गर्ल्स स्कूल पार्ट --36
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका राज शर्मा गर्ल्स स्कूल पार्ट 36 लेकर आपके लिए हाजिर हूँ
ये पार्ट आपको कैसा लगा लिखना मत भूलना
" स्नेहा जी.. हमें आगे से दूसरी गाड़ी लेंगे!" विकी ने सहज भाव से कहा...
"क्यूँ?" स्नेहा के पल्ले बात नही पड़ी...
"आपके पापा का आदेश है..." विकी ने बिना कोई भाव चेहरे पर लाए कहा...
"पर क्यूँ.. व्हाई दा हेल वी.... दिस कार इस सो कंफर्टबल यू नो..." स्नेहा को सौ सौ कोस तक भी अंदाज़ा नही था की फिलहाल कुच्छ भी उसके पापा की मर्ज़ी से नही हो
रहा है....
" अब मैं तो पॉलिटिक्स में नही हूँ ना.. स्नेहा जी! उनकी बातें.. वही जाने.."
" तुम्हारी कितनी उमर है....?"
"27 साल!"
"मैं तुमसे 8 साल छ्होटी हूँ.. ये नाम के साथ आप और जी लगाना बंद करो.. नही तो में तुम्हे अंकल जी कहना शुरू कर दूँगी.. समझे!" शरारती मुस्कान पल भर के लिए स्नेहा के कमनीया और मासूम से चेहरे पर दौड़ गयी..
" ओके! तो फिर क्या बोलूं..? तुम ही बता दो..." विकी ने भी स्टाइल मारने में देर नही लगाई...
"स्नेहा! ... चाहो तो सानू भी बोल सकते हो.. मेरी फ्रेंड्स मुझे यही कहती हैं.. मुझे बड़ा अच्च्छा लगता है..." स्नेहा अगली सीट के साथ सर टिका कर विकी को निहारने लगी...
"ओक.. सानू! बहुत प्यारा नाम है.. सच में..." विकी ने नज़र भर कर सानू की और देखा.. और तुरंत गाड़ी एक इमारत के साथ रोक दी...
"क्या हुआ... ?" स्नेहा की आवाज़ में अब कुच्छ ज़्यादा ही मिठास आ गयी थी...
तभी अंधेरे को चीरती हुई एक लंबी सी गाड़ी वहाँ आकर रुकी.. कौनसी थी.. ये दिखाई नही दिया...
स्नेहा के लिए वो जगह बिल्कुल अंजानी थी.. और वो चेहरे भी.. जो गाड़ी से उतरे.. एकद्ूम काले कलूटे.. बेढंगे से.. स्नेहा उनको देखकर सहम सी गयी.. वो तीनो उन्ही की और बढ़े आ रहे थे...
"ये कौन हैं.. ये सब क्या है..?" भय के मारे स्नेहा खिड़की से जा चिपकी...
पर विकी के बोलने से पहले ही स्नेहा को जवाब मिल गया..
उन्न तीनो में से एक ने विकी की खिड़की खोली...," लड़की को उतार दो... तुम्हारा काम ख़तम हुआ..."
स्नेहा को काटो तो खून नही.. इसकी तो उसने कभी कल्पना भी नही की थी...
"सोनू! तुम्हे अब इनके साथ जाना होगा... साहब का यही आदेश था...!" विकी ने पिछे देखते हुए कहा...
"नही.. मैं नही जाउन्गि.. मुझे नही जाना कहीं... मुझे वापस छ्चोड़ आओ.. हॉस्टिल में.." स्नेहा के दिल में उन्न चेहरों को देखकर ही इतना डर समा गया था की उसने अपने दोनो हाथ प्रार्थना की मुद्रा में जोड़ लिए...
" ठीक है.. मैं बात करके देखता हूँ.. " कहकर विकी नीचे उतर गया...
" स्नेहा तुम लोगों के साथ नही जाना चाहती.. मैं उस गाड़ी में ले जाता हूँ.. स्नेहा को.. तुम लोग ये ले जाओ..." विकी की ये बात सुनकर स्नेहा के दिल में हुल्की सी ठंडक पहुँची.. पर वो ज़्यादा देर तक कायम ना रह सकी...
" तुम अपनी नौकरी करो.. और हमें हमारा काम करने दो... हमें लड़की को उठाकर ले जाने के पैसे मिले हैं.. गाड़ी को ले जाने के नही.. अब चलो फूटो यहाँ से..." तीनो में से एक ने कहा...
स्नेहा थर थर काँप रही थी... क्यों हुआ.. कैसे हुआ.. इसकी उसको फिकर नही थी.. बस जान बच जाए; बहुत था.. उसने खिड़की खोली और विकी से जाकर चिपक गयी.. ," नही.. प्लीज़.. मुझे मत भेजना.. छ्चोड़कर मत जाना... मैं मार जाउन्गि..." स्नेहा ने अपनी आँखें बंद कर ली थी...
आआअह... विकी के लिए ये सब किसी हसीन सपने से कम नही था.. स्नेहा के जिस्म का कतरा कतरा अपनी महक विकी में छ्चोड़ रहा था.. सब कुच्छ विकी के प्लान के मुताबिक ही हो रहा था.. पर ये वक़्त कुच्छ करने का था..," नौकरी गयी भाड़ में... अगर सानू कह रही है कि उसको तुम्हारे साथ नही जाना.. तो मैं इसको नही भेजूँगा.. जाकर साहब को बता देना.... कि स्नेहा ने मना कर दिया... चलो अब भागो यहाँ से...."
" ऐसे कैसे भाग जायें.. अभी तो सिर्फ़ पैसे लिए हैं... इसकी भी तो लेनी है अभी.. 7 रातों की बात हुई है हमारी.. इसको कुँवारी थोड़े रहने देंगे.. चोद..." कहते हुए जैसे ही उनमें से एक आदमी ने अपना हाथ स्नेहा की और बढ़ाया.. विकी ने अपनी दाहिनी तरफ सानू को अपने आगोश में समेटे बायें हाथ की मुठ्ठी कसी और ज़ोर से एक दमदार घूँसा उसकी ओर लपक रहे आदमी को जड़ दिया...
नाटक चल रहा था.. पर शायद घूँसा असली था.. उस आदमी के पैर उखड़ गये और अपनी नानी को याद करता हुआ वो शक्श पीठ के बल ज़मीन पर जा गिरा..," आयाययू!"
स्नेहा अब और भी डर गयी.. क्या छाती क्या जांघें.. सब छुप जाना चाहते थे.. विकी में समा जाना चाहते थे..
गिरा हुआ आदमी उठ नही पाया... दूसरे ने चाकू निकाल लिया.. लूंबे फन वाला... धारदार!
"ओह्ह्ह..." ये क्या हुआ.. रिहर्सल की कमी थी.. उस आदमी को चाकू मारना था और विकी को उसको बीच में ही लपकना था... पर बायें हाथ की वजह से वो चूक गया और चाकू करीब एक इंच विकी के कंधे में जा बैठा.....
"साले.. तेरी मा की.. मुझे चाकू मारा.." दर्द से बिलबिला उठा विकी कुच्छ पल के लिए नाटक वाटक सब भूल गया.. स्नेहा को झटके के साथ अपने से दूर किया और उन्न दोनो पर पिल पड़ा.. तीन चार मिनिट में ही उनको इतने ज़्यादा लात घूँसे जमा दिए की उनको लगा अब भाई के सामने ठहरना बेकार है.. तीनो ने अपनी लंगोटी संभाली और नौ दो ग्यारहा हो गये.. गाड़ी वाडी सब वहीं छ्चोड़कर.....
अब जाकर विकी को स्नेहा का ख़याल आया.. वो आँखें फाडे विकी के इश्स प्रेपलन्नेड़ कारनामे को देख रही थी... जैसे ही विकी उसकी और घूमा.. वो दौड़ कर उस'से आ लिपटी.. इश्स बार डर से नही.. खुशी से..!
" जल्दी करो स्नेहा.. हमें अपना सारा समान दूसरी गाड़ी में डालना है...."
"पर... ये सब क्या है मोहन..? मेरी कुच्छ समझ नही आ रहा..."
" बताता हूँ.. अब तो सब कुच्छ बताना ही पड़ेगा... तुम जल्दी उस गाड़ी में बैठो...." विकी ने उसकी कमर सहलाते हुए बोला...
" नही.. मुझे डर लग रहा है.. तुमसे दूर नही जाउन्गि... एक पल के लिए भी....
"ओक.. तुम मेरे साथ ही रहो.." विकी ने स्नेहा के गालों पर हाथ फेरा और उसको बगल में दबाए.. गाड़ी से समान उतारने लगा...
"चलो बैठ जाओ...!" विकी ने पिच्छली खिड़की खोलते हुए स्नेहा को इशारा किया...
स्नेहा की जांघों में चीटियाँ सी रेंग रही थी.. उसको पता नही था की क्यूँ बस दिल कर रहा था की एक बार फिर से वैसे ही अपने 'मोहन' से चिपक जाए.. एक दम से वो उसकी पुजारीन सी बन गयी थी.. कुच्छ पहले तक उसको अपने बाप की जागीर समझने वाली स्नेहा अब खुद को उसकी जागीर बना बैठी थी.. और उसको अपनी तकदीर.. लड़कीपन ने अपना रंग दिखाना शुरू किया..," नही.. मैं भी आगे ही बैठूँगी.. मुझे डर लग रहा है पिछे बैठते हुए..." मानो विकी का साथ अब सबसे सुरक्षित था दुनिया में....
"ओ.के. सोनू मॅ'मसाहब! आ जाओ.." विकी मुस्कुराया...
विकी की मुस्कुराहट का जवाब सानू ने जीभ निकाल कर दिया.. और आगे जा बैठी...
गाड़ी चल चुकी थी.. प्लान के अगले पड़ाव की ओर..
"बताओ ना.. ये सब क्या था.. मुझे तो चक्कर आ रहे हैं... सोचकर ही.." स्नेहा सीट से उचकी और उसकी जांघों को नितंबों तक अनावृत करके पिछे सरक गयी अपनी मिनी स्कर्ट को दुरुस्त किया...
विकी संजीदा अंदाज में इश्स कपोल कल्पित रहस्या पर से परदा उठाने लगा," देखो सानू.. मैने जो कुच्छ भी कर दिया है.. उस'से मेरी नौकरी ही नही..जान भी ख़तरे में पड़ गयी है... और अब में जो कुच्छ बताने जा रहा हूँ.. उस'से पहले तुम्हे एक वादा करना होगा..."
"वादा किया!" सानू ने गियर पर रखे विकी के हाथ पर अपना हाथ रख दिया...
"पहले सुन तो लो.. क्या वादा करना है..?"
"नही.. मैने अभी जो कुच्छ भी देखा है.. उसके बाद तुम पर विस्वास ना करना.. मैं सोच भी नही सकती.. इतना तो कोई किसी अपने के लिए भी नही करता.... मैने वादा किया.. जैसा कहोगे.. वैसा करूँगी.. पर प्लीज़.. मुझे छ्चोड़ कर ना जाना.. अब!" स्नेहभावुक हो गयी...
"कभी भी?" वी की के दिल में गुदगुदी सी होने लगी... उसने एक पल के लिए स्नेहा की और देखा...
स्नेहा की आँखें झुक गयी.. पर झुकने से पहले बहुत कुच्छ कह गयी थी.. विकी के हाथ पर बढ़ गयी उसके हाथ की कसावट आँखों की भाषा को समझने की कोशिश कर रही थी....
"सब तुम्हारे पापा ने करवाया है....! तुम्हारी किडनॅपिंग का नाटक..!" विकी ने एक ही साँस में स्नेहा को बोल दिया...
अजीब सी बात ये रही की स्नेहा को इश्स पर उतना अचरज नही हुआ.. जितना होना चाहिए था," हाँ.. एक पल को सारी बातें मेरे जहाँ में घूम गयी थी.. पापा ने खुद ही मुझे घूम कर आने को कहा.. जबकि उन्होने मुझे स्कूल की लड़कियों के साथ भी जाने नही दिया.. 2 दिन पहले.. मुझसे ढंग से बात तक नही की.. फिर पापा ने गाड़ी बदलने की बात कही.. फिर ये लोग....!"
"... पर ऐसा किया क्यूँ उन्होने.... क्या चाहते हैं वो.. ऐसा करके.."
"पता नही.. पर जहाँ तक मेरा ख़याल है.. वो ऐसा करके एलेक्षन में लोगों की सहानुभूति बटोरना चाहते होंगे.. क्या पता मरवा भी देते..." विकी ने अपना नज़रिया उसको बताया...
सानू का चेहरा पीला पड़ गया... मुत्ठियाँ भिच गयी," पर इश्स'से उनको मिलेगा क्या..? लोगों की सहानुभूति कैसे मिलेगी...?" वो विकी के मुँह से निकली हर बात को पत्थर की लकीर समझ रही थी...
"ये राजनीति चीज़ ही ऐसी है सानू.. जाने क्या क्या करना पड़ता है...! हो सकता है की विरोधी पार्टी के लोगों पर आरोप लगायें.... एक मिनिट.. आगे पोलीस का नाका लगा हुआ है शायद.. तुम कुच्छ भी मत बोलना.. बस अपने चेहरे पर मुस्कान लाए रखना.. ध्यान रखना.. कुच्छ भी मत बोलना...."
"ओके! " कहकर सानू मुस्कुराने लगी.....
पोलीस वाले ने बॅरियर रोड पर आगे सरका दिया. विकी ने गाड़ी पास ले जाकर रोक दी... ," क्या बात है भाई साहब?"
"कुच्छ नही...! कहकर वो गाड़ी के अंदर टॉर्च मार कर आगे पिछे देखने लगा...," ये लड़की कौन है?"
"मेरी बीवी है.. क्यूँ?" विकी ने सानू को आँख मारी.. सानू को अहसास हुआ मानो आज वो सच में ही दुल्हन बन'ने जा रही हो.. अपने 'मोहन' की....
"सही है बॉस.. चलो!" पोलीस वाले ने हाथ बाहर निकाल लिया...
"अरे बताओ तो सही क्या हुआ...?" विकी ने अपना सिर बाहर निकाल कर पूचछा...
"क्या होना है यार.. वो ससुरे मुरारी की लड़की भाग गयी होगी.. कह रहे हैं किडनप हो गयी है.. है भला किसी की इतनी हिम्मत की उस साले की लौंडिया को उठा ले जाए.. हमारी नींद हराम करनी थी .. सो कर रखी है..."
स्नेहा का मुँह खुला का खुला रह गया.. वो बोलना चाहती थी.. पर उसको 'मोहन' की इन्स्ट्रक्षन्स याद आ गयी...
विकी ने गाड़ी चला दी....," सच में.. पॉलिटिक्स बड़ी कुत्ति चीज़ है.. कहकर विकी ने स्नेहा का फोन निकाल कर उसको दे दिया....
"ययए.. तुम्हारे पास...???" सानू चौंक गयी...
"क्या करें सानू जी.. साहब का हुक़ुम जो बजाना था.. उनको लगा होगा की कहीं तुम फोन करके उनकी प्लांनिंग ना बिगाड़ दो.. उन्होने ही बोला था.. तुमसे लेकर फैंक देने के लिए.. पर मैने चुरा लिया.. अब जो तुम्हारे पापा चाहते थे.. वो मेरे दिल को अच्च्छा नही लगा.. भला कोई कैसे अपनी बेटी को बलि की बकरी बना सकता है...!" विकी का हर पैंतरा सही बैठ रहा था..
"मैं उनको अभी मज़ा चखाती हूँ.... कहकर वो पापा का नंबर. निकालने लगी....
"नही सानू.. प्लीज़.. मैने वादा लिया था ना.. यही वो वादा है की मेरे कहे बिना वहाँ फोन नही करोगी... मेरे घर वालों की जान पर बन आएगी.. उनको यही लगना चाहिए की तुम्हे कुच्छ नही पता.... बस.. मेरे कहे बिना तुम किसी को कोई फोन नही करोगी...." विकी ने अपनी बातों के जाल में सानू को उलझा लिया...
"ठीक है.. पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है...!"
"तुम्हारा गुस्सा जायज़ है.. सानू.. पर उनको सबक सीखना ज़रूरी है.. उनकी इश्स चाल को नाकामयाब करके तुम उन्हे रास्ते पर ला सकती हो.." विकी ने किसी दार्शनिक के अंदाज में कहा...
"सही कहते हो.. पर कैसे.. मैं कैसे नाकामयाब करूँ... आइ हेट हिम!" जाने कब की दबी कड़वाहट सानू के मुँह से निकल ही गयी...
"मेरे पास एक प्लान है.. पर उस'से पहले ये जान'ना ज़रूरी है कि वो अब करते क्या हैं..... फिर देखते हैं...."
सानू ने सहमति में अपना सिर हिलाया... उसको विस्वास हो चुका था.... हर उस बात पर जो विकी के मुँह से निकली थी.....दोस्तो इस पार्ट को यहीं ख़तम करता हूँ फिर मिलेंगे अगले पार्ट के साथ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
Girls school--part --36
hello dosto main yani aapka raj sharma girls school part 36 lekar aapke liye haajir hun
ye paart aapko kaisa laga likhana mat bhulanaa
" Sneha ji.. Hamein Aagey se dusri gadi lenge!" Vicky ne sahaj bhav se kaha...
"Kyun?" Sneha ke palle baat nahi padi...
"Aapke Papa ka aadesh hai..." Vicky ne bina koyi bhav chehre par laye kaha...
"par kyun.. Why the hell we.... This Car is so comfortable u know..." Sneha ko sou sou kos tak bhi andaja nahi tha ki filhal kuchh bhi Uske papa ki marji se nahi ho
raha hai....
" ab main toh politics mein nahi hoon na.. Sneha Ji! Unki baatein.. Wahi jane.."
" tumhari kitni umar hai....?"
"27 saal!"
"main tumse 8 saal chhoti hoon.. Ye naam ke sath aap aur ji lagana band karo.. Nahi toh mein tumhe uncle ji kahna shuru kar dungi.. Samjhe!" shararati muskaan pal bhar ke liye Sneha ke kamneeya aur masoom se chehre par doud gayi..
" Okay! Toh fir kya bolun..? Tum hi bata do..." Vicky ne bhi style maarne mein der nahi lagaayi...
"Sneha! ... Chaho toh Sanu bhi bol sakte ho.. Meri friends mujhe yahi kahti hain.. Mujhe bada achchha lagta hai..." Sneha agli seat ke sath sar tika kar Vicky ko niharne lagi...
"OK.. Sanu! Bahut pyara naam hai.. Sach mein..." Vicky ne najar bhar kar Sanu ki aur dekha.. Aur turant gadi ek imaarat ke sath rok di...
"kya huaa... ?" Sneha ki aawaj mein ab kuchh jyada hi mithas aa gayi thi...
Tabhi andhere ko cheerti huyi ek lumbi si gadi wahan aakar ruki.. Kounsi thi.. Ye dikhayi nahi diya...
Sneha ke liye wo jagah bilkul anjani thi.. Aur wo chehre bhi.. Jo gadi se utare.. Ekdum kaale kalute.. Bedhange se.. Sneha unko dekhkar saham si gayi.. Wo teeno unhi ki aur badhe aa rahe thhe...
"ye koun hain.. Ye sab kya hai..?" bhay ke maare Sneha khidki se ja chipki...
Par vicky ke bolne se pahle hi sneha ko jawaab mil gaya..
unn teeno mein se ek ne vicky ki khidki kholi...," Ladki ko utaar do... Tumhara kaam khatam hua..."
Sneha ko kato toh khoon nahi.. Iski toh usne kabhi kalpana bhi nahi ki thi...
"Sanu! Tumhe ab inke sarh jana hoga... Sahab ka yahi aadesh tha...!" Vicky ne pichhe dekhte huye kaha...
"Nahi.. Main nahi jaaungi.. Mujhe nahi jana kahin... Mujhe wapas chhod aao.. Hostel mein.." Sneha ke dil mein unn chehron ko dekhkar hi itna darr sama gaya tha ki usne apne dono hath prarthna ki mudra mein jod liye...
" Thheek hai.. Main baat karke dekhta hoon.. " kahkar Vicky neeche utar gaya...
" Sneha tum logon ke sath nahi jana chahti.. Main uss gadi mein le jata hoon.. Sneha ko.. Tum log ye le jao..." Vicky ki ye baat sunkar Sneha ke dil mein hulki si thhandak pahunchi.. Par wo jyada der tak kayam na rah saki...
" Tum apni noukri karo.. Aur hamein hamara kaam karne do... Hamein ladki ko uthakar le jane ke paise mile hain.. Gadi ko le jane ke nahi.. Ab chalo futo yahan se..." teeno mein se ek ne kaha...
Sneha thar thar kaanp rahi thi... Kyon hua.. Kaise hua.. Iski usko fikar nahi thi.. Bus jaan bach jaaye; bahut tha.. Usne khidki kholi aur Vicky se jakar chipak gayi.. ," Nahi.. Pls.. Mujhe mat bhejna.. Chhodkar mat jana... Main mar jaaungi..." Sneha ne apni aankhein band kar li thi...
Aaaah... Vicky ke liye ye sab kisi haseen sapne se kum nahi tha.. Sneha ke jism ka katra katra apni mahak Vicky mein chhod raha tha.. Sab kuchh vicky ke plan ke murabik hi ho raha tha.. Par ye waqt kuchh karne ka tha..," Noukri gayi bhad mein... Agar Sanu kah rahi hai ki usko tumhare sath nahi jana.. Toh main isko nahi bhejunga.. Jakar Sahab ko bata dena.... Ki sneha ne mana kar diya... Chalo ab bhago yahan se...."
" aise kaise bhag jaayein.. Abhi toh sirf paise liye hain... Iski bhi toh leni hai abhi.. 7 raaton ki baat huyi hai hamari.. Isko kunwari thhode rahne denge.. Chode..." kahte huye jaise hi unmein se ek aadmi ne apna hath Sneha ki aur badhaya.. Vicky ne Apni dahini taraf Sanu ko apne aagosh mein sametey baayein hath ki mutthhi kasi aur jor se ek dumdar ghoonsa Uski aur lapak rahe aadmi ko jad diya...
Natak chal raha tha.. Par shayad ghunsa asli tha.. Uss aadmi ke pair ukhad gaye aur apni nani ko yaad karta hua wo shaksh peeth ke bal jameen par ja gira..," aaauuu!"
Sneha ab aur bhi darr gayi.. Kya chhati kya jaanghein.. Sab chhup jana chahte thhe.. Vicky mein sama jana chahte thhe..
Gira huaa aadmi uthh nahi paya... Dusre ne chaku nikal liya.. Lumbe fan wala... Dhardar!
"ohhh..." ye kya hua.. Rehearsal ki kami thi.. Uss aadmi ko chaku maarna tha aur vicky ko usko beech mein hi lapakna tha... Par baayein hath ki wajah se wo chook gaya aur chaku kareeb ek inch vicky ke kandhe mein ja baitha.....
"Saaley.. Teri maa ki.. Mujhe chaku maara.." dard se bilbila uthha Vicky kuchh pal ke liye natak watak sab bhool gaya.. Sneha ko jhatke ke sath apne se door kiya aur unn dono par pil pada.. Teen char minute mein hi unko itne jyada laat ghoonse jama diye ki unko laga ab bhai ke saamne thhaharna bekar hai.. Teeno ne apni langoti sambhali aur nou do gyaraha ho gaye.. gadi wadi sab wahin chhodkar.....
Ab jakar Vicky ko sneha ka khayal aaya.. Wo aankhein fade vicky ke iss preplanned kaarnamein ko dekh rahi thi... Jaise hi vicky uski aur ghooma.. Wo doud kar uss'se aa lipti.. Iss baar darr se nahi.. Khushi se..!
" Jaldi karo Sneha.. Hamein apna sara saman dusri gadi mein daalna hai...."
"par... Ye sab kya hai mohan..? Meri kuchh samajh nahi aa raha..."
" bataata hoon.. Ab toh sab kuchh batana hi padega... Tum jaldi uss gadi mein baitho...." vicky ne uski kamar sahlate huye bola...
" nahi.. Mujhe darr lag raha hai.. Tumse door nahi jaaungi... Ek pal ke liye bhi....
"OK.. Tum mere sath hi raho.." vicky ne sneha ke gaalon par hath fera aur usko bagal mein dabaye.. Gadi se saman utaarne laga...
"Chalo baith jao...!" vicky ne pichhli khidki kholte huye Sneha ko ishara kiya...
Sneha ki janghon mein cheetiyan si reng rahi thi.. Usko pata nahi tha ki kyun bus dil kar raha tha ki ek baar fir se waise hi apne 'Mohan' se chipak jaye.. Ek dum se wo uski pujarin si ban gayi thi.. Kuchh pahle tak usko apne baap ki jageer samajhne wali Sneha ab khud ko uski Jageer bana baithi thi.. Aur usko apni takdeer.. Ladkipaney ne apna rang dikhana shuru kiya..," Nahi.. Main bhi aagey hi baithhungi.. Mujhe darr lag raha hai pichhe baithte huye..." mano Vicky ka saath ab sabse surakshit tha duniya mein....
"O.K. Sanu Ma'msahab! Aa jao.." Vicky muskuraya...
Vicky ki muskurahat ka jawaab Sanu ne jeebh nikal kar diya.. Aur aagey ja baithi...
Gadi chal chuki thi.. Plan ke agle padaav ki aur..
"Batao na.. Ye sab kya tha.. Mujhe toh chakkar aa rahe hain... Sochkar hi.." Sneha seat se uchaki aur uski jaanghon ko nitambon tak anavrit karke pichhe sarak gayi apni mini skirt ko durust kiya...
Vicky sanjeeda andaaj mein iss kapol kalpit rahasya par se parda uthhane laga," Dekho Sanu.. Maine jo kuchh bhi kar diya hai.. Uss'se meri noukri hi nahi..jaan bhi khatre mein pad gayi hai... Aur ab mein jo kuchh batane ja raha hoon.. Uss'se pahle tumhe ek wada karna hoga..."
"Wada kiya!" Sanu ne Gear par rakhe vicky ke hath par apna hath rakh diya...
"pahle sun toh lo.. Kya wada karna hai..?"
"Nahi.. Maine abhi jo kuchh bhi dekha hai.. Uske baad tum par visvas na karna.. Main soch bhi nahi sakti.. Itna toh koyi kisi apne ke liye bhi nahi karta.... Maine wada kiya.. Jaisa kahoge.. Waisa karungi.. Par pls.. Mujhe chhod kar na jana.. Ab!" Snehabhawuk ho gayi...
"kabhi bhi?" Vi ky ke dil mein gudgudi si hone lagi... Usne ek pal ke liye Sneha ki aur dekha...
Sneha ki aankhein jhuk gayi.. Par jhukne se pahle bahut kuchh kah gayi thi.. Vicky ke hath par badh gayi uske hath ki kasawat aankhon ki bhasha ko samjhane ki koshish kar rahi thi....
"Sab tumhare papa ne karwaya hai....! Tumhari kidnapping ka natak..!" vicky ne ek hi saans mein Sneha ko bol diya...
Ajeeb si baat ye rahi ki sneha ko iss par utna achraj nahi hua.. Jitna hona chahiye thha," Haan.. Ek pal ko sari baatein mere jehan mein ghoom gayi thi.. Papa ne khud hi mujhe ghoom kar aane ko kaha.. Jabki unhone mujhe school ki ladkiyon ke sath bhi jane nahi diya.. 2 din pahle.. Mujhse dhang se baat tak nahi ki.. Fir papa ne gadi badalne ki baat kahi.. Fir ye log....!"
"... Par aisa kiya kyun unhone.... Kya chahte hain wo.. Aisa karke.."
"Pata nahi.. Par jahan tak mera khayal hai.. Wo aisa karke election mein logon ki sahanubhuti batorna chahte honge.. Kya pata marwa bhi dete..." vicky ne apna najariya usko bataya...
Sanu ka chehra peela pad gaya... Mutthiyan bhich gayi," Par iss'se unko milega kya..? Logon ki sahanubhuti kaise milegi...?" Wo vicky ke munh se nikli har baat ko patthar ki lakeer samajh rahi thi...
"ye raajniti cheej hi aisi hai sanu.. Jane kya kya karna padta hai...! Ho sakta hai ki virodhi party ke logon par aarop lagaayein.... Ek minute.. Aagey police ka naaka laga huaa hai shayad.. Tum kuchh bhi mat bolna.. Bus apne chehre par muskaan laye rakhna.. Dhyan rakhna.. Kuchh bhi mat bolna...."
"OK! " kahkar Sanu muskurane lagi.....
Police waley ne barrier road par aagey sarka diya. Vicky ne Gadi paas le jakar rok di... ," Kya baat hai bhai sahab?"
"Kuchh nahi...! Kahkar wo gadi ke andar torch maar kar aage pichhe dekhne laga...," ye ladki koun hai?"
"Meri biwi hai.. Kyun?" Vicky ne Sanu k aankh mari.. Sanu ko ahsaas huaa mano aaj wo sach mein hi dulhan ban'ne ja rahi ho.. Apne 'Mohan' ki....
"Sahi hai boss.. Chalo!" Police waley ne hath bahar nikal liya...
"arey batao toh sahi kya huaa...?" vicky ne apna sir bahar nikal kar poochha...
"kya hona hai yaar.. Wo sasure murari ki ladki bhag gayi hogi.. Kah rahe hain kidnaap ho gayi hai.. Hai bhala kisi ki itni himmat ki uss saaley ki loundiya ko utha le jaye.. Hamari neend haraam karni thi .. So kar rakhi hai..."
Sneha ka munh khula ka khula rah gaya.. Wo bolna chahti thi.. Par usko 'mohan' ki instructions yaad aa gayi...
Vicky ne Gadi chala di....," Sach mein.. Politics badi kutti chees hai.. Kahkar Vicky ne Sneha ka fone nikal kar usko de diya....
"yye.. Tumhare paas...???" Sanu chounk gayi...
"kya karein sanu ji.. Sahab ka huqum jo bajana tha.. Unko laga hoga ki kahin tum fone karke unki planning na bigad do.. Unhone hi bola tha.. Tumse lekar faink dene ke liye.. Par maine chura liya.. Ab jo tumhare papa chahte thhe.. Wo mere dil ko achchha nahi laga.. Bhala koyi kaise apni beti ko bali ki bakri bana sakta hai...!" Vicky ka har paintra sahi baith raha thha..
"main unko abhi maja chakhati hoon.... Kahkar wo papa ka no. Nikalne lagi....
"Nahi Sanu.. Pls.. Maine wada liya tha na.. Yahi wo wada hai ki mere kahe bina wahan fone nahi karogi... Mere ghar walon ki jaan par ban aayegi.. Unko yahi lagna chahiye ki tumhe kuchh nahi pata.... Bus.. Mere kahe bina tum kisi ko koyi fone nahi karogi...." vicky ne apni baaton ke jaal mein sanu ko uljha liya...
"Thheek hai.. Par mujhe bahut gussa aa raha hai...!"
"tumhara gussa jayaj hai.. Sanu.. Par unko sabak sikhana jaruri hai.. Unki iss chaal ko nakamyaab karke tum unhe raaste par la sakti ho.." vicky ne kisi darshnik ke andaj mein kaha...
"sahi kahte ho.. Par kaise.. Main kaise nakaamyaab karoon... I hate him!" jaane kab ki dabi kadwahat Sanu ke munh se nikal hi gayi...
"mere paas ek plan hai.. Par uss'se pahle ye jaan'na jaruri hai ki wo ab karte kya hain..... Fir dekhte hain...."
Sanu ne sahmati mein apna sir hilaya... Usko visvas ho chuka tha.... Har uss baat par jo vicky ke munh se nikli thi.....dosto is paart ko yahin khatam kar raha hun fir milenge agale part ke saath
aapka dost
raj sharma
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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