Tuesday, October 12, 2010

आज मैं बहुत खुश हूँ

हिंदी सेक्सी कहानियाँ

आज मैं बहुत खुश हूँ

मेरा नाम मानसी है। मैंने अपनी कहानी "बहुत प्यार करती हूँ" हिंदी सेक्सी
कहानियाँ में भेजी थी, आप सबकी तरफ से बहुत अच्छे उत्तर मिले थे। आज मैं
आपको अपनी दूसरी कहानी बताने जा रही हूँ, आशा है आप सबको पसंद आएगी। मेरी
पहली कहानी जिन्होंने पढ़ी थी उन्हें उस इंसान के बारे में मालूम ही होगा
जिससे मैं प्यार करने लगी थी। जब उसकी शादी हो गई तो मैं खुद को बहुत
अकेला महसूस करने लगी थी। हालाँकि मैं जिससे प्यार करती थी, उससे मैंने
कभी भी शारीरिक सम्बन्ध नहीं बनाये थे लेकिन फिर भी उसकी कमी मुझे अपनी
ज़िन्दगी में महसूस होती थी। उसकी शादी होने के बाद तो मुझे यकीन हो ही
गया था कि अब वो इंसान मुझे कभी नहीं मिलेगा। लेकिन मैं जैसे जैसे बड़ी
हो रही थी मेरे अन्दर भी हर लड़की की तरह सेक्स की भावना बढ़ती जा रही थी।
लेकिन कभी किसी से शारीरिक संबंध बनाने से मैं भी डरती थी लेकिन जब मन
करता था तो अकेले ही मुठ मार कर अपना काम चला लेती थी।

मन तो करता था कि कोई हो जो मुझे प्यार करे, जिसके साथ मैं वक़्त बिता
सकूँ। लेकिन न कभी किसी और से प्यार हुआ न मेरी ज़िन्दगी में उसके बाद
कोई और आया। मैं हर वक़्त यही सोचती रहती थी कि कब मेरी भी शादी हो और
मैं भी अपने पति से जी भर कर चुदवाऊँ। लेकिन मेरी शादी होने में अभी
वक़्त था। धीरे धीरे मन में सेक्स की भावना इतनी बढ़ गई थी कि मैं यही
सोचती कि कब मुझे मौका मिले और मैं जी भर कर ग्रुप सेक्स करूँ। कम से कम
छः-सात लड़के मेरी एक साथ चुदाई करें। मैं जानती थी कि ऐसा हो नहीं सकता,
लेकिन मन नहीं समझता उसे तो बस चूत की प्यास से मतलब था।

लेकिन मेरी यह इच्छा उस दिन पूरी हो ही गई जब एक दिन मेरे मम्मी-पापा कुछ
दिनों के लिए किसी रिश्तेदार के यहाँ गए हुए थे। घर में मैं और मेरा बड़ा
भाई थे। मम्मी-पापा एक हफ्ते से पहले वापिस आने वाले नहीं थे। तभी भैया
के पास उनके कुछ दोस्तों का फ़ोन आया, उन लोगों को मुंबई जाना था। लेकिन
ख़राब मौसम होने की वजह से उनकी उड़ान रद्द हो गई। तो भैया ने उन्हें अपने
घर आने के लिए कह दिया। सर्दी के दिन थे, भैया ने उन्हें कहा कि पूरी रात
एअरपोर्ट पर कैसे रहोगे, घर आ जाओ। वो लोग मान गए।

वो दस लोग थे। भैया ने उन सबके खाने का इन्तज़ाम किया और उनका इंतज़ार
करने लगे। तभी अचानक पापा का फ़ोन आया कि वो जिस रिश्तेदार के यहाँ गए थे
उनकी मृत्यु हो गई है और भैया को वहाँ आना पड़ेगा। भैया ने पापा को बताया
कि उनके कुछ दोस्त घर पर आ रहे हैं तो पापा ने कहा कि उन्हें मानसी खाना
खिला देगी। लेकिन तुम्हारा यहाँ आना ज़रूरी है।

भैया ने अपने दोस्तों को फ़ोन कर दिया कि मुझे जाना पड़ेगा लेकिन मानसी घर
पर है, तो तुम लोग आ जाओ और खाना खा कर यही आराम कर लेना। वो लोग राज़ी हो
गए। जब वे सब घर पर आये तो मैं पहले तो थोड़ा घबरा गई कि मैं इनके साथ
पूरे घर में अकेले कैसे करुँगी लेकिन भैया के दोस्त बहुत अच्छे थे और
उन्होंने कहा कि तुम आराम से बैठी रहो और बस हमें यह बता दो कि सब चीज़ें
कहाँ हैं हम खुद ले लेंगे। उनमें से दो लोग रसोई में आ गए और बाकी सब
कमरे में बैठ कर टी.वी देखने लगे। मैंने उन्हें बता दिया लेकिन रसोई में
उनके साथ ही खड़ी रही कि कहीं उन्हें किसी चीज़ की ज़रूरत न हो। उनमें से
एक का नाम सागर था। मैंने महसूस किया कि वो जब से आया था तब से मुझे ही
देखे जा रहा था और जब मैं उसे देखती थी तो वो अपनी नज़रें मुझ पर से हटा
कर कहीं और देखने लगता था।

उसके बाद हम सबने साथ ही खाना खाया। फिर मैं अपने कमरे में सोने चली गई।
उनमें से कुछ लोग मम्मी पापा के कमरे में लेट गए और कुछ भैया के कमरे
में। मैं नीचे जाकर सो गई और अपने कमरे को अन्दर से बन्द कर लिया। थोड़ी
देर के बाद सागर नीचे आया और बोला- मानसी हमें नींद नहीं आ रही है, तुम
कुछ फिल्म की सीडी निकाल कर दे दो हम देख लेंगे।

मैंने कहा- ठीक है।

मैं उन्हें सीडी देने गई और सोचा कि नींद तो मुझे भी नहीं आ रही है तो
मैं भी इन लोगों के साथ बैठ जाती हूँ।

मैं वहीं सागर की बगल में बैठ गई और थोड़ी देर में ही हम सबके बीच हंसी
मजाक शुरू हो गया। तभी अचानक सागर ने मेरे हाथ पर अपना हाथ रख दिया और
मैं कुछ नहीं बोल पाई। सागर मेरी और ही देख रहा था कि तभी उसका एक दोस्त
नितिन बोला- क्या बात है सागर ! जब से आये हो, मानसी को ही देख रहे हो !
अगर पसंद आ गई है तो शादी का प्रस्ताव रख दो। इसके भाई को हम मना ही
लेंगे।

उसने कहा- ऐसा कुछ नहीं है।

वैसे उसका हाथ पकड़ना मुझे भी अच्छा लगा। सर्दी के दिन थे हम सब रजाई में
बैठे थे इसलिए किसी को पता नहीं चला कि उसने मेरा हाथ पकड़ा है। लेकिन
अचानक उसे पता नहीं क्या हुआ कि वो मेरे होठों पर चूमने लगा। उसके सब
दोस्त हैरान रह गए और मैं भी।

मुझे कुछ समझ ही नहीं आया कि मैं क्या करूँ। पसंद तो वो भी मुझे पहली ही
नज़र में आ गया था लेकिन मेरे दिल में यह डर बैठा था कि यह सब मेरे घर में
पता चल गया तो क्या होगा। लेकिन उसे छोड़ने का मन मेरा भी नहीं कर रहा था।
तभी नितिन ने भी पीछे से आकर मेरे स्तनों को दबाना शुरू कर दिया लेकिन
मैंने झटके से उसे पीछे कर दिया और सागर को भी।

मैंने कहा- आप लोग यह सब क्या कर रहे हो।

तभी सागर ने कहा- मानसी हम सब आज की रात यहाँ हैं और हम चाहते हैं कि तुम
पूरी रात हमारे साथ रहो। हम तुम्हारे साथ सेक्स करना चाहते हैं।

मैंने कहा- पागल हो गए हो क्या तुम सब लोग? मेरे घर में पता चल गया तो
पता नहीं क्या होगा।

उन्होंने कहा- हम तुम्हारे भाई को कभी पता नहीं चलने देंगे। हमारा
विश्वास करो, आखिर वो हमारा दोस्त है।

मैं उन्हें मना करना चाहती थी कि तभी मैंने सोचा कि मेरा जो ग्रुप सेक्स
करने का सपना था वो आज सच हो सकता है। वैसे भी ये दस लोग हैं मैं मना
करुँगी तो यह मेरे साथ जबरदस्ती भी कर सकते हैं। तब मैं क्या करुँगी। इस
से अच्छा है कि खुद ही राज़ी हो जाऊं। शायद ऐसा मौका दुबारा न मिले और अगर
इन्होने मेरे घर में बता भी दिया तो मैं यह कह सकती हूँ कि यह इतने सारे
लोग थे इन्होंने मेरे साथ जबरदस्ती की थी। मैं अकेली क्या करती।

तभी सागर ने मुझे पूछा- क्या सोच रही हो मानसी, तुम तैयार हो ना?

मैंने उसे कुछ नहीं कहा और उसके होंठों पर चुम्बन करने लगी। वो समझ गए कि
मैं तैयार हूँ। सागर के साथ किस करने में बहुत मज़ा आ रहा था। 15 मिनट तक
मैं उसे चूमती रही और मुझे कुछ भी होश नहीं था। जब मैं उससे अलग हुई तो
नितिन ने आकर मुझे चूमना शुरू कर दिया। उसके बाद उसके सभी दोस्तों ने
मेरे साथ यही किया और ऐसे ही एक घण्टा बीत गया। उस वक़्त तक हम में से
किसी ने भी अपने कपड़े नहीं उतारे थे।

तभी सागर ने कहा- मानसी, तुम हम सबके कपड़े उतारो !

तो मैंने कहा- ठण्ड है ! नहीं होगा।

हमने रूम-हीटर चालू किया और उसके बाद मैंने एक एक करके उन सबके कपड़े उतार दिए।

तभी नितिन बोला- अब हम एक खेल खेलेंगे। उसने कहा- मानसी दो दो मिनट के
लिए सबके लण्ड चूसेगी और जिसका लंड ज्यादा जल्दी खड़ा होगा वही सबसे पहले
चोदेगा।

लेकिन मैं सबसे पहले सागर से चुदवाना चाहती थी। पता नहीं क्यूँ ! शायद वो
मुझे पसंद था इसलिए।

उसके बाद मैंने एक एक करके सबके लण्डों को चूसना शुरू किया। मेरे साथ वही
सब हो रहा था जो मैं करना चाहती थी। और आज मैं जी भर कर अपनी इच्छा को
पूरा करना चाहती थी। इतने सारे लंड एक साथ देख कर मैं पागल सी हो गई थी।
मैंने जी भर कर सबके लौड़ों को चूसा और सागर के लंड को मैंने जब अपने
मुँह में लिया तो उसे बाहर निकालने का मन ही नहीं कर रहा था। मैंने सागर
का लंड 15 मिनट के लिए चूसा जिससे वो भी पूरी तरह गर्म हो गया और उसने
मेरे सर को पकड़ कर ऊपर किया, मेरे होंठ जो उसके लंड के पानी से भीगे हुए
थे उन्हें चूसने लगा और सबको कहा कि मानसी सबसे चुदवाएगी लेकिन अभी हमारे
बीच कोई नहीं आएगा।

सबने वैसा ही किया और सब हमें देखते रहे। मुझे शर्म आने लगी थी लेकिन
सागर था कि मुझे छोड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था। 15 मिनट मेरे होंठ
चूसने के बाद उसने कहा- अब तुम अपने कपड़े उतारो, हम सब तुम्हारी चूत को
चाटेंगे।

मैंने सागर से कहा- मेरी चूत पर तो बाल हैं।

उसने कहा- तुम फ़िक्र मत करो।

उसने अपने एक दोस्त को इशारा किया और वो अपने बैग में से रेज़र लेकर आया।
सागर ने मुझे अपनी गोद में उठाया और मुझे बाथरूम में ले जा कर बाथ टब में
लिटा दिया। उसके बाद उसने मेरी टांगें फैला दी और मेरी चूत को गीला करके
उस पर ढेर सारा साबुन लगा दिया। उसके बाद उसका एक दोस्त मेरी चूत के
होठों को खोलता जा रहा था और सागर बड़े प्यार से मेरी चूत के बाल साफ़ कर
रहा था। सागर का एक दोस्त मेरे होंठों को चूस रहा था, एक मेरे वक्ष मसल
रहा था और बाकी सब वहीं खड़े होकर देख रहे थे। यह सब देख कर उनके लौड़े भी
तनकर खड़े हो चुके थे। थोड़े बाल साफ़ करने के बाद सागर ने मेरी चूत को
पानी से धोया और अपनी जीभ मेरी चूत में डाल दी। मैं काँप उठी जैसे कोई
करंट लगा हो।

थोड़ी देर में जब उसने मेरी चूत पूरी तरह साफ कर दी तो उसके बाद नितिन
मुझे उठा कर कमरे में ले आया और लाकर मुझे बेड पर लिटा दिया। कमरे में
लाते ही सागर मेरी टांगों के बीच आकर बैठ गया और चूत के दोनों होंठों को
खोल कर देखने लगा। मुझे शर्म आने लगी और मैंने अपना चेहरा अपने हाथों से
ढक लिया।

तभी सागर बोला- क्या चिकनी बुर है। इसे तो मैं जी भर कर चूसूंगा उसके बाद चोदूंगा।

तब उसके सभी दोस्तों ने बारी बारी से मेरी चूत को चाटा। मैंने ऐसा पहले
कभी महसूस नहीं किया था क्यूंकि सब के सब मेरे साथ कुछ ना कुछ कर रहे थे
और मैं पागल सी होती जा रही थी।

अब सागर की बारी थी। सागर आकर मेरी टांगों के बीच बैठ गया था। इससे पहले
मैं कम से कम तीन बार झड़ चुकी थी।

सागर ने मेरी टांगों को उठा कर अपने कंधे पर रख लिया और मेरी चूत के
होंटों को खोल दिया। उसके बाद सागर ने अपनी एक ऊँगली मेरी गांड में डाल
दी और नीचे झुक कर अपनी जीभ मेरी चूत के अन्दर। उसकी गरम जीभ अपनी चूत के
अन्दर जाते ही मैं अन्दर तक सिहर गई। मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं किसी
स्वर्ग में घूम रही हूँ। मेरी चूत को चाटते हुए सागर घूम गया और उसने
अपना लौड़ा मेरे मुँह की तरफ कर दिया और कहा कि मैं उसे अपने मुंह में
लूँ।

मैंने जैसे ही उसका गर्म लंड अपने मुंह में लिया वैसे ही उसके बदन में भी
एक करंट सा लगा। अब हम 69 अवस्था में थे। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। लगभग
आधे घंटे उसी अवस्था में रहने के बाद सागर मेरे ऊपर से हट गया। इस बीच
मैं दो बार झड़ चुकी थी और सागर था कि झड़ने का नाम ही नहीं ले रहा था।

सागर ने अपने दोस्तों से कहा- यार, बहुत अच्छा लौड़ा चूसती है, बहुत मस्त माल है।

तभी उसके दोस्त ने कहा- फिर तो इसकी जी भर कर चुदाई करेंगे।

नितिन ने कहा- यार इतना मस्त माल है तो चोदने में मज़ा आ ही जायेगा और वो
भी अपने मर्ज़ी से चुदवा रही है।

तभी मेरे दिमाग में ख्याल आया कि अगर मैं इनसे अपनी मर्ज़ी से चुदवाऊँ तो
यह लोग बहुत आराम से चोदेंगे लेकिन मैं इस मौके का पूरा फायदा उठाना
चाहती थी और जबरदस्त चुदाई करवाना चाहती थी। इसलिए मैंने एक चाल चली। जब
सागर मेरे ऊपर से हट कर अलग हुआ तो मैं उठ कर खड़ी हो गई और कहा- बस अब
यह सब यहीं ख़त्म करो और मुझे जाने दो।

तभी नितिन ने कहा- जाती कहाँ है साली रंडी ! अभी तो तेरी चुदाई बाकी है।

मैंने कहा- मुझे छोड़ दो !

और मैं कमरे से बाहर जाने लगी कि तभी उसने मुझे खींच कर बिस्तर पर पटक
दिया। मैंने सागर की तरफ देखा तब मैंने महसूस किया कि उसे भी शायद यह सब
अच्छा नहीं लग रहा और वो भी नहीं चाहता कि यह सब हो लेकिन अब हम कुछ नहीं
कर सकते थे। अगर वो अपने दोस्तों को मना भी करता तो कोई उसकी बात नहीं
सुनता और सब मेरे साथ जबरदस्ती करते। जबरदस्ती तो वो लोग अब भी कर ही रहे
थे क्यूंकि मैं भी यही चाहती थी।

मैंने नितिन से कहा- प्लीज़, मुझे जाने दो !

लेकिन उसने मेरी एक नहीं सुनी और मेरे पास आकर बैठ गया। मैंने उठने की
कोशिश की लेकिन तभी उनके दोस्तों ने मेरे हाथ और मेरे पांव पकड़ कर मुझे
पूरी तरह जकड लिया और सागर आकर मेरे स्तनों को मसलने और दबाने लगा। नितिन
गन्दी गन्दी गालियाँ देने लगा। साली रंडी दस-दस लोगों से चुदवाने को
तैयार है और सीधी बनने की कोशिश करती है। आज देख तेरी ऐसी चुदाई होगी
रंडी कि तू सारी ज़िन्दगी याद रखेगी। तेरी चूत का भोसड़ा बनायेंगे आज। ऐसा
चोदेंगे कि दुबारा किसी से चुदने से पहले दस बार सोचेगी।

मैं समझ गई थी कि सब लोग गरम हो चुके हैं और मैं भी अपनी चूत में लंड
लेने को बेकरार थी। सागर मेरे ऊपर लेट कर मेरे होंठों को चूसने लगा और
मम्मों को दबाने लगा। मेरे हाथ और पैर तो उसके दोस्तों ने पकड़ रखे थे।
इसलिए मैं हिल भी नहीं पा रही थी। तभी सागर सीधा होकर मेरी चूत के पास
घुटनों के बल बैठ गया और मेरी टांगें फैला कर ऊपर की ओर कर दी। उसका एक
दोस्त मेरे होंठों को चूसने लगा और नितिन मेरे मम्मों को मसलने लगा। मेरे
मम्मों में भी दर्द हो रहा था।

तभी सागर ने अपना नौ इंच लम्बा लंड मेरी चूत पर रखा और एक ही झटके में
पूरा का पूरा लंड मेरी चूत को चीरता हुआ अन्दर जड़ तक चला गया। मुझे सबने
इतने कस कर पकड़ रखा था कि मैं हिल भी नहीं पा रही थी। जैसे ही उसने अपना
लंड मेरी चूत में डाला, मैं दर्द के मारे तड़प उठी और हिल ना पाने की वजह
से अन्दर ही तड़प कर रह गई। होंठ भी एक लड़के ने अपने होंठों से बंद कर रखे
थे तो आवाज़ भी नहीं निकल पा रही थी। दर्द की वजह से मेरी आँखों में आंसू
आ गए जिसे देख कर सागर को दुःख हुआ और वो अपना लंड बाहर निकालने लगा।

मैंने इशारे से उसे मना कर दिया। वो थोड़ी देर के लिए रुक गया। और जब दर्द
कुछ कम हुआ तो उसने धीरे धीरे धक्के मारने शुरू किये। अब मुझे भी मज़ा आने
लगा था तो मैं भी सागर का पूरा साथ देने लगी। मैंने उन्हें अपने हाथ और
पैर छोड़ने को कहा। और दो लड़कों के लौड़ों को अपने हाथों में लेकर उनकी
मुठ मारने लगी। नितिन का लंड मेरे मुंह में था। दो लड़के मेरे मम्मों को
पकड़ कर मसलने लग गए और बाकी सब अपनी अपनी जीभ मेरे पूरे बदन पर रगड़ रहे
थे। मेरा पूरा बदन एक साथ चुद रहा था। मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। करीब आधे
घंटे चुदाई करने के बाद सागर ने सबको कहा- अब सब झड़ने के लिए तैयार हो
जाओ।

मैंने उन सबसे कहा- अपने लौड़ों का पानी मेरे ऊपर डाल दो और सागर से कहा
कि तुम मेरी चूत के अन्दर ही झाड़ना।

सागर ने वैसे ही किया। करीब 5 मिनट के बाद चारों लड़के (सागर, नितिन) और
जिनके लंड मेरे हाथ में थे, एक साथ झड़े और सबने अपना पानी मेरे ऊपर डाल
दिया। सागर का गरम वीर्य मैं अपनी चूत में महसूस कर रही थी। मुझे बहुत
अच्छा लग रहा था।

उसके बाद बाकी सबने भी मुझे बारी बारी से चोदा। उस पूरी रात में मेरी
बारह बार चुदाई हुई। बाकी सबने एक एक बार और सागर और नितिन ने मुझे दो-दो
बार चोदा। मुझे बहुत अच्छा लग रहा था। उसके बाद सबने बाथरूम में जाकर
अपने लौड़ों को साफ़ किया और सुबह के छः बजे जाकर कमरे में सो गए। लेकिन
मैं इतनी जबरदस्त चुदाई के बाद उठने की भी हिम्मत नहीं कर पा रही थी। तब
सागर ने कहा- मानसी, तुम यहीं रहो, मैं आता हूँ।

और उसके बाद वो बाथरूम में जाकर बाथटब में गरम पानी भर कर आया। और मुझे
अपनी गोद में उठा कर बाथरूम में ले गया। उसने जाकर मुझे टब में लिटा दिया
और मेरी चूत को हल्के हाथ से सहलाने लगा। इससे मेरी चूत को बहुत आराम मिल
रहा था। मेरी पूरी चूत बुरी तरह से लाल थी और बहुत दर्द हो रहा था। उसके
बाद सागर ने मुझे लाकर बिस्तर पर लिटाया। और मेरे बदन को पोंछा जिससे
मुझे बहुत आराम मिल रहा था। तभी सागर आकर मेरे पास लेट गए और मुझे रजाई
में लेकर अपने साथ चिपका लिया। मुझे उसकी बाहों में एक सुकून सा मिला।
जिस इंसान की कमी मैं अपनी ज़िन्दगी में महसूस करती थी, लगा कि सागर उस
कमी को पूरा कर सकता है। लेकिन यह बात मैं उसे कैसे कहती। उसके सामने ही
उसके दोस्तों से चुदी हूँ।

तब सागर ने मेरे चेहरे को अपने हाथों में लिया और कहा- मानसी, मुझे माफ़
कर दो। आज तुम्हारे साथ जो भी हुआ उसका जिम्मेदार मैं ही हूँ। ना मैं
शुरुआत करता और ना तुम्हारे साथ यह सब होता। लेकिन मैं सच में तुम्हें
पसंद करने लगा हूँ। मैं जानता हूँ कि तुम यही सोच रही होगी कि तुम्हारे
साथ ऐसा करने के बाद भी मैं यह सब कह रहा हूँ। लेकिन ये सच है मानसी। मैं
तुम्हें पसंद करता हूँ और तुमसे शादी करना चाहता हूँ। तुम्हारे भाई के
वापिस आते ही मैं उससे तुम्हारा हाथ मांगूंगा।

और मैं भी उसकी बात को स्वीकार करते हुए उसके कंधे पर सर रख कर लेट गई।
नींद कब आई पता ही नहीं चला।

जब नींद खुली तो सुबह के 11 बज रहे थे। मैंने जल्दी से उठ कर कपड़े पहने।
सब लोग नहा कर तैयार हो गए। पूरा बदन रात की चुदाई से दर्द कर रहा था।
लेकिन इस दर्द में उस प्यार का एहसास भी था जो मुझे सागर से मिला था।
उसके बाद मैंने सब के लिए चाय बनाईं। सब लोग चाय पीकर निकल गए और जाते
जाते सागर ने मुझसे कहा कि मैं उसका इंतज़ार करूँ, वो मुझे लेने आएगा।
उसकी बात पर यकीन भी था लेकिन मन में शक भी था। उसके बाद दो साल तक सागर
की कोई खबर नहीं आई। ना ही भाई से पूछने की हिम्मत थी उसके बारे में।

तब तक मेरी पढ़ाई भी ख़त्म हो चुकी थी। घर में मेरी शादी की बातें होने
लगी थी। लेकिन मुझे तो सागर का इंतज़ार था। कभी कभी लगता कि अगर उसे आना
ही होता तो क्या वो इन दो सालों में मुझसे मिलने की बात करने की कोशिश
नहीं करता। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ इसका मतलब उसने जो कहा शायद वो सब
मुझे दिलासा देने के लिए कहा था। मैंने घर वालों को शादी के लिए हाँ कह
दी और कहा कि वो जिसे भी मेरे लिए पसंद करेंगे मैं उसी से शादी कर लूंगी।

एक दिन मम्मी ने बताया कि मुझे देखने लड़के वाले आ रहे हैं। मन में एक
अजीब सा डर समाया हुआ था और सागर की बातें भी दिमाग में घूम रही थी। जब
लड़के वाले आ गए तो मुझमें हिम्मत ही नहीं थी कि एक नज़र उठा कर उस लड़के को
देखूं। यह शादी तो वैसे भी मैं घर वालों की ख़ुशी के लिए कर रही थी। मैं
जाकर कमरे में बैठ गई। थोड़ी देर इधर उधर कि बातें होती रही। लेकिन मैंने
एक नज़र उठाकर उस लड़के की ओर एक बार देखा तक नहीं क्यूंकि मुझे सिर्फ सागर
का इंतज़ार था। जब मैं उन लोगों के सामने गई तो लड़के की माँ बोली- हमें
आपकी बेटी पसंद है।

मैंने सोचा- बिना कुछ पूछे बिना कुछ जाने एक ही नज़र में पसंद कर लिया।

तब लड़के की मम्मी ने कहा- दोनों को एक दूसरे से बात कर लेने दो।

मेरी तो सांस ही अटक गई। क्या बात करुँगी, कैसे करुंगी। तब मेरी बहन हमे
ऊपर वाले कमरे में ले गई। मैंने अब तक एक बार भी नज़र उठा कर उस लड़के की
ओर नहीं देखा था क्यूंकि यह शादी मेरी मर्ज़ी नहीं मजबूरी थी। कमरे में
आने के बाद बहन बाहर चली गई। मैं और वो लड़का बैठ गए।

तब उसने मुझसे कहा- क्या बात है, आप मेरी तरफ देखेंगी नहीं?

आवाज़ जानी-पहचानी सी लगी। चेहरा उठा कर ऊपर देखा तो वो सागर ही था। मैं
एक दम से खड़ी हो गई और उसे देखती ही रही। मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला
और उसने सिर्फ इतना ही कहा- मानसी, मैंने जो वादा किया था उसे पूरा करने
आया हूँ।

उसे देख कर मेरे दिल में जो ख़ुशी थी वो मेरी आँखों में साफ़ दिखाई दे रही
थी। लेकिन उसके साथ ही आंसू भी थे। मैंने कहा- अब तुम्हें याद आई मेरी ?
दो साल मैंने कैसे बिताए, जानते हो?

उसने बस इतना कहा- दो साल बाद मिल रही हो, गले भी नहीं लगोगी क्या?

मैं उसके गले लग गई और रो पड़ी। उसने कहा- क्या हुआ? रो क्यूँ रही हो?

मैंने कहा- इतने दिनों के बाद आये हो, यह भी नहीं सोचा कि मेरा क्या हाल
होगा। तुमने तो कहा था कि भाई के आते ही उससे बात करोगे।

तो उसने कहा- मानसी, जब मैं तुमसे मिला था, उस वक़्त मेरी नौकरी बिल्कुल
नई थी, जीवन में स्थापित होने के बाद ही तो तुम्हारे भाई से तुम्हारा हाथ
मांगता। पहले मांग लेता तो वो मना कर देता। आज उसे पता है कि मैं अपनी
जिन्दगी में सुस्थपित हूँ और तुम्हें खुश रख सकता हूँ इसलिए वो भी मेरे
एक ही बार कहने पर मान गया। और इसलिए आज मैं अपने मम्मी पापा को तुम्हारे
घर लेकर आया हूँ तुम्हारा हाथ मांगने। और तुम्हारे घर वालों ने इसलिए कुछ
नहीं बताया था क्यूंकि मैं तुम्हें आश्चर्य-चकित कर देना चाहता था। अगर
तुम्हें पहले पता होता तो मैं तुम्हारे चेहरे के वो भाव ना देख पाता जो
मेरी आवाज़ सुनकर तुम्हारे चेहरे पर थे।

मैं उसे कुछ नहीं कह पाई और उसके गले लग गई। आज मैं बहुत खुश हूँ।

दोस्तो, आपको मेरी कहानी कैसी लगी मुझे ज़रूर बताइए।

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