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गर्ल्स स्कूल--13
टफ ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," भाई साहब! पोलीस वाले बिना लिए कभी किसी की प्राब्लम दूर नही करते... तू तो जानता है"
राज ने अंजलि के आगे ही ऐसी बात कही की अंजलि भी बग्लें झाँकने लगी," बोल किसकी लेनी है.."
टफ ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," अगर मुझे भी साथ ले चलो तो मेडम का इंतज़ाम में कर सकता हूँ...."
राज ने अंजलि से इजाज़त लेने की ज़रूरत ही ना समझी, नेकी और पूच्छ पूच्छ... पर मेडम कहाँ से पैदा करोगे!"
"इसी गाँव से...प्यारी मेडम!" टफ के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी...
प्यारी का नाम सुन-ते ही अंजलि को घिन सी हो गयी... सारा माहौल खर्राब कर देगी... पर वो राज के साथ इश्स हसीन सफ़र को गवाना नही चाहती थी.. टूर कॅन्सल हो सकता था... इसीलिए वा चुप रही.
राज: ये प्याई कौन है भाई
टफ: तू अभी तक प्यारी को नही जान-ता... इश्स गाँव में क्या झक मार रहा है?
अंजलि ने सुस्पेंस ख़तम किया," प्यारी पहले इसी स्कूल में मेडम थी... पर उसको तो स्कूल में जाना पड़ता है...
टफ: आप वो मुझ पर छ्चोड़ दीजिए... शमशेर सेट्टिंग करा देगा...
अंजलि: ओ.के. तो तुम बात कर लो... अगर वो चल पड़ें तो..
टफ: चल पड़े तो नही मेडम; चल पड़ी... उसने प्यारी को फोने लगाया," मेडम जी नमस्कार!"
प्यारी: रे नमस्कार छ्होरे! गाम में कद (कब) आवगा तू?
अंजलि के सामने टफ खुल कर बात नही कर पा रहा था... वो ऑफीस से बाहर निकल आया... राज भी उसके साथ ही आ गया," आंटी जी ! एक अच्च्छा मौका है... तुझे टूर पर घुमा कर लाउन्गा... देख लो!"
प्यारी: तू पागल है क्या? घर पर क्या कहूँगी... और फिर स्कूल भी...
टफ ने उसको बीच में ही टोक दिया," तू सुन लो ले पहले... गाँव के स्कूल से टूर जा रहा है... लड़कियों का... और तुम उसमें जा सकती हो! रही स्कूल की बात तो शमशेर अपने आप ही जुगाड़ करवा कर तुम्हे ऑन ड्यूटी करा देगा... अब बोलो!"
प्यारी: हाए! मज़ा आ जाएगा तेरे साथ... मैं आज ही अपनी चूत को शेव कर लूँगी... पर देख तू मुझे छ्चोड़ कर दूसरी लड़कियों पर ध्यान मत धर लेना... मैं तो जीते जी ही मार जवँगी... आइ लव यू!
टफ हँसने लगा," तो फिर तुम्हारा नाम फाइनल करवा दूं ना...
प्यारी: बिल्कुल करा दे; पर तेरे साथ वाली सीट रेजर्व करवा लियो!
टफ: तेरी सरिता को भी लेकर चल रही होगी साथ में...?
प्यारी: देख तू है ना... मैं कह देती हूँ... अपने सिवाय किसी की और झहहांकने भी नही दूँगी...
टफ: देखने में क्या हर्ज़ है आंटिजी.... अच्च्छा ओके! बाद में बात करते हैं बाइ!!!
और प्रोग्राम तय हो गया.... तौर में टफ और राज 2 मर्द तो थे ही... उसके अलावा जो बस बुक की गयी... उसका ड्राइवर और ड्राइवर का हेलपर भी रंगीन मिज़ाज के आदमी थे. 25 से 30 साल की उमर के दोनो ही हटते कत्ते और लंबे तगड़े शरीर के मालिक थे... राज ने जाने अंजाने अपनी चुदाई करवाने जा रही लड़कियों की लिस्ट पर गौर किया... सबसे पहले अंजलि और प्यारी मेडम का नाम था... लड़कियों में हमारी जान पहचान की सारी लड़कियाँ थी... गौरी, निशा, दिव्या, नेहा, कविता, सरिता और अभी तक भी अपनी चूत का रस शायद मर्द के हाथो ना निकलवा सकने वाली 38 और खूबसूरत बालायें थी.... उपर लिखे हुए नामों वाली लड़कियों का तो टूर पर जाने का एक ही मकसद था... जी भर कर अपनी चुदाई करवाना... बाकियों में से भी कुच्छ राज सर के साथ सेक्स का प्रॅक्टिकल करने को बेताब थी... हद तो तब हो गयी जब प्यारी अपने साथ... अपनी पता नही किस बाप की औलाद 'राकेश' को भी ले आई," ये भी साथ चल पड़ेगा... इसका खर्चा अलग लगा लेना...
किसी ने कुच्छ नही कहा..... और बस आ गयी...!
बस में दो दो सीटो की दो रोस थी. अंजलि अपने साथ राज को रिज़र्व रखना चाहती थी... पर प्यारी देवी ने उसको एक तरफ होने को कहा तो मजबूरन अंजलि को सीट प्यारी को देनी पड़ी. राज अभी बाहर ही खड़ा था. सरिता आकर अपनी मम्मी के पीछे वाली सीट पर बैठ गयी. टफ ने बस में चढ़ते ही प्यारी को देखा... उसके साथ तो बैठने का चान्स था ही नही... सो वो उसके पिछे वाली सीट पर सरिता के साथ जम गया.. अंजलि के साथ वाली सीट पर निशा और गौरी बैठे थे... राज आकर टफ के साथ वाली सीट पर गौरी के पिछे बैठ गया. नेहा की क्लास की ही एक लड़की मुस्कान राज के साथ वाली सीट पर जा बैठी... जबकि दिव्या और उसकी क्लास की लड़की भावना टफ और सरिता के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी...नेहा राज और मुस्कान के पीछे एक और लड़की अदिति के साथ बैठ गयी. लगभग सभी लड़कियाँ बस में चढ़ चुकी थी... तभी राकेश बस में चढ़ा और गौरी को घूर्ने लगा.... वो उसके पास ही जमना चाहता था पर कोई चान्स ना देखकर उसके सामने आगे जाकर ड्राइवर के बरबेर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया... कंडक्टर भी वहीं बैठा था... बस भर गयी... राज ने बस चलाने को कहा तो तभी कविता भागती हुई आई," रूको! रूको! मैं रह गयी... वो हमेशा ही लेट लतीफ थी.. बस में चढ़कर वो अंजलि से बोली..." मेडम मैं अकेली सबसे पीछे वाली सीट पर नही बैठूँगी... मुझे आगे ही जगह दिलवा दो ना कहीं!"
राकेश ने मौका ताड़ कर अंजलि मेडम को कहा," मेडम! यहाँ मेरे पास जगह है.. कहकर वो खिड़की वाली साइड में सरक गया...
अंजलि: देखो कविता! ऐसे तो अब किसी को उठाया नही जा सकता... या तो किसी से पूच्छ लो कोई पीछे अकेला जाकर बैठ सके... या फिर ये आगे वाली सीट ही खाली है बस... !
कविता भी चालू लड़की थी... कम से कम लड़के के साथ बैठने को तो मिलेगा... पर किस्मत ने उसको दो लड़कों के बीच में बिठा दिया... कंडक्टर और राकेश के बीच में... पर वा खुश थी.. एक से भले दो... कोई तो कुच्छ करेगा!
बस चल पड़ी. कोई भी अपनी सीट पाकर खुश नही था... टफ प्यारी के साथ बैठना चाहता था... अंजलि राज के साथ बैठना चाहती थी...राज गौरी के साथ बैठना चाहता था और गौरी अंजलि और राज के साथ... वो टूर पर ही लाईव मॅच देखने का प्लान बना रही थी... राकेश गौरी के साथ बैठना चाहता था... पर उसको भागते चोर की लंगोटी... कविता ही पकड़नी पड़ी... निशा सोच रही थी... काश उसका भाई संजय साथ होता... कुल मिलकर सबको अपने सपने टूट-ते दिखाई दे रहे थे.. टूर पर सुरूर पूरा करने के सपने... हां बाकी लड़कियाँ जो अभी फ्रेम में नही आई हैं.. वो भी सोच रही थी की कस्स राज के पास बैठने को मिल जाता....
ड्राइवर ने भी आँखों आँखों में कंडक्टर को इस्शरा किया," सारे मज़े तुझे नही लेने दूँगा लड़की के... आधे रास्ते तू बस चलना... और मैं वहाँ बैठूँगा... कविता के पास....
बस अपने गंतव्या के लिए रवाना हो चुकी थी... पर जैसे सबका चेहरा उतरा हुआ था... रास्ते भर मज़े लेते जाने का सपना जो टूट गया था... राकेश तो सामने से ही गौरी को ऐसे घूर रहा था जैसे उसको तो उसकी गोद में ही बैठना चाहिए था.. उसके लंड के उपर... निशा ने बार बार राकेश को गौरी की और देखता पाकर धीरे से गौरी के कान में कहा," यही है ना वो लड़का... जिसके बारे में तुम बता रही थी.... तेरे पीcछे पड़ा रहता है.."
गौरी ने भी उसी की टोने में उत्तर दिया," हां! पर मेरा अब इसमें कोई इंटेरेस्ट नही है... मैं तुम्हारे भाई से दोस्ती करने को तैयार हूँ!"
निशा ने मॅन ही मॅन सोचा...," उसका भाई अब उसका अपना हो चुका है... और वो अपने रहते उसको कहीं जाने नही देगी....
अचानक प्यारी देवी की ज़ोर से चीख निकली," ऊईीईई माआआं!" उसने झट से पलट कर पिछे देखा.... टफ ने उसके चूतदों पर ज़ोर से चुटकी काट ली थी... प्यारी ने समझते ही बात पलट दी...," लगता है बस में भी ख़टमल पैदा हो गये हैं.."
सरिता ने टफ को हाथ पीछे करते देख लिया था... पर उसको सिर्फ़ शक था... यकीन नही... बस कंडक्टर रह रह कर कविता की बगल में अपनी कोहनी घिसा देती.. पर जैसा कविता भी यही चाहती हो... उसने कंडक्टर को रोकने की कोशिश नही की...
गौरी को राकेश का एकटक उसकी और देखना सहन नही हो रहा था... उसने अपनी टांगे घुमा कर प्यारी मेडम की और कर ली और साथ ही उसका चेहरा घूम गया... इश्स स्थिति में उसकी जाँघ राज के घुटनो से टकरा रही थी... पर गौरी को इश्स बात से कोई दिक्कत नही थी...
नेहा ने उठ कर मुस्कान के कान के पास होन्ट ले जाकर फुसफुसा कर कहा," ंस्कान! सर के साथ प्रॅक्टिकल करने का मौका है... कर ले..!" मुस्कान ने उँची आवाज़ में ही कह दिया... " मेरी ऐसी किस्मत कहाँ है.. तू ही कर ले प्रॅक्टिकल"
राज सब समझ गया," उसने खुद ही तो ह्यूमन सेक्स ऑर्गन्स पढ़ते हुए लड़कियों को कहा था की जो प्रॅक्टिकल करना चाहती हो... कर सकती है... ज़रूर नेहा उसी प्रॅक्टिकल की बात कर रही होगी... मतलब मुस्कान प्रॅक्टिकल के लिए तैयार है..! उसने अपना हाथ धीरे से अपनी जाँघ से उठा कर उसकी जाँघ पर रख दिया...
कंडक्टर अपनी कोहनी को लगातार मोड्टा जा रहा था... अब उसकी कोहनी के दबाव से कविता की बाई चूची उपर उठी हुई थी... कविता ने शाल निकल कर औध ली ताकि अंदर की बात बाहर ना दिखाई दे सकें... वो इश्स टचिंग का पूरा मज़ा ले रही थी... उधर राकेश भी गौरी द्वारा रास्पोन्से ना दिए जाने से आहिस्ता आहिस्ता कविता की तरफ ही सरक रहा था.. अब दोनों की जांघें एक दूसरे की जांघों से चिपकी हुई थी....
टफ कहाँ मान-ने वाला था.... वो तो था ही ख़तरों का खिलाड़ी. उसका हाथ फिर से प्यारी की जांघों पर रंगे रहा था.. हौले हौले.... उसकी बराबर में बैठा राज मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था; टफ को इतनी जल्दबाज़ी दिखाते देखकर... राज की नज़र सरिता पर गयी... वो रह रहकर टफ के हाथ को देख रही थी... पर उसको ये नही दिखाई दे पा रहा था की आख़िर आगे जाकर हाथ कर क्या रहा है... उसकी मम्मी तो नॉर्मल ही बैठी थी.. अगर टफ उसकी मम्मी के साथ कुच्छ हरकत कर रहा होता तो वो बोलती नही क्या...
गौरी को उल्तियाँ आ सकने का अहसास हुआ.. वो खुद खिड़की की और चली गयी और निशा को दूसरी तरफ भेज दिया... अब निशा की जाँघ राज के घुटनो के पास थी... वो तो चाहती भी यही थी...
मुस्कान को अपनी जाँघ पर रखे राज के हाथ की वजह से कुच्छ कुच्छ होने लगा था.. वो बार बार नेहा की और पीछे देखकर मुस्कुरा रही थी... पर राज को इससे कोई फराक नही पड़ा... निशा क जांघों का दबाव राज पर बढ़ता ही जा रहा था... और टफ के हाथ प्यारी की जांघों के बीचों बीच जाते जा रहे थे.... सारे- आम.
कविता ने अपनी चूची के उपर आ चुकी कोहनी को अपने हाथ से दबा लिया... अब कंडक्टर की कोहनी वहाँ पार्मेनेट सेट हो गयी... कंडक्टर को अहसास हो चुका था की ये लड़की कुच्छ नही बोलेगी...
बस भिवानी पहुच गयी... हँसी गेट के पास ड्राइवर ने बस रोकी और पेशाब करने के लिए उतर गया. अपनी बारी के अहसास से उसका लंड अकड़ता जा रहा था.. उसने देख लिया था कंडक्टर को मज़े लेते... करीब 7:30 बाज गये थे.. कुच्छ कुच्छ ठंड लगने लगी थी... सभी ने अपनी अपनी खिड़कियाँ बंद कर दी.. तीसरी सीट से पिच्चे की लड़कियाँ अपनी अपनी बातों में मस्त थी... उनके पास और टाइम पास करने को था ही क्या...?
अचानक पिच्चे से 2 सीट आगे एक लड़की ने अपने साथ वाली को इशारा किया," आ देख... वो सर के दोस्त का हाथ..! प्यारी मेडम के कमीज़ के अंदर... उसने उपर उठकर देखा तो पिछे की सभी लड़कियाँ उधर देखने लगी.. उनकी बात अचानक बंद हो गयी. निशा का ध्यान भी टफ के हाथ पर गया... वो प्यारी मेडम के कमीज़ के और शायद उसकी सलवार के भी अंदर जा चुका था... प्यारी आँखें बंद किए बैठी थी... मज़े ले रही थी... उसको अहसास नही था की आधी बस उसी की और देख रही है...
अब सरिता का भी ध्यान पीछे गया... उसने देखा सभी की नज़र उसकी मम्मी की टाँगों के पास है... कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है, सरिता ने सोचा.... उसकी मम्मी पर भी उसको 'पूरा भरोसा' था. इसका मतलब सर का दोस्त चालू है... उसने भी झपकी आने की आक्टिंग करते हुए अपना सिर टफ के कंधे पर टीका दिया और अपना दायां हाथ अपनी चूचियों के उपर से ले जाते हुए टफ के कंधे पर रख दिया... टफ का ध्यान असलियत में तभी पहली बार सरिता पर गया," नींद आ रही है क्या?"
सरिता संभाल कर बैठ गयी. लेकिन टफ ने अपना हाथ प्यारी की सलवार में से निकाला और सरिता के सिर को पकड़ कर वापस अपने कंधे पर टीका लिया... अब उसको नया माल मिल गया था... प्यारी ने तिर्छि नज़र से पीछे देखा... टफ ने करारा जवाब दिया," ठंड हो गयी है... अब ख़टमल कहाँ होंगे!" बस चलती जा रही थी...
राज को निशा का उसके घुटनो से जाँघ घिसना जान बुझ कर किया हुआ काम लग रहा था... उसने निशा के चेहरे की ओए देखा... वा आँखें बंद किए हुए थी... राज का बाया हाथ मुस्कान की जांघों को सहला रहा था.. हौले हौले...
अंजलि प्यारी के साथ बैठकर बहुत विचलित हो गयी थी. वो किसी भी तरह से राज के पास जाना चाह रही थी... पर कोई चारा नही था... उसने अपनी आँखें बंद की और सोने की तैयारी करने लगी...
कविता के शाल ओढाते ही कंडक्टर और राकेश दोनो की हिम्मत बढ़ गयी थी... राकेश तो अपना हाथ कविता की चूत के उपर रगड़ रहा था... और कंडक्टर अपना बाया हाथ दायें हाथ के नीचे से निकाल कर कविता की बाई चूची को मसल रहा था.. उसके हाथ की हलचल शाल के उपर से ही सॉफ दिखाई दे रही थी... पर ड्राइवर और राकेश के अलावा किसी का ध्यान उधर नही था... कविता की आँखें दो अलग अलग लड़कों से जाम कर मज़े लूट रही थी... पर चुपके चुपके!
टफ ने सरिता का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा," क्या नाम है?"
सरिता ने धीरे से कान में कहा," धीरे बोलो! मम्मी सुन लेगी!"
टफ ने आसचर्या से कहा," तो तुम अंजलि की बेटी हो... गौरी!"
सरिता ने फिर से उससे रक़िएसट की," प्लीज़ धीरे बोलो! मैं सरिता हूँ; प्यारी की बेटी!"
"क्या?" टफ ने पहली बार उसके चेहरे पर गौर किया... ," अरे हां! तुम्हारी तो शकल भी मिलती है... फिर तो करम भी मिलते होंगे!" टफ ने अब की बार ढहीरे ही कहा!
कविता समझ तो गयी थी की ये आदमी कौँसे करमो की बात कर रहा है.. आख़िर उसकी मा को तो सारा गाँव जनता था.. पर उसने ना शामझ बनते हुए कहा," क्या मतलब?"
टफ ने उसकी छाती पर हाथ रखकर कहा... ," कुच्छ नही... तुम्हारी भी बड़ी तारीफ सुनी है.. शमशेर भाई से.... अब तो मज़ा आ जाएगा... कच्छ देर बाद सब समझ आ जाएगा...!
राज को मुस्कान से पॉज़िटिव रेस्पॉन्स मिल रहा था... वा राज के उसकी जाँघ पर फिसल रहे हाथ से लाल होती जा रही थी... राज ने उसको उलझे हुए शब्दों में इशारा किया," टूर पर पुर मज़े लेना साली साहिबा! ऐसे मौके बार बार नही आते... यहाँ से भी बगैर सीखे चली गयी तो मैं शमशेर को क्या मुँह दिखावँगा... ये तीन दिन तुम्हारी जिंदगी के सबसे हसीन दिन शाबिट हो सकते हैं... जी भर कर मज़े लो... और जी भर कर मज़े दो! समझी..."
बस में हल्के म्यूज़िक की वजह से धीरे बोली गयी बात तीसरे कान तक नही पहुँचती थी.......... बस जिंद शहर के पटियाला चौंक से गुज़री..............
मुस्कान को राज की हर बात समझ में आ रही थी... पर इश्स तरह इशारा करने से पहले उसकी हिम्मत नही हो रही थी.... उसने राज के अपनी गरम जांघों पर लगातार मस्ती कर रहे हाथ को अपने हाथ के नीचे दबा लिया... हूल्का सा... राज के लिए इतना सिग्नल बहुत था.. मुस्कान का...
सरिता तो अपनी मा से दो चार कदम आगे ही थी... टफ के अपनी चूची के उपर रखे हाथ को वहीं दबोच लिया और अपना दूसरा हाथ टफ की पॅंट में तैयार बैठहे उसके लंड पर फेरने लगी...
गौरी सो चुकी थी पर निशा की तो नींद उड़ी हुई थी... वो राज के साथ बैठना चाहती थी... वो पीच्चे घूमकर मुस्कान से बोली," मुस्कान! तू आगे आ जा ना; आगे थोड़ी सी ठंड लग रही है... तेरे पास तो कुम्बल भी है... मैं लाना भूल गयी."पर राज को भला मुस्कान उस्स पल कैसे छोड़ती... उसको तो ये तीन दिन अपनी जिंदगी के सबसे हॅसीन दिन बनाए थे... उसने कंबल ही निशा की और कर दिया," लो दीदी... कुम्बल ओढ़ लो!" अब निशा क्या कहती...?
उधर कविता के साथ तो बुरी बन रही थी... एक तो उसकी चूचियों से बिना बच्चे ही दूध निकालने की कोशिश कर रहा था; दूसरा उसकी सलवार के भी अंदर हाथ ले जाकर उसकी चूत का जूस निकालने पर आमादा था... कविता; उपर चूची नीचे
चूत... के साथ हो रही मस्तियों से मस्त हो चुकी थी... ड्राइवर का ध्यान लगातार उस्स पर जा रहा था... अपनी बारी की प्रतीक्षा में.... राकेश रह रह कर गौरी के चेहरे की और देख लेता... और उसका जोश दुगना हो जाता.....
लगभग सारी बस सो चुकी थी... या सोने का नाटक कर रही थी... जाग रहे थे तो सिर्फ़ ये बंदे; ड्राइवर, कंडक्टर, राकेश, कविया; टफ, प्यारी, सरिता; मुस्कान, राज, निशा और नेहा....... और शायद दिव्या भी... वो बार बार आँखें खोल कर बस में आगे चल रहा तमाशा देख रही थी... उसका हाथ अपनी नन्ही सी चूत पर रखा हुआ था........
बस कैथल पहुँच गयी थी.... बाइ पास जा रही थी.... अंबाला की और... करीब 10:15 का टाइम हो चुका था.
ठंड इतनी भी ज़्यादा नही हुई थी जैसा जागने वाले मुसाफिरों के कंबल खोल लेने से दिख रहा था... सबसे पहले टफ ने कंबल निकाला और अपने साथ ही सरिता को भी उसमें लपेट लिया... सरिता ने आगे पिच्छे देखा और टफ को इशारा किया...," ज़्यादा जल्दी है क्या?"
टफ ने अपनी पॅंट की जीप खोलकर अपना चूत का भूखा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया," खुद ही चेक कर लो!"
सरिता ऐसे ही लंड की दीवानी थी; उसने अपनी मुट्ही में टफ का लंड पकड़ा और उसको ऊपर से नीचे तक माप कर देखा," ये तो मेरी पसलियां निकल देगा!" सरिता ने धीरे से टफ के कान में कहा."
सरिता ने अपने आप को सिर तक धक लिया था... उसके होन्ट टफ के कान के पास थे..
टफ ने देर नही की.. सरिता के घुटनो को मोड़ कर अगली सीट से लगवा दिया... और घुटनो को दूर दूर करके उसकी चूत का कमसिन दरवाजा खोल दिया... क्या हुआ खेली खाई थी तो?.... थी तो 17 की ही ना!... कमसिन तो कहना ही पड़ेगा!
टफ ने अपने बायें हाथ को सरिता की जाँघ के नीचे से निकाल कर सलवार के उपर से ही चूत की मालिश करने लगा....
लगभग यही काम राकेश अभी तक कविता की चूत के साथ कर रहा था... सरिता से सब सहन नही हो रहा था... वह उठी और बस के पीछे रखे अपने बॅग में से कंबल निकालने चली गयी... पिच्चे जाते ही कविता के मॅन में आइडिया आया... वा कंबल औध कर पिच्छली लुंबी सीट पर ही बैठ गयी... अकेली! उसके आगे वाली लड़कियाँ सो चुकी थी. वा राकेश के वहाँ आने का इंतज़ार करने लगी... उसको यकीन था... उसकी चूत की मोटी मोटी फांकों को मसल मसल कर फड़कट्ी हुई, लाल
करके शांत भी राकेश ही करेगा... कंडक्टर ने तो बस उसको सुलगया था... आग तो राकेश ने ही भड़काई थी.....
कंडक्टर और राकेश के हाथों से जैसे एकद्ूम किसी ने अमृत का प्याला छ्चीन लिया हो.. कविता के पीछे बैठने का मतलब वो यही समझे थे की वो तंग आकर गयी है... वो ये समझ ही नही पाए की वहाँ वो पूरा काम करवाने के चक्कर में गयी है...... बेचारे राकेश और कंडक्टर एक दूसरे को ही देख देख कर मुश्कूराते रहे....
टफ वाला आइडिया राज को बहुत पसंद आया... उसने अपना कंबल निकाला और उसको औध लिया... फिर उसने मुस्कान की और देखा... मुस्कान आँखों ही आँखों में उसको अपने कंबल में बुला लेने का आग्रह सा कर रही थी. राज ने धीरे से बोला," मुस्कान! कंबल में आना है क्या?
वो शर्मा गयी. उसने कंबल के नीचे से हाथ ले जाकर राज का हाथ पकड़ लिया. राज इशारा समझ गया. उसने कंबल उतार कर मुस्कान को दे दिया और बोला," इसको औध कर बस की दीवार से कमर लगा लो!"
मुस्कान उसकी बात का मतलब समझी नही पर उसने वैसा ही किया जैसा राजने उसको कहा था," सर! आप नही औधेंगे?"
राज ने कोई जवाब नही दिया.. उसने मुश्कान की और खिसक कर उसकी टाँगें उठाई और कंबल समेत अपनी जांघों के उपर से सीट के दूसरी तरफ रख दिया.. कंबल टाँगों पर होने की वजह से वो ढाकी हुई थी. अब राज की जांघें मुस्कान की चूत की गर्मी महसूस कर रही थी... उनके बीच में सिर्फ़ उनके कपड़ा थे... और कुच्छ नही... राज का हाथ अब मुस्कान की चूत को सहला रहा थे कपड़ों के उपर से ही..... अब से पहले मुस्कान के साथ ऐसा कभी नही हुया था... उसको इतने मज़े आ रहे थे की अपनी आँखों को खुला रख पाना और चेहरे से मस्ती को च्छुपाना... दोनो ही मुश्किल थे...
निशा की जांघें राज के घुटनों से दूर होते ही मचल उठी... उसने राज की और देखा... राज और मुस्कान एक दूसरे से चिपक कर बैठहे थे... निशा का ध्यान राज के पैरों की डाई तरफ मुस्कान के पंजों पर पड़ा..," ये बैठने का कौनसा तरीका है..." निशा समझ गयी... की दोनों के बीच ग़मे शुरू हो चुका है..... फिर उसकी नज़र नेहा पर पड़ी... वो मुश्कान के काँप रहे होंटो को देखकर मुश्कुरा रही थी... निशा और नेहा की नज़र मिली... वो दोनों अपनी सीट से उठी और इश्स सीक्रेट को शेर करने के लिए सबसे पिछे वाली सीट पर चली गयी.... कविता के पास....!
निशा ने जाते ही कविता पर जुमला फैंका," यहाँ क्यूँ आ गयी? आगे मज़ा नही आया क्या?.... राकेश के साथ....
कविता को पता नही था की राकेश से अपनी चूत मसळवते समय निशा उसको देख चुकी थी... वो हल्का सा हँसी और बोली... नही मुझे तो नही आया मज़ा... तुझे लेना हो तो जाकर ले ले!
नेहा का मज़ा लेने का पूरा मॅन था," निशा दीदी! मैं जाउ क्या आगे राकेश के पास.... वो कुच्छ करेगा क्या?
निशा ने नेहा पर कॉमेंट किया," रहने दे अभी तू बच्ची है..." फिर कविता को कहने लगी... आगे देख क्या तमाशा चल रहा है... मुस्कान और सुनील सर के बीच..."
कविता बोली," और वो सर का दोस्त भी कम नही है... थोड़ी देर पहले प्यारी मेडम पर लाइन मार रहा था... आशिक मिज़ाज लगता है.." उसने ये बात च्छूपा ली की वो तो उसकी चूत में से भी सीधी उंगली से गीयी निकल चुका है... और नेहा भी तो... शमशेर के साथ.... नेहा और कविता की नज़रें मिली... दोनो ही एक दूसरे के मॅन की बात समझ कर हँसने लगी....
निशा उनकी बात का मतलब ना समझ पाई," क्या बात है. तुम हंस क्यूँ रही हो?"
कविता ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," कुच्छ नही... पर नेहा अब बच्ची नही है!"
नेहा ने कविता को घहूरा," दीदी! तुम मेरी बात बताॉगी, तो मैं आपकी भी बता दूँगी... देख लो!"
कविता उसकी बात सुनकर चुप हो गयी.. पर निशा के दिमाग़ में खुजली होने लगी.," आए मुझे भी बता दो ना प्लीज़... मैं किसी को नही बाताओंगी.... प्लीज़... बता दो ना..."
कविता और नेहा ने एक दूसरे की और देखा... वो निशा पर भरोसा कर सकती थी... पर निशा की किसी ऐसी बात का उनको पता नही था... कविता बोली... ठीक है.. बता देंगे... पर एक शर्त है..........
मुस्कान की हालत खराब हो गयी थी.. अपनी कुवारि और मर्द के अहसास से आज तक बेख़बर चूत रह रह कर आ भर रही थी.. जैसे जैसे राज अपने हाथ से उसकी हल्के बलों वाली चूत को प्यार से सहला रहा था, मुस्कान उस्स पर से अपना नियंत्रण खोती जा रही थी.. उसको लग रहा था जैसे उसकी चूत खुल सी गयी हो... चूत के अंदर से रह रह कर निकलने वेल रस की खुश्बू और उसकी सलवार के गीलेपान को सुनील भी महसूस कर रहा था... उसने मुस्कान की सलवार के नाडे पर हाथ डाला... मुस्कान अंजाने डर से सिहर गयी... उसने पिछे देखा... अदिति सो चुकी थी...
मुस्कान ने सर का हाथ पकड़ लिया," नही सर... प्लीज़... कोई देख लेगा... मैं मार जवँगी...
राज उसकी चूत को अपनी आँखों के सामने लेनी के लिए तड़प रहा था. छूने से ही राज को अहसास हो गया था की चूत अभी मार्केट में नही आई है... पर बस में तो उसका 'रिब्बन' काट ही नही सकता था... राज ने धीरे से मुस्कान को कहा," कुच्छ करूँगा नही... बस देखने दो... मुस्कान ने सामने टफ की और देखा....
टफ सरिता का मुँह अपनी जांघों पर झुका चुका था... कंबल के नीचे हो रही हलचल को देखकर भी मुस्कान ये समझ नही पा रही थी की टफ की गोद में हो रही ये हुलचल कैसी है... उसने राज को उधर देखने का इशारा किया... राज ने अपनी गर्दन टफ की और घुमाई तो टफ उसकी और देखकर मुस्कुराने लगा," भाई साहब! अपने अपने समान का ख्याल रखो... आ.. काट क्यूँ रही है?... मेरे माल पर नज़र मत गाड़ो... फिर मुस्कान का प्यारा चेहरा देखकर बोला....," ... या एक्सचेंज करने का इरादा है भाई...."
सरिता बड़ी मस्ती से टफ के लंड को अपने गले की गहराइयों से रु-बारू करा रही थी... अगर ये बस ना होती तो टफ कब का उसकी चूत का भी नाप ले चुका होता... सब कुच्छ खुले आम होते हुए भी... कुच्छ परदा तो ज़रूरी था ना... जैसे आज कल की लड़कियाँ अपनी चूचियों को ढकने के नाम पर एक पतला सा पारदर्शी कपड़ा उन्न पर रख लेती हैं... ऐरफ़ ये दिखाने को की उन्होने तो च्छूपा रखी हैं.. पर दर असल वो तो उनको और दिखता ही है...
सरिता ने लंड की बढ़ रही अकारण के साथ ही उसको गले के अंदर उपर नीचे करने में तेज़ी ला दी... रह रह कर वो टफ के लंड को हूल्का सा काट लेती.. जिससे टफ सिसक पड़ता... बस टफ तो यही सोच रहा था की एक बार ये बस मनाली पहुँच जाए... साली को बतावँगा.. प्यार में दर्द कहते किसको हैं... उसने सरिता की चूची को अपने हाथ में दबाया हुआ था... वो भी उसकी चूचियों को नानी याद करा रहा था... पर सरिता को तो प्यार में वाहसीपान जैसे बहुत पसंद था.. अचानक ही टफ ने सरिता का सिर ज़ोर से अपने लंड के उपर दबा लिया.. लंड से रस की जोरदार पिचकारी निकल कर गले से सीधे सरिता के पेट में पहुच गयी... ना तो सरिता को उसके र्स का स्वाद ही पता चला, और ना ही उसके अरमान शांत हुए... उसकी चूत अब दहक रही थी.. वो किसी भी तरीके से अब इश्स लंड को चूत में डलवाना चाहती थी... पर टफ तो उस्स पल के लिए तो शांत हो ही चुका था... अपना सारा पानी निकालने के बाद उसने सरिता को अपने मुँह से लंड निकालने दिया... पर सरिता ने मुँह बाहर निकलते ही अपने हाथ में पकड़ लिया और टफ को कहा," इसको अभी खड़ा करो और
मेरे अंदर डाल दो... नीचे!
बस ने अंबाला सिटी से जी.टी. रोड पर कर चंडीगढ़ हाइवे पर चलना शुरू किया... करीब 11:30 बजे...
अब सच में ही ठंड लगने लगी थी... सब के सब कंबलों में डुबक गये....
राज सिर्फ़ उसकी चूत को एक बार देखना भर चाहता था... उसके दोबारा कहने पर मुस्कान ने अपना नाडा खोल कर सलवार चूतदों से नीचे खिसका दी... साथ में अपनी पनटी भी... अब उसकी नगी चूत सुनील के हाथों में थी... राज ने मुस्कान की रस से सराबोर हो चुकी चूत को उपर से नीचे तक सहला कर देखा... एक दूं ताज़ा माल था... हल्के हल्क बॉल हाथ नीचे से उपर ले जाते हुए जैसे खुश होकर लहरा रहे थे... पहली बार इश्स तरह उस्स बंजर चूत पर रस की बरसात हुई थी.. वे चिकने होकर रेशम की तरह मालूम हो रहे थे...
राज से रहा ना गया.. उसने कंबल उपर से हटा दिया... क्या शानदार चूत थी... जैसी एक कुँवारी चूत होनी चाहिए... उससे भी बढ़कर... राज ने अपनी उंगली च्छेद पर रखी और अंदर घुसने की कोशिश की.. चिकनी होने पर भी अंदर उंगली जाते ही मुस्कान दर्द के मारे उच्छल पड़ी... और उच्छलने से उसके चूतड़ राज की जांघों पर टिक गये.. उसने नीचे उतरने की कोशिश की पर राज ने उसको वहीं पकड़ कर कंबल वापस चूत पर ढक दिया... टफ सरिता की चूत में उंगली करके उसके अहसान का बदला चुका रहा था... पर उसका धन राज की गोद में बैठी मुस्कान पर ही था... पर ये दोनो जोड़े निसचिंत थे... कम से कम एक दूसरे से...
राज थोड़ा सा और सीट की एक तरफ सरक गया... अब मुस्कान बिल्कुल उसकी जांघों के बीच में राज के लंड पर चूतड़ टिकाए बैठी थी... राज ने पूरी उंगली उसकी चूत में धीरे धीरे करके उतार दी थी... सीट की उचाई ज़्यादा होने की वजह से अब भी बिना कोशिश किए कोई किसी को आगे पीच्चे नही देख पा रहा था....
मुस्कान ने राज को कस कर पकड़ लिया.. उंगली घुसने से मुस्कान को इतना मज़ा आया की वो अपने आप ही धीरे धीरे आगे पीच्चे होकर उंगली को चूत के अंदर की दीवारों से घिसने लगी... वो ज़्यादा टाइम ना टिकी... मुस्कान का रस बाहर आने का अंदाज़ा लगाकर राज ने वापस उसको सीट पर बिठा दिया... मुस्कान ने राज की उंगली को ज़ोर से पकड़ा और अपनी चूत के अंधार ढ़हाकेल कर पकड़ लिया... और अकड़ कर अपनी टाँगे सीधी कर ली... सीट गीली हो गयी...... मुस्कान ने उचक कर नेहा को बताना चाहा की उसने प्रॅक्टिकल करके देख लिया... पर नेहा तो पीछे कविता और निशा के साथ बैठी थी......... मुस्कान राज से लिपट गयी...और सर को थॅंक्स बोला.. राज ने उसके होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.... कंबल में धक कर.....
शर्त की बात सुनकर पहले तो निशा हिचकी पर फिर बोली ,"बोलो क्या शर्त है..?"
नेहा कविता के दिमाग़ को पढ़ नही पाई," नही दीदी... प्लीज़ मत बताओ; किसी को पता चल गया तो?
कविता ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा," निशा! अगर तुम कोई अपना राज बता दो तो हम भी तुम्हे एक ऐसी बात बता सकती हैं, जिसको सुनकर तुम उच्छल पड़ोगी... हम तुझे टूर पर मज़े दिलवा सकती हैं... "
निशा को अपने भाई के साथ 2 दिन पहले मनाई गयी सुहग्रात याद आ गयी.. पर इश्स बात को तो वा किसी के साथ भी शेर नही कर सकती थी...," मेरी कोई बात नही है... हन में दिव्या और सरिता की एक बात बता सकती हूँ...?"
कविता चौकी...," दिव्या की बात? वो तो छ्होटी सी तो है...!... और सरिता की बात कौन नही जानता...!"
निशा ने और भी मज़े लेते हुए कहा," देख लो! मेरे पास इतनी छ्होटी लड़की की बात है... और वो भी एक ऐसे आदमी के साथ जो तुम सोच भी नही सकती.... !"
ठीक है बताओ, पर इसके बाद हम एक आर काम करवाएँगे अपनी बात बताने से पहले..!"
अब निशा को उनकी सुन-ने से ज़्यादा अपनी बात बताने पर ध्यान था..," मैने स्कूल में शमशेर को सरिता और दिव्या के साथ करते देखा था..."
"क्य्ाआ?" दोनो के मुँह से एकसाथ निकला... शमशेर के साथ ही तो वो अपनी बात बताने की सोच रही थी...!
"दिव्या के साथ भी?" कविता ने पूचछा.
निशा ने सच ही बता दिया..," नही! पर वो भी नंगी खड़ी थी सर के साथ..."
अब कविता और नेहा के पास बताने को इससे ज़्यादा कुच्छ नही था की शमशेर ने ही एक दोस्त के साथ मिलकर उनको खूब चोदा था... और वो दोस्त इसी बस में जा रहा था... उनके साथ... और इसका मतलब टूर में मौज करने का हथियार उनके साथ ही जा रहा था...
"अब बताओ भी!" निशा ने कविता को टोका.
"हम तुम्हारी कोई बात जाने बिना तुम्हे नही बता सकते... अब जैसे तूने सरिता की बात बता दी ऐसे ही हमारी भी किसी को बता सकती हो... पर हम तुम्हे बता सकते हैं... अगर तुम एक काम कर सको तो!" कविता ने कहा..
"क्या काम!" निशा ने सोचते हुए पूचछा...
"अगर तुम अपनी सलवार और पनटी को निकाल कर अपनी ये हमको दिख सको तो....." कविता ने सौदा निशा के सामने रखा....
"तुम पागल हो क्या? ये कैसे हो सकता है... और तुम्हे देखकर मिलेगा क्या... ?"
"मैं सिर्फ़ ये देखूँगी की तुम अभी तक कुँवारी हो या नही..." कविता ने निशा से कहा..
"तुम्हे कैसे पता लगेगा" निशा अचरज से बोली...
"वो तुम मुझ पर छ्चोड़ दो.. और तुम्हे भी सीखा दूँगी कैसे देखते हैं... कुँवारापन...!" कविता बोली...
निशा को विस्वास नही हो रहा था की कोई चूत देखकर ये बता भी सकता है की चूत चुड चुकी है या नही....," ठीक है... मैं तैयार हूँ... पहले तुमको बात बतानी पड़ेगी..."
"ऐसा नही होगा; तुम बाद में मुकर सकती हो" नेहा ने अंदेशा प्रकट किया..
"ये तो मैं भी कह सकती हूँ की तुम भी बाद में मुकर सकती हो..." निशा ने जवाब दिया.
कविता बताने को राज़ी हो गयी," सुनो! वो शमशेर सर हैं ना... उन्होने हमको भी चोद दिया..."
"च्चीी ! कैसी भासा बोल रही हो...? और क्या सच में..? दोनो को?" निशा को अचरज हुआ की एक आदमी किस किस को चोदेगा..."
"नही... शमशेर ने सिर्फ़ नेहा को चोदा था... मेरे सामने ही..." कविता ने बताया..
"तुम वहाँ का कर रही थी..?" निशा को अब भी विस्वास नही हो रहा था...
"मुझे कोई और चोद रहा था"
"कौन?"
" ये जो सामने सरिता के साथ कुच्छ कुच्छ कर रहा है अभी... ये शमशेर सर का भी दोस्त है...
निशा की आँखें फटी रह गयी.. उसने कभी भी नही सोचा था की सेक्स का ये खेल ऐसे भी हो सकता है... 2 लड़के... 2 लड़की..," तुम्हे शर्म नही आई साथ साथ"
कविता ने सपस्ट किया," वो सूब तो यूँही हो गया था... हम कुछ कर ही नही सके... पर मैं चाहती हूँ की कम से कम एक बार और वैसे ही काई लड़कियाँ और काई लड़के होने चाहियें... टूर पर... सच में इतना मज़ा आता है..."
नेहा ने भी अपना सिर खुश होकर हिलाया..," अब आप दीदी की बात पूरी करो.. आपकी सलवार उतार कर दिकजाओ; आप कुँवारी हैं या नही...
बस ने पंचकुला से आगे पहाड़ी रास्तों पर बढ़ना शुरू किया था... ठंड बढ़ने लगी............ करीब 12:00 बाज गये थे... आधी रात के......
टफ अब सरिता की आग बुझाने की कोशिश कर रहा था... उसी तरीके से; जिस-से तहोड़ी देर पहले मुस्कान शांत हुई थी... उंगली से.. अब मुस्कान राज के लंड की गर्मी को अपनी जीभ से चट चट कर शांत कर रही थी... कंबल के अंदर...
निशा ने अपना वाडा निभाया... उसने झिझकते हुए अपन सलवार उतार दी... कविता उसकी पनटी को देखते ही बोली," कहाँ से ली.. बड़ी सुंदर है" ... वही लड़कियों वाली बात...
निशा को दर सता रहा था की कहीं कविता को सच में ही कुँवारी और चूड़ी हुई चूत में फ़र्क करना ना आता हो! अगर उसने उसकी चूत के चुड़े होने की बात कह दी तो वो किसका नाम लेगी...अपने सगे भाई का तो ले नही सकती...
कविता ने निशा की चूत पर से पनटी की दीवार को साइड में किया... निशा की चूत एक दूं उसके रंग की तरह से ही गोरी सी थी... कविता ने निशा के चेहरे की और देखा और उसकी चूत के च्छेद पर उंगली टीका दी... निशा एकद्ूम से उत्तेजित हो गयी... 2 दिन पहले उसके भाई का लंड वहीं रखा था.. उसकी चूत के मुँह पर... और उसकी चूत उसके भाई के लंड को ही निगल गयी थी... पूरा..!
कविता ने एकद्ूम से उंगली उसकी चूत में थॉंस दी... सर्ररर से उंगली पूरी अंदर चली गयी.....
बस का ड्राइवर बेकाबू हो रहा था... कितने सपने संजोए तहे उससने आधी दूर मज़े लेने के... कितनी मस्त मोटी मोटी चूचिया थी.. उस्स लड़की की... कंडक्टर सला अकेले ही मज़े ले गया... अब क्या करूँ... ये सोचते सोचते उसके मॅन में एक आइडिया आया...
उसने अचानक ही रेस ओर क्लच एक साथ दबा कर गाड़ी रोक दी... जो जाग रहे थे अचानक ही सब चौंके... जल्दबाज़ी में अपने आपको ठीक किया. टफ ने पूचछा..., "क्या हुआ भाई...?"
"शायद कलुतचप्लते उडद गयी साहब!" चढ़ाई को झेल नही पाई.. पुरानी हो चुकी तही....
टफ ने रहट की साँस ली, बाकियों ने भी.... अब अपना अपना काम करने... और करवाने के लिए सुबह का इंतज़ार नही करना पड़ेगा.. एक बार तो टफ के मॅन में आई की स्टार्ट करके देखे... पर उसको लगा जो हुआ तहीएक ही हुआ है...
राज और टफ ने बाहर निकल कर देखा... चारों और अंधेरा था... एक तरफ पहाड़ी थी तो दूसरी तरफ घाटी....," अब क्या करें?" राज ने टफ की राई लेनी चाही....
सबसे पहले तो एक एक बार चोदुन्गा दोनों मा बेटी को... उसके बेगैर तो मेरा दिमाग़ काम करेगा ही नही....
राज के पास तो तीन तीन विकल्प तहे; अंजलि, गौरी, और मुस्कान...
पर ऊए उसकी सोच वो... टूर की सब लड़कियाँ प्रॅक्टिकल करना चाहती थी.....
बस के रुकते ही धीरे धीरे करके सभी उठ गये. सभी ने इधर उधर देखा... अंजलि ने राज से मुखातिब होकर अपनी आँखें मलते हुए कहा," क्या हुआ?? बस क्यूँ रोक दी...?"
"बस खराब हो गयी है.. मेडम... अब ये सुबह ही चलेगी....! अभी तो मिस्त्री मिलेगा नही....." ड्राइवर ने आगे आ चुकी कविता को घूरते हुए कहा... तकरीबन सभी लड़कियाँ जो पहली बार मनाली के टूर पर आई थी... उदास हो गयी... वो जल्दी से जल्दी मनाली जाना चाहती थी... पर कूम से कूम एक लड़की ऐसी थी... जो इश्स मौके का फयडा उतहाना चाहती तही...'कविता!' उसने कातिल निगाहों से राकेश को देखा... पर राकेश का ध्यान अब निशा को कुच्छ कहकर खिलखिला रही गौरी पर था... राज और टफ आस पास का जयजा लेने नीचे उतरे... उनके साथ ही अंजलि और प्यारी मेडम भी उतर गयी... कविता ने राकेश को कोहनी मारी और नीचे उतार गयी... राकेश इशारा समझ गया... वो भी नीचे उतार गया... धीरे धीरे सभी लड़कियाँ और ड्राइवर कंडक्टर भी बस से उतार गये... और दूर तारों की तरह टिमटिमा रहे छोटी छोटी बस्तियों के बल्बस को देखने लगे... कहीं दूर गाँव में दीवाली सी दिख रही थी... जगह जगह टोलियों में लड़कियों समेत कंबल औधे सभी बाहर ही बैठह गये... अब ये तय हो गया था की बस सुबह ठीक होकर ही चलेगी.... गौरी बार बार राकेश की और देख रही थी... अब तक उसको दीवानो की तरह घूर रहे राकेश का ध्यान अब उस्स पर ना था... थोड़ी देर पहले तक राकेश को अपनी और देखते पाकर निशा के कान में उसको जाने क्या क्या कह कर हँसने वाली गौरी अब विचलित हो गयी... लड़कियों की यही तो आदत होती है.... जो उसको देखे वो लफंगा... और जो ना देखे वो मानो नही होता बंदा(मर्द).... अब गौरी लगातार उसकी और देख रही थी... पर राकेश का ध्यान तो कुच्छ लेने देने को तैयार बैठी कविता पर था... गौरी ने देखा; राकेश ने कविता को हाथ से कुच्छ इशारा किया और नीचे की और चल पड़ा... धीरे धीरे... सब से चूपते हुए... गौरी की नज़र कविता पर पड़ी... उसके मान में कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर चल रहा था... अपनी टोली में बैठकर भी वा किसी की बातों पर ध्यान नही दे रही थी.... वा बार बार पिच्चे मुड़कर अंधेरे में गायब हो चुके राकेश को देखने की कोशिश कर रही तही..... आख़िरकार वो आराम से उठी और सहेलियों से बोली...," मैं तो बस में जा रही हूँ सोने..."
गौरी साथ ही उठ गयी," चलो मैं भी चलती हूँ!"
"तो तूही चली जा..." कविता गुस्से से बोली थी...
गौरी को विस्वास हो गया की ज़रूर कविता राकेश के पिछे जाएगी... ," अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी..!"
कविता को अब उठते हुए शरम आ रही थी... पर चूत की ठनक ने उसको थोड़ी सी बेशर्मी दिखाने को वीवाज़ कर दिया... वो अंगड़ाई सी लेकर उठी और रोड के दूसरी तरफ... बस के दरवाजे की और चली गयी.... गौरी का ध्यान उसी पर था.... सड़क पर काफ़ी अंधेरा था... पर क्यूंकी गौरी ने बस के पीछे अपनी आँखें गाड़ा रखी थी... उसको कंबल औधे एक साया सड़क पर जाता दिखाई दिया.... गौरी को यकीन था वो कविता ही थी...
गौरी भी धीरे से उठी और वहाँ से सरक कर बस में जा चढ़ि.... कविता वहाँ नही थी..... उसको पूरा यकीन हो गया था की कविता और राकेश अब ज़रूर ग़मे खेलेंगे.... गौरी राज और अंजलि का लाइव मॅच तो देख ना सकी थी... पर लाइव मॅच देखने का चान्स उसका यही पूरा हो सकता था... उसने दोनो को रंगे हाथो पकड़ कर अपनी हसरत पूरी करने की योजना बनाई... और उधर ही चल दी.... जिधर उसको वो साया जाता दिखाई दिया था.....
उधर उनसे दूसरी दिशा में ड्राइवर थोड़ी ही दूरी पर कविता का मुँह बंद करके उसको घसीट-ता सा ले जा रहा था... वैसे तो कविता को उससे चुदाई करवाने में भी कोई समस्या नही तही.... पर एक तो अंजान जगह उस्स पर आदमी भी अंजान... वो डरी हुई थी....
जिधर गौरी साया देखकर गयी थी... उससे बिल्कुल दूसरी दिशा में काफ़ी दूर ले जाकर ड्राइवर ने उसके मुँह से हाथ हटा लिया... लेकिन वो उसको एक हाथ से मजबूती से पकड़े हुए था...
कविता कसमसाई...," छोड़ दो मुझे... यहाँ क्यूँ ले आए हो?" पर उसकी आवाज़ में विरोध उतना भी ना था जितना एक कुँवारी लड़की को अपने हो सकने वाले बलात्कार से पहले होता है...
ड्राइवर ने लगभग गिड़गिदा कर कहा," हा य! मेरी रानी! एक बार बस दबा कर देख लेने दो... मैं तुम्हे जाने दूँगा.."
"नही.. मुझे अभी छोड़ो...!" मुझे जाने दो"... ड्राइवर को गिड़गिदते देख कविता में थोड़ी सी हिम्मत आ गयी और नखरे दिखाने लगी... वैसे उसके लिए तो राकेश और ड्राइवर में कोई फ़र्क नही था... आख़िर लौदा तो दोनो के ही पास था.....
ड्राइवर को कविता की इजाज़त नही चाहिए थी... वो तो बस इतना चाहता था की पूरा काम वो आसानी से करवा ले... वरना बस में उसकी शराफ़त वो देख ही चुका था... कैसे दो दो के मज़े एक साथ ले रही थी...
"तेरी चूची कितनी मोटी मोटी हैं... गांद भी मस्त है... फिर चूत भी... कसम से तू मुझे एक बार हाथ लगा लेने दे... जैसे 'शिव' से डबवा रही थी.... हाए क्या चीज़ है तू! " ड्राइवर रह रह कर उसको यहक़्न वहाँ से दबा रहा था... उसका एक हाथ अपने लंड को थोड़ा इंतज़ार करने की तस्सली दे रहा था.... पर कविता थी की उसके नखरे बढ़ते ही जा रहे थे," मैं तुमको हाथ लगाने भी देती... पर तुम मुझे ऐसे क्यूँ... आ... उठा कर लाए... मैं कुच्छ नही करने दूँगी"
उसका वोरोध सरासर दिखावा था... ड्राइवर तो कर ही रहा था... सब कुच्छ... पर बाहर से... उसने कविता का एक चूतड़ अपने हाथ में पकड़ रखा तहा और चूतदों के बीच की खाई को उंगलियों से कुरेड रहा था.... मानो उसकी गांद को जगा रहा हो....," करने दे ना चोरी.. बड़ी मस्त है तू..."
"नही... मैं कुछ नही करने दूँगी" कविता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा... जैसे ड्राइवर अभी तक उससे हाथ ही मिला रहा हो...
ड्राइवर उसको धीरे धीरे सरकता सरकाता सड़क के एक मोड़ पर नीचे की और जा रहे छ्होटे से रास्ते की और ले गया... शायद वो रास्ता नीचे गाँव में जाता था... मनाली के रोड से दूर.....
"देख तो ले एक बार! ड्राइवर ने पॅंट में से अपना लंबा, मोटा एर काला सा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया... लंड बिल्कुल तैयार था... उसकी चूत की सुरंग को और खोल देने के लिए...
"नही, मुझे कुच्छ नही देखना! " कविता ने मुँह फेर लिया.. पर ऐसे शानदार लंड को अपने हाथ से अलग ना कर पाई... ऐसा लंड रोज़ रोज़ कहाँ मिलता है... पर उपर से वो यही दिखा रही थी की उसको कुच्छ भी नही करना है.... कुच्छ भी......
ड्राइवर के लंड को सहलाते सहलाते कविता इतनी गरम हो गयी थी की उसने अपने दूसरे हाथ को भी वहीं पहुँचा दिया... पर नखरे तो देखो लड़की के," तुम बहुत गंदे हो.... तुम्हे शरम नही आती क्या...?"
ड्राइवर बातों का खिलाड़ी नही था.... ना ही उससे कविता की बात का जवाब देने में इंटेरेस्ट था... वो तो बस एक ही रट लगाए हुए था... ," एक बार दे देगी तो तेरा क्या घिस जाएगा?"
कविता ने फिर वही राग अलापा," नही मुझे कुच्छ देना वेना नही है..." उसका ध्यान अब भी ड्राइवर के लंड की धिराक रही टोपी पर था....
ड्राइवर ने अपना हाथ सलवार के अंदर से पीछे उसकी गांद की दरारों में घुसा दिया तहा... वो एक हाथ से ही दोनो चूतदों को अलग अलग करने की कोशिश कर रहा था.. पर मोटी कसी हुई गांद फिर भी बार बार चिपकी जा रही थी... ड्राइवर क एक उंगली गांद के प्रवेश द्वार तक पहुँच ही गयी... उसने उंगली गांद के च्छेद में ही घुसा दी... कविता को रात के तारे दिखाई देने बंद हो गये तहे.... क्यूंकी उसकी आँखें मारे आनंद के बंद हो गयी थी... वो आगे होकर ड्राइवर की छति से चिपक गयी और उसके होंटो पर अपने नरम होंटो से चूमने लगी...
ड्राइवर तो सीधे ही सिक्सर लगाने वाला आदमी था... ये होन्ट वोंट उसकी समझ के बाहर थे... उसने झट से कविता का पहले ही उतारा कंबल ज़मीन पर बिच्छा दिया और उसको ज़बरदस्ती उसस्पर लिटने की कोशिश करने लगा...
"रुक जाओ ना! ईडियट... चूत मरने का मज़ा भी लेना नही आता...." कविता अब सीधे क्षकशकश मूड में आ गयी थी...
ड्राइवर उसकी बात सुनकर ठिठक कर खड़ा हो गया.. जैसे सच में ही वो नादान हो... जैसे कविता ही उसको ज़बरदस्ती वहाँ उठा लाई हो....
वो चुप चाप कविता की और देखने लगा; जैसे पूच्छ रहा हो... फिर कैसे मारनी है... चूत!
कविता ने ड्राइवर को सीधा खड़ा हो जाने को कहा.... वो बच्चे की तरह अपनी नूनी पकड़ कर खड़ा हो गया... कविता कंबल पर घुटनो के बाल बैठी और इसका सूपड़ा अपना पूरा मुँह खोल कर अंदर फिट कर लिया... ड्राइवर मारे आनद के मार गया... उसने तो आज तक अपनी बाहू की टाँग उतहकर ढ़हाक्के मार मार कर यूँही पागल किया था... हन अँग्रेज़ी फ़िल्मो में उसने देखा ज़रूर था ये सब... पर उनको तो वा कमेरे की सफाई मानता था... इतना आनंद तो उसको कभी चूत में भी नही आया... जो ये छ्होटी सी लड़की उसको दे रही थी.. वो तो उसका चेला बन गया.. अपने आप वो हिला भी नही... अब जो कर रही तही.. वो कविता ही कर रही थी...
कविता उसके गरम लंड के सुपादे पर अपनी जीभ घिमाने लगी... ड्राइवर मारे आनंद के उच्छल रहा था...."इसस्स्सस्स.... चूऊऊऊओस लीई! कसाआअँ से चहोरि.. तेरे जैसेईईइ लड़की... अया गुदगुदी हो रही है...
कविता ने अपने दोनो हाथों से ड्राइवर के चूतड़ पकड़ रखे थे और... लंड को पकड़ने की ज़रूरत ही नही ठीक... वो तो कविता के होंटो ने जाकड़ रखा तहा.. बुरी तरह...
कविता ने लंड को और ज़्यादा दबोचने की कोशिश करी... पर लंड का सूपड़ा इतना मोटा था की उसके गले से आगे ही ना बढ़ा... वो सूपदे को ही आगे पीच्चे होन्ट करके चोदने लगिइइई...... ऐसा करते हुए वो ड्राइवर के चेहरे के पल पल बदल रहे भाव देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो रही थी.......
गर्ल्स स्कूल--13
टफ ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," भाई साहब! पोलीस वाले बिना लिए कभी किसी की प्राब्लम दूर नही करते... तू तो जानता है"
राज ने अंजलि के आगे ही ऐसी बात कही की अंजलि भी बग्लें झाँकने लगी," बोल किसकी लेनी है.."
टफ ने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी," अगर मुझे भी साथ ले चलो तो मेडम का इंतज़ाम में कर सकता हूँ...."
राज ने अंजलि से इजाज़त लेने की ज़रूरत ही ना समझी, नेकी और पूच्छ पूच्छ... पर मेडम कहाँ से पैदा करोगे!"
"इसी गाँव से...प्यारी मेडम!" टफ के चेहरे पर मुस्कान तेर गयी...
प्यारी का नाम सुन-ते ही अंजलि को घिन सी हो गयी... सारा माहौल खर्राब कर देगी... पर वो राज के साथ इश्स हसीन सफ़र को गवाना नही चाहती थी.. टूर कॅन्सल हो सकता था... इसीलिए वा चुप रही.
राज: ये प्याई कौन है भाई
टफ: तू अभी तक प्यारी को नही जान-ता... इश्स गाँव में क्या झक मार रहा है?
अंजलि ने सुस्पेंस ख़तम किया," प्यारी पहले इसी स्कूल में मेडम थी... पर उसको तो स्कूल में जाना पड़ता है...
टफ: आप वो मुझ पर छ्चोड़ दीजिए... शमशेर सेट्टिंग करा देगा...
अंजलि: ओ.के. तो तुम बात कर लो... अगर वो चल पड़ें तो..
टफ: चल पड़े तो नही मेडम; चल पड़ी... उसने प्यारी को फोने लगाया," मेडम जी नमस्कार!"
प्यारी: रे नमस्कार छ्होरे! गाम में कद (कब) आवगा तू?
अंजलि के सामने टफ खुल कर बात नही कर पा रहा था... वो ऑफीस से बाहर निकल आया... राज भी उसके साथ ही आ गया," आंटी जी ! एक अच्च्छा मौका है... तुझे टूर पर घुमा कर लाउन्गा... देख लो!"
प्यारी: तू पागल है क्या? घर पर क्या कहूँगी... और फिर स्कूल भी...
टफ ने उसको बीच में ही टोक दिया," तू सुन लो ले पहले... गाँव के स्कूल से टूर जा रहा है... लड़कियों का... और तुम उसमें जा सकती हो! रही स्कूल की बात तो शमशेर अपने आप ही जुगाड़ करवा कर तुम्हे ऑन ड्यूटी करा देगा... अब बोलो!"
प्यारी: हाए! मज़ा आ जाएगा तेरे साथ... मैं आज ही अपनी चूत को शेव कर लूँगी... पर देख तू मुझे छ्चोड़ कर दूसरी लड़कियों पर ध्यान मत धर लेना... मैं तो जीते जी ही मार जवँगी... आइ लव यू!
टफ हँसने लगा," तो फिर तुम्हारा नाम फाइनल करवा दूं ना...
प्यारी: बिल्कुल करा दे; पर तेरे साथ वाली सीट रेजर्व करवा लियो!
टफ: तेरी सरिता को भी लेकर चल रही होगी साथ में...?
प्यारी: देख तू है ना... मैं कह देती हूँ... अपने सिवाय किसी की और झहहांकने भी नही दूँगी...
टफ: देखने में क्या हर्ज़ है आंटिजी.... अच्च्छा ओके! बाद में बात करते हैं बाइ!!!
और प्रोग्राम तय हो गया.... तौर में टफ और राज 2 मर्द तो थे ही... उसके अलावा जो बस बुक की गयी... उसका ड्राइवर और ड्राइवर का हेलपर भी रंगीन मिज़ाज के आदमी थे. 25 से 30 साल की उमर के दोनो ही हटते कत्ते और लंबे तगड़े शरीर के मालिक थे... राज ने जाने अंजाने अपनी चुदाई करवाने जा रही लड़कियों की लिस्ट पर गौर किया... सबसे पहले अंजलि और प्यारी मेडम का नाम था... लड़कियों में हमारी जान पहचान की सारी लड़कियाँ थी... गौरी, निशा, दिव्या, नेहा, कविता, सरिता और अभी तक भी अपनी चूत का रस शायद मर्द के हाथो ना निकलवा सकने वाली 38 और खूबसूरत बालायें थी.... उपर लिखे हुए नामों वाली लड़कियों का तो टूर पर जाने का एक ही मकसद था... जी भर कर अपनी चुदाई करवाना... बाकियों में से भी कुच्छ राज सर के साथ सेक्स का प्रॅक्टिकल करने को बेताब थी... हद तो तब हो गयी जब प्यारी अपने साथ... अपनी पता नही किस बाप की औलाद 'राकेश' को भी ले आई," ये भी साथ चल पड़ेगा... इसका खर्चा अलग लगा लेना...
किसी ने कुच्छ नही कहा..... और बस आ गयी...!
बस में दो दो सीटो की दो रोस थी. अंजलि अपने साथ राज को रिज़र्व रखना चाहती थी... पर प्यारी देवी ने उसको एक तरफ होने को कहा तो मजबूरन अंजलि को सीट प्यारी को देनी पड़ी. राज अभी बाहर ही खड़ा था. सरिता आकर अपनी मम्मी के पीछे वाली सीट पर बैठ गयी. टफ ने बस में चढ़ते ही प्यारी को देखा... उसके साथ तो बैठने का चान्स था ही नही... सो वो उसके पिछे वाली सीट पर सरिता के साथ जम गया.. अंजलि के साथ वाली सीट पर निशा और गौरी बैठे थे... राज आकर टफ के साथ वाली सीट पर गौरी के पिछे बैठ गया. नेहा की क्लास की ही एक लड़की मुस्कान राज के साथ वाली सीट पर जा बैठी... जबकि दिव्या और उसकी क्लास की लड़की भावना टफ और सरिता के पीछे वाली सीट पर जाकर बैठ गयी...नेहा राज और मुस्कान के पीछे एक और लड़की अदिति के साथ बैठ गयी. लगभग सभी लड़कियाँ बस में चढ़ चुकी थी... तभी राकेश बस में चढ़ा और गौरी को घूर्ने लगा.... वो उसके पास ही जमना चाहता था पर कोई चान्स ना देखकर उसके सामने आगे जाकर ड्राइवर के बरबेर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया... कंडक्टर भी वहीं बैठा था... बस भर गयी... राज ने बस चलाने को कहा तो तभी कविता भागती हुई आई," रूको! रूको! मैं रह गयी... वो हमेशा ही लेट लतीफ थी.. बस में चढ़कर वो अंजलि से बोली..." मेडम मैं अकेली सबसे पीछे वाली सीट पर नही बैठूँगी... मुझे आगे ही जगह दिलवा दो ना कहीं!"
राकेश ने मौका ताड़ कर अंजलि मेडम को कहा," मेडम! यहाँ मेरे पास जगह है.. कहकर वो खिड़की वाली साइड में सरक गया...
अंजलि: देखो कविता! ऐसे तो अब किसी को उठाया नही जा सकता... या तो किसी से पूच्छ लो कोई पीछे अकेला जाकर बैठ सके... या फिर ये आगे वाली सीट ही खाली है बस... !
कविता भी चालू लड़की थी... कम से कम लड़के के साथ बैठने को तो मिलेगा... पर किस्मत ने उसको दो लड़कों के बीच में बिठा दिया... कंडक्टर और राकेश के बीच में... पर वा खुश थी.. एक से भले दो... कोई तो कुच्छ करेगा!
बस चल पड़ी. कोई भी अपनी सीट पाकर खुश नही था... टफ प्यारी के साथ बैठना चाहता था... अंजलि राज के साथ बैठना चाहती थी...राज गौरी के साथ बैठना चाहता था और गौरी अंजलि और राज के साथ... वो टूर पर ही लाईव मॅच देखने का प्लान बना रही थी... राकेश गौरी के साथ बैठना चाहता था... पर उसको भागते चोर की लंगोटी... कविता ही पकड़नी पड़ी... निशा सोच रही थी... काश उसका भाई संजय साथ होता... कुल मिलकर सबको अपने सपने टूट-ते दिखाई दे रहे थे.. टूर पर सुरूर पूरा करने के सपने... हां बाकी लड़कियाँ जो अभी फ्रेम में नही आई हैं.. वो भी सोच रही थी की कस्स राज के पास बैठने को मिल जाता....
ड्राइवर ने भी आँखों आँखों में कंडक्टर को इस्शरा किया," सारे मज़े तुझे नही लेने दूँगा लड़की के... आधे रास्ते तू बस चलना... और मैं वहाँ बैठूँगा... कविता के पास....
बस अपने गंतव्या के लिए रवाना हो चुकी थी... पर जैसे सबका चेहरा उतरा हुआ था... रास्ते भर मज़े लेते जाने का सपना जो टूट गया था... राकेश तो सामने से ही गौरी को ऐसे घूर रहा था जैसे उसको तो उसकी गोद में ही बैठना चाहिए था.. उसके लंड के उपर... निशा ने बार बार राकेश को गौरी की और देखता पाकर धीरे से गौरी के कान में कहा," यही है ना वो लड़का... जिसके बारे में तुम बता रही थी.... तेरे पीcछे पड़ा रहता है.."
गौरी ने भी उसी की टोने में उत्तर दिया," हां! पर मेरा अब इसमें कोई इंटेरेस्ट नही है... मैं तुम्हारे भाई से दोस्ती करने को तैयार हूँ!"
निशा ने मॅन ही मॅन सोचा...," उसका भाई अब उसका अपना हो चुका है... और वो अपने रहते उसको कहीं जाने नही देगी....
अचानक प्यारी देवी की ज़ोर से चीख निकली," ऊईीईई माआआं!" उसने झट से पलट कर पिछे देखा.... टफ ने उसके चूतदों पर ज़ोर से चुटकी काट ली थी... प्यारी ने समझते ही बात पलट दी...," लगता है बस में भी ख़टमल पैदा हो गये हैं.."
सरिता ने टफ को हाथ पीछे करते देख लिया था... पर उसको सिर्फ़ शक था... यकीन नही... बस कंडक्टर रह रह कर कविता की बगल में अपनी कोहनी घिसा देती.. पर जैसा कविता भी यही चाहती हो... उसने कंडक्टर को रोकने की कोशिश नही की...
गौरी को राकेश का एकटक उसकी और देखना सहन नही हो रहा था... उसने अपनी टांगे घुमा कर प्यारी मेडम की और कर ली और साथ ही उसका चेहरा घूम गया... इश्स स्थिति में उसकी जाँघ राज के घुटनो से टकरा रही थी... पर गौरी को इश्स बात से कोई दिक्कत नही थी...
नेहा ने उठ कर मुस्कान के कान के पास होन्ट ले जाकर फुसफुसा कर कहा," ंस्कान! सर के साथ प्रॅक्टिकल करने का मौका है... कर ले..!" मुस्कान ने उँची आवाज़ में ही कह दिया... " मेरी ऐसी किस्मत कहाँ है.. तू ही कर ले प्रॅक्टिकल"
राज सब समझ गया," उसने खुद ही तो ह्यूमन सेक्स ऑर्गन्स पढ़ते हुए लड़कियों को कहा था की जो प्रॅक्टिकल करना चाहती हो... कर सकती है... ज़रूर नेहा उसी प्रॅक्टिकल की बात कर रही होगी... मतलब मुस्कान प्रॅक्टिकल के लिए तैयार है..! उसने अपना हाथ धीरे से अपनी जाँघ से उठा कर उसकी जाँघ पर रख दिया...
कंडक्टर अपनी कोहनी को लगातार मोड्टा जा रहा था... अब उसकी कोहनी के दबाव से कविता की बाई चूची उपर उठी हुई थी... कविता ने शाल निकल कर औध ली ताकि अंदर की बात बाहर ना दिखाई दे सकें... वो इश्स टचिंग का पूरा मज़ा ले रही थी... उधर राकेश भी गौरी द्वारा रास्पोन्से ना दिए जाने से आहिस्ता आहिस्ता कविता की तरफ ही सरक रहा था.. अब दोनों की जांघें एक दूसरे की जांघों से चिपकी हुई थी....
टफ कहाँ मान-ने वाला था.... वो तो था ही ख़तरों का खिलाड़ी. उसका हाथ फिर से प्यारी की जांघों पर रंगे रहा था.. हौले हौले.... उसकी बराबर में बैठा राज मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रहा था; टफ को इतनी जल्दबाज़ी दिखाते देखकर... राज की नज़र सरिता पर गयी... वो रह रहकर टफ के हाथ को देख रही थी... पर उसको ये नही दिखाई दे पा रहा था की आख़िर आगे जाकर हाथ कर क्या रहा है... उसकी मम्मी तो नॉर्मल ही बैठी थी.. अगर टफ उसकी मम्मी के साथ कुच्छ हरकत कर रहा होता तो वो बोलती नही क्या...
गौरी को उल्तियाँ आ सकने का अहसास हुआ.. वो खुद खिड़की की और चली गयी और निशा को दूसरी तरफ भेज दिया... अब निशा की जाँघ राज के घुटनो के पास थी... वो तो चाहती भी यही थी...
मुस्कान को अपनी जाँघ पर रखे राज के हाथ की वजह से कुच्छ कुच्छ होने लगा था.. वो बार बार नेहा की और पीछे देखकर मुस्कुरा रही थी... पर राज को इससे कोई फराक नही पड़ा... निशा क जांघों का दबाव राज पर बढ़ता ही जा रहा था... और टफ के हाथ प्यारी की जांघों के बीचों बीच जाते जा रहे थे.... सारे- आम.
कविता ने अपनी चूची के उपर आ चुकी कोहनी को अपने हाथ से दबा लिया... अब कंडक्टर की कोहनी वहाँ पार्मेनेट सेट हो गयी... कंडक्टर को अहसास हो चुका था की ये लड़की कुच्छ नही बोलेगी...
बस भिवानी पहुच गयी... हँसी गेट के पास ड्राइवर ने बस रोकी और पेशाब करने के लिए उतर गया. अपनी बारी के अहसास से उसका लंड अकड़ता जा रहा था.. उसने देख लिया था कंडक्टर को मज़े लेते... करीब 7:30 बाज गये थे.. कुच्छ कुच्छ ठंड लगने लगी थी... सभी ने अपनी अपनी खिड़कियाँ बंद कर दी.. तीसरी सीट से पिच्चे की लड़कियाँ अपनी अपनी बातों में मस्त थी... उनके पास और टाइम पास करने को था ही क्या...?
अचानक पिच्चे से 2 सीट आगे एक लड़की ने अपने साथ वाली को इशारा किया," आ देख... वो सर के दोस्त का हाथ..! प्यारी मेडम के कमीज़ के अंदर... उसने उपर उठकर देखा तो पिछे की सभी लड़कियाँ उधर देखने लगी.. उनकी बात अचानक बंद हो गयी. निशा का ध्यान भी टफ के हाथ पर गया... वो प्यारी मेडम के कमीज़ के और शायद उसकी सलवार के भी अंदर जा चुका था... प्यारी आँखें बंद किए बैठी थी... मज़े ले रही थी... उसको अहसास नही था की आधी बस उसी की और देख रही है...
अब सरिता का भी ध्यान पीछे गया... उसने देखा सभी की नज़र उसकी मम्मी की टाँगों के पास है... कुच्छ ना कुच्छ गड़बड़ ज़रूर है, सरिता ने सोचा.... उसकी मम्मी पर भी उसको 'पूरा भरोसा' था. इसका मतलब सर का दोस्त चालू है... उसने भी झपकी आने की आक्टिंग करते हुए अपना सिर टफ के कंधे पर टीका दिया और अपना दायां हाथ अपनी चूचियों के उपर से ले जाते हुए टफ के कंधे पर रख दिया... टफ का ध्यान असलियत में तभी पहली बार सरिता पर गया," नींद आ रही है क्या?"
सरिता संभाल कर बैठ गयी. लेकिन टफ ने अपना हाथ प्यारी की सलवार में से निकाला और सरिता के सिर को पकड़ कर वापस अपने कंधे पर टीका लिया... अब उसको नया माल मिल गया था... प्यारी ने तिर्छि नज़र से पीछे देखा... टफ ने करारा जवाब दिया," ठंड हो गयी है... अब ख़टमल कहाँ होंगे!" बस चलती जा रही थी...
राज को निशा का उसके घुटनो से जाँघ घिसना जान बुझ कर किया हुआ काम लग रहा था... उसने निशा के चेहरे की ओए देखा... वा आँखें बंद किए हुए थी... राज का बाया हाथ मुस्कान की जांघों को सहला रहा था.. हौले हौले...
अंजलि प्यारी के साथ बैठकर बहुत विचलित हो गयी थी. वो किसी भी तरह से राज के पास जाना चाह रही थी... पर कोई चारा नही था... उसने अपनी आँखें बंद की और सोने की तैयारी करने लगी...
कविता के शाल ओढाते ही कंडक्टर और राकेश दोनो की हिम्मत बढ़ गयी थी... राकेश तो अपना हाथ कविता की चूत के उपर रगड़ रहा था... और कंडक्टर अपना बाया हाथ दायें हाथ के नीचे से निकाल कर कविता की बाई चूची को मसल रहा था.. उसके हाथ की हलचल शाल के उपर से ही सॉफ दिखाई दे रही थी... पर ड्राइवर और राकेश के अलावा किसी का ध्यान उधर नही था... कविता की आँखें दो अलग अलग लड़कों से जाम कर मज़े लूट रही थी... पर चुपके चुपके!
टफ ने सरिता का ध्यान अपनी तरफ खींचते हुए कहा," क्या नाम है?"
सरिता ने धीरे से कान में कहा," धीरे बोलो! मम्मी सुन लेगी!"
टफ ने आसचर्या से कहा," तो तुम अंजलि की बेटी हो... गौरी!"
सरिता ने फिर से उससे रक़िएसट की," प्लीज़ धीरे बोलो! मैं सरिता हूँ; प्यारी की बेटी!"
"क्या?" टफ ने पहली बार उसके चेहरे पर गौर किया... ," अरे हां! तुम्हारी तो शकल भी मिलती है... फिर तो करम भी मिलते होंगे!" टफ ने अब की बार ढहीरे ही कहा!
कविता समझ तो गयी थी की ये आदमी कौँसे करमो की बात कर रहा है.. आख़िर उसकी मा को तो सारा गाँव जनता था.. पर उसने ना शामझ बनते हुए कहा," क्या मतलब?"
टफ ने उसकी छाती पर हाथ रखकर कहा... ," कुच्छ नही... तुम्हारी भी बड़ी तारीफ सुनी है.. शमशेर भाई से.... अब तो मज़ा आ जाएगा... कच्छ देर बाद सब समझ आ जाएगा...!
राज को मुस्कान से पॉज़िटिव रेस्पॉन्स मिल रहा था... वा राज के उसकी जाँघ पर फिसल रहे हाथ से लाल होती जा रही थी... राज ने उसको उलझे हुए शब्दों में इशारा किया," टूर पर पुर मज़े लेना साली साहिबा! ऐसे मौके बार बार नही आते... यहाँ से भी बगैर सीखे चली गयी तो मैं शमशेर को क्या मुँह दिखावँगा... ये तीन दिन तुम्हारी जिंदगी के सबसे हसीन दिन शाबिट हो सकते हैं... जी भर कर मज़े लो... और जी भर कर मज़े दो! समझी..."
बस में हल्के म्यूज़िक की वजह से धीरे बोली गयी बात तीसरे कान तक नही पहुँचती थी.......... बस जिंद शहर के पटियाला चौंक से गुज़री..............
मुस्कान को राज की हर बात समझ में आ रही थी... पर इश्स तरह इशारा करने से पहले उसकी हिम्मत नही हो रही थी.... उसने राज के अपनी गरम जांघों पर लगातार मस्ती कर रहे हाथ को अपने हाथ के नीचे दबा लिया... हूल्का सा... राज के लिए इतना सिग्नल बहुत था.. मुस्कान का...
सरिता तो अपनी मा से दो चार कदम आगे ही थी... टफ के अपनी चूची के उपर रखे हाथ को वहीं दबोच लिया और अपना दूसरा हाथ टफ की पॅंट में तैयार बैठहे उसके लंड पर फेरने लगी...
गौरी सो चुकी थी पर निशा की तो नींद उड़ी हुई थी... वो राज के साथ बैठना चाहती थी... वो पीच्चे घूमकर मुस्कान से बोली," मुस्कान! तू आगे आ जा ना; आगे थोड़ी सी ठंड लग रही है... तेरे पास तो कुम्बल भी है... मैं लाना भूल गयी."पर राज को भला मुस्कान उस्स पल कैसे छोड़ती... उसको तो ये तीन दिन अपनी जिंदगी के सबसे हॅसीन दिन बनाए थे... उसने कंबल ही निशा की और कर दिया," लो दीदी... कुम्बल ओढ़ लो!" अब निशा क्या कहती...?
उधर कविता के साथ तो बुरी बन रही थी... एक तो उसकी चूचियों से बिना बच्चे ही दूध निकालने की कोशिश कर रहा था; दूसरा उसकी सलवार के भी अंदर हाथ ले जाकर उसकी चूत का जूस निकालने पर आमादा था... कविता; उपर चूची नीचे
चूत... के साथ हो रही मस्तियों से मस्त हो चुकी थी... ड्राइवर का ध्यान लगातार उस्स पर जा रहा था... अपनी बारी की प्रतीक्षा में.... राकेश रह रह कर गौरी के चेहरे की और देख लेता... और उसका जोश दुगना हो जाता.....
लगभग सारी बस सो चुकी थी... या सोने का नाटक कर रही थी... जाग रहे थे तो सिर्फ़ ये बंदे; ड्राइवर, कंडक्टर, राकेश, कविया; टफ, प्यारी, सरिता; मुस्कान, राज, निशा और नेहा....... और शायद दिव्या भी... वो बार बार आँखें खोल कर बस में आगे चल रहा तमाशा देख रही थी... उसका हाथ अपनी नन्ही सी चूत पर रखा हुआ था........
बस कैथल पहुँच गयी थी.... बाइ पास जा रही थी.... अंबाला की और... करीब 10:15 का टाइम हो चुका था.
ठंड इतनी भी ज़्यादा नही हुई थी जैसा जागने वाले मुसाफिरों के कंबल खोल लेने से दिख रहा था... सबसे पहले टफ ने कंबल निकाला और अपने साथ ही सरिता को भी उसमें लपेट लिया... सरिता ने आगे पिच्छे देखा और टफ को इशारा किया...," ज़्यादा जल्दी है क्या?"
टफ ने अपनी पॅंट की जीप खोलकर अपना चूत का भूखा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया," खुद ही चेक कर लो!"
सरिता ऐसे ही लंड की दीवानी थी; उसने अपनी मुट्ही में टफ का लंड पकड़ा और उसको ऊपर से नीचे तक माप कर देखा," ये तो मेरी पसलियां निकल देगा!" सरिता ने धीरे से टफ के कान में कहा."
सरिता ने अपने आप को सिर तक धक लिया था... उसके होन्ट टफ के कान के पास थे..
टफ ने देर नही की.. सरिता के घुटनो को मोड़ कर अगली सीट से लगवा दिया... और घुटनो को दूर दूर करके उसकी चूत का कमसिन दरवाजा खोल दिया... क्या हुआ खेली खाई थी तो?.... थी तो 17 की ही ना!... कमसिन तो कहना ही पड़ेगा!
टफ ने अपने बायें हाथ को सरिता की जाँघ के नीचे से निकाल कर सलवार के उपर से ही चूत की मालिश करने लगा....
लगभग यही काम राकेश अभी तक कविता की चूत के साथ कर रहा था... सरिता से सब सहन नही हो रहा था... वह उठी और बस के पीछे रखे अपने बॅग में से कंबल निकालने चली गयी... पिच्चे जाते ही कविता के मॅन में आइडिया आया... वा कंबल औध कर पिच्छली लुंबी सीट पर ही बैठ गयी... अकेली! उसके आगे वाली लड़कियाँ सो चुकी थी. वा राकेश के वहाँ आने का इंतज़ार करने लगी... उसको यकीन था... उसकी चूत की मोटी मोटी फांकों को मसल मसल कर फड़कट्ी हुई, लाल
करके शांत भी राकेश ही करेगा... कंडक्टर ने तो बस उसको सुलगया था... आग तो राकेश ने ही भड़काई थी.....
कंडक्टर और राकेश के हाथों से जैसे एकद्ूम किसी ने अमृत का प्याला छ्चीन लिया हो.. कविता के पीछे बैठने का मतलब वो यही समझे थे की वो तंग आकर गयी है... वो ये समझ ही नही पाए की वहाँ वो पूरा काम करवाने के चक्कर में गयी है...... बेचारे राकेश और कंडक्टर एक दूसरे को ही देख देख कर मुश्कूराते रहे....
टफ वाला आइडिया राज को बहुत पसंद आया... उसने अपना कंबल निकाला और उसको औध लिया... फिर उसने मुस्कान की और देखा... मुस्कान आँखों ही आँखों में उसको अपने कंबल में बुला लेने का आग्रह सा कर रही थी. राज ने धीरे से बोला," मुस्कान! कंबल में आना है क्या?
वो शर्मा गयी. उसने कंबल के नीचे से हाथ ले जाकर राज का हाथ पकड़ लिया. राज इशारा समझ गया. उसने कंबल उतार कर मुस्कान को दे दिया और बोला," इसको औध कर बस की दीवार से कमर लगा लो!"
मुस्कान उसकी बात का मतलब समझी नही पर उसने वैसा ही किया जैसा राजने उसको कहा था," सर! आप नही औधेंगे?"
राज ने कोई जवाब नही दिया.. उसने मुश्कान की और खिसक कर उसकी टाँगें उठाई और कंबल समेत अपनी जांघों के उपर से सीट के दूसरी तरफ रख दिया.. कंबल टाँगों पर होने की वजह से वो ढाकी हुई थी. अब राज की जांघें मुस्कान की चूत की गर्मी महसूस कर रही थी... उनके बीच में सिर्फ़ उनके कपड़ा थे... और कुच्छ नही... राज का हाथ अब मुस्कान की चूत को सहला रहा थे कपड़ों के उपर से ही..... अब से पहले मुस्कान के साथ ऐसा कभी नही हुया था... उसको इतने मज़े आ रहे थे की अपनी आँखों को खुला रख पाना और चेहरे से मस्ती को च्छुपाना... दोनो ही मुश्किल थे...
निशा की जांघें राज के घुटनों से दूर होते ही मचल उठी... उसने राज की और देखा... राज और मुस्कान एक दूसरे से चिपक कर बैठहे थे... निशा का ध्यान राज के पैरों की डाई तरफ मुस्कान के पंजों पर पड़ा..," ये बैठने का कौनसा तरीका है..." निशा समझ गयी... की दोनों के बीच ग़मे शुरू हो चुका है..... फिर उसकी नज़र नेहा पर पड़ी... वो मुश्कान के काँप रहे होंटो को देखकर मुश्कुरा रही थी... निशा और नेहा की नज़र मिली... वो दोनों अपनी सीट से उठी और इश्स सीक्रेट को शेर करने के लिए सबसे पिछे वाली सीट पर चली गयी.... कविता के पास....!
निशा ने जाते ही कविता पर जुमला फैंका," यहाँ क्यूँ आ गयी? आगे मज़ा नही आया क्या?.... राकेश के साथ....
कविता को पता नही था की राकेश से अपनी चूत मसळवते समय निशा उसको देख चुकी थी... वो हल्का सा हँसी और बोली... नही मुझे तो नही आया मज़ा... तुझे लेना हो तो जाकर ले ले!
नेहा का मज़ा लेने का पूरा मॅन था," निशा दीदी! मैं जाउ क्या आगे राकेश के पास.... वो कुच्छ करेगा क्या?
निशा ने नेहा पर कॉमेंट किया," रहने दे अभी तू बच्ची है..." फिर कविता को कहने लगी... आगे देख क्या तमाशा चल रहा है... मुस्कान और सुनील सर के बीच..."
कविता बोली," और वो सर का दोस्त भी कम नही है... थोड़ी देर पहले प्यारी मेडम पर लाइन मार रहा था... आशिक मिज़ाज लगता है.." उसने ये बात च्छूपा ली की वो तो उसकी चूत में से भी सीधी उंगली से गीयी निकल चुका है... और नेहा भी तो... शमशेर के साथ.... नेहा और कविता की नज़रें मिली... दोनो ही एक दूसरे के मॅन की बात समझ कर हँसने लगी....
निशा उनकी बात का मतलब ना समझ पाई," क्या बात है. तुम हंस क्यूँ रही हो?"
कविता ने रहस्यमयी अंदाज में कहा," कुच्छ नही... पर नेहा अब बच्ची नही है!"
नेहा ने कविता को घहूरा," दीदी! तुम मेरी बात बताॉगी, तो मैं आपकी भी बता दूँगी... देख लो!"
कविता उसकी बात सुनकर चुप हो गयी.. पर निशा के दिमाग़ में खुजली होने लगी.," आए मुझे भी बता दो ना प्लीज़... मैं किसी को नही बाताओंगी.... प्लीज़... बता दो ना..."
कविता और नेहा ने एक दूसरे की और देखा... वो निशा पर भरोसा कर सकती थी... पर निशा की किसी ऐसी बात का उनको पता नही था... कविता बोली... ठीक है.. बता देंगे... पर एक शर्त है..........
मुस्कान की हालत खराब हो गयी थी.. अपनी कुवारि और मर्द के अहसास से आज तक बेख़बर चूत रह रह कर आ भर रही थी.. जैसे जैसे राज अपने हाथ से उसकी हल्के बलों वाली चूत को प्यार से सहला रहा था, मुस्कान उस्स पर से अपना नियंत्रण खोती जा रही थी.. उसको लग रहा था जैसे उसकी चूत खुल सी गयी हो... चूत के अंदर से रह रह कर निकलने वेल रस की खुश्बू और उसकी सलवार के गीलेपान को सुनील भी महसूस कर रहा था... उसने मुस्कान की सलवार के नाडे पर हाथ डाला... मुस्कान अंजाने डर से सिहर गयी... उसने पिछे देखा... अदिति सो चुकी थी...
मुस्कान ने सर का हाथ पकड़ लिया," नही सर... प्लीज़... कोई देख लेगा... मैं मार जवँगी...
राज उसकी चूत को अपनी आँखों के सामने लेनी के लिए तड़प रहा था. छूने से ही राज को अहसास हो गया था की चूत अभी मार्केट में नही आई है... पर बस में तो उसका 'रिब्बन' काट ही नही सकता था... राज ने धीरे से मुस्कान को कहा," कुच्छ करूँगा नही... बस देखने दो... मुस्कान ने सामने टफ की और देखा....
टफ सरिता का मुँह अपनी जांघों पर झुका चुका था... कंबल के नीचे हो रही हलचल को देखकर भी मुस्कान ये समझ नही पा रही थी की टफ की गोद में हो रही ये हुलचल कैसी है... उसने राज को उधर देखने का इशारा किया... राज ने अपनी गर्दन टफ की और घुमाई तो टफ उसकी और देखकर मुस्कुराने लगा," भाई साहब! अपने अपने समान का ख्याल रखो... आ.. काट क्यूँ रही है?... मेरे माल पर नज़र मत गाड़ो... फिर मुस्कान का प्यारा चेहरा देखकर बोला....," ... या एक्सचेंज करने का इरादा है भाई...."
सरिता बड़ी मस्ती से टफ के लंड को अपने गले की गहराइयों से रु-बारू करा रही थी... अगर ये बस ना होती तो टफ कब का उसकी चूत का भी नाप ले चुका होता... सब कुच्छ खुले आम होते हुए भी... कुच्छ परदा तो ज़रूरी था ना... जैसे आज कल की लड़कियाँ अपनी चूचियों को ढकने के नाम पर एक पतला सा पारदर्शी कपड़ा उन्न पर रख लेती हैं... ऐरफ़ ये दिखाने को की उन्होने तो च्छूपा रखी हैं.. पर दर असल वो तो उनको और दिखता ही है...
सरिता ने लंड की बढ़ रही अकारण के साथ ही उसको गले के अंदर उपर नीचे करने में तेज़ी ला दी... रह रह कर वो टफ के लंड को हूल्का सा काट लेती.. जिससे टफ सिसक पड़ता... बस टफ तो यही सोच रहा था की एक बार ये बस मनाली पहुँच जाए... साली को बतावँगा.. प्यार में दर्द कहते किसको हैं... उसने सरिता की चूची को अपने हाथ में दबाया हुआ था... वो भी उसकी चूचियों को नानी याद करा रहा था... पर सरिता को तो प्यार में वाहसीपान जैसे बहुत पसंद था.. अचानक ही टफ ने सरिता का सिर ज़ोर से अपने लंड के उपर दबा लिया.. लंड से रस की जोरदार पिचकारी निकल कर गले से सीधे सरिता के पेट में पहुच गयी... ना तो सरिता को उसके र्स का स्वाद ही पता चला, और ना ही उसके अरमान शांत हुए... उसकी चूत अब दहक रही थी.. वो किसी भी तरीके से अब इश्स लंड को चूत में डलवाना चाहती थी... पर टफ तो उस्स पल के लिए तो शांत हो ही चुका था... अपना सारा पानी निकालने के बाद उसने सरिता को अपने मुँह से लंड निकालने दिया... पर सरिता ने मुँह बाहर निकलते ही अपने हाथ में पकड़ लिया और टफ को कहा," इसको अभी खड़ा करो और
मेरे अंदर डाल दो... नीचे!
बस ने अंबाला सिटी से जी.टी. रोड पर कर चंडीगढ़ हाइवे पर चलना शुरू किया... करीब 11:30 बजे...
अब सच में ही ठंड लगने लगी थी... सब के सब कंबलों में डुबक गये....
राज सिर्फ़ उसकी चूत को एक बार देखना भर चाहता था... उसके दोबारा कहने पर मुस्कान ने अपना नाडा खोल कर सलवार चूतदों से नीचे खिसका दी... साथ में अपनी पनटी भी... अब उसकी नगी चूत सुनील के हाथों में थी... राज ने मुस्कान की रस से सराबोर हो चुकी चूत को उपर से नीचे तक सहला कर देखा... एक दूं ताज़ा माल था... हल्के हल्क बॉल हाथ नीचे से उपर ले जाते हुए जैसे खुश होकर लहरा रहे थे... पहली बार इश्स तरह उस्स बंजर चूत पर रस की बरसात हुई थी.. वे चिकने होकर रेशम की तरह मालूम हो रहे थे...
राज से रहा ना गया.. उसने कंबल उपर से हटा दिया... क्या शानदार चूत थी... जैसी एक कुँवारी चूत होनी चाहिए... उससे भी बढ़कर... राज ने अपनी उंगली च्छेद पर रखी और अंदर घुसने की कोशिश की.. चिकनी होने पर भी अंदर उंगली जाते ही मुस्कान दर्द के मारे उच्छल पड़ी... और उच्छलने से उसके चूतड़ राज की जांघों पर टिक गये.. उसने नीचे उतरने की कोशिश की पर राज ने उसको वहीं पकड़ कर कंबल वापस चूत पर ढक दिया... टफ सरिता की चूत में उंगली करके उसके अहसान का बदला चुका रहा था... पर उसका धन राज की गोद में बैठी मुस्कान पर ही था... पर ये दोनो जोड़े निसचिंत थे... कम से कम एक दूसरे से...
राज थोड़ा सा और सीट की एक तरफ सरक गया... अब मुस्कान बिल्कुल उसकी जांघों के बीच में राज के लंड पर चूतड़ टिकाए बैठी थी... राज ने पूरी उंगली उसकी चूत में धीरे धीरे करके उतार दी थी... सीट की उचाई ज़्यादा होने की वजह से अब भी बिना कोशिश किए कोई किसी को आगे पीच्चे नही देख पा रहा था....
मुस्कान ने राज को कस कर पकड़ लिया.. उंगली घुसने से मुस्कान को इतना मज़ा आया की वो अपने आप ही धीरे धीरे आगे पीच्चे होकर उंगली को चूत के अंदर की दीवारों से घिसने लगी... वो ज़्यादा टाइम ना टिकी... मुस्कान का रस बाहर आने का अंदाज़ा लगाकर राज ने वापस उसको सीट पर बिठा दिया... मुस्कान ने राज की उंगली को ज़ोर से पकड़ा और अपनी चूत के अंधार ढ़हाकेल कर पकड़ लिया... और अकड़ कर अपनी टाँगे सीधी कर ली... सीट गीली हो गयी...... मुस्कान ने उचक कर नेहा को बताना चाहा की उसने प्रॅक्टिकल करके देख लिया... पर नेहा तो पीछे कविता और निशा के साथ बैठी थी......... मुस्कान राज से लिपट गयी...और सर को थॅंक्स बोला.. राज ने उसके होंटो को अपने होंटो में दबा लिया.... कंबल में धक कर.....
शर्त की बात सुनकर पहले तो निशा हिचकी पर फिर बोली ,"बोलो क्या शर्त है..?"
नेहा कविता के दिमाग़ को पढ़ नही पाई," नही दीदी... प्लीज़ मत बताओ; किसी को पता चल गया तो?
कविता ने उसकी बात पर ध्यान ना देते हुए कहा," निशा! अगर तुम कोई अपना राज बता दो तो हम भी तुम्हे एक ऐसी बात बता सकती हैं, जिसको सुनकर तुम उच्छल पड़ोगी... हम तुझे टूर पर मज़े दिलवा सकती हैं... "
निशा को अपने भाई के साथ 2 दिन पहले मनाई गयी सुहग्रात याद आ गयी.. पर इश्स बात को तो वा किसी के साथ भी शेर नही कर सकती थी...," मेरी कोई बात नही है... हन में दिव्या और सरिता की एक बात बता सकती हूँ...?"
कविता चौकी...," दिव्या की बात? वो तो छ्होटी सी तो है...!... और सरिता की बात कौन नही जानता...!"
निशा ने और भी मज़े लेते हुए कहा," देख लो! मेरे पास इतनी छ्होटी लड़की की बात है... और वो भी एक ऐसे आदमी के साथ जो तुम सोच भी नही सकती.... !"
ठीक है बताओ, पर इसके बाद हम एक आर काम करवाएँगे अपनी बात बताने से पहले..!"
अब निशा को उनकी सुन-ने से ज़्यादा अपनी बात बताने पर ध्यान था..," मैने स्कूल में शमशेर को सरिता और दिव्या के साथ करते देखा था..."
"क्य्ाआ?" दोनो के मुँह से एकसाथ निकला... शमशेर के साथ ही तो वो अपनी बात बताने की सोच रही थी...!
"दिव्या के साथ भी?" कविता ने पूचछा.
निशा ने सच ही बता दिया..," नही! पर वो भी नंगी खड़ी थी सर के साथ..."
अब कविता और नेहा के पास बताने को इससे ज़्यादा कुच्छ नही था की शमशेर ने ही एक दोस्त के साथ मिलकर उनको खूब चोदा था... और वो दोस्त इसी बस में जा रहा था... उनके साथ... और इसका मतलब टूर में मौज करने का हथियार उनके साथ ही जा रहा था...
"अब बताओ भी!" निशा ने कविता को टोका.
"हम तुम्हारी कोई बात जाने बिना तुम्हे नही बता सकते... अब जैसे तूने सरिता की बात बता दी ऐसे ही हमारी भी किसी को बता सकती हो... पर हम तुम्हे बता सकते हैं... अगर तुम एक काम कर सको तो!" कविता ने कहा..
"क्या काम!" निशा ने सोचते हुए पूचछा...
"अगर तुम अपनी सलवार और पनटी को निकाल कर अपनी ये हमको दिख सको तो....." कविता ने सौदा निशा के सामने रखा....
"तुम पागल हो क्या? ये कैसे हो सकता है... और तुम्हे देखकर मिलेगा क्या... ?"
"मैं सिर्फ़ ये देखूँगी की तुम अभी तक कुँवारी हो या नही..." कविता ने निशा से कहा..
"तुम्हे कैसे पता लगेगा" निशा अचरज से बोली...
"वो तुम मुझ पर छ्चोड़ दो.. और तुम्हे भी सीखा दूँगी कैसे देखते हैं... कुँवारापन...!" कविता बोली...
निशा को विस्वास नही हो रहा था की कोई चूत देखकर ये बता भी सकता है की चूत चुड चुकी है या नही....," ठीक है... मैं तैयार हूँ... पहले तुमको बात बतानी पड़ेगी..."
"ऐसा नही होगा; तुम बाद में मुकर सकती हो" नेहा ने अंदेशा प्रकट किया..
"ये तो मैं भी कह सकती हूँ की तुम भी बाद में मुकर सकती हो..." निशा ने जवाब दिया.
कविता बताने को राज़ी हो गयी," सुनो! वो शमशेर सर हैं ना... उन्होने हमको भी चोद दिया..."
"च्चीी ! कैसी भासा बोल रही हो...? और क्या सच में..? दोनो को?" निशा को अचरज हुआ की एक आदमी किस किस को चोदेगा..."
"नही... शमशेर ने सिर्फ़ नेहा को चोदा था... मेरे सामने ही..." कविता ने बताया..
"तुम वहाँ का कर रही थी..?" निशा को अब भी विस्वास नही हो रहा था...
"मुझे कोई और चोद रहा था"
"कौन?"
" ये जो सामने सरिता के साथ कुच्छ कुच्छ कर रहा है अभी... ये शमशेर सर का भी दोस्त है...
निशा की आँखें फटी रह गयी.. उसने कभी भी नही सोचा था की सेक्स का ये खेल ऐसे भी हो सकता है... 2 लड़के... 2 लड़की..," तुम्हे शर्म नही आई साथ साथ"
कविता ने सपस्ट किया," वो सूब तो यूँही हो गया था... हम कुछ कर ही नही सके... पर मैं चाहती हूँ की कम से कम एक बार और वैसे ही काई लड़कियाँ और काई लड़के होने चाहियें... टूर पर... सच में इतना मज़ा आता है..."
नेहा ने भी अपना सिर खुश होकर हिलाया..," अब आप दीदी की बात पूरी करो.. आपकी सलवार उतार कर दिकजाओ; आप कुँवारी हैं या नही...
बस ने पंचकुला से आगे पहाड़ी रास्तों पर बढ़ना शुरू किया था... ठंड बढ़ने लगी............ करीब 12:00 बाज गये थे... आधी रात के......
टफ अब सरिता की आग बुझाने की कोशिश कर रहा था... उसी तरीके से; जिस-से तहोड़ी देर पहले मुस्कान शांत हुई थी... उंगली से.. अब मुस्कान राज के लंड की गर्मी को अपनी जीभ से चट चट कर शांत कर रही थी... कंबल के अंदर...
निशा ने अपना वाडा निभाया... उसने झिझकते हुए अपन सलवार उतार दी... कविता उसकी पनटी को देखते ही बोली," कहाँ से ली.. बड़ी सुंदर है" ... वही लड़कियों वाली बात...
निशा को दर सता रहा था की कहीं कविता को सच में ही कुँवारी और चूड़ी हुई चूत में फ़र्क करना ना आता हो! अगर उसने उसकी चूत के चुड़े होने की बात कह दी तो वो किसका नाम लेगी...अपने सगे भाई का तो ले नही सकती...
कविता ने निशा की चूत पर से पनटी की दीवार को साइड में किया... निशा की चूत एक दूं उसके रंग की तरह से ही गोरी सी थी... कविता ने निशा के चेहरे की और देखा और उसकी चूत के च्छेद पर उंगली टीका दी... निशा एकद्ूम से उत्तेजित हो गयी... 2 दिन पहले उसके भाई का लंड वहीं रखा था.. उसकी चूत के मुँह पर... और उसकी चूत उसके भाई के लंड को ही निगल गयी थी... पूरा..!
कविता ने एकद्ूम से उंगली उसकी चूत में थॉंस दी... सर्ररर से उंगली पूरी अंदर चली गयी.....
बस का ड्राइवर बेकाबू हो रहा था... कितने सपने संजोए तहे उससने आधी दूर मज़े लेने के... कितनी मस्त मोटी मोटी चूचिया थी.. उस्स लड़की की... कंडक्टर सला अकेले ही मज़े ले गया... अब क्या करूँ... ये सोचते सोचते उसके मॅन में एक आइडिया आया...
उसने अचानक ही रेस ओर क्लच एक साथ दबा कर गाड़ी रोक दी... जो जाग रहे थे अचानक ही सब चौंके... जल्दबाज़ी में अपने आपको ठीक किया. टफ ने पूचछा..., "क्या हुआ भाई...?"
"शायद कलुतचप्लते उडद गयी साहब!" चढ़ाई को झेल नही पाई.. पुरानी हो चुकी तही....
टफ ने रहट की साँस ली, बाकियों ने भी.... अब अपना अपना काम करने... और करवाने के लिए सुबह का इंतज़ार नही करना पड़ेगा.. एक बार तो टफ के मॅन में आई की स्टार्ट करके देखे... पर उसको लगा जो हुआ तहीएक ही हुआ है...
राज और टफ ने बाहर निकल कर देखा... चारों और अंधेरा था... एक तरफ पहाड़ी थी तो दूसरी तरफ घाटी....," अब क्या करें?" राज ने टफ की राई लेनी चाही....
सबसे पहले तो एक एक बार चोदुन्गा दोनों मा बेटी को... उसके बेगैर तो मेरा दिमाग़ काम करेगा ही नही....
राज के पास तो तीन तीन विकल्प तहे; अंजलि, गौरी, और मुस्कान...
पर ऊए उसकी सोच वो... टूर की सब लड़कियाँ प्रॅक्टिकल करना चाहती थी.....
बस के रुकते ही धीरे धीरे करके सभी उठ गये. सभी ने इधर उधर देखा... अंजलि ने राज से मुखातिब होकर अपनी आँखें मलते हुए कहा," क्या हुआ?? बस क्यूँ रोक दी...?"
"बस खराब हो गयी है.. मेडम... अब ये सुबह ही चलेगी....! अभी तो मिस्त्री मिलेगा नही....." ड्राइवर ने आगे आ चुकी कविता को घूरते हुए कहा... तकरीबन सभी लड़कियाँ जो पहली बार मनाली के टूर पर आई थी... उदास हो गयी... वो जल्दी से जल्दी मनाली जाना चाहती थी... पर कूम से कूम एक लड़की ऐसी थी... जो इश्स मौके का फयडा उतहाना चाहती तही...'कविता!' उसने कातिल निगाहों से राकेश को देखा... पर राकेश का ध्यान अब निशा को कुच्छ कहकर खिलखिला रही गौरी पर था... राज और टफ आस पास का जयजा लेने नीचे उतरे... उनके साथ ही अंजलि और प्यारी मेडम भी उतर गयी... कविता ने राकेश को कोहनी मारी और नीचे उतार गयी... राकेश इशारा समझ गया... वो भी नीचे उतार गया... धीरे धीरे सभी लड़कियाँ और ड्राइवर कंडक्टर भी बस से उतार गये... और दूर तारों की तरह टिमटिमा रहे छोटी छोटी बस्तियों के बल्बस को देखने लगे... कहीं दूर गाँव में दीवाली सी दिख रही थी... जगह जगह टोलियों में लड़कियों समेत कंबल औधे सभी बाहर ही बैठह गये... अब ये तय हो गया था की बस सुबह ठीक होकर ही चलेगी.... गौरी बार बार राकेश की और देख रही थी... अब तक उसको दीवानो की तरह घूर रहे राकेश का ध्यान अब उस्स पर ना था... थोड़ी देर पहले तक राकेश को अपनी और देखते पाकर निशा के कान में उसको जाने क्या क्या कह कर हँसने वाली गौरी अब विचलित हो गयी... लड़कियों की यही तो आदत होती है.... जो उसको देखे वो लफंगा... और जो ना देखे वो मानो नही होता बंदा(मर्द).... अब गौरी लगातार उसकी और देख रही थी... पर राकेश का ध्यान तो कुच्छ लेने देने को तैयार बैठी कविता पर था... गौरी ने देखा; राकेश ने कविता को हाथ से कुच्छ इशारा किया और नीचे की और चल पड़ा... धीरे धीरे... सब से चूपते हुए... गौरी की नज़र कविता पर पड़ी... उसके मान में कुच्छ ना कुच्छ ज़रूर चल रहा था... अपनी टोली में बैठकर भी वा किसी की बातों पर ध्यान नही दे रही थी.... वा बार बार पिच्चे मुड़कर अंधेरे में गायब हो चुके राकेश को देखने की कोशिश कर रही तही..... आख़िरकार वो आराम से उठी और सहेलियों से बोली...," मैं तो बस में जा रही हूँ सोने..."
गौरी साथ ही उठ गयी," चलो मैं भी चलती हूँ!"
"तो तूही चली जा..." कविता गुस्से से बोली थी...
गौरी को विस्वास हो गया की ज़रूर कविता राकेश के पिछे जाएगी... ," अरे मैं तो मज़ाक कर रही थी..!"
कविता को अब उठते हुए शरम आ रही थी... पर चूत की ठनक ने उसको थोड़ी सी बेशर्मी दिखाने को वीवाज़ कर दिया... वो अंगड़ाई सी लेकर उठी और रोड के दूसरी तरफ... बस के दरवाजे की और चली गयी.... गौरी का ध्यान उसी पर था.... सड़क पर काफ़ी अंधेरा था... पर क्यूंकी गौरी ने बस के पीछे अपनी आँखें गाड़ा रखी थी... उसको कंबल औधे एक साया सड़क पर जाता दिखाई दिया.... गौरी को यकीन था वो कविता ही थी...
गौरी भी धीरे से उठी और वहाँ से सरक कर बस में जा चढ़ि.... कविता वहाँ नही थी..... उसको पूरा यकीन हो गया था की कविता और राकेश अब ज़रूर ग़मे खेलेंगे.... गौरी राज और अंजलि का लाइव मॅच तो देख ना सकी थी... पर लाइव मॅच देखने का चान्स उसका यही पूरा हो सकता था... उसने दोनो को रंगे हाथो पकड़ कर अपनी हसरत पूरी करने की योजना बनाई... और उधर ही चल दी.... जिधर उसको वो साया जाता दिखाई दिया था.....
उधर उनसे दूसरी दिशा में ड्राइवर थोड़ी ही दूरी पर कविता का मुँह बंद करके उसको घसीट-ता सा ले जा रहा था... वैसे तो कविता को उससे चुदाई करवाने में भी कोई समस्या नही तही.... पर एक तो अंजान जगह उस्स पर आदमी भी अंजान... वो डरी हुई थी....
जिधर गौरी साया देखकर गयी थी... उससे बिल्कुल दूसरी दिशा में काफ़ी दूर ले जाकर ड्राइवर ने उसके मुँह से हाथ हटा लिया... लेकिन वो उसको एक हाथ से मजबूती से पकड़े हुए था...
कविता कसमसाई...," छोड़ दो मुझे... यहाँ क्यूँ ले आए हो?" पर उसकी आवाज़ में विरोध उतना भी ना था जितना एक कुँवारी लड़की को अपने हो सकने वाले बलात्कार से पहले होता है...
ड्राइवर ने लगभग गिड़गिदा कर कहा," हा य! मेरी रानी! एक बार बस दबा कर देख लेने दो... मैं तुम्हे जाने दूँगा.."
"नही.. मुझे अभी छोड़ो...!" मुझे जाने दो"... ड्राइवर को गिड़गिदते देख कविता में थोड़ी सी हिम्मत आ गयी और नखरे दिखाने लगी... वैसे उसके लिए तो राकेश और ड्राइवर में कोई फ़र्क नही था... आख़िर लौदा तो दोनो के ही पास था.....
ड्राइवर को कविता की इजाज़त नही चाहिए थी... वो तो बस इतना चाहता था की पूरा काम वो आसानी से करवा ले... वरना बस में उसकी शराफ़त वो देख ही चुका था... कैसे दो दो के मज़े एक साथ ले रही थी...
"तेरी चूची कितनी मोटी मोटी हैं... गांद भी मस्त है... फिर चूत भी... कसम से तू मुझे एक बार हाथ लगा लेने दे... जैसे 'शिव' से डबवा रही थी.... हाए क्या चीज़ है तू! " ड्राइवर रह रह कर उसको यहक़्न वहाँ से दबा रहा था... उसका एक हाथ अपने लंड को थोड़ा इंतज़ार करने की तस्सली दे रहा था.... पर कविता थी की उसके नखरे बढ़ते ही जा रहे थे," मैं तुमको हाथ लगाने भी देती... पर तुम मुझे ऐसे क्यूँ... आ... उठा कर लाए... मैं कुच्छ नही करने दूँगी"
उसका वोरोध सरासर दिखावा था... ड्राइवर तो कर ही रहा था... सब कुच्छ... पर बाहर से... उसने कविता का एक चूतड़ अपने हाथ में पकड़ रखा तहा और चूतदों के बीच की खाई को उंगलियों से कुरेड रहा था.... मानो उसकी गांद को जगा रहा हो....," करने दे ना चोरी.. बड़ी मस्त है तू..."
"नही... मैं कुछ नही करने दूँगी" कविता ने गुस्सा दिखाते हुए कहा... जैसे ड्राइवर अभी तक उससे हाथ ही मिला रहा हो...
ड्राइवर उसको धीरे धीरे सरकता सरकाता सड़क के एक मोड़ पर नीचे की और जा रहे छ्होटे से रास्ते की और ले गया... शायद वो रास्ता नीचे गाँव में जाता था... मनाली के रोड से दूर.....
"देख तो ले एक बार! ड्राइवर ने पॅंट में से अपना लंबा, मोटा एर काला सा लंड उसके हाथ में पकड़ा दिया... लंड बिल्कुल तैयार था... उसकी चूत की सुरंग को और खोल देने के लिए...
"नही, मुझे कुच्छ नही देखना! " कविता ने मुँह फेर लिया.. पर ऐसे शानदार लंड को अपने हाथ से अलग ना कर पाई... ऐसा लंड रोज़ रोज़ कहाँ मिलता है... पर उपर से वो यही दिखा रही थी की उसको कुच्छ भी नही करना है.... कुच्छ भी......
ड्राइवर के लंड को सहलाते सहलाते कविता इतनी गरम हो गयी थी की उसने अपने दूसरे हाथ को भी वहीं पहुँचा दिया... पर नखरे तो देखो लड़की के," तुम बहुत गंदे हो.... तुम्हे शरम नही आती क्या...?"
ड्राइवर बातों का खिलाड़ी नही था.... ना ही उससे कविता की बात का जवाब देने में इंटेरेस्ट था... वो तो बस एक ही रट लगाए हुए था... ," एक बार दे देगी तो तेरा क्या घिस जाएगा?"
कविता ने फिर वही राग अलापा," नही मुझे कुच्छ देना वेना नही है..." उसका ध्यान अब भी ड्राइवर के लंड की धिराक रही टोपी पर था....
ड्राइवर ने अपना हाथ सलवार के अंदर से पीछे उसकी गांद की दरारों में घुसा दिया तहा... वो एक हाथ से ही दोनो चूतदों को अलग अलग करने की कोशिश कर रहा था.. पर मोटी कसी हुई गांद फिर भी बार बार चिपकी जा रही थी... ड्राइवर क एक उंगली गांद के प्रवेश द्वार तक पहुँच ही गयी... उसने उंगली गांद के च्छेद में ही घुसा दी... कविता को रात के तारे दिखाई देने बंद हो गये तहे.... क्यूंकी उसकी आँखें मारे आनंद के बंद हो गयी थी... वो आगे होकर ड्राइवर की छति से चिपक गयी और उसके होंटो पर अपने नरम होंटो से चूमने लगी...
ड्राइवर तो सीधे ही सिक्सर लगाने वाला आदमी था... ये होन्ट वोंट उसकी समझ के बाहर थे... उसने झट से कविता का पहले ही उतारा कंबल ज़मीन पर बिच्छा दिया और उसको ज़बरदस्ती उसस्पर लिटने की कोशिश करने लगा...
"रुक जाओ ना! ईडियट... चूत मरने का मज़ा भी लेना नही आता...." कविता अब सीधे क्षकशकश मूड में आ गयी थी...
ड्राइवर उसकी बात सुनकर ठिठक कर खड़ा हो गया.. जैसे सच में ही वो नादान हो... जैसे कविता ही उसको ज़बरदस्ती वहाँ उठा लाई हो....
वो चुप चाप कविता की और देखने लगा; जैसे पूच्छ रहा हो... फिर कैसे मारनी है... चूत!
कविता ने ड्राइवर को सीधा खड़ा हो जाने को कहा.... वो बच्चे की तरह अपनी नूनी पकड़ कर खड़ा हो गया... कविता कंबल पर घुटनो के बाल बैठी और इसका सूपड़ा अपना पूरा मुँह खोल कर अंदर फिट कर लिया... ड्राइवर मारे आनद के मार गया... उसने तो आज तक अपनी बाहू की टाँग उतहकर ढ़हाक्के मार मार कर यूँही पागल किया था... हन अँग्रेज़ी फ़िल्मो में उसने देखा ज़रूर था ये सब... पर उनको तो वा कमेरे की सफाई मानता था... इतना आनंद तो उसको कभी चूत में भी नही आया... जो ये छ्होटी सी लड़की उसको दे रही थी.. वो तो उसका चेला बन गया.. अपने आप वो हिला भी नही... अब जो कर रही तही.. वो कविता ही कर रही थी...
कविता उसके गरम लंड के सुपादे पर अपनी जीभ घिमाने लगी... ड्राइवर मारे आनंद के उच्छल रहा था...."इसस्स्सस्स.... चूऊऊऊओस लीई! कसाआअँ से चहोरि.. तेरे जैसेईईइ लड़की... अया गुदगुदी हो रही है...
कविता ने अपने दोनो हाथों से ड्राइवर के चूतड़ पकड़ रखे थे और... लंड को पकड़ने की ज़रूरत ही नही ठीक... वो तो कविता के होंटो ने जाकड़ रखा तहा.. बुरी तरह...
कविता ने लंड को और ज़्यादा दबोचने की कोशिश करी... पर लंड का सूपड़ा इतना मोटा था की उसके गले से आगे ही ना बढ़ा... वो सूपदे को ही आगे पीच्चे होन्ट करके चोदने लगिइइई...... ऐसा करते हुए वो ड्राइवर के चेहरे के पल पल बदल रहे भाव देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो रही थी.......
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