Saturday, June 12, 2010

बुझाए ना बुझे ये प्यास--10

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बुझाए ना बुझे ये प्यास--10

महक समझ रही थी की राज सही कह रहा है. हां वो उससे चुड़वाना
चाहती थी, उसका दिल तो कर रहा था की राज वहीं किचन मे उसकी
जमकर चुदाई कर उसकी बरसों की प्यास को ठंडा कर दे.

एक तरफ पत्नी धरम समाज का डर उसके दिल मे था जो कह रहा था
की वो राज को सॉफ माना कर दे, "नही ये कभी नही हो सकता तुम
ग़लत हो चलो जाओ यहाँ से..."

पर जिस्म की आग और बदन से उठती कामग्नी वो सिर्फ़ इतना ही कह
पाई..." आज नही... हम यहाँ कुछ नही कर सकते... कोई भी किसी
समय यहाँ आ सकता है....फिर कभी मौका मिला तो देखेंगे."

महक का जवाब सुनकर राज की हिम्मत और खुल गयी. वो समझ गया की
थोडी हिम्मत दीखने की ज़रूरत है और वो उसे चोद सकता है. वो
उसकी और बढ़ा और उसने उसके टॉप के उपर से उसकी कठोर चुचियों को
अपने हाथों मे पकड़ मसल्ते हुए कहा, "सब अपने आपमे मस्त है और
चुदाई कर रहे है... यहाँ अब कोई नही आएगा."

महक ने महसूस किया की राज का लंड उसकी शॉर्ट्स के उपर से उसकी गॅंड
की दरार पर ठोकर मार रहा था. उसके लंड के स्पर्श ने ही उसके
अंदर की कामग्नी को और बढ़का दिया और उसकी चूत और गीली होने
लगी और वो सिसक पड़ी, "ऊईइ मा ओह."

तुम्हे अक्चा लग रहा है ना? इस तरह चुचियों को मसलवाने मे
मज़ा आआटा है ना तुम्हे.." राज ने उसकी चुचियों को और जोरों से
मसल्ते हुए कहा.

"हां भींच दो मेरी चुचियों को ऑश मसल डालो इन्हे." महक
जोरों से सिसक पड़ी.

"तुम्हारे निपल पर कोई चिकोटी काटता है तो तुम्हे और अच्छा लगता
है ना? राज ने उसके टॉप के उपर से उसके एक निपल को अपनी उंगली और
अंगूठे मे ले जोरों से भींच दिया.

महक की समझ मे नही आया की वो क्या जवाब दिया. आज तक उसने ये
सब नही किया या करवाया था..... ना ही उसके पति ने इस तरह की
बातें की थी उसके साथ... एक अजीब सी सनसनी मची थी उसके
शरीर मे.... वो सिसकते हुए सिर्फ़ इतना ही कह पाई.. "श हाआँ
मुझे बहोट आCछा लगता है.. काट दो मेरे निपल भींच दो
इन्हे...."

राज के हाथों का जादू उसकी चुचियों से होते हुए ठीक उसकी चूत
पर असर कर रहा था और वो चाह रही थी की वो रुके नही बस उसकी
चुचियों को इसी तरह मसलता जाए.

राज उसकी चुचियों को भींच रहा था उसके निपल पर चिकोटी काट
रहा था और महक अपने चूतड़ पीछे कर उसके लंड पर रगड़ने
लगी थी.

राज ने उसे कमर से पकड़ अपनी तरफ थोड़ा खींचा और एक हाथ से
उसकी चुचि को मसल्ते हुए अपना दूसरे हाथ सामने से उसकी जांघों के
बीच रख दिया. महक ने अपनी टाँग फैला दी जिससे राज का हाथ
आसानी से उसकी चूत तक पहुँच सके.

राज ने अपने हाथ को उसकी शॉर्ट्स के अंदर डाला और पेंटी के अंदर
होते हुए उसकी चूत को अपनी मुति मे भर लिया और साथ ही अपने
दूसरे हाथ को टॉप के अंदर डाल उसकी नंगी चुचि को पकड़ लिया. राज
अब एक हाथ से उसकी चुचि मसल रहा था और दूसरे हाथ से उक्की
चूत.

राज ने अपनी एक उंगली उसकी चूत के अंदर डाल अंदर बाहर करने लगा
और महक अपनी गॅंड को आगे पीछे कर उसके लंड को रगड़ने लगी. वो
गरमा चुकी थी और उसे राज का लंड चाहिए था अपनी चूत मे. राज
उसके उत्तावलेपन को समझ रहा था.

राज जानता था की उसे लंड चाहिए और वो देने भी वाला था पर ऐसी
ही नही, वो नही चाहता था की वो कहती फिरे की राज ने उसकी मर्ज़ी के
खिलाफ उसे चोद... वो उसकी मर्ज़ी से उसे चोदना चाहता था... वो
चाहता था की वो लंड के लिए गिड़गिडाए उसकी मिन्नत करे.

महक की चुचि और चूत को मसल्ते हुए राज ने अपनी गर्दन झुकाई
और उसकी कान मे फुसफुसाया, "मेरे लंड को पाकड़ो."

महक ने अपना हाथ पीछे किया और उसकी शॉर्ट्स के उपर से उसके लंड
को पकड़ लिया. वो शॉर्ट्स के उपर से ही लंड को सहला कर उसकी लंबाई
और मोटाई मापने लगी. उसके मोटे और लंबे लंड का एहसास कर उसकी
चूत किसी अधखुली नाल की तरह बूँद डर बूँद छुओआने लगी.

इतने साल हो गये थे उसकी शादी को और इतने साल मे अपने पति से
चुड़वाते वक़्त उसने कभी इस एहसास को महसूस निया किया था जो आज वो
राज के साथ महसूस कर रही थी. पता नही आज उसे क्या हो गया था
शायद बरसों की तम्मानाएँ शरीर की अग्नि उसपर हावी हो गयी थी.
शादी शुदा होते हुए वो आज अपने बेटे के दोस्त के साथ अपने ही
किचन मे उसके लंड को पकड़ खेल रही थी जहाँ उसका बेटा अपने
बाकी के दोस्तों के साथ बाहर ही खेल रहा था.

"मेरी शॉर्ट्स उतार कर मेरे नंगे लंड को पाकड़ो" तभी राज ने महक
से कहा.

महक राज की तरफ घूमी और घोटनो के बाल बैठ कर उसकी शॉर्ट्स को
नीचे खींच दी. राज ने अपने पैरों से शॉर्ट्स निकाल दी. अब उसका
मोटा और लंबा लंड महक के मुँह से कुछ ही इंच की दूरी पर था.
वो उस लंड को अपनी चूत मे लेना चाहती थी पर वो उसे घूरती रही
उसकी समझ मे नही आया की वो क्या करे.

"खड़ी हो जाओ?" राज ने उससे कहा, "अब मेरे लंड को पकड़ कर
मुठियाओ."

वो खड़ी हो गयी और जैसा राज ने कहा करने लगी. उसने उसके लंड को
अपनी मुति मे भर लिया और उसकी चाँदी को उपर नीचे कर उसे
मुठियाने लगी. वो राज की आँखे मे देख कर उसके लंड को मसल रही
थी.

"तुम चाहती हो ना की में तुम्हारी चूत मे अपने लंड को डाळ कर
तुम्हारी जम खाऱ चुदाई करूँ?" राज ने पूछा.

"हाआं हाआं" वो बोली.

"बताओ मुझे तुम्हे क्या चाहिए" उसने उसे हुकुम देते हुए कहा.

"हां चोडो मुझे ऑश चोडो" वो सिसकते हुए बोली.

"ऐसे नही प्लीज़ बोलो गिड़गिडियो मेरे आगे, प्लीज़ तुम्हारे लंड
से मुझे चोडो." उसने महक से कहा.

महक ने इसके पहले कभी किसी से इस तरह से बात नही की थी. उसने
इन शब्दों को पहले या तो किसी क मुँह से सुना था या फिर कीताबों
मे पढ़ा था लेकिन हक़ीकत मे उसने कभी अपनी ज़ुबान से कहा नही
था. लेकिन राज के मुँह से ऐसे सहबों को सुन वो और गरमा गयी और
खुद बा खुद उसके मुँह से निकालने लगा.

"ओह ऱाज़ प्लीज़ अपने इस मोटे और तगड़े लॉड से चोडो मुझे प्लीज़
जल्दी से चोडो और मत तड़पाव ना प्लीज़....."

ये शब्द निकाल तो उसके मुँह से रहे थे लेकिन धुन उसकी चूत बाज़ा
रही थी.

राज ने उसे घूमा दिया और सींक पर हाथ रख झुकने को कहा. फिर
उसकी शॉर्ट्स और पनटी दोनो को साथ पकड़ उसने उन्हे उसके घूटने तक
नीचे खींच दिया. महक ने अपना एक पैर शॉर्ट्स और पनटी मे से
निकाल अपना पैर फैला दिए और राज ने अपने लंड को पकडा और उसकी
चूत पर रखते हुए एक ही धक्के मे पूरा लंड अंदर घुसा दिया.

महक के मुँह से एक ज़ोर की सिसकारी निकाल पड़ी, तभी उसे एहसास हुआ
की उसे अपनी आवाज़ को धीमा रखना होगा. रात हो चुकी थी और
किचन मे अगर मे रोशनी थी तो सिर्फ़ बाहर के हाल मे चल रहे टीवी
की. बाकछे सब बाहर खेल रहे थे वो यहाँ आएँगे तो नही पर वो
नही चाहती थी की उसकी कराहें और सिसकियाँ उन्हे सुनाई पड़े.

राज महक की पीठ पर लेट सा गया और अपने हाथ नीचे कर एक बार
फिर उसकी चुचियों को पकड़ मसल्ने लगा. अब वो उसकी चुचियों को
मसल्ते हुए धक्के मार रहा था.

महक को विश्वास नही हो रहा था की एक जवान लड़का जिसने अभी अपनी
ग्रॅजुयेशन भी पूरी नही की थी इस कदर किसी औरत को खुश कर
सकता था. उसकी चुदाई की हर कला उसके बदन मे ईक नई उत्तेजना
पैदा कर रही थी. आज वो एक नये अनुभव से गुज़र रही थी, उसके
पति ने कभी इस कदर उसे नही चोद था उसकी चूत जहाँ सनसनी
पैदा कर रही थी तो उसकी चुचियाँ एक मीठी लेहायर दौड़ा रही थी
उसके बदन मे.

"तुम्हे तुम्हारी चूत मे मेरा लंड अक्चा लग रहा है ना? उसने
पूछा. "चोदते ःऊए जब में तुम्हारी चुचियों को भींचता हूँ तो
तुम्हे मज़ा आता है ना?"

राज की ये गंदी बातें और उत्तेजञात्मक बातें उसे और उकसा रही
थी, उत्तेजना अपनी चरम सीमा पर आ चुकी थी.

"हां" वो इतना ही कह पाई.

राज खड़ा हो गया और अपने लंड को करीब करीब उसकी चूत से बाहर
खींच लिया फिर उसके छूतदो को पकड़ एक ज़ोर का धक्का मार फिर
से लंड को उसकी चूत मे घुसा दिया. फिर अपने धक्कों की रफ़्तार
बढ़ाते हुए वो उसे चोदने लगा.

महक बड़ी मुश्किल से अपनी सिसकियों को राक रही थी. उसने अपने होंठ
दाँतों से भींच लिए थे और उसकी सिसकियाँ गले मे ही घूट कर
रह गयी. उसकी चूत पानी छोड़ने वाली थी. वो अब अपने कूल्हे आगे
पीछे कर राज के धक्कों का साथ देने लगी. राज ज़ोर के धक्के मार
कर उसे चोद रहा था और वो हर धक्के मे अपने चूतड़ हिला उसका
साथ दे रही थी.

महक को अचानक लगा की उसके शरीर मे उबाल आ रहा था. जो एहसास
उसने इतने बरसों मे महसूस नही किया था आज वो उसके साथ हो रहा
था. खुशी मे उसकी साँसे तेज हो गयी और वो सिसक पड़ी..'ऑश आआआः
ओह"

अचानक जैसे की कोई बाँध टूट गया हो. उसकी चूत ने पानी छोड
दिया....'श शायद इसी को झड़ना कहते है' वो सोचने लगी... कितना
कुछ खोया है मेने इन सालों मे....' वो सोचने लगी..... राज के
हर धक्के पर उसकी चूत ज़ोर से पानी छोड देति...उस्ने अपनी चूत की
मासणपेशियों को कड़ा कर राज के लंड को जाकड़ लिया. अब राज का लंड
उसकी चूत की दीवारों को भेदते हुए अंदर बाहर हो रहा था.

महक ने जैसे ही उसके लंड को अपनी चूत मे जकड़ा राज समझ गया
की उसकी चूत पानी छोड चुकी है. उसके भी लंड मे उबाल आना शुरू
हो गया. उसने उसके दोनो छूतदों को पकडा और ज़ोर ज़ोर के धक्के
मारने लगा. उसे लगा की उसका लंड पानी छोड़ने वाला है तो उसने अपने
लंड को उसकी चूत के गहराई तक पेलते हुए अपने वीर्या की पिक्खरी
छोड दी.

राज उकी पीठ पर फिर झुक गया और उसके कान मे फुसफुसते हुए
बोला, "कैसा लगा म्र्स सहगल.?"

"बहोट अक्चा." वो बस इतना ही कह पाई.

राज ने अपने लंड को उसकी चूत से बाहर निकाला और अपनी पॅंट उपर
चढ़ा पहन ली फिर अपने जेब से अपना विज़िटिंग कार्ड, जिसपर उसका
फोन नंबर और पता छापा था निकाल कर महक को पकडा दिया.

"अगर ऐसी चुदाई की फिर इक्चा हो तो मुझे याद कीजिएगा." कहकर
राज चला गया.

महक वहीं किचन मे काउंटर का सहारा लिए खड़ी थी, उसकी टाँगे
अभी फैली हुई थी और चूत से दोनो का मिश्रित पानी तपाक रहा
था. उसे अपने आप पर शरम आ रही थी की उसने ये क्या कर डाला
फिर भी वो खुश थी की आज इतने बरसों बाद उसकी चूत की प्यास
बुझी थी और वो खुल कर झड़ी थी. उसने अपने कपड़े उठाए और
बाथरूम की और चल दी.

महक दूसरे दिन सो कर उठी और पीछले दिन की घटनाओं को याद
करने लगा. उसे आत्मा ग्लिलनी हो रही थी की उसे वो सब नही करना
चाहिए था. वो एक शादी शुदा औरत थी और एक जवान लड़के की मा
भी. वो नही चाहती थी की अपनी इस हरकत की वजह से उसकी शादी
शुदा जिंदगी मे कोई दरार पड़े.

उसे याद आया की राज ने उसे अपना बुसीनीस कार्ड दिया था, उसने देखा
की वो कार्ड उसके बेड की साइड मे टेबल पर रखा था. उसने वो कार्ड
उठाया और अपने हाथों मे ले मसल कर फैंक दिया. वो उसे फोन नही
करेगी ये उसने सोच लिया था. वो वकति तौर पर बहक गयी थी, ये
बार का मज़ा था जो ख़त्म हो चुका था. अब वो पहले की तरह एक
आक्ची बीवी और एक आची मा बनकर रहेगी.

महक ने अपने आपको घर के काम मे जुटा लिया जिससे उसका मन और
ख़याल ना भटके. लेकिन फिर भी राज का खड़ा लंड उसकी हरकतें
उसके ख़याल मे आ ही जाते. कई बार तो ऐसा हुआ ही राज के लंड का
ख़याल आते ही उसकी चूत मे एक सनसनी दौड़ने लगी, उसके हाहत खुद
बा खुद उसकी चुचियों पर चले गये और वो उन्हे मसल्ने लगी.

आज से फेले उसने कई बार हस्तमैथुन करने की सोची लेकिन उसके
जहाँ मे ऐसा कोई ख़याल या सपना ही अँहि आता था जिससे वो गरमा
सके और आज एक हल्के से ख़याल ने उसे गरमा दिया था. उसे विश्वास
नही हो रहा था की जिस चीज़ के लिए वो बरसों से तड़प रही थी
आज इस कदर उसे हासिल हो जाएगी. वो राज के ख़याल मे दुबई एक हाथ
से अपनी चूत और एक हाथ से अपनी कूची को मसल रही थी. पर थोड़े
ही देर मे वो अपनी ओषच को झटक फिर हक़ीक़त मे आ अपने काम मे लग
जाती.
शाम को सोनू अपने हॉस्टिल चला गया और एक बार फिर वो घर मे
अकेली रह गयी उसके पति टूर पर से अभी दो दिन आने वाले नही
थे. वो बिस्तर पर लेटकर सोने की कोशिश करती रही लेकिन राज और
उसका लंड उसके ख़याल मे आते रहे. चाह कर भी वो उन्हे अपने ख़याल
से ना निकाल पाई.

आख़िर रात के 10.00 बजे वो अपने आप पर काबू नही रख पाई.
बिस्तर से उठी और डस्टबिन से राज का मसाला हुआ बिज़्नेस कार्ड निकाला
और उसका फोन मिलने लगी.

राज का सेल फोन बाज उठा, लेकिन वो नंबर पहचान नही पाया इसलिए
उसने फोन को वाय्स मैल पर दल दिया. महक ने देखा की मेसेज
रेकॉर्ड हो रहा है तो सोचने लगी की क्या उसे मेसेज छोड़ना चाहिए
फिर उसने कहना शुरू किया.... "है में महक हूँ..... मेने तुम्हे
सिर्फ़ शुक्रिया कहने के लिए फोन किया है......कि तुमने... तुम
जानते हो क्यों.... अगर समय मिले तो मिलने आना...."

"मुझे मेसेज नही छोड़ना चाहिए था.... में तो एक रंडी की जैसे
फोन कर उसे बुला रही हूँ जैसे की मेरी चूत उसके लंड की
दीवानी है.... हां दीवानी ही तो है......" उसने अपने आप से कहा.

थोडी देर बाद राज ने मेसेज सुना और मुस्कुरा पड़ा. तकदीर ने उसके
हाथ एक ऐसी मछली पकडा डी थी जो उसकी और उसके लंड की दीवानी
हो चुकी थी.... लेकिन वो इस मछली को पहले खूब तड़पाना चाहता था
फिर ही उसे अपने तालाब मे क़ैद करना चाहता था.

आने वाले तीन चार दीनो मे उसे महक के कई मेसेज मिले पर उसने
उससे फोन पर भी बात नही की. हर बार वो फोन करती और मेसेज
छोड़ती और राज सिर्फ़ सुन भर लेता. उसका हर मेसेज मे फेले से
कहीं ज़्यादा दीवानगी और उतावलापन झलकता था. वो हर बार उसे
याद दिलाती थी की बुधवार को उसके पति टूर पर से लौट आएँगे और
शायद उन्हे मौका ना मिला मिलने का. वो देखना चाहता था की क्या पति
के होते हुए भी वो उससे चुड़वाने के लिए उतनी ही बेचैन है........
आख़िर बुधवार की शाम 4.00 बजे उसने उसे फोन किया.

"हेलो" फोन की दूसरी और से महक ने जवाब दिया.

"है... म्र्स सहगल में राज रहा हूँ... आपने फोन किया था?"
राज ने कहा.

"हां कई बार फोन कर चुकी हूँ तुम्हे.' महक ने थोड़ा झल्लते
हुए कहा.

"हां मुझे तुम्हारे मेसेज मिले थे... लेकिन क्या था में काम मे
ज़रा ज़्यादा ही बिज़ी था..... कहिए क्या काम था मुझसे?" राज ने
पूछा.

"तुम जानते हो मुझे क्या काम था... लगता है की किसी को तड़पाना
तुम्हारी फ़ितरत है..... मेरे पति जल्दी ही घर आने वाले हैं."
महक ने कहा.

"कितने बजे?" उसने पूछा.

"उनका प्लेन शाम को 7.00 बजे लॅंड करेगा, इसका मतलब 8.00 8.30
बजे तक घर पहुँच जाएँगे." महक ने जवाब दिया.

"फिर तो अक्चा है की वो जब दूसरी बार सहर से बाहर जाए तब हम
मिलें." राज ने कहा.

"हां ये ठीक रहेगा, में तुम्हे फोन करूँगी." उसने कहा, "अब
मुझे जाना है में बाद मे फोन करती हूँ."

शाम को 7.30 बजे महक स्नान करके बाथरूम से निकाली तभी दरवाज़े
पर गहनति बाजी. उसने एक गाउन सा अपने शरीर पर लपेटा और दरवाज़ा
खोलने के लिए गयी. उसने के होल से देखा तो पाया की राज दरवाज़े
पर खड़ा था. दर और उत्साह दोनो से उसका बदन कांप उठा. उसने
दरवाज़ा खोला और इधर उधर झाँकने लगी.

"तुम यहाँ क्या कर रहे हो?" उसने घबराई हुए स्वर मे कहा.

"तुमने कहा था की तुम मुझसे मिलना चाहती हो इसलिए में यहाँ हूँ."
राज ने कहा और इसके पहले महक कोई विरोध करती वो दरवाज़े को
धकेल अंदर आ गया.













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