Sunday, June 20, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --32

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गर्ल्स स्कूल--32
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए गर्ल्स स्कूल पार्ट 32 लेकर आपके सामने हाजिर हूँ दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें.दोस्तो जैसा की मैं पहले पार्ट मैं बता चुका हूँ अमित गोरी को सपने मैं चोदने के लिए बाथरूम मैं ले जाता है ओर जैसे लाइट जलता है उसकी नींद खुल जाती है अब आगे की कहानी
रात के करीब 11:30 बज चुके थे.. आसमान में फैली सावनी घटायें अपनी ज़िद छ्चोड़ने को कतयि तैयार नही दिखाई दे रही थी.. ऐसे में बूँदों का च्चामच्छां संगीत तड़पति जवान धड़कानों को कैसे ना भड़काने पर मजबूर करता.. वाणी के सपने भी अब मनु-मिलाप से ही जुड़े हुए थे.. सो रही वाणी को अहसास हुआ जैसे किसी ने प्यार से उसके सिर पर हाथ फेरा हो.. मनु के अलावा और हो ही कौन सकता था.. वाणी अपने में ही सिमट गयी.. मनु का हाथ उसके सिर से फिसल कर उसके माथे पर आया और उसने वाणी की शरमाई कुम्हलाई आँखों को अपने हाथ से ढक दिया.. बंद आँखों में हज़ारों सपने जीवंत हो उठे.. होंठों पर मुस्कान तेर उठी.. धड़कने तेज होना शुरू हो गयी..
अचानक मनु झुका और वाणी के सुर्ख गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होंठों की नज़ाकत को अपने तड़प रहे होंठों से इज़्ज़त बक्श दी.. होंठों से होंठों का मिलन इतनी सुखद अनुभूति देने वाला था की वाणी के हाथ अपने आप ही उपर उठ कर मनु के सिर को बलों से पकड़ कर अपनी सहमति और समर्पण प्रकट करने विवश हो गये.. हाथ कुच्छ ना आने पर वाणी बेचैन हो गयी और हड़बड़कर जाग गयी.. क्या ये सिर्फ़ सपना था.. नही.. कैसे हो सकता है.. अगर ऐसा था तो फिर कैसे उसके होंठों में अब तक चुंबन की मिठास कायम थी.. उसकी मांसल चूचियों में कसाव का कारण क्या था..
वाणी ने अपनी आँखें खोली और अपने दाई तरफ चारपाइयों पर निसचिंत होकर सो रही दिशा और गौरी को देखा.. दबे पाँव उठी और बिना चप्पल पहने ही अंदर कमरे के दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गयी.... अंधेरे के कारण कुच्छ भी दिखाई ना दिया..
दरवाजे पर उभर आए साए को देख कर अमित की बाँछे खिल गयी.. उसने अपनी आँखें एक पल को भी झपकाई नही थी.. दिल-ए-गुलजार गौरी के आने की उम्मीद में...
वाणी को काफ़ी देर तक वहीं खड़ी देख कर अमित उसको गौरी समझ कर खुद को रोक नही पाया," आ जाओ ना.. जाने मॅन.. और कितना तदपाओगि.."
बात धीरे से ही कही थी.. मगर वाणी को हर अक्सर सपस्ट सुनाई दिया.. वो सकपका गयी.. आवाज़ अमित की थी.. मनु तो इतना बेशर्म हो ही नही सकता की अपने दिल के अरमानो को यूँ सीधे शब्दों में डाल कर बोल सके.. तो क्या????
पकड़ी जाने की ज़िल्लत सी महसूस करते हुए वाणी उल्टे पाँव दौड़ गयी और वापस अपनी चारपाई पर जाकर चादर ओढ़ ली...
अमित को पक्का यकीन था की आने वाली और कोई नही बुल्की गौरी ही है जो उसको बताने आई है की वो भी उसके लिए अब तक जाग रही है.. ये निमंत्रण नही तो और क्या है? अमित का रोम रोम खुशी से पागल हो उठा..," मनु.. देखा मैने कहा था ना.. गौरी ज़रूर आएगी...!"
"मनु!.... मनु? अबे ये सोने की रात नही है.. उठ"
मनु आँखें मलते हुए उठ बैठा..," क्या हुआ?"
"गौरी आई थी यार.. वापस भाग गयी.. अगर तू नही होता तो.. आज पक्का.."
"क्या??? सच...!"
"और नही तो क्या.. मैने कोई सपना देखा था.. अरे एक पल के लिए भी पलकें नही झपकाई.. मुझे विस्वास था.. मैने उसकी आँखों में वो सब देख लिया था.. उसकी आँखों में प्यार की तड़प थी.. वासना की महक उसके बदन से आ रही थी.... यार एक काम करेगा..???"
"क्या?" मनु की नींद खुल गयी थी..
"तू बाहर चला जा यार.. मुझे यकीन है.. वो तेरी वजह से ही अंदर नही आई.. वरना.....!!! मुझे यकीन है.. वो फिर आएगी!"
"पर यार रात में अब बाहर कैसे जाऊं... बारिश भी हो रही है.. अभी भी..!"
"प्लीज़ यार.. मान जा.. तू उपर चला जा घंटे भर के लिए.. उपर बरामदा भी है.. " अमित ने मनु की और अनुनय की द्रिस्ति से देखा...
"ठीक है यार.. चला जाता हूँ.. पर मुझे डर लग रहा है.. अगर दिशा दीदी जाग गयी तो मुँह दिखाने के लायक नही
रहूँगा मैं.. देख लेना..!" मनु बेड से नीचे चप्पल ढ़हूँढने लगा..
"नही जागेगी यार.. मैं तेरा अहसान भूल नही पाउन्गा...

मनु एक पल के लिए वाणी की चारपाई के पास रुका.. मुँह पर चादर नही होने के कारण उसको हल्क अंधेरे में पहचान'ने में मनु को कोई दिक्कत ना हुई..
वाणी ने भी मनु को देख लिया था.. अब आँखें बंद करके अपनी सदाबहार मुस्कान को चेहरे पर ले आई थी.. वो समझ रही थी की मनु उसको देखकर ही बाहर आया है.. ऐसे में प्यार की तड़प से भरे अपने दिल को काबू में रख पाना उसके बस का कहाँ था..
मनु ने वाणी का चेहरा गौर से देखा.. सोने का नाटक कर रही वाणी के चेहरे के भावों को पढ़ने की कोशिश करता हुआ मनु दोनो पर नज़र डालने के बाद उसके पास बैठने को हुआ.. पर उसको पता था की गौरी जाग रही है.. मन मसोस कर अपनी हसरत को दिल में दबाया और टहलते हुए उपर चला गया..

वाणी सोच में पड़ गयी.. क्या मनु उसको उपर आने का इशारा करके गया है... या फिर यूँ ही... बाथरूम तो बरामदे के साथ ही है.. फिर उपर जाने का मतलब इसके अलावा और क्या हो सकता है... मुझे उपर जाना चाहिए या नही.. कहीं किसी ने देख लिया तो.. कहीं दीदी जाग गयी तो..
वाणी अभी तक इसी उधेड़बुन में थी की अमित को कमरे से बाहर आते देख वह चौंक गयी.. अधखुली आँखों से वो ये देखने में जुट गयी की आख़िर ये सब हो क्या रहा है...?

अमित दरवाजे पर ही खड़े होकर माहौल का जयजा लिया.. अंधेरे में वो समझ नही पा रहा था की कौन कहाँ लेटा है.. कुच्छ पल उसने वहीं खड़े होकर इश्स बात के लिए इंतज़ार किया की गौरी खुद ही उसको देख कर उठ जाए.. पर गौरी कहाँ उठती.. चोरों की तरह वो दो चार कदम चल कर उनके पास आया..
पहली चारपाई पर जब वह झुका.. वाणी ने अपनी आँखें बंद करके साँस रोक ली..
वहाँ वाणी को देखकर वह दूसरी चारपाई की और चला.. गौरी को वहाँ पाकर वह उसके सिर की तरफ ज़मीन पर बैठ गया.. क्या मस्ती से सोने का नाटक कर रही है.. सोचकर अमित ने माथे पर रखे उसके हाथ को हुल्के से पकड़ा और धीरे से आवाज़ निकाली..," गौरी!"
गौरी नींद में हड़बड़कर उठ बैठी.. गनीमत थी की अमित ने उसके मुँह पर हाथ रख लिया वरना वा चिल्ला ही देती शायद..
"आवाज़ मत निकलना.. दीदी जाग जाएँगी.. अंदर आ जाओ.."
"क्यूँ???" गौरी पर अभी भी नींद की खुमारी च्छाई हुई थी.. उसने 'क्यूँ' कहा और फिर से लेट गयी...
वाणी बड़े गौर से अमित को देख रही थी.. अमित उसके कान के पास अपने होंठ लेकर गया और फुसफुसाया..," अंदर आ जाओ.. सब बताता हूँ.."
अबकी बार ही जैसे असलियत में गौरी की नींद खुली.. उसका एक बार फिर चौंक कर बैठना और अजीबो ग़रीब प्रतिक्रिया देना इसी बात की पुस्ती कर रहा था.. हालाँकि वा भी बहुत ही धीरे बोली थी..," क्या है.. मरवाओगे क्या.? भागो यहाँ से..!"
"प्लीज़ एक बार अंदर आ जाओ.. मुझे बहुत ज़रूरी बात करनी है.. अभी तुम आई तो थी दरवाजे पर.. क्यूँ आक्टिंग कर रही हो.." अमित की दिलेरी देखकर वाणी सच में हैरान थी.. उस बात पर तो उसने मुश्किल से अपनी हँसी रोकी की गौरी दरवाजे पर गयी थी..
"क्या बकवास कर रहे हो.. मैं तो सो रही हूँ.. अभी भाग जाओ अंदर वरना में दिशा को जगा दूँगी ." गौरी ने अपनी शर्ट को ठीक करते हुए कहा...
"मैं नही जाउन्गा.. चाहे किसी को जगा दो.. तुम्हे एक बार अंदर आना ही पड़ेगा.." अमित को यकीन था की गौरी सब नाटक कर रही है..
"प्लीज़.. मुझे नींद आ रही है.. सोने दो ना!" हालाँकि अब तक नींद गौरी की आँखों से कोसो दूर जा चुकी थी...
"प्लीज़ सिर्फ़ एक बार आ जाओ.. मुझे तुमसे कुच्छ कहना है...."
"नही.. यहीं कह लो.. अंदर मनु होगा..!" गौरी लाइन पर आती दिखाई दी...
"मनु अंदर नही है.. और मैं अंदर जा रहा हूँ.. दो मिनिट के अंदर आ जाना.. नही तो मैं वापस आ जाउन्गा.." कहकर बिना गौरी की बात सुने अमित अंदर चला गया...

"अजीब ब्लॅकमेलिंग है!" नींद की खुमारी से निकल कर 'अब क्या होगा?' की सुखद जिगयसा में गौरी ने दोनो तरफ करवट ली; ये सुनिसचीत किया की कोई जाग तो नही रहा है..... और उठकर बाथरूम में चली गयी..
करीब 5 मिनिट बाद चौकसी से दिशा और वाणी पर एक सरसरी नज़र डाल कर गौरी अंदर वाले कमरे के दरवाजे से 2 फीट अंदर जाकर खड़ी हो गयी,"क्या है? जल्दी बोलो...
"ज़रा इधर तो आओ!" बेड पर बेताबी से गौरी के आने की उम्मीद में बैठे अमित की ख़ुसी का ठिकाना ना रहा...
"नाहही.. मैं और अंदर नही आउन्गि!" गौरी को भी तो नखरे आते थे आख़िर.. हर लड़की की तरह..
"सुनो तो... सुनो ना एक बार.. प्लीज़.. यहाँ आओ!" अमित उसको हासिल करने के लिए अधीर हो रहा था...
"क्या है? यहाँ आने से क्या हो जाएगा.... लो आ गयी.. बोलो!" अमित की मंशाओं से अंजान और नादान बन'ने का नाटक करती हुई गौरी बेड के करीब जाकर खड़ी हो गयी...
"बैठो तो सही.. मैं तुम्हे खा तो नही जाउन्गा!" अब दोनो को एक दूसरे का चेहरा कुच्छ कुच्छ दिखाई दे रहा था...
"तुम बता रहे हो या मैं जाउ.. मुझे डर लग रहा है...!" गौरी ने एक कदम आगे बढ़ाते हुए कहा..
"मुझसे? .... मुझसे कैसा डर... बैठो ना प्लीज़!" अमित बेड पर उसकी तरफ सरक आया.. गौरी ने पिछे हट'ने की कोई कोशिश नही की...
"तुमसे नही.. मुझे डर लग रहा है की कहीं दिशा जाग ना जाए..." बीत'ने वाले हर पल के साथ गौरी पिघलती जा रही थी... ,"कहीं मनु ना आ जाए.. वो किसलिए गया है उपर..."
अमित ने आगे बढ़कर उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया," तुम सच में बहुत सेक्सी हो गौरी... तुम जैसी लड़की मैने आज तक नही देखी..!"
"आज तक कितनी लड़कियों को बोली है ये बात..!" गौरी ने अपना हाथ छुड़ाने की आधी अधूरी सी कोशिश की... पर सफल ना हुई...
"सिर्फ़ तीन को.. तुम्हारी कसम.. पर मैं भी क्या करूँ.. तब तक मैने तुम्हे नही देखा था..." अमित ने उसका हाथ दबाते हुए खीँसे निपोरी....
गौरी अमित का जवाब सुनकर हँसे बिना ना रह सकी...,"मैने तुम्हारे जैसा पागल आज तक नही देखा..."
"बैठो ना.. अभी सारी रात पड़ी है.. मेरा पागलपन देखने के लिए..." कहते हुए अमित ने उसका हाथ दबाया तो अपने कपड़े ठीक करती हुई गौरी बेड के कोने पर बैठ गयी..," तुम कुच्छ कह रहे थे.. जल्दी बोलो ना.. मुझे नींद आ रही है.."
"तो यहीं लेट जाओ.. सुबह उठा दूँगा.. दिशा के उठने से पहले!" अमित मुस्कुराया..
"तुम तो सच में ही पागल हो.. मैं यहाँ तुम्हारे साथ सोऊगी.." गौरी ने बन'ने की कोशिश की...
"क्यूँ?.. मुझमें से बदबू आती है क्या?" अमित कौनसा कम था..
"मैं ऐसा नही कह रही..... तुम सब समझ रहे हो..." ज़रूर गौरी इश्स वक़्त तक पसीज चुकी होगी.. अंधेरे की वजह से अमित उसके चेहरे के भाव पढ़ नही पा रहा था...
"समझती तो तुम भी सब कुच्छ हो.. है ना..."
गौरी ने इश्स बात पर सिर झुका लिया.. शायद वो मुस्कुरा रही थी...
"बताओ ना.. सब समझती हो ना...!"अमित धीरे धीरे करके उसके और करीब आता जा रहा था...अब अमित ने उसका दूसरा हाथ भी अपने हाथ में पकड़ लिया..
"तुम बोलो ना .. क्या कह रहे थे.. क्यूँ बुलाया मुझे.." गौरी जानती तो सब कुच्छ थी.... तैयार भी थी.. पर पहल कैसे करती...
"वो तुमने सोने जाते हुए मुझसे हाथ मिलाकर एक बात कही थी.. याद है?" अमित ने उसकी उंगलियों को अपने हाथों में लेकर दबाना शुरू कर दिया था.. गौरी की साँसों में तीव्रता आना स्वाभाविक था...,"क्या?"
"यही की जो कुच्छ मैने रास्ते में किया.. वो तुम्हे बुरा नही लगा था..."
"हां.. उस वक़्त लगा था.. पर बाद में नही...!" गौरी ने अपना चेहरा एक तरफ कर लिया...
"क्क्या मैं एक बार तुम्हे छू सकता हूँ..!" अमित का कहने का तरीका निहायत ही रोमॅंटिक था...
"छ्छू तो रखा है.. और कैसे च्छुओगे..!" गौरी ने अमित द्वारा पकड़े दोनो हाथों की तरफ इशारा करते हुए कहा..
"नही.. ज़रा और करीब से.. ज़रा और मर्दानगी से... ज़रा और दीवानगी से!" अमित ने हाथों को छ्चोड़ कर उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया.. अमित के अंगूठे गौरी के लबों पर जाकर टिक गये...
"वो कैसे?" शर्म और उत्तेजना की अग्नि में तप रही गौरी अपनी सुध बुध खोती जा रही थी.. अब उसकी साँसे सीधे अमित के नथुनो से टकरा रही थी... क्या मादक गंध थी गौरी की...
"ऐसे..." अमित ने कोई ज़बरदस्ती या जल्दबाज़ी नही की... हौले हौले से अपने होंठों को उन्न बेमिसाल होंठों के पास ले गया.. हालाँकि गौरी की नज़रें झुक गयी और वो काँपने सी लगी थी.. पर किसी तरह का प्रतिरोध उसने नही किया.. और अमित ने आँखें बंद करके अपने होंठों से उसकी गरम साँसे अंदर ही दफ़न कर दी.. दोनो के शरीर में अजीब सी लहर उठी.. गौरी की आँखें बंद थी.. हाथ अब तक नीचे ही टीके हुए थे... और वो अपनी तरफ से कोई हरकत नही कर रही थी.. यहाँ तक भी उसके होंठ तक उसने नही हिलाए...
करीब 3-4 मिनिट बाद जब अमित अमृतपान करके हटा तो गौरी का बुरा हाल था.. लंबी लंबी साँसे ले रही थी.. मदमस्त चूचियों के आकर में हूल्का सा उभार आ गया था.. और बदहवास सी नीचे की और देख रही थी..
गौरी के लबों को चूसने से अमित को इतना आनंद आया था की जब हटा तो पागलों की तरह उसके होंठ ही देखता रहा..
गौरी ने ही चुप्पी तोड़ी," छ्छू लिया हो तो मैं जाउ..!"
"अभी कहाँ.... अभी तो पता नही क्या क्या छ्छूना बाकी है.... मैं लाइट जला देता हूँ.. दरवाजा बंद करके....
"लाइट मत जलाओ प्लीज़....!"
"कुच्छ नही होता! एक मिनिट..." कहते हुए अमित ने दरवाजा बंद करके लाइट ऑन कर दी...
"गौरी का सुर्ख लाल हो चुका चेहरा दूधिया रोशनी में नहा गया.. उसकी आँखें झुकी हुई थी.. छ्चातियाँ फेडक रही थी.. दिल के ज़ोर ज़ोर से धड़कने के साथ ही....

अमित आकर उसके सामने बैठ गया और भगवान की दी इस नियामत को सच में ही पागलों की तरह निहारने लगा........

गौरी के अंदर जाने के बाद वाणी खुद को ज़्यादा देर तक रोक नही पाई.. अमित ने किए तरह बेबाक तरीके से गौरी को अंदर आने को कह दिया.. दोनो को एक दूसरे से मिले अभी चाँद घंटे ही तो हुए थे.. फिर वह और मनु तो एक दूसरे के जज्बातों से वाकिफ़ हैं.. वो ही क्यूँ दूर दूर तड़प्ते रहें.. वाणी ने दम साध कर दिशा की साँसों का मुआयना किया.. वो घर में चल रही हलचलों से निसचिंत दूसरी और मुँह करके सो रही थी...
वाणी को अपनी चारपाई पर पड़े दोनो तकियों को तरीके से चारपाई पर लिटाया और उन्न पर चादर ढक दी.. अगर ध्यान से नज़र ना डाली जाए तो यही आभास होता था की कोई सो रहा है..
एक बार फिर उसने अपनी दीदी पर सरसरी नज़र डाली और दो चार कदम सावधानी से बरामदे से बाहर की और रखे.. और सीधा उपर की और रुख़ कर लिया...

"कौन है...?" सीढ़ियों में दिखाई दे रहे मानव धड़ को देख को देख कर मनु चौंक गया..
"मैं हूँ... तुम.... उपर क्या कर रहे हो?" वाणी की कशिश भारी आवाज़ भी उस वक़्त मनु को उत्साहित ना कर पाई...
".. मैं तो बस ऐसे ही आ गया था.. नींद नही आ रही थी.. पर तुम.. तुम कैसे जाग गयी..?"
"मैं भी बस ऐसे ही आ गयी.. जैसे तुम आ गये.. मुझे भी नींद नही आ रही थी! मैं तुम्हे देखने अंदर भी गयी थी.. पर वो अमित अजीब तरीके से मुझे अंदर बुलाने लगा" वाणी अब मनु के करीब आकर बरामदे में खड़ी हो गयी थी.. दो दिलों के बीच अब दो कदम का ही फासला था.. और कोई अड़चन भी नही थी.. दूरियाँ कभी भी जवानी की रो में बह सकती थी.. मिट सकती थी..
"क्या कब आई थी तुम अंदर... तो क्या वो तुम थी..? हे भगवान.."
"क्या हुआ? क्या तुम भी जाग रहे थे.. तब.. जब में दरवाजे पर आई थी.." दिल में जाने कितने अरमान धधक रहे थे.. पर वाणी औपचारिकताओं से आगे बढ़ नही पा रही थी..
"न..नही.. पर मुझे नीचे जाना होगा.. नही तो अनर्थ हो जाएगा...!" मनु को याद आया की दरवाजे पर खड़ी वाणी को अमित ने गौरी समझ लिया था.. कहीं वो उसको जाकर च्छेद ना दे और कोई पंगा ना हो जाए..
वाणी ने कदम बढ़ा रहे मनु के हाथ को अपने दोनो हाथों की हथकड़ी बना कर पकड़ लिया.. उसकी इश्स अदा पर कौन ना कुर्बान ना हो जाए,"क्या अनर्थ हो जाएगा.. मैं इतनी भी मनहूस नही हूँ.." वाणी की आँखों में आज की रात को 'पहली रात' बना देने की बेकरारी को समझना कोई बड़ा काम नही था...
"न..नही.. वो ऐसी बात नही है...तुम नही समझोगी.. मुझे जाने दो.." मनु को लग ही रहा था की आज तो बचना मुश्किल है.. बड़ी किरकिरी होगी..
"क्यूँ नही समझूंगी.. मैं कोई बच्ची हूँ क्या..?" वाणी ने कहते हुए अपनी कातिल मस्तियों की और झुक कर देखा.. सबूत बहुत ही सॉलिड था की वो अब बच्ची नही बल्कि बड़े बड़ों के होश ख़स्ता करने का दम रखती है...
"न्नाही.. दर-असल.. ववो अमित कह रहा था की दरवाजे पर.. गौरी आई थी.. उसके लिए..कहीं वो.... " मनु वाणी की दिलफैंक अदा से अपनी आवाज़ पर काबू सा खो बैठा..
"वो तो गौरी को उठा कर ले भी गया.. अंदर!" वाणी की आँखों में सम्मोहित करने की ताक़त थी.. उसको भी उठा ले जाने का निमंत्रण था..
"उठा ले गया.. मतलब?" मनु को अमित की जानलेवा दिलेरी पर एक पल को यकीन नही हुआ..
"अमित ने उसको बुलाया और वो अंदर चली गयी.. इश्स'से ज़्यादा मुझे कुच्छ नही पता.. मतलब..!" वाणी मनु को इधर उधर ही दिमाग़ को पटकते देख नाराज़ हो गयी.. मुँह फूला लिया और जाकर बारिश में खड़ी हो गयी...
"वहाँ कहाँ जा रही हो.. भीग जाओगी..!" मनु ने बरामदे से ही उसको हल्क से पुकारा...
"भीगने दो.. तुम्हे क्या है? तुम्हे तो बस अमित की पड़ी है.. मैं तो पागल हूँ जो दीदी का डर छ्चोड़ कर बिन बुलाए तुम्हारे पास आ गयी.." नखरे में अपनेपन की मिठास थी.. और बारिश में भीग रहे कुंवारे बदन की प्यास भी..
"तुम तो नाराज़ हो गयी... मैं... हां क्या कह रही थी तुम.. तुम बच्ची नही हो!" मनु भी बाहर निकल कर छत की मुंडेर पर हाथ रखे खड़ी वाणी से एक कदम पिछे खड़ा हो गया.. वाणी की टी-शर्ट भीग कर उसकी कमर से चिपक गयी थी.. हल्क अंधेरे में जैसे वाणी के बदन से प्रकाश फुट रहा हो.. पतली कमर जैसे बहुत ही नाज़ुक रेशे की बनी थी.. कमर से उपर और नीचे की चौड़ाई समान लगती थी.. 34" की होंगी.. पिच्छली गोलाइयों का तो कोई जवाब शायद अब भगवान के पास भी नही होगा.. मानो नारी-अंगों की श्रेष्टा मापने के पैमाने की सुई भी
उनको मापने की कोशिश में टूट जाए.. इतनी गोल.. इतनी मादक.. इतनी चिकनी... इतनी उत्तेजक.. और इतनी शानदार की अगर 'रस' का कोई कवि कल्पना में उनका वर्णन करे तो आप कह उठे.. 'असंभव है..'.... पर्फेक्ट आस.. टू ... टू टच.. टू लीक.. टू लव... टू फक!!!!!
मनु वाणी के इश्स काम रूप को देख कर पागल सा हो उठा.. अंदर वाली 'बात' बाहर निकल आने को फड़कने लगी.. पॅंट में मनु के 'मन' का दम निकालने लगा.. अगर कुच्छ और देर वाणी इसी स्थिति में खड़ी रहती तो 'कुच्छ और' ही हो जाना था..
मनु को अपने पास खड़े होने का अहसास पाकर वाणी पलट गयी,"और नही तो क्या.. दिखाई नही देता.. मैं कोई बच्ची हूँ...?"

उफफफ्फ़.. क्या कयामत ढा गयी थी वाणी पलटने के साथ ही.. मनु का बचा खुचा संयम भी दम तोड़'ने वाला था.. हुल्की रिमझिम बारिश आग में घी डाल रही थी.. मुलायम सा कपड़ा उसके रोम रोम से चिपका हुआ था.. 'रोम-रोम' से.. मनु की नज़र वाणी के योवन की दहलीज से आगे निकल जाने का प्रमाण बने दोनो वक्षों की धारदार गोलाइयों पर जाकर जम सी गयी.. यूँ तो वाणी को बिना कपड़ों के भी मनु देख चुका था.. पर वो सब विवस'ता वश हुआ था.. आज कपड़े के झीने आवरण से ढाकी वाणी का अंग अंग फेडक रहा था.. भीगे हुए उसके गुलाबी होंठों से लेकर चौड़े कुल्हों तक.. गोल लंबी जांघों तक.. और जांघों के बीच उनके मिलन बिंदु पर फुदाक रही चिड़िया तक.. वाणी का क़तरा कतरा छ्छूने लायक था... चूमने लायक
था.. और उन्न पर पागलों की तरह च्छा जाने लायक था.. मंतरा मुग्ध सा मनु कुच्छ भी बोल ना सका.. हुष्ण के मारे आशिक की तरह घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा.. घूरता ही रहा...
मनु को मजनू की तरह एकटक उसकी और देखते पाकर वाणी बाहर से शर्मा गयी और अंदर से गद्रा गयी.. वापस पिछे घूम कर वाणी ने अपनी छातियों को देखा.. लग रहा था मानो उन्न पर कपड़ा हो ही ना.. कसमसा रही गोलाइयाँ घुटन सी महसूस कर रही थी.. छातियों के बीच में 'मोती' अपना सिर उठाए खड़े थे.. उनका पैनापन बढ़ गया था.. वाणी अपनी ही 'अनमोल जागीर' को देखकर सिहर सी गयी.. फिर कब से उनको पाने की हसरत लिए मनु का क्या हाल हुआ होगा.. ये समझना वाणी के लिए कोई कठिन काम नही होगा.. काम-कल्पना के सागर में ही मनु को इश्स कदर डूबा देखकर वाणी 'गीली' हो गयी... उसने अपनी जांघों को ज़ोर से भींच लिया.. मानो मनु के कहर से अभी बचना चाह रही हो.. पर ऐसा हो ना सका.. हो कैसे सकता था.. पिच्छवाड़ा पागलपन को और बढ़ा गया.. मनु एक कदम आगे बढ़ा और वाणी के दोनो और से अपने हाथ सीधे करके दीवार पर टीका दिए...," सचमुच! ...... तुम... बच्ची नही रही वाणी.." कहते हुए मनु के होंठ काँप उठे.. शरीर की अकड़न बढ़ गयी.. दोनो के बीच जो झिर्री भर का फासला रह गया था; उसको मनु की बढ़ती 'लंबाई' ने माप लिया..
"आआह.." इश्स 'च्छुअन' से वाणी अंजान नही थी.. महीनों पहले अंजाने में ही सही.. पर वो शमशेर की 'टाँग' से मिलने वाले इश्स अभूतपूर्व अहसास को महसूस कर चुकी थी...
आसमनझास में खड़ी वाणी ने कुच्छ समझ ना आने पर अपने अंगों को इसी हालत
में तड़प्ते रहने के लिए छ्चोड़ दिया.. 'मनु' को महसूस करते रहने के लिए..
"एक बात पूच्छू..?" मनु ने वाणी की मादक 'आह' को सुन'ने पर कहा..
"हूंम्म्म.." वाणी तो जन्नत की सैर कर रही थी.. आधी होश में थी.. आधी मदहोश.. लगातार उसकी 'दरारों' से छ्छू रहे 'मनु' के कारण वा पल पल उत्तेजित होती जा रही थी.. उपर से बरस रहे बादल उसकी हालत को और बिगड़ रहे थे...
"डू यू लव मी?"( दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा ये समझता हूँ ये आशिक भी बिल्कुल पागल होते हेँ अब इस मनु को ही लीजिए अँग्रेज़ी में पूच्छने सेशरम शायद कुच्छ कूम हो जाती होगी.. नही तो हिन्दी में ही ना पूच्छ लेता..)
वाणी कुच्छ ना बोली.. पूछते हुए मनु थोड़ा आगे की और झुका था.. 'रगड़' अति आनंदकरी थी.. शायद इसी 'रगड़ को वह फिर महसूस करना चाहती थी...
"तुमने जवाब नही दिया!" एक बार फिर मनु आगे की और झुका.. इश्स बार कुच्छ ज़्यादा..
वाणी की जांघों का कसाव बढ़ गया.. हूल्का सा खोलने के बावजूद...
"जवाब देना ज़रूरी है क्या?" वाणी ने गर्दन उपर उठाकर अंगड़ाई सी ली.. अंग अंग चटक उठा.. अंग अंग 'हां' कह उठा.. वाणी की कमर मनु की छाती से चिपक गयी...
"हां.. बहुत ज़रूरी है.. तुम नही जानती.. मैं..." मनु ने अपने हाथों से दीवार पर रखी वाणी की हथेलिया दबा ली.. थोड़ा सा और आगे होकर..
और वाणी की आवाज़ निकल ही गयी..,"मैं मर जाउन्गि!" वह अब प्रोक्श चुभन को सहन करने की स्थिति में नही थी...
बारिश की बूँदें मनु के बालों से होकर वाणी के गालों पर टपक रही थी.. जैसे कोई संदेश दे रही हों.. मिलन का.. जैसे वो भी इश्स 'उत्सव' का आनंद उठाने के लिए तरस कर बरस रही हों...
"बुरा लग रहा है क्या?" मनु थोड़ा पिछे हट गया.. कितना नालयक था 'प्रेम-गेम' में.. समझ ही नही पाया.. वाणी ने क्यूँ कहा की वो मर जाएगी...
मनु का पिछे हटना वाणी की जवानी को नागवार गुजरा.. यहाँ तक आने के बाद पिछे हटना.. सच में ही जानलेवा हो सकता था..

तुम..? तुम करते हो हमसे प्यार?" मनु के पिछे हटने से बेकरार वाणी ने अपने को और आगे की और झुका लिया.. प्रेमरस और सावन की फुहारों से वाणी की जांघें तर होकर टपक रही थी...
ये सुनकर मनु के दम तोड़ रहे हौसलों में फिर से जान आ गयी,"हां.. बहुत प्यार करता हूँ.. जब से तुम्हे देखा है.. कुच्छ और देखने का मॅन ही नही करता.. समझ नही आता.. क्या करूँ?"
जज्बातों और अरमानों के भंवर में भी ऐसा चुलबुलापन वाणी ही दिखा सकती थी..,"फिर तो पढ़ाई के 12 बज गये होंगे..!" कहकर वाणी हौले से खिलखिला पड़ी...
वाणी को 'मूड' में पाकर मनु के हौसले बढ़ गये..," आइआइटी हूँ.. समझी!" कहते हुए मनु ने अपना एक हाथ दीवार से उठा कर वाणी के कमसिन पेट पर ला रखा..
वाणी उच्छल पड़ी,"ओई मम्मी.. गुदगुदी होती है.." इसी च्चटपटाहट में मनु का हाथ उपर उठ गया.. वाणी को अपने सन्तरेनुमा अंगों में झंझनाहट सी महसूस हुई.. ये झंझनाहट का असर उसके सुगढ़ नितंबों और उनमें च्चिपी बैठी छ्होटी सी अद्भुत तितली तक अपने आप पहुँच गया.. राम जाने क्या कनेक्षन होता है.. इनमें!
मनुको लगा उस'से कोई ग़लती हो गयी.. आख़िर बिना पर्मिशन के 'नो एंट्री ज़ोन तक जो पहुँच गया था..," सॉरी! वाणी.. मैं वो..!"
"अपने आशिक की इश्स अदा पर वाणी बिना शरारत किए ना रही.. बेकरार तो वो थी ही..," तुम्हारे जितना तो लड़कियाँ भी नही शरमाती...!" कहकर वो पलट कर खड़ी हो गयी..
सच ही तो था.. लड़कियाँ भी कहाँ शरमाती हैं इतना.. वरना जिस वाणी के चेहरे भर की एक झलक पाने को लाखों दीवाने कतार में रहते थे.. वो खुद उसके आगोश में आना चाहती थी.. छ्छूने पर भी कोई शिकायत नही की.. फिर वो इंतजार किस बात का कर रहा था.. मैं होता तो..
बरसात में टपक रही वाणी का अंग अंग जैसे पारदर्शी हो चुका था.. ऐसे में वाणी से ज़्यादा लाल मनु का चेहरा था.. पर मर्दानगी का ढोल अभी भी हकलाए स्वर में पीट रहा था..,"म्म..? मैं कब.. शर्मा रहा हूँ...!"
"और नही तो क्या.. फिर सॉरी किसलिए बोला..?" वाणी को मनु की आँखों से बेताबी टपकती दिखाई दे रही थी..
"व... वो.. ग़लती से वहाँ छ्छू गया था..." मनु वाणी से नज़रें नही मिला पा रहा था...
लज्जा तो वाणी की आँखों में भी थी.. पर इतनी नही की उस लल्लू को प्यार का सबक ना सीखा सके..," तो इसमें क्या है.. लो मैने छ्छू ली.. तुम्हारी!" वाणी ने अपना हाथ उठाकर मनु की छाती पर रख दिया.. मनु का दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. वाणी के हाथ की आँच से और तेज़ हो गया.. मनु को लगा.. अब वा अपने छिपे हुए शैतान को मैदान में कूदने से रोक नही पाएगा.. पॅंट की सिलाई उधड़ने वाली थी..
"तुझमें और मुझमें फ़र्क़ है वाणी..."
"क्यूँ क्या फ़र्क़ है? लड़कियों की तो ऐसी ही होती हैं.." नज़रें नज़ाकत से नज़रें झुकाए वाणी ने कहा... वह भी शर्मा गयी थी.. 'उनके' बारे में बोलते हुए...
"हां...... पर..... क्या मैं फिर से छ्छू लूँ?" मनु के मुँह में पानी आ गया.. नज़र भर कर उनको देखते ही...
वाणी के हाथ अनायास ही उपर उठ गये.. और दोनो संतरों को अपने ही हाथों में च्छूपा लिया.. तब जाने कैसे वह बोल गयी थी..,"इनमें क्या है?"
संसार भर का सुरूर इन्ही में तो छिपा हुआ है...
"बोलो ना वाणी.. एक बार और छ्छू लूँ क्या..?" अजीब जोड़ा था.. एक तैयार तो दूजा बीमार... अब वाणी पानी में थी...
वाणी क्या बोलती.. ये भी कोई कहने सुन'ने की बातें होती हैं...
"बोलो ना प्लीज़.. बस एक बार.." मनु ने वाणी को कंधों से पकड़ा और हूल्का सा उसकी और झुक गया..
वाणी को लगा वो अभी टूट कर गिर जाएगी.. मरती क्या ना करती.. जब मनु ने कोई पहल नही की तो अपने हाथ नीचे सरका दिए.. अपने पेट पर.. और नज़रें झुकाए साँसों को काबू करने का जतन करने लगी..
कमसिन उमर की वाणी के दोनो संतरे साँसों की उठापटक के साथ हुल्के हुल्के हिल रहे थे.. उपर.. नीचे... उपर... नीचे.. क्या मस्त नज़ारा था..
आख़िरकार मनु ने शर्म का चोला उतार ही फैंका.. अपना एक हाथ उपर उठाया और वाणी के गले से थोड़ा नीचे रख दिया जहाँ से उनकी जड़ें शुरू होती थी...," अया!"
यकीन मानिए.. ये सिसकी मनु के मुँह से निकली थी.. जितने आनंद की वह कभी कल्पना तक नही कर सकता था.. इतना आनद उसको कपड़ों के उपर से ही वाणी को छूने से मिल गया... वानिकी तो ज़ुबान जैसे जम ही गयी थी... सीने को महसूस हुई इतनी ठंडक को पाकर...
"थोड़ा और नीचे कर लूँ.. अपना हाथ!" मनु ने मनमानी जैसे सीखी ही ना थी..
वाणी ने छिड़ कर हूल्का सा घूँसा उसके पेट में मारा..,"मुझे नही पता.. जो मर्ज़ी कर लो..."
"जो मर्ज़ी!" मनु को ऐसा लगा मानो जन्नत की पॉवेर ऑफ अटयर्नी ही उसको मिल गयी हो...
वाणी के ऐसा कहने के साथ ही मनु का हाथ जैसे वरदान साबित हो रही उन्न बूँदों के साथ ही फिसल कर धक धक कर रहे बायें वक्ष पर आकर जम गया.. अब की बार सिसकी वाणी की ही निकलनी थी.. सो निकली,"आआआः.. मॅन्यूयूयूयुयूवयू"
'बड़ी' होने का अहसास होने के बाद पहली बार किसी ने उन्न फड़कते अंगों के अरमानो की अग्नि को हवा दी थी.. कामग्नी जो पहले ही सुलग रही थी; अब दहकने लगी..
वाणी के दोनो हाथ बिना एक भी पल गँवायें मनु का साथ देने पहुँच गये.. एक हाथ मनु के हाथ के उपर था.. ताकि और कसावट के साथ वो आनंद के अतिरेक में डूब सके.. दूसरा हाथ 'दूसरे' को सांत्वना दे रहा था.. ताकि उसको वहाँ सूनापन महसूस ना हो...
"हाए.. तुम तो कमाल हो वाणी.. कितना मज़ा आ रहा है.. इनको छूने से.." मनु ने यूयेसेस हाथ की जकड़न को कुच्छ और बढ़ाते हुए दूसरा हाथ वाणी की कमर में पहुँचा दिया...
वाणी का सख़्त हो चुका 'दाना' मनु के हाथों में गुदगुदी सी कर रहा था..," सच में वाणी.. मुझे नही पता था.. चूचियाँ छ्छूने में इतनी प्यारी होती हैं..
"छ्हि.. छ्ही.. इनका नाम मत लो.. मुझे शर्म आती है.." क्या बात कही थी वाणी ने.. मनु का खून उबाल खा गया..,"पर मुझे मज़ा आ रहा है.. तुम्हारी चूचियाँ संतरे जैसी हैं.. आकर में भी.. छ्छूने में भी..!"
"धात..!" और शर्मकार वाणी आगे बढ़कर मनु की छाती में दुबक गयी.. और 'संतरे' पिचके नही.. बढ़िया कंपनी की टेन्निस बॉल की तरह मनु के सीने में गड़कर अपनी गर्मी छ्चोड़ने लगे.....

"और छ्छूने दो ना प्लीज़.. इतना मज़ा आ रहा है की बता नही सकता.. तुम लाजवाब हो वाणी.." अपने बदन से शर्माकर लिपटी वाणी कामुक नज़रों से छेड़ता मनु बोला..
"अपने अंगों की इतनी प्रसंशा सुनकर वाणी ने भावुक होकर अपनी नज़रें उठाई और अपने यार की आँखों में देखा.. आँखें सब कह देती हैं.. दोनो एक दूसरे के मंतव्या को समझ गये और होंठों से होंठ जाम की तरह टकरा गये... चियर्स फॉर लव..
दोनो ही जवान थे.. और अब तक प्यार की ऊँचाइयों से अंजान थे.. अब उन्हे सिर्फ़ और सिर्फ़ एक ही चीज़ दिखाई दे रही थी.. एक दूसरे का बदन..
जी भर कर एक दूसरे के मुँह में 'जीभ कबड्डी' खेल कर वो हटे तो हट-ते ही मनु ने वाणी के दिल की बात कह दी,"प्यार करें?"
"कर तो रहे हैं.. और कैसे करें?" वाणी प्यार के इश्स खेल के हर भाग को जानती थी.. अपने कानो से सुन भी चुकी थी और आँखों से देख भी चुकी थी.. उसको वो मंज़र याद आ गया जब शमशेर दिशा में पूरा समा गया था और उसकी बेहन लहूलुहान हो गयी थी.. पर उसने वो पल भी देखा था जब खेल के आख़िरी पलों में उसकी दीदी धक्के मारने में शमशेर पर भी हावी हो गयी थी..
पर वह चाहती थी की मनु सब कुच्छ अपने तरीके से करे.. इसीलिए अंजान बनी रही..
"सिर्फ़ यही नही वाणी.. मैं सब कुच्छ करना चाहता हूँ.. सब कुच्छ.." मनु ने वाणी को अपने साथ मजबूती से बाँध लिया..
"और कैसे करते हैं.. सब कुच्छ.. मुझे नही पता.. पर तुम बता दो.. कर लूँगी.." मनु के सीने से अपने गाल सटाये वाणी सब कुच्छ करने को बेचैन थी....
"ठीक है.. अपने कपड़े उतारो.." अब मनु जल्दबाज़ी मैं दिखाई दे रहा था.....


उधर नीचे भी कामदेव मेहरबान तहे... गौरी के अरमान आज पुर होने जा रहे तहे.. अमित की साँसों की गंध अब तक महसूस कर रही गौरी जाना नही चाह रही थी.. पर लाइट जलने पर रोशन हो चुके कमरे में अमित के साथ वो असहज महसूस कर आयी थी..,"तुमने जवाब नही दिया.. मैं अब जाउ क्या?"
"जाना होता तो उसको रोक ही कौन सकता था.. अमित इश्स बात को जानता था," तुम्हारी मर्ज़ी है.. पर मैं तो लेना चाहता हूँ..."
"क्या?" हालाँकि मतलब वह समझ गयी थी.. उसके चेहरे के भावों और नज़रें झुका कर पूच्छे गये 'क्या' से सॉफ पता चलता था..
"तुम्हे सब पता है.. लड़की के पास एक बेचारे लड़के को देने के लिए 'क्या' होता है.." अमित ने गौरी की जांघपर अपना हाथ रख दिया..
"माहौल फालतू बातों की इजाज़त नही दे रहा था.. अन्यथा गौरी लड़कों को बेचारा कहने पर उस'से भिड़ने को तैयार हो जाती.. नज़रें झुकाए हुए ही उसने जवाब दिया," मुझे डर लग रहा है.."
'ग्रीन सिग्नल!' भला इश्स बात को अमित क्यूँ ना समझता.. जांघों से सरकता हुआ उसका हाथ गौरी की मच्चली के बिल्कुल करीब से होता हुआ उसकी 26" कमर और फिर वहीं जाकर थम गया.. जहाँ लड़की मा बन'ने से पहले इतराती हैं और बाद में घबराती हैं..' कहीं ढीले ना हो जायें...'
प्रतिरोध ना के बराबर ही था.. वहाँ से उसका हाथ हटाकर गौरी ने अपने हाथ में ले लिया..," तुम्हे में सच में अच्छि लगती हूँ क्या?"
"ये भी कोई पूच्छने की बात है.. क्या कभी आईने ने नही बताया?" अमित का हाथ लाख संयम बरतने की कोशिश के बाद भी अपनी जाँघ में उच्छल रहे 'शिकारी' को खुरचने चला गया.. साइज़ गौरी के लिए विस्मयकारी था.. उसकी मच्चली में कुलबुलाहट सी होने लगी..,"धोका तो नही दोगे?"
"अगर मौका नही मिला तो...." अमित का मजाकिया और बेबाक लहज़ा ही अब तक गौरी को वहाँ बैठा रहने पर विवस कर रहा था..
"तुम भी ना.. चलो बताओ क्या लेना चाहते हो.. मुझसे!" गौरी ने शर्मीली मुस्कुराहट के साथ अमित को वापस लाइन पर लाने के लिए सवाल किया...
"नाम बताऊं क्या?"
"नही.. ऐसे ही बता दो.." गौरी झेंप गयी..
"ठीक है.. अपने कपड़े निकाल दो.."
"नही.. पहले लाइट ऑफ!"
"लाइट बंद करने पर क्या फ़ायदा.. अगर देख ही ना पाए.."
"पर मुझे शर्म आ रही है.." गौरी अमित से नज़रें नही मिला पा रही थी..
"ठीक है.. तुम आँखें बंद कर लेना.. शरम भाग जाएगी..
"पर...." गौरी कुच्छ कहना चाह ही रही थी की अमित घुटनो के बल बैठा और उसकी टी-शर्ट नीचे कोनों से पकड़ कर उपर सरका दी.. ट्यूब-लाइट की रोशनी में गौरी के दूधिया कबूतर फड़फने लगे.. उनका आकर इतना मादक था की अमित पूरी शर्ट निकलना ही भूल गया और उसके गले में ही छ्चोड़ कर उसके गोल गोल अनारों को अपने हाथों में दबोच लिया...
"इष्हशह!" गौरी की कामुक सिसकी भी उसके बदन की तरह ही पागल कर देने वाली थी.. अमित के होंठों ने जैसे ही उसकी चूचियों से दूध निकालने की नाकामयाब कोशिश की.. गौरी का अंग अंग लहरा उठा.. वह मदहोश होकर बिस्तेर पर आ गिरी.. "आआआअह प्लस्ससस्स.. शियरट्ट तो.. आआह ...निकालने दो.."
"एक मिनिट!" कहते हुए अमित ने गौरी की चूचियों को चूस्ते हुए ही एक हाथ से उसकी शर्ट निकलवाने में मदद की.. वह इतनी मदहोश हो चुकी थी.. की सिसकिया लेते हुए बड़बड़ाने लगी,"आआह.. मुझे भी कुच्छ लेना है.."
नेकी और पूच्छ पूच्छ.. पलक झपकते ही अमित ने अपनी पॅंट अंडरवेर के साथ ही उतार फैंकी.. गौरी के लिए उसका ख़तनाक खिलौना तैयार खड़ा था.. तनटनाता हुआ..,"ये लो मेरी जान!" और घुटनो के बल होते हुए अमित ने अपना 'शेरू' गौरी के हाथों में पकड़ा दिया..
"यहाँ नही.. वहाँ.." गौरी का हाथ उसकी लोवर के उपर से ही मानो कुच्छ ढूँढ सा रहा था..
"जल्दी है क्या..?"
"हां.. दिशा और वाणी में से कोई उठ गयी तो.."
"ठीक है.. पूरा मज़ा फिर कभी.. पूरी जिंदगी पड़ी है.. चलो.. उल्टी लेट जाओ.."
"उल्टी क्यूँ.. ऐसे ही ठीक नही है क्या?"
"या तो तुम इनस्टरक्टर बन जाओ.. या फिर मेरी बात मान लो.." अमित ने धोंस सी दिखाई..
"ठीक है.. " गौरी ने कहा और अपनी छातियों के नीचे तकिया रखकर उल्टी होकर लेट गयी....

अमित ने एक पल भी ना लगाया और उसका लोवर और पॅंटी नीचे खींच कर नितंबों को आवरण हीन कर दिया...
"ओह माइ गॉड!... म्‍म्म्मममममहा!" गौर के गोरे गोरे मोटे मस्त नितंबों की सुंदरता और सुगधा देख कर अमित यही कह पाया.. "क्या माल हो यार तुम भी.."
दोनो फांकों के बीच की दरार अच्छि ख़ासी चौड़ी लग रही थी.. पर जब अमित ने उंगली घुसाने की कोशिश की तो अहसास हुआ.. कितनी टाइट है.. गहरी भी.. अमित ने फांको को अलग करके जहाँ तक अमित की नज़र गयी.. सब कुच्छ कोरा और गोरा था..
अमित ने बेड पर पड़ा तकिया उठाया और गौरी को अपने नितंब उपर उठाने का इशारा किया.. ज्यों ही गौरी उपर को हुई.. अमित ने तकिया उसके नीचे सेट कर दिया.. नितंबों की उँचाई और बढ़ गयी.. दरार और फैल गयी.. दरार के बीचों बीच दूधिया सफेद रंग की हल्के बालों वाली मच्चली मुस्कुरा रही थी.. अमित ने उपर से ही उसका दाना ढ़हूँढने की कोशिश की तो गौरी अंदर तक हिल गयी.. इतना आनंद उसको अपनी उंगली से कभी नही आया था..," प्लीज़ जल्दी करो.. मैं 2 बार तो पहले ही हो चुकी हूँ.."
"हूंम्म.. वो तो दिख ही रहा है.. रस से सनी अपनी उंगली बाहर निकालकर देखते हुए अमित ने फिदा हो चुकी नज़रों से उसको देखा.. बड़ी मादक गंध थी..
अमित ने उसकी टाँगों को थोड़ा दूर करके योनि चिद्रा को देखकर कहा..," तो पहली बार है.. नही?"
"क्या मतलब?" गौरी ने सच में उसका मतलब नही समझा..
"सेक्स.. और क्या?"
बात सुनकर गौरी को धक्का सा लगा.. अचानक पलटी खाकर बैठ गयी और अपने हर अंग को च्छुपाने की कोशिश करती हुई रोना सा मुँह बना लिया..
"क्या हुआ?"
"तो क्या तुम मुझे..." गौरी सच में रोने लगी...
"सॉरी जानू.. आइ वाज़ जस्ट जोकिंग.. मज़ाक कर रहा था यार.."
"नही.. मुझे नही करना.."
"प्लीज़ गौरी.. ऐसा मत करो.. छ्होटे से मज़ाक से ही रूठह गयी. तुम्हे तो पता है.. मेरी मज़ाक करने की आदत है.. रियली सॉरी यार.. प्लीज़" अमित ने उसको अपनी बाहों में भर लिया.. बड़ी मुश्किल से गौरी शांत हुई..
गौरी वापस उसी हालत में लेटने लगी तो अमित ने एकद्ूम शरीफों की तरह कहा," यहाँ से और उपर उठ जाओ ना.. प्लीज़.. घुटने बेड पर रख कर.. हां हां.. ऐसे ही.. अपना चेहरा बेड पर ही रखो.. यस यस ऐसे ही.. थॅंक यू!"
किसी ने सच ही कहा है..
"बिस्तेर पर तो रानी ही राजा होती है.. और राजा उसका सेवक" जाने कितनी ही सभ्यता एक ही घुड़की से अमित के बोल में आ गयी थी..
अमित ने जब इश्स अवस्था में गौरी के पिच्छवाड़े को देखा तो पागलपन में कोई कमी ना रही.. अमित ने एक से बढ़कर एक को देखा था पर गौरी के आगे तो सब पानी भरती ही लगी..
अमित के होंठ गौरी की चूत से खेलने लगे.. गौरी भी इश्स 'टच' से बदहवास सी सिसकिया ले लेकर अपने आपको ज़्यादा से ज़्यादा खोलने में लगी थी..
जी भर कर अमित ने रसास्वादन किया... चूत फूल कर और भी स्वदिस्त और सुंदर हो गयी थी...
ज़्यादा देर किस भी लिहाज से अब ठीक नही थी..
अमित ने उसके पिछे पोज़िशन ली और लंड का सूपड़ा गौरी की चिकनी चूत के मुंहने पर लगा दिया..," थोड़ा दर्द होगा.. एक बार.. सहन कर लेना प्लीज़.."
गौरी इश्स बात को समझती थी.. उसने अपना मुँह तकिये में दबा लिया और 'काम' कर्ण का इशारा किया..
'चिरर्र' की आवाज़ के साथ ही गौरी के गौरांग का श्री गणेश हो गया.. खून नही आया पर हालत खून ख़राबे से बदतर थी.. लंड कुच्छ दूरी तय करके जैसे जाम सा हो गया.. तकिये के अंदर से गौरी की घुटि हुई सी चीखें रह रह कर अमित को अभियान रोक देने पर विवश कर रही थी..
"चलो हो गया" की अनुभूति अमित को गौरी के उस अंदाज से हुई जब उसने तकिये से मुँह उठाकर एक लंबी साँस ली.. लंड भी तक तक गौरी की जड़ों तक 2-4 बार हो आया था.. अब गौरी के चेहरे पर असीम सुख और आनंद के भाव थे.. गौरी ने अपनी टाँगों को और ज़्यादा खोल दिया..
कसी हुई योनि में अब उसका लंड सररर सररर की आवाज़ के साथ अंदर बाहर हो रहा था.. अमित को करीब 15 मिनिट हो चुके थे बिना रुके बिना थके लगे हुए.. पर गौरी इश्स दौरान 2 बार स्वर्ग लोक हो आई थी..
अंत में जब अमित को अहसास हुआ की अब टिकना मुश्किल है तो उसने ढकधक धक्कों की गति तेज़ कर दी.. गौरी तीसरी बार 'आ' गयी..
गौरी की इश्स बार की लुंबी साँस के साथ ही अमित ने अपना हथियार बाहर खींच लिया.. अच्च्छा ही किया वरना सब कुच्छ अंदर ही हो जाता.. जस्न का जोश जारी था.. गाढ़े वीरया की पिचकारी पसारकार उल्टी लेट चुकी गौरी के नितंबों को निहाल करने लगी...

गौरी को जैसे इसी बात का इंतजार था.. झट से उठी और अपने को सॉफ करके कपड़े पहनती हुई बोली... "अगली बार देखूँगी तुमको.." कहते हुए अमित के होंठों का एक करारा चुंबन लिया और कपड़े पहेनकर चुपके से बाहर निकली.. और अपनी खाट पर जाकर इश्स प्रथम अनुभव की मिठास को अपने मॅन में महसूस करने लगी...

अंदर बैठा अमित खुद ब खुद मुस्कुरा रहा था,"क्या गन्ना था.. कसम से!"

पर उसका तो यही तराना था.. गन्ना उखाड़ो और खेत से बाहर!
दोस्तो अब बताए ये पार्ट आपको कैसा लगा अपनी राय ज़रूर देना

साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj






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1 comment:

Unknown said...

u r verygood story writer.

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