Tuesday, June 22, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --58

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --58

हेल्लो दोस्तों मैं यानिआप्का दोस्त राज शर्मा पार्ट 58 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये

सभी अपना अपना समान कारों में डाल कर 4-5 के ग्रूप्स में कमरों में बैठे थे.. दिशा शालिनी को लेकर बाहर चली गयी..
"एक बात पूचु शालिनी दी.. बुरा मत मान'ना.." दिशा ने हिचकते हुए कहा..
"कमाल करती हो.. पूच्छो ना!" शालिनी ने खुश होकर उसकी ओर देखा...
"आप... रोहित से प्यार करती हैं क्या?" दिशा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर पूचछा...
"तुमसे किसने कहा..?" शालिनी उसकी बात पर अवाक रह गयी..
"वो.. सीमा ने बताया था.. बताइए ना.. सच है क्या?" दिशा ने टटोलने की कोशिश की...
"हुम्म" शालिनी ने कहते हुए शर्मकार नज़रें चुरा ली...
"आप दोनो एक ही रूम में रह लोगे ना... वो... शमशेर पूच्छ रहे थे...."
"उनको भी पता है क्या?" शालिनी के चेहरे पर हवैइयाँ सी उड़ने लगी...
"तो क्या हुआ.. तुम चिंता मत करो.. बस बोलो आप रह लोगे ना?" दिशा ने मुस्कुरकर उसका हाथ पकड़ लिया...
"नही.. ये नही हो सकता.. मैं उसके साथ नही रहूंगी..." कुच्छ देर सोचने के बाद शालिनी ने स्पस्ट सा कह दिया...
"वैसे कोई प्राब्लम नही थी दीदी.. पर चलो.. मैं बता दूँगी उनको.. आओ!" कहकर दिशा शमशेर के पास जाने के लिए मूड गयी.... शालिनी वहीं खड़ी होकेर कुच्छ सोचते हुए उसको जाते देखती रही.. फिर अचानक बोली," दिशा! एक मिनिट!"
"हां दीदी!" दिशा उसके पास वापस आकर बोली....
"वो.. मैं कह रही थी की.. क्या रोहित से पूचछा था उन्होने?" शालिनी ने हिचकते हुए पूचछा...
"हां.. उसने ही तुमसे पूच्छने के लिए बोला था... इसीलिए पूच्छ रही थी...
"हुम्म.. पर ये कैसे हो सकता है.. कितना अजीब सा लगेगा हमें.. " चलते हुए शालिनी अचानक खड़ी हो गयी.. दिशा के कदम भी वहीं रुक गये...
"ठीक है दिशा.. अगर रूम्स की प्राब्लम है तो मैं रह लूँगी..." और कहते ही शालिनी वहाँ से नौ दो ग्यारह हो गयी... उसने एक पल के लिए भी वहाँ रुकना ना चाहा.. उसने मुड़कर भी नही देखा...
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"मैं.. अकेला?" वासू ने रूम्स शे-अर करने वालों की लिस्ट देखी और उसके अरमानो पर जैसे पानी फिर गया.. पर रात वाली बात अब नही थी.. नशा अभी भी होता तो शायद वो बग़ावत कर देता, इस फरमान के खिलाफ...
शमशेर और विकी भी रात वाली बात भूल चुके थे.. और उन्हे अब भी वासू के इकरार-ए-इश्क़ का इल्म नही हो पाया," क्या करें वासू जी.. मैं शादी शुदा हूँ और विकी भी शादी करने ही वाला है स्नेहा से.. आपको सिंगल रूम देना हमारी मजबूरी है.. लड़कों के साथ रहना आपको शोभा नही देगा..."
"हूंम्म.. चलो.. अकेला ही सही.. घूमने तो साथ ही चलोगे ना.. या वहाँ भी अकेला ही भेजोगे मुझे..." खिसियाए वासू ने परोक्ष व्यंग्य किया...
"कमाल करते हैं वासू जी आप भी.. सबको इकट्ठा होने को बोलो.. चलने की तैयारी करते हैं बस! आज थोड़ा बहुत घूम कर ही आएँगे.... फिर थकान उतारेंगे सफ़र की..." विकी ने मुस्कुराते हुए उसकी और हाथ बढ़ा दिया...
वासू के दिल पर क्या बीत रही थी.. ये तो वही जाने.. पर वा उठा और बिना कुच्छ बोले बाहर निकल गया......
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"वाणी को अपने साथ ही रख लें...?" स्नान करने के बाद यूँही बाहर आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी होकर अपना बदन पौंच्छने लगी दिशा ने बेड पर लेते शमशेर से पूचछा...
शमशेर इस कातिल बदन की मल्लिका को अपने सामने यूँ बिना कपड़ों के देखते ही सिसक उठा.. बिना देर किए वह अगले ही पल दिशा को पिछे से अपने आगोश में भरे हुए था," क्यूँ? यही कह दो ना की यहाँ से मुझे जिंदा वापस नही जाना.." शमशेर ने अपने हाथों में दिशा के उन्नत उरजों को समेट-ते हुए उसको अपने और करीब खींच किया... दिशा को शमशेर की बेकरारी अपने नितंबों के बीच बड़े ही ठोस अंदाज में महसूस हो रही थी, खिलखिलती हुई वह बोली," ऐसा क्या कह दिया मैने?"
"जैसे तुम्हे तो कुच्छ पता ही नही..." कहते हुए शमशेर ने दिशा को अपनी और घुमा लिया और होंठो से सुधारस का पान करने लगा.. कुच्छ पल के लिए तो दिशा भी कमतूर होकर उसमें सामने की कोशिश की करने लगी.. पर जल्द ही संभालते हुए उसने शमशेर को अपने तन-सुख से वंचित सा कर दिया..," आप भी ना.. कभी तो समय देख लिया करो.. हटो भी.. तैयार होने दो.. मैं तो यूँही मज़ाक कर रही थी.. वो तो मानसी के पास रहेगी ना..." दिशा अपने गीले बालों को झटक कर उनमें कंघी करने लगी....
"ओह तेरी.. हम नीरू को गिन'ना तो भूल ही गये.. अब उसको कहाँ अड्जस्ट करेंगे..." शमशेर ने अचानक याद करते हुए अपने माथे पर हाथ मारा...
"कुच्छ नही होता.. तकरीबन सभी सहेलियाँ हैं आपस में.. अदल बदल कर रह लेंगी.. वैसे भी तो सोने के लिए ही तो अलग होना है बस.. वरना तो सबको साथ ही रहना है... तीन लड़कियाँ इन बेड्स पर आराम से सो सकती हैं.. अब मुझे तंग करना बंद करो और बच्चों को समझा दो.. साथ ही रहना है बाहर जाकर.." दिशा पहन'ने के लिए बॅग में से अपनी ड्रेस निकलती हुई बोली...
"कब तक बचोगी मेरे कहर से..."रात को देखूँगा तुम्हे.. " और मुस्कुराता हुआ शमशेर उसके गालों का चुंबन लेकर बाहर निकल गया....
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"मैं यहीं रहूँगा सिर.. वीरेंदर के पास ही.. वैसे भी मुझे नींद आ रही है.." सब इकट्ठे हुए तो राज ने अपने चलने में असमर्थता जाता दी...
"कोई बात नही.. आज वैसे भी आसपास तक ही घूम कर आएँगे.. अगर किसी और को भी आराम करना हो तो वा यहाँ रह सकता है..." शमशेर ने बच्चों से कहा...
हाथ उपर करने वालों में सबसे पहला नंबर. प्रिया का था.. राज के बिना वो भी क्या करती बाहर जाकर... धीरे धीरे रिया ने भी अपना हाथ उठा दिया... वाणी और मनु की नज़रें मिली और गजब हो गया...
"हम भी नही जा रहे!" दोनो ने एकसाथ बोला.. सभी ने उनकी और चौंक कर देखा.. एक साथ बोलना तो समझ में आता था.. पर 'हम'.. सबको ऐसा ही लगा जैसे उन्होने पहले ही प्लॅनिंग कर ली हो...
शमशेर ने नज़र भरकर दोनो की और गौर से देखा और फिर अपना ध्यान उनपर से हटने का दिखावा करने लगा....," ठीक है.. जिसको नही चलना वो अपने कमरों में जाओ.. मैं बाकी से बात कर लूँ...."
प्रिया, रिया और राज अपने अपने कमरों में चले गये...
"आ चल ना.. क्या करेगी यहाँ.. घूम कर आते हैं.. थोड़ी देर की ही तो बात है..." कुच्छ कुच्छ रात को ही समझ चुकी मान'सी अब तो सब कुच्छ ही जान गयी थी...
"नही.. मुझे नींद आ रही है.. आज तो जी भरकर सो-उंगी.. ठंडी में कितनी मीठी नींद आएगी.. तू जा..." वाणी ने झेन्प्ते हुए कहा और गर्दन नीची करके अपने कमरे की और निकल गयी...
बेचारे मनु ने भी खिसक लेने में ही अपनी भलाई समझी.. अमित ने भी एक पल रुकने की सोची.. पर वो गौरी के रुकने का एलान करने का इंतजार ही करता रह गया..

होटेल में अब 6 बच्चे ही रह गये थे.. वीरू, राज, मनु, रिया प्रिया और वाणी.. वाणी और मनु अपने अपने कमरों में अकेले लेते थे जबकि प्रिया, रिया के साथ और राज वीरू के साथ था... रात की खुमारी अब तक प्रिया के बदन से उतरी नही थी.. और कुच्छ मस्ती करने के लिए नही मिला तो प्रिया ने रिया को ही छेड़ना शुरू कर दिया," रिया.. रात भर वीरू के साथ बैठ कर आई हो.. तुम्हे छेड़ा तो नही ना उसने?"
"चल हट.. तू बड़ी बेशरम हो गयी है आजकल.. राज को समझना पड़ेगा.. उसी का असर लगता है ये..." रिया ने शरारत भारी आवाज़ में कहा...
"इसमें बेशर्म होने की क्या बात है? तुझसे ही तो पूच्छ रही हूँ.. वैसे खाना खाते हुए तुम दोनो बड़े प्यारे लग रहे थे.. सच में..." प्रिया ने उसको उकसाते हुए बोला...
"हुंग.. बेकार में खाना खिलाया मोटू को.. खाना खाते ही सो गया.. बात तक नही की..." कहते हुए रिया अपने चेहरे पर प्यार भरा गुस्सा ले आई...
"क्यूँ? ऐसी क्या बात करनी थी तुझको..?" प्रिया ने प्यार से उसके गाल पकड़ कर खींच दिए..," एक ही दिन में सब कुच्छ थोड़े ही हो जाता है... पहले तो छेड़ छाड़ ही होती है..."
"कुच्छ होने की बात मैं कब कर रही हूँ.... आ.. आज तो तू बड़ी वैसी बातें कर रही है...तू भी तो रात भर राज के साथ ही थी.. तुम्हारा कुच्छ हो गया क्या?" रिया ने उल्टा उसको ही निशाने पर ले लिया....
"नही... और हुआ होगा भी तो मैं तुझे क्यूँ बताउ?" प्रिया की इश्स बात ने रिया के कान खड़े कर दिए...
"मुझे नही बताएगी तो किसको बताएगी.. चल.. बता ना... कुच्छ हुआ क्या?" रिया उत्सुकता से उसके सामने बैठ गयी...
"तू किसी को बोलेगी तो नही ना.." प्रिया ने चहकते हुए उसको कहा...
कुच्छ ना कुच्छ होने का इशारा मिलते ही रिया की आँखें चमक उठी..," मैं पागल हूँ क्या? मैं क्यूँ बताउन्गि किसी को.. एक मिनिट रुक.. मैं दरवाजा बंद कर दूं.." रिया झटके के साथ उठी और लपक कर दरवाजे की चितखनी लगा दी... और वापस आकर गोद में तकिया रख कर प्रिया के सामने बैठ गयी," चल बता!"
"ऐसा कुच्छ खास नही है पागल... तू तो ऐसे ही उच्छल रही है.." प्रिया ने अपनी ज़ुबान पर काबू करने की कोशिश की...
"तुम्हे मेरी कसम प्रिया.. जो कुच्छ भी हुआ है.. सब सच्ची साची बताना...... बोल भी दे अब.. भाव क्यूँ खा रही है?" रिया पूरी बात जान'ने के लिए मचल उठी..
"देख ले.. तुझ पर भरोसा है.. इसीलिए बता रही हूँ.." प्रिया को बताने में हिचक हो रही थी....
"बोल ना.. अब इधर उधर क्यूँ घुमा रही है बात को..?" रिया सुन'ने के लिए अधीर होती जा रही थी....
"वो.. राज ने मुझे किस करने के लिए बोला था.." प्रिया ने शर्मा कर नज़रें झुका ली..
"ये ले.. इतनी छ्होटी सी बात के लिए इतने नखरे दिखा रही थी.." रिया को खोदा पहाड़ और निकली चुहियाँ वाली बात लगी...
"वहाँ पर.." प्रिया ने उसी अंदाज में अपने होंठो पर उंगली रख ली.. जिस अंदाज में राज ने अपने होंठो पर रखी थी....
"हाए राम! होंठो पर.." रिया उच्छल पड़ी..," फिर? तूने की..?"
"क्या?"
"लिपकिसस!" और क्या?" रिया ने तकिया उठाकर अपनी छतियो से चिपका लिया..
"तू सुन तो ले अब.. मैं मना करती रही.. और वो ज़िद पर अदा रहा.. जाने क्या क्या उलाहने देने लगा.. फिर अचानक उसने मेरा हाथ पकड़ लिया.. हाथ यहाँ रखा था.." प्रिया ने अपनी जाँघ पर हाथ रख कर उसको दिखाया...
"फिर?" रिया की ललक बढ़ती जा रही थी.. पूरी बात जान'ने की..
"फिर क्या? मैने अपना हाथ खींचा तो बेशर्म साथ ही अपना हाथ भी खिसका लाया.. यहाँ.. मेरी तो जान ही निकल गयी होती..." प्रिया ने उस पल को याद किया और मचल सी उठी...
"फिर क्या हुआ.. बताती रह ना.. चुप क्यूँ हो गयी...?"
"फिर उसने मेरे हाथ को यहीं दबा लिया.. मेरी साँसे रुकने को हो गयी.. जैसे ही मैने अपना हाथ छुड़ाया.. उसका हाथ मेरी जांघों के बीच घुस गया.."
"हाए राम.. तुझे तो बड़ी शरम आई होगी.. फिर क्या हुआ?" रिया ने उसको बीच में ही रोक कर अपनी प्रतिक्रिया दी...
"शरम की तो पूच्छ मत... पर उसने तभी हाथ निकल लिया.. सॉरी बोलकर...!" प्रिया की हालत बात कहने के हिसाब से बनती बिगड़ती जा रही थी...
"रिया को लगा किसी ने उसके 'वहाँ' से हाथ निकल लिया हो.. प्रिया की हर बात का असर वो अपने शरीर पर होता महसूस कर रही थी.. राज के हाथ निकालने की बात सुनते ही उसने छातियो पर दबा रखा तकिया अपनी गोद में रखा और अपना हाथ 'वहीं फँसा कर प्रिया को आए मज़े को महसूस करने की कोशिश करने लगी...," फिर कुच्छ नही हुआ?"
"हुआ ना!" यहाँ से प्रिया ने कहानी थोड़ी बदल दी.. अब वा रिया को यह कैसे बताती की वह खुद ही राज का हाथ अपनी चिड़िया तक ले जाने को मचल उठी थी...," राज थोड़ी देर बाद फिर से लिपकिसस की ज़िद करने लगा.. मैने सोचा, कर देती हून.. नही तो ये पीचछा छ्चोड़ने वाला नही है..."
"फिर.. कर दी तूने...?" रिया का चेहरा भी लाल होता जा रहा था...
"तू सुनती रह.. बीच में मत बोल... मैने अपने होन्ट बंद करके उसके होंठो को बस एक बार टच करने के लिए ही गयी थी की उसने मुझे वहीं दबोच लिया.. ज़बरदस्ती मेरे उपर वाले होन्ट को अपने होंठो में दबा लिया.. और अपने आप ही उसका नीचे वाला होन्ट.. मेरे होंठो में आ गया.. मैं पागल सी हो गयी.. बता नही सकती की कैसा लग रहा था.."
"अच्च्छा तो लग रहा होगा ना..?" रिया अपनी चिड़िया को उंगली से कुरेदने लगी थी...
"बता तो रही हूँ मैं पागल सी हो गयी थी.. इतना मज़ा आया था की मैं बता ही नही सकती... अचानक वो अपने हाथ को धीरे धीरे मेरी जांघों के उपर से सहलाते हुए फिर से अंदर ले गया.. जाने क्या जादू था.. उसके हाथ में.. मैं उसको रोक ही नही पाई... मेरा तो दिल, दिमाग़, आँखें सब कुच्छ काम करना छ्चोड़ गया था... उसकी उंगलियाँ उपर से ही 'उसके' उपर चलने लगी... मैं उसको एक बार भी रोक नही पाई... अचानक मैं अंदर तक काँप गयी और पूरे शरीर में झुरजुरी सी आ गयी... मुझे लगा की अगर उसकी छाती से नही लिपटी तो मैं मर जाउन्गि.. और फिर मैने उसको और उसने मुझको कसकर भींच लिया... अब भी याद करती हूँ तो मेरा रोम रोम सिसक उठता है..." प्रिया ने अपना राज 'रिया' के सामने खोल कर अपनी बात को विराम दिया...
रिया काफ़ी देर तक चुपचाप बैठी हुई पता नही किन ख़यालों में खोई रही.. फिर अचानक बोली," मज़ा तो उसको भी आया होगा.. नही?"
"और नही तो क्या? शुरुआत तो उसी ने की थी..." प्रिया ने कहा...
"नही.. मेरा मतलब है की अगर कोई लड़की किसी के साथ ऐसा करने लग जाए तो उसको गुस्सा तो नही आएगा ना... मज़ा तो सभी को आता होगा..." रिया के दिमाग़ में कुच्छ चल रहा था...
" हां.. मज़ा तो सबको ही आता होगा.. भगवान ने सभी को एक जैसा बनाया होगा..."
"प्रिया..!"
"हूंम्म.." प्रिया बात पूरी करके आँखें बंद करके बिस्तेर पर लेट गयी थी...
"अगर तू चाहे तो राज को बेशक यहाँ बुला ले.. मैं बाहर चली जाउन्गि...!" रिया ने प्रिया के सामने एक प्रपोज़ल रखा...
"मैं क्या करूँगी.. उसको बुलाकर...!" हालाँकि उस वक़्त आँखें बंद किए प्रिया यही दुआ कर रही थी की एक बार और उनका आमना सामना हो जाए.. अकेले में..! पर बेहन के सामने कैसे स्वीकरती...
"कुच्छ भी करना.. तुम बालिग हो.. एक दूसरे से प्यार भी करते हो.. बातें करना या कबड्डी खेलना.. कौन रोक रहा है..?" रिया हँसने लगी.. पर हँसी में मैलापन था.. वासना का... जो उसस्के सिर चढ़कर बोल रही थी...
"धात.. बेशर्म.. हां.. बातें करने को तो दिल कर रहा है.. पर उसको बुलाउ कैसे? वीरू अकेला रह जाएगा... है ना?" दोनो के मॅन तेज़ी से इस योजना को मूर्त रूप देने में जुट गये थे...
"एक काम हो सकता है..!" प्रिया ने अचानक कहा...
"क्या?"
"देख ले.. तुझे थोड़ी हिम्मत दिखानी पड़ेगी..."
"बोल ना.. क्या करूँ..?" रिया ने उत्सुकतावश पूछा...
"तू उनके कमरे में जाकर राज को कह दे.. की तुझे बाहर बुला रहे हैं.. मेरा नाम मत लेना..."





"फिर?"
"फिर क्या? बाहर में उसको अपने आप संभाल लूँगी... तू थोड़ी देर वीरू के पास बैठ जाना...!"
"ठीक है.. मैं जाती हूँ.." रिया और अब तक कहना ही क्या चाह रही थी.. बस शरम के मारे बात उसके मुँह से निकल ही नही रही थी... वह बिना देर किए उठी और राज और वीरू के कमरे की और चली गयी...

दरवाजा राज ने ही खोला.. रिया को देखते ही वो खिल उठा," प्रिया कहाँ है रिया?"
रिया ने दरवाजे से अंदर झाँकते हुए कहा..," ये मोटू क्या कर रहा है..?"
"सो रहा है.. क्यूँ?"
"बस ऐसे ही.. वो.. तुम्हे प्रिया बुला रही थी.. कुच्छ काम होगा.." रिया ने अंजान बनते हुए कहा...
"ठीक है.. मैं आता हूँ.. चलो!" राज ने कहा...
"वो.. तुमसे एक बात करनी थी..." रिया ने इधर उधर आँखों को नचाते हुए कहा...
"बोलो.. !"
"मुझे वीरू से कुच्छ बात करनी है.. मैं यहीं रह जाउ तब तक..."
"हां.. हां.. मुझे क्या दिक्कत है... पर जगाने से पहले सोच लेना इसको.. लेने के देने भी पड़ सकते हैं..." राज हंसते हुए बोला...
"वो मैं देख लूँगी.. तुम जाओ.. मैं यहीं रुकती हूं..." रिया अभी तक बाहर ही खड़ी थी...
"राज की भी बान्छे खिल गयी....," ठीक है.. मैं जा रहा हूँ.. पर क्या काम है उसको..?" राज अंजान बनते हुए बोला...
"मुझसे क्यूँ पूच्छ रहे हो.. जाते ही अपने आप ही ना बता देगी..." रिया शरारत से मुस्कुराने लगी तो राज झेंप गया...
"नही.. मुझे लगा हो सकता है तुम्हे भी पता हो.." राज ने कहा और बाहर निकल गया...
राज के जाते ही रिया अंदर घुसी और दरवाजे को लॉक कर दिया... वीरू गरम कंबल में दूबका सो रहा था....
रिया करीब 15 मिनिट तक वीरू को जगाने की सोचती रही... उसके मॅन में खलबली मची हुई थी.. बस एक बार राज और प्रिया जैसा कुच्छ उनमें भी हो जाए.. उसके बाद तो वो उसको अपने आप काबू में कर लेगी.. पर शुरुआत कैसे करे.. यही बड़ा सवाल था...
कुर्सी पर बैठी हुई रिया काफ़ी देर तक वीरू को जगाने का बहाना सोचती रही.. अचानक उसके दिमाग़ में ख़याल आया.. जगाने की ज़रूरत ही क्या है.. जागेगा तो अपने आप जाग जाएगा.. आख़िर ठंड तो उसको भी लग रही है ना.....
सोचते हुए रिया ने खुद को हिम्मत सी दी और अपनी गरम जॅकेट निकाल कर अलमारी में च्छूपा दी..
वीरू बेड के बीचों बीच लेटा सो रहा था... रिया बिस्तेर पर चढ़ि और वीरू के पास बैठकर कंबल में पैर घुसा दिए... इतना भर करते ही उसकी धड़कने बढ़ गयी थी.. पर मंज़िल तो अभी बहुत दूर थी...
"वीरू!" रिया ने हुल्के से आवाज़ लगाई...
पर वीरू शायद गहरी नींद में था.. उसकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नही हुई...
"वीरू!" रिया ने इश्स बार थोड़ा तेज कहा तो वीरू ने नींद में ही अपनी करवट बदल ली... अब वीरू का चेहरा रिया की तरफ था.. वीरू ने घुटना मोड़ कर आगे रखा तो रिया का घुटना वीरू की जांघों के नीचे आ गया...
और रिया ने अपने आपको मुश्किल से उच्छलने से रोका.. उसके बदन में अचानक सरसराहट दौड़ गयी... वीरू की जांघें रिया के घुटनो को सीधा स्पर्श कर रही थी.. मतलब सॉफ था.. वीरू सिर्फ़ अंडरवेर में था...
इतना आभास होते ही रिया की हालत खराब हो गयी.. कुच्छ ही देर में उसको ये भी समझ आ गया की उसके घुटनो के पास महसूस हो रही जाँघ के अलावा 'दूसरी चीज़ क्या है.. और रिया पागल सी हो गयी.. वह इतनी हड़बड़ा गयी की यही निस्चय नही कर पा रही थी की अपनी टाँगों को वहाँ से निकले या नही... बड़ी मुश्किल से वह सामान्य हुई थी कि वीरू ने नींद में ही एक और गजब ढा दिया...
हुल्की सी हुंकार भरते हुए वीरू ने अपने हाथ को आगे लाते हुए रिया की जांघों से होता हुआ आगे रख दिया... नारी की जांघें तो नारी की ही होती है ना.. वीरू का अचेत मस्टिस्क भी उनका स्पर्श पाते ही झटका सा खा गया और उसने अपने मुँह से कंबल हटा कर देखा.. रिया को ऐसा लगा मानो चोरी करती पकड़ी गयी हो.. साँस उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी उसकी.. आँखें फ़ाडे वीरू के चेहरे की और देखती रही.. वीरू भी लगभग उसको ऐसे ही देख रहा था.. उसने झट से अपना हाथ और अपनी जाँघ उस'से दूर की और पूचछा," तुम? तुम यहाँ कैसे? राज कहाँ है?"
कुच्छ पल तो रिया को कुच्छ सूझा ही नही.. फिर संभालते हुई सी बोली," ववो.. बाहर गया है.. किसी ने बुलाया था उसको..."
"पर तुम यहाँ क्या कर रही हो..?" हालाँकि वीरू का अंदाज अत्यंत नरम और सिर्फ़ हैरानी भरा था.. फिर भी रिया जवाब देते हुए अटक रही थी...," ववो.. मुझे सर्दी लग रही थी.. इसीलिए... पर मैने सिर्फ़ पैर अंदर किए थे... और कुच्छ नही किया.."
वीरू उसके अंदाज पर मुश्कुराए बिना ना रह सका.. दूसरी और रिया की जांघों की अद्भुत गर्माहट अब तक उसके हाथ को महसूस हो रही थी," अरे में ये नही पूच्छ रहा.. तुम कब आई.. मुझे जगा लेती..!"

वीरू की बात सुनकर रिया के कलेजे को अजीब सी ठंडक मिली...," मैने आवाज़ लगाई तो थी.. पर तुम जागे ही नही.. मैने सोचा.. सोने दूँ.. फिर यहाँ इसीलिए रह गयी की तुम्हे किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो उठना ना पड़े..."
"श.. थॅंक्स.. तुम बहुत अच्छि हो रिया.. सच में.." कहते हुए वीरू ने उसकी नाक पकड़ कर खींच ली...
"ऊओई.. और मैं तुम्हे छेड़ूँगी तो...?" रिया ने मचलते हुए कहा.. वीरू द्वारा उसको इस तरह तंग किया जाना एक मीठा सा अहसास दे गया....
"थोड़ा सा सो लूँ.. जोरों की नींद आ रही है.. फिर जी भर कर छेड़ लेना.." मुस्कुराते हुए वीरू ने कहा और फिर से कंबल में गोता खा गया... पर अब की बार रिया के लिए काफ़ी जगह छ्चोड़ता हुआ...
अब रिया से सब्र कहाँ होता...? रिया ने एक तरफ होते हुए वीरू के उपर से कंबल खींच लिया.. सारा का सारा.. वीरू सहम सा गया.. रिया के सामने उसको खाली अंडरवेर में पड़े होने पर शरम आ गयी और वो खिज सा उठा..," ये क्या कर रही हो.. कंबल दो मुझे.."
"नही देती.. नंगे!" वीरू के स्वाभाव में अभी भी नर्मी बनी रहने के कारण ही उसमें वीरू को नंगा कहने का साहस आ सका था...
"अच्च्छा.. मैं नंगा हूँ.. ! ठीक है.. रहने दो.. मेरा कंबल दो और भागो यहाँ से.." वीरू शर्मा सा गया था....हिचकिचाहट में उसने रिया के इर्द गिर्द लिपटा हुआ कंबल पकड़ कर ज़ोर से खींच लिया.. और कंबल में लिपटी रिया उसके साथ ही वीरू की छाती पर आ गिरी.. रिया की छातिया दबने से उसकी सिसकी निकल गयी.. एक पल के लिए तो वीरू का भी बुरा हाल हो गया.. पर उसने खुद को संभाल लिया," सॉरी रिया.. मैने जानबूझ कर ऐसा नही किया.. बस ऐसे ही.. सॉरी.."
वीरू सॉरी पर सॉरी बोलता जा रहा था और यहाँ रिया के मॅन में कुच्छ अलग ही तरह का पुलाव पक रहा था," पहले राज ने भी प्रिया को 'सॉरी' ही बोला था...
"क्या मतलब" वीरू ने पालती मारकर कंबल जांघों पर डाल लिया और बाकी रिया के पास ही रहने दिया...
"कुच्छ नही.. !" रिया के तन बदन में उथल पुथल मची हुई थी.. ," मुझे बुरा नही लगा.. बहुत अच्च्छा लगा.. तुम्हारी छाती से लिपट कर..." प्रिया के पास से पहले ही गरम होकर आई रिया ने बेबाक तरीके से ये बात कहकर वीरू को अचरज में डाल दिया," एक बार और लग जाने दो ना.. अपने सीने से!" रिया की आवाज़ में अजीब सी प्यास थी...
वीरू एकटक उसकी आँखों में देखता रहा.. वा भी निरंतर उसकी आँखों में देख रही थी.. जहाँ एक बरस से वो इस दिन के सपने देखती आ रही थी.. आज मिले मौके को शर्मकार गँवाना नही चाहती थी.. वैसे भी उसको यकीन था.. वीरू शायद ही कभी पहल करेगा....
"ऐसा क्या?" वीरू ने अपनी बात भी पूरी नही की और रिया को पकड़ कर अपनी बाहों में खींच लिया... कल रात से ही शायद वो भी तड़प ही रहा था..
वीरू के आगोश में इश्स तरह अचानक आ जाने पर रिया का पूरा बदन खिल सा गया.. या यूँ कहें की खुल सा गया.. वीरू के सीने से चिपकी उसकी छातियो में कसाव अचानक बढ़ने लगा.. नितंबों में और उनके आसपास अजीब सी थिरकन होने लगी.. पेट में गुदगुदी सी महसूस करती हुई रिया ने वीरू के कानो के पास होन्ट ले जाते हुए फुसफुसाया," आइ लव यू वीरू!"
इन्न शब्दों ने मानो वीरू के बढ़ते हॉंसलों को और पंख लगा दिए.. झट से वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में दबोचा और उसके होंठो को इतने प्यारे शब्दो के उच्चारण के लिए धन्यवाद के रूप में अपने होंठो का तोहफा दे दिया.. वीरू तो वीरू, खुद रिया को आज पहली बार अहसास हुआ की वो कितनी गरम है.. उत्तेजना के आकाश में विचरण कर रही कामना की डोरे से बँधी रिया का वो रूप देखते ही बनता था.. झट से उसने अपनी टाँगों को वीरू की कमर के आसपास बाँधा और उसकी गोद में बैठ गयी... दोनो साँप के जोड़े की तरह एक दूसरे से लिपटे हुए एक दूसरे को चूस रहे थे.. वीरू का लिंग उत्तेजना में फंफनता हुआ सलवार के उपर से ही रिया को एक दम सही जगह पर चुभने लगा.. कसमसाती हुई रिया ने मदहोशी में ही उसके लिंग को अंडरवेर के उपर से ही दबोचा और उसकी दिशा बदल दी.. शायद चुभन उस'से सहन नही हो रही थी...
वीरू ने अपने दोनो हाथ रिया की कमर पर जमा दिए और होंठो से रास्पान करते हुए ही उसको अपने अंदर समाहित करने की कोशिश करने लगा... अचानक वही हुआ जो पहली बार लड़की को अक्सर बहुत जल्दी हो जाता है.. सिर्फ़ होंठो ने ही उसके सारे बदन की प्यास और तड़प ख़तम कर दी और योनि में से रस उगलते समय उसने वीरू को जितना हो सकता था.. सख्ती से पकड़ लिया...
कुच्छ देर तक अजीब ढंग से लंबी लंबी साँसे लेने के बाद जब वो सामान्य हुई तो वीरू की छाती को कसकर अपने सीने पर रगड़ती हुई बोली," मज़ा आया?"
"घंटा!" उत्तेजना की आग में झुलस चुके वीरू के मुँह से उस समय यही निकला..," अब रुकने के लिए मत बोलना.. वरना मुझसे सहन नही होगा...
"क्या?.. क्या करोगे अब..?" रिया ने तृप्त हो चुकी आँखों से वीरू को प्यार से देखते हुए पूचछा..
"बताता हूँ.. दरवाजा लॉक कर दो...!"
"वो तो मैने पहले ही कर दिया था..." रिया ने मुस्कुराते हुए कहा...
"अच्च्छा.. इसका मतलब प्लान बना कर आई थी..." वीरू ने कहते हुए उसकी बाहें पकड़ी और बिस्तेर पर नीचे सीधा गिरा लिया... वीरू की दीवानगी के वो पल देखकर रिया को खुद पर नाज़ होने लगा और वो खिल खिलाकर हँसने लगी...
पर इस समय वीरू का ध्यान सिर्फ़ उसके मादक मांसल बदन पर था.. एक ही झटके में उसने रिया का कमीज़ और समीज़ दोनो उपर उठा दिया.. संतरों के आकर की दूधियाँ रंग की रिया की छातियाँ पलक झपकते ही अनावृत हो गयी.. रिया को शरम आ रही थी, पर बड़ी मिन्नतों से मिले यार को उसने आज खुली छ्छूट दे दी थी.. खुलकर खेलने के लिए... जैसे ही वीरू ने रिया के गुलाबी किशमिश के आकर के दानों को अपने मुँह में लेकर दाँतों से हल्का सा काटा.. रिया भी अपने दाँत भीच कर सिसक उठी.. उसकी अधखुली आँखों के सामने वीरू रिया के यौवन को इश्स तरह पी रहा था मानो बरसों से इनका प्यासा हो.. और आज मिला ये मौका पहली और आख़िरी बार हो.. वीरू ने उसके अंग अंग को चूमते चाट'ते हुए कब सलवार घुटनो से नीचे सरका कर निकाल दी.. रिया को अहसास तक नही हो पाया... अहसास तब हुआ जब वीरू का अत्यंत ठोस और मोटा लिंग उसके योनिद्वार से टकराकर फुफ्कारा..
"नही.. ये मत करो प्ल्स...!" रिया गिड़गिडाई..," बहुत दर्द होगा..." कहकर रिया अपने नितंबों को इधर उधर हिलाने लगी....
"मैने पहले ही कहा था.. अब भगवान के लिए 2 मिनिट चुप हो जाओ.." मिन्नत सी करते हुए वीरू ने अचानक उसकी टाँगों को उपर उठाया और संभालने का मौका मिलने से पहले ही अपने लिंग का सूपड़ा उसकी चिकनी योनि मे 'फ़च्च्चाक' की आवाज़ के साथ उतार दिया..
रिया को एक पल तो ऐसा लगा कि आज वो गयी.. दर्द इतना ज़्यादा हुआ था की उसकी साँस उसके हलक में ही अटक गयी.. पर वीरू को रोकना अब नामुमकिन था.. रिया की गर्दन और छातियो को चूमते चाट'ते उसने जल्द ही रिया की तड़प को हुल्‍के हुल्‍के तेज होती जा रही सिसकियों में बदल दिया... इसके साथ ही वीरू ने धीरे धीरे करके अपने शरीर का सारा दबाव अपने लिंग पर डालना शुरू कर दिया और लिंग अब तक अपना मुँह थोड़ा और खोल चुकी उसकी 2 बार चिकनी हो चुकी योनि में उतरता चला गया.. आनंद की अनुभूति मिलते ही रिया ने वीरू को अपने सीने से चिपका कर अपने नितंब उपर उठाकर हिलाने शुरू कर दिए... अब तक रिया की सिसकियाँ सुन सुन कर वीरू का हौंसला बुलंदियों तक जा पहुँचा था.. और उसने धक्कों की गति बहुत तेज कर दी... अब रिया उसका पूरा सहयोग कर रही थी .. अचानक वीरेंदर को लगा की अब रुकना मुश्किल है तो उसने रिया की कमर में हाथ डाल कर और तेज़ी से धक्के लगाने शुरू कर दिए... करीब 10 मिनिट ही हुए होंगे की वीरू को अपने लिंग से रस तेज़ झटकों के साथ निकलते हुए रिया के गर्भस्या को सींचता हुआ महसूस हुआ... वीरया की फुहार से धन्य सी हो गयी योनि ने भी प्रत्युत्तर में ढेर सारा रस उगल दिया... दोनो हाँफने लगे थे.. प्यार के इश्स खेल में मशगूल वीरू को अब जाकर अपने दर्द का अहसास हुआ और अपनी टाँग को सीधा करते हुए वो एक तरफ लुढ़क गया.... पर रिया को शायद अब एक पल की भी दूरी मंजूर नही थी.. वह तुरंत पलट कर उसकी छाती पर अपनी छातिया टीका कर लेट गयी.. और आँखें बंद कर ली.... वीरू प्यार से रिया के बालों में हाथ फिराने लगा....



साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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`·.¸.·´ -- raj

















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