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गर्ल्स स्कूल पार्ट --28
गाड़ी शहर के भीड़-भाड़ वाले इलाक़े से धीरे धीरे आगे बढ़ रही थी. राका की चुप्पी अंदर ही अंदर निशा को और शर्मिंदा कर रही थी.. पर खुद बोले भी तो क्या बोले! अपनी मोटी नशीली आँखों को तिरछा कर कयि बार कनखियों से निशा ने राका को देखा.. उसके चेहरे पर रूखापन था... निशा का दिल बार बार राका को सॉरी बोलने को कर रहा था, पर हिम्मत उसका साथ नही दे रही थी....
बस-स्टॅंड जाकर राका ने पार्किंग में ले जाकर गाड़ी रोक दी,"कहाँ जाना है?" राका की आवाज़ में भी रूखापन सॉफ झलक रहा था...
निशा ने अपनी नज़रें तुरंत नीचे झुका ली.. दबी हुई सी लंबी साँस ली और अपने हाथ की उंगलियों को आपस में जाकड़ कर हौले से बोली," घर!"
"ठीक है.. तुम्हे यहाँ से भिवानी की बस मिल जाएगी.. आगे का तुम्हे पता ही होगा!" कहकर राका गाड़ी से बाहर उतर आया.. मजबूरन निशा को भी नीचे आना पड़ा.. पर वह गयी नही... उसकी आँखें डॅब्डबॉ गयी..
"अब क्या है?" राका जल्दी में लग रहा था..
"क्क्क.. कुच्छ नही..." निशा इसके आगे कुच्छ ना बोली...
"ठीक है फिर.. मैं चलता हूँ.. संभाल कर जाना.. " राका जाकर गाड़ी में बैठ गया...
"आ....आपका नाम क्या है.. सर?" इश्स बार निशा के लब लरज गये...
"आम तौर पर मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता. बाइ" कहकर राका गाड़ी घूमने के लिए आगे की तरफ ले गया.....
कहते हैं होनी को कोई टाल नही सकता, और भगवान की इच्च्छा के बगैर पत्ता भी नही हिल सकता.. फिर राका किस खेत की मूली था. गाड़ी घूमकर जब राका वापस आया था तो निशा वही खड़ी गाड़ी को अपनी और आते देख रही थी.. उसकी आँखों में अपनापन सा झलक रहा था.. खुद को आवारा लड़की के खिताब से नवाज़ी जाने के बाद भी भीगी आँखों में अजीब सा अपनापन झलक रहा था.. राका ने उसको अविचल वहीं खड़े देखा पर वो रुका नही...
मुश्किल से राका एक किलोमेटेर भी नही गया होगा की होनी का खेल शुरू हो गया.. तेज आँधी चलने लगी. जाने कहाँ से काली घटायें घूमड़ घूमड़ कर इकट्ठा हो गयी.. शाम के 3:00 बजे ही सूरज छिप गया और लगने लगा मानो रात हो गयी हो.. घोर अंधेरा छा गया.."ओह माइ गॉड! इश्स हालत में वो अकेली कैसे जाएगी.... क्या करूँ?", राका ने अपने अंतर्मन से पूचछा और आवाज़ वही आई जो होनी को मंजूर था...
अगले कट से राका ने यू-टर्न ले लिया.....
राका वापस बस-स्टॅंड जा पहुँचा... निशा वहीं खड़ी थी जहाँ उसको राका छ्चोड़ कर गया था... धरती अभी प्यासी ही था.. पर निशा की आँखों से निर्झर बरसात जारी थी.. शायद ग़लत रास्ते पर चलने का पस्चाताप आँसुओ की शकल में बाहर आ रहा था.. निशा अब भी सिर झुकाए खड़ी थी.. गोरे गालों पर अश्कों के मोती लगातार बह रहे थे...
"सुनो!"
चिरपरिचित सी आवाज़ सुनकर निशा चौंक कर पलटी.. राका पीछे खड़ा मुश्कुरा रहा था,"तुम मुझे राका कह सकती हो!"
अब की बार राका की मुश्कूराहट उसको 'अपनी' सी लगी.. एक पल को निशा के दिल में ज़रूर आया होगा की वह दो कदम बढ़ा कर राका के सीने से चिपक जाए और बता दे की अब वो 'आवारा' नही रही.. उसकी आँखों में पलभर को आई चमक से ऐसा अहसास राका को भी हुआ होगा... पर वो चमक पल भर में ही गायब हो गयी और निशा ने फिर अपनी पलकें झुका ली...
राका ने पहली बार उसको गौर से देखा.. निशा के रंग-रूप, नयन-नक्स, चेहरे की मासूमियत और ललाट के तेज से कहीं ऐसा नही लगता था की वो कोई आवारा लड़की है... हां, उस कमसिन उम्र में बहकना अलग बात होती है.. निशा का यौवन अप्रतिम था.. ऐसी हूर तो जन्नत में भी नही मिलती होंगी.. ज़रूर राका ने यही सब सोचकर ऐसा कहा होगा," तुमने अपना नाम तो बताया ही नही!"
5'-6" की निशा को राका की नज़रों में झाँकने के लिए अपनी गर्दन काफ़ी उठानी पड़ी," निशा!"
परिचय संपन्न हुआ और प्रण की अग्नि में आसमान की आहुति शुरू हो गयी.. घटाओ ने जमकर बरसना शुरू कर दिया.. राका ने निशा का हाथ पकड़ा और गाड़ी की और भागा... बारिश इतनी तेज थी की करीब 20 मीटर की दूरी पर खड़ी गाड़ी तक भाग कर पहुँचने पर भी दोनो पानी पानी हो गये... और निशा तो बारिश से भीगा अपना बदन देखकर अंदर तक ही पानी पानी हो गयी... होटेल से निकलते वक़्त हड़बड़ाहट में वो समीज़ डालना भूल गयी थी...
तेज बारिश की झमाझम के बीच गाड़ी सड़क पर सरपट दौड़ने लगी.. निशा को अपने छातियों के बीचों बीच सिर उठाए खड़े बेपर्दा सी हालत में गुलाबी दानों का अहसास हो गया था.. इसीलिए उसने अपने आपको टेढ़ा करके राका की तरफ पीठ घुमा ली और बाहर की और देखते हुए अपने लबों को खोला," हम कहाँ जा रहे हैं"
"तुम्हारे घर.. तुम्हे कहीं और......?" राका ने उत्तर देते हुए जैसे ही निशा की और देखा.. आवाज़ उसके गले में ही अटक गयी... कमीज़ भीगने की वजह से निशा की कमर लगभग पारदर्शी हो गयी थी.. ऐसा नायाब बदन... कुल्हों से उपर कटाव इतना शानदार था की शायद स्वर्ग की अप्सरा 'मेनका' की उपमा भी फीकी पड़ जाए.. कूल्हे अपेक्षाकृत अधिक सुडौल थे.. कमर में से बूँदों की शकल में चू रहा पानी.. पानी नही अमृत लग रहा था.. मानो अभी अपने होंठो से उसको चख कर अमर हो लिया जाए.. सचमुच क्या बदन था.. राका के बदन में तूफान सा आ गया... उसके लिए अब ड्राइविंग पर ध्यान देना कठिन हो रहा था.... वो आगे से भी इश्स स्वपनिल सुंदरी का रूप देखने को बेताब हो उठा," ऐसे क्यूँ बैठी हो? सीधी होकर आराम से बैठो ना!"
राका को क्या मालूम था.. जो राका देखना चाह रहा था.. वही तो निशा च्छूपा रही थी," नही.. ऐसे ठीक है!" निशा का बदन इतने शानदार युवक को साथ पाकर काई बार मचला.. पर हर बार उसके बदल चुके मॅन ने उसको शांत कर दिया......
"क्या करती हो तुम?" राका बात बढ़ाए बिना ना रह सका..
"अभी 12थ के एग्ज़ॅम दिए हैं.. रिज़ल्ट आने वाला है..." निशा ने कमर से चिपके कपड़े को अपने हाथ से खींच कर ठीक किया...
"तुम बहुत ही सुंदर हो... बहुत ही प्यारी" राका ने झूठी तारीफ़ नही की थी.. वो बेमिशाल थी....
निशा के शरीर में झुरजुरी सी उठी.. उसके मुँह से अपनी तारीफ़ सुन'ना उसको बहुत अच्च्छा लगा...," थॅंक्स सर......"
चिर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर! राका को ब्रेक लगाने पर मजबूर होना पड़ा...
निशा चौंक कर पलटी और राका की और देखा," क्या हुआ?"
"आगे रास्ता बंद है.. वो देखो!" राका ने सड़क पर गिरे भारी भरकम पेड़ की और इशारा किया.. बारिश अब भी उतनी ही तेज थी.
"अब क्या करें?" निशा ने उसकी और परेशान निगाहों से देखा..
"डॉन'ट वरी.. थोड़ी पिछे एक कच्चा रास्ता है.. वहाँ से निकाल लेते हैं" कहते हुए राका ने गाड़ी वापस घुमा ली...
इसीलिए तो कहा था.. होनी को कोई नही टाल सकता.. पता नही राका ने ध्यान नही दिया या देने की सुध ही नही थी.. कच्चे रास्ते पर मुश्किल से वो एक किलोमेटेर चले होंगे की गाड़ी बीच रास्ते फँस गयी. बारिश की वजह से कीचड़ बहुत हो गया था... और एक जगह जाकर करीब 2 फीट गहरे गड्ढे से गाड़ी बाहर नही निकल पाई.. ना ही पिछे एक इंच ही हिली.. भगवान जाने; राका ने निकालने लायक कोशिश की भी थी या नही..
"शिट.. यहाँ बुरे फँसे.. अब क्या करें?" राका ने स्टियरिंग पर ज़ोर से हाथ पटका..
"मेरी वजह से आप भी कितने परेशान हो गये हैं सर..!" निशा ने परेशान होने की बजाय अपनी सहानुभूति दिखाना ठीक समझा.....
"कोई बात नही..निशा... जो होता है अच्छे के लिए होता है.." राका कैसे बताता वो परेशान नही है.. शुक्र है उपर वाले का.. नही तो वो चाहता तो एक क्या 10 गाड़ी मंगवा सकता था...
खेतों में दूर दूर तक कोई नज़र नही आ रहा था. करीब 10 मिनिट तक दोनो कुच्छ नही बोले... दोनो के मॅन में एक दूसरे के ही ख़यालात थे.. हालाँकि निशा नज़रें मिलने से कतरा रही थी...
आख़िरकार.. राका से ना रहा गया..," मैं तो बारिश में नहा रहा हूँ.. आना चाहो तो आ सकती हो..."
"छ्ह्ह्हीइ!" निशा बुरी तरह शर्मा गयी.. पहले से भीगे यौवन को तो वह संभाल नही पा रही थी... और कैसे नहाएगी...
"एज यू विश!" राका ने कहा और बाहर जाकर खेत की मेड पर लगी घास पर बैठ गया....
अंदर बैठी निशा का बदन तपने लगा.. राका ने खुद ही तो उसको बोला है.. नहाने के लिए.. उसकी छाती से लगने की निशा की तड़प एक बार फिर उसके मॅन पर हावी हो गयी....
निशा ने शीशा नीचे करके राका को आवाज़ लगाई," आ जाऊं.. मैं भी.. अंदर दिल नही लग रहा..."
"नेकी और पूच्छ पूच्छ! आ जाओ ना.. बड़े दीनो के बाद ऐसे खुले में नहाने का मौका मिल रहा है........
निशा ने नीचे उतरने से पहले एक बार फिर अपने भीगे जिस्म का मुआयना किया.. बदन से चिपके हुए कमीज़ में से उसकी शानदार चूचियों का आकर बिना किसी दिक्कत के महसूस किया जा सकता था. तने हुए अनार के दानों जैसे निप्पल्स तो किसी की भी साँस रोक देने के लिए काफ़ी थे.. वी- आकार के गले की कमीज़ से दिखाई दे रही गहरी खाई स्वर्गिक सुख के द्वार का प्रतीक प्रतीत हो रही थी. "हाए राम.. ऐसे कैसे जाउ?" राका के एक व्यंगया ने निशा को लड़की होने का मतलब समझा दिया था.. अब वह आवारा नही रहना चाहती थी...
"आ रही थी तुम..?" राका ने निशा को पुकारा...
"उम्म्म्मममम... नही, तुम्ही नहा लो!" बाहर निकलने की प्रबल इच्च्छा के बावजूद निशा को 'ना' ही कहना पड़ा....
राका उठ कर खिड़की के पास आया," क्यूँ क्या हुआ? मुझसे डर लग रहा है?" कह कर राका ने कामुक मुस्कान निशा की और उच्छाली...
निशा ने राका को सामने देख शर्माकर अपने दोनो हाथ अपने कंधों पर ले जाकर मचल रही मस्त चूचियों को कोहनियों में छिपा लिया," नही.. आपसे कैसा डर...?"
"क्यूँ क्या मैं मर्द नही हूँ?" कहकर राका ने ज़ोर का ठहाका लगाया.. अब उसकी कोशिश निशा की हिचक दूर करने की थी.
राका की बात का मतलब समझ कर निशा का चेहरा एक दम लाल हो गया.. होन्ट लरज उठे.. कोहनियाँ और सख्ती से चूचियों से जा चिपकी.. पर आवाज़ ना निकली. एक वाक्य ने निशा को कितना बदल दिया था ' मैं आवारा लड़कियों के मुँह नही लगता!'
अगर पहले वाली निशा होती तो पहल वही करती.. पर अब निशा सचमुच ही 19 साल की मासूम लड़की लग रही थी..
"एक बात पूच्छू?" राका खिड़की पर झुक गया...
निशा ने हां में सिर हिलाया.... नज़रें वो फिर भी ना मिला सकी...
"तुम क्या जान बूझ कर उनके साथ आई थी..."
निशा क्या बोलती.. चुप ही रही...
"बोलो ना" हाथों के बीच से निशा के अंदर झाँकते हुए राका ने कहा..
सच बोलने का मतलब खुद को आवारा साबित करने के लिए काफ़ी था और झूठ बोलने के लिए वो क्या कहानी बनाती....
निशा की आँखों से छलक आए अश्कों ने सारी बात बयान कर दी...
"ये क्या बात हुई.. होता है.. ग़लती इंसान से ही होती है.. वैसे एक बात कहूँ; तुमसे प्यारी लड़की आज तक मेरी नज़र में नही आई.." गीले चेहरे की वजह से निशा के गालों पर फैल गये अश्कों को राका ने अपनी हथेलियों में थाम लिया.. निशा सिसक उठी.. आँखें बंद हो गयी और होन्ट काँपने लगे. उसका हसीन चेहरा राका की हथेलियों में क़ैद था.
राका ने आँसू पोंच्छ कर हाथ हटा लिए.. निशा जैसे सपनों की दुनिया से वापस ज़मीन पर आई... पहली बार उसको प्यार होने का अहसास हुआ.. पल भर में ही उसने क्या कुच्छ नही पा लिया ....
"आओ ना बाहर.. मौसम की पहली बरसात है.. मुझे तो लग रहा है जैसे हमारे लिए ही सावन बरसा है आज..." राका ने खिड़की खोल कर अपना हाथ बढ़ाया तो बेसूध सी निशा ने अपना हाथ राका के हाथ में दे दिया.. अपनी तरफ से हमेशा के लिए!
निशा राका के साथ बाहर आ गयी.. खुले आसमान के नीचे! दिल ज़ोर से धड़क रहा था.. उसका जवान शरीर तपने लगा था.. राका तो जाने कब से निशा के पहलू में फ़ना हो जाना चाह रहा था...
"अगर तुम्हे ऐतराज ना हो तो मैं बियर की कॅन निकाल लून क्या? ठंडी हो गयी होंगी.. प्यास लगी है..
निशा ने अपने कंधे उचका दिए.. अभी तक उसको अधिकार ही कहाँ मिला था, मना करने का....
राका ने अपने दिल को निकाल कर निशा के सामने रख देने का माहौल तैयार कर लिया था.. एक तो इतनी हसीन लड़की साथ में.. उपर से बारिश और साथ में बियर.. एक केन में ही राका झूमने लगा. अब राका नही, पहली नज़र में ही निशा का दीवाना हो चुका दिल बोल रहा था," निशा!"
"हूंम्म!" बारिश से तर बदन को समेटे बैठी निशा भी मानो मदहोश सी हो चुकी थी.. उसके 'हूंम्म्म' से कुच्छ ऐसा ही लगा.
"तुम्हे मैं कैसा लगता हूँ?"
निशा बिना कुच्छ बोले अपनी गर्दन तिर्छि करके राका की आँखों में देखने लगी.. राका तो पहले ही उसकी और देख रहा था.. सच मानो तो आँखें चार होना इसी को कहते हैं.. निशा की काली बिल्लौरी आँखों ने उसके सवाल का जवाब दे दिया और राका की बेताब आँखों ने मतलब पढ़ लिया..
राका ने निशा का हाथ अपने हाथ में ले लिया.. दोनो अब भी एक दूसरे से आँखों ही आँखों में बतिया रहे थे..
निशा के होंठो से हल्की सी सिसकी निकली.. ये पता नही की कारण दिल था या बदन....
"क्या तुम अपना हाथ मेरे हाथ में दे सकती हो.. हमेशा के लिए!" राका दिल से बोल रहा था.
निशा को विस्वास नही हुआ.. 'हमेशा के लिए' ... राका के हाथ में समाया उसका हाथ कसमसा उठा... राका ने हाथ छ्चोड़ दिया," क्या हुआ.. अगर बुरा लगा हो तो सॉरी!"
निशा को जवाब देना ही पड़ा," म्म..मैं आपके लायक नही हूँ.. रा... सर!" कह कर निशा हिचकिया ले ले कर सिसकने लगी.. उसने जल्दबाज़ी क्यों की.. इंतज़ार क्यूँ नही किया.. आज तक का.. राका का!"
राका ने उसकी और घूम कर उसका चेहरा अपने हाथों में ले लिया," किसने कहा पगली..!"
सिसकते हुए ही निशा ने जवाब दिया," म्मैई... अच्च्ची लड़की नही थी.. मैं....." कहकर निशा सुबकने लगी...
"मेरे लिए इसके कोई मायने नही हैं पगली.. लड़के और लड़की के लिए अलग पैमाने समाज ने बनाए हैं और मैं लकीर का फकीर नही हूँ... अगर लड़का अपनी जिंदगी जैसे चाहे जी सकता है तो लड़की क्यूँ नही.. हां उम्मीद करूँगा की शादी के बाद तुम मुझे ही अपनी दुनिया मानो.. मैं भी वादा करता हूँ!"
'शादी' ये शब्द सुनते ही निशा का नरित्व जाग उठा.. आज की बारिश ने मानो उसके सारे पाप धो दिए हों.... निशा ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और राका के हाथ में दे दिया.. हमेशा के लिए,"सच्ची" निशा कमाल के फूल की तरह सावन की फुहारों में खिल उठी..
"हां! आइ लव यू निशा.. मुझे कल देखते ही तुमसे प्यार हो गया था..." राका ने निशा का दूसरा हाथ भी अपने हाथ में ले लिया.. अब भी हुल्की हुल्की फुहारें इश्स नायाब जोड़ी को अपना आशीर्वाद दे रही थी..
"मुझे ठंड लग रही है.. गाड़ी में चलें.." गरम हो चुके बदन पर बरसात की शीतल बूँदें अब सहन नही हो रही थी..
"चलो!" राका के कहते ही दोनो उठ खड़े हुए और गाड़ी के पास चले गये..
"श.. आगे वाली सीट गीली हो गयी हैं.. हम शीशा चढ़ाना भूल गये निशा"
"तो क्या हुआ.. हम तो पहले से ही गीले हैं.." निशा अब चहक रही थी.. राका के रूप में उसको अपना राजकुमार नज़र आ रहा था. जिसके लिए हर लड़की सपनें संजोती है...
"नही.. पीछे बैठते हैं कुच्छ देर.. फिर में कंपनी में फोन करके दूसरी गाड़ी मंगवा लूँगा"
"ठीक है.." निशा ने कहा और पिच्छली सीट पर जा बैठी. राका ने भी उसके करीब बैठने में देर नही लगाई.....
तुम्हारे होन्ट कितने प्यारे हैं.. एक दम गुलाब की पंखुड़ियों जैसे!" राका ने मस्का लगाना शुरू किया....
"हे हे हे हे हे!" निशा चहक उठी.. उसकी हँसी में अपनी प्रशंसा सुन'ने की ख़ुसी के साथ हूल्का सा अभिमान भी था.. हो भी क्यूँ ना.. इतनी खूबसूरती के साथ भगवान हर किसी को नही तराष्ता..
"तुम्हारी आँखें भी बड़ी प्यारी हैं... एक दम सीप के माफिक.. बड़ी बड़ी.. सच में तुम बहुत प्यारी हो निशा.. मुझे यकीन नही होता की तुम मेरे नशीब में हो.." ( दोस्तो एक छोटी सी चूत के लिए आदमी पता नही क्या क्या करता है इस समय विचारा राका यही सब कर रहा था तो क्या बुरा कर रहा था आपका दोस्त राज शर्मा ) राका ने अपनी तरफ से उपमा देने में कसर नही छ्चोड़ी थी..
निशा गौर से राका के चेहरे को देखती रही.. उसके चेहरे पर अपरिमित मुस्कान
थी..
"तुम्हारी......" कहकर राका रुक गया.. तीन तीन नशे साथ होने पर भी वा आगे ना बढ़ पाया..
निशा तो भूल ही चुकी थी की उसके बदन को ढक'ने वाले कपड़े पारदर्शी हो चुके हैं... राका को अपनी चूचियों की ओर एकटक देखता पाकर वह हड़बड़ा गयी.. निशा के हाथ राका ने अपने हाथों में संभाल रखे थे.. जब निशा को अपना अर्ध्नग्न बदन छिपाने का कोई उपाय ना सूझा तो झुक कर राका की छाति में अपना सिर छिपा लिया..
निशा की गरम साँसें अपनी छाति पर महसूस करके राका दहक उठा.. उसकी पॅंट के अंदर आई हुलचल को उसकी गोद में रखे निशा के हॉथो ने भी महसूस किया..,"आह!"
राका ने अपना एक हाथ निशा की पतली कमर पर रखा और उसको अपने और करीब सटा लिया...," निशा! क्या मैं तुम्हे छ्छू सकता हूँ?"
"कहाआँ?" निशा का सारा बदन अंगड़ाई ले उठा...
"तुम्हारे होंठों को......"फिर थोड़ा रुक कर राका ने बात पूरी की,"..... अपने होंठों से.."
निशा की हालत पहले ही राका की मर्दानगी को महसूस करके पतली हो चुकी थी.. अपना चेहरा उपर करके निशा ने अपने होंठ राका के हवाले कर दिए.. सुर्ख लाल होंठ काँप रहे थे... निशा की साँसों की मादक महक जब राका के नथुनो से टकराई तो एक बार फिर निशा ने उसके और सख़्त हो गये हथियार की चुभन अपने हॉथो पर हुई...
राका के होंठ जैसे ही निशा के लबों को चूमने के लिए आगे बढ़े, होंठ अपने आप खुल गये, एक दूसरे के होंठों को इज़्ज़त देने के लिए..
"उम्म्म्मममम!" राका ने अगर पहले ऐसा किया भी होगा तो इतना मज़ा नही आया होगा.. निशा भी सब कुच्छ भूल कर बदहवास होती जा रही थी.. राका के दोनो हाथ निशा की कमर पर रेंगने लगे.. निशा के हाथ राका के बालों में जा फँसे.. बेइंतहा मस्ती में मगन निशा अपनी एक टाँग सीधी करके राका की जांघों के उपर फैला कर उस'से और चिपक गयी.. निशा की जाँघ राका की जाँघ पर टिकी हुई थी.. दोनो की साँसे उखाड़ने लगी...
अचानक राका ने निशा के होंठो को अपनी क़ैद से अलग किया और बेकरारी से बोला..," निशा.. मैं तुम्हे और भी छूना चाहता हूँ.. मैं तुम्हे हर जगह छूना चाहता हूँ" कहकर राका फिर उसके होंठों से चिपक गया..
निशा में भी सेक्स कूट कूट कर भरा हुआ था.. और अब ये बदन था ही किसका," अपने होंठ आज़ाद करते हुए उखड़ चुकी साँसों को वश में करने की कोशिश करते हुए बोली..," छ्छू लो जान.. अब मैं सिर्फ़ तुम्हारी हूँ.. छ्छू लो मुझे.. जहाँ दिल करे.. मार डालो मुझे!" निशा भावनात्मक हो उठी....
राका ने निशा को सीट पर लिटा दिया और गौर से उसके जिस्म की हर हड्डी को अपनी आँखों में उतारने लगा...
"क्या देख रहे हो...?" निशा राका को इश्स तरह देखता पाकर रोमांचित हो उठी...
"मेरी तो समझ में ही नही आ रहा.. देखूं या कुच्छ करूँ.. तुम्हारा सब कुच्छ कमाल का है.."
"क्या कमाल का है?" निशा ने इतराते हुए पूचछा..
"नाम लेकर बताऊं क्या?" राका की नज़र निशा की मस्त गोलाइयों पर थी....
"नही !" निशा एक बार फिर शर्मा गयी.. फिर आँखें बंद करके बोली.. जो चाहो करो जान.. पर कुच्छ करो.. अब सहन नही होता.. मैं मर जाउन्गि.. बाद में देखते रहना.. सारी उम्र!"
राका ने अपने हाथ आगे ले जाकर चूचियों पर टीके दानों की चुभन को महसूस किया...
"आआआहह!" निशा ने राका के हॉथो पर हाथ रख कर उन्हे वहीं दबा लिया.. राका ने ज्यों ही गोलाइयों की सख्ती को अपने हाथो में समेट कर दबाया तो निशा कामुकता से उच्छल पड़ी... उसने दूसरी टांगे भी फैला कर राका की दूसरी जाँघ पर रख दी..
अब निशा की गान्ड राका की जांघों के बीच में रखी थी... और राका का लंड उसकी फांकों के बीच में फुफ्कार रहा था.... निशा तंन और मॅन को मिले इश्स अहसास से महक उठी, दहक उठी...
राका ने निशा की कमीज़ का पल्लू पकड़ा और कमर से उपर का हिस्सा अनावृत कर दिया.. निशा का पतला पेट मारे उत्तेजना के काँप रहा था.. राका उसके शरीर का गठन देख कर बाग बाग हो गया....
"कपड़े निकल दूं क्या?" निशा के उपर झुक कर उसके कानों के पास अपने होंठ ले जाकर राका ने धीरे से कहा..."
"मुझसे कुच्छ मत पूच्छो जान.. बस जल्दी से मेरी जान ले लो... मार डालो!"
और राका ने उसको बैठकर उसका कमीज़ गोरे बदन से निकाल दिया.. निशा आँखें बंद किए हाँफ रही थी.. वह जल्द से जल्द अपने अंदर राका को पायबस्त कर लेना चाहती थी पर हिम्मत नही हो रही थी कहने की.. हालाँकि वह अपनी गान्ड को हिला हिला कर अपनी बेताबी ज़रूर पर्दर्शित कर रही थी.... लगातार..
नंगी चूचियों को छ्छूने से ही राका पागल हो उठा था.. और जब उसने उनका स्वाद अपने होंठों से चखा तो दोनो में तूफान सा आ गया.. तूफान बीच रास्ते पर खड़ी गाड़ी के बाहर भी महसूस किया जा सकता था...
राका ने चूस चूस कर गुलाबी निप्पालों को लाल कर दिया.. उनसे दिल भरता तो राका आगे की सोचता ना...
निशा का सब्र दम तोड़ गया," अब डाल दो ना अंदर.. प्लीज़.. ऐसे तो मैं पहले ही दम तोड़ दूँगी.....
"ओह हां.. वो तो मैं भूल ही चुका था.. और राका ने निशा की सलवार का नाडा खोल दिया...
इतनी हसीन दुनिया के दीदार के बारे में राका ने कभी सोचा भी नही था.. नीचे के कटाव उपर से इक्कीस ही थे.. निशा की योनि एकदम गीली थी.. पानी से नही.. उसके अपने रस से.. फूली हुई फांकों में पतली सी दरार ने राका के होश उड़ा दिए.. जैसे ही राका ने अपनी उंगली उसके बीचों बीच रखी, निशा उच्छल पड़ी.. अब देर मत करो, मैं होने वाली हूँ... "
"बस एक बार चखने दो जान.." कहकर राका पिछे हटा और निशा की तितली के उपर अपने होंठ लगा दिए.. अचानक उसकी नायाब तितली के पंख फड्फाडा उठे.. जीभ दरार से होती हुई ज्योन्हि योनि के दाने से टकराई.. उसने दम तोड़ ही दिया,"आआआः मैने कहा था ना.." कहते हुए निशा ने राका का सिर वही दबा लिया.. ना दबाती तो भी राका वहाँ से हटने वाला नही था.. जब तक उस 'रस का एक एक कतरा हजम नही करता...
राका ने जब अपना सिर हटाया तो दोनो के चेहरे पर सन्तुस्ति की मुस्कान थी...
राका ने अपनी पॅंट उतार फेंकी और अंडरवेर की साइड से अपना लंबा तगड़ा लंड निकाल कर निशा के हाथ में पकड़ा दिया," अब तुम्हारी बारी..."
निशा राका का मतलब समझ गयी.. जड़ से लेकर सुपाडे तक अपनी उंगलियाँ चलाते हुए वह झुकी और अपने होंठ सुपाडे पर रख दिए..
दनदनाता हुआ लंड अंदर जाने के लिए फद्फडा रहा था.. पर निशा को वो साइज़ सूट नही करता था.. बड़ी मुश्किल से वो सुपाडे भर को अपने मुँह के अंदर ले पाई और होंठों का घेरा रब्बर की तरह खींच कर उसकी मोटाई के चारों और फँस गया...," नही.. ये नही होगा.. मुँह दुखने लगा है.. प्लीज़..." निशा ने सूपड़ा मुँह से निकाल दिया
"कोई बात नही.." राका ने संतोष कर लिया.. "उल्टी हो जाओ... आगे कोहनिया टेक कर..."
निशा ने वैसा ही किया.. अपने आशिक़ की बात भला कैसे टालती.. हालाँकि गाड़ी में सब कुच्छ थोड़ा सा मुश्किल था.. पर उस वक़्त मुश्किलों में कौन पीछे हट-ता..
कोहनियाँ टीका कर जैसे ही निशा ने अपनी मस्त कसी हुई गान्ड उपर उठाई.. योनि पीछे से राका को पागल बनाने लगी.. राका ने निशा की टाँगों को उपर तक सहलाया और एक बार फिर अपने होंठ उसकी चिकनी चूत पर रख दिए.. निशा से आनंद सहन नही हो पा रहा था.. वा बार बार उचक जाती और चूत उसकी जांघों में छिप जाती.. इसी लूका छिपि में निशा एक बार फिर अपने होश खोने लगी.. उसने अपनी टांगे अच्छि तरह फैला दी और चूत का मुँह राका को ललचाने के लिए खुल गया," अब तो कर दो..." निशा ने तड़प्ते हुए कहा.....
ऐसा नही था की राका इसके लिए तड़प नही रहा था.. पर उसको अहसास था की अगर उसने जल्दबाज़ी की तो निशा ज़्यादा देर तक टिक नही पाएगी और शायद उसके मोटे लंबे हथियार को दुबारा लेने के लिए जल्दी तैयार नही होगी.. अब सब कुच्छ उसके मुताबिक ही था.. एक बार स्खलन के बाद दोबारा तैयार होगी तो वह ज़्यादा देर तक
सहन कर पाएगी.. यही हुआ भी.. निशा की कमसिन चूत अब फिर अपना मुँह खोल चुकी थी और शायद इश्स बार उसकी बेकरारी भी पहले से ज़्यादा थी..
राका ने अपनी बाई टाँग का घुटना सीट पर रखा और दायां पैर सीट से नीचे घुटना मोड़ कर रख लिया.. अब लक्ष बिल्कुल सामने था.. राका ने जैसे ही अपना लंड निशा की चूत के पतले च्छेद पर रखा.. लगभग पूरी चूत सुपाडे के पिछे छिप गयी.. राका हाथ में. पकड़ कर चूत से रगड़ने लगा.. पहले से ही हाँफ रही निशा बेचैन होकर अपनी कमर को बार बार पिछे करके लंड को जल्द से जल्द अंदर लेना चाहती थी.. उसने पिछे मुँह करके बड़ी प्यासी नज़रों से राका की और देखा," आआआः.. क्यूँ तड़पा रहे हो.."
"ये लो मेरी जान!" राका ने निशा की जांघों को मजबूती से पकड़ा और एक जोरदार धक्का आगे की और लगाया.. धक्का इतना जबरदस्त था की अगर राका ने उसकी जांघों पर अपने हाथ मजबूती से ना जमाए होते तो यक़ीनन निशा का सिर खिड़की से टकराना था...
"आआआआः.. मररररर गयी मम्मी!" निशा पीड़ा से तड़प उठी.. शुक्र है वो कुँवारी नही थी नही तो बेहोश हो जानी थी.. दर्द के मारे उसकी आँखों से आँसू बह निकले....
सूपड़ा उसकी चूत में बुरी तरह फँसा हुआ था...
राका निशा की कमर पर झुक गया और अपने होंटो से कमर के चुंबन लेने लगा..," बस एक मिनिट मेरी जान.. अभी और नही डालूँगा.. बस.. रिलॅक्स.."
पर यहाँ चैन कहाँ था.. निशा योनि में दर्द से बिलबिला रही थी....
कुच्छ देर बाद जब निशा ने लंड निकालने की कोशिश बंद कर दी तो राका ने उसकी जांघों को छ्चोड़ कर अपने हाथों में उसकी दोनो चूचियाँ पकड़ ली.. गर्दन के आसपास चुंबनों की बौच्हर ने धीरे धीरे निशा को मस्त कर दिया..
"चेहरा इधर तो करो!"
जितना हो सकता था.. निशा ने अपनी गर्दन घुमा ली.. राका अपना चेहरा आगे ले जाकर अपनी जीभ से उसके होंटो को चाटने लगा.. निशा भी अपनी जीभ निकाल कर राका की जीभ से खेलने लगी.. जल्द ही खुमारी निशा पर फिर से चढ़ने लगी और वा अपनी गान्ड को आगे पीछे करके राका को अपने इरादों से अवगत करने लगी...
सही समय था.. राका एक बार फिर सीधा हुआ और अपने हाथ फिर से उसकी जांघों पर जमा दिए.. थोड़ा सा ज़ोर और लगाया और लंड अंदर सरक गया.. इश्स बार निशा ने भी दर्द पर काबू करके अपना सहयोग दिया," तुमने तो मुझे सच में ही मार दिया था जान!"
राका इतनी शानदार चीज़ को पाकर बौखला सा गया था.. अब वह बातों पर कम
और काम पर ज़्यादा ध्यान दे रहा था.. धीरे धीरे धक्के लगाते हुए आख़िरकार लंड गर्भाष्या की दीवार से जा टकराया.. निशा आनंद से सराबोर अपना वजूद भूलती जा रही थी..," अया.... आआआह.. धीरे धीरे आगे पिछे करो जान... बहुत मज़ा आ रहा है.. आआआह आआआआअह... निशा ने अपना सिर सीट पर टीका लिया और अपनी गान्ड और उपर उठा ली.. इससे धक्कों की गति बढ़ने लगी... इसके साथ ही दोनो का पागलपन भी.. धक्कों के साथ ही दोनो कुच्छ का कुच्छ बड़बड़ाने लगे....
"सीधी कर लो ना... मैं तुम्हे अपने अंदर आते जाते देखना चाहती हूँ..."
"ओके.." कहकर राका ने लंड बाहर खींच लिया.. और टूट चुकी निशा के सीधे होने में मदद की....
एक बार फिर से लंड अंदर और धक्के शुरू.. निशा अपने अंदर बाहर हो रहे लंड को देखकर और ज़्यादा उत्तेजित हो गयी... बदहवास सी वह अपनी गान्ड को उपर उठा उठा कर गाड़ी में अपेक्षाकृत कम लग रहे धक्कों में तेज़ी लाने की कोशिश करती रही.. राका झुक कर चूचियों को अपने मुँह में भरने की कोशिश करता हुआ धक्के लगाता रहा...
चरम आनंद की तमाम हदें पार करते हुए वो पल आ गया जहाँ दोनों सब कुच्छ भूल गये.. आखरी धक्का लगा कर राका निशा से चिपक गया और उसके रस की बौच्चरें रह रह कर निशा की योनि को अंदर तक आनंद से भरने लगी.. एक अलग ही तरह का गरम अहसास निशा को अपने अंदर होते ही उसने भी जवाब देना शुरू किया और किसी जोंक की तरह राका के बदन से चिपक गयी... काफ़ी देर तक एक दूसरे को चूमते रहने के बाद अचानक निशा को होश आया," अगर बच्चा हो गया तो?"
"उस'से बहुत पहले हम शादी कर लेंगे जान.. तुम सचमुच अनमोल हो.. मेरे लिए!"
निशा की आँखों से खुशी के आँसू छलक उठे.. आख़िरकार उसको मंज़िल जो मिल गयी..
एक दूसरे को सॉफ करने के बाद निशा ने राका से कहा..," मैं आज अपने घर नही जाउन्गि!"
"क्यूँ?"
"मैं तुम्हारे साथ रहूंगी...."
राका ने निशा को एक बार फिर चूम लिया," ठीक है.. तुम अपने होने वाले घर
चलो!"
"क्या वहाँ कोई नही है..?" निशा ने सवाल किया..
"है क्यूँ नही मेरी जान..! मा है.. पापा हैं... भैया भाभी हैं!"
"कुच्छ बोलेंगे तो..?"
"बोलेंगे क्यूँ नही... सभी बोलेंगे.. अपनी होने वाली बहू से!" कहकर राका ने एक बार फिर उसको अपनी बाहों में खींच लिया.....
"नही.... तुम तो सच में जान निकल देते हो..." निशा ने हंसते हुए कहा और राका से चिपक गयी..........
आपका दोस्त
राज शर्मा
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