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गर्ल्स स्कूल पार्ट --2
घूमता फिरता वा 10थ क्लास में पहुँच गया. लंच होने की वजह से वहाँ सिर्फ़
2 लड़कियाँ बैठी थी और कुच्छ याद कर रही थी एक तो बहुत ही सुंदर थी. जैसे
यौवन ने अभी दस्तक दी ही हो. चेहरे पर लाली, गोलचेहरा और... ज़्यादा क्या
कहें कुल मिलकर सेक्स किपरतिमा थी. शमशेर को देखते ही नमस्ते करना तो दूर
उल्टा सवाल करने लगी," हां, क्या काम है?" शमशेर ने मुस्कुराते हुए
पूचछा, क्या नाम है तुम्हारा?" वह तुनक गयी, "क्यूँ सगाई लेवेगा के?"
तेरे जैसे शहरा के बहुत हीरो देख रखे हैं. आगया लाइन मारन" जाउ के मेडम
के पास" शमशेर को इश्स तीखे जवाब की आशा ना थी. फिर भी वो मुस्कुराते हुए
ही बोला," हां जाओ, चलो मैं भी चलता हूं." ये सुनते ही वो गुस्से से लाल
हो गयी और प्रिन्सिपल के पास जाने के लिए निकली ही थी कि सामनेसे वाणी और
उसकी दोस्त सामने से आ गयी. दूसरी लड़की ने कहा," गुड मॉर्निंग
सर.""सस्स...सर? कौन सर?" वाणी ने जवाब दिया,"अरे दीदी ये हमारे नये सर
हैं, हमें साइन्स पढ़ाएँगे." इतना सुनते ही उस्स लड़की का रंग सफेद पड़
गया. उसकी शमशेर की और मुँह करने की हिम्मत ही ना हुई और वो खड़ी खड़ी
काँपने लगी. वो रो रही थी. शमशेर ने पूचछा," क्या नाम है तुम्हारा?" वो
बोली," सस्स..सॉरी स..सर." शमशेर ने मज़ाक में कहा," सॉरी सर... बड़ा
अच्च्छा नाम है. तभी बेल हुई और शमशेर हंसते हुए वहाँ से चला गया.
दिशा को समझ नही आ रहा तहा वो क्या करे. अंजाने में ही सही उसने सर के
साथ बहुत बुरा सलूक किया था. वैसे वो बहुत इंटेलिजेंट लड़की थी, पर ज़रा
सी तुनक मिज़ाज थी. गाँव के सारे लड़के उसके दीवाने थे. पर उसने कभी अपनी
नाक पर मखी तक नही बैठने दी. गलियों से गुज़रते हुए लड़के उस्स पर फ़िकरे
कसते थे. उसका जवानी से लबरेज एक एक अंग इसके लिए ज़िम्मेदार था. उसका
रंग एकदम गोरा था. छातिया इतनी कसी हुई थी की उनको थामने के लिए ब्लाउस
की ज़रूरत ही ना पड़े. लड़के उस्स पर फ़िकरे कसते थे की जिस दिन इसने
अपना नंगा जिस्म किसी को दिखा दिया वो तो हार्ड अटेक से ही मर जाएगा. जब
वा चलती थी तो उसके अंग अंग की गति अलग अलग दिखाई पड़ती थी. गॅंड को उसके
कमीज़ से इतना प्यार था की जब भी वो उठती थी उसकी गॅंड कमीज़ को अपनी
दरार में खींच लेती. आए हाए... लड़के भी क्या ग़लत कहते थे, बस ऐसा लगता
था की जैसे उसके बाद तो दुनिया ही ख़तम हो जाएगी. पिच्छले हफ्ते ही उसने
18 पुर किए था.
लड़कों से तंग दिशा ने अपना गुस्सा बेचारे सिर पर निकल दिया. इसी बात को
सोच सोच कर वो मारी जा रही थी. अब क्या होगा? क्या सिर उसको माफ़ कर
देंगे?
तभी नेहा ने उसको टोका," अरे क्या हो गया. तूने जान बुझ कर थोड़े ही किया
है ऐसा! सर भी तो इश्स बात को समझते होंगे! चल छ्चोड़, अब तू इतनी फिकर
ना कर!"
दिशा ने बुरा सा मुँह बना कर कहा," ठीक है!"
नेहा: तू एक बात बता, अपने सिर बिल्कुल फिल्मों के हीरो की तरह दिखाई
देते हैं ना. क्या सलमान जैसी बॉडी है उनकी. मुझे तो बहुत बुरा लगा जब
तूने उसको उल्टा पुल्टा बोला. हाए; मेरा तो दिल किया उसको देखते ही की
मैं दुनिया की शर्म छ्चोड़ कर उससे लिपट जाउ. सच्ची दिशा.
दिशा: चल बेशर्म. सर के बारे में भी....
नेहा: अरे मुझे थोड़े ही पता था की वो सर हैं... ये तो मैने तब सोचा था
जब वो क्लास में आए थे.
दिशा: देख मेरे पास बैठकर... य..ये लड़को की बातें मत किया कर. दुनिया के
सारे मर्द एक जैसे घटिया होते हैं.
नेहा: सर से पूच्छ के देखूं?
दिशा: नेहा! तुझे पता है मैं सर की बात नही कर रही.
नेहा: तो तू मानती है ना सर बहुत प्यारे हैं.
दिशा: तू भी ना बस. और उसने अपनी कॉपी नेहा के सिर पर दे मारी.
दिशा का ध्यान बार बार सर की और जा रहा था. कैसे वो उसको माफ़ करंगे. या
शायद ना भी करें. तभी क्लास में हिस्टरी वाली मेडम आ गयी, सरपंच की
बाहू...उसका नाम प्यारी था...
प्यारी: हां रे छ्होरियो; कॉपिया निकल लो कल के काम वाली...
एक एक करके लड़कियाँ अपनी कॉपी लेकर उसके पास जाती रही. उससे सबको डर
लगता था. इसीलिए कोई भी कभी उसका काम अधूरा नही छ्चोड़ती थी. कभी ग़लती
से रह जाए तो उसकी खैर नही. और आज दिव्या की खैर नही थी. वो कॉपी घर भूल
आई थी.
प्यारी घुरते हुए) हां! तेरी कापी कहाँ है रंडी.
दिव्या: जी... सॉरी मॅ'म घर पर रह गयी.
प्यारी: चल पीच्चे, और मुर्गी बन जा.
दिव्या की कुच्छ बोलने की हिम्मत ही ना हुई. वो पीच्चे जाकर मुर्गी बन गयी
प्यारी दूसरी लड़कियों की कॉपीस चेक करने लगी. जब दिव्या से और ना सहा
गया तो हिम्मत करके बोली: मॅ'म मैं अभी ले आती हूँ भागकर!
प्यारी: (घूरते हुए) अच्च्छा अब ले आएगी तू भाग कर. ठहर अभी आती हूँ तेरे पास.
ये सुनते ही दिव्या काँप गयी!प्यारी देवी उसके पास गयी, उसको खड़ा किया
और उसकी चूची के निप्पल को उमेट दिया. दिव्या दर्द से कराह उठी. " साली,
वेश्या, जान बुझ कर कॉपी छ्चोड़ कर आती है, ताकि बाद में अकेली जाए, और
अपने यार से मिलकर आ सके. हां. बता.. कौन मदारचोड़ तेरी चो.. कहते कहते
अचानक उसको रुकना पड़ा. पीयान ने मेडम से अंदर आने की पर्मिशन माँगी और
बोली," बड़ी मॅ'म ने कहा है जिस किसी के घर में कमरा रहने के लिए किराए
पर खाली हो. वो जाकर बड़ी मॅ'म से मिल ले. नये सर के लिए चाहिए है.प्यारी देवी: अरे, हमारी हवेली के होते हुए मास्टर जी को किराए पर रहने
की कोई ज़रूरत ना से. जाकर कह दे उनसे, मैं छ्हॉकरों को बुला कर समान
रखवा देती हूं. रुक मैं आती ही हूँ.
प्यारी देवी 40 के आसपास की महिला थी. एक दम घटिया नेचर की महिला. उस्स
पर ये की उसका पति गाँव का सरपंच था. ऐसा नही था की गाँव में किसी को
उसके लड़कियों के साथ अश्लील हरकतों का पता नही था. गाँव में अपने
कॅरक्टर को लेकर वो पहले ही बदनाम थी. पर इकलौते बड़े ज़मींदार होने के
नाते किसी की उनसे कुच्छ कहने की हिम्मत ही नही होती तही. उसकी लड़की भी
उसके ही पदचिन्हों पर चल रही थी. सरिता; वो नोवी में थी. पर लड़कों से
चुद्व चुद्व कर औरत हो चुकी थी.
मेडम के जाने के बाद नेहा ने दिशा से कहा," अरे यार, तुम्हारे मामा का भी
तो सारा मकान खाली है. तुम क्यूँ नही कह देती वहाँ रहने को.
दिशा: हां...पर!
नेहा: पर क्या, क्या इतने अच्च्चे सर इतने घटिया लोगों के यहाँ रुकेंगे.
देख मॅ'म पूरी चालू है. अगर हमने अभी उनको नही बोला तो वो इश्स चुड़ैल के
जाल में फँस जाएँगे.
दिशा: तुझे भी इन्न बातों के सिवा कुच्छ नही आता. पर मामा से भी तो
पूच्छना पड़ेगा.
नेहा: अरे, उनको मैं माना लूँगी, चल सर को ढूँढते हैं. चल जल्दी चल. तेरी
माफी भी हो जाएगी.
दिशा चल तो पड़ी पर उसको यकीन नही हो रहा था की सर उसको माफ़ कर देंगे.
फिर क्या पता मामा मना ही ना कर दें. मना करने पर जो बे-इज़्ज़ती होगी सो
अलग. पर नेहा उसको लगभग खींचती सी 8वी क्लास में ले गयी, जहाँ शमशेर पढ़ा
रहा तहा.
उनको देखकर शमशेर कुर्सी से उठा और मुस्कुराता हुआ बाहर आया,". हां तो
क्या नाम है आपका." शमशेर उसको छ्चोड़ने के मूड में नही था.
दिशा ने लाख कोशिश की पर उसके होंट लराजकर रह गये. गर्दन झुकाए हुए वा
कयामत ढा रही थी.
नेहा: सर, ये कहना चाहती है आप इनके घर में रह लीजिए. यह सुनते ही वाणी
भी बाहर आ गयी," हां सर, आप हमारे घर में रह लीजिए"
शमशेर ने सोचते हुए कहा," अब तुम्हारा क्या कनेक्षन है?
वाणी: सर, मैं दिशा दीदी के मामा की लड़की हूँ.
शमशेर: तो?
वाणी चुप हो गयी. इश्स पर नेहा एक्सप्लेन करने के लिए आगे आई," सर,
आक्च्युयली दिशा यहाँ अपने मामा के यहाँ रहती है. वाणी अपने मम्मी पापा
की इकलौती संतान है, और बचपन से ही उन्होने दिशा को खुद ही पाला है.
इसीलिए....
शमशेर: बस बस... मैं भी सोच रहा था एक ही नेज़ल लगती है दोनों की. ओक
गॅल्स, मैं च्छुतटी के बाद तुम्हारे घर चलूँगा.
दिशा: पर... स.. सर!
शमशेर: पर क्या
दिशा: वो मामा से पूच्छना पड़ेगा!
वाणी बीच में ही कूद पड़ी," नही सर, आप आज ही चलिए. मैं पापा को अपने आप
बोल दूँगी."
शमशेर वाणी के गालों पर हाथ फेरता हुआ बोला, नही बेटा! पहले मम्मी पापा
से पूच्छ लो. अगर वो खुश हैं तो में तेरे पास ही रहूँगा, प्रोमिसे.
वाणी: ओक, थॅंक यू सर.
इसके बाद च्छुतटी का टाइम होने वाला था, सो शमशेर सीधा ऑफीस ही चला गया.
वहाँ अंजलि बैठी कुच्छ सोच रही थी"मे आइ केम इन मॅ'म", शमशेर ने उसके विचारों को भंग किया.
अंजलि: आओ शमशेर जी
शमशेर: किस बात की टेन्षन है अंजलि, शमशेर ने धीरे से कहा.
अंजलि: प्यारी मेडम आई थी, कह रही थी तुम्हे उनकी हवेली मैं रहना पड़ेगा.
पर मैं नही चाहती. वो निहायत ही वाहयात औरत है.
शमशेर: तो माना कर देते हैं. प्राब्लम क्या है?
अंजलि: प्राब्लम ये है की और कोई अरेंज्मेंट अभी हुआ नही है.
शमशेर: तो मैं तुम्हारे साथ रहूँगा ना जान.
अंजलि: मैने तुम्हे बताया तो था ये नही हो सकता. मैं वैसे भी अकेली रहती
हूँ. कोई फॅमिली साथ होती तो भी अलग बात थी.
शमशेर: वैसे तुम रहती कहाँ हो.
अंजलि: यही उस्स सामने वाले मकान में. अंजलि ने खिड़की से इसरा करते हुए
कहा. मकान स्कूल के पास ही गाँव से बाहर ही था.
शमशेर: कोई बात नही! मकान तो शायद कल तक मिल जाएगा. आज मैं भिवानी अपने
दोस्त के पास चला जाता हूँ.
अंजलि: कौनसा मकान?
शमशेर: कुच्छ सोचने की आक्टिंग करते हुए) वो कोई दिशा के मामा का घर है.
बच्चे कह रहे थे, कल घर से पूच्छ के आएँगे. हालाँकि वो उनके बदन की एक एक
हड्डी तक का आइडिया लगा चुका था.
अंजलि: अरे हां. वो बहुत अच्च्छा रहेगा. बहुत ही अच्च्चे लोग हैं. उनका
मकान भी काफ़ी बड़ा है. फिर वो 4 ही तो जान हैं घर में. मुझे भी अपने साथ
रखने की काफ़ी ज़िद की थी उन्होने. मुझे यकीन है वो ज़रूर मान जाएँगे.
शमशेर: कितना अच्च्छा होता, अगर हम...
तभी स्कूल की छुट्टी हो गयी.स्टाफ आने वाला था. शमशेर बाहर निकल गया.
उसने देखा दिशा उसकी और बार बार अजीब सी नज़रों से देखती जा रही थी. जैसे
उसको पहचानने की कोशिश कर रही हो.
रात के 8 बाज चुके थे. अंजलि घर पर अकेली थी. रह रह कर उसको पिच्छली हसीन
याद आ रही थी. कुंवारेपन के 27 सालों में उसको कभी भी ऐसा नही लगा था की
सेक्स के बिना जीवन जिया नही जा सकता. इसी को अपनी नियती मानलिया था
उसने. पर आज उसको शमशेर की ज़रूरत अपने ख़ालीपन में महसूस हो रही थी. अगर
वो शमशेर ना होता तो कभी कल रात वाली बात होती ही नही. जाने क्या कशिश थी
उसमें. लगता ही नही था वो 30 पार कर चुका है. ऐसा सखतजान, ऐसा सुंदर...
उसने तो कभी सोचा ही नही था की उसकी सुहाग रात इतनी हसीन और अड्वेंचरस
होगी. सोचते सोचते उसके बदन में सिहरन सी होने लगी. ओह वो तो शमशेर का
नंबर. लेना भी भूल गयी. बात ही कर लेती खुल कर. स्कूल में तो मौका ही नही
मिला. सोचते सोचते उसके हाथ उसकी ब्रा में पहुँच गये. उसको कपड़ों में
जकड़न सी महसूस होने लगी. एक एक कर उसने अपना हर वस्त्रा उतार फंका और
बाथरूम में चली गयी; बिल्कुल नंगी! सोचा नहा कर उसके गरम होते शरीर को
शांति मिले. पर उसे लगा जैसे पानी ही उसको छ्छूकर गरम हो रहा है. 20
मिनिट तक नहाने के बाद वो बाहर निकल आई. आकर ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ी
हो गयी. अपने एक एक अंग को ध्यान से देखने लगी. उसकी चूचियाँ पहले से भी
सख़्त होती जा रही थी. निप्पल एक दम तने हुए थे. कल पहली बार किसी मर्द
ने इनको इनकी कीमत का अहसास कराया था. पानी में भीगी हुई उसकी चूत पर
नज़र पड़ते ही वा सिहर गयी."आ" उसके मुँह से निकला. उसकी चूत शमशेर की
जवानी का रस पीकर खिल उठी थी, जैसे गुलाब की पंखुड़ीयान हों. उसका हाथ
उसकी पंखुड़ियों तक जा पहुँचा अकेली होने पर भी उसको उसे छूने में संकोच
सा हो रहा था. ये तो अब शमशेर की थी. उसने पीठ घुमाई, शमशेर उसकी गंद को
देखकर पागल सा हो गया था. उसकी चूतदों की गोलाइयाँ थी भी ऐसी ही. अचानक
ही उससी याद आया, शमशेर का बॅग तो यही है उसके पास!
जैसे डूबते को तिनके का सहारा. शायद कही उसका नंबर. लिखा हुआ मिल जाए. वो
एकद्ूम खिल उठी. उसने बॅग को टटोला तो एक डाइयरी में फ्रंट पर एक नंबर.
लिखा हुआ मिला. उसने झट से डाइयल किया; वो शमशेर की आवाज़ सुनने को तड़प
रही थी.
उधर से आवाज़ आई," हेलो"
अंजलि की आँखें चमक उठी," शमशेर"
"जी, कौन"
"शमशेर, मैं हूँ!"
"जी, 'मैं' तो मैं भी हूँ"
"अरे मैं हूँ अंजलि" वो तुनक कर बोली
"ओह, सॉरी मॅ'म! आपको मेरा नंबर. कहाँ से मिला!"
"छ्चोड़ो ना, अभी आ सकते हो क्या?"
शमशेर ने चौंक कर पूचछा," क्या हुआ?"
"मैं मरने वाली हूँ, आ जाओ ना"
शमशेर उसकी बात का मतलब समझ गया. जो आग कल उसने अंजलि को चोद कर उसने जगा
दी थी, बुझाना भी तो उसी को पड़ेगा," ओ.क. मॅ'म, ई आम कमिंग इन हाफ आन
अवर. कह कर उसने फोने काट दिया.
अंजलि सेक्स की खुमारी में मोबाइल को ही बेतसा चूमने लगी. जल्दी से उसने
ब्रा के बगैर ही सूट डाल लिया. वो बेचेन हो रही थी. कैसे अपने साजन के
लिए खुद को तैयार करे. बदहवास सी वा तैयार होकर खिड़की के पास खड़ी हो
गयी. जैसे आधा घंटा अभी 2-3 मिनिट में ही हो जाएगा. लगभग 20-25 मिनिट बाद
ही उसे रोड पर आती गाड़ी की लाइट दिखाई दी जो स्कूल के पास आकर बंद हो
गयी...अंजलि ने दरवाजा खोलने में एक सेकेंड की भी देर ना लगाई. बिना कुच्छ सोचे
समझे, बिना किसी हिचक और बिना दरवाज़ा बंद किए वो उसकी छति से लिपट गयी.
" अरे, रूको तो सही, शमशेर ने उसके गालों को चूम कर उसको अपने से अलग
किया और दरवाजा बंद करते हुए बोला, मैने पहले नही बोला था"
अंजलि जल बिन मच्चली की तरह तड़प रही थी. वो फिर शमशेर की बाहों में आने
के लिए बढ़ी तो शमशेर ने उसको अपनी बाहों में उठा लिया. और प्यार से
बोला, मेडम जी, खुद तो तैयार होके बैठी हो, ज़रा मैं भी तो फ्रेश हो लूँ"
अंजलि ने प्यार से उसकी छति पर घूँसा जमाया और उसके गालों पर किस किया.
शमशेर ने उसको बेड पर लिटाया और अपने बॅग से टॉवेल निकल कर बाथरूम में
चला आया.
नाहकर जब वा बाहर आया तो उसने कमर पर टॉवेल के अलावा कुच्छ नही पहन रखा
था. पानी उसके शानदार शरीर और बालों से चू रहा था. अंजलि उसके शरीर को
देखकर बोली," तुम्हे तो हीरो होना चाहिए था"
"क्यूँ हीरो क्या फिल्मों में ही होते है" कहते हुए शमशेर बेड पर आ बैठा
और अंजलि को अपनी गोद में बैठा लिया. अंजलि का मुँह उसके सामने था और
उसकी चिकनी टाँगें शमशेर की टाँगों के उपर से जाकर उसकी कमर से चिपकी हुई
थी.
" प्लीज़ अब प्यार कर लो जल्दी"
"अरे कर तो रहा हूँ प्यार" शमशेर ने उसके होंटो को चूमते हुए कहा.
" कहाँ कर रहे हो. इसमें घुसाओ ना जल्दी"
शमशेर हँसने लगा" अरे क्या इसमें घुसने को ही प्यार बोलते हैं"
"तो"अंजलि ने उल्टा स्वाल किया!
देखती जाओ मैं दिखता हूँ प्यार क्या होता है. शमशेर ने उसको ऐसे ही बेड
पर लिटा दिया. उसका नाइट सूट नीचे से हटाया और एक एक करके उसके बटन खोलने
लगा. अब अंजलि के बदन पर एक पनटी के अलावा कुच्छ नही था. शमशेर ने अपना
टॉवेल उतार दिया और झुक कर उसकी नाभि को चूमने लगा. अंजलि के बदन में
चीटियाँ सी दौड़ रही थी. उसका मॅन हो रहा तहा की बिना देर किए शमशेर उसकी
चूत का मुँह अपने लंड से भरकर बंद कर दे. वो तड़पति रही पर कुच्छ ना
बोली; उसको प्यार सीखना जो था.
धीरे धीरे शमशेर अपने हाथो को उसकी चूचियों पर लाया और अंगुलियों से उसके
निप्पल्स को च्छेड़ने लगा. शमशेर का लंड उसकी चूत पर पनटी के उपर से
दस्तक दे रहा था. अंजलि को लग रहा था जैसे उसकी चूत को किसी ने जलते तेल
के कढाहे में डाल दिया हो. वो फूल कर पकौड़े की तरह होती जा रही थी.
अचानक शमशेर पीच्चे लेट गया और अंजलि को बिठा लिया. और अपने लंड की और
इशारा करते हुए बोला," इसे मुँह में लो."
अंजलि तन्ना ई हुई थी,बोली," ज़रूरी है क्या.... पर ये मेरे मुँह में आएगा कैसे?
शमशेर: बचपन में कुलफी खाई है ना, बस ऐसे ही
अंजलि ने शमशेर के लंड के सूपदे पर जीभ लगाई तो उसको करेंट सा लगा. धीरे
धीरे उसने सूपदे को मुँह में भर लिया और चूसने सी लगी. उसको बहुत मज़ा आ
रहा था. शमशेर ज़्यादा के लिए कहना चाहता था पर उसको पता था ले नही
पाएगी.
" मज़ा आ रहा है ना!"
"हुम्म" अण्जलि ने सूपड़ा मुँह से निकलते हुए कहा"पर इसमें खुजली हो रही
है" अपनी चूत को मसालते हुए उसने कहा." कुच्छ करो ना....
यह सुनकर शमशेर ने उसको अपनी पीठ पर टाँगों की तरफ मुँह करके बैठने को
कहा. उसने ऐसा ही किया. शमशेर ने उसको आगे अपने लंड की और झुका दिया
जिससे अंजलि की चूत और गांद शमशेर के मुँह के पास आ गयी. एकद्ूम तननाया
हुआ शमशेर का लंड अंजलि की आँखों के सामने सलामी दे रहा था. शमशेर ने जब
अपने होंट अंजलि की चूत की फांको पर टिकाए तो वा सीत्कार कर उतही. इतना
अधिक आनंद उससे सहन नही हो रहा था. उसने अपने होंट लंड के सूपदे पर जमा
दिए. शमशेर उसकी चूत को नीचे से उपर तक चाट रहा था. उसकी एक उंगली अंजलि
की गांद के च्छेद को हल्के से कुरेद रही थी. इससे अंजलि का मज़ा दोगुना
हो रहा था. अब वा ज़ोर ज़ोर से लंड पर अपने होंटो और जीभ का जादू दिखाने
लगी. लेकिन ज़्यादा देर तक वा इतना आनंद सहन ना कर पाई और उसकी चूत ने
पानी छ्चोड़ दिया जो शमशेर की मांसल छति पर टपकने लगा. अंजलि ने शमशेर की
टाँगो को जाकड़ लिया और हाँफने लगी.
शमशेर का शेर हमले को तैयार था. उसने ज़्यादा देर ना करते हुए कंबल की
सीट बना कर बेड पर रखा और अंजलि को उसस्पर उल्टा लिटा दिया. अंजलि की
गांद अब उपर की और उठी हुई थी. और चुचियाँ बेड से टकरा रही थी. शमशेर ने
अपना लंड उसकी चूत के द्वार पर रखा और पेल दिया. चूत रस की वजह से चूत
गीली होने से 8 इंची लंड 'पुच्छ' की आवाज़ के साथ पूरा उसमें उतार गया.
अंजलि की तो जान ही निकल गयी. इतना मीठा दर्द! उसको लगा लंड उसकी
आंतडियों से जा टकराया है.
शमशेर ने अंजलि की गंद को एक हाथ से पकड़ कर ध्हक्के लगाने सुरू कर दिए.
एक एक धक्के के साथ जैसे अंजलि जन्नत तक जाकर आ रही थी. जब उसको बहुत
मज़े आने लगे तो उसने अपनी गांद को थोड़ा और चोडा करके पीच्चे की और कर
लिया. शमशेर के टेस्टेस उसकी चूत के पास जैसे तप्पड़ से मार रहे थे.
शमशेर की नज़र अंजलि की गंद के छेद पर पड़ी. कितना सुंदर छेद था. उसने
उस्स छेद पर थूक गिराया और उंगली से उसको कुरेदने लगा. अंजलि अनानद से
करती जा रही थी. शमशेर धीरे धीरे अपनी उंगली को अंजलि की गांद में घुसने
लगा."उहह, सीसी...क्या....क्कार... रहे हो.. ज..ज्ज़ान!"अंजलि कसमसा उठी.
देखती रहो! और शमशेर ने पूरी उंगली धक्के लगते लगते उसकी गंद में उतार
दी. अंजलि पागल सी हो गयी थी. वा नीचे की और मुँह करके अपनी चूत में जाते
लंड को देखने की कोशिश कर रही थी. पर कुम्बल की वजह से ऐसा नही हो पाया.
शमशेर को जब लगा की अंजलि का काम अब होने ही वाला है तो उसने धक्कों की
स्पीड बढ़ा दी. सीधे गर्भाष्या धक्कों को अंजलि सहन ना कर सकी और ढेर हो
गयी.
शमशेर ने तुरंत उसको सीधा लिटाया और वापस अपना लंड चूत में पेल दिया.
अंजलि अब बिल्कुल थक चुकी थी और उसका हर अंग दुख रहा था, पर वो सहन करने
की कोशिश करती रही. शमशेर ने झुक कर उसके होंटो को अपने होंटो से चिपका
दिया और अपनी जीभ उसके मुँह में घुसा दी. धीरे धीरे एक बार फिर अंजलि को
मज़ा आने लगा और वो भी सहयोग करने लगी. अब शमशेर ने उसकी चुचियों को
मसलना सुरू कर दिया था. अंजलि फिर से मंज़िल के करीब थी. उसने जब शमशेर
की बाहों पर अपने दाँत गाड़ने शुरू कर दिए तो शमशेर भी और ज़्यादा स्पीड
से ध्हक्के लगाने लगा. अंजलि की चूत के पानी छ्चोड़ते ही उसने अपना लंड
बाहर निकाल लिया और अंजलि के मुँह में दे दिया. अजाली के चूत रस से सना
होने की वजह से एक बार तो अंजलि ने मना करने की सोची पर कुच्छ ना कहकर
उसको बैठकर मुँह में ले ही लिया. शमशेर ने अंजलि का सिर पीच्चे से पकड़
लिया और मुँह में वीरया की बौच्हर सी कर दी. अंजलि गू...गूओ करके रह गयी
पर क्या कर सकती तही. करीब 8-10 बौच्चरे वीरया ने उसके मुँह को पूरा भर
दिया. शमशेर ने उसको तभी छ्चोड़ा जब वो सारा वीरया गटक गयी.
दोनों एक दूसरे पर ढेर हो गये. अंजलि गुस्से और प्यार से पहले तो उसको
देखती रही. जब उसको लगा की वीरया पीना कुच्छ खास बुरा नही था तो वो शमशेर
से चिपक गयी और उसके उपर आकर उसके चेहरे को चूमने लगी...टू बी कंटिन्यूड....
--
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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