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गर्ल्स स्कूल--27
"चलो.. जल्दी से कपड़े निकालो!" राकेश अब तक अपनी शर्ट निकाल चुका था और पॅंट खोलने की तैयारी में था....
"दिनेश को तो आ जाने दो... बार बार....." निशा ने बेड पर बैठते हुए कहा...
"साले की मा की चूत... पैसे में लगाउ.. और मज़े वो लूटे.. जल्दी करो मेरी जान.. मैने फोन ऑफ कर दिया है.. अब वो भूट्नी का बाहर ही इंतज़ार करेगा.. उसको देनी हो तो गाँव में दे देना... चल जल्दी दिखा अपना माल!" राकेश ने अपनी पॅंट निकाल दी थी.. उसका लंड कच्च्चे को फाड़ने को बेताब था!
निशा राकेश की गाली गलोच सुनकर हक्की बक्की रह गयी," तुम ऐसे क्यूँ बोल रहे हो.. उस बेचारे को भी बुला लो ना" दरअसल निशा ने आज तक दिनेश के जितना मोटा लंड देखा नही था.. और वो उसको करीब से देखना चाहती थी...
"बेचारे की बेहन चोदुन्गा आज.. चल अब निकाल भी दे.. क्यूँ टाइम वेस्ट कर रही है..."
"नही.. उसके आने से पहले मैं कपड़े नही निकालूंगी.." डरी सहमी सी निशा ने हूल्का सा विरोध दिखाने की चेस्टा की.....
"अब ये तेरे बाप का घर नही है साली... तुझे पता नही कितना इंतज़ार किया है तेरा... अब जल्दी से कपड़े निकाल कर कुतिया बन जा.. नही तो खींच कर निकाल दूँगा.. आए हाए.. मुझे तो यकीन ही नही था.. तेरी चूत मारने को मिल जाएगी..." राकेश ने अपना लंड अंडरवेर से बाहर निकाल कर लहराया...
" पर तुमने तो सिर्फ़ देखने की बात की थी.. ज़बरदस्ती करोगे तो मैं शोर मचा दूँगी..." निशा बुरी तरह काँप उठी...
"शोर मचाएगी साली बहनचोड़... चल मचा शोर.. सारा होटेल पहले तुझे चोदेगा और फिर पूछेगा.. यहाँ क्या अपनी मा चुदवाने आई थी..." कहते हुए राकेश ने निशा के पास जाकर एक हाथ उसकी कमर के पिछे लगाया और दूसरी हाथ से उसकी चूची को बड़ी मुश्किल से अपने हाथ में पकड़ कर मसल दिया..," क्या मस्त चूचियाँ हैं तेरी... सारी रात इनका रस पियुंगा जाने मॅन.."
"रूको! मैं निकालती हूँ... पर प्लीज़ आधे घंटे में मुझे यहाँ से जाने देना..." निशा की आँखों में आँसू आ गये थे.. जवानी के जोश में वो ये क्या कर बैठी थी...
"2000 रुपए मैने तेरी नंगी मूर्ति देखने के लिए खर्च नही किए.. तेरी चूत का मुरब्बा निकालना है सारी रात.. तुझे कपड़ों में देखकर ही जाने कितनी बार अपना लंड ठंडा किया है मैने.. आज तो जी भर कर चोदुन्गा तुझे मेरी रानी.." कहते हुए राकेश ने स्कर्ट के अंदर हाथ डाल कर उसकी जांघों तक पहुँचा दिया.. निशा को झुरजुरी सी आई और उसने आनमने मंन से अपनी योनि को जांघें भींच कर च्छूपा लिया...
"खोल रही है की फाड़ डालूं तेरे कपड़ों को.. देख प्यार से मान जा वरना....."
निशा समझ गयी थी.. ऐसे या वैसे आज तो राकेश से मरवा कर ही पीचछा छूटेगा.. फिर अब तक वो पिच्छली बातों को भूल कर अपने रंग में आना शुरू हो गयी तही....," एक मिनिट रूको तो सही.. निकालती हूँ ना..."
"ना.. अब निकालूँगा मैं.. तू तो मेरे लौदे से खेल" कह कर राकेश ने अपना लंड निशा के हाथ में पकड़ा दिया...
हालाँकि राकेश का हथियार दिनेश वाले के सामने कहीं नही ठहरता था पर जो दो आज तक उसने चखे थे, उनसे तो बड़ा ही था... निशा ने लंड को अपनी मुट्ही में भींचने की कोशिश की पर वो पूरा नही समा पाया.. निशा जाने क्या सोचते हुए राकेश के लंड के सुपादे को निहारने लगी...
"सोच क्या रही है मेरी जान... अपने होंठों से चखकर देख इसको.... आइस्क्रीम की तरह चूस और केले की तरह खा.. बड़ा मज़ा आएगा." कहते हुए राकेश ने एक पल को उसके हाथ उपर कराए और कमीज़ खींच कर निकाल दिया..
समीज़ के अंदर से नज़र आ रही चूचियों का आकर और उनके बीच का कटाव इतना मनमोहक था की कुच्छ पल के लिए राकेश उनको अपलक निहारता रहा.. दूध जैसा सफेद रंग और कसे हुए ढाँचे में ढले सेब के आकर की तनी तनी चुचियाँ किसी को भी पागल बना'ने के लिए काफ़ी थी.. चुचियों पर गुलाबी दाने समीज़ के अंदर से ही अपनी हुल्की झलक दिखाकर राकेश को अपने होश खोने पर मजबूर कर रहे थे," तू तो इंपोर्टेड आइटम लगती है रे!" राकेश ने समीज़ के अंदर हाथ डाल कर निशा की छ्चातियों की गर्मी और कसाव मापते हुए सिसकारी सी लेकर कहा.. निशा ने फिर से उसके तने हुए लंड को अपनी मुट्ही में लेने की कोशिश शुरू कर दी..
"एक मिनिट शांति तो कर ले रंडी..." और राकेश ने उसका समीज़ भी निकाल कर हवा में उच्छल दिया...
समीज़ की क़ैद से आज़ाद होते ही निशा का यौवन इतरा उठा... दोनो चुचियाँ पेंडुलम की तरह हिल हिल कर अपनी मस्ती का प्रदर्शन करने लगी.. राकेश ने झट से निशा को धक्का देकर बेड पर लिटा दिया.. लेकिन उनकी उँचाई पहले की तरह यथावत रही.. हां छेड़ छाड़ से दानो की उँचाई और मोटाई ज़रूर बढ़ गयी और वो पहले से भी ज़्यादा गुलाबी हो उठे.....
राकेश ने निशा के निप्पल्स को अपनी उंगलियों में पकड़ा और धीरे धीरे मसल्ने लगा.. निशा की आँखें बंद हो गयी और वो सिसकारी भरने लगी.. उसके हाथ एक बार फिर बिना इजाज़त लिए राकेश के लंड तक जा पहुँचे...
"खेली खाई लगती है साली... तुझमें तो ज़रा भी शरम नही है.... ये ले..." राकेश उसकी छाती पर चढ़ बैठा और अपना तननाया हुआ लंड उसके गुलाबी होंठों पर रख दिया.. निशा तो मदहोश थी ही.. अपने होंठो को खोलकर उसने तीसरे मर्द के लंड पर अपनी जीभ फिराई... थोड़ी तडी ज़बरदस्ती नॉर्मल सेक्स से कहीं ज़्यादा मज़ा देती है...
शुपाडे पर जीभ लगते ही राकेश सीत्कार उठा... इतनी सुंदर लड़की उसके लंड को चूसेगी... राकेश पागल सा हो गया और एक झटके के साथ आधा लंड निशा के हुलक में उतार दिया...
निशा इसके लिए तैयार नही थी.. वह गला रुकने की वजह से अचानक बेचैन सी हो गयी और अपने हाथ हिलाकर रहम की भीख माँगी.. शुक्रा है राकेश ने लंड वापस खींच लिया...
"मेरी जान निकल जाती.. गले में फँस गया था"
"ऐसी जान नही निकलती रानी... अँग्रेज़ी फिल्मों में देखा नही क्या.. तुमने तो आधा ही अंदर लिया है.. वो तो पूरा का पूरा गले में उतार लेती हैं.." कहकर राकेश उसकी छाती से नीचे उतर गया और दोनो हाथों में उसकी चूचियाँ पकड़ कर अपनी जीभ से बारी बारी चाटने लगा...
आनंद में पागल सी हो चुकी निशा बिस्तेर की चादर को अपने हाथो में पकड़ कर खींचने लगी........ कमरा मादक सिसकारियों से भर उठा....
उधर एक घंटा बीत चूकने पर भी राकेश का फोन ना आने पर दिनेश गुस्से से लाल हो उठा... "साला दगाबाज.. फोन ऑफ कर दिया... अब क्या करूँ.. मैं तो उस'से पैसे लेने भी भूल गया की रूम लेकर खुद ही ढूँढ लेता सालों को..." सोचते हुए गुस्से में तमतमा रहे दिनेश ने बदला लेने की नीयत से 100 नो. डाइयल कर दिया और पोलीस को होटेल में चल रही मस्ती की सूचना दे दी.......
गुलाबी रंगत में रंगते जा रहे निशा की चुचियों के निप्पल्स मादक करारी मस्ती से सराबोरे होते जा रहे थे.. अब सहन करना ना इसके वश में था ना उसमें.. राकेश ने एक निप्पल को अपने दाँतों के बीच दबाया जैसे काट ही डाला...
"ऊऊऊईीईई मुंम्म्ममय्ययी!" दर्द निशा के लिए असहनीया था....
निशा की इश्स तड़प भारी चीख ने राकेश की मस्ती और बढ़ा दी... उसने पूरी जीभ बाहर निकाल कर अपने हाथो में दबोचे हुए स्तनों पर घुमानी शुरू कर दी.. थूक से गीली होकर चुचियाँ चमकने लगी.. निशा आधी आँखें बंद किए हुए बदहवास सी होकर अपने हाथों को मर्द की प्यासी अपनी योनि तक पहुँचने
की कोशिश करने लगी.. राकेश को अब जाकर ख़याल आया की उपर लटक रहे प्रेम फलों में ही वो इतना मदहोश हो गया की नीचे का खजाना याद तक नही रहा.. राकेश अपनी ग़लती का अहसास होते ही निशा की चूचियों को छ्चोड़ उसकी सलवार के नाडे की और लपका पर दोस्तो हाए री बाद किस्मती....
दरवाजे पर बेल बजी...
एक पल को राकेश चौका फिर ये सोच कर की वेटर आया होगा फिर से निशा पर टूट पड़ा.....
"खाट खाट खाट...." अबकी बार दरवाजे पर ज़ोर से दस्तक दी गयी....
"तुम ऐसे ही लेटी रहो मेरी जान.. मैं अभी उसको सबक सिखाता हूँ.." राकेश उठ कर खड़ा हुआ,"कौन है बे भूट्नी के... यहाँ दोबारा खाट खाट की तो साले तेरी मा....." राकेश को आगे बोलने का मौका ही नही मिला.. दरवाजा खोलते ही सामने दो पोलीस वालों और पोलीस वाली को देख कर उसका पेशाब नीचे उतर आया..," आअ.. वुवू.. मैं.... "
दो स्टार वाले पोलीस जी ने उसकी बातों पर ध्यान ना देकर पहले अंदर बैठी नायाब कली के हुष्ण का दीदार करने की सोची.. उसने राकेश की छाती में धक्का सा मारा और एक पल में अंदर घुस गया..
पोलीस आई देख निशा थर थर काँपने लगी.. पहले उसका ध्यान अपनी सलवार पर गया.. वो अभी तक उसकी 'चिड़िया' को ढके हुए थी.. हड़बड़ाहट में एक हाथ से अपने दोनो रसीले फलों को ढकने की नाकाम कोशिश करते हुए उसने इधर उधर से अपने कपड़े उठाने की कोशिश करी.. पर वो तो फर्श पर बिखरे पड़े थे...
निशा का दूसरा हाथ भी इज़्ज़त बचाने में पहले हाथ की मदद करने पहुँच गया... पर तब तक जितना उस सब-इनस्पेक्टर ने देख लिया था.... उसको पागल बना'ने के लिए काफ़ी था....
"क्या तीतर मारा है साले...!" सब.इनस्पेक्टर. ने होंठों पर जीभ फिराते हुए कहा.....
पोलीस में भी अच्छे इंसान होते हैं.. निशा को पहली बार तब पता चला जब उस नौ-जवान पोलीस वाली ने अंदर आकर फर्श पर बिखरे कपड़े उठाए और निशा की तरफ उच्छाल कर उसके आगे खड़ी हो गयी," कपड़े पहन लो!" हालाँकि उसके स्वर में कोई हमदर्दि नही थी....
"एस.एच.ओ. साहब को तुम्ही मिली थी क्या.. मेरे साथ राइड पर भेजने के लिए... देख भी नही सकता क्या जी भर कर...." एस.आइ. गुस्से से तमतमा गया...
"दिस ईज़ माइ जॉब सर... यू प्लीज़ हॅंडल दट गे!" अब भी उस पोलीस वाली की आवाज़ उतनी ही निर्दयी थी...
"ठीक है भगवान! लगता है सारी उमरा तुमसे ही गुज़ारा करना पड़ेगा..." एस.आइ. ने खिसियया हुआ सा मज़ाक किया...
"नीलम के चेहरे पर एक पल के लिए मुस्कान बिखरी," इधर उधर मुँह मारना था तो फेरे क्यूँ लिए थे..." फिर निशा की तरफ मुखातिब हुई," चलो.. थाने चलते हैं...."
"नही.. मेडम.. प्लीज़.... वो.. ये मुझे ज़बरदस्ती लेकर आया थ..." निशा ने कांपति आवाज़ में अपनी सफाई दी...
"ज़्यादा बकवास की ना तो एक झापड़ दूँगी खींच के... शरम नही आती ऐसे होटलों में गुलच्छर्रे उड़ाते हुए... अरे तुम जैसी लड़कियों ने ही तो नारी के नाम पर ऐसा कलंक लगाया है की उनको सिर्फ़ भोग की वस्तु समझा जाता है... क्या सोच कर जी लेती हो तुम... हां? शरीर की हवस क्या तुम्हारी खुद की और तुम्हारे घर वालों की इज़्ज़त से बढ़कर है..? चली आती हो मर्द के हाथों का खिलौना बन'ने... इससके अलावा भी कुच्छ सोचा है या नही जिंदगी में....?" नीलम तमतमा उठी थी...
"बस भी करो अब.. बच्ची है... तुम तो कहीं भी भसंबाज़ी शुरू कर देती हो...!"
"तुम चुप करो जी! कल को अगर हमारे बच्च्चे ऐसा करेंगे.. तो भी क्या तुम यही कह कर संतोष कर लोगे... मैं इन्नके पेरेंट्स को बुलाए बगैर इनको नही छ्चोड़ूँगी... चल खड़ी हो जल्दी....." नीलम ने हाथ से पकड़ कर निशा को खींचा....
बेचारे पातिदेव के पास बोलने को कुच्छ बचा ही नही था.. राकेश को कॉलर से पकड़ा और बाहर खींच ले गया....
निशा बुरी तरह बिलख रही थी.... ये क्या हो गया उस'से? घर वालों को कैसे मुँह दिखाएगी...
नीलम लगभग घसीट'ती हुई उसको बाहर ले गयी.
"हूंम्म... कहाँ की रहने वाली हो?" नीलम अभी तक गुस्से में थी...
"ज्ज्ज..जी वो...." निशा गाँव का नाम लेने से हिचक रही थी....
"मैं तुम्हे ऐसे ही छ्चोड़ने की ग़लती नही करने वाली हूँ... किसी ना किसी को तो तुम्हे बुलाना ही पड़ेगा.. समझी..! बोलो किसको बुलवाना है...?"
"प्लीज़ मेडम.. मैं आइन्दा कभी ऐसा नही करूँगी.. मुझे माफ़ कर दो.. मैं अंधी हो गयी थी..." निशा बुरी तरह गिडगिडाने लगी...
"एक झापड़ दिया ना तो सारी आक्टिंग भूल जाएगी.. ये सब वादे अपने घर वालों के सामने करना.. हो सकता है उन्हे तुम पर विस्वास हो जाए... जल्दी बताओ.. कोई नंबर. बताओ मैं डाइयल करती हूँ..." नीलम पर निशा के गिड़गिदाने का कोई प्रभाव नही पड़ा...
"नंबर. की बात सुनते ही निशा के दिमाग़ में वो मोबाइल नंबर. कौंध गया जो उसने राका की फॅक्टरी के बाहर बोर्ड पर पढ़ा था.. आगे की कुच्छ ना सोचते हुए उसने नीलम को वही नो. बता दिया....
नीलम ने नंबर. डाइयल किया.. खुसकिस्मती से नंबर. राका का ही था..," हेलो!"
"दिस ईज़ एस.आइ. नीलम स्पीकिंग फ्रॉम सिटी थाना हिस्सर.. हियर ईज़ वन ऑफ उर रिलेटिव सिट्टिंग व्ड मी.. प्लीज़ कम सून अदरवाइज़ शी माइट बे इन ट्रबल.."
"वॉट नॉनसेन्स यू आर टॉकिंग? हू ईज़ शी...?" राका अचंभे में पड़ गया...
"उम्म्म्म.." कहते हुए नीलम ने निशा से पूचछा..," तुम्हारा नाम क्या है लड़की?"
"ज्ज्जिई.. मैं बात कर लूँ..." निशा ने अनुनायपूर्वक नीलम की और देखा..
"ओ.के..." फिर फोन पर राका से मुखातिब हुई," आस्क हर..!" और फोन निशा को दे दिया..
सब कुच्छ अच्च्छा ही हो रहा था.. नीलम के लिए बाहर से आवाज़ आई और वो उठ कर बाहर चली गयी...
"हेलो सर.. म्माई वही लड़की हूँ.. जो दो लड़कों के साथ आपकी गाड़ी में बैठकर आई थी... प्लीज़ मुझे बचा लीजिए सर.. वरना मैं मर जाउन्गि...." निशा धीरे से गिड़गिडाई...
राका को माजरा समझते देर ना लगी... कार
में ही वो उनकी हरकतों से काफ़ी कुच्छ समझ गया था," पर तुम्हे मेरा नंबर. कहाँ से मिला?"
"वो मैं बाद में बता दूँगी.. प्लीज़ सर आप आ जाइए.."
राका ने बिना कुच्छ कहे फोने डिसकनेक्ट कर दिया...
निशा रो पड़ी... शायद कोई उम्मीद नही थी....
"हां... आ रहा है क्या कोई.." करीब 4 मिनिट बाद नीलम अंदर आई...
निशा ने यूँही हां में सिर हिला दिया... और बिलख पड़ी....
"अगर तुम्हे पता है की ये बातें इतनी शर्मिंदगी की हैं तो पहले कभी क्यूँ नही सोचा..... अब अगर में. तुम्हे यूँही छ्चोड़ देती तो तुम 2-4 दिन में ही सब कुच्छ भूल जाती... उम्मीद करती हूँ की आइन्दा तुम ऐसा काम नही करोगी.... कितनी देर
मे आ रहे हैं वो... क्या लगते हैं तुम्हारे?"
निशा कुच्छ ना बोली.. बस आँसू टपकाती रही..... नीलम ने भी जान'ने में ज़्यादा दिलचस्पी नही दिखाई....
और कमाल हो गया.... करीब आधे घंटे बाद वही चमचमाती हुई गाड़ी थाने के बाहर आकर रुकी जिसमें निशा सुबह बैठकर आई थी.
लगभग सारा स्टाफ ही राका को जानता था.. लोकल सेलेब्रिटी जो थे... एस.एच.ओ. साहब ने उनसे हाथ मिलाया और पूचछा.. "कैसे आना हुआ भाई साहब!"
राका उनका हाथ पकड़े पकड़े ही उनके रेस्ट रूम में चला गया....," ये लड़की जो आपकी कस्टडी में है.. मेरी दूर की जान पहचान वाली है.. उसको छ्चोड़ देंगे प्लीज़!"
एस.एच.ओ. भी कोई कच्चा खिलाड़ी तो था नही.. समझता था की कौनसी दूर की जान पहचान हो सकती है.. पर पंगा कौन ले; हुल्के से राका का हाथ दबाया," अरे फोन कर दिया होता भाई साहब... हमें क्या पता था..... और सुनायिये क्या लेंगे..?"
"थॅंक्स.. बट अभी ज़रा जल्दी में हूँ... फिर कभी.." राका नज़रें चुरा रहा था.. जाने थानेदार क्या सोचता होगा...
"नो प्राब्लम.. आप लड़की को लेकर जा सकते हैं... कहो तो लड़के की थुकाइ करवा दूं...." थानेदार ने मस्के लगाने की कोशिश की...
"नही प्लीज़... हमारे जाने के बाद उनको छ्चोड़ देना... बाकी जैसे तुम चाहो... अब चलूं?"
"ओके.. बाइ.. कभी काम पड़े तो याद करना भाई साहब......."
"बाइ.. नाइस टू मीट यू!" कहकर राका बाहर निकला तो निशा भी उसके पिछे पिछे आ गयी.. बिना कहे ही आगे वाली खिड़की खोली और राका के पास जा बैठी.. वह समझ नही पा रही थी की उसके अहसान का बदला कैसे चुकाए......
"अब क्या है? अब कहीं और छ्चोड़ कर आना है क्या?" राका ने रूखे स्वर में उत्तर दिया....
निशा फफक फफ्ख कर रो पड़ी.... राका ने कुच्छ पल उसको निहारा और फिर गाड़ी स्टार्ट करके दौड़ा दी........
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
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