Saturday, June 5, 2010

अनु की मस्ती मेरे साथ पार्ट--२

अनु की मस्ती मेरे साथ पार्ट--२


मैं सोचने लगा अभी कुच्छ ही देर की मुलाकात है. मैं नीरस और
मरियल सा आदमी मुझमे ऐसा क्या देख लिया इसने कि ऐसी कोई हूर मेरी
झोली मे आ टाप्की. मैं अभी तक विस्वास नही कर पा रहा था कि मेरी
किस्मत इस तरह भी पलटा खा सकती है. मैं इस सुंदर औरत से मन
ही मन प्यार करने लगा हूँ.

मैं उठा और शेल्फ मे छिपाकर रखे विस्की के बॉटल को निकाला.
लेकिन तभी याद आया कि रोज की तरह आज मैं अकेला नही हूँ. मैं
किचन मे आया अनुराधा रोटी बनाने मे व्यस्त थी.

" मैं अगर एक आध पेग ले लूँ तो तुम कुच्छ ग़लत तो नही सोचोगी?"
मैने झिझकते हुए पूचछा.

" अच्च्छा तो आप इसका भी शौक रखते हैं?"

"नही नही ऐसी बात नही वो तो मैं कभी..कभी."

" कोई बात नही आप शौक से लीजिए. मुझे आपकी किसी बात से कोई
इत्तेफ़ाक़ नही है." उसने कहा.

मैं एक ग्लास लेकर दो पेग विस्की उसे निहारते हुए सीप किया. तब तक
उसने रोटी और दाल बना ली थी. हम दोनो ड्रॉयिंग रूम मे बैठ कर
खाने लगे. खाना खाने के बाद मैने उसे कहा

" अनुराधा तुम बेडरूम मे सो जाओ."

"और आप?" उसने पूचछा.

" मेरे लिए तो यही कमरा बचा. मैं यहाँ सोफे पर सो जाउन्गा." मैने
कहा.

" आप यहाँ कैसे सोएंगे. बेडरूम मे ही आ जाओ ना." उसने मेरी आँखों
मे झाँक कर कहा.

" कोई बात नही रात के दो बज चुके हैं अब सूरज उगने मे टाइम ही
कितना बचा है." मैने कहा और उसे बेड रूम मे ले गया.

" दरवाजा अंदर से बंद कर लो" मैने कहा

" जी मुझे यहाँ डरने लायक कोई चीज़ दिखाई नही दे रही है जो मैं
दरवाजा बंद करूँ." कहकर वो बेडरूम मे चली गयी. मुझे उसके
लहजे से लगा कि वो शायद चिढ़ गयी है.

मैं कुच्छ देर तक सोने की कोशिश करता रहा लेकिन नींद नही आ रही
थी. बगल के कमरे मे कोई खूबसूरत सी महिला सो रही हो तो मुझ
जैसे अकेले आदमी को नींद भला कैसे आ सकती है. बरसात तेज हो
गयी थी. इस कमरे का एक दरवाजा बाल्कनी मे खुलता है. उसे खोल कर
मैं बाहर निकला तो कुच्छ राहट महसूस हुई. मैं अंधेरे मे ज़मीन पर
गिरती बूँदों को देखता हुआ काफ़ी देर तक रेलिंग के सहारे खड़ा
रहा. अचानक मुझे लगा कि वहाँ मैं अकेला नही हूँ. किसीकि गर्म
साँसें मेरे गर्दन के पीछे महसूस हुई. अचानक उसने पीछे से
मुझे अपनी आगोश मे भर लिया.

"नींद नही आ रही है?" मैने पूचछा.

" हां.." उसने कहा " तुम भी तो जाग रहे हो."

" ह्म्‍म्म्म"

" क्या दीदी की याद सता रही है?" उसने मेरी पीठ पर अपनी नाक गढ़ा
दी " दीदी बहुत सुंदर थी ना?"

" तुम्हे कैसे मालूम?"

" मैने उनकी तस्वीर देखी है. जो बेडरूम मे लगी हुई है." उसने कहा

" अनु तुम ये क्या कर रही हो. मैं...."

" मुझे मालूम है कि मैं क्या कर रही हूँ. और मुझे इसका कोई अफ़सोस
नही है." उसके हाथ अब मेरे बालों से भरे सीने पर घूम रहे
थे " चलो ना मुझे बहुत नींद आ रही है."

मैं हंस दिया उसकी बात सुनकर. " तुम्हे नींद आ रही है तो जा कर सो
जाओ ना."

" नही मैं तुम्हारे बिना नही सो-उंगी वहाँ. मुझे डर लग रहा है."

" ओफफो किस बात का डर. मैने कहा ही तो था कि दरवाजा लॉक करलो"

" मुझे किसी और से नही अपने आप से डर लग रहा है." कहकर वो
मेरे सामने आ गयी और मुझ से लिपट कर मेरे होंठों पर अपने होंठ
रख दिए " चलो ना....चलो ना....प्लीज़"

वो किसी बच्चे की तरह ज़िद करने लगी. मेरी बाँह को अपने सीने मे
दबा कर अंदर की ओर खींचने लगी. इससे उसके ब्रेस्ट मेरे बाँहो से
दब रहे थे. मैने देखा कि वो किसी तरह भी मानने को तैयार नही
है तो हारकर उसके साथ अंदर चला गया. बाल्कनी के दरवाजे को कुण्डी
लगा कर वो मुझे लगभग खींचती हुई बेड रूम मे ले गयी.

" दोनो यहीं सोएंगे. इसी बिस्तर पर." उसने कहा

" लेकिन मैं एक पराया मर्द जो अभी कुच्छ घंटे पहले तुम्हारे लिए
एकद्ूम अपरिचित था. कहीं रात के अंधेरे मे मैने तुम्हारे साथ
कुच्छ कर दिया तो?" मैने अपने को उसकी जकड़न से छुड़ाने की कोशिश
की लेकिन उल्टे मेरी बाँह पर उसकी पकड़ और ज़्यादा हो गयी.

" पराया मर्द. तुम पराए मर्द हो? तुम्हारे साथ कुच्छ घंटे गुजारने
के बाद अब तुम मेरे लिए पराए नही रहे." उसने अपना सारा बोझ ही
मेरे उपर डाल दिया " तुम अंधेरे का फ़ायदा उठा कर कुच्छ करना
चाहते थे ना? तो करो...करो तुम क्या करना चाहते थे. मैं कुच्छ भी
नही कहूँगी."

मैं उसकी बातों को सुनकर अपनी थूक को गुटाकने के अलावा कुच्छ भी
नही कर सका.

" राघव साहब किसी पराई औरत के साथ कुच्छ करने के लिए इतना
बड़ा जिगर चाहिए. वो तो साले मुझसे चार गुना थे नही तो मैं उनको
छ्टी का दूध याद दिला देती. बैठो यहाँ." कह कर उसने मुझे
बिस्तर पर धकेल दिया.

फिर जो हुआ उसकी मैने कल्पना भी नही की थी. उसने एक झटके मे
सबसे पहले अपने बालो को जकड़े हुए \क्लिप को खोल कर फेंक दिया.
फिर एक झटके से अपनी लूँगी उतार कर फेंक दी. उसका निचला बदन
बिल्कुल नग्न हो गया.. मैं अवाक सा बिस्तर पर बैठा रहा. मेरी समझ
मे नही आ रहा था कि मुझे क्या करना चाहिए. उसने अपनी एक टांग उठा
कर मेरे सीने पर रख कर हल्के से धक्का दिया. इस धक्के से मैं
बिस्तर पर गिर पड़ा. उसका एक पैर ज़मीन पर था और एक मेरे सीने
पर. इससे उसकी योनि सॉफ दिखने लगी. उसने इसी तरह खड़े रहकर एक
एक करके अपनी शर्ट के सारे बटन्स खोल दिए. फिर शर्ट को अपने
बदन से उतार कर दूर फेंक दिया. अब वो हुष्ण की परी बिल्कुल नग्न हो
चुकी थी.

फिर वो कूद कर मेरे उपर बैठ गयी. उसने मेरे शर्ट के बटन खोल
कर उसे बदन से हटा दिया. अंदर मैने कुच्छ नही पहन रखा था.
मेरे नग्न सीने को देख कर वो चहक उठी.

" म्‍म्म्मम ये हुई ना मर्दों वाली बात क्या सेक्सी सीना है." वो मेरे सीने
पर उगे घने बालों मे अपना चेहरा रगड़ने लगी.

"क्या कर रही हो? तुम पागल हो गयी हो क्या?" कहकर मैने उसे ज़ोर से
धक्का दिया. वो ज़मीन पर गिर पड़ी. " तुम शादी शुदा हो इस तरह
का व्यवहार तुम्हे शोभा नही देता."

"हाआँ...... हाआ... ....मैं पागल हो गयी हूँ. मैं पागल हो गयी
हूँ...." उसने वापस बिस्तर पर सवार होते हुए कहा " तुमने ये घाव
देखे हैं. जिस्म के अंदर का जख्म नही देखा. तुम क्या जानो बलात्कार
क्या होता है. तुम मेरी जगह होते तो तुम्हे पता चलता. तुम भी यही
करते जो मैं कर रही हूँ." कहते हुए उसने मेरे सिर को अपने
छातियो से सटा लिया.

"देखो सूंघ कर मेरे जिस्म के हर इंच से उन हरामी आदमियों की बू आ
रही है. मैं इस बदबू से पागल हो जाउन्गि. मुझे इससे बचा लो मेरे
जिस्म के हर रोएँ मे अपने बदन की सुगंध भर दो.
प्लीईएसस्स.. ....प्लीईससी मुझे प्यार करो. मुझे. मेरे बदन को
अपने बदन से धक लो." कहकर वो रोने लगी. मुझे समझ मे नही आया
की मैं क्या करूँ.

"अरे...अरे.. ..रो क्यों रही हो?" मैने उसके नग्न बदन को अपनी बाहों
मे भर लिया.

" मैं टूट चुकी हूँ.....मुझे बचालो नही तो मैं कुच्छ कर
बैठूँगी. वो....वो मेरा मरद होकर भी नमार्द है साला. अपनी बीवी
को कुत्तों के हवाले छ्चोड़ कर भाग गया. किस बात की शादी शुदा?
थू...."

मैं उसके चेहरे को अपने हाथों मे थाम कर चूमने लगा. उसके होंठों
को, उसकी पलकों को, उसके कानो को, उसके गले को मेरे होंठों से नापने
लगा. वो काफ़ी देर तक सुबक्ती रही मेरे हाथ पहले उसके बालों मे फिर
रहे थे.. फिर उसे शांत होता देख मैं उसके स्तानो को प्यार से सहलाने
लगा. वो भी मेरे होंठों को बुरी तरह चूम रही थी. दोनो ही सालों
से सेक्स के भूखे थे. दोनो एक दूसरे की प्यास बुझाने की कोशिश मे
लगे हुए थे. जैसे ही हम दोनो के बदन अलग हुए हम दोनो एक
दूसरे के नग्न बदन को निहारने लगे.

"प्लीज़... ये ट्यूबलाइज्ट बूँद कर दो. मुझे शर्म आती है." उसने अपना
चेहरा शर्म से झुका लिया.

"एम्म्म...अचहचाअ .......आपको शर्म भी आती है?"

" धात....मज़ाक मत करो" मैने उठ कर ट्यूब लाइट ऑफ करके बेडलांप
ऑन कर दिया. उसने मेरे उपर लेटते हुए मुझे बिस्तर पर लिटा दिया.
फिर मेरी टाँगों के पास बैठ कर मेरे एक टाँग को अपने हाथों से
उठाया और उसके अंगूठे को मुँह के अंदर लेकर चूसने लगी. उसके
होंठ मेरे पैरों पर फिरने लगे. उफ़फ्फ़ ऐसा प्यार मैने करना तो दूर
किसी पिक्चर मे भी नही देखा था. मेरे पैरों की एक एक उंगली को
अपनी जीभ से गीला करने के बाद उसने मेरी एडी पर हल्के हल्के से
दाँत गाड़ने शुरू कर दिए.. उसकी जीभ मेरी पिंदलियों पर से होते
हुए मेरे घुटनो की ओर बढ़े. जगह जगह पर रुक कर उसके दाँत
हरकत करने लगते थे. मेरे पूरे बदन मे सिहरन सी दौड़ जाती थी.
मैं अपनी उंगलियाँ उसके बालों मे फिरा रहा था. उसके होंठ और जीभ
घुटनो के उपर विचारने लगे. मेरा लिंग काफ़ी देर से कड़क रहने के
कारण दुखने लगा था. उसे अब सिर्फ़ किसी चूत का इंतेज़ार था.

उसके होंठ मेरी जांघों के उपर फिरने लगे. उसके स्तन मेरे पैरों की
उंगलियों को छू रहे थे. मैं अपने पैरों की उंगलियों से उसके
निपल्स को च्छू रहा था. उसने मेरे लिंग को अपनी मुट्ठी मे भर लिया.
और हल्के हल्के से अपने हाथ से उसको सहलाने लगी. उसका मुँह अब मेरे
लिंग की जड़ पर था.. उसने मेरे लिंग को अपने हाथों मे पकड़ कर मेरे
लंड के नीचे लटकते दोनो गेंदों को जीभ से चाटना शुरू किया.
बीच बीच मे वो उनको अपने मुँह मे भर लेती, उनको अपने होंठों से
चूमती. फिर उसके जीभ मेरे खड़े लंड पर नीचे से उपर तक फिरने
लगे. उसने अपने हाथों से मेरे लंड को आज़ाद कर दिया था. बिना किसी
सहारे के भी लंड बिल्कुल तन कर खड़ा था. वो अपनी जीभ को पूरे
लंड पर फिरा रही थी. फिर वो उठ कर मेरे उपर आकर मेरे होंठों को
चूम कर बोली.

" मुझे इसे मुँह मे लेकर प्यार करने दो."

मैने मुस्कुरा कर उसको अपना समर्थन दिया. उसने मेरे लिंग को जितना
हो सकता था अपने मुँह मे भर लिया. उस अवस्था मे उसकी जीभ मुँह के
अंदर भरे हुए मेरे लिंग पर अपने रस की परत चढ़ा रही थी. मैं
उत्तेजना मे सिहर रहा था. इस अंजान औरत ने आज मुझे पागल बना
कर रख दिया था. मैने उसके सिर पर अपनी उंगलियाँ फेरनी शुरू कर
दी.

काफ़ी देर तक मेरे लंड को तरह तरह से चूसने के बाद वो मेरे
कमर पर बैठ गयी.

"इन्हे चूसो. ये तुम्हारे हाथों के लिए तुम्हारे होंठों के लिए तरस
रहे हैं." कहकर उसने अपने स्तन मेरे होंठों पर च्छुआ दिए. मैने
अपना मुँह खोल कर उसके निपल को अपने मुँह मे भर लिया और हाथों
से उसके स्तन को मसालते हुए उसके निपल को ज़ोर ज़ोर से चूसने लगा.

" आआह्ह्ह हाआअन्न्न्न आयावुववुवररररर जूऊओररर सीई हाआनन्न कययायेट
डलूऊओ डाआंतूओन से काअट डलूऊ ईईए सीईईईईईइईर्रफफ़्फ़
तुम्हरीईए लिईए हैन्न जूओ म्बीर्जियीयियी करूऊ."

काफ़ी देर तक अपने दोनो स्तानो को चुसवाने के बाद उसने अपने कमर को
उठाया.

" मेरे हुमदूम, मेरा बदन अपने इस प्यारे लिंग की फुआहर से सूद्ढ़ कर
दो. उन हरमजदों की चुदाई से उनके होंठों की बास से उस गंदे कुत्ते
के लिंग ने मेरे बदन को कचरे की टोकरी की तरह इस्तेमाल किया है.
मेरे नथुनो से वो बदबू हटा कर सिर्फ़ अपने बदन की अपने पसीने की
सुगंध इसमे भर दो. मैं तुम्हारी गुलाम बन कर रहूंगी लेकिन मुझे
इससे छुट-कारा देदो." कह कर उसने मेरे कमर के उपर बैठ कर मेरे
लिंग को अपने हाथों से पकड़ा.

"इसे मेरी योनि मे डाल कर मुझे बुरी तरह चोदो." कहकर उसने अपनी
कमर को उठाया फिर उसने मेरे खड़े लिंग को एक हाथ से पकड़ कर
सीधा किया और दूसरे हाथ की उंगलियों से अपनी चूत की फांकों को
अलग कर मेरे लंड के स्वागत मे उन्हे चौड़ा किया. फिर दोनो हाथों की
मिली भगत से मेरे लिंग के सूपदे को अपनी चूत के बीचे मे सेट कर
के अपनी चूत को सम्हलने वाले हाथ को अलग करके अपने सिर को उठाया.
मेरी आँखों मे झँकते हुए उसके चेहरे पर एक विजयी मुस्कान आई
और उसने अपनी कमर को एक तेज झटके से नीचे छ्चोड़ दिया. मेरा लिंग
उसकी चूत की दीवारों की चूमता हुआ अंदर तक धँस गया. उसके मुँह
से एक "आआहह" निकली और वो मेरे लिंग पर बैठ गयी थी.

" उम्म्म्म बहुत प्यारा है ये. अब सारी जिंदगी इसी की बन कर
रहूंगी." कह कर वो मेरे उपर लेट गयी. और बेतहासा मेरे होंठों
को मेरे मुँह को मेरे गालों को चूमने लगी. मैं उसकी नग्न पीठ को
सहला रहा था. उसके रीढ़ की हड्डी के आस पास उत्तेजना और गर्मी से
पसीना छलक आया था. फिर उसने मुझे जम कर चोदना शुरू कर दिया.
करने के लिए मेरे पास कुच्छ नही था. मैं बस नीचे लेते लेते
उसकी चुदाई को एंजाय कर रहा था. कुच्छ देर तक इसी तरह चोदने के
बाद वो चीख उठी, "आआआअहह म्‍म्म्माआआ ह्म्‍म्म्म...उफफफफ्फ़" और
उसका रस मेरे लिंग को भिगोते हुए नीचे की ओर बहने लगा. वो
पसीने से लटपथ मेरे सीने पर लुढ़क गयी. वो मेरे सीने पर
लेते लेते ज़ोर ज़ोर से साआंसें ले रही थी. मैं समझ गया कि वो थक
गयी है. अब कमान को मेरे हाथ मे लेना पड़ेगा.

मैने उसको उठाकर सीधा किया फिर उसे बिस्तर पर लिटा कर उसे उपर
से चोदने लगा. उसके नाख़ून मेरी पीठ पर गड़ गये थे. उनसे शायद
हल्का हल्का खून भी रिस रहा था. उसके पैर मुड़े हुए उसकी कमर को
मेरे धक्कों से मिलाने के लिए हवा मे उच्छल रहे थे. मैं भी उसकी
चूत को आज फाड़ देने के लिए ज़ोर ज़ोर से धक्के मार रहा था. कुच्छ
देर बाद उसने मेरे कमर को अपने टाँगों की कैंची बनाकर उसमे
दबोच लिया और उसका इसी तरह दोबारा स्खलन हो गया. मैने और कुच्छ
देर तक धक्के मार कर जब देखा कि मेरा स्खलन होने वाला है तो
अपने लिंग को बाहर खींचना चाहता था मगर उसने अपनी टाँगों को
सख्ती से मेरे कमर के उपर दबा कर मेरे लिंग को अपनी चूत से बाहर
जाने से रोका. इस अवस्था मे मैं घुटने के बल सीधा हो गया और उसकी
कमर मेरे लिंग से सटी हुई बिस्तर से डेढ़ फुट उपर उठ गयी थी.

" नही मेरी योनि मे ही डालो अपना रस. मुझे भर दो. मेरे पेट पर
अपना हक़ जमालो. उस गंदे पानी को निकाल बाहर कर दो." कह कर उसने
मेरी गर्दन पर अपनी बाँहें डाल कर बिस्तर से अपने पूरे बदन को
उठा दिया. मैने ढेर सारा वीरया पिचकारी के रूप मे उसकी योनि मे
भरने लगा. उसका भी स्खलन साथ साथ हो गया वो चीख रही
थी, " हाआअंन्न हाआँ . ओफफफफ्फ़ भाआर्र दूऊऊ मुझीईए
प्लीईईए.हाआआं इथनाआ डाअलो कीईईईई बाआहार्र ताक छलक
कर गिरीईए. मेरे पूऊरे बदन पर्रर लीईएप चधदूओ अप्नाआ"

मैं अपने लिंग को उसकी योनि के अंदर ज़ोर से दबाए हुए था. जब तक
मेरा लिंग ढीला हो कर सिकुड नही गया अनु ने मुझे छ्चोड़ा नही.
जैसे ही उसने अपनी टाँगों का कसाव कम किया उसका बदन बिस्तर पर गिर
गया और मैं उसके उपर. उसने मुझे अपनी बाहों के घेरे मे क़ैद कर के
बेतहासा चूमने लगी.

"मेरा ये बदन आज से आपका है. मैं आपकी बीवी भले ही नही हू
लेकिन आपकी गुलाम ज़रूर रहूंगी. आपका पूरा हक़ है मेरे उपर. जब
भी बुलाओगे दौड़ी चली ओंगी." उसने मुझे चूमते हुए कहा.

हम दोनो एक दूसरे से लिपटे हुए कुच्छ देर लेते रहे. फिर वो झपट
कर उठी और मुझे चित करके लिटा कर मेरे लिंग को सहलाने लगी.

"क्या हुआ? मन नही भरा क्या?" मैने पूचछा.

"न्न्ना इतनी जल्दी किसी का मन भरेगा क्या इतने प्यारे लिंग से"

"अनु अब मैं 30 साल का गबरू जवान नही हूँ जो दिन भर खड़ा करके
घूमता रहूँगा. लगता है अबसे मुझे दवाई लेनी पड़ेगी लिंग को
खड़ा रखने की."

" दवाई की ऐसी की तैसी. इस मोटे घोड़े जैसे लिंग को किसी दवा की
क्या ज़रूरत. मेरी तो जान निकाल कर रख दी. दवाई तो आपको नही
मुझे लेनी पड़ेगी नही तो पेट फूला दोगे किसी दिन" उसने कहते हुए
मेरे लिंग को अपने मुँह मे भर लिया और जीभ से उसे सहलाने लगी.
मैं चुपचाप लेता हुआ उसकी हरकतों को निहारने लगा. मुझे भी बहुत
प्यार आ रहा था लेकिन फिर भी वो एक पराई औरत थी. मैं भले ही
अकेला था लेकिन उसका तो हज़्बेंड जीवित था. इसलिए मैं शुरू से ही
उसकी निकट ता से थोड़ा घबरा रहा था. मुझे मालूम था कि इसका अंत
बिस्तर पर ही होना था. लेकिन वो सब कुच्छ भूल चुकी थी. और मुझे
अपने प्रेमी के रूप मे देख रही थी. मेरे हाथ उसकी नग्न पीठ को
सहला रहे थे. मेरा चेहरा उसके बालों के पीछे उसका चेहरा छिप गया था.
मैने उसे अपने हाथों से सामने से हटा दिया जिससे चाँद ओझल ना हो
सामने से. कुच्छ ही देर मे मेरा लिंग वापस हरकत मे आने लगा. वो
अपने सूजे हुए निपल्स को मेरे लिंग से च्छुआ रही थी. बीच बीच मे
उसका चेहरा दर्द से विकृत हो जाता लेकिन अगले ही पल वो दुगने जोश से
अपनी हरकतें जारी रखती.

" अनु अब बस करो तुम्हे दर्द हो रहा है."

" होने दो दर्द.मार जाने दो मुझे. मगर मुझे रोको मत. आज उन
हरमियों ने मेरे अंदर की दबी हुई आग को हवा दी है. मुझे आअज
इतना थका दो कि हिलना भी मुश्किल हो जाए."

वो मेरे दोबारा खड़े लिंग के उपर चूमती हुई उठी और अपने दोनो
पैरों को फैला कर मेरे लिंग के उपर अपनीचूत को रख कर मुझ पर
बैठ गयी.

"मेरे प्यारे बलम अब मुझे एक बार जम कर चोद दो. मुझे मसल कर
रख दो." कह कर उसने अपने पैरों को मोड और मेरे सीने के उपर
अपने दोनो हाथ रख कर मेरे लिंग पर उठने बैठने लगी. ज़ोर ज़ोर से
उठने बैठने के कारण उसकी बड़ी बड़ी गेंदें उच्छल उच्छल जा रही
थी. उसका सिर पीछे की ओर धूलका हुआ था और वो ज़ोर ज़ोर से आहें
भर रही थी. मैं उसकी चूचियो को बहुत प्यारसे सहला रहा था.

अब तो मैं भी पूरी तरह गर्म हो चुका था. मैं इतना भी बूढ़ा अभी
नही हुआ था कि किसी सेक्स मे पागल औरत को संतुष्ट ना कर सकूँ.
जब मैने देखा कि वो थक चुकी है और उसके धक्कों मे धीमपन आ
चुका है तो मैने उसे अपने उपर से किसी गुड़िया की तरह उठाया और
उसे अपनी बाहों मे लेकर बाथरूम मे घुस गया. मैने शवर ओन कर
दिया और उसे शवर के नीचे दीवार का सहारा लेकर खड़ा किया और
पीछे से धक्के देने लगा. पानी की बूँदें हम दोनो के शरीर को
चूम कर मोतियों की तरह ज़मीन पर फिसल कर गिर रही थी. मैं
काफ़ी देर तक उसे यूँ ही चोद्ता रहा फिर उसने नीचे घुटनो के बल
बैठ कर मेरे लिंग को खींच कर अपने अंदर कर लिया. हम दोनो इसी
तरह कुच्छ देर तक चुदाई करते रहे.

हम दोनो उठे मैने शवर ऑफ कर उसके जिस्म को तौलिए से पोंच्छा.
उसने भी मेरे पुर बदन को तौलिए से पोंच्छ दिया. फिर हम वापस
आने लगे लेकिन वो अपनी जगह से नही हिली. मैने बिना अपनी ज़ुबान को
दर्द दिए उससे इशारों से पूचछा. तो वो लपक कर वापस मेरी बाहों
मे आ गयी और मुझे उसके बदन को गोद मे उठाने का इशारा करने
लगी. मैने उसे वापस गोद मे लेकर बेडरूम मे लाकर सुला दिया.

फिर मैं उसके बदन के उपर लेट गया और अपना चेहरा उसकी योनि पर
रख दिया. इस पोज़िशन मे मेरा लिंग अनु के मुँह के सामने था. उसने
इस मौके को खुशी खुशी लपक लिया. हम दोनो एक दूसरे को चूम और
चाट रहे थे. दोनो की ले ऐसी थी. जब मेरी कमर उपर उठती तो
उसकी कमर नीचे होती फिर एक साथ दोनो एक दूसरे के मुँह पर वॉर
कर देते. साथ साथ हम एक दूसरे के बदन को भी सहलाते जा रहे
थे. इस हरकत ने वापस हम दोनो के बदन मे आग भर दी थी. काफ़ी
देर तक एक दूसरे के अंगों से प्यार करने के बाद हम अलग हुए.
उत्तेजना से उसका चेहरा लाल हो रहा था. फिर मैं उठा और उसे बिस्तर
पर लिटा कर उसकी टाँगों को अपने कंधे पर रख लिया. हम दोनो एक
दूसरे की आँखों मे झँकते रहे और मैने अपने लिंग को अंदर कर
दिया. उसने मेरे गले मे अपनी बाहों का हार पहना दिया. मैं कुच्छ देर
तक इसी तरह धक्का मारने के बाद उसने अपने पैरों को मेरे कंधे से
उतार कर एक दूसरे से भींच लिया. मेरे पैर अब बाहर की ओर थे.. इस
पोज़िशन मे उसकी योनि के मसल मेरे लिंग पर कस गये और वो ज़ोर
ज़ोर से नीचे की ओर से अपनी कमर को हिलाने लगी.

" राघव प्लीईसए मेरे साथ अपना निकालो. हम दोनो के रसों का
संगम हो जाने दो." उसने पहली बार मुझे नाम लेकर पुकारा था. हम
दोनो एक साथ उस छ्होटी सी जगह मे अपनी अपनी धार छ्चोड़ दिए.

हम दोनो एक दूसरे के बदन को काफ़ी देर तक चूमते रहे. तभी बाहर
चिड़ियों की आवाज़ ने हमे असलियत से वाक़िफ़ कर दिया. सुबह होने वाली
थी. हम दोनो ने रात भर बस एक दूसरे को प्यार करते गुज़ार दी
थी.

"अनु सुबह होने वाली है." मैने उसे याद दिलाया.

"म्‍म्म्ममम हो जाने दो."

"किसी ने तुम्हे यहाँ देख लिया तो?"

" देख लेने दो. मुझे अब इस दुनिया मे किसी की कोई परवाह नही है."
उसने मुझे चूमते हुए कहा.

"किसी ने पूछ लिया तो क्या कहोगी?"

"कह दूँगी की मैं ..मैं .मैं तुम्हारी बीवी हूँ" कहकर उसने अपना
चेहरा मेरे सीने मे छिपा लिया.

"अनु ख़यालो से बाहर निकालो. तुम किसी और की बीवी हो." मैने उसे
समझाते हुए कहा.

"नही अभी मेरा मन नही भरा है. अभी तो बहुत प्यार करना है
तुमको और बहुत प्यार पाना है."

" धीरज रखो अनु सारा आज ही कर लोगि तो कल के लिए क्या बचेगा"

अनु को अंधेरे अंधेरे मे घर से निकल जाना था. उस का मन नही चाह
रहा था. लेकिन मैने उसे समझाया कि हम दोनो अकेले हैं किसी ने इस
हालत मे देख लिया तो दोनो की बदनामी होगी.

उसने मेरे ही कपड़े पहन लिए.

"चलो मैं तुम्हे घर तक छ्चोड़ आता हूँ." मैने कहा

"नही...कोई ज़रूरत नही. हम दोनो मे क्या रिश्ता है. रात गयी बात
गयी. हुमारे मिलने को एक दुर्घटने की तरह भुला देना." कह कर वो
अपने निचले होंठ को दन्तो मे दबाकर अपनी रुलाई रोकती हुई कमरे से
निकली.

"फिर कब मिलॉगी." मैने धीरे से पुकारा. उसके उठते हुए पावं
अचानक रुक से गये. कुच्छ देर यूँ ही खड़ी रहने के बाद उसने
पीछे मूड कर देखा तो अपनी रुलाई नही रोक सकी. और रोते हुए दौड़
कर मेरे गले लग गयी.

"रोक लो ना मुझे मैं कहीं नही जाना चाहती" लेकिन मैने उसे धीरज
दिलाया कि हम अक्सर मिलते रहेंगे. वो अपने आँसू पोंचछति हुई चली
गयी. मुझे लगा मानो मेरा एक हिस्सा मुझसे अलग हो गया.

लेकिन वो नही आई. मैं रोज सुबह उम्मीद लेकर उठता कि शायद आज उस
से मुलाकात हो जाएगी. जब प्रेस से वापस आता तो लगता कि वो दरवाजे
पर खड़ी मिल जाएगी. मगर वो नही आई. मैने उसको आस पास हर
जगह खोजा लेकिन कहीं भी उसकी झलक नही मिली. धीरे धीरे दो
हफ्ते गुजर गये. मेरी उम्मीद भी दम तोड़ती जा रही थी. आज सुबह से
ही मन मचल रहा था. रह रह कर उसकी याद आ रही थी. प्रेस मे
भी मन नही लगा. तबीयत खराब होने का बहाना करके प्रेस से चला
आया.. घर भी काटने को दौड़ रहा था इसलिए घर नही गया बस यूँ ही
इधर उधर बाइक घुमाता रहा. इधर उधर घूमते हुए कुच्छ देर बाद
उसी पार्क मे पहुँचा जहाँ हुमारी पहली मुलाकात हुई थी. आज वहाँ
काफ़ी रश था. हर बेंच पर हर झाड़ी के पीछे जोड़े बिखरे पड़े
थे. काश वो होती तो मैं भी.............

अचानक एक 20-22 साल की लड़की मेरे सामने आ गयी.

" ए चलता क्या?" मैने उसकी तरफ देखा. उसने अपना पंजा सामने किया "
पाँच सौ लूँगी पूरी रात का. अगर जगह की प्राब्लम हो तो वो
इंतेज़ाम मैं करवा देगी. लेकिन उसका अलग चार्ज लगेगा. बोल क्या सोचता
रे तू?"

मैने उसे उपर से नीचे तक देखा. उसके चेहरे पर मुझे अनु नज़र आ
रही थी. मैने उसको धीरे से कहा, "चल"

वो मेरे पीछे पीछे हो ली. हम दोनो बाहर खड़ी मेरी बाइक पर
बैठ कर घर की ओर चले. रात के नौ बज रहे थे. मैने रास्ते मे
दो आदमियों का खाना पॅक कराया और उसे लेकर घर पहुँचा. मेरे
फ्लोर पर अंधेरा हो रहा था. मैं उसका हाथ पकड़ कर सीढ़ियाँ
टटोलते हुए उपर पहुँचा. मैने लाइट ऑन करने के लिए हाथ बढ़ाया
तभी पैर किसी से टकराया. कोई वहाँ ज़मीन पर पड़ी थी.

"कौन सीसी.कौन कहते हुए मैने लाइट ऑन कर दी. ज़मीन से उठते हुए
सख्स पर जैसे मेरी नज़र पड़ी तो मेरा दिल धड़कना भूल गया.

"तुम आप आ गये." अनु ने आँखें मलते हुए पूचछा. मेरे साथ खड़ी
उस लड़की को देख कर पूछा, "ये?"

मेरी तो ज़ुबान बंद हो गयी. क्या जवाब दूं.

" मैं इसके साथ आई हूँ. पूरे पाँच सौ मे बात तय हुई है."
उसने लड़की ने कहा.

" क्याआ? तू रांड़ है?"

"कुच्छ भी समझ ले. वैसे तू बता तू कौन है?" उसने अनु से पूचछा

"साली दो टके की औरत मुझसे पूछती है कि मैं कौन हूँ. मैं
इसकी बीवी हूँ. बता इसे कह कर अनु मेरी ओर मूडी. फिर उसको बाल
पकड़ कर धक्का देते हुए कहा " चल भाग ले यहाँ से नही तो मार
डालूंगी."

"मेरा पैसा" उसने कहा तो अनु ने अपने ब्लाउस से कुच्छ नोट निकाल कर
पाँच सौ का नोट उसे दिया और धक्के दे कर उसे वहाँ से भगा दिया.

" और आप वो उसके जाते ही मेरी ओर मूड कर बोली " आपका वो हथियार
कुच्छ ज़्यादा ही ज़ोर मार रहा है लगता है. कुच्छ दिन के लिए मैं क्या
नही आई कि आप रांडों के पास जाने लगे"

मैं एक खिसियानी सी हँसी देकर चुप रह गया . वो मुझे लगभग
खींचते हुए घर के अंदर ले गयी. अंदर घुसते ही दरवाजे को
बंद कर के संकाल लगा दी और उससे अपनी पीठ सटा कर खड़ी हो
गयी. उसने एक झटके मे अपनी साडी के आँचल को अपनी चूचियो से
हटाया.

" क्यों मॅन इतनी जल्दी मन भर गया क्या इनसे?" उसने मुझे घूरते
हुए कहा. फिर एकद्ूम ही उसके चेहरे के भाव बदल गये और मेरी ओर
अपनी बाँहें फैला कर मुझे अपनी बाँहों मे आने क्या न्योता दिया. मैने
एक कदम उसकी ओर बढ़ाया तो वो दौड़ते हुए मुझ से लिपट गयी. फिर
तो दोनो के होंठ एक दूसरे पर ऐसे रगड़ने लगे मानो जन्मो के
भूखे हों.

"कहाँ थी तू?" मैने उससे पूचछा.

"वो मुझ से अलग हो गयी ."
वो आ गया था
"कौन?" मैने पूचछा

"मेरा पति और कौन. उस दिन मैं घर पहुँची ही थी कि वो आया. उसने
दूसरी बीवी रख ली थी. गुजरात मे कहीं रह रहा था. हम दोनो
अच्छे महॉल मे अलग हो गये. वो अपनी बीवी के साथ आया था. उसकी
बीवी अच्छि थी. मैने उनसे अलग होने का फ़ैसला तो यहीं कर लिया
था. सो हम अलग हो गये.. मैने अपने सारी जमा पूंजी समेटी और उस
मोहल्ले को अलविदा कह दिया. अब मैं यही रहूंगी. तुम्हारे पास.
करोगे मुझसे शादी?"

मैने उसके होंठ अपने होंठों से बंद कर दिए. वो मेरा मतलब समझ
गयी थी तभी तो बोली, " मंदिर तो सुबह चल्लेंगे. सुहाग रात तो
कम से कम अभी मना लो"

हम दोनो ने एक दूसरे के कपड़े नोच डाले. दोनो एकदम नग्न हो गये. दो
हाथों की दूरी पर खड़ी होकर हम दोनो ने एक दूसरे को कुच्छ देर
तक निहारा. फिर एक दूसरे से लिपट गये. मैने चूमते हुए ज़मीन
पर घुटने के बल बैठ गया. उसने अपनी एक टाँग मेरे कंधे के उपर
रख दी. इससे मुझे उसकी योनि तक पहुँचने के लिए जगह मिल गयी.
मैने उसकी योनि को अपनी जीभ से सहलाना शुरू किया. मैं अपने दाँतों
से उसकी क्लीत्टोरिस को हल्के हल्के से काट रहा था.

"म्‍म्म्ममममम... ...आआआआअहह हह" उसके मुँह से गर्म आवाज़ें निकल रही
थी. मैं उसको और उत्तेजित करता जा रहा था. ,मुझे उसका ये अंदाज़
बहुत प्यारा लगता था. वो मेरे बालों पर अपनी उंगलियाँ फिरा रही
थी. कुच्छ देर तक मेरे सिर को अपनी योनि पर दबाए रखने के बाद
उसका बदन एक बार ज़ोर से काँप उठा और उसकी योनि से रस की धारा
बह निकली. कुच्छ देर बाद उसने मेरे सिर को अपने बदन से हटाया.
मेरा चेहरा उसके रस से गीला हो कर चमक रहा था. उसने मेरे रस
से लिसडे हुए होंठों को चूम कर अपना मुझे उपर खींचा. मैं खड़ा
हो गया. अब मुझे भी उतना ही प्यार देने की बारी उसकी थी. वो मेरे
होंठों को मेरे गाल मेरे गले को चूमते हुए मेरे निप्पल तक आई.
उसने मेरे दोनो निपल्स को बारी-बारी से अपनी जीभ से कुरेदा. जब मेरे
निपल्स उत्तेजना मे खड़े हो गये तो उसने मेरे निपल्स को अपने दाँतों
के बीच लेकर कुरेदना शुरू किया.. मैं उसके प्यार करने के अंदाज़ पर
पागल हो गया था. फिर उसके होंठ नीचे आकर मेरे लिंग के चारों ओर
फैले हल्के घुंघराले जंगल पर विचारने लगे. वो दाँतों से मेरे
रेशमी झांतों को दबा कर खींच रही थी. फिर उसने मेरे बारी बारी
से मेरे दोनो गेंदों को अपनी जीभ से सहलाया और फिर अपने मुँह मे
खींच लिया. मुँह मे लेकर उन पर अच्छि तरह से अपनी जीभ
फिराई.

उसने अपनी जीभ को बाहर निकाल कर मेरे लिंग के जड़ से फिराते हुए
उपर तक लाई. अपने हाथों से लिंग के गोल सूपदे के उपर के चमड़े
को नीचे खींच कर मेरे सूपदे को बाहर निकाला. फिर अपनी जीभ को
उस पर फिराने लगी. मेरा लिंग उत्तेजना मे पूरी तरह खड़ा हो कर
झटके खरहा था. वो मेरे सूपदे के चारों ओर अपनी जीभ फिराने के
बाद मेरे लिंग के उपर के च्छेद से जिससे की गढ़ा गढ़ा सा कुच्छ रस
निकल रहा था उसे अपनी जीभ पर कलेक्ट कर के मेरी ओर देखा. फिर
जीभ को मूह के अंदर कर के उसे पी गयी. फिर उसने मेरे लिंग को अपनी
मुट्ठी मे थाम कर अपने मुँह को खोला और मेरे लिंग को धीरे धीरे
अपने मुँह के अंदर डालने लगी. आधे के करीब लिंग को लेने के बाद वो
रुकी. मेरा लिंग और अंदर नही जा पा रहा था. वो मेरे लिंग पर अपने
मुँह को आगे पीछे करने लगी. कुच्छ ही देर मे मैं इतना उत्तेजित हो
गया कि लगा कि मेरा वीरया अनु के मुँह मे ही निकल जाएगा.

"बस......बस अनु और नही. और नही.....वरना मेरा रस तुम्हारे मुँह
मे ही निकल जाएगा." मैने उसके चेहरे को अपने लिंग से हटाना चाहा.
लेकिन वो तस से मस नही हुई.

"म्‍म्म्मममम.... .मैं भी तो यही चाहती हूँ. डाल दो सारा रस मेरे मुँह
मे. भर दो मेरा पेट अपने रस से" कह कर वो मेरे लिंग को और अंदर
तक ले जाने की कोशिश करने लगी. मेरी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी.
मैइनेउसके सिर को थामा और उसके मुँह मे ज़ोर ज़ोर से धक्के मारने लगा.
उसकी आँखें उलट गयी थी. उसका दम घुट रहा था. लेकिन उसने किसी
तरह का कोई विरोध नही किया. बुल्की अपनी मुट्ठी मे मेरे अंडकोष को
लेकर दबाने लगी. मैने एक बार पुर ज़ोर से उसके सिर को अपने लिंग
पर दबाया. मेरा लिंग उसके गले के अंदर तक घुस गया था. इस
अवस्था मे मैने उसके मुँह मे अपने रस की बोछार कर दी. जब तक
सारा वीर्य निकल नही गया मैने उसके सिर को छ्चोड़ा नही. जब मैने
उसके सिर को छ्चोड़ा तो वो अपना गला थाम कर जमी पर लुढ़क गयी.
खाँसते खाँसते उसका बुरा हाल हो गया. मैं भी उसी के बगल मे ढेर
हो गया. हम दोनो हंसते जा रहे थे.

"खूऊओब मज़ा आया.. मेरे जानू." अनु ने मुझसे कहा. दोनो एक दूसरे के
गुप्तांगों को सहला कर वापस उत्तेजित करने की कोशिश करने लगे.
लेकिन कुच्छ देर तक जब पूरी तरह उत्तेजना नही आई तो पहले हमने
डिन्नर करने का प्लान किया. डिन्नर तो साथ लेकर ही आया था. उसे खोल
कर वो एक ही थाली मे सज़ा करले आई. मैं सोफे पर बैठा हुआ था.
हम दोनो ने ही कपड़े पहनने की कोई जल्दी नही की थी. वो खाना टेबल
पर रख कर मेरी गोद मे बैठ गयी. हम दोनो एक दूसरे को खाना
खिलाए. खाते हुए हमारे नग्न बदन एक दूसरे से रगड़ खा रहे थे.
जिससे हम वापस गर्म होने लगे. खाना ख़त्म होते होते मेरा लिंग वापस
हरकत मे आ गया.

"एम्म्म.....फिर तन गया है मेरा जानू." अनु ने कहा हम दोनो हाथ मुँह
धो कर वापस उसी कमरे मे आए. वो झूठे बर्तन समेटने के लिए झुकी
हुई थी. अब मैं अपने आप को नही रोक सका और उसके नितंब से चिपक
गया. मेरा लिंग अपने चिर परिचित जगह घुसता चला गया. वो मेरी
हरकत पर खिल खिला उठी.

"ओफफो... मुझे फ्री तो हो जाने दो." मगर मैने उसे छ्चोड़ा नही. उसने
टेबल पर अपने हाथ रख दिए सहारे के लिए. मैं पीछे से उसकी
चूत मे धक्के मार रहा था. हर धक्के से हिलते बर्तनो की आवाज़ कानो
मे खटक रही थी. इसलिए कुच्छ देर बाद मैने उसे उठाया और सोफे
पर हाथ रख कर झुकाया. वापस पीछे से उसकी योनि मे धक्के मारने
लगा. हम दोनो पसीने से एकद्ूम लथपथ हो रहे थे. पंखे की हवा
उसे सूखा पाने मे असमर्थ थी. काफ़ी देर तक यूँ ही चोदने के बाद हम
दोनो ने एक साथ स्खलन किया.

वहीं सोफे पर एक दूसरे के पसीने से गीले बदन को आगोश मे लेकर
हम एक होने की कोशिश करने लगे.
दोस्तो अनु के साथ मेरिदोस्ती रिश्ते मे बदल गई आज हम बहुत खुश हैं
--
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा

(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज













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