Friday, June 18, 2010

गर्ल'स स्कूल पार्ट --4

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गर्ल'स स्कूल पार्ट --4

गतांक से आगे............
दिशा ने तुरंत वहाँ से नज़र हटा ली. काश वो उसके "सर" ना होते. वो उसको अपना दिल दे देती. उस्स पागल को क्या पता था दिल कोई सोचकर थोड़े ही दिया जाता है. दिल तो वो दे चुकी थी.....है ना फ्रेंड्स!

वो चुप चाप टेबल के पास गयी और चाय रखकर नीचे आ गयी. नीचे जाते ही उसने वाणी को कहा," वाणी! जाओ, सर को जगा दो, वे सो रहे हैं."
निर्मला: तुम ना जगा देती पगली
दिशा: मुझसे नही जगाया गया मामी जी.
वाणी ने अपनी कापिया बॅग मैं डाली और दौड़ कर उपर गयी.
जाकर उसने सर का हाथ पकड़ कर हिलाया. लेकिन उसने कोई हलचल नही की. वाणी शरारती थी और शमशेर से घुलमिल भी गयी थी. उसने शमशेर की छाती पर अपना दबाव डाला. उसकी चुचियाँ शमशेर के मुँह के सामने थी. वो नही उठा. वाणी ने ज़ोर से उसके कान में बोला," सर जी" और शमशेर उठ बैठा. उसने चौंकने की आक्टिंग की" क्या हुआ वाणी?"
"सर जी आपकी चाय" टेबल की और इशारा करते शमशेर से कहा.
ओह, थॅंक्स वाणी!!
"थॅंक्स मेरा नही दीदी का बोलिए"
"कहाँ है वो?"
"है नही थी" चाय रखकर चली गयी. मैने आपको इतना हिलाया पर आप उठे ही नही. आपके कान में शोर करना पड़ा मुझे, सॉरी" वाणी ने हंसते हुई कहा.
" पता है वाणी, जब तक कोई मुझे नाम से ना बुलाए, चाहे कुच्छ भी कर ले. मेरी नींद नही खुलती. पता नही कोई बीमारी है शायद." शमशेर का प्लान सही जा रहा था.
" सर, कुंभकारण की नींद भी तो ऐसी थी ना"
"अच्च्छा मुझे कुंभकारण कह रही है. शमशेर ने उसके गाल उमेठ दिए"
"उई मा!" छ्चोड़ देने पर वो हँसने लगी. शमशेर ने महसूस किया, जैसे उसने उसकी चूत पर हाथ रख दिया और वो कह रही है"उई मा". फिर वाणी वहाँ से चली गयी.
नीचे जाते ही वाणी ने मम्मी को कहा," मम्मी, सर जी तो कुंभकारण हैं" मा ने बेटी की बातों पर ध्यान नही दिया. लेकिन दिशा के तो 'सर' सुनते ही कान खड़े हो जाते थे. वो अंदर पढ़ रही थी. उसने वाणी को अंदर बुलाया. वाणी उसके पास आकर बैठ गयी. कुच्छ देर बाद दिशा ने पूचछा
"चाय पी ली थी क्या सर ने"
"हां पी ली होगी. मैने तो उनको उठा दिया था दीदी.
"तू क्या कह रही थी सर के बारे में"
"क्या कह रही थी दीदी?"
"वही....कुंभकारण...."
"नही बतावुँगी दीदी! आप स्कूल में बता दोगे तो बच्चे उनका नाम निकाल देंगे!"
"मैं पागल हूँ क्या... चल बता ना प्लीज़"
वाणी जैसे कोई राज बता रही हो, इश्स तरह से बोली,"पता है दीदी, सर अगर एक बार सो जायें, तो उन्हे उतने का एक ही तरीका है. उन्हे कितना ही हिला लो वो नही उठेंगे. उन्हे उठाने के लिए उनके कान में ज़ोर से उनका नाम लेना पड़ता है."
"चल झूठी" दिशा को विस्वास नही हुआ.
"सच दीदी"" मैं तो उनकी छाती पर जाकर बैठ गयी थी, फिर भी वो नही उठे. फिर मैने उनके कान में ज़ोर से कहा"सर जी" तब जाकर उनकी नींद खुली"
"मोटी तुझे शरम नही आई उनकी छाती पर चढ़ते हुए." दिशा के मॅन में प्लान तैयार हो रहा था.
वाणी ने उसकी टीस और बढ़ा दी," सर बहुत अच्च्चे हैं ना दीदी!"
"चल भाग! मुझे काम करने दे!" दिशा ने उसको वहाँ से भगा दिया.
शमशेर भी इतना ही बैचैन था दिशा की जवानी से खेलने के लिए. अगर वो भी हमारी तरह कहानी लिख कर पढ़ रहा होता तो आँख बंद करके 5 मिनिट में ही उसकी चूत का दरवाजा पूरा खोल देता यारो! पर उसको थोड़े ही पता है की ये कहानी है. ये तो या तो मैं जानता हूँ या आप.... बेचारा शमशेर! खैर शमशेर टकटकी लगाए खिड़की से बाहर देखता रहा की कम से कम उस्स परी की गांद के दर्शन ही हो जायें. करीब 15 मिनिट बाद दिशा बाहर आई. उसके हाथ में टॉवेल था. शायद वो नहाने जा रही थी. गाड़ी के पास जाकर वो रुकी और उस्स पर प्यार से हाथ फेरने लगी. फिर उसने उपर की और देखा. शमशेर को अपनी और देखता पाकर वो जल्दी से अंदर चली गयी. बाथरूम का दरवाजा बंद करके उसने कपड़े उतारने शुरू किए. शमशेर का प्यारा चेहरा और उसकी पॅंट का उभर उसके दिमाग़ से निकल ही नही रहे थे. उसने अपना कमीज़ उतार दिया और अपने उभारों कोगौर से देखने लगी. उसको पता था भगवान ने उसको इन 2 नगिनो के रूप में क्या दिया है. उसकी छातियाँ ही उसकी जान की दुश्मन बनी हुई थी. उसे पता था की इनमें ऐसा कुच्छ ज़रूर है जिसने गाँव के सारे लड़कों को इनका दीवाना बना दिया है. कोई इन्हें पहाड़ की चोटी कहता, कोई सेब तो कोई अनार. क्या सर जी को भी ये अच्छे लगते होंगे. काश कि लगते हों. वा उनपर हाथ फेर कर देखने लगी, इनमें ऐसा क्या है जो लड़कों को पसंद आता है. ये तो सब लड़कियों के होती हैं. कायओ की तो बहुत बड़ी होती हैं, फिर तो वो ज़्यादा अच्च्ची लगनी चाहिए. सोचते सोचते ही उसने अपनी सलवार उतारी. और शीशे में घूम घूम कर अपना बदन देखने लगी, उसको नही मालूम था की हीरे की परख तो जौहरी ही कर सकता है. उसकी गोल गांद और तनी हुई छातियो की कद्रतो वो ही रसिया करेंगे ना जिनको इनकी तड़प है. आज से पहले उसने अपने जिस्म को इतनी गौर से नही देखा था. आज भी शायद अपने प्यारे सर के लिए.

नाहकार वा बाहर निकली तो चौक गयी. सर सामने ही बैठे थे. शायद मामी ने उन्हे खाने के लिए बुलाया होगा. उसको अहसास हुआ की जैसे सर के बारे में सोचते हुए वो रंगे हाथ पकड़ी गयी. वा भागकर अंदर वाले कमरे में चली गयी.

"बेटी, सर के लिए खाना लगा दे. इनको जाना है कही."
अच्च्छा मामी जी, कहकर दिशा किचन में चली गयी.
वाणी सर के पास ही बैठी थी. वाणी का शरीर जवान हो गया था पर शायद मॅन नही. वो ज़्यादातर हरकतें बच्चों जैसी करती थी. अब भी वो शमशेर के साथ अपना पिच्छवाड़ा सटा कर बैठी थी. कोई बड़ी लड़की होती तो अश्लील हरकत समझा जाता.
"मास्टर जी"निर्मला बोली" आपने दिशा को बचा कर जो उपकर किया है, उसका बदला हम नही चुका सकते, पर अब जब तक तुम इस्स स्कूल में हो, हम तुम्हे हमारे घर से नही जाने देंगे"
"मम्मी, हमारा घर नही; अपना घर. है ना सर जी." वाणी चाहक कर बोली.
"हां वाणी!" शमशेर ने उसके गाल पर थपकी देकर ताल में ताल मिलाई.
"मम्मी गाड़ी भी सर की नही है, अपनी है; हैं ना सर जी.
" मस्टेरज़ी, हमारी लड़की बड़ी शैतान है, कभी इसकी ग़लती पर हमसे नाराज़ मत होना.
शमशेर ने मौका देखकर कहा, ये भी कोई कहने की बात है आंटिजी! ये तो यहाँ मुझे सबसे प्यारी लगती है.
दिशा ने इश्स बात पर घूमकर शमशेर को देखा, और प्यार से जलाने के लिए वाणी को बोली," हूंम्म, सबसे प्यारी!"
वाणी ने अपनी सुलगती दीदी को जीभ निकालकर चिडा दिया. दिशा उसे मारने को दौड़ी, पर उसका असली मकसद तो सर के पास जाना था जैसे ही वो वाणी के पास आई, वाणी शमशेर के पीछे छिप गयी. अब शमशेर और दिशा आमने सामने थे. दिशा के तन पर चुननी ना होने की वजह से उसकी दोनों चुचियाँ शमशेर की आँखो के सामने थी. जल्द ही उसको अपने नंगेपन का अहसास हुआ और वो शर्मकार वापस चली गयी.
"इसमें तो है ना बस गुस्से की हद है." निर्मला ने कहा.
शमशेर: हां, वो तो है.
उसके बाद वो खाना खाने लगे. ऐसे ही बातें करते करते वो 2-4 दिन में ही काफ़ी घुल गये. लेकिन इश्स घुलने मिलने का ज़रिया बनी वाणी. अब मामा का शक भी पूरी तरह दूर हो गया था और वो बच्चों के उपर नीचे रहने से परेशन नही होते थे. उन्होने शमशेर को अपने परिवार का हिस्सा मान लिया था. सिर्फ़ शमशेर और दिशा ही एक दूसरे से घुलमिल नही पाए तहे, क्यूंकी दोनों के मॅन में पाप था..... या शायद प्यार!
शनिवार का दिन था. शमशेर लॅबोरेटरी में बैठा 10थ क्लास के प्रॅक्टिकल के लिए केमिकल्स तैयार कर रहा था. उसके दिमाग़ से दिशा निकलने का नाम नही ले रही थी. करीब 10 दिन बीत जाने पर भी उसको दिशा की तरफ से कोई ऐसा सिग्नल नही मिल सका था जिससे वा उसको अपनी बाहों में ले सके. वो तो उससे बात ही खुलकर नही करती थी. उसने सोचा था की वाणी के आगे कुम्भ्कर्न वाली आक्टिंग करने के बाद शायद दिशा उसके सोते हुए कोई ऐसी हरकत करे. जिससे वा उसके मॅन की बात जान सके. पर अभी तक ऐसा कुच्छ नही हुआ था.
अचानक लॅब के बाहर से आवाज़ आई," मे आइ कम इन सर?"
"यस,प्लीज़!" शमशेर ने अंदर बैठा बैठे ही कहा. वो लॅब में अलमारियों के पीछे कुर्सी पर बैठा था.
नेहा ने अंदर आकर पूचछा,"सर आप कहाँ हो"
"अरे भाई यहाँ हूँ." शमशेर के हाथों में रंग लगा हुआ था.
नेहा उसके पास जाकर खड़ी हो गयी,"सर, अभी से होली खेलने की तैयारी कर रहे हैं. अभी तो 5 दिन बाकी हैं" नेहा ने चुटकी ली. लड़कियाँ उससे काफ़ी घुल मिल गयी थी.
शमशेर ने रंग उसके गालों पर लगा दिया ओरबोला" लो खेल भी ली".
नेहा ने नज़रें झुका ली. बाकी लड़कियों की तरह उसके मंन में भी अपने सर के लिए कुच्छ ज़्यादा ही लगाव था. अल्हड़ मस्त उमर में ऐसे छबिले को देखकर ऐसा होना स्वाभिवीक ही था.
"बोलो! क्या बात है नेहा"
नेहा: सर, प्लीज़ गुस्सा मत होना! मुझे दिशा ने भेजा है.
शमशेर की आँखें चमक उठी," बोलो!"
नेहा," सर वो कह रही थी की.... की आप उससे अभी तक नाराज़ हो क्या?"
शमशेर: नाराज़!.... क्यों?
नेहा: सर... वो तो पता नही!
शमशेर ने साबुन से हाथ धोए और जाने उसके मॅन में क्या सूझी उसने नेहा के कमीज़ से अपने हाथ पोच्च दिए.
नेहा की सिसकी निकल गयी. सर के हाथ उसकी गॅंड के उभारों पर लगे थे. ये स्पर्श उसको इतना मधुर लगा की उसकी आँखे बंद हो गयी," सर ये आप क्या कर रहे हो?"
उसने आँखें बंद किए किए ही पूचछा.
शमशेर: होली खेल रहा हूँ. दिखता नही क्या. वो हँसने लगा. नेहा की तो जैसे सिटी बज गयी. हालाँकि दिशा के सामने वो यौवन और सुंदरती में वो फीकी लगती थी पर उसको हज़ारों में एक तो कहा ही जा सकता था.
नेहा. ना हिली ना बोली. बस जड़ सी खड़ी रही. उसका एक यार था गाँव में. केयी बार मौका मिलने पर उसकी चुचियाँ मसल चुका था, पर सर के हाथों की बात ही कुच्छ और थी.
शमशेर ने फिर उसके चूतदों पर थपकी दी, ये थपकी थोड़ी कड़क थी, नेहा सिहर गयी और उसके मुँह से निकला,"आ सस्स..इर्ररर!"
शमशेर: क्या मेडम? उसको पता था हौले हौले जवानी को तडपा तडपा कर उसका रस पीने का मज़ा ही अलग है.
नेहा: सर.. कुच्छ नही. उसका दिल कर रहा था जैसे सर उसके सारे शरीर में ऐसे ही सूइयां सी चुभोते रहे.थे
शमशेर: कुच्छ नही तो जाओ फिर!
नेहा कुच्छ ना बोली, एक बार तरसती निगाहों से शमशेर को देखा और वही खड़ी रही.
शमशेर समझ रहा था की अब इसका पानी निकलने ही वाला है. वो चाहता तो वहाँ कुच्छ भी कर सकता था, पर उसको डर था की ये दिशा की सहेली है, उसको बता दिया तो उसकी मदमस्त जवानी हाथ से निकल सकती थी.
शमशेर ने कहा," दिशा से कह देना, हां में उससे नाराज़ हूँ!
नेहा का जाने का मॅन तो नही था पर इश्स बार वा नही रुकी...
नेहा शमशेर की आँखों में वासना देख चुकी थी. कुच्छ भी हो उससे कुच्छ भी बुरा नही लगा था. लॅब से निकलते हुए उसकी आँखो की खुमारी को सॉफ सॉफ पढ़ा जा सकता था. उसकी चुचियाँ कसमसा रहा थी बुरी तरह. उनका हाल ऐसा हो रहा था जैसे बरसों से पिंजरे में क़ैद कबूतर आज़ाद होने के लिए फड्फाडा रहे हों. वह बाथरूम में गयी और अपनी चूत को कुरेदने लगी. वो बुरी तरह लाल हो रही थी. नेहा ने अपनी उंगली चूत में घुसा दी."आ...आह" उसकी आग और भड़क उठी. वह दिशा को सिर की कामुक छेड़छाड़ के बारे में बताना चाहती थी. पर उसको पता था दिशा को ये बातें बहुत गंदी लगती थी. कहीं उसकी सहेली उससे नाराज़ ना हो जाए. यही सोचकर उसने दिशा को कुच्छ भी ना बताने का फ़ैसला कर लिया. चूत में घुसी उंगली की स्पीड तेज होती चली गयी और आनंद की चरम सीमा पर पहुच कर वो दीवार से सत्कार हाँफने लगी.


क्लास में गयी तो उसका बुउरा हाल था. नेहा को बदहवास सी देखकर दिशा के मॅन में जाने क्या आया," कहाँ थी इतनी देर?"
नेहा: बाथरूम में गयी थी
दिशा: इतनी देर?
नेहा: अरे यार, फ्रेश होकर आई हूँ, सुबह नही जा पाई थी.
दिशा: सर के पास गयी थी?
नेहा: हां, पर वहाँ से तो 1 मिनट में ही आ गयी थी. नेहा ने झहूठ बोला!
दिशा: क...क्या सर.... क्या बोले सर जी
नेहा: हां वो नाराज़ हैं!
दिशा: पर क्यूँ?
नेहा: मुझे क्या पता, ये या तो तू जाने या तेरे प्यारे सर जी! नेहा ने आखरी शब्दों पर ज़्यादा ही ज़ोर डाला.
दिशा: एक बात बता, तेरा फॅवुरेट टीचर कौन है?
नेहा: क्यूँ?
दिशा: बता ना... प्लीज़
नेहा: वही जो तेरे हैं... सबके हैं... सभी की ज़ुबान पर एक ही तो नाम है आजकल!
दिशा जल सी गयी," क्यूँ मैने कब कहा! मेरा फॅवुरेट तो कोई नही है.
नेहा: फिर मुझसे क्यूँ पूचछा.
चल छोड़ छुट्टी होने वाली है.


छुट्टी के बाद दिशा ने देखा वाणी सर की गाड़ी के पास खड़ी है. दिशा ने उसको चलने को कहा.
वाणी: मैं तो गाड़ी में आउन्गि सर के साथ!
दिशा: चल पागल! तुझे शरम नही आती.
वाणी: मुझे क्यूँ शरम आएगी. अपनी....
तभी शमशेर गाड़ी के पास पहुँच गया.
वाणी: सर दीदी कह रही है तुझे सर की गाड़ी में बैठते हुए शरम नही आती. इतनी अच्च्ची गाड़ी तो है....
शमशेर: जिसको शरम आती है वो ना बैठें! गाड़ी को अनलॉक करते हुए उसने कहा.
वाणी खुश होकर अगली सीट पर बैठ गयी.
शमशेर ने गाड़ी स्टार्ट की और दिशा की और देखा. वा मुँह बना कर गाड़ी की पिच्छली सीट पर बैठ गयी. नेहा भी उसके साथ जा बैठी. और वो घर जा पहुँचे.

घर आकर नेहा ने सर से कहा," सिर मुझे कुच्छ मेथ के सवाल समझने हैं. मेडम ने वो छुडा दिए. आप समझा सकते हैं क्या?
शमशेर: क्यूँ नही, कभी भी!
नेहा: सर, अभी आ जाउ!
शमशेर:उपर आ जाओ!
दिशा को सर के लिए चाय बनानी थी. पर नेहा को अपने सर के पास अकेले जाने देना ठीक नही लगा. वो वाणी से बोली," वाणी तू चाय बना देगी क्या? मैं भी समझ लूँगी सवाल!
हां दीदी क्यूँ नही!
बॅग से अपना मेथ और रिजिस्टर निकाल कर दोनों सीधी उपर गयी. ये क्या? सर ने तो कमरे को बिल्कुल शहरी स्टाइल का बनवा दिया था. कमरे में ए.सी. लगवा दिया था.
दिशा के मुँह से निकला,"ये कब हुआ?"
शमशेर ने उसकी तरफ ना देखते हुए कहा," घबराओ मत बिजली का बिल मैं पे करूँगा!" मैने अंकल से बात कर ली है.
दिशा ने अपनी बात का ग़लत मतलब निकलते देख मुँह बना लिया और सर के सामने बेड पर बैठ गयी.
नेहा पर तो दिन वाली मस्ती च्छाई हुई थी. वा सर के बाजू में इश्स तरह बैठी की उसकी जाँघ सर के पंजों पर रखी हुई थी. दिशा को ये देख इतना गुस्सा आया की वो नीचे जाकर 2 कुर्सियाँ उठा लाई. और खुद कुर्सी पर बैठकर बोली," नेहा यहाँ आ जाओ! यहाँ से सही दिखेगा."
नेहा को उससे बड़ा डर लगता था. वा समझ गयी की उसने जाँघ को सिर के पंजे के उपर देख लिया है. वा चुप चाप उठी और कुर्सी पर जाकर बैठ गयी.
शमशेर ने अजीब नज़रों से दिशा को देखा और उन्हे सवाल समझने लगा.

टू बी कंटिन्यूड....



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