गर्ल्स स्कूल पार्ट --52
गली में कुच्छ आगे निकल जाने के बाद नीरू ने पिछे मुड़कर देखा.. वासू उसके पिछे पिछे जैसे उसको सून्घ्ता हुआ आ रहा था.. उसने अपनी चल धीमी कर दी और लगभग वासू के साथ साथ चलने लगी," सर! आपको ऐसे नही आना चाहिए था.. मा को शक हो जाता तो?" नीरू ने दायें बायें देखते हुए वासू से कहा...
" तो क्या करता? आज रात वो टूर पर निकल जाते और हम यहीं रह जाते.." वासू ने भी बिना उसको देखे; चलते चलते जवाब दिया..
"हम क्यूँ? आप तो चले ही जाते.." नीरू ने इठलाते हुए अपने बालों को कानो से पिछे किया और वासू की और हौले से मुस्कुराइ...
"तुम्हारे बिना मैं क्या करता वहाँ?" वासू ने जवाब दिया...
नीरू पर पूरी मस्ती च्छाई हुई थी.. वासू को इस तरह अपने लिए मचलते देख वो इतरा गयी," और.. मेरे साथ क्या करेंगे वहाँ?"
"कककुच्छ नही.. मैं क्या करूँगा? म्म्मैने कभी कुच्छ किया है क्या?" वासू चलते हुए नीरू के मादक नितंबों की उठापटक में खोया हुआ था की नीरू के इस द्वियार्थी सवाल ने उसको हड़बड़ाहट में डाल दिया..
नीरू अपनी हँसी नही रोक पाई.. वासू का ये भोलापन ही तो नीरू को ले डूबा था.. वरना तो वो कब की 'जवान' हो चुकी होती..
" एक बात कहूँ..?" वासू ने मौका देखकर कहा...
" जी.. कहिए.." नीरू ने चलते हुए सरक गयी चुननी को ठीक करते हुए कहा..
" नही.. कुच्छ नही.. तुम चलोगि ना?"
" हाँ.. मैं तो पक्का चलून्गि.. पर और कौन कौन जा रहे हैं..?" नीरू ने सवाल किया...
" मुझे तो बस इतना पता है कि तुम जा रही हो.. और मैं जा रहा हूँ.. बाकी तुम उन्ही से पूछ लेना.. अच्च्छा.. चलने का समय अच्छी तरह याद रखना और टाइम से पहले पहुँच जाना.. भूल मत जाना..!" वासू बेचैनी से बोला, घर आ गया था...
" जी.." नीरू ने एक बार सरसरी निगाह वासू के प्यारे चेहरे पर डाली और उसने अपनी चल तेज कर दी..
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शाम के करीब 7 बाज चुके थे... सब अपने अपने समान की पॅकिंग में लगे थे..
" जीजू कब आ रहे हैं दीदी.." वाणी से सब्र नही हो पा रहा था.. उसका मनु जो उसके साथ आने वाला था..
" आने ही वाले होंगे.. कह रहे थे 10 मिनिट का रास्ता और..." दिशा को वाणी ने बात भी पूरी ना करने दी..
" आ गये... कहते हुए वा दरवाजे की और भागी.. पर अचानक ही दरवाजे से कुछ पहले ठिठक कर रुक गयी.. वापस भाग कर आईने के सामने गयी और खुद को उपर से नीचे तक देखा... प्यार ऐसा ही होता है.. वरना वाणी की तारफ़ कोई आईना क्या करता.. वह तो खुद दर्पण थी.. सौंदर्या का.. सन्तुस्त होने पर वह बाहर की और भागी और दरवाजे पर जाकर मायूसी से खड़ी हो गयी," ववो.. कहाँ है?"
शमशेर ने उसके पास आते हुए प्यार से उसके गालों पर थपकी दी," वो कौन वाणी?"
" वववो.. वो.. मानसी!" वाणी अपनी ज़ुबान फिसलने से मुस्किल से रोक पाई..
" इसने तो यही बताया था कि यही मानसी है.. ये मानसी नही है क्या?" शमशेर ने हंसते हुए वाणी के सामने ही खड़ी मानसी की और इशारा करते हुए कहा...
" ओह.. हाँ.. म्मुझे दिखाई नही दी थी..!" वाणी ने झेन्पते हुए मानसी को बुझे मन से गले लगाया और अंदर आ गयी.. अचानक ही उसका सारा जोश ठंडा पड़ गया..
" इनके बारे में नही पूछोगि? ये शालिनी है..! हमारे साथ टूर पर चलेगी..!" शमशेर ने वाणी का हाथ पकड़ते हुए कहा...
" मुझे नही चलना टूर पर.. मेरा सिर दर्द कर रहा है.. जाओ.. सब चले जाओ.. मुझे अकेली छ्चोड़कर..." वाणी को तो बस यही आता था.. रूठ कर अपनी आँखों से ही रूठने का मतलब समझाना और ज़िद पूरी होने तक हड़ताल पर बैठे रहना...
तभी दिशा अंदर से पानी लेकर आ गयी.. शमशेर के साथ नज़रें मिली.. दोनो ने आँखों ही आँखों में जुदाई की तड़प से एक दूसरे को अवगत कराया और हौले से मुस्कुरकर दिशा अंदर चली गयी...
" क्या हुआ वाणी? अभी तो तू फोन पर मुझे चहक चहक कर गाना गाकर सुना रही थी.. अभी अचानक क्या हो गया तुझे.." मानसी ने वाणी के सिर पर हाथ लगाकर देखा," सिर तो ठंडा है तेरा.. फिर सिरदर्द?"
" मुझे किसी से बात नही करनी.. सब टूर पर जाओ.. मज़े करो.. मैं अकेली यहाँ पड़ी रहूंगी..." वाणी ने मुँह फुलाते हुए मानसी का हाथ अपने सिर से हटा दिया..
उस'से कुच्छ दूर बैठी शालिनी उठकर उसके पास आई..," कितनी प्यारी हो तुम.. किस बात पर गुस्सा हो यार..!"
वाणी ने अपना नीचे वाला होंठ बाहर निकाल कर एक बार उसको घूरा और फिर ये सोचकर की इस बेचारी का क्या कुसूर; वह अपना दर्द उसके साथ बाँटने को राज़ी हो गयी," सभी ऐसा ही कहते रहते हैं दीदी.. पर सब मुझे सताने में लगे रहते हैं.. सब सोचते रहते हैं की कैसे वाणी को गुस्सा दिलाया जाए.. सब मुझे तंग करते हैं दीदी.. कोई मुझसे प्यार नही करता..." कहते हुए वाणी ने उसका हाथ पकड़ कर अपने साथ बैठा लिया...
उसकी मासूम शिकायत सुनकर शालिनी भी बिना मुस्कुराए ना रह सकी..," बात क्या है? बताओ तो सही?"
वाणी कुच्छ नही बोली .. यूँही अचानक वाणी की नज़र उसकी उंगलियों पर पड़ी.. और वो एक पल को सब कुच्छ भूल गयी," हाए दीदी.. कितनी प्यारी रिंग है.. कहाँ से ली?"
" पता नही.. गिफ्टेड है!" शालिनी ने जवाब दिया...
"किसने... अच्च्छा समझ गयी.." फिर शालिनी के कान के पास मुँह लाकर हौले से कहा," क्या नाम है?"
शालिनी ने भी उसके अंदाज में ही उत्तर दिया.. उसके कान में बोला," रोहित!"
" अच्च्छा! शालिनी का सीक्रेट जानकार वाणी बहुत खुश हुई.. पर अगले ही पल उसको 'अपना' सीक्रेट याद आ गया और फिर से उसका पारा चढ़ गया..," जब आप दोनो में लड़ाई होती है तो आप क्या करती हैं?" वाणी ऐसा ही कुच्छ करने का सोच रही थी..
शालिनी खिलखिलाकर हंस पड़ी और फिर उसके कान में कहा," ग़ाली देती हूँ.. और क्या?"
"क्या गाली देती हो?" कानो ही कानो में गुफ्तगू जारी थी..
" उम्म्म्ममम" शालिनी ने यूँही कोई गाली सोची और फिर उसके कान में कह दिया..," साला!"
" हूंम्म्ममम!" वाणी ने गाली रट ली... तभी मानसी के द्वारा कही गयी बात ने उसका खोया नूवर फिर से वापस ला दिया," बाहर वाले घर चलें वाणी.. मुझे भैया से कुच्छ काम है...!"
" क्याअ? कहाँ.. मनु भी आया है क्या?" वाणी खिल उठी...
" तुम तो ऐसे पूच्छ रही हो जैसे वो बिना बुलाए ही आ गया हो.. बुलाया नही था क्या?" मानसी ने मुस्कुराते हुए कहा...
" मैने नही बुलाया किसी को.. दीदी ने बुलाया होगा... चलो चलते हैं..!" सब कुच्छ भूलकर वाणी उसको बाहर खींच कर ले गयी....
"स्नेहा! देखो कौन आया है? अंजलि ने खोई खोई सी स्नेहा को एक अग्यात रोमांच से भर दिया. 'कहीं वही तो नही' सोच कर उसका दिल झूम उठा और वह अपने आप को तेज़ी के साथ पिछे मुड़ने से रोक ना सकी.. विकी अंजलि के पिछे खड़ा प्यासी निगाहों से उसको ताक रहा था.. निगाहों में तन की भूखी वासना की प्यास नही थी, बुल्की स्नेहा की आँखों में उसके लिए फिर से वही प्यार, वही ज़ज्बात देखने की प्यास थी
" मोहन!!!! सॉरी... विकी आप? आप कैसे आ गये?" भाग कर उसके गले से जा चिपकने को स्नेहा का पूरा बदन बेचैन हो उठा.. पर बीच में अंजलि खड़ी थी.. वह अवाक नेत्रों से उसको देखती रह गयी..
"तुम बातें करो! मैं आती हूँ.." स्नेहा के तन-मन में उठे उफान को भाँप कर अंजलि वहाँ से खिसक ली...
"स्नेहा!.." विकी की आँखें भर आई.. वह अब भी उसको यूँ ही एकटक देख रहा था.. बिना पलकें झपकाए..
"हूंम्म.." 2 कदम आयेज बढ़ कर स्नेहा फिर ठिठक गयी.. वा विकी को बाहें फैलाकर उसको पुकारते हुए देखना चाहती थी..
" तुम मेरे बिना रह लॉगी!" विकी ने वहीं खड़े खड़े उल्टे बाँस बरेली की तर्ज़ पर सवाल किया..
" पर तुम.." स्नेहा के मुँह से इतना ही निकला..
" मैं तुम्हारे बिना नही रह सकता सानू.. इतनी ही देर में मैने जान लिया... अब तुम्हारे बिना मन नही लगता.. लगता है जैसे सब कुच्छ खो दूँगा.... अगर तुम्हे खो दिया तो.. मुझे माफ़ कर दो ना.. मुझे तुम्हारी ज़रूरत है.. तुम मेरे पास क्यूँ नही आ जाती..." विकी बोलता चला जा रहा था.. स्नेहा के लिए अब और सहन करना मुश्किल था.. वह तो पहले ही तड़प रही थी.. जाकर विकी के शरीर से जा लिपटी.. और बच्चों की तरह बिलखने लगी," तुमने बुलाया ही कब था.. मैं तो प्यार किया था मोहन... अब तुम्ही विकी हो गये तो मैं क्या करती.. बताओ!" स्नेहा उसके सीने पर सिर रखे उसमें सिमट-ती जा रही थी...
" मुझे आज अहसास हो गया सानू! मुझमें भी ज़ज्बात हैं.. मैं अपने या अपनो के अरमानो का गला नही घोट सकता.. मुझे जीना है.. जीकर देखना है.. तुम्हारे साथ.. मैने फ़ैसला किया है.. अगर तुम मेरा साथ दोगि तो...." विकी के रुक रुक कर बोलते होंठों पर जैसे ताला लग गया.. स्नेहा ने अपने लारजते होंतों से उसकी बोलती बंद कर दी.. दोनों सब कुच्छ भूल कर एक दूसरे में खो गये.. स्नेहा ने जनम जनम उसका साथ देने का एलान कर दिया..
अचानक दरवाजे पर 'खांसने' की आवाज़ के साथ दोनो एकद्ूम छितक कर एक दूसरे से दूर हो गये.. बेडरूम के दरवाजे पर खड़ी नीरू बाहर देखते हुए मुस्कुरा रही थी..
"सॉरी! मुझे पता नही था कि...." नीरू के चेहरे पर शरारती मुस्कान थी..," मैं आ गयी.. कब चलना है?" उन्न दोनो को इतनी आत्मीयता से एक दूसरे में खोए देखकर नीरू के पूरे बदन में साँप सा रेंग गया...
" वो.. हमें क्या पता.. म्मै तो इनकी आँख से कुच्छ निकाल रही थी.. बाहर किसी को पता होगा.." स्नेहा ने हड़बड़ते हुए कहा...
"अंधेरे में ही?" हंसकर नीरू बाहर निकल गयी.. दोनो ने एक दूसरे की आँखों में देखा.. हंस पड़े और फिर एक दूसरे से चिपक गये...
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वाणी ने दनदनाते हुए गौरी के घर प्रवेश किया.. मासूम सा गुस्सा झल्काती उसकी आँखें कुच्छ ढूँढ रही थी.. और जब वो उसको दिख गया तो पल भर के लिए उस'से नज़रें चार की और अपनी गर्दन मॅटकाते हुए वापस बाहर जाकर खड़ी हो गयी...
मनु उसके चेहरे पर इतने गरम तेवर देखकर सकपका गया.. साथ बैठे अमित को 'एक मिनिट' बोल कर वा उसके पिछे बाहर निकल गया.. वहाँ वाणी और मानसी.. दोनो खड़ी थी..
" हाई वाणी!" मनु ने झिझकते हुए बोला..
वाणी अपने कंधे उचका कर थोडा सा और घूम गयी.. उस'से दूसरी ओर...," क्या है?"
"कुच्छ नही.. बस 'ही' बोल रहा हूँ.. तुम कुच्छ गुस्से में लग रही हो.. क्या बात है.. मुझे आना नही चाहिए था क्या?" मनु ने अपनी मानसी की और देखते हुए बत्तीसी निकाली.. ताकि मानसी को कोई शक ना हो.. कि मामला गंभीर है...
" नही .. तुम्हे बिल्कुल नही आना चाहिए था.. क्यूँ आ गये तुम.. हम पर तो बहुत बड़ा अहसान कर दिया ना!" वाणी ने व्यंगया बानो की बौछर कर दी.. दूसरी और देखते हुए ही..
मनु ने मानसी की और देख कर अपनी बत्तीसी निकाल दी.. ताकि मानसी को शक़ ना हो.. की मामला गड़बड़ है..
पर इशक़ और मुश्क़ भी कभी छिपने से छिपे हैं क्या.. चाहे कोई कितना ही बड़ा तुर्रमखाँ क्यूँ ना हो.. और यहाँ तो दोनो अनाड़ी थे.. मानसी हतप्रभ सी बार बार दोनो की आँखों में देखती रही.. विस्मित सी.. कि क्या.. जो वो सोच रही है.. सच है? हां.. सच ही तो है... दोनो की ही आँखों में उसको प्रेम के डोरे तैरते दिखाई दिए.. वाणी के गुस्से में भी असीम प्यार था तो मनु की 'बत्तीसी' दिखाने का अंदाज भी बिल्कुल नया था.. जैसे पकड़े जाने के डर से खिसिया गया हो..
" मैं आती हूँ.. " कहकर मानसी ने अंदर जाते हुए मनु की तरफ शरारत से आँखें मटकाई और दोनो को फ़ुर्सत के चंद लम्हे देते हुए वहाँ से अलग हो गयी....
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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`·.¸.·´ -- raj
girls school--52
Gali mein kuchh aage nikal jane ke baad Neeru ne pichhe mudkar dekha.. Vasu uske pichhe pichhe jaise usko soonghta hua aa raha tha.. usne apni chal dheemi kar di aur lagbhag Vasu ke sath sath chalne lagi," Sir! aapko aise nahi aana chahiye tha.. Maa ko shak ho jata toh?" Neeru ne dayein bayein dekhte huye Vasu se kaha...
" Toh kya karta? aaj Rat wo tour par nikal jate aur hum yahin rah jate.." Vasu ne bhi bina usko dekhe; chalte chalte jawab diya..
"hum kyun? aap toh chale hi jate.." Neeru ne ithlate huye apne balon ko kaano se pichhe kiya aur Vasu ki aur houle se Muskurayi...
"Tumhare bina main kya karta wahan?" Vasu ne jawab diya...
Neeru par poori masti chhayi huyi thi.. Vasu ko iss tarah apne liye machalte dekh wo itra gayi," aur.. mere Sath kya karenge wahan?"
"kkkuchh nahi.. main kya karoonga? mmmaine kabhi kuchh kiya hai kya?" Vasu chalte huye Neeru ke madak nitambon ki uthapatak mein khoya hua tha ki Neeru ke iss dwiarthi sawaal ne usko hadbadahat mein daal diya..
Neeru apni hansi nahi rok payi.. Vasu ka ye bholapan hi toh Neeru ko le dooba tha.. warna toh wo kab ki 'jawan' ho chuki hoti..
" ek baat kahoon..?" Vasu ne mouka dekhkar kaha...
" Ji.. kahiye.." Neeru ne chalte huye sarak gayi chunni ko theek karte huye kaha..
" nahi.. kuchh nahi.. tum chalogi na?"
" Haan.. main toh pakka chaloongi.. par aur koun koun ja rahe hain..?" Neeru ne sawal kiya...
" Mujhe toh bus itna pata hai ki tum ja rahi ho.. aur main ja raha hoon.. baki tum unhi se poochh lena.. achchha.. chalne ka samay achchi tarah yaad rakhna aur time se pahle pahunch jana.. bhool mat jana..!" Vasu bechaini se bola, ghar aa gaya tha...
" Ji.." Neeru ne ek baar sarsari nigah Vasu ke pyare chehre par dali aur usne apni chal tej kar di..
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Sham ke kareeb 7 baj chuke the... sab apne apne saman ki packing mein lage the..
" Jiju kab aa rahe hain didi.." Vani se sabra nahi ho pa raha tha.. uska Manu jo uske sath aane wala tha..
" aane hi wale honge.. kah rahe the 10 minute ka rasta aur..." Disha ko Vani ne baat bhi poori na karne di..
" aa gaye... kahte huye wah darwaje ki aur bhagi.. par achanak hi darwaje se kuchh pahle thithak kar ruk gayi.. wapas bhag kar aaine ke saamne gayi aur khud ko upar se neeche tak dekha... pyar aisa hi hota hai.. warna Vani ki taaraf koyi aaina kya karta.. wah toh khud darpan thi.. soundarya ka.. santust hone par wah bahar ki aur bhagi aur darwaje par jakar mayusi se khadi ho gayi," wwo.. kahan hai?"
Shamsher ne uske paas aate huye pyar se uske Gaalon par thapki di," Wo Koun Vani?"
" Wwwo.. wo.. Manasi!" Vani apni juban fisalne se muskil se rok payi..
" Isne toh yahi bataya tha ki yahi Manasi hai.. Ye Manasi nahi hai kya?" Shamsher ne hanste huye Vani ke Samne hi khadi Manasi ki aur ishara karte huye kaha...
" oh.. haan.. mmujhe dikhayi nahi di thi..!" Vani ne jhenpte huye Manasi ko bujhe man se gale lagaya aur andar aa gayi.. achanak hi uska sara josh thanda pad gaya..
" Inke baare mein nahi poochhogi? ye Shalini hai..! hamare sath tour par chalegi..!" Shamsher ne Vani ka hath pakadte huye kaha...
" Mujhe nahi chalna tour par.. mera sir dard kar raha hai.. jao.. sab chale jao.. mujhe akeli chhodkar..." Vani ko toh bus yahi aata tha.. rooth kar apni aankhon se hi roothne ka matlab samjhana aur jid poori hone tak hadtaal par baithe rahna...
Tabhi Disha andar se pani lekar aa gayi.. Shamsher ke sath najarein mili.. dono ne aankhon hi aankhon mein judayi ki tadap se ek dusre ko awagat karaya aur houle se muskurakar Disha andar chali gayi...
" Kya hua Vani? abhi toh tu fone par mujhe chahak chahak kar gana gakar suna rahi thi.. abhi achanak kya ho gaya tujhe.." Manasi ne Vani ke sir par hath lagakar dekha," Sir toh thanda hai tera.. fir Sirdard?"
" Mujhe kisi se baat nahi karni.. sab tour par jao.. maje karo.. main akeli yahan padi rahungi..." Vani ne munh fulate huye Manasi ka hath apne sir se hata diya..
uss'se kuchh door baithi shalini uthkar uske paas aayi..," kitni pyari ho tum.. kis baat par gussa ho yaar..!"
Vani ne apna neeche wala hont bahar nikal kar ek baar usko ghoora aur fir ye sochkar ki iss bechari ka kya kusoor; wah apna dard uske sath baantne ko razi ho gayi," Sabhi aisa hi kahte rahte hain didi.. par sab mujhe sataane mein lage rahte hain.. sab sochte rahte hain ki kaise Vani ko gussa dilaya jaye.. sab mujhe tang karte hain didi.. koyi mujhse pyar nahi karta..." Kahte huye vani ne uska hath pakad kar apne sath baitha liya...
Uski masoom shikayat sunkar Shalini bhi bina muskuraye na rah saki..," Baat kya hai? batao toh sahi?"
Vani kuchh nahi boli .. yunhi achanak Vani ki najar uski ungaliyon par padi.. aur wo ek pal ko sab kuchh bhool gayi," Haye Didi.. kitni pyari ring hai.. kahan se li?"
" pata nahi.. Gifted hai!" Shalini ne jawab diya...
"Kisne... achchha samajh gayi.." fir Shalini ke kaan ke paas munh lakar houle se kaha," Kya Naam hai?"
Shalini ne bhi uske andaj mein hi uttar diya.. uske kaan mein bola," Rohit!"
" Achchha! Shalini ka secret jaankar Vani bahut khush huyi.. par agle hi pal usko 'apna' secret yaad aa gaya aur fir se uska para chadh gaya..," jab aap dono mein ladayi hoti hai toh aap kya karti hain?" Vani aisa hi kuchh karne ka soch rahi thi..
Shalini khilkhilakar hans padi aur fir uske kaan mein kaha," Gali deti hoon.. aur kya?"
"Kya gali deti ho?" kano hi kano mein guftgoo jari thi..
" Ummmmmm" Shalini ne yunhi koyi gali sochi aur fir uske kaan mein kah diya..," Sala!"
" Hummmmmm!" Vani ne Gali rat li... tabhi Manasi ke dwara kahi gayi baat ne uska khoya noor fir se wapas la diya," bahar wale ghar chalein Vani.. Mujhe bhaiya se kuchh kaam hai...!"
" kyaaa? kahan.. Manu bhi aaya hai kya?" Vani khil uthi...
" tum toh aise poochh rahi ho jaise wo bina bulaye hi aa gaya ho.. bulaya nahi tha kya?" Manasi ne muskurate huye kaha...
" maine nahi bulaya kisi ko.. didi ne bulaya hoga... chalo chalte hain..!" Sab kuchh bhulakar Vani usko bahar kheench kar le gayi....
"Sneha! dekho koun aaya hai? Anjali ne khoyi khoyi si Sneha ko ek agyaat romanch se bhar diya. 'kahin wahi toh nahi' soch kar uska dil jhoom utha aur wah apne aap ko teji ke sath pichhe mudne se rok na saki.. Vicky Anjali ke pichhe khada pyasi nigahon se usko taak raha tha.. Nigahon mein Tan ki bhookhi Wasna ki pyas nahi thi, bulki Sneha ki aankhon mein uske liye fir se wahi pyar, wahi jajbat dekhne ki pyas thi
" Mohan!!!! sorry... Vicky aap? Aap kaise aa gaye?" Bhag kar uske gale se ja chipakne ko Sneha ka poora badan bechain ho utha.. par beech mein Anjali khadi thi.. wah awak netron se usko dekhti rah gayi..
"Tum baatein karo! main aati hoon.." Sneha ke tan-man mein uthe ufaan ko bhanp kar Anjali wahan se khisak li...
"Sneha!.." Vicky ki aankhein bhar aayi.. Wah ab bhi usko yun hi ektak dekh raha tha.. bina palkein jhapkaye..
"Hummm.." 2 kadam aage badh kar Sneha fir thithak gayi.. wah Vicky ko baahein failakar usko pukarte huye dekhna chahti thi..
" Tum mere bina rah logi!" Vicky ne wahin khade khade ulte baans bareli ki tarz par sawaal kiya..
" Par tum.." Sneha ke munh se itna hi nikla..
" Main tumhare bina nahi rah sakta Sanu.. itni hi der mein maine jaan liya... ab tumhare bina man nahi lagta.. lagta hai jaise sab kuchh kho doonga.... agar tumhe kho diya toh.. mujhe maaf kar do na.. mujhe tumhari jarurat hai.. tum mere paas kyun nahi aa jati..." Vicky bolta chala ja raha tha.. Sneha ke liye ab aur sahan karna mushkil tha.. wah toh pahle hi tadap rahi thi.. jakar Vicky ke shareer se ja lipti.. aur bachchon ki tarah bilakhne lagi," tumne bulaya hi kab tha.. Main toh pyar kiya tha Mohan... ab tumhi Vicky ho gaye toh main kya karti.. batao!" Sneha uske seene par sir rakhe usmein simat-ti ja rahi thi...
" Mujhe aaj ahsaas ho gaya Sanu! Mujhmein bhi jajbat hain.. main apne ya apno ke armaano ka gala nahi ghot sakta.. mujhe jeena hai.. jikar dekhna hai.. tumhare sath.. Maine faisla kiya hai.. agar tum mera sath dogi toh...." Vicky ke ruk ruk kar bolte honton par jaise tala lag gaya.. Sneha ne apne larjate honton se uski bolti band kar di.. donon sab kuchh bhool kar ek dusre mein kho gaye.. Sneha ne janam janam uska sath dene ka elaan kar diya..
Achanak darwaje par 'khansne' ki aawaj ke sath dono ekdum chhitak kar ek dusre se door ho gaye.. Bedroom ke darwaje par khadi Neeru bahar dekhte huye muskura rahi thi..
"sorry! Mujhe pata nahi tha ki...." Neeru ke chehre par shararati Muskaan thi..," Main aa gayi.. kab chalna hai?" unn dono ko itni aatmiyata se ek dusre mein khoye dekhkar Neeru ke poore badan mein saanp sa reng gaya...
" wo.. hamein kya pata.. mmain toh inki aankh se kuchh nikal rahi thi.. bahar kisi ko pata hoga.." Sneha ne hadbadate huye kaha...
"Andhere mein hi?" Hanskar Neeru bahar nikal gayi.. dono ne ek dusre ki aankhon mein dekha.. hans pade aur fir ek dusre se chipak gaye...
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Vani ne dandanate huye Gouri ke ghar pravesh kiya.. Masoom sa gussa jhalkati uski aankhein kuchh dhoondh rahi thi.. aur jab wo usko dikh gaya toh pal bhar ke liye uss'se najarein char ki aur apni gardan matkate huye wapas bahar jakar khadi ho gayi...
Manu uske chehre par itne garam tewar dekhkar sakpaka gaya.. Sath baithe Amit ko 'ek minute' bol kar wah uske pichhe bahar nikal gaya.. wahan Vani aur Manasi.. dono khadi thi..
" Hi Vani!" Manu ne jhijhakte huye bola..
Vani apne kandhe uchaka kar thoda sa aur ghoom gayi.. uss'se dusri aur...," kya hai?"
"kuchh nahi.. bus 'hi' bol raha hoon.. tum kuchh gusse mein lag rahi ho.. kya baat hai.. Mujhe aana nahi chahiye tha kya?" Manu ne apni Mansi ki aur dekhte huye batteesi nikali.. taki Manasi ko koyi shak na ho.. ki maamla gambheer hai...
" nahi .. tumhe bilkul nahi aana chahiye tha.. kyun aa gaye tum.. hum par toh bahut bada ahsaan kar diya na!" Vani ne vyangya bano ki bouchhar kar di.. dusri aur dekhte huye hi..
Manu ne Manasi ki aur dekh kar apni batteesi nikal di.. taki Manasi ko shaq na ho.. ki maamla gadbad hai..
par ishaq aur mushq bhi kabhi chhipane se chhipe hain kya.. chahe koyi kitna hi bada turramkhan kyun na ho.. aur yahan toh dono anadi the.. Mansi hatprabh si baar baar dono ki aankhon mein dekhti rahi.. vismit si.. ki kya.. jo wo soch rahi hai.. sach hai? haan.. sach hi toh hai... dono ki hi aankhon mein usko prem ke dore tairte dikhayi diye.. Vani ke gusse mein bhi aseem pyar tha toh Manu ki 'batteesi' dikhane ka andaj bhi bilkul naya tha.. jaise pakde jaane ke dar se khisiya gaya ho..
" Main aati hoon.. " kahkar Manasi ne andar jate huye Manu ki taraf shararat se aankhein matkayi aur dono ko fursat ke chand lamhe dete huye wahan se alag ho gayi....
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
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