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ननद ने खेली होली--8
ऐसे दबाते मसलते हैं मेरे सैयां मैं उनके कान में बोली। कई बार तो सिर्फ छातियां मसल के झाड देते हैं...चलिये अगर आपको डलवाने में उनसे शरम लग रही हो तो बस एक बार दबवा के देख लिजीये..आपके भैया आपका कहना थोडे ही टालेंगें।
मैने उन्हे कस के छेडा तब तक दूबे भाभी बोलीं, अरे तू अकेले ही इसके दोनो अनारों का मजा लेती रहेगी जरा मुझे भी तो स्वाद लेने दे..।
एक्दम भाभी और मेरा बायां हाथ अब उनकी कमर को कस के पकड के चिकने गोरे पेट को लाल कर रहा था और दूसरा उभार अब दूबे भाभी के कब्जे मे था और उनकी रगडाई तो बडे बडे मर्दों को मात करती थी।
चल देख ...कौन ज्यादा कस के दबाता है...इस ननद छिनाल के अनार...अरे बचपन से दबवा रही है जब टिकोरे थे...और आज मुझ से शरमा रही है।
एक दम भाभी और मैने भी कस के दबाना मसलना शुरु कर दिया।
पांच मिनट में ही जिस तरह से हम दोनों ने रगडाई मसलाइ की....उनके मुंह से चीख सिसकियां....निकलने लगीं।
इसके साथ ही दूबे भाभी ने ढेर सारा सूखा रंग हरा, नीला बैंगनी उनकी ब्रा में डाल दिया, जिससे जैसे ही गीला रंग, पानी पडे ये सारा उनकी चूंचियों को रंग दे.और वो सूखा रंग आगे से मैं उनके पेटीकोट के अंदर भी घुसेड रही थी।
दूबे भाभी के दूसरे हाथ ने पीछे से उनका पेटीकोट उठा के पिछ्वाडा भी रंगना शुरु कर दिया था और फिर एक झटके में....पैंटी खींच के नीचे फेंक दी, अरे ननद रानी जरा बुल्बुल को हवा तो खिलाओ कब तक पिंजडे में बंद किये रहोगी। वो बोलीं और उनका लाली के चूतड को रगड्ना मसलना जारी था और मैने भी आगे से हाथ साये के अंदर डाल के वहां भी रंग लगाना...एक दम चिकनी मक्खन मलाइ थी...गुड्डी की तरह।
तब तक वो थोडा चीखीं...और मतलब दूबे भाभी की बात से आ गया, अरे लाली...क्या बहोत दिनों से ननदोइ जी ने पीछे का बाजा नहीं बजाया है जो इतनी कसी है...' अरे भाभी...कोई बात नहीं आज हम दोनों मिल के ननद रानी की गांड मार के सारी कस्र पूरी कर देंगें। मैने इरादा साफ किया तो वो बोलीं....एक दम होली में ननद पकड में आये तो बिना उसकी गांड मारे छोड्ना तो सख्त ना इंसाफी है।
और जब वो हम दोनों की गिरफ्त से छूटीं अच्छी तरह रंगी पुती तो मुझे लगा की कहीं गुस्सा ना हों...पर कुछ भंग का नशा, कूछ चूंचियों की रगडाई मसलाई....और सबसे बढ के होली का असर....उन्होने टेबल पे रखे रंग उठा के हम दोनों को रंगना शुरु कर दिया और यहां तक की देह में लगे रंग भी...हम दोनों की देह पे ...हमारी ब्रा भी उन के रंग में रंग के लाल पीली हो गई।
फिर उन्हे धकेलते, पकड के हम आंगन में ले आये।
दूबे भाभी का आंगन सारे मुहल्ले की औरतों में होली के लिये मशहूर था। सारी औरतें, ननद भाभीयां ....यहीं जमा होती थीं। उंची उंची दीवारे कोइ मर्द का बच्चा पर भी नहीं मार सकता था....एक छोटे तलैया से गड्ढे में भरा रंग....रंग खेलने और खाने पीने का पूरा इंतजाम....उस चहब्च्चे में सबकी डुबकी लगवाई जाती और ...मुझे याद था की १४ से ४४ तक की शायद ही कोई ऐसी मेरी मुहल्ले पडोस की ननद हो जिसकी मैने यहां होली में जम के उंगली ना की हो....कपडे तो किसी के बचते ही नहीं थे...और एक से एक गंदी गालियां....भाभी कोइ रिस्ते में ननद लगने वाली बच्ची भी क्यों ना हो उससे जब तक १०-५ गाली...और सीधे उसके भाई का नाम लगावा के ना दे देती हों....छोडती नहीं थी।
आज सिर्फ हम तीन थे लेकिन इंतजाम होली से पहले होली का पूरा था।
पहले तो हम दोनों ने हाथ पांव पकड के ....लाली की डोली कर के लाल रंग भरे चहबच्चे में जम के ६-७ डुबकियां लगवाईं और फिर उसी में छोड दिया।
दूबे भाभी और मैं भी उस में घुस गये और फिर क्या ....थोडी देर में लाली की ब्रा मेरे हाथ में थी...और मेरी तो फ्रंट ओपेन होने के कारण एक झटके में ही खुल गई।
और जब हम सब बाहर आये तो तीनों टाप लेस थे।
ननद रानी के साथ होली की शुरुआत तो हो गई लेकिन मैने कुछ खिलाया पिलाया नहीं...और उन्होने वहीं रखी एक व्हिस्की की बोतल खॊली...।
नहीं भाभी मैं ये नहीं ....लाली ने नखरा किया।
अरे साल्ली...मुझे सब मालूम है नन्दोई जी को शौक है तो अब तक तुम्हे बिना पिलाये छोडा होगा क्या...दूबे भाभी बोली फिर अपने अंदाज में अपने दोनों टांगों के बीच इशारा करते हुये कहा...और ये नहीं तो ये शराब पिला दूंगी..सुनहरी शराब...बोल।
अरे भाभी...मेरे लिये मौका अच्छा था...ननद रानी ये भी पियेंगी...अभी ये और बाद में वो। मैने छेडा।
एक पेग के बाद जब दूसरे के लिये वो मना करने लगी तों दूबे भाभी बोलीं पी ले सीधे से वरना ....गांड में बोतल डाल के पूरी बोतल खाली कर दूंगी....जायेगी तो पेट में।
कुछ ही देर में आधी से ज्यादा बोतल खाली थी और उसमें से भी ज्यादा लाली को हम दोनों ने जबरन , मना के पिला डाली।
और थोडी देर में नशे का असर भी दिखना शुरु हो गया।
जिस तरह दूबे भाभी....लाली के रंगे गद्रराये जोबनों की ओर ललचाइ निगाहों से देख रही थी...मैं समझ गयी की उनका इरादा क्या है।
हम दोनों ने आंखॊं आंखों में इशारा किया और ....मैं सीधे लाली के पेटीकोट के पास...और मेरा इरादा समझ उन्होने उठने की कोशिश की लेकिन दूबे भाभी पहले से ही तैयार थीं....कस के उन्होने दोनो कंधे पकड के दबा लिये।
अब मुझे कोई जल्दी नहीं थी। ह्ल्के ह्ल्के मैने पेटी कोट के नाडे पे हाथ लगाया और पूछा, क्यों ननद रानी...अब तक कौन कौन ये नाडा खोल चुका है..अच्छा चलिये पुरानी बात भूल जाइये....अबकी होली में आपकी भाभियां और हमारे देवर....आपको नाडा बांधने ही नहीं देंगे....है ना मंजूर...।
देवर तो इसका मतलब जो इसके भाई लगते हैं...जान बूझ के दूबे भाभी ने कस के उनके निपल पिंच करते हुये अर्थाया...।
और क्या....मेरे सारे देवर और सैंया हैं ही बहनचोद ....लेकिन उन बिचारों की क्या गलती मेरी साली छिनाल पंच भतारी ननदें हैं हीं ऐसी, कालीन गंज की रंडियों को मात करने वाली.....और अपनी ननदों का बखान करते हुए....मैने उनका नाडा खोल के पेटीकोट नीचे सरका दिया। और ढेर सारे सूखे गीले रंगो से सजी उनकी चूत ....जांघों को भींच के उन्होने छिपाने की कोशिश की पर उसके पहले मैने उसे दबोच लिया, अरे चूत रानी, आज आपने मुझे दर्सन दिया अब जल्द मेरे सैयां को भी दरसन दीजिये...और कस के रगड दिया।
वो बिचारी तडप के रह गयीं। मेरे हाथ की गदोरी कस कस के चूत को रगड रही थी।
कुछ मजे में कुछ छुडाने के लिये वो हाथ पैर पटक रही थीं।
क्यों भाभी अगर कोई दूधारू गाय...दूध दुहाने में हाथ पैर पटके तो क्या करते हैं मैने आंख नचा के दूबे भाभी से पूछा।
अरे तो उसका हाथ पैर बांध के दूहते हैं और क्या...वो बोलीं।
और उसके बाद तो वहीं पडी लाली की रंग में डूबी ब्रा से ये कस के उन की मुश्के बांधीं की...वो बिचारी अपना हाथ एक इंच भी इधर उधर हिला नहीं सकती थीं। अब दूबे भाभी के दोनों हाथ खाली थे। और फिर कस क्स के दोनों चूंचिया रगडने लगीं...।
दूध देने लायक तो एक दम हो गयी है ये....वो बोलीं।
अरे घबराइये मत ये आई इसी लिये मायके हैं ....गाभीन होने। यहां से लौटने के ठीक ९ महीने बाद सोहर होगा इनके यहां....हां फिर ये सोचेंगी की बच्चे से मेरे सैंया को मामा कहल्वायें या बापू....है ना। मैने एक झटके में पूरी उंगली उनके चूत में पेलते हुये कहा। वो अच्छी खासी गीली थीं।
अच्छा तो ननद रानी...मेरे सैयां के बारे में सोच के ही इतनी गीली हो रही है तो सोचिये जब दोनो चूंचियां पकड के वो पेलेंगें तो कित्ता मजा आयेगा है ना। मैं बोली।
उनकी चूत कस के मेरी उंगली भींच रही थी। मैने दूसरे हाथ से उनकी पुत्ती कस के दबोच ली। थोडी देर अंदर बाहर करने के बाद रस से भीगी उंगली दूबे भाभी को दी तो वो ऐसे चूसने लगी जैसे शहद , फिर तो मेरे लिये रोकना बहोत मुश्किल हो गया....और मेरे नदीदे होंठों ने झट से उनके निचले होंठों को अपने कब्जे में कर लिया। वास्तव में बहोत रसीली थीं वो संतरे की फांके....कभी मैं चूसती, कभी चाटती...और फिर दोनों हाथों से दोनो पुत्तियों को फैला के जीभ अंदर पेल दी। लंबी मोटी जीभ लंड की तरह, कभी अंदर कभी बाहर...कभी गोल गोल...चारों ओर..।
नहीं प्लीज छोडो ना ...मुझे ये सब ....नहीं नहीं....वो तडप रही थीं छटपटा रही थीं...।
अरे क्या चीख रही है....अपने मुंह से उनका निपल निकालते हुये दूबे भाभी बोलीं....तूझे इस बात की तकलीफ है की तेरी भाभी मस्त चूत चूस रही है और तूझे कोइ चूसने को नहीं मिल रहा....बात तो तेरी सही है। बडी नाइंसाफी है चल तू मेरी चूस...और उनके मुंह पे चढ के ...वो लाख छट्पटायीं...कमर पटकीं....पर दूबे भाभी की तगडी मोटी जांघों के बीच फंस के आज तक कोई ननद बची थी जो लाली जी बचतीं। और अपनी झांटो भरी बुर कस कस के उन्होने उनके मुंह पे रगडना शुरु कर दिया...वो सर हिला के बचने की कोशिश करतीं तो उन्होने उनके बाल पकड के एक दो बार जो जोर से खींचे...तो उन्होने सर हिलाना बंद कर दिया।
ये देख के मैं और जोश से भर गई और कस कस के चूसने लगी....एक दो बार मैं लाली को झडने के कगार पे ले गयी फिर रुक गई, पर दूबे भाभी ने आंख के इशारे से कहा चालू रह...फिर तो मैं कभी मेरी जीभ उपर नीचे कस क्स के लप लप चाटती...कभी दोनों होंठ...पूरे जोश से चूसते...और अब जब वो झडने लगी तो बजाय रुकने के मैं और जोर से चूसने लगी। वो चूतड पटक रहीं थीं कमर एक एक फीट जमीन से उठा रहीं थी....हाथ तो बेचारी के बंधे थे और मुंह पे दूभे भाभी चढी हुई थीं। जब उनका झडना थोडा कम हुआ तो मैने कस के कच कचा के उनकी क्लिट दोनों होंठ के बीच हल्के से काट ली और क्लिट चूसती रही। उधर दूबे भाभी भी उनके उत्तेजित निपल को मरोड रही थीं, पिंच कर रही थीं....लाली थोडी देर में दुबार झडने लगी। कुछ देर बाद तो हालत ये हो गयी थी कि उनका एक बार का झडना रुकता नहीं था और दूसरी बार का झडना चालू हो जाता। ४-५ बार के बाद तो वो लथपथ हो गयीं ....एक दम शिथिल तब भी एक बार और उन्हे झाड के ही मैने छोडा। जब मैने मुंह हटाया तो जैसे हनींमून से लगातार चुद के लौट के आई दुल्हन की चूत होती है वैसी ही उनकी भी थी...खूब रगडी....लाल लाल मेरे तो मुंह में पानी भर आया। मैं सोचने लगी की काश मैं वो सुपर डिल्डॊ ले आई होती १० इंच वाला...ले तो आई थी मैं डिल्डॊ भी और ढेर सारी चीजें....बट प्लग, एनल बीड्स....लेकिन यहां नहीं था...कमर में बांध के स्ट्रैप आन डिल्डो.....हचक हचक के चोदती....पूरे १० इंच तक पेल के...और इस हालत में वो ननद बेचारी कुछ कर भी नहीं पाती।
और बेचारी क्यों....इसी के चक्कर में तो बेचारे मेरे नन्दोई अपनी साली का मजा खुल के नहीं ले पार रहे थे....मेरे आधे प्लान की किस तरह होली में खुल के गुड्डी को उसके भैया से रगडवाउंगी....और यहां तो बेचारी को अपने जीजा के साथ...।
क्या सोच रही हो..दूबे भाभी बोलीं.।
यही की जरा ननद रानी को ननदोई बन के मजा दिया जाय।
एकदम ...नेकी और पूछ पूछ...चल चढ जा।
अपनी कितनी छोटी ननदों को इसी तरह प्रेम लीला का पाठ पढा के मैने छिनाल बनाया था लेकिन किसी बडी ननद के साथ ये पहला मौका था।
मैने दोनों टांगे उठा के अपने कंधे पे रखी....( ये सोचते हुये कि इस समय मेरे सैंया भी अपनी प्यारी बहना की चिकनी चिकनी जांघे फैला के टांगे कंधे पे रखे....) दोनो जांघों को फैलाया और फिर....पहले एक दो बार हल्के ह्ल्के ...फिर कस के रगडना शुरु कर दिया। जिस तरह मेरी चूत उनकी चूत पे घिस्सा मार रही थी...थोडी ही देर में वो कुन मुनाने लगीं...और फिर उनके चूतड अपने आप ही उठने लगे।
पास में रखी व्हिस्की की आधी बची बोतल उठा के दो घूंट मैने सीधे बोतल से ही लिये और बोतल दूबे भाभी की ओर बढा दी।
दो घूंट उन्होने भी ली और फिर एक पल अपनी चूत उनके मुंह से उठ के ...जब तक...। ननद रानी संहले संहले....बोतल का मुंह उनके मुंह में घुसेड दिया और घल घल कर के सारी की सारी बोतल खाली।
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