Sunday, June 20, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --23

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गर्ल्स स्कूल--23

वाणी ने मनु की बात पर कोई ध्यान नही दिया.. वा दर्द से कराह रही थी..," मुम्मय्ीईईईईईई..." वाणी के कूल्हे पर चोट लगी थी..
वाणी की कराह सुनकर मनु सब कुछ भूल गया.. उसने बाथरूम का दरवाजा खोल दिया.. वाणी दरवाजे के पास ही पड़ी.. आँखें बंद किए वेदना से तड़प रही थी.. उसके शरीर पर कोई वस्त्रा नही था.. सिवाय उके हाथ से लिपटे तौलिए के अलावा..
मनु ने उसके हाथ से तौलिए लिया.. जितना उसको धक सकता था.. ढाका और अपनी बाहों में उठाकर बाहर ले आया..
धीरे से मनु ने वाणी को बिस्तेर पर लिटाया और उसके माथे पर हाथ रख लिया.. वाणी की गीली छातियों से वह अपनी नज़र चुराने की पूरी कोशिश कर रहा था...
"वाणी! एक बार कपड़े पहन लो.. कोई आ जाएगा.." मनु की आवाज़ उस्स बेपर्दा हुषण के सामने काँप रही थी..
वाणी को अब तक कोई होश ही नही था की वा किस हालत में है और किसके सामने है.. और जब अहसास हुआ तो सारा दर्द भूल कर बिस्तेर पर पड़ी चादर में अपने को समेटने की कोशिश करने लगी.. मनु खड़ा हुआ और वाणी की करोड़ों की इज़्ज़त को चादर में लपेटने में मदद करने लगा..," सॉरी वाणी.. मैं..."
"मेरे कपड़े दो जल्दी.." दर्द में लिपटी शर्म की आँच ने वाणी को पानी पानी कर दिया था.." वो टँगे हुए है.. हॅंगर पर".. वाणी ने अपन आँखों से इशारा किया..
मनु ने कपड़े उसके पास रख दिए और बेचैनी से उसको देखने लगा...
"बाहर जाआआओ!" दर्द कूम होते होते वाणी शरम की गर्त में डूबती जा रही थी..
"ओह हां... सॉरी" कहकर मनु बाहर निकल गया और सोफे पर जाकर बैठ गया...
कुछ देर बाद मनु ने वाणी को पुकारा...," वाणी ठीक हो ना..?"
"हूंम्म्म.." अंदर से वाणी इतना ही बोल सकी...
मनु के दिल को सुकून मिला.. उसने आँखें बंद कर ली.. उसकी आँखों के सामने वाणी का बेदाग बेपर्दा हुषण सजीव सा हो गया..
उस्स वक़्त मनु सिवाय वाणी की हालत पर हुंदर्दी के, कुछ सोच ना पाया था.. पर अब.. करीब 5 मिनिट बाद उसके शरीर में भी हलचल होने लगी..
उसने वाणी को देखा था.. वो भी बिना कपड़ों के.. अगर उस वक़्त सिर्फ़ वाणी के चेहरे के एक्सप्रेशन को भूल जायें तो हर अंग पागल करने की हद तक खिला हुआ था... उसकी सेब के खोल जैसे ढाँचें में ढली मांसल मजबूत छातियों पर पानी की चंद बूँदें ठहरी हुई थी... यहाँ वहाँ.. निप्पल्स दर्द से सिकुड से गये थे.. उसकी नाभि से नीचे तक का पेट किसी सिक़ुरकर बोतल के मध्य भाग की तरह ढलान और उठान लिए हुए था.. उसकी छोटी सी चिड़िया को एक तरफ फैली हुई टाँग ने प्रदर्शित कर रखा था.. उस्स बेपनाह खूबसूरत अंग के बाई और की पंखुड़ी पर बना छोटा सा कला तिल अब मनु के मर्डाने को जगा रहा था.. उसकी फाँकें बड़ी ही कोमल थी.. बड़ी ही प्यारी.. बड़ी ही मादक...
जब मनु ने उससे उठाया था तो उसको ऐसा लगा था जैसे रेशम में लिपटी कपास को उठा लिया हो.. इतनी हल्की.. मनु का नीचे वाला हाथ वाणी के पिछले उभारों को समेटे हुए था.. वाणी की आँखें बंद थी.. उसका चेहरा रोता हुआ कितना मासूम लग रहा था.. जैसे कोई 10 साल की गुड़िया हो.. पारी लोक से आई हुई..
वाणी का चेहरा याद आते ही मनु प्यारी उड़ान से अचानक वापस आया.. अंदर से कोई आवाज़ नही आ रही थी..
"वाणी..!" मनु ने उसको पुकारा..
कोई जवाब ना आने पर उसने उसके कमरे का दरवाजा खोल दिया..
"नही... प्लीज़.. यहाँ मत आओ! मुझे शरम आ रही है.. बाहर जाओ.." वाणी ने अपना चहरा टवल से धक लिया.. वाणी के लिए अब समस्या यही थी की उस्स उल्टी शर्ट वाले लड़के के मज़े कैसे लेगी...
मनु बाहर वापस आ गया.. उसने वाणी के चेहरे की मुस्कान और हया दोनो को देख लिया था.. अब वा कुछ निसचिंत था.. तभी दिशा और मानसी कमरे में आए.. दिशा ने वाणी को अंदर वाले कमरे में डुबके पाया तो जाकर उसको हिलाते हुए बोली..," चाय वग़ैरह पिलाई या नही.. मनु को!"
"नही दीदी..!"
"तू कभी नही सुधार सकती.. बेचारा तब से अकेला ही बैठा है.. चल उठ कर बाहर आजा.." दिशा ने वाणी को डांटा..
"नही दी.. मुझे नींद आ रही है.." वाणी सोच रही थी की मनु के सामने जाए तो जाए कैसे..
"खड़ी हो ले जल्दी.. चलना नही है क्या.. और ये पुराने कपड़े क्यूँ पहन लिए..?" दिशा ने वाणी को ज़बरदस्ती उठा कर फर्श पर खड़ा कर दिया...
वाणी लंगड़ाकर अपने नये कपड़ों की और चली...
"क्या हुआ वाणी..? क्या हुआ तेरे पैर को" हुल्की सी लचक देखकर ही दिशा घबरा गयी..
"कुछ नही दीदी.. वो.. गिर गयी थी..!"
"कहाँ.. कैसे?.. दिखा क्या हुआ है.." अचानक ही दिशा ने ढेरों सवाल उस पर दाग दिए..
अब तक मानसी को बोलने का मौका ही नही मिला था..," अच्छा वाणी! मैं तो तुमसे मिलने आई थी.. जल्दी आना..!"
वाणी भी जल्दी मनु को भेज देना चाहती थी.. ताकि बाहर आकर चलने की तैयारी कर सके.. अच्छा मानसी.. सॉरी! मुझे दर्द है.."

घर से निकलते ही मानसी ने मनु से पूछा..," वाणी बोली थी क्या तुमसे..?"
"ना!" मनु मन ही मन सोच रहा था.. यहाँ आकर तो बिना बोले ही वाणी ने जाने क्या दे दिया था उसको.. उसने बाइक स्टार्ट कर दी और चल पड़ा........

निशा कुल मिला कर अब तक चार बार मोमबत्ती से अपनी आग बुझाने की कोशिश कर चुकी थी.. पर आग बुझाने की बजे हर बार बढ़ जाती.. भूख तो सिर्फ़ अब आदमी ही मिटा सकता है.. सेक्स की.. अपने अंगों को खुज़ला खुज़ला कर निशा पागल हुई जा रही थी.. अब यूस्क कोई शिकारी चाहिए था.. खुद शिकार होने के लिए.. बेचैन निशा तिलमिलती हुई छत पर आ चढ़ि..
निशा की आँखों के सामने हर उस्स साख़्श का चेहरा घूम रहा था, जिसने कभी ना कभी, कहीं ना कहीं उसको दूसरी नज़र से घूरा था.. अब चाहे कोई भी हो, पर उसको अपनी चूत के लिए कोई लंड वाला दिलदार चाहिए ही था... कोई भी!
पड़ोसियों की छत की और नज़र दौड़ते हुए अचानक अपने से तीन घर छोड़ कर छत पर खाली कच्चे में खाट पर पड़े राहुल पर जा जमी.. उसका मुँह दूसरी तरफ था और वा कुछ पढ़ रहा था..
राहुल राकेश के गॅंग का निहायत ही आवारा लड़का था.. वा कॉलेज जाता तो था पर पढ़ाई करने नही, खाली बस में आते जाते लड़कियों के साइज़ की पमाइश करना.. और अगर कोई फँस जाती तो उसको शहर में किराए पर लिए हुए अपने कमरे में ले जाकर उसको कली से फूल या फूल से गुलदस्ता बना देने के लिए... निशा ने उसके बारे में काइयों से सुन रखा था...
अचानक राहुल की हरकत देखकर निशा पागल सी हो गयी...
राहुल का एक हाथ किताब खोले खोले ही अपने कच्चे में घुस गया और उपर नीचे होने लगा... निशा सीत्कार उठी.. जिस चीज़ को वो अपनी जांघों के बीच गुम कर लेना चाहती थी.. वो तो राहुल अकेला बैठा हुआ ही बाहर हिला रहा है....
निशा ने बेशर्म होकर एक छोटा सा पत्थर उठाया और उसकी खत के पास फैंक दिया.. आवाज़ सुनते ही राहुल चौंक कर पलटा.. उसका हाथ बाहर निकल आया था.. लंड को अंदर ही छोड़ कर..
जैसे ही राहुल ने पलट कर देखा.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. पर वा मुंडेर के साथ ही खड़ी रही..
राहुल ने इधर उधर चारों और नज़र दौड़ाई.. पर निशा के अलावा उसको कोई छत पर नही दिखा...
राहुल सोच में पड़ गया.. ये आइटम तो कभी किसी के काबू में ही नही आया था.. वो खुद भी एक बार उसके हाथ से करारा तपद खा चुका था.. क्या.. सचमुच इसी ने.. नही नही... बापू तक बात पहुँच गयी तो जान से मार देगा.. ये सोचकर राहुल अपनी खाट पर वापस आकर लेट गया.. किताब उसने तकिये के नीचे रख दी.. और निशा की तरफ मुँह करके लेट गया.. बिना कोई हलचल किए.. वो रह रह कर तिरच्चि नज़रों से अपनी और देख रही निशा को ही घूरता रहा...
थोड़ी देर बाद राहुल ने कुछ सोचकर वापस मुँह दूसरी और कर लिया.. और अपने कच्चे में फिर से हाथ डाल लिया...
कुछ ही सेकेंड बाद राहुल की खत के पास एक और पत्थर आकर गिरा.. राहुल ने गौर किया.. पत्थर पिछे से ही आया था..
राहुल को अब किसी इशारे की ज़रूरत नही थी...
राहुल निशा की और मुँह करके बैठ गया और एक चादर से अपने दायें बायें को ढाका...
फिर निशा की और देखते हुए उसने अपना लंड निकाल कर उसके सामने कर दिया...
पहले जो निशा उसको तिरछी निगाहों से ही देख रही थी.. इश्स हरकत पर कूद पड़ी.. उसने सीधे उसकी और मुँह करके उसके लंड पर अपनी आँखें गाड़ा ली...
लूम्बाई का पता नही चल रहा था पर मोटा बहुत था... काले साँप जैसा.. उसके भाई से करीब 3/2 गुना मोटा... निशा का हाथ मुंडेर से नीचे अपनी चूत को छेड़ने लगा...
इस तरह बेहिचक निशा को अपनी और देखता पाकर राहुल फूला नही समा रहा था.. उसने खड़े होकर अपना कच्चा जांघों तक सरका दिया.. अब निशा की सीटी बजने की बरी थी... जिसको वो काले साँप जैसा सोच रही थी.. वो तो सच में ही कला साँप निकला.. राहुल ने अपने लंड को हाथ से उठाकर अपने पाते से लगाया था.. वो यूस्क नाभि तक छू रहा था.. निशा को पता नही क्या हुआ.. घबरा कर छत पर बने कमरे में घुस गयी...
नही वा घबराई नही थी.. अंदर जाते ही उसने सबसे पहले अपनी उखाड़ चुकी साँसों को नियंत्रण में किया और फिर दरवाजा बंद करके खिड़की खोल दी.. खिड़की से राहुल छत पर खड़ा सॉफ दिखाई दे रहा था.. पर उसका साँप पीटरे में घुस गया था.. और पिटारा आगे से बिल्कुल सीधा उठा हुआ था.. मानो निशा पर निशाना लगा रहा हो...
निशा ने अपने कमरे की लाइट जला दी.. राहुल उसको कमरे के अंदर से अपनी और देखते पाकर खुस हो गया.. उसने अपना लंड एक बार फिर आज़ाद कर दिया..
निशा सोच रही थी की उसको कैसे बताउ.. उसका साँप मुझे चाहिए है.. और जो तरकीब उसने सोची.. उसने तो राहुल के छक्के छुड़ा दिए..
निशा ने एक ही झटके में अपना कमीज़ उतार दिया.. अगर ब्रा ना होती तो राहुल को अटॅक ही आ जाता.. वो तो निशा को बंद प्रॉजेक्ट मान चुका था अपने लिए, थप्पड़ खाने के बाद.. आज ये घटा उस्स पर कैसे बरसी.. लाइट में राहुल निशा की नाभि से उपर का ढाँचा अपनी आँखों से देखकर व्याकुल हो उठा.. उसने अपनी आँखें मसली.. मानो फोकस चेंज करके सीधा निशा के पास ले जाना चाहता हो... अपनी नज़रों को... पर दूर से भी नज़ारा घायल करने लायक तो था ही.. निशा ने अपने हाथ अपनी ब्रा में फँसा लिए थे.. इशारा राहुल को सपस्त था.. की उसको क्या चाहिए...
राहुल को अपनी और पागलों की तरह देखता पाकर निशा के हॉंसले और बढ़ गये... उसने ब्रा के बाट्टों खोल दिए और अपनी गोरी, गोलाइयों के साक्षात दर्शन ही राहुल को करा दिया..
राहुल का हाथ मशीन की तरह अपने लंड पर चलने लगा.. वा बिना टिकेट मिले इस मौके का हाथों हाथ फयडा उठा रहा था..
राहुल के लगातार फूल रहे लंड को देखकर निशा सिहर गयी... उसकी उंगली भी बिना बताए ही अपने काम पर जुट गयी.. उसका दूसरा हाथ निशा की चूचियों को बारी बारी हिला रहा था... दबा रहा था.. और मसल रहा था...
राहुल के लंड से तेज पिचकारी सी निकल कर उससे करीब 2 फीट दूर रस की बोचर फर्श पर जा गिरी... राहुल मस्ती और रोमांच की अधिकता में सीधा खाट पर जा गिरा... पर निशा तो अब भी भूखी ही रह गयी... उसने उसी वक़्त एक कागज पर कुछ लिखा और अपने कपड़े पहन कर बाहर निकल आई.. कागज को एक पत्थर में लपेटा और राहुल वाली छत पर फाँक दिया...
राहुल ने पर्चा खोला.. उसकी लॉटरी निकली थी.. आज रात 11 बजे की.. निशा के उपर वाले कमरे में..
राहुल ने निशा की और एक किस उछली और अपने कमरे में चला गया... निशा भी रात के इंतज़ार में खुश होकर नीचे चली गयी...

राहुल ने राकेश के पास फोने मिलाया," आबे साले! तुझे ऐशी खबर सूनवँगा.. की तेरा लंड खड़ा हो जाएगा..."
"और तेरी मा की गांद में घुस जाएगा.. आबे.. अपने बाप से तमीज़ से बात किया कर.. आज कल खड़ा ही रहता है अपना.. साली कोई मिलती ही नही... बैठने वाली.." राकेश ने बात पूरी की..
"आब्बी.. सुन तो ले.. तेरी गंद ना फट जाए तो मुझे कह देना..." राहुल उत्तेजित होकर बोल रहा था..
"अच्छा.. तो ले फाड़ मेरी गांद.. देखूं.. तेरे लौदे में कितना दूं है...?"
"आज तेरी नही.. निशा की गांद फाड़ेंगे.. 11 बजे बुलाया है.. रात को!"
"क्य्ाआआआ!" सच में ही फट सी गयी थी राकेश की.

शमशेर ने वाणी को सारे रास्ते गुमसूँ बैठे देख पूछा," क्या बात है मेरी जान! आज ये फूल मुरझाया सा क्यूँ है?"
वाणी कुछ ना बोली, बाहर की और मुँह करके उल्टे भाग रहे पेड़ों को देखने लगी...
गाँव आ गया था.. गाड़ी की रफ़्तार मंद हो गयी..
वाणी और दिशा कितने दीनो से घर आने की राह देख रही थी.. उत्साह तो वाणी में अब भी था.. पर मनु उसके दिमाग़ से निकालने का नाम ही नही ले रहा था.. आख़िर उसने निर्वस्त्रा वाणी को अपनी गोद में जो उठाया था...
गाड़ी के घर के बाहर पहुँचते ही वाणी की मम्मी भागी हुई आई.. और वाणी और दिशा के नीचे उतरते ही दोनो को अपनी छाती से लगा कर सूबक पड़ी.. यूँ तो वो 2 टीन बार शहर जाकर उनसे मिलकर आ चुकी थी.. पर उनको घर आया देख उसकी पूरण यादें ताज़ा हो गयी," क्या हो गया मेरी लड़ली को.. ऐसे क्यूँ खोई सी है.. क्या अब शहर के बिना दिल नही लगता तेरा.." मम्मी ने वाणी के वीरान से चेहरे को देखकर कहा...
"मामी जी ये उपर कैसा म्यूज़िक बाज रहा है...?"
उपर चल रहे लता राफ़ की आवाज़ में मधुर गीत को सुनकर दिशा ने मामी से हैरत में पूछा...
"बेटी! ये तुम्हारे स्कूल के नये मास्टर जी हैं.. अंजलि मेडम के कहने पर हुँने सोचा, चलो ख़ालीपन तो नही रहेगा घर में.. बहुत ही शरीफ और नएक्दील लड़का है बेचारा.... मम्मी ने शमशेर को पानी देते हुए कहा...
"मैं मिलकर आता हूँ... कहकर शमशेर खड़ा हो गया..
"मैं भी चलूं..." शमशेर की बाँह पाकर कर वाणी बोली...
"तू अब भी इनकी पूंछ ही बनी रहती है क्या?" मम्मी ने हंसते हुए वाणी को कहा...
वाणी बिना कोई जवाब दिए शमशेर के साथ उपर चढ़ गयी...
शमशेर ने उपर जाकर दरवाजा खटखटाया...
"ठहरिए... अभी आता हूँ 10 मिनिट में...
शमशेर ने वाणी की और देखा और दोनो हंस पड़े...," कैसी गधे की दूं है... दरवाजा खोलने में 10 मिनिट लगाएगा...

और वासू ने पुर 10 मिनट बाद ही दरवाजा खोला..," कहिए श्रीमान... देखिए मैं बार बार हाथ जोड़ कर विनती कर चुका हूँ की मैं मार जवँगा पर नारी जाती को टशन हरगिज़ नही पढ़ौँगा... जाने ये सरकार किस बात का बदला वासू शास्त्री से ले रही है की मुझे यहाँ नारियों के विद्यालया में पढ़ाने भेज दिया.. मैने उनको कितना समझाया की नारी नरक का द्वार है.. क्यूँ मुझे धकेल रहे हो.. पर माने ही नही.. कहने लगे की आप जैसे मास्टर की ही तो लड़कियों को ज़रूरत है... चलो सरकार के आगे तो मैं क्या करूँ.. पर टशन पढ़ाना ना पढ़ाना तो मेरे हाथ में है ना.. सो मैने कह दिया.. नो टूवुशन फॉर गर्ल्स... और शाम को केबल टीवी पर अड्वरटाइज़ भी पढ़ लेना.. वासू शास्त्री नारी को नरक का द्वार मानता.. है.. ओक!"
कहते ही वासू ने दरवाजा बंद करने की कोशिश की.. शमशेर ने अपना हाथ दरवाजे पर लगा कर बोला," शास्त्री जी..हमारी भी तो सुनिए ज़रा.... ये इस घर की बेटी है.. और मैं यहाँ का दामाद..."

वासू की उमर कोई 25 साल .. चेहरे से दुनिया भर की शराफ़त यूँ टपक रही थी मानो बहुत ही ज़्यादा हो गयी हो. उसके कंधे को छू रहे घने बालों से उसकी चोटी 2 कदम आगे ही थी... आँखों पर लगे .5 के गोले चस्में उसकी शराफ़त में इज़ाफा ही कर रहे थे.. स्वेत कुर्ता पयज़ामा पहने शास्त्री जी कुछ विचलित से दिखाई दिए; शमशेर की बात सुनकर..," ये बात कतई विस्वास के लायक नही है की ये देवी आपकी बीवी...."
"ये मेरी साली है बंधु!" शमशेर ने उसी के लहजे में उसकी शंका का समाधान कर दिया..
"तब ठीक है श्रीमान.. पर कुछ तुछ व्यक्ति साली को.. आधी.... समझ रहे होंगे आप मेरी व्यथा को... मैं आज के युग में पैदा होने पर शर्मिंदा हूँ.. शुक्रा है गाँधी जी आज जीवित नही हैं.. नही तो..."
"छोड़िए ना शास्त्री जी.. अंदर आने को नही कहेंगे..!" शमशेर उसकी बातों से पाक सा गया था...
"देखो मित्रा... मुझे ना तो आपको यहाँ से भगाने का हक़ है.. और ना ही अंदर आने की इजाज़त देने का अधिकार.. मैं तो अंजलि जी की कृपा से यहाँ मुफ़्त में ही रह रहा हूँ.." वासू ने नाक पर चस्मा उपर चढ़ते हुए उनको अंदर आने का रास्ता दे दिया...
शमशेर ने अंदर आते ही उसकी टेबल पर दीवार से लगाकर रखी हुई हनुमान जी की मूर्ति देखी.. वासू पूरा ब्रहंचारी मालूम होता था..."क्या पढ़ाते हैं आप.?"
"गणित पढ़ाता हून श्रीमान.. वैसे मुझे याज्याविद्या भी आती है.. मैं शुरू से ही गुरुकुल में पढ़ा हूँ.."
"ओहो... तो ये बात है.." शमशेर ने वाणी का हाथ दबा कर उसको ना हँसने का इशारा किया.. वाणी अपनी हँसी नही रोक पा रही थी..
तभी दिशा चाय लेकर उपर आ गयी," गुड आफ्टरनून सर!" दिशा ने वासू को विश किया..
"प्रणाम!.. तो श्रीमान ये आपकी दूसरी साली है.." वासू ने दोनो एक जैसी जानकार सवाल किया..
"जी नही शास्त्री जी.. ये मेरी बीवी है.. और मुझे शमशेर कहते हैं.. श्रीमान नही.."

शायद दिशा को देख कर एक बार को वासू का ईमान भी डोल गया था.... पर उसको तुरंत ही अपनी ग़लती के लिए हनुमान जी की और हाथ जोड़ कर माफी माँगी...
"चाय लीजिए ना शास्त्री जी.." शमशेर ने कप वासू की और बढ़ा दिया..
"क्षमा करना शमशेर बंधु! मैं बाहर का कुछ नही ख़ाता.. और अगर आपको ना पता हो तो चीनी को सॉफ करने के लिए हड्डियों का प्रयोग किया जाता है.. अगर आप भी मेरी तरह शाकाहारी हैं तो कृपया आज से ही चीनी का प्रयोग बंद कर दें.." वासू ने एक बर्तन से गुड निकल कर शमशेर को दिखाया..," इसका प्रयोग कीजिए.. शुद्ध शाकाहार..! कहकर एक पतीले में ज़रा सा पानी डाल कर गुड उसमें डाल दिया और अपनी चाय गॅस पर बन'ने के लिए चढ़ा दी..
"अच्छा शास्त्री जी! फिर मिलते हैं.. अभी तो मुझे वापस जाना है.. और हन.. यहाँ की कन्याओं से बचके रहना.. सभी नों-वेग हैं.."

"मित्रा! मेरे साथ मेरे हनुमान जी हैं.. लड़कियाँ मेरे पास आते ही भस्म हो जाएँगी.. आप चिंता ना करें... आप कभी वापस आईएगा तो मुझसे ज़रूर मिलीएगा!"
"अच्छा अभी चलता हूँ.." कहकर शमशेर वाणी के साथ बाहर निकल गया..," ये क्या चाकर था.." वाणी ने शमशेर से पूछा.."
"बहुत ही नएक्दील इंसान है... बेचारा!" शमशेर ने वाणी की और देखते हुए कहा...
करीब आधे घंटे बाद शमशेर ने अपनी गाड़ी स्टार्ट की और सबको बाइ कहा.. दिशा उसको बहुत ही कातिल नज़रों से देख रही थी.. जैसे ही शमशेर मुश्कुराया.. दिशा ने उसकी और आँख मार दी..

शमशेर को अब 1 महीना गुजारना था.. अपनी दिशा के बगैर.

संजय के साथ अंशुल को देख कर निशा ख़ुसी से उछाल पड़ी," अंशु तुउउउ!" वह अपने कमरे से भाग कर उसके पास आई..," तू तो कह रहा था.. तू अभी नही आ सकता.. मुंम्म्मिईीईई... अंशु आया है..!"
अंशुल निशा की मौसी का लड़का था.. करीब 3 साल बाद वो अंशुल से मिल रही थी.. निशा के मौसजी की नौकरी वेस्ट बेंगल में थी.. अंशुल भी वहीं रहकर पढ़ रहा था.... अब 9त के एग्ज़ॅम देकर वो अपनी मम्मी के साथ मामा के यहाँ आया हुआ था और वहीं से संजय के साथ आ गया था..
"बस आ गया दीदी.. हम तो कल वापस जाने वाले थे.. पर अब अगले हफ्ते तक यहीं हैं.. सोचा आप सबसे मिलता चलूं..." अंशुल की आवाज़ मोटी हो गयी थी.. तीन साल में..
"अरे.. तेरी तो मूँछे भी निकल आई हैं.." निशा की ये बात सुनकर अंशुल झेंप गया और अपने मुँह पर हाथ रख लिया....
"तो क्या.. मर्द को मूँछे तो आएँगी ही.. देख नही रही, तुझसे भी कितना लंबा हो गया है.. और तगड़ा भी हो गया है मेरा बेटा!" निशा की मम्मी ने अंशुल का सिर पूचकार्टे हुए कहा...
मम्मी के मुँह से 'मर्द' शब्द सुनते ही निशा की नज़र सीधी अंशुल की पंत पर गयी.. मान ही मान सोचा.. अरे हां.. ये तो पूरा मर्द हो गया है... निशा के शरीर में कुछ सोच कर सिहरन सी दौड़ गयी.. ुआकी छातियों ने अंदर ही अंदर अंगड़ाई सी ली... उसकी शानदार गांद में कंपन सा हुआ.. अंशुल मर्द हो गया है...!
निशा की अंशुल से बचपन से ही बहुत छनती थी.. वो अपनी बेहन से ज़्यादा निशा से प्यार करता था.. घर वेल भी इश्स बात को जानते थे... पर करीब 3 साल से वो एक दूसरे के संपर्क में नही आए थे.. इस दौरान निशा गद्रा कर लड़की से युवती बन गयी थी और अंशुल लड़के से मर्द!
निशा रात को राहुल के साथ प्रोग्राम को भूल कर एक नया ही प्लान सोचने लगी.....

खाना खाने के बाद अंशुल संजय के कमरे में चला गया.. जाना तो वा अपनी दीदी के पास ही चाहता था.. पर जाने क्यूँ उसको शरम सी आ रही थी.. जिस निशा से वो 3 साल पहले इतना स्नेह करता था.. आज वो अपने स्नेह का खुलकर इज़हार करने से भी संकोच कर रहा था.. तीन साल पहले तो निशा और उसमें कोई फ़र्क ही नही था.. दोनो बच्चे थे.. हन तब भी निशा की छाती पर दो नींबू ज़रूर थे.. पर इससे अंशुल और उसकी मस्तियों में कोई व्यवधान उत्तपन्न नही हुआ था.. क्यूंकी अंशुल को पता ही नाहो था की वो नींबू उगते क्यूँ हैं लड़कियों को.. पर अब की बात अलग है.. अब तो वो नींबू पाक कर मौसम्मि बन गये थे.. और अब अंशुल को पता भी था.. बेहन की मौसम्मियों पर लार नही टपकाते... उनकी और देखना भी ग़लत बात होती है.. और इसीलिए वो उस'से नज़र मिलने में भी संकोच कर रहा था....
पर निशा तो अपने मन में कुछ पका ही चुकी थी.. वा संजय के कमरे में गयी... अंशुल के पास.. संजय का मूड उखड़ा हुआ था.. दर-असल वा गौरी की याद में डूबा हुआ था...
"भैया! कुछ खेलें.. अंशुल भी आया हुआ है.." निशा ने संजय की जाँघ पर हुल्की सी चुटकी काट'ते हुए बोला...
"नही.. मेरे सिर में दर्द है.. तुम दोनो ही खेल लो.." संजय की समझ में ना आया.. निशा कौँसे खेल की बात कर रही है....
"चेस खेलें अंशुल!" निशा ने चहकते हुए अंशुल से पूछा..
"हन दीदी.. चलो खेलें.." अंशुल खुलकर बात नही कर पा रहा था.. मौसम्मियों वाली दीदी से.. रह रह कर उसका ध्यान वहाँ अटक जाता था..
"संजय! कहाँ है चेस बॉक्स?" निशा ने अपनी आँखों पर कोहनी रखे संजय से पूछा...
"शायद तुम्हारे कमरे में ही है.. और प्लीज़ सोने से पहले मेरे रूम की लाइट ऑफ कर देना...."
"ठीक है... तो हम वहीं खेल लेते हैं.. चलो अंशु!" कहते हुए निशा ने उसको चलने का इशारा किया...
निशा ने संजय के कमरे की लाइट ऑफ कर दी और दोनो निशा के कमरे की और चल दिए...
करीब करीब 9:30 बाज चुके थे, रात के!



"अंशु, तुम चेस लगाओ! मैं अभी आई." निशा ने चेस बॉक्स अंशुल को देते हुए कहा और बाथरूम में घुस गयी.
निशा ने अपनी ब्रा निकल कर कमीज़ वापस पहन लिया.. कमीज़ का गला काफ़ी खुला था और निशा उसे सिर्फ़ रात को ही पहनती थी...
"दीदी! इस घोड़े को कैसे चलते हैं..?" अंशुल ने निशा के बाहर आते ही पूछा..," मैं भूल सा गया हूँ!"
"अभी बताती हूँ.." निशा बेड पर उसके सामने आकर बैठ गयी..
निशा की चूचियों के दानों को किसी कील की भाँति उसके कमीज़ में से बाहर की और निकालने की कोशिश करते देख अंशु के सिर से लेकर गांद तक ज़ोर की लहर 'सरराटे' के साथ गुजर गयी.. दोनो कील सीधे अंशु की आँखों में चुभ रही थी.. फिर भी वह अपने आपको उनकी तरफ बार बार देखने से रोक नही पा रहा था..
निशा अंशु की गरम हो रही ख्वाइशों को ताड़ गयी..," घोड़ा टेढ़ा चलता है.. मैं तुझे सब सीखा दूँगी.. ये मैने अपना प्यादा आगे बढ़ाया.. तुम्हारी बारी.." निशा ने अपनी टाँग फैला कर पालती मारे बैठे अंशुल के घुटने से सटा दी... निशा ने पारेलेल सलवार पहन रखी थी.. टाँग फैलने से उसकी जांघों के बीच की मछली उभर कर दिखने लगी..
अंशुल ने ऐसा नज़ारा आज तक कभी देखा नही था.. जहाँ निशा की टाँग ख़तम हो रही थी, वहीं से वो फूली सी.. मादक पंखों वाली तितली का राज शुरू होता था.. अंशु के माथे पर पसीने की बूँद उभर आई.. उसने अपना हाथी उठाकर प्यादे के उपर से ही 3 खाने आगे सरका दिया..
"ये क्या कर रहा है बुद्धू.. घोड़े के अलावा कुछ भी तुम्हारे प्यादों को पार नही कर सकता..." निशा ने हाथी वापस उसकी जगह पर रख दिया...
"मुझे नही खेलना दीदी.. चलो कुछ और खेलते हैं.." सच तो ये था की उसकी जांघों के बीच उसका लंड इतनी बुरी तरह फेडक रहा था की उसको 'खिलाए' बिना दिमाग़ कही और लग ही नही सकता था..
"क्या खेलें?" निशा ने आगे झुकते हुए अपनी कोहनियाँ बेड पर टीका कर अपने चूतदों को उपर उठा लिया.. और अंशुल की साँसें उखाड़ गयी.. निशा के आम बड़े ही मादक तरीके से झूलते दिख रहे थे.. निशा की साँसों के साथ उसकी चूचियों के बीच की दूरी कम ज़्यादा हो रही थी.. और अंशु की धड़कन उपर
नीचे..
अंशुल बेड से उतार कर घूमा और अपने फनफना रहे लंड को नीचे दबाने की कोशिश की पर नाकाम रहने पर वो बाथरूम में घुस गया...
निशा अंशु के हाथ के हिलने के तरीके से समझ गयी.. की उसका जादू चल गया है...

क्या कर रहे हो अंशु? जल्दी आओ..."
निशा की आवाज़ सुनकर अचानक अंशु कल्पना के आकाश से धरती पर गिरा.. निशा की ब्रा से उसकी खुश्बू सूँघता हुआ वा अपनी मुट्ठी को निशा की चूत समझ कर चोद रहा था.. जल्दी जल्दी...! कुछ पल के लिए रुक कर वह फिर शुरू हो गया," आआय्ाआ.. दिददडी!" लंड से पैदा हुए जोरदार झटके की वजह से उसकी ज़ुबान लड़खड़ा गयी.. अंशु दीवार से सटकार हाँफने लगा..
अंशु ने जल्दी से पसीने से तर अपना चेहरा और वीरया से सन गए अपने हाथ और लंड को धोया और बाहर निकल आया....
"क्या कर रहे थे अंशु..?" निशा ने उसको छेड़ कर उकसाने की कोशिश करी..
"कुछ नही दीदी.. वो... फ्रेश होकर आया हूँ.. अब मैं सोने जा रहा हूँ दीदी.. मुझे नींद आ रही है...." अंशुल दरवाजे की और बढ़ा तो निशा को अपने अरमानो का खून होता हुआ सा लगा...," नही अंशु.. अभी मत जाओ... प्लीज़!"
"क्यूँ दीदी.. और कुछ खेलना है क्या..?"
निशा ने बात को संभाला," हां वो.. मेरा मतलब है की.. अभी तो हमें ढेर सारी बातें करनी हैं... तुम यही रुक जाओ ना.. थोड़ी देर और..."
"ठीक है दीदी.." कहकर अंशुल बेड पर लेट गया...
"अंशु तुम्हे याद है हम बचपन में कौन कौन से खेल खेलते थे..?" निशा ने उसके मुँह के पास मुँह लाकर उसकी बराबर में लेट-ते हुए अपना जादू फिर से शुरू किया... वो जान बूझ कर इस तरह से अंशु से थोड़ा नीचे होकर लेटी थी ताकि अंशु जी भरकर उसकी चूचियों का रस आँखों से पी सके..
और अंशुल कर भी यही रहा था.. उसका जी चाह रहा था की उस'से सिर्फ़ 6 इंच के फ़ासले पर स्थित इस खजाने को दोनो हाथों से लपक ले.. पर वो ऐसा कर नही सकता था.. क्यूंकी उसको अहसास नही था की निशा ने सिर्फ़ उसके लिए वो मस्तियाँ बंधन मुक्त की हैं.. सिर्फ़ उसके लिए!
"हन दीदी, याद है.. हम रेस लगते थे.. कारृूम खेलते थे और लूका छिपी भी खेलते थे.." अंशुल का दिल चाह रहा था की वा खुद को उसकी चूचियों में छिपा ले..
"तुम्हे याद है अंशु.. एक बार बाग में अमरूद के पेड से उतरते हुए तुम्हारी पॅंट फट गयी थी..और.." निशा उस'से नज़रें मिलाए बिना उसको 'काम' की बात पर ला रही थी...
"धात दीदी... आप भी.." अंशुल निशा के सीधे सीधे उसके नंगेपन पर हमले से बौखला गया.. निशा हँसने लगी..
"अच्छा अब तो बड़े शर्मा रहा है.. उस्स वक़्त तो नही शरमाया था तू!... तूने कच्चा नही पहना हुआ था ना.." निशा अंशुल से बोली...
"दीदी प्लीज़.." अंशुल ने अपना चेहरा अपने हातहों से धक लिया..," तब तो मैं कितना छोटा था...
निशा ने ज़बरदस्ती सी करके उसके हाथ चेहरे से हटा दिए... अंशुल की आँखें बंद थी..
"अच्छा.. अब तो जैसे बहुत बड़े मर्द बन गये हो.. है ना.." निशा उसके अपनी वासणपूर्ण बातों से भड़का रही थी.. पर अंशुल उस'से खुल नही पा रहा था..
हां.. निशा को अंशुल के चेहरे की मुस्कान देखकर ये तो यकीन था की उसको भी मज़ा आ रहा है.. इन्न बातों में...
"एक बात बताओगे अंशु?"
"क्या?"
"अंशु ने आँखें बंद किए किए ही जवाब दिया...
"तुम्हारे सबसे अच्छे दोस्त का क्या नाम है?"
"तारकेश्वर! वा पढ़ाई में बहुत तेज है..."
"और..?"
"और... सार्थक.."
"और..?"
"हिमांशु!"
"और?" निशा की आवाज़ गहराती जा रही थी..
"और क्या दीदी... ऐसे तो क्लास के सभी बच्चे दोस्त हैं...
"अच्छा.... कोई... लड़की भी...?" निशा ने रुक रुक कर अपनी बात पूछी...
"नही दीदी... लड़की भी कोई दोस्त होती है.." अंशुल ने छत को घूरते हुए कहा.. उसने आँखें खोल ली थी..
"क्यूँ.. लड़कियाँ क्यूँ दोस्त नही होती.. सच बताओ अंशु.. तुम्हे मेरी कसम..!"
"सच.. दीदी.. कोई नही है.. आपकी कसम!" अंशु ने उसकी छातियों में झँकते हुए उसके सिर पर हाथ रखा...
"क्यूँ नही है? क्या तुम्हे लड़कियाँ अच्छी नही लगती?"
"छोड़ो ना दीदी.. अंशुल ने शर्मकार मुँह दूसरी और कर लिया....
निशा थोडा सा उठकर उस'से जा सटी और उसके चेहरे को अपने हाथों से प्यार से सहलाते हुए बोली...," बताओ ना अंशु.. मुझसे कैसी शरम.. मैं तो तुम्हारी बहन हूँ.. बताओ ना.. क्या तुम्हे कोई लड़की पसंद नही..."
निशा की चूचियाँ अब अंशु की बाजू पर रखी थी..," ये बात दीदी से थोड़े ही की जा सकती हैं... मत पूछो दीदी प्लीज़..."
"दोस्त से तो की जाती हैं ना.. मुझे अपनी दोस्त ही मान लो....
"दीदी दोस्त कैसे हो सकती है दीदी?" अंशु को अब भी शक था.. पर मज़ा वो पूरा ले रहा था.. अपने हाथ पर रखी चूचियों का..
"क्यूँ नही हो सकती... बताओ ना.. तुम्हे लड़कियाँ अच्छी क्यूँ नही लगती?"
"लगती तो हैं दीदी.. पर बात करने से डर लगता है.." अंशुल ने अपनी व्यथा अपनी नयी दोस्त को बता दी...
"क्यूँ? डर क्यूँ लगता है..? लड़कियाँ कोई खा तो नही जाती.. मैं भी तो लड़की ही हूँ.. मैं खा रही हूँ क्या तुमको.." निशा ने बात कहते हुए अंशुल के पेट पर हाथ रख दिया.. और अपनी चूचियों का दबाव अंशु की छाती पर बढ़ा दिया..
अंशु को लगा जैसे वह लेटा नही है.. ऊड रहा है.. मस्ती की दुनिया में.. अपनी एकमत्रा दोस्त के साथ.. निशा के दाने उसकी छाती में चुभ कर मज़ा दे रहे थे...
"हां दीदी.. वो तो है.. पर.."
"पर क्या.. बोलो ना.." निशा उसको खुलते देख मचल उठी थी..
"तुम किसी को बताओगे तो नही ना दीदी.."
"मुझे दीदी नही..." निशा ने अंशुल के गालों को चूम लिया..," ...दोस्त कहो. और दोस्त कभी सीक्रेट्स लीक नही करते.. बताओ ना...!"
अंशुल ने फिर आँख बंद करके जवाब दिया," दीदी वो... "
"फिर दीदी.. अब मैं तुम्हारी दीदी नही दोस्त हूँ..."
"अच्छा..... दोस्त! वो मेरी क्लास में एक उर्वशी नाम की लड़की है... अंजाने में एक दिन मेरा हाथ उसके पीछे लग गया था.. उसने प्रिन्सिपल को शिकायत कर दी... तब से मुझे डर लगता है..." अंशुल ने अपना राज अपनी दोस्त को सुना दिया....
"हाए राम.. बहुत गंदी लड़क होगी... इतनी सी बात पर शिकायत कर दी... कहाँ पर लग गया था हाथ...!" निशा अब अंशुल को धीरे धीरे करके असली बात पर लाना चाहती थी....
"यहाँ पर.." अंशुल ने निशा के कुल्हों से उपर कमर पर हाथ लगाकर कहा... निशा को ये चुआन बड़ी मादक सी लगी...
"झूठ बोल रहे हो... यहाँ की शिकायत तो लड़की कर ही नही सकती... सच बताओ ना अंशु.. क्या तुम मुझे दोस्त नही मानते.." निशा अंशुल के कच्चे गुलाबी होंटो
पर अपनी उंगली घुमाने लगी.. अंशुल के लंड में खलबली मचने लगी थी...
"यहाँ पर दी...." अंशुल ने अपने ही चूतदों पर हाथ रखकर निशा को बताया.. वा शर्मा रहा था बुरी तरह..
"ऐसे मुझे कैसे पता लगेगा की उर्वशी को बुरा क्यूँ लगा.... मुझे लगाकर बताओ ना..." निशा ने उसका हाथ अपने हाथ में ले लिया...
"नही दीदी.. मुझे शर्म आती है..!"
"देख लो तुम्हारी गर्लफ्रेंड तुमसे बात नही करेगी फिर.." निशा ने झूठ मूठ रूठने की आक्टिंग करी...
अंशुल के मान में तो लड्डू फुट ही रहे थे.. बाहर शर्म का एक परदा था जो धीरे धीरे फट रहा था.. उसने निशा की मादक गोल गांद की दरार के पास अपनी उंगली हल्क से रख दी..," यहाँ लगा था दी.. सॉरी दोस्त!"
"बस ऐसे ही लगा था क्या.. जैसे अभी तुमने मुझे लगाया है.. " निशा की आग भड़क गयी थी.. गांद पर उंगली रखते ही...
"नही दीदी... थोड़ी सी ज़्यादा लगी थी..."
"तो बताओ ना यार.. तभी तो मुझे अहसास होगा की उसको बुरा क्यूँ लगा.. बिल्कुल वैसे ही करके दिखाओ.. तुम्हे मेरी कसम...!"
अंशुल ने अपनी हथेली पूरी खोलकर निशा के बायें चूतड़ पर रख दी.. उसकी उंगलियों के सिरे दरार के पार दूसरे चूतड़ से लगे हुए थे.. निशा की आ निकल गयी......
"क्या हुआ दीदी.. बुरा लगा..." अंशुल ने अपना हाथ हटा लिया...
"नही रे! दोस्त की बात का बुरा नही मानते.. तू रखे रह.. छेड़ पूरी रात.. तू यहीं सो जा..... निशा ने उसका हाथ वापस और अच्छी तरह से अपनी गॅंड पर टीका लिया....
तभी दरवाजे पर नॉक हुई...
"अंशुल तू सोने की आक्टिंग कर ले... मुझे अभी तुझसे बहुत बात करनी हैं.. नही तो तुझे संजय के पास जाना पड़ेगा....." निशा ने धीरे से अंशुल को कहा और उठकर दरवाजा खोल कर इस तरह खड़ी हो गयी... जैसे वो नींद से उठकर आई हो....
बाहर उसकी मम्मी खड़ी थी..," ले बेटी दूध पी ले.. अरे! ये यहीं सो गया.. चल कोई बात नही.. मैं इसका दूध भी यही दे जाती हूँ.. इसको पीला देना उठाकर...."

जब उसकी मम्मी संजय के कमरे में दूध देने गयी तो संजय ने कहा..," मम्मी अंशुल का दूध?"
"वो तो वहीं सो गया.. निशा के पास.. मैं वहीं दे आई.. निशा पीला देगी...
संजय का माता ठनका... कहीं.. वो अंशुल.. वह उठा और निशा के कमरे में गया..

निशा ने अंशुल पर फिर से डोरे डालने शुरू किय ही थे की वहाँ संजय आ धमका.. निशा ने अंशुल को फिर से सुला दिया और अपना गला थोड़ी उपर खींच कर दरवाजा खोला... संजय ने निशा को कड़वी नज़र से देखा और अंशुल के पास जाकर उसको हिलाने लगा..," अंशुल..... अंशुल्ल्ल!"
अंशुल कहाँ उठता.. उसने करवट ली और दूसरी तरफ बेड से चिपक गया....
"मम्मी ने कहा है सोने दो यहीं..!" निशा ने संजय का हाथ पकड़ कर झटक दिया..
संजय गुस्से में दाँत पीसे रहा था पर कर क्या सकता था.. अपनी बेहन को उसने ही इस रास्ते पर धकेला था.. धीरे से उसने निशा को 'कुतिया' कहा और दरवाजा भड़क से बंद करके निकल गया..
निशा ने संजय के बाहर निकलते ही दरवाजा लॉक कर दिया....
पर अब तक पिच्छली बात पुरानी हो चुकी थी.. उसको नये सिरे से शुरुआत करनी थी..
"अंशु.. सच में सो गये क्या?" निशा ने अंशुल के गालों पर अपना हाथ लगाकर हिलाया...
अंशुल ने घूम कर आँखें खोल दी और मुस्कुराने लगा.... वह आज कैसे सो सकता था....
"फिर प्रिन्सिपल ने क्या किया अंशुल...?" निशा बात को वापस ट्रॅक पर लाने के लिए बोली.. वा अंशुल के थोड़ा करीब आ गयी थी.. उल्टी लेटी होने की वजह से अंशुल को निशा की चूचियों ने तो बाँध ही रखा था.. थोड़ा नज़र पीछे करने पर उसकी पतली कमर से अचानक उभर लिए हुए स्की गांद भी अंशुल को दोबारा उसको छू कर देखने के लिए लालायित कर रही थी... अंशुल सीधा लेटा था.. उसने करवट ली और अपने सिर के नीचे हाथ रखकर कोहनी बेड से लगा ली और थोड़ा उपर उठ गया.. अब उसको उतनी शरम नही आ रही थी," किया क्या.. 2 मिनिट मुर्गा बनाया और यहाँ पर एक डंडा लगाया.." अपने चूतदों की और इशारा करते हुए अंशुल ने जवाब दिया...
"हाए! यहाँ पर तो बहुत दर्द होता होगा ना.." निशा ने अंशु के चूतड़ पर हाथ रख दिया.. अंशुल ने हटाने की कोशिश नही की....
"अच्छा! अब हम दोस्त हैं ना.... एक बात पूछूँ..?" निशा ने अंशुल के चूतदों पर उंगली फिरते हुए पूचछा...
"हां... पूछो!" अंशुल की नज़र कभी निशा की गांद को कभी उसकी चूचियों को निहार रही थी...
"सच बोलॉगे ना?... प्रोमिसे..!"
"सच ही बोलूँगा दी.. प्रोमिसे दोस्त.." अंशुल अपनी ज़ुबान से दीदी हटाने की कोशिश कर रहा था...
"तुमने उसको यहाँ पर जान बूझ कर हाथ लगाया था ना?" निशा ने उसके चूतदों पर दबाव डालते हुए कहा...
"अंशुल का लंड लगातार फूल रहा था.. उसने अपनी उपर वाली टाँग आगे करके उसको छिपाने की कोशिश की.. टाँग निशा की कमर से जा लगी..," नही दीदी.. सॉरी दोस्त.. मैने जानबूझ कर नही किया.. सच्ची!"
निशा ने अपने को थोड़ा सा टेढ़ा करके अंशुल का घुटना अपने पेट के नीचे दबा लिया...," मज़ा तो आया होगा तुमको.. जब हाथ वहाँ पर लगा होगा.." निशा सीधी उसकी आँखों में देख रही थी.. अंशुल शर्मा गया और अपन आँखें बंद कर ली...
"अंशु! कभी सोचा है? लड़के को लड़की का या लड़की को लड़के का हाथ लग जाए तो मज़ा क्यूँ आता है.. मुझे पता है.. मज़ा तो तुम्हे आया होगा ज़रूर.." निशा ने अपना हाथ उसके चूतदों से हटाकर उसके आगे रख दिया.. उसके घुटने से आगे.. लंड के पास..
हाथ की गंध पाते ही लंड का बुरा हाल हो गया.. लंड इतना शख्त हो गया था की अंशुल को लग रहा था.. की एक बार फिर बाथरूम जाना पड़ेगा...
"बताओ ना अंशु.. मज़ा क्यूँ आता है..?"
"पता नही.. अंशु ने अपनी कोहनी हटाकर बेड पर ही अपना सिर रख लिया.. अब तो उसकी नज़र निशा के अनार्दानो के चारों और की हुल्की सी लाली तक पहुँच रही थी...
"पर मज़ा तो आता है ना..!" निशा ने कन्फर्म करने की कोशिश करी...
"हूंम्म" अंशुल ने धीरे धीरे उसके लंड की और सरक रहा निशा का हाथ पकड़ लिया और हाथ उपर खींच लिया.. वह अब भी हाथ को पकड़े हुए था.. कहीं निशा उसके लंड को हाथ लगने से जान ना जाए की उसका कितना बुरा हाल हो रहा है...
"फिर मज़ा आता है तो कभी लिया क्यूँ नही.. तुम इतने सुंदर हो.. ज़रूर तुम्हारी काई गर्लफ्रेंड होंगी.. निशा ने अंशुल द्वारा पकड़े गये अपने हाथ को अपनी छातियों की और खींच लिया.. अंशुल का हाथ भी साथ ही आकर उसकी चूची के दाने से चिपक गया.. दोनो साथ ही सिसक पड़े...
निशा की राह आसान होती जा रही थी...
"नही दी.. मेरी कोई दोस्त नही है.. तुम्हारी कसम.. " अंशुल ने अपना हाथ थोड़ा और दबा दिया निशा की छाती की और.. निशा भी अपनी तरफ से पूरा ज़ोर लगा रही थी..
"तुम झूठ बोल रहे हो.. तुम्हारी एक दोस्त तो ज़रूर है...."
"नही है ना.. मैने आपकी कसम भी खाई है.. फिर भी..."
"इसका मतलब तुम मुझे अपनी दोस्त नही मानते..? है ना..!"
"तुम तो....." अंशुल धर्मसंकट में फँस गया...
"बोलो ना... क्या तुम तो..?" निशा ने उसको उकसाया...
"कुछ नही दीदी..." अंशुल को अपनी पाँचों उंगलियाँ.. और साथ में लंड घी में नज़र आ रहा था... निशा की चूत के घी में...
"तो बताओ.. मैं तो तुम्हारी दोस्त हूँ ना..."
"हां... " अंशुल ने उसको अपनी एकमत्रा दोस्त मान लिया...
"पता है अंशु.. मेरा भी ना.... कोई दोस्त नही है.. सभी लड़कियाँ कहती हैं.. जब दोस्त छोटा हो तो बड़ा मज़ा आता है... मैं भी.... देखना चाहती थी.. कोई मुझे छुए तो कैसा लगता है..." निशा ने उसका हाथ ज़ोर से अपनी छातियों के बीच फँसा रखा था...
अंशुल समझ चुका था की निशा उसको आज मर्द होने का इनाम देने वाली है.. पर वो जान बूझ कर अंजान बना रहा... ," तो किसी से कह दो...!"
"किस से कहूँ.. मेरा कोई दोस्त है तो नही ना..." अब निशा अपने सामने बैठे दोस्त को भूल गयी थी.. या शायद भूलने की आक्टिंग कर रही थी...
"मैं हूँ ना.. आपका दोस्त.."अंशुल ने निशा के होंटो के करीब अपने होन्ट ले जाकर कहा...

निशा अब और इंतज़ार कर सकने की हालत में नही थी.. और ना ही अंशु..
"अंशु! मुझे हाथ लगाओ ना.. मुझे देखना है कैसा लगता है?"
"कहाँ लगाऊं.." अंशुल की आवाज़ काँप रही थी.. मारे आनंद के..
"कहीं भी लगाओ जान.. जहाँ तुम्हारा दिल करे.. कही भी.. निशा ने उसके होंटो को दबोच लिया.. और मोमबत्ती से भड़की अपनी प्यास मिटाने में जुट गयी...
अंशुल उसका पूरी तरह साथ दे रहा था.. वा भी उतने ही जोश से उसके होंटो को खाने लगा.. पर था कच्चा खिलाड़ी.. अभी भी उसकी हिम्मत नही हो रही थी.. की कहीं भी हाथ घुसा दे..
होन्ट चूस्ते चूस्ते ही निशा ने अपनी जीभ अंशुल के होंटो के पार कर दी.. निशा के रस में डूबे अंशुल को ये होश ही ना रहा की.. निशा उसके लंड को पॅंट के उपर से मसल रही है.. और लंड ने उसकी पॅंट खराब कर दी है...
जब लंड की खुमारी उतर चुकी तो अंशुल को होश आया.. और एक दम से निशा के होन्ट छोड़ कर पॅंट में ही लंड को दबोचा और बाथरूम में भाग गया...
"अंशु! प्लीज़.. ऐसे छोड़ कर मत जाओ.. मैं मार जवँगी.. " निशा बेड पर बैठी बैठी बिलख पड़ी...
कुछ देर बाद ही अंशु सिर झुकाए वापस आ गया.. उसने कहीं सुन रखा था.. की अगर किसी का लड़की पहले निकल जाए तो वो नमार्द होता है...
"सॉरी दीदी! मैं मर्द नही हूँ.." कहकर अंशुल सुबकने लगा..
निशा ने उसको सीने से लगाकर अपनी छातियों में दाहक रही ज्वाला को कुछ ठंडा किया," पगले! कौन कहता है.. तू मर्द नही है.. कितना लंबा और मोटा है तेरा ये.... और कितना गरम भी..."
"पर दीदी.. मेरा तो आपसे पहले निकल गया ना...." अंशुल ने उसके सीने से चिपके चिपके ही अपने आँसू पोछते हुए कहा...
"तू चिंता मत कर.. मैं अपने आप ठीक कर दूँगी.. निकाल तो ज़रा..." निशा लंड की प्यासी थी.. और उसकी चूत लंड की भूखी...
"मुझे शरम आ रही है दीदी..." अंशुल को शांति मिलने के बाद ये सब शर्मिंदगी वाला काम लग रहा था...
निशा ने उसको धक्का देकर बेड पर गिरा लिया और उसके उपर सवार होकर उसकी पॅंट खोल दी.. पॅंट को कच्चे समेत अपने नीचे से पीछे सरका दिया और अंशुल का मुड़ा तुडा लंड अपने हाथ में ले लिया...
अंशुल बेजान होकर बेड पर पड़ा रहा..
निशा अंशुल के उपर से उतरी और झुक कर अपनी जीभ निकाल कर अंशुल के लंड को नीचे से उपर चाट लिया... लंड में तुरंत रिक्षन दिखाई दिया.. वह झटके खा खा कर अपना आकर बढ़ाने लगा.. उसको बढ़ते देख निशा से ज़्यादा ख़ुसी खुद अंशुल को हो रही थी....
निशा ने बढ़ रहे लंड को अपने गले तक उतार लिया.. नम दीवारों को पाकर अंशुल का लंड बाग बाग हो गया.... करीब 2 मिनिट में ही निशा का मुँह पूरी तरह भर गया.. और लंड फिर से अकड़ कर खड़ा हो गया..
निशा अपने नाज़ुक होंटो से लंड की अच्छी तरह उपर नीचे मालिश करने लगी.. अंशुल फिर से जन्नत में पहुँच गया.. ," आआह दीदी... दोस्त... कितना मज़ा आ रहा है... और तेज़ करो... और तेज़.."
अंशुल अपने चूतदों को उपर उचका उचका कर निशा के गले में ठोकर मार रहा था... निशा की आँखों में पानी आ गया.. पर उसने हार ना मानी..
निशा ने अंशुल का हाथ पकड़ कर अपनी चूची उसके हवाले कर दी.. अंशुल तो इनको भूल ही गया था...
"दीदी! अपना कमीज़ निकाल दो.. मुझे तुमको नंगी देखना है...!"
नेकी और पूछ पूछ! निशा ने एक झटके में अपनी कमीज़ को अपने शानदार जिस्म से अलग करके किसी हेरोइन की तरह अंगड़ाई लेकर बेड पर बिखर गयी... ," अब तुम करो जान..."
अंशुल ने जवान चूचियाँ नंगी कभी देखी ही ना थी.. और किस्मत से देखने को मिली भी ऐसी चूचियाँ को देखने वाला दूर से ही टपक पड़े.. उसने दोनो चूचियों को अपने हाथों में भर लिया.. निशा कसमसा उठी.. नादान अंशुल के मर्दाना हाथ उसकी चूचियों को जैसे निचोड़ रहे थे..," आआआआः आआंसूओ! थोड़ा आराम से जान..! इनको चूस लो ना...!"
"अंशुल को निशा की बात मान' ने के अलावा कुछ ध्यान ही नही था.. वो तो ऐसी ख़ान में आ गया था जहाँ से कितना ही लूट लो.. माल ख़तम ही नही होता.. उसने अपना सिर झुकाकर अपना पूरा मुँह खोल कर जितना हो सकता था उतना माल अपने मुँह में भर लिया... ," आ अंशू.. तू कितना प्यारा है... मेरी जान.. और चूस.. दोनो को चूस ना यार..!" निशा ने अंशुल का सिर अपनी चूचियों में लगभग घुसा ही रखा था... उसकी आँखें मदहोशी के आलम में रह रह कर कभी खुल रही थी कभी बंद हो रही थी..
निशा ने अपना एक हाथ नीचे अपनी चूत की फांको पर लरजकर थोडा इंतज़ार करने को कहा.. पर वो हाथ लगते ही फट पड़ी.. और कितने दीनो से प्यासी उसकी चूत को आज चैन मिला... मर्द के हाथों से....
अंशुल अपने आप ही लड़की को मदहोश करने के गुण अपनाता जा रहा था.. उसने अपनी एक उंगली निशा के होंटो में दे दी और खुद के होंतों को धीरे धीरे नीचे लाता जा रहा था... निशा उंगली को ही लंड समझ कर आँखें बंद करके चूसने लगी...
निशा का पेट बहुत ही सुंदर था.. पतला सा.. गोरा सा.. अंशुल के होंटो की चुअन से वो रह रह कर छरहरा रहा था.. नाभि से नीचे तक निशा को चूस चूस कर पूरा लाल कर देने के बाद अंशुल के होंटो को एक रुकावट महसूस हुई.. निशा की सलवार की.. पर अब कौनसी रुकावट क्या काम आती... अंशुल ने झट से सलवार का नाडा खोला और निशा की गांद उपर उठाकर सलवार को पैरों से निकल दिया.. निशा अंशुल को अपने निचले हिस्से को पागलों की तरह देखता पाकर मस्त हो गयी...
अंशुल पनटी के पास उसकी जांघों पर आ गया और अपनी जीभ से पनटी के किनारों को गीला करने लगा.. ये हरकत निशा को दीवाना बना गयी.. उसने अपने आप ही पनटी निकाल कर एक तरफ डाल दी और अपनी चूत पर उंगली रख कर बोली.. यहाँ.. यहाँ बहुत दर्द होता है जानू.. ये मुझे टिकने नही देती... पागल कर देती है.. इसकी आग बुझाओ ना...
अंशुल तो कब से इस रास्ते पर चला ही इस मंज़िल के लए था.. उसने पर से निशा की चूत.. जांगुओ और उसके नीचे से उसकी गंद पर हाथ फेरा... उसके उपर आया और अपने 6" बाइ 3" लंड का निशाना चूत के मुँह की और कर दिया...
"ऐसे नही पागल.. उठो एक मिनिट.." निशा ने अपने उपर से अंशुल को हटाया और अपनी टाँगें उपर उठाकर अपने हाथों से पकड़ ली..," अब करो!"
"हां.. ऐसे सही होगा..! अंशुल निशा के पैरों के बीच आ गया और रसीली चूत के उपर अपना रंगीला लंड रख दिया....
"एक मिनिट रूको..! निशा ने अपने हाथ से भटके लंड को सही सुराख पर लगाया और बोली," घुसााअ दो......"
आदेश मिलते ही मिसिले सीधी अंदर घिस गयी.. पूरी की पूरी.. और अंशुल के गोले निशा की जांघों के बीच जा टकराए... ," धक्के लगाओ.. अंदर बाहर करो... तेज़ तेज़ जाआअँ... अया अया अया.. और तेज़ करो... मार गयी मया... एक बार और करेगा ना.... अया अया अंशु! तू पूरा मर्द है... धक्के तो लगा... अया...
अंशु निशा की आवाज़ के साथ साथ उत्तेजित होता गया.. और धक्कों की स्पीड बढ़ता गया... खच खच.. और फ़चा फॅक जैसी मनमोहक आवाज़ें निशा की सिसकियों के साथ ताल से ताल मिला रही थी...
करीब 5 मिनिट के बाद निशा ने अंशुल को पकड़ लिया.. बस.. मेरा निकल गया..
पर अंशुल ने उसकी एक ना सुनी.. अपने आपको मर्द पाकर और निशा के झाड़ जाने के बाद वो दुगने जोश से उसकी चूत की घिसाई करने लगा.. 1 मिनिट में ही निशा फिर से तैयार हो गयी... अब वो एक बार फिर अपने चूतड़ उछाल रही थी.. सिसकियाँ उसकी पहले से जाड़ा बढ़ गयी थी.. अपने मुँह के पास अंशुल की बानी देखकर उसने उसको काट खाया.. पर इसमें भी अंशुल का मज़ा कुछ बढ़ ही गया.. वो बिना बोले अपना काम करता रहा..
निशा अपनी कोहनियों पर बैठ कर अपनी चूत में आते जाते लंड को प्यार से देखने लगी.. लंड के बाहर निकालने के साथ ही उसकी कोमल पंखुड़िया बाहर आती और फिर लंड के साथ ही गायब हो जाती... दोनो पसीने से सराबोरे हो गये थे.. और अंततः: नादान खिलाड़ी अंशुल ने अपने लंड की धार निशा की चूत में ही मार दी.. निशा की चूत भी जैसे उस्स रस का रस से ही स्वागत करने को तैयार बैठी थी.. उसने अपने उपर आ गिरे अंशुल को अपनी चूचियों पर ज़ोर से दबा लिया और हाँफने लगी....
"दीदी! मैं असली मर्द हूँ ना.." अंशुल ने निशा के होंटो को चूसने के बाद पूछा....
"मुझे दीदी मत कहना.. तू मेरी जान है जान..!" और निशा उसके होंटो को किसी रसीले फल की तरह चूसने लगी... लंड का आकर एक बार फिर चूत में पड़े पड़े ही बढ़ने लगा... अंशुल ने दोबारा धक्के लगाने शुरू कर दिए थे....

"आब्बी साले.. कहाँ है तेरी मा की चूत... 11:30 हो गये... अब उसको बुला नही तो तेरी गांद मारूँगा..." राकेश राहुल के साथ छत पर बैठा था.. निशा के इंतज़ार में...
"यार बेहन की लौदी.. चूतिया बना गयी... पर मैं उसको अब छोड़ूँगा नही.. साली ने मेरे आगे कमीज़ निकाल कर दिखाया था.. और मेरे लंड की पिचकारी भी देखी थी..." राहुल अपने आपको और राकेश को तसल्ली दे रहा था...
"तूने कोई सपना देखा होगा.. साले.. यहाँ अपनी मा और चूड़ा ली.. आज एक और लड़की फँस सकती थी.. इसकी मा की गांद.. उसको भी छोड़ दिया इसके लालच में..
"तू चिंता ना कर भाई.. इसको तो दोनो इकते ही चोदेन्गे.. इसकी तो मा की.. इसकी गांद और चूत में इकट्ठे सुराख ना किया तो मेरा नाम बदल देना... चल अब इंतज़ार करने का क्या फयडा....
"तू इनके घर में गया है कभी....." राकेश ने राहुल से कहा...
"नही तो ...क्यूँ?" राहुल ने राकेश को देखा...
"मैं गया हूँ.. मुझे पता है उसका कमरा अलग है.. वो उसी में मिलेगी...."
"तो क्या तू अब नीचे से उसको लेकर आयगा..?" राहुल ने अचरज से पूछा...
"मैं नही तू...!" राकेश ने मुस्कुरा कर राहुल की और देखा......

"नही भाई, मैं नही जवँगा.. मुझे मरने का शौक नही है.. आज नही तो कल उसकी चोदे बिना तो रहेंगे नही... पर यूँ घर जाना तो अपनी गांद मरवाने जैसा ही है..." राहुल ने नीचे जाने से बिल्कुल माना कर दिया...
"चल ठीक है साले... अगर तूने मेरे बिना इसकी सील तोड़ी तो देख लेना फिर...."दोनो उठकर वापस चल दिए...
"तुझे पता है क्या राका... वाणी पूरी आइटम हो गयी है.. शहर जाकर.. आज शाम को मैं उधर से गुजरा तो अपने घर के बाहर थी... यार.. पहचान में भी नही आती.. बिल्कुल अपनी आयशा टाकिया की बेहन लगती है... " राहुल ने राकेश को जी खोल कर बताया...
"आबे भूट्नी के.. आयशा तो उसके आगे पानी भी नही भर सकती.. इस'से अच्छा तो तू दिशा का ही नाम ले लेता...आयशा से तो अब भी वो 2-3 इंच लुंबी होगी...." राकेश ने वाणी के सौंदर्या और भोले पन के आगे हेरोइन आएशा को भी फीका साबित कर दिया...," यार क्या आयशा.. वाएशा.. उसको नज़र भर कर देख कर ही मुथि मारने ( मस्तुबतिओं) का माल मिल जाता था आँखों को.. जिस दिन वो दिखाई दे जाती थी.. बस और कुछ देखने का दिल ही नही करता था... मैं तो अब तक रेप कर चुका होता दोनो का.. पर सालियों पर बहुत तगड़े आदमी का हाथ है... तू एक बात बता.. वो मास्टर चोदता तो वाणी को भी होगा..."
राहुल ने उसकी हां में हां मिलाई..," और नही तो क्या.. वहाँ क्या वैसे ही लेकर गया है.. तू ही सोच.. अगर तू दिशा का लोग होता तो वाणी को चोद देता क्या बिना चोदे......."
"चल छोड़ इन सब बातों को.. याद रखना.. मुझे बुलाना मत भूलना.. निशा की सील तोड़ते समय... उन्हे क्या पता था.. निशा अब गॅरेंटी में नही रही... वो तो नीचे 3 बार लगातार.. नये खिलाड़ी को मर्द बना चुकी है......

वाणी नीचे चारपाई पर अकेली लेटी थी... बराबर वाली खत पर दिशा कब की सो
चुकी थी.. पर वाणी से नींद रूठ गयी थी.. हां.. जागते हुए भी एक सपना उसकी आँखों से जुड़ा होने का नाम नही ले रहा था.. मनु का उसको बाथरूम से नंगी उठा कर ले जाने वाला सपना...
मनु का चेहरा उसके सामने ही चक्कर लगा रहा था.. मानो उस 'से कह रहा हो.. ," वाणी मैने कम से कम शर्ट पहन तो रखी थी.. चाहे वो उल्टी ही क्यूँ ना हो.. पर तुमने क्या किया.. बिना कपड़ों के ही मेरी गोद में आ गयी... ये विचार वाणी के मान में आते ही उसके चेहरे के भाव बदल जाते.. और रह रह कर बदलते रहते... कभी वा अपना ननगपन याद करके शर्मा कर पानी पानी हो जाती... कभी मनु की बाहों में अपने को सोचकर नर्वस हो जाती और कभी सिर्फ़ मनु के बारे में सोचने लगती.. सीरीयस होकर....
"मनु को किसी भी आंगल से एक बहुत ही प्यारे दोस्त के तौर पर नकारा नही जा सकता था... वो इंटेलिजेंट था.. लंबे.. छरहरे शरीर का था.. बहुत ही प्यारी सूरत वाला था.. और सबसे बड़ी बात.. वो बहुत ही नेक दिल.. और शरीफ था.. अगर उसकी जगह कोई और होता तो क्या उसको उस्स हालत में छेड़े बिना छोड़ देता... बिल्कुल नही... वाणी ने करवट लेकर अपना ध्यान हटाकर सोने की कोशिश करी.. पर मनु तो जैसे उसको अकेला ना छोड़ने का प्राण कर चुका था....
लाख कोशिशों के बाद भी जब वाणी सो ना सकी तो उठकर टवल उठाया और नहाने चली गयी.....

वाणी ने बाथरूम में जाकर लाइट ओं करी और दीवार पर टाँगे छोटे शीशे में अपना चेहरा देखने लगी... उसको अहसास था की उसका चेहरा भगवान ने बड़ी फ़ुर्सत से गढ़ा है.. उसमें मासूमियत थी.. चंचलता थी.. बिंदास मनमोहक आँखें थी... रसीले हमेशा ताज़ा रहने वेल गुलाबी गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होन्ट थे.. उसमें सब कुछ था.... उसकी हर चीज़ निराली थी..
वाणी को लगा जैसे मनु पीछे खड़ा हंस रहा है.. उसने आँखें बंद कर ली और पीछे दीवार से सॅट कर खड़ी हो गयी... क्या मनु को भी वो पसंद होगी... क्या मनु भी उसको याद कर रहा होगा... आज उसने तो उसका सबकुछ देख लिया.... क्या मैं उसको बिना कपड़ों के अच्छी लगी हूँगी... एक पल में ही वो उसके कितने करीब आ गया है.. आज वाली घटना ना होती तो वो कभी उसके बारे में सोचती भी नही.. और अब है की वो उसके दिमाग़ पर छाया हुआ है.. शायद दिल पर भी... वाणी ने अपना टॉप उतार दिया और अपने आपको चेक करने लगी...
समीज़ उसकी छातियों को ढकने में नाकामयाब था.. मोटी मोटी उभरी हुई छातियों का जोड़ा समीज़ में यूँ तना हुआ था जैसे समीज़ उनको नही, बुल्की वो समीज़ को संभाल रही हों... समीज़ के बाहर उसके अनमोल दानों का उभर अत्यंत कामुकता से पारदर्शन हो रह था.. पर मनु ने तो उनको साक्षात ही देखा होगा... वाणी के शरीर में एक जानी पहचानी सिहरन दौड़ गयी.. उसकी छातियों से लेकर उसकी नाभि से होती हुई उसकी अनपढ़ मछली की फांकों और गड्राए हुए नितंबों की दरार तक.. वाणी शर्म से अपने में ही सिमट गयी.. उसकी छातियाँ उसके दिल की धड़कन के साथ कंपित हो रही थी.. जब वो साँस अंदर लेती तो छातियाँ बाहर होकर अपने बीच की दूरी को बढ़ा लेती और गर्व से फूल जाती.. और जब साँस अंदर जाती तो समीज़ का कपड़ा थोड़ा सा खुल कर जैसे उनके बीच की दूरी पाटने की कोशिश करता... वाणी ने अपने हाथों में समीज़ का निचला कोना पकड़ा और उसको उपर खींच कर अपनी ड्यूटी से मुक्त कर दिया..
छातियों का गड्रयापन.. समीज़ को आज़ाद करते ही मचल उठा.. वो अब किन्ही प्यार भरे हाथों में जाने के लिए बेचैन होकर दायें बायें हिलने लगी... पर अब वाणी के खुद के अलावा और था ही क्या.. वाणी ने अपने दोनो हाथों से जन्नत के गुंबाडों को एक एक करके पकड़ा और उनको दबा कर देखने लगी.. नीचे से उपर सहलाने लगी.. दाने उसकी चिकनी छातियों पर हाथ फेरने में रुकावट बन कर तन कर खड़े हो गये.. एक अनार के दाने के जीतने....

वाणी ने अपना लोवर उतार दिया और शवर चला कर उसके नीचे आ गयी...ठंडा पानी उसके बदन की गर्मी को शीतल नही कर पाया अपितु.. वाणी को लगा.. पानी उसके शरीर से लगकर गरम हो रहा है...
अपने नाज़ुक हाथों से वाणी ने अपने हर अंग को सहलकर, दुलार पूछकर कर, दबाकर, फैलाकर, उठाकर और मसलकर शांत करने की कोशिश करी.. पर आज वो आख़िर में अपनी उंगली को घुसा कर भी जब वाणी को चैन नही मिला तो वाणी को यकीन हो गया.... की उसको प्यार हो गया है!

वासू शहर जाने के लिए घर से निकल कर बस-स्टॉप पर जाकर खड़ा हुआ ही था की राकेश और राहुल मोटर साइकल पर वहाँ आ धमके.. पता नही ये संयोग वश था या जान बूझ कर; पर राहुल को पता था की ये कुर्ते पाजामे वाला जवान 'मास्टर' वाणी के घर के उपर रहता है...
राहुल के इशारे पर राकेश ने बाइक स्टॉप के पास एक घर के आगे खड़ी कर दी और वासू के सामने आकर खड़े हो गये..
वासू का ध्यान उनपर कतयि नही गया था.. वो तो शहर जाकर खरीदने वाली खाने पीने और औधने वाली चीज़ों का हिसाब किताब लगा रहा था...
राकेश ने सिगरेट सुलगई और वासू के चेहरे पर धुआँ छोड़ते हुए बोला," आ मास्टर! पीनी है क्या? भरी हुई है...."
"क्षमा करो भाई... ये तो तुम्हे भी छोड़ देनी चाहिए.. इश्स उमर में ये सब व्यसन करके ज़्यादा जी नही पाओगे...
राकेश हंसा और सिगरेट राहुल को देते हुए बोला," क्या मास्टर! हम जी कर क्या करेंगे... जी तो तू रहा है.. एक को तो शमशेर ले उड़ा.. दूसरी पर तू ठंडा हो रहा होगा.. क्या किस्मत पाई है तूने..." राकेश ने वासू के कंधे पर हाथ रख कर धीरे से कहा...
"क्या कह रहे हैं आप... मैं कुछ समझा नही.. मैं तो हमशा ठंडा ही रहता हूँ भाई.. क्रोधित होने से क्या मिलता है इंसान को...." वासू ने शराफ़त से अपने कंधे से उसका हाथ हटा दिया....
"आब्बी.. यहाँ सब भोले ही बनकर आते हैं.." तभी राकेश ने देखा नीरू स्टॉप की और ही आ रही है..," पर मास्टर हमें सब पता है.... गर्ल'स स्कूल में क्या क्या होता है... हमारे लिए भी कुछ छोड़ दो मास्टर.." राकेश ने नीरू को उपर से नीचे देखते हुए वासू के गले में ही हाथ डाल लिया...
"अरे भाई साहब! आप तो गले ही पड़ गये.. हटिए ना.. ना आप हम को जानते.. ना हम आपको.. तब से धुन्या मेरे चेहरे पर छोड़ रहे हैं.. कृपया दूर हट जायें..." वासू बेचैन होकर थोड़ा तेज बोलने लगा..
नीरू राकेश द्वारा नये मास्टर जी को इस तरह परेशन होते देख अपने आपको रोक ना पाई..," सर.. आप यहाँ आ जाइए.. ग़लत लोगों के मुँह नही लगते..." नीरू वासू के हाव भाव देखते ही समझ गयी थी की वो बहुत ही 'शरीफ' इंसान है...
"देवी जी.. इन अंजन लोगों के चंगुल से बचाने का धन्यवाद!" वासू नीरू से दूरी बना कर उसके पीछे पीछे जाकर और लोगों के साथ खड़ा हो गया...
"सर! मैं देवी जी नही, आपके स्कूल में स्टूडेंट हूँ.." नीरू उसकी हद से ज़्यादा सौम्या भासा पर मुस्कुराए बिना ना रह सकी.."
"तो क्या हुआ.. मेरे लिए तो हर कन्या देवी का ही रूप है.. मैं तो हनुमान जी का भगत हूँ... बॉल ब्रह्मचारी... हमेशा से ही गुरुकुल में रहा हूँ.. और सनातन भारतिया संस्कृति सीखी है... आजकल के नौजवानो को देख कर बड़ा दुख होता है.. अच्छा हुआ आज गाँधी जी जिंदा नही हैं..."
"ये सर तो बातें बहुत करते हैं.." सोचते हुए नीरू ने कहा," सर लगते तो आप भी आजकल के ही हैं.. पर ये सब परवरिश का ही फ़र्क़ है..."
"बिल्कुल ठीक कहा देवी जी.. बिकुल ठीक .. अब मैं 25 का होने वाला हूँ.. देखा जाए तो ये मुझसे 3-4 साल ही छोटे होंगे.. पर इसी उमर में इन्होने अपने आपको कितना दूषित कर लिया है... .."
वासू की बात बीच में ही काट-ते हुए नीरू बोली..," सर, बस आ गयी!"
"आ राहुल क्या बोलता है.. इस लीडर के पीछे चलें.. बहुत पंख फड़फदा रही है साली.. मौका मिला तो नोच देंगे साली के पंख..!" राकेश ने सिगरेट फैंकते हुए राहुल से कहा..
"फिर तो बस में ही चलते हैं.. साले!.. भीड़ मिली तो रास्ते में ही गरम कर देंगे..."

और दोनो वासू और नीरू के साथ बस में लटक लिए.....

वासू बस में चढ़ते ही ड्राइवर के बराबर वाली लुंबी सीट पर बैठ गया.... नीरू को ड्राइवर के पीछे वाली सीट पर बाहर वाली सीट मिल गयी.. हालाँकि पीछे 2 तीन सीटे खाली थी.. पर राकेश और राहुल नीरू के पास खड़े हो गये...
नीरू उन दोनो की नीयत पहचानती थी.. पर बेचारे 'वासू' को उन दोनो के पास छोड़ कर पीछे जाना नीरू को अच्छा नही लगा.. और फिर इस बात का भी क्या भरोसा था की वो पीछे नही आयेंगे...
अगले ही स्टॉप पर करीब 20 सवारियाँ और बस में चढ़ गयी.. बस खचा खच भर गयी और राहुल को आगे आने का मौका मिल गया.. उसने अपने कदम खिसका कर नीरू के पास कर दिए.. इस हालत में नीरू को अपने कंधे पर राहुल की जांघों के बीच का 'कुछ' अपने कंधे से रग़ाद ख़ाता महसूस हुआ.. नीरू जानती थी की ए 'कुछ' क्या है.... उसने जितना हो सका अपने को बचने की कोशिश की पर राहुल साथ ही आगे सरकता चला गया.. नीरू बेचैन हो गयी..," आ राहुल! सीधा खड़ा नही हो सकता क्या?"
राकेश ने मज़े लेते हुए कहा," आ राहुल! पीछे हो जा.. मेडम तो लंबी गाड़ियों में चलती है.. इसको गर्मी लग रही होगी.. तेरी टाँग लगने से.." कहते ही दोनो खिल खिला कर हंस पड़े..
राहुल ने पीछे बस में गर्दन घुमाई.. सारी सवारियों ने अपनी गर्दन झुका ली.. सरपंच के बेटे से पंगा कौन लेता...
दोनो समझ गये.. बस में कोई मर्द नही है.. राहुल ने आगे होते हुए नीरू की बाजू को अपनी जांघों के बीच ले लिया..
नीरू कसमसा उठी... राहुल का भारी लंड उसको जैसे धक्का मार रहा था... वा उठ कर खड़ी हो गयी.. और यहीं उसने बहुत बड़ी ग़लती कर दी.. राकेश तुरंत खाली हुई सीट पर बैठ गया.. नीरू ने आगे पीछे देखा.. कहीं तिल रखने की भी जगह नही थी....
नीरू की हालत कुछ इस तरह की हो गयी की उसके ठीक सामने राहुल अपना 'तनाए' खड़ा था... उस 'से सटकार.. और सीट पर बैठे रोहित ने अपना कंधा उसकी उँचुई.. कुम्हलाई हुई गांद के बीचों बीच फँसा दिया...
नफ़रत और बेबसी की दोहरी आग में झुलस रही नीरू का चेहरा क्रोध से लाल हो गया..," हर्रररंजाड़े! उसने अपना हाथ जैसे तैसे निकल कर राहुल के मुँह पर छाँटा मरने की सोची.. पर राहुल ने उसका हाथ नीचे ही पकड़ लिया.. खड़ा होकर गुर्रा रहा लंड पॅंट के अंदर से ही नीरू को अपने वजूद का अहसास करने लगा...

इतने में अपनी मस्ती में मस्त वासू को जब किसी बेबस कन्या के मुखमंडल से 'हराम्जादे' सुना तो वो जैसे होश में आया..
खड़ा होकर भीड़ को इधर उधर करके अपना मुँह निकाला," देवी जी आप! क्या कष्ट हो गया है...
नीरू जानती थी.. की ये बेचारा उसकी मदद क्या करेगा.. पर फिर भी सहानुभूति के दो शब्द सुनते ही उसकी आँख से आँसू टपक पड़े...
"अरे देवी जी! बताओ तो क्या हुआ..? आप यूँ परेशन सी क्यूँ है..."
"अरे मास्टर! तेरी देवी जी को भीड़ में परेशानी हो रही है.. इसको हेलिकॉप्टर दिलवा दे..!" राकेश ने अपना कंधा नीरू की जांघों के बीच सरकते हुए कहा...
उसके बोलने के लहजे से ही वासू समझ गया.. ज़रूर गड़बड़ यहीं है.. तभी उसका ध्यान नीरू की लाकुआर हालत पर गया...
"छी छी छी.. आप ने तो हद ही कर दी.. आइए देवी जी.. मेरी सीट पर बैठ जाइए.." वासू ने विनम्रता से कहा...
"तेरी पर तो तब बैठेगी ना जब यहाँ से हिलेगी... देखता नही अंधे.. भीड़ कितनी है... यहाँ चलना तो दूर, हिलना भी मुश्किल है..." राहुल ने अपनी रग़ाद बढ़ते हुए कहा..
"कोई बात नही बंधु!" कहते हुए वासू में जाने कहाँ से जोश आया की उसके हाथ का धक्का लगते ही राहुल अपने से पीछे तीसरी सवारी पर गिरते गिरते बचा... जगह बन गयी.. और नीरू मौका मिलते ही वासू के पीछे पहुँच गयी...
"यहाँ आराम से बैठ जाइए देवी जी.." वासू ने नीरू को सीट दिखाते हुए कहा..
"अब वाला 'देवी जी' नीरू को बड़ा प्यारा लगा.. आख़िर वो लल्लू जैसा भी था.. नीरू की असमात ही बचाई थी...
वासू की इस हरकत पर राकेश का खून खौल उठा," ओये मास्टर! लड़की को पटाने की कोशिश ना कर.. ये हमारे गाँव की इज़्ज़त है...
"यही तो मैं समझने की कोशिश कर रहा हूँ बंधु.. लड़की की इज़्ज़त पुर गाँव की इज़्ज़त होती है.. उसको मा और बेहन के समान समझो..! नारी अगर सही है तो देवी का रूप है.. अगर ग़लत है तो नरक का द्वार... दोनो ही तरह की नारियों की दूर से इज़्ज़त करने में ही भलाई है पगले! जाने तुम को क्या हो गया है.. आज अगर गाँधी जी..."
"आब्बी ओ गाँधी के बंदर.. हट रास्ते से.. कहकर राहुल ने उसको ढका कर नीरू के पास जाने की कोशिश की.. पर वह सफल नही हो सका...
राकेश ने हेरोगीरि झाड़ने की खातिर अपनी कमर
पर बँधी साइकल की चैन उतार ली..," आबे ओ ड्राइवर.. बस रोक.. यहीं पर.. साला बहुत बकबक कर रहा है.. आज इसकी सारी खुसकी निकल देता हूँ साले की..."
ड्राइवर उन्न बच्चो से पंगा नही ले सकता था.. उसने तुरंत ब्रेक लगा दिए...
"चल साले बेहन के लौदे.. नीचे उतार..! तेरी मा...

" भाई.. क्यूँ उत्तेजित हो रहे हो.. हिंसा और गली गलौच सभ्या लोगों को शोभा नही देते..!" ठंडे दिमाग़ से अपने गंतव्या पर जाओ.. ताकि उद्देशा पूरा भी हो.. यहाँ बस क्यूँ रुकवा रहे हो.. मेरे साथ साथ सभी सवारियों को जल्दी है.." वासू उनको उस वक़्त भी उपदाएश दे रहा था.. पर उसके उपदेश भैंस के आगे बिन बजाने से ज़्यादा असर करते दिखाई नही दिए...
"आबे तू नीचे उतार.." कहकर रोहित ने उसको धक्का दिया.. पर उसके पोले पकड़े होने की वजह से राकेश उसको हिला नही पाया...
"अरे ओ भाई.. नीचे क्यूँ नही उतार जाता.. अपने साथ हमें भी लेट करवाएगा क्या..?" अब जाकर भीड़ में से किसी ने मर्दानगी दिखाकर बोलने की कोशिश की... ऐसे हैं हम... हमारा समाज..!
"ठीक है बंधुओ.. मेरी वजह से आप लोग क्यूँ लेट होते हो... लो मैं उतार जाता हूँ.." कहकर अपने शास्त्री जी नीचे उतर गये...
"ये बस अभी नही चलेगी... इसकी देवी जी के सामने इसकी गांद फोड़ेंगे!... सुन ले ड्राइवर.. सबको मज़ा लेने दे..." राकेश हर पल अपनी दादागिरी चमकाने के चक्कर में पहले से और उगरा होता जा रहा था... दोनो नीचे उतर आए..
नीरू अंदर बैठी बैठी काँप रही थी.. उसके चक्कर में सर जी ने किन कुत्तों से पंगा ले लिया.. उसकी आँखों में आँसू थे.. पर वो क्या कर सकती थी.. मारे शर्म के वो तो किसी को कह भी ना सकी.. सर को बचाने के लिए..
"हन अब बोल..! तू बनेगा.. मेरे गाँव की लड़कियों का रखवाला.." राकेश ने चैन हवा में लहराते हुए कहा...
"हे प्रभु! मैं कितनी बार आपसे प्रार्थना करता हूँ की मुझे हिंसा से डर लगता है.. मुझे लड़ाई झगड़े से नफ़रत है.. कितनी बार परीक्षा लेगा तू.. " वासू अपने हाथ जोड़ कर प्रभु को याद कर रहा था...

तभी भीड़ में से एक और आदमी की आवाज़ आई..," राकेश भैया... बुरा ना मानो तो.. है है है... मैं ऑफीस में लेट हो रहा था... अगर आप चाहो तो लड़की को भी उतार लो... पर बस जाने दो भाई प्लीज़..."
राकेश ने शेर की तरह बस के शीशों में से आगे पीछे देखा...
"हन हन.. राकेश भैया.. लड़की उतार लो.. बस जाने दो..! प्लीज़ प्लीज़ प्लीज़.....
राकेश की हालत गुणदवों में मर्द जैसी होती जा रही थी.. उसकी छाती फूल कर चौड़ी हो गयी... सारी प्रजा उससे प्रार्थना कर रही थी," ठीक है ठीक है.. जा राहुल उतार ले नीरू को... आज उसकी सील यहीं तोड़ेंगे.. जाने दो बस को..!"
"ठीक है भाई... मज़ा आ जाएगा.. कुँवारी चूऊऊ..." और राहुल आगे ना बोल पाया... वासू ने एक पैर पर घूम कर हाइ किक से उसको लपेट कर बस से चिपका दिया.. वासू की टाँग उसकी छाती पर थी... अब भी... एक ही वार से राहुल अधमरा सा हो गया...
" भाई.. मैं अब भी कहता हूँ... मुझे हिंसा से नफ़रत है.. मुझे मजबूर मत करो... प्लीज़... तुम जवान हो.. अपनी ताक़त अच्छे कामों में लगाओ.. क्यूँ....

वासू की बात पूरी भी ना हुई थी की राकेश ने चैन घुमा कर उस पर वार कर दिया... पर इस वार से बचकर अगले को काबू में करना वासू के लिए बायें हाथ का खेल था.. और सच में ही.. उसने बायें हाथ से तेज़ी से उसकी तरफ आई चैन को जाने कैसे फुर्ती से लपेटा और झटका देकर राकेश को घुमा दिया.. चैन दो बार राकेश के गले से लिपटी और राकेश वासू के पास खींचा चला आया... दोनो में इतना ही दम था... वासू के ढीला छोड़ते ही राहुल धदम से वासू के पैरों में गिर पड़ा... और ज़्यादा खींचाव की वजह से राकेश बेहोश हो गया...

"कोई बात नही बंधु.. इसमें पैर पकड़ने वाली कोई बात नही... ग़लतियाँ इंसान से ही होती हैं.. चलो उठो.. और अपने दोस्त को बस में चढ़ने में मेरी मदद करो... इसका इलाज करवाना पड़ेगा..." वासू ने राहुल को उठाया और राकेश के गले से चैन उतार कर उसको खड़ा करने में राहुल की मदद करने लगा...
नीरू अपने इस भगवान को आँखें फाडे देख रही थी...
जैसे ही वासू बस में चढ़ा... सारी भीड़ सिमट कर पिछले आधे भाग में अड्जस्ट हो गयी.. मर्द के साथ खड़े होने का दम उन हिजड़ों में नही था...

पता नही नीरू पर वासू शास्त्री का क्या जादू चला.. वो बाकी बचे पुर रास्ते में एकटक उसको ही देखती रही.. वासू के चेहरे पर चिर प्रिचित गंभीरता और शांति थी.. जैसे कुछ हुआ ही ना हो... जैसे उसने कुछ किया ही ना हो.. राकेश को भी होश आ गया था और वो भी दूसरी सवारियों के साथ दूर चिपक कर खड़ा हो गया.. हिजड़ों के साथ.. उसकी मर्दानगी हवा हो गयी थी.. वासू के प्रचंड तेज के आगे...

बस से उतरते ही वासू निसचिंत होकर चल दिया.. अपन ही धुन में.. शॉपिंग के लिए हिसाब किताब करता.. नीरू उसके पीछे मीयर्रा दीवानी की तरह कदम पर कदम रखती चल रही थी.. जैसे वा उसी के साथ आई हो.. जैसे उसी के साथ जाना हो...

जब नीरू को लगा की सर पीछे नही देखेंगे तो वा हिम्मत करके बोल ही पड़ी,"सर!"
वासू सिर घूम कर चौंके," देवी जी! कोई समस्या है क्या...?"
"नही सर.... वो... मैं ये कह रही थी की.... थॅंक योउ सर!"
"अरे.. कमाल करती हो आप भी.. निसंकोच होकर जाइए... अगर दर लग रहा हो तो मैं छोड़ आता हूँ..." वासू ने दूर से ही उस 'से पूछा...

हालाँकि डर वाली कोई बात नही थी.. वो अगली क्लास के लिए बुक्स लेने आई थी..," जी.. सर! वो मुझे किताबें लेनी थी...मार्केट से..."
"मैं भी मार्केट ही जा रहा हूँ... कहिए तो साथ ही चलते हैं... देवी जी!"
"जी मेरा नाम नीरू है..." वैसे अब नीरू को उसके मुँह से देवी जी भी बड़ा प्यारा लग रहा था.. 'अपना सा'

पहले वासू ने उसको किताबें दिलवाई.. फिर एक पंसारी की दुकान पर जाकर खड़ा हो गया," भाई साहब! आधा किलो गुड देना..!"
"गुड को हाथ में लेकर वासू नीरू को दिखाने लगा," चाय गुड की ही पीनी चाहिए.......... वग़ैरह वग़ैरह...."
वासू अपनी हर भोली बात के साथ नीरू के दिल के करीब आता जा रहा था.. 24-25 साल का युवक और इतना शांत.. असहज ही लगता था.. पर नीरू को उसकी हर बात बड़ी प्यारी लग रही थी...

वापस आते हुए नीरू ने वासू से हिम्मत करके पूच ही लिया," सर.. एक बात पूछूँ..."
अपने गोले चस्में को अपनी नाक पर उपर चढ़ाता वासू जवाब देने को तैयार हो गया..," हां बोलिए....!"

"वो आपमें अचानक इतनी ताक़त कहाँ से आ गयी......"

"अच्छा वो... " वासू ने फिर से अपना लेक्चर शुरू कर दिया," वो मेरी ताक़त नही थी.. वो योग की ताक़त है.. योग आदमी को सर्वशक्तिमान बना देता है.. मैं गुरुकुल के समय से ही योग करता आ रहा हूँ... गाँधी जी भी योग की बड़ी तारीफ़ करते थे.. योग ही महान है.. आपको भी योग करना चाहिए... ज़रूर... वैसे में मार्षल आर्ट का नॅशनल चॅंपियन भी रहा हूँ.. रही अचानक ताक़त आने की बात तो वो तो हनुमान जी की कृपा है... मैं बाल.... छोड़ो.. इस बात को...!"

नीरू मान ही मान खुद पर मुश्कुरा रही थी... की किस लल्लू को दिल दे बैठी," सर आप मुझे योग सीखा देंगे...?"

वासू हड़बड़ा गया...," एम्म मैं.. नही.. मैं नही सीखा सकता...!"
"क्यूँ सर?"
"वो क्या है की.. डी.ए.ओ. साहब ने जाने किस खुन्नस में मेरा ट्रान्स्फर 'गर्ल'स स्कूल में कर दिया... मैं तो मजबूरी में यहाँ आया हूँ.. मैं लड़कियों को नही पढ़ा सकता... मैं जल्द ही ट्रान्स्फर करवा लूँगा अपना.."

नीरू बेचैन हो गयी...ट्रान्स्फर की बात सुनकर," पर सर आपने वाडा किया था. की आप मेरी मदद करेंगे.. मुझे योग सीखा दीजिए ना...!"

नीरू की लाख कोशिशों के बाद भी वाशु ने अपने आपको टच नही करने दिया था नीरू को..," मुझे सोचना पड़ेगा..!"

गाँव आ गया था.. नीरू ने वासू को दोनो हाथ जोड़कर प्रणाम किया और अपने घर की और चल दी....

नीरू के घर जाते ही मया ने चाय बनाकर उसको दी...
"नही मम्मी.. मैं गुड की चाय पियूंगी...!"
"गुड की... पागल है क्या.. जब चीनी है तो गुड की चाय क्यूँ..?"

"मुझे नही पता.. बस मैं अपने आप बना कर पी लूँगी" आख़िर नीरू को आदत डालनी थी ना... शादी से पहले ही....

विकी यूनिवर्सिटी के गेट के बाहर गाड़ी में बैठा था.. किसी शिकार के इंतजार में..
दोस्तो विकी नाम का ये किरदार भी अब इस कहानी का हिस्सा बन गया है वैसे तो विकी अपने अजीत यानी टफ ओर शमशेर का स्कूल के जमाने का दोस्त है ओर आज कल सीमा के कोलेज के चक्कर किसी नयी लड़की को फसाने
के लिए लगा रहा था
उसकी आँखें रात को ज़्यादा शराब पीने की वजह से अब भी लाल थी.. जाने कितनी लड़कियों को वा अपने बिस्तेर तक ले जा चुका था.. अपने पैसे, सूरत और जवान मर्द जिस्म की वजह से.... उसका अंदाज निराला था लड़की को सिड्यूस करने का.. कोई खूबसूरत लड़की उसको दिख जाती तो वा उसको नंगी करके ही दम लेता.. 2-4 दिन उसके पीछे चक्कर लगाता.. पट जाती तो ठीक वरना पहले ही उसको अपना 'सब कुछ' दे चुकी लड़कियों को उसके पीछे लगा देता.. उसके बारे में हर बात जान लेता.. फिर उसकी दुखती राग पर चोट करता.. आम तौर पर लड़की भावनाओं में बहकर उसकी बाहों में आ ही जाती थी... और फिर वो खुल कर उसके शरीर और उसकी भावनाओ से खेलता... कोठी पर ले जाकर...

ऐसी भी लड़कियों की कमी नही थी जो उसकी हसियत से प्रभावित होकर अपने उल्टे सीधे अरमान पूरे करने के लिए उसकी रखैल बन जाती...
विकी एक घंटे से किसी नयी चिड़िया के लिए जाल बिछाए बैठा था.. पर आज लगता है उसका दिन खराब था..
नही... ! आज का दिन तो उसके लिए जाने कितनी बड़ी सोगात लेकर आया था.. बॅक व्यू मिरर में उसने देखा.. एक मस्त फिगर वाली लड़की अपनी छाती से किताबें चिपकाए, अपने हाथ से हवा में ऊड रहे बालों की लट सुलझती बड़ी शराफ़त से चलती उसकी गाड़ी की और आ रही थी... थोड़ा पास आने पर वो चौंक गया.. इतनी खूबसूरत लड़की उसने आज तक देखी ही नही थी.. मोटी आँखें.. भरे भरे गाल.. गोले चेहरे.. चेहरे पर जहाँ भर की मासूमियत लिए.. वो नज़रें झुकायं चली आ रही थी..

जैसे ही लड़की अगली खिड़की के पास आई.. विकी ने अंजान बनकर खिड़की अचानक खोल दी.. लड़की टकराते टकराते बची," उप्पप्प्स.."
"सॉरी मिस...? मैं पीछे देख नही पाया.. आइ आम टू सॉरी" विकी ने अपनी आँखों से 'रेबन' का ड्युयल पोलेराइज़्ड गॉगल्स उतारते हुए कहा.
"इट'स ओके!" लड़की ने बिना उसको देखे अपना रास्ता बदला और आगे चल दी..
"ओह माइ गॉड! क्या लड़की है यार... आज से पहले मुझे ये क्यूँ नही दिखी" लड़की के कुल्हों के बीच जीन्स में बनते बिगड़ते कयामत ढा ते भंवर को देखकर विकी ने सोचा....
"सुनिए मिस...!" विकी ने स्टाइल में उसको पुकार कर रोका...
"जी.. मैं?" लड़की आवाज़ सुनकर पलटी..
"जी.. नाम तो बताती जाइए.. दुनिया इतनी छोटी है.. जाने कब कहाँ मुलाक़ात हो जाए.. कूम से कूम आपका नाम तो याद रख ही सकता हून...!" विकी ने अपना पहला दाँव खेला...
"नही! मेरी दुनिया इतनी छोटी नही की उसमें हर टकराने वेल से मुलाक़ात होती रहे.." लड़की ने रूखा जवाब दिया...
"देखिए.. मैं यहाँ नया हूँ.. मुझे यूनिवर्सिटी लाइब्ररी में किसी से मिलना है.. अगर आप रास्ता बताने की कृपा कर सकें तो...?"
"यहाँ से अंदर जाकर रोज़ पार्क से लेफ्ट हो जाइए... लाइब्ररी पहुँच जाएँगे.." कहते ही लड़की ने चलना शुरू किया...
"नाम तो बताते जाइए..." विकी पीछे ही पड़ गया..
लड़की को विकी बातों से शरीफ आदमी जान पड़ा," सीमा.. सीमा ढनखाड़!... अब खुश?"
"आक्च्युयली.. मुझे लाइब्ररी नही जाना.. मैं भी आगे ही जा रहा हूँ.. अगर आप मेरी लिफ्ट कबूल कर लें.. तो मेरा आहो भाग्या होगा!" राजनीति में विकी किस समय पर कौनसी बात करनी है, सब जान गया था...
"अजीब आदमी हैं आप... पीछे ही पड़ गये.." कहकर सीमा अपने रास्ते चल दी...

सीमा के कुल्हों की कातिल लचक देखकर विकी अपने दिल पर हाथ रख कर खड़ा हो गया," जाएगी कहाँ जान... आज नही तो कल.. तू मेरी बाहों में आएगी ही.....




दोस्तो आगे की कहानी जानने के लिए पाट-24 का इंतजार करे
आपका दोस्त
राज शर्मा
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