Monday, June 14, 2010

सेक्सी कहानिया ननद ने खेली होली--12

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ननद ने खेली होली--12


दोनों हाथों से मैने उनकी कलाइयां कस के पकड के आंगन के फर्श पे दबा रखी थीं। उनकी दो चार चुडीयां भी टूट गईं पर मैने पकड ढीली नहीं की।

आप कहें की रंग...तो ननद भाभी की होली में रंग की जरूरत थोडे ही पडती है। ननदोई जी ने मेरी चूंचीयों पे इतना रंग लगा रखा था....एक नहीं कई ननदों पे लगाने के लिये काफी था।

अपनी कडी कडी रंग लगी चूंचिया मैं उनकी गदराई चूंचीयों पे रगड रही थी। कस के अपनी छाती से उनकी छाती दबाती हुई बोली, क्यों ननदोई जी ऐसे ही दबाते हैं क्या...'

अरे बगल में ही तो हैं दबवा के देख लो ना...सच में बडा मजा आयेगा...जवाब में नीचे से छाती रगडते हुये बोली।

मैने अपनी जांघों के बीच उनकी जांघे दबा रखी थीं और चुत से कस के उनकी चूत पे घिस्से मार मार के....हम दोनों की ही हालत खराब हो रही थी

ऐसी मस्त चूत है ननद रानी एक बार मेरे सैंया से मरवा के देख लो ना...मैने फिर चिढाया.।

वही गलती मैने की ...ज्यादा बोलने की मेरी हाथ की पकड थोडी ढीली हुई और उन्होने एक घुटबे से मेरे पेट में धक्का दिया और छुडा के ...मैं नीचे। लेकिन नीचे से भी मैं बेकाबू थी...मेरे हाथ उनकी भरी भरी चूंचीयां दबा रहे थे...मेरे होंठ कच कचा के निपल काट रहे थे। बस ये समझिये की आप औरतों की ड्ब्लू ड्ब्लू ई देख रहे हों....बस फरक यही था की दोनों बिना कपडों के हो, होली के रंगों से सराबोर और एक से एक गालियां दे रही हों।

थोडी देर में मैं उपर थी...उनके सीने पे चढी एक हाथ गले पे और दूसरा चूत पे ...दो उंगलियां अंदर।

ननद रानी मैं बोर्डिंग में थी और रैगिंग के जमाने से ले के...लास्ट इयर तक लेस्बियन रेस्लिंग क्वीन थी....बोली मैं।

अरे तो मैं भी कुछ कम नहीं थी..चल ऐन होली के दिन मुकाबला होगा आंगन में...और कोई बीच में नहीं आयेगा....मंजूर...उन्होने चैलेंज दिया।

मंजूर ....लेकिन हारने वाली को मुहल्ले के हर मर्द से चुदाना होगा जो होली में आयेगा...मैने दांव बताया।

एकदम ...हंस के उन्होने दांव कबूल कर लिया।

सब मतलब सब....आंख नचा के मैं बोली।

समझती हूं मैं ...छिनाल तेरी चालाकी लेकिन एक बार जुबान दे दी तो दे दी....मंजूर है।

लुढकते हुये हम लोग एक दम नन्दोइ जी के बगल में आ गये थे लेकिन मेरा ध्यान तो नीचे पडी ननद रानी पे था।

अरे भाभी ....मुहल्ले के मर्दों की चिंता बाद में करना जरा ये बगल में तो....इनका तो इलाज करो।

रंगों से लिपटे नन्दोई जी आंगन में...लेटे और उनका बित्ते भर का खडा लंड हवा में लोह की खंभे की तरह..।

अरे एक दम सलह्ज नहीं करेगी तो कौन करेगी....बीबी तो साले से फंस गयी है.....क्यों ननदोई जी और उठ के मैं सीधे टांगे फैला के उनके लंड के उपर...खुला मोटा सुपाडा मेरी चूत को रगड्ता हुआ...थोडा सा दबा के मैने आधा सुपाडा अंदर किया फिर रुक गई...और चूत से कस कस के सुपाडा भींचने लगी।

नन्दोई जी की आंखॊ में न जाने कब की भूख पूरी होने की खुशी साफ झलक रही थी। उन्होने कच कचा के मेरे उभार पकड लिये और बोले अब आयेगा मजा ससुराल की होली का।

एक दम नन्दूई जी कह के मैने उनके दोनों कंधे पकड के कस के धक्का मारा और आधे से ज्यादा लंड, मेरी चूत में रगडता, घिसता....अंदर पैबस्त हो गया।

क्यों मजा आ रहा है....मेरे मर्द से चुदवाने में....बगल में ध्यान से देख रही लाली ने पूछा।

अरे आपके मर्द कहां...मेरे नन्दोइ हैं..हां वैसे मैं अपने मर्द को भी नन्दोइ बनाने को तैयार हूं.क्यों नन्दोइ जी हो जाए इस होली में एक दिन बद के.....मैं इनके सैंया के साथ और ये मेरे सैंया के साथ ....अगल बगल।

एक दम मुझको मंजूर है कह के कस के उन्होने मेरी चूंचियां दबा के जोर से नीचे धक्का दिया।

क्या जोर था उनके हाथों में जिस तरह पूरी ताकत से वो मेरी चूंचीयां भींच रहे थे मसल रहे थे....और लंड भी इतना कडा और मस्त....लेकिन मैने और आग लगाई,

अरे ननदोई जी क्या मेरी ननद की ननद की चूत समझ रखी है....अपनी छोटी बहन हेमा की....अरे लडकियों की चुदाई और एक औरत की चुदाइ में जमीन आसमान का फर्क है।

अच्छा बताता हूं तुझे और एक झटके में उन्होने मुझे नीचे कर दिया...मेरी जांघे फैला के वो करारा धक्का दिया की मुझे दिन में भी तारे नज्रर आ गये।

क्यों आया मजा भाभी, लाली बोली,

उंह कुछ खास नहीं, ननद रानी....एक बार जब तुम मेरे सैंयां का लंड घोंट लोगी ना तो पता चलेगा, मर्द का लंड क्या होता है...मैने और मिर्चें लगाईं।

फिर तो एक हाथ से उन्होने मेरी क्लिट दूसरे से एक निपल पिंच करने शुरु किये...और दूसरा निपल मुंह में...क्या मस्त चुसाइ कर रहे थे नन्दोइ और साथ में इंजन के पिस्टन की तरह...मूसल अंदर बाहर।

हां अब लग रहा है की नन्दोइ जी को बचपन से उनकी मां बहनों ने अच्छी तरह ट्रेन किया है...हां हां...ओह....मेरे मुंह से मजे से सिसकियां निकल रही थीं।

अरी बहनचोद मां तक पहुंच गई अब बताता हूं....तेरी चूत को चोद चोद के भॊसडा ना बना दिया ...ऐसा झाडुंगा की हफ्ते भर तक सडका टपकता रहेगा,,,और फिर मेरए दोनों पैरों को मोड के दुहरा कर दिया और पैरों को एक दम सटा के...,मेरी कसी चूत और संकरी हो गई...और उसमें उनका मूसल जैसा लंड...दोनो भरे भरे चूतडों को पकड वो करारा धक्का दिया की चोट सीधे बच्चे दानी पे लगी।
अरे तेरी छिनाल मां के गुन नहीं गाउंगी तो किसके गाउंगी...ना जाने मेरी ननद की सासु जी ने किस घुड साल में गधों की गली में जा जा के चुदवाया होगा की ये गधे घोडे के लंड वाला लडका हुआ, जो चोद चोद के मेरी छिनाल ननदों को...ओह काटो नहीं...नन्दोई जी ने कस के मेरे गदराये जोबन पे दांत गडा दिये थे।

ले ले..अरे अभी तो सलहज रानी तुम्हारी चूत चोद रहा हूं...फिर तेरी गांड मारुंगा फिर तेरे इन मस्त मम्मों के बीच ...हचक हचके के चोदते नन्दोइ जी बोले।

मुझे बहोत मजा आ रहा था....एक तो ५-६ दिन के उपवास के बाद आज चूत को भोजन मिल रहा था और फिर नन्दोइ बेचारे पहले तो बीबी के डर के मारे भीगी बिल्ली बन रहे थे और अब जब एक बार मैने उन्हे वश में कर लिया तो....उन्ही के सामने इस तरह...हचक के चोद रहे थे..।

अरे चोदो ना नंदोई जी चूत चोदो गांड मारो....आज मेरी इस गरमागरम चूत को अपने हलब्बी लंड से चोद दो....मैं अपनी कसी चूत कस के उनके लंड पे भींच रही थी, चूंचियां उनके सीने से रगड रही थी...।

तब तक हर हर....बाल्टी से हरे रंग की धार...पूरी की पूरी बाल्टी....मेरी चूंचियों पे ..।

अचानक मैने देखा, गुड्डी नहीं दिख रही थी...चारो ओर मैने और नजर घुमाइ....मेरे सैंया जी लापता थे....तो इसका मतलब भाई बहन...मौके का फायदा उठाया जा रहा था। चार बार चूत चुद चुकी थी...लेकिन मन नहीं भरा था...मेरी असली ननद थी...और मौका भी तो होली का था।

मैं ननदोई जी के नीचे दबी थी और वो हचक हचक के चोद रहे थे। साथ में मौके का फायदा उठा के लाली, मेरी बडी ननद, आंगन में बह रहे रंग को उठा उठा के मेरी चूंचीयों पे लगा रही थीं, फिर हाथ में लाल रंग कस के लगा के उन्होने मेरी चूचीयों पे पोत दिया। मैं भी हंस हंस के पुतवाती रही। और जैसे ही वो हटीं, मैने कस के जीत को अपनी बांहों में भींच लिया और मेरे रसीले जुबना पे लगा रंग ननदोई जी के सीने पे, दोनों पैरों को मैने उनके कमर पे भींच लिया और कस क्स के लिपट के अपनी देह का सारा रंग उनकी देह में...साथ में मेरी चूत कस के उनकी पिचकारी को भींच रही थी, चूत लंड पे रगड रही थी और जम के गालियां दे रही थी।

अरी मेरे ननद के ननद के यार, बहन के भंडुए अपने मायके में बहनों के साथ बहोत होली खेली होगी उस हेमा छिनाल की उभरती चूंचियों पे बहोत रंग लगाया होगा लेकिन ऐसी नहीं खेली होगी आंगन में खुल के।

एक दम सलहज जी तभी तो होली में ससुराल आया हूं.....और उन्होने वो हचक के चोदना शुरु किया...आधे घंटे के बाद ही वो झडे और उस समय तक हम दोनों लथ पथ हो गये थे। पहले तो दूबे भाभी के यहां ननद जी के साथ होली और फिर घर लौट के नन्दोई जी के साथ होली..।

जब मेरी जान में जान आई तो मेरी जांघों के बीच गाढा थक्केदार वीर्य बह रहा था और नन्दोई जी बगल में बैठे थे।

लाली चलने के लिये कहने लगी तो मैं नन्दोइ जी की ओर इशारा कर के कहने लगी और इनके कपडे ...वो तो चिथडे हो गये हैं।

तब तक गुड्डी भी आ गई। वो बोली अरे जीजू ऐसे ही चल चलेंगें।

अरे तू तो जानती नहीं, तेरे जीजू इतने चिकने हैं, और इस हालत में....रास्ते में एक से एक लौंडे बाज रहते हैं...मार मार के इनकी गांड इतनी चौडी कर देंगे की जितनी इनकी मां का भॊंसडा भी नहीं होगा। हां जो हमारे पास होगा वही तो पहनायेंगे।

एक दम भाभी, गुड्डी मेरा मतलब समझ के बोली। और फिर थोडी देर में उनकी बीबी का पेटीकोट, मेरी साडी और ब्रा....साथ में पूरा सिंगार, हाथों में चूडियां,नेल पालिश, पैरों में महावर, पायल और बिछुये, होंठों पे लिप स्टिक, माथे पे बिंदी, गले में माला...साथ में हम सब गा भी रहे थे..।

रसिया को नार बनाउंगी, रसिया को,

सिर पे उढाय सुरंग रंग चुनरी गले में माल पहनाउंगी, रसिया को।

हां ब्लाउज स्पेशल था.। सफेद और उस पे रंग से उनकी छोटी बहन हेमा के रेट लिखे हुये थे, चार आने चूंची दबवाने के, आठ आने एक बार चुद्ववाने के पांच रुपये में रात भर...और ढेर सारी गालियां

तब तक वो भी आ गये थे और बोले की अरे शाम हो गई है चाय वाय हो जाय। मैने गुड्डी को इशारा किया और थोडी ही देर में वो चाय और पकौडे ले आये।

थोडी देर में पकौडों ने असर दिखाना शुरु किया...किसी को नहीं मालूम था सिवाय मेरे और गुड्डी के।

और होली हो नाच गाना ना हो।








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