गर्ल्स स्कूल--42
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा पार्ट 42 लेकर हाजिर हूँ अब आप कहानी का मज़ा लीजिए
विकी ने फोन काट-ते ही शमशेर को फोन लगाया," कहाँ हो भाई? कितने दिन से आपका फोन नही लग रहा..." विकी की आवाज़ में बेचैनी सी थी...
"मैं आउट ऑफ स्टेट हूँ यार.. और मेरा सेल गुम हो गया था.. आज ही नंबर. चालू करवाया है.. दूसरा सेल लेकर.. क्या बात है..?"
"मुझे तुझसे मिलना था यार.. कब तक आ रहे हो वापस..?"
"मुझे तो अभी कम से कम 8-10 दिन और लग जाएँगे.. तू बात तो बता..!" शमशेर ने कहा..
"बात ऐसे बताने की नही है.. मिलकर ही बतानी थी.. बहुत टाइम लग जाएगा... तू बता ना.. कहाँ है? मैं वहीं आ जाता हूँ..."
"ऊटी!... आजा!" शमशेर ने मुस्कुराते हुए कहा....
"भाभी जी साथ ही हैं क्या?"
"ना.. वो तो गाँव में है.. !"
"चल छ्चोड़.. मैं कुच्छ और देखता हूँ... अच्च्छा!"
"अरे तू बता तो सही.. मैं फिलहाल बिल्कुल फ्री हूँ..." शमशेर ने गाड़ी सड़क किनारे रोक ली... उस वक़्त वो अकेला ही था..
"अच्च्छा सुन.. पर लेक्चर मत देना.. बस कुच्छ मदद कर सको तो..."
"अबे तू बोल ना यार.. बोल!"
विकी ने शुरू से आख़िर तक की सारी रामायण सुना दी.. इस दौरान शमशेर कयि बार चौंका.. केयी बार मुस्कुराया और केयी बार कहीं और ही खो जाता.. जब विकी की बात बंद हो गयी तो शमशेर बोला," तू भी ना यार.. पूरा घंचक्कर है.. वो तो तेरी किस्मत साथ देती चली गयी.. वरना.. खैर अब प्राब्लम क्या है?"
"प्राब्लम ये है कि उसको मुझसे प्यार हो गया है.. मुझसे अलग होने को तैयार ही नही है.. कह रही है मर जाएगी..." विकी ने बेचारा सा मुँह बनाया..
विकी की इश्स बात पर शमशेर ज़ोर से हंसा.. ," आख़िर फँस ही गया तू भी..!"
"तुझे पता है यार.. ये 'प्यार व्यार' मेरी समझ से बाहर की बात है.. पर जब तक मुरारी से सौदा नही होता.. तब तक तो इसको ढोना ही पड़ेगा...." विकी ने अपने दिल की बात कही..
"तो उसके बाद क्या करेगा?" शमशेर ने लंबी साँस ली..
"उसके बाद मैने क्या करना है.. वो मुझे मोहन के नाम से जानती है.. एक बार मल्टिपलेक्स मिल गया तो दोनो बाप बेटी कितना ही रो लें.. मेरी सेहत पर कोई असर नही पड़ेगा.. मेरे पास इश्स बात का सॉलिड प्रूफ है की उस दौरान में आउट ऑफ कंट्री था....."
शमशेर ने उसको बीच में ही टोक दिया..," वो सब तो सही है.. मैं पूच्छ रहा हूँ स्नेहा का... उसका क्या करेगा?"
"वो मेरी टेन्षन नही है यार... उसके बाद वो भाड़ में जाए.. तब तक बता ना.. क्या करूँ?"
"देख मुझे पता है.. तू किसी की सुनेगा तो है नही.. पर सब ग़लत है.. किसी के दिल पर चोट नही करनी चाहिए.. तूने वादा किया है उसको..!" शमशेर उसकी बात से आहत था..
"यार.. तू सिर्फ़ मुझे ये बता की तब तक मैं इसका क्या करूँ?" विकी ने सारी बातें गोलमोल कर दी...
"घुमा ला कहीं.. ऊटी लेकर आजा.. फिर साथ ही चल पड़ेंगे.." शमशेर ने राई दी..
"यही तो नही हो सकता यार.. आगे का सारा काम मुझे ही करना है अब ... किसी तरह इस-से पीछा छुड़ाओ यार.."
"मैं क्या बताऊं..? या फिर लोहरू छ्चोड़ दे.. वाणी उसको अपने आप सेट कर लेगी.. पर बाद में लोचा हो सकता है.. अगर तूने उसको छ्चोड़ दिया तो.. उसके बाप के पास!"
"ग्रेट आइडिया बॉस.. गाँव में तो कोई शक करेगा ही नही... और उसका दिल भी लग जाएगा.. वाणी और दिशा के पास... तू बाद की फिकर छ्चोड़ दे.. मुझे पता है मुझे क्या करना है... वो कभी वापस नही जाएगी.. मैं एक तीर से दो शिकार करूँगा...!" विकी स्नेहा का भी शिकार ही करना चाहता था.. काम पूरा होने के बाद...
"ठीक है.. जैसा तू ठीक समझे. मैं दिशा को समझा दूँगा.. तू बेशक आज ही उसको वहाँ छ्चोड़ दे...."
"थॅंक यू बॉस! मुझे यकीन है.. स्नेहा वहाँ से वापस मेरे साथ आने की ज़िद नही करेगी.. मैं उसको समझा दूँगा.. और हां.. टफ से तुझे ही बात करनी पड़ेगी.. ये पोलीस वालों का कुच्छ भरोसा नही होता..."
"ओके, मैं कर लूँगा...." शमशेर हँसने लगा और फोन काट दिया....
"रिया.. यार अब मैं क्या करूँ? तूने तो मेरी ऐसी की तैसी करा दी..!" प्रिया ने राज के ना आने का सारा दोष रिया पर मढ़ दिया..
"क्यूँ? मैने ऐसा क्या किया?" रिया ने हैरान होते हुए पूछा... दोनो पहली मंज़िल पर पिछे की और बने अपने कमरे में पढ़ रही थी..
"मैने ऐसा क्या कर दिया..!" प्रिया ने मुँह बनाकर रिया की नकल की..," तूने ही तो उस ईडियट को फाइल दी थी.. लेते वक़्त तो इतना शरीफ बन रहा था... अब कल 'सर' को क्या तेरा तोबड़ा (फेस) दिखाउन्गि कल..."
"दिखा देना! क्या कमी है... सर दिल दे बैठेंगे.. बुढ़ापे में.. जान दे बैठेंगे अपनी" रिया ने चुलबुलेपन से कहा..
"तू है ना.. बिगड़ती जा रही है... मम्मी को बोलना पड़ेगा.." प्रिया ने रिया को प्यार से झिड़का..
" बोल दे.. वो भी तो कहती हैं.. 'कितनी क्यूट है तू!' रिया ने स्टाइल से अपने लूंबे बलों को पिछे की और झटका दिया...
"ज़्यादा मत बन.. शकल देखी है आईने में कभी...?" प्रिया अपनी किताब को बंद करते हुए बोली....
"हां.. देखी है.. बिल्कुल तेरे जैसी है.. अब बोल" रिया ने भी अपनी किताब बंद कर दी और हँसने लगी...
"तू यार.. ज़्यादा फालतू बातें मत कर... बता ना.. अब मैं क्या करूँ?" प्रिया ने मतलब की बात पर आते हुए बोला...
"यहीं.. खिड़की के पास चिपका बैठा होगा... छत से माँग ले..." रिया ने शरारती मुस्कान फैंकते हुए कहा..
" तू जाकर माँग ले ना.. बड़ी हिम्मत वाली बन'ती है.. छत से माँग लून.. वो भी रात के 9:00 बजे.. पिच्छली बात भूल गयी क्या..?"
रिया एक पल को अतीत में चली गयी...," मुझे उस लड़के की बड़ी दया आई थी.. पापा ने सही नही किया प्रिया..."
"सही नही किया तो कुच्छ खास ग़लत भी नही था.. दिन में हमारे घर के इतने चक्कर लगाता था.. पागल था वो..." प्रिया ने अपना नज़रिया उसको बताया..
" गली में ही घूमता था ना.. हमें कुच्छ कहा तो नही था.. इतना मारने की क्या ज़रूरत तही.. वैसे समझा देते.. देख भाई.. मुझे तो बहुत बुरा लगा था.. उस रात खाना भी नही खा सकी थी.. बेचारे के चेहरे पर कैसे निशान पड़ गये थे..." रिया का मूड ही ऑफ हो गया...
उस दिन को याद करके प्रिया भी सिहर उठी... कोई काला सा लड़का था.. उनकी ही उम्र का.. गली में लगभग हर एक को यकीन हो गया था कि इसका थानेदार की बेटियों के साथ कुच्छ ना कुच्छ चक्कर तो ज़रूर है.. इन्न दोनो की भी आदत सी हो गयी थी.. उसको खिड़की से आते जाते उनकी और चेहरा उठाकर देखते हुए देखना और फिर उसका मज़ाक बना कर खूब हँसना... उस दिन पापा ने उस्स्को खिड़की में से झाँकते देख लिया था.. लड़का मुस्कुराता हुआ आगे बढ़ गया.. पर उसकी किस्मत खराब थी.. पापा लगभग भागते हुए उसके पिछे गये थे और उसको घसीट'ते हुए घर के सामने ला पटका... सारी कॉलोनी के लोग बाहर निकल आए.. पर कोई कुच्छ नही बोला तहा.. सब चुपचाप खड़े तमाशा देखते रहे.. उनके पापा ने उसको मार मार कर अधमरा कर दिया था.. बाद में पोलीस जीप उसको ले गयी थी.. दोनो लड़कियाँ अपने दिल पर हाथ रखकर खिड़की से सब कुच्छ देख रही थी... वो दिन था और आज का दिन.. लड़कियाँ कभी भी पैदल स्कूल नही गयी... पोलीस की जीप ही उनको लाती ले जाती थी.....
"कहाँ खो गयी प्रिया...!" रिया ने उसके चेहरे के सामने हाथ हिलाया...
"कहीं नही यार.. सच में; पापा ने सही नही किया था.. मारना नही चाहिए था उसको..." प्रिया ने चेर से उठहते हुए कहा...
"कहाँ जा रही हो..?" रिया ने कमरे से बाहर निकल रही प्रिया को आवाज़ लगाई....
"अभी आती हूँ.. ठंडा पानी ले आऊँ.. नीचे से..." प्रिया ने अगले रूम में जाकर खिड़की से बाहर की और झाँका.. राज खिड़की के सामने ही बेड पर बैठा हुआ पढ़ रहा था.. उसको देखकर प्रिया को जाने क्यूँ.. शांति सी मिली! कुच्छ देर वह यूँही खड़ी रही.. करीब 1 मिनिट बाद ही राज ने चेहरा खिड़की की और उपर उठाया.. और खिड़की में खड़ी प्रिया को देखकर खिल सा गया.. प्रिया उसके बाद वहाँ एक पल के लिए भी ना रुकी.. नीचे भाग गयी.. पता नही क्यूँ?
"ए... रिया.. वो तो खिड़की के पास ही बैठा हुआ है..!"
"अच्च्छा.. उसको ही देखने गयी थी.. मैं सब समझती हूँ डार्लिंग.." रिया खिलखिलाकर हंस पड़ी...
" नही यार.. बाइ गॉड.. मैं पानी लेने ही गयी थी.. वो तो बस ऐसे ही दिख गया...." फिर कुच्छ हिचकिचाते हुए बोली," इधर ही देख रहा था..."
"ये कोई नयी बात है.. मुझे तो वो हमेशा इधर ही सिर उठाए मिलता है..." रिया ने बत्तीसी निकालते हुए कहा...
"तो इसका मतलब तू भी उसको देखती रहती होगी.. है ना.." प्रिया ने उसकी और उत्सुकता से देखा.. राज के बारे में बात करते हुए उसके दिल को अजीब सी तसल्ली मिल रही थी...
"मैं क्यूँ देखूं.. भला उस बंदर को.. मुझे भी ऐसे ही दिख जाता है.. जैसे आज तुझे दिख गया..." रिया बेड पर आकर पालती मारकर बैठ गयी...
"हूंम्म.. बंदर.. तुझे वो बंदर दिखता है.. कितना स्मार्ट तो है.. और कितना इंटेलिजेंट भी.." प्रिया अपने आपको रोक ना पाई..
"देखा.. मैं कह रही थी.. ना.. कुच्छ तो बात ज़रूर है.. मैने तुम्हारे मॅन की बात जान'ने के लिए ही ऐसा कहा था.."
प्रिया ने तकिया उठाकर उसके सिर पर दे मारा..," ज़्यादा डीटेक्टिव मत बन.. मुझे उस'से क्या मतलब.. पर सच तो कहना ही पड़ेगा ना.."
" सबके बाय्फरेंड्स हैं प्रिया.. हमारा क्यूँ नही... कितना मज़ा आता ना अगर कोई होता तो..?" रिया ने ये बात पुर दिल से कही थी.. इसमें कोई शरारत नही थी.. प्रिया भी समझ गयी...
" आचार डालना है क्या?... बाय्फ्रेंड का.. मुझे तो कोई अच्च्छा नही लगता.. सब के सब एक जैसे होते हैं... श्रुति का पता है तुझे.. उसको उसका बाय्फ्रेंड बहलाकर अपने कमरे पर ले गया...." दरवाजा बंद करके वापस आई प्रिया अचानक चुप हो गयी...
"फिर क्या हुआ... बता ना..?" रिया आँखें फाड़ कर उसको देखने लगी... पहली बार प्रिया ने उसके सामने इस तरह की बात की थी...
"होना क्या था... बेचारी रोती हुई वापस आई थी..." प्रिया बीच की बात खा गयी.....
"क्यूँ... तुझे कैसे पता..... बता ना प्लीज़..." रिया उसका हाथ पकड़ कर सहलाने लगी....
"उसी ने बताया था... क्यूँ का मुझे नही पता... अब इश्स टॉपिक को बंद कर... पढ़ ले..." कहकर प्रिया ने किताब उठा ली...
कुच्छ देर दोनो में कोई बात नही हुई.. फिर अचानक खुद प्रिया ही बोल पड़ी.. जाने उस पर आज कैसी मस्ती च्छाई हुई थी," किसी को बताएगी नही ना...?"
"प्रोमिस.. बिल्कुल नही बताउन्गि.." रिया का चेहरा खिल उठा... उस उमर में ऐसी बातें किस को अच्छि नही लगती...
"उसने उसके साथ ज़बरदस्ती.. 'वो' कर दिया..." प्रिया ने बोल ही दिया.. रिया को भी यही सुन'ने की उम्मीद थी...
" वो क्या? मैं समझी नही..." रिया कुरेदने लगी....
" अच्च्छा.. इतना भी नही समझती.. जो शादी के बाद करते हैं..." इतनी सी बात कहने से ही प्रिया का चेहरा लाल हो गया था..
"ऊऊऊऊऊ.." रिया ने अपने चेहरे पर आई लालिमा को अपने हाथ से ढक लिया...,"रेप कर दिया?"
"श्ष.... पापा आ गये होंगे.. धीरे बोल.." प्रिया ने अपने मुँह पर उंगली रखकर उसको धीरे बोलने का इशारा किया....
"पर.. वो रोती हुई क्यूँ आई.. मैने तो सुना है की बड़े मज़े आते हैं... पायल बता रही थी... उसने भी किया था... एक बार!" रिया ने धीरे धीरे बोलते हुए कहा...
अंजाने में ही पालती मारकर बैठी प्रिया का हाथ उसके जांघों के बीच पहुँच गया.. और 'वहाँ' दबाव सा बनाने लगा... उसको ऐसा लगा जैसे उसका पेशाब निकलने वाला है...," सुना तो मैने भी है.. पर उसने ज़बरदस्ती की थी.. शायद इसीलिए... मैं बाथरूम जाकर आती हूँ..." कहकर प्रिया उठकर बाथरूम में चली गयी..
वापस आई तो उसके माथे पर पसीना झलक रहा था.. तृप्त होकर भी वह और 'प्यासी' होकर आई थी.. रिया ने अंदाज़ा लगा लिया.. पर बोली कुच्छ नही...
"एक बात बताऊं प्रिया.. अगर किसी से ना कहो तो..?"
" हां बोलो..." प्रिया आज पूरे सुरूर में थी..
" नही.. पहले प्रोमिसे करो...!"
"प्रोमिस किया ना.. बोल तो सही..." प्रिया ने जान'ने के लिए दबाव बनाया...
"मुझे..... वीरेंदर बहुत अच्च्छा लगता है...?" एक बात कहने के लिए रिया को दो बार साँस लेनी पड़ी...
"व्हाट..? और तूने आज तक नही बताया.. कभी बात भी हुई है क्या?" प्रिया को सुनकर बड़ी खुशी हुई.. अब वह भी अपने दिल का राज बता सकती थी...
" कहाँ यार.. बात क्या खाक होंगी.. वो तो सिर उठाकर भी नही देखता किसी की और.. और लड़कियों से तो वो बात ही तभी करता है जब उसको लड़ाई करनी हो....... इसीलिए तो अच्च्छा लगता है.." रिया अपने दिल में करीब एक साल से छिपाइ हुई बात को अपनी बेहन के साथ शेअर करके राहत महसूस कर रही थी.. उसके चेहरे पर सुकून सा था...
"हां यार.. ये तो सच है.. सभी लड़कियाँ उस'से बात करते हुए डरती हैं... बाइ दा वे.. तुम्हारी चाय्स बहुत अच्छि है.. पर इश्स खावहिस को दिल में ही रखना.. पापा का पता है ना...." प्रिया ने बिन माँगे सलाह दे डाली...
रिया मायूस सी हो गयी...," तुम बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई अच्च्छा नही लगता..? सच बताना..."
"पता नही...." कहते हुए प्रिया लजा सी गयी.. उसके गुलाबी होंठ अपने आप तर हो गये.. और आँखों में एक अजीब सी चमक उभर आई.....
"ये तो चीटिंग है.. पता नही का क्या मतलब है.. बताओ ना...!" रिया ने उसके कंधे पकड़कर उसको ज़ोर से हिला दिया...
"अब दो दिन में मुझे क्या पता.. आगे क्या होगा.. अगर इसी तरह फाइल माँग माँग कर गायब होता रहा तो मेरी नही बन'ने वाली.." प्रिया ने मुस्कुराते हुए रिया को अपनी बाहों में भर लिया.. छातियो के आपस में टकराने से दिल के अरमान जाग उठे...
"ओह माइ गॉड! इट्स राज.. मैं जानती थी.. वो बिल्कुल तुम्हारे टाइप का है प्रिया.. झेंपू सा.. हे हे हे..!" रिया उस'से अलग होते हुए बोली...," अगर तुम्हारी फाइल अभी मिल जाए.. तो तुम उस'से नाराज़ नही होवॉगी ना...!"
"अभी?.... कैसे...?" वो मेरा काम है.. पर शर्त ये है की कल स्कूल में तुम खुद उस'से बात करोगी... बोलो मंजूर है.." प्रिया की हन से ही तो रिया के रास्ते खुलने तहे.. राज के मद्धयम से वह वीरेंदर के दिल तक जा सकती थी...
"पर बताओ तो कैसे..? आज फाइल कैसे मिल सकती है...?"
"वो मुझ पर छ्चोड़ दो.. तुम सिर्फ़ हां बोलो"
"हां" प्रिया ने बिना सोचे समझे तपाक से हां बोल दिया... आख़िर उसको भी तो बहाना मिल रहा था... 'शर्त' के बहाने तीर चलाने का...
"बस एक मिनिट..!" रिया एक दम से उठकर गयी और एक कॉपी और पेन उठा लाई..
"इसका क्या करोगी...?" प्रिया ने हैरान होते हुए पूचछा..
"तुम अब बोलो मत.. मेरा कमाल देखो.." और रिया लिखने लगी...
"हाई राज!
आप जो फाइल लेकर गये थे.. मुझे उसकी सख़्त ज़रूरत है... वो मुझे चाहिए.. तुम आज स्कूल भी नही आए.. सारा दिन तुम्हारी राह देखती रही... प्लीज़ उसको गेट के नीचे से अंदर सरका देना.. मैं उठा लूँगी...
आज स्कूल क्यूँ नही आए.. कल तो आओगे ना...
तुम्हारी दोस्त,
प्रिया!"
"हे.. तुमने मेरा नाम क्यूँ लिखा.. अपना लिखो ना.. और इसका करोगी क्या अब..?" प्रिया का दिल जोरों से धक धक कर रहा था.. किसी अनहोनी की आशंका से...
"डोंट वरी डार्लिंग.. बस मेरा कमाल देखती जाओ... एक बार पापा को देख आओ.. सो गये या नही......
प्रिया नीचे जाकर आई...," पापा तो आज आए ही नही.. मम्मी कह रही थी.. आज थाने में ही रहेंगे.. वो मुरारी पकड़ा गया है ना..."
"श.. थॅंक्स मुरारी जी! अब कोई डर नही.." रिया खुशी से उच्छल पड़ी....," तुम भी आ रही हो क्या? खिड़की तक..."
"ना.. मुझे तो डर लग रहा है.. तुम्ही जाओ..." प्रिया का दिल गदगद हो उठा था.. कम से कम बेहन से तो अब वो दिल की बात कर सकती है...
रिया करीब 2 मिनिट खिड़की के पास खड़ी रही.. जैसे ही राज ने उसकी और देखा.. रिया ने अपना हाथ हिला दिया..
राज का तो बंद ही बज गया.. उसको अपनी आँखों पर विस्वास ही नही हुआ.. आँखें फाड़ कर खिड़की की और देखने लगा...
रिया वापस छत पर गयी.. एक पत्थर ढूँढा और कागज को उसपर लपेट दिया.. राज को सिर्फ़ रिया दिखाई दे रही थी जिसको वो प्रिया समझ रहा था.. उसके हाथ में पकड़ी चीज़ उसको नज़र नही आई...
रिया ने खिड़की से हाथ बाहर निकाला और निशाना लगाकर दे मारा.. इसके साथ ही वो पिछे हट गयी..
किस्मत का ही खेल कहेंगे.. हवा में फैंकने के साथ ही पत्थर पर लिपटा कागज हवा में ही रह गया और पत्थर जाकर राज वाली खिड़की से जा टकराया...
रिया उपर भाग गयी....
"ओये वीरू.. देख.. प्रिया ने पत्थर फैंका..." राज खुशी से नाच उठा..
"क्यूँ? तेरा सिर फोड़ना चाहती है क्या वो..? तू पागल हो गया है बेटा.. ये तुझे कहीं का नही छ्चोड़ेंगी.. पिच्छली बार टॉप किया है ना.. लगता है अगली बार ड्रॉप करेगा.. चुप चाप पढ़ ले.. तुझे लड़कियों की फ़ितरत का नही पता.. बहुत भोला है..!" वीरू ने फिर से किताब में ध्यान लगा लिया...
"यार, तू तो हमेशा ऐसी बात करता है जैसे दिल पर बहुत से जखम खाए बैठा हो.. इतना भी नही समझता.. वो मुझे परेशान कर रही है.. मतलब वो भी....." राज को वीरेंदर ने बीच में ही टोक दिया," हां हां.. वो भी.. और तू भी.. दिल के जखम तुम्हे ही मुबारक हों बेटा.. ऐसी कोई लड़की बनी ही नही जो मुझे जखम दे सके.. तुम जैसे आशिकों की हालत देखकर ही संभाल गया हूँ.. मैं तो...
राज और वीरेंदर में बहस जारी थी.. उधर प्रिया रिया को 2 बार नीचे भेज चुकी थी.. फाइल देखकर आने के लिए.. एक बार खुद भी आई थी.. पर हर बार राज उन्हे वहीं बैठा मिला.. उसका ध्यान अब भी बार बार खिड़की पर लगा हुआ था..
"ओहो यार.. एक ग़लती हो गयी.. हमने ये लिख दिया की कल तो आओगे ना.. कहीं उसने ये तो नही समझा की अगर कल ना आए तो रखनी है..." रिया ने आइडिया लगाया..
"हां.. मुझे भी यही लगता है.. नही तो अब तक तो रख ही देता.." प्रिया ने भी सुर में सुर मिलाया...
"ठहर.. एक और कागज खराब करना पड़ेगा.. डोंट वरी.. मोहब्बत और जुंग में सब जायज़ है.. हे हे.." और रिया उठकर एक बार फिर से कॉपी और पेन उठा लाई... आज उसकी आँखों में नींद थी ही नही... नही तो कब की लुढ़क चुकी होती...
"राज!
यार मुझे बहुत...."
"आ.. यार काट दे.. दोबारा लिख..." प्रिया ने कहा...
"ओक.. नो प्राब्लम.." रिया ने फिर से लिखना शुरू किया...
"राज!
अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....
आइ आम वेटिंग
तुम्हारी दोस्त
प्रिया
"पर यार.. तू समझता क्यूँ नही है.. वो ऐसी नही है.. बाकी लड़कियों की तरह... कितनी प्यारी है..!" राज वीरेंदर को किसी भी तरह से सहमत कर लेना चाहता था.. इश्स तनका झाँकी को दोस्ती के रास्ते पर ले जाने के लिए.. ," कुच्छ भी हो जाए.. मैं कल उस'से बात करके रहूँगा.. देख लेना!"
"उस दिन तो तेरी फट रही थी.. फाइल माँगते हुए.. कल कौनसा तीर मारेगा..? फिर कह रहा हूँ.. ये ......"
"ओये.. फिर आ गयी.. लगता है अब फिर पत्थर उठा कर लाई है... आज तो मेरा काम करके रहेगी.." अब की बार राज ने भी खिड़की की ओर हाथ हिला दिया.. बहुत ही खुस था वो...
अब की बार पत्थर सीधा उनके कमरे के अंदर आया.. शुक्रा था राज चौकन्ना था.. वरना सिर पर ही लगता..," अरे.. इससपर तो कागज लिपटा हुआ है.."
"उठा ले.. आ गया लव लेटर.. तेरे लिए... हो गयी तमन्ना पूरी.. अब तू गया काम से...." वीरू ने पत्थर पर लिपटे कागज को गौर से देखा...
तब तक राज कागज को पत्थर समेत लपक चुका था.. जैसे ही उसने कागज को खोला.. उसका दिल धड़क उठा... ये तो कमाल ही हो गया.. उसने तो सीधे सीधे घर पर ही बुला लिया था.. वो भी अभी.. रात को.. ओह माइ गॉड! मुझे नही पता था की 'वो' ऐसी लड़की है.. राज मॅन ही मॅन सोच रहा था...
"क्या हुआ..? ऐसा क्या लिखा है उसने..? कहाँ खो गया?" वीरेंदर ने उत्सुकता से पूचछा...
"क्कुच्छ नही.. ऐसे ही.. ये तो वैसे ही है.. कुच्छ पुराना लिखा हुआ है..!" राज उसको उलट पुलट कर देखने का नाटक करते हुए बोला...
"फिर उसको बीमारी क्या है..? कल स्कूल में देखता हूँ..." वीरेंदर को उसकी बात पर विस्वास हो गया था..
"क्यूँ तुझे क्या प्राब्लम है..? मदद नही कर स्सकता तो कम से कम रोड़ा तो मत बन.." राज ने वीरेंदर को बोला...
"ठीक है बेटा.. ये गधे के दिन सबके आते हैं.. तेरे भी आ गये.. पर रोड़ा मैं नही.. वो रोड़ा फैंकने वाली बन रही है... 2 घंटे से देख रहा हूँ.. तू किताब के उसी पेज को खोले बैठा है....
"तू तो बुरा मान गया यार.. मेरा ये मतलब नही था.. चल ठीक है.. मैं थोड़ा बाहर घूम आता हूँ.. माइंड फ्रेश हो जाएगा.. उसके बाद पढ़ता हूँ..." राज ने बेड से उठहते हुए कहा...
"माइंड फ्रेश तो ठीक है.. पर ये रात को कंघी.. ये क्या चक्कर है..?" वीरू ने उसको घूरते हुए पूचछा....
"थोडा आगे तक जाकर अवँगा.. कोल्डद्रिंक्स भी ले आता हूँ.." शर्ट डालते हुए राज वीरेंदर की और मुस्कुराया....
"चल ठीक है.. दूध भी ले आना.. जल्दी आना.." वीरेंदर को उसकी बात से तसल्ली हो गयी...
"तू कितना प्यारा है यार..? दिल करता है तेरी चुम्मि ले लूँ.. हे हे हे.." राज ने मज़ाक में कहा तो वीरेंदर खिल खिलाकर हंस पड़ा," अब मक्खानबाज़ी मत कर.. जल्दी आना.. सच में यार.. तूने तो पढ़ना ही छ्चोड़ दिया है..."
"डोंट वरी भाई.. मैं सब संभाल लूँगा.." कहकर राज कमरे से बाहर निकल गया...
"ए प्रिया.. वो अब वहाँ नही है.. तेरी फाइल आने ही वाली है.. कल के लिए तैयार हो जाना.. याद है ना.. क्या शर्त थी..." रिया उपर जाकर चहकते हुए प्रिया से बोली...
"हाँ हाँ.. सब याद है.. खाँमखा प्रोमिस कर दिया.. छ्होटी सी बात के लिए.. ये तो मैं ही ना कर देती..." प्रिया मुस्कुराइ... वो बहुत खुश लग रही थी....
रूम से बाहर निकल कर राज ने 'वो' कागज निकाल लिया जिसमें प्रिया ने उसको अपने पास आने का निमंत्रण भेजा था.. वो भी अभी.. रात को... राज के लिए सब कुच्छ सपने जैसा था.. ऐसा सपना जिसमें कोई ना कोई तो 'कड़ी' थी ही.. जो बीच से टूटी हुई थी.. और वहीं पर राज का दिमाग़ अटका हुआ था..
'अगर वो शरीफ लड़की है तो मुझे क्या किसी को भी यूँ बुला नही सकती.. और फिर मेरी और उसकी जान पहचान ही क्या है.. सिर्फ़ 'फाइल' ही तो माँगी थी..' उधेड़बुन में फँसे राज ने वो कागज का टुकड़ा.. एक बार फिर निकाल लिया और दोबारा पढ़ने लगा...
"राज!
अभी आ जाओ ना प्लीज़.. बहुत ज़रूरी है.. मैं रिया को नीचे भेज रही हूँ.....
आइ आम वेटिंग
तुम्हारी दोस्त
प्रिया
'कमाल है.. इसमें ना तो कोई काम ही लिखा हुआ है.. और ना ही कोई वजह बताई गयी है.. फिर वो मेरा इंतजार कर किसलिए रही है.. क्या उसको किसी ने बता दिया है की मैं उसपर मरता हूँ... नही! ये कैसे हो सकता है..? वीरेंदर के अलावा कोई ये बात जानता ही नही.. फिर?????' राज का दिमाग़ चकरा रहा था पर दिल उच्छल रहा था.. दिमाग़ उसको धैर्या रखने को कह रहा था तो दिल कुच्छ कर गुजरने को बावला हुआ जा रहा था...
'क्या किया जाए?' अपने मकान के दरवाजे पर खड़ा होकर राज प्रिया के घर की छत को निहारने लगा... वहाँ काफ़ी अंधेरा था.. इसीलिए वह किसी को भी खड़ा दिखाई नही दे सकता था... प्रिया के घर दरवाजे से अंदर घुसना तो लगभग असंभव ही था.. पर साथ सटे हुए घर की सीढ़हियाँ उसके आँगन से शुरू होकर छत तक जाती थी.. पर उस घर के आँगन में लाइट जल रही थी.. दीवार फांदकर घुसना ख़तरनाक हो सकता था.. 'नही.. नही जा सकता' ऐसा सोचकर राज ने कागज के टुकड़े टुकड़े करके वही फैंक दिया और कोल्डद्रिंक लाने के लिए चल दिया.. एक लंबी गहरी साँस छ्चोड़कर....
हालाँकि राज ने ना जाने का पूरा मॅन बना लिया था.. पर फिर भी जाने क्यूँ वा बार बार पिछे मुड़कर देख रहा था.. छत तक जाने का रास्ता...
कहते हैं.. 'जहाँ चाह; वहाँ राह..' और राह मिल गयी.. थोड़ा सा रिस्क ज़रूर था.. पर मोहब्बत में रिस्क कहाँ नही होता...
साथ वाले घर से आगे निकलते हुए राज को उस घर की चारदीवारी के साथ खाली प्लॉट में एक भैंसा दिखाई दिया.. वो बैठा हुआ मस्ती से जुगली कर रहा था.. उसको क्या पता था की वो आज रात को दो प्यार करने वालों के बीच की 'दीवार' लाँघने का साधन बन'ने वाला है.. उसके उपर बैठ कर राज सीधा 'ज़ीने' में कूद सकता था.. और प्रिया के साथ वाले घर की छत तक बिना किसी रुकावट के पहुँचा जा सकता था... यानी आधी प्राब्लम सॉल्व हो जाने थी...
"चल बेटा.. खड़ा हो जा.." राज ने उसको एक लात मारी.. और बेचारा भैंसा.. बिना किसी लाग-लपेट के खड़ा होकर दीवार के साथ लग गया...
"शाबाश.. आ हैईन्शा.." और राज उसके उपर जा बैठा...
अब तक बिल्कुल शांत खड़े भैंसे को राज की ये हरकत गंवारा नही हुई.. और लहराती हुई उसकी पूंच्छ.. राज के चेहरे पर आ टकराई..
"अफ.. साले.. गोबर चिपका दिया.. क्या जाता है तेरा.. एक मिनिट में.." और फिर एक पल भी ना गँवाए राज ने उच्छल कर अपने हाथो से 'ज़ीने' की दीवार थाम ली.. फिर लटकते हुए उसने ज़ोर लगाया और अगले ही पल वो 'ज़ीने' में था...," श..! राज का दिल कूदने के साथ ही धक धक करने लगा.. यहाँ से अब अगर वो किसी को भी दिख जाता तो बड़ी मुसीबत आ जानी थी...
साथ वाले घर में उपर कोई कमरा वग़ैरह नही था.. राज बिना देर किए फटाफट छत पार करके प्रिया के घर के साथ जा चिपका.. उसकी साँसे बुरी तरह उखड़ गयी थी.. जिस तरह और जिस हालत में वो यहाँ था.. ऐसा होना लाजिमी ही था.. अपनी धड़कनो पर काबू पाना उसके लिए मुश्किल हो रहा था...
यहाँ से उसको प्रिया और रिया के धीरे धीरे बोलने की आवाज़ें आ रही थी.. वहाँ से आगे करीब 6 फीट ऊँची दीवार को लाँघना 6 फीट के ही राज के लिए कोई मुश्किल काम ना था... राज ने कुच्छ देर ऐसे ही खड़ा रहकर अपनी साँसों को काबू में किया.. और आख़िरी दीवार भी लाँघ गया.. वहाँ से साथ वाले कमरे में ही प्रिया और रिया उसकी ही बातों में व्यस्त थी...
पर बातें सुन'ने का टाइम किसके पास था.. उसका तो 'बुलावा' आया था ना; फिर वो क्यूँ और किस बात का इंतज़ार करता.. बिना एक भी पल गँवायें राज तपाक से कमरे में घुस गया...
अपने सामने यूँ अचानक 'लुटेरों' की शकल बनाए राज को देखकर प्रिया सहम गयी.. डर के मारे उसकी तो साँस ही गले में अटक गयी.. रिया की तो चीख निकल गयी... हंगामा हो जाना था.. अगर प्रिया समय से पहले ही स्थिति भाँप कर उसके मुँह को अपने हाथ से ना दबा देती तो..
"तूमम.. यहाँ.... यहाँ क्या करने आए हो?" सहमी हुई प्रिया के गले से अटक अटक कर बात निकल रही थी...
"तुमने ही तो बुलाया था..." राज गले का थ्हूक गटक कर अपनी शर्ट की आस्तीन नीचे करते हुए बोला.. डरा हुआ वह भी था..
"भाग जाओ जल्दी.. सब मारे जाएँगे.. मम्मी जाग रही है.." प्रिया धीरे से हड़बड़ाहट में बोली...
"अजीब लोग हो तुम भी.. पहले बुलाते हो.. फिर बेइज़्ज़ती करते हो.. पता है कितना जोखिम उठा के आया था.." राज खिसिया सा गया था.." अजीब मज़ाक किया तुम दोनो ने आज मेरे साथ.." कहकर वो वापस पलटा तो अब तक चुपचाप खड़ी रिया बोल पड़ी...," नही, रूको राज... एक मिनिट.. तुम यहीं ठहरो.. मैं मम्मी को देखकर आती हूँ..." कहकर रिया कमरे से बाहर निकली और तुरंत ही वापिस पलटी," इस बेचारे का चेहरा तो धुल्वा दो..!" कहकर अपनी बत्तीसी निकाली और नीचे भाग गयी...
"क्यूँ? मेरे चेहरे को क्या हुआ.." कहते हुए राज ने अपने चेहरे को हाथ लगाया तो चिपका हुआ गोबर उसके हाथो को लग गया..," ओह्ह... वो.. भैंसे की पूंच्छ..." फिर रुक-कर अचानक इधर उधर देखने लगा....
"बाथरूम इधर है.. प्रिया उसकी शकल देखकर मुश्किल से अपनी हँसी रोक पा रही थी.. इश्स कोशिश में उसने अपने निचले होंठ को ही काट खाया था.."
"ओह्ह.. थॅंक्स.." कहकर वह बाथरूम में घुस गया....
बाहर आते ही उसने सीधा सा सवाल किया..," मुझे क्यूँ बुलाया था यहाँ..?"
"हमने?... हमने कब बुलाया था.." सामान्य होने के बाद भी प्रिया की आवाज़ नही निकल पा रही थी.. वह अभी तक एक तरफ खड़ी थी.. अपने हाथ बाँधे हुए.. और लगातार राज से नज़रें चुरा रही थी.. कभी इधर देखती.. कभी उधर.. ना खुद बैठही और ना ही राज को बैठने को कहा...
"तो?.. वो पत्थर क्यूँ मार रहे थे.. तुम.. मेरा सिर फोड़ने के लिए..?" प्रिया को हिचकिचाते देख राज 'शेर' हो गया.. खैर उसका गुस्सा जायज़ भी था.. बेचारा कितने बॉर्डर पार करके जो आया था..
"वो.. वो तो.. हमने फाइल माँगी थी.... गेट के नीचे से डालने को बोला था.. ले आए फाइल..?" प्रिया ने आख़िरी शब्द बोलते हुए एक बार राज को नज़र उठाकर देखा.. पर उसको अपनी ही और देखते पाकर तुरंत ही नज़र फिर से झुका ली...
"कब बोला था.. फाइल के लिए...? मुझे तो यहाँ आने के लिए बोला था... और वो भी अभी!" वैसे तुम रिया हो या प्रिया..?" राज तो प्रिया के लिए ही आया था........
"प्रिया..... तुम्हे कौन चाहिए..?" जाने कितनी हिम्मत जोड़ कर प्रिया ने ये व्यंग्य कर ही दिया...
"मुझे कुच्छ नही चाहिए.. बस ये बताओ.. यहाँ बुलाया क्यूँ?" राज भी अब तक सामान्य हो गया था..
"कहा नाअ..." प्रिया ने अब की बार सीधा उसकी नज़रों में झाँका था.. इसीलिए आगे बोल नही पाई...
राज भी अपने मंन की बात कह ही देना चाहता था.. और आज मौका भी था.. और मौसम भी..," एक बात बोलूं.. प्रिया.. मैने आज तक किसी लड़की से बात तक नही की है.. पर.. तुमने बुलाया तो खुद को रोक ही नही पाया.. तुम मुझे बहुत अच्छि लगती हो.. मेरा तो पढ़ना लिखना ही छ्छूट गया है.. जब से तुम्हे देखा है... कहते हुए राज हूल्का सा उसकी और बढ़ गया.. ऐसा करते ही प्रिया ने भी घबराकर अपने आपको उतना ही पीछे खींच लिया.. राज से दूर..!
"क्या बात है..? मैं तुम्हे अच्च्छा नही लगता क्या?" राज थोड़ा सा और आगे बढ़ गया...
"नही.. म्म्मेरा मतलब है.. ऐसी बात नही है.. ववो.. आने ही वाली होगी..!" प्रिया सिमट सी गयी.. अब पिछे हटने की जगह नही बची थी.. वह चाहकर भी उपर नही देख पा रही थी...
राज समझ रहा था कि अगर बुलाया है तो प्यार तो करती ही होगी.. पर बोलने से डर रही है.. 'लड़की' है ना...," मैं तुमसे प्यार करता हूँ प्रिया.. तुम्हारी वजह से इतना बड़ा रिस्क लेकर आया हूँ.. अब तुम भी बता ही दो ना.. तुम्हे मैं अच्च्छा लगता हूँ या नही.. कहते हुए राज थोड़ा और आगे सरक आया..
प्रिया कुच्छ ना बोली.. बस बचाव की मुद्रा में आ गयी.. उसको इस ख़याल से ही इतना डर लग रहा था कि कहीं राज उसको छ्छू ना ले.. कितनी नाज़ुक थी.. बेचारी.. कितनी मासूम!
"बोलती क्यूँ नही..?" राज ने आगे बढ़कर उसका हाथ पकड़ लिया.. प्रिया थर थर.. काँपने लगी....," मैं प्रिया नही हूँ... रिया हूँ.."
"ओह्ह.. पहले क्यूँ नही बताया.. सॉरी.." राज को जैसे बिजली का झटका लगा हो.. जितनी दूर पहले था.. पालक झपकते ही उस'से भी ज़्यादा दूर जाकर खड़ा हो गया..," सॉरी.. प्लीज़ किसी को मत बताना.. मैने आपसे जो कहा है.. उसकी पिटाई हो जाएगी... वो लेटर भी नही लिखा था उसने.. मैं तो ऐसे ही झूठ बोल रहा था.." राज को लगा इसको लेटर के बारे में शायद पता नही होगा...
राज की ये बातें सुनकर प्रिया मंन ही मंन उच्छल रही थी... कितनी सोचता है.. मेरे बारे में... फिर प्रत्यक्ष में रिया बनकर बोली..," मुझे सब पता है.. वो लेटर हमने मिलकर ही लिखा था.. और उसको तुम अच्छे भी बहुत लगते हो.. पर वो आसानी से ये बात स्वीकार नही करेगी.. वो तुमसे प्यार करती है.. और शायद आज के बाद तो तुम्हे कभी भूल ही नही पाएगी.."
"क्यूँ.. आज ऐसा क्या हुआ..?" राज प्रफुल्लित हो उठा..
"आज तुमने यहाँ आने का इतना बड़ा साहस किया.... तुम बहुत अच्छे हो राज.. बहुत प्यारे हो..." प्रिया एक ही साँस में कह गयी...
"पर मैं अगर उसके मुँह से ये सब सुनता तो बहुत अच्च्छा लगता..." राज ने 'प्रिया' के इंतज़ार में दरवाजे की और देखा...
"अभी तो तुम जाओ.. कल स्कूल में मैं.. मतलब मैं उसको बोल दूँगी.. वो तुमसे बात कर लेगी...."
प्रिया ने अपनी बात पूरी भी नही की थी की रिया नीचे से लगभग भागती हुई वापस आई," मम्मी.. मम्मी आ रही हैं उपर... !"
राज दरवाजे की और बढ़ा तो रिया ने वापस धकेल दिया..," बाथरूम में छिप जाओ.. उपर आ चुकी हैं मम्मी.."
असमन्झस में खड़ा राज यकायक बाहर किसी के कदमों की आहत सुनकर बाथरूम में घुस गया..
"क्या बात है.. आज सोना भी है या नही.. तुम दोनो को.. कब से उपर नीचे भागती फिर रही हो.. चलो नीचे.. चलकर सो जाओ..."
"आ रहे हैं मम्मी.. बस 5 मिनिट और.. आप चलिए..."रिया ने कहा...
"बहुत हो गये 5 मिनिट.. 12 बजने वाले हैं.. जल्दी उठकर नीचे भागो.." मम्मी ने किताबें उठाकर टेबल पर रख दी..," वो तुम्हारे कपड़े कहाँ हैं.. मशीन में डाल देती हूँ.. सुबह धोने हैं.. " कहकर वो बाथरूम की और चल दी...
"मैं देती हूँ मम्मी..." रिया झटके के साथ अपनी मम्मी से आगे बाथरूम में घुस गयी.. दोनो पसीने से भीग गयी थी...
रिया ने कपड़े लेकर चलते हुए राज की और हल्के से मुस्कुरकर देखा तो राज ने उसके नितंबों पर चिकोटी काट ली... रिया ने एकद्ूम घूर कर देखा.. पर वक़्त था नही.. हिसाब बराबर करने का.. सो बाथरूम की चितकनी बंद करते हुए बाहर निकल गयी.. उसको पता था.. वो नही करेगी तो उसकी मम्मी करेगी....
"चलो अब नीचे..!"
"आप चलिए ना मम्मी जी.. हम आ रहे हैं बस..!" प्रिया बोली...
"नही पहले तुम चलो.. 5 मिनिट की कहकर घंटा लगा देती हो.. सुना नही क्या?" मम्मी ने जब घूर कर बेड पर बैठही रिया को देखा तो उनकी हिम्मत ना हुई आगे कुच्छ बोलने की.. दोनो मम्मी के आगे आगे चल दी...
बेचारा राज! बाथरूम से निकालने का रास्ता ढूंढता रह गया....
तो दोस्तो सच मानिए बाथरूम मे मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा फँस कर रह गया वहाँ मेरा यानी राज का क्या हाल हुआ
ये जानने के लिए पार्ट 41 का इंतजार कीजिए
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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hello dosto main yaani aapka dost raj sharma paart 41 lekar haajir hun ab aap kahaani ka maja lijiye
Vicky ne fone kaat-te hi Shamsher ko fone lagaya," Kahan ho bhai? Kitne din se aapka fone nahi lag raha..." Vicky ki aawaj mein bechaini si thhi...
"main out of state hoon yaar.. aur mera cell gum ho gaya tha.. Aaj hi no. chalu karwaya hai.. Dusra cell lekar.. Kya baat hai..?"
"Mujhe tujhse milna thha yaar.. Kab tak aa rahe ho wapas..?"
"Mujhe toh abhi kum se kum 8-10 din aur lag jayenge.. Tu baat toh bata..!" Shamsher ne Kaha..
"baat aise batane ki nahi hai.. Milkar hi batani thhi.. Bahut time lag jayega... Tu bata na.. Kahan hai? Main wahin aa jata hoon..."
"ooty!... aaja!" Shamsher ne muskurate huye kaha....
"bhabhi ji sath hi hain kya?"
"na.. Wo toh gaanv mein hai.. !"
"chal chhod.. Main kuchh aur dekhta hoon... Achchha!"
"arey tu bata toh sahi.. main filhal bilkul free hoon..." Shamsher ne Gadi sadak kinare rok li... Uss waqt wo akela hi thha..
"achchha sun.. Par lecture mat dena.. Bus kuchh madad kar sako toh..."
"Abey tu bol na yaar.. Bol!"
Vicky ne shuru se aakhir tak ki sari Ramayan suna di.. Iss douran shamsher kayi baar chounka.. Kayi baar muskuraya aur kayi baar kahin aur hi kho jata.. Jab vicky ki baat band ho gayi toh Shamsher bola," Tu bhi na yaar.. Poora ghamchakkar hai.. Wo toh teri kismat sath deti chali gayi.. Warna.. Khair ab problem kya hai?"
"problem ye hai ki usko mujhse pyar ho gaya hai.. Mujhse alag hone ko taiyaar hi nahi hai.. Kah rahi hai mar jayegi..." Vicky ne bechara sa munh banaya..
Vicky ki iss baat par Shamsher jor se hansa.. ," Aakhir fans hi gaya tu bhi..!"
"tujhe pata hai yaar.. Ye 'pyar vyar' meri samajh se bahar ki baat hai.. Par jab tak Murari se souda nahi hota.. Tab tak toh isko dhhona hi padega...." vicky ne apne dil ki baat kahi..
"Toh uske baad kya karega?" Shamsher ne lumbi saans li..
"uske baad maine kya karna hai.. Wo mujhe Mohan ke naam se jaanti hai.. Ek baar Multiplex mil gaya toh dono baap beti kitna hi ro lein.. Meri sehat par koyi asar nahi padega.. Mere paas iss baat ka solid proof hai ki uss douran mein out of country thha....."
shamsher ne usko beech mein hi tok diya..," wo sab toh sahi hai.. Main poochh raha hoon Sneha ka... Uska kya karega?"
"wo meri tension nahi hai yaar... Uske baad wo bhad mein jaaye.. Tab tak bata na.. Kya karoon?"
"Dekh mujhe pata hai.. Tu kisi ki sunega toh hai nahi.. Par sab galat hai.. Kisi ke dil par chot nahi karni chahiye.. Tune wada kiya hai usko..!" Shamsher uski baat se aahat thha..
"Yaar.. Tu sirf mujhe ye bata ki tab tak main iska kya karoon?" Vicky ne sari baatein golmol kar di...
"ghuma la kahin.. Ooty lekar aaja.. Fir sath hi chal padenge.." Shamsher ne rai di..
"yahi toh nahi ho sakta yaar.. aage ka sara kaam mujhe hi karna hai ab ... Kisi tarah iss-se peechha chhudao yaar.."
"main kya bataoon..? ya fir Loharu chhod de.. Vani usko apne aap set kar legi.. Par baad mein locha ho sakta hai.. Agar tune usko chhod diya toh.. Uske baap ke paas!"
"great idea boss.. Gaanv mein toh koyi shak karega hi nahi... aur uska dil bhi lag jayega.. Vani aur disha ke paas... Tu baad ki fikar chhod de.. Mujhe pata hai mujhe kya karna hai... Wo kabhi wapas nahi jaayegi.. Main ek teer se do shikar karoonga...!" Vicky Sneha ka bhi shikar hi karna chahta thha.. Kaam poora hone ke baad...
"thheek hai.. Jaisa tu thheek samjhe. Main disha ko samjha doonga.. Tu beshak aaj hi usko wahan chhod de...."
"thank u boss! Mujhe yakeen hai.. Sneha wahan se wapas mere sath aane ki jid nahi karegi.. Main usko samjha doonga.. Aur haan.. Tough se tujhe hi baat karni padegi.. Ye police walon ka kuchh bharosa nahi hota..."
"OK, main kar loonga...." shamsher hansne laga aur fone kaat diya....
"Riya.. Yaar ab main kya karoon? Tune toh meri aisi ki taisi kara di..!" Priya ne Raj ke na aane ka sara dosh Riya par madh diya..
"kyun? Maine aisa kya kiya?" Riya ne hairan hote huye poochha... Dono pahli manjil par pichhe ki aur baney apne kamre mein padh rahi thhi..
"Maine aisa kya kar diya..!" Priya ne munh banakar Riya ki nakal ki..," Tune hi toh uss idiot ko file di thhi.. Lete waqt toh itna shareef ban raha thha... Ab kal 'sir' ko kya tera thhobda (face) dikhaaungi kal..."
"Dikha dena! kya kami hai... Sir dil de baithhenge.. Budhape mein.. jaan de baithhenge apni" Riya ne chulbulepan se kaha..
"tu hai na.. bigadti ja rahi hai... mummy ko bolna padega.." Priya ne Riya ko pyar se jhidka..
" bol de.. wo bhi toh kahti hain.. 'kitni cute hai tu!' Riya ne style se apne lumbe balon ko pichhe ki aur jhatka diya...
"jyada mat ban.. shakal dekhi hai aaine mein kabhi...?" Priya apni kitab ko band karte huye boli....
"haan.. dekhi hai.. bilkul tere jaisi hai.. ab bol" Riya ne bhi apni kitab band kar di aur hansne lagi...
"tu yaar.. jyada faaltu baatein mat kar... bata na.. ab main kya karoon?" Priya ne matlab ki baat par aate huye bola...
"yahin.. khidki ke paas chipka baithha hoga... chhat se maang le..." Riya ne sharaarati muskaan fainkte huye kaha..
" tu jakar maang le na.. badi himmat wali ban'ti hai.. chhat se maang loon.. wo bhi raat ke 9:00 baje.. pichhli baat bhool gayi kya..?"
Riya ek pal ko ateet mein chali gayi...," mujhe uss ladke ki badi daya aayi thhi.. papa ne sahi nahi kiya Priya..."
"Sahi nahi kiya toh kuchh khas galat bhi nahi thha.. din mein hamare ghar ke itne chakkar lagata thha.. pagal thha wo..." Priya ne apna najriya usko bataya..
" Gali mein hi ghoomta thha na.. hamein kuchh kaha toh nahi thha.. itna maarne ki kya jarurat thhi.. waise samjha dete.. dekh bhai.. mujhe toh bahut bura laga thha.. uss raat khana bhi nahi kha saki thhi.. bechare ke chehre par kaise nishan pad gaye thhe..." Riya ka mood hi off ho gaya...
Uss din ko yaad karke Priya bhi Sihar uthhi... koyi kala sa ladka thha.. unki hi umra ka.. gali mein lagbhag har ek ko yakeen ho gaya thha ki iska thhanedar ki betiyon ke sath kuchh na kuchh chakkar to jaroor hai.. inn dono ki bhi aadat si ho gayi thhi.. usko khidki se aate jaate unki aur chehra uthhakar dekhte huye dekhna aur fir uska majak bana kar khoob hansna... uss din papa ne ussko khidki mein se jhankte dekh liya thha.. ladka muskurata huaa aage badh gaya.. par uski kismat kharaab thhi.. papa lagbhag bhagte huye uske pichhe gaye thhe aur usko ghaseet'te huye ghar ke saamne la patka... sari colony ke log bahar nikal aaye.. par koyi kuchh nahi bola thha.. sab chupchap khade tamasha dekhte rahe.. unke papa ne usko maar maar kar adhmara kar diya thha.. baad mein police jeep usko le gayi thhi.. Dono ladkiyan apne dil par hath rakhkar khidki se sab kuchh dekh rahi thhi... wo din thha aur aaj ka din.. Ladkiyan kabhi bhi paidal school nahi gayi... Police ki jeep hi unko lati le jati thi.....
"kahan kho gayi Priya...!" Riya ne uske chehre ke saamne hath hilaya...
"kahin nahi yaar.. sach mein; papa ne sahi nahi kiya thha.. maarna nahi chahiye thha usko..." Priya ne chair se uthhte huye kaha...
"kahan ja rahi ho..?" Riya ne kamre se bahar nikal rahi Priya ko aawaj lagayi....
"abhi aati hoon.. thhanda pani le aaoon.. neeche se..." priya ne agle room mein jakar khidki se bahar ki aur jhanka.. Raj khidki ke saamne hi bed par baithha hua padh raha thha.. usko dekhkar Priya ko jaane kyun.. shanti si mili! kuchh der wah yunhi khadi rahi.. kareeb 1 minute baad hi Raj ne chehra khidki ki aur upar uthhaya.. aur khidki mein khadi priya ko dekhkar khil sa gaya.. Priya uske baad wahan ek pal ke liye bhi na ruki.. neeche bhag gayi.. pata nahi kyun?
"A... Riya.. wo toh khidki ke paas hi baithha huaa hai..!"
"achchha.. usko hi dekhne gayi thhi.. main sab samajhti hoon darling.." Riya khilkhilakar hans padi...
" nahi yaar.. by God.. main pani lene hi gayi thhi.. wo toh bus aise hi dikh gaya...." fir kuchh hichkichate huye boli," idhar hi dekh raha thha..."
"ye koyi nayi baat hai.. mujhe toh wo hamesha idhar hi sir uthhaye milta hai..." Riya ne batteesi nikalte huye kaha...
"toh iska matlab tu bhi usko dekhti rahti hogi.. hai na.." Priya ne uski aur utsukta se dekha.. Raj ke baare mein baat karte huye uske dil ko ajeeb si tasalli mil rahi thhi...
"Main kyun dekhoon.. bhala uss bandar ko.. mujhe bhi aise hi dikh jata hai.. jaise aaj tujhe dikh gaya..." Riya bed par aakar paalthi maarkar baith gayi...
"hummm.. bandar.. tujhe wo bandar dikhta hai.. kitna smart toh hai.. aur kitna intelligent bhi.." Priya apne aapko rok na payi..
"Dekha.. main kah rahi thhi.. na.. kuchh toh baat jaroor hai.. maine tumhare mann ki baat jaan'ne ke liye hi aisa kaha thha.."
Priya ne takiya uthhakar uske sir par de mara..," jyada detective mat ban.. mujhe uss'se kya matlab.. par sach toh kahna hi padega na.."
" Sabke boyfriends hain Priya.. hamara kyun nahi... kitna maja aata na agar koyi hota toh..?" Riya ne ye baat poore dil se kahi thhi.. ismein koyi shararat nahi thhi.. Priya bhi samajh gayi...
" Achaar daalna hai kya?... Boyfriend ka.. mujhe toh koyi achchha nahi lagta.. sab ke sab ek jaise hote hain... Shruti ka pata hai tujhe.. usko uska BF bahlakar apne kamre par le gaya...." darwaja band karke wapas aayi priya achanak chup ho gayi...
"fir kya huaa... bata na..?" Riya aankhein faad kar usko dekhne lagi... pahli baar Priya ne uske saamne iss tarah ki baat ki thhi...
"hona kya thha... bechari roti huyi wapas aayi thhi..." Priya beech ki baat kha gayi.....
"kyun... tujhe kaise pata..... bata na please..." Riya uska hath pakad kar sahlane lagi....
"usi ne bataya thha... kyun ka mujhe nahi pata... ab iss topic ko band kar... padh le..." kahkar Priya ne kitab uthha li...
kuchh der dono mein koyi baat nahi huyi.. fir achanak khud priya hi bol padi.. jaane uss par aaj kaisi masti chhayi huyi thhi," kisi ko batayegi nahi na...?"
"promice.. bilkul nahi bataaungi.." Riya ka chehra khil uthha... uss umar mein aisi baatein kis ko achchhi nahi lagti...
"usne uske sath jabardasti.. 'wo' kar diya..." Priya ne bol hi diya.. riya ko bhi yahi sun'ne ki ummeed thhi...
" wo kya? main samjhi nahi..." Riya kuredne lagi....
" achchha.. itna bhi nahi samajhti.. jo shadi ke baad karte hain..." Itni si baat kahne se hi priya ka chehra laal ho gaya thha..
"oooooooooo.." Riya ne apne chehre par aayi lalima ko apne hath se dhak liya...,"Rape kar diyaaaa?"
"Shhhh.... papa aa gaye honge.. Dheere bol.." Priya ne apne munh par ungali rakhkar usko dheere bolne ka ishara kiya....
"par.. wo roti huyi kyun aayi.. maine toh suna hai ki bade maje aate hain... payal bata rahi thhi... usne bhi kiya thha... ek baar!" Riya ne dheere dheere bolte huye kaha...
Anjane mein hi Paalthi maarkar baithhi Priya ka hath uske janghon ke beech pahunch gaya.. aur 'wahan' dabav sa banane laga... usko aisa laga jaise uska peshab nikalne wala hai...," Suna toh maine bhi hai.. par usne jabardasti ki thhi.. shayad isiliye... main bathroom jakar aati hoon..." kahkar Priya uthhkar bathroom mein chali gayi..
wapas aayi toh uske mathhe par pasina jhalak raha thha.. tript hokar bhi wah aur 'pyasi' hokar aayi thhi.. Riya ne andaja laga liya.. par boli kuchh nahi...
"ek baat Bataaoon Priya.. agar kisi se na kaho toh..?"
" haan bolo..." Priya aaj poore suroor mein thhi..
" nahi.. pahle promice karo...!"
"Promice kiya na.. bol toh sahi..." Priya ne jaan'ne ke liye dabav banaya...
"Mujhe..... Virender bahut achchha lagta hai...?" Ek baat kahne ke liye Riya ko do baar saans leni padi...
"whhhaaaat..? aur tune aaj tak nahi bataya.. kabhi baat bhi huyi hai kya?" Priya ko sunkar badi khushi huyi.. ab wah bhi apne dil ka raaj bata sakti thhi...
" kahan yaar.. baat kya khak hongi.. wo toh sir uthhakar bhi nahi dekhta kisi ki aur.. aur ladkiyon se toh wo baat hi tabhi karta hai jab usko ladayi karni ho....... isiliye toh achchha lagta hai.." Riya apne dil mein kareeb ek saal se chhipayi huyi baat ko apni behan ke sath share karke rahat mahsoos kar rahi thhi.. uske chehre par sukoon sa thha...
"haan yaar.. ye toh sach hai.. sabhi ladkiyan uss'se baat karte huye darti hain... by the way.. tumhari choice bahut achchhi hai.. par iss khawahis ko dil mein hi rakhna.. papa ka pata hai na...." Priya ne bin maange salah de daali...
Riya mayus si ho gayi...," tum batao na.. kya tumhe koyi achchha nahi lagta..? sach batana..."
"pata nahi...." kahte huye Priya laja si gayi.. uske gulabi hont apne aap tar ho gaye.. aur aankhon mein ek ajeeb si chamak ubhar aayi.....
"ye toh cheating hai.. pata nahi ka kya matlab hai.. batao na...!" Riya ne uske kandhe pakadkar usko jor se hila diya...
"ab do din mein mujhe kya pata.. aage kya hoga.. agar isi tarah file maang maang kar gayab hota raha toh meri nahi ban'ne wali.." Priya ne muskurate huye Riya ko apni bahon mein bhar liya.. chhatiyon ke aapas mein takraane se dil ke armaan jaag uthhe...
"oh my God! its Raj.. main jaanti thhi.. main jaanti thhi.. wo bilkul tumhare type ka hai Priya.. Jhenpoo sa.. he he he..!" Riya uss'se alag hote huye boli...," agar tumhari file abhi mil jaaye.. toh tum uss'se naraj nahi howogi na...!"
"abhi?.... Kaise...?" wo mera kaam hai.. par shart ye hai ki kal school mein tum khud uss'se baat karogi... bolo manjoor hai.." Priya ki haan se hi toh Riya ke raaste khulne thhe.. Raj ke maddhyam se wah Virender ke dil tak ja sakti thi...
"par batao toh kaise..? aaj file kaise mil sakti hai...?"
"wo mujh par chhod do.. tum sirf haan bolo"
"haan" Priya ne bina soche samjhe tapak se haan bol diya... aakhir usko bhi toh bahana mil raha thha... 'shart' ke bahane teer chalane ka...
"bus ek minute..!" Riya ek dum se uthhkar gayi aur ek copy aur pen uthha layi..
"iska kya karogi...?" Priya ne hairan hote huye poochha..
"tum ab bolo mat.. mera kamaal dekho.." aur Riya likhne lagi...
"Hi Raj!
aap jo file lekar gaye thhe.. mujhe uski sakht jarurat hai... wo mujhe chahiye.. tum aaj school bhi nahi aaye.. sara din tumhari raah dekhti rahi... pls usko gate ke neeche se andar sarka dena.. main uthha loongi...
aaj school kyun nahi aaye.. kal toh aaoge na...
Tumhari dost,
Priya!"
"hey.. tumne mera naam kyun likha.. apna likho na.. aur iska karogi kya ab..?" Priya ka dil joron se dhak dhak kar raha thha.. kisi anhoni ki aashanka se...
"dont worry Darling.. bus mera kamaal dekhti jao... ek baar papa ko dekh aao.. so gaye ya nahi......
Priya neeche jakar aayi...," papa toh aaj aaye hi nahi.. mummy kah rahi thhi.. aaj thhane mein hi rahenge.. wo Murari pakda gaya hai na..."
"ohh.. thanx Murari ji! ab koyi darr nahi.." Riya khushi se uchhal padi....," tum bhi aa rahi ho kya? khidki tak..."
"na.. mujhe toh darr lag raha hai.. tumhi jao..." Priya ka dil gadgad ho uthha thha.. kum se kum behan se toh ab wo dil ki baat kar sakti hai...
Riya kareeb 2 minute khidki ke paas khadi rahi.. jaise hi Raj ne uski aur dekha.. Riya ne apna hath hila diya..
Raj ka toh band hi baj gaya.. usko apni aankhon par visvas hi nahi hua.. aankhein faad kar khidki ki aur dekhne laga...
Riya wapas chhat par gayi.. ek patthar dhoondha aur kagaj ko uspar lapet diya.. Raj ko sirf Riya dikhayi de rahi thi jisko wo Priya samajh raha thha.. uske hath mein pakdi cheej usko najar nahi aayi...
Riya ne khidki se hath bahar nikala aur nishana lagakar de mara.. iske sath hi wo pichhe hat gayi..
Kismat ka hi khel kahenge.. hawa mein fainkne ke sath hi patthar par lipta kagaj hawa mein hi rah gaya aur patthar jakar Raj wali khidki se ja takraya...
Riya upar bhag gayi....
"oye viru.. dekh.. priya ne patthar fainka..." Raj khushi se naach uthha..
"kyun? tera sir fodna chahti hai kya wo..? tu pagal ho gaya hai beta.. ye tujhe kahin ka nahi chhodengi.. pichhli baar top kiya hai na.. lagta hai agli baar drop karega.. chup chap padh le.. tujhe ladkiyon ki fitrat ka nahi pata.. bahut bhola hai..!" Viru ne fir se kitab mein dhyan laga liya...
"yaar, tu toh hamesha aisi baat karta hai jaise dil par bahut se jakham khaye baithha ho.. itna bhi nahi samajhta.. wo mujhe pareshan kar rahi hai.. matlab wo bhi....." Raj ko Virender ne beech mein hi tok diya," haan haan.. wo bhi.. aur tu bhi.. dil ke jakham tumhe hi mubarak hon beta.. aisi koyi ladki bani hi nahi jo mujhe jakham de sake.. tum jaise aashikon ki halat dekhkar hi sambhal gaya hoon.. main toh...
Raj aur virender mein behas jari thhi.. udhar Priya riya ko 2 baar neeche bhej chuki thhi.. file dekhkar aane ke liye.. ek baar khud bhi aayi thhi.. par har baar Raj unhe wahin baithha mila.. uska dhyan ab bhi baar baar khidki par laga huaa thha..
"oho yaar.. ek galati ho gayi.. humne ye likh diya ki kal toh aaoge na.. kahin usne ye toh nahi samjha ki agar kal na aaye toh rakhni hai..." Riya ne idea lagaya..
"haan.. mujhe bhi yahi lagta hai.. nahi toh ab tak toh rakh hi deta.." Priya ne bhi sur mein sur milaya...
"thhahar.. ek aur kagaj kharaab karna padega.. Dont worry.. mohabbat aur jung mein sab jayaj hai.. he he.." aur Riya uthhkar ek baar fir se copy aur pen uthha layi... aaj uski aankhon mein neend thhi hi nahi... nahi toh kab ki ludhak chuki hoti...
"Raj!
Yaar Mujhe bahut...."
"A.. yaar kaat de.. dobara likh..." Priya ne kaha...
"OK.. No Problem.." Riya ne fir se likhna shuru kiya...
"Raj!
Abhi aa jao na pls.. Bahut jaruri hai.. main Riya ko neeche bhej rahi hoon.....
I am waiting
Tumhari Dost
Priya
"par yaar.. Tu samajhta kyun nahi hai.. Wo aisi nahi hai.. Baki ladkiyon ki tarah... Kitni pyari hai..!" Raj Virender ko kisi bhi tarah se sahmat kar lena chahta thha.. Iss tanka jhanki ko Dosti ke raste par le jane ke liye.. ," kuchh bhi ho jaye.. Main kal uss'se baat karke rahunga.. Dekh lena!"
"uss din toh teri fat rahi thhi.. File maangte huye.. Kal kounsa teer maarega..? Fir kah raha hoon.. Ye ......"
"oye.. Fir aa gayi.. Lagta hai ab fir patthar utha kar layi hai... Aaj toh mera kaam karke rahegi.." Ab ki baar Raj ne bhi khidki ki aur hath hila diya.. Bahut hi khus thha wo...
Ab ki baar patthar seedha unke kamre ke andar aaya.. Shukra thha Raj choukanna thha.. Warna Sir par hi lagta..," Arey.. Isspar toh kagaj lipta hua hai.."
"uthha le.. Aa gaya love letter.. Tere liye... Ho gayi tamanna poori.. Ab tu gaya kaam se...." Viru ne patthar par lipte kagaj ko gour se dekha...
Tab tak raj kagaj ko patthar samet lapak chuka thha.. Jaise hi usne kagaj ko khola.. Uska dil dhadak uthha... Ye toh kamaal hi ho gaya.. Usne toh seedhe seedhe ghar par hi bula liya thha.. Wo bhi abhi.. Raat ko.. Oh my God! Mujhe nahi pata thha ki 'wo' aisi ladki hai.. Raj mann hi mann soch raha thha...
"kya huaa..? Aisa kya likha hai usne..? Kahan kho gaya?" Virender ne utsukta se poochha...
"kkuchh nahi.. Aise hi.. Ye toh waise hi hai.. Kuchh purana likha hua hai..!" Raj usko ulat pulat kar dekhne ka natak karte huye bola...
"fir usko bimari kya hai..? Kal school mein dekhta hoon..." Virender ko uski baat par visvas ho gaya tha..
"kyun tujhe kya problem hai..? Madad nahi kar ssakta toh kum se kum roda toh mat ban.." Raj ne Virender ko bola...
"thheek hai beta.. Ye gadhe ke din sabke aate hain.. Tere bhi aa gaye.. Par roda main nahi.. Wo roda fainkne wali ban rahi hai... 2 ghante se dekh raha hoon.. Tu kitab ke usi page ko khole baithha hai....
"tu toh bura maan gaya yaar.. Mera ye matlab nahi thha.. Chal thheek hai.. Main thhoda bahar ghoom aata hoon.. Mind fresh ho jayega.. Uske baad padhta hoon..." Raj ne bed se uthhte huye kaha...
"mind fresh toh thheek hai.. Par ye raat ko kanghi.. Ye kya chakkar hai..?" Viru ne usko ghoorte huye poochha....
"thhoda aagey tak jakar aaunga.. colddrinks bhi le aata hoon.." shirt daalte huye Raj virender ki aur muskuraya....
"chal thheek hai.. Doodh bhi le aana.. Jaldi aana.." Virender ko uski baat se tasalli ho gayi...
"tu kitna pyara hai yaar..? Dil karta hai teri chummi le loon.. He he he.." Raj ne majak mein kaha toh Virender khil khilakar hans pada," ab makkhanbaji mat kar.. Jaldi aana.. Sach mein yaar.. Tune toh padhna hi chhod diya hai..."
"dont worry bhai.. Main sab sambhal loonga.." kahkar Raj kamre se bahar nikal gaya...
"a Priya.. Wo ab wahan nahi hai.. Teri file aane hi wali hai.. Kal ke liye taiyaar ho jana.. Yaad hai na.. Kya shirt thhi..." Riya upar jaakar chahakte huye Priya se boli...
"han han.. Sab yaad hai.. Khamkha promice kar diya.. Chhoti si baat ke liye.. Ye toh main hi na kar deti..." Priya muskurayi... Wo bahut khush lag rahi thhi....
Room se bahar nikal kar Raj ne 'wo' kagaj nikal liya jismein Priya ne usko apne pass aane ka nimantran bheja thha.. wo bhi abhi.. raat ko... Raj ke liye sab kuchh sapne jaisa thha.. aisa sapna jismein koyi na koyi toh 'kadi' thhi hi.. jo beech se tooti huyi thhi.. aur wahin par Raj ka dimag atka huaa thha..
'Agar wo shreef ladki hai toh mujhe kya kisi ko bhi yun bula nahi sakti.. aur fir meri aur uski jaan pahchaan hi kya hai.. sirf 'file' hi toh maangi thhi..' udhedbun mein fanse Raj ne wo kagaj ka tukda.. ek baar fir nikal liya aur Dobara padhne laga...
"Raj!
Abhi aa jao na pls.. Bahut jaruri hai.. main Riya ko neeche bhej rahi hoon.....
I am waiting
Tumhari Dost
Priya
'kamaal hai.. ismein na toh koyi kaam hi likha huaa hai.. aur na hi koyi wajah batayi gayi hai.. fir wo mera intjaar kar kisliye rahi hai.. kya usko kisi ne bata diya hai ki main usspar marta hoon... nahi! ye kaise ho sakta hai..? Virender ke alawa koyi ye baat jaanta hi nahi.. Fir?????' Raj ka dimag chakra raha thha par dil uchhal raha thha.. Dimag usko dhairya rakhne ko kah raha tha toh dil kuchh kar gujarne ko bawla huaa ja raha thha...
'Kya kiya jaye?' apne makaan ke darwaje par khada hokar Raj Priya ke ghar ki chhat ko niharne laga... wahan kafi andhera thha.. isiliye wah kisi ko bhi khada dikhayi nahi de sakta thha... Priya ke ghar Darwaje se andar ghusna toh lagbhag asambhav hi thha.. par sath satey huye ghar ki seedhhiyan uske aangan se shuru hokar chhat tak jati thhi.. par uss ghar ke aangan mein light jal rahi thhi.. deewar faandkar ghusna khatarnaak ho sakta thha.. 'nahi.. nahi ja sakta' aisa sochkar Raj ne kagaj ke tukde tukde karke wahi faink diya aur colddrink lane ke liye chal diya.. ek lumbi gahri saans chhodkar....
Halanki Raj ne na jane ka poora mann bana liya thha.. par fir bhi jane kyun wah baar baar pichhe mudkar dekh raha thha.. chhat tak jane ka rasta...
kahte hain.. 'jahan chah; wahan raah..' aur Rah mil gayi.. thhoda sa risk jaroor thha.. par Mohabbat mein Risk kahan nahi hota...
Sath wale ghar se aage nikalte huye Raj ko uss ghar ki chardiwari ke sath khali plot mein ek bhainsa dikhayi diya.. wo baitha huaa masti se jugali kar raha thha.. usko kya pata thha ki wo aaj raat ko do pyar karne walon ke beech ki 'deewar' laanghne ka sadhan ban'ne wala hai.. uske upar baith kar Raj seedha 'zeene' mein kood sakta tha.. aur Priya ke sath wale ghar ki chhat tak bina kisi rukawat ke pahuncha ja sakta thha... yani aadhi problem solve ho jane thhi...
"chal beta.. khada ho ja.." Raj ne usko ek laat mari.. aur bechara bhainsa.. bina kisi lag-lapet ke khada hokar deewar ke sath lag gaya...
"shabaash.. A haiiinsha.." aur Raj uske upar ja baithha...
ab tak bilkul shant khade bhainse ko Raj ki ye harkat ganwara nahi huyi.. aur lahraati huyi uski poonchh.. Raj ke chehre par aa takraayi..
"uff.. saaley.. Gobar chipak diya.. kya jata hai tera.. ek minute mein.." aur fir ek pal bhi na ganwaaye Raj ne uchhal kar apne haathhon se 'zeene' ki deewar thham li.. fir latakte huye usne jor lagaya aur agle hi pal wo 'zeene' mein thha...," Ohh..! Raj ka dil koodne ke sath hi dhak dhak karne laga.. yahan se ab agar wo kisi ko bhi dikh jata toh badi musibat aa jani thhi...
Sath wale ghar mein upar koyi kamra wagairah nahi thha.. Raj bina der kiye fatafat chhat paar karke Priya ke ghar ke sath ja chipka.. uski saanse buri tarah ukhad gayi thhi.. jis tarah aur jis haalat mein wo yahan thha.. aisa hona lajimi hi thha.. apni dhadkano par kaabu pana uske liye mushkil ho raha thha...
yahan se usko Priya aur Riya ke hulke hulke bolne ki aawaajein aa rahi thhi.. wahan se aage kareeb 6 feet oonchi deewar ko laanghna 6 feet ke hi Raj ke liye koyi mushkil kaam na thha... Raj ne kuchh der aise hi khada rahkar apni saanson ko kaabu mein kiya.. aur aakhiri deewar bhi laangh gaya.. wahan se sath wale kamre mein hi Priya aur Riya uski hi baaton mein vyast thhi...
par baatein sun'ne ka time kiske paas thha.. uska toh 'bulawa' aaya tha na; fir wo kyun aur kis baat ka intzaar karta.. bina ek bhi pal ganwayein Raj tapaak se kamre mein ghus gaya...
apne saamne yun achanak 'luteron' ki shakal banaye Raj ko dekhkar Priya saham gayi.. Darr ke maare uski toh saans hi gale mein atak gayi.. Riya ki toh cheekh nikal gayi... hangama ho jana thha.. agar Priya samay se pahle hi sthiti bhanp kar uske munh ko apne hathh se na daba deti toh..
"tumm.. yahan.... yahan kya karne aaye ho?" Sahmi huyi Priya ke gale se atak atak kar baat nikal rahi thhi...
"Tumne hi toh bulaya thha..." Raj gale ka thhook gatak kar apni shirt ki aasteen neeche karte huye bola.. dara huaa wah bhi thha..
"bhag jao jaldi.. sab maare jaayenge.. mummy jaag rahi hai.." Priya dheere se hadbadahat mein boli...
"ajeeb log ho tum bhi.. pahle bulaate ho.. fir beijjati karte ho.. pata hai kitna jokhim uthha ke aaya thha.." Raj khisiya sa gaya thha.." Ajeeb majak kiya tum dono ne aaj mere sath.." kahkar wo wapas palta toh ab tak chupchap khadi Riya bol padi...," Nahi, Ruko Raj... ek minute.. tum yahin thhahro.. main mummy ko dekhkar aati hoon..." kahkar Riya kamre se bahar nikli aur turant hi wapis palti," Iss bechare ka chehra toh dhulwa do..!" kahkar apni batteesi nikali aur neeche bhag gayi...
"Kyun? mere chehre ko kya huaa.." kahte huye Raj ne apne chehre ko hath lagaya toh chipka hua gobar uske hathhon ko lag gaya..," ohh... wo.. bhainse ki poonchh..." fir ruk-kar achanak idhar udhar dekhne laga....
"Bathroom idhar hai.. Priya uski shakal dekhkar mushkil se apni hansi rok pa rahi thhi.. iss koshish mein usne apne nichle hont ko hi kaat khaya thha.."
"Ohh.. thanx.." kahkar wah bathroom mein ghus gaya....
bahar aate hi usne seedha sa sawaal kiya..," Mujhe kyun bulaya thha yahan..?"
"Humne?... humne kab bulaya thha.." samanya hone ke baad bhi Priya ki aawaj nahi nikal pa rahi thhi.. wah abhi tak ek taraf khadi thhi.. apne hath baandhe huye.. aur lagataar Raj se najrein chura rahi thhi.. kabhi idhar dekhti.. kabhi udhar.. na khud baithhi aur na hi raj ko baithhne ko kaha...
"toh?.. wo patthar kyun maar rahe thhe.. tum.. mera sir fodne ke liye..?" Priya ko hichkichate dekh Raj 'sher' ho gaya.. khair uska gussa jayaj bhi thha.. bechara kitne border paar karke jo aaya thha..
"wo.. wo toh.. humne file maangi thhi.... gate ke neeche se daalne ko bola thha.. le aaye file..?" Priya ne aakhiri shabd bolte huye ek baar Raj ko najar uthhakar dekha.. par usko apni hi aur dekhte pakar turant hi najar fir se jhuka li...
"kab bola thha.. file ke liye...? mujhe toh yahan aane ke liye bola thha... aur wo bhi abhi!" waise tum Riya ho ya priya..?" Raj toh Priya ke liye hi aaya thha........
"Priya..... tumhe koun chahiye..?" jane kitni himmat jod kar Priya ne ye vyangya kar hi diya...
"Mujhe kuchh nahi chahiye.. bus ye batao.. yahan bulaya kyun?" Raj bhi ab tak samanya ho gaya thha..
"kaha naaa..." Priya ne ab ki baar seedha uski najron mein jhanka thha.. isiliye aage bol nahi payi...
Raj bhi apne mann ki baat kah hi dena chahta thha.. aur aaj mouka bhi thha.. aur mousam bhi..," Ek baat boloon.. Priya.. maine aaj tak kisi ladki se baat tak nahi ki hai.. par.. tumne bulaya toh khud ko rok hi nahi paya.. tum mujhe bahut achchhi lagti ho.. mera toh padhna likhna hi chhoot gaya hai.. jab se tumhe dekha hai... kahte huye Raj hulka sa uski aur badh gaya.. aisa karte hi Priya ne bhi ghabrakar apne aapko utna hi peechhe kheench liya.. Raj se door..!
"kya baat hai..? main tumhe achchha nahi lagta kya?" Raj thhoda sa aur aagey badh gaya...
"Nahi.. Mmmera matlab hai.. aisi baat nahi hai.. wwo.. aane hi wali hogi..!" Priya simat si gayi.. ab pichhe hatne ki jagah nahi bachi thhi.. wah chahkar bhi upar nahi dekh pa rahi thhi...
Raj samajh raha thha ki agar bulaya hai toh pyar toh karti hi hogi.. par bolne se darr rahi hai.. 'ladki' hai na...," main tumse pyar karta hoon Priya.. tumhari wajah se itna bada risk lekar aaya hoon.. ab tum bhi bata hi doh na.. tumhe main achchha lagta hoon ya nahi.. kahte huye Raj thhoda aur aage sarak aaya..
Priya kuchh na boli.. bus bachav ki mudra mein aa gayi.. usko iss khayal se hi itna darr lag raha thha ki kahin Raj usko chhoo na le.. kitni najuk thhi.. bechari.. kitni maasoom!
"Bolti kyun nahi..?" Raj ne aage badhkar uska hath pakad liya.. Priya thar thar.. kaanpne lagi....," Mmmain Priya nahi hoon... Riya hoon.."
"ohh.. pahle kyun nahi bataya.. Sorry.." Raj ko jaise bijli ka jhatka laga ho.. jitni door pahle thha.. palak jhapkte hi uss'se bhi jyada door jakar khada ho gaya..," Sorry.. pls kisi ko mat batana.. maine aapse jo kaha hai.. uski pitayi ho jayegi... wo letter bhi nahi likha thha usne.. main toh aise hi jhoothh bol raha thha.." Raj ko laga Isko letter ke baare mein shayad pata nahi hoga...
Raj ki ye baatein sunkar Priya mann hi mann uchhal rahi thhi... kitni sochta hai.. mere baare mein... fir pratyaksh mein Riya bankar boli..," Mujhe sab pata hai.. wo letter humne milkar hi likha thha.. aur usko tum achchhe bhi bahut lagte ho.. par wo aasani se ye baat sweekar nahi karegi.. wo tumse pyar karti hai.. aur shayad aaj ke baad toh tumhe kabhi bhool hi nahi payegi.."
"kyun.. aaj aisa kya huaa..?" Raj prafullit ho uthha..
"Aaj tumne yahan aane ka itna bada sahas kiya.... tum bahut achchhe ho Raaj.. bahut pyare ho..." Priya ek hi saans mein kah gayi...
"par main agar uske munh se ye sab sunta toh bahut achchha lagta..." Raj ne 'Priya' ke intzaar mein darwaje ki aur dekha...
"abhi toh tum jao.. kal school mein main.. matlab main usko bol doongi.. wo tumse baat kar legi...."
Priya ne apni baat poori bhi nahi ki thhi ki Riya neeche se lagbhag bhagti huyi wapas aayi," Mummy.. mummy aa rahi hain upar... !"
Raj darwaje ki aur badha toh Riya ne wapas dhakel diya..," Bathroom mein chhip jaao.. upar aa chuki hain mummy.."
asamanjhas mein khada Raj yakayak bahar kisi ke kadmon ki aahat sunkar bathroom mein ghus gaya..
"Kya baat hai.. aaj sona bhi hai ya nahi.. tum dono ko.. kab se upar neeche bhagti fir rahi ho.. chalo neeche.. chalkar so jao..."
"aa rahe hain mummy.. bus 5 minute aur.. aap chaliye..."Riya ne kaha...
"bahut ho gaye 5 minute.. 12 bajne wale hain.. jaldi uthhkar neeche bhago.." Mummy ne kitabein uthhakar table par rakh di..," wo tumhare kapde kahan hain.. Machine mein daal deti hoon.. subah dhone hain.. " kahkar wo bathroom ki aur chal di...
"Main deti hoon mummy..." Riya jhatke ke sath apni mummy se aage bathroom mein ghus gayi.. dono pasine se bheeg gayi thhi...
Riya ne kapde lekar chalte huye raj ki aur hulke se muskurakar dekha toh Raj ne uske nitambon par chikoti kaat li... Riya ne ekdum ghoor kar dekha.. par waqt thha nahi.. hisab barabar karne ka.. so bathroom ki chitkani band karte huye bahar nikal gayi.. usko pata thha.. wo nahi karegi toh uski mummy karegi....
"chalo ab neeche..!"
"aap chaliye na mummy ji.. hum aa rahe hain bus..!" Priya boli...
"nahi pahle tum chalo.. 5 minute ki kahkar ghanta laga deti ho.. suna nahi kya?" Mummy ne jab ghoor kar bed par baithhi Riya ko dekha toh unki himmat na huyi aage kuchh bolne ki.. dono mummy ke aage aage chal di...
Bechara Raj! Bathroom se nikalne ka raasta dhoondhta rah gaya....
to dosto such maaniye baathroom me main yaani aapka dostraj sharma fans kar rah gaya
tha vahan mera yaani raj ka kya haal hua jaanane ke liye paart 41 ka intjaar kijiye
...................................
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