Monday, June 21, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --37

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --37

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा फिर हाजिर है पार्ट 37 लेकर
"पर्रर.. हमें कैसे पता लगेगा की अब पापा क्या करेंगे..?" स्नेहा ने ठीक ही पूचछा था.. वो ना भी पूछती तो विकी उसको बताने वाला था...

"सिर्फ़ एक ही तरीका है... हूमें किसी होटेल में रुकना पड़ेगा... वहाँ टी.वी. पर हम सब कुच्छ देख सकते हैं.. हरयाणा न्यूज़ पर तो ये खबर च्छाई होगी... क्यूंकी पोलीस वाले की बातों से साफ है कि तुम्हारे पापा ने नाटक शुरू कर दिया है...!" विकी ने तिर्छि नज़रों से उसके मंन के भाव पढ़ने की कोशिश की...
स्नेहा व्यथित थी.. जैसा भी था.. था तो उसका बाप ही.... क्यूँ उसने अपनी ही बेटी को घटिया राजनीति के लिए प्रयोग किया.. रही सही कसर उसने सानू को उन्न दरिंदों के हवाले करने की बात सोच कर पूरी कर दी... 7 दिन! वो 7 दिन उसकी जिंदगी के सबसे बदनसीब दिन होते.. अगर 'मोहन' उसको ना बचाता तो...
"कहा खो गयी सानू!" अब विकी को भी सानू के बदन से ज़्यादा इश्स खेल में मज़ा आने लगा था.. सच में दिल कभी दिमाग़ से नही जीत सकता.. दिल जीत कर भी हमेशा हारता ही है....
"कुच्छ नही.. पर आसपास होटेल कौनसा है..? जहाँ हम रुक सकें.....!" सानू ने रिश्तों के भंवर से निकलते हुए विकी की और देखा....
"होटेल तो बहुत हैं.. पर समस्या ये है कि इन्न कपड़ों में......" विकी ने उसकी स्कर्ट की और देखा....
और सानू शर्मा गयी.. पहली बार उसको अपने जवान होने का और अपने कपड़ों के छ्होटे होने का अहसास हुआ.. नज़रें नीची करके उसने अपनी नंगी जांघों को अपने हाथों से ढकने की कोशिश की... और साथ ही अपनी जांघें भीच ली...

आज तक स्नेहा गर्ल'स हॉस्टिल में रहकर ही पढ़ती आई थी.. और वहाँ रहकर स्वच्छन्द सी हो गयी थी... पर विकी की नज़रों ने उसको नारी होने की मर्यादाओं से अवगत करा दिया था.. और अब उसके इन्न कपड़ों के बारे में सीधे कॉमेंट ने तो उसको सोचने पर मजबूर कर ही दिया था... क्या 'मोहन' के उसकी जांघों पर हाथ रखने में अकेले 'मोहन' की ही ग़लती थी...

"अरे.. मेरे कहने का ये मतलब नही था.. मतलब हम वहाँ अपना रिश्ता क्या बताएँगे..." विकी ने उसके भावों को पढ़ते हुए अपनी बात सपस्ट की...
कुच्छ देर की चुप्पी के बाद स्नेहा बोल ही पड़ी," वही कह देना.. जो वहाँ.. पोलीस वाले को कही थी..." सानू कहते हुए लजा गयी...
"क्या?"
"अंजान मत बनो.. तुमने ही तो कही थी..." सानू सिर नीचे किए मुस्कुरा रही थी...
"कि तुम मेरी वाइफ हो.. यही?"
सानू शर्म से लाल हो गयी... बच्ची थोड़े ही थी जो 'वाइफ' होने का मतलब ना समझती हो... पर उसने 'हाँ' में सिर तो हिला ही दिया...

"वहाँ हम कार में थे.. पर होटेल में लोग किसी की वाइफ को इन्न कपड़ों में दिखने को हजम नही करेंगे.... वैसे भी तुम इन्न कपड़ों में 'वाइफ' नही.. गर्ल फ्रेंड ही लगती हो.." कहकर विकी मुस्कुरा दिया...
"मेरे बॅग में एक डिज़ाइनर सलवार कमीज़ है.... वो चलेंगे?" स्नेहा ने उत्सुकता से विकी की और देखा...
"बिल्कुल.. तुम कपड़े बदल लो.." कहकर विकी ने गाड़ी रोक दी... और स्नेहा के मासूम और कमसिन चेहरे को निहारने लगा...
"उतरोगे तभी तो बदलूँगी.. चलो बाहर निकल कर गाड़ी लॉक कर दो.. मैं बस 10 मिनिट लगाउन्गि..!" कहकर स्नेहा विकी की छाती पर हाथ लगाकर उसको बाहर की और धकेलने लगी...
एक झुरजुरी सी विकी के बदन में दौड़ गयी.. शहद जैसा मीठा हुश्न उसके सामने था.. और वह...
खैर विकी बाहर निकल गया.......

बाहर जाते ही विकी ने अपना फोन ऑन किया और माधव से बात करने लगा," हां.. क्या चल रहा है..?"
"सब ठीक है भाई.. पर उनमें से एक की हालत खराब है.. आपने उसकी जांघों में लात जमा दी.. बेचारा कराह रहा है.. अभी तक!" माधव बोला..
"अरे.. बहनचोड़ ने मुझे असली में ही चाकू बैठा दिया... पता नही कितना खून बह गया है... मैने तो देखा भी नही.. खैर रेस्पॉन्स क्या रहा...?"
"पागला गया है साला..! मुखिया पर इल्ज़ाम लगा रहा है... साला सब टीवी वालों को इंटरव्यू दे रहा है.. उसने तो ये भी कह दिया की 50 करोड़ माँगे हैं.. फिरौती
के...!"
"तू छ्चोड़.. अभी मुखिया को कुच्छ मत बताना.. और सुन.. सूर्या होटेल में फोन करवा दे.. कोई मुझे पहचाने ना.. साला जाते ही पैरों की और भागता है.."
"तू अभी तक यहीं है भाई.. बाहर निकल जा.. प्राब्लम हो सकती है.. तेरा भी नाम ले सकता है साला...!"
"तू चिंता मत कर छ्होटे.. उसकी मा बेहन एक हो जाएगी.. तू एक दो दिन बाद झटका देखना....!" विकी के जबड़े भिच गये...
"ले ली या नही.. उसकी लड़की की!" माधव ने दाँत निकाले होंगे ज़रूर.. कहकर...
"नही यार.. दिल ही नही करता.. बेचारी बहुत भोली है.. मासूम सी.. और तुझे तो पता ही है.. मैं रेप नही करता!" विकी मुस्कुराया..
"क्या हुआ.. थर्ड क्लास आइटम है क्या? आपका दिल नही करता तो मुझे ही चान्स दे दो.. यहाँ भी सूखा पड़ा है..!"
"साले की बत्तीसी निकाल दूँगा.. ज़्यादा बकवास की तो.." विकी खुद हैरान था.. वह ऐसा कह कैसे गया... जाने कितनी ही लड़कियाँ उन्होने आपस में बाँटी थी...
"सॉरी भाई.. हां एक बात और.. सलीम और इरफ़ान पर पोलीस ने 7/15 और 420 लगा दी है... अंदर गये.. उनकी भी जमानत करवानी पड़ेगी.."
"क्यूँ.. उन्होने क्या किया..?"
"वो साले आपकी गाड़ी जाने के बाद वहीं बैठकर दारू पीने लगे.. नाका लगाए हुए.. और असली पोलीस आ गयी.. उनको भी रोक लिया नशे में...."
"चल कोई बात नही.. राणा को फोन कर देना.. अपने आप जमानत करवा लेगा..."
"कर दिया है भाई.. 2 दिन लगेंगें..."
"चल रखता हूँ अब... होटेल में याद करके बोल देना.." कहकर विकी ने फोन काटा और वापस गाड़ी के पास पहुँच गया..
वापस आकर विकी ने स्नेहा को देखा तो उसका मुँह खुला का खुला रह गया," सानू! ये तुम हो?"
और स्नेहा मुस्कुरा पड़ी," क्यूँ? जाँच नही रहा क्या?"
"जाँच नही रहा..? तूने तो मेरी फाड़ ही दी.... " ये क्या बोल गया विकी.. खुद वो भी समझ नही पाया.. अब स्नेहा के कपड़े उसके व्यक्तिताव को सही परिभासित कर रहे थे.. एक दम सौम्या.. अद्भुत रूप से मासूम और एक भारतिया आदर्श लड़की की छवि में.. जिसको कोई भी अपनी जिंदगी से जुदा ना करना चाहे.. अब उसके चेहरे का भोलापन और निखरकर आ रहा था.. हालाँकि खुले कपड़ों में उसके कामुक उतार चढ़ाव और गोलाइयाँ छिप सी गयी थी...
"कैसी लगी.. बताओ ना.. मैने पहली बार ऐसे कपड़े पहने हैं.. मेरी सहेली ने गिफ्ट किए थे..."
विकी ने हाथ बढ़कर उसके गले में लटकी चुननी को सरकाकर उसके सिर पर कर दिया और फिर अंगूठे और उंगली को मिलाकर छल्ला बनाते हुए बोला," पर्फेक्ट! मैने तुम्हे पहले क्यूँ नही देखा!"
"क्या मतलब?" अपनी तारीफ़ सुनकर भावुक हो उठी स्नेहा के अधरों पर आई मुस्कान दिल को घायल करने वाली थी...
"कुच्छ नही.. चलते हैं..." विकी ने गाड़ी स्टार्ट कर दी....
"बताओ ना.. ऊई मा.. ये क्या है.." जैसे ही स्नेहा ने उसके कंधे को पकड़ कर उसको हिलाने की कोशिश की.. वो काँप उठी.... उसकी उंगली कटी शर्ट में से बाहर निकल आए माँस के लोथडे पर जा टिकी... और खून से गीली हो गयी...
"आउच.. कुच्छ नही.. हूल्का सा जखम है.. ठीक हो जाएगा.." स्नेहा की उँगली लगने से उसका दर्द जाग उठा.. पर विकी ने सहन करते हुए उसका हाथ हटा दिया...
"नही.. दिखाओ.. क्या हुआ है..? " कहते हुए स्नेहा ने कार की अंदर की लाइट ऑन कर दी.. और उसके हाथ उसके मुँह पर जा लगे..," ओ गॉड! ये कब हुआ..? तुमने बताया भी नही.. " घाव काफ़ी गहरा प्रतीत होता था.. शर्ट के उपर से ही देखने मात्रा से स्नेहा सिहर उठी...
"कुच्छ नही है.. होटेल में चलकर देखते हैं...!" विकी ने गाड़ी की रफ़्तार और तेज कर दी...
स्नेहा फटी आँखों से विकी के चेहरे और घाव को देखती रही.. विकी के चेहरे से पता ही नही चलता था की उसके शरीर का एक हिस्सा इश्स कदर घायल है.. विकी की मर्दानगी का जादू स्नेहा के सिर चढ़कर बोलने लगा... उसके प्रति स्नेहा के भाव पल पल बदलते जा रहे थे...

करीब 15 मिनिट बाद गाड़ी सूर्या होटेल पहुँच गयी... विकी ने गाड़ी पार्किंग में पार्क की और स्नेहा ने अपना बॅग संभाल लिया..," चलें!" विकी का घाव देखकर उसके चेहरे पर उभरी व्याकुलता अभी तक ज्यों की त्यों थी...

विकी की बाई बाजू खून से सनी पड़ी थी.. हालाँकि वो अब सूख चुका था.. जैसे ही मॅनेजर की नज़र विकी की इश्स हालत पर पड़ी वा दौड़कर उसके पास आने से खुद को ना रोक सका..," ययएए क्या हुआ.. भा.. मतलब... बाहर कुच्छ हुआ क्या.. सर?" वो माधव की दी हुई इन्स्ट्रक्षन को भूल ही गया था.. पर विकी ने जब उसको घूरा तो उसने भाई साहब से बदल कर बाहर कह दिया!
"कुच्छ नही.. हमें सूयीट चाहिए.. रात भर के लिए...!" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"देखिए सर.. हम आपको रूम प्रवाइड नही करा सकते.. जब तक की साथ आने वाली लड़की आपके फॅमिली रीलेशन में ना पड़ती हो... सॉरी..!" कहते हुए मॅनेजर ने आँखें दूसरी और घुमा ली थी.. भाई की आँखों में आँखें डाल कर नखरे करने की उसमें हिम्मत ना थी...
"ये मेरी वाइफ है...!"
"बट.. हम कैसे माने.. ना इनके मान्थे पर सिंदूर है... ना गले में मंगल सुत्र.. और ना ही....."
"चलो.. हम कहीं और रह लेंगे..!" स्नेहा ने पकड़े जाने के डर से विकी को बोला...
"एक मिनिट.... आप मेरे साथ एक तरफ आएँगे मिस्टर. मॅनेजर...!" गुस्से को छिपाने की कोशिश में विकी एक एक शब्द को दाँत पीस पीस कर बोल रहा था...

"पर्र.....!" मॅनेजर आगे कुच्छ बोल पता.. इश्स'से पहले ही विकी ने उसकी बाँह पकड़ी और लगभग खींचते हुए उसको बाहर ले गया....," साले..!"
"पर भाई साहब.. मैने सोचा लड़की को शक नही होना चाहिए कि हम आपको जानते हैं..." कहकर मॅनेजर ने बतीसि निकाल दी... उसको उम्मीद थी की विकी उसकी पीठ थपथपाएगा..
"तेरी मा तो मैं चोदुन्गा साले.. डरा दिया ना उसको.. अब क्या तेरी मा की चूत में लेकर जाउ उसको..."
"स्स्सोररी.. भाई.. सह.. आप ले लीजिए रूम..."
"ना ना.. मत दे.. चुपचाप चल और एंट्री कर.. मोहन नाम है मेरा.. अपना दिमाग़ मत लगाना फिर से..."
"ओ.के. सिर.. !"
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"अब वह कैसे मान गया...?" लिफ्ट से उपर आते हुए स्नेहा ना विकी से पूचछा...
"कुच्छ नही.. थोड़ी टिप देनी पड़ी..!"

उपर पहुँचे तो वेटर उनकी जी हजूरी के लिए दरवाजे पर खड़ा था... जैसे ही दोनो रूम में घुसे विकी का माथा ठनका गया... अंदर बेड को किसी सुहाग की सेज़ की तरह सजाया हुआ था.. पूरा कमरा फूलों की प्राकृतिक खुश्बू से महक रहा था.. टेबल पर जोह्नी वॉकर की बोटेल, दो गिलास और आइस क्यूब्स रखे थे.. स्नेहा सजावट को देखकर खिल सी गयी थी...
"एक मिनिट.. तुम फ्रेश हो लो.. मैं अभी आया..." कहकर गुस्से से भनभनाया हुआ विकी नीचे चला गया...

"साले.. कुत्ते की पूच्छ.. तुझमें दिमाग़ है या नही.. मेरा बॅंड बजा दिया तूने.." विकी ने 2 झापड़ मॅनेजर को मारे और सोफे पर बैठकर अपना सिर पकड़ लिया....
"पर हुआ क्या भाई साहब.. क्या कमी रह गयी..? मैने तो अपनी तरफ से जी जान लगाई है..."
"यार तू अपन तरफ से जी जान क्यूँ लगाता है.. जितना बोला गया उतना क्यूँ नही करता... तू आदमी है या घंचक्कर... साला.."
"ववो.. माधव भाई ने बोला था की आपको पहचान'ना नही है.. और कोई लड़की साथ आएगी.. तो मैने सोचा खास ही होगी..."
"तू अब दिमाग़ मत खा.. मेरे साथ चल और सॉरी बोल की रूम ग़लती से दे दिया.. और 2 मिनिट में दूसरी अड्जस्टमेंट कर..."
"ठीक है.. भाई साहब.. मैं अभी चलता हूँ..!" मॅनेजर के चेहरे पर 12 बजे लग रहे थे....

"सॉरी.. मेडम.. वो ग़लती से आपको ग़लत नंबर. दे दिया.. आक्च्युयली ये किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. आइए.. आपका सामान शिफ्ट करा देता हूँ..." विकी मॅनेजर के साथ नही आया था.... जानबूझकर!
"वो कहाँ हैं..?" स्नेहा सुनकर मायूस सी हो गयी...
"वो कौन..?" मॅनेजर का दिमाग़ भनना रहा था...
"वो.. मेरे पति! और कौन?" कहते हुए स्नेहा का दिल धड़क रहा था.. कितना प्यारा अहसास था स्नेहा के लिए.. विकी जैसा पति!
"ववो.. आते ही होंगे.... लीजिए आ गये...!"
"क्या बात है..?" विकी ने अंजान बनते हुए कहा...
"आक्च्युयली सर....." और मॅनेजर को स्नेहा ने बीच में ही टोक दिया...," देखिए ना मोहन! ये हमारा रूम नही है.. मुझे भी बिल्कुल ऐसा ही चाहिए.... कह रहे हैं.. ये तो किसी वेड्डिंग कपल के लिए है.. जैसे हम बूढ़े हो गये हों.. जैसे हमारी शादी ही ना हुई हो... मुझे नही पता.. मुझे यही रूम चाहिए..."
विकी को उसकी बातों पर यकीन ही नही हुआ.. वो तो ऐसे बोल रही थी जैसे सचमुच की पत्नी हो.. बिल्कुल वाइफ वाले नखरे दिखा रही थी..
"तुम्हारी प्राब्लम क्या है मॅनेजर.. हमें यही कमरा चाहिए.. समझ गये.." विकी ने तुरंत पाला बदल लिया....
"जी सर.. समझ गया.. सॉरी!" कह कर मॅनेजर स्नेहा की और अदब से झुका और बाहर निकलगया.. जैसे मंदिर से निकला हो!"
"ये हुई ना बात.. हमें निकाल रहा था.. कितना प्यारा रूम है... जैसे...." आगे स्नेहा शर्मा गयी...
"तुम्हे सच में यहाँ कुच्छ ग़लत नही लगा..?" विकी का ध्यान रह रह कर टेबल पर साज़ी बॉटले और गिलासों पर जा रहा था....
"यहाँ क्या ग़लत है..?" स्नेहा ने एक बार और जन्नत की तरह सजे कमरे में नज़रें दौड़ाई....
"ये शराब...?????" विकी ने ललचाई आँखों से बोतल की और देखा.. बहुत दिल कर रहा था....
"नही तो.. आदमी तो पीते ही हैं..." स्नेहा किंचित भी विचलित ना हुई.....
"अच्च्छा.. तुमने किसको देखा है..?"
"पापा को.. वो तो हमेशा ही पिए रहते हैं..... अरे हां.. टी.वी. ऑन करो.. देखें पापा क्या नाटक कर रहे हैं...." स्नेहा एक बार फिर मुरझा गयी....

"तुम तब तक टी.वी. देखो.. मैं इसका कुच्छ करके आता हूँ.." विकी स्विच ऑन करने के लिए टी.वी. की और बढ़ा...
"ओह माइ गॉड! मैं तो भूल ही गयी थी.. सॉरी.. पर इश्स वक़्त डॉक्टर कहाँ
मिलेगा...?" स्नेहा ने सूख चुके खून से सनी शर्ट की और देखते हुए कहा...
"अरे डॉक्टर की क्या ज़रूरत है... नीचे फर्स्ट एड पड़ी होगी.. सफाई करके पट्टी बँधवा लेता हूँ... मैं अभी आया 5-7 मिनिट में..."
"वो तो मैं कर दूँगी.. तुम फर्स्ट एड बॉक्स मंगवा लो.. यहीं पर... तुम्हारे बिना मेरा दिल नही लगेगा... डर सा भी लगता है..." स्नेहा ने प्यार भरी निगाहों से विकी की और देखा...
विकी जाकर बेड पर स्नेहा के पास बैठ गया..," इसमें डरने की क्या बात है..? तुम क्यूँ परेशान होती हो... ज़्यादा टाइम नही लगाउन्गा.. ठीक है..?" विकी को माधव के पास फोन करना था..
स्नेहा ने घुटनो के बाल बैठते हुए विकी की बाँह पकड़ ली..," अच्च्छा.. मैं परेशान हो जाउन्गि.. तुमने जो मेरे लिए इतना किया है.. वो? नही तुम कहीं मत जाओ.. मत जाओ ना प्लीज़.. मुझे ये सब करना आता है.."
इश्स हसीन खावहिश पर कौन ना मार मिटे... विकी ने रूम सर्विस का नो. डाइयल
करके फर्स्ट एड बॉक्स के लिए बोल दिया.. स्नेहा की और वो अजीब सी नज़रों से देख रहा था.. नज़रों में ना तो पूरी वासना झलक रही थी.. और ना ही पूरा प्यार ही..
"मैं तब तक कपड़े चेंज कर लेती हूँ.. कहकर स्नेहा ने बॅग से कुच्छ कपड़े निकाल कर बेड पर फैला दिए..," कौनसा पहनु?"
विकी असमन्झस से स्नेहा को घूर्ने लगा.. जैसे कह रहा हो..' मुझे क्या पता...'
"बताओ ना प्लीज़.. नही तो बाद में कहोगे.. 'ये ऐसे हैं.. ये वैसे..' "
"नही कहूँगा.. पहन लो.. कोई भी.." विकी स्नेहा को देखकर मुस्कुराया और बेड पर रखे एक पिंक कलर के सिंगल पीस स्कर्ट टॉप पर नज़रें जमा ली.. यूँ ही.
"ये पहनु? .. पर ये तो पूरा घुटनो तक भी नही आता.. बाद में बोलना मत..." स्नेहा ने विकी की द्रिस्ति को ताड़ लिया.... कहते हुए लज्जा का महीन आवरण उसके चहरे पर झिलमिला रहा था...
"मुझे नही पता यार.. कुच्छ भी पहन लो..." हालाँकि विकी ये सोच रहा था कि उस ड्रेस में वो कितनी सेक्सी लगेगी...
"ठीक है.. मैं यही डाल लेती हूँ..." स्नेहा ने बोला ही था कि वेटर ने बेल बजाई...
"लगता है.. फर्स्ट एड आ गयी.. ले लो.. मैं बाद मैं चेंज करूँगी.. पहले तुम्हारी पट्टी कर देती हूँ..."
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"शर्ट तो निकाल दो... पहले.." स्नेहा ने बॉक्स खोलते हुए विकी से कहा...
विकी का दिमाग़ भनना रहा था.. आज तक वो लड़कियों को निर्वस्त्रा करता आया था.. पर आज उसकी जिंदगी की सबसे हसीन लड़की उसको खुद शर्ट निकालने को बोल रही है.. क्या वो झिझक रहा था? हां.. उसके चेहरे के भाव यही बता रहे थे...

"तुम तो ऐसे शर्मा रहे हो.. जैसे तुम कोई लड़की हो.. और मैं लड़का..!" कहकर स्नेहा खिलखिला उठी.. अपने चेहरे की शर्म को छिपाने के लिए उसने हाथों से अपना चेहरा ढक लिया.. हंसते हुए.. हमेशा वो ऐसा ही करती थी..
विकी की नज़र उसके हिलने की वजह से फड़फदा रहे कबूतरों पर पड़ी.. बिना सोचे हाथों में पकड़ कर मसल देने लायक थे.. फिर जाने वो क्या सोच रहा था.. और क्यूँ सोच रहा था...
"निकालो!" स्नेहा के बोल में अधिकार भारी मिठास थी.. और कुच्छ नही...
"निकलता हूँ ना...!" कहते हुए विकी ने एक एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन खोल दिए.. जैसे ही वो बाई बाजू से शर्ट निकालने की कोशिश करने लगा.. दर्द से बिलबिला उठा..," अयाया...!"
"रूको.. मैं निकलती हूँ.. आराम से..!" कहकर एक बार फिर स्नेहा उसके सामने आ गयी... घुटनो के बल होकर.. बड़ी नाज़ूक्ता से एक हाथ विकी के दूसरे कंधे पर रखा और दूसरे हाथ से धीरे धीरे शर्ट को निकालने लगी," दर्द हो रहा है?"

दर्द तो हो रहा था.. पर उतना नही.. जितना मज़ा आ रहा था.. विकी आँखें बंद किए अपनी जिंदगी के सर्वाधिक कामुक क्षनो को अपनी साँसों में उतारता रहा.. सच इतना मज़ा कभी उसको सेक्स में भी नही आया था.. स्नेहा के कमसिन अंगों की महक निराली थी.. जिसे वो गुलबों की तेज खुश्बू के बीच भी महसूस कर रहा था.. उसकी 'मर्दानगी' अकड़ने लगी... दिल और दिमाग़ में अजेब सा युद्ध छिड़ा हुआ था..
इश्स बार भी दिमाग़ ही जीत गया.. विकी ने अपने तमाम आवेगो को काबू में रखा.. हालाँकि 'काबू' में रखने की इश्स कोशिश में उसके माथे पर पसीना छलक आया.. ए.सी. के बावजूद...
"उफफफफफ्फ़.. घाव तो बहुत गहरा है... मुझसे देखा नही जा रहा.." स्नेहा ने शर्ट निकालते हुए घाव को देखते ही आह भरी...
"लो निकल गयी... ! चलो बाथरूम में.. इसको धो देती हूँ..." स्नेहा का दूसरा हाथ अब भी उसके कंधे पर ही था.. और वो यूँही विकी के चेहरे को एकटक देख रही थी.. प्यार से...
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पट्टी करने के पूरे प्रकरण के दौरान जहाँ भी स्नेहा ने उसको स्पर्श किया.. मानो वही अंग खिल उठा.. आज तक कभी भी विकी को इश्स तरह की अनुभूति नही हुई थी.. वो तो बस आनंद के सागर में गहरी डुबकी लगाकर अपने हिस्से के मोती खोजता रहा....

प्यार और वासना में सदियों से मुकाबला होता आया है.. कुच्छ लोग 'प्यार' होने को सिर्फ़ 'आकर्षण' और 'वासना' मानते हैं.. पर सच तो ये है की वासना प्यार के अनुपम अहसास के आसपास भी कभी फटक नही सकती.. वासना आपको 'खाली' करती है.. वहीं प्यार आपको तृप्त... जहाँ लगातार 'सेक्स' भी हरबार आपको एक सूनेपन और बेचैनी से भर देता है, वहीं आपके यार का प्यार भरा एक हूल्का सा स्पर्श आपको उमर भर के लिए ऐसी मीठी यादें दे जाता है.. जिसके सहारे आप जिंदगी गुज़ार सकते हैं.. यार के इंतज़ार में..

विकी शायद आज पहली बार 'प्यार' के स्पर्श को महसूस कर रहा था.. हॅव यू एवर?
ओके दोस्तो इस पार्ट को यहीं बंद करता हूँ फिर मिलेंगे नेक्स्ट पार्ट के साथ तब तक के लिए विदा





साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj




hello dosto main yaani aapka dost raj sharma fir haajir hai paart 37 lekar
"Parrr.. Hamein kaise pata lagega ki ab papa kya karenge..?" Sneha ne thheek hi poochha tha.. Wo na bhi poochhti toh Vicky usko batane wala tha...

"Sirf ek hi tareeka hai... Humein kisi hotel mein rukna padega... Wahan T.V. par hum sab kuchh dekh sakte hain.. Haryana News par toh ye khabar chhayi hogi... Kyunki police wale ki baaton se saaf hai ki tumhare papa ne natak shuru kar diya hai...!" Vicky ne tirchhi najron se uske mann ke bhav padhne ki koshish ki...
Sneha vyathit thi.. Jaisa bhi tha.. Tha toh uska baap hi.... Kyun usne apni hi beti ko ghatiya rajniti ke liye prayog kiya.. Rahi sahi kasar usne sanu ko unn darindon ke hawale karne ki baat soch kar poori kar di... 7 din! Wo 7 din uski jindagi ke sabse badnaseeb din hote.. Agar 'Mohan' usko na bachata toh...
"kaha kho gayi sanu!" Ab vicky ko bhi Sanu ke badan se jyada iss khel mein maja aane laga tha.. Sach mein Dil kabhi Dimag se nahi jeet sakta.. Dil jeet kar bhi hamesha haarta hi hai....
"Kuchh nahi.. Par Aaspaas hotel kounsa hai..? Jahan hum ruk sakein.....!" Sanu ne rishton ke bhanwar se nikalte huye Vicky ki aur dekha....
"Hotel toh bahut hain.. Par samasya ye hai ki inn kapdon mein......" Vicky ne uski skirt ki aur dekha....
Aur Sanu sharma gayi.. Pahli baar usko apne jawaan hone ka aur apne kapdon ke chhote hone ka ahsaas huaa.. Najrein neechee karke usne apni nangi janghon ko apne hathon se dhakne ki koshish ki... Aur sath hi apni jaanghein bheech li...

Aaj tak Sneha Girl's hostel mein rahkar hi padhti aayi thi.. Aur wahan rahkar swachhand si ho gayi thi... Par Vicky ki najron ne usko nari hone ki maryadon se awagat kara diya tha.. Aur ab uske inn kapdon ke baare mein seedhe comment ne toh usko sochne par majboor kar hi diya tha... Kya 'Mohan' ke uski jaanghon par hath rakhne mein akele 'Mohan' ki hi galati thi...

"Arey.. Mere kahne ka ye matlab nahi tha.. Matlab hum wahan apna rishta kya batayenge..." Vicky ne uske bhavon ko padhte huye apni baat sapast ki...
Kuchh der ki chuppi ke baad sneha bol hi padi," Wahi kah dena.. Jo wahan.. Police wale ko kahi thi..." Sanu kahte huye laja gayi...
"kya?"
"anjaan mat bano.. Tumne hi toh kahi thi..." Sanu sir neeche kiye muskura rahi thi...
"Ki tum meri wife ho.. Yahi?"
Sanu sharm se laal ho gayi... Bachchi thhode hi thi jo 'wife' hone ka matlab na samajhti ho... Par usne 'haan' mein sir toh hila hi diya...

"wahan hum car mein thhe.. Par hotel mein log kisi ki wife ko inn kapdon mein dikhne ko hajam nahi karenge.... Waise bhi tum inn kapdon mein 'wife' nahi.. Girl Friend hi lagti ho.." kahkar vicky muskura diya...
"mere Bag mein ek designer salwar kameej hai.... Wo chalenge?" Sneha ne utsukta se vicky ki aur dekha...
"bilkul.. Tum kapde badal lo.." kahkar vicky ne gadi rok di... aur Sneha ke masoom aur kamsin chehre ko niharne laga...
"utaroge tabhi toh badloongi.. Chalo bahar nikal kar gadi lock kar do.. Main bus 10 minute lagaaungi..!" kahkar Sneha vicky ki chhati par hath lagakar usko bahar ki aur dhakelne lagi...
Ek jhurjhuri si vicky ke badan mein doud gayi.. Shahad jaisa meethha hushn uske saamne thha.. Aur wah...
Khair vicky bahar nikal gaya.......

Bahar jaate hi Vicky ne apna fone on kiya aur madhav se baat karne laga," Haan.. Kya chal raha hai..?"
"sab thheek hai bhai.. Par unmein se ek ki halat kharab hai.. Aapne uski jaanghon mein laat jama di.. Bechara karah raha hai.. Abhi tak!" Madhav bola..
"arey.. Behanchod ne mujhe asli mein hi chaku baitha diya... Pata nahi kitna khon bah gaya hai... Maine toh dekha bhi nahi.. Khair response kya raha...?"
"pagla gaya hai sala..! Mukhiya par iljaam laga raha hai... Sala sab tv walon ko interview de raha hai.. Usne toh ye bhi kah diya ki 50 karod maange hain.. Firouti
Ke...!"
"tu chhod.. Abhi mukhiya ko kuchh mat batana.. Aur sun.. Surya hotel mein fone karwa de.. Koyi mujhe pahcuane na.. Saala jaate hi pairon ki aur bhaagta hai.."
"tu abhi tak yahin hai bhai.. Bahar nikal ja.. Problem ho sakti hai.. Tera bhi naam le sakta hai sala...!"
"tu chinta mat kar chhote.. Uski maa behan ek ho jayegi.. Tu ek do din baad jhatka dekhna....!" vicky ke jabde bhich gaye...
"le li ya nahi.. Uski ladki ki!" Madhav ne daant nikaale honge jaroor.. Kahkar...
"nahi yaar.. Dil hi nahi karta.. Bechari bahut bholi hai.. Masoom si.. Aur tujhe toh pata hi hai.. Main rape nahi karta!" Vicky muskuraya..
"kya huaa.. Third class item hai kya? Aapka dil nahi karta toh mujhe hi chance de do.. Yahan bhi sookha pada hai..!"
"saale ki batteesi nikal dunga.. Jyada bakwas ki toh.." vicky khud hairan tha.. Wah aisa kah kaise gaya... Jaane kitni hi ladkiyan unhone aapas mein share ki thi...
"Sorry bhai.. Haan ek baat aur.. Saleem aur irfaan par police ne 7/15 aur 420 laga di hai... Andar gaye.. Unki bhi jamanat karwani padegi.."
"kyun.. Unhone kya kiya..?"
"Wo saley aapki gadi jaane ke baad wahin baithkar daru peene lage.. Naaka lagaaye huye.. Aur asli police aa gayi.. Unko bhi rok liya nashe mein...."
"chal koyi baat nahi.. Rana ko fone kar dena.. Apne aap jamanat karwa lega..."
"kar diya hai bhai.. 2 din lagengein..."
"chal rakhta hoon ab... Hotel mein yaad karke bol dena.." kahkar vicky ne fone kata aur wapas gadi ke paas pahunch gaya..
Wapas aakar Vicky ne Sneha ko dekha toh uska munh khula ka khula rah gaya," Sanu! Ye tum ho?"
Aur sneha muskura padi," Kyun? Janch nahi raha kya?"
"Janch nahi raha..? Tune toh meri faad hi di.... " ye kya bol gaya vicky.. Khud wo bhi samajh nahi paya.. Ab Sneha ke kapde uske vyaktitav ko sahi paribhasit kar rahe thhe.. Ek dum soumya.. Adbhut roop se masoom aur ek bhartiya aadarsh ladki ki chhavi mein.. Jisko koyi bhi apni jindagi se juda na karna chahe.. Ab uske chehre ka bholapan aur nikharkar aa raha tha.. Halanki khule kapdon mein uske kamuk utaar chadhav aur golaayiyan chhip si gayi thi...
"kaisi lagi.. Batao na.. Maine pahli baar aise kapde pahne hain.. Meri saheli ne gift kiye thhe..."
Vicky ne hath badhakar uske gale mein latki chunni ko sarkakar uske sir par kar diya aur fir angoothhey aur ungali ko milakar chhalla banate huye bola," Perfect! Maine tumhe pahle kyun nahi dekha!"
"kya matlab?" apni taareef sunkar bhawuk ho uthhi sneha ke adhron par aayi muskaan dil ko ghayal karne wali thi...
"kuchh nahi.. Chalte hain..." vicky ne gadi start kar di....
"batao na.. Ooyiii maa.. Ye kya hai.." jaise hi sneha ne uske kandhe ko pakad kar usko hilane ki koshish ki.. Wo kaanp uthhi.... Uski ungali kati shirt mein se bahar nikal aaye maans ke lothhde par ja tiki... aur khoon se geeli ho gayi...
"ouchh.. Kuchh nahi.. Hulka sa jakham hai.. Thheek ho jayega.." Sneha ki ungLi lagne se uska dard jaag uthha.. Par Vicky ne sahan karte huye uska haath hata diya...
"nahi.. Dikhao.. Kya huaa hai..? " kahte huye Sneha ne car ki andar ki light on kar di.. Aur uske haath uske munh par ja lage..," O God! Ye kab hua..? Tumne bataya bhi nahi.. " Ghav kafi gahra prateet hota tha.. Shirt ke upar se hi dekhne matra se Sneha sihar uthhi...
"kuchh nahi hai.. Hotel mein chalkar dekhte hain...!" Vicky ne gadi ki raftaar aur tej kar di...
Sneha fati aankhon se Vicky ke chehre aur ghav ko dekhti rahi.. Vicky ke chehre se pata hi nahi chalta tha ki uske shareer ka ek hissa iss kadar ghayal hai.. Vicky ki mardaangi ka jadu Sneha ke sir chadhkar bolne laga... Uske prati sneha ke bhav pal pal badalte ja rahe thhe...




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Kareeb 15 minute baad gadi Surya hotel pahunch gayi... Vicky ne Gadi parking mein park ki aur sneha ne apna Bag sambhal liya..," Chalein!" vicky ka ghav dekhkar uske chehre par ubhari vyakulta abhi tak jyon ki tyon thi...

Vicky ki bayi baju khoon se sani padi thi.. Halanki wo ab sookh chuka tha.. Jaise hi manager ki najar vicky ki iss halat par padi wah doudkar uske paas aane se khud ko na rok saka..," Yyye kya huaa.. Bha.. Matlab... Bahar kuchh hua kya.. Sir?" wo madhav ki di huyi instruction ko bhool hi gaya tha.. Par vicky ne jab usko ghoora to usne bhai sahab se badal kar bahar kah diya!
"kuchh nahi.. Hamein suite chahiye.. Raat bhar ke liye...!" vicky ne anjaan bante huye kaha...
"Dekhiye sir.. Hum aapko room provide nahi kara sakte.. Jab tak ki sath aane wali ladki aapke family relation mein na padti ho... Sorry..!" kahte huye manager ne aankhein dusri aur ghuma li thi.. Bhai ki aankhon mein aankhein daal kar nakhre karne ki usmein himmat na thi...
"Ye meri wife hai...!"
"but.. Hum kaise maane.. Na inke mathhe par sindoor hai... Na galey mein mangal sutra.. Aur na hi....."
"chalo.. Hum kahin aur rah lenge..!" Sneha ne pakde jane ke dar se vicky ko bola...
"ek minute.... Aap mere sath ek taraf aayenge Mr. Manager...!" gusse ko chhipane ki koshish mein Vicky ek ek shabd ko daant pees pees kar bol raha tha...

"parr.....!" Manager aagey kuchh bol pata.. Iss'se pahle hi vicky ne uski baanh pakdi aur lagbhag kheenchte huye usko bahar le gaya....," Saaley..!"
"par Bhai sahab.. Maine socha ladki ko shak nahi hona chahiye ki hum aapko jaante hain..." kahkar manager ne bateesi nikal di... Usko ummeed thi ki Vicky uski peethh thhapthapayega..
"teri maa toh main chodunga saaley.. Dara diya na usko.. Ab kya teri maa ki choot mein lekar jaau usko..."
"sssorry.. Bhai.. Sah.. Aap le lijiye room..."
"na na.. Mat de.. Chupchap chal aur entry kar.. Mohan naam hai mera.. Apna dimag mat lagana fir se..."
"O.K. Sir.. !"
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"Ab wah kaise maan gaya...?" lift se upar aate huye Sneha na vicky se poochha...
"kuchh nahi.. Thhodi tip deni padi..!"

Upar pahunche toh waiter unki ji hajoori ke liye darwaje par khada tha... Jaise hi dono room mein ghuse vicky ka matha thhanak gaya... andar bed ko kisi suhag ki sez ki tarah sajaya huaa tha.. Poora kamra foolon ki prakritik khushboo se mahak raha tha.. Table par johny walker ki botel, do gilas aur ice cubes rakhe thhe.. Sneha sajawat ko dekhkar khil si gayi thi...
"ek minute.. Tum fresh ho lo.. Main abhi aaya..." kahkar gusse se bhanbhanaya huaa vicky neeche chala gaya...

"Saaley.. Kutte ki poochh.. Tujhmein dimag hai ya nahi.. Mera band baja diya tune.." vicky ne 2 jhapad manager ko maarey aur sofe par baithkar apna sir pakad liya....
"par huaa kya bhai sahab.. Kya kami rah gayi..? Maine toh apni taraf se ji jaan lagayi hai..."
"yaar tu apn taraf se ji jaan kyun lagata hai.. Jitna bola gaya utna kyun nahi karta... Tu aadmi hai ya ghamchakkar... Saala.."
"wwo.. Madhav bhai ne bola tha ki aapko pahchan'na nahi hai.. Aur koyi ladki sath aayegi.. Toh maine socha khas hi hogi..."
"tu ab dimag mat kha.. Mere sath chal aur sorry bol ki room galati se de diya.. Aur 2 minute mein dusri adjustment kar..."
"thheek hai.. Bhai sahab.. Main abhi chalta hoon..!" Manager ke chehre par 12 baje lag rahe thhe....

"Sorry.. Madam.. Wo galati se aapko galat no. de diya.. Actually ye kisi wedding couple ke liye hai.. Aayiye.. Aapka saaman shift kara deta hoon..." vicky manager ke sath nahi aaya tha.... Jaanboojhkar!
"wo kahan hain..?" Sneha sunkar maayus si ho gayi...
"wo koun..?" Manager ka dimag bhanna raha tha...
"wo.. Mere pati! aur koun?" Kahte huye Sneha ka dil dhadak raha tha.. Kitna pyara ahsaas tha sneha ke liye.. Vicky jaisa pati!
"wwo.. Aate hi honge.... Lijiye aa gaye...!"
"kya baat hai..?" vicky ne anjaan bante huye kaha...
"actually sir....." aur manager ko sneha ne beech mein hi tok diya...," Dekhiye na Mohan! Ye hamara room nahi hai.. Mujhe bhi bilkul aisa hi chahiye.... Kah rahe hain.. Ye toh kisi wedding couple ke liye hai.. Jaise hum boodhhe ho gaye hon.. Jaise hamar shadi hi na huyi ho... Mujhe nahi pata.. Mujhe yahi room chahiye..."
Vicky ko uski baaton par yakeen hi nahi huaa.. Wo toh aise bol rahi thi jaise sachmuch ki patni ho.. Bilkul wife wale nakhre dikha rahi thi..
"Tumhari problem kya hai Manager.. Hamein yahi kamra chahiye.. Samajh gaye.." Vicky ne turant pala badal liya....
"ji sir.. Samajh gaya.. Sorry!" kah kar manager Sneha ki aur adab se jhuka aur bahar nikalgaya.. Jaise mandir se nikla ho!"
"ye huyi na baat.. Hamein nikal raha tha.. Kitna pyara room hai... Jaise...." aagey Sneha sharma gayi...
"tumhe sach mein yahan kuchh galat nahi laga..?" Vicky ka dhyan rah rah kar table par sazi botle aur gilason par ja raha thha....
"yahan kya galat hai..?" Sneha ne ek baar aur jannat ki tarah saje kamre mein najrein doudayi....
"ye sharaab...?????" Vicky ne lalchayi aankhon se botal ki aur dekha.. Bahut dil kar raha thha....
"nahi toh.. Aadmi toh peete hi hain..." Sneha kinchit bhi vichlit na huyi.....
"achchha.. Tumne kisko dekha hai..?"
"papa ko.. Wo toh hamesha hi piye rahte hain..... arey haan.. T.V. on karo.. Dekhein papa kya natak kar rahe hain...." Sneha ek baar fir murjha gayi....

"Tum tab tak T.V. dekho.. Main iska kuchh karake aata hoon.." Vicky switch on karne ke liye T.V. Ki aur badha...
"Oh my God! main toh bhool hi gayi thi.. Sorry.. par iss waqt doctor kahan
milega...?" Sneha ne sookh chuke khoon se sani shirt ki aur dekhte huye kaha...
"arey doctor ki kya jarurat hai... Neeche first aid padi hogi.. Safayi karke patti bandhwa leta hoon... Main abhi aaya 5-7 minute mein..."
"wo toh main kar dungi.. Tum first aid box mangwa lo.. Yahin par... Tumhare bina mera dil nahi lagega... Darr sa bhi lagta hai..." Sneha ne pyar bhari nigahon se Vicky ki aur dekha...
Vicky jakar bed par Sneha ke paas baith gaya..," Ismein darne ki kya baat hai..? Tum kyun pareshan hoti ho... Jyada time nahi lagaaunga.. Thheek hai..?" vicky ko Madhav ke paas fone karna tha..
Sneha ne ghutno ke bal baithte huye Vicky ki baanh pakad li..," Achchha.. Main pareshan ho jaaungi.. Tumne jo mere liye itna kiya hai.. Wo? nahi tum kahin mat jao.. Mat jao na pls.. Mujhe ye sab karna aata hai.."
iss haseen khawahish par koun na mar mitey... Vicky ne room service ka no. dial
karke first aid box ke liye bol diya.. Sneha ki aur wo ajeeb si najron se dekh raha tha.. Najron mein na toh poori wasna jhalak rahi thi.. Aur na hi poora pyar hi..
"main tab tak kapde change kar leti hoon.. Kahkar Sneha ne bag se kuchh kapde nikal kar bed par faila diye..," Kounsa pahnu?"
Vicky asamanjhas se sneha ko ghoorne laga.. Jaise kah raha ho..' mujhe kya pata...'
"Batao na pls.. Nahi toh baad mein kahogey.. 'ye aise hain.. Ye waise..' "
"nahi kahunga.. Pahan lo.. Koyi bhi.." Vicky Sneha ko dekhkar muskuraya aur bed par rakhe ek pink colour ke single piece skirt top par najrein jama li.. Yun hi.
"ye pahnu? .. Par ye toh poora ghutno tak bhi nahi aata.. Baad mein bolna mat..." Sneha ne vicky ki dristi ko taad liya.... Kahte huye lajja ka maheen aawran uske chahre par jhilmila raha tha...
"mujhe nahi pata yaar.. Kuchh bhi pahan lo..." Halanki vicky ye soch raha tha ki uss dress mein wo kitni sexy lagegi...
"Thheek hai.. Main yahi daal leti hoon..." sneha ne bola hi tha ki waiter ne bell bajayi...
"lagta hai.. First aid aa gayi.. Le lo.. Main baad main change karoongi.. Pahle tumhari patti kar deti hoon..."
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"shirt toh nikal do... Pahle.." Sneha ne box kholte huye Vicky se kaha...
Vicky ka dimag bhanna raha tha.. Aaj tak wo ladkiyon ko nirvastra karta aaya tha.. Par aaj uski jindagi ki sabse haseen ladki usko khud shirt nikalne ko bol rahi hai.. Kya wo jhijhak raha tha? Haan.. Uske chehre ke bhav yahi bata rahe thhe...

"tum toh aise sharma rahe ho.. Jaise tum koyi ladki ho.. Aur main ladka..!" kahkar Sneha khilkhila uthhi.. Apne chehre ki sharm ko chhipane ke liye usne hathhon se apna chehra dhak liya.. Hanste huye.. Hamesha wo aisa hi karti thi..
Vicky ki najar uske hilne ki wajah se fadfada rahe kabutaron par padi.. Bina soche hathon mein pakad kar masal dene layak thhe.. Fir jane wo kya soch raha tha.. Aur kyun soch raha thha...
"nikalo!" Sneha ke bol mein adhikar bhari mithhas thi.. Aur kuchh nahi...
"nikalt hoon na...!" kahte huye vicky ne ek ek karke apni shirt ke sare button khol diye.. Jaise hi wo bayi baju se shirt nikalne ki koshish karne laga.. Dard se bilbila uthha..," Aaaah...!"
"ruko.. Main nikalti hoon.. Aaram se..!" kahkar ek baar fir Sneha uske saamne aa gayi... Ghutno ke bal hokar.. Badi najukta se ek hath vicky ke dusre kandhe par rakha aur dusre hath se dheere dheere shirt ko nikalne lagi," Dard ho raha hai?"

Dard toh ho raha tha.. Par utna nahi.. Jitna maja aa raha tha.. Vicky aankhein band kiye apni jindagi ke sarwadhik kamuk kshano ko apni saanson mein utaarta raha.. Sach itna maja kabhi usko sex mein bhi nahi aaya tha.. Sneha ke kamsin angon ki mahak nirali thi.. Jise wo gulabon ki tej khushboo ke beech bhi mahsoos kar raha tha.. Uski 'mardaangi' akadne lagi... Dil aur Dimag mein ajeb sa yuddh chhida hua thha..
Iss baar bhi dimag hi jeet gaya.. Vicky ne apne tamaam aawegon ko kaabu mein rakha.. Halanki 'kabu' mein rakhne ki iss koshish mein uske maathhe par pasina chhalak aaya.. A.C. ke bawjood...
"uffffff.. Ghav toh bahut gahra hai... Mujhse dekha nahi ja raha.." Sneha ne shirt nikalte huye ghaav ko dekhte hi aah bhari...
"lo nikal gayi... ! Chalo bathroom mein.. Isko dho deti hoon..." Sneha ka dusra hath ab bhi uske kandhe par hi tha.. Aur wo yunhi vicky ke chehre ko ektak dekh rahi thi.. Pyar se...
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Patti karne ke pure prakaran ke douran jahan bhi Sneha ne usko sparsh kiya.. Mano wahi ang khil uthha.. Aaj tak kabhi bhi vicky ko iss tarah ki anubhuti nahi huyi thi.. Wo toh bus aanand ke sagar mein gahri dubaki lagakar apne hisse ke moti khojta raha....

Pyar aur wasna mein sadiyon se mukabla hota aaya hai.. Kuchh log 'pyar' hone ko sirf 'aakarshan' aur 'wasna' maante hain.. Par sach toh ye hai ki wasna pyar ke anupam ahasaas ke aaspaas bhi kabhi fatak nahi sakti.. Wasna aapko 'khali' karti hai.. Wahin pyar aapko tript... Jahan lagataar 'sex' bhi harbaar aapko ek soonepan aur bechaini se bhar deta hai, wahin aapke yaar ka pyar bhara ek hulka sa sparsh aapko umar bhar ke liye aisi meethi yaadein de jata hai.. Jiske sahare aap jindagi gujar sakte hain.. Yaar ke intzaar mein..

Vicky shayad aaj pahli baar 'pyar' ke sparsh ko mahsoos kar raha tha.. Have u ever?













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