Saturday, June 19, 2010

गर्ल'स स्कूल पार्ट --6

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गर्ल'स स्कूल पार्ट --6
"सर, कोई बुरा सपना आया था क्या?", वाणी ने मासूमियत से पुचछा. वो और दिशा शमशेर को ध्यान से देख रही थी. शमशेर ने वाणी की जाँघ पर थपकी लगाई,"हां वाणी! बहुत बुरा सपना आया था"शमशेर संभाल चुका था. दिशा शमशेर के लिए पानी ले आई," लीजिए सर! पानी पीने से बुरे सपने नही आते!" वाणी शमशेर के और नज़दीक आ गयी," क्या सपना आया था सर!?" शमशेर ने कहानी बनाते हुए कहा," एक राक्षस का सपना था! आजकल वो मुझे बहुत डरा रहा है." "पर सर! आप तो दीदी का नाम ले रहे थे!" शमशेर परेशान हो गया, कहीं सारा सपना उसने लाइव टेलएकास्ट ना कर दिया हो!,"क्या कह रहा था मैं" वाणी: आप कह रहे तहे, दिशा मुझे माफ़ कर दो; मैं और सहन नही कर सकता. दिशा मुझे छ्चोड़ दो; वग़ैरा वग़ैरा...." शमशेर: तो राक्षश इसके रूप में आया होगा. चलो सो जाओ. अभी रात बाकी है." वाणी: सर, पहले सपना सुनाए ना! शमशेर: देखो वाणी अच्च्चे बच्चे ज़िद नही करते सो जाओ! कहकर वा बाथरूम में गया और अपना अंडरवेर चेंज करके आया. उसके आने के बाद वाणी ने उसकी जॅफी भरी और अपनी टाँग शमशेर के पेट पर रखकर सो गयी. मामला ख़तम जान कर दिशा भी सोने चली गयी. करीब एक घंटा बीट जाने के बाद भी शमशेर की आँखों में नींद नही थी. सच में ही बुरा सपना था ये. जिस रूप में दिशा उसके सपने में आई थी, अगर वो सच्चाई होती तो उसको वाकई बुरा लगता. सपने में तो दिशा ने बेशर्मी की हद ही तोड़ दी थी. खैर दिशा के लिए उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. वैसे लड़कियों की उसकी कमज़ोरी को छ्चोड़ दें तो वा निहायत ही सुलझा हुआ और दिल का सॉफ आदमी था. बढ़ती ठंड के कारण वाणी उससे और ज़्यादा चिपकती जा रही थी. शमशेर के मॅन में खुरापात घर करने लगी, वह जानता था की वाणी अंजाने में ही सही; उसके हाथों सेक्स का मज़ा ले चुकी है. वह पलटा और अपना मुँह वाणी की तरफ कर लिया.
 वाणी गहरी नींद में थी. वाणी की छति उसके हाथ से सटी हुई थी. उसने वाणी पर अपने शरीर का हल्का सा दबाव डालकर उसको सीधा कर दिया. शमशेर ने वाणी की छति के उपर हाथ रख दिया. उसकी चुचियाँ उसके सांसो के साथ ताल मिला कर उपर नीचे हो रही थी. उसके होंट और गाल कितने प्यारे थे! और एक दम पवित्र. शमशेर ने वाणी के होंटो को च्छुआ. मक्खन जैसे मुलायम थे.... शमशेर ने आहिस्ता आहिस्ता उसके टॉप में हाथ डाल कर उसके पेट पर रख लिया. इतना चिकना और सेक्सी पेट आज तक शमशेर ने नही च्छुआ था. शमशेर ने हाथ थोड़ा और उपर किया और उसकी उँच्छुई गोलाइयों की जड़ तक पहुँच गया. उसने उसी पोज़िशन में हाथ इधर उधर हिलाया; कोई हरकत नही हुई, वह हाथ को उसकी बाई चूची पर इश्स तरह से रख दिया जिससे वो पूरी तरह धक गयी. उसने उन्हे महसूस किया, एक बड़े अमरूद के आकर में उनका अहसास असीम सुखदायी था. शमशेर का जी चाहा उन मस्तियों को अभी अपने हाथों से निचोड़ कर उनका सारा रस निकाल ले और पीकर अमर हो जाए. पर वाणी के जागने का डर था. उसने वाणी के निप्पल को च्छुआ, छोटे से अनार के दाने जितना था. हाए; काश! वो नंगी होती और वा उन्हे देख पाता. इश्स ख़याल से ही उसको ध्यान आया की वाणी तो नीचे से नंगी है..... उसने नीचे की और देखा, वाणी का स्कर्ट उसके घुटनों तक था. शमशेर ने उसको उपर उठा दिया पर नीचे से दबा होने की वजह से वो उसकी जांघों तक ही आ पाया. शमशेर ने वाणी को वापस अपनी तरफ पलट लिया. वाणी ने नींद में ही उसके गले में हाथ डाल लिया. वाणी की होंट उसकी गालों को छ्छू रहे थे. शमशेर ने दिशा के कमरे की और देखा, वहाँ से दिशा के पैर और उसकी गंद तक का हिस्सा ही दिख रहे थे. निसचिंत होकर शमशेर ने वाणी के स्कर्ट को पिच्चे से भी उठा दिया. वाणी की चिकनी सफेद जाँघ और गोल कसे हुए चूतड़ देख कर शमशेर धन्य हो गया. उसके चूतदों के बीच की दरार इतनी सफाई से तराशि गयी थी की उसमें कमी ढ़हूँढना भगवान को गाली देने के समान था. शमशेर कुच्छ पल के लिए तो सबकुच्छ भूल सा गया. एकटक उसके चूतदों की बनावट और रंगत को देखता रहा. फिर उसने उनपर हाथ रख दिया; एकद्ूम ठंडे और लाजवाब! वह धीरे धीरे उनपर हाथ फिराने लगा. शमशेर ने उसके चूतदों की दरार में उंगली फिराई; कही कोई रुकावट नही. शमशेर का लंड अब तक अपना फन उठा चुका था; डसने के लिए. उसने वाणी के चेहरे की और देखा, वा अपनी ही मस्ती में सो रही थी. शमशेर ने उसको फिर से पहले वाले तरीके से सीधा लिटा दिया. उसकी टाँगें फैली हुई थी; स्कर्ट जांघों तक थी, मोक्षद्वार से थोड़ा नीचे तक. स्कर्ट उपर करते वक़्त शमशेर के हाथ काँप रहे थे. आज से पहले ऐसा शानदार अनुभव उसका कभी नही रहा...... शायद किसी का भी ना रहा हो...... स्कर्ट उपर करते ही शमशेर के लंड को जैसे 440 वॉल्ट का झटका लगा. शमशेर का दिमाग़ ठनॅक गया, ऐसी लाजवाब चूत... नही! उसको चूत कहना ग़लत होगा. वो तो एक बंद कमाल की पंखुड़ीयान थी; नही नही! वो तो एक बंद सीप थी, जिसका मोती उसके अंदर ही सोया हुआ है. शमशेर का दिल उसकी छति से बाहर आने ही वाला था. क्या वो मोती मेरे लिए है! शमशेर ने सिर्फ़ उसका जिस्म देखने भर की सोची थी, लेकिन देखने के बाद वा उस्स मोती को पाने के लिए तड़प उठा. उस्स सीप की बनावट इश्स तरह की थी की सेक्सपेर को तो क्या, सर शेक्स्पियर को भी शायद शब्द ना मिले. नही मैं एक्सप्लेन नही कर सकता. उस्स अमूल्या खजाने को तो सिर्फ़ महसूस ही किया जा सकता है; और वो...शमशेर कर ही रहा था. शमशेर ने उसकी जांघों के बीच भंवर को देखते ही उसको चोदने की ठान ली.... और वो भी आज ही....आज नही; अभी. उसने वाणी की सीप पर हाथ रख दिया. पूरा! जैसे उस्स खजाने को दुनिया से च्छुपाना चाहता हो. उसको खुद की किस्मत और इश्स किस्मत से मिलने वाली अमानत पर यकीन नही हो रहा था. उसने बड़े प्यार से, बड़ी नाज़ूक्ता से वाणी की सीप की दरार में उंगली चलाई, वाणी कसमसा उठी! अचेतन मॅन भी उस्स खास स्थान के लिए चौकस था; कही कोई लूट ना ले! शमशेर ने अपना हाथ तुरंत हटा लिया. वाणी के चेहरे की और देखा, वह तो सोई हुई थी. फिर से उसकी नज़र अपनी किस्मत पर टिक गयी. शमशेर ने अपने शरीर से वाणी को इश्स कदर धक लिया की उस्स पर बोझ भी ना पड़े और अगर वो जाग भी जाए तो उसको लगे सर का हाथ नींद में ही चला गया होगा. इश्स तरह तैयार होकर उसने फिर कोशिश की....वाणी का मोती ढूँढने की, उसकी दरार में उंगली चलाते हुए उसको वो स्थान मिल गया जहाँ उसको अपनाखूट गाढ़ना था. ये तो बिल्कुल टाइट था, इसमें तो पेन्सिल भी शायद ना आ सके! शमशेर को पता था आने पर तो इसमें से बच्चा भी निकल जाता है... पर वो उसको दर्द नही दे सकता था. बदहवास हो चुके शमशेर ने अपनी छ्होटी उंगली का दबाव उसके च्छेद पर हल्का सा बढ़ाया; पर उस्स हल्के से दबाव ने ही वाणी को सचेत सा कर दिया. वाणी का हाथ एकद्ूम उसी स्थान पर आकर रुका और वो वहाँ खुजलाने लगी. फिर अचानक वो पलटी और शमशेर के साथ चिपक गयी. शमशेर समझ गया 'असंभव है' ऐसे तो बिल्कुल कुच्छ नही हो सकता. मायूस होकर उसने वाणी का स्कर्ट नीचे कर दिया और उसके साथ उपर से नीचे तक चिपक कर सो गया..................
अगली सुबह करीब 6 बजे दिव्या, वाणी की क्लासमेट उसके घर आई. दिशा घर में सफाई कर रही थी. उसके मामा मामी सूरज निकलने से पहले ही खेत चले गये थे. "दीदी! वाणी कहा है?", दिव्या ने दिशा से पूचछा. दिशा: उपर सो रही है, सनडे को वो कहाँ जल्दी उठहति है! दिव्या उपर चली गयी. उपर जाते ही वा सर को कसरत करते देख शमा गयी," ससर्र! गुड मॉर्निंग, सर!" "गुड मॉर्निंग दिव्या!", शमशेर ने मुस्कुरा कर कहा. पसीने की बूंदे उसके ताकतवर जिस्म पर सोने जैसी लग रही थी! दिव्या: सर! वाणी कहा है? शमशेर: वो रही! कमरे की और इसरा करते हुए उसने कहा. दिव्या ने वाणी को उठाया," वाणी! चल; मेरे घर पर! मैं अकेली हूँ. घर वाले शहर गये हैं. हम वहीं खेलेंगे! वाणी ने जैसे ही शमशेर को पसीना बहाते देखा, वो दिव्या की बात को उनसुना कर बाहर भाग आई," सर आप पहलवानी करते हैं?" शमशेर: नही तो! वाणी: फिर...! ये सब तो पहलवान करते हैं ना! शमशेर हँसने लगा, बिना कुच्छ कहे ही वा उठा और अंदर चला गया. दिव्या: आ वाणी; चल ना मेरे घर. वाणी ने भोलेपन से कहा," नआईईई, मुझे तो अभी स्कूल का काम भी करना है. मैं दोपहर बाद आ जवँगी; ओके!" दिव्या उससे दोपहर बाद आने का प्रोमिसे लेकर चली गयी....... दिव्या, वाणी की बेस्ट फ्रेंड; उसी की उमर की थी. उसका बदन भी गदराया हुआ था. चेहरे से गाँव का अल्हाड़पन भोलापन साफ झलकता था. उसका घर सरपंच की हवेली से सटा हुआ था....छत से छत मिलती थी. सरपंच का बिगड़ा हुआ बेटा; छत से दिव्या को अकेला देखकर कूद आया! जाहिर है उसकी नियत ठीक नही थी...! "राकेश तुम छत से कूदकर क्यूँ आए हो!", दिव्या उसकी आँखों में छिपि वासना को नही समझ पाई. राकेश करीब 21 साल का नौजवान लड़का तहा. एक तो उसका खून ही खराब था; दूसरे उसके बाप की गाँव में तूती बोलती थी; फिर बिगड़ता कैसे नही," दिव्या में तुझे एक खेल सिखाने आया हूं. खेलेगी!" "नही, मुझे अभी पढ़ना है; शाम को वाणी आएगी तो मैं उसके साथ खेलूँगी, तब आ जाना" राकेश: सोच ले इतना मस्त खेल है की हमेशा याद रखेगी. इश्स खेल को सिर्फ़ दो ही खेल सकते हैं. फिर मत कहना की सिखाया नही. मैने सरिता को भी सीखा दिया है. दिव्या: ठीक है 5 मिनिट में सीखा दो! राकेश ने झट से अंदर आकर दरवाजा बंद कर दिया! दिव्या: तुम ये दरवाजा क्यूँ बंद कर रहे हो! राकेश: क्यूंकी ये खेल अंधेरे में खेला जाता है,पागल! दिव्या: अच्च्छा! .....वो खेल सीखने के लिए उत्सुक हो उठी. राकेश: अब तुम आँखे बंद कर लो, देखो आँखे नही खोलना. दिव्या: ठीक है!... और उसने आँखें बंद कर ली. राकेश ने उसके गालों की पप्पी ले ली... दिव्या ने आँखें खोल दी,"छ्हीईइ! बेशर्म, ये कोई खेल है?" राकेश: अरे खेल तो अब शुरू होगा, बस तुम आँखें नही खॉलॉगी! दिव्या ने अनमने मंन से आँखें बंद कर ली. राकेश ने पिछे से जाकर उसकी दोनों अधपकी चुचियाँ पकड़ ली.. दिव्या: हटो राकेश, ये तो गंदी बात है. तुम यहाँ हाथ मत लगाओ!..... उसके दिल में एक लहर सी उठी थी. राकेश उसकी छतियोन को मसलता रहा. दिव्या ने छुड़ाने की कोशिश की पर उसका विरोध लगातार कम होता गया.
 उसकी आँखें बंद सी होने लगी. उसके सारे शरीर में हलचल शुरू हो गयी; जांघों के बीच भी गुडगुसी सी हो रही थी. उसको वश में आता देख राकेश आगे आ गया. उसके होंट चूसने लगा और उसके कमीज़ में अपना हाथ घुसा दिया. अब उसकी चुचियों और राकेश के हाथों के बीच कोई परदा ना था. दिव्या पर जवानी का नशा हावी होता जा रही था. वा आँखें बंद किए किए ही खाट पर बैठ गयी उसके मुँह से अजीब से आँहें निकल रही थी. राकेश ने उसको हाथ का हूल्का सा इशारा दिया और वो चारपाई पर पसर गयी. उसको नही पता था उसकी सहेलिया जिसे गंदी बात कहती है. उसमें दुनिया भर का मज़ा है. "राकेशह!" "क्या?" राकेश उसका कमीज़ उतहकर उसकी चुचियों को बता रहा था की ये सिर्फ़ दूध पिलाने के लिए नही बल्कि चूसने के काम भी आती हैं. दिव्या: बहुत मज़ा आ रहा है राकेश! आहह....ये तो बहुत अच्च्छा खेल है. राकेश ने उसका अधमरा सा करके छ्चोड़ दिया. वह उससे अलग हो गया! " और करो ना प्ल्स, थोड़ी देर और" मानो दिव्या उससे भीख माँग रही थी! राकेश: नही ये खेल तो यहीं तक है. अब इसका दूसरा हिस्सा शुरू होगा.... वह अपने पॅंट में छिपे लंड को मसल रहा था. दिव्या: नही, मुझे यही खेलना है! इसमें मज़ा आता है. राकेश: अरे वो खेलकर तो तुम इसको भूल ही जाओगी. राकेश समझ गया था की अब दिल्ली दूर नही है. दिव्या: अच्च्छा! तो खेलो फिर....... राकेश जानता था; दिव्या उँच्छुई कली है, खेल के अगले भाग में उसको दर्द भी होगा. आँसू भी निकलेंगे...और वो चिल्लाएगी भी," दिव्या, अगला खेल बड़ा मजेदार है. पर वो थोड़ा सा मुश्किल है" "कैसे?" वो और मज़ा लेने को व्याकुल थी. वो समझ नही पा रही थी की जो मज़ा अभी तक के खेल में उसको आया था, उससे ज़्यादा मज़ा... कितना होता होगा! राकेश: अब मैं तुम्हे एक कुर्सी से बाँध दूँगा. तुम्हारा मुँह भी कपड़े से बाँध दूँगा! फिर शुरू होगा आगे खेल! दिव्या: नही तुम चीटिंग करोगे, मुझे कुर्सी से बाँध कर भाग जाओगे.....हालाँकि वो ऐसा करने को तैयार थी. राकेश: मैं पागल हूँ क्या, मुझे ऐसा करना होता तो मैं पहले यही खेल खेलने को कहता. टाइम बर्बाद क्यूँ करता.... दिव्या: हूंम्म! ओके...! राकेश ने दीवार के साथ एक कुर्सी सटाई और उस्स पर दिव्या को इश्स तरह बैठा दिया जिससे उसके चूतड़ कुर्सी से थोड़ा बाहर निकले थे. उसके पैरो को उसने कुर्सी के हत्थो के उपर से ले जाकर बाहर की और बाँध दिए. इश्स पोज़िशन में वो तंग हो गयी. दिव्या: पैरो को आगे ही एक साथ करके नही बाँध सकते क्या? राकेश: नही, ये खेल का रूल है! दिव्या अपनी गॅंड को हिलाकर अड्जस्ट करने की कॉसिश करती हुई बोली," अच्च्छा ठीक है! अब जल्दी सिख़ाओ, मुझे दर्द हो रहा है. राकेश मंन ही मंन मुस्कुराया, सोचा ये इसी को दर्द कह रही है तो आगे क्या होगा. उसने दिव्या के मुँह पर कपड़ा बाँध दिया. अब वो बोल नही सकती थी; ज़्यादा हिल नही सकती थी... अब राकेश ने देर नही की. वा दिव्या की सलवार खोलने लगा. दिव्या ने कुच्छ बोलने की कोशिश करी, उसको शर्म आ रही थी.... राकेश ने दिव्या की सलवार का नाडा खोलकर उसके पीच्चे हाथ लेजकर सलवार को नी चे से आगे की और खींच लिया, उसके अंडरवेर समेत... और सलवार को उपर घुटनों तक उठा दिया. पैर बँधे होने की वजह से वो पूरी नही निकल सका. दिव्या कसमसा रही थी; राकेश के सामने उसकी नंगी चूत थी.... पर वो तो हिल भी ना सकती थी, बोल भी ना सकती थी, उसने ज़्यादा कोशिश भी नही की, उसने शर्म से आँखे बंद कर ली. राकेश नीचे बैठा और उसकी गांद को जितना आगे कर सकता था कर दिया. उसने अपने होंट उसकी सलवार के नीचे से ले जाकर चूत से सटा दिए. दिव्या सकपका गयी. उसकी आँखें मारे उत्तेजना के बंद हो गयी. असीम आनंद का अनुभव हो रहा था. उसने सोचा; राकेश सही कह रहा था. इसमें तो और भी मज़ा है, लेकिन पैर बाँधने की क्या ज़रूरत थी! अब राकेश जैसे उसकी चूत को चूस नही खा रहा था, कभी उपर, कभी नीचे, कभी ये फाँक, कभी वो फाँक; कभी दाना तो कभी च्छेद. दिव्या बुरी तरह छटपटा रही थी. हाए, इतना मज़ा दे दिया. उसकी चुचियों में कसमसाहट सी हो रही थी. इनको क्यूँ खाली छ्चोड़ रखा है, उसका दिल किया वा राकेश को अपने उपर खींच ले; पर उसके तो हाथ भी बँधे हुए थे. अब दिव्या की टाँगों का दर्द जाता रहा! अचानक उसको मिलने वाला मज़ा बंद हो गया था. उसने आँखे खोली, राकेश अपनी पॅंट उतार रहा था. राकेश ने अपनी पॅंट और अंडरवेर उतार कर ज़मीन पर फेंक दी, दिव्या की आँखें फटी की फटी रह गयी. इसका इतना लंबा कैसे है! अब ये इसका क्या करेगा.. जल्द ही उसको इसका जवाब मिल गया. राकेश अब ज़्यादा टाइम लगाने के मूड में नही था. उसने कुर्सी के हत्थे पर अपना एक हाथ रखा और दूसरे से अपने 6 इंची को उसकी गीली हो चुकी चूत से सटा दिया. दिव्या डर गयी! ये तो शादी के बाद वाला खेल है, उसकी दीदी ने बताया था; जब पहली बार उसके पति ने इसमें घुसाया था तो उसकी जान ही निकल गयी. वह जितना हिल सकती थी, उतना हिल कर अपना विरोध जताने लगी. "बट इन वान्ट"
 राकेश ने अपने लंड का दबाव उसकी चूत पर दबाया पर वो खुलने का नाम ही नही ले रही थी. दिव्या की चीख उसके मुँह में ही दबकर रह जाती थी. राकेश भी नादान नही था. वो किचन से मक्खन उठा लाया. अपनी उंगली से दिव्या की चूत में ही मुट्ठी भर मक्खन ठुस दिया, दिशा की चूत से सीटी जैसी आवाज़ आने लगी, ये सिग्नल था की अब की बार काम हो जाएगा. राकेश ने अपने लंड पर भी मक्खन चुपडा और टारगेट को देखने लगा. उसने दिव्या की चीखों की परवाह ना करते हुए अपने औज़ार का सारा दम उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया!....सॅटटॅक और सूपड़ा अंदर. उसने दिव्या की जांघों को अपने हाथों से दबा कर एक बार और हुंकार भारी, दिव्या बेहोश सी हो गयी. उसने इतने गंदे लड़के की बात पर विस्वास करके अपनी मौत बुला ली. दर्द को कम तो होना ही था सो हुआ, दिव्या को धीरे धीरे मज़ा आना ही था सो आने लगा. अब उसकी आँखों से पानी सूख गया और उनमें आनंद की चमक आ गयी. वह अपने आपे में नही रही, कहना चाहती थी मुझे खोल दो और खुल कर खेलो ये खेल. पर वो तो बोल ही नही सकती थी, वो तो खेल ही नही सकती थी.... वो तो बस एक खिलौना थी; राकेश के हाथों का.... राकेश उसको चोद्ता ही चला गया.... उसने ये भी परवाह ना की दिव्या की मछ्लि घायल है; खून फाँक रही है.... मक्खन में लिपटा हुआ.... अचानक राकेश का काम होने को आ गया और उसने ज़ोर की दहाड़ लगाई.... वह शिकार में कामयाब जो हो गया था, लंड निकाल कर उसकी गोद में गिर पड़ा.... दिव्या का तो पता ही नही कितनी बार उसकी योनि ने रस उगला..... खून में लिपटा हुआ.... खैर राकेश ने दिव्या को खोल दिया. दिव्या खून देखकर एक बार तो डरी, फिर उसको दीदी की बात याद आ गयी....पहली बार तो आता ही है. जब दोनो नॉर्मल हो गये तो राकेश ने कहा," मज़ा आया मेरी जान" दिव्या: हां पर तुमने चीटिंग की,.... मुझे आइन्दा कभी बांधना मत!
...दिशा सर के लिए दूध लेकर गयी. शमशेर बस नाहकार ही निकला था. दिशा उसको बहुत कुच्छ कहना चाहती थी पर पता नही क्यूँ, उसके सामने जाते ही जैसे उसके होंट सील जाते थे; वह शमशेर के जिस्म पर नही बल्कि उसकी पर्सनॅलिटी पर मरती थी. रात की बात को याद करके वह बार बार खुश हो जाती थी, उसको पता था की सर के सपने में वो आई थी..... पर वो ये नही समझ पा रही थी की सर बार बार उसका नाम लेकर माफी क्यूँ माँग रहे थे.... जो भी था सर का सपना तो डरावना ही था.... वरना वो पसीने में क्यूँ भीगे होते! उसने दूध का मग टेबल पर रख दिया और झाड़ू लेकर वहाँ सफाई करने लगी. शमशेर: रहने दो, मैं कर लूँगा! दिशा: आ..आप कैसे करेंगे सर!... वो बड़ी हिम्मत करके बोल पाई. शमशेर: करनी ही पड़ेगी... और कौन करेगा? दिशा: मैं कर तो रही हूँ! शमशेर: तुम कब तक करोगी? दिशा के दिल में आया कहदे सारी उमर; पर लबों ने साथ नही दिया," सर! आप शादी क्यूँ नही करते? शमशेर: कोई मिलती ही नही..... शमशेर आगे कहने वाला था....'तुम्हारे जैसी' पर उन्न खास शब्दों को वो दूध के साथ पी गया! दिशा: आपको कैसी लड़की चाहिए.... ? अब की बार उसने 'सर' नही लगाया. शमशेर को शीधे बोलते हुए उसको बड़ा आनंद आया. तभी शमशेर का सेल बज गया; अंजलि का फोन था. 'हेलो' उधर से आवाज़ आई,"शमशेर!" "हां!" "तुम मेरे पास अभी आ जाओ", बहुत खास बात करनी है." शमशेर ने दिशा की और देखा,"क्या खास बात है भला? "तुम आओ तो सही; आ रहे हो ना" "हां" कहकर उसने फोन काट दिया. उसने जल्दी से कपड़े बदले और नीचे उतर गया. नीचे जैसे वाणी उसका ही इंतज़ार कर रही थी," सर, आपने मुझे प्रोमिसे किया था की मुझे गाड़ी चलाना सिखाएँगे. आज सनडे है; चलें..." शमशेर: आज नही वाणी, फिर कभी...! वाणी: प्लीज़ सर, चलिए ना. शमशेर: वाणी, अभी मुझे काम है, शाम को देखते हैं! ओक; बाइ वाणी मायूस होकर सर को जाते देखती रही...... टू बी कंटिन्यूड....












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