Sunday, June 20, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --30

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --30


हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 31 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ दोस्तो जैसा कि आप जानते है ये कहानी कुछ ज़्यादा ही लंबी हो गयी है इसलिए प्रत्येक किरदार के साथ कहानी को लेकर चलना पड़ता है जैसे दिशा शमशेर वाणी को हम नही भूल सकते इसलिए इस पार्ट मैं इन्ही तीनों की कहानी है दोस्तो जिन दोस्तो ने इस कहानी के इस पार्ट को पहली बार पढ़ा है उनकी समझ मैं ये कहानी नही आएगी इसलिए आप इस कहानी को पहले पार्ट से पढ़े
तब आप इस कहानी का पूरा मज़ा उठा पाएँगे आप पूरी कहानी मेरे ब्लॉग -कामुक-कहानियाँब्लॉगस्पॉटडॉटकॉम पर पढ़ सकते है अगर आपको लिंक मिलने मैं कोई समस्या हो तो आप बेहिचक मुझे मेल कर सकते हैं अब आप कहानी पढ़ें
"दीदी, हम शहर कब जाएँगे? आपको जीजू की याद नही आती?" वाणी ने चारपाई पर चुपचाप लेटी दिशा के पास फर्श पर पसरते हुए कहा....
"जब वो लेने आएँगे तभी तो चलेंगे.. कल से उनका फोन भी नही मिल रहा.." दिशा ने वाणी की तरफ करवट लेते हुए उसकी मोटी मोटी मासूम सी आँखों में देखकर कहा...
"एक बात पूछू दीदी...?" वाणी ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया..
"हूंम्म्मम.." शमशेर की याद आते ही दिशा की जवानी ने अंगड़ाई सी ली.. कितने दिन हो गये थे... उसकी आगोश में समाए!"
"आपको जीजू बहुत याद आते हैं ना..." वाणी की आवाज़ में शरारत और
सहानुभूति का मिश्रण था...
"धात.. इसमें याद करने वाली क्या बात है... आज कल में वो आने वाले ही होंगे... (फिर कुच्छ रुक कर) मुझसे ज़्यादा तो तू ही उनको याद करती रहती है... केयी बार मैने देखा है.. तू गुम्सुम सी रहती है..."दिशा ने हालाँकि शमशेर वाली बात मज़ाक में कही थी.. पर वाणी के गुम्सुम रहने वाली बात मज़ाक नही थी.. दिशा ने केयी बार उसकी आँखों में वो सूनापन महसूस किया था जो किसी नवयौवना में मर्द की प्यास के रूप में उसके अंग अंग से परिलक्षित होता है..
वाणी दिशा की इश्स बात पर दाँत निकाल कर हँसने लगी," तुम जल रही हो दीदी! तुम्हारी कसम दीदी! अब में कभी जीजू को उस नज़र से नही देखती..."

दिशा अब तक गंभीर हो चुकी थी," वो तो मैं जानती हूँ वाणी.. पर तुम बदल गयी हो.. अगर वो शमशेर नही है तो कोई तो ज़रूर है.. कौन है वो.. मुझे बता दे......"

वाणी बात को सुनते ही इश्स तरह सकपकाई जैसे उसकी चोरी पकड़ी गयी हो.. चेहरे का रंग ऊड गया.. नज़रें नीची हो गयी और उसके हाथ दिशा का हाथ छ्चोड़ कर अपने सीने पर आकर टिक गये मानो दिल में गहरे जाकर बस गयी तस्वीर को दुनिया से
छिपाने की कोशिश कर रहे हों... फिर कुच्छ संभाल कर बोली," ना.. नही दीदी.. तुम ऐसा क्यूँ कह रही हो..? ऐसा तो कुच्छ भी नही है दीदी..." और उठ कर जाने को हुई..

दिशा ने उसका हाथ पकड़ लिया," कहाँ जा रही हो... मेरे पास बैठो.. यहाँ!"
और वाणी दिशा से नज़रें चुराते हुए चारपाई पर बैठ गयी...
"देख वाणी... मुझसे आज तक तेरी कोई बात छिपि नही रही है.. और तू किसी से छिपा सकती भी नही है.. ये तेरी मोटी मोटी आँखें सब कह देती हैं... तू कितनी भोली है वाणी; तू खुद नही जानती.... अब बता भी दे.. वो कौन है..!"
"दीदी.. तुम भी ना..!" वाणी चेहरा घूमते हुए दिशा की छातियो से चिपक कर अपनी शरम दूर करने की कोशिश करने लगी..," वो.." तभी दरवाजे पर हुई आवाज़ ने दोनो को चौंका दिया...
वाणी ने जैसे ही चेहरा घुमा.. दरवाजे पर खड़े शख्स को देखकर साँस उपर की उपर और नीचे की नीचे रह गयी.. चेहरे का रंग एक बार फिर ऊड गया.. और चारपाई पर जड़ सी होकर बैठी रही..
दिशा संभली और मुस्कुराते हुए उठ कर खड़ी हो गयी," मनु! ... तुम?????"

अमित और मनु अंदर आ गये..," नमस्ते दीदी!"

जिसके लिए वाणी का दिल धड़कता था, जिसका सूनापन दिशा को उसकी आँखों में महसूस होता था.. उसको यूँ अचानक सामने पाकर वाणी को मानो साँप सूंघ गया, उसकी हालत काटो तो खून नही वाली हो गयी.. दिल में अचानक एक पल के लिए अंजानी लहर सी उठी, आँखें खिल उठी, शरीर में योवन ने अंगड़ाई ली... और अगले ही पल शर्मकार अंदर भाग गयी.. मनु भी उसको सीधे देखने से कतरा रहा था पर तिर्छि निगाहों ने वाणी की उसके लिए कसक को भाँप लिया...

"अंदर आओ ना.. वही क्यूँ खड़े रह गये.." दिशा ने वाणी को अंदर भागते देख हड़बड़ाहट में अमित को प्रशंसूचक नज़रों से देखा..

"दीदी! ये मेरा दोस्त है.. अमित! मेरे साथ ही पढ़ता है.. और अमित... ये हैं दिशा दीदी.. वाणी की बड़ी बेहन!" वाणी का नाम बोलते हुए बड़ी मुश्किल से ज़ुबान ने मनु का साथ दिया....
"ओह्ह अच्च्छा.." कहकर दिशा उन्न दोनो को अंदर ले गयी..," बैठो!... वाणी! ज़रा पानी तो लेकर आओ!"
वाणी पर्दे की ओट में खड़ी होकर अपने यार की सूरत का दीदार कर रही थी.. "कितना प्यारा है.. क्या ये मेरे लिए यहाँ आया है.." मन्त्र मुग्ध सी वाणी का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था..खून में जैसे हज़ारों चीटियाँ रेंगने लगी हों.. वाणी ने अपने आवेग को दबाने के लिए अपनी मखमली गोरी टाँगों को एक दूसरी से कसकर भींच लिया..
दिशा की आवाज़ ने उसके दिव्य-स्वपन को भंग कर दिया..," हां दीदी...... एक मिनिट इधर आना!"
"क्या है? तुम भी ना बस!" कहते हुए दिशा उन्न दोनो की और मुश्कुराइ और अंदर वाले कमरे में चली गयी...
"क्या है....?"
"श दीदी...... मैं बाहर नही आउन्गि..!" वाणी ने दिशा से नज़रें चुराते हुए कहा...
"क्यूँ.. क्यूँ नही आएगी बाहर.." दिशा ने उसी स्वर में वाणी से कहा तो वाणी ने उसके होंटो पर अपने हाथों से ताला जड़ दिया..," चुप दीदी!"

दिशा की बात बाहर बैठे मनु के कानो तक पहुँची और वो विचलित हो गया.. 'क्या वाणी मेरे सामने नही आना चाहती' दोस्तों आपका दोस्त राज शर्मा जानता है अपना मनु कितना शर्मीला है
बुद्धू को इतना भी मालूम नही था की इसी को तो प्यार कहते हैं...

दिशा दोनो के लिए बाहर पानी देकर वापस अंदर चली गयी...," क्या बात है वाणी? बता ना.. क्यूँ नही आ रही बाहर?"

"मेरे कपड़े देखो ना दीदी.. कितते गंदे हैं.. और फिर बाथरूम भी बाहर वाले कमरे के साथ है.. मैं बगैर नहाए....." वाणी की मासूम आँखों में लज्जा आ विराजी थी...
"ओहूऊओ.. कहाँ से गंदे हैं कपड़े.. बताना ज़रा.. और अभी नहाई तो थी योगा से आते ही.. मैं भी तो ऐसे ही कपड़ों में हूँ...

"वो बात नही है दीदी..." वाणी अपने हाथों को मसल रही थी.. अधीरता से!"
"तो फिर बात क्या है च्छुटकी! जब मनु शहर में हमारे घर आया था तो तूने उसको कितना तंग किया था.. कितनी खिल्ली उड़ाई थी.. अब इतना शर्मा रही हो.. आख़िर बात क्या है...?"

अब वाणी दिशा को कैसे बताती जो उसके बाद हो चुका है.. मनु उसको निर्वस्त्रा अपनी बाहों में उठा चुका है.. भले ही मजबूरी में ही सही.... वो उसको दिल दे चुकी है.. अंजाने में ही सही!"

तुझे मेरी कसम है वाणी.. अभी चाय बना और लेकर बाहर आजा.. ऐसे अच्च्छा नही लगता च्छुटकी.. वो दोनो अकेले बैठे है.. चल जल्दी कर!"

"डीडीिईईई! वाणी बनावटी गुस्से में अपने पैर पटकती रह गयी... मनु को वो अच्च्ची नही लगी तो!' मनु के ख़यालों में खोई वाणी चाय बनाने लगी.....

"यहाँ.. यूँ.. अचानक!" दिशा ने चारपाई पर बैठते हुए बातों की शुरुआत की...
"वाणी को इतना रूखा ववहार करते देख मनु का दिल उतर चुका था..," बस यूँही दीदी.. रेवाडी गये थे किसी काम से! इधर से निकले तो ध्यान आया कि आप यहीं हो.. ववो मानसी ने बोला था.. वाणी से मिलकर आने के लिए.."

"पता नही कैसे स्वाभाव हो गया है इसका.. अब देख लो.. तुम्हे देखते ही अंदर भाग गयी..."

मनु को कुच्छ ना सूझा.. दिल में टीस सी लिए सिर नीचे झुका लिया...

वाणी जब चाय लेकर बाहर आई तो उसका चेहरा देखने लायक था.. गोरे गालों पर लाली ने अपने पाँव पसार लिए थे.. नीचे वाला रसीला होंठ दाँतों के नीचे दबाया हुआ था.. गोल गोल छातियाँ तेज़ी से उपर नीचे हो रही थी.. ध्यान से देखने पर सॉफ झलक रहा था की वो काँप रही है... बड़ी मुश्किल से एक एक कदम नाप कर आ रही वाणी का धैर्य टेबल के पास आते ही जवाब दे गया और ट्रे उलट कर टेबल पर धुमम से आ गिरी..," ओओयीईइ मम्मी!"
चाय के छींटे वहाँ बैठे तीनो के कपड़ों पर जा लगे...
वो दोनो हड़बड़कर खड़े हो गये.. दिशा आस्चर्य से वाणी को देख रही थी पर कुच्छ बोल ना पाई.. वाणी ने वहीं खड़े होकर रोना शुरू कर दिया...

दिशा अजीब नज़रों से वाणी को देख रही थी की आख़िर ये हो क्या रहा है.. मनु का मंन हुआ की जैसे आगे हाथ बढ़ा कर वाणी के गालों पर आ लुढ़के आँसुओं को पौछ दे.. पर वा हिम्मत ना कर पाया.. अचानक अमित की आवाज़ से मनु को होश आया.," कोई बात नही! आप रो क्यूँ रही हैं.."

"आख़िर आज तुम्हे क्या हो गया है वाणी? .. चल कोई बात नही.." फिर दोनो के कपड़ों पर गिरी चाय को देखते हुए बोली.. "इन्न पर तो धब्बा बन जाएगा..तुम दोनो शर्ट निकाल दो.. मैं पानी से निकाल देती हूँ..."

अमित को झट से शर्ट निकालते देख शरमाते सकुचाते मनु ने भी वैसा ही किया...
"कोई बात नही वाणी.. अब रो क्यूँ रही है? जा और चाय बना दे.. और अब की बार तू लेकर मत आना" दिशा ने वाणी को दुलारते हुए कहा..

वाणी ने बड़े ही भोलेपन से सिर हिलाया.. उसकी मासूमियत पर तीनो खिल खिला कर हंस पड़े.. दिशा दोनो शर्ट उठा कर बाहर निकल गयी...
वाणी के चाय बना'ने के लिए अंदर जाते ही अमित ने मनु का हाथ पकड़ कर ज़ोर से दबाया," भाई! इश्स गाँव में तो एक से एक बढ़कर हसीनायें हैं.. बड़ा मीठा पानी लगता है यहाँ का.. अब तक तीन देखी हैं.. सब एक से बढ़कर एक!.. और सच में यार.. तूने तो क्या तीर मारा है निशाने पर.. सब कुच्छ तो है वाणी में.. नज़ाकत, कयामत, खूबसूरती और.. हाए.. क्या क्या नही है.. माफ़ करना यार पर मेरे दिल में पाप आ गया है...! "
"नही यार! वाणी मेरी किस्मत में नही है...! ये मुझे पसंद नही करती..." मनु ने उतरे हुए चेहरे से कहा...
"ठीक उसी वक़्त वाणी ने अपने कान उन्न दोनो की फुसफुसाहट में लगाए थे.. ये जान'ने के लिए की कहीं उसकी हँसी तो नही कर रहे वो...
"अबे क्या कह रहा है तू.. तुझे देखकर इसकी हालत पतली हो गयी है और तू कह रहा है कि तुझे पसंद नही करती..." अमित ने अपने अनुभव से ये बात कही!
"नही यार.. तूने देखा नही कैसे मुझे देखकर अंदर भाग गयी थी.. और मेरे सामने आने तक से मना कर रही थी.. वो तो इसकी बेहन..." मनु अपना दुखड़ा उसके आगे रोने लगा.
"यार! तू है तो पूरा लल्लू और चल पड़ा मोहब्बत करने.. वो तुझसे चिढ़ती नही बल्कि शरमाती है.. और लड़की तभी शरमाती है जब उसके दिल में कुच्छ हो.. समझा..!" अमित की आवाज़ समझते हुए कुच्छ और तेज हो गयी थी.. शब्द वाणी के कानो में मिशरी से भी मीठा रस उत्पन्न कर रहे थे....
"नही यार.. वाणी ऐसी नही है.. वो तो इतनी बेबाक और भोली है की अगर उसके दिल में कुच्छ होता तो डंके की चोट पर कह देती.. ऐसा कुच्छ नही है यार!"
"हे भगवान! तुझे भी इश्स लंगूर को ही अंगूर देना था... अबे भोलेनाथ! वो बेबाक तब तक रही होगी जब तक उसको पता नही होगा की प्यार किस चिड़िया का नाम है.. अब उसका व्यवहार तेरे सामने बदल गया है तो इसका एक ही मतलब है.. उसको तुमसे प्यार हो गया है.. अब ज़रा हिम्मत कर और उसके अकेला होने का फ़ायदा उठा.. बोल दे वहीं जाकर अपने दिल की बात.. अगर इकरार ना करे तो मेरा नाम बदल देना.." अमित ने उसके कंधे पर हाथ मारा..
वाणी ने ये सब सुनकर दीवार से सॅटकर अपने दिल पर दोनो हाथ रख लिए.. उसके उभार इतनी तेज़ी से उपर नीचे हो रहे थे कि उसको स्वयं पर काबू करना मुश्किल हो रहा था.. उसको डर लग रहा था कहीं सच में ही मनु अंदर ना आ जाए.. अगर ऐसा हो गया तो वो तो मर ही जाएगी.. खुशी के मारे! वाणी आँखें बंद करके होनी के होने का इंतज़ार करने लगी...

"नही यार! मुझमें हिम्मत नही है उसका यूँ सामना करने की.. अगर इनकार कर दिया तो मैं तो जी ही नही पाऊँगा...." मनु ने अपने हाथ उठा दिए..

वाणी को अहसास ही नही था की चाय दोबारा बन कर कब की पतीले से बाहर आ गयी है... मनु की बात सुनकर वह मायूस सी हो गयी.. अब वह खुद तो उसके पास नही जा सकती ना.... इजहारे-इश्क़ की खातिर!

"ठीक है.. तू नही जाता तो मैं ही जाकर बोल देता हूँ सब कुच्छ.." मनु उसको रोकने की कोशिश करता.. इश्स'से पहले ही अमित किचेन के दरवाजे तक पहुँच गया था..
"ऊऊऊईीईईईईईई"
वाणी की चीख इतनी जोरदार थी कि एक बार तो अमित भी सहम गया.. वाणी अमित के लिए तैयार नही थी...
वाणी की चीख सुनकर दिशा बिना एक पल भी गँवाए खड़े पाँव अंदर दौड़ी.. अमित को हक्का बक्का किचेन में खड़े देख जब तक दिशा कुच्छ समझ पाती वाणी खिलखिला कर हंस पड़ी," दीदी.. चाय!"
"क्या हुआ?"
"निकल गयी...!" हंसते हुए ही वाणी ने जवाब दिया....
"तू क्या है वाणी.. अब दिशा भी हंस रही थी.. लगता है इन्न बेचारों की किस्मत में हमारे घर की चाय है ही नही.. चल बाहर जाकर कपड़े पानी में से निकाल दे..."
"ठीक है दीदी.." और वाणी उच्छलते हुए बाहर निकल गयी.. उसने जो कुच्छ भी सुना था, उसके बाद उसके पैर ज़मीन पर टिक ही नही सकते थे..'मनु भी उस'से उतना ही प्यार करता है जितना वो खुद उस'से करती है...
बाहर जाकर उसने मनु की शर्ट को अपने हाथों में पकड़ा और आँखे. बंद करके मनु को छूने का अहसास लेने लगी... कितना मीठा होता है प्यार!

शाम के 3 बज गये थे... ये लगभग वही समय था जब राका निशा को हिसार थाने से लाकर बस-स्टॅंड पर छ्चोड़कर निकलने ही वाला था.....

"अब हम चलते हैं दीदी!" मनु ने खाना खाने के बाद दिशा से कहा.. हालाँकि वाणी सारा दिन उसके सामने ही बैठी बातें करती रही थी.. पर प्यार के इज़हार के लिए
जो अकेलापन चाहिए होता है वो उन्न दोनो को नही मिला.. वाणी के अद्वित्या सुंदर चेहरे और सादे कपड़ों में भी दमक रहे उसके यौवन को जी भर कर देखने के बाद भी चलने की कहते हुए मनु का गला भर आया....
"कुच्छ देर में मम्मी पापा आने वाले हैं खेतीं से.. मिलकर चले जाना.." वाणी ने बिना नज़रें मिलाए अपनी खातिर थोड़ी देर और रुकने की गुज़ारिश की.. हाल दोनो का ही खराब था..
"नही वाणी.. अब तो हूमें चलना ही चाहिए.." अमित समझ गया था की इन्न दोनो से होना जाना कुच्छ नही है.. फिर बेवजह टाइम बर्बाद करने का क्या फ़ायदा...
"चलो! ठीक है फिर.. हम भी आज कल में आ ही रहे हैं भिवानी.. फिर मिलते हैं.." दिशा उनको दरवाजे तक छ्चोड़ने के लिए खड़ी होकर उनके साथ चल दी... वाणी अपने यार को जाते देख निकल रहे आँसुओं को पर्दे में ही रखने के लिए वही बैठी रही....

फिर वही हुआ.. आज का दिन शायद भगवान ने प्यार करने वालों को मिलने के लिए ही बनाया था.. जैसे ही मनु ने बाहर कदम रखा.. काली घटाओं ने उसको वहीं रखने के लिए अपनी जी जान लगा दी.. पल भर में ही बादलों के रूप में आसमान पर छाये कामदेव ने उनकी जुदाई पर अपने क्रोध का इज़हार कर दिया और पूरा आँगन बहते नाले में तब्दील हो गया..
तीनो ने मुश्किल से वापस भागकर अपने आपको भीगने से बचाया...," उफ़फ्फ़.. इसको भी अभी शुरू होना था.." मनु ने बनावटी पस्चाताप प्रकट किया..
"कोई बात नही.. इसी बहाने कुच्छ देर और रुक जाओ.. मामा मामी भी आने ही वाले होंगे..." दिशा नेउनको फिर से कुर्सी ऑफर करते हुए कहा...

वाणी के चेहरे की रहस्यमयी मुस्कान को दिशा अब भी समझ नही पाई.. लग रहा था जैसे उसी के आदेश से वर्षा हुई है.. और अब ये रुकने वाली नही है.. जब तक वाणी ना चाहे..
मनु फिर से रह रह कर वाणी को देखने लगा.. और वाणी तो दिशा के पिछे बैठकर उसको एकटक देखे जा रही थी.....

अमित को अपनी नायिका की याद हो आई," दीदी! ये बाहर स्कूल के पास नीले से रंग का जो मकान है.. वो किसका है?"
"क्यूँ..? स्कूल की प्रिन्सिपल मॅ'म का है!"
"नही बस ऐसे ही... हम वहीं पूच्छने गये थे.. वहाँ एक सुंदर सी लड़की थी.. उसको पता ही ना था.. " अमित ने आख़िर बात बना ही ली...

"कौन?.... गौरी?"
"हां! बहुत गोरी थी दीदी.. बिल्कुल आप की तरह.. बहुत सुन्दर भी है.." अमित के दिल से आवाज़ निकली थी.. बहुत मीठी आवाज़..
"अरे उसका नाम है गौरी..!" दिशा ने हंसते हुए कहा.." हां वो सच में ही बहुत सुन्दर है.. पर वो तो हमें अच्छि तरह जानती है.. यहाँ आती भी है अक्सर...
"क्या सच्ची?" अमित अपनी खुशी को दिल में दबाकर नही रख पाया...
"बात क्या है आख़िर.." दिशा ने शरारती लहजे में पूचछा.. अभी बात करती हूँ.. हमें पहचाना क्यूँ नही.. कहकर दिशा अपना मोबाइल उठा लाई...," अरे इसमें तो नेटवर्क ही नही है.. मैं भी कहूँ.. उनका फोन नही आया कल से..
"ये लो ना दीदी.. इस'से बात करो.." अमित ने अपना फोने निकाल कर दिशा को दे दिया...

बात करने के बाद दिशा को पता चला.. गौरी से तो किसी ने कुच्छ पूचछा ही नही.. खैर बात आई गयी हो गयी पर इसी बहाने अमित के सेल में गौरी का नंबर. आ गया!

समय के साथ साथ बारिश कम होने की बजाय और ज़्यादा बढ़ती गयी और अंतत: ये तय हो गया की मनु और अमित आज नही जा रहे हैं..
"दीदी! मैं बारिश में नहा लूँ..." वाणी ने चारपाई पर बैठी दिशा के कंधे पर अपनी ठोडी रखकर मनु से आँखें चार करते हुए पूछा... आज वो अपनी खुशी को छुपा नही पा रही थी..उसको रातों को सपने में तंग करने वाला आज रात को उसके घर में ही होगा.. सच में यह बहुत रोमांचित करने वाला था.. फिर अब तो वाणी को पता भी लग चुका था की जिसके लिए उसका दिल धड़क'ता है.. वो भी उसके लिए तड़प'ता है. वाणी की खुशी का कोई छ्होर नही था.. चुलबुली सी हसीना आज अपने पूरे शबाब पर थी...

खुद इश्स दौर से गुजर चुकी दिशा के लिए भी आज उसका व्यवहार समझ से परे था.. वजह सिर्फ़ एक ही थी.. जो सवाल दिशा वाणी से मनु के आने से ठीक पहले पूच्छ रही थी.. उसका जवाब मनु ही था.. और ये बात दिशा अब तक जान ही नही पाई थी...," तू मानेगी थोड़ा.. तुझे जो करना है बस करना ही है.. मेरा दिमाग़ तो मत खा तू!" दिशा ने बनावटी गुस्सा'सा दिखाते हुए उसको मस्ती करने की हरी झंडी दे दी...
फिर क्या था... आँगन में सलवार कमीज़ पहने हाथों को फैलाए खड़ी वाणी का शबाब सारी हदें तोड़कर मनु तो मनु, अमित को भी मदहोश करने लगा. स्वर्ग से उतरी अप्सरा के समान बूँदों में दमक रही वाणी के अंगों की अर्धपारदर्शी झलक ने दोनो को बीन्ध सा दिया.. प्रशन्न मुद्रा में अपना चेहरा उपर किए खड़ी वाणी मानो भगवान को उसके दिल की आवाज़ सुन'ने के लिए धन्यवाद दे रही थी.. प्रण वेला का इंतज़ार और ना हो पाने की तड़प उसकी उच्छल कूद के साथ ही लरज रहे अंगगों से सॉफ झलक रही थी.. वाणी के यौवन फलों का उफान बारिश में तार हो चुके कपड़ों के उपर से ही मनु को आमंत्रित कर रहा था.. आकर उस'से लिपट जाने के लिए.. उसकी मादक गंध को करीब से; बहुत करीब से महसूस करने के लिए.. मनु की नज़र उसके चेहरे पर पड़ी बूँद पर एक पल को ठहरती और फिर उस बूँद का पिच्छा करती हुई वाणी के अंगों की गहराइयों में जाकर खो जाती.. आज कहाँ कहाँ मनु की नज़र कल्पना शक्ति से कहाँ कहाँ नही गयी.. मनु की आँखों के सामने वाणी के निर्वस्त्रा शरीर का मनमोहक नज़ारा तेर गया.. वाणी के अंग अंग को देखने का सौभाग्या नियती ने ही उसे दिया था.. और आज बारिश में खड़ी मोर की तरह नाच रही वाणी को देखने का सौभाग्य भी नियती ने ही उसको दिया है.. अपने अयेगन को काबू में रखने की चेस्टा में मनु ने अपनी टाँग के उपर टाँग चढ़ा ली.. पर चाह कर भी वो एक पल के लिए भी अपनी नज़रें वाणी से ना हटा पाया...
"दिशा बड़ी देर से मनु की मानो स्थिति समझने की कोशिश में लगी हुई थी.. दरअसल अपनी छुट'की को इश्स तरह किसी लड़के द्वारा यूँ आँखें फाड़ कर देखा जाना दिशा से गवारा नही हो रहा था.. कमरे में चुप्पी च्छाई हुई थी.. अमित ने शर्माकर अपनी नज़रें झुका ली थी पर जैसे मनु तो वाणी के सम्मोहन में इश्स कदर डूब गया था की पलकें झपकना ही भूल गया..
सहसा दिशा का ध्यान रह रह कर तिर्छि निगाहों से मनु की ओर झाँक रही वाणी की ओर गया.. ऐसा करते हुए दिशा को कतई विस्वास नही हुआ की वाणी वही है जिसको वो अभी तक छुटकी ही कह कर बुलाती है.. बल्कि वाणी के रूप में उसको एक ऐसी अद्वितीया सुंदरी दिखाई दी जो सत्रह बसंत पूरे करने के बाद अपने साजन को रिझाने के लिए मदहोश कर देने वाली अदाओं से अपने प्रेमपाश में बाँधने की सफल कोशिश कर रही है..
"ओह माइ गॉड.. मैं अभी तक नही समझी थी..." वाणी को एक नारी की द्रस्टी से देखते ही सारा माजरा दिशा की समझ में आ गया.. दिन में हुई एक एक गड़बड़ी का कारण समझने में उसको किंचित भी देरी ना हुई...

दिशा के मुँह से निकली बात सबके कानो में पड़ी," तीनो खास तौर पर वाणी और मनु बुरी तरह सकपका गये..
"क्क्या हुआ दीदी!" मनु ने स्वपनलोक से वापस आते हुए दिशा से सवाल किया..
वाणी भी थोड़ी सकुचकर घर की दहलीज पर आकर खड़ी हो गयी..
"आआ.. कुच्छ नही! मैं चाय बनाकर लाती हूँ.. और देवी जी! तुम्हारा स्नान पूरा हो गया होतो अंदर आकर कपड़े बदल लो.. ठंड लग जाएगी.. फिर कौन साफ करेगा तुम्हारा नाक!" दिशा ने हंसते हुए कहा और किचन में चली गयी...
"दीदी..." इठलाती हुई वाणी उसके पिछे ही भाग ली...

बाहर बैठे मनु और अमित ने एक दूसरे की आँखों में देखा और अमित बोल पड़ा..," मैने कुच्छ नही देखा भाई.... पर एक बात सच है भाई.. अगर ये तुझसे प्यार करती है तो तू धन्य हो गया.. जिंदगी सफल हो गयी तरी तो.. लाइफ बन गयी यार!"
"चुप कर ना यार! तू तो बिकुल भी शरमाता नही है... " मनु ने उसको मंद बोलने का इशारा करते हुए कहा..
"अरे.. शरमायें मेरे दुश्मन! जब भाभी जी इतनी बिंदास हैं तो हमें काहे का डर!"
"अमित के मुँह से वाणी के लिए भाभी जी शब्द मनु को इतना अच्च्छा लगा की अगर 'लड़का' नहींहोता तो उसके होंठ ही चूम लेता.... लेकिन वो उस'से हाथ मिलकर ही रह गया..

उधर किचन में दिशा ने वाणी को टटोलना शुरू किया..," वाणी तू कुच्छ बता रही थी..."
"क्या दीदी?" शरारत पूर्ण ढंग से वाणी ने दिशा के शरीर से चिपकते हुए कहा...
"वही कौन है वो.... जिसका सूनापन मैं छुट्टिया शुरू होने के समय से ही तुम्हारी आँखों में महसूस कर रही हूँ...
"क्क्क.. कोई भी तो नही दीदी! वैसे ही.. बस.. आपको यूँही लग रहा होगा.. (फिर आँखें फाड़ कर)... देखो ना.. कहाँ है सूनापन!" वाणी ने बात को टालने की कोशिश करते हुए कहा...

"वही तो मैं भी ढूँढ रही हूँ.. आज जाने कहाँ गायब हो गया वो... ऐसा लगता है तुम्हारे मंन की कोई बहुत बड़ी मुराद पूरी हो गयी हो.."

"चाय बन गयी दीदी..लाओ में दे आती हूँ..!" वाणी ने बात को टाल ने की कोशिश करते हुए कहाँ...
"हां हां.. दिन में भी तुम दो बार चाय पीला चुकी हो बेचारों को.. तुम जल्दी से कपड़े बदल लो..."

जैसे ही वाणी बाहर निकलने लगी.. दिशा ने उसको टोका..," च्छुटकी!"
"हां दीदी?" वाणी ने पलट'ते हुए पूचछा..
"अगर वो लड़का मनु है.. तो मैं बहुत खुश हूँ.. "
ये सुनते ही वाणी हक्की बक्की रह गयी.. उसके दोनो हाथ उसके चेहरे पर झलक आई शरम की लाली को च्छुपाने के लिए अपने आप उपर आ गये! एक पल को उसका दिल किया की ज़मीन पर बैठकर, मनु के आने से खिल चुके अपने अंग अंग को दीदी से छुपा ले.. फिर उसको दीदी के सीने में ही खुद को छिपाना उचित लगा.. 2 कदम आगे बढ़कर वो दिशा से लिपट गयी," आइ लव यू दीदी!"
"बस बस.. अब दीदी को मस्का मत लगा.. अब तो तू किसी और से ही प्यार करती है.. जा जाकर अपने मनपसंद कपड़े पहन ले! सारी गीली कर दी मैं भी..."

वाणी दिशा के गालों का एक जोरदार चुंबन लेकर बाथरूम में भाग गयी....

दिशा ट्रे लेकर बाहर निकली ही थी की पड़ोस में रहने वाले एक ताउ ने आवाज़ लगाई..," दिशा.. ए दिशा!"
अंदर दहलीज पर खड़ी होकर दिशा ने जवाब दिया," हां मामा जी!"
"बेटी.. वो दौलटराम के यहाँ से तुम्हारी मामी का फोने आया था.. वो बारिश की वजह से उनके घर में रुके हुए हैं.. बारिश बंद होने पर ही आएँगे.. तुम खाना वाना खा लेना टाइम से... अगर बारिश ना रुकी तो वो कल सुबह ही आएँगे.."

"अच्च्छा मामा जी...!" दौलत राम का घर खेतों में ही था..
"कोई दिक्कत हो तो आवाज़ लगा लेना बेटी..." कहकर वो चला गया....

बात सुनकर मनु का दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा.. आख़िर ये हो क्या रहा है आज.... हे राम!

दिशा के सामने बड़ी विकट समस्या आन खड़ी हुई.. मामा मामी आ गये तो ठीक है पर अगर.....
इनको रात को सुलाएँगे कहाँ.. दो जवान लड़कों को.. अपने साथ घर में??? ऐसा नही था की दिशा को किसी तरह का उनसे डर था.. पर समाज???? कल को अगर गाओं वालों को ये पता चलेगा की रात को दो जवान लड़के अकेली लड़कियों के साथ सोए हैं तो.. ना जी ना! उपर भी तो शास्त्री जी रहते हैं.. उनसे पूचछा जा सकता है.. हां! यही उचित है... सोचती हुई दिशा अंदर वाले कमरे में गयी.. जहाँ दिशा कपड़े बदल रही थी.. दिशा ने धीरे से वाणी को कहा," वो.. सर मान जाएँगे क्या.. इनको सुलाने के लिए.. अपने साथ.."
सुनकर वाणी का मूड ऑफ हो गया.. वो तो सोच रही थी की रात भर अपने मनु को निहरेगी जाग कर," पता नही दीदी.. पर क्या इनको अच्च्छा लगेगा.. ऐसे!"
"अच्च्छा तो मुझे भी नही लग रहा.. पर क्या करूँ.. मामा मामी को ये सब अच्च्छा नही लगेगा की वो रात भर हमारे साथ रहें.. अकेले में!"
"पर दीदी.. आपकी तो शादी हो गयी है ना.. आपको कोई क्या कहेगा? और मैं तो आपके साथ हूँ ना!" वाणी ने मासूमियत भरा तर्क दिया...
"शादी हो गयी है मतलब..?" दिशा उसका भाव समझ नही पाई...
"मतलब क्या? ... वही" कहकर वाणी शर्मा गयी!
"तू कब तक बच्चों जैसी बातें करती रहेगी.. तुझे क्या लगता है.. शादी हो गयी तो किसी के साथ भी रहने का पर्मिट मिल जाता है क्या?" दिशा ने सवाल के बदले सवाल ही किया...
"मैं वो थोड़े ही कह रही हूँ.. मैं तो.... जब आपकी शादी ही हो चुकी है तो आपके बारे में ये कौन सोचेगा... उल्टा सीधा!"
"बस तू अब फालतू मत बोल... तू क्या समझती है, शादी के बाद क्या औरतें ग़लत नही होती... बस तू मेरा दिमाग़ मत खा और कपड़े बाद में बदलना.. पहले सर से पूच्छ कर आ...."

कुच्छ देर बाद वाणी नीचे आई," दीदी! उपर तो ताला लगा हुआ है! सर शायद दिन में कहीं गये होंगे और बारिश की वजह से बाहर ही रुक गये होंगे..."
दिशा सोच में पड़ गयी.. "अब क्या करें?.. चल कोई बात नही.. तू कपड़े बदल ले.. मैं सोचती हूँ तब तक कुच्छ!"
दोस्तों फ़िर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

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`·.¸.·´ -- raj









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