कूल पार्ट --19

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गर्ल्स स्कूल--19



दोस्तो आपने गर्ल्स स्कूल--18 मैं देखा ही था अपना टफ सीमा पर लट्तू हो रहा था .सीमा की मा टफ के लिए कुछ लाने के लिए बाहर चली गयी थी . अब आगे की घटना पढ़े....
अपने आपको इनस्पेक्टर के साथ अकेला पाकर सीमा बेचैन हो गयी. उसको रह रह कर उस्स 'दुष्ट' द्वारा उसकी जांघों पर डंडा लगाना और निहायत ही बदतमीज़ी से बात करना याद आ रहा था... वह टफ से मुँह फेर कर कोने में जा खड़ी हुई...
"मुझे माफ़ कर दो सीमा... जी!" टफ उसकी आवाज़ सुन-ने को तड़प रहा था ..
2 बार माफी माँगे जाने पर भी सीमा ने कोई उत्तर नही दिया... ऐसा इसीलिए हो रहा था क्यूंकी सीमा को विस्वास था की इनस्पेक्टर को अपनी ग़लती का अहसास हो गया है... अगर पहले वाली 'टोने' में पूछता तो वो दोनो बार जवाब देती..

तभी उसकी मा आ गयी.. उसके हाथ में नमकीन और बिस्किट्स के 2 पॅकेट थे.. एक प्लेट में रखकर उसने टफ के सामने रख दिए और चारपाई पर बैठ कर अपना कप उठा लिया," तुम्हारी चाय ठंडी हो रही है बेटी!" मा ने सीमा से कहा..
सीमा ने अपना कप उठाया और गेस के सामने पड़े पीढ़े पर बैठ गयी.. दीवार से सिर लगाकर... उसकी आँखों में जैसे दिन भर का गुस्सा बाहर ना निकल पाने का मलाल था.. ग़रीब हो गये तो क्या हुआ.. आख़िर वो भी स्वाभिमान से जीने का हक़ रखते थे... उसको याद आया कैसे टफ ने थाने जाते ही उसके मुँह पर ज़ोर का तमाचा मारा था... उसके जाने कब से अपमान की डोर से बँधे आँसू खुल गये और टॅपर टॅपर उसके गालों पर गिरने लगे... पर वह रो नही रही थी... वो उसके हृदय को तार तार करने वाले की सहानुभती नही पाना चाहती थी.. बस उसके आँसुओं पर उसका वश नही था...
टफ ने उसकी मा के सामने ही अपनी ग़लती के लिए माफी माँगी," प्लीज़ सीमा जी! मैं बता चुका हूँ की वैसा करना मेरी मजबीरी थी.. आख़िर एक जिंदगी का सवाल है"
सीमा ने अपना कप दूर फैंक दिया, जाने कब से वो अपने अंदर उठ रहे भूचाल को रोकने की कोशिश कर रही थी..टफ ने इतनी खुद्दार और इतनी शर्मसार करने वाली बात अपनी जिंदगी में नही सुनी थी.. वह एक एक शब्द को चबा चबा कर उसके सीने में उतारती चली गयी..," हुमारी कोई जिंदगी नही है.. हुमारा इज़्ज़त से जीने का कोई हक़ नही... अगर मेरी जगह किसी अमीर बाप की बेटी होती तो क्या तुम ऐसे ही करते?अगर वो तुम्हारी कोई लगती होती तो भी क्या तुम उसको वही डंडा लगाते... हम... हम लावारिस हो गये क्या? हम अगर मर भी गये तो कोई ये नही कहने वाला की तुम! ... की तुम उसके लिए ज़िम्मेदार हो.. तुमने तो बस अपनी ड्यूटी निभाई है.. चले जाओ मेरे घर से... निकल जाओ अभी के अभी..."
अपनी भदास निकाल कर वो अपनी मा के सीने से जा लगी... उसका और कोई भी ना था... कोई भी... अब उसका कारू न क्रंदन टफ के लिए सहना मुश्किल हो रहा था... पर जाने क्यूँ वा अब भी किसी इंतज़ार में था... जाने कौनसा हक़ जान कर अब भी वही बैठा रहा..
मा को भी सीमा की बातें सुनकर तसल्ली सी हुई... वह उसके बालों में हाथ फेरने लगी... शायद कहना तो वो भी उसको यही चाहती थी.. पर बेशर्म टफ खुद ही चाय पीने आ गया था..
टफ की हालत खराब थी... कुछ कह भी तो नही सकता था.. वह उठा और बोला," माता जी मुझे आपका नंबर. दे दीजिए... मुझे इश्स बारे में कोई बात करनी होगी तो कर लूँगा.."
"अब और कितने नंबर. दे साहब!" बेटी की चीत्कार सुनकर उसके मॅन में भी दिनभर की बेइज़्ज़ती की ग्लानि बाहर आ गयी.. उसने उसको बेटा नही साहब कहा." दोनो नंबर. तो लिखवा ही चुके हैं हम कम से कम बीस बार...
टफ जैसे वहाँ से अपनी इज़्ज़त लुटवा कर चला हो.." अच्छा माता जी!" उसने मुड़ते हुए ही कहा और बाहर निकल गया...

सीमा को लग रहा था की उसने कहीं ग़लती की है... उसको निकल जाने को कह कर..
मा की गोद में सिर रखे पड़ी हुई सीमा ने दरवाजे की और देखा... टफ गाड़ी घुमा कर चला गया!!!

प्राची को शिवानी से हुम्दर्दि होने लगी थी. आख़िर थी तो वह भी एक लड़की ही.. क्या पता उसकी कुछ मजबूरिया रही हों या उसकी ऊँचा उड़ने की हसरत जो उसने चाँद ज़्यादा रुपायों की खातिर शिव को अपना सब कुछ दे दिया था... पर लड़की का दिल आख़िर लड़की का ही होता है.. शिव के फार्म हाउस से जाते ही वो अपनी ड्रेस निकाल लाई और सूनी आँखों से बेडरूम की छत निहार रही शिवानी को दे दी," जब तक बॉस नही आते, आप ये पहन सकती हैं..."
शिवानी ने उसको क्रितग्य नज़रों से देखा और उसके हाथ से कपड़े ले लिए...," आप को कुछ पता है... मेरे बारे में!"
"नही... और जान'ना ज़रूरी भी नही है.. इतना तो जान ही गयी हू की आप अपनी मर्ज़ी से यहाँ नही आई!" प्राची ने उसके कंधे पर हाथ रख और उसके पास बैठ गयी..
"अब मेरा क्या होगा!" शिवानी ने कपड़ों से अपने आपको ढकते हुए कहा...
"पता नही... पर मैं इसमें कुछ नही कर सकती.. मेरी नौकरी का सवाल है.. आख़िर मुझे भी जीने के लिए पैसा चाहिए!"
"पर इसको मेरे बारे में कैसे पता चला..!" शिवानी जानती थी की ये ओमप्रकाः का दोस्त है और उसको घर से ही पता चला होगा...!"
"अब वह घर वापस नही जाना चाहती थी... पर यहाँ से भी जल्दी से जल्दी बाहर निकलना था... किसी भी तरह?"
"क्या तुम मुझे यहाँ से निकाल सकती हो?"
"नही! मैने तुमको सॉफ सॉफ बता दिया है... मैं ये नौकरी नही छोड़ सकती, किसी भी हालत में... वरना तुम खुद ही सोचो अगर किसी की कोई मजबूरी ना हो तो क्या वो यहाँ काम करेगा?"

टफ सीधा गाँव में अंजलि के घर पहुँचा... वहाँ पर ओमप्रकाश को देखकर हैरान रह गया...," अरे! आप वापस भी आ गये! आप तो 3-4 दिन के लिए गये थे ना!" राज और अंजलि भी वहीं थे... गौरी लिविंग रूम में बैठी थी... सब उदास थे...
"हां... वो .. मेरा काम जल्दी हो गया.. इसीलिए वापस आ गया!" ओम ने हड़बड़ा कर टफ को सफाई दी..
"पर आप तो कह रहे थे की काम नही बना.." अंजलि ने टफ के दिमाग़ में शक़ का कीड़ा पैदा कर दिया... ओम ने कुछ देर पहले ही अंजलि को सफाई दी थी की बीच रास्ते में ही उसके दोस्त का फोन आ गया की अभी 3-4 दिन मत आना.
"हां .. वही तो है.. अब क्या मैं सब सबकुछ बतावँगा!.." सच तो ये था की ओम को अंजलि को दिया हुआ एक्सक्यूस हड़बड़ाहट में याद ही नही रहा था.. उसकी आवाज़ हकला रही थी.. और पोलीस वालों को इतना इशारा काफ़ी होता है..

टफ ने सिग्गेरेत्टे निकली और उसको सुलगा लिया... उसका दिमाग़ तेज़ी से काम कर रहा था.. वह कल रात हुई एक एक बात को याद करने की कोशिश कर रहा था..

तभी अचानक उसने सिग्गेरेत्टे ओम की और बढ़ा दी.. " लीजिए सर! गुस्सा छोड़िए और कश लगाइए!"
"नही में सिग्गेरेत्टे नही पीता!" ओम ने मुँह फेर कर कहा," अंजलि चाय बना लाओ!"
टफ का शक मजबूत होता जा रहा था.. उसने कल रात को आते ही नेवी कट का टोटका टेबल के पास पड़ा देखा था... इसका मतलब कोई और भी आया था ओम के साथ रात को.. पर ओम तो कह रहा था की वो 10 बजे के बाद आया है..
"क्या नाम बताया था आपने अपने दोस्त का जो कल आपके साथ आए थे!" टफ ने बातों ही बातों में पूछा..!
"वो... शिव... आअ कल रात को कोई भी तो नही! मैं तो उसकी बात कर रहा था जिसका फोन आया था.." ओम का गला सूख गया. टफ को यकीन हो चला था की लोचा यहीं है.. पर वह और पक्का करना चाहता था... उसने राज को इशारे से बाहर ले जाकर कुछ टाइम के बाद कॉल करने को कहा; उसके फोन पर...

वो चाय पी ही रहे थे की टफ के मोबाइल पर राज की कॉल आ गयी..
टफ ने फोन काट दिया और अकेला ही बोलने लग गया, फोन को कान से लगा कर..
"हेलो!"
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"हां दुर्गा बोलो!"

"क्या? शिवानी का पता चल गया!" कहाँ है?" टफ की बात सुनकर अंजलि और गौरी भाग कर कमरे में आए...," ओह थॅंक गॉड!"
ओम के चेहरे का रंग सफेद होता गया... टफ की नज़र उसके चेहरे पर ही थी...

""क्या? क्या बक रहे हो...?" टफ का नाटक जारी था...
ओम बैठा बैठा काँप रहा था.. टफ का आइडिया काम कर गया... उसने फोन काटा और ओम की और मुखातिब होकर कहा..," हां तो मिस्टर. ओम प्रा...!"
"मैने कुछ नही किया जनाब... वो मैने तो मना भी किया था.. शिव को..!" आगे टफ ने उसको बोलने ही ना दिया... उसके चेहरे पर ऐसा ज़ोर का थप्पड़ मारा की वो बेड से मुँह के बाल फर्श पर जा गिरा.. उसने दोनो हाथ जोड़ लिए और गिड़गिदने लगा," इनस्पेक्टर साहब! मेरी बात सुन लो प्लीज़.. मैने कुछ नही किया.." अंजलि और गौरी दोनो को उससे घृणा हो रही थी...
टफ ने ओम की कॉलर पकड़ी और उठा कर बेड पर डाल दिया," साले! जल्दी बक के बकना है.. ना ते तेरी...!" लड़कियों को देखकर उसने अपने आपको काबू में किया," चल जल्दी बक!"
ओम ने पहली लाइन से आखरी लाइन तक रटे हुए तोते की तरह बोलता चला गया...

टफ ने उसको जीप में डाला और राज को साथ लेकर फार्महाउस की और गाड़ी दोडा दी........

शिवानी ने प्राची को एक इज़्ज़तदार काम और इतनी ही सॅलरी की नौकरी दिलवाने का लालच दिया... ," देख प्राची! इश्स तरह की नौकरी करने से कही अच्छा लड़की के लिए स्यूयिसाइड कर लेना है.. मेरे ख्याल से तू भी इश्स बात को समझती है... मैं तुझे एक बहुत ही अच्छा काम और इससे ज़्यादा तनख़्वाह दिलवा सकती हूँ.. अगर तू मेरी यहाँ से निकालने में मदद करे तो!"
"पर अगर ऐसा नही हुआ तो मैं ना घर की रहूंगी, ना घाट की..!" प्राची ने अपना शक जाहिर कर दिया!"
"देख प्राची! यहाँ बैठे बैठे तो मैं कुछ कर नही सकती. विस्वास करना या ना करना तुम पर निर्भर है... पर सोच ले.. क्या तुझे कभी भी अपना परिवार नही चाहिए... हुमेशा इश्स कुत्ते की रखैल रह सकती है" अब की बार शिवानी ने प्राची की दुखती राग पर हाथ रख दिया...
"ठीक है शिवानी! तुम तैयार हो जाओ! बाहर मेरी स्कूटी खड़ी है... मैं नौकरों को इधर उधर करती हूँ..." कहकर वो कमरे से बाहर निकल गयी.....

कुछ देर बाद शिवानी और प्राची फार्महाउस के गेट पर पहुँचे ही थे की टफ की ज़ीप ने उनके सामने ब्रेक मारे..
टफ ने शिवानी को एक शब्द भी नही बोला और प्राची को हाथ से कसकर पकड़ लिया और सीधा अंदर चला गया...

राज की नज़रें शिवानी से मिली.....

राज शिवानी को देखते ही उसको बाहों में भर लेने को दौड़ा.. उसको पता चल चुका था की कल रात से लेकर अभी तक उसके साथ क्या क्या हुआ है.. शिवानी ने भी उसको अपने पास आता देख अपनी बाहें फैला दी.. पर दो कदम चलते ही राज के कदम ठिठक गये... उसके सामने खड़ी नारी सीता नही थी जो माफ़ कर दिया जाए... और फिर माफी तो सीता माता को भी नही मिली थी.. राज को उससे जाने कितने सवालों के जवाब लेने थे... राज वही रुक गया.. शिवानी उसके रुकने का मतलब जानती थी... वह उसकी अपराधी थी... उसने राज को धोखा दिया था... उसकी बाहें वापस सिमट गयी. अब राज को बहुत कुछ बताना था... बहुत कुछ.. शिवानी ने नज़रें झुका ली. राज की आँखों में कड़वाहट भरने लगी...

कुछ देर बाद टफ अंदर से एक नौकर और 2
नौकरानियों को प्राची के साथ बाहर लाया... ,"
उस्स साले का घर किधर है...?" टफ ने ओम का
गला पकड़ा और पूछा.
"रहने दो अजीत! कोई ज़रूरत नही है.. मैं एफ.आइ.आर. नही करना चाहता... !"
"क्या कह रहे हो भाई?" टफ ने अचरज से पूछा..

"जो औरत मुझे छोड़ कर किसी दूसरे के पास जा
सकती है, उसको अगर कोई तीसरा उठा ले जाए तो
क्या फ़र्क़ पड़ता है.. क्या पता कल को ये अदालत
में कुछ और ही बयान दे! मैं अपनी और बे-इज़्ज़ती नही कराना चाहता!"
टफ उसकी हालत को समझ रहा था.. उसने उसको ठंडे दिमाग़ से सोचने की सलाह दी.. पर राज अपनी बात से नही डिगा," आइ आम नोट गोयिंग
टू कंप्लेन इन पोलीस एनीवे..."
टफ ने सबको छोड़ दिया.. प्राची किसी उम्मीद से शिवानी को देख रही थी; पर जिसको अपना ही भरोसा ना हो, वो किसी का सहारा क्या बनेगी.
प्राची ने ये सोच कर तसल्ली कर ली की उसको तो अब
जाना ही था.. वहाँ से छूट कर.. उसने अपने
अरमानो पर मिट्टी डाली और वापस अंदर चली
गयी, अपने मात हतों को साथ लेकर.

टफ ने ओम को वहीं छोड़ दिया और राज और
शिवानी को बिठा कर घर ले आया...

घर जाने पर सभी शिवानी को अजीब सी नज़रों से देखते रहे.. अंजलि और गौरी तक उसके पास नही गये.. उसके साथ शिव ने जो कुछ भी किया उसके लिए वह सहानुभूति की पात्रा नही थी.. बल्कि राज के साथ उसने जो कुछ किया; उससे वा कुलटा साबित हो गयी थी.. अछूत!
टफ ने राज को अकेले ले जाकर बात करने की कोशिश की," यार हम आदमी हमेशा ऐसा ही क्यूँ सोचते हैं.. फिर तो तुम्हे भी तुम्हारे और अंजलि के रीलेशन बता देने चाहिए.."
"बस यार! मैं इश्स टॉपिक पर बात ही नही करना चाहता!" लगभग हर आदमी अपने कुत्सित कर्मों को उठाए जाने पर वैसा ही जवाब देता... जैसा राज ने दिया.. हां औरत हर-एक को सिर्फ़ 'उसकी ही चाहिए!
टफ को आगे बात करने का कोई फ़ायदा नही दिखाई दिया.. उसने अपनी ज़ीप स्टार्ट की और चला गया... मियाँ बीवी को उनके हाल पर छोड़ कर...

शिवानी को अंजलि खाना देने आई पर उसने मना कर दिया... अंजलि ने उस्स 'कुलटा' को दोबारा पूछने की ज़रूरत नही समझी.. उसको भी राज से ही हुम्दर्दि थी.. अपने राज से...
सिर्फ़ एक भूल से शिवानी अपनो में बेगानी हो गयी... सिर्फ़ एक भूल से वह 'अकेली' हो गयी... राज ने उससे ना हुम्दर्दि दिखाई और ना ही गुस्सा.. वा मुँह फेर कर लेट गया.. शिवानी अपने आपको पवितरा कर लेना चाहती थी.. राज के पसीने से नाहकर, उसकी बाहों में डूब कर... वह दूसरी तरफ मुँह किए हुए राज की छाती को उपर नीचे होता देखती रही.. शायद गुस्से की प्रकस्ता में... पर उसकी हिम्मत ना हुई राज को छूने की, वा सज़ा भुगत रही थी; उससे झूठ बोलकर जाने की... अपने विकी के पास..

पर शिवानी से रहा ना गया. वह उठी और राज के साथ बैठ गयी.. धीरे से अपनी उंगली के नाख़ून से उसको अपने होने का अहसास कराया. पर राज तो जैसे खार खाया बैठा था.. वा अचानक उठा और शिवानी के मुँह पर थप्पड़ रसीद कर दिया," हराम जादि, कुतिया! क्या समझती है मुझे... मैं कोई कुत्ता हूँ जो बाकी कुत्तों के उतरते ही तुझ पर चढ़ जवँगा.. साली.. मैने तुझे क्या समझा था.. और तू क्या निकली... मेरी शुक्रगुज़ार होना चाहिए तुझे इश्स घर में पैर रखने दिया... तेरे घर वाले.. सालों ने ज़रूरत ही नही समझी कि पूछ तो लें आकर की उनकी बदचलन बेटी कहाँ रंगरलियाँ मना रही है आजकल... हरांजदों ने फोने तक नही किया.. करते भी तो कैसे.. पता है सालों को अपनी औलाद का.. बहनचोड़.. मेरी जिंदगी में नासूर बन कर फिर आ गयी.. मर क्यूँ नही गयी तू..."


अंजलि को लगा की अब तो उसको बताना ही पड़ेगा.. चाहे कुछ हो जाए. वो जलालत की जिंदगी लेकर नही जी सकती थी.. पर फिर विकी का क्या होगा.. ये विचार दिमाग़ में आते ही उससने बहाया बनकर जीना पसंद किया बजाय उसके 'विकी' पर आँच आने के..
वह बेड के दूसरे किनारे पर लेट गयी और अपने भगवान को याद करती हुई.. जाने कब सो गयी..........

अगले दिन एकनॉमिक्स डिपार्टमेंट में पीयान ने आकर सीमा को खत दिया.. वह उस्स पर भेजने वेल का नाम पढ़कर चौंकी.. उसस्पर 'तुम्हारा अजीत' लिखा हुआ था.
जी भर कर कोसने के बाद उसने जिग्यासा वस बाथरूम में जाकर लेटर को खोला और पढ़ने लगी.....

टफ शमशेर की जान खा रहा था," यार तूने लेटर लिख तो दिया.. उसकी समझ में तो आ जाएगा ना!"
शमशेर हँसने लगा," आबे! थोड़ी ठंड रख, अब तो वो लेटर पढ़ चुकी होगी.. अगर उसका फोने आ गया तो समझ लेना.. वो समझ गयी.. नही तो कहीं और ट्राइ मारना!"
टफ बेड से उठ कर उसके पास सोफे पर आकर बैठ गया," नही यार! मैं कुँवारा ही मार जांगा; पर मैने भगवान को कसम दी है.. 5-7 जीतने भी मेरे बच्चे होंगे.. सब सीमा के पेट से निकलेंगे.. उसके अलावा सबको मा बेहन मानूँगा.. कभी भी किसी से उल्टा पुल्टा नही बोलूँगा... बता ना यार.. वो मान तो जाएगी ना.. मुझे कुँवारा तो नही मरना पड़ेगा?"
शमशेर ने उसके गालों को हिलाया," वाह रे मेरे नादान आशिक.. 900 चूहे खाकर तू भगवान के दरबार पहुँच गया.. हा हा हा.. आबे तू ऐसा कब से हो गया मेरे लाल.."
तभी फोन बज उठा.. टफ ने एकद्ूम से उछाल कर फोन उठाया.. पर फोन उसके ऑफीस से था..," साले ! तेरी मा की.. काट फोन.. और आइन्दा फोन किया तो तेरी मा चोद दूँगा..!
शमशेर ज़ोर ज़ोर से हुँसने लगा," साले! अभी तो तू कह रहा था.. किसी से उल्टा पुल्टा नही बोलेगा! कसम खाई है.."
"पर भाई! अभी तो सीमा का फोन आएगा ना... क्या पता वो दौबारा ना करे!"

उधर सीमा ने लेटर पढ़ना शुरू किया:

सीमा!

जाने कब से दिल पर एक धूल सी जमी हुई थी... मैं भूल ही गया था की अहसास होता क्या है.. बस चल रहा था.. जिधर जिंदगी लिए जा रही थी.. ना मुझे कभी किसी से प्यार मिला... और ना ही मैने किसी को दिया.. दिया तो सिर्फ़ दर्द; लिया तो सिर्फ़ दर्द!

कल तुमने जाने अंजाने, मेरे दिल की वो धूल हटा दी.. मुझे प्यार देना सिखाया, प्यार लेना सिखाया.. और.. प्यार करना भी सिखाया.. मेरी समझ में नही आता मैं किस तरह से आपको शुक्रिया करूँ..

ऐसा नही है की मुझे कभी कोई अच्छा नही लगा, ऐसा भी नही है की मैं किसी को अच्छा नही लगा. पर ये अच्छापन; अपनेपन और पराएपन के बीच लटकता रहा.. और मैं कभी समझ ही नही पाया था की वो अपनापन क्या होता है.. जिसमें आदमी की नींद उड़ जाती है, चैन खो जाता है... कल से पहले!

कल तुमने मेरा सबकुछ एक साथ जगा दिया.. मेरे अरमान, मेरे सपने और मेरे आदमी होने का अहसास! तुमने मेरी जिंदगी बदल दी..

मैं तुमसे कुछ भी कहने से डरता हूँ.. तुम्हारे सामने आने से डरता हूँ.. पर मैं तुमसे कुछ कहना चाहता हूँ; की मैं तुमसे प्यार करता हूँ...

सिर्फ़ इसीलिए नही की तुम शायद मेरी दुनिया में आने वाली सबसे हसीन लड़की हो... सिर्फ़ इसीलिए नही की तुमने ही मेरे दिल में वो ज्योत जगाई है जो तुम्हारे बिना जलती ही नही... अंधेरा ही रहता... मेरे दिल में..!

बुल्की इसीलिए भी की मैं अब और कुछ कर ही नही सकता.. तुम्हारे बगैर, मैं और जी ही नही सकता; तुम्हारे बगैर.. मैने भगवान से तुम्हे माँगा है.. सिर्फ़ तुम्हे.. और मुझे विस्वास है की भगवान मेरी प्रार्थना सुनेगा.. क्यूंकी वो एक आशिक को बिन मौत नही मार सकता....

मैने तुम्हारे मॅन को जाना है.. उसी से प्यार किया है.. तुम अगर इनायत बक्शो गी तो अजीत टफ नही रहेगा, सॉफ्ट हो जाएगा.. हमेशा के लिए.. मेरी पहचान बदल जाएगी.. और वो तुमसे होगी.. मेरी पहचान...

मैं तुम्हारा सहारा नही बन सकता.. मैं तुम्हारा सहारा लेना चाहता हूँ.. अपने आपको बदलने के लिए.. अपनी सूनी दुनिया बदलने के लिए...

क्या तुम मेरी पहचान बनोगी?.... प्लीज़!

प्लीज़.... मेरी दुनिया में आ जाओ, सीमा..... प्लीज़!

मैं पूरा हो जवँगा... मेरी सीमा बन जाओ, ताकि मैं और ना भटकू, अपनी सीमा में ही रहूं...

मेरा नंबर. है... 9215 9215 **


प्लीज़ फोन करना......... प्लीज़!!!

तुम्हारा,

अजीत.....



आख़िर आते आते सीमा की आँखें भारी हो गयी.. और उस्स भारीपन को हूल्का किया.. उसकी आँख से निकले 2 आँसुओं ने.. एक लेटर में लिखे 'सीमा' पर जा टपका... दूसरा 'अजीत' पर!

सीमा ने लेटर को मोड़ कर अपनी जेब में डाला और आँसू पोंछते हुए बाहर निकल आई....

संजय और निशा आज घर पर ही थे.... वो वीकेंड पर ही घर आता था. ममी पापा खेत में गये हुए थे.. अपने भाई की दीवानी हो चुकी निशा उस-से हर तरह का प्यार पाना चाहती थी....
संजय ने जब गौरी के बारे में पूछा तो वो जल उठी.. उसने संजय को अपनी बाहों में भर लिया," क्या आपको मेरे अलावा किसी और के बारे में सोचने की ज़रूरत है?"
"निशा! ये बहुत ग़लत है.. उस्स दिन जाने कैसे... प्लीज़ निशा! मुझे माफ़ कर दो.. हम भाई बेहन हैं... सगे!" संजय ने उस-से चिपकी हुई निशा को अलग करते हुए कहा.
निशा जल बिन मच्हली की तरह तड़प उठी.. वह हाथ करती हुई फिर उसके सीने से जा चिपकी," मुझे ग़लत सही नही पता! तुमने ही मुझे प्यार सिखाया है... तुमसे लिपट कर ही मैने जाना है की कुछ होता है.. और मैं अपने आपको कभी और किसी की नही होने दे सकती.. और ना ही आपको होने दूँगी... एक बार मेरी तरफ जी भर कर देखो तो सही..!" निशा ने अपना कमीज़ उतार फैंका और उसकी दूधिया रंग की कातिल चूचियाँ नशा सा पैदा करने लगी.. संजय को पागल बनाने के लिए...
संजय ने लाख कोशिश की अपने मॅन को काबू में रखने के लिए.. वह बाहर चला गया, पर जब उन्न रसभरी छातियों का जादू उसके दिमाग़ पर हावी हो गया तो वह अचानक अंदर आया और अपनी हार को भूलने की कोशिश कर रही निशा पर झपट पड़ा...
संजय ने उसकी जाँघ के नीचे से निकल कर अपनी एक टाँग बेड पर रखी और उसके चूतड़ पकड़ कर ज़ोर से अपनी तरफ खींच लिए..
निशा तो गरम हो ही चुकी थी.. उसने भी अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगाया कपड़ों के उपर से ही अपनी चूत को उसके बढ़ रहे लंड से मिलने के लिए..
संजय ने उसकी ब्रा खोल दी.. और उसकी चूचियों को अपने हाथों और जीब से मस्त करने लगा.. निशा सिसकने लगी थी.. अपने भाई के लंड को अंदर लेने के लिए.. उसने वासना में तर अपने दाँत संजय के कंधे पर गाड़ दिए और अपना नाडा खोल कर सलवार नीचे सरका दी....
संजय उसकी चूत को अपने एक हाथ से मसल रहा था और दूसरा हाथ पनटी के अंदर ले जाकर उसकी गांद की दरार में कंपन सा पैदा कर रहा था...
निशा ने संजय की पॅंट खोल कर नीचे सरका दी और अंडरवेर में हाथ डालकर बेहयाई से उसके लंड को अपनी और खींचने लगी.... अपनी चूत से घिसाने लगी..

इसी पोज़िशन में संजय ने निशा को बेड पर लिटा दिया.. और टाँगों से पनटी को निकल फैंका.. निशा का सब कुछ गरम था.. जैसे अभी अभी पकाया हो, भाई के लंच के लिए....
ज़्यादा मसला मसली की ज़रूरत किसी को नही थी.. दोनो तैयार थे.. अपना अपना जलवा दिखाने के लिए...
संजय ने अपना लंड अपनी बेहन की चूत पर रखा और दोनो का खून फिर से एक हो गया.. एक दूसरे के अंदर फिट.. और निशा कराह उठी.. आनंद की अति में..

संजय पागलों की तरह धक्के लगा /ने लगा.. और निशा भी... नीचे से..," पूराआा कर दो भायाअ.... पूराआा बाहर निकलल्ल्ल.... आआअज... तेज तेज माआरो.... प्लीज़.... तेज़..... मेरी छातियों को .... भ.... भीइ... पीत...ए.. राजल्हो... प्लीससस्स.... जोर्र्र से... अया याहाआ मजाअ हाअ रहाआ हाई... हाआँ पीछईए अंग्लियीयियी सीए घुस्स्स्स आ लो... धीरीए ई लॉवववे उ ...., भौया.., अयाया

और संजय उसकी हर आवाज़ के साथ तेज होता गया .. जब ताक निशा गिड़गिदने ना लगी," प्लीज़ भैया अब न्निकल लो.. दर्द हो .. तहाआ है... नीची .. हन ... अंदर मत निकलनाअ...

संजय ने लंड बाहर निकाल लिया और उसको बैठा कर उसके होंटो को लंड की जड़ में लगा कर.. हाथो से ही चूत में अंदर बाहर होने का मज़ा लेना लगा... थोड़ी देर में जब उसका भी निकलने को हुआ तो उसने अपना लंड पीछे खींचकर निशाना निशा के मुँह पर कर दियाअ... निशा का चेहरा अपने भाई के रस से तर बतर हो गया... "आइ लव यू निशा!" हर झटके के साथ संजय बोलता गया.. और झटके बंद होते ही शर्मिंदा होकर बाथरूम में घुस गया...

निशा अपने चेहरे पर लगे.. भाई के दाग को उंगली से लगा कर देखने लगी.........
दोस्तो मैने सोचा था ये कहानी 20 पार्ट मैं ख़तम कर दूँगा .लकिन कहानी थोड़ी सी ओर लंबी हो गयी है इसी लिए अभी इसके ओर कितने पार्ट होंगे ये मैं बाद मैं बतौँगा
दोस्तो आगे की कहानी जानने के लिए पाट-20 का इंतजार करे
आपका दोस्त
राज शर्मा
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