गर्ल्स स्कूल पार्ट --33
दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 33 लेकर आपकी अदालत मैं हाजिर हूँ ।दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें प्रिय पाठाको पार्ट 33 मैं गौरी की चुदाई तो सपने मैं पूरी हो गयी ।उसने तो अमित का गन्ना चूस लिया था लॅकिन अपनी वाणी की कहानी अधूरी रह गयी थी ।अब आगे ...............
"कपड़े... नही.. मैं कपड़े नही निकालूंगी...." वाणी की साँसें हर गुजरें पल के साथ बहकति ही जा रही थी.. उसका पूरा बदन थरथराने वाला था..
"क्यूँ..? क्या प्यार करने का मंन नही करता.." मनु ने उसको और सख्ती के साथ जाकड़ लिया.. अपनी बाहों में..
"करता है.. बहुत करता है.. जाने कितने दीनो से मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी.. जाने कितने युगों से.." वाणी कसमसाते हुए अपनी जाँघ मनु के शरीर से रगड़ने लगी..
"तो फिर शरम कैसी.. कपड़े निकल दो ना.." मनु झुक कर उसकी गर्दन पर अपने दाँत गाड़ने लगा..
"तुम्ही निकल दो ना.. कह तो रही हून.... सब कुच्छ तुम्हारा ही है.." वाणी ने अंगड़ाई लेते हुए अपनी बाहें उपर उठा दी.. वाणी के दिल के उपर उठने के साथ ही मनु का कलेजा बाहर निकालने को हो गया... वाणी का यौवन छलक्ने को बेताब था.. अपने यार के पहलू में...
"ओह.. हमें अंदर चलना पड़ेगा.. बारिश तेज़ हो गयी है.." मनु ने वाणी को कहा..
"नही.. मैं कहीं नही जाउन्गि.. लेकर चलना है तो उठा लो.. मुझे तो यहीं मज़ा आ रहा है.." वाणी पूरी मस्ती में थी.. आँखें चाह कर भी खुल नही पा रही थी..
"वाणी! उठो जल्दी.. बारिश तेज़ हो गयी है.. फुहारें तुम तक आ रही है.. उठो अंदर चलो.." दिशा ने ज़बरदस्ती उसको उठा कर बैठा दिया..
"दीदी.....???????.. व्व.. वो.. मैं तो सो रही थी.. गौरी.. दी...."
"तो कौन कह रहा है.. की तुम नाच रही थी.. जल्दी चलो.. देखो सारी भीग गयी हो.."
"ओह्ह्ह.. म्म्म.. मैं सपना......"
"हां.. हाँ.. सपने अंदर लेटकर देख लेना.. ओह्हो.. अब उठो भी.."
"कितना अच्च्छा सपना आ रहा था दीदी.. ख्हाम्खा जगा दिया.. पैर पटकते हुए वाणी नींद में ही जाकर अंदर सोफे पर पसर गयी... इश्स उम्मीद में की सपना जारी रहे....
उसके बाद सारी रात वाणी सो ना सकी.. सपने के मिलन की अधूरी प्यास वह पल पल अपनी छ्होटी सी अनखुली योनि की चिपचिपाहट में महसूस करती रही.. गीली हो होकर भी वह कितनी प्यासी थी... मनु-रस की..
मनु अपनी जान की हालत से बेख़बर किन्ही दूसरे ही सपनो में खोया हुआ था.. उसको तो ये अहसास भी नही था की किसी को आज उसकी बड़ी तलब लगी हुई थी..
अमित का भी यही हाल था.. कोई आधा घंटा इंतज़ार करने के बाद ही वह सोया था.. पर गौरी को उसके दिए इशारे का आभास नही हुआ था.. नही तो.. क्या पता?
अगली सुबह वाणी की आँखें लाल थी.. कम सोने के कारण.. सभी इकट्ठे बैठकर चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे... अमित और गौरी में शुरू हुई नोक झोंक उठते ही फिर से जारी हो गयी,"ऐसे क्या देख रहे हो? कभी लड़की देखी नही क्या?" गौरी ने माथे पर लटक आई जुल्फ को हाथ का इशारा दिया..
"देखी क्यूँ नही.. पर तुम्हारे जैसी..." तभी कमरे में दिशा आ गयी और अमित के होंठ सील गये...
"क्या मेरे जैसी.. बोलो ना.. बात पूरी क्यूँ नही करते...?" गौरी को दिशा से क्या शरम.. उनमें तो बहुत से राज सांझे हुए थे...
"नही कुच्छ नही.... मैं कह रहा था.. तुम्हारे जैसी झगड़ालु लड़की आज तक नही देखी..." अमित ने बात का रुख़ पलट दिया..
"ओये.. मुझे झगड़ालु मत कहना.. खा जाउन्गि..!" गौरी कुच्छ और ही सुन'ना चाहती थी..
"ये लो! प्रत्यक्ष को प्रमाण कैसा.. देख लो दीदी.. कह रही है.. मुझे खा जाएगी.." अमित दिशा से मुखातिब हुआ..
दिशा हँसने लगी..," एक अच्च्ची खबर है.. गौरी पढ़ने के लिए भिवानी आ रही है.. और हमारे साथ ही रहेगी... क्यूँ गौरी?"
अमित की आँखें चमक उठी..
"अभी क्या पता.. मम्मी इश्स बार पापा से मिलकर आएँगी तभी फाइनल होगा..." कहते हुए गौरी ने एक नज़र अमित को देखा.. उसके हाव भाव जान'ने के लिए.. अमित ने
उसकी ओर आँख मार दी..
"तूमम्म!" गौरी एक पल के लिए लपक कर उसकी और बढ़ी.. पर तुरंत ही उसको अपने लड़की होने की मर्यादायें याद आ गयी... और वह शर्मकार वापस सोफे पर जा बैठी..
"अब हम चलेंगे दीदी.. जल्दी ही पहुँचना होगा...." मनु उठते हुए दिशा से बोला..
"ठीक है.. मिलते हैं फिर भिवानी में.. आज कल में हम भी आ ही रहे हैं..." दिशा भी उसके साथ ही खड़ी हो गयी...
"पर.... मम्मी पापा को तो आने दो!" कुच्छ देर ही सही.. पर वाणी का दिल मनु को अपने से जुदा होते नही देखना चाह रहा था...
"सॉरी.. वाणी.. मुझे थोड़ी जल्दी है.. " अमित ने जवाब दिया.. मनु तो वाणी की दबदबाई हुई आँखें भी देख नही पाया...
दोनो ने मोटरसाइकल स्टार्ट की और उन्न तीनो की आँखों से ओझल हो गये...
दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा .दोस्तो मेरा मन भी इस कहानी इस कहानी मैं दुबारा एंट्री लेने को कर रहा है
आप तो जानते हैं जहाँ आपका राज शर्मा हो उस कहानी का मज़ा कुछ ओर बढ़ जाता है दोस्तो मैने सोचा मैं भी कुछ दीनो के लिए अपने दोस्त सुरेश के गाँव जाकर उससे मिल आउ .इस समय हम दोनो सुरेश के बाग मैं बैठे थे . अब आगे आप खुद ही देखिए यहाँ क्या हो रहा है .
"आ लौंडिया!" सड़क के साथ सटे बाग में शहर से आए अपने दोस्त के साथ बैठकर दारू गटक रहे सुरेश ने सड़क पर जा रही दो लड़कियों में से एक को टोका.. मौसम था भी पीने लायक..
सुर्सेश राकेश और सरिता का बड़ा भाई था.. ताउ का लड़का!!
"जी बाबू जी!" लड़कियों में से एक ने सड़क किनारे सिड्दत से खड़े होते हुए कहा.. कमसिन उमर की उस लड़की का रंग ज़रूर सांवला था.. पर नयन नक्स इतने काटिले की खड़ा करने के लिए 'और कुच्छ' देखने की ज़रूरत ही ना पड़े.. शीरत से भोली लगती थी.. और सूरत से 'ब्लॅकबेरी'; चूचियाँ अभी उठान पर ही थी... पर बिना 'सहारे' के नाच सी रही थी.. हिलते हुए! वस्त्रा फटे पुराने ही थे.. यूँ कह लीजिए.. जैसे तैसे शरीर को ढक रखा था बस!
"तू तेजू की छ्छोकरी है ना?" दोनो को टुकूर टुकूर देखते हुए सुरेश ने पूचछा...
"जी बाब..उ!" अपने शरीर में घुसी जा रही नज़रों से सिहर सी उठी लड़की ने मारे शरम के अपना सिर झुका लिया..
"तेरे बापू को कितनी बार बोला है हवेली में आने को.. आता क्यूँ नही है साला हरामी!" सुरेश की आँखों में उस भेड़िए
के समान वहशीपान छलक उठा जो मासूम मेम्ने के शिकार के लिए कोई भी रास्ता ढूँढ लेना चाहता है..
लड़की ने नज़रें झुका ली.. अब उसको बड़ों के लेनदेन का क्या पता..!
"तू तो पूरी जवान हो गयी है..कल तक तो नंगी घुमा करती थी.. क्या नाम है तेरा?" सुरेश ने अपने बोलने को पूरा 'गब्बरी' अंदाज दे दिया था..
"ज्जई.. क्कामिनी!" इश्स बात ने तो उसको पानी पानी ही कर दिया था..
उसके साथ खड़ी दूसरी लड़की को सब नागनवार लग रहा था.. उसने कामिनी का हाथ पकड़ कर खींचा," चल ना.. चलते हैं!"
"ये छिप्कलि कौन है?" सुरेशको इतनी बेबाकी से बोलते देख उसका दोस्त हैरान था..
"बाबू जी ये मेरी मासी की लड़की है, चंचल!.. हूमें देरी हो रही है.... हम जायें..?" कामिनी को ऐसी नज़रों की आदत पड़ी हुई थी.. वो कहते हैं ना.. ग़रीब की बहू.. सबकी भाभी!
"ज़रा एक मटका पानी तो लाकर रख दो.. उस ट्यूबिवेल से.. फिर चली जाना..!" सुरेश ने खड़ा होकर अपनी जांघों के बीच
खुजलाते हुए कहा..
"चल ला देते हैं.. नही तो बापू धमकाएँगे बाद में.." कामिनी ने हौले से चंचल को कहा और सड़क से नीचे उतर गयी.. चंचल ने उनको देखते हुए अपनी कड़वाहट प्रदर्शित की और कामिनी के पिछे चल पड़ी.. टुबेवेल्ल करीब आधा कीलोमेटेर दूर था...
"यार.. तुमने तो हद कर दी.. क्या गाँव में ऐसे बोलने को सहन कर लेती हैं लड़कियाँ.." अब तक चुप बैठे दोस्त ने सुरेश को ताज्जुब से देखा..
"ये ज़मीन देख रहे हो राज.. जहाँ तक भी तेरी नज़र जा रही है.. सब अपनी है.. आधे से ज़्यादा गाँव हमारे टुकड़ों पर पलता है.. यहाँ के हम राजा हैं राजा...! इसके बाप ने एक लाख रुपए लिए थे बड़ी लौंडिया की शादी में.. अब तक नही चुकाए हैं साले ने.. इसको तो मैं चाहू तो हमारे सामने सलवार खोलकर मुतवा सकता हूँ.. चल छ्चोड़.. एक पैग लेकर तो देख यार.." सुरेश ने अपना सीना चौड़ा करते हुए राज की तरफ गिलास बढ़ाया..
"तुझे पता है ना यार.. मैं नही लेता..!" राज ने रास्ते में ही सुरेश का हाथ थाम दिया..
"कोई बात नही प्यारे.. तेरे नाम का एक और सही.." कहकर अकेले सुरेश ने अद्ढा ख़तम कर दिया.. अकेले ही..
"एक बात तो है यार.. गाँवों में अब भी बहुत कुच्छ होना बाकी है..." राज को शायद सब कुच्छ पसंद नही आया था..
सुरेश को उसकी बात समझ नही आई..,"तेरे को एक तमाशा दिखाऊँ...?"
"कैसा तमाशा?" राज समझ नही पाया..
"आने दे.. इंतज़ार कर..."
"कमाल है कामिनी.. वो तुझसे इतनी बेशर्मी से बात कर रहा था और तू पानी भरने चली आई उनका.. तेरी जगह अगर मैं होती तो.." चंचल गुस्से से उबाल रही थी...
"तुझे नही पता.. एक बार मुम्मी ने इनका कोई काम करने से मना कर दिया था.. बापू ने इतनी पिटाई की थी की.. बस पूच्छ मत.. वैसे भी पानी पिलाना तो धरम का काम है.." कहते हुए कामिनी ने जैसे ही घड़े का मुँह ट्यूबिवेल के आगे किया.. पानी की एक तेज़ बौच्हर से दोनो नहा गयी...
"ऊयीई.. ये क्या किया..? सारी भिगो दी..मैं भी.." टपकती हुई चंचल ने कामिनी को देखा...
"क्या करूँ.. बातों में सही तरह से घड़े का मुँह नही लगा पाई.. कोई बात नही.. घर जाते जाते सब सूख जाएगा..
"हूंम्म कोई बात नही.. अपनी छाती तो देख ज़रा.. तूने क्या नीचे कुच्छ भी नही पहना..?" चंचल ने कामिनी को कमीज़ में से नज़र आ रहे चूचियों पर चवँनी जैसे धब्बे से दिखाते हुए कहा...
"ओई माआ.. अब क्या करूँ..? इसमें से तो सब दिख रहा है...
"तू क़ोठरे ( खेतों में बना हुआ कमरा) में चल.. और मेरा समीज़ पहन ले.. मेरी छाती सूखी हुई है..." चंचल ने रास्ता निकाला...
"हाँ ये ठीक रहेगा.. चल.. अंदर आजा..!" कहकर कामिनी चंचल को लेकर ट्यूबिवेल के साथ ही बने एक कोठरे में चली गयी...
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उधर पता नही कौनसा तमाशा दिखना चाह रहे सुरेश से इतना इंतज़ार सहन नही हुआ..," चल यार.. ट्यूबिवेल पर ही चलते हैं.."
"छ्चोड़ ना यार.. सही बैठहे हैं यहीं.." राज ने कहा..
"आबे तू उठ तो सही.. वहाँ और मज़ा आएगा.. चल" कहकर सुरेश ने राजका हाथ पकड़ कर खींच लिया...
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"पर.. मैं तेरे सामने कपड़े निकालू क्या?" कामिनी ने अपने साथ कोठरे में खड़ी चंचल से कहा..
"और क्या करें.. मजबूरी है.. तू मेरी तरफ कमर करके निकाल दे.. मैं तुझे अपना समीज़ निकाल कर देती हूँ.." चंचल थोड़ी सी खुले विचारों की थी..
"नही... मुझसे नही होगा.. मैने तो कभी मम्मी के सामने भी नही बदले.." कामिनी शर्मकार हँसने लगी....
"ओये होये.. बड़ी आई शरमाने वाली.. ठीक है.. तू बाहर जा.. मैं समीज़ निकाल कर यहाँ रख देती हूँ.. फिर पहन लेना.. अब तो ठीक है ना मेरी शर्मीली.."
"हां.. ये ठीक है.. कहते हुए कामिनी बाहर निकल कर खड़ी हो गयी..
"अरे.. इसमें तो कोई कुण्डी ही नही है.." चंचल ने दरवाजा अंदर से बंद करने की सोची थी..." खैर तू जा बाहर.. ध्यान रखना.."
"ठीक है.. जल्दी कर.." कहकर कामिनी बाहर निकली ही थी की मानो उसको साँप सूंघ गया.. उसकी ज़ुबान हिली तक नही.. दरवाजे के बाहर खड़े सुरेश और राज शायद सब सुन रहे थे..
"वववो... कपड़े..." बड़ी मुश्किल से कामिनी इतना ही बोल पाई थी की सुरेश ने दरवाजा खोल दिया.. चंचल अचानक हुए इश्स 'हादसे' के कारण सहम गयी.. वह अपना समीज़ निकाल चुकी थी और कमीज़ डालने की तैयारी में थी.. घुटनों के बल बैठ कर उसने अपनी सौगातों को छिपाने की कोशिश की.. इस'से उसके उभार तो छिप गये पर उनके बीच की खाई और गहरी होकर सुरेश को ललचाने लगी.. शराब के साथ ही शबाब का सुरूर भी उस पर छाने लगा..
झट से अपना मोबाइल निकाला और चंचल की 2-4 तस्वीरें उतार ली....
"याइयीई.. क्क्या कर रहे हो?.. कामिनियैयियी...." चंचल बुरी तरह सहम गयी थी.. रोने लगी....
राज जो अब तक मौन ही खड़ा था.. अपने आपको 'नारी-दर्शन' से रोक ना सका.. वा भी अंदर आ गया.. चंचल का शरीर देखने लायक था भी...,"ये क्या कर रही हो तुम?"
"लड़की लड़की खेल रहे थे.. और क्या?" कहकर सुरेश ने दाँत निकाल दिए..," अरे कामिनी.. तू तो सच्ची में ही जवान लौंडिया हो गयी रे..." कामिनी के उभारों के उपर नज़र आ रहे नन्हे उभारों पर नज़र गड़ाए सुरेश बोला..," कोई लड़का नही मिल रहा क्या तुम्हारे को.. हम हैं ना.." कहते हुए सुरेश ने चंचल से उसके दोनो कपड़े झपट लिए....
"नही नही.. प्लीज़.. हमारे कपड़े दे दो.. वो इसका कमीज़ भीग गया था.. इसलिए.." कक्कर चंचल बिलख पड़ी...
"देख लौंडिया.. कपड़े तो माखन चोर भी चुराते थे... देखने के लिए.. फिर ये कोठरा किसी के बाप की जागीर नही.. हमारा है... यहाँ मेरी मर्ज़ी चलेगी.. मैं अभी गाँव वालों को इकट्ठा करता हूँ.. यहीं पर.. और उनको बताता हूँ की तेजू की छ्छोकरी यहाँ 'लड़की-लड़की' खेल रही थी.." कहते हुए सुरेश का जबड़ा भिच गया..
"नही नही.. बाबूजी..ऐसा ना करो.. हम आपके पाँव पकड़ते हैं.." मासूम कामिनी घुटनो के बल आ गयी...
"क्यूँ ना करूँ छ्होरी.. तुझे याद है ना.. 2 साल पहले कीही बात हैं.. गाँव का एक लड़का रात में तुम्हारे घर घुस गया था.. याद है ना.. तब क्या हुआ था..!" सुरेश गुस्से का झूठहा दिखावा कर रहा था..
"याद है बाबू जी.. हमें माफ़ कर दो.. कपड़े दे दो हमारे.. हम चले जाएँगे.."
"उस बख़त (वक़्त) तू कौनसी क्लास में थी..?" सुरेश ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया..
"जी सातवी (सेवेंत) में.." कामिनी सूबक रही थी..
"अब नवी 9थ में होगी...है ना?"
"जी..."
"क्या कुसूर था.. उस लड़के का.. तेरी मा बेहन ने बुलाया होगा.. तभी गया होगा ना.... और पंचायत ने उसको 5 जूते मारे.. क्यूँ? तेरी मा बेहन को क्यूँ नही मारे..? क्यूंकी लड़का तुम्हारे घर फँस गया था.. वैसे ही जैसे ये हमारे यहाँ फँस गयी है.. मैं अभी गाँव वालों को बुलाता हूँ.." कहते हुए सुरेश ने बिना कॉल किए ही फोन कान से लगा लिया..
ये सब देख कर चंचल अपना नन्गपन भूल कर खड़ी हुई और सुरेश से फोने छ्चीन'ने की नाकामयाब कोशिश करने लगी.. उसका बदन कमाल का था..एक दम छरहरा बदन पर चूचियाँ काफ़ी सुडौल और मस्ती भरी थी.. फोने छ्चीन'ने की कोशिश में जब वो रह रह कर सुरेश की छाती से टकराई तो वो निहाल हो गया.. खून उबाल खाने लगा..
अलग थलग खड़े राज को अब इसमें मज़ा आने लगा था...
"ठीक है.. नही बुलाउन्गा.. पर एक शर्त पर.." चंचल से अलग हट कर उसने 2-4 बार और कैमरे का बटन क्लिक कर दिया.. और चंचल फिर से घुटनो के बल आ गयी..
"क्कैसी शर्त.. बाबूजी.. बताइए..." किसी उम्मीद में कामिनी भी खड़ी हो गयी..
"मैं तुमसे कुच्छ पूच्हूंगा.. बताउन्गा?" सुरेश के मॅन में जाने क्या सूझा..
"पूच्हिए बाबूजी.. हम बताएँगे.. पर किसी को ना बुलाना.. हुमारी बड़ी बेइज़्ज़ती होगी.....
"वो लड़का तुम्हारे घर में किसके पास आता था.. तुम्हारी बेहन के.. या तुम्हारी मा के..?" सुरेश शायद अब भी सीधे मतलब की बात पर आने से हिचक रहा था..
"किसी के पास नही आता था.. वो तो चोरी करने आया था.. हमारे घर.." कामिनी ने नज़रें चुराते हुए कहा..
"तू मुझे चूतिया समझती है क्या?" सुरेश ने बालों के नीचे उसकी गर्दन में हाथ फेरा... कामुकता की अंजनी सी तरंग एक दम से कामिनी के पूरे बदन में दौड़ गयी.. संभवतया सर्वप्रथम!
चंचल ने अपने आपको एक कोने में दुब्का लिया था.. शर्म से और अनहोनी के डर से...
"बुलाऊं अभी फोने करके.. गाँव वालों को.. ?" सुरेश ने बंदर घुड़की दी...
"मेरी बेहन के पास..." चंचल के आगे इश्स स्वीकारोक्ति से लज्जित सी हो गयी कामिनी अपने दोनो हाथ आगे बँधे सिर झुकाए खड़ी थी..
"रहने दो ना यार.. बहुत हो गया.. अब जाने दो बेचारियों को.." राज से उनके आँसू देखे नही जा रहे थे...
"तुम बीच में मत बोलो राज.. तुम्हे नही पता.. वो लड़का मेरा गहरा दोस्त था.. आज मौका मिला है मुझे.. कुच्छ साबित करने का.. मैं तुम्हे बाद में समझा दूँगा..."
"पर यार.. कम से कम उस बेचारी के कपड़े तो दे दो.. उसका क्या कुसूर है..?" इन्ही अवसरों पर पहचान होती है.. इंसान की.. और हैवान की.. मर्द तो सभी होते हैं.. राज भी था
"चलो.. दे देता हूँ.. पर याद रखना.. मैने फोटो खींच ली हैं.. ज़्यादा नखरे किए तो.. समझ गयी ना.." कहते हुए सुरेश ने उसकी और कपड़े उच्छल दिए..
चंचल की नज़रों में राज के लिए अतः क्रितग्यता झलक रही थी.. जाने कैसे वह बदला चुका पाएगी....
सुरेश फिर से कामिनी की और घूम गया," वहाँ आ जाओ दोनो..." और कहकर दीवार के साथ लगे फोल्डिंग पर बैठ गया.. दोनो चुपचाप जाकर उसके सामने खड़ी हो गयी..
"मैं बाहर बैठता हूँ यार.. तू कर ले अपनी इन्वेस्टिगेशन.. जल्दी जाने देना यार.." कहकर राज बाहर निकल गया...
"हां तो किसके पास आता था सन्नी.." सुरेश फिर से टॉपिक पर आ गया..
".... बेहन!" कामिनी ने हौले से बुदबुडाया.. इश्स वक़्त चंचल को इश्स बात पर चौंकने से ज़्यादा अपनी जान के लाले पड़े हुए थे..
"क्यूँ आता था..?"
"पता नही बाबूजी.. हमें जाने दो ना प्लीज़.. मम्मी बहुत मारेंगी.." कामिनी ने गिडगीडा कर एक आख़िरी कोशिश की.. पिच्छा छुड़ाने की..
सुरेश ने पास पड़ी एक लुंबी सी च्छड़ी उठाई और उसकी नोक को कामिनी के गले पर रख दिया.. फिर धीरे धीरे उसको उसकी चुचियों के उपर से लहराता हुआ उसके पाते और फिर जांघों पर जाकर रोक दिया," नही पता..?"
"ज्जई.. गंदा काम करने....... आता था.." बिल्कुल सही जगह के करीब च्छड़ी रखने से उत्तेजना की जो लहर कामिनी के बदन में उपजी.. उसने सवाल का जवाब देना थोड़ा आसान कर दिया..
"क्या गंदा काम करने...? सीधे जवाब नही दोगि तो मैं सवाल पूच्छना बंद करके फोन घुमा दूँगा..." सुरेश इश्स हथियार को अचूक मान रहा था.. और बदक़िस्मती ये की.. लड़कियाँ भी!
"जी.. वो कपड़े निकाल कर...." आगे कामिनी बोलने की हिम्मत ना जुटा पाई....
"जैसे अभी तुम निकाल रही थी.. है ना..!" सुरेश ने फिर से उनको याद दिलाया की उनको उसने क्या करते पकड़ा था...
"नही बाबू जी.. हम तो बस... बदल रहे थे..." आगे कामिनी का बोल अटक गया.. सुरेश ने च्छड़ी का दबाव उसकी जांघों के बीच बढ़ा दिया था.. चुलबुलाहट सी हुई.. कामिनी के बदन में.. और वो पिछे हट गयी..
"वहीं खड़ी रहो.. हिलो मत.. आगे आओ.. क्या कह रही थी तुम..?"
"कामिनी ने अक्षरष: सुरेश की आग्या का पालन किया.. वो आगे आ गयी.. च्छड़ी उसकी सलवार और पॅंटी पर अपना दबाव बढाने लगी...," जी.. हम तो बस कपड़े बदल रहे थे...
"तो वो क्या करते थे.. कपड़े निकाल कर.. बोलो..?" सुरेश च्छड़ी को वहीं पर टिकाए घुमा रहा था.. कामिनी को अजीब सा अहसास हो रहा था.. उसकी पॅंटी के अंदर.. पहली बार.. चीटियाँ सी रैंग रही थी.. और लग रहा था..च्छड़ी में से वो चीटियाँ निकल निकल कर उसके 'वहाँ' से उसके सारे शरीर में फैल रही हैं...
"ज्जई.. वो.. प्यार करते थे.." जाने कहाँ से कामिनी ने सुना था.. ' इसे प्यार कहते हैं..
"अच्च्छा.. और कैसे करते हैं प्यार..?" सुरेश के 'औजार' को शायद अहसास हो गया था की उसका इस्तेमाल होने वाला है.. रह रह कर वो पयज़ामे में फुनफना रहा था.. और इश्स फंफनहट से हुई बेचैनी चंचल को अपने शरीर में भी महसूस होने लगी थी..
"ज्जई... वो कपड़े निकाल कर... " कामिनी फिर अटक गयी..
"हां हां.. बोलो.. कपड़े निकाल कर.. क्या करते थे बोलो!" सुरेश ने उकसाया..
"जी.... वो.. सू.. सू.. में.." लगता था जैसे किसी ने कामिनी की ज़ुबान को बाँध रखा हो.. हर शब्द अटक अटक कर बाहर आ रहा था....
"आख़िरी बार पूचहता हूँ.. सीधे सीधे बता रही हो या नही.." अब सुरेश से भी ये अनोखा साक्षात्कार सहन नही हो रहा था..
" ज्जजई.. वो च.. चुदाई.. करते थे.." बोलते हुए कामिनी का अंग अंग सिहर उठा...
"अच्च्छा चुदाई करते थे.. ऐसे बोलो ना.. इसमें मुझसे शरमाने की क्या बात है.. मैने भी बहुतों की चुदाई की है.. अपने लंड से.. जब चूत में लंड डालता है तो लड़कियाँ पागल हो जाती हैं.. तुमने डलवाया है कभी लंड.." जाने क्या क्या सुरेश एक ही साँस में बोल गया था..
दोनो लड़कियाँ सिर नीचे झुकायं ज़मीन में गाड़ि जा रही थी.. शर्म के मारे..
"बताओ ना.. तुम्हे चोदा है कभी.. किसी ने... तुम्हारी चूत को फाडा है कभी..?"
चंचल का सिर ना में हिल गया.. पर कामिनी तो जैसे सुन्न हो गयी थी...
"इसका मतलब कामिनी को चोदा है.. कामिनी.. तू तो छुपि रुस्तम निकली.. तू तो सच में ही जवान है रानी.. किसने चोदा है तुझे.." सुरेश को इश्स कामुक वार्तालाप में अत्यधिक आनंद आ रहा था..
अनायास ही कामिनी के मुँह से निकल पड़ा,"मैने तो आज तक देखा भी नही बाबूजी.. देवी मैया की कसम..!" फिर ये सोचकर की क्या बोल गयी.. शरम से हाथों में अपना मुँह छिपा लिया..
"चूचूचूचु.. आज तक देखा भी नही.. आजा.. इधर आ .. दिखाता हूँ...... आती है की नही..." सुरेश ने जब धमकी सी दी तो कामिनी की हिम्मत ना रही की उसके आदेश का पालन ना करे.. वह आगे आकर उसकी टाँगों के पास खड़ी हो गयी...
"बैठ जा..." सुरेश के कहते ही वह घुटनों के बल ज़मीन पर आ गयी..
"ले..! मेरा नाडा (स्ट्रिंग टू होल्ड पयज़ामा) खोल.." सुरेश ने अपनी टाँगें चौड़ी करके अपना कुर्ता उपर उठा दिया... पयज़ामा जांघों के बीच में एक पोल की तरह उठा हुआ था..,"जल्दी खोल.." सुरेश के इश्स आदेश में उत्तेजना और अधीरता दोनो थे..
मरती क्या ना करती.. अभागन मासूम कामिनी ने नाडे को पकड़ा और आँखें बंद करके खींच लिया.. अंदर बैठा अजगर शायद इसी इंतज़ार में था.. कामिनी की आँखें बंद थी.. लेकिन चंचल जो इश्स सारे घटनाक्रम को बड़ी उत्सुकता से देखने लगी थी.. उसका कलेजा लंड का आकर देखकर मुँह को आ गया.. हैरत से उसने अपने होंठों पर हाथ रख लिया.. नही तो शायद चीख निकल जाती..
सुरेश का ध्यान चंचल की और गया.. जिस तरह की प्रतिक्रिया चंचल ने दी थी.. उस'से सपस्ट था की उसको बहकाना कामिनी के मुक़ाबले ज़्यादा आसान है..
"तुम भी इधर आकर बैठ... इसको हाथ में लो.."
चाहते हुए या ना चाहते हुए.. पर चंचल को 'उस' के करीब आने में कामिनी से कम समय लगा... आहिस्ता से डरती सी हुई चंचल ने अपना एक हाथ आगे बढ़ाया और उसको एक उंगली से च्छुने लगी.. मानो चेक कर रही हो.. कहीं गरम तो नही..
"ऐसे क्या कर रही हो.. मुट्ठी में पाकड़ो ना.." सुरेश उत्तेजना के मारे अकड़ सा गया था...
और चंचल ने अपने हाथ को सीधा करके लंड पर रखा और मुट्ही बंद करने की कोशिश करने लगी.. बहुत गरम था.. बहुत ठोस था.. और बहुत मोटा भी.. मुट्ही बंद नही हुई..
चंचल बड़े गौर से 'उसको' देख रही थी.. जैसे कभी पहले ना देखा हो.. देखा भी होगा तो ऐसा नही देखा होगा.. जाने अंजाने जीभ बाहर निकाल कर उसके होंठों को तर करने लगी..
"तुम भी पाकड़ो ना.. देखो इसने पकड़ लिया है.. मज़ा आ रहा है ना" नशे और उत्तेजना में रह रह कर सुरेश की आँखें बंद हो रही थी..
कामिनी ने धीरे से पलकें खोली.. आधे से थोडे ज़्यादा लंड पर अपनी बेहन के कोमल हाथों का घेरा देखा.. और फिर तिर्छि नज़रों से सम्मोहित सी हो चुकी चंचल को देखा.. कामिनी को पता हो ना हो.. की लंड बहुत कमाल का है.. पर उसकी चूत एक नज़र देखते ही समझ गयी.. एक दम से पानी छ्चोड़ दिया.. आनंद के मारे.. एक बार फिर कामिनी ने आँखें बंद करके अपनी जांघें भीच ली..
सुरेश तो निहाल हो गया था," इसको अपने मुँह में लेकर देखो.. सच में बड़ा मज़ा आता है.. सारी लड़कियाँ लेती हैं.." सुरेश के आदेश अब प्रार्थना सी में तब्दील होते जा रहे थे..
पहल चंचल ने ही की.. अपने गुलाबी होंठ खोले और झुक कर उसके सूपदे पर रख दिए.. सुरेश आनंद के मारे सिसकार उठा..
समा ही कुच्छ ऐसा बन गया था.. डर की जगह अब उत्सुकता और आनंद ने ले ली थी.. कामिनी का हाथ अपने आप उठकर चंचल के हाथ के नीचे लंड पर जाकर जाम गया.. अब भी सूपड़ा बाहर झाँक रहा था.. दो कमसिन कलियों के पाश में बँधा हुआ..
चंचल तो अब इश्स काद्रा बदहवास हो गयी थी की अगर उसको रोका भी जाता तो शायद वह ना रुकती.. अपना हाथ नीचे सरककर उसने कामिनी के हाथ को हटाया और पूरा मुँह खोल कर सूपदे को निगल गयी.. आँखें बंद की और किसी लोलीपोप की तरह मुँह में ही चूसने लगी.. सुरेश पागल सा हो गया.. अपने हाथों को चंचल के सिर पर रखा और नीचे दबाने लगा.. पर जगह थी ह कहाँ.. और अंदर लेने के लिए..
"मुझे भी करने दो..!" और कामिनी का संयम और शर्म एक झटके में ही बिखर गये..
चंचल ने अपना मुँह हटा कर लंड को कामिनी की और घुमा दिया..
अजीब नज़ारा था.. ब्लॅकमेलिंग से शुरू हुआ खेल ग्रुप सेक्स में तब्दील हो जाएगा... खुद सुरेश को भी इतनी उम्मीद ना थी.. रह रह कर तीनों की दबी हुई सी आनंदमयी लपड चापड़ और सिसकियाँ कमरे के माहौल को गरम से गरम करती रही.. इसका पटाक्षेप तब हुआ जब सुरेश दो कलियों के बीच शुरू हुए इश्स आताम्चेट युध को सहन नही कर पाया और छ्चोड़ दिया... ढेर सारा.. दोनो के चेहरों पर गरम वीरा की बूंदे और लकीरें छप गयी.. दोनो तड़प रही थी.. लेने को.. डलवाने को!
दोनो जाने कितनी देर तक ढहीले पड़ गये लंड को उलट पलट कर सीधा करने की कॉसिश करती रही.. पर सुरेश शराब के कारण अपने होश कायम नही रख पाया था.. एक बार के ही इश्स चरमानंद ने उसको गहरी नींद में सुला दिया..
जब कामिनी ने सुरेश के खर्राटे भरने की आवाज़ को सुना तो वो मायूस होकर चंचल से बोली..," पता नही क्या हो रहा है.. मैं मर जवँगी.. कुच्छ करो.."
"जाओ.. बाहर उस दूसरे लड़के को देखकर आओ.. तब तक मैं इसका पयज़ामा उपर करती हूँ..." चंचल का भी यही हाल था..
"वो यहाँ नही है दीदी..! मैं बाहर सड़क तक देख आई.." वापस आकर कामिनी ने बदहवासी सी अपनी जांघों के बीच उंगलियों से खुरचते हुआ कहा..
"तुम एक काम करो.. कपड़े निकालो जल्दी.." चंचल के पास एक रास्ता और था..
जिन कपड़ों को वापस पाने की खातिर वो इतना रोई थी.. इतना गिड़गिडाई थी.. उनकी दुर्गति पूच्छने वाला अब कोई नही था.. दोनो के कपड़े यहाँ वहाँ कमरे में बिखरे पड़े थे..
चंचल ने कामिनी की छ्होटी छ्होटी चुचियों को मुँह में दबाया और उसकी गांद की दरार में अपनी उंगलियाँ घुमाने लगी.. कामिनी आनंद के मारे रह रह कर उच्छल रही थी.. आँखें बंद करके ज़्यादा से ज़्यादा चूची उसके मुँह में घुसेड़ने का प्रयास कर रही थी..
"मुझे कौन करेगा?" चंचल ने अचानक हट'ते हुए गुस्से से कहा..
"क्या?" कामिनी समझी नही...
"वही जो मैं कर रही हूँ बेवकूफ़.. मेरी गांद को सहला.. और ये ले.. अब मेरी चूची को तू चूस.."
बड़ा ही अनोहारी दृश्या था.. पास ही बेड पर सुरेश सोया पड़ा था.. और अब तक इज़्ज़त बचाने की जद्दोजहद से जूझ रही लड़कियाँ एक दूसरी को सांत्वना देने की होड़ में भिड़ी हुई थी.. एक दूसरी की 'इज़्ज़त' को दोनो हाथों से.. और होंठों से चूम रही थी.. चूस रही थी.. फाड़ रही थी.. नोच रही थी और लूट रही थी....
कुच्छ देर बाद चंचल ने कामिनी को ज़मीन पर लिटा और उल्टी तरफ होकर उसके उपर चढ़ गयी.. कामिनी की चूत पड़ी प्यारी थी.. हल्क हल्क बालों वाली.. छ्होटी सी.. चंचल ने अपनी जीभ निकाली और कामिनी की चूत की पतली सी दरार को अपनी उंगलियों से चौड़ा करके उसमें अपनी जीभ घुसेड दी.. कामिनी आनंद के मारे लाल हो उठी..," आआआआअहह मम्मी मैं मरी..."
"अकेली क्यूँ मर रही है रंडी? मेरी भी मार ना.. तेरे मुँह पर रखी है मेरी चूत.. चाट इसको.. उंगली घुसा के पेल.." चंचल की वासना ने रौद्रा रूप धारण कर लिया था.. उसकी साँसे उखड़ी हुई थी.. पर हौंसले बुलंद थे..
कामिनी को अब बारबार सीखने की ज़रूरत नही पड़ी.. बस जैसे जैसे चंचल उसको कर रही थी.. वैसे वैसे ही कामिनी भी करती जा रही थी.. दोनो अब तेज तेज आवाज़ें निकाल रही थी...
अपने भाई को घर बुलाने आया राकेश काफ़ी दीनो के बाद इतना प्यारा मादक संगीत सुनकर भाव विभोर हो गया..
दरवाजे की दरार से झाँक कर देखने की उसने कोशिश की पर सफल ना हुआ.. शब्र का बाँध टूट ही गया तो उसने एक झटके के साथ दरवाजा खोल दिया..
शुरू में लड़कियाँ चौंकी नही.. उनको राज के आने की उम्मीद थी.. पर राकेश को देखकर उनकी घिग्गी बाँध गयी..," वववो.. म्म्माइन.... हूंम्म्म.."
"ष्ह.. कुच्छ मत बोलो.. ऐसे ही लेटी रहो.. शोर मचाया तो दोनो को ऐसे ही घसीट'ता गाँव ले जाउन्गा.." और एक दूसरी ब्लॅकमेलिंग शुरू हो गयी.. पर इश्स वक़्त उन्न दोनो को इसकी ही सबसे अधिक ज़रूरत थी...
"इस्सको कहते हैं बिल्ली के भागों छ्चीका टूटना.." राकेश को पका पकाया माल खाने को मिल गया..
"ले मेरा लंड चूस कामिनी.. बहुत दीनो से सूखा ही घूम रहा हूँ.." राकेश ने भी बिना देर किए अपने कपड़े उतार फैंके...
राकेश का लंड मुँह में लेने में कामिनी को ज़्यादा मस्सकत नही करनी पड़ी.. थोड़ी ही कोशिश के बाद राकेश का आधा लंड कामिनी के गले में ठोकरे मार रहा था...
"ये चिकनी चूत कौन है.. पहचान में नही आई..." राकेश ने कामिनी के मुँह के उपर रखी चंचल की चूत में उंगली घुसेड दी.. उंगली घुसेड़ने का तरीका इतना जंगली था की चंचल बिलख पड़ी..," ओई माआ.."
"मा को क्यूँ पुकार रही है.. उसकी भी मर्वानी है क्या..!" मस्ती से भरे राकेश ने 'पुच्छ' की आवाज़ के साथ अपना लंड कामिनी के होंठों से जुदा किया और चंचल की थूक और रस से चिकनी हो चुकी चूत को दो उंगलियों से खोलकर वहाँ टीका दिया..
"कामिनी.. इसकी गांद को दोनो हाथों से कसकर पकड़ ले.. नही तो ये बिलबिलाएगी.. पहली बार लग रहा है.. आई है किसी लंड के सामने.."
कामिनी ने वैसा ही किया.. और वैसा ही हुआ जैसा राकेश ने कहा था.. चंचल चिंहूक उठी.. हालाँकि बिलबिलने वाली बात नही थी... पर अभी सूपड़ा ही अंदर गया था.....
जब एक के साथ एक फ्री मिल रही हो तो कोई दोनो के ही मज़े लेगा.. एक के क्यूँ.. सूपदे को चिकनी कुँवारी चूत का स्वाद चखाकर राकेश ने 'अपना' वापस खींच लिया और फिर से उसको कामिनी ने मुँह पर रख दिया.. कामिनी को इश्स मादक द्रिव्या को चटकार सॉफ करने में चाँद सेकेंड ही लगे.. राकेश ने ऐसा अनोखा मज़ा कभीलिया नही था सो उच्छल उच्छल कर दोनो के मज़े ले रहा था...
एक बार फिर सूपदे समेत लंड आधा चूत द्वार के पार हो गया.. आनंद की पराकास्था में अब चंचल खुद भी धक्के लगा रही थी.. हानफते हुए.. पीछे की ओर..
और चंचल ने वासना के सागर में अंतिम साँस ली.. इसी एक पल में उसने अपनी जीभ गोल करके कामिनी की चूत में घुसा दी और निढाल हो गयी..
राकेश ने जब अपना लंड बाहर निकाला तो वह पहले से ज़्यादा खड़ा, पहले से ज़्यादा चिकना और पहले से ज़्यादा ख़तरनाक लग रहा था...
पाला बदल कर वह चंचल के मुँह की और जा पहुँचा.. कामिनी की चूत की और.. जो उसका बेशबरी से इंतज़ार कर रही थी.. फूल कर मोटी हो चुकीचूत की दरार भी भी अब पहले से चौड़ी लग रही थी.. पर योनि द्वार उतना ही था.. पेन्सिल की नोक भी घुसना असमभव लगता था..
पर इरादे मजबूत थे..," कसकर टाँगें पकड़ना डार्लिंग.. यहाँ मामला मुश्किल लगता है....
"कर दो.. मैने पकड़ रखी हैं.." चंचल कामिनी को ऐसे कैसे जाने देती.. टाँगों को मजबूती से दबाते हुए उन्हे और चौड़ा किया और सुपाडे को अपने होंठों से चूमा.. मानो विजय सूचक तिलक कर रही हो लंड के माथे पर..
च्छेद पर हूल्का सा दबाव बनते ही कामिनी बिलबिला उठी.. लंड को इधर उधर का रास्ता दिखाने की कोशिश के साथ ही कामिनी ने इस जानलेवा प्रहार से बचना चाहा.. पर..
अचानक ऐसी आवाज़ हुई जैसे कोई वाल्व फट गयी हो.. और खून की एक पतली सी धारा राकेश के लंड को वापस खींचने के साथ ही बह निकली..," वाह.. इसको कहते हैं असली कुँवारा माल.. क्या सील टूटी है आज.." राकेश को कामिनी की छट पटाहट से कोई लेना देना नही था... तो बस रोंडता ही चला गया.. घुसता ही चला गया..
कामिनी के आँसू किसी ने पौन्छे नही.. अपने आप ही रुके जब उसको दर्द के असहनीया अहसास के साथ आनंद की मिठास की खुश्बू आने लगी.. फिर ये तो होता ही है.. हाए, आह में बदल जाती है.. वही अब तक कुँवारी कामिनी के साथ भी हो रहा था...
राकेश को अब खूब सहयोग सहयोग दोनो तरफ से मिल रहा था.. जब भी उसका लंड हाँफने के लिए बाहर निकालता.. चंचल के होंठ उसको अपनी गिरफ़्त में ले लेते.. और चूम चाट कर दोबारा तरोताजा करके.. उसके लिए मिन्नटें कर रही कामिनी की चूत में वापस धकेल देते.. कामिनी भी ज़्यादा देर ना ठहरी और एक बार फिर से छ्चोड़ देने के लिए गिड़गिदाने लगी..
अब राकेश का भी वक़्त आ गया था.. उसके बाहर निकलते ही ज्यूँ ही इश्स बार चंचल ने उसको लपका.. राकेश ने लंड उसके मुँह में ही कसकर दबा लिया.. चंचल च्चटपटाने लगी.. लंड उसके गले में फँसा हुआ था..
और वीरया की एक गढ़ी धार चंचल के गले में उतरती चली गयी.. बिना स्वाद का अहसास कराए...
कुच्छ देर बाद जब सब कपड़े पहन कर खड़े हुए तो राकेश ने हंसते हुए कहा," इश्स मूसलचंद को कहाँ फँस गयी थी तुम.. इश्स'से तो 2-2 बच्चों वाली भी डरती हैं.. अगर ये कर देता तो यहाँ से सीधे हॉस्पिटल ही जाती तुम....
खैर जो हुआ.. अच्च्छा ही हुआ!!!!!
तो दोस्तों ये पार्ट यहीं बंद कर रहा हूँ आगे की कहानी पार्ट ३५ मैं तब तक के लिए विदा लेलिन अपनी राय देना मत भूलना
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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