Saturday, June 5, 2010

अनु की मस्ती मेरे साथ पार्ट--1

अनु की मस्ती मेरे साथ पार्ट--१

कभी कभी जिंदगी मे ऐसा वाक़या आ जाता है का जीने का मतलब ही
बदल जाता है. मैं एक 45 साल का विधुर आदमी जो मुंबई जैसी जगह
मे रह कर भी प्रूफ रीडर जैसा निक्रिस्ट काम करता हो उसके जीवन
मे कोई चमत्कार की कल्पना करना भी व्यर्थ है. मगर होनी को कौन
टाल सकता हैï

मैं राघवेंद्रा दीक्षित 45 साल का मीडियम कद काठी का आदमी हूँ. शक्ल
सूरत वैसे कोई खास नही है. मैं दादर के एक पुरानी जर्जर
बिल्डिंग मे पहली मंज़िल पर रहता हूँ. जब मैं छ्होटा था तब से ही
इस मकान मे रहता आया हूँ. दो कमरे के इस मकान को आज की तारीख मे
और आज की सॅलरी मे अफोर्ड कर पाना मेरे बस का ही नही था. लेकिन
इस पर मेरे पुरखों का हक़ था और मैं बिना कोई किराया दिए उसमे किसी
मकान मलिक की तरह रहता हूँ. यहीं पर जब मेरे 25 बसंत गुज़रे
तो माता पिता ने एक सीधी साधी लड़की से मेरा विवाह कर दिया. 5 साल
तक हुमारी कोई संतान नही हुई. रजनी उदास रहने लगी थी. उसने हर
तरह के पूजा पाठ. हर तरह के डॉक्टर को दिखाया. आख़िर उसकी
उल्टियाँ शुरू हो गयी. वो बहुत खुश हुई. लेकिन ये खुशी मेरी
जिंदगी मे अंधेरा लेकर आई. कभी ना मिटने वाला अंधेरा. जब
बच्चा 8 महीने का था, एक दिन सीढ़ी उतरते समय रजनी का पैर
फिसला और बस सब ख़त्म. जच्चा बच्चा दोनो मुझे इस दुनिया मे
एकद्ूम अकेला छ्चोड़ कर चले गये.

बुजुर्ग माता पिता का साथ भी जल्दी छ्छूट गया. अब मैं उस मकान मे
अकेला ही रहता हूँ. उस दिन प्रेस से लौट ते हुए रात के साढ़े बारह
बज रहे थे. पता नही मन उस दिन क्यों इतना उचट रहा था.. शाम को
काफ़ी बरसात हो चुकी थी इसलिए लोगबाग अपने घरों मे घुसे बैठे
थे.

मेरा अकेले मे मन नही लग रहा था. रात के बारह बज रहे थे. मैं
घर जाने की जगह सी बीच पर टहलने लगा. सामने पार्क था. जिसमे
सुबह छह बजे से जोड़े आलिंगन मे बँधे दिखने शुरू हो जाते हैं.
लेकिन अब एक दम वीरान पड़ा था. मैं कुच्छ देर रेत पर बैठ कर
समुंद्र की तरंगों को अपने कानो मे क़ैद करने लगा. हल्की फुहार वापस
शुरू हो गयी. मैं उठ कर वापस घर की ओर लौटने लगा. पता नही
किस उद्देश्य से मैं पार्क के अंदर चला गया. पार्क की लाइट्स भी
खराब हो रही थी इसलिए अंधेरा था. अचानक मुझे किसी झाड़ी के
पीछे कोई हलचल दिखी. मैं मुस्कुरा दिया "होंगी लैला मजनू की कोई
जोड़ी. अंधेरे का लाभ उठा कर संभोग मे लिप्त होंगे." मैने अपने
हाथ मे पकड़े टॉर्च की ओर देखा फिर बिना कोई आवाज़ किए घूम कर
झाड़ियों की दूसरी तरफ गया. मुझे घास पर कोई मानव आकृति उकड़ू
अवस्था मे अपने को झाड़ी के पीछे छिपाये हुई दिखी.

"ओह्ह" अचानक उस से एके मुँह से आवाज़ निकली. मैं चौंक गया, वो कोई
लड़की थी. मैने उसकी तरफ टॉर्च करके उसे ऑन किया. जैसे ही रोशनी
हुई वो अपने आप मे सिमट गयी. सामने जो कुच्छ था उसे देख कर मेरा
मुँह खुला का खुला रह गया.

एक कोई 30 साल की महिला बिल्कुल नग्न हालत मे अपने बदन को सिकोड
कर अपनी नग्नता को मेरी आँखों से छिपाने का भरसक प्रयत्न कर
रही थी.

"कौन??? कौन है उधरï ??" मैने आवाज़ लगाई.

"छ्चोड़ दो मुझे छ्चोड़ दो." कह कर वो अपने चेहरे को छिपा कर रोने
लगी. उसका शरीर के कुच्छ हिस्से मे कीचड़ लगा था. वो इस दुनिया
के बाहर की कोई जीव लग रही थी. मैने उसे खींच कर उठाया.

"कौन है तू? क्या कर रही है अंधेरे मे? बुलाउ पोलीस को?" एक
साथ मेरे मुँह से कई सवाल निकल पड़े. जवाब मे वो मेरी छाती से
लग कर सुबकने लगी.

"मर जाने दो मुझे. नही जीना मुझेï ." वो मचलती हुई बोल रही थी.

"अरे बताएगी भी कि क्या हुआ या ऐसे ही रोती रहेगीï " मैने उसके
चेहरे को उठाया.

"साले चार हरम्जादे थेï . साले कुत्ते कई दीनो से हमारे घर के
चारों ओर सूंघते फिर रहे थेï . आज मौका मिल गया सालों को. मुझे
अकेली देख कर फुसला कर यहा पार्क मे ले आए औरï और" कह कर वो
रोने लगी.

मैं समझ गया कि उसके साथ रेप हुआ है. और जिस तरह वो
बहुवचन का प्रयोग कर रही थी गॅंग-रेप की शिकार थी वो. पता
नही शादीशुदा थी या कोई कंवारी? इसके घरवाले शायद ढूँढते
फिर रहे होंगे? उसका गीला कीचड़ से साना नग्न बदन मेरी बाहों मे
था. मैं उसे बाहों मे लेकर सोच रहा था कि इस समय क्या करना उचित
होगा..

"तुम्हारा नाम क्या है?" मैने जानकारी वश उससे पूचछा.

"तुमसे मतलब साले छ्चोड़ मुझे मैं मर जाना चाहती हूँ."

मेरा दिमाग़ खराब हो गया. मैं ज़ोर से उस पर चीखा.

"अब एक बार भी अगर तूने मुझसे कोई बे सिर पैर की बात की तो
उठा कर फेंक दूँगा उन केटीली झाड़ियों मे. तब से मैं तुझे
समझाने की कोशिश कर रहा हूँ और तू है की सिर पर चढ़े जा
रही है. तूने मुझे समझ क्या रखा है? कान खोल कर सुनले अगर
मुझे तुझसे कोई फ़ायदा उठना होता तो मैं बातें करने मे अपना समय
बर्बाद नही करता. अपनी हालत देख. इस तरह की कोई नंगी लड़की किसी
और को ऐसे अंधेरे मे मिल जाए तो सबसे पहला काम ज़मीन पर पटक
कर तुझे चोदने का करता."

मेरी झिरक सुन कर उसका आवेग कुच्छ कम हुआ. लेकिन फिर भी वो मेरी
बाहों मे सूबक रही थी. उसने धीरे धीरे अपना सिर मेरे कंधे पर
रख दिया. और सुबकने लगी.

वो चार थे. मुझे अकेली सड़क से गुज़रता देख मेरा मुँह बंद
करके एक मारुति मे यहाँ सून सान देख कर ले आए "

"ठीक है ठीक है अब रोना धोना छ्चोड़. तेरे कपड़े कहाँ हैं?"

"यहीं कहीं फेंक दिया होगा." उसने इधर उधर तलाशने लगी. इतनी
देर बाद उसे याद आया कि वो किसी अजनबी की बाँहों मे बिल्कुल नंगी
खड़ी है. उसने फॉरन अपने बदन को सिकोड लिया और वहीं ज़मीन पर
अपने बदन को छिपाते हुए बैठ गयी. मैं टॉर्च की रोशनी मे
चारों ओर ढूँढने लगा. काफ़ी देर तक ढूँढने के बाद सिर्फ़ एक फटी
हुई ब्रा मिली. मैने उसके पास आकर उसे उस फटी हुई ब्रा को दिखा कर कहा

"बस यही मिला. और कुच्छ नही मिला.. शायद तेरे कपड़े भी वो साथ ले
गये."

"साले मादार चोद मुझे पूरे शहर मे नंगी करके घुमाना चाहता था.
साले कुत्ते."

" चल अब गलियाँ देना बंद कर. अब ये बता तुघर कैसे जाएगी?
यहाँ पड़ी रही तो बरसात मे भीग कर ठंड से मर जाएगी. नही तो
फिर किसी की नज़र पड़ गयी तुझ पर तो रात भर तो तुझसे अपनी
हवस मिटाएगा और सुबह किसी चाकले मे ले जाकर बेच आएगा."

" मुझे नही जाना घर ..मुझे घर नही जाना"

" क्यों?"

" वो साले घर पर ताक लगाए बैठे होंगे. मुझे वापस अकेली देख
कर वापस चढ़ पड़ेंगे मेरे ऊपर. साले कुत्ते" कह कर उसने नफ़रत
से थूक दिया.

" अच्च्छा चल तू एक काम कर." मैने अपने शर्ट को उतार दिया. सफेद
रंग का शर्ट बरसात मे भीग कर पूरी तरह पार दर्सि हो गया था.
अंदर की बनियान भी उतार दी..

"ले इन्हे पहन ले. वैसे ये ज़्यादा कुच्छ छिपा नही पाएँगे लेकिन फिर
भी चलेगा."

उसने मेरे कपड़ों को मेरे हाथ से लेकर पहन लिया. मैं सिर्फ़ पॅंट
पहना हुआ था. उसे उतार कर देने की मेरी हिम्मत नही हुई.

"चल पोलीस स्टेशन." मैने उसे कहा "रपट भी लिखानी पड़ेगी

"नहीं" वो ज़ोर से चीखी "नहीं जाना मुझे कहीं. मैं नही जाउन्गि
पोलीस स्टेशन. साले रात भर मुझे चोदेन्गे और सुबह वहाँ से
भगा देंगे. किसी डाकू से ज़्यादा डर तो इन पोलीस वालों से लगता है."

"लेकिन रपट तो लिखाना ही पड़ेगा ना"

"क्यों? क्या होगा रपट लिखवा कर. लौटा देंगे वो मेरी लूटी हुई इज़्ज़त.
साले करेंगे तो कुच्छ नही. हां खोद खोद कर ज़रूर पूछेन्गे. क्या
किया था कैसे किया था. पहले चोदा था या पहले तेरी छातियो को
मसला था."

" अब तो ये बता कि तू जाएगी कहाँ." मैने पूचछा " देख मेरे घर
मे मैं अकेला ही रहता हूँ. पास ही घर है अगर तुझे कोई दिक्कत ना
हो तो रात वहाँ बिता ले सुबह होते ही अपने घर चली जाना."

कुच्छ देर तक वो चुप रही फिर उसने धीरे से कहा "ठीक है"

हम दोनो अर्ध नग्न अवस्था मे लोगों से छिपते छिपाते घर की ओर
बढ़े. रात के साढ़े बारह बज रहे थे और ऊपर से बारिश इसलिए
रास्ता पूरा सुनसान पड़ा था. उसने मेरे हाथ को पकड़ रखा था. किसी
लड़की के स्पर्श से मेरे बदन मे सिहरन सी हो रही थी. मैने चलते
चलते पूचछा

" क्या मैं अब तुम्हारा नाम जान सकता हूँ?"

अनुराधा नाम है मेरा."

" अनु तुम शादी शुदा हो या अभी कुँवारी ही हो?"

"शादी तो हुई थी लेकिन मेरा पति मुझे छोड़ कर साल भर हुए
पता नही कहाँ चला गया. मैं कुच्छ दूर एक खोली लेकर रहती हूँ.
पास ही ट्विंकल स्टार स्कूल मे पढ़ाती हूँ. उसी से मेरा गुज़रा चल
जाता है."

मैं चल ते हुए उसकी बातें सुनता जा रहा था. उसकी आवाज़ बहुत
मीठी थी लग रहा था बस वो बोलती जाए. चाहे कुच्छ भी बोले लेकिन
बोलती जाए. मैने अपने बाहों से उसको सहारा दे रखा था. उसकी चाल
मे लड़खड़ाहट थी जो की गॅंग रेप के कारण दुख़्ते बदन के कारण
थी. उसके बदन मे जगह जगह नोचे और काटे जाने के निशान हो रहे
थे. कुछ जगह से तो हल्का हल्का खून भी रिस रहा था. बड़ी ही
बेरहमी से कुचला दिया था बदमाशों ने इस फूल से बदन को.

" हमारे मोहल्ले मे टिल्लू दादा हफ़्ता वसूली का काम करता है. उसकी
नज़र बहुत दीनो से मेरे ऊपर थी. लेकिन मैं उसे किसी भी तरह का
मौका नही देती थी. आज क्या है स्कूल के एक टीचर का आक्सिडेंट हो
गया था. हम सब उसे देखने हॉस्पिटल चले गये थे. वापसी मे
बरसात शुरू हो जाने के कारण देर हो गयी. मैं लोकल ट्रेन से दादर
रेलवे स्टेशन पर उतर कर पैदल घर जा रही थी. सड़कों पर लोग
कम हो गये थे. मेरे घर के पास अंधेरे मे मुझे वो साला टिल्लू मिल
गया. उसने मेरे गले पर चाकू रख कर वॅन मे बिठा कर यहा ले आया."

हम घर पर पहुँच गये थे. दोनो बारिश मे पूरी तरह भीग चुके
थे. हमारे बदन और कपड़ों से पानी टपक रहा था. मैने ताला खोल
कर लाइट जलाई. उसकी तरफ घूमते ही मैं अवाक रह गया था. क्या
खूबसूरत महिला थी. रंग गेहुआ था लेकिन नाक नक्श तो बस कयामत
थे. बदन ऐसा कसा हुआ की उफफफ्फ़ .मेरी तो साँस ही रुक गयी. पूरा
बदन किसी होनहार कारीगर द्वारा गढ़ा हुआ लगता था. बदन पर सिर्फ़
मेरी बनियान और शर्ट थी जिसका होना या ना होना बराबर था. उसके
बदन का एक एक रेशा सॉफ नज़र आ रहा था. मैं एक तक उसके बदन को
निहारता रह गया. काफ़ी सालों बाद किसी महिला को इस अवस्था मे देख
रहा था. मेरी बीवी रजनी गोरी तो थी लेकिन काफ़ी दुबली थी. इसका
बदन भरा हुआ था. चूचिया बड़ी बड़ी थी 38 के आसपास की साइज़
होगी. निपल्स के चारों ओर काले काले घेर काफ़ी फैले हुए थे.
निपल्स भी काफ़ी लंबे थे. उसके बदन मे कई जगह कीचड़ लगा हुया
था लेकिन उस हालत मे भी वो किसी कीचड़ मे खिले फूल की तरह लग
रही थी.

उसकी नज़रें मेरी नज़रों से मिली और मुझे अपने बदन को इतनी गहरी
नज़रों से घूरता पाकर वो शर्मा गयी.

"अंदर चलें" उसने मुझे मेरी अवस्था से बाहर लाते हुए कहा.

"हाँï हाँï अंदर आओ." मैं बोखला गया. मेरी चोरी पकड़ी गयी थी. मैं
अपनी हड़बड़ाहट छिपाते हुए बोला, " देखो छ्होटा सा मकान है.
पुरखों ने बनवाया था. दो कमरे हैं. यहाँ मैं अकेला ही रहता हूँ
इसलिए समान इधर उधर फैला हुआ है."

"क्यों शादी नही की?"

"की थी लेकिन मुझसे ज़्यादा वो भगवान को प्यारी थी इसलिए उसे जल्दी
वापस बुला लिया"

"सॉरी! मैने आपको कष्ट दिया."

"नही नही ऐसा कुच्छ नही." मैने कहा " ऐसा करो तुम जल्दी से नहा
लो. इस तरह रहोगी तो बीमार पड़ जाओगी."

"हाँ अपने सही कहा. बातरूम किधर है?" उसने झट से मेरी बात का
समर्थन किया. शायद वो खुद एक गैर मर्द के सामने से अपना नग्न
बदन छिपाना चाहती थी.

मैने उसे बाथरूम दिखा दिया. वो अंदर चली गयी. मैने उसे रुकने
को कहा. मैं स्टोव पर पानी गर्म करके ले आया. इसे बाल्टी के पानी मे
मिक्स कर लो. गुनगुने पानी मे शरीर को राहत पहुँचेगी. कपड़े वहीं
छ्चोड़ देना. मैं धुले कपड़े ला देता हूँ.

उसके लिए प्रॉपर कपड़े तलाश करने मे दिक्कत हुई. अब मेरे घर मे
मर्दों के कपड़े ही थे. मैने उनमे से ही एक शर्ट और एक लूँगी
निकाला. शर्ट थोड़े हल्के कलर का था इसलिए अपनी एक अच्छि
बनियान भी निकाल कर उसे दी. मैं उसके लिए चाइ बनाने लगा. कुच्छ
देर बाद बाथरूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ आई. मैं अपने काम मे
बिज़ी रहा. बीच बीच मे उसकी चूड़ियों की ख़ान खानाहट बता रही
थी कि वो कुच्छ कर रही है. शायद बॉल संवार रही होगी. मैं अपने
धुन मे मस्त किचन मे ही बिज़ी रहा. अचानक पीछे से आवाज़ आई,

" अब कैसी लग रही हूँ मैं?"

"एम्म्म" मैं उसके चारों ओर एक चक्कर लगा कर बोला, "काजल लगा लो
कहीं मेरी ही नज़र ना लग जाए."

"धात" वो एक दम नयी नवेली दुल्हन की तरह शर्मा गयी.

"लो चाइ पियो. इसे पीने से तुम्हारे बदन मे स्फूर्ति आ जाएगी." मैने
उसकी तरफ चाइ का प्याला बढ़ाते हुए कहा. वो मेरे हाथ से कप ले
कर सोफे पर बैठ गयी. उसके मुँह से ना चाहते हुए भी एक कराह
निकल गयी.

`क्या हुआ?'

` कुच्छ नही. ज़ख़्मों से टीस उठ रही थी.' उसने अपने निचले होंठ
को दाँतों मे दबाकर दर्द को पीने की कोशिश की.

` अरे मैं तो भूल ही गया था. बहुत बेदर्दी से उनलोगों ने संभोग
किया है तुमहरे साथ. कई जगह से तो खून भी निकल रहा था.'

उसके चेहरे पर एक दर्दीली मुस्कान उभर आई. हम चुपचाप चाइ ख़त्म
करने लगे.

`अभी आया' कहकर मैं उठा और बेडरूम मे जाकर रॅक से एक सेव्लान की
शीशी और रुई ले आया.

`चलो यहाँ आओ बेडरूम मे.' मैने उसे कहा. वो मेरी ओर शंकित
निगाहों से देखने लगी.

`अरे भाई तुम्हारे ज़ख़्मों की ड्रेसिंग करनी होगी. तुम्हे लेटना पड़ेगा.'

वो सिर झुकाए उठी और बिना कुच्छ कहे बेडरूम मे आकर खाट पर लेट
गयी.

` कहाँ कहाँ जख्म है मुझे दिखाओ'

`उसने एक उंगली से अपनी छातियो की ओर इशारा किया.' फिर वो अपनी
कनपटी उंगलियों से अपने शर्ट के बटन्स खोलने लगी. मैं ये देख कर
अवाक रह गया कि उसे एक बनियान देने के बाद भी उसने नीचे कुच्छ
नही पहन रखा था. उसने अपने शर्ट के दोनो पल्लों को अलग किया और
उसका साँचे मे तराशा हुआ बदन मेरे आँखों के सामने था. उसने अपनी
आँखों को सख्ती से बंद कर रखा था. मानो आँख के बंद करने से
उसका नग्न बदन दूसरों की आँखों के सामने से गायब हो गया हो.

मैने देखा कि उसके चूचियो पर और उसके निपल्स के आसपास अनगिनत
दाँतों के निशान थे. एक निपल के जड़ से खून निकल रहा था. दो
चार और घाव गहरे थे. मैने रूई लेकर उसे सेव्लान मे डुबो कर उसके
घावों के उपर फिराने लगा. वो दर्द से कराह रही
थी. "आअहह..... ऊऊहह" उसने कुच्छ देर मे अपनी आँखेने डरते डरते
खोल ली.

कुकछ घाव जो गहरे ताजे उसमे नहाने के बाद भी मिट्टी पूरी तरह से
सॉफ नही हुई थी. मैने उसके घावों को अच्छि तरह से साफ किया.
इस दौरान कई बार उसकी चूचियो को दबाना उसके निपल्स को पकड़ कर
खींचना पड़ा. मेरा लिंग इस काम को करते करते जाने कब तन कर
खड़ा हो गया. जब मेरी आँखें उसके बदन से फिरती हुई उसकी आँखों
पर गयी तो मैने पाया उसकी आँखें मेरे तने हुए लिंग पर टिकी हुई
थी. उसके गाल शर्म से लाल हो रहे थे. अब उस कंडीशन मे मैं अपने
लिंग के उभार को उसकी नज़रों से छिपाने मे असमर्थ था.

मैने देखा वो एक बार अपने निचले होंठ को दांतो से काट कर हल्के से
मुस्कुरा उठी. फिर उसने अपनी आँखें बंद कर ली उसकी होंठों पर वो
हल्की सी मुस्कान अभी तक खिली हुई थी. शायद वो आँखों को बंद
करके मेरे लिंग की कल्पना कर रही थी.

मैने महसूस किया कि उसके ब्रेस्ट अब पहले जीतने नरम नही रहे. उन
मे हल्की सी सख्ती आ गयी थी. निपल्स भी तन कर खड़े हो गये
थे. मैने उसकी बंद आँख का सहारा पाकर अपने हाथ से अपने लिंग को
सेट इस तरह किया कि वो सामने वाले को ज़्यादा खराब नही लगे. मेरे
हाथ अब उसकी चूचियो पर हरकत करते हुए काँप रहे थे. कुच्छ
देर बाद चूचियो के सारे घाव ड्रेसिंग करके मैने कहा,

" लो अब अपने शर्ट के बटन्स बूँद कर लो ड्रेसिंग हो गयी. है." वो
कुच्छ देर तक वैसे ही पड़ी रही. मैने सोचा कि शायद वो सो गयी
हो लेकिन दरस्ल वो अपने ही ख़यालों मे खोई हुई थी इसलिए मेरी धीमी
आवाज़ को वो सुन नही पाई.
मैने उसे धीरे से हिला कर वापस अपनी बात दोहराई. वो शर्म से
तार्तार हो गयी.

"सॉरी" कह कर उसने अपने शर्ट के बटन लेते लेते ही बंद करने
शुरू किए.

" नीचे भी हैं क्या घाव." मैने अपने माथे पर उभर आए पसीने
को पोंचछते हुए उससे पुचछा. मेरे सवाल को सुन कर उसने आँखें खोली
और बिना कुच्छ कहे हां मे सिर हिलाया.

" अब इसे उतारो" मैने उसकी लूँगी की ओर इशारा किया.

"मुझे शर्म आती है."

"शर्म किस बात की अभी तो कुच्छ देर पहले मेरे सामने बिल्कुल नंगी
थी. मैने तो तुझे उस अवस्था मे देखा है जिस हालत मे सिर्फ़ तुझे
तेरा पति देखा होगा."

" नही रहने दो अब"

" देख घाव गहरे हैं सेपटिक हो गया तो फिर नासूर बन जाएगा. तू
आँखें बंद कर मैं तेरी लूँगी हटाता हूँ."

" नही पहले आप भी अपनी आँखें बंद करो. नही तो मुझे शर्म
आएगी."

" अरे पगली अगर मैने आँखें बंद कर ली तो तेरे घावों को सॉफ कौन
करेगा?"

मैने अपने हाथ उसकी लूँगी की गाँठ पर रख दिए. उसने तुरंत मेरे
हाथों को थाम लिया.

" ठहरो मैं खुद खोल देती हूँ. वैसे मुझे तुम्हारे सामने नग्न होते
कोई झिझक नही हो रही है"

"क्यों मैं तो एक अंजान पराया मर्द हूँ"

" नहीं तुम सबसे अलग हो. उनके जैसे नहीं हो जिन्हों ने मेरी ये
हालत की है." कह कर उसने अपनी लूँगी की गाँठ को ढीली कर दी.
सामने से कटी उस लूँगी के दोनो किनारों को पकड़ कर मैने अलग कर
दिया. उसने इस बार अपनी आँखें नहीं बंद की. उसकी आँखें एकटक मेरे
चेहरे पर लगी हुई थी. लेकिन मेरी आँखें तो मानो उसके निचले बदन
के निर्वश्त्र होते ही अपनी सुध बुध खो चुका था. उसने अपनी दोनो
टाँगों को सख्ती से एक दूसरे से जोड़ रखा था. उसके जांघों के जोड़
पर जहाँ एक "वाई" की आकृति बन रही थी. छ्होटे छ्होटे सलीके से
ट्रिम किए हुए बाल बहुत ही खूबसूरत लग रहे थे. कुच्छ देर तक
उसकी लूँगी के दोनो पल्लों को हाथ मे थामे बस बुत की तरह उसे देखता
ही रहा. फिर मैने चौंक कर उसकी तरफ देखा और उसे अपनी तरफ
देखता पाकर हड़बड़ा गया. उसके चेहरे पर एक ना समझ मे आने वाली
मुस्कान खिली थी. मैने झट अपने माथे पर छल्क आए पसीने को
पोंछ कर उसके टाँगों के जोड़ की तरफ देखा.

उसके एक टांग को अपने हाथों से पकड़ कर अलग किया. उसने इस बार अपनी
तरफ से किसी तरह का विरोध नही किया.. उसने अपना बदन ढीला छ्चोड़
दिया था. उसके एक टांग को घुटनो से मोड़ कर अलग किया. फिर दूसरी
टांग को भी वैसे ही किया. उसकी योनि खुल कर सामने आ गयी थी. उसके
योनि और उसके आस पास भी काफ़ी सारे दाँतों के निशान थे. दोनो
टाँगों को अलग कर मैं अपने चेहरे को उसकी योनि के पास लाया. उसकी
योनि मेरी आँखों से मुश्किल से 6" की दूरी पर होगी. मैने सेव्लान मे
भिगो कर रूई को पहले उसके घावों पर फिराया. उसने अपने दाँत से
अपने निचले हन्त को सख्ती से पकड़ रखा था. शायद उसकी ये अदा
होगी. उसके हाथ तकिये को अपनी मुट्ठी मे ले रखे थे. मैं उसके
घावों पर दवाई लगा रहा था.

" कितनी बेरहमी से तुम्हारे बदन से खेला है उन लोगों ने."

" हां वो साले चार थे साथ मे इतना बड़ा एक कुत्ता भी था. साले
पता नही कब से मुझ पर नज़र रखे हुए थे. उस दिन मुझे अंधेरे
मे घर लौटते हुए देख कर उनकी बाँछे खिल गयी. और अपनी वॅन
को लाकर मेरे नज़दीक रोक कर मेरी गर्दन पर चाकू रख कर मुझे
वॅन मे आने के लिए विवश कर दिया. अंदर दो आदमी पीछे बैठे हुए
थे और उनके पैरों के बीच काफ़ी तगड़ा और मोटा एक कुत्ता भी बैठा
हुआ था. मुझे अंदर खींच कर उन दोनो ने अपने बीच मे मुझे बिठा
लिया. टिल्लू दादा के आदमियों को देख कर तो मैं पहले से ही डरी हुई
थी ऊपर से वो डरावना कुत्ता अपने दाँत निकाले मुझे घूर रहा था.
उन्हों ने मुझे धमकी दी कि अगर मैने किसी प्रकार का विरोध किया तो
कुत्ता मुझे नोच कर खा जाएगा. उस कुत्ते ने अपने दोनो आगे के पैर
मेरी गोद मे रख दिए और मेरे मूह के सामने अपनी लंबी जीभ निकाल
कर लपलपाने लगा. मैं किसी बुत की तरह बिना हीले दुले बैठी हुई
थी. अगल बगल के दोनो आदमी मेरे बदन से मेरे कपड़े हटते जा रहे
थे. वो जैसा चाह रहे थे वैसा मेरे बदन से खेल रहे थे और मेरे
पास उनको सहयोग करने के अलावा कोई चारा नही था. एक बार मैने
हल्का सा विरोध किया तो कुत्ता गुर्रा उठा. मैं सहम कर अपने मे सिमट
गयी. कुच्छ ही देर मे मैं उनके बीच पूरी तरह नंगी बैठी हुई
थी."

मैं उसकी बातों को सुनते हुए उसकी योनि पर रुई फिरा रहा था. फिर
मैने अपने दोनो हाथों की उंगलियों से उसकी योनि की फांकों को अलग
किया और फैलाया. अंदर कोई जख्म तो नही दिखा मगर उसकी योनि के
भीतर झाँकते हुए मेरा पूरा बदन सिहरन से भर गया. मेरा लिंग
पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया था उसे किसी भी तरह से शांत कर
पाना अब मेरे वश मे नही था. वो इस तरफ से अपना ध्यान हटाने के
लिए बिना रुके उसके साथ हुई घटनाओ को दोहराती जा रही थी.

"साले मुझे लेकर उस वीरान पड़े पार्क मे ले आए. आस पास कोई नही
था मेरी असमात को लूटने से बचाने वाला. उन्हों ने मुझे नंगी हालत
मे वॅन से खींच कर निकाला. मैने एक उम्मीद से अपने चारों ओर देखा
लेकिन दूर दूर तक किसी मानव की छाया तक नही दिखी. वो चारों
मुझे खींचते हुए पार्क मे उगी झाड़ियों के पीछे लेकर आए.
कुत्ता कुच्छ सुन्घ्ता हुआ उनके सामने सामने चल रहा था. उन झाड़ियों
के पीछे ले जाकर उन्हों ने मुझे ज़मीन पर पटक दिया. मेरे हाथो
को जोड़ कर एक कपड़े के टुकड़े से बाँध दिया. मेरे मुँह मे एक गंदा सा
कपड़ा ठूंस दिया जिससे मैं चीख ना सकूँ. फिर एक के बाद दोसरा
दूसरे के बाद तीसरा, कभी दो एक साथ कभी मुँह मे कभी गुदा मे
मुझे ना जाने कितनी बार कितने तरीके से उन्हों ने रगड़ा. मेरी खाल
जगह जगह से छिल गयी थी. जानवरों की तरह मेरे स्तनो पर और
जांघों के बीच उन्हों ने काट डाला. मैं दर्द से चीखी जा रही थी
मगर मुँह से "गूओ....गूऊ" के अलावा कोई आवाज़ नही निकल रही थी.
मेरे दोनो आँखों से आँसू झाड़ रहे थे मगर किसे परवाह थी मेरे
आनसूँ की. उनके मोटे मोटे लंड मेरी चूत को रगड़ रगड़ कर उसकी खाल
उधेड़ रहे थे. मैं छट-पता रही थी मगर इस हालत मे सिर्फ़ आँखों
से झरने वाले पानी के अलावा कुच्छ भी नही कर पा रही थी. साले
हरमजदों ने मुझे जी भर कर चोदने के बाद वहाँ एक बेंच पर
हाथों का सहारा लेकर घुटनो के बल झुकाया और उसके बाद जो
हुआ......उफफफ्फ़. ......... क्यों बचा कर लाए तुम मुझे? बोलो मुझ से
क्या दुश्मनी थी तुम्हारी...."

"चलो बीती बातें भूल जाओ"

"नही कैसे भूल सकती हूँ. कैसे भूल सकती हूँ उन हरमजदों
को. सालों का जब जी भर गया मुझसे तब मुझे झुका कर अपने कुत्ते
को चढ़ा दिया मेरे उपर. उसके लिंग को मेरी योनि मे डाल दिया. मैं उस
गंदे संभोग की कल्पना करके ही कांप जाती हूँ."

"चलो ड्रेसिंग हो चुकी है अब तुम उठ कर कपड़े पहन लो." मैं
वहाँ से मूड कर जाने लगा तो उसने अपने हाथ से मेरे हाथ को पकड़
लिया.

वो उसी अवस्था मे उठ कर बिस्तर पर बैठ गयी. और मेरे हाथ को
पकड़ कर अपनी ओर खींचा जब मैं अपनी जगह से नही हिला तो
खींचाव के कारण वो उठ कर मेरे सीने से लग गयी. और मेरे चेहरे
को अपने हाथो से थाम कर मेरे होंठों को चूम लिया.

"ये ये तुम क्या कर रही हो?" मैं हड़बड़ा गया.

" तुम...." कहकर अपनी जीभ को काट लिया " आप बहुत अच्छे हैं."
कहकर उसने अपनी नज़रें झुका डी.

" अनु तुम अभी होश मे नही हो. अपने साथ हुए उस हादसे की वजह से
तुम्हारा दिमाग़ काम नही कर रहा है. तुम अभी भूखी हो पहले
हम दोनो के खाने का कुच्छ इंतेज़ाम करें."

" तुम अकेले कैसे रह लेते हो. मुझे तो सारा घर काटने दौड़ता है.
तुम्हे कभी औरत की ज़रूरत महसूस नही होती."

" अनुराधा" मैने बात को ख़त्म करना चाहा.

" इसमे शर्म की क्या बात है. ये तो जिस्मानी ज़रूरत है किसी को भी
महसूस हो सकती है. मैं तो सॉफ कह सकती हूँ कि मुझे तो ज़रूरत
महसूस होती है किसी मर्द की. लेकिन ऐसे नही...." उसने कुच्छ सोचते
हुए कहा " ऐसा मर्द जो मुझे ढेर सारा प्यार दे. और कुच्छ नही
चाहिए मुझे."

"चलो उठो अब तुम बहकने लगी हो." मैने हाथ पकड़ कर उसे उठाया
तो वो मेरे बदन से सॅट गयी. उसके बदन की गर्मी से मेरे पूरे
बदन मे एक झुरजुरी सी दौड़ गयी. हम एक दूसरे की आँखों मे
आँखें डाल कर समय को भूल गये. कुच्छ देर बाद वो अपनी नज़रें
झुका कर किचन मे चली गयी. मैं उसके पीछे पीछे जाने लगा
तो उसने मुझे रोक दिया.

" ये मर्दों की जगह नही है. आप आराम कीजिए मैं कुच्छ ना कुच्छ
बना लेती हूँ" कहते हुए उसने मेरी नाक को पकड़ कर कुर्सी की तरफ
धकेल दिया. मैं बैठ गया और उसे निहारने लगा. वो इठलाती हुई
किचन मे चली गयी.












आपका दोस्त राज शर्मा
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj

























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