Girls school--25 ( गर्ल्स स्कूल--२५ )
गर्ल्स स्कूल--25
टफ का दिल प्यार के गहरे समंदर में हिलौरे मार रहा था.. उसका दिल ऐसे धड़क रहा था मानो किसी नाज्नीन' से पहली बार रूबरू होने जा रहा हो. जैसे ही टफ बेड पर सीमा के पास जाकर बैठा; वह किसी च्छुई मुई की तरह अपने ही पहलू में सिमट गयी.. मानो मुरझा जाने के डर से पहले ही कुम्हला गयी हो.. या शायद इस रात के एक एक पल को अपनी साँसें रोक देने के लिए मजबूर कर रही हो...
टफ ने सीमा का दाहिना हाथ अपने हाथ में ले लिया," सीमा! मुझे अभी तक विस्वास नही हो रहा, मैं इतना खुसकिस्मत हूँ."
सीमा कुछ ना बोली; सिर्फ़ टफ के हाथ को हुल्के से दबा दिया, मानो उसको विस्वास दिला रही हो ' जान! ये सपना नही; हक़ीकत है. '
टफ ने सीमा के हाथ को प्यार से उपर उठाया और चूम लिया.
सीमा सिहर उठी. उसका प्यार, उसकी चाहत उसके सामने थी. पर वो हिचक रही थी, अपने अरमानो की सेज़ पर बैठी सीमा उन पलों को सदा के लिए अपने पहलू में सज़ा लेना चाहती थी.. पर हया की झीनी चादर ने उसको रोक रखा था.. उसने हुल्की सी नज़र इनायत करके टफ को देखने की चेस्टा की.. वो मुस्कुरा रहा था; फूला नही समा रहा था, अपनी किस्मत पर.
टफ ने सीमा की ठोडी पर हाथ रख कर उसका चेहरा उपर उठा दिया; और सीमा की कजरारी आँखें शर्म से झुकती चली गयी.. चेहरा सुर्ख लाल हो गया. सीमा के चेहरे से उसकी बेकरारी सॉफ झलक रही थी.
टफ थोड़ा सरक कर उसके और पास बैठ गया और उसकी बाहों के नीचे से अपने हाथ निकाल कर उसको आमंत्रित किया; सीमा बिना एक पल भी गवाए उस'से लिपट गयी," आइ लव यू, अजीत"
टफ सीमा के कान के पास अपने होंठ लेजाकार हौले से बरसा," आइ.. लव यू टू जान!"
सीमा ने टफ को कसकर थाम लिया.. कानो से होती हुई टफ की आवाज़ सिहरन बनकर सीमा के सारे शरीर में तेज सुगंध की तरह फैल गयी.. उसका बदन अकड़ने लगा; और शरीर में वर्षों से सॅंजो कर रखी गयी प्रेम की अग्नि दाहक उठी...
सीमा ने अपने आपको समर्पित कर दिया; टफ को कसकर अपने प्रेम पीपासु सीने से लगा लिया.
टफ को अहसास हुआ, प्यार करना.. सेक्स करने से कहीं ज़्यादा रोमांचक है.. सीमा के छाऱ हरे बदन की गंध ने टफ को सम्मोहित कर दिया. अपना चेहरा पीछे करके टफ ने एक बार सीमा को गौर से देखा और उसके सुलगते लबों पर अपने लारजते होंठ रख दिए. सीमा तो दहक्नी थी ही, टफ को भी यूँ अहसास हुआ मानो उसने अंगारों पर होंठ रख दिए हों. टफ के सारे 'पाप' भस्म होते चले गये...
"क्या मैं तुम्हे छू सकता हूँ?" टफ ने करीब 2 मिनिट बाद कुछ कहने के लिए अपने होंठो को आज़ाद किया.
सीमा ने अपनी नज़रें झुका कर टफ के हाथों पर अपने कोमल हाथों की जकड़न को हूल्का सा कस दिया, ये उसकी स्वीकृति ही तो थी... जिसको टफ समझ ना पाया या फिर जान बूझ कर नही समझा," बोलो ना!"
सीमा ने शर्मा कर अपना सिर टफ की सुडौल छाती पर टीका दिया और अपना शाऱीऱ ढीला छोड़ कर आँखें बंद कर ली.... अब भी कोई ना समझे तो ना समझे.. बस!
पर टफ भी एक नंबर का खिलाड़ी था.. आज पर्मिशन लिए बिना आगे बढ़ने में क्या मज़ा था.. उसने सीमा को प्यार से अपने से थोड़ा दूर हटा कर पूछा..," अब कब तक शरमाती रहोगी? बताओ भी.. तुमको छू लूँ क्या?"
"छोड़ो भी.. मुझे तुम्हारे दिल की धड़कन सुन'ने दो..." कहकर सीमा फिर उसकी छाती से लिपट गयी.... अपने यौवन फलों को टफ के शरीर से सटा कर...
टफ ने सीमा को कस कर अपने सीने से लगा लिया.. और एक प्यार भरी मोहर उसके माथे पर लगा दी," क्या बात है? कोई परेशानी है क्या?"
सीमा आज टफ के साथ एक सार होने को मारी जा रही थी," मुझे नही पता था की तुम इतने बुद्धू हो" कहकर सीमा ने शरारत से टफ को चिकौती काट ली...
"अऔच!" टफ को सिग्नल मिल गया था.. टफ ने लेट कर करवट बदल ली और सीमा का जिस्म टफ के नीचे आ गया.
सीमा ने एक हुल्की सी 'आह' भरकर मुस्कुराहट के साथ अपनी बेकरारी जाहिर की.. टफ ने उसके दोनो हाथों को अपने हाथों में पीछे ले जाकर दबोच लिया और उसकी गालों और गले को बेतहाशा चूमने लगा..
सीमा आगे बढ़ने को लालायित थी, टफ के बेतहाशा चुंबनो का जवाब वो अपनी शरमाई हुई सी आवाज़ में आहों के साथ देने लगी...
टफ ने थोड़ा सा पीछे हटकर सीमा के कमसिन पेट पर अपना हाथ रख दिया और सूट के उपर से ही सीमा के तन में हुलचल पैदा करने लगा.. हाथ धीरे धीरे उपर आता गया और सीमा बेकाबू होती चली गयी..," आइ लव यू अजीत.. आह" हाथ ज्यों ज्यों उपर सरकता गया, सीमा के शरीर की ऐंठन बढ़ती गयी..
अचानक टफ के हाथों को उनकी पहली मंज़िल मिल ही गयी.. टफ ने सीमा के गोले स्तनो पर हाथों से सिहरन पैदा करनी शुरू की तो सीमा आपे में ना रह पाई..," आआआः अजीत... प्लीसेस्स!"
ये 'प्लीज़' टफ को रोकने के लिए नही था.. उसको आगे बढ़ने को प्रेरित करने के लिए था.. जल्दी से! कुँवारी सीमा की तड़प हर छूआन के साथ बढ़ती चली गयी..
टफ ने सीमा को बैठाया और उसकी कमीज़ को उपर उठाने लगा....
सीमा ने कमीज़ के पल्लू पकड़ लिए,"लाइट बंद कर दो प्लीज़!" उसकी आँखें एक बार फिर बंद थी..
"क्यूँ?" टफ उसको जी भर कर देखना चाहता था..
"मुझे शर्म आ रही है...प्लीज़ कर दो ना" सीमा ने अपने होंठ टफ के कानो से छुआ कर कहा...
टफ अपनी जान की इतने प्यार से कही गयी बात को कैसे टाल देता.. देख तो वो फिर कभी भी सकता था.... टफ ने उठ कर लाइट ऑफ कर दी!
उसके बाद सीमा की तरफ से कोई प्रतिरोध नही हुआ.. उसका हर वस्त्रा टफ उसके शरीर से अलग करता चला गया...
और अब अंधेरे में ही सीमा के अद्वितीया शरीर की आभा ने जो छटा बिखेरी, टफ दीवाना हो गया.. सीमा के गालों से शुरू करके टफ ने नीचे आते हुए उसके शाऱीऱ के हर हिस्से में कंपन सा पैदा कर दिया, कसक सी भर दी.. ज्यों ही टफ का हाथ सीमा की अनन्य कोमल सुडौल जांघों के बीच आया.. सिसकती हुई सीमा ने उसके हाथ को पकड़ लिया," आआह... जीईएट!"
टफ तो पहले ही अपनी सुध बुध खो चुका था..," प्लीज़ सीमा.. मत रोको अब.. हो जाअने दो. जाने कितना इंतजार किया है.. इस रात का... प्लीज़.. अब और ना तड़पाओ..!"
सीमा तो खुद तड़प रही थी.. इस 'खास' पल के लिए.. वह बहक सी गयी..," आइ लव यू जान!"
"आइ लव यू टू स्वीट हार्ट!" कहते हुए टफ ने सीमा के सीने के एक उभार पर मस्ती से हाथ फेरा और दूसरे पर मोती की तरह टीके हुए दाने को अपने होंठो की प्यास से वाकिफ़ कराया.. दोनो की साँसे दाहक रही थी.. साँसों की थिरकन भारी आवेशित आवाज़ से माहौल संगीत मेय हो गया.. और दोनो उस झंकार में डूबते चले गये....
उसके बाद जो कुछ भी हुआ.. ना टफ को याद रहा. ना सीमा को बस दोनो एककार होकर एक दूसरे में समाने की कोशिश करते रहे.. शुरुआत में सीमा की पीड़ा को टफ ने अपने चुंबनो से हूल्का किया और जब सीमा टफ को 'सारा' अपने अंदर झेलने के काबिल हो गयी तो टफ ने अपने कसरती बदन का कमाल दिखना शुरू किया.. हर धक्के के साथ सीमा प्यार से आ भर उठती.. दर्द अब कहीं आसपास भी नही था.. सिर्फ़ आनद था.. प्रेमानंद!
आख़िरकार जब टफ ने अपने सच्चे प्यार की फुहारों से सीमा के गर्भ को सींचा तो सीमा भी प्रतिउत्तर में रस से टफ की मर्दानगी को नहलाने लगी..
दोनो पसीने में नहा उठे थे.. दोनो ने कसकर एक दूसरे को पकड़ा और स्वर्णिम सुहाग्रात के बाद काफ़ी देर तक एक दूसरे को 'आइ लव यू' बोलते रहे.. हर स्पंदन के साथ.....
निर्वस्त्रा सीमा से लिपटा हुआ टफ अपने को दुनिया का सबसे सौभाग्या शालि इंसान समझ रहा था. ऐसी नज़ाकत, ऐसी मोहब्बत, ऐसा
प्यार और इतना हसीन शरीर हर किसी को नसीब नही होता. प्यार के तराजू के दोनो पलड़े अब बराबर थे, सीमा को टफ मिल
गया और टफ को सीमा... हमेशा के लिए!!!
टफ की जिंदगी में सीमा रूपी फ़िज़ा ने ऐसी छटा बिखेरी की उसकी जिंदगी गृहस्थी की पटरी पर सरपट दौड़ने लगी, उधर सिद्धांतों के शास्त्री वासू की जीवन रूपी रेल पटरी से उतरने वाली थी.....
नीरू, अपनी तेज तर्रार ज़ुबान, शानदार व्यक्तित्व के कारण 'अद्वितीया सुंदरता के बावजूद' अपने आपको 'प्रेम निगाहों' से बचाकर रखने वाली नीरू ये समझ ही नही पा रही थी की उसके साथ हो क्या रहा है. वासू का चेहरा ख़यालों में आते ही उसका अंग अंग अंगड़ाई ले बैठता.. वासू के भोले चेहरे के पीछे छिपी मर्दान'गी की वो दीवानी हो उठी थी और दिन रात वासू को एक नज़र देखने के लिए व्याकुल रहती. उसकी निगाहों में अचानक नारी सुलभ विनम्रता झलकने लगी, उसके अंगों में यौवन की मिठास भर उठी.
वह छुट्टियाँ ख़तम होने के इंतजार नही कर सकती थी.. एक दिन अचानक शाम के करीब 5 बजे एक कॉपी और 2 बुक्स एक पॉली थिन में डाली और दिशा के घर की और चल दी....
दिशा और वाणी दोनो ही घर के आँगन में बैठी बतिया रही थी. नीरू को देखते ही दिशा प्रेमभाव से उठी और नीरू का अभिवादन किया," दीदी, आप?"
"हां दिशा! क्या सर उपर हैं....?"
'सर' सुनते ही दिशा के मन में शमशेर की तस्वीर उभर आई.. अपने होंठो को गोले करके तिरछी निगाहें करके थोड़ा अचरज से पूछा,"क्यूँ?"
अपने आपको इस नज़र से दिशा को घूरते पाकर नीरू मन में छिपाकर रखी गयी भावनाओ के चलते थोड़ा सा सहम गयी....," नही.. बस कुछ पूछना था.. कोई ऐतराज है..?"
दिशा को अपनी ग़लती का अहसास हुआ," अरे नही दीदी! मैं तो बस ऐसे ही पूछ रही थी.. हाँ उपर ही होंगे.. बड़े अजीब से नेचर के हैं.. शायद ही कभी अपने रूम से बाहर झँकते हों... आ बैठ.. तुझे शिकंजी पिलाती हूँ.."
वाणी उसको घूर कर देख रही थी.. जैसे उसकी नज़रों की बेकरारी को पहचान गयी हो..की... एक और गयी काम से!
कुछ देर नीचे बैठे रहने के बाद नीरू ने उपर का रुख़ किया.. उसकी छातियों का कसाव बढ़ गया.. दिल ज़ोर ज़ोर से धड़कने लगा था. उपर का दरवाजा बंद था. नीरू ने बंद खिड़की की झिर्री से अंदर झाँका. आलथी-पालती मारे, कमर सीधी करके बैठे हुए वासू जी कुछ पढ़ रहे थे.. नीरू ने अपने कपड़ों को ठीक किया और दरवाजे पर दस्तक दी....
"कौन है?" वासू की विनम्र आवाज़ नीरू के कानो में पड़ी.
"सर.. मैं हूँ.. नीरू!"
वासू को कुछ पल के बाद याद आया की नीरू से वो मिल चुका है....
"क्या प्रायोजन है देवी? मैं ज़रा अध्ययन कर रहा था.."
"सर! मुझे कुछ सम्स करने थे!" नीरू को अपने स्वागत का तरीका नही भाया..
"पर मैं लड़कियो को अकेले में नही पढ़ाता देवी.. अपने साथ किसी को लाई हो..!"
"नही सर... पर आप एक बार दरवाजा तो खोल दिजेये.." हताश नीरू ने कहा...
"एक मिनिट!" कहकर वासू ने अपनी पुस्तक एक तरफ रखी और दरवाजे की तरफ आया....
दरवाजा खोलकर बाहर ही खड़ी नीरू को उसने प्रवचन देना शुरू कर दिया," देवी! नारी के चरित्रा की सोलह कलाओं में से एक ये है की उसको अपने पिता, भाई, और मर्द के अलावा किसी पुरुष की संगति में अकेले गमन नही करना चाहिए.. चरित्रा बड़ा ही अनमोल और नाज़ुक गुण है जो किसी भी क्षण मर्यादाओं को लाँघते ही छिन्न भिन्न हो सकता है...नारी का चरित्रा..."
नीरू ने वासू को बीच में ही टोक दिया," पता है सर.. पर मुझे ये सवाल समझने बहुत ही ज़रूरी थे.. इसीलिए..!"
"अक्सर मैं लड़कियों को दुतकार देता हूँ.. पर तुमने मेरी चंद असामाजिक तत्त्वों से उलझने से बचाने की पूरी कोशिश की थी.. इसीलिए तुम्हारा मुझ पर अहसान है.. अंदर आ जाओ.." कहकर वासू पीछे हट गया..
नीरू अंदर आकर दरवाजा ढालने के लिए मूडी तो वासू तुनक पड़ा," नही नही देवी.. दरवाजा खुला छ्चोड़िए.. बुल्की दोनो कपाट खोलिए.. अच्च्ची तरह से... हां ऐसे... आ जाओ!"
नीरू को वासू की बातें सुनसुनकर पसीने आने लगे.. वह बेड के पास आकर खड़ी हो गयी..
"बैठ जाओ.."
जैसे ही नीरू बेड पर बैठने लगी.. वासू ने उसको फिर रोक दिया," बिस्तेर पर तो मैं बैठा हूँ.. आप वो कुर्सी ले आइए प्लीज़..
नीरू आनमने मॅन से कमरे के कोने में रखी कुर्सी उठा कर लाई और बेड के साथ रखकर उसस्पर बैठ गयी. हल्क नीले रंग के बड़े गले वाला कमीज़ पहने हुए नीरू के कंधों पर उसकी ब्रा की सफेद पत्तियाँ उसके उभारों को संभाले हुए थी. गला बड़ा होने की वजह से नीरू के मदमस्त उभारों के बीच की घाटी काफ़ी गहराई लिए हुए दिखाई दे रही थी. नीरू ने शायद जानबूझ कर अपनी चुननी को थोड़ा सा नीचे खींच रखा था, ताकि उसको दीवानी करने वाले
बुद्धू के मॅन में प्रेम-रस की उमंगें उपज सकें.
"लाओ! कौनसे सवाल हैं...?"
"सर.. ये! " नीरू ने आगे झुकते हुए जब बुक वासू के आगे बेड पर रखी तो वासू की नज़र उसके यौवन फलों के बीच अंजाने में ही जाकर अटक गयी... वासू को अचानक ही हनुमान जी याद आ गये..," हे राम!"
वासू ने शर्मा कर अपनी नज़रें घुमा ली.
"क्या हुआ सर?" नीरू वासू के मॅन में उठे भंवर को समझ गयी, पर हिम्मत करके अंजान बनी रही....
"कककुच्छ नही...! एक मिनिट रूको.." वासू ने उसके इष्टदेव 'हनुमान' की और देखा. उन्होने तो आँखें बंद कर रखी थी.. पर पास ही 'श्री राम जी' मंद मंद मुस्कुरा रहे थे, मानो कह रहे हों " बहुत हुआ वत्स! तपस्या पूर्ण हुई... उठो; आगे बढ़ो और ब्रह्मचर्या के व्रत का निस्पादन करो...."
पर शायद वासू, श्री राम की मुस्कान का अर्थ समझ नही पाए.. वासू ने संभालने की कोशिश की, पर कहीं ना कहीं उन्न भरवाँ उरोजो के वजन तले वो बेचैनी महसूस कर रहा था," नही.. ऐसा करो; तुम उपर ही आ जाओ देवी! वहाँ से मुझे 'असहज' महसूस होता है.."
नीरू हुल्की शरारती मुस्कान के साथ उठ कर उपर बैठ गयी और वासू के सामने आलथी-पालती मार कर बैठ गयी.
छातियाँ अब भी ऐसे ही सीना ताने खड़ी थी, पर एक और हद हो गयी.. नीरू की उसकी जांघों से चिपकी हुई सलवार नीरू के उपर से नीचे तक 'ख़तरनाक' ढंग से मादक होने का सबूत दे रही थी.
वासू शास्त्री विचलित हुए बिना नही रह सका. उसको अपने आपको 'गिरने' से बचाने का एक ही रास्ता सूझा," य्य्ये.. सवाल मुझे नही आते!"
"क्यूँ सर जी! आप तो मथ्स के ही टीचर है ना..." नीरू ने मॅन मसोस कर कहा..
"हां.. पर....!" वासू के माथे पर पसीना छलक आया.. अब वो नीरू को कैसे बताता की उसको देखकर उसका मॅन डोलने लगा था...
"पर क्या सर????" नीरू वासू को अपने से नज़रें हटाए देख समझ गयी....
"कककुच्छ नही... फिर कभी समझा दूँगा.. आज मेरी तबीयत ठीक नही है..." वासू की तबीयत सचमुच पहली बार खराब होने लगी थी.
नीरू.. वहीं बैठी रही.. और शरारत से वासू के हाथ को अपनी कोमल उंगलियों में पकड़ लिया..," सर! आपका बदन तो तप रहा है.. क्या में आपका सिर दबा दूँ..."
वासू को कुच्छ समझ ही नही आ रहा था..," नही.. रहने दो.. तुम्हारे जाने के बाद ठीक हो जाएगा..!"
"तो क्या मैं जाउ सर?"
"हां! तुम्हारा जाना ही उचित रहेगा.. तुम चली ही जाओ.!" वासू का दिल और दिमाग़ एक दूसरे का साथ नही दे रहे थे...
नीरू बुरा सा मुँह बनाकर उठ गयी.. अचानक ही एक आइडिया उसके दिमाग़ में आया," सर! आपने मुझे योग और आसन सिखाने का वादा किया था.."
"कब..!" वासू ने अधखिले दिल से नीरू की और देखा..
"जब हम शहर गये थे सर...!"
"क्या सच में.. मुझे तो याद नही आ रहा.. और फिर ... अकेले क्या तुम्हारा रोज़ आना ठीक रहेगा??"
"हां. सर! आपने वादा किया था.. प्लीज़ सर.. आपने ही तो कहा था.. योग से बढ़कर इश्स दुनिया में कुच्छ नही.."
"वो तो ठीक है.. पर.."
"पर क्या सर.. प्लीज़.. मुझे योग सीखना है.. प्लीज़ सर प्लीज़.." वासू को हथियार डालते देख नीरू ने मचल कर उसका हाथ पकड़ लिया...
पौरुष के चलते एक हसीन जवान लड़की की इश्स तरह अनुनय के चलते वासू बुरी तरह उखड़ गया... लड़की भोग बन'ने को लालायित थी.. अब इज़्ज़त वासू के हाथ में ही थी.. अपनी भी और नीरू की भी....
कुच्छ पल विचर्मग्न होने के बाद वासू ने मॅन ही मॅन इज़्ज़त को ताक पर रखने का फ़ैसला कर लिया..," ठीक है नीरू.. कल सुबह 4:30 पर आ जाओ!"
नीरू ख़ुसी के मारे उच्छल पड़ी..," थॅंक यीयू सर.." और खुशी से मचलती हुई वहाँ से विदा ले गयी...
आज तक अपने आपको संभाले हुए दोनो' आज जाने कैसे एक दूसरे को समर्पण करने को तैयार थे.....
"मम्मी! मुझे सुबह 4:00 बजे उठा देना; टूवुशन पढ़ने जाना है." नीरू का दिल बल्लियों पर टंगा था.
"अरे. कोई ढंग का टाइम नही मिला.. 4:00 बजे का टाइम भी कोई टाइम होता है; घर से बाहर निकालने का.." मम्मी ने कपड़े रस्सी पर सूखाने के लिए डालते हुए कहा.
"वो.. उसके बाद सर के पास टाइम नही है.. दिन में उनको और बच्चों को भी टूवुशन देना होता है.. फिर 5 बजे तो दिन निकल ही जाता है..." नीरू ने ये नही बताया की वो टूवुशन किस चीज़ का पढ़ने जाएगी...
"अरे दिन निकलने की बात नही है बेटी.. गाँव में हर किसी को पता है.. इश्स नये सर से शरीफ इंसान शायद ही कोई हो.. उसको किसी ने आजतक नज़रें उठाए भी नही देखा.. बस मैं तो यूँही कह रही थी... की सुबह उनको परेशानी नही होगी क्या?"
"उन्होने खुद ही तो ये टाइम दिया है मम्मी.. आप क्यूँ परेशान होती हैं..?" कह कर नीरू अपने कमरे में चली गयी.." वासू पूरी तरह उसके दिलो-दिमाग़ पर छा चुका था.....
अगली सुबह नीरू ठीक 4:30 पर दिशा के घर के सामने थी.. घर का मुख्य द्वार अंदर से बंद था.. नीरू ने आवाज़ लगाई तो वाणी उंघाती हुई बाहर आई..
"कौन है?"
"मैं हूँ, नीरू! दरवाजा खोलो वाणी.."
"क्या हुआ दीदी? इतनी सुबह..." वाणी ने दरवाजा खोलते हुए अचरज से पूचछा..
"वो... वाणी.. मैने योगा सीखना शुरू किया है.. सर से! " फिर हिचकते हुए कहा..," तू भी सीख ले.. बहुत ही फ़ायदेमंद होता है..."
" ठीक है दीदी.. मैं अभी दीदी को कहकर आती हूँ..." वाणी तुरंत तैयार हो गयी..
नीरू के तो मानो अरमानो पर पानी फिर गया.. उसने तो यूँ ही कह दिया था.. उसको मालूम नही था की वाणी तैयार हो जाएगी... अब ना वो वासू पर खुलकर डोरे डाल पाएगी.. और ना ही वासू खुलकर उसको दिल की बात कह सकेगा.. कितनी तैयारी करके आई थी वा.. पतला सा लोवर और एक टी-शर्ट डालकर आई थी वह.. टी-शर्ट उसके मद-मस्त फिगर पर टाइट थी, जिस-से उसके अंगों की लचक कपड़े में छिप नही पा रही थी. लोवर भी घुटनो से उपर उसके शरीर से चिपका हुआ था.. जांघें योनि से थोड़ा सा नीचे एक दूसरी से चिपकी हुई थी और योनि का उभर मखमली से कपड़े में से अजीब सा नशा पैदा कर रहा था.... सचमुच नीरू के रूप में 'मेनका' ने वासू जैसे विश्वामित्रा की तपस्या भंग करने की ठान रखी थी.. पर अब.. वाणी.. सारे किए कराए पर पानी फिर जाएगा....
नीरू अपने दिल में मधुर सी कशिश लिए सीढ़ियों पर चढ़ि. बदन में अजीब सी कसक थी जो नीरू के अंग अंग को किसी खास आनंद से अलंकृत कर रही थी. गाँव का हर लड़का यही कहता था की ना जाने नीरू कौनसी मिट्टी की बनी हुई है जो किसी मनचले या दिलजले पर उसकी नज़रें इनायत नही होती. पर आज ये मिट्टी वासू के खास अंदाज, मृदुल स्वाभाव, मर्दाना ताक़त के ताज मात्रा से ही भरभरा उठी थी.. वासू के दुनिया से हटकर चरित्रा को देखकर जाने कौनसी खास घड़ी में कामदेव ने उसस्पर प्रेमबाण चला दिया की वा सब कुच्छ भूल कर, सारी मर्यादायें त्याग कर क्रिशन की मीरा की तरह उस्स इंसान की दीवानी हो गयी..... उसने पिच्छले 15 दिन बड़ी मुश्किल से काटे थे, वासू के साथ एकांत की तमन्ना लिए और आज उसकी इच्च्छा पूरी होने ही वाली थी की वाणी ने तूसारा पात कर दिया...
वह उपर चढ़ि ही थी की पिछे वो अनोखी गुड़िया रूपी हरमन प्यारी वाणी भागती हुई सी उपर आ चढ़ि... वाणी का यौवन दिन प्रतिदिन चमेली के फूल की भाँति निखरता जा रहा था... उसके हरपल खिलखिलाते स्वाभाव के अलावा उसके बदन में से लगातार उत्सर्जित होने वाली सम्मोहित कर देने वाली मादक महक हर किसी को एक ही बात कहने पर मजबूर कर जाती थी...'काश!' उसके रूप और अल्हाड़ता के तो कहने ही क्या थे.. मनु का खुमार उसके दिल से निकल चुका थे और वो जी भर कर अपने घर उच्छलती कूदती छुट्टियो का आनंद ले रही थी, और दे रही थी; उस्स'से रूबरू होने वाले हर शख्स के दिल को अजीब सी ठंडक.....
वाणी अपने नाइट सूट में ही उपर आई थी..... नीरू दरवाजे पर खड़ी कुच्छ सोच रही थी.. की वाणी ने आकर उसकी कलाई को अपने कोमल हाथ से पकड़ लिया," मेरा इंतजार कर रही हो दीदी.."
"दरवाजा खटखटा ना!" नीरू ने वाणी से अनुरोध किया...
वाणी ने झट से दरवाजे पर दस्तक दी...
"वही रूको.. बाहर! मैं वही आ रहा हूँ.."
वासू आज रात ढंग से सो भी ना पाया.. यूँ तो उसको लड़कियों से कभी लगाव नही रहा.. पर आज पहली बार किसी लड़की को योगा सीखने के नाम से ही बदहज़मी सी हो रही थी.. कोई और इंसान होता तो शायद नीरू को अंदर बुलाकर बेड पर ही सारे आसान सीखा देता.. पर वासू तो वासू था...
वासू 2 चटाई उठाए बाहर निकला.. और एक की जगह 2 कन्याओं को देखकर अचंभित हो गया," वाणी तुम????"
"हां सर जी! मैं भी योग सीखूँगी..." वाणी उत्सुकता से बोली.
"चलो! एक से भली दो" वासू ने लुंबी साँस ली और चटाईयां आमने सामने बिच्छा दी.. बाहर छत पर ही.. नीरू प्रेमपुजारीन की तरह एकटक उसके चेहरे को देखे जा रही थी..
वासू एक चटाई पर स्वयं बैठ गया और उन्न दोनो को अपने सामने दूसरी चटाई पर बैठने का निवेदन किया," बैठ जाओ.." जाने क्यूँ आज उसने उनमें से किसी को भी 'देवी' नही बोला......
वाणी नीरू के मॅन में हो रही हुलचल से अंजान, यूँही, बेपरवाह सी चटाई पर बैठ कर उत्सुकता से वासू की और देखने लगी. वाणी के अंगों की मस्त भूल भुलैया उसके अस्त व्यस्त कपड़ों में से किसी को भी अपनी और खीच सकती थी... सर से पैर तक गदराई हुई वो जवानी की देवी वासू की तरह ही कमर सीधी करके, सीना तान कर चटाई पर विराजमान थी.
नीरू 'योगा' के लिए खास तैयारी करके आई थी. उसके वक्षों से चिपकी हुई उसकी टी-शर्ट फट पड़ने को बेताब थी.... अफ! इतनी टाइट! इतनी सेक्सी!
नीरू ने अपनी टी शर्ट को नीचे खींचा, पहले से ही उस्स में घुटन महसूस कर रहे यौवन फल कसमसा उठे और उच्छल कर अपना प्रतिरोध जताते हुए शर्ट को वापस उपर खींच लिया.. टी- शर्ट के उपर उतने से नीरू का चिकना पेट अनावृत हो उठा.. ऐसी सुन्दर नाभि देख कर भी वासू ने आह नही भरी तो कोई क्या करे....
"सबसे पहले आप मेरी तरह आसान लगाकर बैठ जायें.....
........ आज के लिए इतना ही प्रयाप्त है.. हम धीरे धीरे योग चक्र की आवृति बढ़ाते जाएँगे.." करीब 15 मिनिट तक कुँवारी कलियों के कमसिन बदन को तोड़ मरोड़ सीखा कर वासू अपने आसान से उठ बैठा..
उसने ऐसा कुच्छ नही किया जिस'से नीरू को उम्मीद की कोई किरण दिखाई दे...
वासू के कहते ही वाणी नीचे चली गयी.. पर नीरू कुच्छ कदम वाणी का साथ देकर वापस पलट आई...," सर!"
"बोलो देवी!" वासू फिर से देवी पर आ गया..
"वो.. कुच्छ नही सर!" नीरू से बोला ना गया..
"कोई बात नही!"
वासू के मॅन में ज़रा सी भी उत्सुकता ना देखकर नीरू मन मसोस कर रह गयी...
"सर...!"
"हां.. ?" कमरे में जा रहे वासू ने पलट कर फिर से जवाब दिया..
"मेरे पेट में दर्द हो रहा है.. ज़्यादा!" नीरू ने बहाना बनाया..
"क्या तुम शौच आदि से निवृत हो ली थी.." वासू के चेहरे पर शंका के भाव उभर आए...
"और नही तो क्या?" नीरू ने झेंपटे हुए कहा...
"लगता है तुमने आलोम विलोम करते हुए उदर पर अधिक दबाव डाल दिया.. ज़रा ठहरो.. मैं तुम्हे एक विशेष चाय पिलाता हूँ.. अस्मिक भस्म वाली.." वासू ने नीरू को अंदर आने का इशारा किया..
पर नीरू तो किसी और चीज़ की प्यासी थी.. उसका रोग तो प्रेम रोग था, जो जड़ी बूटियों का नही, वासू की कृपा द्रस्टी का दीवाना था.. पर चलो, कुच्छ भी नही से कुच्छ ना कुच्छ ही सही," ठीक है सर..." कह कर नीरू कमरे में आ गयी..
"अगर पीड़ा अधिक है तो लेट जाओ...!"
नीरू अपनी दोनो बाहें पिछे करके बेड पर कमर के बल लेट गयी... वह क्या आसान था, छ्चातियाँ कसमसा कर तन गयी.. नीरू का गोरा मुलायम पेट नाभि से उपर तक अपनी झलक दिखाने लगा.. नीरू आँखें बंद करके इश्स कल्पना में डूब गयी की वासू जी उसके बदन को देखकर पागल हो गये होंगे....
पर वासू तो निसचिंत होकर चाय बना रहा था, अपनी प्रेम पुजारीन के लिए.. अश्मिक भस्म वाली!
चाय बनाकर जैसे ही वह कमरे में आया, नीरू की स्थिति देखकर एक बार को उसके कानो में से हवा निकल गयी.. चाय गिरते गिरते बची और कुच्छ पल के लिए वासू एक टक इश्स अभूतपूर्व सौंदर्या प्रतिमा को देखता रह गया......
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
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(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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