गर्ल्स स्कूल पार्ट --49
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा गर्ल्स स्कूल--49 लेकर हाजिर हूँ
ये सब क्या है स्नेहा? सब इतने खुश हैं, टूर पर जाने को लेकर और तुम यहाँ लेटी हो, अकेली! बात क्या है आख़िर? पता तो चले!" राज ने अंदर जाते ही स्नेहा से कहा..
स्नेहा ने बैठी होकर अपने चेहरे के आँसुओं को हाथ से सॉफ किया," कुच्छ नही.. वो मेरी तबीयत खराब है!"
"ये लो! खुश हो जाओ.. मोहन का फोन आया था.. अभी फिर आएगा.. चलो उठकर मुँह धो लो और बात करके बाहर आ जाओ, हम सभी टूर की प्लॅनिंग कर रहे हैं.. मोहन को बोल देना, वो तुम्हे टूर के बाद ही यहाँ से ले जाए..." राज ने कहा और फोन वहाँ रखकर बाहर चला गया..
मोहन का नाम सुनते ही स्नेहा की आँखों में पल भर के लिए चमक आ गयी, पर जैसे ही उसको वास्तविकता का आभास हुआ वो फिर से मुरझा गयी.. फोन को हाथ में लिए हुए वह बिना पलक झपकाए उसको देखती रही जब तक की उस पर मोहन का फोन नही आ गया.. फोन आते ही उसने झट से कॉल अटेंड करके फोन अपने कान से लगा लिया..
" हेलो!" फोन में से आवाज़ आई...
" आइ लव यू जान!" स्नेहा ने कहा और किसी बच्चे की तरह रोने लगी...
"आइ लव यू टू यार.. पर ये तुम... रो क्यूँ रही हो?" विकी का दिल धड़क रहा था कहीं स्नेहा को सब पता ना चल गया हो; उसके बारे में...
स्नेहा की आँखों से आँसू और आवाज़ में कारून कंपन थमने का नाम नही ले रहे थे," तुम.. तुम मुझे छ्चोड़ कर क्यूँ चले गये.. वि.. मोहन!" स्नेहा ने तो मोहन से प्यार किया था.. विकी तो बस यूँही ही निकलने को हो गया था..
"कहाँ छ्चोड़ गया मैं? एक रात की ही तो बात थी.. अभी तुम्हे लेने आया तो तुम यहाँ मिली नही.. वहाँ कैसे पहुँच गयी तुम..?" विकी स्नेहा के 'छ्चोड़ कर चले जाने' कहने का मतलब नही समझ पाया...
स्नेहा कुच्छ ना बोली.. रह रह कर उसकी लंबी सिसकियाँ विकी को फोन पर सुनाई दे रही थी..
"मैं तुम्हे लेने आ रहा हूँ! तैयार हो जाओ जान.." विकी ने स्नेहा से कहा...
फिर से जवाब के रूप में एक लंबी सिसकी के सिवाय विकी को कुच्छ ना सुनाई दिया.. उसका दिल धक धक करने लगा.. कहीं उसके सारे किए कराए पर पानी तो नही फिर गया है..
" आओगी ना.. मेरे साथ.. ? बहुत प्यार करना है जान.. कल से तुम्हे देखने को दिल मचल रहा है.. जी भरकर प्यार करेंगे.. आओगी ना.. अभी?" विकी ने सेक्स का पासा स्नेहा की और फैंका..
स्नेहा के ज़ज्बात टीस बनकर उसकी छाती में चुभने लगे.. पर वा कुच्छ ना बोली...
"तुम्हे किसी ने बरगालाया तो नही है जान.. मुझ पर विस्वास नही है क्या?" विकी की धड़कने तेज हो गयी थी.. उसकी परेशानी उसके माथे पर छलक आए पसीने से सॉफ झलक रही थी...
" मैं आ रही हूँ..! लेने आ जाओ" और स्नेहा फफक पड़ी.. जाने क्या सोचकर उसने ये फ़ैसला लिया था.........
" आइ लव यू जान...! मैं तुम्हे लेने आ रहा हूँ.. तैयार रहना.. मैं अंदर नही आउन्गा.. तुमसे प्यार करने को बेकरार हूँ.. आ रहा हूँ मैं.." विकी ने फोन रखने के बाद स्नेहा के जवाब का इंतज़ार किया.. पर जवाब में लगातार उसकी सिसकियाँ ही मिल रही थी.. विकी ने फोन काट दिया..
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दोस्तो आइए इधर अपने वासू भाई क्या कर रहे हैं इनकी खबर लिए हुए भी काफ़ी टाइम हो गया है
" जी श्रीमती जी! कहिए; किसलिए याद किया?" वासू ने ऑफीस के अंदर आते ही अंजलि से सवाल किया..
"आईए वासू जी!" अंजलि उसके व्यक्तिताव से इस कदर प्रभावित थी कि उसके ऑफीस में आने पर एक बार अपनी कुर्सी छ्चोड़ कर खड़ी ज़रूर होती थी," बैठिए!"
"जी, धन्यवाद... कहिए?" वासू कुर्सी संभालते हुए बोला...
"दरअसल.. हमने सोचा है कि क्यूँ ना बच्चों को कही घुमा कर ले आया जाए.. फंड का काफ़ी पैसा हमरे पास जमा है.. सोच रही थी.. उसका सदुपयोग ही हो जाए.. आपका क्या विचार है?" अंजलि ने वासू की राई जान'नि चाही..
"पर अगले महीने से तो बच्चों की परीक्षयें आरंभ हो रही हैं.. हम उसके पासचात भी ऐसा कर सकते हैं.. क्षमा करें पर मुझे तो अभी इसका औचित्या समझ में नही आता!" वासू ने दो टुक जवाब दिया..
अंजलि निरुत्तर हो गयी.. उसको ऐसा ही जवाब मिलने का अंदेशा था.. वैसे भी टूर पर स्कूल से एक मेल टीचर का बच्चों के साथ होना ज़रूरी था.. और सुनील निजी काम की वजह से पहले ही साथ जाने में असमर्थता दर्शा चुका था...
"पर 5-7 दिन चलने में हर्ज़ ही क्या है? एग्ज़ॅम वैसे भी सेप्टेंबर लास्ट में हैं.. और उनको हम एक साप्ताह और आगे सरका देंगे.. बोलिए?" अंजलि ने उसको मनाने की कोशिश की..
" आप जो चाहे करें.. आपने मुझसे राई माँगी थी.. सो मैने दे दी.. मुझे आगया दें..मेरी कक्षा का समय निकला जा रहा है" कहकर वासू कुर्सी से उठ गया...
" पर आपको तो साथ चलना पड़ेगा ना.. इसीलिए तो पूच्छ रही हूँ.." अंजलि ने अपना मंतव्या सपस्ट किया...
" क्षमा करें श्रीमती जी! मैं साथ नही दे पाउन्गा आपका.. !" वासू ने दो टुक कहा और हाथ जोड़कर बाहर निकल गया...
"अफ.. क्या किया जाए?" अंजलि ने एक लंबी साँस ली और फोन निकल कर शमशेर के पास मिला लिया...
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"सर.. मुझे ये सूम समझ नही आ रहा!" नीरू नज़रें झुकाए क्लास से बाहर निकल रहे वासू के सामने अपना मत लेकर खड़ी हो गयी...
वासू का तन्हा और बेचैन दिल धड़क उठा.. उस हसीन सुबह के बाद नीरू ने उसके पास आना ही छ्चोड़ दिया था.. स्कूल खुलने के बाद भी वो उस'से कन्नी काटने लगी थी.. वासू भी झिझक के कारण कभी उसको टोक नही पाया था
" श.. ये सवाल.. ये तो बहुत ही आसान है.." बाग बाग हो उठे वासू ने उसके हाथ से किताब लेते हुए कहा.. उसकी तिरछी नज़र ने बस एक बार नीरू की चुननी में छिपि हुई उसकी गोल छातियो के बीच से झलक रही थोड़ी सी मगर कामुक खाई को निहारा," कहाँ समझाउ?"
" जहाँ आपका दिल करे सर.... स्टाफ रूम में....?" नीरू ने अपने हाथों की उंगलियाँ मटका-ते हुए कहा.. बेचैनी में लोग अक्सर ऐसा करते हैं... वासू से नज़रें वो अब भी मिला नही पा रही थी...
"नही नही... मतलब... मेरा ये अभिप्राय नही था.." वासू को लगा जैसे उसकी नज़रों को नीरू ने ताड़ लिया है.. ," आपकी अभ्यास पुस्तिका कहाँ है..? उसी पर तो समझौँगा ना..?"
नीरू लज्जित सी होकर क्लास में गयी.. और अपनी कॉपी उठा लाई.. वासू वहीं खड़े होकर उसको सवाल समझाने लगा..
"सररर..!" नीरू ने नज़रें चुराते हुए वासू को बीच में टोक दिया...
"बोलो!" वासू ने अपनी निस्तूर आवाज़ को आख़िरी हद तक मीठी कर लिया...
" व.. वो.. सर, यहाँ ... शोर बहुत ज़्यादा है.. स्टाफ्फरूम में चलें..!" नीरू ने अटक अटक कर अपनी बात पूरी की... अपने एक पैर से दूसरे पैर को दबाते हुए उसने बस एक बार, एक बार वासू से नज़रें मिलाई...
वासू उसके मंन के भाव-नाओ को ताड़ गया.. कॉपी उसके हाथ में देते हुए बोला," तुम 5 मिनिट के बाद आना!" और स्टाफ रूम की और निकल गया..
अब एक बार फिर हनुमान भक्त का टकराव मेनका से होता देखने को मिलेगा...
" मे आइ कम इन, सर?" नीरू के बदन में वासू को स्टाफ्फरूम में अकेला पाकर झुरजुरी सी दौड़ गयी. वासू के हाथ का नाभि के नीचे वो कामुक स्पर्श अभी तक उसको ज्यों का त्यों महसूस हो रहा था.. मानो कल की ही बात हो..
वासू ने आँखों ही आँखों में उसको अंदर आने का इशारा किया.. नीरू के मनोभावों को ताड़ कर उसके अंग प्रत्यंग में प्रेम रस का संचार होने लगा था..
नीरू अंदर आई और अपनी किताब उठाकर वासू के सामने टेबल पर रख दी.. और खुद वासू की कुर्सी के जितना पास खड़ी हो सकती थी; हो गयी..
"ये लो.. कितना आसान था.. जाने क्यूँ समझ नही पा रही थी.. अब आ गया..?" वासू ने उसके सामने सवाल निकाल कर दिखाने के बाद कहा
नीरू ने वासू की आँखों में आँखें डाली.. जैसे कुच्छ कहा हो.. फिर नज़रें झुका ली.. और वहीं खड़ी रही.. वासू की कोहनी नीरू के घुटनो से कुच्छ उपर उसकी जाँघ को छ्छू रही थी.. उस समय तो नीरू को हल्का सा वो स्पर्श ही जानलेवा प्रतीत हो रहा था..
"और कुच्छ........... समझना है क्या?" वासू उसकी तरफ से पहल का इंतज़ार कर रहा था...
"जी! ..... जी नही!" जब नीरू से कुच्छ बोला ही नही गया तो वा वहाँ रहकर करती भी क्या? हल्का सा झुक कर अपनी किताबें उठाई और चलने लगी.. वासू से रहा ना गया," नी.."
"जी सर..!" नीरू ने अपना नाम भी पूरा ना लेने दिया.. तुरंत पलट गयी.. जैसे उसको पता ही था.. वासू उसको रोकेगा ज़रूर..," जी.. सर!" नीरू ने वापस टेबल के पास आकर किताबें उसस्पर रख दी और दोनो हाथों से टेबल पर लगी सुनमाइका को साइड से खुरचने लगी.. नज़रें झुकाए हुए.. जैसे उसका पता ही था की वासू अब क्या बोलेगा.. खड़ी खड़ी उसके बदन में कंपकपि सी जाग उठी...
"व.. वो.. मैं कह रहा था.. तुम्हारे घर भैंसे हैं क्या?" वासू क्या का क्या बोल गया...
"जी? ..." नीरू ने नज़रें उठाकर वासू के चेहरे को देखा और नज़रें मिलाए बिना ही वापस झुका ली.. कम से कम उसको इतने बेतुके सवाल की उम्मीद नही थी.. इतना रोमांच पैदा होने के बाद...," जी हैं..."
" दूध देती हैं..?" वासू का अगला सूपरहिट सवाल!!!
नीरू ने सकपका कर अपनी चुननी को ठीक किया.. उसके दिमाग़ में जो कुच्छ चल रहा था.. उस'से उसको यही ख़याल आया की उसके ही 'दूध' की बात कर दी वासू ने! और जैसे ही उसको होश आया, उसने खुद को संभाला," जी.. अभी तो नही.."
"हूंम्म.." वासू ने अपना सिर हिलाते कहा.. वासू को समझ ही नही आ रहा था.. आगे क्या बोले? कैसे बोले?..
"सर..?"
"हां?" वासू ने उम्मीद की शायद वही शुरुआत कर दे..
" मैं जाउ? क्लास में?" और वो बेचारी क्या कहती...
"हां.. एक मिनिट!" वासू ने उसको फिर रोक लिया.. इश्स बार उसका हाथ पकड़ कर..
नीरू के सारे शरीर में उत्तेजना की लहर दौड़ गयी... उसने घबराकर वासू की और देखा.. तो वासू ने तुरंत हाथ छ्चोड़ दिया... नीरू तड़प उठी," नही सर.. मैं ऐसा नही कह रही.." नीरू को वासू का यूँ हाथ पकड़ कर छॉड्ना कतई अच्च्छा नही लगा.. उसका हाथ अभी भी वासू की तरफ उठा हुआ था.. जो वासू ने छ्चोड़ दिया था....
" क्या?" वासू की समझ में नही आया.. वो क्या कह रही है.. और क्या नही..
" वो.. सर.. मुझे बुरा नही लगा.. जब आपने हाथ पकड़ा तो.." नीरू का सारा बदन उत्तेजना की गर्त में डूबता जा रहा था.. आख़िरकार उसने कह ही दिया...
वासू ने हाथ बढ़ाकर फिर से उसका हाथ पकड़ लिया.. एक बार दरवाजे की तरफ देखा और दूसरे हाथ से उसकी कलाई को सहलाने लगा.. प्यार से..
नीरू की आँखें बंद हो गयी और वा अपनी कलाई पर प्यार से रेंग रहे वासू के हाथ को अपने हर नग पर महसूस करने की कोशिश करने लगी.. 'वहाँ' गीलेपन का अहसास होते ही उसने अपनी जांघों को एक दूसरी से चिपका लिया.. साँसों की तीव्रता के साथ ही उनमें मादकता भी बढ़ गयी.. जो वासू को सीधे अपने कलेजे में महसूस हो रही थी...
"उस दिन तो बुरा लगा था ना?" वासू ने अपने हाथ की पकड़ उसकी हथेलियों पर मजबूत कर दी...
नीरू ने आँखें बंद किए हुए ही अपना सिर 'ना' में हिला दिया.. उसको समझते देर ना लगी की वासू किस दिन की बात कर रहा है.. उसके तेज़ी से धड़क रहे दिल से सॉफ था की 'उस' दिन जैसा ही कुच्छ वो आज भी चाहती है.. बुल्की उस'से भी ज़्यादा...
" फिर तुम वहाँ से भागी क्यूँ?" वासू का सवाल जायज़ था.. पर वक़्त सही नही था.. ये वक़्त सवाल जवाब का थोड़े ही था.. आगे बढ़ने का था.. पिच्छली ग़लतियों को भूला कर...
"आइन्दा नही भागुंगी सर..." लंबी साँस छ्चोड़ते हुए नीरू खिसक कर वासू की कुर्सी से सटकार खड़ी हो गयी और उसकी तरफ अर्थपूर्ण नज़रों से देखा......
"भाग चलें.. सॉरी.. बाहर चलें.. घूमने के लिए.. 5-7 दिन?" वासू ने उसका दूसरा हाथ भी अपने हाथ में लेकर उसको अपनी तरफ घुमा दिया..
" पर ये कैसे हो सकता है सर.. घर वालों को क्या कहूँगी...?" नीरू ने सवाल किया.. हालाँकि उसकी तरफ से पूरी 'हां' थी...
" स्कूल की तरफ से जायें तो.. और बच्चों के साथ..?" वासू का भी टूर का मूड बन गया था.. नीरू के साथ
नीरू के आनच्छुए यौवन की प्यास हाथों से ना मिट पाने की कसक नीरू की आँखों में सपस्ट दिखाई दी जब उसने वासू से नज़रें चार की," चलूंगी सर.. कब चलना है.?"
वासू का रोम रोम खिल उठा..," मैं लंच के बाद बताता हूँ... अभी तुम जाओ.. कोई आ जाएगा.. " कहकर वासू खड़ा होकर स्टाफ्फरूम से निकल गया...
नीरू तड़प उठी.. टूर तो जब जाएगा तब जाएगा.. अभी क्या करूँ.. उसने अंगड़ाई लेकर जांघों के बीच अपनी पॅंटी को ठीक किया और मुरझाई हुई सी अपनी क्लास में आ गयी...
" स्नेहा! मैं 5 मिनिट में घर के बाहर मिलूँगा.. तुम तैयार हो ना.. जान?" विकी ने स्नेहा को फोन पर कहा...
" हां.. मैं तैयार हूँ.. आ जाओ!" स्नेहा ने खुद को नियती का सामना करने के लिए तैयार कर लिया था.. वैसे भी अब उसके पास उसकी जिंदगी के अलावा खोने को था ही क्या जो वो मना करती.. और उस जिंदगी का भी अब क्या फाय्दा?
वह पहले ही तैयार हो चुकी थी.. वीरू समेत सबको उसने बता दिया था.. वह जा रही है; विकी के साथ..
जैसे ही वह बाहर निकली, राज ने उसको टोका," अभी मत जाओ ना स्नेहा! प्ल्स.. एक हफ्ते की ही तो बात है.. मान भी जाओ!"
" नही भैया.. मुझे जाना पड़ेगा.. विकी.. मोहन को मेरी ज़रूरत है.. मैं नही गयी तो शायद उसका सपना 'सपना' ही रह जाएगा..." अपनी आँखों की नमी को रुमाल से पौंचछते हुए वह बोली...," वीरू कहाँ है?"
"पता नही.. तुम नही मानी तो वो नाराज़ होकर कहीं चला गया.. मैने उसको रोका भी था.. पर वो नही माना.. लंगदाते हुए गया है.. पता नही कहाँ.." राज को लगा अब उसको रोकने का कोई फ़ायडा भी नही.. उसकी गीली आँखों में दृढ़ता सॉफ झलक रही थी.. जाने की.. मोहन के साथ..
"वो कहाँ है?" स्नेहा ने अपने मुरझाए चेहरे पर क्षणिक मुस्कुराहट लाते हुए पूचछा.. राज समझ गया.. वो किसकी बात कर रही है..
"अभी बुलाता हूँ.." राज दूसरे कमरे में गया और लड़कियों में से प्रिया का हाथ पकड़ लाया..
" तुम मान तो रही नही हो.. मेरा तुमसे बात करने का दिल नही करता..." प्रिया ने आते ही अपना मुँह बनाया....
स्नेहा ने उसका हाथ पकड़ लिया.. बरबस ही उसके आँसू छलक उठी..," राज का हाथ मत छ्चोड़ना प्रिया.. पहला प्यार अक्सर खो जाता है.. और फिर आँखें तमाम उम्र भीड़ में उसको खोजती रहती हैं.. (आम आइ राइट?) ...मुसीबतें आएँगी.. पर तुम दोनो मिलकर सामना करना... भगवान सच्चे प्रेम का साथ हमेशा देते हैं.." स्नेहा के लिए कहते हुए अपने आपको संभालना मुश्किल हो गया.. रोते हुए ही उसने बात पूरी की,"... ऐसा सुना है मैने!"
"पर तुम रो क्यूँ रही हो स्नेहा.. सुबह से ही तुम रो रही हो.. बात क्या है..?" प्रिया ने स्नेहा को प्यार का गुरुमन्तरा देते हुए सुबक्ते देख पूछा..
"कुच्छ नही.. इनका क्या है.. ये तो हमेशा साथ देते हैं.. तन्हाई की अग्नि जब तड़प बनकर हमें कचॉटने लगती है तो यही तो ठंडक देते हैं.. आँसू!." स्नेहा ने उन्हे पौचहते हुए कहा..," ध्यान रखना एक दूसरे का.. हर कोई मोहन नही होता.." कहते हुए वह प्रिया के गले लगकर रोने लगी... प्रिया की आँखों से भी आँसू छलक उठे..
" स्नेहा.. हमें तुम्हारे साथ की ज़रूरत पड़ेगी.. मोहन को बोल देना.. हमारी मदद करे.. अब यहाँ हम कब तक रहेंगे..?" प्रिया ने भी उसको अपनी छाती से चिपका लिया..
" तभी बाहर गाड़ी का हॉर्न सुनाई दिया.. स्नेहा बिना किसी और से बात किए जल्दी से बाहर निकल गयी.. बाहर मोहन उसका इंतज़ार कर रहा था.. 'अपना' सपना साकार करने के लिए.... स्नेहा ने गाड़ी की खिड़की खोली और अगली सीट पर जाकर बैठ गयी.. अपने आखरी सफ़र के लिए
"बात क्या है स्नेहा? तुम्हारा मूड ठीक नही लग रहा.. कोई प्राब्लम है क्या?" विकी ने झिझकते हुए स्नेहा से पूछा.. हालाँकि स्नेहा ने उसके पास आने से पहले अपने आपको संभाल लिया था.. और गाड़ी में बैठते ही मुस्कुराकर विकी की और देखा भी था.. पर आज उसकी मुस्कुराहट में वो कशिश नही थी.. वो निरलापन नही था.. और.. फिर चोर की दाढ़ी में तिनका होता ही है.. विकी को शक था ही.. कहीं स्नेहा 'कुच्छ' जान तो नही गयी है..
"नही.. कुच्छ नही.. हम अब कहाँ जा रहे हैं..?" स्नेहा ने बात पलट'ते हुए पूचछा...
" कहाँ जा रहे हैं मतलब? कहीं तो जाएँगे ही.. प्यार नही करना क्या? तुम तो तड़प रही थी मेरे लिए!" विकी ने उसके बालों में हाथ फेरते हुए कहा...
'प्यार करना किसी के हाथ में तो नही होता ना मोहन.. वो तो बस हो जाता है.. जैसे मुझे हो गया.. तुमसे.. वरना किसने सोचा था.... मोहन! तुम्हे मैं प्यारी तो लगती हूँ ना...?" स्नेहा ने विकी से पूचछा..
"ययए तुम आज कैसी बातें कर रही हो.. क्या हो गया है तुम्हे?" विकी के अंतर्मन ने उसको धिक्कारा और उसने स्नेहा के हाथों में लहरा रहा अपना हाथ वापस खींच लिया...
"कुच्छ नही.. आज मम्मी की बड़ी याद आ रही है.. !" स्नेहा रेकॉर्डिंग को याद करते ही भावनाओ में बहकर बिलख पड़ी.. विकी से रहा ना गया.. उसने गाड़ी साइड में लगाकर स्नेहा का चेहरा अपने हाथों में ले लिया.. स्नेहा का एक एक आँसू लावे की तरह उसके दिल पर टपक रहा था.. बड़ी मुश्किल स्थिति थी.. विकी के लिए," क्या बात है.. तुम आज... तुम तो कह रही थी.. तुमने मम्मी को कभी देखा ही नही.. फिर आज यूँ अचानक मम्मी कैसे याद आ गयी.....?"
" हां.. देखा नही है कभी.. पर आज महसूस हो रहा है.. वो भी कितनी बेबस रही होंगी.. कितनी तदपि होंगी वो.. ये कब तक चलेगा विकी.. नारी कब तक पुरुष के जुल्मों का शिकार होती रहेगी.. कब तक पुरुष उसको अपनी हसरातों और सपनो को पूरा करने का 'साधन' मानता रहेगा.. अर्धांगिनी होने का हक़ क्या हमें कभी नही मिल पाएगा? हम क्या ऐसे ही दुनिया में आती हैं.. नंगी करके जंगली कुत्तों के सामने डालने के लिए..?" स्नेहा को 'वो' बातें लगातार घुटन बनकर उसको खाए जा रही थी... आख़िर उसने निकाल ही दी.. विकी को विकी कहकर उसने विकी को हक्का बक्का कर दिया.. आख़िर उसको भी हक़ था.. जाने से पहले जान'ने का.. की उसके साथ ऐसा क्यूँ हुआ.. यही उसकी आख़िरी इच्च्छा थी...
विकी को जैसे साँप सूंघ गया.. पूरी तीव्रता दिखाते हुए उसने गाड़ी को लॉक कर दिया.. ताकि स्नेहा वहाँ से बचकर भाग ना सके..
" मुझे भागना होता तो मैं तुम्हारे साथ आती ही क्यूँ?" स्नेहा के चेहरे पर अब सुकून झलक रहा था... विकी को ये बताकर की वो उसकी फ़ितरत जान चुकी है..
" हूंम्म्म.. तो तुम्हे सब कुच्छ पता लग गया.." विकी ने लंबी साँस छ्चोड़ते हुए कहा...
"नही.. सब कुच्छ कहाँ पता लगा.. मुझे अभी तक ये पता नही लगा है कि मैं तुम्हे पहचान क्यूँ नही पाई.. तुम्हारी आँखों में छिपि वासना को मैं प्यार कैसे समझ बैठी.. और ये भी मैं कभी नही जान पाउन्गि कि सब कुच्छ जान लेने के बाद भी तुम्हारे पास क्यूँ चली आई... मरने के लिए..!" स्नेहा ने विकी को झकझोर कर रख दिया...
" देखो स्नेहा.. इसके लिए मैं ज़िम्मेदार नही हूं.. अपने ये सारे सवाल अपने बाप से करना.. जिसने अपनी बीवी के साथ ऐसा किया.. और अब तुम्हारे साथ करने की सोच रहा है...! मैने तुमसे कभी प्यार किया ही नही.. मैं प्यार व्यार को नही मानता.. मेरा लक्ष्या मल्टिपलेक्स हासिल करना था.. और वो तुम्हे उनको सॉन्प देने के बाद ही पूरा हो सकता है..." विकी ने खुद को ग्लानि से बचाने की कोशिश की...
" ठीक ही तो है.. जब वो ऐसा कर सकते हैं तो तुमसे क्या उम्मीद करूँ..? हो तो तुम भी मर्द ही आख़िर... मेरी एक आख़िरी इच्च्छा पूरी करोगे विकी...?" स्नेहा ने उसकी आँखों में आँखें डाल कर कहा...
" बोलो!" विकी ने स्टियरिंग पर सिर रख लिया.. वो स्नेहा से नज़रें मिलाते हुए क़तरा रहा था...
स्नेहा की आँखों से जैसे सूखे हुए आँसुओं की धारा बह निकली...," पता है विकी.. जब मैं तुम्हे मोहन समझती थी.. अपना मोहन मानती थी..," स्नेहा सुबकने लगी.. पर उसने बोलना जारी रखा," तब मैने... एक सपना देखा था.. हर लड़की की तरह लाल जोड़े में लिपटी हुई.... सुहाग की सेज़ पर तुम्हारा इंतजार करने का.. हमेशा के लिए तुम्हारी हो जाने का.. तुम्हारे लिए खाना बनाने का.. तुमसे रूठने का.. तुम्हे मना'ने का.. हमारे बच्चे को जनम देने का.. उसको दुलार कर रखने का.. तुम्हारे गुस्से से उसको बचाकर अपने आँचल में लपेट कर छुपा लेने का.. और.. उसको.. कभी मेरी तरह अकेला नही होने देने का.. उसको कभी हॉस्टिल ना भेजने का....." कहते हुए स्नेहा बिलख बिलख कर रोने लगी.. विकी जैसा निस्थुर भी उसकी बातें सुनकर अंदर तक हिल गया..," संभलो स्नेहा खुद को.. मैं कोशिश करूँगा तुम्हारे साथ ऐसा ना हो.. मल्टिपलेक्स मिल जाने के बाद में तुम्हे बचाने की कोशिश करूँगा.. वैसे भी तुम्हारे बाप ने कहा था.. कि उसके बाहर आने से पहले तुम्हारे साथ कुच्छ ना करें.. मैं वादा नही करता.. पर कोशिश ज़रूर करूँगा.. तुम्हे बचाने की.."
"क्यूँ कोशिश करोगे तुम.. क्यूँ...? ताकि फिर से किसी स्वार्थ के लिए मेरा इस्तेमाल कर सको.. ना.. मुझे बचाने की कोशिश मत करना.. मैं तो पहले ही मर चुकी हूँ.. मुझे बार बार मरने के लिए मत छ्चोड़ो प्लीज़.." स्नेहा ने विकी के सामने हाथ जोड़ लिए.....
विकी के पास कोई जवाब नही था.. स्नेहा के किसी सवाल का.. अचानक विकी का फोन बाज उठा.. बांके का फोन था," हां.. मैं आ रहा हूँ.. आधा घंटा लगेगा.." कहकर विकी ने फोन काटा और गाड़ी स्टार्ट करके चल दिया.......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
girls school--49
hello dosto main yaani aapka dost raj sharma girls school--49 lekar haajir hun
Ye sab kya hai Sneha? Sab itne khush hain, tour par jane ko lekar aur tum yahan leti ho, Akeli! baat kya hai aakhir? pata toh chale!" Raj ne andar jate hi Sneha se kaha..
Sneha ne baithi hokar apne chehre ke aansuon ko hath se saaf kiya," kuchh nahi.. wo meri tabiyat kharaab hai!"
"ye lo! khush ho jao.. Mohan ka fone aaya tha.. abhi fir aayega.. chalo uthkar munh dho lo aur baat karke bahar aa jao, hum sabhi tour ki planning kar rahe hain.. Mohan ko bol dena, wo tumhe tour ke baad hi yahan se le jaye..." Raj ne kaha aur Fone wahan rakhkar bahar chala gaya..
Mohan ka naam sunte hi Sneha ki aankhon mein pal bhar ke liye chamak aa gayi, par jaise hi usko vastavikta ka aabhas hua wo fir se murjha gayi.. fone ko hath mein liye huye wah bina palak jhapakaye usko dekhti Rahi jab tak ki uss par Mohan ka fone nahi aa gaya.. fone aate hi usne jhat se call attend karke fone apne kaan se laga liya..
" Hello!" fone mein se aawaj aayi...
" I love you jaan!" Sneha ne kaha aur kisi bachche ki tarah rone lagi...
"I love you too yaar.. par ye tum... ro kyun rahi ho?" Vicky ka dil dhadak raha tha kahin Sneha ko sab pata na chal gaya ho; uske baare mein...
Sneha ki aankhon se aansoo aur aawaj mein karun kampan thamne ka naam nahi le rahe the," tum.. tum mujhe chhod kar kyun chale gaye.. Vi.. Mohan!" Sneha ne toh Mohan se pyar kiya tha.. vicky toh bus yunhi hi nikalne ko ho gaya tha..
"kahan chhod gaya main? ek raat ki hi toh baat thi.. abhi tumhe lene aaya toh tum yahan mili nahi.. wahan kaise pahunch gayi tum..?" Vicky Sneha ke 'chhod kar chale jane' kahne ka matlab nahi samajh paya...
Sneha kuchh na boli.. Rah rah kar uski lambi siskiyan Vicky ko fone par sunayi de rahi thi..
"main tumhe lene aa raha hoon! taiyaar ho jao jaan.." vicky ne sneha se kaha...
fir se jawaab ke roop mein ek lumbi siski ke siway vicky ko kuchh na sunayi diya.. uska dil dhak dhak karne laga.. kahin uske sare kiye karaye par pani toh nahi fir gaya hai..
" aaogi na.. mere sath.. ? bahut pyar karna hai jaan.. kal se tumhe dekhne ko dil machal raha hai.. ji bharkar pyar karenge.. aaogi na.. abhi?" Vicky ne Sex ka paasa Sneha ki aur fainaka..
Sneha ke jajbaat tees bankar uski chhati mein chubhne lagey.. par wah kuchh na boli...
"tumhe kisi ne bargalaya toh nahi hai jaan.. mujh par visvas nahi hai kya?" Vicky ki dhadkane tej ho gayi thi.. Uski pareshani uske maathe par chhalak aaye pasine se saaf jhalak rahi thi...
" main aa rahi hoon..! lene aa jao" aur Sneha fafak padi.. jane kya sochkar usne ye faisla liya tha.........
" I love you jaan...! Main tumhe lene aa raha hoon.. taiyaar rahna.. main andar nahi aaunga.. tumse pyar karne ko bekaraar hoon.. aa raha hoon main.." Vicky ne fone rakhne ke baad Sneha ke jawaab ka intzaar kiya.. par jawaab mein lagataar uski siskiyan hi mil rahi thi.. Vicky ne fone kaat diya..
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" Ji Shrimati ji! kahiye; kisliye yaad kiya?" Vasu ne office ke andar aate hi Anjali se sawaal kiya..
"aaiiye Vasu ji!" Anjali uske vyaktitav se iss kadar prabhavit thi ki uske office mein aane par ek baar apni kursi chhod kar khadi jaroor hoti thi," Baithiye!"
"ji, dhanyawad... kahiye?" Vasu kursi sambhalte huye bola...
"Darasal.. hamne socha hai ki kyun na bachchon ko kahi ghuma kar le aaya jaye.. PTA fund ka kafi paisa hamre paas jama hai.. soch rahi thi.. uska sadupyog hi ho jaye.. aapka kya vichar hai?" Anjali ne vasu ki rai jaan'ni chahi..
"par agle mahine se toh bachchon ki pareekshayein aarambh ho rahi hain.. hum uske paschat bhi aisa kar sakte hain.. kshama karein par mujhe toh abhi iska auchitya samajh mein nahi aata!" Vasu ne do took jawaab diya..
Anjali niruttar ho gayi.. usko aisa hi jawaab milne ka andesha tha.. waise bhi tour par school se ek male teacher ka bachchon ke sath hona jaroori tha.. aur Sunil niji karno se pahle hi sath jaane mein asamarthta darsha chuka tha...
"par 5-7 din chalne mein harz hi kya hai? exam waise bhi september last mein hain.. aur unko hum ek saptaah aur aage sarka denge.. boliye?" Anjali ne usko manane ki koshish ki..
" aap jo chahe karein.. aapne mujhse rai maangi thi.. so maine de di.. mujhe aagya dein..meri kaksha ka samay nikla ja raha hai" kahkar Vasu kursi se uth gaya...
" par aapko toh sath chalna padega na.. isiliye toh poochh rahi hoon.." Anjali ne apna mantvya sapast kiya...
" kshma karein shrimati ji! main sath nahi de paaunga aapka.. !" Vasu ne do took kaha aur hath jodkar bahar nikal gaya...
"uff.. kya kiya jaye?" Anjali ne ek lumbi saans li aur fone nikal kar shamsher ke paas mila liya...
------------------------------
"Sir.. mujhe ye sum samajh nahi aa raha!" Neeru najrein jhukaye class se bahar nikal rahe Vasu ke saamne apna math lekar khadi ho gayi...
Vasu ka tanha aur bechain dil dhadak utha.. uss haseen subah ke baad Neeru ne uske paas aana hi chhod diya tha.. School khulne ke baad bhi wo uss'se kanni kaatne lagi thi.. Vasu bhi jhijhak ke karan kabhi usko tok nahi paya tha
" ohh.. ye sawaal.. ye toh bahut hi aasan hai.." baag baag ho uthe Vasu ne uske hath se kitab lete huye kaha.. uski tirchi najar ne bus ek baar Neeru ki chunni mein chhipi huyi uski gol chhatiyon ke beech se jhalak rahi thodi si magar kamuk khayi ko nihara," kahan samajhaaun?"
" jahan aapka dil kare sir.... Staff room mein....?" Neeru ne apne hathon ki ungaliyan matkate huye kaha.. bechaini mein log aksar aisa karte hain... Vasu se najrein wo ab bhi mila nahi pa rahi thi...
"nahi nahi... matlab... mera ye abhipray nahi tha.." Vasu ko laga jaise uski najron ko Neeru ne taad liya hai.. ," aapki abhyas pustika kahan hai..? usi par toh samjhaunga na..?"
Neeru lajjit si hokar class mein gayi.. aur apni copy utha layi.. Vasu wahin khade hokar usko sawaal samjhane laga..
"Sirrr..!" Neeru ne najrein churate huye Vasu ko beech mein tok diya...
"bolo!" Vasu ne apni nisthur aawaj ko aakhiri had tak meethi kar liya...
" w.. wo.. sir, yahan ... shor bahut jyada hai.. Staffroom mein chalein..!" Neeru ne atak atak kar apni baat poori ki... apne ek pair se dusre pair ko dabate huye usne bus ek baar, ek baar Vasu se najrein milayi...
Vasu uske mann ke bhanvo ko taad gaya.. copy uske hath mein dete huye bola," tum 5 minute ke baad aana!" aur staff room ki aur nikal gaya..
" Ji Shrimati ji! kahiye; kisliye yaad kiya?" Vasu ne office ke andar aate hi Anjali se sawaal kiya..
"aaiiye Vasu ji!" Anjali uske vyaktitav se iss kadar prabhavit thi ki uske office mein aane par ek baar apni kursi chhod kar khadi jaroor hoti thi," Baithiye!"
"ji, dhanyawad... kahiye?" Vasu kursi sambhalte huye bola...
"Darasal.. hamne socha hai ki kyun na bachchon ko kahi ghuma kar le aaya jaye.. PTA fund ka kafi paisa hamre paas jama hai.. soch rahi thi.. uska sadupyog hi ho jaye.. aapka kya vichar hai?" Anjali ne vasu ki rai jaan'ni chahi..
"par agle mahine se toh bachchon ki pareekshayein aarambh ho rahi hain.. hum uske paschat bhi aisa kar sakte hain.. kshama karein par mujhe toh abhi iska auchitya samajh mein nahi aata!" Vasu ne do took jawaab diya..
Anjali niruttar ho gayi.. usko aisa hi jawaab milne ka andesha tha.. waise bhi tour par school se ek male teacher ka bachchon ke sath hona jaroori tha.. aur Sunil niji karno se pahle hi sath jaane mein asamarthta darsha chuka tha...
"par 5-7 din chalne mein harz hi kya hai? exam waise bhi september last mein hain.. aur unko hum ek saptaah aur aage sarka denge.. boliye?" Anjali ne usko manane ki koshish ki..
" aap jo chahe karein.. aapne mujhse rai maangi thi.. so maine de di.. mujhe aagya dein..meri kaksha ka samay nikla ja raha hai" kahkar Vasu kursi se uth gaya...
" par aapko toh sath chalna padega na.. isiliye toh poochh rahi hoon.." Anjali ne apna mantvya sapast kiya...
" kshma karein shrimati ji! main sath nahi de paaunga aapka.. !" Vasu ne do took kaha aur hath jodkar bahar nikal gaya...
"uff.. kya kiya jaye?" Anjali ne ek lumbi saans li aur fone nikal kar shamsher ke paas mila liya...
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"Sir.. mujhe ye sum samajh nahi aa raha!" Neeru najrein jhukaye class se bahar nikal rahe Vasu ke saamne apna math lekar khadi ho gayi...
Vasu ka tanha aur bechain dil dhadak utha.. uss haseen subah ke baad Neeru ne uske paas aana hi chhod diya tha.. School khulne ke baad bhi wo uss'se kanni kaatne lagi thi.. Vasu bhi jhijhak ke karan kabhi usko tok nahi paya tha
" ohh.. ye sawaal.. ye toh bahut hi aasan hai.." baag baag ho uthe Vasu ne uske hath se kitab lete huye kaha.. uski tirchi najar ne bus ek baar Neeru ki chunni mein chhipi huyi uski gol chhatiyon ke beech se jhalak rahi thodi si magar kamuk khayi ko nihara," kahan samajhaaun?"
" jahan aapka dil kare sir.... Staff room mein....?" Neeru ne apne hathon ki ungaliyan matkate huye kaha.. bechaini mein log aksar aisa karte hain... Vasu se najrein wo ab bhi mila nahi pa rahi thi...
"nahi nahi... matlab... mera ye abhipray nahi tha.." Vasu ko laga jaise uski najron ko Neeru ne taad liya hai.. ," aapki abhyas pustika kahan hai..? usi par toh samjhaunga na..?"
Neeru lajjit si hokar class mein gayi.. aur apni copy utha layi.. Vasu wahin khade hokar usko sawaal samjhane laga..
"Sirrr..!" Neeru ne najrein churate huye Vasu ko beech mein tok diya...
"bolo!" Vasu ne apni nisthur aawaj ko aakhiri had tak meethi kar liya...
" w.. wo.. sir, yahan ... shor bahut jyada hai.. Staffroom mein chalein..!" Neeru ne atak atak kar apni baat poori ki... apne ek pair se dusre pair ko dabate huye usne bus ek baar, ek baar Vasu se najrein milayi...
Vasu uske mann ke bhanvo ko taad gaya.. copy uske hath mein dete huye bola," tum 5 minute ke baad aana!" aur staff room ki aur nikal gaya..[/quote]
thank god
vasu laut k to aaya...xb par na sahi gs me hi sahi aaya to
ab ek bar fir hanuman vakt ka takrav menka se hota dekhne ko milega...
" May I come in, Sir?" Neeru ke badan mein Vasu ko Staffroom mein akela pakar jhurjhuri si doud gayi. Vasu ke hath ka nabhi ke neeche wo kamuk sparsh abhi tak usko jyon ka tyon mahsoos ho raha tha.. mano kal ki hi baat ho..
Vasu ne aankhon hi aankhon mein usko andar aane ka ishara kiya.. Neeru ke Manobhavon ko taad kar uske ang pratyang mein prem ras ka sanchar hone laga tha..
Neeru andar aayi aur apni kitab uthakar Vasu ke saamne table par rakh di.. aur khud vasu ki kursi ke jitna paas khadi ho sakti thi; ho gayi..
"ye lo.. kitna aasan tha.. jaane kyun samajh nahi pa rahi thi.. ab aa gaya..?" Vasu ne uske saamne sawal nikal kar dikhane ke baad kaha
Neeru ne Vasu ki aankhon mein Aankhein Dali.. jaise kuchh kaha ho.. fir najrein jhuka li.. aur wahin khadi rahi.. Vasu ki kohni Neeru ke ghutno se kuchh upar uski jaangh ko chhoo rahi thi.. uss samay toh Neeru ko hulka sa wo sparsh hi jaanleva prateet ho raha tha..
"aur kuchh........... samajhna hai kya?" Vasu uski taraf se pahal ka intzaar kar raha tha...
"Ji! ..... Ji nahi!" Jab neeru se kuchh bola hi nahi gaya toh wah wahan rahkar karti bhi kya? hulak sa jhuk kar apni kitabein uthai aur chalne lagi.. Vasu se raha na gaya," Nee.."
"Ji Sir..!" Neeru ne apna naam bhi poora na lene diya.. turant palat gayi.. jaise usko pata hi tha.. Vasu usko rokega jaroor..," Ji.. Sir!" Neeru ne wapas table ke paas aakar kitabein usspar rakh di aur dono hathon se table par lagi sunmayika ko side se khurachane lagi.. najrein jhukaye huye.. jaise uska pata hi tha ki Vasu ab kya bolega.. khadi khadi uske badan mein kanpkapi si jaag uthi...
"w.. wo.. main kah raha tha.. tumhare ghar bhainse hain kya?" vasu kya ka kya bol gaya...
"Ji? ..." Neeru ne najrein uthakar Vasu ke chehre ko dekha aur najrein milaye bina hi wapas jhuka li.. kum se kum usko itne betuke sawaal ki ummeed nahi thi.. itna romanch paida hone ke baad...," Ji hain..."
" Doodh deti hain..?" Vasu ka agla superhit sawaal!!!
Neeru ne sakpaka kar apni chunni ko theek kiya.. uske dimag mein jo kuchh chal raha tha.. uss'se usko yahi khayal aaya ki uske hi 'doodh' ki baat kar di Vasu ne! aur jaise hi usko hosh aaya, usne khud ko sambhala," Ji.. abhi toh nahi.."
"hummm.." Vasu ne apna sir hilatehuye kaha.. vasu ko samajh hi nahi aa raha tha.. aage kya bole? kaise bole?..
"Sir..?"
"haan?" Vasu ne ummeed ki shayad wahi shuruat kar de..
" main jaaun? Class mein?" aur wo bechari kya kahti...
"haan.. ek minute!" Vasu ne usko fir rok liya.. iss baar uska hath pakad kar..
Neeru ke Sare shreer mein uttejna ki lehar doud gayi... usne ghabrakar Vasu ki aur dekha.. toh Vasu ne turant hath chhod diya... Neeru tadap uthi," Nahi Sir.. main aisa nahi kah rahi.." Neeru ko Vasu ka yun hath pakad kar chhodna katai achchha nahi laga.. uska hath abhi bhi vasu ki taraf utha hua tha.. jo vasu ne chhod diya tha....
" kya?" Vasu ki samajh mein nahi aaya.. wo kya kah rahi hai.. aur kya nahi..
" wo.. Sir.. mujhe bura nahi laga.. jab aapne hath pakda toh.." Neeru ka sara badan uttejna ki gart mein doobta ja raha tha.. aakhirkar usne kah hi diya...
Vasu ne hath badhakar fir se uska hath pakad liya.. ek baar darwaje ki taraf dekha aur dusre hath se uski kalayi ko sahlane laga.. pyar se..
Neeru ki aankhein band ho gayi aur wah apni kalayi par pyar se reng rahe vasu ke hath ko apne har nag par mahsoos karne ki koshish karne lagi.. 'wahan' geelepan ka ahsaas hote hi usne apni jaanghon ko ek dusri se chipka liya.. saanson ki teevrata ke sath hi unmein madakta bhi badh gayi.. jo Vasu ko seedhe apne kaleje mein mahsoos ho rahi thi...
"uss din toh bura laga tha na?" Vasu ne apne hath ki pakad uski hatheliyon par majboot kar di...
Neeru ne aankhein band kiye huye hi apna sir 'na' mein hila diya.. usko samajhte der na lagi ki Vasu kis din ki baat kar raha hai.. uske teji se dhadak rahe dil se saaf tha ki 'uss' din jaisa hi kuchh wo aaj bhi chahti hai.. bulki uss'se bhi jyada...
" Fir tum wahan se bhagi kyun?" Vasu ka sawaal jayaj tha.. par waqt sahi nahi tha.. ye waqt sawaal jawaab ka thode hi tha.. aage badhne ka tha.. pichhli galatiyon ko bhoola kar...
"aayinda nahi bhagungi Sir..." lambi saans chhodte huye Neeru khisak kar vasu ki kursi se satkar khadi ho gayi aur uski taraf arthpoorn najron se dekha......
"bhag chalein.. sorry.. bahar chalein.. Ghoomne ke liye.. 5-7 din?" Vasu ne uska dusra hath bhi apne hath mein lekar usko apni taraf ghuma diya..
" par ye kaise ho sakta hai Sir.. ghar walon ko kya kahoongi...?" Neeru ne sawaal kiya.. halanki uski taraf se poori 'haan' thi...
" School ki taraf se jaayein toh.. aur bachchon ke sath..?" Vasu ka bhi tour ka mood ban gaya tha.. Neeru ke sath
Neeru ke anchhuye youvan ki pyas hathon se na mit paane ki kasak Neeru ki aankhon mein sapast dikhayi di jab usne Vasu se najrein char ki," chaloongi Sir.. kab chalna hai.?"
Vasu ka rom rom khil utha..," main lunch ke baad batata hoon... abhi tum jao.. koyi aa jayega.. " kahkar Vasu khada hokar Staffroom se nikal gaya...
Neeru tadap uthi.. Tour toh jab jayega tab jayega.. abhi kya karoon.. usne angdayi lekar janghon ke beech apni panty ko theek kiya aur murjhayi huyi si apni class mein aa gayi...
" Sneha! Main 5 minute mein ghar ke bahar miloonga.. tum taiyaar ho na.. Jaan?" Vicky ne Sneha ko fone par kaha...
" haan.. main taiyaar hoon.. Aa jao!" Sneha ne khud ko niyati ka saamna karne ke liye taiyaar kar liya tha.. waise bhi ab uske paas uski jindagi ke alawa khone ko tha hi kya jo wo mana karti.. aur uss jindagi ka bhi ab kya faayda?
wah pahle hi taiyaar ho chuki thi.. Viru samet sabko usne bata diya tha.. wah ja rahi hai; Vicky ke sath..
Jaise hi wah bahar nikli, Raj ne usko toka," abhi mat jao na Sneha! pls.. ek hafte ki hi toh baat hai.. maan bhi jao!"
" nahi bhaiya.. mujhe jana padega.. Vicky.. Mohan ko meri jarurat hai.. main nahi gayi toh shayad uska sapna 'sapna' hi rah jayega..." Apni aankhon ki nami ko rumaal se pounchhte huye wah boli...," Viru kahan hai?"
"pata nahi.. tum nahi mani toh wo naraj hokar kahin chala gaya.. maine usko roka bhi tha.. par wo nahi mana.. langdate huye gaya hai.. pata nahi kahan.." Raj ko laga ab usko rokne ka koyi faayda bhi nahi.. uski geeli aankhon mein dridhta saaf jhalak rahi thi.. jane ki.. Mohan ke sath..
"wo kahan hai?" Sneha ne apne murjhaye chehre par kshanik muskurahat laate huye poochha.. Raj samajh gaya.. wo kiski baat kar rahi hai..
"abhi bulata hoon.." Raj dusre kamre mein gaya aur ladkiyon mein se Priya ka hath pakad laya..
" tum maan toh rahi nahi ho.. mera tumse baat karne ka dil nahi karta..." Priya ne aate hi apna munh banaya....
Sneha ne uska hath pakad liya.. barbas hi uske aansoo chhalak uthi..," Raj ka hath mat chhodna Priya.. Pahla Pyar aksar kho jata hai.. aur fir aankhein tamaam umra bheed mein usko khojti rahti hain.. (am I right?) ...museebatein aayengi.. par tum dono milkar saamna karna... Bhagwan sachche prem ka sath hamesha dete hain.." Sneha ke liye kahte huye apne aapko sambhalna mushkil ho gaya.. rote huye hi usne baat poori ki,"... Aisa suna hai maine!"
"par tum ro kyun rahi ho Sneha.. subah se hi tum ro rahi ho.. baat kya hai..?" Priya ne Sneha ko pyar ka gurumantra dete huye subakte dekh poochha..
"kuchh nahi.. inka kya hai.. ye toh hamesha sath dete hain.. tanhayi ki agni jab tadap bankar hamein kachotne lagti hai toh yahi toh thandak dete hain.. Aansoo!." Sneha ne unhe pouchhte huye kaha..," dhyan rakhna ek doosre ka.. har koyi Mohan nahi hota.." kahte huye wah Priya ke gale lagkar rone lagi... Priya ki aankhon se bhi aansoo chhalak uthhe..
" Sneha.. hamein tumhare sath ki jarurat padegi.. Mohan ko bol dena.. hamari madad kare.. ab yahan hum kab tak rahenge..?" Priya ne bhi usko apni chhati se chipka liya..
" tabhi bahar Gadi ka horn sunayi diya.. Sneha bina kisi aur se baat kiye jaldi se bahar nikal gayi.. bahar mohan uska intzaar kar raha tha.. 'apna' sapna sakar karne ke liye.... Sneha ne Gadi ki khidki kholi aur agli seat par jakar baith gayi.. apne aakhri safar ke liye
"baat kya hai Sneha? tumhara mood theek nahi lag raha.. koi problem hai kya?" Vicky ne jhijhakte huye Sneha se poochha.. halanki Sneha ne uske paas aane se pahle apne aapko sambhal liya tha.. aur Gadi mein baithte hi muskurakar vicky ki aur dekha bhi tha.. par aaj uski muskurahat mein wo kashish nahi thi.. wo niralapan nahi tha.. aur.. fir chor ki dadhi mein tinka hota hi hai.. Vicky ko shak tha hi.. kahin Sneha 'kuchh' jaan toh nahi gayi hai..
"Nahi.. kuchh nahi.. hum ab kahan ja rahe hain..?" Sneha ne baat palat'te huye poochha...
" kahan ja rahe hain matlab? kahin toh jayenge hi.. pyar nahi karna kya? tum toh tadap rahi thi mere liye!" Vicky ne uske balon mein hath ferte huye kaha...
'pyar karna kisi ke hath mein toh nahi hota na Mohan.. wo toh bus ho jata hai.. jaise mujhe ho gaya.. tumse.. warna kisne socha tha.... Mohan! tumhe main pyari to lagti hoon na...?" Sneha ne vicky se poochha..
"yye tum aaj kaisi baatein kar rahi ho.. kya ho gaya hai tumhe?" vicky ke antarman ne usko dhikkara aur usne Sneha ke haathon mein lahra raha apna hath wapas kheench liya...
"kuchh nahi.. Aaj mummy ki badi yaad aa rahi hai.. !" Sneha recording ko yaad karte hi bhawnao mein bahkar bilakh padi.. Vicky se raha na gaya.. usne gadi side mein lagakar Sneha ka chehra apne hathon mein le liya.. Sneha ka ek ek aansoo laave ki tarah uske dil par tapak raha tha.. badi mushkil sthiti thi.. vicky ke liye," kya baat hai.. tum aaj... tum toh kah rahi thi.. tumne mummy ko kabhi dekha hi nahi.. fir aaj yun achanak mummy kaise yaad aa gayi.....?"
" haan.. Dekha nahi hai kabhi.. par aaj mahsoos ho raha hai.. wo bhi kitni bebas rahi hongi.. kitni tadpi hongi wo.. ye kab tak chalega vicky.. nari kab tak purush ke julmon ka shikar hoti rahegi.. kab tak purush usko apni hasraton aur sapno ko poora karne ka 'sadhan' maanta rahega.. Ardhangini hone ka haq kya hamein kabhi nahi mil payega? hum kya aise hi duniya mein aati hain.. nangi karke jangli kutton ke saamne daalne ke liye..?" Sneha ko 'wo' baatein lagatar ghutan bankar usko khaye ja rahi thi... aakhir usne nikal hi di.. vicky ko vicky kahkar usne Vicky ko hakka bakka kar diya.. aakhir usko bhi haq tha.. jaane se pahle jaan'ne ka.. ki uske sath aisa kyun hua.. yahi uski aakhiri ichchha thi...
Vicky ko jaise sanp soongh gaya.. poori teevrata dikhate huye usne Gadi ko lock kar diya.. taki Sneha wahan se bachkar bhag na sake..
" Mujhe bhagna hota toh main tumhare sath aati hi kyun?" Sneha ke chehre par ab sukoon jhalak raha tha... Vicky ko ye batakar ki wo uski fitrat jaan chuki hai..
" Hummmm.. toh tumhe sab kuchh pata lag gaya.." Vicky ne lambi saans chhodte huye kaha...
"nahi.. Sab kuchh kahan pata laga.. mujhe abhi tak ye pata nahi laga hai ki main tumhe pahchan kyun nahi payi.. tumhari aankhon mein chhipi waasna ko main pyar kaise samajh baithi.. aur ye bhi main kabhi nahi jaan paaungi ki sab kuchh jaan lene ke baad bhi tumhare paas kyun chali aayi... Marne ke liye..!" Sneha ne vicky ko jhakjhor kar rakh diya...
" Dekho Sneha.. iske liye main jimmedar nahi hoon.. apne ye sare sawaal apne baap se karna.. jisne apni biwi ke sath aisa kiya.. aur ab tumhare sath karne ki soch raha hai...! maine tumse kabhi pyar kiya hi nahi.. main pyar vyar ko nahi maanta.. mera lakshya Multiplex hasil karna tha.. aur wo tumhe unko sonp dene ke baad hi poora ho sakta hai..." Vicky ne khud ko glani se bachane ki koshish ki...
" theek hi toh hai.. jab wo aisa kar sakte hain toh tumse kya ummeed karoon..? ho toh tum bhi mard hi aakhir... meri ek aakhiri ichchha poori karoge Vicky...?" Sneha ne uski aankhon mein aankhein daal kar kaha...
" Bolo!" Vicky ne steering par sir rakh liya.. wo Sneha se najrein milate huye katra raha tha...
Sneha ki aankhon se jaise sookhe huye aansuon ki dhara bah nikli...," pata hai vicky.. jab main tumhe mohan samajhti thi.. apna Mohan maanti thi..," Sneha subakne lagi.. par usne bolna jari rakha," tab maine... ek sapna dekha tha.. har ladki ki tarah laal jode mein lipati huyi.... suhaag ki sez par tumhara intjaar karne ka.. hamesha ke liye tumhari ho jane ka.. tumhare liye khana banane ka.. tumse roothne ka.. tumhe mana'ne ka.. hamare bachche ko janam dene ka.. usko dular kar rakhne ka.. tumhare gusse se usko bachakar apne aanchal mein lapet kar chhupa lene ka.. aur.. usko.. kabhi meri tarah akela nahi hone dene ka.. usko kabhi hostel na bhejne ka....." kahte huye Sneha bilakh bilakh kar rone lagi.. Vicky jaisa nisthur bhi uski baatein sunkar andar tak hil gaya..," sambhalo Sneha khud ko.. main koshish karoonga tumhare sath aisa na ho.. multiplex mil jaane ke baad mein tumhe bachane ki koshish karunga.. waise bhi tumhare baap ne kaha tha.. ki uske bahar aane se pahle tumhare sath kuchh na karein.. main wada nahi karta.. par koshish jaroor karoonga.. tumhe bachane ki.."
"kyun koshish karoge tum.. kyun...? taki fir se kisi swarth ke liye mera istemaal kar sako.. na.. mujhe bachane ki koshish mat karna.. main toh pahle hi mar chuki hoon.. mujhe baar baar marne ke liye mat chhodo pls.." Sneha ne vicky ke saamne hath jod liye.....
Vicky ke paas koyi jawaab nahi tha.. Sneha ke kisi sawaal ka.. achanak vicky ka fone baj utha.. baanke ka fone tha," haan.. main aa raha hoon.. aadha ghanta lagega.." kahkar vicky ne fone kata aur Gadi start karke chal diya.......
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
Tags = राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँ Raj sharma stories , kaamuk kahaaniya , rajsharma हिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया Future | Money | Finance | Loans | Banking | Stocks | Bullion | Gold | HiTech | Style | Fashion | WebHosting | Video | Movie | Reviews | Jokes | Bollywood | Tollywood | Kollywood | Health | Insurance | India | Games | College | News | Book | Career | Gossip | Camera | Baby | Politics | History | Music | Recipes | Colors | Yoga | Medical | Doctor | Software | Digital | Electronics | Mobile | Parenting | Pregnancy | Radio | Forex | Cinema | Science | Physics | Chemistry | HelpDesk | Tunes| Actress | Books | Glamour | Live | Cricket | Tennis | Sports | Campus | Mumbai | Pune | Kolkata | Chennai | Hyderabad | New Delhi | पेलने लगा | कामुकता | kamuk kahaniya | उत्तेजक | सेक्सी कहानी | कामुक कथा | सुपाड़ा |उत्तेजना | कामसुत्रा | मराठी जोक्स | सेक्सी कथा | गान्ड | ट्रैनिंग | हिन्दी सेक्स कहानियाँ | मराठी सेक्स | vasna ki kamuk kahaniyan | 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