Tuesday, June 22, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --57

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --57

हेल्लो दोस्तों मैं यानिआप्का दोस्त राज शर्मा पार्ट 57 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मजा लीजिये

"क्या है?" वाणी की कोहनी अपने पेट में लगते ही मनु उच्छल पड़ा.. करीब 15 मिनिट से वो दोनो साथ साथ ही बैठे थे, पर चुपचाप!
"क्या है क्या? मैने क्या बोला है?" वाणी ने मनु को घूरते हुए कहा.. तभी वासू उनके पास से गुजरा और दोनो शांत हो गये.. कुच्छ ही पल बाद बस की लाइट्स ऑफ हो गयी. वो दोनो तब तक चुपचाप ही बैठे रहे जब तक वासू वापस पिछे नही चला गया!
उसके जाने के बाद मनु बोला," कोहनी क्यूँ मारी मुझे?"
"अच्च्छा! एक तो बैठने के लिए सीट दे दी.. उपर से नखरे दिखा रहे हो.. मेरी तो आदत है.. नींद में हाथ पैर चलाने की..." वाणी ने धीरे से कहा..
"ठीक है.. मैं पिछे चला जाता हूँ.. अमित के पास" कह कर मनु जैसे ही उठने लगा, वाणी ने उसकी शर्ट पकड़ कर वापस खींच लिया.. ज़रा सा भी प्रतिरोध ना करते हुए मनु वापस सीट पर जम गया, मानो वो भी नाटक ही कर रहा हो.. उठने का!
"अब क्या है?" मनु ने वापस बैठते ही मंद मंद मुस्कुराते हुए वाणी से सवाल किया..
"चुपचाप यहीं बैठे रहो.. समझे ना! मुझे पता है तुम्हे वहाँ जाने की क्यूँ लगी है..?" शायद वाणी सच में ही गुस्सा थी, अब की बार..
"तुम तो पागल हो..!" मनु वाणी की और देखकर मुस्कुराने लगा.. हालाँकि अंधेरे में चेहरे सॉफ नज़र नही आ रहे थे.. पर चेहरे के भाव तो पढ़े ही जा सकते थे..
"तुम्हे हँसी आ रही है? म्मै.. तुम्हारा सिर फोड़ दूँगी.. चलो एक बार.. तुम्हे तो में अच्छि तरह देख लूँगी..." वाणी ने भूंभूनाते हुए मनु की तरफ घूरा...
"पर तुम नाराज़ क्यूँ हो? बताओ तो सही.. मैने किया क्या है ऐसा...?" मनु ने फिर से मुस्कुराते हुए वाणी की भावनाओ की खिल्ली उड़ाई...
" मुझे नही करनी तुमसे बात.. जाओ जहाँ जाना है, मुझे पता है तुम किसके साथ बैठना चाहते हो!" अपने मीठे गुस्से का असर मनु पर ना होता देख वाणी बिदक कर रुन्वसि सी हो गयी...
मनु ने अपना हाथ वाणी की तरफ लेजाकार उसके कंधे के पास उसकी बाजू पर रख दिया.. वाणी को मानो असीम सुख की अनुभूति हुई.. इश्स बेबाक स्पर्श से.. उसने अपनी आँखें बंद करते हुए अपनी गर्दन पिछे सीट पर टीका ली.. लेशमात्र भी प्रतिरोध ना करते हुए.. पर अभी भी वह चुपचाप थी!
"समझा करो यार प्ल्स!" मनु ने हौले से बुदबुडाया," आगे मानी लेटी है..."
"मैं तो नासमझ हूँ.. उसी को समझाओ जाकर.. छोटी वाली को, तुम्हे तो वहीं बैठना अच्च्छा लगता है ना!" वाणी ने बिगड़ते हुए मनु का हाथ अपने कंधे से झटक दिया..
"उस्स'से मुझे क्या मतलब है? और तुम ऐसी छ्होटी छ्होटी बातों को दिल पर क्यूँ लेती हो..? अब शांत भी हो जाओ, मानी सुन लेगी.. हम चल कर बात कर लेंगे ना!" मनु ने फिर से अपना हाथ वाणी के कंधे के पास उसकी कोमल गुदाज बाजू पर रख दिया..
"तब तो तुम्हे मानी नही दिखी जब पिछे बैठकर दाँत निकाल रहे थे.." वाणी ने मासूम सा अपना चेहरा मनु की और घुमा दिया...
"वो.. वो तो मैं अमित की बात पर हंस रहा था.. मैं तो किसी और को जानता भी नही..." मनु ने सफाई दी..
"तो जान'ना चाहते हो ना.. जान लेना.. मैं करवा दूँगी जान-पहचान; अब तो खुश हो?" वाणी के हर बोल के साथ उसका नया रंग झलक रहा था..
"तुम कहना क्या चाहती हो!" मनु खिन्न हो चला था...
" यही की जहाँ तुम खुश रह सको, वहीं रहो! मुझे कोई प्राब्लम नही है..पर तुमने मेरा हाथ क्यूँ पकड़ा था?" पता नही वाणी अपना बे-इंतहा प्यार मनु पर जताने के लिए कैसे कैसे तरीके आजमा रही थी..
"और अगर मैं कहूँ की मुझे तुम्हारे सिवाय कोई और हाथ पकड़'ना ही नही है तो?" कहते हुए मनु का हाथ वाणी की बाजू से फिसल कर उसकी कलाई के पास आकर ठहर गया.. वाणी के दिल पर बात सुनकर क्या बीती होगी, इसका अंदाज़ा उसके प्रत्युत्तर से लगाया जा सकता है..
" और अगर तुमने मुझे छ्चोड़ दिया तो? मैं तो मर ही जाउन्गि मनु!" कहते हुए वाणी ने अपने दूसरे हाथ से मनु का 'वो' हाथ कसकर पकड़ लिया...
"धात पगली.. तुम सोच भी नही सकती तुम कितनी प्यारी लगती हो मुझे.. मुझे क्या.. तुम तो सबको इतनी ही प्यारी लगती हो.. इसीलिए जब भी तुम मुझ पर गुस्सा हो जाती हो.. तो मैं डर जाता हूँ.. कहीं...?" मनु ने उसको अपनी वफ़ा पर विस्वास दिलाने की कोशिश की...
वाणी की आँखें अंधेरे में भी चमक उठी.. उसके चेहरे पर फिर से शरारती भाव आने में एक पल भी नही लगा...," पता है.. मैं कभी भी सच्ची में गुस्सा नही होती... तुम्हारे सामने जानबूझ कर नाटक करती हूँ.. गुस्सा होने का!" वाणी ने अपनी आँखें तरेरते हुए कहा...
"क्यूँ?" मनु ने शरारत और आस्चर्य की मिली जुली प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए उसके गालों पर चुटकी काट ली..
"उउउन्ह.. क्यूंकी मुझे मज़ा आता है हे हे.. जब भी मैं तुम पर गुस्सा होती हूँ.. तुम्हारी मोटी मोटी आँखें और फैल जाती हैं.. चेहरा बंदर जैसा हो जाता है.. और.. तब तुम मुझे बड़े प्यारे लगते हो.. हे हे हे!"
"अच्च्छा.. तुम्हे मैं बंदर दिखता हूँ.. चलो एक बार नैनीताल.. दिखता हूँ तुम्हे.."
"दिखा देना.. देख लूँगी.." वाणी ने बात अनायास ही कही थी.. पर देखने दिखाने की ये बात मनु को अनायास ही उसे बाथरूम में ले गयी.. जहाँ सौभाग्य से उसको 'वाणी' को देखने का स्वर्णिम अवसर प्राप्त हुआ था.. मनु के जज्बातों ने अंगड़ाई ली और वह शरारत पर उतर आया
"वाणी.. तुम्हे याद है वो बात.. मुझे तो ज्यों की त्यों याद है.. जैसे अभी भी तुम वैसे ही मेरे सामने खड़ी हो...
"कौनसी बात?" वाणी ने याद करने की कोशिश करते हुए पूछा...
"वही.. याद करो.... बात.." बोलते मनु की बात समझ में आते ही वाणी ने उसके मुँह पर अपना हाथ रखकर बीच में ही उसको रोक दिया," हूंम्म्म.. मेरा मज़ाक मत बनाओ!" और कहते ही वाणी ने शर्मकार दूसरी और मुँह कर लिया...
"अब बोलो, कौन है बंदर?" मनु ने शरारत से कहते हुए वाणी की कमर की बराबर में हाथ से हल्का सा स्पर्श किया.. और हाथ को वहीं पर जमा दिया.. उसकी चिकनी मखमली जांघों से थोड़ा सा उपर..
वाणी को झुरजुरी सी आ गयी.. मुँह दूसरी तरफ किए हुए ही उसने अपने हाथ से मनु का हाथ वहाँ से हटाने की कोशिश की.. पर मनु की पकड़ इतनी भी सख़्त नही थी की वाणी अगर दिल से कोशिश करती तो उसको वहाँ से हटा ना पाती.. हाथ नही हटा.. जाहिर सी बात है, वाणी की कोशिश कोशिश नही, महज झिझक थी...
कुछ देर तक अपनी उंगलियों से मनु के हाथ को सरकाने का बनावटी प्रयास करने के बाद वाणी ने अपनी उंगलियाँ वहीं पर मनु की उंगलियों में फँसा दी.. और दोनो की उंगलियों की पकड़ एक दूसरे पर कसने लगी....
मनु वाणी की सहमति जान कर थोड़ा उस तरफ सरक गया.. अब मनु की छाती का दायां हिस्सा वाणी की पीठ के बायें हिस्से से सटा हुआ था.. दोनो को ही एक दूसरे का शरीर तप्ता हुआ महसूस हो रहा था.. ये जवानी की गर्मी थी.. हाथ अब भी दोनो के एक दूसरे की उंगलियों में गुथे हुए थे...
"वाणी!" मनु ने सहसा उसके कान के पास उसको पुकारा...
"चुप!"
"क्या हुआ? फिर गुस्सा?" मनु ने फिर से उसके कानो में अपनी साँसों से गुदगुदी सी की...
"बोला ना चुप हो जाओ!" कहते हुए वाणी ने अपना भार मनु की छाती पर डाल दिया...
जाने कितनी ही देर वो यूँही बैठे रहे.. एक दूसरे से सटे हुए.. मनु से रहा ना गया.. उसकी मर्दानगी उसको ललकार्ने सी लगी.. अकड़ कर खड़ी हो गयी
"क्या सोच रही हो?" बात कहने के बहाने मनु ने वाणी के कानो से नीचे उसकी गर्दन से अपने होंठ छुआ दिए..
वाणी ने प्रत्युत्तर में अपनी सारे आवेगो को एक गहरी साँस के रूप में बाहर निकाल दिया.. उसको अपने शरीर में अकड़न सी महसूस होने लगी.. यहाँ तक की उसकी छातियो में भी कामुकता की बयार सी बहने लगी.. जो अब तेज़ी से उठने बैठने लगी थी..
"बोलो ना.. कुच्छ तो बोलो.." और इश्स बार मनु ने अपने होंठ, वहीं टीके रहने दिए.. वाणी की गर्दन पर..
असर कहाँ तक गया होगा.. आप समझ सकते हैं.. लेकिन इतना पक्का था कि वाणी ने अपनी जाँघ के उपर जाँघ चढ़ा ली..
"मनु!" एक लुंबी साँस छ्चोड़ते हुए वाणी बुदबुदाई..
"हां..?" मनु ने और कुच्छ ना कहा..
"तुम्हे.... तब कैसे लगा था..?" वाणी ने हिचकिचाते हुए पूचछा...
"कब?"
"चलो.. छ्चोड़ो.. अब कैसा लग रहा है?" वाणी बात को वर्तमान में ले आई...
"अजीब सा.. पर बहुत प्यारा.. मस्त!" कहते हुए मनु अपना हाथ सरका कर उसके पेट तक ले गया और वाणी को अपनी और खींच लिया.. उनके बीच बचा खुचा फासला भी ख़तम हो गया..
"मुझे भी.. आ!" मनु के अपनी और खींचे जाते हुए वाणी दोहरी सी होकर सिमट गयी..," मुझे गुदगुदी सी हो रही है..!"
वाणी ने बात कहने के लिए अपनी गर्दन घुमाई तो उसके गुलाबी पतले होन्ट अनायास ही मनु के होंठो से टकरा गये.. कुंवारे बदन थे.. दोनो सिहर उठे.. मनु के हाथ की सख्ती वाणी के पेट पर बढ़ती जा रही थी.. लगातार.. वाणी ने गुदज नितंब मनु की जांघों पर चढ़ बैठने को बेताब से लग रहे थे.. मनु नितंबों के बीच के खाईनुमा ख़ालीपन को अपनी जाँघ पर अब पूरी तरह से महसूस कर रहा था.. और नितंबों के मादक भराव को भी.. दोनो की साँसे उखाड़ने लगी थी...
"और क्या हो रहा है..? मनु ने कहते हुए अपना चेहरा वाणी के होंठो की तरफ उठा दिया.. ताकि इश्स बार वाणी जवाब दे तो उसके होंठो की मिठास को और भी गहराई
तक महसूस कर सके.. साथ ही उसने अपना हाथ भी थोड़ा उपर सरका दिया.. वाणी की कलात्मक गोलाइयाँ अब मनु के स्पर्श को तड़प रही थी.. बस कुच्छ इंच का ही फासला था...
"अया.. बोलो मत प्ल्स!" जैसे ही इश्स बार वाणी ने अपनी गर्दन घुमाई, मनु ने उसको और बोलने का मौका दिया ही नही.. उसके होंठ अब की बार तत्पर थे, वाणी के लबों का रसास्वादन करने को.. वाणी ने भी अब की बार अपने आप को वापस नही खींचा.. कुच्छ देर होंठ बाहर से ही एक दूसरे से सटे रहे.. फिर वाणी ने अपने होंठो को खोल मनु को रास्ता दे दिया.. मनु का नीचे वाला होंठ वाणी के होंठो के बीच फँस गया.. अजीब मिठास थी.. अजीब कशिश.. और अजीब नादानी... क्या जोड़ी थी..
वाणी ने मनु के होंठ को अपने होंठो के बीच यथासंभव कोमलता और सख्ती से लपेट लिया.. मनु का हाथ अपने आप ही वहाँ पहुँच गया, जहाँ वाणी के मादक उरोज कब से उसके द्वारा सहलाए जाने को बेताब थे... दोनो ही थरथरा उठे..
अब पिछे हटना ना-मुमकिन था...

अगर साथ वाली सीट पर बैठी प्रिया की हँसी ना छ्छूट गयी होती...
चौंक कर एकद्ूम दोनो एक दूसरे से अलग हो गये.. नवयौवन की बसंत पर असमय ही 'उस' नमकूल हँसी के पतझड़ का तुशारापट हो गया.. वाणी ने तो पलटकर देखा तक नही.. लज्जावाश दूसरी तरफ ही मुँह किए अपनी सीट के साथ कमर सटा कर बैठ गयी.. कुच्छ देर पहले ही हुए प्रेम-अनुभव की मिठास अब भी उसके रसीले होंटो पर मीठी मुस्कान के रूप में तेर रही थी... अंतहीन लज्जा को उनमें समेटे हुए....
मनु ने पलट कर देखा तो प्रिया ने शर्मकार अपना चेहरा दूसरी दिशा में घुमा लिया.. जिस ओर राज बैठा था!

"आबे, ये क्या था?" रोहन अचानक ही आसपास की घनी झाड़ियों से अपनी और कूद आए गिलहरी नुमा जानवर को देखकर उच्छल पड़ा.. जानवर के उच्छलने के अंदाज से यही प्रतीत हुआ की उसने उन्न पर हमला करने का प्रयास किया था... करीब 10 - 10 फीट की लंबी छलन्ग लगाता हुआ वो सड़क के दूसरी तरफ की झाड़ियों में खो गया....
दोनो 2 पल वहीं खड़े होकर उस अजीबोगरीब जानवर को आँखों से औझल होते देखते रहे.. और फिर से अपनी अंजान मंज़िल की और बढ़ चले...

"अफ.. कितना सन्नाटा है यहाँ? कहाँ ले आया यार...? यहाँ पर तो आदमी की जात भी नज़र नही आती... कितना डरावना सा लग रहा है सब कुच्छ.... यहाँ तुझे तेरी नीरू कहाँ से मिलेगी? ... देख मुझे तो लगता है कि सब तेरा वहाँ है.. क्यूँ बेवजह अपनी रात बर्बाद कर रहा है... और मेरी भी.." नितिन ने बोलते हुए रिवॉल्वेर निकाल कर अपने हाथ में ले ली..
"वहाँ नही है यार.. वो यहीं रहती है.. आसपास, देखना! कोशिश करेंगे तो सफलता ज़रूर मिलेगी.. वो अगर नही मिली तो मैं पागल हो जवँगा यार!" रोहन ने आगे चलते चलते ही बात कही...
नितिन बहुत अधिक चौकन्ना होकर चल रहा था.. चौकन्ना होना लाजिमी भी था.. जहाँ इश्स समय वो थे, उस जगह के आसपास कोई शहर या गाँव नही था.. दूर दूर तक कृत्रिम रोशनी का नामोनिशान तक नही था.. बस आधे चाँद और टिमटिमाते हुए तारों की हल्की फुल्की रोशनी ही थी जो उनको रास्ता दिखा रही थी.. रास्ता भी ऐसा जो ना होने के बराबर था.. कहीं उँचा, कहीं नीचा.. बीच बीच में गहरे गहरे गड्ढे.. इतने गहरे की ध्यान से ना चला जाए तो अचानक पूरा आदमी ही गायब हो जाए.. दोनो और करीब 4 - 4 फीट ऊँची झाड़ियाँ थी...
"अब रास्ता सॉफ होता तो गाड़ी या बाइक ही ले आते.. तुझे क्या लगता है.. यहाँ पर कोई इंसान रहता होगा.. और वो भी लड़की.. सच बताना, तुझे डर नही लग रहा, यहाँ का माहौल देख कर..." नितिन ने चलते चलते रोहन से सवाल किया...
"डर लग रहा है तभी तो तुम्हे लेकर आया हूँ.. नही तो मैं अकेले ही ना आ जाता.." रोहन ने जवाब दिया..और अचानक ही उच्छल पड़ा," नितिन देख.. आगे पक्की सड़क दिखाई दे रही है.. मैं ना कहता था.. हम ज़रूर कामयाब होंगे... आगे ज़रूर कोई बस्ती मिलेगी... देख लेना!"
"आबे बस्ती के बच्चे.. उस'से कोई ढंग का रास्ता भी तो पूच्छ सकता था तू.. यहाँ से क्यूँ लाया?" नितिन की आँखें भी आगे पिच्छले रास्ते के मुक़ाबले बेहतर सड़क देख कर चमक उठी....
"यार, क्या करूँ, जब यही एक रास्ता बताया उसने..." रोहन ने तेज़ी से चलना शुरू कर चुके नितिन के कदमों से कदम मिलते हुए कहा
"अजीब प्रेमिका है तेरी.. एक तो रात में मिलने की ज़िद करी और उपर से रास्ता ऐसा बताया.. चल देख.. लगता है हम पहुँचने ही वाले हैं.. उधर लाइट दिखाई दे रही है..." नितिन ने अपनी बाई तरफ इशारा करते हुए कहा....
दोनो बाई तरफ मुड़े ही थे की अचानक ठिठक गये..," यहाँ तो तालाब है..!" रोहन ने अपने कदम वापस खींचते हुए कहा....
"चल.. आगे से रास्ता होगा ज़रूर... !" नितिन ने रोहन से कहा और दोनो फिर से सीधे रास्ते पर चल पड़े....
आगे जाकर उनको एक पगडंडी सी बाई और जाती दिखाई दी.. दोनो ने आँखों ही आँखों में रास्ते पर सहमति जताई और उस और बढ़ चले...
"ओह तेरी मा की आँख.. यहाँ तो कीचड़ है..! देख कपड़ों का क्या हो गया... चल वापस चल.. ये रास्ता नही है.." मन ही मन नितिन उस लड़की को कोस रहा था जिसके प्यार में पागल रोहन अपने साथ साथ उसकी भी दुर्गति कर रहा था...
"यार, आधे रास्ते तो आ ही चुके हैं.. आगे चलकर तालाब में धो लेंगे पैर.. अब वो लाइट भी नज़दीक ही दिखाई दे रही है..." रोहन ने बेचारगी से नितिन को देखते हुए कहा...
"चल साले.. अगर लड़की नही मिली तो देख लेना फिर..." बड़बड़ाता हुआ नितिन फिर से रोहन के आगे आगे चलने लगा...
उसके बाद ज़्यादा देर उनको चलना नही पड़ा.. कुच्छ दूर और चलने पर वो एक सॉफ सुथरे रास्ते पर पहुँच गये.. पानी का 'वो' तालाब यहाँ तक भी फैला हुआ था.. दोनो ने वहाँ पानी में अपने पैर धोए और फिर से आगे बढ़ गये...
"यार, यहाँ गलियाँ तो दिखाई दे रही हैं.. पर घर कहाँ हैं.. ? क्या इश्स गाँव में वो एक ही घर है जहाँ लाइट जल रही है...?" नितिन ने हैरानी से रोहन की और देखा...
"मैने पूचछा नही यार.. क्या पता एक ही हो.. चल.. तू चलता रह!" रोहन ने खिसियाई हुई बिल्ली की तरह से बेतुका सा तर्क दिया और प्यार को पाने की उम्मीद में आगे बढ़ता रहा.. नितिन के साथ साथ..
बड़े ही विस्मयकारी अनुभव का सामना वो दोनो कर रहे थे.. काफ़ी देर तक चलने के बाद भी वो 'रोशनी' उनसे अभी भी उतना ही दूर लग रही थी.. उन्होने गलियाँ भी बदली, पर कुच्छ दूर चलते ही फिर से वो रोशनी ठीक उनके सामने आ जाती.. और फिर से उनको उसी रास्ते पर चलते रहने का अहसास होता...
"देख.. रोहन.. मुझे तो सब कुच्छ गड़बड़ लग रही है.. भला ऐसी जगह पर भी आजकल कोई घर बनता है.. 'कोई' लड़की सच में है ना...?" नितिन तक हार कर खड़ा हो गया...
"है ना भाई.. तू मेरा.. अरे.. देख बच्चा!" रोहन एक दम उच्छल पड़ा..

प्रिया की हँसी सुनकर राज भी जाग गया," क्या हुआ?"
"कुच्छ नही..." प्रिया झेंपटि हुई सी बोली...
"फिर भी.. हँसी क्यूँ? कुच्छ याद आ गया था क्या?" राज बैठकर सीधा हो गया और खिड़की के बाहर देखने की कोशिश करता हुआ बोला..
"हां.. वीरू और रिया खाना खाते हुए कैसे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे.. जब भी रिया वीरू की आँखों में देखती तो वो नज़रें झुका लेता था.. यही याद करके हँसी आ गयी थी.. कितना शर्मा रहा था.." प्रिया ने बात को घुमा दिया.. वो ये कैसे कहती की एक उसने वाणी और मनु को अंतरंग हालत में पकड़ लिया था..
"हुम्म.. शरमाती तो तुम भी बहुत हो.. नही?" राज ने उसको बातों ही बातों में च्छेदा..
"ष्ह.. चुप हो जाओ.." प्रिया ने तिरछि नज़र से बराबर वाली सीट की और डरते हुए झाँका..
"क्यूँ.. कोई जाग रहा है क्या..?"
"मुझे क्या पता.. पर तुम चुप करो प्ल्स..." प्रिया को डर था कहीं अब वाणी उनको ऐसी बातें करते देख कुच्छ और ना समझ ले..
"ठीक है.. हो जाउन्गा चुप.. एक शर्त है.." राज मौके का फयडा उठाकर उसको च्छेदने लगा..
"क्या है? कह तो रही हूँ.. चुप हो जाओ.. कोई सुन लेगा तो.."
"मैं भी तो कह रहा हूँ.. हो जाउन्गा चुप.. मुझे किस कर दो.. यहाँ पर.." राज ने अपनेहोंठो पर उंगली रखते हुए कहा..
प्रिया का चेहरा ये बात सुनकर लाल हो गया.. झेंप मिटाने के लिए वा अपनी कोहनी को चेहरे के आगे लगाकर आगे की और झुंक गयी.. ,"धात.. तुम्हे शर्म नही आती.."
"अच्च्छा.. वीरू को शर्म आती है तो वो शर्मिला.. और मैने दिल की बात कह दी तो मैं बेशर्म हो गया.. तुम लड़कियाँ भी ना.. तुम्हे समझना कितना मुश्किल है.. एक तरफ कहती हो की मुझसे प्यार है.. दूसरी तरफ मेरी इतनी छ्होटी सी बात भी मान नही सकती.." राज अब पूरी तरह नींद से जाग कर मस्ती के मूड में आ गया था..
"मुझे तुमसे बात नही करनी.. सो जाओ.. सो जाओ ना..!" प्रिया को उसकी बातों में आनंद आ रहा था.. पर इस मुई शरम को कहाँ छ्चोड़ कर आती...
"ओहो.. कितने प्यार से मुझे मेरे अरमानो का कतल करने को कह रही हो.. खुद मुझे नींद से जगाया और अब सोने को बोल रही हो.. उस दिन भी तुमने यही किया था.. मैं तुम्हे छ्चोड़ने वाला नही हूँ.. समझ लो.." राज ने प्रिया की जांघों पर रखा उसका बयान हाथ दबोच लिया.. वहीं.. जांघों पर राज की उंगलियों के जादू से उसके सारे शरीर में अजीब सी थिरकन शुरू हो गयी.. उसके मन में आया की राज का हाथ वहाँ से हटा दे.. पर अपने बेकाबू हो रहे दिल का क्या करती... सो उसने बाहर कोई हुलचल नही होने दी.. पर अंदर से वो मचल उठी..
"किस दिन..!" प्रिया ने राज की और चेहरा घुमा लिया.. वह अपने शरीर में हो रही गुदगुदी को मुस्कुराहट में तब्दील होने से रोकने की कोशिश कर रही थी.. पर रोक ना सकी..
"उसी दिन जब तुमने पत्थर फैंककर खुद मुझे घर बुलाया और हाथ लगाने पर नखरे करने लगी.. झूठ बोल कर भाग गयी कि मैं रिया हूँ.. अगर पहचान लेता तो उस दिन तुम्हे छ्चोड़ता नही मैं..." राज ने उसके हाथ को हल्का सा और दबा दिया...
"वो.. मैं डर गयी थी.. कहीं कोई आ ना जाए.." प्रिया ने सकुचते हुए अपना हाथ अंदर की तरफ खींचा.. पर राज का हाथ उसके साथ ही चला गया.. और गजब हो गया..
राज का हाथ अब दोनो जांघों के उपर रखा था.. बीचों बीच.. प्रिया को झुरजुरी सी आ गयी, जब उसकी 'चिड़िया' को अपने 'राज' के हाथ के इतना करीब रखा होने का अहसास हुआ..
राज उसके मन की उथल पुथल को महसूस करने लगा था.. उसके काँपते हुए हाथ की वजह से.. थोड़ी झिझक हुई.. पर अभी नही तो कभी नही के अंदाज में उसने उसका हाथ वहीं मजबूती से दबोच लिया..," पर अब किस बात का डर है.. अब तो मुझे मनमानी करने दो.."
प्रिया की साँसें उपर नीचे होने लगी.. उसको अपनी छातियो का वजन और बढ़ता हुआ महसूस हुआ और मन हल्का होने को बेचैन हो गया...," अयाया.. छ्चोड़ दो ना प्ल्स.. मेरा हाथ छ्चोड़ दो..!" प्रिया ने आनमने ढंग से बात कही...
" ना ना.. आज नही छ्ोड़ूँगा.. अपनी शर्त मनवाए बिना.." राज प्रिया के हाथ को वहीं दबोचे हुए था...
"क्कैसी शर्त..." प्रिया के होंठ इस बार खुलते ही काँपने लगे.. उसको नीचे लगातार तापमान बढ़ते हुए होने का अहसास हो रहा था.. जांघों के बीच गर्मी बढ़ती जा रही थी.. उसको अहसास हो रहा था जैसे उसका पेशाब निकालने वाला हो.. दूसरी तरह का..
"वही.. मुझे यहाँ किस करो और अपना हाथ च्छुड़वा लो.." राज ने फिर से अपने होंठो पर उंगली रख दी..
"नआई.. उहह.. मुंम्मय्ययी मर गयी" इश्स बार प्रिया को 440 वॉल्ट का करेंट लगा हो जैसे.. उसने अपना हाथ झटके के साथ च्छुदाने की कोशिश की थी.. कोशिश में तो वो कामयाब हो गयी.. पर प्रत्युत्तर में राज ने जैसे ही अपना दबाव डाला.. उसका हाथ प्रिया की जांघों के बीच घुस गया.. और प्रिया आनंद से दोहरी होकर छट-पटाने सी लगी.. पर बहुत धीरे..
"क्या हुआ?" राज ने घबराकर पूचछा..
"हाथ..!" प्रिया अधमरी सी फुसफुसाई..
"क्या हुआ.. कोहनी लग गयी क्या? राज अब भी समझ ना पाया..
"अपना हाथ.." कहकर प्रिया ने राज का हाथ खींच कर बाहर निकाला..," ये.."
"श.. सॉरी.. मैं समझा की..." कहकर राज झेंप गया.. इतनी आगे बढ़ने की तो वा सपने में भी नही सोच सकता था.. कम से कम अभी तो नही...
पर प्रिया को पहली बार आज महसूस हुआ था कि लड़की का वो अंग इश्स तरह के स्पर्श के प्रति कितना स्वेन्डनशील होता है.. राज की उंगलियों के वहाँ से जुदा होते ही 'वहाँ' अजीब सी छट-पटाहट सी शुरू हो गयी.. प्रिया को अंजाने में ही अपने आप पर बहुत गुस्सा आया.. और उसने इश्स इंतजार में अपना हाथ वापस अपनी जाँघ पर रख लिया कि राज उस हरकत को दोहराए.. पर पासा पलट गया था.. अब राज शर्मा रहा था की प्रिया उसके बारे में क्या सोचेगी..
"आ.. गुस्सा हो गये क्या?" मचलती हुई प्रिया ने खुद ही राज को टोक दिया..
"नही तो.. सॉरी.. मैने वो जानबूझ कर नही किया.." राज ने उस'से नज़रें मिलाते हुए कहा..
"चल ठीक है.. मैं तुम्हारी शर्त पूरी कर दूँगी.. पर मेरी भी एक शर्त है.." प्रिया को अब कुच्छ तो करना था.. अंदर के उस आधे अधूरे अहसास को पूरी तरह महसूस करने के लिए...
राज मन ही मन बाग बाग हो गया.. पर उपर से उसने ज़्यादा उत्साह नही दिखाया,"क्या?"
"मैं तुम्हे वहाँ किस कर दूँगी अगर मैं तुमसे 5 मिनिट तक अपना हाथ फिर से ना छुड़ा पायी तो.." प्रिया ने शरारत से आँखें मतकते हुए कहा और मुस्कुराने लगी..
उसके चेहरे की हँसी देख कर फिर से राज पुराने मूड में वापस आ गया.. ठीक है.. चाहे 10 मिनिट की शर्त लगा लो.."
"देख लो.. अगर हार गये तो फिर कभी भूल कर भी ऐसी शर्त मत लगाना.." प्रिया ने खुलेआम चलेंज कर दिया...
"ओके!" कहते हुए राज ने बिना देर किए उसका हाथ फिर से पकड़ लिया.. वहीं.. जाँघ के उपर ही.. प्रिया एक बार फिर उस 'आनंद' को पाने के लिए मचल उठी...
प्रिया ने एक दो बार सीधा उपर उठाकर हाथ च्छुदाने का नाटक किया.. पर भला राज कहाँ छ्चोड़ने वाला था.. धीरे धीरे प्रिया का हाथ उसकी दूसरी जाँघ की और बढ़ने लगा.. राज चाहता तो उसका हाथ वापस खींच सकता था.. पर उसने भी ऐसा किया नही.. बहती गंगा में हाथ कौन नही धो लेना चाहेगा..
हाथ फिर से जांघों के बीचों बीच आ गया.. प्रिया धीरे धीरे जांघों को खोलने लगी ताकि राज के हाथ को वो मंज़िल तक पहुँचा सके..
अपना हाथ नीचे जाता देख राज सकपका गया.. "कहीं फिर से" और उसकी पकड़ धीरे धीरे ढीली होने लगी...
"देख लो.. अगर छूट गया तो कभी मुझसे इश्स बारे में बात मत करना.." प्रिया ने उसकी आँखों में आँखें डालते हुए कहा.. फिर क्या था.. राज को तो खुला निमंत्रण मिल गया..
जॉर्जाबरदस्ती के इश्स प्यार भरे खेल में दोनो के चेहरे आमने सामने थे.. आँखें भी आमने सामने और होन्ट भी.. दोनो की साँसे तेज होती जा रही थी और दोनो एक दूसरे की साँसों में वासनात्मक गर्मी को महसूस कर सकते थे... राज को अहसास हुआ की प्रिया उस'से हाथ छुड़ाने की बजे उसका हाथ खींचने पर आमादा है.. अंधे को और चाहिए क्या? राज ने भी हाथ को उपर खींचना छ्चोड़कर उसके हवाले कर दिया.. पकड़े हुए..
जैसे ही प्रिया को राज का स्पर्श अपनी तितली के लाल दाने पर महसूस हुआ वो पागला सी गयी.. शर्त को अब दोनो भूल चुके थे.. दोनो जीत गये थे.. और दोनो ही हार गये थे.. सिसकती हुई प्रिया ने 2 इंच चेहरा आगे किया और तितली के होंठो के साथ ही चेहरे के होंठो को भी अद्भुत रास्पान हेतु खोल दिया..
राज को उसका निमंत्रण समझने में देर ना लगी.. प्रिया की आँखें बंद थी और वा अपनी कामुक हो चली आवाज़ पर काबू पाने की कोशिश में अंदर ही अंदर सिसक रही थी... राज ने अपने होंठो को आगे करके प्रिया की सिसकियाँ बंद कर दी.. और दोनो पहली बार यौवन के रस-सागर में गोते लगाने लगे...
राज का दूसरा हाथ.. बिना किसी से पूच्छे, बिना किसी को बताए प्रिया के उरजों तक पहुँच गया.. प्रिया के पास ऐतराज जताने का वक़्त ही कहाँ था.. वा तो पागल सी होकर राज के हाथ को रास्ता दिखाने में जुटी थी.. और अब उसकी एक उंगली से अपनी चिड़िया के साथ 'उपर-नीचे, उपर नीचे' खेल रही थी...
राज को लग रहा था की उसकी पॅंट का कल्याण होने वाला है.. पर जो होगा देखा जाएगा के अंदाज में वा उसके उरजों, उसके होंठो और उसकी नाज़ुक और अब तक बिल्कुल 'नादान' तितली को मसालने में लगा रहा.. उपर से ही.. अब वह 'अपने' को बाहर कैसे निकालता.. इतना करते हुए तो उसको भी शरम ही आ रही थी.. ये काम तो खुद प्रिया को करना चाहुए था, जिसको दरअसल पता भी नही था की 'इस' काम का सही हक़दार असल में वही है.. और ओरिजिनल भी...
आख़िर आते आते तो प्रिया भूल ही गयी थी की वो है कहाँ.. जब स्खलन शुरू हुआ तो वह सब कुच्छ भूल कर राज की छाती से चिपक गयी.. और लंबी लंबी साँसे लेने लगी.....

हम सच में पहुँच गये क्या?" आँखें मसालती हुई वाणी बस से उतरते हुए बोली.. राज और प्रिया की गुटरगूं चुपके चुपके देखने के बाद वाणी घंटे भर सो नही पाई थी... हालाँकि मनु और उसमें फिर से 'वैसा' कुच्छ करने की हिम्मत नही हुई.. पकड़े जाने के डर से.. बाकी का सफ़र एक दूसरे के हाथों में हाथ डाले हुए ही बीता.. जब तक वाणी नींद के आगोश में आकर मनु के पहलू में लुढ़क नही गयी.....
नीचे उतरने के बाद अंजलि बड़ी हसरातों से शमशेर की और देख रही थी.. पर शमशेर ने उस'पर ध्यान ही नही दिया...
"यही ठीक रहेगा.. नही..?" शमशेर ने विकी से मशविरा किया.... वासू भी उनके साथ ही खड़ा था...
अलका होटेल के बाहर लगे पीले रंग के बोर्ड पर सरसरी नज़र डाल विकी ने चारों और का मुआयना किया..," हां भाई.. यहाँ से लेक व्यू भी मस्त है.. चलो.. बात करते हैं..."
"हूंम्म.. चलो.. हम अभी आते हैं.." शमशेर ने कहा और वो दोनो होटेल के अंदर चले गये...
रिसेप्षन पर करीब 50-55 साल का बुड्ढ़ा बैठा अख़बार की खाक छान रहा था.. जैसे ही विकी और शमशेर काउंटर पर पहुँचे अपने चेहरे को नीचे किए हुए ही उसने चस्में के उपर से उन्हे घूरा.. पर बोला कुच्छ नही...
"रूम्स हैं क्या?" शमशेर काउंटर पर कोहनी टीका कर खड़ा हो गया...
"और मेरे पास है ही क्या?" बुड्ढे ने बेरूख़ा सा जवाब दिया..
"क्यूँ? बाकी सब कुच्छ बिक गया क्या?" विकी ने मसखरी की....
" जाओ.. रूम भी बेच दिए मैने.. मेरे पास कुच्छ नही है.. बड़े आए.." खिसियया हुआ बुड्ढ़ा बिफर पड़ा...
"नाराज़ क्यूँ होता हो अंकल.. इसने सिर्फ़ मज़ाक किया था.." शमशेर ने हाथ नीचे करके विकी को कोहनी मारी... "हम करीब 22 -22 लोग हैं..."
"कितने कमरे चाहियें..?" बुड्ढे ने ड्रॉयर से रिजिस्टर निकाल कर उनके सामने पटक दिया.. रेजिस्टर के पटक'ने से उठने वाली धूल होटेल की पॉप्युलॅरिटी का माजेरा कर रही थी...
शमशेर ने हिसाब लगाना शुरू किया.. वो खुद और दिशा; तू और स्नेहा; अंजलि और गौरी; वासू; वीरू और राज; रोहन और मानव; रोहित ; मनु और अमित; रिया और प्रिया; आरज़ू और सोनिया; शालिनी; सरिता; वाणी और मानसी; ड्राइवर... बस यही हैं ना?" शमशेर ने विकी से पूचछा....
"हाँ.. यही होंगे.. पर अड्जस्टमेंट कैसे करनी है?" विकी ने याद सा करने के बाद कहा...
"बाकी तो हो गयी.. वासू के लिए भी अलग कमरा ले लेंगे.. पर रोहित, शालिनी, सरिता, और ड्राइवर... इनका कैसे करें...?" शमशेर ने पूचछा...
"रोहित और शालिनी की पुरानी सेट्टिंग है.. टफ भाई ने जिकर किया था की इनका टूर पर ध्यान रखना... इनको अलग करके क्यूँ मार रहे हो शर्दि में.. बाकी उनसे पूच्छ लो. ... सरिता तो कहीं भी फिट होने वाली गोटी है.. ड्राइवर के पास ही छ्चोड़ दो..." विकी ने धीरे से कहा.. और हँसने लगा...
"पागल है क्या..? हमें उनको भी अलग अलग रूम देना पड़ेगा... कम से कम ड्राइवर को तो किसी के साथ रख ही नही सकते... सरिता को किन्ही दो लड़कियों के साथ अड्जस्ट करना पड़ेगा... अरे हां.. नेहा भी तो है..." शमशेर को अचानक याद आया..," और दिव्या भी है यार.. इन तीनो को इकट्ठा कर देते हैं.. एक रूम में.."
विकी ने कोई जवाब नही दिया तो शमशेर मॅनेजर से मुखातिब हुआ..," 13 कमरे खाली होंगे क्या?"
"मेरे पास 14 कमरे हैं.. मेरे वाले कमरे समेत.. पर उनमें से एक कमरा छ्होटा है.. उसमें सिर्फ़ एक ही रह सकता है.. कहो तो दिखाऊ?"... बुड्ढे मॅनेजर ने तपाक से कहा और फिर अख़बार पढ़ने में लग गया...
"तो क्या पूरा होटेल खाली पड़ा है?" विकी ने आसचर्या से कहा...
"तुम्हे कमरे चाहियें या हौसेफुल्ल का बोर्ड देखने आए हो..." बुड्ढे का यही व्यवहार शायद उस होटेल पर पहले कभी हाउस फुल का बोर्ड लगवा नही पाया था..
विकी के एक बार कुच्छ मन में आया पर उसकी उमर को देखकर वो चुप ही रह गया..
शमशेर ने तुरंत अड्वान्स निकल कर उसको पकड़ा दिया... ठीक है.. 13 के 13 कमरे हमें दे दो..."
फॉरमॅलिटीस पूरी करने के बाद वो दोनो बाहर निकल आए..
"भाई, रूम देख तो लेते एक बार...?" विकी ने कहा...
"रूम देखे हुए हैं मेरे.. अच्छे हैं.. और फिर इस सीज़न में बगैर अड्वान्स बुकिंग के इतने कमरे और कहीं नही मिलेंगे.. हमें पहले सोचना चाहिए था..." कहते हुए शमशेर विकी के साथ बस के पास पहुँच गया...
"हो गया?" अंजलि ने आगे बढ़कर शमशेर से पूचछा... विकी सीधा स्नेहा के पास चला गया...
"हां.. तुम्हे गौरी के साथ एक कमरे में दिक्कत तो नही होगी ना...?"
अंजलि ने शमशेर की आँखों में आँखें डालते हुए कहा," काश.. मैं तुम्हारे साथ रूम शे-अर कर पाती.. सिर्फ़ एक रात!"
शमशेर ने उसकी बात का कोई जवाब नही दिया और रोहित को अपने पास बुलाया..
"जी.. भाई साहब!" रोहित ने आते ही उसको बुलाने का कारण पूचछा....
शमशेर ने उसके गले में हाथ डाला और एक तरफ ले गया," तुम्हारी शालिनी.. मतलब तुम दोनो आपस में प्यार करते हो क्या?"
रोहित के चेहरे पर सवाल सुनते ही आने वाली चमक ने शमशेर को उसके बोलने से पहले ही जवाब दे दिया," हां!"
"तो तुम दोनो कमरा शेर कर सकते हो.. है ना?" शमशेर ने आगे बढ़ते हुए पूचछा...
रोहित से कुच्छ कहते ना बना गया.. उसकी धड़कने ये सब सोचकर ही तेज होने लगी.. फिर कुच्छ देर बाद उसने बोला," ज्जई.. आप उन्ही से पूच्छ लीजिए..."
"क्यूँ? उसको भरोसा नही है क्या? शमशेर ने उसके चेहरे को गौर से देखते हुए पूचछा...
रोहित कुच्छ बोला नही.. बस पुरानी यादों की हल्की सी महक उसके सीने में दौड़ गयी...
"दिशा!" शमशेर ने वहीं खड़े खड़े दिशा को आवाज़ दी... और फिर रोहित से कहा," ठीक है भाई.. मैं दिशा से कहकर उसकी राई जान लेता हूँ... फिर देखते हैं.. " कहकर उसने रोहित को वापस भेज दिया...
"हां! क्या है?" दिशा ने शमशेर के पास आते ही उसकी जॅकेट का उपर वाला बटन बंद किया," ठंड लग जाएगी आपको.. इसको बंद रखा करो..."
बहुत दीनो से उन्होने साथ पल गुज़रे नही थे.. इसीलिए दिशा के हाथ लगने मात्रा से ही शमशेर के बदन में सिहरन सी दौड़ गयी.. पर अब इंतजार ज़्यादा नही था..
"वो.. वो लड़की है ना शालिनी.. उस'से पूच्छो ना अगर रोहित के साथ रूम शेर कर सके...?"
दिशा ने जैसे उसकी बात पर ध्यान ही नही दिया," अभी अंदर तो चलो.. वहाँ चलकर भी पूच्छ सकते हैं.. मुझे बड़ी थकान हो रही है..."
"चलो.." शमशेर ने कहा और उसके कंधे पर हाथ डाल कर अपने शरीर से ज़बरदस्ती चिपककर बच्चों की और बढ़ गया.. ज़बरदस्ती इसीलिए की दिशा शरम के कारण उस'से दूर हटने की कोशिश कर रही थी.. उसके साथ पढ़ने वाली स्कूल की लड़कियाँ और अंजलि मेडम तक उन्हे घूर घूर कर देख रही थी.. पर शमशेर पर उसका कोई असर नही पड़ा....








साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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