Tuesday, June 22, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --53

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --53



वो.. मैं तुम्हारी खातिर ही तो आया हूँ.. तुम मुँह फुलाए क्यूँ खड़ी हो..?" मानसी के जाते ही मनु वाणी के आगे नतमस्तक होता हुआ सा बोला...
" मेरे लिए क्यूँ आए हो? तुम तो गौरी के लिए आए हो.. तभी तो यहीं पर रुक गये.. सीधे घर नही आ सकते थे क्या?" वाणी ने अपने दर्द को सीने से बाहर निकाला..
"क्या? मैं.. और गौरी के लिए.. मुझे उस'से क्या मतलब है.. मैं तो सीधा वहीं आना चाहता था.. पर जब वो.. विकी जी यहाँ उतरे तो अमित ने मुझे भी यहीं उतार लिया... मुझे जाने ही नही दिया.. फिर मैं क्या कहता.. नही.. मुझे तो वाणी के पास जाना है.. ये?"
" अमित भी आया है क्या? पर उसको किसने बुलाया?" वाणी हैरान होकर मनु की और मूडी..
" किसी ने नही.. जब मैने उसको ये बताया की मैं टूर पर जा रहा हूँ तो पूच्छने लगा की कौन कौन जा रहे हैं... फिर गौरी का नाम लेते ही ज़िद पकड़ गया.. मुझे भी चलना है.. मैने दिशा से पूछा और उन्होने हाँ कर दी.."
" चलो अच्च्छा हुआ.. अब तुम और गौरी आपस में बात नही करोगे..."
" मैं कब करता हूँ उस'से बात.. तुम तो यूँही..." मनु मन ही मन मुस्कुरा रहा था.. लड़की के प्यार की पहचान उसकी जलन से ही तो होती है...
" बात नही की तो क्या? तुम उस दिन उसकी तरफ देख रहे थे.. केयी बार देखा था.. मुझे पता है.. अब की बार देखा तो मैं तुमसे बात नही करूँगी हाँ!"
"ओफ्फो.. पता नही किन किन बातों को लेकर बैठ जाती हो.. चलो.. अब अंदर चलें.. खम्खा लोग जाने क्या क्या सोचेंगे...?" मनु ने उसको अंदर चलने का इशारा किया...
वाणी ने 2 पल उसकी आँखों में आँखें डाली और मुस्कुरा पड़ी.. मनु तो आँख बंद करके विस्वास करने लायक था.. वो तो बस यूँही....
वाणी उसके पिछे पिछे चल पड़ी...

" तुम भी आ गये अमित! पहले कहाँ थे.." वाणी ने जाते ही अमित से सवाल किया..
" हाँ आ तो गया हूँ.. पर शायद किसी को दिखाई ही नही दे रहा.." अमित ने पास से गुजर रही गौरी को देख कर कॉमेंट किया.. पता नही क्या वजह थी.. पर गौरी उस'से जानबूझ कर नज़रे चुरा रही थी.. या फिर तरसा रही थी.. भगवान जाने.. पर जब से अमित वहाँ बैठा हुआ था.. गौरी रह रह कर इठलाती हुई उसके सामने से गुजर रही थी.. पर उस पर ध्यान ना देने का नाटक कर रही थी...
तभी वहाँ पर वासू जी का आगमन हुआ.. गौरी, दिशा, वाणी आदि ने जब उनको प्रणाम किया तो सब लड़कों ने भी खड़े होकर हाथ जोड़ लिए...
" नमस्कार जी सबको मेरा नमस्कार.. हो गयी तैयारियाँ या अभी कुच्छ बाकी है..." वासू की नज़रें अंदर आते ही नीरू को ढूँढने लगी...
" हां.. सर.. सभी आ गये हैं.. बस अब चलते ही होंगे.. लीजिए आप पानी लीजिए.." गौरी ने वासू की तरफ ट्रे बढ़ाते हुए कहा...
वासू का माथा ठनका..," क्या? सब आ गये? नीरू.. ववो.. मतलब नीर का सेवेन तो मैं ठहर कर करूँगा.. सब आ गये हैं ना...!" वासू ने खुद को संभाला..
" हां.. लगभग सभी आ गये हैं सर.. बस गाँव से कुच्छ लड़कियाँ रहती हैं.. वो भी आती ही होंगी.." वासू के 'नीरू' कहने से गौरी को याद आया.. नीरू, नेहा, सरिता, दिव्या, रेणु, आरज़ू और सोनिया अभी आई नही हैं....
गौरी ने मुश्किल से अपनी बात पूरी की ही थी की उन्न सभी लड़कियों ने अपने अपने बॅग लिए घर में कदम रखा...
" अर्रे.. यहाँ तो बड़ी रौनक लगी हुई है... मैने तो सोचा था कि 5-7 लड़कियाँ ही जा रही हैं बस.. यहाँ तो.." सरिता ने आते ही एक एक करके सभी लड़कों की और कामुक नज़रों से देखते हुए कहा.. उसकी तो ऐश हो गयी.. वहाँ का माहौल देखते ही...
उसकी इस अदा पर लड़कियाँ तो लड़कियाँ लड़के भी बग्लें झाँकने लगे... उसकी आँखों के साथ उसके हाव भाव से सॉफ पता चल सकता था कि वो 'खेली खाई' लड़की है..
वासू की आँखें नीरू को देखते ही चमक उठी," अब चला जाए.. यहाँ बैठे बैठे क्या करेंगे.. बहुत लंबा रास्ता है...
" जी अभी मैं उनको फोन करती हूँ.. बस आई क्यूँ नही... अभी तक!" दिशा ने शमशेर का नंबर. डाइयल किया और अंदर कमरे में निकल गयी...
कमरे में हर तरफ जोश और उमंग की लहरें उठती दिखाई दे रही थी.. सिर्फ़ कमरे में खड़ी आरज़ू, सोनिया और रेणु को छ्चोड़ कर.. आरज़ू और सोनिया को नेहा ज़बरदस्ती ले आई थी और रेणु सरिता के कहने से वहाँ आई थी.. इन सबका इस तरह घर से बाहर निकलने का पहला मौका था.. लड़कों को देखकर ही इनकी जान सी निकली जा रही थी.. कहीं घर वालों को पता लग गया की उनके साथ टूर पर लड़के भी गये थे तो उनकी खैर नही.....

" कितना टाइम लगेगा जीजू, नैनीताल तक जाने में...?" वाणी ने बस के आते ही खुश होकर शमशेर से पूचछा...
" 8-10 घंटे तो लग ही जाएँगे.. क्यूँ?" शमशेर ने उसका बॅग पकड़ते हुए कहा...
" नही कुच्छ नही.. यूँही पूच्छ रही थी.. आ जाओ.. सब चढ़ जाओ बस में.." वाणी ने चिल्लाकर सबको आवाज़ दी...
" लाओ.. तुम्हारा बॅग मैं पकड़ लेती हूँ.." रिया लपक कर वीरू के बॅग के पास पहुँची...
" क्यूँ? राज मर गया है क्या? राज! ये ले.." वीरू ने एक नज़र रिया को घूरा और राज को पुकार कर अपने बॅग की ओर इशारा किया...
" ले चलने दो यार.. बेचारी को.. कितने प्यार से तो कह रही है.." राज ने रिया के अचानक मायूस हो गये चेहरे की और देखते हुए कहा...
" हुन्ह.. बेचारी! तुम्हे बेचारी लगती है ये.. दोपहर से मुझे 'टूटी टाँग' कह कर बुला रही है.. अगर दूसरों क घर ना होता तो इसको बताता की टूटी टाँग कहते किसे हैं.." वीरू बनावटी गुस्से से बोला..
" तो.. तुम भी तो मुझको कह रहे थे की मैं लड़कों की तरह से चलती हूँ.. मैं कुच्छ भी ना बोलूं...?" रिया गुस्से से चिल्ला सी पड़ी...
" चलो चलो.. अपना रास्ता नापो.. मैं राज नही हूँ समझी!" वीरू ने उसको चिडाने में कोई कसर नही छोडी थी..
"मुझे बीच में क्यूँ घसीट रहे हो भाई.. लाओ बॅग इधर दो.." कहते हुए राज ने बॅग उठाया और बाहर निकलने लगा..
"टूटी टाँग.. टूटी टाँग.. टूटी टाँग.." रिया ने कहा और ज़ोर ज़ोर से हंसते हुए बाहर की और भागी...
वीरू जाने क्यूँ दरवाजे की और कुच्छ पल एकटक देखता रहा.. रिया के उसकी आँखों से औझल हो जाने के बाद भी.. और फिर अपने आप ही हँसने लगा," पागल है!"
" कौन पागल है भैया!" स्नेहा ने तैयार होकर बेडरूम से निकलते हुए कहा...
" आअ.. हां.. कुच्छ नही.. वो ऐसे ही.. अब तो बड़ी खुश लग रही हो.. क्या बात है?" वीरू ने बात पलट दी..
स्नेहा और भी खिल उठी.. विकी के उसकी जिंदगी में वापस आते ही उसके चेहरे पर सदा कायम रहने वाला नूर वापस आ गया था," चलो भी अब!"
" हां हां.. जा रहा हूँ.." वीरू ने कहा और बाहर निकल गया...
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सरिता, नेहा और दिव्या जो पिच्छली बार के टूर का कामुक अनुभव याद करके एक बार फिर उसी तरह का आनंद उठाने को तत्पर थी, उनके अरमानो पर पानी सा फिर गया.. वासू जो किसी के बिना कहे ही टूर का प्रायोजक और मार्गदर्शक बन बैठा था, सबसे पहले बस में सवार होकर हर-एक को उसकी सीट बताने लगा था.. नीरू बस में चढ़ने लगी तो उसने उसको रोक दिया," तुम रूको अभी!"
और नीरू शर्मिंदा सी होकर बाहर ही खड़ी रह गयी.. वह तो सबसे पहले चढ़ कर वासू के साथ वाली सीट कब्जा लेना चाहती थी..
बस में चढ़ने वाले लड़कों को उसने पिछे का रास्ता दिखाना शुरू कर दिया.. आगे वाली सीटो में से एक शमशेर और दिशा के लिए रख छोडी और दूसरी अंजलि मेडम और गौरी के लिए.. दूसरे नंबर. की सीटो में से एक तरफ वाली उसने अपने और विकी के लिए रख छ्चोड़ी थी.. और उसके बराबर वाली पता नही किसके लिए.. पर उसस्पर उसने किसी को बैठने ना दिया..
बाकी आने वाली लड़कियों को उसने तीसरी पंक्ति से बिठाना शुरू कर दिया...
" श्रीमान जी.. आप यहाँ आइए!" विकी के बस में चढ़ते ही वासू ने विकी के लिए रिज़र्व रख छ्चोड़ी सीट की और इशारा किया..
"ओह! थॅंक्स शास्त्री जी.." विकी खुश होकर उस पर बैठ गया.. उसने सोचा साथ वाली सीट उसकी स्नेहा के लिए होगी..
उसके बाद बस में चढ़े शमशेर और दिशा को भी उसने उनके लिए निर्धारित सीट बता दी..
" आप क्यूँ कास्ट उठा रहे हैं, वासू जी..? अपने आप ही बैठ जाएँगे सब.. कोई बच्चे थोड़े ही ना हैं.." शमशेर ने मुस्कुराते हुए कहा...
" अजी, इसमें कास्ट की क्या बात है.. इस कार्यक्रम का सारा उत्तर्दयित्तव अंजलि जी ने मुझ पर ही तो डाला हुआ है.. आप दोनो साथ साथ बैठिए.." वासू ने शमशेर की मुश्कूराहट का जवाब दोगुने जोश के साथ दिया..
अंजलि बिना कहे ही शमशेर की बराबर वाली सीट पर आ जमी... और उसके बाद गौरी..
स्नेहा, जो सबसे बाद में आने वालों में से थी, ने उपर चढ़ते ही विकी की और देखा..
" ये मेरे लिए है देवी! आप यहाँ बैठ जाइए.. " बराबर वाली सीट की और इशारा करते हुए वासू ने कहा..
स्नेहा ने मायूस होकर विकी की तरफ देखा तो विकी ने अपना माथा पकड़ लिया.. जाने क्यूँ वासू उनके बीच दीवार बना हुआ था..
कुच्छ जवाब ना पाकर स्नेहा ने वही सीट पकड़ ली जो वासू ने उसको दिखाई थी... विकी के बराबर वाली...
" ओहो.. तुम रह ही गयी थी.. आओ.. उपर आ जाओ!" वासू ने नीचे खड़ी होकर उसके इशारे का इंतज़ार कर रही नीरू को देख कर इश्स प्रकार का नाटक किया जैसे उसको पता ही ना हो की वो नीचे खड़ी है..."
नीरू उपर आ गयी और वासू की और देखने लगी...
"उम्म्म्म.. आप यहाँ बैठ जाइए.. ये सीट खाली ही है.." वासू ने स्नेहा के बराबर वाली सीट की और इशारा करते हुए कहा.. या दूसरे शब्दों में.. अपने बराबर वाली सीट...
" नीरू जब अपने चेहरे पर मुस्कुराहट आने से रोक ना सकी तो उसने अपने मुँह पर हाथ रख लिया..
' तो ये सारा अरेंज्मेंट मेरे लिए ही था..' नीरू ने मन ही मन सोचा और खिल उठी.. उसके मन की मुराद पूरी हो गयी थी... वासू धम्म से अपनी सीट पर जाकर बैठ गया...," चलो चालक महाशय!"

"आ सोना.. ये लड़के कौन हैं यार...?" आरज़ू ने सोनिया के कान के पास अपने होंठ लाते हुए पूचछा... वो दोनो लड़कियों में सबसे पीछे बैठी थी...
" क्या ख्याल है राज़ो? कोई पसंद आ गया क्या?" सोनिया ने हंसते हुए धीरे से उसके कान में ही सवाल का जवाब सवाल से दिया...
"हुन्ह.. मुझे क्यूँ पसंद आएगा.. मैं ऐसी लड़की नही हूँ.. मुझसे ऐसी बकवास तू ना ही कर...!" आरज़ू एक दम भभक उठी....
" यार, इसमें बुरा मान'ने वाली क्या बात है.. मैं तो बस मज़ाक कर रही थी.. तुझे बुरा लगा तो सॉरी... वैसे...!" कहकर सोनिया चुप हो गयी...
कुच्छ देर तक उसके आगे बोलने का इंतज़ार करती रहने के बाद आरज़ू से रहा ना गया," वैसे क्या?"
" कुच्छ नही.. तू खम्खा बुरा मान जाएगी..." सोनिया ने धीरे से कहकर अपना सिर सीधा कर लिया.. उसको पता था.. ना तो वो आगे बोलने से रुक सकती है.. और ना ही आरज़ू उसकी आधी छोडी गयी बात को पूरा सुने बिना मान'ने वाली है... लड़कियाँ होती ही ऐसी हैं... फिर भी वह चुप बैठी रही..
" बता ना.. क्या कह रही थी तू.. मुझे तेरी ये आदत बिल्कुल अच्छि नही लगती.. शुरू की है तो पूरी बात कह.. मुझे बुरा लगे या अच्च्छा.. चल बोल..." आरज़ू से रहा ना गया...
" कुच्छ नही.. मैं कह रही थी.. खिड़कियाँ भी नही खुलती इस बस की तो.. तुम्हे गर्मी नही लग रही..." सोनिया ने बात को जान बूझ कर खा लिया...
" झूठी.. तू लड़कों के बारे में कुच्छ बोल रही थी.. मुझे पता है.. और वैसे भी एसी बस में गर्मी लग ही नही सकती.. वो भी रात के टाइम... जल्दी बता क्या बोल रही थी.. मेरा दिमाग़ गरम ना कर..." आरज़ू ने सोनिया को प्यार से झिड़का.. शायद ये तरकीब काम कर जाए...
" अरे यार.. तू ये नही कह रही थी की मुझे तो लड़के वैसे भी अच्छे नही लगते.. बस इसी बात पर... मैं कहने वाली थी की हम जैसी जवान लड़कियों को लड़के पसंद नही आएँगे तो क्या पसंद आएगा.. बस मज़ाक में.. अपने उपर मत ले जाना बात को....
" तू भी ना... धात!" कहकर आरज़ू शर्मा गयी...

" इसमें ग़लत बात क्या है? सही तो कह रही है ये..." अमित आगे वाली सीट पर सिर टिकाए ध्यान से उन्न दोनो की बात ध्यान से सुन रहा था... अचानक बीच में टपाक पड़ा..
अमित की बात सुनकर दोनो सीट से उच्छल सी पड़ी.. तुरंत ही आरज़ू ने संभालते हुए अमित पर ही मोर्चा खोल दिया.. पर हौले हौले," ये ईडियट हमारी बात सुन रहा है..!"
"मैं तो जनम जात ईडियट हूँ जी... सीखा दो ना 'कुच्छ' मुझे भी..." कहकर अमित खिलखिला उठा... दोनो लड़कियाँ झेंप गयी...
" तू भी यार.. जहाँ देखो शुरू हो जाता है.. आराम से नही बैठ सकता क्या..?" मनु ने उसको डांटा.. वो उसके साथ ही बैठा अपनी वाणी को देख रहा था.. वो भी रह रह कर सबसे नज़रें बचाकर उसकी और देख लेती... और अपनी हसीन स्माइल पास कर देती.. मनु की और...
" मैने क्या कहा है.. अब ये मुझे ईडियट कह रही है तो इसको ज़रूर 'कुच्छ कुच्छ' आता होगा.. मैने तो यही बोला है की...." अमित भी एक नंबर. का बेशर्म था...
" चुप कर यार.. तू सारे टूर का मज़ा खराब करेगा..." मनु ने उसको बीच में ही टोक दिया...
" तुझे मज़े लेने आते भी हैं... उल्लू की तरह देखते रहना बस उसकी और.... मुझे तो डर है की.. वो कहीं तुझे 'वो' ना समझ ले.." अमित ने जान बूझ कर ये बात मनु के साथ साथ उन्न दोनो को भी सुना दी.. और फिर से हँसने लगा...
" चुप हो जा यार.. तेरे हाथ जोड़ता हूँ.. !" मनु ने आख़िरकार हार मान ही ली...
" देख ये भी तो लड़का है... कितनी शराफ़त से बात कर रहा है.. मुझे तो ऐसे ही लड़के पसंद हैं...." आरज़ू ने कनखियों से मनु की और देखा...
" इसकी शराफ़त का तो तब पता लगेगा.. जब तुम्हारे गाँव में बारात आएगी इसकी... 'शराफ़त से बात कर रहा है..'" अमित ने आरज़ू की नकल उतारते हुए कहा...," और हां.. मैं भी आऊंगा.. बारात में.. चेहरा देख लो.. अच्छि तरह...!"
" देख लिया.. बंदर जैसा है.." आरज़ू ने हौले से पिछे बात सुनाई और सोनिया और वो दोनो खिलखिला कर हंस पड़ी...
" हां.. बंदर से याद आया.. एक बार एक बंदर ने कुतिया से प्यार कर लिया.. पता है क्या पैदा हुआ?" अमित ने कहा तो मनु ने अपने दोनो हाथों से अपना मुँह जाकड़ लिया.. नही जकड़ता तो ऐसा ठहाका गूँजता की सारी बस में तमाशा बन जाता.. और फिर जवाब देना भी मुश्किल हो जाता की हंसा तो हंसा किस बात पर...
" बदतमीज़!" आरज़ू ने अपने चेहरे से निकालने वाली हँसी को जैसे तैसे अपने आप पर काबू करके गाली की शकल दे दी.. पर सोनिया अपने आप को हँसने से ना रोक सकी.. उसने पिछे मुड़कर अपने मुँह को हाथों में दबोचे मनु की और देखा.. उसको उसकी बड़ी दया आई..
मनु और सोनिया की नज़रें मिलनी थी और वाणी का पिछे देखना हो गया.. दोनो की आँखों में.. बुल्की चारों की आँखों में हँसी की झलक पाते ही वाणी तिलमिला उठी....




साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
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`·.¸.·´ -- raj














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