Saturday, June 19, 2010

गर्ल'स स्कूल पार्ट --7

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गर्ल'स स्कूल --7

अंजली उसका ही इंतज़ार कर रही थी. शमशेर के अंदर आते ही उसने दरवाजा बंद कर दिया. उसने अजीब सा सवाल किया," शमशेर, तुम्हे में कैसी लगती हूँ?" शमशेर ने उसको खींच कर अपने से सटा लिया और उसके होंटो को चूम कर बोला,"सेक्सी!" अंजली: मैं मज़ाक नही कर रही; आइ'एम क्वाइट सीरीयस. बोलो ना! शमशेर रात से ही प्यासा था, उसने अंजलि को बाहों में उठा लिया और बेड पर ले जाकर पटक दिया. अंजलि कातिल निगाहों से उसको देखने लगी. शमशेर भी कुच्छ सोचकर ही आया था," मेरा तुम्हारे साथ नहाने की बड़ी इच्छा है. चलें! वो तो शमशेर की दीवानी थी; कैसे मना करती," एक शर्त है?" "बोलो!" "तुम मुझे नहलाओआगे!" उसकी शर्त में शमशेर का भी भला था. "चलो! यहीं से शुरुआत कर देता हूँ" कहकर शमशेर अंजलि के शरीर को एक एक कपड़ा उतार कर अनावृत करने लगा. अंजलि गरम हो गयी थी. नंगी होते ही उसने शमशेर को बेड पर नीचे गिरा लिया और तुरंत ही उसको भी नंगा कर दिया. वा उसके उपर जैसे गिर पड़ी और उसके होंटो पर अपनी मोहर लगाने लगी. शमशेर को रह रह कर दिशा याद आ रही थी. जैसे अगर उसको पता चलेगा तो वह बहुत नाराज़ होगी. "क्या बात है? मूड नही है क्या," अंजलि ने उसके होंटो को आज़ाद करते हुए कहा. शमशेर संभाल गया और पलट कर उसके उपर आ गया, उसने उसकी छति को दबा दिया....क्या दिशा को भी वा ऐसे छू पाएगा. अंजलि की सिसकी नकल गयी. उसने शमशेर का सिर अपनी चुचियों पर दबा दिया. शमशेर उस्स पल बाकी सबकुच्छ भूल गया. शमशेर उस्स पर भूखे शेर की तरह टूट पड़ा, और जिस्म को नोचने लगा, वा सच में ही बहुत सेक्सी थी. शमशेर उठा और अपना लंड उसको चखने के लिए पेश किया. अंजलि भी इश्स कुलफी को खाने की शौकीन हो चुकी थी. उसने झट से मुँह खोलकर अपनी चूत के यार को अपने गरम होंटो में क़ैद कर लिया. कमरे का टेम्परेचर बढ़ता जा रहा था. रह रह कर अंजलि के मुँह से जब उसका लंड बाहर लिकलता तो 'पंप' की आवाज़ होती. कुच्छ ही दिनों में ही वा ओरल सेक्स में परफेक्ट हो चुकी थी. अंजलि ने चूस चूस कर शमशेर के लंड को एकद्ूम चिकना कर दिया था; अपनी कसी चूत के लिए तैयार! शमशेर ने अंजलि को पलट दिया. और उसके 40" की गॅंड को मसालने लगा. उसने अंजलि को बीच से उपर किया और एक तकिये को वहाँ सेट कर दिया. अंजलि की गांद उपर उतह गयी.....उसकी दरार और खुल सी गयी. टू बी कंटिन्यूड....
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अंजलि को जल्द ही समझ आ गया की आज शमशेर का इरादा ख़तरनाक है; वा गेंड के टाइट च्छेद पर अपना थूक लगा रहा था.... "प्लीज़ यहाँ नही!" अंजलि को डर लग रहा था... फिर कभी कर लेना...!" अभी नही तो कभी नही वाले अंदाज में शमशेर ने अपनी उंगली उसकी गांद में फँसा दी, ऐसा तो वो पहले भी उसको चोद्ते हुए कर चुका था! पर आज तो उसका इरादा असली औजार वहाँ उसे करने का लग रहा था. अंजलि को उंगली अंदर बाहर लेने में परेशानी हो रही थी. उसने अपनी गांद को और चौड़ा दिया ताकि कुच्छ राहत मिल सके. कुच्छ देर ऐसे ही करने के बाद शमशेर ने ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉयर से कोल्ड क्रीम निकाल ली," इससे आसान हो जाएगा" जैसे ही कोल्ड क्रीम लगी हुई उसकी उंगली अंजलि की गांद की दरारों से गुज़री, अंजलि को चिकनाई और तहंडक का अहसास हुआ, ये अपेक्षाकृत अधिक सुखदायी था. करीब 2 मिनिट तक शमशेर उंगली से ही उसके 'दूसरे च्छेद' में ड्रिलिंग करता रहा, अब अंजलि को मज़ा आने लगा था. उसने अपनी गांद को थोड़ा और उँचा उठा लिया और रास्ते और आसान होते गये; फिर थोड़ा और....फिर थोडा और..... थोड़ी देर बाद वह कुतिया बन गयी.....! इश्स पोज़िशन में उसकी गॅंड की आँख सीधे छत को देख रही थी, उंगली निकालने पर भी वह थोड़ी देर खुली रहती थी. शमशेर ने ड्रिलर का साइज़ बढ़ा दिया; अब अंगूत्हा अपने काम पर लगा था. शमशेर झुका और अंजलि की चूत का दाना अपने होंटो में दबा लिया, वह तो 'हाइयी मर गयी' कह बैठी. मरी तो वा नही थी लेकिन शमशेर को पता था वा मरने ही वाली है. शमशेर घुटने मोड़ कर उसकी गांद पर झुक गया, टारगेट सेट किया और 'फिरे!'..... अंजलि चिहुनक पड़ी, पहले ही वार में निशाना शतीक बैठा था..... लंड आधा इधर.... आधा उधर.... अंजलि मुँह के बाल गिर पड़ी, लंड अब भी फँसा हुआ था.... करीब 3 इंच "बुसस्स्सस्स.... प्लीज़.... रुक... जाओ! और नही" अंजलि का ये कहना यूँही नही था... उसकी गांद फैल कर 4 इंच खुल चुकी थी...... 4 इंच! शमशेर ने सेयिम से काम लिया; उसकी छतिया दबाने लगा..... कमर पर किस करने लगा.... वग़ैरा वग़ैरा! अंजलि कुच्छ शांत हुई, पर वा बार बार कह रही थी," हिलना मत....हिलना मत!" शमशेर ने उसको धीरे से उपर उठाया.... धीरे.... धीरे और उसको वापस चार पैरों वाली बना दिया......कुतिया! शमशेर ने अपना लंड थोड़ा सा बाहर खींचा.... उसकी गांद के अन्द्रुनि हिस्से को थोड़ी राहत बक्शी और फिर जुलम ढा दिया... पूरा जुलम उसकी गांद में ही ढा दिया. अंजलि को काटो तो खून नही.... बदहवास शी होकर कुच्छ कुच्छ बोलने लगी, शायद बताना ज़रूरी नही! शमशेर ने काम चालू कर दिया.... कमरे का वातावरण अजीबोगरीब हो गया था. अंजलि कभी कुच्छ बोलती.... कभी कुच्छ. कभी शमशेर को कुत्ता कहती.... कभी कमीना कहती.... और फिर उसी को कहती.....आइ लव यू जान.... जैसे मज़ा देने वाला कोई और हो और सज़ा देने वाला कोई और. आख़िरकार अंजलि ने राहत की साँस ली.... उसका दर्द लगभग बंद हो गया.... अब तो लंड उसकी गंद में सटाक से जा रहा था और फटाक से आ रहा था.... फिर तो दोनों जैसे दूध में नहा रहे हो.... सारा वातावरण असभ्या हो गया था.... लगता ही नही था वो पढ़े लिखे हैं.... आज तो उन्होने मज़े लेने की हद तक मज़ा लिया..... मज़े देने की हद तक मज़ा दिया.... और आख़िर आते आते दोनों टूट चुके थे....... हाई राम! टू बी कंटिन्यूड....
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अंजलि ने नंगी ही शमशेर के साथ स्नान किया. शमशेर ने अंजलि को खूब रगड़ा और अंजलि ने शमशेर को ... फिर दोनों अपना शरीर ढक कर बाहर सोफे पर बैठ गये. "डू यू लव मी जान?" अंजलि ने बैठते ही सवाल दागा. " तुम्हे कोई शक है?" "नही तो!" अंजलि ने उसकी गोद में सिर रख लिया," क्या तुम मुझसे शादी करोगे?" "नही!" शमशेर का जवाब बहुत कड़वा था. "क्यूँ?" अंजलि उठ कर बैठ गयी! शमशेर: क्या मैने कभी ऐसा कोई वाडा किया है? अंजलि: ना! शमशेर: तो ऐसा सवाल क्यूँ किया? अंजलि मायूस हो गयी " मैने तो इसीलिए पूचछा था..... चाचा का फोने आया था; मेरे लिए एक रिस्ता आया है" "कंग्रॅजुलेशन्स!" क्या करता है" शमशेर को जैसे कोई फ़र्क नही पड़ा. अंजलि: कुच्छ खास नही, उमर करीब 40 साल है. एक बच्ची है पहली बीवी से! और मुझे इतना ही पता है की वो पैसे वाला है... बस! शमशेर ने उसको बाहों में भर कर माथे पर चूम लिया..... उसे लगा शायद ये आखरी बार है.... राकेश के जाने के बाद, दिव्या बहुत बेचैन हो गयी... वो वोडेफोन की एड आती है ना टी.वी. पर; अब सबको बताओ सिर्फ़ 60 पैसे में; की मोटी की तरह ही उसका हाल था, सबको तो वो बता नही सकती, पर वाणी; वो तो उसकी बेस्ट फ्रेंड थी. दिव्या ने वाणी को ये खेल सिखाने की सोची और बिना देर किए उसके घर पहुँच गयी. "वाणी", घर जाकर उसने आवाज़ लगाई. "हां दिव्या, आ जाओ! मैं यही हूँ!" दिव्या की आवाज़ में हमेशा रहने वाली मिठास थी. दिव्या: अब चलें हमारे घर! वाणी: सॉरी दिव्या! सर के आने के बाद मुझे गाड़ी सीखने जाना है! मैं नही चल सकती. दिव्या: अच्च्छा एक बार बाहर आना! वाणी उसके साथ बाहर आ गयी," बोल!" दिव्या: तू चल ना प्लीज़. मुझे तुझे एक खेल सिखाना है. वाणी उत्सुक हो गयी. खेलने में उसको बहुत मज़ा आता था!," कैसा खेल!" दिव्या: नही, यहाँ नही बता सकती, अकेले में ही बता सकती हूँ! वाणी: तो चल उपर! उपर बता देना! दिव्या: उपर तो सर रहते हैं, वो आ गये तो? वाणी: नही, वो तो 5 बजे की कहकर गये हैं, अभी तो 2 ही बजे हैं! चल जल्दी चल! दोनों भागती हुई उपर चली गयी. उपर जाकर उन्होने दरवाजा बंद कर लिया, एक खिड़की खुली थी. दिव्या: ये भी बंद कर दे! वाणी: अरे इसकी कोई ज़रूरत नही है, कोई आएगा तो सीढ़ियों से ही दिख जाएगा; फिर ऐसा भी क्या खेल है जो तू इतना डर रही है. दिव्या: देख बुरा मत मानना, ये च्छूप कर खेलने का ही खेल है, पर मज़ा बहुत आता है. वाणी: ऐसा कौनसा खेल है? दिव्या: शादी के बाद वाला खेल! वाणी को पता ही नही था की शादी के बाद कोई खेल भी खेला जाता है. उसको किसी ने बताया ही नही आज तक! वो उत्सुक हो उठी, ऐसा खेल खेलने के लिए," चल जल्दी सीखा ना" दिव्या: देख वैसे तो ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है पर..... वाणी ने बीच में ही टोक दिया," तो सर को आने दो!" दिव्या उसकी बात पर हँसी," धात! ऐसा फिर मत कहना.... पर में तुझ खेल सीखा सकती हूँ...." वाणी: तो सीखा ना, इतनी बातें क्यूँ कर रही है........ वाणी ने आँखें बंद कर ली; दिव्या ने राकेश की तरह से ही वाणी के पीच्चे जाकर उसकी मदभरी च्चातियों को हल्के से दबा दिया. वाणी उच्छल पड़ी," ये क्या कर रही है तू" हां, मज़ा तो उसको आया था; ये मज़ा तो वो ले चुकी थी सर के हाथो से! दिव्या: तू बस अब टोक मत, यही तो खेल है! वाणी हँसने लगी, उसके बदन में गुदगुदी सी होने लगी,"ठीक है" और उसने फिर आँखें बंद कर ली. दिव्या ने इश्स बार उसके टॉप में हाथ डाल दिया और उसको खेल का पहला भाग सिखाने लगी. वाणी मारे गुदगुदी के मरी जा रही थी. वह रह रह कर उच्छल पड़ती! उसको बहुत मज़ा आ रहा था; उसका चेहरा धीरे धीरे लाल होने लगा! अब दिव्या उसको छ्चोड़ कर बोली," अब तू इधर मुँह कर ले; तू मुझसे खेल और में तुझसे खेलूँगी." अब लेज़्बियेनिज़्म अपने चरम पर था. दोनों एक दूसरे की चुचियों को मसल रही थी. एक दूसरे के लबों से लब टकरा रही थी; दोनों ही मस्त हो चुकी थी, बीच बीच में दोनों सीढ़हियों की और भी देख लेती. वाणी: तू तो कह रही थी की ये खेल लड़के के साथ खेला जाता है; इसमें लड़के की क्या ज़रूरत है.... वो साथ साथ 'खेल' भी रही थी. दिव्या: पहला भाग तो चल जाता है, पर दूसरा भाग लड़के के बिना नही हो सकता. वाणी: वो कैसे? दिव्या: चल बताती हूँ; बेड पर लेट जा...... और वाणी लेट गयी..! दिव्या ने वाणी का स्कर्ट उपर उठा दिया और उसकी कछि को नीचे कर दिया.... वाणी को अजीब सा लग रहा था पर वो ये खेल पूरा खेलना चाहती थी.... दिव्या वाणी की चूत देखकर जल सी गयी; उसकी क्यूँ नही है ऐसी......वैसी तो शायद दुनिया में किसी की नही थी. दिव्या ने वाणी की चूत पर अपने होंट सटा दिए ...वाणी भभक उठी.... उसको कल रात की याद ताज़ा हो गयी जब वो....... सर की 'टाँग' पर बैठी थी... वाणी की आँखों में मस्ती भरती जा रही थी.... उसने मस्त अंदाज में पूचछा....," तूने कहाँ सीखा री ये खेल!" "सरपंच के लड़के से!" "राकेश से" वाणी बहकति जा रही थी" "हां वो आज 4 बजे फिर आएगा....तुझे भी खेलना है क्या पूरा खेल? चलना मेरे साथ.....3:30 बजे चलेंगे....घर पर कोई नही है... रात को आएँगे! हां मुझे भी खेलना है पूरा खेल मैं भी चालूंगी तेरे साथ......." टू बी कंटिन्यूड....
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अपनी मस्ती में सिर से पैर तक डूबी नवयौवनाओं को शमशेर के सीढ़ियाँ चढ़ने की आवाज़ भी सुनाई नही दी. शमशेर ने खिड़की से उनके प्रेमलाप को सुना; वा वापस जाने ही वाला था की जाने क्या सोचकर उसने दरवाजा खोल दिया ..........? शमशेर को देखते ही दोनों का चेहरा फक्क रह गया. वाणी तो इतनी डर गयी की अपने को ढ़हकना ही भूल गयी........ यूँ ही पड़ी रही! शमशेर उन दोनों को बिना किसी भाव के देख रहा था. वाणी को अहसास हुआ की जैसे उनकी दुनिया ही ख़तम हो गयी.... करीब एक मिनिट बीत जाने पर दिव्या को वाणी के नंगेपन का अहसास हुआ और उसने वाणी की स्कर्ट नीचे ख्हींच दी. वाणी को पता चल चुका था वह जो भी कर रही थी, बहुत ग़लत था. दिव्या तो सिर्फ़ पकड़े जाने के डर से काँप रही थी, वो भी उनके सर के द्वारा!.... पर वाणी का तो जैसे उस्स एक पल में ही सब ख़तम हो गया..... उसके सर..... उसके अपने सर ने उनको ग़लत बात करते देख लिया.. वो अब भी एकटक सर को ऐसे ही देखे जा रही थी.... जैसे पत्थर बन गयी हो! शमशेर ने दिव्या की और देखा और कहा जाओ!.... पर वह हिली तक नही! शमशेर ने फिर कहा," दिव्या, अपने घर जाओ" उसने अपना सिर नीचे झुकाया और जल्दी जल्दी वहाँ से निकल गयी. अब शमशेर ने वाणी की और देखा..... ऐसे तो कभी सर देखते ही ना थे उसको..... वो तो उनकी अपनी थी..... उनकी अपनी वाणी! "वाणी" नीचे जाओ! वाणी उठी और अपने भगवान से लिपट गयी...... उसकी आँखों में माफी माँगने का भाव नही था.... ना ही उसको पकड़े जाने की वजह से मिल सकने वाली सज़ा का डर..... उसको तो बस शमशेर के दिल से दूर हो जाने का डर था..... उसने 'अपने' सर को कसकर पकड़ लिया! शमशेर ने वाणी की बाहों के घेरे से खुद को आज़ाद कर कहा " वाणी, नीचे जाओ!" वाणी इश्स तरह रो रही थी जैसे उसका बच्चा मर गया हो... वा पीच्चे देखती देखती.... रोटी बिलखती नीचे चली गयी! नीचे जाते ही दिशा ने उसको इश्स तरह रोते देखा तो भाग कर बाहर आई,"क्या हुआ च्छुटकी!" वाणी कुच्छ ना बोली.... बस रोती रही...... एकटक उपर देखती रही. दिशा ने उसको कसकर अपने सीने से भीच लिया और उपर देखने लगी....... दिशा वाणी को अंदर ले गयी...." बता ना च्छुटकी क्या हुआ?" वाणी ने और ज़ोर से सुबकना शुरू कर दिया. दिशा ने उसके गालों पर बह रही मोतियों की धारा को अपनी चुननी से सॉफ किया, पर वो बरसात रुकने का नाम ही नही ले रही थी....," बता ना वाणी; ऐसा क्या हुआ जो तू मुझे भी नही बता सकती. मैं तो तेरी दीदी हूँ ना!" दिशा के मंन में तरह तरह के ख्याल आ रहे थे.... जिस तरह से वाणी रो रही थी, उसके शक़ को और हवा मिल रही थी.... च्छुटकी सर से कुच्छ ज़्यादा ही चिपक के रहती थी. कहीं सर ने उसकी मासूमियत का फ़ायदा तो नही उठा लिया.... ," च्छुटकी, मुझे सिर्फ़ ये बता दे की कोई 'ग़लत बात है क्या, जो तू मुझे बताने से हिचक रही है!" वाणी ने सुबक्ते हुए ही अपना सिर हां में हिला दिया. दिशा का पारा गरम हो गया, जिसस आदमी को वो 'अपने के रूप में.......," क्या सर ने...." वाणी ने दिशा की बात को पूरा ही नही होने दिया.... सर का नाम सुनते ही उसने दिशा के मुँह पर अपने कोमल हाथ रख दिए और चीत्कार कर उठी. वह अपनी दीदी से बुरी तरह लिपट गयी. अब दिशा....'सब कुच्छ समझ चुकी थी!.... उसके चेहरे पर नफ़रत और कड़वाहट तैरने लगी.... अब उसे 'सर; सर नही बल्कि एक सुंदर रूप धारण किए हुए कोई बाहरूपिया शैतान लग रहा था...... वह अपने दिल में हज़ारों.... लाखों.... गालियाँ और बददुआयं भर कर उपर चली गयी.... वाणी का भी उसके साथ ही जाने का मॅन था.... पर अब उसके सर 'अपने नही रहे!' दिशा ने उपर जाकर धक्के के साथ दरवाजा खोल दिया.... शमशेर आराम से तकिये पर सिर टिकाए कुच्छ सोच रहा था.... हमेशा की तरह एक दम शांत... एक दम निसचिंत! "कामीने!" दिशा ने सिर को उसकी औकात बताई. शमशेर ने उसकी और देखा, पर कोई प्रतिक्रिया नही दी, वह ऐसे ही शांत बैठा रहा. उसकी यही अदा तो सबको उसका दीवाना बना देती थी... पर आज दिशा उसकी इश्स 'अदा' पर बिलख पड़ी," हराम जादे, मैं तुझे......" दिशा उसके पास गयी और उससे कॉलर से पकड़ लिया..... उसके मुँह से और कुच्छ ना निकला... "क्या हुआ?" शमशेर ने शांत लहजे में ही उत्तर दिया.... उसका कंट्रोल जबरदस्त था... उसके चेहरे पर दिशा को पछ्तावे या शर्मिंदगी का कोई चिन्ह दिखाई नही दिया.... "निकल जा यहाँ से! मेरे मामा मामी के आने से पहले... नही तो तुझे.... तुझे जान से मार दूँगी..." दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर ज़मीन पर थूका और पैर पटकते हुए नीचे चली गयी..... वह चाँदी जैसी दिख रही थी. शमशेर ने अपना लॅपटॉप खोला और काम में लग गया.... नीचे जाकर दिशा ने अब तक रो रही वाणी को अपने दहक रहे सिने से लगाया," बस कर च्छुटकी, उस्स हराम जादे को मैने.....! वाणी उसको अवाक देखती रह गयी. उसके आँसू जैसे एकद्ूम सूख गये.... वा सोच रही थी दीदी किस 'हराम जादे' को गाली दे रही है,"क्या हुआ दीदी?" दिशा की आँखों में जैसे खून था," मैने उसको घर छ्चोड़कर भाग जाने को कह दिया है!" "मगर...."वाणी हैरान थी, ये क्या कह रही हैं दीदी 'अपने सर ' के बारे में," उन्होने क्या कर दिया दीदी?" अब की बार निशब्द होने की बारी दिशा की थी...." वो तुझे.... सर ने तेरे साथ कुच्छ नही किया.....?" "नही दीदी.... उन्होने तो मेरे को धमकाया भी नही....." सारा गेम ही उलट गया.... अब दिशा सूबक रही थी और वाणी उससे पूच्छ रही थी,"क्या हुआ दीदी? तुमने सर को क्या कह दिया?" दिशा के पास वाणी को बताने लायक कुच्छ नही था. ये उसने क्या कर दिया! जिसकी तस्वीर वो अपने दिल के आईने में देख रही थी... उसी के दिल में उसने हज़ारों काँटे चुबा दिया; अपमान के..... ज़िल्लत के.... और नफ़रत के! "मेरे साथ ही ऐसा क्यूँ होता है?", दिशा के मन में विचारों का तूफान सा उसको अंदर तक झकझोर रहा था...! पहले उससने स्कूल में सर की बेइज़्ज़ती की.... और जब....अब मुस्किल से उसको लगने लगा था कि सर उस्स बात को भूल चुके हैं तो....," ये मैने क्या कर दिया वाणी!" "दीदी, बताओ ना क्या हो गया!?" वाणी अब उसके आँसू पोच्च रही थी....! दिशा की आँखें लाल हो चुकी थी.... लाल तो पहले से ही थी मारे गुस्से के! अब तो बस उनका भाव बदल गया था... अब उन्न मोटी मोटी आँखों में पासचताप था..... ग्लानि थी.... और शमशेर के दिल से लग कर आँसू लुटाने की प्यास थी.... एक तड़प थी उसकी छति से चिपक कर देखने की और एक भ्ूख भी थी...... वो औरत की तरह सोच रही थी; लड़की की तरह नही.... दिशा ने वाणी का हाथ पकड़ा और उसको उपर ले गयी.... खिड़की से उन्होने देखा शमशेर आँखें बंद किए दीवार से सटा बैठा था.....बिल्कुल शांत......बिल्कुल निसचिंत..... उसके चेहरे पर झलक रहे तेज़ का सामना करने की दोनों में से किसी में हिम्मत नही थी..... दोनों ने एक दूसरे को देखा..... और उल्टे पाँव लौट गयी..... नीचे.... अब दोनों रो रही थी.... एक दूसरे से चिपक कर.... अब कोई किसी से वजह नही पूच्छ रहा था... हां आँसू ज़रूर पोंच्छ रही थी.... एक दूसरे के!.... सुबक्ते हुए ही वाणी ने दिशा से कहा," दीदी! अब सर हमसे कभी बात नही करेंगे ना!" "तू चुप कर च्छुटकी; आजा, सोजा!", दिशा ने वाणी को अपने साथ खाट पर लिटा लिया, वाणी ने अपनी टाँग दिशा के पेट पर रख दी और आँखें बंद कर ली. ना जाने कब वो सर के ख्यालों में खोई खोई सो गयी.... दिशा सीधी लेटी हुई सुन्य में घूरे जा रही थी. वो दिशा से पूच्छना चाहती थी की असल में हुआ क्या था! पर वो वाणी को अभी और दुखी नही करना चाहती थी.... थ्होडी देर बाद ही उसके मामा मामी आ गये," आ! दिशा बेटी आज तो सारा बदन टूट रहा है! इतना काम था खेत में....ला जल्दी से खाना लगा दे. खाकर लेट जायें, ... ये वाणी अभी से कैसे सो गयी...." "मामा, इसकी तबीयत थ्होडी खराब है... मैने गोली देकर सुला दिया है...." "आज उपर नही गयी ये!, उतर गया ए.सी. का भूत" " नही....वो सर ने ही बोल दिया की बुखार में ए.सी. ठीक नही रहेगा"... आज इसको नीचे ही सुला दो!" "और तुम?" मामा ने उसकी मॅन को परखने की कोशिश की!" जैसे उसको पता हो; इनका कोई चक्कर है... "म्‍म्म...मैं भी नीचे ही सोऊ गी... और क्या में अकेली जाउन्गि"..... मॅन में वो सोच रही थी.... काश में अकेली जा सकती! "हूंम्म... तुम समझदार हो बेटी"..मामा ने कहा. "खाना खा लिया इसने!" मामी ने दिशा से पूचछा. दिशा: हां मामी, और मैने भी खा लिया.... दिशा झूठह बोल रही थी... उसको पता था उसकी तरह वो भी खाना नही खा पाएगी... "और सर तो 8:00 बजे खाते हैं"... तू उन्हे खाना दे आना... हम तो अब सो रहे हैं" मामा ने उठते हुए कहा... दिशा सोचने लगी "मैं उपर कैसे जाउ?"....... टू बी कंटिन्यूड....
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करीब 8:00 बजे; दिशा सोच सोच कर परेशान थी की अब उसको 'सर' के सामने जाना पड़ेगा... उसने टूटे हुए पैरों से सीढ़िया चढ़ि... शमशेर ने उसको खाना लेकर आते खिड़की से देख लिया था शायद! जैसे ही वा दरवाजे के सामने जाकर रुकी; अंदर से सर की आवाज़ आई," आ जाओ दिशा!" दिशा की पहली समस्या तो हल हुई....वो सोच रही थी वो अंदर कैसे जाएगी? वो अंदर चली गयी... सिर झुकाए! उसने टेबल पर खाना रखा और जाने लगी...."दिशा!" वह कठपुतली की तरह रुकी और पलट गयी....उसकी नज़रे झुकी हुई थी...शर्म के मारे! शमशेर: उपर देखो! मेरी तरफ.... दिशा ने जैसे ही उपर देखा.... उसकी आँखें दबदबा गयी... वो छलक उठी थी.... एक आँसू उसके गालों से होता हुआ उसके होंटो पर जाकर टिक गया; जैसे कहना चाहता हो,"मैं प्यार का आँसू हूँ, मुझे चखकर देखो......वो आँसू शमशेर के लिए थे.... शमशेर के चखने के लिए... दिशा ने शमशेर को देखा, वो अब भी मुस्कुरा रहा था...," इधर आओ, मेरे पास!" दिशा उसके करीब चली गयी... आज वो जो भी कहता वो कर देती....जो भी माँगता....वो दे देती! शमशेर ने उसकी कलाई पकड़ ली.....और तब शमशेर को कुच्छ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.......वो घुटने मोड़ कर .... उसकी गोद में जा गिरी.... "सॉरी!" दिशा ने आगे 'सर' नही कहा. उसकी आँखों में अब भी नमी थी... वो निस्चय कर चुकी थी.... अब शमशेर के प्रति अपनी भावना नही छिपयेगि....चाहे उसका यार उसको जान से मार डाले... उसने शमशेर की आँखो में आँखें डालकर दोहराया....."सॉरी!"... उसके लब थिरक रहे थे....प्यार में... शमशेर को भी पता नही क्यूँ पहली बार किसी के उससे प्यार के बारे में इतनी देर से पता चला... शायद पहले'प्यार'...'प्यार' नही सिर्फ़ वासना थी... " लगता है तुम्हे मुझसे प्यार हो गया है?" "यस, आइ लव यू!" दिशा ने एलान कर दिया.... इश्स बार उसके होंट नही कांपे, सच्चाई पर जो अडिग थे! शमशेर ने अपने होंटो से उसके होंटो पर ठहरे 'उस्स' आँसू को चखा.... वो सच में ही प्यार का आँसू था. दिशा ने अपने आपको शमशेर के अंदर समाहित कर लिया.... उसको अब कोई डर नही था... कुच्छ देर वो निशब्द एक दूसरे में समाए रहे....फिर शमशेर ने कहा," कल रात को यहीं आ जाना.... सोने के लिए....मेरे साथ" दिशा को उससे अलग होते हुए अजीब सा लग रहा था... एक दिन का इंतज़ार मानो सालों का इंतज़ार था... पर उसका दिल उच्छल रहा था... सीढ़ियों से उतरते हुए... उसकी छतियो के साथ..... अगले दिन जब वाणी उठी..... उसको सच में ही बुखार था... वो स्कूल नही गयी... दिशा भी नही! सोमवार को शमशेर लॅबोवरेटरी में बैठा था. रिसेस से पहले उसके 2 पीरियड 'प्रॅक्टिकल सेशन' थे, 10थ क्लास के लिए. शमशेर ने उनकी क्लास नही ली... क्यूंकी इश्स टाइम पर उसने दिव्या को अपने पास बुलाया था...लॅब में. उसने 10थ वाले बच्चों को उनकी क्लास में ही काम दे दिया था; याद करने के लिए. 4थ पीरियड की बेल लगने के 5 मिनिट बाद दिव्या उसके पास पहुँच गयी. शमशेर वहीं बैठा था, अलमारियों के पीछे, चेअर् पर. दिव्या की जान सूख्ती जा रही थी," ससिररर...आपने मुझे 4थ पीरियड में बुलाया था!" दिव्या सहमी हुई थी! "हां बुलाया था!" शमशेर सीरीयस होने की एकदम सही आक्टिंग कर रहा था.. जबकि उसके मॅन में दिव्या को प्यार का वही खेल; अच्छे तरीके से सीखने की इच्च्छा थी.. जो वो कल वाणी को सीखा रही थी. "ज्ज्जिई; क्या काम है ससररर!" शमशेर: वो कल क्या चल रहा था... मेरे कमरे में दिव्या: क्क्याअ. ..सर! शमशेर: वाणी के साथ! दिव्या: आइ आम सॉरी सर; मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. शमशेर: क्यूँ दिव्या कुच्छ ना बोली.. शमशेर ने कड़क आवाज़ में कहा," तुम्हे सुनाई नही दिया!" दिव्या: सीसी..क्योंकि...क्योंकि ज़ीर वो.....ग़लत काम है. वो डर के मारे काँप रही थी. शमशेर: क्या ग़लत काम है! दिव्या फिर कुच्छ ना बोली. शमशेर: देखो अगर अब की बार तुमने मेरे एक भी सवाल का जवाब खुल कर नही दिया तो मैं तुम्हारे मा बाप को बुल्वाउन्गा.. और तुम्हे स्कूल से निकलवा दूँगा; समझी! दिव्या: जी सर! उसने तुरंत जवाब दिया. शमशेर: तो बोलो! दिव्या: क्या सर? शमशेर: कौनसा काम ग़लत है? दिव्या: सर वो जो हम कर रहे थे! उसके जवाब अब जल्दी मिल जाते थे. शमशेर: क्या कर रहे थे तुम? दिव्या: सर... वो खेल रहे थे... शमशेर: अच्च्छा, खेल रहे थे! दिव्या ने नज़रें नीची कर रखी थी शमशेर: किसने सिखाया तुम्हे ये खेल? दिव्या: सर... वो सरिता के भैईई ने; वो जो सरपंच का बेटा है... शमशेर: सरिता को बुलाकर लाओ! दिव्या चली गयी.... थोड़ी देर बाद; सरिता और दिव्या दोनो शमशेर के पास खड़ी थी. शमशेर: सरिता, तुम्हारे भाई ने दिव्या को एक खेल सिखाया है... पूछोगि नही कौनसा? सरिता ने नज़रें नीची कर ली... उसको पता था वो लड़कियों को कौनसा खेल सिखाता है. दिव्या ने मौका ना चूका; अपराध शेर कर लिया, सरिता के साथ," सर उसने इसको भी वो खेल सीखा रखा है! राकेश बता रहा था कल" सरिता सिर झुकाए खड़ी रही, उसको बदनामी का कोई डर नही था...अब कोयले को कोई और कला कैसे करेगा! है ना भाई! शमशेर: तो क्या तुम दोनो को स्कूल से निकाल दें? सरिता: सॉरी सर, आइन्दा ऐसा नही करेंगे! उसकी 'सॉरी' इश्स तरह की थी की जैसे उसको किसी ने नकल करते पकड़ लिया हो! शमसेर: तुम क्लास में जाओ, थोड़ी देर में बुलाता हूँ शमशेर सरिता के जाते हुए उसकी गांद को जैसे माप रहा था... बहुत खुली है... सरिता! शमशेर: हां दिव्या, अब बोलो उसने क्या सिखाया था! दिव्या: सर उसने इनको दबाया था... शमशेर: किनको? तुम्हे नाम नही पता? दिव्या: (अपना सिर झुकते हुए) जी पता है... शमशेर: तो बोलो! दिव्या: जी चूचियाँ.. वा अपने सर के सामने ये नाम बोलते हुए सिहर उठी शमशेर: हां तो उसने क्या किया था? दिव्या: सर उसने मेरी चूचियों को दबाया था... वह सोच रही थी.. सर मुझे ऐसे शर्मिंदा करके मुझे सज़ा दे रहे हैं... शमशेर: कैसे? दिव्या ने अपनी चूचियों को अपने हाथ से दबाया... पर उसको वो मज़ा नही आया. शमशेर: ऐसे ही दबाया था या कमीज़ के अंदर हाथ डालकर... दिव्या हैरान थी... सर को कैसे पता( उसको नही पता था सर इश्स खेल के चॅंपियन हैं) दिव्या: जी अंदर डालकर भी... शमशेर: कैसे? दिव्या अब लाल होती जा रही थी... उसने झिझकते हुए अपना हाथ कमीज़ के अंदर डाल दिया... उसके पेट से कमीज़ उपर उठ गया और उसके पेट का नीचे का हिस्सा नंगा हो गया... उसकी नाभि बहुत सुंदर थी... और पेट से नीचे जाने वाला रास्ता भी. शमशेर: फिर? दिव्या ने सोचा, वाणी से सर ने सबकुच्छ पूच्छ लिया है, च्छुपाने से कोई फायडा नही.... दिव्या: सर फिर उसने इनको चूसा था! शमशेर: नाम लेकर बोलो! दिव्या हर 'कैसे' पर जैसे अपने कपड़े उतारती जा रही थी," जी उसने मेरी चूचियों को चूसा था.... शमशेर का फिर वही सवाल," कैसे" अब दिव्या चूस कर कैसे दिखाती, उसकी जीभ तो उसकी छतियो तक पहुँच ही नही सकती थी, फिर भी उसने एक कोशिश ज़रूर की अपनी जीभ निकाल कर चेहरा नीचे किया अपना कमीज़ उपर उठा कर अपनी चूचियों को सर के सामने नंगी करके उनको छूने की कोशिश करती हुई बोली,"सर, ऐसे!" उसकी चूचियाँ बड़ी मस्त थी, वाणी की छतियो से बड़ी... उनके निप्पल एक अनार के मोटे दाने के बराबर थे. शमशेर उन्हे देखकर मस्त हो गया... ऐसा अनुभव पहली बार था और सूपरहिट भी था... शमशेर ने कल ही ये प्लान तैयार कर लिया था," इन्हें चूस कर तो दिखाओ..." दिव्या भी गरम होती जा रही थी," सर मेरी जीभ नही जाती" शमशेर: तो मैं चूसूं क्या? दिव्या को जैसे करेंट सा लगा; क्या उसके सर उसके साथ गंदा खेल खेलेंगे!.... वा खामोश खड़ी रही... उसकी कच्च्ची गीली हो गयी! शमशेर ने सरिता को बुलाकर लाने को कहा...! टू बी कंटिन्यूड....
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दिव्या ने अपने आपको ठीक किया और सरिता को बुला लाई.. दोनों आकर खड़ी हो गयी... शमशेर: यही बात सरिता को बताओ और उससे कहो राकेश की तरह वो करके दिखाए. दिव्या: सरिता, राकेश ने मेरी चूचियों को चूसा था. अब तुम चूस कर सर को दिखाओ!.... जब सर के सामने ही बोल चुकी थी तो सरिता से क्या शरमाना!... वो कहते हुए मस्ती से भरी जा रही थी... डरी हुई मस्ती से! सरिता ताड़ गयी, सर रंगीले आदमी हैं, उसने दिव्या का कमीज़ उपर उठाया और उसकी एक चूची को मुँह में ले लिया और आँख बंद करके चूसने लगी... जैसे उनका दूध निकाल रही हो! वो पर्फेक्ट लेज़्बीयन मालूम हो रही थी. दिव्या सिसक उठी... ऐसा करते हुए सरिता की गांद सर के बिल्कुल सामने थी, उसके तने हुए लंड से बस 1 फुट दूर.... शमशेर ने उसके एक चूतड़ पर अपना हाथ रख कर देखा... वो मस्त औरत हो चुकी थी. शमशेर: बस...!.... उसके ऐसा कहते ही सरिता ने अपने होंट हटा लिए.... जैसे शमशेर ने कोई रिमोट दबाया हो...! सरिता इश्स तरह से सर को देखने लगी जैसे बदले में उससे कुच्छ माँग रही हो... दिव्या अब भी डरी हुई थी. शमशेर: ऐसे ही! दिव्या:" जी," उसकी साँसे तेज हो गयी तही..... उसकी छातिया उपर नीचे हो रही थी! शमशेर: इतना ही मज़ा आया था? दिव्या: जी सर सरिता ने विरोध किया," नही सर, जब कोई लड़का चूस्ता है, असली मज़ा तो तभी आता है" उसके हाथ अपनी मोटी मोटी चुचियों पर जा पहुँचे थे; जो ब्रा में क़ैद थी. शमशेर: झहूठ क्यूँ बोला, दिव्या! दिव्या: सॉरी सर!.... उसका डर अब कम होता जा रहा था... और पूरा खेल खेलने की इच्च्छा बढ़ती जा रही थी... शमशेर: तो बताओ, कितना मज़ा आया था? दिव्या: सर कैसे बताओन, यहाँ कोई लड़का थोड़े ही है? शमशेर: मैं क्या 'छक्का' हूँ! दिव्या: पर सर... आप तो 'सर' हैं... शमशेर इश्स बात पर ज़ोर से हंस पड़ा... उसको एक चुटकुला याद आ गया. दो औरतें शाम ढले सड़क किनारे पेशाब कर रही होती है... तभी एक आदमी को साइकल पर आता देख दोनो सलवार उठा कर अपनी चूत ढक लेती हैं... जब वो पास आया तो उनमें से एक बोली," अरी ये तो 'बच्चों का मास्टर था; बिना बात जल्दबाज़ी में अपनी सलवार गीली कर ली पर उसने दिव्या से कहा," मैं चूस के दिखाउ तो बता देगी कितना मज़ा आया था. दिव्या: जी सर! .... उसकी नज़र नीचे हो गयी. शमशेर ने दिव्या को अपनी बाहों में इश्स प्रकार ले लिया की उसके पैर ज़मीन पर ही रहे... शमशेर का दायां हाथ उसकी गांद को संभाल रहा था और बयाँ उसके कंधों को संभाले हुए था... उसने पहले से ही नंगी एक चूची पर अपने होंटो को फैला दिया... दिव्या बहक रही थी... वो पूरा खेल खेलना चाहती थी! सरिता को ये 'ड्रामा' देखते काफ़ी वक़्त हो गया था... वो और वक़्त जाया नही जाने देना चाहती थी... वा शमशेर के पास घुटनो के बल बैठ गयी और शमशेर के आकड़े हुए 8" को आज़ाद कर लिया.. यह शमशेर के लिए अकल्पनिया दृश्या था... थ्रीसम सेक्स! सरिता एक खेली खाई लड़की थी और शमशेर को पहली बार पता चला... सेक्स में एक्षपेरियँसे की अलग ही कीमत होती है... वह तो नयी कलियों को ही खेल सीखने का इच्च्छुक रहता था... और आज तक उसने किया भी ऐसा ही था... पर आज..... सरिता के मुँह में लंड को सर्ररर से जाता देख वा 'सस्स्स्शह' कर उठा. सरिता सच में ही एक वैसया जैसा बर्ताव कर रही थी... सरिता का भी 'बिल्ली के भागों छ्चीका टूटा' वाला हाल था.... वा इश्स वक़्त अपना सारा पैसा वसूल कर लेना चाहती थी... वा कभी सर के सुपारे पर दाँत गाड़ा देती तो शमशेर भी अपने दर्द को अपने दाँत दिव्या के निप्पल पर गाड़ा कर पास कर देता... इश्स तरह से तीनों का एक ही सुर था और एक ही ताल.... अचानक तीनों जैसे प्यासे ही रह गये जब बाहर से पीयान की आवाज़ आई," सर आपको मॅ'म बुला रही हैं... तीनों बदहवास थे... सर ने अपनी पेंट को ठीक किया.... दिव्या ने अपना कमीज़... और.... सरिता अपनी सलवार का नाडा बाँध रही थी... वो अपनी चूत में उंगली डाले हुए थी.... "छुट्टी होते ही यहीं मिलूँगा, लॅब में; दोनो आ जाना, अगर किसी को बताया तो..." .....दोनो ने ना में सिर हिला दिया... शमशेर को पता था वो नही बताएँगी! टू बी कंटिन्यूड....
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छुट्टी से पहले ही शमशेर ने पीयान को कह दिया था की लॅब की चाबी मैने रख ली है... चोवकिदार 7 बजे से पहले आता नही था... कुल मिलाकर वहाँ 'नंगा नाच' होने का फुल्लप्रूफ प्लान था... छुट्टी होते ही दोनो लड़कियाँ लॅब में पहुँच चुकी थी; अलमारियों के पीछे! सरिता: थॅंक्स; तूने मेरा नाम ले दिया दिव्या; वह कुर्सी के डंडे पर अपनी चूत रखकर बैठी थी... इंतज़ार उसके लिए असहनिया था. दिव्या: दीदी, तुम्हे डर नही लगता. सरिता: अरे डर की मा की गांद साले की; ये तो मैं पहचान गयी थी की ये मास्टर रंगीला है... पर इतना रंगीला है; ये पता होता तो में पहले ही दिन साले से अपनी चूत खुद्वा लेती... बेहन चोद... उसने सलवार के उपर से ही अपनी चूत में उंगली कर दी...हाए! दिव्या: तो क्या दीदी, सर अब कुच्छ नही करेंगे? सरिता: अरे करेंगे क्यो नही! इब्ब तेरी भी मा चोदेन्गे और मेरी भी... देखती जा बस तू अब... पिच्चे हट जाइए. पहले मई करूँगी, फेर तेरा. नंबर लाइए.. इब्बे तो यो मास्टर काई जगह काम आवेगा. बस एक बात का ध्यान राखियो, इश्स बात का किटे बेरा ना पटना चाहिए... ना ते यो म्हारे हाथ से जाता रवेगा. इससके पिच्चे तो पुर गाम की रंडी से... दिव्या: ठीक है दीदी, मैं किसी को नही बतावुँगी! तभी वहाँ सिर आ पहुँचे. पुर 3 पीरियड से उसका लंड ऐसे ही खड़ा था; सरिता ने उसकी ऐसी सकिंग की थी. आते ही कुर्सी पर बैठकर बोला: जो जहाँ था वहीं आ जाओ! सरिता: सर जी सज़ा बाद में दे लेना, पहले एक रौंद मेरे साथ खेल लो! मेरी चूत में खुजली मची हुई है... शमशेर उसके बिंदास अंदाज का दीवाना हो गया, सकिंग का तो रिसेस से पहले ही हो गया था. उसने सरिता को कबूतर की तरह दबोच लिया... ये कबूतर फड़फदा रहा था... 'जीने' के लिए नही....अपनी मरवाने के लिए... सरिता पागल शेरनी की भाँति टेबल पर जा चढ़ि, और कोहनी टेक कर अपना मुँह खोल दिया, सर के लंड को लेने के लिए... शमशेर ने भी सरिता के सिर को ज़ोर से पकड़कर अपना सारा लंड एक ही बार में गले तक उतार दिया..... दिव्या दोनों को आँखें फाडे देख रही थी... दोनों इश्स खेल के चॅंपियन थे, एक पुरुष वर्ग में दूसरी महिला वर्ग में.... सरिता ने अपनी गांद उची उठा रखी थी, शमशेर ने जोश में बिना गीली किए उंगली उसकी गांद में फँसा दी... वा पिच्चे से उच्छल पड़ी... पर वा हारने वाली नही थी... उसने एक हाथ में शमशेर के टेस्टेस पकड़ लिए, के तू दर्द देगा तो में भी दूँगी... सरिता कभी सर के लंड को चाट-ती कभी चूमती और कभी चूस्टी... शमशेर का ध्यान दिव्या पर गया; वह भी तो खेलने आई थी.. उसने दिव्या को टेबल पर चढ़ा दिया; सरिता के सिर के दोनो और टाँग करके... सरिता को कमर से दबाव देकर चौपाया बना दिया..... अब दिव्या का मुँह सरिता की चूत के पास; और दिव्या की चूत ... सर के मुँह के पास... अजीब नज़ारा था...(आँख बंद करके सोचो यारो; दिखाई देगा!), सर की जीभ दिव्या की चूत में कोहराम मचा रही थी, नयी खिलाड़ी होने की वजह से उसको उंगली में ही इतना मज़ा आ रहा था की वो झाड़ गयी... एक ही मिनिट में... पर शमशेर ने उसको उठाने ही नही दिया...वह कभी उंगली चलाता कभी जीभ... कुल मिलकर उसने 2-3 मिनिट में ही उसको खेलने के लिए फिट बना दिया, वो फिर से मैदान में थी... क्या ट्रैनिंग चल रही थी उसकी!... बिंदास! दिव्या का मुँह सरिता की चूत तक नही पहुँच रहा था.. व्याकुलता में उसने सरिता के चूतदों को ही खा डाला... सरिता बदले में सर के लौदे को काट खाती... और सर दिव्या की चूत पर दाँत जमा देते... कभी सिसकियाँ... कभी चीत्कार... कभी खुशी कभी गुम... सरिता को भी पता चल चुका था की सर मैदान का कच्चा खिलाड़ी नही है... वो उसके रूस को पीना चाहती थी पर 20 मिनिट की नूरा कुस्ति के बाद भी वह उसको नही मिला... वह थक चुकी थी... और दिव्या तो हर 5 मिनिट बाद पिचकारी छ्चोड़ देती! टू बी कंटिन्यूड....


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