Saturday, October 23, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--15

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--15

गतान्क से आगे...

शिवा भी उसके पीछे-2 बाहर आया & जब कोई 20 मिनिट बाद इंदर दफ़्तर के लोगो
से मिलके बाहर अपनी बाइक के पास आया तो उसने शिवा को वाहा खड़े
मुस्कुराते पाया,"तो अपना समान कब ला रहे हैं आप,इंदर जी?"

"बस शाम को ही आ रहा हू.विमल जी ने क्वॉर्टर की चाभी दे ही दी है.",बाइक
पे बैठ इंदर ने हेल्मेट पहना.

"चाहें तो मेरी जीप ले जाइए.बाइक को यही रहने दीजिए."

"थॅंक्स,शिवा भाई मगर मेरा कोई इतना ज़्यादा समान भी नही है.",उसने बाइक
स्टार्ट की & निकल गया.शिवा उसे जाता देख रहा था....क्या था इंदर मे जो
उसे ठीक नही लग रहा था?..उसने अपने दिमाग़ पे बहुत ज़ोर दिया..उसकी तहे
खंगाली मगर वाहा से कुच्छ भी नही मिला.एस्टेट से बाहर जाते हुए रास्ते पे
इंदर की बाइक अब 1 छ्होटा से बिंदु जितनी दिख रही थी.उसने नज़रे उपर कर
आसमान की ओर देखा,काले बदल घिर रहे थे,लगता था तूफान आने वाला है. (ये
कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )


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"क्या हुआ,ड्राइवर?",कामिनी ने पीछे की सीट पे बैठे शीशा नीचे कर सर को
ज़रा सा बाहर निकाला.ज़ोर की बारिश के बीच उस सुनसान सड़क पे अभी ही उसकी
कार को खराब होना था.आज कोर्ट से वो सीधा किसी काम के सिलसिले मे पंचमहल
के बाहरी इलाक़े मे गयी थी.वहाँ से लौटते हुए शाम हो गयी थी.बारिस तो
दोपहर बाद ही शुरू हुई थी मगर हल्की थी.शाम ढलते-2 उसने बड़ा भयंकर रूप
ले लिया था.

"ड्राइवर ने कार का बॉनेट बंद किया & वापस अंदर आ गया,उसके कपड़े बिल्कुल
भीग चुके थे,"मेडम,कुच्छ समझ नही आ रहा.इतनी तेज़ बारिश है कि ढंग से देख
भी नही पा रहा हू.",उसने अपने रुमाल से अपना चेहरा पोच्छा,ऐसा लग रहा था
मानो नदी मे डुबकिया लगाके वो बाहर आया हो.(ये कहानी आप राज शर्मा के
ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )

बंद कार मे कामिनी को घुटन सी महसूस हुई,उसने शीशा नीचे किया..अच्छा फँसी
आज तो!अब इस मूसलाधार बारिश मे कौन आएगा यहा.तभी पीछे से आती हुई किसी
गाड़ी के हेडलाइट्स की रोशनी उसकी कार के पिच्छले शीशे पे पड़ी.ड्राइवर
फ़ौरन उतरा & अपने भीगने की परवाह किए बिना अपने हाथ हिला के उसे रोकने
का इशारा करने लगा.वो कार पास आई & उसकी कार के आगे जाके रुक गयी.ड्राइवर
उस कार के मालिक की खिड़की के पास जाके उस से बात करने लगा.थोड़ी देर बाद
उस कार का दरवाज़ा खुला & उसमे से उसका मालिक उतरा.कामिनी ने उसे देखने
की कोशिश की मगर विंड्स्क्रीन पे तेज़ी से बहते पानी मे उसे सब धुँधला
नज़र आ रहा था.

जैसे ही वो शख्स पास आया कामिनी चौंक पड़ी,"अरे वीरेन जी,आप?"

"हां,आइए मेरी कार मे चलिए.",कामिनी उतरी & भागती हुई उसकी कार तक
पहुँची.बारिश इतनी तेज़ थी की उतनी सी दूरी मे भी कामिनी बुरी तरह भीग
गयी.

"मेडम,आप इनके साथ जाइए.यहा बगल मे मेरा 1 रिश्तेदार रहता है,मैं उसके
साथ कार किसी तरह उसके घर तक ले जाता हू & बारिश रुकते ही उसे ठीक करवा
के कल घर ले आऊंगा."

"ठीक है,जगन..",कामिनी ने अपना पर्स खोला,"..ये कुच्छ पैसे रख लो.",वीरेन
ने कार आगे बढ़ा दी.

"कहा से आ रही थी आप?",कामिनी ने जवाब देते हुए पाया की उसकी सफेद सारी &
ब्लाउस गीले होके उसके जिस्म से ना केवल पूरी तरह चिपक गये हैं बल्कि और
झीने भी हो गये हैं & वीरेन को उसका ब्रा & नीचे उसका पेट सॉफ नज़र आ रहे
होंगे.उसे अपन हालत पे शर्म आ गयी.उसका दिल कर रहा था की बस जल्दी से वो
अपने घर पहुँच जाए मगर शायद आज उपरवाले ने उसे परेशान करने की ठान रखी
थी.

"ऑफ..ओह!ज़रा देखिए तो!",वीरेन ने सामने की ओर इशारा किया.सड़क पानी से
लबालब भरी थी & आगे कुच्छ गाडिया उनमे फँसी भी हुई थी,"..अब तो आपके घर
जाना आज मुमकिन नही."

"अब क्या करू?",कामिनी के माथे पे परेशान की लकीरें खींच गयी.

"आप बुरा ना माने तो 1 बात कहु.",वीरेन ने उसे देखा तो कामिनी के ब्लाउस
से झँकता उसका सफेद ब्रा & उसका क्लीवेज उसे नज़र आ गया.वीरेन की निगाहे
1 पल को भटकी मगर फ़ौरन वापस कामिनी की निगाहो से मिल गयी. (ये कहानी आप
राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )

"हां,कहिए."

"मेरा घर यही पास मे है.वाहा चलिए.जब मौसम ठीक हो जाएगा तो मैं आपको खुद
आपके घर छ्चोड़ आऊंगा."

"आपको बेकार तकलीफ़ होगी."

"इसमे तकलीफ़ की क्या बात है & इस वक़्त और को भी रास्ता भी तो
नही.",वीरेन ठीक कह रहा था.बारिश थमती दिखाई नही दे रही थी & थम भी गयी
तो जब तक सड़क का पानी नही निकल जाता तब तक वो घर नही जा सकती थी.

"ठीक है,चलिए."

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कामिनी कार से उतर के वीरेन के बंगल मे दाखिल होने लगी तो वीरेन ने पीछे
से उसके गले बदन को देखा.सफेद सारी बदन से ऐसे चिपकी थी मानो वही उसकी
स्किन हो & उसके नशील जिस्म का 1-1 उभार नुमाया हो रहा था.वीरेन की
निगाहे उसकी नंगी कमर से उसकी चौड़ी गंद पे फिसली & उसी वक़्त कामिनी
पलटी & उसकी आँखो के सामने उसके लगभग नुमाया सीने के उभार चमक उठे,"आइए
अंदर चलते हैं."

"आए बैठिए,कामिनी जी..",वीरेन ने अपना 1 बातरोब कामिनी को दिया था.उसके
बाथरूम मे अपने कपड़े गीले उतार अपना बदन सूखा कामिनी ने उसे ही पहन लिया
था,"..ये लीजिए चाइ." (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ
में पढ़ रहे है )

"थॅंक्स.",कामिनी ने कप लिया & सोफे पे बैठ गयी.वीरेन का रोब उसे बहुत
बड़ा हो रहा था & उसकी आएडियो से कुच्छ उपर तक आ रहा था.

"आप यहा अकेले ही रहते है?"

"हां."

"कोई नौकर वग़ैरह भी नही है?"

"हैं,दोनो सवेरे आते हैं & सारा काम करके दोपहर तक चले जाते हैं.",वीरेन
ने भी कपड़े बदल लिए थे & वो भी उसके साथ चाइ की चुस्किया ले रहा था.

"वैसे भी मुझे अकेला रहना ही ठीक लगता है.जैसे मर्ज़ी रहो जो मर्ज़ी
करो.",कामिनी ने उसकी तरफ मुस्कुराते हुए सवालिया नज़रो से देखा.

"आप कुछ ग़लत मत समझिए.अरे मैं ठहरा पेंटर.कभी-2 1-2 दिन तक बस पैंटिंग
ही बनाता रहता हू.कभी कयि दीनो के लिए गायब हो जाता हू.अब ऐसे मे जो साथ
रहेगा उसे परेशानी तो होगी ही & उस से ज़्यादा मुझे.काम करते वक़्त मुझे
पसंद नही की कोई मुझे डिस्टर्ब करे.इस वजह से लोग कभी-2 मुझे बदतमीज़ &
खाड़ुस भी समझ लेते हैं."

"उम्मीद करती हू अभी मेर वजह से आप डिस्टर्ब नही हो रहे हैं?"

"कैसी बात करती हैं कामिनी जी आप!ये तो मेरी ख़ुशनसीबी है की आज आप मेरे
साथ बैठी हैं & मुझ से बाते कर रही है.",कामिनी मुस्कुराइ & अपना खाली कप
मेज़ पे रखा.

"ना.मैने ग़लत कह दिया..अभी मैं खुशनशीब नही हू..खुशनसीब तो तब होता जब
आप मेरी पैंटिंग की सिट्टिंग के लिए तैय्यार हो जाती.",जवाब मे कामिनी ने
कुच्छ ना कहा बस सर झुका लिया.कमरे मे सन्नाटा पसर गया.उस खामोशी से
कामिनी को थोड़ी बेचैनी हुई तो उसने उसे तोड़ने की गरज से वीरेन से सवाल
किया,"वीरेन जी,आप क्यू बनाना चाहते हैं मेरी पैंटिंग?"(ये कहानी आप राज
शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )

वीरेन ने अपनी वही दिलकश मुस्कान फेंकी.कामिनी को उस पल वो बहुत ही हसीन
लगा.वो वही सोफे से टेक लगाके पाँव फेला के बैठ गया.

"कामिनी जी,पता नही कभी आपने सुना है या ना पर हम पेंटर्स फेज़स मे काम
करते हैं.",कामिनी ने अपनी बाई कोहनी अपने घुटनो टीका दी थी & उसी हथेली
पे अपनी ठुड्डी & गौर से उसे सुन रह थी,"..मैं आपको अपनी ही मिसाल देता
हू.जब मे कॉलेज मे था..यही पंचमहल मे..उस वक़्त मुझे इंसानी चेहरे बड़े
दिलचस्प लगते थे & मैं बस पोरट्रेट्स बनाता था.घरवालो के,दोस्तो के..या
फिर राह चलते कभी कोई दिल चस्प इंसान दिख गया उसका भी."

"..फिर मैं पॅरिस चला गया & वाहा मेरा 1 दूसरा फेज़ शुरू हुआ,मुझे शहर &
उनका माहौल,शहर मे बसने वालो की खास आदतो ने बहुत लुभाया & मैं उनकी
पेनट्ग्स बनाने लगा."

"उरबनिया..",कामिनी के मुँह से निकला,यह नाम दिया था उस दौर को किसी आर्ट
क्रिटिक ने.कामिनी ने किसी मॅगज़ीन मे पढ़ा था उस बारे मे & तस्वीरे भी
देखी थी,"..उसमे आपकी 1 बहुत मशहूर तस्वीर थी,मदर & चाइल्ड अट दा आइफल
टवर.",तस्वीर मे 1 बच्चा अपन मा के साथ खड़ा सर उठा के आइफल टवर को देख
रहा है & उन्दोनो के बगल मे टवर की परच्छाई पड़ रही है.बच्चे के चेहरे पे
बिल्कुल निश्च्छाल खुश है-जैसी की केवल बच्चे महसूस करते हैं मगर माँ के
चेहरे के भाव बड़े दिलचस्प थे.वो बच्चे को खुश देख मुस्कुरा रही है मगर
उस खुशी मे कही दर्द भी दिख रहा थ.कैमरे से खींची फोटो मे ये दिखना तो
बड़ा आसान है मगर रंग & कूची के साथ ऐसी कलाकारी,वो तो बस कमाल था!

"तो आप वकालत के साथ-2 आर्ट का भी शौक रखती हैं?"

"जी,लेकिन मेरा ज्ञान बस सतही है."

"वही सबसे अच्छा होता है..हां तो मैने कहा कि ये मेरा दूसरा & सबसे लंबा
फेज़ था,फिर मैं ऊब गया & 1 दिन दिल ने कहा की वापस घर चलो तो यहा चला
आया.कामिनी जी,यहा मैं आया था इस बार केवल हिन्दुस्तानी औरत की तलाश
मे.मैं आज की हिन्दुस्तानी औरत की तस्वीरे बनाना चाहता था,(ये कहानी आप
राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )आज की लड़की जोकि
मर्दो से कंधा मिला के नही बल्कि उनसे आगे चल रही है मगर फिर भी उसके
पहनावे मे,उसके रूप मे उसकी शख्सियत मे अभी भी अपनी मिट्टी की खुश्बू आती
है..",कामिनी बड़े गौर से उसे सुन रही थी,ये पहली बार था जब वो 1 कलाकार
वो भी वीरेन जैसे नामचीन पेंटर की सोच के बारे मे जान रही थी.

"..मगर मैं यहा आया तो मुझे बड़ी निराशा हुई,हमारी औरतो ने तरक्कत तो
बहुत की है मगर जहा तक उनकी शख्सियत का सवाल है वो अपनी विदेशी सथिनो की
ड्यूप्लिकेट होती जा रही हैं.."उसने कामिनी की आँखो मे देखा,"..जब मैने
पहली बार आपको देखा तो मुझे लगा की मेरी तलाश ख़त्म हो गयी.आप ही थी
जिन्हे मैं ढूंड रहा था-हौसले & हिम्मत से भरी,खूबसूरत मगर खस्लिस
हिन्दुस्तानी.",वो उठ खड़ा हुआ & दोनो खाली कप्स मेज़ से उठाए,"..मगर
मेरी किस्मत इतनी अच्छी नही थी & आपने इनकार कर दिया.",वो मुस्कुराया &
कप्स रखने किचन मे चला गया.

कामिनी के दिल मे उठा-पुथल मच गयी....किस शिद्दत के साथ इसने अपनी बात
कही थी & उन बातो मे कही भी कोई झूठ नही था..यानी की वो केवल 1 पॅनिटर की
हैसियत से ही उसके पास आया था..उसका शक़ की वो अपने भाई की वकील के करीब
रह ये जानना चाहता है की कही वो उस से छुपा के तो कुच्छ नही कर
रहा-बिल्कुल बेबुनियाद था.उसने 1 मासूम इंसान के उतने ही मासूम पेशकश को
नाहक ही ठुकरा दिया था.उसे बहुत बुरा लग रहा था.वो उठी & किचन मे चली
गयी,(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)वीरेन फ्रिड्ज से खाना निकाल के गरम कर रहा था.आज तक वो उसे 1 बदतमीज़ &
बद्दिमाग शख्स समझती आई थी जोकि अपने मतलब के लिए उसके करीब आना चाहता
था..कितनी ग़लत थी वो.हक़ीक़त ये थी की वीरेन 1 भला & मददगार इंसान था
जिसे सिर्फ़ 1 ही बात मे दिलचस्पी थी-पैंटिंग.

"वीरेन जी..",आवाज़ सुन वीरेन घुमा,"..आप जाइए & ड्रॉयिंग रूम मे
बैठिए.खाना मैं गरम करती हू.",उसने उसके हाथ से बर्तन लिया & माइक्रोवेव
मे रखा.वीरेन जाने लगा,"और हां..",किचन से निकलता वीरेन पलटा,"..मैं आपकी
पैंटिंग के लिए सिटिंग्स करने को तैय्यार हू."

वीरेन का मुँह हैरत से खुल गया & उसके चेहरे पे बेइंतहा खुशी का भाव आ
गया.कामिनी मुस्कुराइ & घूम के खाने का समान बर्तनो मे निकालने लगी.वीरेन
कुच्छ देर खड़ा उसे देखता रहा & फिर खुशी से मुस्कुराता ड्रॉयिंग रूम मे
चला गया.

"ट्ररर्नन्ग्ग....!",मूसलाधार बारिश के शोर के कारण & बाथरूम मे होने की
वजह से रजनी ने अपने क्वॉर्टर की डोरबेल ज़रा देर से सुनी.वो कुच्छ देर
पहले ही बंग्लॉ से लौटी थी & पूरी तरह से भीग गयी थी.अभी उसने अपना गीला
बदन पोंच्छा ही था कि ना जाने कौन आ गया.

"अब इस वक़्त कौन हो सकता है?....ज़रूर पड़ोस की गीता होगी.",बड़बाडदते
हुए रजनी ने सेफ्टी चैन लगाके दरवाज़ा खोला तो उसे इंदर बाहर खड़ा नज़र
आया.

"तुम!!",उसने फ़ौरन सेफ्टी चैन हटा के दरवाज़ा खोल इंदर को अंदर आने
दिया,"इंदर,तुम इस वक़्त यहा कैसे?"

"तुम्हारी याद ने दीवाना कर दिया तो चला आया.",इंदर ने उसे बाहो मे भर लिया.

"ओह्ह..छ्चोड़ो ना!तुम एस्टेट मे घुसे कैसे?कही किसी को पता चल गया तो
आफ़त आ जाएगी.",रजनी ने उसे परे धकेला.

"अच्छा!",इंदर ने बाहे ढीली की & उसकी बाहे पकड़ उसके चेहरे को
देखा,"..किसकी मज़ाल है जो सहाय एस्टेट के मॅनेजर से कोई सवाल करे?"

"मतलब की..",रजनी का मुँह हैरत से खुल गया.

"हां,मेरी जान.तुम्हारे सामने यहा का नया मॅनेजर खड़ा है.",उसने उसे फिर
से अपने सीने से लगा लिया & उसके चेहरे को अपने हाथो मे भर लिया,"ये सब
तुम्हारी वजह से मुमकिन हुआ है.",उसने उसके माथे को चूम लिया.

"ओह्ह..इंदर,मैं तुम्हारे लिए कुच्छ भी कर सकती हू.",रजनी ने उसके सीने
पे सर रख दिया,"..आज मैं बहुत खुश हू.",उसकी बाहे अपने प्रेमी की पीठ पे
कस गयी.

"और मैं भी.",इंदर ने अपने बाए हाथ से उसकी ठुड्डी पकड़ उसका चेहरा उपर
कर उसके होंठो को तलब किया तो रजनी ने भी बड़ी गर्मजोशी से उन्हे उसकी
खिदमत मे पेश कर दिया.बिल्कुल सच कहा था इंदर ने,इस लड़की की वजह से आज
उसने अपने बदले की ओर 1 पहला मज़बूत कदम रखा था.ये ना होती तो पता नही
उसे क्या-2 मशक्कत करनी पड़ती.

"उउंम्म..मेरा तो ध्यान ही नही गया,तुम तो बिल्कुल भीग गये हो.",रजनी ने
किस तोड़ी,"..चलो,जाओ बदन पोंच्छ लो तब तक मैं खाना निकालती हू."

"बदन तो पोंच्छूंगा मगर तौलिए से नही & मुझे जो खाना है वो डिश तो तुम
हो,जानेमन!",इंदर ने उसके चेहरे पे किस्सस की झड़ी लगा दी.रजनी के दिल मे
सवाल उठे की वो अपनी कॉटेज से यहा तक आया कैसे..कही किसी को पता ना चल
जाए (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)..मगर उसका इश्क़ उसके सर पे सवार था & उसका जिस्म इंदर के आगोश मे
टूटने को बेचैन.ऐसे मे वो क्या करती!उसने भी बड़ी गर्मजोशी से उसके अस्र
के बालो मे उंगलिया फिराते हुए उसे खुद से चिप्टा लिया.

रजनी ने जल्दी मे नाइटी के नीचे कुच्छ नही पहना था & इंदर के सख़्त हाथ
उसके नाज़ुक अंगो पे बड़ी बेदर्दी से मचल रहे थे.रजनी के जिस्म की आग भी
धीरे-2 भदक्ति जा रही थी,उसने अपने हाथ इंदर की पीठ पे फिरते हुए उसकी
गीली कमीज़ को उसकी पॅंट से बाहर खींचा & फिर हाथ उसके अंदर घुसा गीली
पीठ सहलाने लगी.इंदर भी उसकी नाइटी उपर उठाते हुए उसके गले & क्लीवेज को
चूम रहा था.

"ऊव्व....!",इंदर के हाथ जैसे ही उसकी नंगी गंद से टकराए उसने उन्हे ज़ोर
से दबा दिया & अपने नखुनो से उन रसीली फांको को खरोंच भी दिया.जवाब मे
रजनी ने भी उसकी पीठ को हौले से नोच दिया.इंदर के दिल मे अपनी इस कठपुतली
के नंगे जिस्म को देखने की हसरत पैदा हुई & उसने नाइटी को खींच उसके सर
से उपर निकाल दिया.रजनी की साँसे तेज़ चल रही थी & उनकी वजह से किशमिश के
दानो जैसे कड़े निपल्स से सजी उसकी चूचिया उपर-नीचे हो रही थी.इंदर ने
नज़रे नीचे की तो देखा की उसकी झांतो से ढँकी चूत थोड़ी गीली सी लग रही
थी.

इंदर की निगाहे उसके जिस्म मे जैसे आग लगा रही थी.उसे शर्म सी आई & वो
आगे हो उसके सीने से लग गयी,"क्या देख रहे हो?"

"अपनी किस्मत पे यकीन नही आ रहा था.वही देख रहा था की तुम्हारे जैसा हीरा
मुझे कैसे मिल गया."

रजनी के दिल मे इतनी खुशी भर गयी की उसका गला भर आया.उसने सर उपर किया &
इंदर को पगली की तरह चूमने लगी.इंदर की बाजुओ की गिरफ़्त की वजह से दोनो
के जिस्म बिल्कुल चिपके हुए थे & उसका पॅंट मे बंद लंड रजनी की नाभि के
नीचे & उसकी चूत के उपर के पेट के हिस्से मे चुभ रहा था.रजनी का दिल अब
बिल्कुल बेक़ाबू हो गया था & उसमे आज इंदर की प्यार भरी बात ने उसकी सारी
शर्मोहाया मिटा के बस अपने प्रेमी के लिए ढेर सा प्यार & उसके जिस्म की
चाहत छ्चोड़ दी थी.(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में
पढ़ रहे है )

इंदर उसकी गंद मसल रहा था & उसके हाथ भी इंदर की गंद पे जम गये थे.इंदर
झुका & उसने उसका बाया हाथ अपनी गंद से हटा के आगे ला अपने लंड पे रख
दिया.पिच्छली बार की तरह इस बार रजनी ने हाथ पीछे नही खींचा बल्कि उसे
हल्के-2 दबाने लगी.इंदर का जोश अब अपने चरम पे पहुँच गया.वो जल्दी-2 अपनी
पॅंट उतारने लगा तो रजनी ने उसके हाथ हटाए & खुद उसके कपड़े निकालने लगी.

इंदर के नंगे होते ही दोनो फिर से 1 दूसरे की बाहो मे खो गये.थोड़ी देर
चूमने के बाद इंदर उसे उसके कमरे मे ले गया & दोनो बिस्तर पे लेट
गये.इंदर उसकी चूचिया चूस्ते हुए उसकी चूत मे उंगली कर रहा था & रजनी
अपने दाए हाथ मे उसके लंड को मजबूती से पकड़े हिला रही थी.उसने सोचा भी
नही था की वो इस तरह से 1 मर्द के लंड की ऐसी दीवानी हो जाएगी.लंड का 1
साथ मुलायम & सख़्त एहसास उसके दिल मे गुदगुदी पैदा कर रहा था.इंदर की
उंगली ने उसे जन्नत तक पहुँचा दिया था & वो लंड को पकड़े हुए बेचैन हो
कमर & बदन को हिलाते हुए आहे भरती झाड़ गयी. (ये कहानी आप राज शर्मा के
ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )

इंदर काफ़ी देर तक उसकी चूचियो से खेलता रहा.जब वो उठा तो रजनी की चूचिया
उसके होंठो के निशानो से भरी पड़ी थी.इंदर ने धीरे से उसका हाथ अपने लंड
से खींचा & फिर उसे सीधा लिटा दिया.रजनी ने सोचा की अब वो उसे चोद के
शांत करने वाला है मगर उसने ऐसा कुच्छ नही किया बल्कि उसे हैरान करते हुए
इंदर अपने घुटनो पे उसके सीने के बगल मे खड़ा हो गया & अपना लंड अपने बाए
हाथ मे पकड़ उसके होंठो से सटा दिया.

रजनी उसका इशारा समझ गयी & उसने फ़ौरन अपने होंठ खोल दिए & लंड को अपने
मुँह मे भर लिया.इंदर उसकी बाई तरफ था & उसने अपना बाया घुटना रजनी के
सीने पे हल्के से इसतरह जमाया की उसकी मोटी छातिया उसके नीचे दब गयी.फिर
तकियो की वजह से उठे हुए रजनी के सर को पकड़ के वो हौले-2 अपने लंड से
उसके मुँह को चोदने लगा.

रजनी सर बाई तरफ घुमा अपने मुँह मे उसके लंड का स्वाद चख ते हुए अपने
हाथो से इंदर की जंघे & गंद सहला रही थी.उसे बहुत मज़ा आ रहा था & उस से
भी ज़्यादा खुद पे आश्चर्या हो रहा था की वो कैसे झट से लंड को मुँह मे
लेने को राज़ी हो गयी!..और तो और अब वो लंड को तरह-2 से अपनी ज़ुबान &
होंठो से छेड़ अपने प्रेमी को जोश मे पागल कर रही थी.इंदर का सचमुच बुरा
हाल था.उसने अचानक रजनी के सर को ज़ोर से पकड़ लिया & लंड को उसके मुँह
मे ठुसने लगा.8 इंच का लूंबा,मोटा लंड रजनी के हलक मे जाने की कोशिश करने
लगा तो रजनी की सांस अटकने लगी.उसने इंदर के लंड के बगल मे पेट पे हाथ रख
उसे जैसे लंड बाहर खींचने का इशारा किया.

"सॉरी...आहह..!",इंदर ने अपने दिल पे काबू रखा.आमतौर पे वो ऐसा नही करता
था,उसके लिए औरत का जिस्म बस उसकी मर्दानी भूख को शांत करने का ज़रिया था
लेकिन रजनी की बात और थी.उसे नाराज़ कर या उसके दिल मे शक़ पैदा कर वो
अपने इंतकाम को ख़तरे मे नही डाल सकता था.उसने लंड आधा बाहर खींच लिया और
उतने से ही रजनी के मुँह को चोदने लगा.(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है ) रजनी भी उसकी गंद को थामे उसके धक्के
सहती हुई अपनी जीभ से लंड को छेड़ रही थी.

"आहह..आहह..!",इंदर का लंड रजनी की ज़ुबान के आगे घुटने टेक रहा था &
उसमे से उसका विर्य बलबला के निकलता हुआ रजनी के मुँह मे भर रहा था.हैरान
इंदर ने देखा की रजनी उसके लंड को पकड़ हिला के उसका सारा पानी मानो
निचोड़ रही है & उसे चाट-चाट के पी रही है.ये भोली सी लड़की बिस्तर मे
कैसी बिंदास हो गयी थी!मगर उस से भी ज़्यादा हैरत हुई खुद रजनी
को....कितना मज़ा आ रहा था उसे ये सब करने मे.उसने कभी सपने मे भी नही
सोचा था की वो लंड मुँह मे लेगी & इस तरह चांट-पोंच्छ के उस से गिरता रस
पिएगी.....लेकिन कितना मज़ा आ रहा था इस सब मे...कितनी मस्ती!उसकी चूत मे
कसक सी उठने लगी थी.

इंदर ने लंड उसके मुँह से खींचा & उसके बगल मे लेट गया & उसे बाँहो मे भर
लिया. (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )
थोड़ी देर दोनो बस 1 दूसरे से सटे लेटे रहे फिर रजनी ने ही पहल की.इंदर
के सोए लंड को उसने अपने हाथो मे लिया & उसे जगाने लगी.थोड़ी ही देर मे
लंड खड़ा हो गया तो इंदर ने उसे पीठ के बल लिटाया,उसके उपर चढ़ा & उसकी
टाँगे फैला के लंड को उसकी इंतेज़ार करती चूत मे दाखिल करने लग.दोस्तो
बाकी कहानी अगले पार्ट मे

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क्रमशः.......

BADLA paart--15

gataank se aage...

shiva bhi uske peechhe-2 bahar aaya & jab koi 20 minute baad inder
daftar ke logo se mlke bahar apni bike ke paas aaya to usne shiva ko
vaha khade muskurate paya,"to apna saman kab la rahe hain aap,inder
ji?"

"bas sham ko hi aa raha hu.vimal ji ne quarter ki chabhi de hi di
hai.",bike pe baith inder ne helmet pehana.

"chahen to meri jeep le jaiye.bike ko yehi rehne dijiye."

"thanx,shiva bhai magar mera koi itna zyada saman bhi nahi hai.",usne
bike start ki & nikal gaya.shiva use jata dekh raha tha....kya tha
inder me jo use thik nahi lag raha tha?..usne apne dimagh pe bahut zor
diya..uski tahe khangali magar vaha se kuchh bhi nahi mila.estate se
bahar jate hue raste pe inder ki bike ab 1 chhota se bindu jitni dikh
rahi thi.usne nazre upar kar aasmaan ki or dekha,kale badal ghir rahe
the,lagta tha toofan aane vala hai.


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"kya hua,driver?",kamini ne peechhe ki seat pe baithe sheesha neeche
kar sar ko zara sa bahar nikala.zor ki barish ke beech us sunsan sadak
pe abhi hi uski car ko kharab hona tha.aaj court se vo seedha kisi
kaam ke silsile me panchmahal ke bahri ilake me gayi thi.vahse lautate
hue sham ho gayi thi.barsih to dopahar baad hi shuru hui thi magar
halk thi.sham dhalte-2 usne bada bhayankar roop le liya tha.

"driver ne car ka bonnet band kiya & vapas andar aa gaya,uske kapde
bilkul bheeg chuke th,"madam,kuchh samajh nahi aa raha.itni tez barish
hai ki dhang se dekh bhi nahi pa raha hu.",usne apne rumal se apna
chehra pochha,aisa lag raha tha mano nadi me dubkiya lagake vo bahar
aaya ho.

band car me kamini ko ghutan si mehsus hui,usne sheesha neeche
kiya..achha fansi aaj to!ab is musladhar barish me kaun aayega
yaha.tabhi peechhe se aati hui kisi gadi ke headlights ki roshni uski
car ke pichhle sheeshe pe padi.driver fauran utra & apne bhigne ki
parvah kiye bina apne hath hila ke use rokne ka ishar karne laga.vo
car paas aayi & uski car ke aage jake ruk gayi.driver us ar ke malik
ki khidki ke paas jake us se baat karne laga.thodi der baad us car ka
darvaza khula & usme se uska malik utra.kamini ne use dekhne ki
koshish ki magar windscreen pe tezi se behte pani me use sab dhundhla
nazar aa raha tha.

jaise hi vo shakhs paas aaya kamini chaunk padi,"are Viren j,aap?"

"haan,aaiye meri car me chaliye.",kamini utri & bhagti hui uski car
tak pahunchi.barish itni tez thi ki utni si duri me bhi kamini buri
tarah bhig gayi.

"madam,aap inke sath jaiye.yaha bagal me mera 1 rishtedar rehta
hai,main uske sath car kisi tarah uske ghar tak le jata hu & barish
rukte hi use thik karwa ke kal ghar le aaoonga."

"thik hai,Jagan..",kamini ne apna purse khola,"..ye kuchh paise rakh
lo.",ire ne car aage badha di.

"kaha se aa rahi thi aap?",kamini ne jawab dete hue paya ki uski safed
sari & blouse gile hoke uske jism se na kewal puri tarah chipak gaye
hain balki aur jhine bhi ho gaye hain & viren ko uska bra & neeche
uska pet saaf nazar aa rahe honge.use apn halat pe sharm aa gayi.uska
dil kar raha tha ki bas jaldi se vo apne gahr pahunch jaye magar
shayad aaj uparwale ne use pareshan akrne ki than rakhi thi.

"off..oh!zara dekhiye to!",viren ne samne ki or ishara kiya.sadak pani
se labalab bhari thi & aage kuchh gadiya unme fansi bhi hui thi,"..ab
to aapke ghar jana aaj mumkin nahi."

"ab kya karu?",kamini ke mathe pe pareshan ki lakiren khinch gayi.

"aap bura na mane to 1 baat kahu.",viren ne use dekha to kamini ke
blouse se jhankta uska safed bra & uska cleavage use nazar aa
gaya.viren ki nigahe 1 pal ko bhatki magar fauran vapas kamini ki
nigaho se mil gayi.

"haan,kahiye."

"mera ghar yehi paas me hai.vaha chaliye.jab mausam thik ho jayega to
main aapko khud aapke ghar chhod aaoonga."

"aapko bekar taklif hogi."

"isme taklif ki kya baat hai & is waqt aur ko bhi rasta bhi to
nahi.",viren thik keh raha tha.barish thamti dikhayi nahi de rahi thi
& tham bhi gayi to jab tak sadak ka pani nahi nikal jata tab tak vo
ghar nahi ja sakti thi.

"thik hai,chaliye."

----------------------------------------------------------------------------------------------------------------------------

kamini car se utar ke viren ke bungle me dakhil hone lagi to viren ne
peechhe se uske gle badan ko dekha.safed sari badan se aise chipki thi
mano vahi uski skin ho & uske nashil jism ka 1-1 ubhar numaya ho raha
tha.viren ki nigahe uski nangi kamar se uski chaudi gand pe fisli &
usi waqt kamini palti & uski aankho ke samne uske lagbhag numaya seene
ke ubhar chamak uthe,"aaiye andar chalte hain."

"aaye baithiye,kamn ji..",viren ne apna 1 bathrobe kamini ko diya
tha.uske bathroom me apne kapde gile utar apna badan sukha kamini ne
use hi pehan liya tha,"..ye lijiye chai."

"thanx.",kamini ne cup liya & sofe pe baith gayi.viren ka robe use
bahut bada ho raha tha & uski aediyo se kuchh upar tak aa raha tha.

"aap yaha akele hi rehte hai?"

"haan."

"koi naukar vagairah bhi nahi hai?"

"hain,dono savere aate hain & sara kaam karke dopahar tak chale jate
hain.",viren ne bhi kapde badal liye the & vo bhi uske sath chai ki
chuskiya le raha tha.

"vaise bhi mujhe akela rehna hi thik lagta hai.jaise marzi raho jo
marzi karo.",kamini ne uski taraf muskurate hue savaliya nazro se
dekha.

"aap kuch galat mat samajhiye.are main thehra painter.kabhi-2 1-2 din
tak bas painting hi banata rehta hu.kabhi kayi dino ke liye garyab ho
jata hu.ab ase me jo sath rahega use pareshani to hogi hi & us se
zyada mujhe.kaam karte waqt mujhe pasand nahi ki koi mujhe disturb
kare.is wajah se log kabhi-2 mujhe badtamiz & khadus bhi samajh lete
hain."

"ummeed karti hu abhi mer vajah se aap disturb nahi ho rahe hain?"

"kaisi baat karti hain kamini ji aap!ye to meri khushnasibi hai ki aaj
aap mere sath baithi hain & mujh se baate kar rahi hai.",kamini
muskurayi & apna khali cup mez pe rakha.

"na.maine galat keh diya..abhi main khushnasb nahi hu..khushnasib to
tab hota jab aap meri painting ki sitting ke liye taiyyar ho
jati.",jawab me kamini ne kuchh nah kaha bas sar jhuka liya.kame me
sannata pasar gaya.us khamoshi se kamini ko thodi bechaini hui to usne
use todne ki garaj se viren se sawal kiya,"viren ji,aap kyu banana
chahte hain meri painting?"

viren ne apni vahi dilkash muskan fenki.kamini ko us pal vo bahut hi
hasin laga.vo vahi kaln pe sofe se tek lagake panv fala ke baith gaya.

"kamini ji,pata nahi kabhi aapne suna hai ya nah par hum painters
phases me kaam karte hain.",kamini ne apni bayi kohni apne ghutno e
tika di thi & usi hatheli pe apni thuddi & gaur se use sun rah
thi,"..main aapko apni hi misal deta hu.jab me college me tha..yahi
Panchmahal me..us waqt mujhe insani chehre bade dilchasp lagte the &
main bas portraits banata tha.gharwalo ke,dosto ke..ya fir raah chalte
kabhi koi dlchasp insan dikh gaya uska bhi."

"..fir main Paris chala gaya & vaha mera 1 dusra phase shuru hua,mujhe
shahar & unka mahaul,shehar me basne valo ki khas aadto ne bahut
lubhaya & main unki paintngs banane laga."

"urbania..",kamini ke munh se nikla,yeh naam diya tha us daur ko kisi
art critic ne.kamini ne kisi magazine me padha tha us bare me &
tasveere bhi dekhi thi,"..usme aapki 1 bahut mashahur tasvir
thi,Mother & Child At the Eiffel Tower.",tasvir me 1 bachcha apn maa
ke sath khada sar utha ke eiffel tower ko dekh raha hai & undono ke
bagal me tower ki parchhayi pad rahi hai.bachche ke chehre pe bilkul
nishchhal khush hai-jaisi ki kewal bachche mehsus karte hain magar
maan ke chehre ke bhav bade dilchasp the.vo bachche ko khush dekh
muskura rahi hai magar us khushi me kahi dard bhi dikh raha tha.camere
se khinchi photo me ye dikhana to bada aasan hai magar rang & kuchi ke
sath aisi kalakari,vo to bas kamal tha!

"to aap vakalat ke sath-2 art ka bh shauk rakhti hain?"

"ji,lekin mera gyan bas satahi hai."

"vahi sabse achha hota hai..haan to maine kaha ki ye mera dusra &
sabse lamba phase tha,fir main oob gaya & 1 din dil ne kaha ki vapas
ghar chalo to yaha chala aya.kamini ji,yaha main aaya tha is baar
keval hindustani aurat ki talash me.main aaj ki hindustani aurat ki
tasveere banana chahta tha,aaj ki ladki joki mardo se kandha mila ke
nahi balki unse aage chal rahi hai magar fir bhi uske pehnave me,uske
roop me uski shakhsiyat me abhi bhi apni mitti ki khushbu aati
hai..",kamini bade gaur se use sun rahi thi,ye pehli baar tha jab vo 1
kalakar vo bhi viren jaise naamchin painter ki soch ke bare me jaan
rahi thi.

"..magar main yaha aaya to mujhe badi nirasha hui,humari aurato ne
tarakkt to bahut ki hai magar jaha tak unki shakhsiyat ka sawal hai vo
apni videshi sathino ki duplicate hoti ja rahi hain.."usne kamini ki
aankho me dekha,"..jab maine pehli baar aapko dekha to mujhe laga ki
meri talash khatm ho gayi.aap hi thi jinhe main dhoond raha tha-hausle
& himmat se bhari,khubsurat magar khaslis hindustani.",vo uth khad hua
& dono khali cups mez se uthaye,"..magar meri kismat itni achhi nahi
thi & aapne inkar kar diya.",vo muskuraya & cups rakhne kitchen me
chala gaya.

kamini ke dil me utha-puthal mach gayi....kis shiddat ke sath isne
apni baat kahi thi & un baato me kahi bhi koi jhuth nahi tha..yani ki
vo keval 1 paniter ki haisiyat se hi uske paas aaya tha..uska shaq ki
vo apne bhai ki vakil ke kareeba reh ye jaanana chahta hai ki kahi vo
us se chhupa ke to kuchh nahi kar raha-bilkul bebuniyad tha.usne 1
masoom insan ke utne hi masoom peshkash ko nahak hi thukra diya
tha.use bahut bura lag raha tha.vo uthi & kitchen me chali gayi,viren
fridge se khana nikal ke garam kar raha tha.aaj tak vo use 1 badtamiz
& baddimagh shakhs samajhti aayi thi joki apne matlab ke liye uske
kareeb aana chahta tha..kitni galat thi vo.haqeeqat ye thi ki virern 1
bhala & madadgar insan tha jise sirf 1 hi baat me dilchaspi
thi-painting.

"viern ji..",aavaz sun viren ghuma,"..aap jaiye & drawing room me
baithiye.khana main garam karti hu.",usne uske haath se bartan liya &
microwave me rakha.viren jane laga,"aur haan..",kitchen se nikalta
viren palta,"..main aapki painting ke liye sittings karne ko taiyyar
hu."

viren ka munh hairat se khul gaya & uske chehre pe beintaha khushi ka
bhav aa gaya.kamini muskurayi & ghum ke khane ka saman bartano me
nikalne lagi.viren kuchh der khada use dekhta raha & fir khushi se
muskurata drawing room me chala gaya.

"Trrrnngg....!",musladhar barish ke shor ke karan & bathroom me hone
ki vajah se Rajni ne apne quarter ki doorbell zara der se suni.vo
kuchh der pehle hi bunglow se lauti thi & puri tarah se bhig gayi
thi.abhi usne apna gila badan ponchha hi tha ki na jane kaun aa gaya.

"ab is waqt kaun ho sakta hai?....zarur pados ki Geeta
hogi.",badbadadte hue rajni ne safety chain lagake darwaza khola to
use Inder bahar khada nazar aaya.

"tum!!",usne fauran safety chain hata ke darwaza khol inder ko andar
aane diya,"inder,tum is waqt yaha kaise?"

"tumhari yaad ne deewana kar diya to chala aaya.",inder ne use baaho
me bhar liya.

"ohh..chhodo na!tum estate me ghuse kaise?kahi kisi ko pata chal gaya
to aafat aa jayegi.",rajni ne use pare dhakela.

"achha!",inder ne baahe dhili ki & uski baahe pakad uske chehre ko
dekha,"..kiski majal hai jo Sahay Estate ke manager se koi sawal
kare?"

"matlab ki..",rajni ka munh hairat se khul gaya.

"haan,meri jaan.tumhare samne yaha ka naya manager khada hai.",usne
use fir se apne seene se laga liya & uske chehre ko apne hatho me bhar
liya,"ye sab tumhari vajah se mumkin hua hai.",usne uske mathe ko chum
liya.

"ohh..inder,main tumhare liye kuchh bhi kar sakti hu.",rajni ne uske
seene pe sar rakh diya,"..aaj main bahut khush hu.",uski baahe apne
premi ki pith pe kas gayi.

"aur main bhi.",inder ne apne baaye hath se uski thuddi pakad uska
chehra upar kar uske hotnho ko talab kiya to rajni ne bhi badi
garmjoshi se unhe uski khidmat me pesh kar diya.bilkul sach kaha tha
inder ne,is ladki ki vajah se aaj usne apne badle ki or 1 pehla mazbut
kadam rakha tha.ye na hoti to pata nahi use kya-2 mashakkat karni
padti.

"uummm..mera to dhyan hi nahi gaya,tum to bilkul bhig gaye ho.",rajni
ne kiss todi,"..chalo,jao badan ponchh lo tab tak main khana nikalti
hu."

"badan to ponchhunga magar tauliye se nahi & mujhe jo khana hai vo
dish to tum ho,janeman!",inder ne uske chehre pe kisses ki jhadi laga
di.rajni ke dil me sawal uthe ki vo apni cottage se yaha tak aaya
kaise..kahi kisi ko pata na chal jaye ..magar uska ishq uske sar pe
savar tha & uska jism inder ke agosh me tutne ko bechain.aise me vo
kya karti!usne bhi badi garmjoshi se uske asr ke baalo me ungliya
firate hue use khud se chipta liya.

rajni ne jaldi me nighty ke neeche kuchh nahi pehna tha & inder ke
sakht hath uske nazuk ango pe badi bedardi se machal rahe the.rajni ke
jism ki aag bhi dheere-2 bhadakti ja rahi thi,usne apne hath inder ki
pith pe firate hue uski gili kamiz ko uski pant se bahar khincha & fir
hath uske andar ghusa gili pith sehlane lagi.inder bhi uski nighy upar
uthate hue uske gale & cleavage ko chum raha tha.

"ooww....!",inder ke hath jaise hi uski nangi gand se takraye usne
unhe zor se daba diya & apne nakhuno se un rasili fanko ko kharonch
bhi diya.jawab me rajni ne bhi uski pith ko haule se noch diya.inder
ke dil me apni is kathputli ke nange jism ko dekhne ki hasrat paida
hui & usne nighty ko khinch uske sar se upar nikal diya.rajni ki sanse
tez chal rahi thi & unki vajah se kishmish ke dano jaise kade nipples
se saji uski chhatiya upar-neeche ho rahi thi.inder ne nazre neeche ki
to dekha ki uski jhanto se dhanki chut thodi gili si lag rahi thi.

inder ki nigahe uske jism me jaise aag laga rahi thi.use sharm si aayi
& vo aage ho uske seene se lag gayi,"kya dekh rahe ho?"

"apni kismat pe yakeen nahi aa raha tha.vahi dekh raha tha ki tumhare
jaisa heera mujhe kaise mil gaya."

rajni ke dil me itni khushi bhar gayi ki uska gala bhar aaya.usne sar
upar kiya & inder ko pagli ki tarah chumne lagi.inder ki bazuo ki
giraft ki vajah se dono ke jism bilkul chipke hue the & uska pant me
band lund rajni ki nabhi ke neeche & uski chut ke upar ke pet ke hisse
me chubh raha tha.rajni ka dil ab bilkul beqabu ho gaya tha & usme aaj
inder ki pyar bhari baat ne uski sari sharmohaya mita ke bas apne
premi ke liye dher sa pyar & uske jism ki chahat chhod di thi.

inder uski gand masal raha tha & uske hath bhi inder ki gand pe jum
gaye the.inder jhuka & usne uska baaya hath apni gand se hata ke aage
la apne lund pe rakh diya.pichhli baar ki tarah is baar rajni ne hath
peechhe nahi khincha balki use halke-2 dabane lagi.inder ka josh ab
apne charam pe pahunch gaya.vo jaldi-2 apni pant utarne lagat to rajni
ne uske hath hataye & khud uske kapde nikalne lagi.

inder ke nange hote hi dono fir se 1 dusre ki baaho me kho gaye.thodi
der chumne ke baad inder use uske kamre me le gaya & dono bistar pe
let gaye.inder uski chhatiya chuste hue uski chut me ungli kar raha
tha & rajni apne daaye hath me uske lund ko majbuti se pakde hila rahi
thi.usne socha bhi nahi tha ki vo is tarah se 1 mard ke lund ki aisi
deewani ho jayegi.lund ka 1 sath mulayam & sakht ehsas uske dil me
gudgudi paida kar raha tha.inder ki ungli ne use jannat tak pahuncha
diya tha & vo lund ko pakde hue bechain ho kamar & badan ko hilate hue
aahe bharti jhad gayi.

inder kafi der tak uski choochiyo se khelta raha.jab vo utha to rajni
ki choochiya uske hontho ke nishano se bhari padi thi.inder ne dhire
se uska hath apne lund se khincha & fir use seedha lita diya.rajni ne
socha ki ab vo use chod ke shat karne vala hai magar usne aisa kuchh
nahi kiya balki use hairan karte hue inder apne ghutno pe uske seene
ke bagal me khada ho gaya & apna lund apne baaye hath me pakad uske
hotho se sata diya.

rajni uska ishara samajh gayi & usne fauran apne honth khol diye &
lund ko apne munh me bhar liya.inder uski baayi taraf tha & usne apna
baaya ghutna rajni ke seene pe halke se istarah jamaya ki uski moti
chhatiya uske neeche dab gayi.fir takiyo ki vajah se uthe hue rajni ke
sar ko pakad ke vo haule-2 apne lund se uske munh ko chodne laga.

rajni sar bayi taraf ghuma apne munh me uske lund ka swad chakh te hue
apne hatho se inder ki janghe & gand sehla rahi thi.use bahut maza aa
raha tha & us se bhi zyada khud pe aashcharya ho raha tha ki vo kaise
jhat se lund ko munh me lene ko razi ho gayi!..aur to aur ab vo lund
ko tarah-2 se apni zuban & hotho se chhed apne premi ko josh me pagal
kar rahi thi.inder ka sachmuch bura haal tha.usne achanak rajni ke sar
ko zor se pakad liya & lund ko uske munh me thusne laga.8 inch ka
lumba,mota lund rajni ke halak me jane ki koshish karne laga to rajni
ki sans atakne lagi.usne inder ke lund ke bagal me pet pe hath rakh
use jaise lund bahar khinchne ka ishara kiya.

"sorryy...aahh..!",inder ne apne dil pe kabu rakha.aamtaur pe vo aisa
nahi karta tha,uske liye aurat ka jism bas uski mardani bhukh ko shant
karne ka zariya tha lekin rajni ki baat aur thi.use naraz kar ya uske
dil me shaq paida kar vo apne inteqam ko khatre me nahi dal sakta
tha.usne lund aadha bahar khinch liya aur utne se hi rajni ke munh ko
chodne laga.rajni bhi uski gand ko thame uske dhakke sehti hui apni
jibh se lund ko chhed rahi thi.

"aahhh..aahhhhh..!",inder ka lund rajni ki zuban ke aage ghutne tek
raha tha & usme se uska virya balbala ke nikalta hua rajni ke munh me
bhar raha tha.hairan inder ne dekha ki rajni uske lund ko pakad hila
ke uska sara pani mano nichod rahi hai & use chaat-chaat ke pi rahi
hai.ye bholi si ladki bistar me kaisi bindas ho gayi thi!magar us se
bhi zyada hairat hui khud rajni ko....kitna maza aa raha tha use ye
sab karne me.usne kabhi sapne me bhi nahi socha tha ki vo lund munh me
legi & is tarah chant-ponchh ke us se girta ras piyegi.....lekin kitna
maza aa raha tha is sab me...kitni masti!uski chut me kasak si uthne
lagi thi.

inder ne lund uske munh se khincha & uske bagal me let gaya & use baho
me bhar liya.thodi der dono bas 1 dusre se sate lete rahe fir rajni ne
hi pahal ki.inder ke soye lund ko usne apne hatho me liya & use jagane
lagi.thodi hi der me lund khada ho gaya to inder ne use pith ke bal
litaya,uske upar chada & uski tange faila ke lund ko uski intezar
karti chut me dakhil karnae laga.

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kramashah.......

आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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