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ननद ने खेली होली--9
बहोत कुछ उन्होने अपने मुंह में ही भरा था लेकिन बोतल के निकलते ही दूबे भाभी की चूत ने उनका मुंह सील कर दिया, बेचारी घूंट घूंट करके सब गटक कर गयीं।
उनकी एक चूंची मेरे हाथ में थी और दूसरी दूबे भाभी की गिरफ्त में..और जब मैंने दूबे भाभी की ओर देखा तो ...उनके होंठ एक दम मेरे होंठों के पास...उन्होने होंठ बढा के चूम लिये। मैं क्यों पीछे हटती...मैने अपनी जीभ उनके मुंह में ठेल दी।
वो कन्या प्रेमी थीं तो मुझे भी दोनो तरह का शौक था। मुझे चूसना छोड के थोडी देर बाद दूबे भाभी ने लाली की ओर रुख किया। वो कस कस के अपनी चूत लाली के होंठॊ पे रगड तो रही थीं पर लाली उनका साथ नहीं दे रही थीं, सुन चूत मरानो, भंडुवों की चोदी, भोंसडी वाली...अब मैं कुछ नहीं करुंगी कमर भी नहीं हिलाउंगी...चल अब अपनी जुबान मेरी चूत में डाल के चाट...चूस....और वो न पसंद हो तो गांड चटा दूं...बोल...और तेरी ऐसी ही रगडाई होती रहेगी...जब तक तू मुझे झाड नहीं लेती। हां एक बात और अपनी गांड खोल के सुन....मुझे झाडना इतना आसान नहीं। दो तगडे मर्द घंटे भर चोदते हैं तब जा के मैं कहीं झडती हूं, चल शुरु हो जा।
बेचारी ननद रानी...कभी दूबे भाभी की झांटो भरी बुर चूसतीं कभी चाटती...फिर जीभ अंदर घुसेड के....लेकिन थोडी देर में ही जिस तरह उनके चेहरे पे चमक थी, निपल तन्नाये थे....साफ था की चूत चूसने चाटने में उन्हे भी जम के मजा आ रहा है।
मैं कभी अपनी चूत धीमे धीमे तो कभी तेज तेज, कभी हल्के हल्के से सहलाते हुये तो कभी कस के रगड के घिस्सा मार के...किसी मर्द से कम जोर से नहीं चोद रही थी मैं अपनी प्यारी ननद को।
और साथ ही होली भी चल रही थी....चारों ओर रंग बह रहे थे, बिखरे पडे थे...बस उन्ही को हाथ से कांछ के, समेट के उनके पेट पे चूतडों पे चूंचियों पे....तब तक मुझे कुछ पक्के रंग के पेंट की ट्यूब दिख गयीं और मुझे एक आईडिया आया।
ट्यूब से ही उनके जो अंग अक्सर खुले रहते थे....उन पर मैने एक से एक गालियां....पेट पे लिखा...राजीव की रखैल....अब वो जब भी साडी पहनतीं तो पेट तो दिखता ही...पर दूबे भाभी बोलीं, अरे ये भी कोई गाली हुयी...ले मुझे दे और फिर उन्होने उनके सीने पे और वो भी उपर वाले हिस्से में...जो ब्लाउज से भी झलकता...लिखा छिनाल ...लंड की दीवानी....और बाकी जगहों पे भी...चूत मरानो....भाई चोदी...।
इन सब से बेखबर लाली कस क्स के दूबे भाभी की चूत को चाट रही थीं चूस रही थीं...।
हम तीनों साथ साथ झडे...दूबे भाभी लाली के जीभ से और मैं और लाली चूत की रगड घिस्स से। दूबे, भाभी ने आशिर्वाद दिया, वाह क्या चूत चटोरी है...इस होली पे तुम्हे खूब मोटे मोटे लंड मिलें, तेरी चूत, गांड, मुंह कभी लंड से खाली ना हो .., अरे भाभी....मायके में तो इनके भाई ही मिलेंगे...मैने टोका तो वो हंस के बोली...अरे कया फरक पडता है...लंड तो लंड है।
जब हम दोनों उठे तो कहीं जा के लाली ने सांस ली....हालांकि हाथ अभी भी ...हमने हाथ नहीं खोला था।
कुछ देर बाद वो बोलीं, ये तो गलत है एक के उपर दो...।
( मैने सोचा इसमें क्या गलत है, इस समय तुम्हारी छोटी बहन भी तो एक के साथ दो....एक में अपने जीजू का लंड और दूसरी ओर से अपने भैदोया का लंड गपागप लील रही होगी....तो बडी बहन ....चलो भैया न सही भाभी ही सही) लेकिन उपर उपर मैं बोली...हां एक दम सही चलिये हम लोग बारी बारी से...और बडी दूबे भाभी हैं इसलिये पहले उनका नंबर...वैसे भी इत्ती देर से चूत पे घिस्सा मारते मेरी जांघे भी थक गयी थीं लाली एक मिनट के लिये आंख बंद कर के आराम से लेट गईं....मुझे लगा की दूबे भाभी तो बस अब टूट पडेंगीं पर उन्होने भी आराम से एक हाथ से अपनी सारी चूडी कंगन , लाली की ओर पीठ कर के निकालीं...फिर पहले तो चारो उंगलियों में फिर पूरे हाथ को नारियल के तेल में कस के चुपोडा। मेरी कुछ समझ में नही आ रहा था...ननद जी की चूत इतनी गीली हो गयी थी की उंगली तो आसानी से चली जाती....तो फिर ये नारियल का तेल उनहोने पूरे हाथ में क्यों वो भी कलाई तक....और फिर चूडी क्यों निकाल दी...दूबे भाभी ने मुझे उंगली के इशारे से चुप रहने का इशारा किया और फिर ननद जी की दोनो भरी भरी जांघे फैला के बैठ गयीं....जिस हाथ से उन्होने चुडियां उतार दी थीं उसे नीचे रखा, उनके चूतड के पास और दूसरे हाथ से लाली की चूत बहोत हल्के हल्के य्यर से सहलाने लगीं। मजे से लाली ने आंखे खॊल दीं, उन्हे फ्लाइंग किस लेते हुए दूबे भाभी ने जोर जोर से सहलाना शुरु कर दिया ...फिर उसी हाथ की एक उंगली , फिर दो उंगली....लेकिन कुछ देर बाद ही वो दोनो उंगलिया गोला कार घुमने लगीं,चूत को और चौडा करती...अचानक नीचे रखे हाथ की भी दो उंगलियां भी साथ साथ घुस गईं और चारों उंगलियां एक दम सटी मोटॆ लंड की तरह तेजी से अंदर बाहर.....फिर उसी तरह गोल गोल....कुछ देर बाद जब चूत को उसकी आदत पड गयी....तो उन्होने नीचे वाले हाथ की दो उंगलियां निकाल लीं और उपर वाले हाथ की तीन उंगलियां...अंदर बाहर...साथ में क्भी अंगुठे से क्लिट रगड देतीं। थोडी देर के बाद दूसरे हाथ की भी तीन उंगलियां...अब लाली को थोडा दरद हो रहा था...लेकिन मजा भी आ र्हा था..होंठ भींच के वो दरद पी ले रही थीं। भाभी ने अब उपर वाले हाथ की उंगलियां तो निकाल लीं...लेकिन नीचे वाले हाथ की सबसे छोटी उंगली भी अंदर ठेल दी। मुझे विश्वास नहीं हो रहा था एक साथ चार चार उंगलियां...लेकिन मैं अपनी आंखॊ से देख रही थी....गपागप सटासट....फिर उन्होने चारों उंगलियों को बाहर निकाला और थोडा मोड क्रे....जैसे चूडी पहनाने वालीयां हाथ मोडवाती हैं वैसे....और अब की जब चारों उंगलियांन अंदर गयीं तो साथ में अगूंठा भी था और वो बोल भी चूडी वालियों की तरह रही थीं...।
हां हां बस थोडा सा ....थोडा सा हल्का सा दर्द होगा....बस अब तो पूरा चला गया....देखो कितना अच्छा लग रहा है....जरा सा और उधर देखॊ...।
मैं सासं रोक के देख रही थी....अब मुझे कुछ कुछ समझ में आ रहा था। आखिर इतनी ब्लू फिल्में देखी थी ...लेकिन सचमुच आंख के सामने...।
अब लेकिन अटक गया था....उंगलिया तो अंदर समा गयी थीं लेकिन आखिर नकल....तभी अचानक दूबे भाभी ने कस के दूसरे हाथ से पूरे ताकत से उनकी क्लिट पिंच कर ली और लाली कस के चीख उठी....जब तक वो संहले संहले ....पूरी मुट्ठी अंदर....पूरी त्ताकत लगा के उन्होने इस तरह पेला जैसे कोई किसी कच्ची कली की सुहाग रात के दिन झिल्ली तोड्ता हो...।
( दूबे भाभी ने बाद में बताया की पहले तो सारी उंगलियां...खूब सिकुडी सिमटी रहती हैं...लेकिन चूत के अंदर घुसा के वो उसे धीरे से फैला देती हैं...।
लेकिन भाभी इसी पे नहीं रुकी॑ं...धीरे धीरे...अंदर की ओर दबाते हुये....गोल गोल घूमा रही थीं...।
सूत सूत वो और अंदर जा रहा था। बचपन से मेरी भाभियों ने सिखाया था, बीबी....तुम चूत रानी की महिमा नहीं जानती ....जिससे इत्ते बडे मोटे बच्चे निकलते हैं....जिससे पूरा संसार निकला है....ये कहना की ये नहीं जायेगा वो नहीं जायेगा....उन की बेइज्जती करना है...जो ये लडकी ये कहती है की हाय राम इतना मोटा कैसे जायेगा....समझॊ छिनाल पना कर रही है....बस उस्का मन कर रहा है गप्प करने का...।
और आज मैं अपनी आंखॊ से देख रही थी। लाली ननद की बुर ने दूबे भाभी की पूरी मुट्ठी घोंट ली थी....और अब उन्होने आल्मोस्ट कलाइ तक...।
फिर एक दो मिनट तक रुकने के बाद भाभी ने आगे पीछे करना शुरु कर दिया....पूरी मुट्ठी से वो उन्हे चोद रही थीं। ननद रानी के चेहरे पे दर्द था लेकिन एक अलग तरह की मस्ती भी थी। वो कराह भी रही थीं और सिसक भी रही थीं। मुझे भी देखने में बडा मजा आ रहा था।
अरे तू क्यों खडी देख रही है...ननद तो तेरी भी हैं...चल पीछे वाला छेद तो खाली ही है लग जा....दूबे भाभी ने मुझे चढाया और दूसरे हाथ से लाली की गांड उपर कर दी। क्या मस्त चूतड थे, रंग, कालिख,पेंट से रंगे पुते...।
अरे नन्द रानी ...एक जगह बची है अभी रंग से और मैने पहले तो जमीन पे गिरे रंग फिर से अपने हाथ में लगाये....और मंझ्ली और तर्जनी पे खूब ढेर सारा गाढा लाल रंग लगा के गांड के छेद बडी मुश्किल से टिप घुसी....और वी चीख उठीं।
ये बेइमानी है ननद जी....दूबे भाभी की तो कलाई तक घोंट ली आपने और मेरी उंगली की टिप से ही चिहुंक रही है....ज्यादा नखडा करियेगा तो मैं भी पूरी मुट्ठी गांड में डाल के गांड मारुंगी.....भले बाद में मोची के पास जाना पडे। अरे ससुराल में तो देवरों ननदोइयों के साथ होली का मजा बहोत लिया होगा...अब इतने द्निनों के बाद होली में मायके आई हैं तो भाभियों के साथ भी होली का मजा ले लीजिये।
मैने दूबे भाभी की ट्रिक सीख ली थी...थोडा आगे पीछे करने के बाद...गोल गोल घुमाना शुरु कर दिया। गांड की दिवारों से रगड के उसे चौडा करते ....और फिर एक उंगली और....गांड के छल्ले ने कस के उंगलियों को पकडा....लेकिन मैने पूरी ताकत से ठेला जैसे कोइ मोटे लंड से गांड मार रहा हो...और गप्प से वो अंदर...उंगली की टिप पे कुछ गीला गीला लगा तो...इसका मतलब की....मैने तीनों उंगलियों को आल्मोस्ट टिप तक खींच लिया और फिर पूरी ताकत से अंदर तक....वो चिलमिलाती रहीं...गांड पटकती रहीं ..पर इससे तो ननद की गांड में उंगली करने का मजा दूगना हो रहा था। मेरी उंगलियों में लगा रंग उनकी गांड में लग रहा था और उनकी गांड का...लिसड लिसड...मैने तीनों उंगलियों को चम्मच की तरह कर के नकल से मोड लिया....और फिर गोल गोल घुमा घुमा के जैस कोई टेढी उंगली से ....करोच करोच कर..।
दूबे भाभी ये देख रही थीं और जोश में...अब क्च क्चा के कलाई तक अंदर बाहर कर रही थीं।
दूबे भाभी की आंखो का मतलब मैं समझ गयी और बोली, अरे ननद रानी आपके चेहरे का तो काफी मेकप किया हम लोगों ने लेकिन मंजन नहीं कराया.....और गांड में से निकाल के उंगली सीधे मुंह में..।
वो मुंह बनाती रहीं....बिल्बिलाती रहीं....लेकिन दूबे भाभी ने जिस तरह से कस के उनका जबडा दबाया ...उन्हे मुंह खोलना ही पडा और एक बार जब मेरी वो तीन उंगलियां मुंह में घुस गयीं तो रगड रगड के दांतो पे..।
( और इसके बाद तो पूरे होली भर...जहां कोई ननद पकड में आती ...ये बात सारी भाभियों में मशहूर हो गयी थी...अरे ज्ररा नबद को मंजन तो कराओ...और फिर गांड से उंगली निकल के सीधे मुंह में....) और कस के मुंह दबाते हुये दूबे भाभी बोलीं....अरे जरा ननद छिनाल को चटनी तो चखाओ....और मेरी उंगली सीधे मुंह में...।
ये सब देख के मैं भी उत्तेजित हो गयी थी....लाली ने दूबे भाभी को तो चूम चाट के झाडा था तो मैं ई क्यों बची रहती...।
और मैं सीधे उनके उपर.....अरे ननद जी देखिये मैने आपकी चूत इतनी बार चूस चूस के झाडी तो एक बार तो आप .मेरी ...।
कहने की देर थी ननद की तारीफ करनी होगी लप लप उनकी जीभ मेरी चूत चाटने लगी...और दोनों होंठ कस कस के चूसने लगे बहोत मजा आ रहा था लेकिन...ठंडाई, व्हिस्की...बीयर...मुझे बडी जोर की आ रही थी...।
और मैं उठने लगी तो दूबे भाभी ने इशारे से पूछा क्या बात है...।
वो चूत में से हाथ निकाल के मेरे पास ही आ के बैठी थीं।
मैने उंगली से १ नम्बर का इशारा किया....तो उनकी आंखो ने मुझे कस के डांटा और उठ के मेरे दोनो कंधे कस के दबाते हुये कान में बोली, अरे होली का मौका है ....नीचे ननद है...इससे बढिया मौका ....चल कर दे....।
लेकिन तब भी मैं उठने की कोशिश करती रही...।
लेकिन दूबे भाभी से जीत पाया कोई आज तक..।
उन्होने मेरे मूत्र छिद्र के पास जोर से सुर सुरी की और फिर मेरे लाख रोकते रोकते ...एक सुनहरी बूंद और फिर ...पूरी धार...।
और बाद में दूबे भाभी ने उन्हे छेडा...क्यों ननद रानी कैसा लगा सुनहली शराब का मजा।
मुझसे बोलीं वो चल हट अब मेरा नम्बर है....और फिर सीधे उनके मुंह पे बैठ के...।
कौन कौन सा गर्हित कर्म नहीं किया उन्होने...।
लाली से जबरन गांड चटवाई....मना करने पे उनके नथुने कस के दबा दिये और जब सांस लेने के लिये मुंह खॊला तो अपनी गांड का छेद सीधे उनके मुंह पे...।
साली अगर एक मिनट भी मुंह बंद हुआ ना तो...ये टेंटुये....एक हाथ गले पे और दूसरा नथुनों पे...।
जो कोई सोच नहीं सकता वो सब भी।
मैं तो सोच भी नहीं सकती थी वो सब पर...।
लेकिन देखने में मजा मुझे भी आ रहा था....बहोत आ रहा था...।
लेकिन सिरफ देखने तक नहीं ...।
अपने बाद दूबे भाभी ने मुझे भी....मैने थोडी ना नुकुर की लेकिन ..।
और उसके साथ रंगों का दौर..।
लाली ने तो कहा था १० मिनट बाद ....मैने नन्दोइ जी को ३ घंटे का मौका दिया था...लेकिन जब हम दोनों वापस निकले दूबे भाभी के यहां से तो पूरे ४ घंटे हो चुके थे।
लाली की ब्रा, पेटीकोट तो सब तार तार और रंग भरे चहबच्चे में था....हां बहोत कहने पे मैनें दुछत्ती पर से साडी और ब्लाउज उतार दिया, और ब्लाउज देने के पहले उनको दिखा के उपर के तीन बटन तोड दिये।
बाहर निकलते ही दूबे भाभी के पडोस में ...एक लडका ...इंटर मे पढता होगा...ढेर सारे रंग भरे गुब्बारे लेके....दूबे भाभी ने बतलाया की...गप्पू है पूरे मुहल्ले भर का देवर। हम शायद बच के निकल भी जाते लेकिन लाली ने ही उसको ललकारा....मुझे दिखा के बोलीं...अरे तेरी भाभी हैं, ऐसे ही तुम्हारे मुहल्ले से बच के निकल जायेंगी.....और उसने उठा के लाल रंग भरा गुब्बारा मेरे उपर फेंका लेकिन मैं झूक गयी और वो सीधे लाली के जोबन पे....ब्लाउज पूरा रंग से गीला....ब्रा तो थी नहीं ,,एक दम उनके उभारों से चिपक गया।
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