Sunday, June 20, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --26

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गर्ल्स स्कूल--27
हेल्लो दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा एक बार फिर आप सब की पसंदीदा कहानी गिर्ल्स स्कूल के आगे के पार्ट लेकर हाजिर हूँ दोस्तों माफ़ी चाहता हूँ की इस कहानी को बहूत लेट कम्प्लीट कर रहा हूँ
दोस्तों आप जानते ही हैं इस कहानी मैं किरदार कुछ ज्यादा ही हैं इस लिए हर किरदार के साथ कहानी को आगे बढाने से कहानी बहूत ज्यादा बड़ी हो गयी है इस लिए इस कहानी को आपके लिए
लाने मैं ये देरी हो गयी थी आशा है अब आप मुझसे नाराज नहीं होंगे पार्ट २६ मैं आपने पढ़ा था नीरू अपने वासु का ब्रह्मचर्य तोड़ने की पूरी तेयारी कर रही थी इसलिए उसने किसी तरह वासु को पटा भी लिया था और वासु नीरू को योग सिखाने के लिए तेयार भी हो गया था अब आप आगे की कहानी का मजा लीजिये
नीरू बेड पर इश्स तरह बाहें फैलाकर आँखें बंद किए लेटी थी मानो वा सुहाग की सेज़ पर पलकें बिच्छायें अपने पिया की खातिर खुद को न्योचछवर करने के लिए लेटी हो.... उसकी छातियाँ छातियों की तरह नही बल्कि शिकार को ललचाने के लिए डाले गये अमृत कलश हों, जिनको देखने मात्र से ही शिकार उन्न नायाब 'अमृत पात्रों' में अमृत ढ़हूँढने को बेताब होकर उन्न पर टूट पड़े और जाने अंजाने उन्न घाटियों की भूल भुलैया में ही खोकर रह जाए, हमेशा के लिए..

ये वासू का ब्रहंचर्या ही था जो वो अभी तक अपने आप पर काबू रख पा रहा था, कोई और होता तो.. इंतजार नही करता; इजाज़त तक नही लेता और नीरू 'नारी' बन जाती.. कन्या से," नीरू! अब भी दर्द हो रहा है क्या?"
नीरू ने आँखें नही खोली; एक लंबी सी साँस लेकर वासू के ब्रह्म्चर्य को डिगाने की कोशिश करते हुए अपने सीने में अजीब सी हलचल पैदा की," हां सर!"
"लो चाय पी लो... ठीक हो जाएगा..!" वासू एक बार नीरू के मच्हलीनुमा बदन को और एक बार अपने ईष्ट देव को याद कर रहा था.
"सर; उठा तक नही जा रहा... क्या करूँ!" नीरू ने मादक आह भरकर कहा.
अब तक यौवन सुख से अंजान वासू को अपनी प्रेम पुजारीन की आमंत्रानपुराण आह, असहनीया दर्द से पीड़ित लड़की का बिलखना लगा.. हां दर्द तो था.. पर पेट में नही.. कहीं और!
"च.. चाय तो पीनी ही पड़ेगी.. नी..." नाभि से नीचे के कटाव को देखकर जिंदगी में पहली बार वासू की ज़ुबान फिसल गयी," वरना.. पीड़ा कम कैसे होगी..!"
नीरू कुच्छ ना बोली.. चुप चाप पेट दर्द की नौटंकी करती रही....
वासू ने एक बार फिर हनुमान जी को देखा, उसको हनुमान जी क्रोधित दिखाई दिए.. वासू को लगा जैसे भगवान ने उनके मंन की दुविधा को भाँप लिया है और अपने हाथों में उठाए पहाड़ को उस पर फैंकने ही वाले हैं....

"हे प्रभु.. क्या करूँ..?" वासू की एक आँख अपने ईष्ट देव को और दूसरी उसकी हसरतों को जवान करने वाली अप्रतिम सुंदरी को यहाँ वहाँ से झाँक रही थी...

कहते हैं आवश्यकता आविसकार की जननी है.. वासू अपने छ्होटे से मंदिर की और गये और हनुमान जी की मूर्ति के आगे एक दूसरी मूर्ति लगा दी... जै श्री कृष्णा!

नीरू की तरफ चलते हुए एक बार फिर वासू ने पलट कर देखा, श्री कृशन जी हौले हौले मुश्कुरा रहे थे, मानो कह रहे हों.. वासू तू करम कर दे; फल की चिंता मत कर..

इश्स बार वासू ने जैसे ही बेड पर बल खाए लेटी नवयोयोवाना को देखा, उसने झटका सा खाया.. प्रेमावेग का.. औरत आदमी को कही का नही छ्चोड़ती.. उसको अपना कुच्छ कुच्छ देकर, उसका सब कुच्छ ले लेती है...," नीरू!"
"आ सर.. मैं उठ नही सकती.. बहुत दर्द हो रहा है.." नीरू ने भी जैसे कसम खा ली थी...
"मेरे पास एक बाम है.. पीड़ा हरने वाली...... एम्म मैं... मालिश कर दूं?" वासू की जान निकल गयी थी.. ये छ्होटी सी बात कहते हुए..
नीरू एक बार और 'आह' कहना चाहती थी पर उसके मुँह से कुच्छ और ही निकला," हाययई..." और वो चाहती ही क्या थी.. नीरू के बदन में झुरजुरी सी उठी और उसको पॅंटी के अंदर से कुच्छ रिश'ता हुआ सा महसूस हुआ...
"कर दूँ क्या.. नीरू.. ठीक हो जाओगी...!" वासू विश्वामित्रा तापश्या छ्चोड़ लंगोटी फैंकने को तत्पर हो उठा था...

"हूंम्म!" नीरू अपनी झिझक और कसक छिपाने के लिए आँखें बंद किए बैठी रही....," कर दो.... सर!"

वासू लेटी हुई नीरू के कातिल उतार चढ़ाव को देखकर पागल सा हो गया था.... ,"सच में.. कर दूँ ना... माअलिश!"
नीरू के मॅन में आया अपनी टी-शर्ट को उपर चढ़ा कर वासू को बता ही दे की वो उस 'मालिश' के लिए कितने दीनो से तड़प रही है.. पर अभी वा सिर्फ़ सोच ही सकती थी.. पहल करने की हिम्मत सब लड़कियों में कहाँ होती है.. वो भी कुँवारी लड़कियों में........

अब तक वासू भी ख़यालों ही ख़यालों में इश्स कदर लाचार हो चुका था की इजाज़त के बिना ही अपनी अलमारी से पता नही किस मर्ज की शीशी उठाई और बेड पर जाकर नीरू के उदर (पेट) के साथ बैठ गया....

अपने करम और फल के ताने बने में उलझा हुआ वासू एक नज़र निहारने के बाद नीरू के नंगे पेट को सहलाने को बेकरार हो उठा.. नीरू के मंन में इश्स'से भी कही आगे बढ़ जाने की व्याकुल'ता थी. ताकि वह बिना हिचक उस अति-शक्तिशाली शास्त्री को अपना सब कुच्छ सौंप कर उसका सब कुच्छ हमेशा के लिए अपना कर सके.

वासू ने अपने काँपते हाथों से नीरू की टी-शर्ट के निचले किनारे को पकड़ा, दिल किया और उपर उठा कर पहली दफ़ा अपने आपको काम-ज्ञान का बोध करा सके. पर उसकी हिम्मत ना हुई," कहाँ दर्द है नीरू?"
नीरू ने बिना कुच्छ कहे सुने अपना हाथ वासू के हाथ से थोडा उपर रख दिया और आँखें बंद किए हुए ही अपनी गर्दन दूसरी और घुमा ली. नाभि से करीब 4 इंच ऊपर नीरू की उंगली रखी थी, इसका मतलब था की टी-शर्ट को वहाँ तक उठाना ही पड़ेगा.. 'प्यार' से मलम लगाने के लिए.
"आ.. टी-शर्ट थोड़ी उपर उठानी पड़ेगी? क्या मैं उठा दूँ..." वासू ऐसे पूच्छ रहा था जैसे कोई कारीगर गाड़ी की मररमत करते समय कुच्छ 'जुगाड़' फिट करने से पहले मलिक की इजाज़त ले रहा हो.. कहीं ऐसा ना हो बाद में लेने के देने पड़ जायें...
नीरू के चेहरे पर शर्म और हया की लाली तेर गयी.. वो अंदर ही अंदर जितनी खुश थी, उसका अंदाज़ा वासू जैसा नादान खिलाड़ी नही लगा पाया.. नीरू ने अपना हाथ उठा कर वापस पीछे खींच लिया, बिना कुच्छ कहे.. सीने का उभार अपनी सर्वाधिक सुंदर अवस्था में पुनः: आ गया.
वासू अब कहाँ तक काबू रखता; टी-शर्ट का सिरा फिर से पकड़ा और उस कमसिन बाला के हसीन बदन के उस भाग को अनावृत करता चला गया, जहाँ पर वह दर्द बता रही थी.. वासू के दिल की धड़कन नीरू के लोचदार पेट के सामने आने के साथ ही बढ़ने लगी.. कुछ और भी आसचर्यजनक ढंग से बढ़ता जा रहा था. वासू के भोले भले 'यन्त्र' का आकर....

नीरू के मक्खन जैसे मुलायम और चिकने पेट पर फिसल रहे वासू के हाथों में प्रथम नारी स्पर्श की स्वर्गिक अनुभूति के कारण कंपन स्वाभाविक था. लगभग ऐसा ही कंपन नीरू के अंग अंग से उत्पन्न हो रहा था. नीरू की साँसे मादक ढंग से तेज होने लगी थी.. साँसों के साथ ही उसकी छातियों का तेज़ी से उपर नीचे होना वासू को नीचे तक हिला गया. अनार-दाने आसचर्यजनक ढंग से सख़्त होकर समीज़ और कमीज़ को भेदने के लिए तत्पर दिखाई देने लगे.. किंचित कोमल छातियों में जाने कहाँ से प्रेम रस आ भरा... कमीज़ के उपर से ही उत्तेजित चुचियों का मचलना सोने पर सुहागे का काम कर रहा था. नीरू ने हया की चादर में लिप'टे लिपटे ही एक हुल्की सी आह भरी और अपने चेहरे को दोनो हाथों से ढक लिया...
वासू सदैव मानता था की नारी नरक का द्वार है.. पर इश्स नरक की अग्नि में इतना आनंद आता होगा ये उसको कदापि अहसास नही था. लहर्दार पेट पर फिसलती हुई उसकी उंगलियाँ अब रह रह कर नीरू की छ्चातियों के निचले भाग को स्पर्श करने लगी थी.... यही कारण था की नीरू अपने होशो-हवस भूल कर सिसकियाँ लेने लगी थी....
"दर्द कहाँ है.. नीरू?" वासू उसकी नीयत जान'ने के इरादे से बोला..
नीरू कुच्छ ना बोल पाई.. उसको कहाँ मालूम था ' ये इश्क़ नही आसान...

वासू ने दूसरे हाथ से नीरू के चेहरे पर रखे हाथ को पकड़ कर अपनी और खींच लिया," बताओ ना.. दर्द कहाँ है?"

नीरू की आँखें बंद थी, पर शायद उसके दिल के अरमान को खुलकर बताने के लिए उसका हाथ ही काफ़ी था.. वासू के हाथ से फिसल कर उसका हाथ नाभि से कहीं नीचे जाकर ठहर गया.. उफफफफफ्फ़!

अँधा क्या चाहे; दो आँखें! वासू सचमुच उस हसीन बेलगाम जवानी को अपने पहलू में सिमटा पाकर अँधा हो गया था! जहाँ पर नीरू ने अपना हाथ रखकर दर्द बताया था, वहाँ पहुँचने के लिए वासू जैसे भोले भले नादान को जाने क्या क्या नही करना पड़ता होगा; जाने कितना समय लग जाता होगा और वासू को...!

मंज़िल वासू से चंद इंच की दूरी पर ही थी.. रास्ते में कोई रुकावट भी ना थी; पर जाने क्यूँ वासू की साँसे उपर नीचे होने लगी.. इतना बहक जाने के बावजूद भी वो केवल अपने होंठों पर लंपट जीभ फेर कर रह गया,"अफ क्या करूँ?"

अपने प्रियतम को बदहवासी में ये सब बोलते देख नीरू आँखें खोले बिना ना रह सकी.. उसने देखा; वासू नज़रें फाडे लोवर के उपर से ही दिखाई दे रही उसकी योनि की फांकों को पागलों की तरह घूर रहा है जहाँ चंद मिनिट पहले ही नीरू ने हाथ रखा था, अपने दर्द की जड़ बताने के लिए.

इश्स कदर वासू को देखता पाकर नीरू शरम से दोहरी हो गयी और पलट कर उल्टी लेट गयी.. अब जो कुच्छ वासू की नज़रों के सामने आया वो तो पहले द्रिश्य से भी कहीं अधिक ख़तरनाक था. नीरू के लोवर का कपड़ा उसके मोटे नितंबों की गोलाइयों और कसाव का बखूबी बखान कर रहा था और उनके बीच में फँसा कपड़ा उनकी गहराई का. वासू से रोके ना रुका गया.... उसने अपना हाथ नीरू के नितंब पर रख दिया," क्या बात है नीरू? उल्टी क्यूँ हो गयी... पेट नही दबवाना क्या.?"

नीरू के मुँह से मादक सिसकारी निकलते निकलते बची.. वासू की उंगलियाँ उसके नितंबों की दरार के बीच में आ जमी थी और सकपकाहट में नीरू ने अपने नितंबों को भींच लिया; वासू की उंगलियाँ फाँसी की फाँसी रह गयी.. फिर ना वासू ने निकालने की कोशिश की.. और ना ही नीरू ने उन्हे आज़ाद करने की.. यूँही अपने चूतड़ भीछें हुए नीरू ने कामावेश में बिस्तेर की चदडार को अपने मुँह में भर लिया.... ताकि आवाज़ ना निकले!

अब किसी के मॅन में कोई संशय नही था.. दोनो लुट'ने को तैयार थे और दोनो ही लूटने को; जवानी के मज़े!

वासू ने हल्के हल्के अपनी उंगलियों से नीरू की दरार को कुरेदना शुरू कर दिया.. उसका दूसरा हाथ अब अपने तने खड़े हथियार को दुलार रहा था.

नीरू की हालत बुरी हो गयी.. उसके नितंब अपने आप उपर उठ'ते चले गये.. दरार खुल गयी और वासू की उंगलियाँ नीरू की योनि से जा टकराई..

कच्ची जवानी कब तक ठहरती, नीरू अचानक काँपने लगी और वासू की उंगलियाँ तक योनि रस से गीली हो गयी.. एक पल को नीरू अचानक उठी और वासू की जांघों में बैठकर उसकी छाती से चिपक गयी.. वासू के लिए ये पल असहनिय था... वासू का शेरू नीरू के नितंबों के बीचों बीच फनफना रहा था.. पर ऐसा सिर्फ़ कुच्छ पल ही रहा..
अचानक नीरू पीठ दिखा बैठी.. उसकी बेकरारी तो वैसे भी ख़तम हो ही चुकी थी.. जैसे ही उसको वासू के छुपे रुस्तम की वास्तविक लंबाई चौड़ाई का बोध अपनी योनि से च्छुअन के कारण हुआ, वह बिदक गयी और लगभग उच्छल कर पिछे हट गयी," सर! मुझे जाना है!"
"क्याअ?" वासू को जैसे ज़ोर का झटका धीरे से लगा,'ये क्या मज़ाक है?"

"मुझे देर हो रही है सर!" नीरू और कुच्छ ना बोली.. नज़रें झुकाए हुए ही अपनी किताबें उठाई और झेंपते हुए दरवाजे से बाहर निकल गयी..

वासू का हाथ वहीं था.. वह कभी अपने हाथ को तो कभी दरवाजे के बाहर बिछि चटाई को हक्का बक्का सा देखता रहा..

अचानक वासू मुस्कुराया और गुनगुनाने लगा," कब तक जवानी छुपाओगि रानी!"
उधर जिस दिन से निशा के कुंवारे जोबन के दर्शन का सौभाग्या दिनेश को प्राप्त हुआ था, वह तो खाना पीना ही भूल गया.. रात दिन, सोते जागते बस एक ही दृश्या उसकी आँखों के सामने तैरता रहता.. खिड़की में खड़ी होकर निशा द्वारा ललचाई आँखों से उसको हस्त मैथुन करते देखना और इरादतन उसको अपनी कमीज़ निकाल कर उनमें छिपि मद मस्त गोलाइयों का दर्शन करना. उसकी समझ में नही आया था कि क्यूँ ऐसा हुआ की निशा ने उसको रात्रिभोग का निमानतरण देकर भूखा ही रख दिया.. कुच्छ दिन तक रोज़ रात को उल्लू की तरह रात रात भर उसके घर की तरफ बैमौसम बरसात के इंतज़ार में घटूर'ने के बाद अब उसका सुरूर काफ़ी हद तक उतर गया था. पर उसकी एक तमन्ना अब भी बाकी थी.. बस एक बार निशा यूँही खिड़की में खड़ी होकर अपना जलवा फिर से दिखा दे.....

राकेश ने भी अब उसस्पर दादागिरी झाड़नी छ्चोड़कर लाड़ लपट्टन शुरू कर दी थी.. उसको डर था की कहीं दिनेश अकेला ही उस कमसिन काया को ना भोग बैठे.. आज कल राकेश का लगभग सारा दिन दिनेश के घर पर ही गुजर'ता रहता और गाँव के मनचलों की तमाम महफ़िलों से नदारद ही रहता.. गौरी उसको दूर की कौड़ी लगती थी; इसीलिए उस सौंदर्या प्रतिमा को वह अपने दिल-ओ-दिमाग़ से बेदखल कर चुका था. अब उसका निशाना सिर्फ़ और सिर्फ़ निशा थी.. वो भी तो उन्नीस की ही थी; गाँव की हुई तो क्या? और कहते हैं ना.. नमकीन का मज़ा तो नमकीन में ही आएगा.. भले ही राकेश के लिए ये अंगूर खट्टे हैं वाली बात थी.. पर ये सच था की अब वो भी हाथ धो कर निशा को ही चखने की फिराक में था..

"ओये; देख साले!" राकेश दिनेश के साथ उसके घर की छत पर ही बैठा था जब अचानक उसके मुँह से ये आवाज़ निकली मानो बिल्ली ने चूहा देख लिया हो.

दिनेश की नज़र एक पल भी बिना गँवायें निशा के घर की तरफ ही गयी... और आजकल वो इंतज़ार ही किसका करते थे..

निशा उपर वाले कमरे की खिड़की में खड़ी लोहे की सलाखों को पकड़े सूनी आँखों से उन्हे देख रही थी.. मानो कह रही हो,' मैं भी उतनी ही प्यासी हूँ.. मर्द की!'

दिनेश को पिच्छली बात याद हो आई.... उसने ये तक नही सोचा की राकेश उसके पास बैठा है.. बस आव देखा ना ताव, झट से अपने पॅंट की जीप खोली और निशा को देखते ही खड़ा हो चुका लंड बाहर निकाल कर उसकी बेकरारी का अहसास कराया.. निशा राकेश के सामने उसको ऐसा करते देख झेंप सी गयी और एकदम खिड़की से औझल हो गयी..

" अबे! बेहन के यार.. झंडा दिखाने की क्या ज़रूरत थी.. डरा दिया ना... बेचारी को" राकेश ने बड़ी मुश्किल से मिले चान्स को हाथ से जाते देख दिनेश को खा जाने वाली नज़रों से देखा...

" पर भाई.. मैने पहले भी तो....... यही दिखा कर उसको ललचाया था... वो ज़रूर तुम्हे देखकर हिचक गयी होगी...." दिनेश ने सफाई देने की कोशिश की...

राकेश ने उसके कंधे पर हल्का सा घूँसा दिया," हा हा! मैं तो उसका जेठ लगता हूँ ना.. मुझे देखकर हिचक्क्क... अबे फिर आ येगी बेहन्चोद"

दोनो का मुँह खुला का खुला रह गया... मर्द की प्यासी निशा इतनी आतुर हो चुकी थी की उसको इश्स'से भी कोई फ़र्क नही पड़ा की गाँव का सबसे ज़्यादा लौंडीबाज दिनेश के साथ बैठा है... उसका भाई एचएम करने के बाद मुंबई किसी होटेल में जाय्न कर चुका था और उसका चचेरा भाई भी निशा से थोड़ा बहुत सीख साख कर वापस चला गया था.. अब निशा की हालत भूखी शेरनी की तरह थी.. और वो इन्न दोनो को अपना शिकार समझ बैठी थी जो खुद उसका शिकार करने की फिराक में बैठे थे....

निशा जब दोबारा खिड़की पर आई तो जितनी भी दिनेश और राकेश को दिखाई दी.. जनम जात नंगी थी... भाई से प्यार का पहला पाठ पढ़ने वाली निशा से अब एक दिन के लिए भी मर्द की जुदाई सहन करना मुश्किल था.. इसी भूख ने उसके तमाम अंगों को और भी ज़्यादा नशीला बना दिया.. नित नये भंवरों की तलाश में.. गदराई हुई गोल गोल चुचियों ने अपना मुँह अब और उपर उठा लिया था... दोनो गोलाइयों पर तैरती चिकनाई पहले से भी ज़्यादा मादक अंदाज में उन्न दीवानो को लुभा रही थी.. दाने किंचित और बड़े हो गये थे.. जिनका लाल रंग अब घर दूर से भी दोनो की जान लेने के लिए काफ़ी था.. छातियाँ उभर'ने की वजह से अब उसका पतला पेट और ज़्यादा आकर्षक लग रहा था...

निशा ने बेहयाई का पर्दर्शन करते हुए दोनो गोलाइयों को अपने हाथों में समेटा और अपनी एक एक उंगली से मोती जैसे दानो को दबा दिया.....

"इसस्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्स्सस्स हाआआआआआ" राकेश ने अपने लंड को पॅंट के अंदर ही मसल डाला," कयामत है यार ये तो...... पूच्छ ना.. कब देगी?"

दिनेश उसकी बातों से अंजान यूयेसेस हर पल को अपनी आँखों के ज़रिए दिलो दिमाग़ में क़ैद करता हुआ लंड बाहर निकाल कर हाथों से उसको शांत करने की चेस्टा में लगा रहा...

निशा दिनेश के मोटे लंड को देखती हुई अपने एक हाथ से खुद की तृष्णा शांत करती हुई उन्न दोनो को अपनी स्प्रिंग की तरह उच्छल रही छातियों के कमनीया दृश्या का रसास्वादन करती रही... एका एक उसने अपने दोनो हाथों से खिड़की की सलाखों को कसकर पकड़ लिया.. और अपने दाँतों से सलाखों को काटने की कोशिश सी करने लगी.. उसकी जांघें योनि रस से तर हो गयी थी....

इश्स मनोरम द्रिश्य को हाथ से निकलता देख दिनेश की स्पीड भी बढ़ गयी और कुच्छ ही देर बाद एक जोरदार पिचकारी के साथ उसकी आँखें बंद हो गयी.. मानो अब और कुच्छ देखने की हसरत ही बाकी ना रही हो.....

राकेश का तो मसलते मसलते.. पॅंट में ही निकल गया....

कुच्छ ही देर बाद दिनेश के घर की तरफ पत्थर में लिपटी एक पर्ची आकर गिरी....

" कल में हिस्सार जा रही हूँ.... अपने अड्मिशन का पता करने........ 2 दिन के लिए!"

अगले दिन दोनो मुस्टंडे नहा धोकर गाँव के बाहर बस स्टॅंड पर खड़े बार बार उस गली को घूर रहे थे जिधर निशा का घर पड़ता था. इंतज़ार असहनीया था....
"भाई.. कहीं आज भी...?" दिनेश ने अपना संशय राकेश के सामने प्रकट किया.
"साले.. भूट्नी के! शुभ शुभ बोल.. आज अगर उस रंडी को झूला नही झूला
पाया तो तेरा खंबा काट दूँगा" राकेश ने इश्स अंदाज में दिनेश को दुतकारा मानो दिनेश निशा का दलाल हो और राकेश से पैसे अड्वान्स ले रखे हों.
"तू चिंता मत कर भाई.. दोनो ही उसको झूला झूलाएँगे.. एक साथ. बस एक बार आ जाए!" दिनेश ने पॅंट के अंदर लंबी साँसे ले रहे अपने हथोड़े जैसे मुँह वाले लंड को चेक किया. सब कुच्छ ठीक था...

कहते हैं इंतज़ार का फल मीठा होता है. दोनों के मुँह में एक साथ पानी आ गया. निशा जैसे ही चटख लाल रंग के घुटनो से नीचे तक के स्कर्ट और बदमाई रंग का स्लीव्ले कमीज़ पहने गली से आती दिखाई दी दोनो के चेहरे खिल उठे. लाल रंग की चुननी जो निशा के गदराये वक्षों के कंपन को ढके हुए थी, अगर सिर पर होती तो कोई भी उसको दुल्हन समझने की भूल कर सकता था.
निशा ने दोनो को तिरच्ची निगाहों से घायल किया और उनसे ज़रा आगे खड़ी होकर बस का इंतज़ार करने लगी. स्कर्ट के अंदर उसके नितंब बड़ी मुश्किल से आ पाए होंगे.. भारी भरकम हो चुके नितंबों में बड़ी मीठी सी थिरकन थी. लंबी छोटी दोनो नितंबों के बीच की कातिल दरार के बीचों बीच लटक रही थी. बस स्टॅंड पर खड़े सभी छ्होटे बड़ों की आँखों में उस हसीन कयामत को देख वासना के लाल डोरे तैरना स्वाभाविक था. पर दिनेश और राकेश आज बड़ी शराफ़त से पेश आ रहे तहे. हुस्न का ये लड्डू आज उन्ही के मुँह जो लगने वाला था.

बस के आते ही उन्न दो शरीफों को छ्चोड़ सभी में निशा के पिछे लगने की होड़ शुरू हो गयी. सीट ज़्यादातर पहले ही भरी हुई थी सो खड़ा तो सबको ही होना था पर आलम ये था की बस में खड़ा होने की प्रयाप्त जगह होने के बावजूद निशा के आगे पिछे धक्का मुक्की जारी थी. कुच्छ खुसकिस्मत थे जो निशा के गोरे बदन से अपने आपको घिसने में कामयाब हो गये. उनको घर जाकर अपना पानी निकालने लायक भरपूर खुराक मिल गयी.
सब मनचलों को तड़पाती हुई निशा भीड़ में से खुद को आज़ाद कर पिछे की तरफ जाकर खड़ी हो गयी.. दिनेश और राकेश आसचर्यजनक ढंग से अपनी सहनशीलता का परिचय देते हुए दूर खड़े उसको निहारते रहे..

कुच्छ देर बाद तीनों भिवानी बस-स्टॅंड पर थे. यहीं से हिसार के लिए बस मिलनी थी. निशा को भी अब लोक लाज का ज़्यादा भय नही रहा..

किसी भी जान पहचान वाले को आसपास ना पाकर राकेश और दिनेश का धैर्या जवाब दे गया. दोनो झट से निशा के पास पहुँच गये..
"हम भी तुम्हारे साथ हैं निशा रानी", राकेश ने धीरे से जुमला निशा की और उच्छाला.
निशा ने कोई जवाब नही दिया. मन ही मन मुश्कूराते हुए इठलाती हुई निशा दूसरी और देखने लगी. उसको क्या पता नही था की दोनो उसी के पीछे आए हैं. एक माँगा और दो मिले. निशा को उपर से नीचे तक गुदगुदी सी हो रही थी.. आज दो का मज़ा मिलेगा.. बारी बारी... उसको मालूम नही था की दोनो फक्कड़ उस्ताद इकट्ठे ही उसको नापने की तैयारी में आयें हैं.
"कहो तो टॅक्सी कर लें... कहाँ गर्मी में परेशान होंगे बस में." दिनेश काफ़ी देर से यही कहने की सोच रहा था जो अब जाकर उसके मुँह से निकला.
निशा ने एक पल सोचने जैसा मुँह बनाया पर कोई प्रतिक्रिया नही दी....
"क्या सोच रही हो जाने मंन? मेरे पास बहुत पैसे हैं.. ऐश करते चलेंगे.. तुम्हारे लिए ही झूठ बोल कर घर से लाया हूँ.. 2 दिन का फुल्तू ऐश का समान है मेरे पास... अगर मंजूर हो तो हम आगे आगे चलते हैं.. हमारे पिछे पिछे आ जाओ" राकेश ने निशा के नितंबों का साइज़ अपनी आँखों से मापते हुए दिनेश के प्लान पर अपनी मोहर लगा दी.. क्या माल थी निशा..
कोई जवाब ना मिलने पर भी पूरी उम्मीद के साथ दोनो बस-स्टॅंड से बाहर निकल गये.. कुच्छ देर विचार करने के बाद निशा को भी सलाह पसंद आ गयी..

अब तीनो बस-स्टॅंड के बाहर किसी टॅक्सी की तलाश में खड़े थे.. भिवानी जैसे शहर में यूँ सड़कों पर टेकसियाँ नही मिलती थी.. पर उनपर किस्मत कुच्छ ज़्यादा ही मेहरबान थी... अचानक उनके हाथ देने पर एक लंबी सी गाड़ी आकर उनके पास रुकी. 'टॅक्सी ड्राइवर' ने शीशा नीचे किया," हां?"
"हिस्सर चलोगे क्या? हम तीन सवारी हैं.. क्या लोगे...?" सवालों की बौच्हर सी निशा की तरफ से हुई थी जिसे "ड्राइवर" ने बीच में ही काट दिया...
"आपके साथ तो जहन्नुम में भी चलूँगा.. मॅम' शाब!.. इन्न दोनो को भी डाल लेंगे.. वैसे जो देना चाहो, दे सकती हो! बंदा अभी जवान है." कहते हुए उसने अपनी एक आँख दबा दी...
"ज़्यादा बकवास मत करो.. चलो आगे...!" कहकर राकेश ने आगे बढ़ने की सोची पर निशा तो जैसे उस 'लंबी टॅक्सी' पर फिदा हो गयी थी...," तुम सच में चलोगे?"
'ड्राइवर' ने अगली खिड़की खोल दी! निशा ने पलट कर दोनो की और देखा.. राकेश को लगा मौका आज भी हाथ से निकालने वाला है.. उसने पिच्छली खिड़की खोलने का इशारा 'ड्राइवर' को किया...
खिड़की खुलते ही दिनेश गाड़ी के अंदर जा बैठा... राकेश ने आगे बैठ रही निशा को लगभग ज़बरदस्ती करते हुए पिछे डाल दिया और खुद भी उसके बाईं और जा बैठा...
उसकी इश्स हरकत पर टॅक्सी ड्राइवर मुश्कुराए बिना ना रह सका.. उसके लिए समझना मुश्किल नही था की मामला कुच्छ गड़बड़
है...

जिस नवयुवक को वो तीनो टॅक्सी ड्राइवर समझने की भूल कर बैठे थे वो दर-असल हिसार में एक बड़ी कंपनी के मालिक का बेटा था.. राका! डील डौल में उन्न दोनो से अव्वाल तो था ही.. शकल सूरत भी लुभावनी थी.. निशा को वो ड्राइवर सच में ही प्यारा लगा होगा.. नही तो भला उसकी बातों का बुरा नही मानती क्या? वो तो आगे बैठने तक को तैयार हो गयी थी अगर राकेश उसे वापस ना खींचता तो.. खैर गाड़ी चल पड़ी थी....

मर्सिडीस को सड़क पर दौड़ते करीब 5 मिनिट हो चुके थे. दिनेश और राकेश निशा से चिपके बैठे थे. दिनेश से रहा ना गया और उसने अपना हाथ निशा की मांसल जाँघ पर हल्क से रख दिया. निशा इश्स हाथ की जाने कब से प्यासी थी. उसकी जांघों में अपने आप ही दूरी बन गयी...
"तो मॅम साब! कहाँ से आ रही हो आप?" राका को भी उसी समय बातों का सिलसिला शुरू करना था..
"लोहारू से!" निशा ने टाँगें अचानक वापस भीच ली...
"बड़े अजीब से लोग हैं वहाँ के.. एक बार जाना हुआ था.. खैर हिस्सार किसलिए जा रही हैं..?" राका ने दूसरा सवाल दागा.
"तुम चुपचाप गाड़ी चलाते रहो!" निशा के बोलने से पहले ही दिनेश ने खिज कर उसको कहा. वह चाहता था की हिस्सार तक पहुँचते पहुँचते निशा इतनी गरम हो जाए की कूछ कहे बिना ही उनके पिछे पिछे चल पड़े.. ये ड्राइवर अब उसको दूध में मक्खी लगने लगा था.....
"आपकी क्या प्राब्लम है भाई साहब.. शकल से इसके भाई तो कतई नही लगते...." राका मूड में लग रहा था.
"भाई होगा तू..... तेरी प्राब्लम क्या है.. चुपचाप गाड़ी चला ना...." दिनेश ने इतना ही बोला था की राकेश ने उसका कंधा दबा दिया....," कुच्छ नही भाई साहब.. इसके लिए मैं माफी माँगता हूँ.. वैसे ये अड्मिशन के लिए हिस्सार जा रही है..." राकेश वासू की तरह यहाँ कोई पंगा नही चाहता था.
"और तुम? ..... तुम किसलिए जा रहे हो.. लगता है तुम तो किसी स्कूल के पिच्छवाड़े से भी नही गुज़रे हो आज तक." राका ने टाइम पास जारी रखा....
"व्व..वो हुमको इसके मम्मी पापा ने साथ भेजा है.. हम इसके गाँव के हैं.." राकेश ने हड़बड़ाहट में जवाब दिया...
"यूँ बीच में बैठा कर... हूंम्म्मम" कह कर राका ज़ोर से हंस पड़ा...
निशा राका की इश्स बात पर बुरी तरह शर्मिंदा हो गयी. उसने दिनेश का हाथ अपनी जांघों से हटा दिया..
"तुम्हे इश्स'से क्या मतलब है... तुम्हे तो अपने किराए से मतलब होना चाहिए.." दिनेश बौखला गया था...
"सही कहते हो.. मुझे तो किराए से मतलब होना चाहिए... तो मिस...? ... दे रही हैं ना आप......... कीराआया!"
"निशा राका की इश्स द्वियार्थी बात का मतलब भाँप कर बुरी झेंप सी गयी... उसके गोल दूध जैसे गोरे चेहरे पर लाली सी झलकने लगी... पर वो बोली कुच्छ नही.

दिनेश ने एक बार फिर निशा को छ्छूने की कोशिश की पर उसने हाथ को एक तरफ झटक दिया. दिनेश तमतमा उठा.

गाड़ी हिस्सार के करीब ही थी... राका ने स्पीड कम करते हुए निशा से मुखातिब होकर कहा," अगर आपको ऐतराज ना हो.. मिस?... तो मुझे यहाँ 5 मिनिट का काम है.... इंतज़ार कर लेंगी क्या?"
"तुम हमें यहीं उतार दो... हम कोई और गाड़ी कर लेंगे..." दिनेश उस ड्राइवर से जल्द से जल्द पिछा छुड़ाना चाहता था...
"क्या कहती हो..?" राका ने दिनेश की बात को अनसुना करते हुए फिर निशा को टोका..
निशा ने एक बार गर्दन घुमा कर दोनो का इनकार वाला चेहरा देखा और नज़रअंदाज करते हुए राका से बोली," ठीक है.. हम इंतज़ार कर सकते हैं.. तुम अपना काम कर लो.." जाने क्यूँ निशा ने उसकी बात मान ली... राकेश और दिनेश को लगा.. इश्स बार भी वो हाथ मलते ना रह जायें.. पर मरते क्या ना करते.. चुप चाप मुँह बनाकर बैठे रहे.
"गुड!" कहते हुए राका ने गाड़ी बाई और घुमा दी

एक बड़ी सी फॅक्टरी के बाहर गाड़ी रुकते ही गेट्कीपर ने दरवाजा पूरा खोल दिया पर गाड़ी रुकी देखकर लगभग भागता हुआ पिच्छली सीट की तरफ दौड़ा.. लेकिन राका को ड्राइविंग सीट से उतरते देख अदद सल्यूट ठोंक कर कहा," क्या बात है साहब? ड्राइवर कहाँ गया?"
राका बिना कोई जवाब दिए तेज़ी से अंदर बढ़ गया...

माजरा तीनों की समझ में आ गया था.. अपनी ग़लती पर वो बुरी तरह शर्मिंदा थे...
"मुझे लगता है हमें यहाँ नही रुकना चाहिए.. इतने बड़े आदमी को ड्राइवर समझ लिया..." निशा से गाड़ी में बैठा ना रहा गया और वो गाड़ी से उतार कर रोड की तरफ चल दी....
"अरे मेम'शाब कहाँ जा रही हैं..."
"कुच्छ नही.. बस यहीं तक आना था" कहकर निशा ने अपनी चल तेज़ कर दी... ये देख राकेश और दिनेश की तो बान्छे खिल गयी.. दोनो उसके पिछे तेज़ी से बढ़ गये... चलते चलते निशा ने बोर्ड पर लिखा एक मोबाइल नंबर. रट लिया... ताकि कम से कम सॉरी तो बोल सके........

बाकी का 5 मिनिट का रास्ता उन्होने 'ऑटो' से तय किया.... हिस्सार उतरने के बाद समस्या ये थी की कहाँ चला जाए..
"तुम दोनो प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो... मैं अब अपनी सहेली के घर जाउन्गि.."
"ये क्या कह रही हो.... ऐसा मज़ाक तो आज तक किसी ने भी नही किया... प्लीज़ एक घंटे के लिए ही हमारे साथ चलो!" दिनेश ठगा सा रह गया था...
"पर मेरा मूड बिल्कुल खराब है..... फिर कभी......" निशा को उनसे पिंड छुड़ाना मुश्किल हो रहा था...
"प्लीज़.. सिर्फ़ एक बार हमारे साथ चलो... हम कुच्छ नही करेंगे... बस हमें करीब से देखने देना....." कहते हुए राकेश गिड़गिदा रहा था...
निशा को उनकी दया भी आ रही थी और अपने बदन की भी...," प्रोमिसे?"
"100 बटा 100 प्रोमिसे यार... तुम चल कर तो देखो एक बार.. " राकेश ने दिनेश की तरफ हौले से आँख मारी....
"ठीक है.. पर जाएँगे कहाँ...?"
"होटेल में चलेंगे रानी... इश्स सहर के सबसे बड़े होटेल में...."
"तीनो... एक साथ?"

"उसकी तुम परवाह मत करो.. मेरे पास प्लान है..." राकेश और दिनेश निशा को राज़ी होते देख मॅन ही मॅन गदगद हो उठे...
"ठीक है.. पर आधे घंटे से ज़्यादा नही रुकूंगी.."

"ये हुई ना बात" दिनेश ने कहा और एक ऑटो वाले को रोक कर विक्रांत होटेल चलने को कहा......

होटेल के पास पहुँच कर तीनो कुच्छ पल के लिए रुके...," दिनेश तुम बाद में आकर अलग कमरा बुक कर लेना.. मैं तुम्हे फोने करके हमारा रूम नंबर. बता दूँगा.... ठीक है ना भाई" दिनेश ने पहली बार राकेश के मुँह से भाई शब्द सुना था... ना चाहते हुए भी उसको हामी भरनी पड़ी....

अगली 10 मिनिट में राकेश और निशा होटेल के डेलक्स रूम में था... अब राकेश को दिनेश का इंतज़ार व्यर्थ लग रहा था.. उसने अपना फोन स्विच्ड ऑफ कर दिया.....
आगे की कहानी जानने के लिए पार्ट २7 का इन्तजार करे
आपका दोस्त राज शर्मा



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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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