अंदाज़-ए-इश्क़ पार्ट --1
हेल्लो दोस्तों मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा एक और नई कहानी अंदाजे इश्क लेकर हाजिर हूँ दोस्तों ये कहानी एक ऐसे आशिक की है जिसका प्यार उसकी वफ़ा सब कुछ एक अलग ही तरह से परवान चढ़ती है अब आप कहानी का मजा लीजिये मैं तब तक इस कहानी का दूसरा पार्ट तेयार करता हूँ
जब सागर की नींद खुली,,,,,,,,,तो बस उत्तर प्रदेश के उबड़ खाबड़ इलाक़े से निकल कर उत्तराखंड की हसीन वादियों मे प्रवेश कर चुकी थी,,,,,,
आज मौसम बहुत ही सुहाना था,,,,,,,जैसा की आम तौर पे उत्तराखंड का होता ही है,,,,,,लेकिन देल्ही मे ऐसे मौसम और हरियाली को देखने के लिए सागर तड़प गया था,,,,,,,,
ब्लू वर्ल्ड ट्रॅवेल्ज़ की बस के स्लीपर मे लेटा हुआ सागर बहुत ही आनंदमय तरीके से बाहर के नॅज़ारो को देख रहा था,,,,,,, बाहर बहते हुए झरने,,,,,,हारे भरे पेड़,,,,,उँचे उँचे पहाड़,,,,,,तीव्र गति से बहती हुई नादिया,,,,,आँखों को अनोखी ठंडक दे रही थी,,,,,,और ये ठंडक सुकून बन के दिल मे उतरती जा रही थी,,,,,,
ये माहौल सागर को दीवाना बनाए दे रहा था,,,,,,,वो उठ उठ कर पीछे निकल गये नॅज़ारो को देख रहा था,,,,,,,अपने चारो तरफ के बस वाले माहौल से बेख़बर,,,,,,
"लगता है आप नैनीताल पहली बार जा रहे हैं"""
इस मीठी सी आवाज़ ने सागर को चौका दिया,,,,,,उसने पलट के देखा तो एक खूबसूरत सी
नवयुवती उसकी तरफ बड़े प्यारे तरीके से देख रही थी,,,,,,,जो के सामने वाले स्लीपर पे बैठी हुई थी,,,,,,,
उसके इस सवाल से सागर के चेहरे पे मुस्कान आ गयी,,,,,,
"नही मैं तो नैनीताल का ही रहने वाला हू,,,,,पर पढ़ाई के वजह से घर आना बहुत कम होता है,,,,,,,आज 2 साल बाद घर जा रहा हू" सागर ने उतने ही प्यारे तरीके से जवाब दिया,,,,
"ओह्ह्ह,,,,अब मैं समझी,,,,,आप भी देल्ही की भागदौड़ ओर पल्यूशन वाली लाइफ के सताए हुए हैं"
उसने सहानुभूति दिखाते हुए कहा,,,,
"तो आप देल्ही मे क्या करती हैं???",,,,सागर ने झट से पूछा,,,,,
"मैं डीयू से बी.कॉम एकनॉमिक्स होनुर्स कर रही हू,,,,,,,बट आपको कैसे पता चला के मैं देल्ही मे ही रहती हू"
उत्सुकता उसके चेहरे पे साफ दिख रही थी,,,,,
उसकी उस "आप भी देल्ही की भागदौड़" वाली बात से सागर समझ गया था,,,,,,,लड़कियो को अपने बातो के जाल मे फसाना ही तो उसकी ख़ासियत थी,,,,,अपनी नीली आँखों,,,,और चेहरे पे बच्चो जैसे मासूमियत के साथ वो बातो के ऐसे जाल बुनता था के हर लड़की अपने होश खो के उसकी दीवानी हो जाती थी,,,,,,आख़िर अपनी 6 फिट. की हाइट,,,,,,गोरे रंग,,,,,तीखे नैन नक्श और कसरती बदन का कही तो फ़ायदा उठना ही था,,,,,,
"मुझे कैसे पता ये 1 राज़ की बात है,,,,मैं तो ये भी जानता हू के पढ़ाई मे आप बहुत अच्छी हैं",,,,, ये सुनते ही लड़की के चेहरे पे उत्सुकता और सहमति के मिले-जुले भाव आ गये,,,,,,
"ये बात तो कोई भी बता सकता है आख़िर बी.कॉम एकनॉमिक्स ऑनर्स मे अड्मिशन मिलता ही बस टॉपर्स को है",,,,,,,कुछ देर सोचने के बाद उसको सागर की चालाकी पता लग ही गयी,,,,,,फिर बातो का सिलसिला बढ़ता ही चला गया,,,,,,,
सागर उसकी बातो पर कुछ ख़ास्स ध्यान नही दे रहा था,,,,,,वरना वो अगर अपनी पे आ जाता तो आज उसकी गर्ल फ्रेंड की लिस्ट मे 1 और नाम जुड़ गया होता,,,,,लेकिन उसने तो इस लड़की का नाम तक पूछना ज़रूरी नही समझा,,,,,,,वो तो बस किसी तरीके से टाइम पास करने और यात्रा ख़त्म होने का इंतेज़ार कर रहा था,,,,,,,,
क्यूंकी कोई बहुत ही ख़ास उसका घर पे इंतेज़ार कर रहा था,,,,,,,जिसके कारण ये माहौल और भी रंगीन लग रहा था,,,,
बस कुछ ही देर मे नैनीताल पहुचने ही वाली थी,,,,,,,शहर से उसके घर का रास्ता 15 मिनट का था जो के उससे पैदल पार करना था,,,,,,उसके लिए 1-1 पल सदियो के समान गुज़र रहा था,,,,,
आख़िर वो अपनी जान से जो मिलने को बेताब था,,,,,,उसका नाम नंदिनी है,,,,,,वैसे तो वो बचपन के दोस्त हैं,,,,,,,क्यूंकी नंदिनी उनके पड़ोस मे ही रहती थी,,,,,,,लेकिन सागर आजतक उससे अपने दिल की बात नही बता पाया था,,,,,,वैसे तो वो बातो का शेर था पर पता नही क्या बात थी जो नंदिनी के सामने आते ही वो मेमना बन जाता था,,,,,,और हो भी क्यू ना नंदिनी थी ही लखो मे एक,,,,,,एकदम परी जैसी,,,,छुईमुई सी,,,,,,ऐसा लगता था के हाथ लगाओगे तो मैली हो जाएगी,,,,,उसकी अदाओ का हर कोई दीवाना था,,,,,हर कोई उसके साथ कुछ पल गुज़रने के लिए बेताब रहता था,,,,,
सागर बस से यही सोचता हुआ उतर ही रहा था,,,,,,,के एकदम से आई इस आवाज़ ने उसका ध्यान भंग किया,,,,,
"उनकी एक झलक में दिल को मिलता है सुकून,,,,,
उनसे प्यार करते रहें छाया है कुछ ऐसा जुनून,,,,
उनका प्यार बहता है हुमारी रागो में बन के खून,,,,,
और प्यार हर पल बदता रहे यही है दिल का क़ानून"
इस आवाज़ को सागर अच्छी तरह पहचानता था,,,,,,ये तो विकी था,,,,,,उसका बचपन का दोस्त विकी,,,,,,,सागर से भी ज़्यादा हाज़िर जवाब,,,,,,और उससे भी बड़ा ठ्ररकि,,,,,,,,आख़िर होता भी क्यू ना आख़िर था भी तो ठरकि बाबा का भक्त(फन ऑफ 00७),,,,,,
सागर ने सीधे बस से छलाँग लगा दी,,,,,और विकी के गले जा लगा,,,,,,
सागर: अर्रे यार तू यहा कैसे???? ज़रूर मम्मी ने बताया होगा,,,,,
विकी: "हा मम्मी ने ही सुबह बताया था के तू आने वाला है,,,,,,ये सब छ्चोड़ तू बता मेरे भाई कैसा है तू????"
सागर की मम्मी उससे भी अपने बेटे की तरह मानती थी,,,,,
"मैं तो एक दम ठीक हू" सागर ने खुशी से जवाब दिया,,,,,,
विकी: "यार जब से तू गया तब से मेरा तो मन ही नही लगता,,,,,,,मैं ही क्या नंदिनी भी अब खोई खोई रहती है,,,,,,यार तू उससे बोल क्यू नही देता,,,,,तुझे पता है वो भी तुझसे उतना ही प्यार करती है"
एक विकी ही था जो सागर की प्रेम भावनाओ का राज़दार था,,,,,,वरना सागर ने किसी को इस बात का पता नही लगने दिया था,,,,,,,
"नही यार मैं उसको बता कर उसका दिल नही दुखाना चाहता,,,,,,वो मुझमे सिर्फ़ 1 अच्छा दोस्त देखती है,,,,,,,सागर ने मायूस हो कर जवाब दिया,,,
"तू तो हमेशा भोला ही बना रहेगा,,,,,,मेरी तरह बिंदास बन के देख नंदिनी खुद तुझसे इज़हार ए मोहब्बत कर देगी",,,,विकी ने चुटकी लेते हुए कहा,,,"चल अब जल्दी गाड़ी मे बैठ,,,वाहा सब तेरा इंतेज़ार कर रहे हैं",,,,,,
ओर इसी के साथ दोनो विकी की सफ़ारी पे सवार हो गये,,,,,घर जाने के लिए,,,,,,सागर को उसकी जान से मिलाने के लिए,,,,,
जैसे ही सागर गाड़ी से बाहर निकला,,,,,,,पूरे घर मे खुशी की लहर दौड़ गयी,,,,,,,मिसिज. & मिस्टर. जोशी तो अपने बेटे के इंतेज़ार मे गेट पे ही खड़े हुए थे,,,,,,
"अर्ररे कितना बड़ा हो गया मेरा बेटा" मा ने सागर के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा,,,,,,,सबकी आँखों मे प्रसन्नता झलक रही थी,,,,,,आख़िर गाओं का बेटा जो घर वापस आया था,,,,,
लेकिन सागर की आँखों मे अजीब बेचैनी थी,,,,,,अपने प्यार को ना देख पाने की बैचिनी,,,,,वो हस हस के सबसे गले तो मिल रहा था,,,,,,,लेकिन एक अधूरापन उसको परेशान करे दे रहा था,,,,,
"यार विकी नंदिनी कही दिखाई नही दे रही????" सागर से रहा ना गया,,,,,,
विकी:"पता नही यार सुबह से तो यही पे थी,,,,,,मगर तू इतना बेचैन क्यू हो रहा है????तुझसे कुछ तो होने वाला नही है,,,,,,मैं कहता हू आज तू उससे अपने दिल की बात बोल ही दे,,,,,,कहीं तेरी लेतलटीफी के चक्कर मे उस चिड़िया को कोई और ही ना लेके उड़ जाए"
ये बात सुनते ही सागर के दिल पे छुरिया चल गयी और नंदिनी को देखने की व्याकुलता और बढ़ गयी,,,,,,सागर विकी को लेके अपने कमरे मे जाने लगा,,,,,
"अर्रे नंदिनी बेटा कहा थी तू अब तक,,,,,जा सागर से मिल ले वो आ गया है" मा इस आवाज़ के साथ सागर के कदम कमरे की दहलीज़ पे ही रुक गये,,,,,दिल मे अजीब सी घंटिया बजने लगी,,,,,चारो तरफ से वोइलिन की आवाज़ आने लगी,,,,आख़िर प्यार की बेकरी इसी को तो कहते हैं,,,,,और इंतेज़ार से इसका मज़ा और बढ़ जाता है,,,,,,
सागर ने मूड के देखा तो नंदिनी उसके सामने से आ रही थी,,,,,,,, उसको देखते ही सागर की तो सीटिया बज गयी,,,,,,वो बिल्कुल बदल गयी थी,,,,,,सुंदरता की देवी आज सेक्स गोडेस दिखाई दे रही थी,,,,,,,,छोटे छोटे सन्तरो ने अब पके हुए आमो का रूप ले लिया था,,,,,,चेहरे से मस्सोमियत कम सेक्स अपील ज़्यादा झलक रही थी,,,,,,गुलाब की पंखुड़ियो जैसे होंठ,,,,, जिनको देखते ही सारा रस पी जाने का दिल करता था,,,,,उसकी बड़ी बड़ी आँखें किसी का भी ईमान डोलने के लिए काफ़ी थी,,,,,,,सागर को अपनी जीन्स मे कुछ हरकत सी होती हुई महसूस हुई,,,,,,वो एकटक नंदिनी क देखे जा रहा था,,,,,,बल्कि यू कहे के नंदिनी के आमो को बिना पालक झपकाए देखे जा रहा था,,,,,,
सागर को अपनी और इस तरह से देखते हुए नंदिनी भी कुछ झेप सी गयी,,,,,,हालाँकि इस तरह की नज़रो का शिकार वो पहली बार नही हुई थी,,,,,,गाओं के सारे लड़के,,,,,और यहाँ तक के नैनीताल मे आने वाले टूरिस्ट भी उसकी इस सुंदरता से मूह नही मोड़ पाते थे,,,,,
फिर भी वो सीधे जाके सागर के गले लग गयी,,,,,,"कितने बदल गये हो तुम,,,,,,,शहर मे नये दोस्त मिल गये तो पुराणो को भूल गये हो क्या?????"
"हाआँ सही कहा तुमने" विकी ने भी हा मे हा मिलाई,,,,,
सागर तो पहले ही उस हमले से सकते मे था,,,,,,जीन्स के उपर आए हुए उस नुकीले उभार का पता वो नंदिनी को नही लगने देना चाहता था,,,,,वो कमर से कुछ झुक कर पीछे हो गया,,,,,अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए,,,,,
"नही ऐसी कोई बात नही है,,,,बस पढ़ाई मे ध्यान लगाए रहता था"सागर ने बात को संभालने की कोशिश की,,,,,,
"अच्छा बड़ा आया पढ़ाई करने वाले,,,,,,हम सब तो यहाँ अनपड़ हैं,,,,,,,अर्रे कोई शहरी मेडम मिल गयी होगी,,,,,उसी के साथ लगा रहता होगा,,,हमारा ध्यान कहा से आएगा",,,,,,विकी ने चुटकी लेते हुए ताना दिया,,,,,,
"आरे नही तुम लोग ग़लत समझ रहे हो,,,,,,अब मैं तुम्हे कैसे समझोउ" सागर नंदिनी के सामने अपनी किरकिरी नही होने देना चाहता था,,,,,,
"अर्रे ये छ्चोड़ो,,,,,ये बताओ अब तुम वापस तो नही जाओगे???" नंदिनी को भी शायद विकी की ये बात नागवार गुज़री थी,,,,,इसीलिए उसने खुद ही टॉपिक चेंज कर दिया,,,,,,,
"नही मैं अभी वापस,,,,, सागर को बीच मे ही रुकना पड़ा,,,,,,
"नंदिनिईीईईईईई तेरी मम्मी बुला रही हैं" सागर की मा ने आवाज़ लगाई,,,,,
"अच्छा सागर मैं अब चलती हू,,,,,,मम्मी को कुछ काम है,,,,,उसके बाद मुझे बाज़ार जाना है,,,,मैं शाम को आउन्गि,,,,तब आराम से बैठ के बात करेंगे,,,,,तब ये चिपकू भी नही होगा" नंदिनी ने विकी की तरफ इशारा करते हुए कहा,,,,,,नंदिनी और विकी मे हमेशा ही नोकझोक होती रहती थी,,,,आख़िर वो बोलता जो इतना था,,,,,,,,
"अच्छा मैं चिपकू हू तो तू क्या है,,,,छिपकली,,,,,रुक तुझे अभी बताता हू" विकीने उसके पीछे दौड़ लगा दी,,,,,,
भागते हुए जब सागर ने नंदिनी को देखा तो उसके तो होश ही उड़ गये,,,,,,क्या मस्त गोलाइयाँ थी,,,,,जैसे किसी ने तराश के ख़ास तौर पे धक्को के लिए शॉक अब्ज़ॉरबर के तौरपर बनाया हो,,,,,उन्न उछलते हुए नितंबो को देख के सागर को किसी की कही एक बात ध्यान आ गयी,,,,,,शायद वो इन्ही के लिए कही गयी थी,,,,,,,,,
"डालो रात मे और निकालो तीन दिन बाद मे"
अब तो सागर को बस शाम का इंतेज़ार था,,,,,,,और वो संकल्प कर चुका था के जैसे भी हो आज वो नंदिनी को अपने दिल की बात बता के ही रहेगा,,,,,,,
आज विकी का दिल भी उसके काबू मे नही था,,,,,,एक तो अपने इतने अच्छे दोस्त के आने की ख़ुसी,,,,,,,,और दूसरी तरफ उसके दिल की आरज़ू पूरी होने जा रही थी,,,,,,उसके प्यार के खेल को मंज़ूरी मिल गयी थी,,,,,और स्वाती नाम की लड़की जिसको फसाने के चक्कर मे विकी कई दीनो से एडी चोटी का ज़ोर लगा रहा था,,,,,,उसने विकी को मिलने के लिए स्नो व्यू नाम की जगह पे बुलाया था,,,,,,जहा पे हमेशा सूनसान रहती थी,,,,सिर्फ़ टूरिस्ट वाहा जाते थे,,,,,,
विकी को जब टाइम का अंदाज़ा हुआ तो फटाफट सागर के घर से स्नो व्यू के लिए निकल पड़ा,,,,,,रोप वे के रास्ते से,,,,,,जो के वाहा जाने के एकमत्रा रास्ता था,,,,,
विकी वाहा लेट पहुँचा था,,,,,,स्वाती उसका एक घंटे से इंतेज़ार कर रही थी,,,,,उसने ब्लॅक कलर का शॉर्ट स्कर्ट पहन रखा था,,,,,जिसमे से उसकी चिकनी टांगे कहर ढ़हा रहीं थी,,,,,बूब्स का साइज़ 34 के लगभग होगा लेकिन बिल्कुल कटोरे की तरह गोलाई लिए हुए थे,,,,,और उनके बिल्कुल बीच मे तने हुए निपल्स टाइट कपड़े की वजह से अपनी उपस्थित का प्रमाण पेश कर रहे थे,,,,,भरे हुए चूतड़ पीछे की और निकले हुए थे,,,,,जैसे किसी ने नीचे से हाथ लगा के लिफ्ट कर रखा हो,,,,,,कम शब्दो मे कहे तो स्वाती पर्फेक्ट समान थी पर्फेक्ट चुदाई के लिए,,,,,,और होती भी क्यू नही,,,,आख़िर तभी तो पसंद थी अपने विकी की,,,,,,उसके इस रूप को देखते ही विकी पागल हो गया,,,,,वो जल्द से जल्द उससे अपनी टाँगो के नीचे लेना चाहता था,,,,,,उस लड़की को औरत बनाने के लिए,,,,,,,या फिर कहे तो बुर को चूत बनाने के लिए,,,,,,
"क्यू आ गये आप,,,,ना ही आते तो अच्छा था" स्वाती का चेहरा गुस्से से तमतमा रहा था,,,,
अपना विकी भी लकड़ियो मे फूकने वालो मे से कहाँ था,,,,,हर चीज़ का तोड़ था बंदे के पास
"तुम्हारे लिए ये रिंग लेने मार्केट गया था,,,,नही चाहिए तो कोई बात नही" विकी ने प्यारी सी रिंग स्वाती को दिखाई और वापस जेब मे रखने लगा,,,,,,,वो जानता था किस चिड़िया को कैसे काबू मे लाया जाता है,,,,,
सारा गुस्सा अचानक प्यार मे बदल गया,,,,,और रिज़ल्ट ये था के रिंग स्वाती की उंगली मे थी और स्वाती विकी की बाहो मे,,,,,
सूरज ढालने को था,,,,और मौसम बहुत ही रंगीन हो रहा था,,,,,पास ही की एक वीरान झोपड़ी मे
दोनो ने शरण ली,,,,,,विकी से अब बर्दास्त नही हो रहा था,,,,,वो रह रह कर स्वाती के अंगों के साथ खेल रहा था,,,,,जांगो को सहला रहा था,,,,,,चूचियों को मसल रहा था,,,,,ये सब स्वाती को बहुत आनंद दे रहा था,,,,,,वो आनंद के सागर मे डुबकिया लगा रही थी,,,,पूरा वातावरण सिसकियो से गूँज रहा था,,,,,,विकी ने स्वाती को गरम होते देख एक पल की देर नही की,,,,और एक झटके के साथ स्वाती का स्कर्ट पकड़ के उतार दिया,,,,,,सुंदर चुचियाँ हवा मे एकदम से झूल गयी,,,,,और झटको के साथ उपर नीचे हो गयी,,,,,,,ये देख विकी के छोटू उस्ताद पॅंट फाड़ने की कंडीशन मे आ गये,,,,,,,विकी ने बिना देरी करते हुए स्वाती की ब्रा को उतार फेका और बुरी तरह से चूचियो को दबाने लगा,,,,,उधर कामुक सिसकियो का गला घोटने का काम विकी के होंठ कर रहे थे,,,,,,,आआअहह,,,,,,आआहह की आवाज़ अब उम्म्म्मम,,,,,उम्म्म्मम मे तब्दील होती जा रही थी,,,,,स्वाती भी ना जाने कब की प्यासी थी,,,,,,वो अपनी तरफ से पूरे सहयोग के साथ अपनी चूत विकी की जांग से घिस रही थी,,,,,,चूचो का तो वो हाल हो रहा था के अगर उनकी जगह कोई फल होता तो सारा रस ना जाने कब का निकल गया होता,,,,,,स्वाती के हाथ धीरे धीरे विकी के पेट को सहलाते हुए नीचे की और बढ़ते जा रहे थे,,,,,,जहा उनका एक अत्यंत कठोर मेहमान इंतेज़ार कर रहा था,,,,,,हाथ पॅंट तक पहुचते ही स्वाती चोंक गयी,,,,,,,लेकिन विकी ने उसको कोई रिएक्शन देने का मोका न्हैई दिया,,,,,आख़िर था भी तो वो उस खेल का मझा हुआ खिलाड़ी,,,,
"छोड़ दो मुझे प्लीज़,,,,,उम्म्म्म,,,,,,,अब कब तक तड़पावगे अहह,,,,,,उम्म्म्मम,,,,,प्ल्ज़्
ये तो विकी चाहता ही था,,,,,उसने बिना देर किए पहले स्वाती की पनटी को अलग किया और अपनी पॅंट और अंडरवेर एक झटके के साथ उतार दी,,,,,,विकी का लंड स्वाती के बहुत करीब खड़े होने की वजह से स्प्रिंग की तरह उछलता हुआ स्वाती की जाँघो के बीच मे से गुज़रता हुआ सीधे उसकी चूत के मुखाने पे जाके लगा,,,,,,स्वाती को तो जैसे तेज़ करेंट का झटका लग गया,,,,,,पहली बार किसी चीज़ की चुवन चूत पे हो तो झटका तो लगना ही था,,,,,,और वो चीज़ अगर लंड हो तो वोल्टेज तो तेज़ होंगे ही,,,,,,
"ये तो मेरी फाड़ के रख देगा"स्वाती इतना तगड़ा और कठोर लॅंड देख के डर गयी थी,,,,,,,आख़िर उसके दम का अंदाज़ा तो स्वाती को उस चोट ने ही दे दिया था,,,,,
"कुछ नही होगा डार्लिंग,,,,,,,पहले थोड़ा दर्द होगा लेकिन बाद मे तो आनंद ही आनंद है पूरी ज़िंदगी" विकी सारा काम प्यार से लेना चाहता था,,,,,,,
"लेकिन मेरी इतनी छोटी सी मे ये....." बाकी शब्द उसके मूह मे ही रह गये और विकी ने उससे पास पड़े टेबल पे बिठा दिया और खुद घुटनो के बाल बैठ कर अपना मूह चूत के मुहाने पे रख दिया,,,,,, और चूत के द्वार को खोल कर अपनी जीभ से उसमे रास्ता बनाने लगा,,,,,जैसे बड़े ऑफीसर के आने से पहले चम्चे भीड़ तितर बितर करने मे लग जाते हैं,,,,, स्वाती फिर से आनंद के दरिया मे गोते खाने लगी,,,,,,बड़े और छोटे का उससे ध्यान ही नही रहा,,,,,,,
इधर जीभ अपना काम कर रही थी,,,,,उधर हाथ चूचियो को मसल्ने मे मशगूल थे,,,,,,स्वाती मारे आनंद के पीछे की ओर मूडी जा रही थी,,,,,,,आख़िर वो समय भी आ ही गया जब चूत ने अपना जवाब दे दिया,,,,,,और बरस पड़ी विकी को अमृत पान करने के लिए,,,,,,
विकी अब भी उससी तरह से अपने कार्य पर जुटा हुआ था,,,,,,,अब ये सब स्वाती को आनंदमयी कम और पीड़ादाई ज़्यादा लग रहा था,,,,,,
"प्लीज़ अब फिर कभी कर लेना,,,अब हमे चलना चाहिए"स्वाती का काम तो हो चुका था,,,,,,लेकिन अगर विकी उसको ऐसे कैसे छ्चोड़ देता,,,,,उसका तो "क्ल्प्ड" हो जाता,,,,,,,
वह झट से उठा और उसने अपना फन फनता हुआ अनकॉंडा स्वाती के मूह मे दे दिया,,,,,,ये तो लड़कियो का फॅवुरेट लोल्ल्यपोप था,,,,,,आनंद की बारिश फिर से शुरू हो गयी,,,,,,अगले पूर्णा चुदाई संस्करण के लिए,,,,,,,,,
अबकी बार सिसकिया लेने की बारी विकी की थी,,,,,,,स्वाती पूरे जोश के साथ लंड को मूह से अंदर बाहर कर रही थी,,,,,और विकी का लॅंड कठोर होता जा रहा था,,,,,,आख़िर विकी को अपना लंड उसके मूह से निकालना ही पड़ा,,,,,,
"चलो अब सीधी होके लेट जाओ" स्वाती अच्छे सेवक की तरह हर आदेश का पालन कर रही थी,,,,,
विकी जानता था ये परीक्षा का समय है,,,,,
"देखो पहले थोड़ा दर्द होगा सहन कर लेना फिर तो मज़ा ही मज़ा है"विकी ने उससे समझाते हुए कहा,,,,,
और रख दिया अपना लॉडा चूत के उपर ओर धीरे धीरे प्रेशर डालना शुरू किया,,,,,,स्वाती की तो सिट्टी पिटी गुम हो गयी,,,,,,
असहनीय दर्द के मारे उसकी आँखें उबल गयी,,,,,जितना विकी ज़ोर लगा रहा था उतनी वो पीछे की ओर हटने की कोशिश कर रही थी,,,,,वो उचक उचक के अपनी चूत बचाने की कोशिश कर रही थी,,,,मगर लंड ने तो प्रतिग्या कर रखी थी,,,जब तक अंदर की दीवार छू के नही आ जाता हटेगा ही नही,,,,,,
विकी लगातार ज़ोर डाल रहा था ओर धीरे धीरे लंड चूत मे सरकता जा रहा था,,,,,,आख़िर मे परिणाम ये हुआ के टोपी ने किला फ़तह कर लिया,,,और इसकी पुष्टि स्वाती ने एक ज़ोरदार चीख के साथ दी,,,,,
विकी घबराकर वही रुक गया,,,,,और स्वाती बचने की कोशिश करने लगी,,,,,लेकिन ज़रा सा हिलते ही स्वाती को अहसास हो गया के ना हिलना ही इस अवस्था मे लाभदायक है,,,,,,विकी उसके उपर झुक गया और उसके दूधिया गोल मम्मो को अपने होंठो से सांत्वना देने लगा,,,,,,जैसे ही स्वाती कुछ शांत हुई,,,,,विकी ने थोड़ा सा ज़ोर का एक झटका दिया ओर एक बार मैं ही किला फ़तह कर लिया स्ववती तो चीख भी नही पाई क्योंकि विक्की का हाथ उसके मुँह से चिपका हुआ था फिर जैसे ही लंड बाहर आया तो,,,,,,,,,,,स्वाती की आँखो के साथ साथ चूत ने भी अश्रु धाराएँ छोड़नी शुरू कर दी आयेज का रास्ता एकदम आसान हो गया चीखो की जगह आनंद भारी सिसकारियों ने ले ली विक्की ने स्वाती को घोड़ी बना लिया फिर तो चुदाई का जो खेल शुरू हुआ अगर कोई देख लेता तो ऐसे ही झाड़ जाता ,,,,,स्वाती को बेंच पे झुका के उसका एक पैर विकी ने साइड मे रखे स्टूल पे रख दिया,,,,,,अब निशाना सामने था,,,,और गन फुल्ली लोडेड थी,,,,,धक्को का सिलसिला बढ़ता ही चला गया,,,,,,,इधर पीछे से धक्के और उधर आगे धक्को की वजह से चुचियों का बेंच पे रगड़ना,,,,स्वाती तो दोनो ओर से निहाल हुई जा रही थी,,,,,,आख़िर स्वाती ने फिर जवाब दे दिया,,,,,,ओर पानी छ्चोड़ गयी,,,,,,विकी भी अब आने ही वाला था,,,,,धक्को की रफ़्तार और तेज़ हो गयी,,,,स्ट्रोक्स अब और गहराई तक उतरते जा रहे थे,,,,,,लेकिन आख़िरी समय पे विकी ने लंड को चूत से निकाला और स्वाती को पलट दिया,,,,,,वीर्या की पहली पिचकारी ने सीधे स्वाती के होंटो को सलामी दी,,,,,,और लगातार पिचकारियों ने विकी ओर स्वाती दोनो को निहाल कर दिया,,,,,,
उधर सागर तो जैसे शाम होने का ही इंतेज़ार कर रहा था,,,,,,,,उसने नंदिनी को अपना बनाने का प्रण कर लिया था,,,,,,ठंडी ठंडी वादियो के बीच वो टारेस पे बैठा हुआ अकेले मे नंदिनी के ख्यालो मे खोया हुआ था,,,,,,उसको देखने की चाहत बढ़ती जा रही थी,,,,,,,,
प्यार की इस आग मे तो वो बरसो से तप रहा था,,,,,,,कुछ ना कह पाने की अपने प्यार का इज़हार ना कर पाने की बेचैनी ने तो बहुत समय से उससे परेशान कर रखा था,,,,,,लेकिन विकी की बातो ने और ख़ास कर के नंदिनी के उस रूप ने उस बेचैनी को बर्दास्त के बाहर कर दिया था,,,,,,वो बैठा हुआ सूरज को वादियो के बीच छुपता देख रहा था,,,,,कहते हैं पहाड़ पे ये समय सबसे रोमॅंटिक होता है,,,,,आज वो इस सच्चाई को जान गया था,,,,,,,
"हीईईइईए,,,,किसके ख़यालो मे खोए हुए हो????" इस आवाज़ ने उसको चौका दिया,,,,,,,उसको पता ही ना चला के कब नंदिनी उसके साइड मे थोड़ा सा पीछे रखी चेर पे आके बैठ गयी थी,,,,,,
"ओह,,,,तुम कब आ..आई"सागर ने संभालते हुए जवाब दिया,,,,,
"जब तुम खुली आँखों से सपने देख रहे थे,,,,,,क्या विकी सही कह रहा था,,,,,,कौन है वो लड़की"उत्सुकता नंदिनी के चेहरे पे सॉफ दिख रही थी,,,,,
वो तुम हो,,,,,एक बार तो सागर को लगा के वो ये कह दे
"नही ऐसी कोई बात नही,,,,वो तो मज़ाक कर रहा था" ,,,,,,,मगर बस वो ये ही कह पाया,,,,,,
"अच्छा छोड़ो ये बताओ देल्ही मे थे तो यहा की याद नही आती थी"सवाल फिर से सागर को तड़पाने वाला था,,,,,
वो कुछ ना बोला,,,,,,दिल उससे अपने दिल की बात कहने को झकझोर रहा था,,,,,ओरर दिमाग़ किसी अनहोनी का अंदेशा दिखा रहा था,,,,,,,
कही नंदिनी बुरा ना मान जाए,,,,,कही वो किसी और से ना प्यार करती हो,,,,,,कहीं वो मुझमे सिर्फ़ ओर सिर्फ़ एक अच्छा दोस्त ना देखती हो,,,,,,
दिल ओर दिमाग़ की इश्स जंग ने उसको असमंजस मे डाल दिया था,,,,,वो कभी नंदिनी को देख रहा था ओर कभी वादियो की ओट लेते हुए सूरज को,,,,,,नंदिनी भी अपने सवाल का जवाब ना मिलने से हैरान थी,,,,,और सागर को ध्यान से देख रही थी,,,,,,
आख़िर जैसा हमेशा होता है,,,,वैसा ही हुआ,,,,,,,दिल ने दिमाग़ पे विजय पा ली,,,,,,सागर कुर्सी से उठ खड़ा हुआ ओर अपने घुटनो पे आ गया,,,,,कुछ ना कहते हुए,,,,,,
"क्याअ हुआ"नंदिनी उसको हैरानी से देख रही थी,,,,,,
"मैं वाहा सिर्फ़ ओर सिर्फ़ तुम्हे ही याद करता था,,,,,मेरी हर साँस मे तुम ही तुम समाई हुई हो,,,,मैं तुमसे बहुत प्यार करता हू,,,,,,, बचपन से प्यार करता हू,,,,,शायद प्यार क्या होता है इसकी समझ से भी पहले से,,,,,दिन रात सुबह शाम तुम ही तुम मेरे ख्यालो मे रहती हो,,,,,मैं नही जानता के तुम मुझसे प्यार करती हो या नही लेकिन मैं सिर्फ़ इतना जानता हू कि अगर तुम मुझे ना मिली तो मैं मर जाउन्गा,,,,,,पागल हो जाउन्गा,,,,,,शायद तुम्हे मेरी बात बुरी लगे,,,,,शायद तुम किसी और को पसंद करती हो,,,,,लेकिन मेरे दिल मे जो था वो मैने तुम्हे बता दिया,,,,,अब फ़ैसला तुम्हे करना है,,,,,,अगर तुम ना चाहो तो अब भी हम अच्छे फ्रेंड्स बन के रह सकते हैं ",,,,,,,सागर एक साँस मे सब कुछ कहता चला गया,,,,,,किसी अनहोनी के अंदेशे के साथ उसकी आँखें नीचे झुक गयी थी,,,,,,,,उसको बस नंदिनी की आवाज़ का इंतेज़ार था,,,,,,
नंदिनी उसको वैसे ही पहले की तरह हैरानी के साथ देखे जा रही थी,,,,,
साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
आपका दोस्त
राज शर्मा
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`·.¸.·´ -- raj
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