Monday, June 21, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --44

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --44

हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हूँ नेक्स्ट पार्ट लेकर
"शुक्र है फ्रॅक्चर नही है! माँस फटने से सूजन आ गयी है.. ठीक होने में 10-15 दिन लग जाएँगे.. मैं कुच्छ दवाइयाँ लिख देती हून.. टाइम से लेते रहना और नेक्स्ट मंडे एक बार आकर चेक करा जाना... ओके?" हॉस्पिटल में लेडी डॉक्टर वीरेंदर और राज के पास खड़ी थी..," करते क्या हो तुम?"
"जी, पढ़ते हैं..10+2 में" दोनो एक साथ बोल पड़े...
"तुम्हारा दोस्त शरमाता बहुत है.." डॉक्टर ने राज को प्रिस्क्रिप्षन पेपर दिया और मुस्कुराते हुए वहाँ से दूसरे पेशेंट के पास चली गयी...
"क्या बात थी.. तू शर्मा क्यूँ रहा था ओये?" राज ने वीरू के कान के पास मुँह लेजाकार कहा...
"मेरी पॅंट निकलवा ली थी यार.. शरम नही आएगी क्या?" वीरू मुस्कुराया और अचानक बात पलट दी..," चलें.. सुबह होने को है.."
"एक मिनिट.. मैं भाई साहब को देखकर आता हूँ... तू यहीं लेटा रह तब तक.." राज ने वीरू से कहा..
"कहाँ गये वो..?"
"पता नही.. अभी 20 मिनिट पहले यहीं थे.. एक फोन करने की बात कहकर निकले थे.. बाहर ही होंगे.. मैं बुलाकर लाता हूँ.." कहकर राज बाहर निकल गया...
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करीब 10-15 मिनिट बाद राज वापस आया," यार वो तो कहीं दिखाई नही दिए... मैं हर जगह देख आया.."
"चले तो नही गये हैं.. स्नेहा रूम पर अकेली है ना.. वो उसको बोल भी रहे थे की देर लगी तो मैं आ जाउन्गा..!" वीरू ने राज से कहा..
"पर मैं पार्किंग में गाड़ी भी देख आया हूँ... वहीं खड़ी है.. गये होते तो गाड़ी लेकर नही जाते क्या?" राज ने सवाल किया...
"फिर तो यहीं होंगे.. इंतजार करते हैं.. और क्या?" वीरू ने राज की और देखते हुए कहा...
राज ने सहमति में सिर हिलाया और वीरेंदर के पास ही बैठ गया.....
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सवेरा हो गया था.. स्नेहा को सारी रात नींद नही आई.. यूँही करवटें बदलती हुई विकी के बारे में सोचती रही...कितना प्यारा है मोहन.. कितना अपना सा है.. 3 दिन में ही वो उस'से किस कदर जुड़ गयी थी.. उसके दूर जाते ही उसको लगता था की वो फिर से नितांत अकेली हो गयी है... मोहन ने एक साथ ही उसको कितनी सारी खुशियाँ दे दी... मोहन के लिए ही जियूंगी अब... उसके लिए मर भी जाउन्गि... स्नेहा ने मन ही मन सोचा और अंगड़ाई लेते हुए उल्टी लेट गयी.. उसका रूप निखर आया था.. अब हर अंग हर पल जैसे 'मोहन मोहन' ही पुकारता रहता था.. आज गाड़ी में ही उन्होने कितनी मस्ती की थी.. स्नेहा रह रह कर विकी से लिपट जा रही थी.. 'पल' भर की बेचैनी भी स्नेहा से सहन नही हो रही थी... मोहन ने वादा किया था.. रोहतक जाकर एक दोस्त के फ्लॅट पर रुकेंगे और वो उस'से वहाँ पहले दिन वाला ही प्यार फिर से करेगा... जी भर कर.. वो रोहतक आ भी गये थे.. पर स्नेहा से 2 पल का भी इंतज़ार नही हो रहा था.. वो रह रह कर मोहन से लिपटी जा रही थी.....
और शायद इसीलिए 'वो' हादसा हुआ.. अगर वो मोहन को इस तरह 'तंग' ना करती तो शायद मोहन हादसे को टाल भी लेता.. सोचते हुए स्नेहा ने एक लंबी आह भारी.. और करवट बदलकर फिर से सीधी हो गयी...
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करीब 10 मिनिट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई.. स्नेहा एक दम से उठी और दरवाजे के पास जाकर पूचछा," कौन है?"
"हम हैं.. दरवाजा खोलो"
आवाज़ वीरू की थी.. स्नेहा ने झट से दरवाजा खोल दिया..," आ गये.. क्या रहा?"
"भैया यहाँ नही आए हैं क्या..?" राज ने उल्टा उसी से सवाल किया..
"क्या मतलब?" स्नेहा का दिल धक से रह गया..," कहाँ हैं वो? यहाँ तो नही आए..
"गाड़ी तो उनकी वहीं पर खड़ी है... फोन करने की कहकर निकले थे.. हमने करीब 1:30 घंटे उनका इंतज़ार किया.. फिर सोचा क्या पता यहीं आ गये हों.. इसीलिए हम आ गये..." राज ने चिंतित स्वर में उत्तर दिया...
स्नेहा बिना कुच्छ सोचे समझे ही रोने लगी...," उन्होने पहले ही कहा था की रोहतक में उनको ख़तरा है.." सुबक्ती हुई स्नेहा के गालों से मोटे मोटे आँसू बहने लगे..
राज ने वीरू को बेड पर लिटा दिया.. दोनो की समझ में नही आ रहा था की वो क्या करें; क्या कहें... कुच्छ देर बाद राज उठकर स्नेहा के पास आया," आ जाएँगे.. आप रो क्यूँ रही हैं.. हम छ्चोड़ आएँगे.. आपको जहाँ जाना है..."

स्नेहा को कहाँ जाना था.. वो अब जा भी कहाँ सकती थी... मोहन के संग सपनों का, अरमानो का जो गुलिस्ताँ स्नेहा ने अपने दिल में सहेज लिया था, उसके आलवा अब इस जहाँ में उसका बचा ही क्या था.. पापा? जिसने महज अपनी राजनीति के लिए शतरंज की बिसात पर मोहरे की तरह से उसका इस्तेमाल किया था.. उसके पास? नही.. कभी नही! अगर वो ऐसा सोचती भी तो किस मुँह से.. वा खुद उसके खिलाफ बग़ावत पर उतर आई थी.. और शालिनी वाला केस सुर्ख़ियों में आने पर तो उसको अपने 'बाप' से नफ़रत सी हो गयी थी....
"चिंता ना करें आप... लीजिए.. आप फोन कर लीजिए..." राज ने अपना फोन उठाकर स्नेहा को दे दिया...
"ओह हां.. पर उसका फोन तो ऑफ ही रहता है.. अक्सर.. चलो ट्राइ करती हूँ..!" उम्मीद की किरण नज़र आने से उसकी सुबाकियाँ कुच्छ कम हुई और उसने विकी का नंबर. डाइयल किया.. पर जैसा स्नेहा ने सोचा था वैसा ही हुआ.. फोन ऑफ था.. स्नेहा को मोहन की भी चिंता हो रही थी और अपनी भी.. वह बेड पर बैठकर अपना सिर पकड़कर रोने लगी....
"तुम रो क्यूँ रही हो.. वो थोड़ी बहुत देर में आ ही जाएँगे.... वैसे तुम्हारे पास घर का नंबर. भी तो होगा ना.. वहाँ पता कर लीजिए अगर उन्होने घर पर फोन किया हो तो.. वैसे वो भाई साहब आपके लगते क्या हैं?" वीरू बेबस था.. उसके पास आकर उसके आँसू नही पोंच्छ सकता था...
क्या बताती स्नेहा.. क्या नाम देती 2 दिन पहले बने इस दिल के रिश्ते को.. उसको डर था की अगर वो सच्चाई बताती है तो कहीं दोनो डर कर कुच्छ उल्टा सीधा ना कर दें.. मसलन पोलीस को फोन वग़ैरह.. प्रत्युत्तर में वो बिलख पड़ी..," मोहन.. कहाँ हो तूमम्म्मममम???"

स्नेहा का वो कारून प्रलाप सुनकर दोनो का दिल दहल गया.. राज उसके पास जाकर बैठ गया," आप ऐसे ना रोयें.. मैं छ्चोड़ आउन्गा आपको जहाँ जाना है... देखिए यहाँ पर हम एज ए स्टूडेंट रह रहे हैं... किसी ने आपका रोना सुन लिया तो लोग तरह तरह की बातें करेंगे.. प्लीज़.. आप सब्र से काम लें.. वो आते ही होंगे..." राज कह तो रहा था की वो आ जाएँगे.. पर चिंता उसको खुद को भी होने लगी थी.. अब तक तो उसको यहीं पर आ जाना चाहिए था.. 3 घंटे के करीब होने वेल थे उसको गायब हुए...
स्नेहा ने जैसे तैसे खुद को संभाला..," क्या मैं यहीं रह सकती हूँ.. जब तक वो नही आता?" उसने अपने आँसू पोंच्छ लिए.. सच में ही उसका रोना उन्न बेचारों को मुसीबत में डाल सकता था.. और खुद उसको भी...
" क्या?.. हां.. पर.. मेरा मतलब है कि..." राज को कोई शब्द ही ना मिला आगे कुच्छ कहने को.. कैसे रह सकती है वो यहाँ.. लड़कों के कमरे में.. राज ने प्रशन सूचक नज़रों से वीरू की और देखा...
"हां.. रह ले बहन.. जब तक तेरा दिल करे तब तक रह यहीं पर.. मैं कह दूँगा.. मेरी बेहन है.. लोगों की ऐसी की तैसी..! लोग तो बोलते ही रहते हैं.." वीरू ने फ़ैसला सुना दिया..
स्नेहा सुनकर चोंक पड़ी.. उसने अपनी जुल्फें पीछे करके नज़रें उठाकर वीरू की और देखा.. कुच्छ पल तो वो विस्मय से अपनी आँखें फाडे हुए उसको देखती रही.. बूझे हुए चेहरे पर एक मद्धय्म सी मुस्कान दौड़ गयी.. और आँसू फिर से बहने लगे.. उसको यकीन ही नही हो रहा था की उसको 'भाई' मिल गया है..
वीरू उसकी तरफ देखकर मुस्कुराने लगा तो स्नेहा से रहा ना गया.. लगभग दौड़ती हुई सी वो उसके बेड की और गयी और घुटने ज़मीन पर रखकर उसकी छाती पर सिर रख लिया.. और सुबक्ती रही...
"अब भी क्यूँ रो रही है तू.. मैं हूँ ना.. तेरा भाई.." वीरू ने उसका चेहरा अपने हाथों में लेकर उपर उठाया...
"रो नही रही भैया.. समेट नही पा रही हूँ.. रक्षा बंधन पर मिली इस अनोखी खुशी को.. मेरा कोई भाई नही था.. आज से पहले.." स्नेहा खिल उठी..
"अब तो है ना.. वीरू!" वीरू की आँखें चमक रही थी...
"मुझे क्यूँ भूल रहे हो.. मैं भी तो हूँ.." राज भी स्नेहा की बराबर में आ बैठा...
"बहती गंगा में हाथ धो रहा है.. क्यूँ? चल आजा तू भी" वीरू ने कहा और दोनो राज के चेहरे को देखकर खिलखिला उठे......

विकी के इंतज़ार में दिन के कब 7 बज गये तीनो को पता ही नही चला.. स्नेहा रह रह कर बेचैन हो जाती थी.. पर अब उसको अपनी नही सिर्फ़ मोहन की चिंता थी.. उसको तो भाई मिल गये थे.. पर मोहन का यूँ अचानक गायब हो जाना उसकी परेशानी का सबब बना हुआ था.. स्नेहा रह रह कर खामोश हो जाती और शून्या में झाँकने लगती...
"चिंता क्यूँ कर रही हो सानू.. वो कोई बच्चे थोड़े ही हैं.. आ जाएँगे.." वीरू ने स्नेहा का हाथ पकड़ कर उसका ध्यान वापस खींचा...
स्नेहा ने हां में सिर हिलाया और अपनी नम हो चली आँखों को पौंच्छ लिया...
"स्नेहा तो है ही अभी.. मैं स्कूल चला जाउ? कल भी नही जा पाए थे.." राज ने खड़े होते हुए पूचछा..
"ठीक है.. तुम नहा लो.. वैसे भी मुझे कोई खास दिक्कत तो होने नही वाली है.. नाश्ता करके नही जाओगे क्या?" वीरू बोला....
"अभी तो मैं लेट हो रहा हूँ.. आकर ही देखूँगा.. स्कूल में खा लूँगा कुच्छ.. तुम्हारे लिए लाकर दे जाता हूँ..." राज बाहर निकलने लगा...
"मेरे लिए तो मेरी बेहन बना देगी.. क्यूँ स्नेहा?" वीरू स्नेहा को देखकर मुस्कुराया....
"पर... मुझे खाना बनाना नही आता है... कभी बनाया ही नही.." स्नेहा ने नज़रें उठाकर वीरू को देखा...
"कोई बात नही.. मैं सीखा दूँगा ना.. बस तुम वैसा करती जाना जैसे में बताउन्गा.. जा राज ब्रेड और बटर ले आ..." वीरेंदर स्नेहा को व्यस्त रखना चाहता था.. जब तक विकी नही आता... उसको पता था की वो खाली रहेगी तो ज़्यादा परेशान रहेगी...
राज ने स्नेहा की और देखा.. स्नेहा मुस्कुरा पड़ी..,"ठीक है.. पर कुच्छ उल्टा सीधा बन गया तो मुझे मत बोलना बाद में.. पहले बोल रही हूँ" और हँसने लगी...
राज उसकी हँसी का जवाब हुल्की मुस्कुराहट से देकर बाहर निकल गया....
"क्या बात है भैया? राज कुच्छ परेशान सा लग रहा है..?" स्नेहा ने राज के जाते ही वीरू से पूचछा..
"हूंम्म.. वही तो मैं भी देख रहा हूँ.. कल से इसको पता नही क्या हो गया है..?" वीरू ने जवाब दिया..
"आपने इस-से पूचछा ये रात को कहाँ गया था...?"
"ना.. पर शायद मुझे पता है ये कहाँ गया होगा..?"
"कहाँ?" स्नेहा को भी उत्सुकता हुई जान'ने की...
"रहने दो.. तुम्हारे मतलब की बात नही है..." कहकर वीरू ने करवट बदल ली..
"बताओ ना भैया.. ऐसे क्यूँ कर रहे हो.. मैं फिर से रो पड़ूँगी..." स्नेहा ने उसकी बाजू पकड़ कर वापस अपनी तरफ खींच लिया....
" ठीक है.. उसको आने दो.. पहले पक्का तो कर लूँ.. मैं जो सोच रहा हूँ.. वो सही भी है या नही.." वीरेंदर ने बात पूरी की भी नही थी की राज आ गया..," ये लो.. और ये खिड़की बंद रखना.. "
"खिड़की के बच्चे.. तूने ये तो बताया ही नही की तू गया कहाँ था.. रात को..?" वीरू ने आते ही सवाल दागा...
"बता दूँगा भाई.. अभी तो लेट हो रहा हूँ...?" कहते हुए राज बाथरूम में घुसने लगा...
"उसकी मा आई थी अभी यहाँ.. तुम्हे पूच्छ रही थी..." वीरू ने पाँसा फैंका..
"क्क्याअ? पर क्यूँ?.. मेरा मतलब कौन आई थी.. किसकी मा?" राज ने हड़बड़ा कर कहा...
"जिसके घर तू रात को गया था.. उसकी मा..? वीरू के ऐसा कहते ही राज का चेहरा सफेद पड़ गया.. उसकी हालत पर दोनो पेट पकड़कर हँसने लगे...
"क्या है भाई.. खंख़्वाह डरा दिया था... तूने स्नेहा को कुच्छ बता दिया क्या?" राज ने उनको हंसता देखकर राहत की साँस ली......
"नही.. अभी तक तो नही.. पर अभी बतावँगा.. तड़का लगाकर.. तू चला जा पहले.." वीरू ने हंसते हुए कहा...
"क्या है ये...? भाई तू भी ना.. मैं नही जाता स्कूल..." राज तौलिए को पटक कर वहीं बैठ गया..
"ठीक है.. मत जा.. जो मुझे नही पता वो तू बता देना..." खिलखिलाते हुए वीरू ने स्नेहा को हाथ दिया.. स्नेहा ने भी ताल से ताल मिलाई...
"प्लीज़ भाई.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. मेरी इज़्ज़त का फालूदा क्यूँ निकाल रहा है.." राज दोनो हाथ जोड़कर गिड़गिदाने की मुद्रा में आ गया...
"क्यूँ जब मुँह काला करने गया था तब नही निकला इज़्ज़त का फालूदा..." वीरू और स्नेहा ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे.. राज का चेहरा देखने लायक हो गया था...
"ठीक है तो फिर.. तेरी भी बात मैं बताउन्गा वापस आकर.. जितना भोला बन रहा है.. उतना नही है ये.. स्कूल में एक भी लड़की इस'से बात नही करती.. सब को डरा के रखता है.." और राज की बात दोनो की जोरदार हँसी में दब कर रह गयी.. राज को कुच्छ बोलते ना बना तो वापस बाथरूम में घुस गया...
नहा धोकर मुँह फुलाए हुए ही राज स्कूल चला गया...
"चलो.. बताओ.. अब कैसे बनेगा.. नाश्ता..?" स्नेहा ने बटर और ब्रेड उठाए और वीरू के पास आ गयी

"राज! तुम्हे सर बुला रहे हैं..!"
राज आवाज़ से ही पहचान गया.. यह प्रिया थी.. उसकी आवाज़ में एक अजीब सी मिठास थी... जबकि रिया की आवाज़ में अल्हाड़पन झलकता था....
राज क्लास से बाहर निकला.. प्रिया पहले से ही बाहर थी.. प्रिया को उनदेखा करते हुए वा कुच्छ कदम आगे बढ़ा पर फिर प्रिया की और मूड गया," कौन्से सर?" राज की आवाज़ में रूखापन था...
"ववो.. सॉरी राज.. रियली..!" प्रिया उस'से नज़रें नही मिला पा रही थी..
"कौन्से सर बुला रहे हैं..?" राज ने उसकी बात को अनदेखा करने का दिखावा किया...
"क्या तुम मुझे माफ़ नही करोगे राज? तुम्हे पता है.. मुझे एक पल के लिए भी नींद नही आई... प्लीज़ माफ़ कर दो... कर दो ना.." प्रिया इधर उधर देख रही थी.. कहीं कोई देख तो नही रहा...
"माफ़ तो तुम मुझे कर दो.. मैं भी दूसरों के जैसा हूँ ना.. बदतमीज़..!" राज का गुस्सा तो उसकी पहली रिक्वेस्ट पर ही पिघलने लगा था.. अब तो वह सिर्फ़ दिखावा कर रहा था.. प्रिया को अपने लिए तड़प्ता देख राज को बहुत सुकून मिल रहा था...
"म्मेरा वो मतलब नही था राज.. मैं डर गयी थी.. तुम्हारी कसम... आज के..."
प्रिया ने अपनी बात पूरी की भी नही थी की वहाँ रिया आ धमकी," तुम्हे पता है राज.. ये सारी रात सुबक्ती रही.. मैं भी नही सो सकी.. इसके चक्कर में.. अब इसको माफी दे भी दो..." रिया ने अपना वोट प्रिया के पक्ष में डाला...
"अगर तुम नही बता रही की कौन्से सर बुला रहे हैं.. तो मैं वापस जा रहा हूँ..!" राज ने रिया की बात का कोई जवाब नही दिया...
"मैने झूठ बोला था.. तुमसे बात करने के लिए.. मैं तुम्हारी कसम...." और प्रिया की बात अधूरी ही रह गयी.. राज वापस मूड कर क्लास में चला गया...
" तू चिंता मत कर प्रिया... ये कहीं नही जाने वाला.. मैं सब समझ रही हूँ.. ये तुमसे बदला ले रहा है बस.. चल आ क्लास में चलते हैं.. आ ना!" रिया ने प्रिया का हाथ पकड़ कर क्लास की और खींच लिया...
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" अजीब आदमी है यार तू भी.. उस लड़की को ऐसे ही छ्चोड़ आया.. अंजान लड़कों के पास?" शमशेर को विकी की बात पर बहुत गुस्सा आया...
"चिंता मत कर भाई.. निहायत ही शरीफ लड़के हैं.. उसको प्यार से रखेंगे.. 2-4 दिन की तो बात है.. तब तक मैं मुरारी को निपटा लूँगा..." विकी फोन पर शमशेर से बात कर रहा था," वैसे भी तो उसको लोहरू छ्चोड़कर ऐसा ही करने का प्लान था.. लोहरू छ्चोड़ने पर बाद में टेन्षन आ सकती थी.. उसकी समझ में कुच्छ नही आएगा.. मैने उसको समझा रखा है की मेरी जान को ख़तरा हो सकता है.. अगर कुच्छ हो जाए तो तुम किसी भी सूरत में अपने बयान मत बदलना..."
"यार तुझे बयानो की पड़ी है... वो लड़के स्कूल में पढ़ते हैं यार.. डर जाएँगे.." शमशेर ने विकी से गुस्से में कहा...
"तू चिंता क्यूँ कर रहा है भाई.. स्नेहा बहुत समझदार है.. वो संभाल सकती है अगर कुच्छ उल्टा सीधा हुआ तो..! और मैने अपना एक आदमी भी आसपास जमा रखा है.. अगर कुच्छ होने भी लगा तो वो स्नेहा को मेरा नाम लेकर ले उड़ेगा..." विकी ने शमशेर को तसल्ली देने की कोशिश की..
"पर मान लो तुझे मल्टिपलेक्स मिल भी गया.. बाद में क्या होगा... उस बेचारी का!" शमशेर स्नेहा को लेकर चिंतित था...
"होना क्या है.. ज़्यादा से ज़्यादा उसका बाप उसका खर्चा नही देगा ना.. मैं दे दूँगा.. और बोल?" विकी ने जवाब दिया...
"यार.. तेरी यही बात ग़लत है.. तू सब चीज़ों को पैसे से तोल कर देखता है.. आख़िर वो तुझसे प्यार करती है.." शमशेर के मंन में अभी भी काई सवाल थे..
"तो मैं उस'से प्यार करता रहूँगा ना.. टाइम निकाल कर.. बहुत मस्त है साली.. ऐसी बाला मैने आज तक नही देखी..." विकी ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...
"तेरा कुच्छ नही हो सकता भाई.. तू तो पॉलिटिशियन्स से भी एक कदम आगे बढ़ गया है.. खैर जैसा तू ठीक समझे...!" शमशेर ने टॉपिक पर बात करना व्यर्थ समझा..,"वैसे कहाँ रहते हैं.. वो लड़के..?"
"एस.एच.ओ. विजेंदर के घर के ठीक सामने... तू ये बता.. टफ से बात की या नही..."
"हां.. कर ली.. वो तो कह रहा था.. इतनी सी बात मुझे नही बोल सकता था क्या? खैर.. आज रात 8:00 बजे सीधा थाने चला जाना.. टफ और मुरारी वहीं मिलेंगे.. कर लेना जो बात करनी है.. खुलकर.. मैने सब समझा दिया है..." शमशेर ने बुझे मंन से कहा...
"थॅंक यू बॉस! तुस्सी ग्रेट हो.." कहकर विकी ने खुशी खुशी फोन काट दिया था.. वो मन ही मन उच्छल रहा था.. उसके एक ही तीर ने जाने कितने शिकार कर लिए थे... पर हाँ.. एक मासूम भी उसकी चपेट में आ गयी थी... स्नेहा!

" चलो! जनाब बुला रहे हैं?" सी.आइ.ए. थाना भिवानी के एक सिपाही ने ताला खोलते हुए सलाखों के अंदर मुरझाए से बैठे मुरारी से कहा.. शाम के करीब 5 बजे थे..
"देखा.. मैने कहा था ना.. तुम्हारा जनाब ज़्यादा देर तक मुझे ऐसे नही बैठा सकता.. कोई छ्होटा मोटा आदमी नही हूँ मैं.. बाद में उस'से निपाटूंगा भी... ये 'क़ानून' छ्होटे लोगों के लिए बनते हैं... हमारे लिए नही.. आ गया होगा फोन.. उपर से उसके किसी 'बाप' का...." मुरारी ने रुमाल से अपनी गर्दन पर छलक आए पसीने और मैल की पपड़ी सॉफ करते हुए कहा और चौड़ी छाती करके बाहर निकल लिया...
"अब हमें क्या पता साहब.. हम तो हुक़ुम के गुलाम हैं.. जैसा आदेश जनाब करेंगे, मान'ना पड़ेगा.. वैसे मेरी पूरी हुम्दर्दि आपके साथ है.. अगली बार भगवान की दया से जब आप मंत्री होंगे तो मैं आपसे ज़रूर मिलूँगा.. याद रखिएगा मेरा चेहरा..." सिपाही ने मासूमियत से कहते हुए अपने नंबर. बदवा लिए.. मुरारी की नज़र में..
मुरारी ने खुश होकर उसकी पीठ ठोनकी," यहाँ कुच्छ लेन देन नही चलता क्या रे?"

"सब चलता है साहब.. हर जगह चलता है ये तो... पर ना किसी को कुच्छ उपर मिलता.. ना नीचे.. जनाब डीजीपी हरयाणा के भतीजे हैं ना... हम तो बस इंतज़ार ही करते रहते हैं.. की कब दीवाली आएगी और कब बोनस मिलेगा.. साला तनख़्वाह के अलावा एक कप चाय भी नही नसीब होती फोकट में तो... इस थाने में... मेरी बदली ज़रूर करवा देना साहब...." सिपाही ने फिर से लाइन मारी...

"तुम चिंता मत करो बेटा.. मुझे कुर्सी मिलते ही तुम्हारी प्रमोशन पक्की.. पर ये बताओ.. बात किस'से करनी पड़ेगी.. लेन देन की.." मुरारी उसके कान में फुसफुसाया...
सिपाही ने कोई जवाब नही दिया.. टफ के ऑफीस के सामने पहुँच गये थे दोनो..," चलो साहब.. बाकी बातें बाद में..."
मुरारी अंदर घुस गया.. अंदर चल रहे ए.सी. की ठंड में मुरारी को अपना ऑफीस याद आ गया.....
टफ अपनी गद्देदार कुर्सी पर आराम से टेबल के नीचे पैर फैलाए हुए अढ़लेटा सा बैठा था.. उसके सामने 30 की उमर के आसपास के 2 पहलवान से दिखने वाले अच्छे घरों के लोग खड़े थे..
"मुझे बुलाया इनस्पेक्टर?" मुरारी ने गर्दन टेढ़ी करते हुए पूछा.. रस्सी जल चुकी थी.. पर बल अभी तक नही गये थे..
टफ ने जैसे मुरारी को सुना ही नही.. वह टेबल पर आगे की और झुका और सामने खड़े लोगों से बोला," बैठो!"
जैसे ही उन्न दोनो ने बैठने के लिए टेबल के सामने खड़ी कुर्सी खींची; टफ उबाल पड़ा...," सालो.. बैठने के लिए कुर्सी चाहिए तुम्हे.. हां? उधर बैठो.. नीचे!"
"जनाब हमारी भी कोई इज़्ज़त है.. बाहर गाँव वाले आए हुए हैं.. क्यूँ नाक कटवा रहे हो..?" उनमें से एक ने हाथ जोड़कर कहा...
"हूंम्म.. इज़्ज़त.. तुम्हारी भी इज़्ज़त है.. सालो.. जब गाँव की लड़कियों को खेतों में पकड़ते हो तो तब क्या तुम्हारी इज़्ज़त गांद मरवाने चली जाती है... तुम इज़्ज़त की बात करते हो.. बहनचो..." टफ खड़ा हो गया..," कपड़े निकालो... देखता हूँ तुम्हारी इज़्ज़त कितनी गहरी है..!"
"नही.. जनाब.. ये तो पागल है.. लो बैठ गये.. आप तो माई बाप हैं.. आपके सामने नीचे बैठने में भला कैसी शरम..?" कहते हुए दूसरा टपाक से दीवार के साथ साथ कर ज़मीन पर बैठ गया.. और पहले वाले को भी खींच कर बिठा लिया...
"राजेश!" टफ ने सिपाही को आवाज़ लगाई...
"जी.. जनाब.." राजेश तुरंत दरवाजे पर प्रकट हो गया...
"लड़की के बाप को बुलाकर लाओ...!"
"जी जनाब.." राजेश तुरंत गायब हो गया और जब वापस आया तो उसके साथ एक अधेड़ उम्र का आदमी था...
"नमस्ते जनाब!" आदमी ने कहा और अंदर आ गया.. उसकी आँखें भरी हुई थी..
"बोलो ताउ! क्या करना है इनका..?" टफ ने बड़े ही नरम लहजे में बात की..
उस आदमी ने नफ़रत और ग्लानि से ज़मीन पर बैठे दोनो की और देखा और अपनी नज़रें हटा ली..," सब कुच्छ आप पर छ्चोड़ दिया है जनाब.. अब हम तो किसी को मुँह दिखाने लायक रहे नही.. हमारी बेटी.." कह कह कर बुद्धा फूट फूट कर रोने लगा.. उसका गला भर आया...
"ठीक है.. आप जाकर मुंशी के पास बिटिया के बयान दर्ज करवा दो...! मैं कल इनको कोर्ट में प्रोड्यूस कर दूँगा..."
"एक मिनिट जनाब.. क्या हम अकेले में इनसे एक बार बात कर लें... इधर आना ताउ!" दूसरे वाले आदमी ने कहा...
"आप बात करना चाहते हो ताउ?" टफ ने पूचछा..
बुड्ढे ने कोई जवाब ना दिया.. उनके बुलाने पर वो इनकार नही कर सका और बरबस ही उनकी और चला गया....
कुच्छ क्षण दोनो आदमी उसके कान में ख़ुसर फुसर करते रहे.. बुड्ढे के अंदर का स्वाभिमान जाग उठा और कसकर एक तमाचा उनमें से एक को जड़ दिया.. दोनो टफ की वजह से खून का घूँट पीकर रह गये....
"क्या हुआ ताउ? क्या कह रहे हैं ये..." टफ ने दोनो को घूरते हुए कहा..
बुद्धा फफक पड़ा..," कह रहे है.. केस वापस ले लो वरना तुम्हारी छ्होटी बेटी को भी......" इस'से आगे वो ना बोल पाया....
टफ कितनी ही देर से अपने खून में आ रहे उबाल को रोके बैठा था..," कपड़े फाडो इन्न बेहन के लोड़ों के... और नगा करके घूमाओ बाहर.. तब आएगी इनको अकल..!"
टफ के मुँह से निकालने भर की देर थी.. राजेश अपने साथ दो और अपने ही जैसे हत्ते कत्ते पोलीस वालों को लेकर अंदर आ गया...
"हमें माफ़ कर दो साहब.. हमने तो खाली चुम्मि खाई थी.. और चूचियाँ दबाई थी बस..... प्लीज़.. जनाब.. इश्स बार छ्चोड़ दो.. नही.. प्लीज़ फाडो मत.. हम निकाल रहे हैं ना.." टफ का रौद्रा रूप देखकर दोनो अंदर तक दहल गये... और साथ में मुरारी भी.. उसके चेहरे पर पसीना छलक आया था.. और रौन्ग्ते खड़े हो गये थे...
सिपाहियों के कान तो बस अपने जनाब की आवाज़ ही जैसे सुनते थे... 2 मिनिट के बाद ही वो दोनो सिर्फ़ कcचे बनियान में खड़े थे...
"इतनी बे-इज़्ज़ती सहन नही होती जनाब.. हमारी भी पहुँच उपर तक है.. सेंटर में मिनिस्टर है हमारा मौसा...!" पहले वाले आदमी झक मार रहा था..
"एक मंत्री तो ये खड़ा.. तुम्हारे सामने.. इसको भी नंगा करके दिखाऊँ क्या?" टफ ने कहा तो मुरारी को झुर्झुरि सी आ गयी.. उसकी टाँगें काँपने लगी थे खड़े खड़े...
दोनो के मुँह अचानक सिल गये.. अब तक मुरारी पर तो उनका ध्यान गया ही नही था.. मुरारी को इश्स तरह भीगी बिल्ली बने खड़ा देख उनको अपनी औकात का अहसास हो गया....
"दोनो को हवालात में डाल दो.. शाम को इनकी गांद में मिर्ची लगानी है.... चलो ताउ जी.. आप बयान दर्ज करवा दो.." टफ ने कहा और फिर मुरारी की और घूरते हुए बोला..," बैठो.. मैं आता हूँ...!





साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज

girls school-44

hello dosto main yaani aapka dost raj sharma haajir hun next paart lekar
"Shukra hai Fracture nahi hai! maans fatne se soojan aa gayi hai.. theek hone mein 10-15 din lag jayenge.. main kuchh dawaiyan likh deti hoon.. time se lete rahna aur next monday ek baar aakar check kara jana... OK?" Hospital mein lady doctor Virender aur Raj ke paas khadi thi..," karte kya ho tum?"
"ji, padhte hain..10+2 mein" dono ek sath bol pade...
"tumhara dost sharmata bahut hai.." Doctor ne Raj ko prescription paper diya aur muskurate huye wahan se dusre patient ke paas chali gayi...
"kya baat thi.. tu sharma kyun raha tha oye?" Raj ne viru ke kaan ke paas munh lejakar kaha...
"meri pant nikalwa li thi yaar.. sharam nahi aayegi kya?" viru muskuraya aur achanak baat palat di..," chalein.. subah hone ko hai.."
"ek minute.. main bhai sahab ko dekhkar aata hoon... tu yahin leta rah tab tak.." Raj ne viru se kaha..
"kahan gaye wo..?"
"pata nahi.. abhi 20 minute pahle yahin thhe.. ek phone karne ki baat kahkar nikle thhe.. bahar hi honge.. main bulakar lata hoon.." kahkar Raj bahar nikal gaya...
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Kareeb 10-15 minute baad Raj wapas aaya," yaar wo to kahin dikhayi nahi diye... main har jagah dekh aaya.."
"chale toh nahi gaye hain.. Sneha room par akeli hai na.. wo usko bol bhi rahe the ki der lagi toh main aa jaunga..!" Viru ne Raj se kaha..
"par main parking mein gadi bhi dekh aaya hoon... wahin khadi hai.. gaye hote toh Gadi lekar nahi jate kya?" Raj ne sawaal kiya...
"fir toh yahin honge.. intjaar karte hain.. aur kya?" Viru ne Raj ki aur dekhte huye kaha...
Raj ne sahmati mein sir hilaya aur Virender ke paas hi baith gaya.....
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Sawera ho gaya tha.. Sneha ko sari raat neend nahi aayi.. yunhi karwate badalti huyi vicky ke baare mein sochti rahi...kitna pyara hai Mohan.. kitna apna sa hai.. 3 din mein hi wo uss'se kis kadar jud gayi thi.. uske door jaate hi usko lagta tha ki wo fir se nitant akeli ho gayi hai... Mohan ne ek sath hi usko kitni sari khushiyan de di... Mohan ke liye hi jiyungi ab... uske liye mar bhi jaaungi... Sneha ne man hi man socha aur angdayi lete huye ulti late gayi.. uska roop nikhar aaya tha.. ab har ang har pal jaise 'Mohan Mohan' hi pukarta rahta tha.. aaj gadi mein hi unhone kitni masti ki thi.. Sneha rah rah kar Vicky se lipat ja rahi thi.. 'pal' bhar ki bechaini bhi Sneha se sahan nahi ho rahi thi... Mohan ne wada kiya tha.. Rohtak jakar ek dost ke flat par rukenge aur wo uss'se wahan pahle din wala hi pyar fir se karega... ji bhar kar.. wo rohtak aa bhi gaye the.. par sneha se 2 pal ka bhi intzaar nahi ho raha tha.. wo rah rah kar Mohan se lipati ja rahi thi.....
aur shayad isiliye 'wo' hadsa hua.. agar wo Mohan ko iss tarah 'tang' na karti toh shayad Mohan haadse ko taal bhi leta.. Sochte huye Sneha ne ek lambi aah bhari.. aur karwat badalkar fir se seedhi ho gayi...
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kareeb 10 minute baad darwaje par dastak huyi.. Sneha ek dum se uthi aur darwaje ke paas jakar poochha," koun hai?"
"hum hain.. Darwaja kholo"
aawaj Viru ki thi.. Sneha ne jhat se darwaja khol diya..," aa gaye.. kya raha?"
"Bhaiya yahan nahi aaye hain kya..?" Raj ne ulta usi se sawaal kiya..
"kya matlab?" Sneha ka dil dhak se rah gaya..," kahan hain wo? yahan toh nahi aaye..
"Gadi toh unki wahin par khadi hai... fone karne ki kahkar nikle thhe.. hamne kareeb 1:30 gahnte unka intzaar kiya.. fir socha kya pata yahin aa gaye hon.. isiliye hum aa gaye..." Raj ne chintit swar mein uttar diya...
Sneha bina kuchh soche samjhe hi rone lagi...," unhone pahle hi kaha tha ki rohtak mein unko khatra hai.." subakti huyi Sneha ke gaalon se mote mote aansoo bahne lage..
Raj ne viru ko Bed par lita diya.. dono ki samajh mein nahi aa raha tha ki wo kya karein; kya kahein... kuchh der baad Raj uthkar Sneha ke paas aaya," aa jayenge.. aap ro kyun rahi hain.. hum chhod aayenge.. aapko jahan jana hai..."

Sneha ko kahan jana tha.. wo ab ja bhi kahan sakti thi... Mohan ke sang sapnon ka, armano ka jo gulistan Sneha ne apne dil mein sahej liya tha, uske aalawa ab iss jahan mein uska bacha hi kya tha.. papa? jisne mehaj apni Rajniti ke liye shatranj ki bisaat par mohre ki tarah se uska istemal kiya tha.. uske paas? nahi.. kabhi nahi! agar wo aisa sochti bhi toh kis munh se.. wah khud uske khilaf bagawat par utar aayi thi.. aur Shalini wala case surkhiyon mein aane par toh usko apne 'baap' se nafrat si ho gayi thi....
"chinta na karein aap... lijiye.. aap fone kar lijiye..." Raj ne apna fone uthakar Sneha ko de diya...
"oh haan.. par uska fone toh off hi rahta hai.. aksar.. chalo try karti hoon..!" ummeed ki kiran najar aane se uski subakiyan kuchh kam huyi aur usne Vicky ka no. dial kiya.. par jaisa Sneha ne socha tha waisa hi huaa.. fone off tha.. Sneha ko Mohan ki bhi chinta ho rahi thi aur apni bhi.. wah bed par baithkar apna sir pakadkar rone lagi....
"tum ro kyun rahi ho.. wo thodi bahut der mein aa hi jayenge.... waise tumhare paas ghar ka no. bhi toh hoga na.. wahan pata kar lijiye agar unhone ghar par fone kiya ho toh.. waise wo bhai sahab aapke lagte kya hain?" Viru bebas tha.. uske paas aakar uske aansoo nahi ponchh sakta tha...
kya batati Sneha.. kya naam deti 2 din pahle bane iss dil ke rishte ko.. usko darr tha ki agar wo sachchayi batati hai toh kahin dono darr kar kuchh ulta seedha na kar dein.. maslan police ko fone wagairah.. pratyuttar mein wo bilakh padi..," Mohan.. kahan ho tummmmmmm???"

Sneha ka wo karun pralaap sunkar dono ka dil dahal gaya.. Raj uske paas jakar baith gaya," aap aise na royein.. main chhod aaunga aapko jahan jana hai... dekhiye yahan par hum as a tudent rah rahe hain... kisi ne aapka rona sun liya toh log tarah tarah ki baatein karenge.. pls.. aap sabra se kaam lein.. wo aate hi honge..." Raj kah toh raha tha ki wo aa jayenge.. par chinta usko khud ko bhi hone lagi thi.. ab tak toh usko yahin par aa jana chahiye tha.. 3 ghante ke kareeb hone wale the usko gayab huye...
Sneha ne jaise taise khud ko sambhala..," kya main yahin rah sakti hoon.. jab tak wo nahi aata?" usne apne aansoo ponchh liye.. sach mein hi uska rona unn becharon ko museebat mein daal sakta tha.. aur khud usko bhi...
" kya?.. haan.. par.. mera matlab hai ki..." Raj ko koyi shabd hi na mila aage kuchh kahne ko.. kaise rah sakti hai wo yahan.. ladkon ke kamre mein.. Raj ne prashan soochak najron se Viru ki aur dekha...
"haan.. rah le behan.. jab tak tera dil kare tab tak rah yahin par.. main kah doonga.. meri behan hai.. logon ki aisi ki taisi..! log toh bolte hi rahte hain.." Viru ne faisla suna diya..
Sneha sunkar chowk padi.. usne apni julfein peechhe karke najrein uthakar Viru ki aur dekha.. kuchh pal toh wo vismay se apni aankhein faade huye usko dekhti rahi.. boojhe huye chehre par ek maddhaym si muskaan doud gayi.. aur aansoon fir se bahne lage.. usko yakin hi nahi ho raha tha ki usko 'bhai' mil gaya hai..
viru uski taraf dekhkar muskurane laga toh sneha se raha na gaya.. lagbhag doudti huyi si wo uske bed ki aur gayi aur ghutne jameen par rakhkar uski chhati par sir rakh liya.. aur subakti rahi...
"ab bhi kyun ro rahi hai tu.. main hoon na.. tera bhai.." Viru ne uska chehra apne haathon mein lekar upar uthaya...
"ro nahi rahi bhaiya.. samet nahi paa rahi hoon.. Raksha bandhan par mile iss anokhi khushi ko.. mera koyi bhai nahi tha.. aaj se pahle.." Sneha khil uthi..
"ab toh hai na.. Viru!" Viru ki aankhein chamak rahi thi...
"mujhe kyun bhool rahe ho.. main bhi toh hoon.." Raj bhi sneha ki barabar mein aa baitha...
"behti ganga mein haath dho raha hai.. kyun? chal aaja tu bhi" Viru ne kaha aur dono Raj ke chehre ko dekhkar khilkhila uthhe......

Vicky ke intzaar mein din kab 7 baj gaye teeno ko pata hi nahi chala.. Sneha rah rah kar bechain ho jati thi.. par ab usko apni nahi sirf Mohan ki chinta thi.. usko toh bhai mil gaye thhe.. par Mohan ka yun achanak gayab ho jana uski pareshani ka sabab bana hua tha.. Sneha rah rah kar khamosh ho jati aur shunya mein jhankne lagti...
"chinta kyun kar rahi ho sanu.. wo koyi bachche thhode hi hain.. aa jayenge.." Viru ne Sneha ka hath pakad kar uska dhyan wapas kheencha...
Sneha ne haan mein sir hilaya aur apni nam ho chali aankhon ko pounchh liya...
"Sneha toh hai hi abhi.. main school chala jaaun? kal bhi nahi ja paye thhe.." Raj ne khade hote huye poochha..
"theek hai.. tum naha lo.. waise bhi mujhe koyi khas dikkat toh hone nahi wali hai.. nashta karke nahi jaaoge kya?" viru bola....
"abhi toh main late ho raha hoon.. aakar hi dekhunga.. school mein kha loonga kuchh.. tumhare liye lakar de jata hoon..." Raj bahar nikalne laga...
"mere liye toh meri behan bana degi.. kyun Sneha?" Viru Sneha ko dekhkar muskuraya....
"par... mujhe khana banana nahi aata hai... kabhi banaya hi nahi.." Sneha ne najrein uthhakar Viru ko dekha...
"koyi baat nahi.. main sikha doonga na.. bus tum waisa karti jana jaise mein bataaunga.. Ja Raj Bread aur butter le aa..." Virender Sneha ko vyast rakhna chahta tha.. jab tak Vicky nahi aata... usko pata tha ki wo khali rahegi toh jyada pareshan rahegi...
Raj ne sneha ki aur dekha.. Sneha muskura padi..,"theek hai.. par kuchh ulta seedha ban gaya toh mujhe mat bolna baad mein.. pahle bol rahi hoon" aur hansne lagi...
Raj uski hansi ka jawaab hulki muskurahat se dekar bahar nikal gaya....
"kya baat hai bhaiya? Raj kuchh pareshan sa lag raha hai..?" Sneha ne Raj ke jate hi viru se poochha..
"hummm.. wahi toh main bhi dekh raha hoon.. kal se isko pata nahi kya ho gaya hai..?" Viru ne jawaab diya..
"aapne iss-se poochha ye rat ko kahan gaya tha...?"
"na.. par shayad mujhe pata hai ye kahan gaya hoga..?"
"kahan?" Sneha ko bhi utsukta huyi jaan'ne ki...
"Rahne do.. tumhare matlab ki baat nahi hai..." kahkar viru ne karwat badal li..
"batao na bhaiya.. aise kyun kar rahe ho.. main fir se ro padoongi..." Sneha ne uski baju pakad kar wapas apni taraf kheench liya....
" theek hai.. usko aane do.. pahle pakka toh kar loon.. main jo soch raha hoon.. wo sahi bhi hai ya nahi.." Virender ne baat poori ki bhi nahi thi ki raj aa gaya..," ye lo.. aur ye khidki band rakhna.. "
"khidki ke bachche.. tune ye toh bataya hi nahi ki tu gaya kahan thha.. Rat ko..?" Viru ne aate hi sawaal daga...
"bata doonga bhai.. abhi toh late ho raha hoon...?" kahte huye Raj bathroom mein ghusne laga...
"uski maa aayi thhi abhi yahan.. tumhe poochh rahi thhi..." Viru ne paansa fainka..
"kkyaaa? par kyun?.. mera matlab koun aayi thi.. kiski maa?" Raj ne hadbada kar kaha...
"jiske ghar tu raat ko gaya tha.. uski maa..? viru ke aisa kahte hi raj ka chehra safed pad gaya.. uski haalat par dono pate pakadkar hansne lage...
"kya hai bhai.. khamkhwah dara diya tha... tune sneha ko kuchh bata diya kya?" Raj ne unko hansta dekhkar raahat ki saans li......
"nahi.. abhi tak toh nahi.. par abhi bataaunga.. tadka lagakar.. tu chala ja pahle.." Viru ne hanste huye kaha...
"kya hai ye...? bhai tu bhi na.. main nahi jata school..." Raj touliye ko patak kar wahin baith gaya..
"theek hai.. mat ja.. jo mujhe nahi pata wo tu bata dena..." khilkhilate huye Viru ne Sneha ko hath diya.. Sneha ne bhi taal se taal milayi...
"pls bhai.. tere hath jodta hoon.. meri ijjat ka falooda kyun nikal raha hai.." Raj dono hath jodkar gidgidane ki mudra mein aa gaya...
"kyun jab munh kala karane gaya tha tab nahi nikla ijjat ka faalooda..." Viru aur Sneha jor jor se hans rahe thhe.. Raj ka chehra dekhne layak ho gaya tha...
"theek hai toh fir.. teri bhi baat main bataungaa wapas aakar.. jitna bhola ban raha hai.. utna nahi hai ye.. school mein ek bhi ladki iss'se baat nahi karti.. sab ko dara ke rakhta hai.." aur Raj ki baat dono ki jordar hansi mein dab kar rah gayi.. Raj ko kuchh bolte na bana toh wapas bathroom mein ghus gaya...
Naha dhokar munh fulaye huye hi Raj School chala gaya...
"chalo.. batao.. ab kaise banega.. nashta..?" Sneha ne butter aur bread uthaye aur viru ke paas aa gayi

"Raj! tumhe Sir bula rahe hain..!"
Raj aawaj se hi pahchan gaya.. yeh priya thi.. uski aawaj mein ek ajeeb si mithas thi... jabki Riya ki aawaj mein alhadpan jhalakta tha....
Raj class se bahar nikla.. Priya pahle se hi bahar thi.. Priya ko undekha karte huye wah kuchh kadam aage badha par fir Priya ki aur mud gaya," kounse Sir?" Raj ki aawaj mein rookhapan tha...
"wwo.. sorry Raj.. Really..!" Priya uss'se najrein nahi mila pa rahi thi..
"kounse sir bula rahe hain..?" Raj ne uski baat ko andekha karne ka dikhawa kiya...
"kya tum mujhe maaf nahi karoge Raj? tumhe pata hai.. mujhe ek pal ke liye bhi neend nahi aayi... plz maaf kar do... kar do na.." Priya idhar udhar dekh rahi thhi.. kahin koyi dekh toh nahi raha...
"maaf to tum mujhe kar do.. main bhi dusron ke jaisa hoon na.. badtameej..!" Raj ka gussa toh uski pahli request par hi pighalne laga tha.. ab toh wah sirf dikhawa kar raha tha.. Priya ko apne liye tadapta dekh Raj ko bahut sukoon mil raha tha...
"mmera wo matlab nahi tha Raj.. main darr gayi thi.. tumhari kasam... aaj ke..."
Priya ne apni baat poori ki bhi nahi thi ki wahan riya aa dhamki," tumhe pata hai Raj.. ye sari Rat subakti rahi.. main bhi nahi so saki.. iske chakkar mein.. ab isko maafi de bhi do..." Riya ne apna vote Priya ke paksh mein dala...
"agar tum nahi bata rahi ki kounse Sir bula rahe hain.. toh main wapas ja raha hoon..!" Raj ne Riya ki baat ka koyi jawab nahi diya...
"maine jhooth bola tha.. tumse baat karne ke liye.. main tumhari kasam...." aur priya ki baat adhoori hi rah gayi.. Raj wapas mud kar class mein chala gaya...
" tu chinta mat kar Priya... ye kahin nahi jane wala.. main sab samajh rahi hoon.. ye tumse badla le raha hai bus.. chal aa class mein chalte hain.. aa naaaa!" riya ne Priya ka hath pakad kar class ki aur kheench liya...
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" Ajeeb aadmi hai yaar tu bhi.. uss ladki ko aise hi chhod aaya.. anjaan ladkon ke paas?" Shamsher ko vicky ki baat par bahut gussa aaya...
"chinta mat kar bhai.. nihayat hi shareef ladke hain.. usko pyar se rakhenge.. 2-4 din ki toh baat hai.. tab tak main Murari ko nipta loonga..." Vicky fone par Shamsher se baat kar raha tha," waise bhi toh usko loharu chhodkar aisa hi karne ka plan tha.. Loharu chhodne par baad mein tension aa sakti thi.. uski samajh mein kuchh nahi aayega.. maine usko samjha rakha hai ki meri jaan ko khatra ho sakta hai.. agar kuchh ho jaye toh tum kisi bhi soorat mein apne bayan mat badalna..."
"yaar tujhe bayano ki padi hai... wo ladke school mein padhte hain yaar.. darr jayenge.." Shamsher ne vicky se gusse mein kaha...
"tu chinta kyun kar raha hai bhai.. Sneha bahut samajhdar hai.. wo sambhal sakti hai agar kuchh ulta seedha huaa toh..! aur maine apna ek aadmi bhi aaspaas jama rakha hai.. agar kuchh hone bhi laga toh wo Sneha ko mera naam lekar le udega..." Vicky ne Shamsher ko tasalli dene ki koshish ki..
"par maan lo tujhe multiplex mil bhi gaya.. baad mein kya hoga... uss bechari ka!" Shamsher Sneha ko lekar chintit tha...
"hona kya hai.. jyada se jyada uska baap uska kharcha nahi dega na.. main de doonga.. aur bol?" Vicky ne jawaab diya...
"yaar.. teri yahi baat galat hai.. tu sab cheejon ko paise se tol kar dekhta hai.. aakhir wo tujhse pyar karti hai.." Shamsher ke mann mein abhi bhi kayi sawaal thhe..
"to main uss'se pyar karta rahunga na.. time nikal kar.. bahut mast hai sali.. aisi bala maine aaj tak nahi dekhi..." Vicky ne batteesi nikalte huye kaha...
"tera kuchh nahi ho sakta bhai.. tu toh politicians se bhi ek kadam aage badh gaya hai.. khair jaisa tu theek samjhe...!" Shamsher ne topic par baat karna vyarth samjha..,"waise kahan rahte hain.. wo ladke..?"
"S.H.O. Vijender ke ghar ke theek saamne... tu ye bata.. Tough se baat ki ya nahi..."
"haan.. kar li.. wo toh kah raha tha.. itni si baat mujhe nahi bol sakta tha kya? khair.. aaj Raat 8:00 baje seedha thhane chala jana.. tough aur murari wahin milenge.. kar lena jo baat karni hai.. khulkar.. maine sab samjha diya hai..." Shamsher ne bujhe mann se kaha...
"thank u boss! tussi great ho.." kahkar vicky ne khushi khushi fone kaat diya tha.. wo man hi man uchhal raha tha.. uske ek hi teer ne jaane kitne shikar kar liye thhe... par haan.. ek maasoom bhi uski chapet mein aa gayi thi... Sneha!

" chalo! janab bula rahe hain?" C.I.A. thana Bhiwani ke ek sipahi ne tala kholte huye salaakhon ke andar murjhaye se baithe Murari se kaha.. Sham ke kareeb 5 baje the..
"Dekha.. maine kaha tha na.. tumhara janab jyada der tak mujhe aise nahi baitha sakta.. koyi chhota mota aadmi nahi hoon main.. baad mein uss'se nipatunga bhi... ye 'kanoon' chhote logon ke liye bante hain... hamare liye nahi.. aa gaya hoga fone.. upar se uske kisi 'baap' ka...." Murari ne Rumal se apni gardan par chhalak aaye pasine aur mail ki papdi saaf karte huye kaha aur choudi chhati karke bahar nikal liya...
"ab hamein kya pata sahab.. hum toh huqum ke gulam hain.. jaisa aadesh janaab karenge, maan'na padega.. waise meri poori humdardi aapke sath hai.. agli baar bhagwan ki daya se jab aap mantri honge toh main aapse jaroor miloonga.. yaad rakhiyega mera chehra..." Sipahi ne masoomiyat se kahte huye apne no. badhwa liye.. Murari ki najar mein..
Murari ne khush hokar uski peeth thonki," yahan kuchh len den nahi chalta kya re?"

"sab chalta hai sahab.. har jagah chalta hai ye toh... par na kisi ko kuchh upar milta.. na neeche.. janab DGP haryana ke bhatije hain na... hum toh bus intzaar hi karte rahte hain.. ki kab diwali aayegi aur kab bonus milega.. sala tankhwah ke alawa ek cup chay bhi nahi naseeb hoti fokat mein toh... iss thane mein... meri badli jaroor karwa dena sahab...." Sipahi ne fir se line mari...

"tum chinta mat karo beta.. mujhe kursi milte hi tumhari promotion pakki.. par ye batao.. baat kiss'se karni padegi.. len den ki.." Murari uske kaan mein fusfusaya...
Sipahi ne koyi jawab nahi diya.. Tough ke office ke saamne pahunch gaye thhe dono..," chalo sahab.. baki baatein baad mein..."
Murari andar ghus gaya.. Andar chal Rahe A.C. ki thand mein murari ko apna office yaad aa gaya.....
Tough apni gaddedar kursi par aaram se table ke neeche pair failaye huye adhleta sa baitha tha.. uske saamne 30 ki umar ke aaspas ke 2 pahalwan se dikhne wale achchhe gharon ke log khade thhe..
"mujhe bulaya inspector?" Murari ne gardan tedhi karte huye poochha.. rassi jal chuki thi.. par bal abhi tak nahi gaye the..
tough ne jaise Murari ko suna hi nahi.. wah table par aage ki aur jhuka aur saamne khade logon se bola," baitho!"
Jaise hi unn dono ne baithne ke liye table ke saamne khadi kursi kheenchi; tough ubal pada...," saalo.. baithne ke liye kursi chahiye tumhe.. haan? udhar baitho.. neeche!"
"janab hamari bhi koyi ijjat hai.. bahar gaanv wale aaye huye hain.. kyun naak katwa rahe ho..?" unmein se ek ne hath jodkar kaha...
"hummm.. ijjat.. tumhari bhi ijjat hai.. saalo.. jab gaanv ki ladkiyon ko kheton mein pakadte ho toh tab kya tumhari ijjat gaand marwane chali jati hai... tum ijjat ki baat karte ho.. behancho..." Tough khada ho gaya..," kapde nikalo... dekhta hoon tumhari ijjat kitni gahri hai..!"
"nahi.. janab.. ye toh pagal hai.. lo baith gaye.. aap toh mayi baap hain.. aapke saamne neeche baithne mein bhala kaisi sharam..?" kahte huye dusra tapak se deewar ke sath sat kar jameen par baith gaya.. aur pahle wale ko bhi kheench kar bitha liya...
"Rajesh!" Tough ne sipahi ko aawaj lagayi...
"ji.. janab.." Rajesh turant darwaje par prakat ho gaya...
"ladki ke baap ko bulakar laao...!"
"ji janab.." Rajesh turant gayab ho gaya aur jab wapas aaya toh uske sath ek adhed umra ka aadmi tha...
"namaste janaab!" aadmi ne kaha aur andar aa gaya.. uski aankhein bhari huyi thi..
"bolo taau! kya karna hai inka..?" Tough ne bade hi naram lahje mein baat ki..
uss aadmi ne nafrat aur glani se jameen par baithe dono ki aur dekha aur apni najrein hata li..," sab kuchh aap par chhod diya hai janaab.. ab hum toh kisi ko munh dikhane layak rahe nahi.. hamari beti.." kah kah kar buddha foot foot kar rone laga.. uska gala bhar aaya...
"theek hai.. aap jakar munshi ke paas bitiya ke bayan darj karwa do...! main kal inko court mein produce kar doonga..."
"ek minute janaab.. kya hum akele mein inse ek baar baat kar lein... idhar aana taau!" dusre wale aadmi ne kaha...
"aap baat karna chahte ho taau?" Tough ne poochha..
buddhe ne koyi jawab na diya.. unke bulane par wo inkar nahi kar saka aur barbas hi unki aur chala gaya....
kuchh kshan dono aadmi uske kaan mein khusar fusar karte rahe.. buddhe ke andar ka swabhiman jaag utha aur kaskar ek tamacha unmein se ek ko jad diya.. dono tough ki wajah se khoon ka ghoont peekar rah gaye....
"kya hua taau? kya kah rahe hain ye..." Tough ne dono ko ghoorte huye kaha..
Buddha fafak pada..," kah rahe hai.. case wapas le lo warna tumhari chhoti beti ko bhi......" iss'se aage wo na bol paya....
Tough kitni hi der se apne khoon mein aa rahe ubaal ko roke baitha tha..," kapde faado inn behan ke lodon ke... aur naga karke ghumaao bahar.. tab aayegi inko akkal..!"
Tough ke munh se nikalne bhar ki der thi.. Rajesh apne sath do aur apne hi jaise hatte katte police walon ko lekar andar aa gaya...
"hamein maaf kar do sahab.. hamne toh khali chummi khayi thi.. aur choochiyan dabayi thi bus..... pls.. janaab.. iss baar chhod do.. nahi.. pls fado mat.. hum nikal rahe hain na.." Tough ka roudra roop dekhkar dono andar tak dahal gaye... aur sath mein Murari bhi.. uske chehre par pasina chhalak aaya tha.. aur roungte khade ho gaye thhe...
Sipahiyon ke kaan toh bus apne janaab ki aawaj hi jaise sunte thhe... 2 minute ke baad hi wo dono sirf kachchhe baniyan mein khade thhe...
"itni be-ijjati sahan nahi hoti janab.. hamari bhi pahunch upar tak hai.. centre mein minister hai hamara mousa...!" Pahle wale aadmi jhak maar raha tha..
"ek mantri toh ye khada.. tumhare saamne.. isko bhi nanga karke dikhaaoon kya?" Tough ne kaha toh Murari ko jhurjhuri si aa gayi.. uski taangein kaanpne lagi thhi khade khade...
Dono ke munh achanak sil gaye.. ab tak murari par toh unka dhyan gaya hi nahi tha.. Murari ko iss tarah bheegi billi bane khada dekh unko apni aukat ka ahsaas ho gaya....
"dono ko hawalat mein daal do.. sham ko inki gaand mein mirchi lagani hai.... chalo taau ji.. aap bayan darj karwa do.." tough ne kaha aur fir Murari ki aur ghoorte huye bola..," baitho.. main aata hoon...!





साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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