raj sharma stories राज शर्मा की कामुक कहानिया हिंदी कहानियाँहिंदी सेक्सी कहानिया चुदाई की कहानियाँ उत्तेजक कहानिया rajsharma ki kahaniya ,रेप कहानिया ,सेक्सी कहानिया , कलयुग की सेक्सी कहानियाँ , मराठी सेक्स स्टोरीज , चूत की कहानिया , सेक्स स्लेव्स ,
बदनाम
हेलो दोस्तो मैं यानी आपका दोस्त राज शर्मा आपके लिए एक ओर नयी कहानी लेकर हाजिर हूँ
कहते हैं सपनो के पंख होते हैं... सपनों में बंधन नही होते.. सपनो में मर्यादायें नही होती.. और... सपनो में सच्चाई नही होती.. पल भर में ही जो सपने आपको फर्श से अर्श पर पहुँचा देते हैं.. नियती का मनहूस धरातल अर्श से वापस वास्तविकता के फर्श पर पटाकने में पूरा एक पल भी नही लेता...
ऐसे ही जाने कितने रंग बिरंगे सपनो का मायाजाल अपनी मृगनयनी पलकों में समेटे पूनम अपनी ससुराल आई थी.. शादी कोई मज़ाक नही होती.. लड़की का एक नया जनम होता है...औरत के रूप में! सुर्ख लाल रंग के जोड़े में लिपटी दुल्हन के दिल में जाने कितने अरमान होते हैं.. आशायें होती हैं... कुआँरे बदन में रह रह कर तरंगें सी उठ'ती हैं.. इन्ही तरंगों को वो 18-20 बरस तक सहेज कर रखती है.. अपने साजन की सेज पर गुलाब की कलियों के बीच बिछौना बन कर 'अपने' मर्द को अपने उपर सुलाती है और शर्म की महीन चादर में लिपटी जी भर कर उन्न यौवन तरंगों को अपने बलम पर लुटाती हैं... उनका वो मिलन भगवान को भी मंजूर होता है और इश्स समाज को भी....
24 बरस की पूनम के सपने भी कुच्छ दिन पहले ही परवान चढ़े... उसके सौंदर्या और शालीनता के चर्चे पुर गाँव में थे.. लोगों को अक्सर ये कहते सुना जा सकता था," पूनम जैसी लड़की का बाप होना स्वर्ग में हिस्सेदारी करने के बराबर है.. जिस घर में भी जाएगी.. अपनी रोशनी से महका देगी.. किस्मत बदल देगी.. पूनम का नाम उसके रूप और करम पर खरा उतरता था...
लेकिन नियती की नियत कुच्छ और ही थी.. पूनम के सपनों का जब कटु वास्तविकता से सामना हुआ तो सारे अरमान जैसे भरभरा कर अपना दम तोड़ बैठे.. सदा हंसता रहने वाला और हँसाता रहने वाला चेहरा गुम के नामुराद धब्बों से
भर गया.. मुस्कान तो जैसे वा अपने पीहर ही छ्चोड़ आई थी.. हमेशा खिली हुई रहने वाली उसकी आँखों में अचानक ही आँसुओं का सैलाब उमड़ आता...
'दीपक' ..... इसी सक्श के हाथों में घरवालों ने पूनम को सौंपा था.. एक रुपए का रिश्ता हुआ.. लड़के वाले दान
दहेज के एकद्ूम खिलाफ थे.. दीपक दिखने में सुंदर, गौरा और मजबूत कद कती वाला लड़का था.. अच्छि ख़ासी सरकारी तनखावाह लेता था.. शहर में बंगले जैसा घर और इकलौता लड़का... पूनम के पीहर वाले अपनी बेटी की किस्मत पर फूले
नही समा रहे थे.. गाँव में हर जगह इश्स रिस्ते की चर्चा थी..
बस लड़के में एक ही कमी थी.. उसका पहले भी रिश्ता हुआ था जो 9 महीने बाद ही टूट गया था.. पर लड़की वालों ने तसल्ली करनी ज़रूरी ना समझी की ऐसा आख़िर हुआ क्यूँ.. इतना 'अच्च्छा' रिश्ता वो हाथ से जाने कैसे देते...
शादी को करीब एक साप्ताह हो गया था...
आज दीपक पहली बार उस'से अपनो की तरह पेश आया था,"चलो! हम दिल्ली चल रहे हैं..!"
पूनम ने झट से अपने सिर पर पल्लू कर लिया.. ऐसा एक साप्ताह तक भी उनकी बोलचाल शुरू ना होने के कारण कायम रही झिझक के कारण हुआ था. उसकी आँखों में खुशी के आँसू छलक उठे.. वो नही जानती थी की आख़िर उसके 'वो' उस'से दूरी
बनाकर क्यूँ रह रहे हैं..
बिना कोई सवाल किए वह उठी और अपना और 'उनका' समान तैयार करने लगी...
लाख सवाल दिल में होने के बावजूद पूनम दीपक से कोई सवाल ना कर पाई.. बिना मिलन के झिझक कैसे दूर होती.. दीपक के अजीबोगरीब व्यवहार से सवाल उठना तो लाजिमी ही था.. अगर कोई और 'पूनम' होती तो शायद अब तक वो वापस जा चुकी होती.. 'पहली' की तरह.. पर संस्कार उसमें कूट कूट कर भरे हुए थे.. या फिर जाने क्या वजह थी.. वह सब कुच्छ अपने भीतर ही दफ़न करके इश्स बुरे वक़्त के बीत जाने का इंतजार कर रही थी..
दीपक के चेहरे पर मानसिक वेदना उसके लाख च्छुपाने पर भी द्रिस्तिगोचर हो रही थी.. पर फिर भी पूनम ने कोई सवाल नही किया..
सांप्ला के नज़दीक अचानक जो कुच्छ हुआ.. उसने पूनम के हर सवाल का जवाब दे दिया.. शायद..
अचानक आगे से आ रही एक बाइक पर पिछे बैठी एक लड़की ने दीपक को इशारा करके गाड़ी रोकने को कहा.. लड़की बाला की खूबसूरत थी.. उमर होगी करीब 20 के आसपास.. उसके नयन नक्श उसको सुंदरटम लड़कियों के बीच भी अलग से पहचान दिलाने में सक्षम थे.. हालाँकि इस समय चेहरे के भावों से वा कमसिन लड़की नही बल्कि साक्षात दुर्गा का अवतार लग रही थी...
बाइक वाले ने लड़की के कहने पर बाइक घुमाई और गाड़ी के पिछे लगा दी.. उफ्फ ये जाम! लाख कोशिश करने के बावजूद दीपक गाड़ी को उनसे दूर लेकर नहीं जा पाया....
बाइक गाड़ी के साथ साथ चल रही थी.. लड़की रह रह कर दीपक को पुकार रही थी..," प्लीज़ दीपक! गाड़ी रोको! प्लीज़.."
"कौन है जी ये लड़की.. आपको जानती है क्या?" लड़की के हाव भाव देखकर चिंतित हो गयी पूनम अपने आपको रोक ना पाई..
"अभी कुच्छ मत पूच्छो..!" दीपक ने सिर्फ़ इतना ही कहा... गाड़ी अब जाम के कारण लगभग रुक सी गयी थी..
बाइक पर साथ साथ चल रही लड़की को जब लगा की ऐसे बात नही बनेगी तो वो बाइक से कूदी और पलक झपकते ही उनकी गाड़ी के बुनट पर आ जमी..!"
दीपक के माथे पर पसीना छलक उठा.. उसको सामने बैठी लड़की अपनी मौत लग रही थी..," गाड़ी रोको.. दीपक.. मैं कह रही हू.. गाड़ी रोको!"
अपनी बात का कोई असर ना होता देख लड़की ने रौद्रा रूप इख्तियार कर लिया.. अपने हाथों से बुरी तरह सामने वाले शीशे पर प्रहार करना शुरू कर दिया.. शीशे में दरारें आना शुरू हो गयी.. लड़की के हाथ बुरी तरह लहू लुहान हो गये..
ये देखकर दीपक ने गाड़ी एक तरफ लगाई और रोक दी.. पर अभी भी गाड़ी अंदर से लॉक थी..
पूनम का सिर चकरा रहा था.. जो कुच्छ भी हो रहा था.. वह किसी बुरे सपने से कम नही था.. कितना अच्च्छा होता अगर ये सिर्फ़ सपना ही होता.. बदहवास सी हो चुकी पूनम कभी दीपक को तो कभी उस कातिल हसीना को देख रही थी.. डर से वो काँपने सी लगी थी...
तमाशबीनो ने जो जहाँ था, वहीं अपनी गाड़ी रोक दी.. ऐसे दृश्या रोज़ रोज़ देखने को नही मिलते...
कोई भी दूसरा रास्ता ना पाकर दीपक ज्यूँ ही गाड़ी से बाहर निकला.. लड़की उस पर झपट पड़ी.. उसकी आँखों से मानो अंगारे निकल रहे थे.. पता नही वह दीपक की जान लेने आई थी.. या अपनी जान देने..
दीपक गाड़ी से बाहर एक दम शांत खड़ा था.. उसके चेहरे पर कोई भाव नही था.. ना गम का.. ना बेचैनी का.. ना गुस्से का और ना ही पासचपताप का..
अचानक उस लड़की ने शर्ट के कॉलर पकड़े और अर्ध बेहोशी की हालत में झूल सी गयी.. दीपक दोनो हाथों से उसको ना थामता तो वह ज़मीन पर ही गिर जाती...
बड़े प्यार से उसको अपने आगोश में थामे दीपक ने पूनम को पिच्छली खिड़की खोलने का इशारा किया.. पूनम जो अब तक किन्क्रितव्य विमूढ़ सी बैठी थी.. फुर्ती दिखाते हुए पिछे को घूमी और खिड़की खोल दी..
दीपक ने लड़की को पिछे वाली सीट पर लिटा दिया और उसका सिर अपनी जांघों पर रख कर उसके बालों में हाथ फेरने लगा...
"ये सब... क्या है... ज्जी?" पूनम के लिए ये सब किसी तूफान से जूझ रहे शक्श से कम कष्टकारी नही था...
"ज़रा पानी की बोतल देना..." पूनम की बात पर ध्यान ना देकर दीपक उसी लड़की के लिए व्याकुल हो रहा था...
पूनम ने बोतल उठा कर उसके हाथ में दे दी.. पूनम के हाथ किसी अनहोनी की आशंका में काँप रहे थे..
"मुँह खोलो मोनू.. प्लीज़.. पानी पी लो..!" दीपक ने बोतल का मुँह लड़की के होंटो से सटा दिया... लड़की को वह 'मोनू' नाम से बुला रहा था...
"तुमने... ऐसा क्यूँ किया जान.. मुझे धोखा क्यूँ दिया.. शादी क्यूँ की.. मुझे सपने क्यूँ दिखाए... मुझे अकेला क्यूँ छ्चोड़ा.. क्यूँ.. दीपक.. क्यूँ?" जाने कितनी ही बार मोनू ने अपने मुँह से 'क्यूँ' बड़बड़ाया था..
दीपक को समझ नही आ रहा था उस वक़्त जवाब दे या नही.. पर वह खामोश ही रहा..
"इसके हाथों से बहुत खून बह चुका है.. हमें इसको हॉस्पिटल ले जाना चाहिए?" आगे बैठी पूनम को सबसे पहले 'उसकी' जान की चिंता हुई.. जो उसकी 'जान' की जान के पिछे पड़ी थी..
"पानी पीने के बाद मोनू को कुच्छ होश आया.. दीपक की शर्ट लेटे लेटे ही पकड़ कर उसको अपनी और खींचने की कोशिश करने लगी..,"नही.. मुझे कहीं नही जाना.. इसको उतार दो दीपक.. इसको अपने घर भेज दो.. मुझे तुम्हारे साथ रहना है.. तुम्हारे सिवा मेरा कौन है दीपक.. तुमने एक बार भी ये नही सोचा.... मुझे ले चलो.. प्लीज़.. सब कुच्छ छ्चोड़ दो.. मेरी तरह.. सब कुच्छ!" मोनू की इश्स कदर बदहवास होकर गिड़गिडाना दीपक को ही नही.. पूनम को भी उद्वेलित कर रहा था..
"मेरे पास आओ.. मुझे बताओ क्या हुआ..? क्या बात है? मुझे भी तो पता चले.." पूनम ने हाथ पिछे करके मोनू को उठाने की कोशिश की...
मोनू गरज सी पड़ी..," इस'से पूच्छो क्या बात है.. इस'से पूच्छो.. मैं ऐसी क्यूँ हो गयी.. पिच्छले बीस दिन से मैने तभी खाना खाया है.. जब इसने खुद आकर खिलाया है. देखो मेरी हालत.. मैं ऐसी नही थी दीदी.. और ये भी ऐसा नही था.. आज तक किसी लड़की से नज़रें तक नही मिलाई.. किसी से बात तक नही करता था.. ये सिर्फ़ मेरा था... फिर ये.. ऐसा क्यूँ हो गया.. बताओ ना.. मुझे सज़ा क्यूँ मिली दीदी.. क्यूँ मिली.." मोनू का कारून क्रंदान दोनो को दहला रहा था.. पूनम की आँखों में आँसुओं का सैलाब उमड़ पड़ा.. पता नही.. अपने लिए या.. मोनू के लिए.. पर दीपक अब उसको किसी बेवफा खलनायक से कम नही लग रहा था..
"क्या तुम दोनो के बीच.. सब कुच्छ हो गया है दीदी..!" कुच्छ देर की खामोशी के बाद मोनू फिर पूनम से मुखातिब हुई...
"क्या मतलब...!" पूनम को शायद 'सब कुच्छ' समझ नही आया..
"ये तुम्हारे साथ सो चुका है क्या..?" मोनू ने दोहराया..
इतना सीधा और दिल को छेड़ने वाला सवाल सुनकर पूनम सन्न रह गयी.. किस अंजान लड़की को वह यह कैसे बताती की शादी के 12 दिन बाद भी वह कुँवारी ही है,"हां.. सब कुच्छ हो गया है!" पूनम ने अपने दिल की टीस एक लंबी साँस में छ्चोड़ते हुए कहा..
सुनते ही एक बार फिर मोनू ने चंडी का रूप इख्तियार कर लिया.. अपने नाखूनओ से वह दीपक का बदन नोचने लगी.. आलम ये था की दोनो के वश में भी वह नही आ रही थी.. दीपक के चेहरे पर कयि जगह उसने बदनुमा खरोनछें मार दी,"हरररामी... कुत्ते.. मैं तुझे नही छ्चोड़ूँगी.. मुझे धोखा दिया.. शराफ़त का चोला पहने हुए भेड़िए.. मुझे झूठ क्यूँ बोला.. बता बता बता...!" जितनी जान थी.. सारी मोनू ने अपनी छटपटाहट में निकाल दी.. तब तक वा कुच्छ का कुच्छ बकती रही.. जब तक की एक बार फिर बेहोशी की आगोश में ना सिमट गयी..."
"मैं क्या करूँ.. मुझे उतार दो.. मैं अपने घर चली जाती हूँ.." पूनम भी अब धीरज खो बैठी थी.. उसका आँसू बहाना जायज़ भी था...
दीपक के हाव भाव ने उसको और ज़्यादा परेशान कर दिया.. वह किसी बात पर कोई प्रतिक्रिया नही दे रहा था.. पर इश्स बार बोला..," तुम जाना चाहती हो तो जा सकती हो.. मैं रोकुंगा नही.. पर तुमने इसको ये क्यूँ बोला की हमारे बीच सबकुच्छ है.."
"और.. मैं क्या बोलती.... पर.. इसका कुच्छ क्यूँ नही कर रहे.. ऐसे तो ये मर जाएगी.." पूनम ने शायद नियती के सामने घुटने झुका दिए...
"चलो घर चलते हैं.. !" कहकर दीपक आगे वाली सीट पर जाकर बैठ गया और गाड़ी चला दी.....
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) ऑल्वेज़
`·.¸(¨`·.·´¨) कीप लविंग &
(¨`·.·´¨)¸.·´ कीप स्माइलिंग !
`·.¸.·´ -- राज
BADNAAM
hello dosto main yani aapka dost raj sharma aapke liye ek or nayi kahaani lekar haajir hun
Kahte hain sapno ke pankh hote hain... Sapnon mein bandhan nahi hote.. Sapno mein maryadayein nahi hoti.. Aur... Sapno mein sachchayi nahi hoti.. Pal bhar mein hi jo sapne aapko farsh se arsh par pahuncha dete hain.. Niyati ka manhoos dharatal arsh se wapas vastavikta ke farsh par patakne mein poora ek pal bhi nahi leta...
Aise hi jane kitne rang birange sapno ka mayajaal apni mrignayni palkon mein sametey Poonam apni sasural aayi thi.. Shadi koyi majak nahi hoti.. Ladki ka ek naya janam hota hai...aurat ke roop mein! Surkh laal rang ke jodey mein lipti dulhan ke dil mein jane kitne armaan hote hain.. Aashayein hoti hain... kuaanre badan mein rah rah kar tarangein si uth'ti hain.. Inhi tarangon ko wo 18-20 baras tak sahej kar rakhti hai.. Apne sajan ki sej par gulab ki kaliyon ke beech bichhouna ban kar 'Apne' mard ko apne upar sulati hai aur sharm ki maheen chadar mein lipti ji bhar kar unn youvan tarangon ko apne balam par lutati hain... Unka wo milan bhagwan ko bhi manjoor hota hai aur iss samaj ko bhi....
24 baras ki Poonam ke sapne bhi kuchh din pahle hi parwaan chadhe... Uske soundarya aur Shaleenta ke charche poore gaanv mein thhe.. Logon ko aksar ye kahte suna ja sakta thha," Poonam jaisi ladki ka baap hona swarg mein hissedari karne ke barabar hai.. Jis ghar mein bhi jaayegi.. Apni roshni se mahka degi.. Kismat badal degi.. Poonam ka naam uske roop aur karam par khara utarta tha...
Lekin Niyati ki niyat kuchh aur hi thi.. Poonam ke sapnon ka jab katu vastavikta se saamna huaa toh sarey armaan jaise bharbhara kar apna dum tod baithhe.. Sada hansta rahne wala aur hansata rahne wala chehra gum ke namuraad dhabbon se
Bhar gaya.. Muskaan toh jaise wah apne peehar hi chhod aayi thi.. Hamesha khili huyi rahne wali uski aankhon mein achanak hi aansuon ka sailab umad aata...
'Deepak' ..... Isi saksh ke hathon mein gharwalon ne poonam ko sounpa tha.. Ek rupaiye ka rishta hua.. Ladke waley Daan
dahej ke ekdum khilaf thhe.. Deepak dikhne mein sundar, goura aur majboot kad kathi wala ladka tha.. achchhi khasi sarkari tankhawah leta tha.. Shahar mein bangle jaisa ghar aur iklouta ladka... Poonam ke peehar waley apni beti ki kismat par fooley
nahi sama rahe thhe.. Gaanv mein har jagah iss ristey ki charcha thi..
Bus ladke mein ek hi kami thhi.. Uska pahle bhi rishta huaa tha jo 9 mahine baad hi toot gaya tha.. Par Ladki walon ne tasalli karni jaroori na samjhi ki aisa aakhir hua kyun.. Itna 'achchha' Rishta wo haath se jaane kaise dete...
Shadi ko kareeb ek saptaah ho gaya tha...
aaj Deepak pahli baar uss'se apno ki tarah pesh aaya tha,"Chalo! Hum dilli chal rahe hain..!"
Poonam ne jhat se apne sir par pallu kar liya.. Aisa ek saptah tak bhi unki bolchal shuru na hone ke karan kayam rahi jhijhak ke karan hua tha. Uski aankhon mein khushi ke aansoo chhalak uthhe.. Wo nahi jaanti thi ki aakhir uske 'wo' uss'se doori
banakar kyun rah rahe hain..
Bina koyi sawaal kiye wah uthhi aur apna aur 'unka' samaan taiyaar karne lagi...
Lakh sawaal dil mein hone ke bawjood Poonam Deepak se koyi sawaal na kar payi.. Bina milan ke jhijhak kaise door hoti.. Deepak ke ajeebogareeb vyavhaar se sawaal uthhna toh lajimi hi tha.. Agar Koyi aur 'poonam' hoti toh shayad ab tak wo wapas ja chuki hoti.. 'pahli' ki tarah.. Par sanskaar usmein koot koot kar bhare huye thhe.. Ya fir jaane kya wajah thi.. Wah sab kuchh apne bheetar hi dafan karke iss bure waqt ke beet jane ka intjaar kar rahi thi..
Deepak ke chehre par mansik vedna uske laakh chhupane par bhi dristigochar ho rahi thi.. Par fir bhi poonam ne koyi sawaal nahi kiya..
Sampla ke najdeek achanak jo kuchh huaa.. Usne Poonam ke har sawaal ka jawaab de diya.. Shayad..
Achanak aagey se aa rahi ek bike par pichhe baithi ek ladki ne Deepak ko ishara karke gadi rokne ko kaha.. Ladki bala ki khoobsoorat thi.. Umar hogi kareeb 20 ke aaspas.. Uske nayan naksh usko sundartam ladkiyon ke beech bhi alag se pahchaan dilaane mein saksham thhe.. Halanki iss samay chehre ke bhavon se wah kamsin ladki nahi balki saakshat durga ka avtaar lag rahi thi...
Bike waley ne ladki ke kahne par Bike ghumayi aur Gadi ke pichhe laga di.. Uff ye jaam! Lakh koshish karne ke bawjood Deepak Gadi ko unse door lekar nahin ja paya....
Bike Gadi ke sath sath chal rahi thi.. Ladki rah rah kar Deepak ko pukar rahi thi..," Pls Deepak! Gadi roko! Pls.."
"Koun hai ji ye ladki.. Aapko jaanti hai kya?" ladki ke haav bhav dekhkar chintit ho gayi Poonam apne aapko rok na payi..
"Abhi kuchh mat poochho..!" Deepak ne sirf itna hi kaha... Gadi ab jaam ke karan lagbhag ruk si gayi thi..
Bike par sath sath chal rahi ladki ko jab laga ki aise baat nahi banegi toh wo bike se koodi aur palak jhapakte hi unki Gadi ke bonut par aa jami..!"
Deepak ke maathhe par pasina chhalak uthha.. Usko saamne baithi ladki apni mout lag rahi thi..," Gadi roko.. Deepak.. Main kah rahi hooon.. Gaadi roko!"
Apni baat ka koyi asar na hota dekh ladki ne roudra roop ikhtiyaar kar liya.. Apne hathon se buri tarah saamne waley sheeshe par prahar karna shuru kar diya.. Sheeshe mein daraarein aana shuru ho gayi.. Ladki ke hath buri tarah lahu luhan ho gaye..
Ye dekhkar Deepak ne Gadi ek taraf lagayi aur rok di.. Par abhi bhi gadi andar se lock thi..
Poonam ka sir chakra raha tha.. Jo kuchh bhi ho raha tha.. Wah kisi bure sapne se kum nahi tha.. Kitna achchha hota agar ye sirf sapna hi hota.. Badhawaas si ho chuki Poonam kabhi Deepak ko toh kabhi uss katil haseena ko dekh rahi thhi.. Darr se wo kaanpne si lagi thi...
Tamashbeeno ne jo jahan tha, wahin apni gadi rok di.. Aise drishya roz roz dekhne ko nahi milte...
Koyi bhi dusra raasta na pakar deepak jyun hi gadi se bahar nikla.. Ladki uss par jhapat padi.. Uski aankhon se mano angaarey nikal rahe thhe.. Pata nahi wah Deepak ki jaan lene aayi thi.. Ya apni jaan dene..
Deepak Gadi se bahar ek dum shant khada tha.. Uske chehre par koyi bhav nahi tha.. Na gum ka.. Na bechaini ka.. Na gusse ka aur na hi paschaptap ka..
Achanak uss ladki ne shirt ke collar pakde aur ardh behoshi ki haalat mein jhool si gayi.. Deepak dono hathhon se usko na thhamta toh wah jameen par hi gir jati...
Badey pyar se usko apne aagosh mein thhame Deepak ne poonam ko pichhli khidki kholne ka ishara kiya.. Poonam jo ab tak kinkritavya vimoodh si baithi thi.. Furti dikhate huye pichhe ko ghoomi aur Khidki khol di..
Deepak ne ladki ko pichhe wali seat par lita diya aur uska sir apni jaanghon par rakh kar uske baalon mein hath ferne laga...
"Ye sab... kya hai... Jji?" Poonam ke liye ye sab kisi toofan se joojh rahe shaksh se kum kastkari nahi tha...
"Jara pani ki botle dena..." Poonam ki baat par dhyan na dekar deepak usi ladki ke liye vyakul ho raha tha...
Poonam ne botle uthha kar uske haath mein de di.. Poonam ke haath kisi anhoni ki aashanka mein kaanp rahe thhe..
"Munh kholo Monu.. Pls.. Pani pi lo..!" Deepak ne botle ka munh ladki ke honto se sata diya... Ladki ko wah 'Monu' naam se bula raha thha...
"Tumne... Aisa kyun kiya jaan.. Mujhe dhokha kyun diya.. Shadi kyun ki.. Mujhe sapne kyun dikhaye... Mujhe akela kyun chhoda.. Kyun.. Deepak.. Kyun?" jaane kitni hi baar Monu ne apne munh se 'kyun' badbadaya tha..
Deepak ko samajh nahi aa raha tha uss waqt jawaab de ya nahi.. Par wah khamosh hi raha..
"Iske hathon se bahut khoon bah chuka hai.. Hamein isko hospital le jana chahiye?" Aagey baithi Poonam ko sabse pahle 'uski' jaan ki chinta huyi.. Jo uski 'jaan' ki jaan ke pichhe padi thi..
"Pani pine ke baad Monu ko kuchh hosh aaya.. Deepak ki shirt laitey laitey hi pakad kar usko apni aur kheenchne ki koahish karne lagi..,"Nahi.. Mujhe kahin nahi jana.. Isko utaar do deepak.. Isko apne ghar bhej do.. Mujhe tumhare sath rahna hai.. Tumharey siwa mera koun hai deepak.. Tumne ek baar bhi ye nahi socha.... Mujhe le chalo.. Pls.. Sab kuchh chhod do.. Meri tarah.. Sab kuchh!" Monu ki iss kadar badhawas hokar gidgidana Deepak ko hi nahi.. Poonam ko bhi udwelit kar raha tha..
"Mere paas aao.. Mujhe batao kya hua..? Kya baat hai? Mujhe bhi toh pata chale.." poonam ne hath pichhe karke Monu ko uthhane ki koshish ki...
Monu garaj si padi..," Iss'se poochho kya baat hai.. Iss'se poochho.. Main aisi kyun ho gayi.. Pichhle bees din se maine tabhi khana khaya hai.. Jab isne khud aakar khilaya hai. Dekho meri haalat.. Main aisi nahi thi didi.. Aur ye bhi aisa nahi tha.. Aaj tak kisi ladki se najrein tak nahi milayi.. Kisi se baat tak nahi karta tha.. Ye sirf mera tha... Fir ye.. Aisa kyun ho gaya.. Batao na.. Mujhe saza kyun mili didi.. Kyun mili.." Monu ka karun krandan Dono ko dahla raha thha.. Poonam ki aankhon mein aansuon ka sailab umad pada.. Pata nahi.. Apne liye ya.. Monu ke liye.. Par Deepak ab usko kisi bewafa khalnaak se kum nahi lag raha thha..
"Kya tum dono ke beech.. Sab kuchh ho gaya hai didi..!" Kuchh der ki khamoshi ke baad Monu fir Poonam se mukhatib huyi...
"Kya matlab...!" Poonam ko shayad 'sab kuchh' samajh nahi aaya..
"Ye tumhare sath so chuka hai kya..?" Monu ne dohraya..
Itna seedha aur dil ko chhedne wala sawaal sunkar Poonam sann rah gayi.. Kis anjaan ladki ko wah yeh kaise batati ki shadi ke 12 din baad bhi wah kunwari hi hai,"Haan.. Sab kuchh ho gaya hai!" poonam ne apne dil ki tees ek lumbi saans mein chhodte huye kaha..
Sunte hi ek baar fir Monu ne chandi ka roop ikhtiyar kar liya.. Apne naakhuno se wah deepak ka badan nochne lagi.. Aalam ye tha ki dono ke vash mein bhi wah nahi aa rahi thi.. Deepak ke chehre par kayi jagah usne badnuma kharonchein maar di,"Harrrami... Kutte.. Main tujhe nahi chhodungi.. Mujhe dhokha diya.. Sharafat ka chola pahne huye bhediye.. Mujhe jhoothh kyun bola.. Bata bata bata...!" jitni jaan thi.. Sari monu ne apni chhatpatahat mein nikal di.. Tab tak wah kuchh ka kuchh bakti rahi.. Jab tak ki ek baar fir behoshi ki aagosh mein na simat gayi..."
"Main kya karoon.. Mujjhe utar do.. Main apne ghar chali jati hoon.." poonam bhi ab dheeraj kho baithi thi.. Uska aansoo bahana jayaj bhi tha...
Deepak ke haav bhav ne usko aur jyada pareshan kar diya.. Wah kisi baat par koyi pratikriya nahi de raha thha.. Par iss baar bola..," tum jana chahti ho toh ja sakti ho.. Main rokunga nahi.. Par tumne isko ye kyun bola ki hamare beech sabkuchh hai.."
"Aur.. Main kya bolti.... Par.. Iska kuchh kyun nahi kar rahe.. Aise toh ye mar jaayegi.." Poonam ne shayqd niyati ke saamne ghutne jhuka diye...
"Chalo ghar chalte hain.. !" Kahkar deepak aagey wali seat par jakar baith gaya aur gadi chala di.....
Aadhe khule huye gadi ke sheshe se garam hawa bhayanak aawajein kar rahi thi.. Jindagi bhi kya kya khel dikhati hai.. Kya aisa bhi kabhi kisi ne socha thha? Jab.. Jab pahli baar Roti huyi Monu ke sir par Deepak ne apna haath rakha thha...," Kyun Ro rahi ho beta.. Kya naam hai?"
Baat kareeb 7 saal pahle ki hai.. Monu tab 13 saal ki rahi hogi.. Subak'te huye hi usne jawab diya tha..," Anil...." aur kahte huye hi wo ek baar fir foot foot kar rone lagi...
"Anil koyi gair nahi tha.. Deepak ke sage bhai jaisa.. Bade bhai jaisa.. Itna karmath, itna soumya.. Sabka apna bankar rahne wala.. Sabke dilon par Raj karne wala.. Shayad hi gaanv mein aisa koyi ghar ho jahan usne khana na khaya ho.. Sab mataon ko maa kahne wala.. Sab bahno ko behan kahne wala.. Sarvpriya...
Par kahte hain.. Bhagwan ko bhi achchhe logon ki darkaar hoti hai.. Apne paas.. Apni barabar mein... Swarg mein!
"jo chala gaya.. Wo wapas toh nahi aa sakta beta.. " kahte huye Deepak ki palkein nam ho gayi aur gala rundh gaya.. Jis baat ko khud uska dil nahi maan raha tha.. Wo baat kahkar wo monu ko shantwana kaise deta...
"tumne apna naam nahi bataya!" Deepak ne baat ko badlna hi sahi samjha..
"Shlesh!.. Anil sir mujhe Bittu kahte thhe.." kah kar wo fir se bilakh padi.. Sachmuch wo krandan dil dahla dene wala thha...
"chup ho ja beta.. Nahi toh main bhi ro dunga.." aur Deepak r hi pada...
Tabhi Gaanv ke kuchh log school mein hi aa gaye.. Drishay dekhkar bhawuk hona swabhawik hi tha.. " Koyi baat nahi beta.. Ab unhoni ko koun taal sakta hai.. Sab bhagwan ki marji thi.. Ab toh kuchh aisa karne ki socho ki unke lagaye ye chhote chhote poudhe iss aandhi mein na bikhar jaayein.. Inn bachchon ka bhavishya bekar nahi hona chahiye... Kum se kum unka naam toh rahega...!"
"Bataayiye.. Main kya kar sakta hoon taauji.." Deepak ne sahmati mein sir hilate huye kaha...
"Ye school sambhal lo beta.. Gaanv mein koyi aur iss layak nahi ki ye jimmedari nibha sake.. Tum waise bhi unke sab'se kareeb thhe...!" Khade logon mein se ek ne kaha...
"par.. Taauji.. Main toh abhi padh hi raha hoon.. Aise mein...." Halanki Deepak ko bhi Dost ki iss aakhiri nishani se khas judav tha.. Wahan par uski yaadein taja ho jati thi...
"kuchh bhi karke beta.. Ye ek saal toh nikalna hi padega.. Nahi toh bachche kahin ke nahi rahenge..."
"Main sochkar bataaunta taauji.. Main poori koshish karunga...!"
"jug jug jiyo beta. Iss'se Anil ki aatma ko kitni shanti milegi.. Tum andaja bhi nahi laga sakte!
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj
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