Saturday, June 19, 2010

गर्ल'स स्कूल पार्ट --18

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गर्ल्स स्कूल--18

आधे बेड पर लेट राज को आज शिवानी कुछ ज़्यादा ही याद आ रही थी.... मनाली के सपने ने उसको बहुत ज़्यादा उत्तेजित कर दिया था. उसकी पतिवर्ता पत्नी अगर आज उसके पास होती तो वो उसको जी भर कर प्यार करता... उसने घड़ी में समय देखा.. लगभग 4:30 बाज चुके थे. उसने सुबह उठाते ही शिवानी को फोन करके उसी दिन बुलाने का निस्चय किया और उस्स तकिये को, जिसको अक्सर वो प्यार करते हुए शिवानी को नीचे से उपर उठाने के काम लाता था, अपनी छाती से लगाया और सो गया..

निशा गौरी को लेते लेते ध्यान से देख रही थी... गौरी किसी भी तरह से निशा से कम नही थी... उसका भाई गौरी से प्यार करता था और निशा अपने भाई को खोना नही चाहती थी... किसी भी कीमत पर... वह मन ही मन में भुन सी गयी... उसने उल्टी लेट कर सोई हुई गौरी के मस्त पुत्तों को देखा... यहाँ निशा गौरी से थोडा सा पिछड़ रही थी.. निशा ने अपनो जांघों को सहला कर देखा... 'क्या मेरा भाई मुझे छोड़ देगा?' उसने मन ही मन गौरी को संजय के दिल से निकालने का निस्चय किया और संजय को गौरी के दिल में ना बसने देने का...

अंजलि ने ओम की और देखा, वैसे तो वह सेक्स के प्रति इतना उत्सुक कभी नही रहता था... पर आज तो उसने उससे बात तक नही की... पहले के दीनो में ओम कम से कम उसकी छाती पर हाथ रखकर तो सोता था... पर आज तो उसने पीठ ही अंजलि की और कर रखी थी देखने के लिए.. अंजलि ने भी दूसरी और करवट बदल ली और सो गयी.......

शिव की गाड़ी करीब 6:30 बजे फार्म हाउस पहुँची... गेट्कीप ने दरवाजा खोला और शिव गाड़ी को सीधा ग़ैराज ले गया... वहाँ उसकी पालतू.. लड़कियाँ आधे अधूरे कपड़ों में लिपटी उसका इंतज़ार कर रही थी...
शिवानी होश में आ चुकी थी.. पर सदमें की वजह से कुछ बोल नही पा रही थी... बोलने का फ़ायदा ही क्या होता...
"इसको अंडरग्राउंड बेडरूम में ले आओ!" शिव ने कहा और आगे बढ़ गया.........
सुबह उठने से पहले अचानक राज ने पलटी मारी, पर जल्दी ही उसको ग़लती का अहसास हो गया... सुबह सुबह शिवानी से पहले उठकर नींद में ही पलटी मार कर शिवानी के उपर चढ़ जाना, और उसको तब तक तंग करना जब तक की वह जाग कर, उसके गले में बाहें डाल कर उसके 'आइ लव यू' ना बोल दे... उसके बाद शिवानी पलट कर उसके उपर आ जाती और उठ जाती... फ्रेश होकर वा राज को उठा देती और चाय बनाने चली जाती... ये उनकी दिनचर्या का एक ज़रूरी हिस्सा बन चुकी थी...
पर आज पलटी मारते ही जब एक मर्दाना शरीर से टकराया तो उसको याद आया की शिवानी
तो आई ही नही है... वा बाथरूम में घुस गया...


फ्रेश होने के बाद वा किचन में जाने के लिए जैसे ही लिविंग रूम में आया उसकी नज़र नींद में अपनी अपनी मस्तियों का दीदार करा रही गौरी और निशा पर पड़ी.. दोनो का सिर राज की तरफ था... गौरी उल्टी लेती पड़ी थी. उसके हरमन प्यारे जबरदस्त कसाव लिए हुए नितंब अपनी गोलाई और उनके बीच की गहराई का सबूत उसके लोवर के अंदर से ही दे रहे थे...
दोनो निसचिंत हुई सोई पड़ी थी... निशा गौरी की अपेक्षा सीधी लेती हुई थी.. उसके चौड़े गोले गले वाले कमीज़ में ब्रा के अंदर से टपक रहा उसकी चूचियो का सौंदर्या राज को कुछ शरारत करने के लिए उकसाने लगा...
निशा दीवार वाली साइड में थी, जबकि गौरी बेड के दूसरे किनारे पर थी.. राज उसके चूतदों के पास गया और हौले से उनपर हाथ रख दिया... कोई हुलचल नही हुई.. उसके चूतड़ उसकी छातियों की वजह से उपर उठी उसकी कमर से भी ऊँचे थे... राज को उन्हे छूने से ऐसा अहसास हुआ मानो किसी ठोस फुटबॉल के उपर रेशम का लबादा लपेटा गया हो..
राज ने अपने हाथों का दबाव हूल्का सा बढ़ा दिया.. गौरी एक दम से उचक कर बैठ गयी... अपनी आँखें मलते हुए बोली," उन्न्न... क्या है सर?... अभी तो आए हैं...!
"चाय बना दोगि मेरे लिए!" राज ने बड़ी प्यारी आवाज़ में कहा..
"गौरी ने नींद में होने की वजह से थोड़ा सा मुँह बनाया और उठकर किचन में घुस गयी... राज हंसकर सोफे पर बैठ गया...
तभी उनकी आवाज़ सुनकर अंजलि बाहर निकल आई... राज को देखकर मुश्कुरई और पूचछा.. इतनी जल्दी कैसे उठ गये...?
"मैं तो रोज ही जल्दी उठता हूँ मेडम, आप सुनाइए!" राज ने सोफे पर बैठ चुकी अंजलि का हाथ दबाते हुए पूछा...
"अरे मैं अभी कहाँ उठाने वाली थी... वो तो उन्होने उठा दिया... उनको जल्दी जाना था सो 6:00 बजे ही उठा दिया....."
राज ने उसकी और आँख मारते हुए कहा," मिस्टर. ओमपारकश जी गये क्या. ?"
"हां! कह रहे थे कुछ ज़रूरी काम है...2-3 दिन लग जाएँगे आने में" वह खुस लग रही थी......
राज ने सोचा.. चलो एक आध दिन और ऐश कर लेते हैं... पीछे का मज़ा ले लेते हैं... बेगम को बाद में ही बुलाएँगे... और उसकी सुबह उठकर शिवानी को फोन करने की योजना बदल गयी......
फार्म हाउस पर करीब 23 और 26 साल की छरहरे बदन वाली 2 लड़कियों या यूँ कहें 2 औरतों ने शिवानी को गाड़ी से उतारा और उसको दोनो तरफ से पकड़ कर ले जाने लगी... लुंबी बेहोशी और सदमें से गरस्त शिवानी में विरोध करने की हिम्मत ना के बराबर ही बची थी.. वा उनके साथ साथ लगभग सरक्ति हुई सी चल पड़ी... उसकी आँखों में रात को उसके साथ हुए हादसे का भय सॉफ झलक रहा था...
दोनों लड़कियाँ उसको 3 कमरों और एक लुंबी गॅलरी से गुजर कर नीचे सीढ़ियाँ उतरते हुए एक आलीशान बेडरूम में ले गयी...
वहाँ पहले से ही शिव खड़ा था और बेडरूम के बीचों बीच एक गोलाकार बेड पर एक करीब 19 साल की लड़की बिना कपड़ों के अपने उपर एक पतली सी चादर डाले लेती थी... शिव के इशारा करते ही वो बिस्तेर से उठी और चादर से अपने आपको ढकने का दिखावा करती हुई दूसरे दरवाजे से बाहर निकल गयी...

शिव के कहने पर उन्न लड़कियों ने शिवानी को बेड पर बिठा दिया. शिव ने लड़कियों की तरफ घूमते हुए कहा," अनार का जूस!
और लड़कियाँ अदब से" यस सर!" कहकर वापस चली गयी...

शिवानी उस्स राक्षस की और फटी आँखों से देख रही थी.. जिस ख़ूँख़ार जानवर ने उसके ही घर में उसकी इज़्ज़त को तार तार कर दिया, उससे कुछ कहने या पूछने की हिम्मत शिवानी की ना हुई... शिव उसके सामने दीवार के साथ डाले सोफे पर बैठ गया. और उसको घूर्ने लगा...
तभी लड़कियाँ एक शीशे का जग और 2 ग्लास ले आई... शिव का इशारा पाकर उन्होने जग और ग्लास टेबल पर रखे और वापस चली गयी...
शिव ने एक ग्लास में जूस डाला और खड़ा होकर शिवानी के पास गया," लो!"
उसके हावभाव आवभगत करने वाले नही बल्कि आदेशात्मक थे.. शिवानी का हाथ उठ ही ना पाया...
"एक बात ध्यान से सुन लो! मुझे कुछ भी दोबारा कहने की आदत नही है... यहाँ मेरा हूकम चला है, सिर्फ़ मेरा!.. मैं 5 मिनिट में आ रहा हूँ... अगर ये ग्लास खाली नही मिला तो नंगा करके अपने आदमियों को सॉन्प दूँगा... फिर मुझे मत कहना... उसने ग्लास वापस टेबल पर रखा और बाहर निकल गया...
शिवानी उसकी बात सुनकर काँप उठी... रात का हादसा और यहाँ का माहौल देखकर शिवानी को उसकी एक एक बात पर यकीन हो गया.. वह तुरंत उठी और एक ही साँस में सारा जूस पी गयी...
शिवानी ने अपने चारों और नज़र घुमा कर कमरे का जयजा लिया.. करीब 18'-24' का वो आलीशान बेडरूम शिव के अइयाश चरित्रा का जीता जागता सबूत था.. चारों और की दीवारें अश्लील चित्रों से सजी हुई थी... सामने दीवार पर प्लास्मा टी.वी. टंगा हुआ था.. कमरे के चारों कोनो में कैमरे लगे हुए थे जिनका फोकस बेड पर ही था...

उसका ध्यान अपनी अस्त व्यस्त नाइटी पर गया. ब्रा के हुक पीछे से खुले हुए थे.. और बस जैसे तैसे अटकी हुई थी... उसने नाइटी में हाथ डालकर अपनी पनटी को दुरुस्त किया. ब्रा के हुक बँधकर वा धम्म से बेड पर गिर पड़ी... उसकी आँखों से आँसू बहने लगे........

करीब 6-7 मिनिट के बाद शिव उसी लड़की के साथ बेडरूम में दाखिल हुआ.. जो शिवानी को बेडरूम में आते ही बेड पर लेटी मिली थी.. वा अभी भी उस्स पतली सी चादर में थी. उसका यौवन छलक छलक कर बाहर से ही दिखाई दे रहा था. शिवानी को वो गौरी की उमर की लगी. पर जैसे ही उस्स लड़की ने शिवानी की तरफ देखा. शिवानी ने अपना मुँह दूसरी तरफ कर लिया..शिव ने आते ही खाली हो चुके गिलास को देखा," वेरी गुड! लगता है तुम्हारी समझ में आ गया है.. प्राची!... इसका खास
ध्यान रखना.. जब भी तुम्हे लगे की इसको किसी चीज़ की ज़रूरत है इसको दे देना... अगर मना करे तो मुझे फोन कर देना; समझी! प्राची शिवानी को देख कर मुस्कुराइ...," ओक सर! मैं इसका ख़ास ध्यान रखूँगी...!" उसकी मुस्कान में एक अलग ही तरह की धमकी थी.....!
शिव ने उसके शरीर से लिपटी वो चादर खींच ली, प्राची के चेहरे पर शिकन तक ना पड़ी... वो घूम गयी और चादर को अपने शरीर से अलग होने दिया... बिल्कुल नंगी प्राची के चूतड़ अब शिव की आँखों के सामने थे.. शिवानी ने ग्लानि से अपनी आँखें बंद कर ली... सोफे पर ही प्राची को झुका कर शिव उस्स पर सवार हो गया... पागल कुत्ते की तरह... दोनो की वासना से भारी आवाज़ें शिवानी के कानो में शीशे की तरह उतरने लगी.......

गौरी चाय बनाकर ले आई... अंजलि और राज चाय पीने लगे... गौरी ने निशा को उठा दिया और बाथरूम में चली गयी...


निशा इश्स हालत में खुद को सर के सामने देखकर झेंप गयी... वह उठी और अंजलि के बेडरूम में भाग गयी... अंजलि ने राज से पूचछा," कब आ रही हैं आपकी श्रीमती जी?"
"क्यूँ? मेरी आज़ादी देखकर जलन हो रही है क्या?" राज ने ठहाका लगाया...
"जैसे तुम्हे बाँध कर रखती है... बड़े आए आज़ादी के दीवाने...!"
तभी टफ की अंदर से आवाज़ आई," अरे भाई ये मेरे सिर के नीचे फोन क्यूँ रख दिया... कब से घरर घाररर कर रहा है...?"
"आबे तेरा ही होगा!... मेरा फोने तो दो दिन से ऑफ है....!" राज ने टफ की बात पर ज़्यादा ध्यान नही दिया... और फिर से अंजलि से बात करने लगा...

टफ उठ कर बाहर आया," ऐसे सस्ते फोन मास्टर ही रख सकते हैं.." उसने फोने टेबल पर पटक दिया...
फोने देखते ही राज की आँखें मारे अचरज के फट गयी... ," अरे! शिवानी अपना फोन यहीं भूल गयी...!" तभी मोबाइल पर फिर से घंटी बज गयी... राज ने फोने उठाया.. डिसप्ले पर 'मम्मी जी कॉलिंग' आ रहा
था... राज ने फोने उठा लिया..," हेलो!"
उधर से किसी की आवाज़ ना आई...
"हेलो..... शिवानी! .... हेलो!"
फोने कट गया!" ये शिवानी भी ना...
उसने देखा फोने पर करीब 45 मिस कॉल थी... सारी 'मम्मी जी' के फोने से...

कॉल का टाइम देखने के लिए जैसे ही उसने ऑप्षन का बटन दबाया... उसकी हैरत और बढ़ गयी..," मेरी सासू मा के पास तो टाटा
का फोने है... ये एरटेल का नंबर. कब लिया... शिवानी ने तो फ्री बात करने के लिए टाटा का फोने ही ले रखा था... फिर एरटेल का नंबर.
वह उठकर गया और अपना फोने चार्जिंग पर लगा कर ऑन किया... उसमें से अपनी सासू मा का नंबर. निकाला... उसके पास तो टाटा का ही नंबर. सेव्ड था... उसने नंबर. डाइयल कर दिया...
उधर से आवाज़ आई," हेलो!"
"हां जी कौन?" राज अपनी सास से ज़्यादा बात नही करता था.. इसीलिए दोनो
एक दूसरे की आवाज़ नही पहचानते थे... उसकी सास के पास राज का नंबर.
भी नही था..
"अरे बेटा! आपने फोने किया है... बताइए तो सही कौन बोल रहा है..."
"जी मैं राज बोल रहा हूँ!"
"ओहो! सॉरी बेटा! शिवानी कैसी है..."
राज को जैसे लकवा मार गया हो.." ज्ज्ज... जी वो तो आपके पास ही तो है...!"
"क्या? कब आई.. मैं तो कल यहाँ जिंद आ गयी थी बेटा!"
"कमाल कर रही हैं मम्मी आप भी! तीन दिन पहले आप ही ने तो बुलाया था...! वो तो उसी दिन आपके पास चली गयी थी..."
उधर से भी घबराई हुई सी आवाज़ आई," क्या कह रहा है बेटा... मैने तो कोई फोन नही किया.....!"
राज के सामने धरती घूमने लगी.... पता नही एक ही पल में उसके दिमाग़ में क्या क्या आने लगा. उसको याद आया जाते हुए शिवानी कह रही थी... तुम घर पर फोने मत करना... मैं ही करती रहूंगी...."
राज अपना सिर पकड़ कर सोफे पर बैठ गया... उसकी हालत देखकर.. सभी उसके चारों और जमा हो गये.. टफ ने उसके कंधे पर हाथ रखा," क्या हुआ दोस्त!"

राज ने कोई जवाब दिए बिना शिवानी के फोने से मम्मी जी का नंबर. निकाला.. 98963133**. वा अंजलि को लेकर बेडरूम में चला गया...!
वह अंजलि को कुछ बताने लगा ही था की टफ अंदर आ गया," मुझे क्या चूतिया समझ रखा है... क्या मुझे नही बताएगा... क्या हुआ?
राज उसको बाहर छोड़ कर आने पर शर्मिंदा हो गया," सॉरी यार! आ बैठ!"
"आबे बिठाना छोड़! तू बता तो सही... हुआ क्या है ऐसा, जो तेरे फूल से चेहरे पर मक्खियाँ सी उड़ाने लगी... " अपनी बेकद्री देख टफ को गुस्सा आया हुआ था... तभी निशा ने कहा," मैं जाती हूँ मेडम!" और वो चली गयी...
गौरी बाथरूम में से सब सुन रही थी...
"यार! वो शिवानी; झूठ बोल कर गयी है.... ये नही पता कहाँ... पर जहाँ भी गयी है.. इश्स नंबर. के मालिक को सब पता है... उसने एरटेल का नंबर. टफ को दिखाया..
अब टफ भी उसकी चिंता का कारण समझ गया... ," सॉरी यार! मुझे ऐसे ही गुस्सा आ गया..."
तभी राज के फोने पर शिवानी की मम्मी की कॉल आ गयी... राज ने फोने उठाया..
उसकी सास की आवाज़ आई," बेटा! मुझे चिंता हो रही है.... बता तो सही क्या बात है...!"
"आपकी बेटी मुझसे आपके पास जाने की कहकर कहीं और चली गयी है.. तीन दिन से... आप समझ ही रही होंगी इसका मतलब! और तो और उसने किसी से झूठा फोने भी कराया था... आपके नाम से....!" राज ने गुस्से में कहा और फोने काट दिया...

अंदर गौरी को उनकी बातें सुनकर जाती हुई शिवानी का चेहरा याद आया... हॅंगर पर टाँगे हुए कपड़े देख कर वो चौंक उठी," यही तो कपड़े पहन कर गयी थी... शिवानी दीदी!"
वह कपड़े उठाए बाहर आ गयी और उन्हे राज के सामने वो कपड़े दिखा कर कहा," सर ये कपड़े....!"
और कुछ कहने की ज़रूरत गौरी को पड़ी ही नही... राज उन्हे देखते ही पहचान गया... इश्स ड्रेस में शिवानी बहुत हसीन लगती थी... जाते हुए उसने यही तो पहने थे... तो क्या शिवानी वापस आई थी...

ये सब सुनकर सबका दिमाग़ चकरा गया... टफ ने सिग्गेरेत्टे सुलगा ली... गोल्ड फ्लॅक बड़ी!!!
किसी की समझ में कुछ नही आया... टफ ने अपने ऑफीस फोने किया," हां! धरमबीर! मैं अजीत बोल रहा हूं... एस पी साहब को कहकर एक नंबर. सुर्विल्लंसे पर लगवा दो... और पता करो किधर का है..."" ओ.के. सर!" उधर से आवाज़ आई... टफ ने नंबर नोट करवाया और फोने काट दिया...
घर में जैसे मातम छा गया... किसी की समझ में कुछ नही आ रहा था... अगर शिवानी वापस आई थी तो गयी कहाँ.... और झूठह बोल कर गयी थी तो कहाँ और क्यूँ गयी थी...
"तुम उसके सारे कपड़े पहचान सकते हो!" टफ ने सिग्गेरेत्टे बुझते हुए राज से पूछा....
"क्यूँ?" राज ने उल्टा सवाल किया...
"तू बात की बेहन को मत चोद! जो पूछ रहा हूँ बता..." टफ भी अत्यंत विचलित था... वो पॉलिसिया रोल में आ गया था... गाली बकते हुए उसने ये भी ध्यान नही दिया की अंजलि और गौरी भी वहीं खड़ी हैं...
"नही! सारे तो नही... पर एक आध जो मुझे अच्छे लगते हैं... वो पहचान सकता हूँ...
"टफ ने गौरी को निर्देश दिया " उसके जीतने भी कपड़े घर में हैं... सब उठा ला!" गौरी चली गयी...
सारे कपड़े देखने के बाद राज बोला," जो मैं पहचानता हूँ वो तो सब यही हैं... !"
"बॅग लेकर गयी होगी"
"हां! पर बॅग तो नही है...."
बॅग अभी तक गाड़ी में ही रखा हुआ था जो रात को शिव ने लाश समझकर शिवानी को पार्सल करते जाते समय साथ ही रख लिया था...

"तुम्हे क्या लगता है?" टफ ने करवाई शुरू कर दी थी... वो हर आंगल से सोच रहा था....
"अब मुझे क्या लगेगा यार..."
"अंजलि जी! आपके पति कहाँ हैं?"
"वो तो सुबह जल्दी निकल गये थे.... देल्ही के लिए.. दो तीन दिन में आएँगे..." सहमी हुई अंजलि ने जवाब दिया...
राज को अंजलि से सवाल करना अच्छा नही लगा " यार तू बात को कहाँ से कहाँ लेकर जा रहा है..."
"राज साहब! इन्वेस्टिगेशन का उसूल होता है... तहकीकात खुद पर शक करके चलने से शुरू होती है... अगर ज़रूरत पड़ी तो मैं आपसे भी पूछूँगा... क्या वजह थी की आपने पूरे रास्ते फोन बंद रखा!"

अभी मैं जा रहा हूँ... पहले साले उस्स नंबर. की मा चोदता हूँ... गौरी टफ को कड़वी निगाहों से देख रही थी.......
फार्महाउस पर बेडरूम के दरवाजे पर एक नयी हूर प्रकट हुई.. शिव ने प्राची से अपनी भूख मिटाने के बाद वहीं बेडरूम में ही बैठा था... शिवानी ने काई बार उससे पूछने की कोशिश की यहाँ लाने के कारण के बारे में पर शिव ने उसकी किसी बात का उत्तर देना ज़रूरी नही समझा... जब बैठा नही रहा गया तो वो मुँह फेर कर लेट गयी...
शिव बाहर चला गया और प्राची को उसके पास भेज दिया," ध्यान रहे! उसको किसी भी तरह से हमारी जगह के बारे में कोई आइडिया ना होने पाए.."
"लेकिन सर! उसका करना क्या है..?" प्राची ने शिव से सवाल किया.
"अभी तो मुझे भी नही पता क्या करना पड़ेगा.. बेवजह की टेन्षन मोल ले ली.. शराब के नशे में... खैर तुम अभी उसके पास जाओ.. और उसको हर बात से ये ही शो होना चाहिए की मैं कोई बहुत बड़ा गुंडा हूँ.."
प्राची मुश्कुराइ.. उसकी पॅंट के उपर से उसके लंड को दबाया और बोली," सर गुंडे तो आप हैं ही...!" शिव ने उसके गाल पर काट लिया.


शिव फार्म हाउस के बाहर रोड पर बने अपने ऑफीस में बैठा था.. जब ओम की कार सामने आकर रुकी.
अंदर आते ही ओम ने उसको घूरा.. "यार तेरी ये आइयशियों ने मरवा दिया... अब कुछ सोचा है क्या करना है.."
"अभी तक तो कुछ भी समझ में नही आ रहा भाई... वैसे में उसके दिमाग़ में डर बैठाने की कोशिश कर रहा हूँ.. ताकि उसको अगर जिंदा छोड़ना पड़े तो वो मुँह खोलती हुई घबराए... " शिव ने टेबल पर आयेज झुकते हुए कहा...
"वो कैसे? उसके साथ और कुछ मत करना भाई..." ओम ने उसको समझने की कोशिश की..
"अरे नही... कहते हैं की मार से मार का डर ज़्यादा होता है... मैने रास्ते में आते हुए ही प्लांनिंग कर ली थी.. और फोने पर इशारों में ही मेरी सेक्रियेट्री को सब समझा दिया था.. यहाँ पर आने पर शिवानी को हर चीज़ से ऐसा ही लगा होगा की हमारा कोई बहुत ही ख़तरनाक गॅंग है... सब नौकरानियाँ और सीक्रेटरी अंदर उसके सामने नंगी ही घूम रही हैं... और तो और मैने सीक्रेटरी को उसके सामने ही चोद दिया.... वो डरी हुई है.. बस उसके डर को इतना बढ़ा देना है की वापस घर जाने पर वा कुछ बताने से पहले 100 बार सोचे..."

"हां ये बात तो काम आ सकती है.. उसका इलाज करवाया क्या?" ओम ने पूछा.
"अरे इलाज क्या करवाना है.. चूत में लंड ही दिया था... कोई चाकू नही घोंपा.. यार इसकी गांद और मारने का दिल कर रहा है... क्या मस्त माल है.."
"इतनी बार समझाया है इन्न कामो से दूर रहकर अपना धंधा संभाल ले... और तेरी भाभी के काई फोने आ चुके हैं... मैने उठाया नही..."
"यार तू पागल है क्या? बेवजह शक करवाएगा... चल फोन मिला और बात कर.." शिव ने नेवी कट को मुँह में लगाते हुए कहा.....
अंजलि ने वाइब्रट कर रहा अपना फोने उठाया... ओम का फोने था
अंजलि: हेलो!
ओम: हां अंजलि. क्या कह रही थी..
अंजलि उठ कर दूसरे कमरे में चली गयी," कहाँ है आप?"
"क्या मतलब है... बताया तो था किसी काम से देल्ही जा रहा हूँ..." ओम को अंजलि की आवाज़ से लग रहा था की कुछ तो ज़रूर हो गया है..

"वो... क्या शिवानी आपके आगे यहाँ आई थी"
ओम ने अपने माथे पर झलक आया पसीना पूछा,"... नही तो .. वो कहाँ है.. ठीक तो होगी.." अगर टफ ने ये बात सुनी होती तो तुरंत उसकी गर्दन पकड़ लेता...
अंजलि ने चिंतित स्वर में जवाब दिया," हमारी तो कुच्छ समझ में नही आ रहा.. शिवानी घर जाने को बोल कर गयी थी... कल यहाँ उसका मोबाइल और वो सूट मिला है जिसको वो पहन कर गयी थी....!"
"ओह माइ गॉड!" ओमपारकश अंदर तक सिहर गया.. शिव उसके चेहरे के बदलते रंग को देख कर विचलित हो गया...
"क्या हुआ? कुछ पता है क्या?" अंजलि ने उसको असचर्या व्यक्त करते देख सवाल किया. ...
"तुम पागल हो गयी हो क्या... मुझे क्या पता" झूठ बोलते हुए अचानक ही ओम की आवाज़ तेज़ हो गयी...
"फिर आपने ओह माइ गॉड क्यूँ बोला?" अनजली ने सवाल किया..
"ज़्यादा जासूसा मत बनो... अब मुझे क्या चिंता नही होगी. कोई हादसा ना हो गया हो!"
अंजलि ने राज की बात खोल दी," अब पता नही हादसा हुआ है या नही... पर एक बात और सामने आई है..."
ओम का गला बैठ गया," क्या?"
राज ने शिवानी के घर फोने किया था... वो घर पर तो गयी ही नही... ना ही उसको किसी ने बुलाया था... अब हमारी समझ में ये नही आ रहा वो झूठ बोल कर क्यूँ गयी.. और अगर गयी भी तो कहाँ गयी थी... और फिर अचानक घर आई और फिर गायब हो गयी..."
ओम का चहा खिल गया... उसके भाव बदलने के साथ ही अब तक साँस रोके सुन रहा शिव भी कुर्सी से कमर टीका कर पीछे हो गया..

"अच्छा वो ऐसी तो नही दिखती थी... और मैं तो रात 12 बजे घर पहुँचा था.." कह कर उसने फोने काट दिया और ख़ुसी से उछालने लगा...
"अरे भाई... मुझे भी तो बताओ.. आख़िर हुआ क्या है..." शिव कोई खुशख़बरी सुन-ने के लिए बेचैन हो रहा था...
"चॉड साली को... मारले उसकी गेंड... साली रंडी है... झूठ बोल कर कहीं गयी होगी अपने यार से मिलने... अब वो कभी हम पर शक नही कर सकते... फँसेगा तो वो फँसेगा जिससे चुड कर वो आई थी.... चोद भाई .. जी भर कर चोद...! मैं भी घर वापस जा रहा हूँ... तुझे खबर देता रहूँगा..." ओम को लगा अब कुछ नही हो सकता...

वा बाहर निकला और अपनी गाड़ी स्टार्ट करके वापस चल दिया...

ये बात सुन कर शिव की खुशी का ठिकाना ना रहा.. उसने तुरंत ऑफीस को लॉक किया और अंदर पहुँच गया... प्राची बाहर ही मिल गयी... क्या हुआ सर? मैं तो अभी बाहर ही आ रही थी... आज तो आपने दिन भर हमको नंगा रखा... क्या वजह थी सर..?"
शिव ने उसकी बात पर ध्यान नही दिया," वो क्या कर रही है?"
"अभी मैने आपके कहे अनुसार उसको नींद का इंजेक्षन दे दिया था... सो रही है..."
प्राची की बात सुनकर शिव उपर ही लिविंग रूम मैं बैठ गया...," चलो! अभी सोने दो.. रात को मिलता हून... खा पीकर...!"
उधर टफ भिवानी जा चुका था... गौरी स्कूल में जा चुकी थी... अंजलि और राज घर पर अकेले थे....
राज अपने माथे पर हाथ रखे सोफे पर पड़ा था.. आज वो और अंजलि स्कूल नही गये थे और इश्स अजीब पहेली की गूतियाँ सुलझाने की सोच रहे थे...
अंजलि ने पास बैठकर राज के कंधे पर हाथ रखा," सब ठीक हो जाएगा राज! यूँ दुखी होने से क्या क्या फायडा... आ जाएगी"
राज गुस्से से भभक पड़ा," आ जाएगी की तो बाद की बात है... आख़िर वो गयी कहाँ थी झूठ बोल कर!" राज भी वही सोच रहा था जो बाकी सब के मॅन में था... अजीब समाज है... आदमी लाख जगह मुँह मार ले, वो कभी भी नही सोचता की आख़िर औरत भी उस्स पर अपना.. सिर्फ़ अपना अधिकार चाहती है... और औरत का उसकी चारदीवारी के बाहर बेपर्दा तक होना उसको सहन नही होता..
अंजलि राज की स्थिति को समझ रही थी.. उसने प्यार से उसके गले में बाहें डाल कर उसको अपनी और खींचने की कोशिश करी... पर राज को आज कुछ भी अच्छा नही लग रहा था... उसने अपने को छुड़ाया और दूसरे कमरे में चला गया... राज को अब शिवानी की चिंता नही थी... उसको उसके किसी यार की बाहों में होने की जलन थी...
टफ भिवानी जाते ही सीधा एस.पी. ऑफीस में गया... शमशेर भी पता लगते ही वहीं आ चुका था.. " नमस्ते भाई साहब!"
शमशेर ने उससे हाथ मिलाया...," कुछ पता लगा.."
"अभी देखते हैं... वा ऑफीस में बनी कंप्यूटर लब में गया...," हन.. नंबर. का कुच्छ पता चला!"
"सिर! वो नंबर. किसी सीमा नाम की औरत का था... उसका कहना है की वो एस.टी.डी. चलाती है.. और अपने मोबाइल से फोने करवा देती है काई बार जब लॅंड लाइन की लाइन खराब होती है.. "
टफ ने गुस्से से कहा," उठा के ना लयाए साली ने! (उठा कर नही लाए साली को)"
कंप्यूटर पेर बैठे पॉलिसीए ने कहा," थाना सदर पोलीस में बिठा रखा है साहब!"
टफ और शमशेर पोलीस ज़ीप में बैठे और सदर में पहुँच गये. सीमा करीब 23-24 साल की लड़की थी... उसकी मा उसके साथ आई हुई थी और बाहर बैठी थी. जाते ही टफ ने एक जोरदार तमाचा सीमा के गाल पर रसीद कर
दिया... उसके बॉल बिखर गये.. अपने चेहरे पर हाथ रख कर दीवार के साथ चिपक गयी," मेरा कुसूर क्या है सिर? क्या सिर्फ़ यही की मैं अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए एस.टी.डी. चलाती हून!"
टफ ने गुस्से से उसकी और देखा और गुर्रा कर बोला," ज़्याड्डा सुधी बनान की ज़रूरत ना से.. बना दूँगा मदर इंडिया!" ( ज़्यादा शरीफ बन-ने का नाटक करने की ज़रूरत नही है... एमोशनल होना सीखा दूँगा!)

शमशेर एंक्वाइरी पूरी करके उसको बताने की बात कह कर चला गया... टफ को पता था इसके साथ ज़रूर कोई आया होगा..," तेरे साथ कौन है?"
"मेरी मा है.. सर!" सीमा ने सहमी हुई आवाज़ में ही जवाब दिया..
टफ थाने के एस.एच.ओ. के पास गया और उसके द्वारा की गयी एंक्वाइरी के बारे में पूछा..!"
"ऐसा है भाई साहब! हुमने आस पड़ोस में छान बिन की थी... वो तो सब मा बेटी को शरीफ ही बता रहे हैं.. रही उस्स फोने की बात.. तो लड़की कह रही है.. पक्का तो नही याद, पर उस्स दिन शायद एक युवक और एक औरत उसकी एस.टी.डी. में आए थे.. उसके फोने की लाइन खराब थी तो उसने अपना मोबाइल दे दिया था... लड़का उस्स औरत को आंटी कह रहा था... उससे पहले उसने कभी उस्स लड़के को वहाँ नही देखा था..
"एस.टी.डी. कहाँ है?"
"रोहतक!"
"कहाँ पर?"
"ये तो मैने नही पूछा?"
टफ वापस मुड़ते हुए बोला," घंटा एंक्वाइरी करते हो यार... मैं इन्न मा बेटी को लेकर जा रहा हून..."
टफ ने उन्न दोनो को अपनी ज़ीप में बिठाया और थाने से निकल गया........

टफ दोनो को शमशेर के घर ले गया... दिशा और वाणी अभी स्कूल से नही आई थी... उसने दरवाजे के साथ बनी स्लॅब के उपर रखी ईंट के नीचे से चाबी निकली और दरवाजा खोल कर उनको अंदर ले गया... दोनो बुरी तरह डारी हुई थी.. टफ ने उनको सोफे पर बैठने का इशारा किया.. दोनो एक दूसरी से चिपक कर बैठ गयी... सीमा की टांगे काँप रही थी...
टफ ने लड़की को उठने को कहा और बेडरूम में चला गया.. सीमा पीछे पीछे चली आई... उसकी मा रह रह कर सोफे से उठकर उनको देखने की कोशिश कर रही थी... टफ ने लड़की को उपर से नीचे तक देखा... पढ़ी लिखी और सभ्या सी मालूम होती थी.. उसके हर अंग में कसाव बता रहा था की उसने अभी प्यार करना सीखा नही है.. बहुत ही सुंदर लड़कियों में उसको गिना जा सकता था... दोनो अभी तक खड़े ही थे...
"हां! शुरू हो जाओ!" टफ ने उसकी कामपति हुई टाँगों पर डंडा रखते हुए कहा...
"सीमा का गला सूख रहा था और होतो की लाली उडद सी गयी थी... उसने वो सब कुछ दोहरा दिया जो टफ को पहले कंप्यूटर ऑपरेटर ने और बाद में एस.एच.ओ. ने बताया था...
"कभी डलवाया है?"
"क्या सिर?" वो समझ ना पाई...
"अगर मैं डाल दूँगा तो कोई साइज़ फिट नही आएगा.. समझी..!"
अब भी सीमा की समझ में कुछ ना आया... पर बाहर बैठी उसकी मा सब समझ रही थी... उसको पोलीस वालों की तमीज़ का पता था...

"एस.टी.डी. कहाँ है?"
"सर रोहतक में ही!" सीमा को ये बात तो समझ में आ गयी थी...
"तेरी मा की... बंदूक!... अरे मैं पूछ रहा हूँ रोहतक में कहाँ पर है..." टफ उसको डरा कर तोड़ देना चाहता था... ताकि अगर उसके अंदर कुछ हो तो बाहर निकल आए...
"सर.. वो तिलक नगर में.. देल्ही रोड पर ही हमारा घर है... उस्स में ही आगे दुकान निकाल रखी है... वही है!"
टफ ने उसकी जाँघ पर डंडा रख दिया.. वो घबरा कर थोड़ा सा साइड में होने लगी.. तो टफ ने उसकी जीन्स के उपर से ठीक उसके पॉइंट का आइडिया लगा कर वहाँ पर डंडे की नौक टीका दी... सीमा ने नेजरें नीची कर ली... असहाय सी होकर उसका हाथ डंडे की नौक के पास चला गया ताकि अगर वो दबाव डाले तो अपनी चिड़िया को बचा सके...
"क्या करती हो?"
"ज़्ज्जीइ .. पढ़ती हूँ!"
"कहाँ?"
"यूनिवर्सिटी में!"
"क्या?"
"जी एकनॉमिक्स से एम.ए. कर रही हूँ.." उसकी बेचैनी सवालों से नही बुल्कि उस्स डंडे से बढ़ रही थी..."
"उनको पहले कभी देखा है!"
"ज्ज्जीइ... किनको?"
"अपनी मा के यार को... ज़्यादा स्मार्ट ना बने! (ज़्यादा स्मार्ट मत बन)"
सीमा समझ गयी...," ज्जीइ... कभी भी नही!"
"घर में कौन कौन है?"
"जी... बस में और मेरी मा!"
"क्यूँ पापा फौज में हैं क्या?"
सीमा की आँखों से आँसू टपक पड़े......
टफ को अपनी ग़लती का अहसास हुआ.... उस्स को डरा कर उगलवाने की कोशिश में शायद वा इंसानियत ही भूल गया...था!
"सॉरी... शायद..."
"कोई बात नही सर... हम मा- बेटी सीख चुके हैं.. पड़ोसियों का झगड़ना... लड़कों की फब्तियाँ... कभी कबार बिना खाए सोना... और पापा का फोटो पर तंगी माला देखकर रोना.... हम सीख चुके हैं सर... कोई बात नही.." टफ की सहानुभूति मिलते ही उसकी आँखों से अवीराल अश्रु धारा बह निकली.. डंडा पीछे हो गया...
"चलो बाहर आ जाओ!"
सीमा ने अपने आँसू पोंछे और बाहर आकर अपनी मा की गोद में सिर रखकर
फिर से रोने लगी... ज़ोर ज़ोर से...
"देखिए.. माता जी! हम पोलीस वाले अपनी भासा को लेकर बदनाम हैं... पर हमें ये सब करना पड़ता है... सामने वाले से कुछ उगलवाने के लिए... अगर वा कुछ छिपा रहा है तो... पर मैं आपसे दिल से माफी माँगता हूँ... आइ आम रियली वेरी वेरी सॉरी!"
मा ने सिर्फ़ इतना ही कहा " तो हम जाए साहब!"
तभी दरवाजे पर वाणी प्रकट हुई... अपनी वाणी!

"हेलो अजीत भैया! कब....." तभी वाणी को अपने आँसू पूछते हुए सीमा दिखाई दी... उसने अपनी बात बीच में ही छोड़ दी...
"देख छोटी! बहुत बार कहा है.. मुझे भैया मत कहा कर... आइन्दा कभी.."
"कहूँगी... भैया! भैया! भैया" और फिर टफ के कान के पास होन्ट ले जाकर बोली," ये सुंदर सी लड़की कौन है? पसंद कर ली क्या?" सीमा को भी बात समझ में आ गयी... उसने अपनी आँखों को रुमाल से ढाका हुआ था...
"तो हम जायें साहब?" सीमा की मया ने फिर से सवाल पूछा..
वाणी ने जाकर सीमा का हाथ पकड़ लिया...," ऐसे नही जाने दूँगी दीदी को, पहले चाय पिलावँगी.. फिर बातें करूँगी... फिर देखूँगी.. जाने देना है या नही!" उसकी आवाज़ में इतनी मिठास थी की सीमा अपने आप को रोक ना सकी... दुखों के पहाड़ से उबरने की कोशिश में उसने वाणी को ही छाती से लगा लिया और फिर से सुबकने लगी..

वाणी अपने कोमल हाथों से उसके प्यारे प्यारे गालों से उसका पानी समेटने लगी..," क्या हुआ दीदी.. प्लीज़.. चलो चाय बनाते हैं!" वाणी की बात को तो शायद एक बार भगवान भी टालते हुए सोचे... सीमा ने उसका हाथ पकड़ा और उसके साथ किचन में चली गयी...

तभी शमशेर की अर्धांगिनी ने दरवाजे में प्रवेश किया.. आते ही टफ खड़ा हो गया और दोनो हाथ जोड़ कर बोला," भाभी जी प्रणाम!"

दिशा हमेशा ही उसके प्रणाम पर शर्मा जाती थी..," आप हमेशा ऐसे ही क्यूँ करते हैं... मैं आपसे कितनी छोटी हूँ!"
"तो क्या हुआ? मेरे लिए तो आप शमशेर भाई के बराबर ही हैं" टफ दिल से उस्स फॅमिली को इतनी ही इज़्ज़त देता था..
"वाणी नही आई है क्या?" दिशा ने सीमा की मा को प्रणाम करते हुए पूछा..
तभी वाणी किचन से बाहर निकल आई.. ," एक बार इधर आना सीमा दीदी!" सीमा किचन के दरवाजे पर आ गयी...
"अजीत भैया! सीमा दीदी दिशा दीदी जितनी सुंदर हैं ना!"
टफ ने सीमा के चेहरे पर नज़र डाली... वो वापस किचन में घुस गयी...
टफ ने वाणी को आँख मारते हुए अपना सिर हां में हिला दिया...
वाणी "पूछ लो" कहती हुई किचन में भाग गयी... मस्त 'अपनी' वाणी!!!
चाय पीने के बाद वो फिर से खड़े हुए," साहब लेट हो जाएँगे"
"नही! मुझे भी रोहतक की और जाना है.. चलिए में छोड़ दूँगा!" कहकर वो तीनो घर से बाहर निकल गये........
शिव प्राची को साथ लेकर बेडरूम में गया. शिवानी अभी भी सो रही थी. प्राची शिव के लिए पैग बनाने लगी...
करीब 20 मिनिट में शिव का सुरूर बन'ने लगा था. उसने अपना गिलास उठाया और जाकर शिवानी के पास बैठ गया.. नींद में अपने आपको देखे जाने से बेख़बर शिवानी टेढ़ी लेटी हुई थी... उसने एक घुटना मोड़ कर अपने पेट से लगा रखा तहा... और अपने हाथ से अपनी चूचियाँ ढक रखी थी... नींद में भी उसके चेहरे पर ख़ौफ़ तैरता देखा जा सकता था...
शिव ने प्राची से सिग्गेरेत्टे और लाइटर देने को कहा.. जैसे ही प्राची उसके पास आई.. उसने प्राची को अपनी और खींच लिया... पर बॅलेन्स बिगड़ जाने से प्राची उसकी गोद में से पलट कर शिवानी के चूतदों पर जा गिरी..
शिवानी चिल्ला कर अचानक उठ बैठी और बेड के एक कोने पर सिमट गयी... डारी सहमी सी..
प्राची उसको देखकर मुश्किराई...
शिव ने प्राची को आदेश दिया," मेरी जान के लिए मेरी पसंद के कपड़े लेकर आओ!"
प्राची सिर झुका कर बिना बोले चली गयी...," शिव ने उसकी और मुँह घुमाया,"प्राची के आने से पहले तुम्हारे तन पर एक भी कपड़ा नही होना चाहिए."
शिवानी सिहर गयी,"नही... प्लीज़!"
"साली क्या पतिव्रता बन'ने का नाटक करती है... अपने आदमी से झूठ बोल कर कहाँ रंगरलियाँ मानने गयी थी? बोल"

यह सुन'ना था की शिवानी को ज़ोर से चक्कर आने लगे.. उसका चेहरा सफेद पद गया और वो निर्जीव से होकर एकटक शिव की और देखने लगी... उसके सामने 'विकी' का चेहरा घूम गया... उसके विकी का!"

"बोल हराम्जदि.. अब क्या हो गया..!" वह उठा और शिवानी के गले से नाइटी खींच कर फाड़ डाली... और उसके साथ ही शिवानी का दूधिया यौवन नशे में धुत शिव की आँखों के सामने आ गया... वा एक बार फिर से राक्षस सा लगने लगा रात वाला राक्षस...
पर शिवानी को अब उस्स डर से कहीं बड़ा डर सामने नज़र आने लगा...
उसको अपने नंगेपन का अहसास तब हुआ जब शिव ने आगे झुक कर उसकी ब्रा के उपर से उसकी चुचियों पर दाँत गाड़ा दिए.. वह एकद्ूम उचक कर पीछे लेट गयी.. "आपको कैसे मालूम?" शिवानी ने अपने नंगे पेट और जांघों को छुपाने की कोशिश करी...
अब शिव कुछ बताने के मूड में नही करने के मूड में था... उसने शिवानी की टाँग पकड़ी और अपनो और खींच लिया... उसके पेट पर अपना मोटा हाथ रख दिया.. शिवानी असहाय मेम्ने की भाँति उसकी और निरीह नज़रों से देखती रही... तभी वहाँ प्राची आ गयी... उसके हाथ में कपड़े के दो टुकड़े थे... एक को पनटी और दूसरे को ब्रा कहते हैं...

शिव ने उसके हाथ से दोनो चीज़ ले ली. उनको सूंघ कर देखा, उनमें से प्राची के देव की खुसबू आ रही थी...
"प्राची! अपने कपड़े उतार दो!" शिव के आदेश का पालन करने में प्राची ने कुल 1 सेकेंड लगाई... अपनी छातियों और जांघों को ढके हुए कपड़े को अपने से जुड़ा कर दिया...
उसको बाहों में लेकर शिव ने ख़तरनाक अंदाज से शिवानी को देखा... प्राची को तुरंत आक्षन लेते देख वो समझ गयी थी... यहाँ देर करने का अंजाम बुरा होता होगा... दिमाग़ सुन्न हो गया था पर जीने की इच्छा कायम थी.. उसने अपनी पनटी को टाँगों से अलग कर दिया और बिना कोई भाव चेहरे पर लिए अपने हाथ कमर पर लेजाकार उस्स आखरी बंधन से भी मुक्त हो गयी... अब उसको इज़्ज़त प्यारी ना थी... इज़्ज़त तो बची ही ना थी...

शिव उठकर बाहर गया और बाहर बैठी नौकरानी को वीडियो कॅम्रा ऑन करने को कहा... और अंदर आकर सोफे पर बैठ गया..," प्राची उसको प्यार करना सिख़ाओ! साली बहुत गांद हिलाती है... करवाते हुए..
प्राची जाकर बेड पर उसके साथ बैठ गयी... उसका हाथ पकड़ा और अपनी और खींच लिया...
हर पल की मोविए बन'नि शुरू हो गयी थी... प्राची ने उसके होंटो में अपनी जीभ घुसा दी... दूसरी और से कोई विरोध नही हुआ... पर समर्थन भी नही...

"इसको साली को नशे का इंजेक्षन लगाओ!" शिव ढाडा..
" नही नही .. प्लीज़... मैं सब कुछ करूँगी.." शिवानी ने प्राची को कस कर पकड़ लिया और अपनी जीभ से उसकी बाहर निकल आई जीभ को चाटने लगी.. उनके होन्ट मिल गये.. जीभ एक दूसरे के मुँह में अठखेलियन करने लगी.. दोनो के हाथ एक दूसरे की चूचियों को मसालने लगे... कुल मिला कर शिवानी वैसा ही कर रही थी जैसा प्राची उसके साथ... प्राची उससे 3 साल छोटी थी.. पर मुकाबला बराबरी का चल रहा था...
प्राची शिवानी के उपर आ गयी.. दोनो की छातिया आपस में रगड़ खाने लगी.. दोनो की टांगे जैसे चूतो पर चिपकी हुई थी.. शिवानी उत्तेजित सी महसूस करने लगी... दोनो की चूत पर शेव करने के बाद उग्ग आए छोटे छोटे बॉल एक दूसरी की चूतो से रगड़ खा कर अब भाहूत मज़ा दे रहे थे...
दोनो ही अब खुद को एक दूसरी से ज़्यादा शाबिट करने पर तूल गयी.. पर पहल प्राची ही करती थी.. और शिवानी उसका जवाब ज़ोर से देती...
/

प्राची ज़ोर से हाँफी और आख़िर कार एक तरफ लुढ़क गयी...
शिव अपनी जगह से खड़ा हुआ और प्राची का स्थान लेने पहुँच गया...
उसने शिवानी को बेड से उतार कर रात वाली पोज़िशन में झुका दिया.. घुटने ज़मीन पर थे और उसकी गांद बेड के किनारे पर टिकी थी...
कल तो कुछ प्राब्लम भी हुई थी.. पर आज तो जैसे बेड बनाया ही इश्स पोज़िशन के लिए था...
जैसे ही शिव ने उसको कमर पर हाथ रखकर दबाया... उसकी गांद की दरार उचक कर और खुल गयी...
शिव ने प्राची की चूत में लंड देकर अपने रस से नहलकर चिकना किया और कड़क हो चुके लंड को शिवानी के छेद पर रेक दिया... ग़लत छेद पर... जो शिवानी को कभी पसंद नही था... शिवानी ने अपनी गांद हिलाकर हल्का सा विरोध जताने की कोशिश की पूर शिव ने उसको एक बकरी की तरह दबोच लिया..
अब इश्स बकरी में जान ही कितनी बची थी... विरोध करने को....
दुख और दर्द से लबालब एक लुंबी चीख शिवानी के हुलक से निकली और उसकी गांद का व्रत टूट गया... कभी भी ना चुडाने का...
लंड गांद में फँसा खड़ा था.. और करीब आधा घुसने की तैयारी में था... धीरे धीरे करते करते लंड अब अंदर बाहर होने लगा.. शिवानी की चीखें अब भी जारी थी... पर अब उनमें दर्द कूम था... दुख ज़्यादा...
वा चीखती रही... वा रोन्दता रहा... वा चिल्लती रही... वा चोदता रहा...

जब तक की शिवानी की गांद में वीरया ने अपनी मौजूदगी दर्ज नही करवाई... उसके बाद तो जैसे लंड को गांद अच्छी लगती ही ना हो... एकद्ूम रूठ कर बाहर निकल आया... अपना रूप परिवर्तन करके... छोटा होकर...
शिव उठकर सोफे पर जा बैठा... शिवानी अब भी चीख मार रही थी... उसके विकी के लिए; उसके राज के लिए... वो वैसे ही पड़ी रही.

प्राची ने सहारा देकर उसको बेड पर चढ़ा दिया...

शिवानी रोते रोते सो गयी..........

टफ ने देल्ही रोड पर सीमा के घर के बाहर गाड़ी रोक दी... टफ बॅक व्यू मिरर में से सीमा को लगातार देखता आ रहा था... सीमा की नज़र भी एक बार शीशे में से उसको देख रहे टफ पर पड़ी थी, पर वो यूँ ही थी... उसने तुरंत अपनी नज़रें घुमा दी थी....
मा बेटी दोनो ज़ीप से उतार गये. मा ने सीमा का हाथ पकड़ा और जाने लगी," "क्या चाय के लिए नही पूचोगे!" जाने क्यूँ टफ कुछ देर और उनके साथ रहना चाहता था... मा थोड़ी झेंप गयी पर बेटी ने मूड कर भी नही देखा," आओ ना! इनस्पेक्टर साहब... मैने तो सोचा था आप कहाँ हमारे घर में आएँगे... आ जाओ!"
टफ ने घर के बाहर रोड पर गाड़ी पार्क कर दी और उतार कर उनके साथ ही अंदर घुस गया...
सीमा लज्जित सी महसूस कर रही थी. आज सुबह से ही पोलीस उनके घर के चक्कर लगा रही थी और कॉलोनी में सभी की ज़ुबान पर उन्ही की चर्चा थी... और अब ये पोलीस जीप वाला... शुक्रा है उसने वर्दी नही पहनी हुई थी... वरना अकेला घर में एक पोलीस वाले को आया देख लोग पता नही क्या क्या कहते... उसने समाज को करीब से जान लिया था... उसको टफ से कोई हुंदर्दी नही थी...
टफ घर के अंदर घुसते ही उनकी कसंकस से भारी जिंदगी से रूबरू हो गया...
हालाँकि सॉफ सफाई बहुत ही उम्दा थी. फिर भी एक कमरे में कोने पर तंगी रस्सी पर पड़े कपड़े, दूसरे कोने में रसोई का समान और दीवार के साथ डाली हुई दो चारपाई और उनके साथ एक टेबल पर रखी हुई ढेर सारी किताबें... उस कमरे में ही उनका संसार था... और शायद वो किताबें ही उनके पास सबसे बड़ी पूंजी थी, सीमा की किताबें... टेबल के साथ दीवार पर चिपकी हुई एक छोटी सी श्री राम की तस्वीर इश्स बात की और इशारा कर रही थी की ये दिन देखने के बाद भी वो दोनो मा बेटी मानती थी की भगवान सबके लिए होता है... सबका होता है... शायद इसी विस्वास ने आज तक उनको टूटने नही दिया था... वरना लड़कियाँ तो कौन कौन से धंधे नही अपना लेती; अपने जीववन को मौज मस्ती से भरा बनाने के लिए मजबूरी का नाम देकर...
सामने वाली दीवार पर एक नौजवान आदमी की माला डाली तस्वीर लगी हुई थी, भगवान ने इनका एकमात्रा सहारा भी छीन लिया... टफ भावुक हो गया...
सीमा ने जाते ही गॅस पर पानी चढ़ा दिया.. वो जल्दी से जल्दी टफ को रफू-चक्कर कर देना चाहती थी...
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दोनो चारपाई साथ साथ डाली हुई थी... जब टफ चारपाई पर बैठ गया तो मा खड़ी ही रही... ," बेतिए ना माता जी!"
"नही बेटा! कोई बात नही... आपके जाने के बाद तो बैठना ही है...
सीमा की मा के मुँह से साहब की जगह बेटा सुनकर मुश्किल से टफ अपने को रोक पाया... वह रह रह कर दूसरी और मुँह करके चाय बना रही सीमा के मुँह को देखने की कोशिश करता रहा. शायद पहली बार ऐसा उसकी लाइफ में हुआ था की पिछवाड़ा सामने होने पर भी टफ का ध्यान उसकी गोलाइयों पर ना जाकर उसके चेहरे में कुछ ढूँढ रहा था... पहली बार!
उसको वाणी की बात याद आई," अजीत भैया! ये दीदी दिशा जितनी सुंदर हैं ना!"

"हां! दिशा जैसी है... !" वह कह उठा.
"क्या बेटा?" सीमा की मा ने उसके मुँह से निकले इन्न शब्दों का मतलब पूछा..
"कुछ नही माता जी!" फिर चारपाई को पीछे सरका कर बोला,"आप बैठिए ना!"

सीमा चाय बना लाई. और उसके पास टेबल पर रख दी...
"मैं भी कितनी पागल हूँ! मैं अभी आई" कहकर उसकी मा बाहर निकल गयी...
इस तरह अपना टफ सीमा पर फिदा हो गया था .दोस्तो कहानी अभी बाकी है आगे का हाल जानने के लिए गर्ल्स स्कूल के पार्ट-19 का इंतजार करे ओर इस कहानी के बारे मैं अपनी राय देना ना भूले
आपका दोस्त
राज शर्मा

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