Tuesday, June 22, 2010

गर्ल्स स्कूल पार्ट --55

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गर्ल्स स्कूल पार्ट --55

"आ.. ये क्या.. सबको पता चल जाएगा.." विकी ने सिसक'ते हुए झुक कर धीरे से कहा...
" अच्च्छा.. अब नही करूँगी.. पर बाद में तुम्हे छ्चोड़ूँगी नही.. देख लेना!" स्नेहा ने विकी की आँखों में झँकते हुए शरारत से अपनी आँखें मत्कायि.. और नीचे ही नीचे अपने हाथों से 'उस' को सहलाने लगी.. विकी पर प्यार करने की खुमारी चढ़ती जा रही थी...
आरज़ू बड़े गौर से पल पल बदलते विकी के चेहरे के भावों को देख रही थी.. उसको पूरा यकीन था की नीचे 'कुच्छ' ना 'कुच्छ' हो रहा है...
" सोना! तूने कुच्छ देखा क्या?" आरज़ू सोनिया के कान में फुसफुसाई..
" क्या?" सोने की तैयारी कर रही सोनिया ने आरज़ू के चेहरे की और देखते हुए कहा..
" मेरी तरफ क्या देख रही है? उधर देख.. सामने!" आरज़ू ने सोनिया को कोहनी मारी..
सोनिया ने बस में आगे की तरफ नज़रें दौड़ाई, पर उसकी नज़रें वो नही देख पाई जो आरज़ू देख रही थी.. या फिर देख कर भी समझ नही पाई," क्या देखूं?"
" अरे.. वो लड़की.. स्नेहा उसकी गोद में सिर रखे लेटी है... दिखता नही क्या तुझे?"
" एयेए हां.. पर मैं देखु क्या?" सोनिया अभी भी अंजान थी..
" तू तो बिल्कुल बुद्धू है.. कभी 'वैसी' मूवी नही देखी क्या?"
" सोनिया 'वैसी मूवी' का मतलब तुरंत समझ गयी," मैं.. मैं क्यूँ देखूँगी.. वैसी मूवी.. पर तू कहना क्या चाह रही है...?" सोनिया ने आरज़ू के कान में फुसफुसाया...
" ओहो.. तू तो जैसे बिल्कुल ही भोली है.. सुन.. इधर आ" आरज़ू ने कहा और सोनिया उसके चेहरे की और झुक गयी..," क्या?"
" मैने देखी है एक बार... उसमें एक अँग्रेजन किसी अंग्रेज का 'वो' मुँह में लेकर चूस रही थी.."
सोनिया ने आरज़ू को बीच में ही टोक दिया..," धात! ऐसी बातें क्यूँ कर रही है..?"
" अरे.. मैं ऐसी बात ऐसे ही नही बोल रही.. तू सुन तो सही.. जब वो ऐसा कर रही थी तो वो अंग्रेज भी ऐसे ही सिसक रहा था.. जैसे ये..."
"मतलब... स्नेहा.. हे भगवान.." और सोनिया ने आसचर्या और शरम में अपने हाथ से अपना मुँह ढक लिया..
"तू ध्यान से देख.. तुझे अपने आप समझ आ जाएगा..."
" पर.. वो ऐसा क्यूँ कर रही है..? शरम नही आती उसको.." सोनिया का चेहरा शरम से लाल हो गया था..
" मज़े भी तो आ रहे होंगे.." आरज़ू ने सोनिया के सामानया ज्ञान में इज़ाफा किया..
"मज़े?? इस काम में कैसे मज़े?" बेशक सोनिया ये सवाल कर रही थी.. पर अब तक उसकी मांसल जांघों के बीच उसको भी तरलता का अहसास होने लगा था... कुदरतन!
"अब मैं तुझे करके दिखाउ क्या? तू सच में नही समझती क्या ये सब.." सोनिया ने पीछे मुड़कर देखा.. अमित नींद के आगोश में पड़ा सो रहा था..
" नही.. कसम से.. मैने कभी नही किया ऐसा कुच्छ" सोनिया ने भोली बनते हुए कहा...
" एक बात बताऊं.. किसी को बोलेगी तो नही ना..? आरज़ू ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा..
" मैने तेरी कभी कोई बात किसी को बताई है क्या?" कहते हुए सोनिया मन ही मन वो नाम याद करने लगी थी जिस जिस को वो आरज़ू का 'राज' बता कर अपना पेट हूल्का कर सकेगी.. आख़िर लड़की थी भाई
" मैने है ना.. एक बार.. देख तुझे मेरी कसम है.. किसी को बोलना मत.." सोनिया कहते कहते रुक गयी..
" अरे बोल ना बाबा.. नही बताउन्गि.. प्रोमिस!"
" ठीक है.. एक बार मुझे एक 'गंदी' मूवी घर पर मिली थी.. मैं अकेली ही थी.. मैने मूवी चला ली... उसमें .. मैने अभी बताया था ना तुझे...?" आरज़ू ने अपना चेहरा सोनिया से दूर करते हुए उसके मनो भावों को पढ़ने की कोशिश की..
" हां.. हां.. तू बता ना.. जल्दी" सोनिया ने कामुकता से अपनी जांघों को कसकर भीच लिया.. अजीब सी गुदगुदी हो रही थी.. उसके बदन में...
" उसमें लड़की 'उसको' मुँह में लेकर चूस रही थी.. और वो 'बहुत' बड़ा हो गया था.." आरज़ू ने अपने अंगूठे और उंगलियों को एक दूसरे से दूर फैलाते हुए 'उसका' साइज़ समझाने की कोशिश की," और फिर बाद में 'वो' भी 'उसकी' चाट रहा था..."
सोनिया का हाथ स्वतः: ही उसकी गोद से नीचे चला गया था.. शायद चिपचिपी हो गयी पॅंटी को दुरुस्त करने के लिए.. या फिर 'उस' मीठे अहसास को हाथों से महसूस करने के लिए...," हाए राअं! फिर..?"
" फिर क्या? फिर वो प्यार करने लगे..." आरज़ू ने अपनी आँखों को फैलाते हुए कहा..
" प्यार? ये प्यार कैसे होता है अजजु!" सोनिया के बदन में आग सी लग गयी.. उसको 'ये' बातें सुनकर इतना मज़ा आ रहा था की उसने अपनी एक जाँघ को दूसरी के उपर चढ़ा लिया...
सोनिया का भी लगभग वैसा ही हाल था.. अब वो दोनो विकी और स्नेहा से अपना ध्यान हटाकर एक दूसरी का हाथ मसल्ने में लगी हुई थी.. और शायद उनमें से किसी को इसकी खबर भी ना हो.. सब कुच्छ अपने आप हो रहा था..," प्यार.. 'उसको' 'उसमें' डाल कर करते हैं.." सोनिया हर अंग के लिए 'उस' और 'वो' सर्वनाम का प्रयोग कर रही थी... चाहे वो पुरुष का हो या स्त्री का..
" ये उसको उसमें क्या लगा रखा है.. खुल के बोल ना.. मुझे समझ नही आ रहा" समझ तो सोनिया को सब आ रहा था.. पर वो भी क्या करती.. मरी जा रही थी.. 'उसको' 'उसमें' का नाम आरज़ू के मुँह से सुन'ने को....
" तुझे समझना है तो समझ ले.. मैं नाम नही लूँगी.. इतनी बेशर्म नही हूँ में..." आरज़ू किनारे पर रह कर ही 'काम-नदी' में तैरने का अहसास सोनिया को करना चाहती थी...
" अच्च्छा चल बोल.. मैं कुच्छ कुच्छ समझ रही हूँ.. पर उसमें मज़े क्या आते होंगे.. लड़की को दर्द नही हो रहा होगा.. इतना बड़ा... " सोनिया ने भी हाथ से 'उसकी' लंबाई मापते हुए कहा...
" वही तो मैं देखना चाहती थी.. घर पर मैं अकेली तो थी ही.. मैने सोचा.. देखूं तो सही.. क्या मज़ा आता है.. फिर मैने.. देख किसी को बताना मत!" आरज़ू पशोपेश में थी.. बताए कि नही...
सोनिया ने मौखिक जवाब नही दिया.. बस अपने हाथ से उसका हाथ कसकर दबा दिया..
"फिर मैने.. अपनी सलवार निकाल कर देखी.. 'मेरी वो' लाल हो गयी थी.. और उसमें से पानी टपक रहा था..."
"हाए.. फिर.." सोनिया ने एक बार उसका हाथ छ्चोड़ कर 'अपनी' की सलामती चेक की.. और फिर से उसका हाथ पकड़ लिया... और सहलाने लगी.. उसकी आँखें बंद होने लगी थी.. कामुकता से...
"फिर मैने 'उसको' हाथ लगा कर देखा.. बहुत गरम हो रखी थी.. हाथ लगाने में बड़ा मज़ा आया.. उस वक़्त.. पता नही क्यूँ.. ? उस वक़्त मेरी आँखों के सामने 'कविश' का चेहरा घूम रहा था.. हमारे पड़ोस में जो रहता है.. मुझ पर लाइन मारता है अभी तक.."
"फिर.. तूने उसको बुला लिया क्या?" सोनिया ने आसचर्या से अलग हट'ते हुए आरज़ू के चेहरे को देखा...
" नही यार.. तू सुन तो सही.. फिर पता नही मुझे क्या सूझी.. मैं उंगली से 'इसको' कुरेदने लगी.. और अचानक पूरी उंगली इसके अंदर घुस गयी..
" फिर..." सोनिया का चेहरा तमतमा उठा...
" फिर क्या? इतना दर्द हुआ की पूच्छ मत.. मेरी तो चीख ही निकलने को हो गयी थी.. 'वहाँ' से खून बहने लगा.. मैं रोने लगी..!"
"पर वो तो आता ही है.. पहली बार.. मैने सुना है..." सोनिया कामवेस में भूल ही गयी की वो नादान बन'ने का नाटक कर रही है...
" हां.. पर 'वो' मुझे तब नही पता था ना.. मैं छ्होटी थी.. पर मैने उसी दिन फ़ैसला कर लिया था.. ये काम में किसी के साथ नही करूँगी.. चाहे कविश हो या कोई और... ये लड़की किसी के हाथ नही आएगी.." ( )
" फिर क्या हुआ? बता ना.. पूरी बात बता..." सोनिया का हाथ आरज़ू की जाँघ पर लहराने लगा..
" और क्या बताऊं? हो तो गयी पूरी बात..." आरज़ू ने उसका हाथ परे झटकते हुए कहा.. बातों ही बातों में वो भी कब की बहकर 'होश' में आ चुकी थी..
" क्या तू सच में ही किसी को कभी भी हाथ नही लगाने देगी अजजु?"
" नही.. अब सोच रही हूँ.. लगाने दूँगी.. अब तो 'वो' भी बड़ी हो गयी होगी ना.." कहकर आरज़ू ने बत्तीसी निकाल दी..

रोहित सबसे अलग थलग चुप चाप आँखें बंद किए बैठा शालिनी के ख्यालों में खोया हुआ था. 3 साल से एक दूसरे की आँखों में बसे थे दोनो.. बे-इंतहा प्यार करते थे एक दूसरे से.. और दोनो को ही इस का अहसास था.. पर दोनो के बीच झिझक ज्यों की त्यों कायम थी.. सिर्फ़ एक मौका ऐसा आया था जब रोहित उसके रूप यौवन को देख कर बहक सा गया था.. बाली उमर थी दोनो की, शालिनी इकरार करने के बाद सातवी बार उस'से मिलने आई थी.. अकेली.. टिलैयर लेक पर.. और दोनो वहाँ पायदों की झुर्मुट में जा बैठे थे.. एकांत में माहौल ही ऐसा बन गया था की रोहित उसके ग्रे टॉप में छुपे मादक उभारों को देख अपनी सुध बुध खो बैठा..
" तुम मुझसे प्यार करती हो ना शालिनी...?" रोहित से रहा ना गया तो उसने उसको छूने की इजाज़त के रूप में ये सवाल पूच्छ ही लिया...
शालिनी कितनी ही देर से उसकी आँखों में झाँक रही थी.. पर वो नादान रोहित के लड़कपन में छिपि जवान लड़की के प्रति उसकी मर्दानी प्यास को ताक ना सकी थी.. रोहित के सवाल पूछ्ते ही उसने अपनी नज़रें हसीन अंदाज में झुकाई और उसकी काली ज़ुल्फो में से एक लट उसकी आँखों के सामने आ गिरी.. मानो वो कोई परदा हो.. हया का परदा.. कुच्छ देर यूँही चुप रहने के बाद उसने शरमाते हुए लंबी साँस लेते हुए कहा..," कितनी.. बार पूछोगे?"
" जब तक तुम्हारा जवाब 'हां' में मिलता रहेगा तब तक.. जब जब तुम मेरे सामने आओगी.. तब तब.. तुम्हे नही पता शालु.. तुम्हारे चेहरे पर ये हया की लाली तभी आती है , जब मैं तुमसे ये सवाल पूछ्ता हूँ.. और तुम्हारी इसी अदा पर में जान देता हूँ.." आज रोहित को वो कुच्छ ज़्यादा ही सेक्सी लग रही थी..
" हां.. करती हूँ.. आइन्दा मत पूच्छना वरना मैं मना कर दूँगी हां..." शालिनी के चेहरे पर वही मुस्कान उभर आई.. जिसने पहली नज़र में ही रोहित को उसका दीवाना बना दिया था....
" तुम इश्स दुनिया की सबसे हसीन खावहिश हो शालु.. तुमको पाकर तो में पागल ही हो जवँगा..."
"वो तो तुम अब भी हो.. पागल! हे हे.." और स्नेहा ने फिर से रोहित की आँखों में आँखे डाल ली...
" तुम्हारी आँखें कितनी प्यारी हैं शालु.. मन करता है.. इन्हे देखता ही रहूं.."
" और कोई काम नही है क्या?" शालिनी ने मुस्कुराते हुए उसको चिड़या....
"है ना.. तुम्हारे होंठ कितने प्यारे हैं.. मन करता है.. इनको चूम लूँ..."
"धात.. तुम तो सच में पागल हो.. " शालिनी ने अपने होंठो को उसकी नज़र से बचाने के लिए अपनी जीभ निकाल दी.. तब भी बात नही बनी तो असहज होकर नज़रें झुकाती हुई बोली..," ऐसे मत देखो प्लीज़!"
" क्यूँ ना देखूं.. सब कुच्छ मेरा ही तो है ये.. तुम सिर से पाँव तक सारी मेरी हो ना शालु.. मैं जो चाहे कह सकता हूँ.. जहाँ चाहे देख सकता हूँ.. जो चाहे छू सकता हूँ.. है ना?" रोहित अधीर हो उठा था...
शालिनी शर्मा कर दूसरी और घूम गयी.. रोहित के इन्न शब्दों ने उसकी पवित्रता को चुनौती सी दी थी.. उसके अरमानो को हवा सी दी थी..
रोहित ने अपना कांपता हुआ हाथ उसकी कमर पर रख दिया.. ये उसका भी पहला मौका था.. कुँवारी लड़की के तपते जिस्म को छूने का...
स्पर्श पाते ही शालिनी का पूरा जिस्म लरज सा गया.. उसकी कमर ने यूँ झटका खाया मानो किसी नाव की पतवार टूट गयी हो," नही प्लीज़...!"
" छूने दो ना मुझे.. छूकर देखने दो ना.. तुम.. अंदर से कैसी हो.." रोहित की साँसें उखाड़ने लगी थी..
" नही.. !" शालिनी अपनी कमर को झटका सा देते हुए उसकी और घूम गयी.. और उसका हाथ पकड़ लिया..," मैं मर जाउन्गि.. ऐसे मत बोलो प्लीज़.."
तभी अचानक दोनो ठगे से रह गये.. एक पोलीस वाला जाने कहाँ से निकल कर उनके सामने आ गया..," क्या हो रहा है?"
दोनो सकपका कर एकद्ूम उठ खड़े हुए.. ," कुच्छ नही.. बस.. बातें कर रहे थे..!" जवाब रोहित ने दिया था.. शालिनी उन्न दोनो से कुच्छ दूर जाकर मुँह फेर कर खड़ी हो गयी...
" हुम्म.. मुझे सब पता है.. यहाँ कैसी बातें होती हैं.. जानते नही क्या यहाँ रंडीपने पर रोक है...!" पोलीस वाले ने शालिनी को उपर से नीचे तक देखते हुए कहा..," चलो.. साहब के पास चलो..."
रोहित का खून खौल गया.. पर वा बात को बढ़ाना नही चाहता था..," मेरे पास ये 200 रुपए हैं...!"
पोलीस वाले ने बिना देर किए दोनो नोट लपक लिए..," आइन्दा कभी आओ तो पहले मुझसे मिल लेना.. समझे.. मैं वहाँ गेट के पास ही मिलता हूँ.. चलो ऐश करो!" कहते हुए पोलीस वाला वहाँ से गायब हो गया...
" आओ शालु.. बैठ जाओ.. अब कोई डर नही है.. कुत्ता हड्डी लेकर चला गया..!" रोहित शालिनी के पास आकर खड़ा हो गया...
" नही.. चलो यहाँ से.. मैं यहाँ नही रुक सकती.." शालिनी पलटी तो उसकी आँखों में आँसू थे.. पोलीस वाले ने बात ही ऐसी कही थी.. 'रंडीपना'
उसके बाद दोनो वहाँ से चल दिए.. रोहित ने उस'से बात करने की कोशिश की पर वह सामान्य नही हो सकी.. अंत में भी दोनो बिना बोले ही एक दूसरे से अलग हो गये...
'वो' दिन था और आज का दिन.. रोहित और शालिनी के प्यार को फिर कभी शारीरिक जज्बातों के पंख नही लग पाए.. वो आज भी ऐसे ही थे.. जैसे पहले दिन.. एक दूसरे से बे-इंतहा प्यार करते थे.. पर आँखों ही आँखों में.. कभी हाथ तक नही पकड़ा था.. दोनो ने एक दूसरे का...
रोहित ने आँखें खोल कर शालिनी को देखा... वह सोई हुई थी.. उस'से 2 सीट आगे

ओक दोस्तो अब आगेकी कहानी अगले भाग मैं फिर मिलेंगे बाई


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
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`·.¸.·´ -- raj













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