Saturday, June 5, 2010

raj sharma stories प्रेम आश्रम पार्ट -१

raj sharma stories

प्रेम आश्रम पार्ट -१

प्रेम आश्रम वाले गुरूजी कहते हैं कि लड़कियों की पिक्की, बाल आने के बाद बुर या भोस, चुदने के बाद चूत और फटने (बच्चा होने) के बाद फुद्दी बन जाती है।
अब मैं यह सोच रहा था कि मिक्की (मोनिका) की अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। इतना तो पक्का है कि भले ही उसकी पिक्की पूरी तरह से बुर या भोस न बनी हो पर वो बनने के लिए जरूर आतुर होगी। पता नहीं इन कमसिन लड़कियों की पिक्की को बुर बनने की इतनी जल्दी क्यों लगी रहती है। और जब बुर बन जाती है तो चूत बनने के लिए बेताब रहती है।
आप सोच रहे होंगे कि ये मिक्की कौन है?
मिक्की मेरे साले की लड़की है। घर में सब उसे मिक्की और सभी सहेलियां मोना और स्कूल में वो मोनिका माथुर के नाम से जानी जाती है। उम्र १८ के आसपास, +२ में पढ़ती है। गदराया बदन शोख, चंचल, चुलबुली, नटखट, नादान, कमसिन, क़यामत। कन्धों तक कटे बाल, सुतवां नाक, पतले पतले गुलाबी होंठ जैसे शहद से भरी दो पंखुडियां, सुराहीदार गर्दन, बिल्लोरी आँखें, छोटे छोटे नींबू जो अब अमरुद बन गए हैं पतली कमर, चिकनी चिकनी बाहें और केले के पेड़ की तरह चिकनी जांघें। सबसे कमाल की चीज तो उसके छोटे छोटे खरबूजे जैसे नितम्ब हैं।
हे भगवान् … अगर कोई खुदकुशी करने जा रहा हो और उसके नितम्ब देख ले तो एक बार अपना इरादा ही बदलने पर मजबूर हो जाए। उसकी पिक्की या भोस का तो आप और मैं अभी केवल अंदाजा ही लगा सकते हैं। कुल मिला कर वो एक क़यामत है। ऐसी कन्याएं किसी भी अच्छे भले आदमी का घर बर्बाद कर सकती है। पर मुझे क्या पता था कि भगवान् ने इसे मेरे लिए ही बनाया है।
पहले मैं अपने बारे में थोड़ा बता दूं। मेरा नाम प्रेम गुरु है। मैं एक बहु राष्ट्रीय कंपनी में काम करता हूँ। उम्र ३२ साल, कद ५’ ८” रंग गेहुँवा। शक्ल-सूरत ठीक ठाक। वैसे आदमियों की शक्ल-ओ-सूरत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता, ख़ास बात उसका स्टेटस होता है और दूसरा उसकी सेक्स पॉवर। भगवान् ने मुझे इन दोनों चीजों में मालामाल रखा है। मेरे लिंग का साइज़ ७” है और मोटाई २ इंच। मेरा सुपाड़ा आगे से कुछ पतला है। आप सोच रहे होंगे फिर पतले सुपाड़े से चुदाई का मज़ा ज्यादा नहीं आता होगा तो आप गलत सोच रहे हैं। यह तो भगवान् का आशीर्वाद और नियामत समझिये। गांड मरवाने वाली औरतें ऐसे सुपाड़े को बहुत पसंद करती है। आदमियों को भी अपना लण्ड अन्दर डालने में ज्यादा दिक्कत नहीं होती।
जिन आदमियों के लिंग पर तिल होता है वो बड़े चुद्दकड़ होते है फिर मेरे तो सुपाड़े पर तिल है आप अंदाजा लगा सकते हैं मैं कितना बड़ा चुद्दकड़ और गांड का दीवाना हूँ। मेरी पत्नी मधुर ३६-२८-३६, उम्र २८ साल बहुत खूबसूरत है। उसे गांड मरवाने के लिए मनाने में मुझे बहुत मिन्नत करनी पड़ती है। लेकिन दोस्तों ये फिर कभी। क्यों कि ये कहानी तो मिक्की के बारे में है।
वैसे तो ये कहानी नहीं बल्कि मेरे अपने जीवन की सच्ची घटना है। दरअसल मैं अपने अनुभव एक डायरी में लिखता था। ये सब उसी में से लिया गया है। हाँ मुख्य पात्रों के नाम और स्थान जरूर बदल दिए हैं। मैं अपनी उसको (?) बदनाम कैसे कर सकता हूँ जो अब इस दुनिया में नहीं है जिसे मैं प्रेम करता हूँ और जन्म जन्मान्तर तक करता रहूँगा। इसे पढ़कर आपको मेरी सच्चाई का अंदाजा हो जायेगा। मेरा दावा है कि मेरी ये आप-बीती आपको गुदगुदाएगी, हँसाएगी, रोमांच से भर देगी और अंत में आपकी आँखे भी जरूर छलछला जायेंगी।

मेरी एक फंतासी थी। किसी नाज़ुक कमसिन कली को फूल बनाने की। पिछले ७-८ सालो में मैं लगभग १५-२० लड़कियों और औरतों को चोद चुका हूँ पर अब मैं इन मोटे मोटे नितम्बों और भारी भारी जाँघों वाली औरतों को चोदते चोदते बोर हो गया हूँ। मैंने अपने साथ पढ़ने वाली कई लड़कियों को चोदा है पर वो भी उस समय २०-२१ की तो जरूर रही होंगी। हाँ अपने कामवाली बाई गुलाबो की लड़की अनारकली जरूर १८ के आस पास रही होगी पर वो भी मुझे तब मिली जब उसकी बुर चूत में बदल चुकी थी। सच मानो तो पिछले ३-४ सालों से तो मैं किसी कमसिन लड़की को चोदने के चक्कर में मरा ही जा रहा था।
शायद आपको मेरी ये बातें अजीब सी लगे- नाजुक कलियों के प्रति मेरी दीवानगी। हमारे गुरूजी कहते हैं चुदी चुदाई लड़कियों/औरतों को चोदने में ज्यादा मुश्किल नहीं होती क्योंकि वे ज्यादा नखरे नहीं करती और चुदवाने में पूरा सहयोग करती है। इन छोटी छोटी नाज़ुक सी लड़कियों को पटाना और चुदाई के लिए तैयार करना सचमुच हिमालय पर्वत पर चढ़ने से भी ज्यादा खतरनाक और मुश्किल काम है।
कहते है भगवान् के घर देर है पर अंधेर नहीं है। मेरा साला किसी कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर है। वो अपने काम के चक्कर में हर जगह घूमता रहता है। इस बार वो यहाँ टूर पर आने वाला था। मधु ने उसे अपनी भाभी और मिक्की को भी साथ लाने को मना लिया।
सुबह-सुबह जब मैं उन्हें लेने स्टेशन पर गया तो मिक्की को देख कर मेरा दिल इतना जोर से धड़कने लगा जैसे रेल का इंजन। मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा दिल हलक के रास्ते बाहर आ जायेगा। मैंने अपने आप पर बड़ी मुश्किल से काबू किया। सामने एक परी जैसी बिल्लौरी आँखों वाली नाज़ुक सी लड़की कन्धों पर बेबी डोल लटकाए मेरे सामने खड़ी थी - नीले रंग का टॉप और काले रंग की जीन पहने, सिर पर सफ़ेद कैप, स्पोर्ट्स शूज, कानों में छोटी छोटी सोने की बालियाँ, आँखों पर रंगीन चश्मा ? ऊउफ्फ्फ़ … मुझे कत्ल करने का पूरा इरादा लिए हुए।
दोनों जाँघों के बीच जीन पैंट के अन्दर फंसी हुई उसकी उभरी हुई बुर किसी फ़रिश्ते का भी ईमान खराब कर दे ! मुझे लगा कि मेरा पप्पू अपनी निद्रा से जाग कर अंगडाई लेने लगा है। मैं भी कितना उल्लू का पट्ठा हूँ मिक्की को पहचान ही नहीं पाया। ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल के किसी फंक्शन में जब मैंने उसे देखा था तो उसकी उम्र कोई १३-१४ साल के लगभग रही होगी। मैं भी कितना गधा था इतनी ख़ूबसूरत बला की ओर मेरा ध्यान पहले नहीं गया। मैं तो उसे एक अंगूठा चूसने वाली, इक्कड़ -दुक्कड़, छुपम-छुपाई खेलने वाली साधारण सी लड़की ही समझ रहा था। कितनी जल्दी ये लड़की जवानी पूरी बोम्ब बन गई है। मैं उसे ऊपर से नीचे तक देखता ही रह गया। उसका बदन कितना निखर सा गया था। मैं अभी सोच ही रहा था कि उसकी पिक्की की साइज़ कितनी बड़ी हो गई होगी और उसकी केशर क्यारी बननी शुरू हुई या नहीं मेरा मतलब है की वो अभी पिक्की ही है या बुर बन गई है। पता नहीं उसने अभी तक अपनी पिक्की या बुर से मूतने का ही काम लिया है या कुछ और भी, अचानक मेरे साले की आवाज मेरे कानों में पड़ी।
अरे प्रेम ! कहाँ खो गए भई ?
मैं अपने ख़्वाबों से जैसे जागा। आइये-आइये भाई साहब ! रास्ते में कोई परेशानी तो नहीं हुई? मैंने उनका अभिवादन करते हुए पूछा।
उन्होंने क्या जवाब दिया, मुझे कहाँ ध्यान था, मेरी आँखें तो बस मिक्की पर से हटाने का नाम ही नहीं ले रही थी। ऐसे खूबसूरत मौके का फायदा कौन कम्बख्त नहीं उठाएगा। आप समझ ही गए होंगे मैंने आगे बढ़ते हुए मिक्की को अपनी बाहों में भरते हुए कहा- अरे मिक्की माउस ! तू तो बहुत बड़ी हो गई है।
अपने सीने से लगाए मैंने उसकी गालों और सिर के बालों पर हाथ फिराया। उसके छोटे छोटे अमरुद मेरे सीने से दब रहे थे। उसके नाज़ुक बदन की कुंवारी खुश्बू मेरे नथुनों में समां गई। मुझे लगा कि मेरे ख़्वाबों की मंजिल मेरे सामने खड़ी है। मेरा दिल तो कर रहा था कि उसका प्यार से एक चुम्बन ले लूँ पर स्टेशन पर उसके माता-पिता के सामने ऐसा करना कहाँ संभव था। न चाहते हुए भी मुझे उस से अलग होना पड़ा लेकिन अलग होते होते मैंने उसके गालों पर एक प्यारी सी थप्पी तो लगा ही दी। फिर मैंने उसका हाथ पकड़ा और हम सभी स्टेशन से बाहर अपनी कार की ओर आ गए।
घर पहुँचने पर मधु ने अपने भैय्या, भाभी और मिक्की का गरमजोशी से स्वागत किया और फिर मिक्की की और बढ़ते हुए कहा,“अरे मोना तू ?” मधु मिक्की को मोना ही बुलाती है, वो उसे अपनी बाहों में लेते हुए बोली।
“नमस्ते बुआजी !” शायद कहीं सितार बजी हो, जलतरंग छिड़ी हो या किसी अमराई में कोयल कूकी हो, इतनी मीठी और सुरीली आवाज मिक्की के सिवा किसकी हो सकती थी।
“अरे ये तो मुझसे भी एक इंच बड़ी हो गई है।” मधु ने कहा।
“हाँ लम्बी तो बहुत हो गई है पर पढ़ाई-लिखाई में अभी भी मन नहीं लगाती !” सुधा ने बुरा सा मुंह बनाते हुए हुए कहा।
“अरे अभी बच्ची है, अपने आप पढ़ लेगी, तुम क्यों चिंता करती हो !” मधु बोली।
मैं सोच रहा था- क्या वाकई ये अभी बच्ची (बची) ही है। उसके स्तन, नितम्ब तो कहर बरपाने वाले बन चुके हैं।

“फूफाजी ! बाथरूम किधर है?” मिक्की ने पूछा।
“आ…न ! हाँ, आओ इधर है !” मैं उसका हाथ पकड़ कर अपने बेडरूम से लगे बाथरूम की ओर ले गया। मैं जानबूझकर उसे गेस्ट रूम के साथ भी एक बाथरूम में नहीं ले गया था।
“मैं साथ आऊँ क्या अन्दर ?” मैंने मुस्कुराते हुए पूछा।
“नहीं ! क्यों ?”
“वो फिर कोई छिपकली आ गई तो ?”
“ओह ! हटो आप भी…” वो शर्माते हुए बाथरूम में घुस गई और दरवाजा बंद कर लिया। और मैं बाहर खड़ा उसके सू-सू की आवाज का इन्तजार करने लगा।
बाहर खड़ा मैं अपने सपनो में खोया हुआ था। आज से कोई ३-४ साल पहले जब मैं अपनी ससुराल किसी फंक्शन में गया था तब की एक घटना मेरी आँखों में फिर से घूम गई।
मेरे ससुराल में घर दो-मंजिला है । ऊपर के भाग में एक कमरा और बाथरूम बना है। मैं शाम को छत के ऊपर टहल रहा था। इतने में मिक्की के चीखने की आवाज सुनाई दी और वो लगभग दौड़ते हुए बाथरूम से बाहर आई, वो थर थर कांप रही थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझता उसे ठोकर लगी और वो नीचे गिर पड़ी, मैंने भाग कर उसे उठाया। उसके पैर में चोट लग गई थी, उसकी आँखों में आंसू आ गए।
“अरे क्या हुआ ?”
“वो ! वो !” मिक्की तो कुछ बोल ही नहीं पा रही थी।
“हाँ ! हाँ ! क्या हुआ ?”
“वो ! बाथरूम में छिपकली है !”
मेरी हंसी निकल गई। मिक्की को छिपकलियों से बड़ा डर लगता है। जब वो उठी तो उसके मुंह से कराह सी निकली,“उईई … माँ !”
“क्या हुआ ?”
“मेरे पैर में चोट लग गई है !” उसने अपना घुटना मसलते हुए कहा।
मैंने उसके घुटने पर हाथ फिराया। उसने मिड्डी और टॉप पहना था। मिड्डी में उसकी पुष्ट जांघे तो कमाल की थी। मैं उसकी बुर तो नहीं देख सकता था पर उसके गोरे गोरे घुटनों और जाँघों को देख कर अंदाजा तो लगा ही सकता था कि वो तो पूरी कमायत ही होगी।
मैंने उसका घुटना सहलाया। वो थोड़ा सा छिल गया था, थोड़ा सा खून भी चमकने लगा था।
मैंने कहा, “अब तुम्हें डॉक्टर इंजेक्शन लगायेगा !”
तो वो रोने लगी और बोली,“नहीं मैं इंजेक्शन नहीं लगवाउंगी ! मुझे इंजेक्शन से बड़ा डर लगता है !”
“भई गाँव में तो बस थूक लगा देते हैं पर यहाँ तो ? “ मैंने आगे की बात जानबूझ कर नहीं कही।
“हाँ ये ठीक है ?” मिक्की ने हामी भरी।
मैंने तुंरत उसके घुटने पर अपनी जीभ लगा दी और थोड़ा सा थूक उस पर लगा कर एक चुम्मा ले लिया। मिक्की खिलखिला कर हंस पड़ी।
“ओह ।। फूफाजी … आप भी …?”
“क्यों क्या हुआ ?”
“कोई घुटनों पर भी पप्पी लेता है ?”
उसने मेरी ओर आश्चर्य से देखा तो मैंने कहा, “अच्छा तो कौन सी जगह पप्पी लेते है?”
‘पप्पी तो गालों पर ली जाती है!” वो मासूमियत से बोली।
“अच्छा ! तो आओ फिर गालों पर भी ले लेते हैं !”
मैं आगे बढ़ा और उसके नरम मुलायम गुलाबी होंटों पर अपने होंठ रख दिए। मैंने धीरे धीरे उसके होंठो को चूमा और फिर अपनी जीभ उन पर फिराने लगा जैसे सावन का प्यासा बारिश की हर बूँद को पी जाना चाहता है, मैं उसके होंठों को चूसने लगा। वह पूरा साथ दे रही थी उसके लिए तो मानो ये एक खेल ही था। मैंने अपनी जीभ उसके मुंह में डालने की कोशिश की तो वो हँसने लगी। मेरा दिल धड़क रहा था। मेरी भावनाओं का उसे इतनी छोटी उम्र में क्या भान होगा वो तो इसे केवल अपने अंकल का प्यार ही समझ रही थी पर मेरे लिए तो यह अमूल्य निधि की तरह था। हमारा यह चुम्बन कोई तीन चार मिनट तो जरूर चला होगा। फिर हम अपने होंठों पर जीभ फेरते हुए अलग हो गए।
मेरे पास उसे गोद में उठाने का सुनहरा अवसर था। मैंने उसे गोद में उठा लिया। उसे भला क्या ऐतराज़ हो सकता था। उसके पैर में तो चोट लगी थी और वो अपने पैरों से चल कर तो नीचे नहीं जा सकती थी। मैं उसे गोद में उठाये सीढ़ियों से नीचे उतरने लगा। उसने अपनी बाहें मेरे गले में डाल दी और अपनी आँखें बंद करके मेरे सीने पर अपना सिर रख दिया। उसके छोटे-छोटे नींबू मेरे सीने से लगे थे। मैं तो जैसे निहाल ही हो गया। मिक्की को बेड-रूम में छोड़ कर मैं ऊपर आ गया। मेरा पप्पू तो पैन्ट में धमा-चौकड़ी मचा रहा था। अब मेरे पास मुठ मारने के अलावा और क्या रास्ता बचा था। मैंने बाथरूम का दरवाजा बंद कर लिया !! और ????
दोस्तों मिक्की और मेरा यह पहला चुम्बन था। आप सोच रहे होंगे इस चुम्बन लेने में क्या मजा आया होगा। क्या नैतिक और सामाजिक रूप से मुझ जैसे पढ़े लिखे और शरीफ समझे जाने वाले व्यक्ति के लिए ऐसा करना ठीक था ? मैंने क्या गलत किया है मैंने तो एक चतुर भंवरे की तरह एक कच्ची-कलि का रस उसे बिना कोई नुक्सान पहुंचाए पी लिया था। मैंने उसकी कोमल भावनाओं से बिना खिलवाड़ किये एक चुम्बन ही तो लिया है? इसमें इतना हो हल्ला मचाने की क्या जरूरत है। आप शायद अभी मेरी इन बातों को नहीं समझेंगे।

बाथरूम के बाहर खड़ा मैं आज से कोई चार साल पहले घटी उस घटना के बारे में सोच ही रहा था कि मिक्की की आवाज मेरे कानों के बिलकुल पास में गूंजी।
“फूफाजी कहाँ खोये हुए हो ?” मिक्की शरारत भरी मुस्कान के साथ मुझे देख रही थी।
मैंने उसके हाथ पकड़ने की कोशिश करते हुए कहा “क्यों आज पप्पी नहीं देनी ?”
वो शर्म से लाल हो गई और मैं रोमांच से लबालब भर गया। मैं उसके गालों पर एक चिकोटी काटी और उसे अपनी ओर खींचने लगा। वो कुनमुनाती हुई सी बोली, “हटो अब मैं बड़ी हो गई हूँ !”
“अरे ! कहाँ से बड़ी हो गई हो, हम भी तो देखे !” मैंने भी शरारत भरे लहजे में कहा।
“वो ! वो…. ओह ! मुझे नहीं पता !” अब तो उसके चेहरे की लाली देखने लायक थी। शर्म से पुरखुमार आँखें नीची झुकी हुई थी। मुझे पूरा यकीन हो गया वो चार साल पुरानी बात को भूली नहीं है।
“तो किसे पता होगा ?” मैंने पूछा।
“मम्मी ऐसा कहती हैं।”
“अरे मम्मी को क्या पता ! तुम तो मेरे लिए अभी भी वो ही छोटी सी मुनिया हो।” मैंने उसकी ठुड्डी को ऊपर उठते हुए कहा। उसकी आंखें बंद थी। मैंने बड़े प्यार से एक चुम्बन उसके गालों पर ले ही लिया।
मेरी आँखें उसकी छोटी छोटी गोलाईयों पर थी जो अब नींबू से बढ़कर अमरुद बन रहे थे। आगे से तीखे नुकीले, जैसे पेंसिल की टिप। उसके मोटे मोटे होंठ तो सुर्ख लाल थे। जीन में कसे हुए उसके नितम्ब ऐसे लग रहे थे मानो दो छोटे छोटे खरबूजे हो उनके बीच की गहरी दरार साफ़ नजर आ रही थी।
गुरूजी कहते हैं किसी जवान लड़की या औरत की बुर या चूत का अंदाजा उसके होंठो को देख कर लगाया जा सकता है। इस हिसाब से तो उसके निचले होंठ भी अब क़यामत बन गए होंगे। या अल्लाह…. !! क्या मैं कभी उनको देख पाऊंगा और…. और…. खैर ये तो अन्दर की नहीं बाद की बात है।
मिक्की हाल में चली गई और मैं बाथरूम में उसकी वोही पुरानी खुशबू लेने अन्दर चला गया। मेरे नथुनों में उसके जवान होते जिस्म की खुशबू भर गई। मैं कोई चार-पाँच मिनट तक आँखें बंद किये पुरानी यादों और नए चुम्बन के ख्यालों में खोया रहा। मैं सोच रहा था कि इस क़यामत को कैसे पटाया जाए। मुझे कुछ कुछ अंदाजा तो हो ही गया था कि वो हमारे पहले चुम्बन को नहीं भूली है। मैं भी कितना गाडूँ हूँ इतने दिनों तक मुझे यह ख़याल ही नहीं आया कि मोनिका डार्लिंग अब इतनी बड़ी और रस भरी हो गई है।
१८ साल में ही वो इतनी गदरा जायेगी मुझे अंदाजा नहीं था। मैं शर्त लगा सकता हूँ कि अगर वो अपने होंठों पर लाल रंग की लिपस्टिक लगा ले तो ऐसा लगेगा जैसे वो किसी का खून पीकर आई हो। उसके सुन्दर अमृत कलश हालांकि अभी छोटे ही है पर बिजलियाँ गिराने के लिए काफी हैं। अब ये नींबू की जगह अमरूदों के आकार के तो हो ही गए हैं। उसकी बिल्लौरी आँखें तो ऐसी हैं जैसे नशे में पुरखुमार मस्त हिरणी हो। आप अंदाजा लगा सकते हैं उसकी पिक्की बुर बनने के लिए तड़प रही होगी। अब तो उसने रस बनाना भी शुरू कर दिया होगा। जिस तरह से मेरे चुम्बन लेने के बाद वो शरमाई थी मुझे पूरा यकीन है की उसका किसी हम उम्र सहेली या मैडम के साथ जरूर कोई चक्कर होगा। और अगर ऐसा है तो मेरे लिए तो ये और भी ख़ुशी की बात होगी कि मेरा प्यार वो जल्दी ही स्वीकार कर लेगी।
आप सोच रहे होंगे क्या बकवास लगा रखी है। क्या सिर फिरी बातें कर रहा हूँ। भला इस उम्र में सेक्स की इतनी समझ आ जाती है। तो दोस्तों सुनो हमारे गुरूजी कहते हैं कि लड़की जब रजस्वला होने लग जाती है और उसकी पिक्की बुर बन जाती है यानि कि उसकी भोस पर बाल आने शुरू हो जाते हैं तो वो सम्भोग के लिए तैयार हो जाती है। ये दोनों चीजें ही उसके सम्भोग के लिए तैयार होने की निशानी हैं।
और मिक्की तो १८ साल की हो गई है। मिक्की के बारे में मुझे बाद में पता चला कि वो अपने मम्मी पापा को कई बार सेक्स करते और चूसा चुसाई करते देख चुकी है और सेक्स के बारे में उसने अपनी सहेलियों से भी बहुत कुछ जानकारियां ले रखी हैं। अकेले में कई बार उसने हस्त मैथुन तो नहीं किया पर अपनी पिक्की से छेड़खानी और छोटी मोटी चुहलबाजी जरूर की है। पर ये सब बातें अभी नहीं।
उस दिन रविवार था मुझे ऑफिस नहीं जाना था। बस मैं तो कोई न कोई बहाना बना कर अपनी मिक्की के पास बना रहना चाहता था। सभी ने चाय पी और नहाने की तैयारी करने लगे। रमेश और सुधा गेस्टरूम से लगे बाथरूम में चले गए। मैंने जानबूझकर मिक्की को अपने बेडरूम से लगे बाथरूम में जाने को कहा। वो अदा से अपने कूल्हे मटकाती हुई बाथरूम चली गई। मैं तो बस उसके ख्यालों में ही खोया रह गया। वो कैसे अपनी पेंटी उतारेगी ! उसकी कच्छी गुलाबी रंग की होगी या फिर काले रंग की? उसने ब्रा पहन रखी होगी या अभी शमीज से ही काम चला रही है !
अरे यार ! छोड़ो इन फजूल बातों को !

मैं तो बस यही सोच रहा था कि उसकी पिक्की (नहीं बुर नहीं भोस नहीं पुस्सी) कैसी होगी। काश मैं कोई भंवरा होता या कम से कम छिपकली ही होता तो बाथरूम में छुप कर बैठ जाता और अपनी इस नन्ही कली को जी भर कर नंगे नहाते और मूतते हुए देख सकता।
बाथरूम के अन्दर से शावर चलने की आवाज और मिक्की के इंग्लिश गाने की मिलीजुली आवाज मुझे मदहोश कर रही थी। मेरा पप्पू तो छलांगें लगाने लगा था। कोई आधे घंटे के बाद मिक्की बाथरूम से निकली। उफ्फ्फ….!!!
भीगे बाल और उनसे टपकती हुई शबनम जैसी पानी की बूँदें, टांगों से चिपकी लाल सलेक्स और ऊपर ढीली सी शर्ट। पता नहीं उसने पेंटी और ब्रा जानबूझ कर नहीं डाली या कोई और बात थी। सलेक्स इतनी टाइट थी कि उसकी योनि का भूगोल और इतिहास साफ़ नजर आ रहा था। चूत का चीरा तीन इंच से कम तो क्या होगा। मेरा पप्पू तो मस्त हिरण की तरह कुलांचें भरने लगा। उसके बदन से आती मस्त खुश्बू से मैं तो मदहोश सा हो गया।
इस से पहले कि कोई मेरी हालत देख कर कोई अंदाजा लगाए, मैं बाथरूम में घुस गया। सबसे पहले मैंने उसकी पेंटी को ढूंढा। एक कोने में किसी मरी हुई चिड़िया की तरह मुझे उसकी नीली पेंटी और ब्रा मिल गए। मैंने उसकी पेंटी को उठाया और गौर से देखा। योनि-छिद्र वाली जगह कुछ गीली थी और उस पर सफ़ेद लार जैसा कुछ लगा हुआ था। शायद ये उसका योनि-रस था। मैंने उसे नाक के पास लगा कर सूंघा। ईईईइस्स्श….!! इतनी मादक, तीखी, खट्टी, कोरी पुस्सी की महक मेरे तन मन को अन्दर तक भिगो गई। मैंने उस पर अपनी जीभ लगा दी।
आईला….! क्या खट्टा, मीठा, नमकीन, कच्चे नारियल जैसा स्वाद था। मैंने उसकी पेंटी और ब्रा को एक बार और सूंघा और फिर उसकी पेंटी को अपने 7″ के पत्थर की तरह अकड़े पप्पू के चारों और लिपटा कर शीशे में देखा। पप्पू तो अड़ियल टट्टू ही बन गया था जैसे मार खाए बिना आज नहीं मानेगा। जी तो कर रहा था कि एक बार मुठ मार लूँ। पर मैं तो अपना प्रेम रस आज रात के लिए बचा कर रखना चाहता था। मैंने उसकी पेंटी को अपनी पेंट की जेब में रख लिया अपने प्यार की निशानी मानकर।
जब मैं फ्रेश होकर बाहर आया तो सभी मेरा खाने की मेज़ पर इंतजार कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद रमेश मार्केट और मधु और सुधा हमारे बेडरूम में गप्प लगाने चली गई। मैं और मिक्की अब दोनों अकेले रह गए। जैसे ही मधु और सुधा गई मिक्की झट से उठ कर मेरे पास सोफे पर बैठ गई और मेरी आँखों में झांकते हुए बोली,”जिज्जू ! क्या आप मुझे कंप्यूटर सिखा सकते हो ?”
जिज्जू…….. ? आप चौंक गए ना !
ओह….!
मैं बताना ही भूल गया ! मिक्की जब मुझे फूफाजी बुलाती तो मुझे लगता कि मैं कुछ बूढ़ा हो गया हूँ। मैं अपने आप को बूढा नहीं कहलवाना चाहता था तो हमारे बीच ये तय हुआ घरवालों के सामने वो मुझे फूफाजी कह सकती है पर अकेले में या घर के बाहर जीजाजी कहकर बुलाएगी।
“ओह…. येस….येस….! हाँ हाँ ! क्यों नहीं !” मैं हकलाता हुआ सा बोला क्योंकि मेरी निगाहें तो उसके स्तनों पर थी। पतले शर्ट में उसके बूब्स की छोटी छोटी घुन्डियाँ चने के दाने की तरह साफ़ नजर आ रही थी।
“चलो स्टडी-रूम में चलते हैं !” मैं उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे स्टडी-रूम की ओर ले जाने लगा।
उसकी लम्बाई मेरे कन्धों से थोड़ी ही ऊपर थी। उसके नाजुक बदन की कुंवारी खुशबू और चिकना स्पर्श मुझे मदहोश किये जा रहा था। मैं तो उसके साथ चूमने चिपटने का कोई न कोई बहाना ढूंढ़ ही रहा था। उसे भी कोई परवाह नहीं थी। इस उम्र में इन बातों की परवाह वैसे भी नहीं की जाती। मैं तो बस किसी तरह उसे चोदना चाहता था। पर ये इतना जल्दी कहाँ संभव था। खैर मुझे भी कोई जल्दी नहीं थी।
मेरे मस्तिष्क में कई योजनाएँ घूम रही थी। एक प्लान तो मैं काफी देर से सोच रहा था। मिक्की को कोल्ड ड्रिंक्स और फ़्रूटी पीने का बहुत शौक है उसमें नींद की गोलियाँ डाल दी जाएँ और रात में ? पर घर में इतने सब मेहमानों के होते यह प्लान थोड़ा मुश्किल था। काश कुछ ऐसा हो कि मैं और सिर्फ मेरी प्यारी मिक्की डार्लिंग अकेले हों, हमें डिस्टर्ब करने वाला कोई नहीं हो। काश किसी टापू या महल में हम दोनों अकेले हों और नंगधड़ंग बिना रोकटोक घूमते रहें। काश इस शहर में कोई जलजला या तूफ़ान ही आ जाए सब कुछ उजड़ जाए और बस हम दोनों ही अकेले रह जाए…. ओह्ह्ह्ह्…. पर यह कहाँ संभव है ….!
खैर कोई न कोई रास्ता तो भगवान् जरूर निकालेगा।
मैं मिक्की को अपनी बाहों में लिए स्टडी रूम में आ गया जिसमे मैंने कंप्यूटर, प्रिंटर और अपनी बहुत सी फाइल्स और पुस्तकें रखी हुई हैं। स्टडी-रूम में सामने की दीवार पर एक सीनरी लगी है जिसमें एक तेरह-चौदह साल की बिल्लौरी आँखों वाली लड़की तितली पकड़ रही है, बिलकुल मिक्की जैसी









आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj









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