Friday, June 18, 2010

गर्ल'स स्कूल --5

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गर्ल'स स्कूल --5

वाणी जब चाय लेकर आई तो कमरे की ठंडक देखकर उच्छल पड़ी!,"वा, सर ए.सी." मैं भी अपनी किताबें लेकर उपर आती हूँ. कहकर वा दौड़ती हुई नीचे चली गयी! उसने स्कूल ड्रेस निकाल कर स्कर्ट और टॉप पहन लिया था. नव यौवन कयामत ढा रहा था. जाने अंजाने वो शमशेर की साँसों में उतरती जा रही थी.

थोड़ी देर बाद वह आई और बेड पर बैठकर पढ़ने लगी. ए.सी. की ठंडक में नींद आना स्वाभाविक था. वाणी बोली," सर जी, मुझे नींद आ रही है. थोड़ी देर यही सो जाउ."
"हां हां क्यूँ नही! अपना ही घर है. शमशेर ने चुटकी ली.
वाणी जल्द ही गहरी नींद में सो गयी. दिशा ने देखा उसका स्कर्ट जांघों पर काफ़ी उपर तक चढ़ गया है. पर सर से शरमाने के कारण वो कुच्छ नही बोली.

शमशेर ने एक एक्सर्साइज़ पूरी करवाने के बाद बोला. आज बहुत हो गया. इनकी प्रॅक्टीस कर लेना. बाकी कल करेंगे.
दिशा का वहाँ से जाने का मॅन नही कर रहा था. सच कहें तो दिशा को वो सारे सवाल आते थे. पर सर के साथ बैठने का आनंद लेने के लिए और अपने सर की नेहा से रखवाली करने के इरादे से वो वहाँ आई थी. पर अब क्या करती. वो वाणी को उठाने लगी. पर वाणी नींद में ही बोली," नही दीदी, मुझे यहीं सोना है! और उसने पलटी लेकर एक हाथ सिर की गोद में रख लिया.
शमशेर: सोने दो इसको! उठ कर अपने आप आ जाएगी.
फिर दिशा क्या बोलती. दिशा और नेहा अनमने मॅन से नीचे चली गयी.

शमशेर ने देखा, वाणी गहरी नींद में सो रही है, उसका स्कर्ट पहले से भी ज़्यादा उपर उठ गया है
उसकी कोमल गोल गोल जन्घे और यहाँ तक की उसकी सफेद कच्च्ची भी सॉफ दिख रही थी. शमशेर ने उसके हाथ को आराम से उठाया और बेड पर उसके नज़दीक ही सीधा लेट गया....
सेक्सपेर ऐसे ही नही बना जाता. अगर आप चूत में लंड घुसाकर पानी निकालने को ही सेक्स समझते हैं तो ये तो 5 मिनिट की बात है, ना तो कोई उपर आएगा और ना ही शमशेर किसी दूसरी बात को सोचेगा. मेरे लिखने भर से ही वा सब कुच्छ भूल कर, वाणी की कछि निकाल कर उससमें अपना लंड पेल देगा. बस 4-5 मिनिट का रोना धोना और फिर वाणी की सिसकियाँ. लंड से चुड़वा कर वाणी भी बाग बाग हो जाएगी. ऐसे ही दिशा और एक एक करके स्कूल की सारी लड़किया. किसी को कुच्छ पता नही चलेगा. और अगर पता चल भी गया तो मेरे बाप का क्या जाता है. साले के साथ जो होगा सो होगा और कहानी ख़तम

पर मेरे प्यारे भाइयो और उनकी भाभियो, ज़रा दिमाग़ पर ज़ोर डालो. जितना मज़ा सेक्स के इंतज़ार का है क्या उतना मज़ा सेक्स में है? अगर नही है तो पढ़ते रहिए ना! क्या टेन्षन है.

एक बात और आज 4थ डे है इश्स थ्रेड का और मैने अभी तक किसी को मौका नही दिया है ये कहने का की भाई और लिखो, अपडेट करो! पर जो कॉंप्लिमेंट मुझे मिले हैं वो कहानी को देखकर कॅमल की गॅंड में मिर्ची के समान हैं.
एक लेखक को बदले में चाहिए ही क्या होता है. प्रेज़ और सजेशन्स... बस, उसमें भी आप कंजूसी कर रहे हैं...

अम्मा दिल नही टूटेगा मेरा! कुच्छ तो रहम करो मुझपर और अगर अच्छि लगे तो एक आध लाइन में गुणगान कर दो, बुरी लगे तो कोई सलाह दे डालो

ठीक कही ना मेने, अब बगैर लिखे अपने लंड को तननाए हुए या अपनी चूत को खुजलाते हुए बाथरूम में मत घुसना. बुरी बात है, क्यूँ हैं ना सर जी!

दिशा नेहा को छोड़ने गेट तक आई. वो विचलित सी थी. कही वाणी जानबूझकर तो सर के .... छ्हि छि, वह भी क्या सोचने लगी अपनी छ्होटी बहन के बारे में; वो तो कितनी नादान है. और मुँहफट इतनी की अगर उसके मॅन में कुच्छ भी होता तो मुझे ज़रूर बताती. अभी 2 महीने पहले जब एक लड़का उसको इशारा करके खेत के कमरे में बुला रहा था तो वो तो उस्स इशारे का मतलब भी ना समझी थी. घर आते ही सारी रामायण सुना दी थी मुझे. फिर मैने ही तो उसको मना किया था किसी को कुच्छ बताने के लिए. वो तो क्लास में ही अनाउन्स करने वाली थी. कितनी भोली है बेचारी...
उसकी मामी पड़ोस से नही आई थी. कहीं आने के बाद वो उसको ना दांते वाणी को उपर सोने देने के लिए, पर सर के सामने तो उसकी ज़ुबान ही ना खुलती थी, फिर वो इतनी बड़ी बात सर के सामने वाणी को कैसे कहती!
फिर भी उसको डर सा लग रहा था.
उधर शमशेर के हाथ में वाणी के रूप में ऐसा लड्डू आया हुआ था जिसको ना खाते बन रहा था ना छोड़ते. उसने वाणी के चेहरे की और देखा. दुनिया जहाँ की मासूमियत उसके चेहरे से झलक रही थी. कितने प्यारे गुलाबी होंट थे उसके. दूध जैसी रंगत उसके बदन को चार चाँद लगा रही थी. वह बैठ गया और वाणी की तरफ प्यार से देखने लगा. वा अपने सर के पास ऐसे सोई हुई थी जैसे उसका अपना ही कोई सगा हो. कुच्छ ही दिनों में कितना अधिकार समझ लिया था उसने शमशेर पर. उसकी नज़र वाणी की चुचियों पर पड़ी, जैसे दिशा की चुचियों का छ्होटा वर्षन हो. बंद गले का टॉप होने की वजह से वो उनको देख तो नही पाया, पर उनके आकर और कसावट को तो महसूस कर ही सकता था. केले के तने जैसी चिकनी टाँगे उसके सामने नंगी थी. कितनी प्यारी है वाणी.... अफ... शमशेर के अंदर और बाहर हलचल होने लगी. उसने लाख कोशिश की कि वाणी से अपना दिमाग़ हटा ले. पर आगे पड़ी कयामत से उसका ईमान डोल रहा था. लाख कोशिश करने के बाद भी जब उससे रहा ना गया तो उसने धीरे से वाणी को पुकार कर देखा,"वाणी!" पर वा तो सपनों की दुनिया में थी. शमशेर ने दिल मजबूत करके उसकी छतियो पर हाथ रख दिया. क्या मस्त चुचियाँ पाई हैं. जो भी इश्स फल को पकने पर खाएगा, कितना लकी होगा. शमशेर ने चुचियों पर से हाथ हटा लिया और धीरेधीरे करके उसके स्कर्ट को उपर उठा दिया. शमशेर का दिमाग़ भनना गया. पतली सी सफेद कच्च्ची में क़ैद वाणी की चिड़िया जैसे जन्नत का द्वार थी. शमशेर से इंतज़ार नही हुआ और उसने लेट कर उसकी प्यारी सी चूत पर अपना हाथ रख दिया. ऐसा करते हुए उसके हाथ काँप रहे थे. जैसे ही उसने वाणी की चूत पर कछि के उपर से हाथ रखा वो नींद में ही कसमसा उतही. शमशेर ने तुरंत अपना हाथ वापस खीच लिया, वाणी ने एक अंगड़ाई ली और शमशेर के मर्डाने जिस्म पर नाज़ुक बेल की तरह लिपट गयी. उसने अपना एक पैर शमशेर की टाँगों के उपर चढ़ा लिया.. इश्स पोज़िशन में शमशेर का हाथ उसकी चूत से सटा रह गया. शमशेर की हालत खराब होने लगी. हालाँकि शमशेर मानता था की वा आखरी हद तक कंट्रोल कर सकता है. इसी आदत से वा तडपा तडपा कर औरतों को अपना शिकार बनाता था. यही उसमें छिपि कशिश का राज थी. पर वाणी के मामले में कंट्रोल की वह हद मानो मीलों पिछे छूट गयी थी. अचानक सीढ़ियो पर आती आवाज़ ने उसको वही का वही जड़ कर दिया. वाणी को अपने से दूर हटाने का मौका भी उसके पास नही था. वा जैसे था उसी पोज़िशन में आँखें बंद करके लेटा रहा.


उपर आने वाले कदम दिशा के थे, उसकी मामी अब आने ही वाली होगी, ये सोचकर वो वाणी कोfor more hindi
उठाने आई थी. अंदर का सीन देखकर दिशा का दिल धड़कने लगा. वाणी शमशेर से लिपटी मज़े से सो रही थी. एक पल के लिए उसके दिल में आया, काश.... और सोचने भर से ही वो शर्मा गयी. फिर सोचने लगी, इसमें सर की क्या ग़लती है. वो तो सीधे सो रहे हैं. वाणी की ही ये आदत है, मेरे साथ भी यह ऐसे ही कुंडली मार कर सोती है.
पर सर तो मर्द हैं; उनके साथ तो... कितनी बड़ी हो गयी है; इसमें तो अकल ही नही है. वह वाणी की तरफ बेड पर गयी, पहले प्यार से उसका स्कर्ट ठीक किया फिर उसके चुतदो पर हाथ मारा," वाणी!"
वाणी आँख मलते हुए उठी और दिशा को देखने लगी जैसे पहचानने की कोशिश कर रही हो.
"वाणी, चल नीचे!"
नही दीदी मैं यहीं रहूंगी, सर के साथ. शमशेर सब सुन रहा था.
दिशा ने धीरे से वाणी को झिड़का, "चलती है या दू एक कान पे.." कहकर वो वाणी को ख्हीचने की कोशिश करने लगी. वाणी शमशेर के उपर गिर पड़ी और उसे कसकर पकड़ लिया." ताकि दिशा उसको खीच ना सके.
वाणी की चुचियाँ शमशेर की छति पर लगकर टेन्निस बॉल की तरह पिचाक गयी. शमशेर को जैसे भगवान मिल गया हो.
दिशा की हालत अजीब हो गयी, क्या करे? सर जाग गये तो तमाशा होगा.
उसने वाणी के कान में कहा, तुझे सर की बहुत अच्छि बात बतानी है, जल्दी आ!"
"सच" सर की तो वो फॅन थी! रूको मैं सर को उठा दूं. वाणी फिर से सर के लगभग उपर लेटी और ज़ोर से कान में कहा," सर जी!"
आज वाणी ने दिशा को ये दिखाने के लिए की वो सच कह रही थी की सर को कुंभकारण की तरह उठाना पड़ता है; बहुत ज़ोर से चीखी. शमशेर को लगा उसके कान का परदा फ़ान्ट जाएगा. वा एक दम चौंक पड़ा, फिर उठ बैठा.
सर के उठने का ये तरीका देखकर दिशा खुद को खिलखिलाकर हँसने से ना रोक पाई.
उसकी मधुर हँसी पर शमशेर फिदा हो गया. पहली बार उसने दिशा को इश्स तरह हंसते देखा था. सर को अपनी और एकटक देखता पाकर वा शर्मा गयी.
" सर, मैं वो वाणी को उठाने आई थी. दिशा के चेहरे पर अब भी मुस्कान थी.
शमशेर: और मुझे किसने उठाया.
वाणी: मैने सर जी, और वो शमशेर के गले से लिपट गयी.
दिशा सोच रही थी की कास कम से कम एक बार वो भी ऐसे ही सर से लिपट सके.
शमशेर ने प्यार भारी पप्पी वाणी के गालों पर दी और बोला "जाओ वाणी!" और मेरे लिए तुम ही चाय लेकर आना.
शमशेर का मूड तननाया हुआ था वह अंजलि के पहलू में जाने का रात तक का वेट नही कर सकता था. उसने कपड़े बदले और अंजलि के पास पहुँच गया.

उधर दिशा वाणी को नीचे ले गयी. वाणी ने कहा "दीदी उपर कितनी ठंड थी. इतनी मीठी नींद आई की बस पुछो ही मत. मैं तो रात को वहीं सोऊ गी""तू पागल है क्या?" "देख मामा मामी को बिल्कुल पता नही चलना चाहिए की तू उपर सो गयी थी. वरना वो हमें कभी उपर नही जाने देंगे" दिशा ने उसको समझाते हुए कहा.
"क्यूँ दीदी?" वाणी ने अचरज से पूचछा.
"देख मैं तुझे डीटेल में तो बता नही सकती. लेकिन इतना समझ ले की बड़ी होने पर लड़की को अपना ख्याल रखना चाहिए. लड़कों के साथअकेले नही रहना चाहिए" दिशा ने कहा.
वाणी: पर तुम तो हमेशा कहती हो की अभी मैं छ्होटी हूँ. तो मैं बड़ी कैसे हुई.
दिशा: हां वैसे तो तुम छ्होटी हो पर... दिशा को समझ नही आ रहा था वो वाणी को कैसे बताए की वो किस लिहाज से बड़ी हो गयी है." बस तू इतना समझ ले की मैं हम दोनों के भले के लिए कह रही हूँ"
वाणी के मॅन में अपराध बोध आ गया," तो दीदी मैने कुच्छ ग़लत कर दिया" वा रॉनी सूरत बनाकर बोली.
दिशा: नही वाणी, तूने कुच्छ ग़लत नही किया. बस इतना समझ ले घर वालों को बाहर के लड़कों के साथ हमारा रहना बुरा लगेगा.
वाणी: लेकिन दीदी! सर कौनसा बाहर के हैं, वो तो अपने हैं ना!
दिशा ने वाणी को अपनी छति से चिपका लिया. शमशेर का चेहरा उसके सामने घूम गया," हां च्छुटकी, सर तो अपने ही हैं." उसकी आँखों से आँसू टपक पड़े.

शमशेर के आने के बाद दिशा में ज़मीन आसमान का फ़र्क़ आ गया था. लड़के रूपी मक्खियों को अपनी नाक पर ना बैठने देने वाली दिशा आज शमशेर की दासी हो चली थी. उसके भी मॅन में था की वो शमशेर को वाणी की तरह ही सिने से चिपका ले. दिनों दिन उसका खुमार बढ़ता ही जा रहा था. उसको अब भी ये महसूस होता था कि सर उससे नाराज़ हैं और उसको गुस्सैल लड़की समझते हैं. इसीलिए तो मुझसे इश्स तरह बात नही करते जैसे औरों से करते हैं. उसको क्या मालूम था शमशेर भी उसी की माला जप रहा है आजकल.
निर्मला के आने के बाद जब वाणी सर को. चाय देने गयी तो सर वहाँ नही मिले. वाणी का भी सर के बगैर दिल नही लगता था. पर जिस बात को उसको मम्मी पापा से च्छुपाना था, वही बात उसके मॅन में बैठ गयी. वा जान-ना चाहती थी की ऐसा क्यूँ है कि बाहर के लड़कों के पास नही जाना चाहिए. पर किसी ने उसको नही बताया. ये तो मानव का स्वाभाव है की जिस बात से उसको रोका जाए, वही करने में उसको आनंद मिलता है.
रात को करीब 7:00 बजे शमशेर वापस आया. अंजलि की तो वा खुजली मिटा कर आया था पर उसकी भूख बढ़ती ही जा रही थी. रोटियों की भूख मिठाई खाने से कम नही होती. वो तो अब दिशा का भूखा था. थोड़ी देर नीचे मामा मामी के साथ बैठकर वा उपर चला गया. वाणी भी साथ ही चली गयी. उसके मम्मी पापा को अब किसी बात की चिंता नही थी. शमशेर की तरफ से तो वो दिशा का लिए भी निश्चिंत थे. दिशा शायद इसीलिए घबराती थी क्यूंकी उसके मॅन में चोर था...प्यार का चोर.....शमशेर!

नीचे से जब वाणी को खाने के लिए आवाज़ आई तो शमशेर ने कहा जा वाणी मेरी रोटी उपर ही भेज देना और तू जाकर पढ़ाई कर ले.
वाणी: नही! आज में पढ़ूंगी नही; कल सनडे है, खूब सोऊगी!
शमसेर: ठीक है सो जाना; पहले मेरा खाना तो दे जा.
वाणी: ओके सर!
वाणी ने नीचे जाकर कहा,"सर खाना उपर मॅंगा रहे हैं! उनकी तबीयत खराब है."
निर्मला: वाणी तू खाना खा ले! जा बेटी दिशा! तू सर को खाना दे आ.
दिशा: ठीक है मामी जी, और वो खाना लेकर उपर चली गयी.

"सर, मे आइ कम इन?"
शमशेर कपड़े बदलने की तैयारी में था. उसके शरीर पर पॅंट के अलावा कुच्छ नही था. दिशा की आवाज़ सुनकर उसने कहा," आ जाओ! अपना ही घर है."
दिशा अंदर घुसी तो थोड़ी सकुचा गयी, शमशेर को ऐसे देखकर, उसका कसरती बदन उसको लुभा रहा था.

वह खाना रखकर जाने लगी तो शमशेर ने उसको कलाई के पास से पकड़ लिया. "आ..आ!" वा जड़ हो गयी, उसके अंदर तूफान जैसी हलचल थी, पर बाहर जैसे पत्थर. उसको हल्का सा इशारा मिलते ही वा शमशेर की बाहों में क़ैद हो जाती, हमेशा के लिए! सिर्फ़ हूल्का सा झटका अगर उसको शमशेर दे देता तो. पर हाय री दोनों की किस्मत; शमशेर ने वो झटका ही नही दिया.

दिशा घूम गयी और नीचे देखने लगी.
" क्या नाम है तुम्हारा?" शमशेर ने उसी अंदाज से पूचछा जैसे उसने पहले दिन स्कूल में पूचछा था.
दिशा कुच्छ ना बोली; कुच्छ ना बोल सकी.
शमशेर ने उसकी गालों पर हाथ लगाकर उसका चेहरा उपर उठा दिया, दिशा की आँखें बंद हो गयी," तुमने आज तक मुझे अपना नाम नही बताया है जो मैं पहले दिन से पूच्छ रहा हूँ"
दिशा ने कप कपाते अधरों से कहा," ज.जी... दिशा"
शमशेर ने उसको छ्चोड़ दिया," दिशा को उसका सब कुच्छ टूट-ता सा लगा. वो जाने लगितो शमशेर ने उसको टोका," सुनो दिशा"
वा पलट गयी, एक बार और जी भर कर देख लेना चाहती थी; बाकी रात यही चेहरा तो याद रखना था," जी सर"
" मैं तुमसे नाराज़ नही हूँ! तुम बहुत...अच्च्ची हो!" शमशेर सुंदर कहना चाहता था पर निकल ही नही पाया.
दिशा सुनकर नीचे भाग गयी.

दिशा जब नीचे गयी तो वहाँ एक अलग ही कोहराम मचा हुआ था, वाणी रो रही थी!
दिशा ने जाते ही पूचछा," क्या हुआ छ्होटी." जब वह उसके लाड लड़ाती थी, तो च्छुटकी ही बुलाती थी.
निर्मला: हुआ क्या है. बेवजह की ज़िद लगा रही है; कह रही है सर के पास जाकर सोएगी
दिशा सुन्न रह गयी. दिन में उसको कितना समझाया था. अकल की दुश्मन! घर वाले अब शायद शमशेर को यहाँ रहने ही दें.
" तू पागल है क्या वाणी. यहाँ मेरे पास सोना. चल उठ जा!
वाणी और ज़ोर से रोने लगी. सर के बिना तो अब वा रहना ही नही चाहती थी. शमशेर कभी भी किसी चीज़ को मेरा या हमारा नही बोलता था. हर चीज़ में वह सबको शामिल करता था. हर चीज़ को अपना कहता था. शमशेर के उसी 'अपनेपन' को वाणी ने मेरा मॅन लिया था.
दिशा को लगा सब ख़तम हो जाएगा. मुश्किल से आज सर खुश हुए थे. अगर आज घर वालों ने कुच्छ कह दिया तो फिर कभी बात ही नही करेंगे.
निर्मला: अरे सोच बेटी! किराया देते हैं वो, फिर उन्हे काम भी बहुत रहता है. क्या सोचेंगे. कहेंगे इस्सको और साथ बाँध दिया. परेशान हो जाएँगे. आख़िर उनकी भी तो अपनी जिंदगी है. हर पल तुझे कैसे सहन करेंगे वहाँ. और फिर 2 दिन पहले क्या हमारे पास ए.सी. था. तब भी तो सोती थी नीचे ही. मान जा बेटा, नही तो वो नाराज़ होकेर चले जाएँगे."
दिशा को लगा; मामला उतना गंभीर नही है. यहाँ तो सर के परेशान होने की बात चल रही है.
" अच्च्छा तू सर से पूच्छ ले, वो मान जाए तो चली जाना, बस!" दिशा को विस्वास था वो तो मान ही जाएँगे. कहकर वो मामा मामी की और देखने लगी की क्या रिएक्शन होता है. वाणी झट से उठ खड़ी हुई," मैं पूच्छ कर आती हूँ"
दयाचंद : ठहर वाणी!
वाणी और दिशा दोनो ने मायूस होकर पापा की और देखा.
दया चंद: हम बात करके आते हैं; अगर हमें लगा की सर को तुम्हे साथ रखने में कोई दिक्कत नही है तो हम तुम दोनो को उपर भेज देंगे. अब तो खुश हो ना!
"दोनो को" दिशा को लगा वो सपना देख रही है! उसको सच में विस्वास नही हो रहा था, कि उसके रूढ़िवादी मामा उसको तो दूर; वाणी को भी उपर भेज सकते हैं.
वाणी खुश हो गयी. वा पापा की उंगली पकड़कर तैयार हो गयी.
"नही अभी तुम नही मैं और तुम्हारी मम्मी जाएँगे."
और वो दोनो उपर चले गये शमशेर के पास.
उनके जाते ही दिशा वाणी को घूर्ने लगी, फिर उसको पकड़कर अपनी छति से लगा लिया. उसीकि हिम्मत से यह सब संभव हो सका था. उसने वाणी के गालों को चुंबनों से भर दिया. वाणी अपना बॅग तैयार करने लगी. जैसे अब उसको कभी वापस आना ही ना हो," दीदी, एक ड्रेस भी ले लूँ"
दिशा ने उसको एक प्यार भारी चपत लगाई फिर दोनो हँसने लगी.

उपर जाकर दया चंद ने दरवाजा खटखटाया. शमशेर लॅपटॉप पर काम कर रहा था. उसने दरवाजा खोला, आइए अंकल जी.
अंदर जाते ही दोनों को यकीन हो गया की वाणी उपर रहने की ज़िद क्यूँ कर रही है. बिल्कुल ठंडा माहौल था कमरे में.
बैठने के बाद डायचंद ने बोलना शुरू किया; उसको समझ नही आ रहा था बात कहाँ से शुरू करे," बेटा कोई तकलीफ़ तो नही है ना!"
"जी नही तकलीफ़ कैसी, मैं तो यहाँ अपने घर की तरह से रह रहा हूँ!"
डायचंद: फिर भी बेटा.... वो वाणी है ना, बहुत ही शरारती है! परेशन तो कर देती होगी आपको.
शमशेर: अरे नही अंकल जी! वो तो गुड़िया जैसी है; उसने ही तो मेरा दिल लगाया है यहाँ पर. शमशेर ने हद से ज़्यादा मीठा होते हुए कहा. उसकी अब तक ये समझ नही आ रहा था की माजरा क्या था.
निर्मला: वो भी ना मस्टेरज़ी, आपसे बहुत घुलमिल गयी है. नीचे भी आप ही की बात करती रहती है.
शमशेर: आंटिजी, वो तो है ही ऐसी. कितनी प्यारी है गुड़िया जैसी.
डायचंद: (थूक निगलते हुए) बात ऐसी है बेटा; वो वाणी ज़िद किए बैठी है की मैं तो सर जी के साथ रहूंगी. खाना भी नही खाया; रो रही है जबसे नीचे गयी है( ए.सी. वाली बात को बताने में उन्हे शरम आ रही थी)
शमशेर की समझ में नही आया इश्स बात पर कैसे रिएक्ट करे! वो कुच्छ नही बोला.
डायचंद: मुझे तो बहुत गुस्सा आया था बेटा, बच्चों की इतनी ज़िद ठीक नही. पर इसकी मम्मी कहती है एक दो दिन...... अगर आपको कोई दिक्कत ना हो तो यहाँ... इश्स दूसरे कमरे में दोनों बच्चियाँ रह लेंगी. ....अगर आपको ऐतराज ना हो तो... 1-2 दिन में अपने आप दिल भर जाएगा; अपनी मम्मी के बिना भी तो नही रहती ना... देख लो... उसको समझा कर देख लो... मास्टर जी!
"ओ..ओह अंकल जी( शमशेर के मॅन में लड्डूओं की बरसात हो रही थी. 'दोनो' सुन-ने के बाद और कुच्छ उसको सुनाई ही नही दिया... क्या किस्मत दी है भगवान ने!) भला मुझे क्या दिक्कत हो सकती है उस्स बेचारी से! आपका ही घर है.... वैसे भी वो कमरा तो में यूज़ करता ही नही... प...पढ़ा... मेरा मतलब है पढ़ाई में भी कोई दिक्कत होगी तो पढ़ा दूँगा. वैसे भी में तो खाली ही रहता हूँ... बाकी आपकी मर्ज़ी!... मैं तो उस्स कमरे में जाता ही नही"
शमशेर ने इतना लंबा भासन दिया ताकि इनको विस्वास हो जाए उसको कोई प्राब्लम नही है.
निर्मला: तो मास्टर जी उनकी चारपाई लगवान दे उपर?
शमशेर: जी मुझे तो कोई दिक्कत है नही... आपकी मर्ज़ी... शमशेर ख़ुसी में हकला रहा था.
निर्मला: तो ठीक है बेटा, हम उन्हे उपर भेज देते हैं. कोई दिक्कत हो तभी बता देना. तभी ले जाएँगे हम दोनों को!
शमशेर: जी अच्च्छा!
बाहर निकल कर डायचंद बोला," बड़ा भोला है बेचारा. इतना पैसा होने पर भी किसी बात का घमंड नही; भगवान ऐसी औलाद सबको दे!"

कुच्छ देर बाद दोनो अपनी अपनी चारपाई लेकर उपर आ गयी और दूसरे कमरे में डाल लिया. दिशा तो किताब लेकर पढ़ने बैठ गयी पर वाणी दौड़ी आई और सर से लिपट गयी. दिशा ने एक बार उनकी और देखा पर शमशेर को अपनी और देखता पाकर शर्मकार नीचे चेहरा कर लिया. वाणी की आँखें रोने की वजह से और भी मोटी मोटी हो गयी थी. शमशेर ने उसके गाल पर प्यार से किस किया तो बदले में वाणी ने भी एक चुम्मा सर के गाल पर दे डाला.
सच में वाणी तो एक प्यारी गुड़िया ही थी.

शमशेर पालती मारे बैठा था; वाणी उसकी गोद में आकर बैठ गयी और उसकी गालों के नीचे अपना सिर फँसा लिया. उसने अब भी स्कर्ट पहन रखा था

वाणी की गॅंड शमशेर की गोद में होने की वजह से ना चाहते हुए भी शमशेर गरम होता जा रहा था. उसने लाख कोशिश की अपना ध्यान बताने की पर उसकी दुनिया की सबसे हसीन कन्या जब उसके सामने हो और उसकी 17 साल की अनच्छुई बहन उसके लंड पर अपने मस्त चूतदों को टिकाए बैठी हो तो उस्स जैसे गरम खून वाले का कंट्रोल कहाँ तक टिकता. स्कर्ट और एक पतली सी कच्च्ची उसके शेर की टक्कर कहाँ तक सहन करते. वैसे भी वाणी उसके लंड के ठीक बीच में बैठी थी. उसको अपने चूतदों में कुच्छ चुभता सा महसूस हुआ, पर वो उसको समझ नही पाई. उसने सोचा वा सर की टाँग पर बैठी है. नासमझ थी तो क्या हुआ फिर भी थी तो वह लड़की ही, उसको बेचेनी सी होने लगी. ऐसी बेचैनी जिसमें उसको मज़ा आ रहा था. धीरे धीरे उसकी चूत में गर्मी बढ़ने लगी. अजीब सा खुमार च्छा गया था उस्स पर. धीरे धीरे उसने बोलना बंद कर दिया. बस हां हूँ में ही जवाब देने लगी. शमशेर की 'टाँग' पर अपनी चूत की रगड़ से उसको अजीब सा आनंद मिल रहा था. वो आराम आराम से आगे पीच्चे होने लगी, उसको पता नही था ऐसा क्यूँ हो रहा है. शमशेर उसकी हालत को ताड़ गया था. उसने अपनी दोनों बाहें आगे ले जाकर वाणी को कसकर पकड़ लिया; बातें करते करते. शमशेर की कलाई का दबाव उसकी छतियो पर बढ़ गया, इसमें उसका आनंद और बढ़ गया. हिलने की वजह से अब शमशेर का लंड उसकी चूत के दाने पर दबाव बढ़ा रहा था, जिससे वाणी की आँखें बंद हो गयी और उसका आगे पीच्चे हिलना और तेज़ हो गया. अचानक वो काँपने लगी. उसने सिर के हाथों को काशकर पकड़ लिया और अपनी चुचकों पर दबाव बढ़ने लगी. करीब 10-15 सेकेंड के बाद उसको हल्की सी हिचकी आई और वो निढाल हो गयी. जब उसका होश संभला तो उसको लगा जैसे उसका पेशाब निकल आया हो. वो बिना कुच्छ कहे बाथरूम में भाग गयी. पहली बार उसने यौवन सुख के साम्राज्य में परवेश किया था. इतना सब हो जाने के बाद भी दिशा को अहसास भी नही हुआ की उसकी छ्होटी बेहन ने उससे पहले ही किसी पुरुष की सहायता से ष्क्लन का चरम आनंद प्राप्त कर लिया है, बेशक यह संभोग नही था.

बाथरूम में जाकर वाणी ने देखा उसकी कच्च्ची भीग गयी है. उसने निकाल कर देखा, यह पेशाब तो नही था, इतना गाढहा पेशाब हो ही नही सकता. वा काँपने क्यूँ लगी थी? उसको इतना मज़ा कैसे आया. और उसने सर के हाथ को अपनी छति पर क्यूँ दबाया? वह विचलित सी हो गयी थी. उसको शरम आ रही थी. पूच्छे तो किस-से पूच्छे! बताए तो किसको बताए. उसने झुक कर अपनी चूत की फांकों को दूर करके देखा. वा अंदर से अजीबोगरीब तरीके से लाल हो चुकी थी. एक पल के लिए तो जब उसका ष्क्लन हुआ तहा उसको लगा की शायद वह मर रही है. पर अब उसके मॅन में थोड़ी शांति थी. लेकिन उस्स आनंद को जो अंजाने में सर की गोद में उसको मिला; भूल नही पा रही थी.
उसकी कच्च्ची तो गीली हो गई थी. अब वो पहनेगी क्या. नीचे तो जा नही सकती, कहीं मा उसको वहीं ना रख ले. दिशा को बताती तो क्या बताती. आख़िर में उसने कच्च्ची को धोकर टाँग दिया और ऐसे ही स्कर्ट को टाँगो से चिपकाए बाहर आकर अपनी खाट पर बैठ गयी.


नीचे मामा मामी को चोद रहा था. बहुत दिनों बाद उसको प्यार करने लायक अकेला पन मिला था. मामी निढाल सी अपनी टांगे चौड़ाए पड़ी थी और मामा उसकी खुली चूत में अपना 'जैसा भी था' लंड पेले जा रहा था. पर वो चुदाई मामी को फॉरमॅलिटी भर लग रही थी. जैसे बस करवाना ही है. उसको मामा के 4 इंची लंड से कोई खास लगाव नही था. अब मामा की उमर भी तो हो गयी थी ना. ऐसा नही है की वो दूश्‍रों की और देखती थी अपनी सेक्स की पूर्ति के लिए. बस वा 'जो मिला' से ही संत्ुस्त थी.
अपनी टांगे फाडे फाडे ही वो कहने लगी," सुनो जी, दिशा के लिए शमशेर जैसा रिश्ता मिल जाए तो....' हमारी बेटी लाखों में एक है... और शमशेर भी तो....! मामा उसके उपर निढाल होकर गिर पड़ा," कैसी बात करती हो निर्मला! वो कहाँ और हम कहाँ! कहने से पहले कुच्छ सोच तो लिया करो." उसने अपना लंड मामी की चूत से निकल लिया और बोला," अब वो बात नही रही निर्मला! बुढ़ापा दस्तक देने लगा है" वा हाँफ रहा था.


उपर वाणी का बुरा हाल था. जो कुच्छ भी थोड़ी देर पहले हुआ वा तो जैसे स्वर्ग में जाकर आने जैसा था. उसको चुपचाप देखकर दिशा ने धीरे से पूचछा," क्या हुआ वाणी!?"
वाणी ने भी उसी टोने में जवाब दिया," कुच्छ नही दीदी?"
दिशा: नींद आ रही है क्या?
वाणी: नही तो... दीदी!
दिशा: फिर सर के पास से उठ क्यूँ गयी?
वाणी: ऐसे ही दीदी! क्यूँ?
दिशा: कुच्छ नही, ऐसे ही! वो सर की कुंभकारण वाली बात तू सच कह रही थी ना!
वाणी: हां दीदी! बेशक तुम उठा के देख लेना, बिना बोले; नही उठेंगे.
दिशा: तू झूट बोल रही है!
वाणी पिच्छली बात और अपने नंगेपन को भूल गयी! वा उठकर सर के पास भागी चली गयी," सर, आपकी नींद कुम्भकरण जैसी है ना!
शमशेर: क्यूँ वाणी?
वाणी: मैने दीदी को बताया था; वो कह रही हैं मैं झूठ बोल रही हूँ!
शमशेर हँसने लगा," नही, अपनी दीदी को बता दो हम झूठ नही बोलते!"
वाणी ने जीभ निकल कर दिशा को चिडा दिया!
दिशा गुस्सा थी की उसने सर को क्यूँ बताया की वो उनके बारे में पूच्छ रही थी. उसने खिज में अपनी चप्पल उठाई और वाणी की और आराम से फंकी. चप्पल वहाँ तक पहुँची ही नही. वा शर्मिंदा होकर लेट गयी और आँखें बंद कर ली.

"सर आप क्या कर रहे हो?"
शमशेर नेट पर चेटिंग कर रहा था," कुच्छ नही वाणी!"
"मैं यहीं सो जाउ क्या!"वा पिच्छली बात भूल गयी थी.
शमशेर को पता था दिशा सुन रही होगी," फिर तुम्हारी दीदी को डर नही लगेगा क्या?"
वाणी: दीदी! तुम भी यहीं आ जाओ ना; हमारे पास! तीनों मज़े से सोएंगे!
दिशा सर के पास सोने की बात सुनकर शरम से लाल हो गयी और करवट बदल कर मुँह छिपा लिया.
शमशेर उठा और बाथरूम में घुस गया. वाणी की जवानी ने उसका बुरा हाल कर दिया था. बहुत दिनों बाद उसको लगा, मूठ मारे बगैर नींद नही आएगी. उसने अपनी पॅंट निकाल दी. उसको टाँगने लगा तो उसको हॅंगर पर वाणी की कछि तंगी दिखाई दी.
उसने उसको उतार कर देखा; उसमें से योनि रस की स्मेल आ रही थी. " कितनी प्यारी खुश्बू है; एकद्ूम मदहोश कर देने वाली! उसने अपने लंड को आज़ाद किया, उसकी एक एक नस चमक रही थी. आँखें बंद करके वा अपने हाथ से लंड पर घेरा बनाकर आगे पिच्चे करने लगा.

उधर दिशा सिर के बाथरूम में जाते ही वाणी के पास दौड़ी हुई आई और वाणी का प्यार से गला पकड़ लिया," सर की चमची, सर को सारी बातें बतानी ज़रूरी हैं क्या!"
वाणी: दीदी! आप सर से इतनी जलती क्यूँ हैं.
वाणी, दिशा की शरम को उसका जलना मान रही थी; कितनी नादान थी वो!
दिशा: चल वही सोएंगे, मुझे तुमसे बात करनी है!
वाणी: नही दीदी; सुबह बता देना और उसने पलटी मार कर आँखें बंद कर ली.
दिशा उठकर चली गयी और अपनी खाट पर जाकर लेट गयी. "काश! सर मुझे ज़बरदस्ती अपने बेड पर ले जाते. वाणी कितनी खुसकिस्मत है." सोचते सोचते उसने आँखें बंद कर ली. उसके दिमाग़ में कुच्छ चल रहा था.

शमशेर आया और वाणी के पास ही लेट गया. उसको पता था वो नीचे से नंगी है! पर शमशेर ने अपनी सोच को हटाकर दिशा पर लगा लिया. अब दिशा ही उसका टारगेट थी. उसके बारे में सोचते सोचते उसको ना जाने कब नींद आ गयी....

रात के करीब 2 बजे का टाइम था. शमशेर मीठी नींद में दिशा के सपनों में खोया हुआ था. अचानक उसको अहसास हुआ, कोई साया उसके पास खड़ा है, कहीं ये दिशा ही तो नही. उसने ध्यान से देखा; अरे हां, वही तो है. उसने आँखे बंद कर ली.
शमशेर के दिल की धड़कन तेज हो गयी. क्या दिशा भी उससे...! सहसा उसको अपनी छति पर एक कोमल हाथ लहराता हुआ महसूस हुआ. दिशा ने उसको धहेरे से पुकारा," सस्स...इर्ररर!"
शमशेर ने कोई जवाब नही दिया. वो जानता था कि दिशा चेक करना चाहती है; कहीं सर उठ तो नही जाएँगे! शमशेर क्यों उठता भला.
दिशा शमशेर की छति पर हाथ फेरने लगी. शमशेर के दिल में आया की उठकर उसकी जवानी को दबोच ले, पर उसको लगा, पहले देखना चाहिए दिशा किस हद तक जाती है.
फिर दिशा ने उसको ज़ोर से हिलाया. पर शमशेर सोता रहा. दिशा एक पल के लिए रुकी, फिर उसकी कमीज़ के बटन खोलने लगी, धीरे धीरे."अफ...!"
शमशेर की छति नंगी हो गयी. दिशा उसकी च्चती के बालों को प्यार से सहलाने लगी. फिर वह झुकी और शमशेर के गालों पर अपने लरजते होंट रख दिए.
शमशेर को मज़ा आने लगा था. बड़ी मुश्किल से वा खुद की सांसो पर काबू पा रहा था. दिशा झुकी और शमशेर के मर्दने होंटो को अपने लबों में क़ैद कर लिया. शमशेर तो जैसे आसमान में उड़ रहा था. वा मज़े लेता रहा. नेहा उसके कानों को चबाने लगी. शमशेर को उसकी तनी हुई चुचियाँ अपनी च्चती में चुभाती महसूस हुई. इतनी सख़्त....आ...आ!
अचानक दिशा सर की चादर में घुस गयी और उससे लिपट गयी. चादर में घुसने के बाद उसने अपनी कमीज़ उतार दी.

शमशेर आँखें फाडे उसकी चुचियों को देखने लगा. चुचियाँ मानो भगवान ने मॉडल के रूप में ढली हों. वैसी जैसे मानो 'राफियेल' ने अपनी तुलिका से उनको मान चाहा रूप दिया हो, उनमें मनचाही मस्ती भरी हो! कैसे सीना ताने अपनी उचाई और गोलाई पर घमंड कर रही हों जैसे. शमशेर का लंड बेकाबू होता जा रहा था.
दिशा ने सर के हाथ को अपने हाथ में लिया और उसको अपनी छति पर दबा दिया.
आ! शमशेर की लाख कोशिश के बावजूद खुदकी सिसकी निकल पड़ी. दिशा सर के हाथ से अपनी चूची दबाने लगी; जैसे उसका रस निकलना चाह रही हो.
दिशा सर के उपर आ गयी. दोनों की छतिया आमने सामने थी. ऐसा लगा अभी महासंग्राम होगा!
दिशा ने शमशेर के होंटो को अपनी जीभ से ज़बरदस्ती खोल दिया और जीभ उसके मुँह में घुसा दी. शमशेर को उसकी सिसकियाँ साफ सुनाई दे रही थी.
दिशा सर के उपर से उतरी और अपना हाथ नीचे ले गयी, वहाँ जहाँ जाँघ रूपी दो पुन्जो का मिलन होता है, और औरत का मकसद; एक पोल खड़ा होता है.
दिशा ने शमशेर की पॅंट का बटन खोला और उसकी जीप नीचे कर दी.
शमशेर से रहा ना गया, उसने अपना अंडरवेर खुद ही नीचे खिसका दिया, मगर ऐसे की दिशा को आभास ना हो.
शमशेर के शेर ने करवट बदली और स्प्रिंग की तरह उच्छल कर दिशा के हाथ से जा टकराया! दिशा उसपर हाथ फेर कर उसकी सखता ई और मोटाई का अंदाज़ा लगाने लगी. उसकी साँसे उखाड़ गयी थी, बाल बिखर गये थे.
दिशा अपना मुँह शमशेर के लंड के पास ले गयी और उसकी जड़ों पर जीभ फिराई. क्या मस्त स्टाइल था. शमशेर को पता था. असली सकिंग वहीं से शुरू होती है...



शमशेर के लंड से जीभ सताए उपर की और खींच लाई, अपनी जीभ को, और सुपादे पर प्यार से चुम्मि देकर उसको इज़्ज़त बखसी!
ऐसा लग रहा था अब दिशा को किसी बात का डर नही है, ना सर का ना जमाने का; जैसे वा जान गयी हो कि सर भी तो यही चाहते हैं.
असचर्यजनक रूप से पहली बार ही उसने अपने होंटो को पूरा खोल कर लंड के सुपारे को क़ैद कर लिया. वह उस्स पर जीभ फिराने लगी; मुँह में सुपारे को लिए लिए ही. शमशेर सोच रहा था अब तक तो दिशा को पता चल जाना चाहिए की वा जाग रहा है. तभी दिशा ने शमशेर का पूरा लंड अपने गले की गहराइयों तक उतार लिया. शमशेर कुत्ते की तरह सिसक रहा था पर उसकी हिम्मत ही ना हुई उठने की. वह निढाल पड़ा रहा; जैसे बेहोश हो.
पहली बार में ही कोई लड़की 8 इंच लंबे लंड को अपने मुँह में पूरा कैसे उतार सकती है; ज़रूर खेली खाई है साली. शमशेर सोच रहा था. वह उठना चाहता था पर उठ ही ना पाया, वा बेबुस था.
दिशा तेज़ी से लंड को अपने मुँह में अंदर बाहर करने लगी, बिल्कुल खेली खाई लड़की की तरह. शमशेर हैरान तहा. उसका अब च्छुटने ही वाला था की अचानक दिशा ने लंड को अपने मुँह से निकाल दिया. और उसके उपर जा चढ़ि. आज वो किसी के वश में नही थी.
दिशा बेकाबू हो चुकी थी. उसने अपनी सलवार का नाडा खोल दिया और सलवार को उतारकर नीचे डल दिया. वह इतनी जल्दबाज़ी में थी की शमशेर के रोड जैसे शख्त हो चुके उसके लंड को पनटी के उपर से ही रगड़ने लगी. शमशेर का स्टॅमिना उसको जवाब दे रहा था. दिशा ने कुच्छ देर बाद अपनी चूत के उपर से पनटी को हटाकर उस्स रोड के लिए जगह बनाई और लंड को अपने योनिद्वार से सटा कर उस्स पर बैठ गयी. 'फ़चक' की आवाज़ के साथ पूरा का पूरा लंड उसकी चिकनी चूत में समा गया. दिशा शमशेर की छति पर धम्म से गिर पड़ी और पागलों की तरह उसके कंधों को, गालों को अपने दातों से काटने लगी. वह उपर से धक्के लगा रही थी और शमशेर नीचे से. 2-3 मिनिट में ही शमशेर दिशा से हार गया. उसके लंड से तेज पिचकारी निकल पड़ी. दिशा फिर भी उसस्पर कूदती रही. अब शमशेर से सहन नही हो रहा था. वा बड़बड़ाने लगा," प्लीज़्ज़ दिशा मुझे छ्चोड़ दो, मैं और सहन नही कर सकता. मुझे माफ़ कर दो प्लीज़्ज़ज्ज्ज.
वाणी चौंक कर उठ बैठी," सर जी! उठिए...." और शमशेर चौंक कर उठ बैठा. वा पसीने से तर बतर था. ए.सी. की ठंडक भी उसके सपने की गर्मी को दबाने में नाकाम रही थी. उसकी साँसे अब भी तेज चल रही थी. उसने देखा," दिशा वाणी के साथ ही बेड पर बैठी है. पूरे कपड़े पहने..... उतनी ही शांत जितनी वो उसको छ्चोड़ कर सोया था....वह हल्का हल्का मुस्कुरा रही थी. शमशेर शर्मिंदा हो गया!

टू बी कंटिन्यूड....





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2 comments:

Unknown said...

thank you for nice writing.bandhu maza aa gaya.bahut khoob kya likhne ki shaili hai!pl send ur e-mail

Unknown said...

gajab. maja aa gaya.aapki description style kaphi aacchi hai.

Raj-Sharma-Stories.com

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