बदला पार्ट--38
गतान्क से आगे...
देविका शर्मा गयी & उसने किस तोड़ अपना चेहरा फिर से दीवार से लगा
लिया.इंदर फिर उसकी पीठ को चूमने लगा.वो जल्द से जल्द उस हुस्न की
मल्लिका को उसके पूरे शबाब मे देखना चाहता था.उसके हाथो ने उसके ब्लाउस
के हुक्स & फिर ब्रा के हुक्स को भी खोल दिया & बेचैनी से उसकी नंगी पीठ
पे फिरने लगे.देविका की चूत उसकी हर्कतो से पागल हो अब और अपनी छ्चोड़
रही थी.इंदर ने अपने हाथो को उसके बदन पे चलते हुए ब्लाउस & ब्रा को उसके
कंधो से नीचे सरकया मगर देविका की बाहे कोहनी से मूडी होने कारण दोनो
कपड़े उसके बदन से अलग नही हुए.इंदर ने देविका के कंधे पकड़ बड़े प्यार
से उसे अपनी ओर घुमाया तो हया की मारी देविका ने अपनी आँखे बंद कर ली.
इंदर ने उसके हाथ पकड़ बाहे नीची की & ब्लाउस & ब्रा को फर्श पे गिरने
दिया.अब देविका के जिस्म पे बस 1 छ्होटी सी,काले रंग की पॅंटी थी जो उसकी
चूत से निकले रस के कारण गीली हो उस से चिपक गयी थी.इंदर ने 1 बार सर से
पाँव तक देविका के हुस्न को निहारा.उपरवाला उसपे मेहेरबन था,उसका बदला भी
पूरा होनेवाला था & साथ मे ये मस्त औरत भी उसकी बाहो मे उस से चूड़ने
वाली थी.इनडर ने अपनी बाई बाँह देविका के कंधो के गिर्द डाली & दाए हाथ
मे उसका बाया हाथ पकड़ा & बिस्तर की ओर बढ़ चला.
दोनो 1 दूसरे से सटे बिस्तर पे बैठ गये.देविका को ना जाने कब से इस पल का
इंतेज़ार था मगर इस वक़्त उसे इतनी शर्म आ रही थी की पुछो मत.इंदर ने उसे
तोड़ा चूमा & फिर उठके अपनी शर्ट निकाल दी.देविका ने उसके बालो भरे चौड़े
सीने को देखा & बेचैनी से अपनी गोरी,कसी जंघे आपस मे रगडी,इंदर दोबारा
उसके बाए तरफ बैठा ,अपनी बाई बाँह उसके बदन के गिर्द डाली,दाई को उसकी
कमर मे डाला & उसके गुलाबी होंठ चूमते हुए उसे बिस्तर पे लिटा दिया.अब
दोनो के पैर बिस्तर से नीचे लटके थे & उपरी जिस्म बिस्तर पे लेटे थे.
इंदर का दाया हाथ उसके सीने पे आया & उसके उभारो को सहलाने लगा.इतनी बड़ी
& इतनी कसी,ऐसी मस्तानी चूचिया उसने अपनी ज़िंदगी मे पहली बार देखी
थी.उसके हाथ बहुत हल्के-2 गोलाई मे उसकी चूचियो पे घूम रहे थे.देविका
काजिस्म इंदर के च्छुने से रोमांच से भर उठा था.उसकी आँखे मज़े मे बंद हो
गयी थी.इंदर झुका & उन मस्त गोलाईयो को अपने मुँह मे भरने लगा.देविका की
साँसे अटकने लगी.इंदर की ज़ुबान उसकी चुचियो को कभी मुँह मे भरती, कभी
चुस्ती कभी बस निपल को छेड़ती.
इंदर काफ़ी देर तक उसके सीने के उभारो से खेलता रहा.देविका की चूत मे
उठती कसक बहुत बढ़ गयी थी.इंदर ने उसकी बाई चुचि को मुँह मे भर अपना मुँह
उपर उठाते हुए ऐसे खींचा की देविका के होश उड़ गये & उसकी चूत ने पानी
छ्चोड़ दिया.देविका के मुँह से लंबी सी आह निकली & वो झाड़ गयी.इंदर ने
उसकी चूचियो को अपने होंठो के निशानो से ढँक दिया था.वो दोबारा देविका के
पेट को चूम रहा था मगर इस बार मंज़िल देविका की नाभि नही उसके नीचे थी.वो
उसके पेट को चूमते हुए उसकी कसी पॅंटी के उपर कमर के बगल मे उसके गुदाज़
हिस्से को दबा रहा था.
देविका समझ गयी की अब उसके जिस्म से उसका आख़िरी कपड़ा भी उतरने वाला
है.ठीक उसी वक़्त इंदर ने अपना हाथ पॅंटी के वेयैस्टबंड मे फँसाया & उसे
खींचा.देविका को ना जाने क्यू बहुत शर्म आई & उसने इंदर का हाथ पकड़ना
चाहा मगर इंदर उसके नाभि के नीचे चूमते हुए उसकी पॅंटी को नीचे सरकाता
रहा.
जैसे ही पॅंटी निकली देविका ने शर्म से करवट ले बिस्तर मे अपना मुँह
च्छूपा लिया मगर ऐसा करने से उसकी भरी हुई गंद इंदर के सामने चमक उठी.अभी
तक बिजली नही आई थी बस कमरे के बाल्कनी के खुले दरवाज़े से पूरे चाँद की
दूधिया रोशनी आ रही थी जिसमे नहाके देविका का नशीला जिस्म & भी पुर्कशिश
हो गया था.
इंदर ने देखा की ये तो वही कमरा है जहा सुरेन सहाय ने कॉल गर्ल को चोदा
था जब उसने उनकी दवा बदली थी.उसे अपने बदले की याद आई & ये याद आते ही
उसे सामने नंगी पड़ी देविका का जिस्म 1 खिलोने से ज़्यादा कुच्छ नही
लगा.वो खिलोना जिस से जी भर के खेलने के बाद उसे तोड़ के फेंक देना था.
इस खिलोने से वो जैसे मर्ज़ी जितना मर्ज़ी खेलेगा....उसने अपनी पॅंट की
ज़िप खोली....इस खिलोने के साथ कोई रहम नही करेगा वो....पॅंट नीचे सरकने
के बाद वो अपना अंडरवेर उतार रहा था.जब देविका ने देखा की इन्दर उसके बदन
को नही च्छू रहा है तो उसने वैसे ही पड़े-2 अपनी गर्दन घुमा के पीछे देखा
& जो देखा उसे देखते ही उसे शर्म भी आई मगर उसके साथ ढेर सारी खुशी भी.
इंदर अब पूरा नंगा था & उसका लंड तना हुआ देविका की निगाहो के सामने
था.देविका ने पाया की इंदर का लंड शिवा जितना लंबा तो नही था मगर उस से
बहुत ज़्यादा छ्होटा भी नही था.इंदर की आँखो मे जो बदले का जुनून था उसे
देविका ने अपने जिस्म की चाह समझा & शर्मा के फिर अपना चेहरा बिस्तर मे
च्छूपा लिया.इंदर उसके करीब पहुँचा & उसकी टाँगो को उठा के बिस्तर पे
किया & फिर उसके बगल मे बैठ के उसकी गंद को मसलने लगा.देविका की आहे फिर
से कमरे मे गूंजने लगी.इंदर ने गंद की मोटी फांको को फैलाया & झुक के
अपनी जीभ देविका की गीली चूत से सटा दी.इंदर देविका के बाए तरफ घुटनो पे
बैठा था.उसकी पीठ देविका के सर की तरफ थी & वो झुक के उसकी गंद को चाट
रहा था.देविका का सर बिस्तर से उठ गया था & वो इंदर की ज़ुबान की बेशर्म
हर्कतो से जड़े जा रही थी.
"आहह....आआनंह...बस..इंदर...ऊहह..प्लीज़.....रुक..जा...ऊओ...ऊओ...!",इंदर
उसकी मिन्नतो के बावजूद उसकी चूत चाते चला जा रहा था.बीच-2 मे उसकी
उंगलिया भी उसकी चूत की गहराइयाँ नाप लेती.देविका को होश नही था की वो
कितनी बार झड़ी.इंदर का लंड अब ठुमके लगाने लगा था,उसके आंडो मे भी मीठा
दर्द शुरू हो गया था.वो घुमा & देविका की दाई टांग को उपर कर घुटनो से
मोड़ दिया & पीछे से अपना लंड उसकी चूत मे घुसा
दिया,"..हाइईईईईई....!",इंदर को देविका के दर्द की कोई परवाह नही थी.उसने
1 झटके मे ही लंड को अंदर पेल दिया था.चूत गीली होने के बावजूद देविका को
थोड़ा दर्द महसूस हुआ.
इंदर उसकी पीठ पे लेट गया तो देविका ने अपना सर उठा के दाई तरफ घुमाया
उसके दाए कंधे के उपर से झुकते हुए इंदर उसे चूमने लगा.वो किसी प्रेमी की
तरह नही चूम रहा था बल्कि किसी वहशी की तरह चूम रहा था.देविका को लगा की
इंदर बहुत जोश मे है इसलिए ऐसे कर रहा है.उसके धक्के भी बड़े गहरे & तेज़
थे.देविका को उसका ये अंदाज़ भा रहा था..बेचारी!अगर जानती की इंदर के
वहशिपान की वजह उसके जिस्म का नशा नही बल्कि उस से इन्तेक़ाम का जुनून था
तो पता नही उस पे क्या बीतती.
इंदर के हाथ देविका की बगलो से घुस उसकी मोटी चूचियो को मसल रहे
थे.देविका को बहुत मज़ा आ रहा था.कभी-कभार शिवा की चुदाई ऐसी होती थी मगर
उसमे भी वो पागलपन भरा जोश नही रहता था.इंदर तो ऐसे चुदाई कर रहा था जैसे
सब भूल गया हो,अब वो अपने होंठ उसके होंठो से अलग कर उसकी पीठ पे दन्तो
से काट रहा था,देविका के बदन मे तो जैसे मस्ती के पटाखे फुट रहे थे!.उसकी
पीठ से चिप्टा उसकी चूचिया मसल्ते हुए इंदर तब तक उसे चोद्ता रहा जब तक
वो झाड़ नही गयी.उसके झाड़ते ही वो उसकी पीठ से उपर उठा & फिर उसकी कमर
पकड़ हवा मे उठा ली.उसका लंड अभी भी चूत मे धंसा था.देविका का अस्र
बिस्तर से लगा हुआ था.उसने गर्दन बाई ओर घुमाई & इंदर को देखा.उसकी नशीली
आँखो ने इंदर के जिस्म का जोश दुगुना कर दिया & साथ ही उसके बदले का
जुनून भी उसके और सर चढ़ गया.
इंदर ने उसकी कमर थामी & दनादन धक्के लगाने लगा.देविका के गले से फिर से
आहें निकलने लगी.उसने अपना बाया हाथ अपनी चूत से लगाया & अपने दाने को
रगड़ने लगी.इंदर ने दाए से उसकी चूचियो को मसलना जारी रखा & बाए से उसकी
कमर को थाम धक्के लगाता रहा.उसके अंडे मानो फटने को तैय्यार थे मगर वो
ऐसे नही झड़ना चाहता था.झाड़ते वक़्त उसे इस मतलबी,स्वार्थी औरत का चेहरा
देखना था..उसे देखना था की कैसे..ये दूसरो का हक़ मारने वाली औरत उसके
लंड की गुलाम बन गयी है.
देविका की चूत मे इंदर के लंड ने फिर से खलबली मचा दी थी.रही-सही कसर
उसकी उंगली पूरी कर रही थी की तभी इंदर ने उसकी गांद पे 1 थप्पड़
मारा.."तदाक..!"..देविका को दर्द हुआ मगर उस से भी ज़्यादा मज़ा आया.इंदर
उसे चुदाई के नयी पहलू दिखा रहा था.इंदर के हर थप्पड़ पे उसकी गांद लाल
हो रही थी & उसका दर्द बढ़ रहा था मगर इसके साथ ही उसकी मस्ती की भी
इंतेहा नही रही थी.जिस्मो के मिलन की खुमारी 1 बार फिर उसके उपर पूरी तरह
से हावी हो गयी थी.उसके जिस्म मे जैसे अकड़न सी भर गयी थी & वो जानती थी
की इस अकड़न से उसे इंदर का लंड ही निजात दिलाएगा.इंदर के धक्के & थप्पड़
और तेज़ हो गये थे & देविका की उंगली की रगड़ान भी.
"आअनन्नह.....!",देविका ने बिस्तर से सर उठा के कमर हिलाकर इंदर के धक्को
का जवाब देते हुए ज़ोर की आह भरी.इंदर के लंड पे देविका की चूत थोड़ा और
कस गयी थी.उसे हैरत हुई की इस उमर मे भी वो इतनी हसीन & पूर्कशिश जिस्म
की मल्लिका कैसे थी!....उसकी चूत किसी कुँवारी लड़की की चूत की तरह कसी
थी & देविका के झड़ने पे वो और कस गयी थी.बड़ी मुश्किल से इंदर ने अपने
को झड़ने से रोका.
देविका हानफते हुए बिस्तर पे निढाल हो गिर गयी थी & इंदर का लंड उसकी चूत
से निकल गया था मगर इंदर का काम अभी पूरा नही हुआ था.उसने देविका को सीधा
किया & उसकी दाई टांग को उठा के अपने बाए कंधे पे रखा,अपने घुटनो पे बैठ
1 बार फिर उसने अपना लंड देविका की चूत मे घुसा दिया.देविका के लिए अब
बात बर्दाश्त के बाहर थी.वो 1 बार झड़ती नही थी की इंदर अगले हमले के लिए
तैय्यार हो जाता था.उसने सर उठाके उसके तगड़े लंड को अपनी चूत मे
अंदर-बाहर होते देखा & 1 बार फिर उसका जोश बढ़ गया.अपने हाथो से अपनी
चूचिया दबाते हुए वो आहे भरने लगी & इंदर से मिन्नते करने
लगी,"..हाइईईईईई....ऊहह...इन..देर.....प्लीज़.......आअनंह......रुक...जाओ.....आँह.......आहह....!",मगर
इंदर जैसे बेहरा हो गया था.वो बस घुटनो पे बैठा उसकी जाँघो को थामे धक्के
लगाए जा रहा था.उसकी आँखो के सामने उसके नाम की माला जपती देविका उसे अब
अपनी औकात पे आती दिख रही थी.इस ख़याल से उसके धक्के और तेज़ हो गये.
देविका अभी भी यही समझ रही थी की इंदर उसके जिस्म का दीवाना हो गया है &
इसलिए ऐसी क़ातिलाना चुदाई कर रहा है.अपने सख़्त निपल्स को उंगलियो मे
मसल्ते हुए उसने अपनी बाई टांग इंदर के कमर पे लपेट दी.इंदर समझ गया की
वो फिर से झड़ने वाली है.उसने उसकी दाई टांग को कंधे से गिराया तो देविका
ने उसे भी उसकी क्मर पे कस दिया.इंदर अपने हाथो पे झुक अपनी टाँगे फैला
धक्के लगा रहा था.देविका ने अपने हाथ अपने सीने से हटाए & उसके मज़बूत
बाज़ू पकड़ बिस्तर से जैसे उठने की कोशिश करने लगी.उसका चेहरा देखने से
ऐसा लगता था ,मानो उसे बहुत तकलीफ़ हो रही है मगर इंदर जानता था की इस
वक़्त वो मज़े के आसमान मे उड़ रही है.इंदर झुका & उसके होंठो को अपने
होंठो से कस लिया.देविका ने अपनी बाँहे उसकी पीठ पे डाली & फिर बेचैनी से
उसकी पीठ पे हाथ फिराते हुए अपने नाख़ून उसमे धंसा दिए-वो फिर से झाड़
रही थी.इस बार इंदर ने अभी अपने सब्र का बाँध खोल दिया & उसका जिस्म झटके
खाने लगा.उसका गाढ़ा,गर्म वीर्या देविका की चूत मे भर रहा था.
इंदर ने उसे चूमना नही छ्चोड़ा था क्यूकी वो जानता था की अगर उसने अपने
होंठ अलग किए तो इस कमज़ोर लम्हे मे उसके मुँह से वो गलिज़ लफ्ज़ निकल
जाएँगे जो वो देविका को असल मे कहना चाहता था.उसे अपने उपर काबू रखना
होगा,अपने जज़्बातो को वो ऐसे आज़ाद नही छ्चोड़ सकता था....वरना सारे
किए-धरे पे पानी फिर जाएगा..वो दिन बा दिन मंज़िल के करीब आ रहा था.इतने
पास पहुँच के वो सब खोना नही चाहता था...झड़ने के बाद उसका जिस्म भी
सुकून महसूस कर रहा था & दिल भी.उसके & देविका के होंठ अभी भी जुड़े थे
की तभी बिजली आ गयी & सारा कमरा रोशनी से नहा गया.इंदर ने देविका को देखा
& जैसे उसे कुच्छ याद आ गया.
वो 1 झटेके मे अपने होंठ अलग करता उसके उपर से लंड खींचता उठा & सामने
रखे लकड़ी के कॅबिनेट पे हाथ रख सर झुका के खड़ा हो गया.
"इंदर,क्या हुआ?",फ़िक्रमंड देविका उसके करीब आई & उसके कंधे पे हाथ रखा.
"ई..ई आम सॉरी.",ये इंदर के नाटक का अगला भाग था.
"कोई बात नही,इंदर..",देविका ने सोचा की इंदर अपनी जुनूनी चुदाई के बारे
मे शर्मिंदा है,"..जब इंसान के अरमान दिल मे बहुत गहरे पैठ जाते हैं तो
कभी-कभार उनका गुबार ऐसे ही निकलता है.तुम पहले ही मेरे पास आ जाते तो
ऐसा नही होता.",देविका ने उसे पीछे से ही अपनी बाँहो मे भरा & अपना दाया
गाल उसकी पीठ से लगा दिया,"..वैसे सच कहु तो मुझे बहुत मज़ा आया....मैने
तुम्हारे साथ उन उँचाइयो को च्छुआ जिनके वजूद का मुझे इल्म ही नही
था.",उसने प्यार से अपने हाथ इंदर के चौड़े सीने पे फिराए.
..तो ये बेचारी सोच रही थी की उसका जुनून देविका के जिस्म की वजह से
था...हाः...पागल कही की!बेवकूफ़!
"बात ये नही है..",इंदर ने उसे अपने जिस्म से अलग किया & दूसरी तरफ पीठ
करके खड़ा हो गया.
"तो क्या बात है?",देविका उसके सामने आई.
"ये..ये नही होना चाहिए था..ये ग़लत है..",इंदर बहुत परेशान होने का नाटक
कर रहा था.
"ओह..समझी..",देविका ने उसेक चेहरे को हाथो मे भरा,"..इंदर,तुम हमारे
मालिक-नौकर के रिश्ते की बात कर रहे हो ना."
इंदर ने हा मे सर हिलाया.
"इंदर,तुम 1 मर्द हो & मैं 1 औरत.हम दोनो 1 दूसरे की ओर खींच रहे थे & आज
वो हुआ जो की कुदरती बात है.अगर दो लोग 1 दूसरे को चाहे तो
इज़हारे-मोहब्बत तो होगा ही ना!"
"मगर ये हक़ीक़त है की आप मेरी मालकिन हैं."
"और ये भी हक़ीक़त है की तुम मुझे चाहते हो.हां या ना?"
"हां.",इनडर ने सर झुका के कहा.
"फिर क्या बात है?"
"पता नही...ये ठीक नही लगता."
"क्या ठीक नही लगता?"
"डर लगता है."
"कैसा डर?"
"की कही मैं इस रिश्ते का कोई नाजायज़ फ़ायदा ना उठा लू."
"ओह्ह..इंदर..",डेविका ने उसे गले से लगा लिया,"..हमेशा ऐसे डरते रहना
कभी कुच्छ भी ग़लत नही होगा."
इंदर ने उसके कंधे से सर उठाके सवालिया निगाहो से उसे देखा.
"हां..",देविका ने उसके बालो मे हाथ फेरा,"..कोई और मर्द होता ना इंदर तो
मैं अभी भी उस बिस्तर पे पड़ी होती & वो मेरे जिस्म से खेल रहा होता मगर
इस वक़्त भी तुम ये नही भूले.इस से तो बस तुमहरि अच्छाई ज़ाहिर होती है."
"..इंदर,इस बात का डर की तुम कही कभी इस रिश्ते का ग़लत इस्तेमाल ना करो
ही तुम्हे इस ग़लती से बचाए रखेगा.तुम घबराव मत,मुझे पूरा यकीन है की तुम
कभी कोई ग़लत काम नही करोगे..",इंदर कुच्छ बोलने को हुआ मगर देविका ने
अपने कोमल हाथ उसके होंठो पे रख दिए,"..& अगर कभी ऐसा किया तो मैं तुम्हे
रोक दूँगी.अब तो तुम्हारे मन मे कोई शुबहा नही है ना?"
इंदर ने ना मे सर हिलाया & देविका को अपने आगोश मे लिया.देविका ने
मुस्कुराते हुए अपना सर उसके बाए कंधे पे टीका उसे प्यार से देखा,"1 बात
का वादा कीजिए."
"क्या इंदर?",देविका उसके सीने के बालो से खेल रही थी.
"कि आप कभी इस रिश्ते की हदो को तोड़ने के लिए मुझे नही कहेंगी?हम दुनिया
के सामने नही आ सकते & कभी ऐसा किया तो चाहे हमारे इरादे कितने ही नेक
क्यू ना हो ये दुनिया कभी हमे सही नही समझेगी.",इंदर ने बड़ी सफाई से
अपने & देविका के रिश्ते को राज़ रखने की बात उसे कह दी.हर इंसान का कोई
इतना अज़ीज़ होता है उसके दिलबर के सिवा जिस से वो अपनी सारी बाते कहता
है.इंदर को पता नही था की देविका का ऐसा दोस्त कौन है मगर वो कोई रिस्क
नही लेना चाहता था.
"वादा किया.",देविका ने मुस्कुराते हुए उसे देखा,"..मगर 1 वक़्त पे कभी
कोई हद्द नही मानूँगी?"
"कब?"
"जब हम दोनो तन्हा हो.",देविका के हाथ इंदर के सीने से उसके पेट तक गये
मगर उस से नीचे ले जाने मे देविका को झिझक हुई.
"जो आपका हुक्म,मॅ'म.",इंदर ने देविका के झिझकते हाथ को पकड़ उसे अपने
सिकुदे लंड पे रख दिया.देविका को शर्म आ गयी & उसने इंदर के बाए कंधे मे
अपना चेहरा च्छूपा लिया.इंदर अभी भी उसका हाथ वैसे ही लंड पे दबाए था.
थोड़ी ही देर मे देविका ने लंड को थाम लिया था & बहुत धीरे-2 हिला रही
थी.इंदर ने उसके बालो को चूमा तो उसने अपना चेहरा उठा अपने होंठ इंदर के
सामने पेश कर दिए.इंदर ने उसके तोहफा अपने होंठो से कबूला & अपना दाया
हाथ उठा दीवार पे लगे लाइट स्विच को ऑफ किया & देविका को ले 1 बार फिर
बिस्तर की ओर बढ़ गया.
पंचमहल का बाहरगूँज इलाक़ा जहा सस्ते होटेल्स की भरमार थी.इन्ही मे से 1
होटेल के 1 कमरे मे लेटा शिवा अपनी ज़िंदगी के बारे मे सोच रहा था.फौज से
सहाय एस्टेट & अब ना जाने कहा ले जाने वाली थी उसकी तक़दीर उसे.उसके हाथ
मे वो दवा की डिबिया थी & उसे समझ नही आ रहा था की अब आगे क्या करे.
उसके पैने दिमाग़ ने इतना अंदाज़ा तो लगा लिया था की इस दवा का सुरेन
सहाय की मौत से कुच्छ ना कुच्छ ताल्लुक तो ज़रूर था & इस सबके पीछे इंदर
का हाथ था मगर इंदर ये सब क्यू कर रहा था..दौलत के लिए?..पर इस सब मे
कितना ख़तरा था..इतना ख़तरा दौलत के लिए...लगता तो नही.1 बात तो तय थी की
जिस तरह से उसने सुरेन जी को मौत की नींद सुलाया था & उसके चौक्काने होने
के बावजूद उसे देविका की नज़रो से गिरा दिया था उसका दिमाग़ बहुत तेज़
था.इतना तेज़ दिमाग़ शख्स इस तरह से ख़तरा उठाया सिर्फ़ दौलत के
लिए..ना!वो तो और काई कम ख़तरे वाले तरीक़ो से पैसे कमा सकता था.तो फिर
क्या थी वजह & फिर सहाय एस्टेट ही क्यू?पंचमहल मे दौलत्मन्दो की कमी नही
थी फिर सहाय परिवार ही क्यू?
शिवा ने इस सवाल से जूझना छ्चोड़ा..अभी सबसे ज़रूरी था इस दवा की असलियत
जानना लेकिन कैसे?उसने दवा को पास पड़ी अपनी पॅंट की जेब मे डाला & कमरे
की बत्ती बुझा दी.आँखे मूंद उसने सोने की कोशिश की मगर नींद उसकी आँखो से
कोसो दूर थी.हर रात देविका के कोमल जिस्म को बाहो मे भरके सोना उसकी आदत
बन गया था & जब से वो एस्टेट से निकाला गया था दिन तो किसी तरह कट जाता
था मगर राते उस से काटे नही कटती थी....इस सबका ज़िम्मेदार इंदर
था....देविका से जुदाई के दर्द ने शिवा के गुस्से को भड़काया & उसके दिल
मे इंदर से बदला लेने का जज़्बा & पुख़्ता हो गया.
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क्रमशः.............
बदला पार्ट--38
गतान्क से आगे...
devika sharma gayi & usne kiss tod apna chehra fir se deewar se laga
liya.inder fir uski pith ko chumne laga.vo jald se jald us husn ki
mallika ko uske pure shabab me dekhna chahta tha.uske hatho ne uske
blouse ke hooks & fir bra ke hooks ko bhi khol diya & bechaini se uski
nangi pith pe firne lage.devika ki chut uski harkato se pagal ho ab
aur apni chhod rahi thi.inder ne apne hatho ko uske badan pe chalte
hue blouse & bra ko uske kandho se neeche sarkaya magar devika ki
baahe kohni se mudi hone karan dono kapde uske badan se alag nahi
hue.inder ne devika ke kandhe pakad bade pyar se use apni or ghumaya
to haya ki mari devika ne apni aankhe band kar li.
inder ne uske hath pakad baahe neechi ki & blouse & bra ko farsh pe
girne diya.ab devika ke jism pe bas 1 chhoti si,kale rang ki panty thi
jo uski chut se nikle ras ke karan gili ho us se chipak gayi thi.inder
ne 1 bar sar se panv tak devika ke husn ko nihara.uparwala uspe
meherban tha,uska badla bhi pura honewala tha & sath me ye mast aurat
bhi uski baaho me us se chudne vali thi.inder ne apni bayi banh devika
ke kandho ke gird dali & daye hath me uska baya hath pakda & bistar ki
or badh chala.
dono 1 dusre se sate bistar pe baith gaye.devika ko na jane kab se is
pal ka intezar tha magar is waqt use itni sharm aa rahi thi ki puchho
mat.inder ne use thoda chuma & fir uthke apni shirt nikal di.devika ne
uske baalo bhare chaude seene ko dekha & bechaini se apni gori,kasi
janghe aapas me ragdi,inder dobara uske baye taraf baitha ,apni bayi
banh uske badan ke gird dali,dayi ko uski kamar me dala & uske gulabi
honth chumte hue use bistar pe lita diya.ab dono ke pair bistar se
neeche latke the & upari jism bistar pe lete the.
inder ka daya hath uske seene pe aaya & uske ubharo ko sehlane
laga.itni badi & itni kasi,aisi mastani choochiya usne apni zindagi me
pehli bar dekhi thi.uske hath bahut halke-2 golayi me uski choochiyo
pe ghum rahe the.devika kajism inder ke chhune se romanch se bhar utha
tha.uski aankhe maze me band ho gayi thi.inder jhuka & un mast golaiyo
ko apne munh me bharne laga.devika ki sanse atakne lagi.inder ki zuban
uski chhatiyo ko kabhi munh me bhari,akbhi chusti kabhi bas nipple ko
chhedti.
inder kafi der tak uske seene ke ubharo se khelta raha.devika ki chut
me uthti kasak bahut badh gayi thi.inder ne uski bayi chhati ko munh
me bhar apna munh upar uthate hue aise khincha ki devika ke hosh ud
gaye & uski chut ne pani chhod diya.devika ke munh se lambi si aah
nikli & vo jhad gayi.inder ne uski chhatiyo ko apne hotho ke nishano
se dhank diya tha.vo dobara devika ke pet ko chum raha tha magar is
bar manzil devika ki nabhi nahi uske neeche thi.vo uske pet ko chumte
hue uski kasi panty ke upar kamar ke bagal me uske gudaz hisse ko daba
raha tha.
Devika asmajh gayi ki ab uske jism se uska aakhiri kapda bhi utarne
vala hai.thik usi waqt inder ne apna hath panty ke waistband me
fansaya & use khincha.devika ko na jane kyu bahut sharm aayi & usne
inder ka hath pakadna chaha magar inder uske nabhi ke neeche chumte
hue uski panty ko neeche sarkata raha.
jaise hi panty nikli devika ne sharm se karwat le bistar me apna munh
chhupa liya magar aisa karne se uski bhari hui gand inder ke samne
chamak uthi.abhi tak bijli nahi aayi thi bas kamre ke balcony ke khule
darwaze se pure chand ki doodhiya roshni aa rahi thi jisme nahake
devika ka nashila jism & bhi purkashish ho gaya tha.
Inder ne dekha ki ye to wahi kamra hai jaha Suren Sahay ne call girl
ko choda tha jab usne unki dawa badli thi.use apne badle ki yaad aayi
& ye yaad aate hi use samne nangi padi devika ka jism 1 khilone se
ayada kuchh nahi laga.vo khilona jis se ji bhar ke khelne ke baad use
tod ke fenk dena tha.
is khilone se vo jaise marzi jitna marzi khelega....usne apni pant ki
zip kholi....is khilone ke sath koi raham nahi karega vo....pant
neeche sarkane ke bad vo apna underwear utar raha tha.jab devika ne
dekha ki iner uske badan ko nahi chhu raha hai to usne vaise hi pade-2
apni gandar ghuma ke peechhe dekha & jo dekha use dekhte hi use sharm
bhi aayi magar uske sath dher sari khushi bhi.
inder ab pura nanga tha & uska lund tana hua devika ki nigaho ke samne
tha.devika ne paya ki inder ka lund Shiva jitna lumba to nahi tha
magar us se bahut zyada chhota bhi nahi tha.inder ki aankho me jo
badle ka junoon tha use devika ne apne jism ki chah samjha & sharma ke
fir apna chehra bistar me chhupa liya.inder uske karib pahuncha & uski
tango ko utha ke bistar pe kiya & fir uske bagal me baith ke uski gand
ko maslane laga.devika ki aahe fir se kamre me gunjne lagi.inder ne
gand ki moti fanko ko failaya & jhuk ke apni jibh devika ki gili chut
se sata di.inder devika ke baye taraf ghutno pe baitha tha.uski pith
devika ke sar ki taraf thi & vo jhuk ke uski gand ko chaat raha
tha.devika ka sar bistar se uth gaya tha & vo inder ki zuban ki
besharm harkato se jahde j arhi thi.
"aahh....aaaannhh...bas..inder...oohh..please.....ruk..ja...ooo...ooohhh...!",inder
uski minnato ke bavjood uski chut chate chala ja raha tha.beech-2 me
uski ungliya bhi uski chut ki gehraiyan naap leti.devika ko hosh nahi
tha ki vo kitni bar jhadi.inder ka lund ab thumke lagane laga tha,uske
ando me bhi meetha dard shusu ho gaya tha.vo ghuma & devika ki dayi
tang ko upar kar ghutno se mod diya & peechhe se apna lund uski chut
me ghusa diya,"..haaiiiiiii....!",inder ko devika ke dard ki koi
parwah nahi thi.usne 1 jhatke me hi lund ko andar pel diya tha.chut
gili hone ke bavjood devika ko thoda dard mehsus hua.
inder uski pith pe let gaya to devika ne apna sar utha ke dayi taraf
ghumaya uske daye kandhe ke upar se jhukte hue inder use chumne
laga.vo kisi premi ki tarah nahi chum raha tha balki kisi vahshi ki
tarah chum raha tha.devika ko laga ki inder bahut josh me hai isliye
aise kar raha hai.uske dhakke bhi bade gehre & tez the.devika ko uska
ye andaz bha raha tha..bechari!agar janti ki inder ke vahshipan ki
vajah uske jism ka nasha nahi balki us se inteqam ka junoon tha to
pata nahi us pe kya beetati.
inder ke hath devika ki baglo se ghus uski moti chhatiyo ko masla rahe
the.devika ko bahut maza aa raha tha.kabhi-kabhar shiva ki chudai aisi
hoti thi magar usme bhi vo pagalpan bhara josh nahi rehta tha.inder to
aise chudai kar raha tha jaise sab bhul gaya ho,ab vo apne honth uske
hontho se alag kar uski pith pe danto se kaat raha tha,devika ke badan
me to jaise masti ke patakhe phut rahe the!.uski pith se chipta uski
choochiya masalte hue inder tab tak use chodta raha jab tak vo jhad
nahi gayi.uske jhadte hi vo uski pith se upar utha & fir uski kamar
pakad hawa me utha li.uska lund abhi bhi chut me dhansa tha.devika ka
asr bistar se laga hua tha.usne gardan bayi or ghumayi & inder ko
dekha.uski nashili aankho ne inder ke jism ka josh duguna kar diya &
sath hi uske badle ka junoon bhi uske aur sar chadh gaya.
inder ne uski kamar thami & danadan dhakke lagane laga.devika ke gale
se fir se aahen nikalne lagi.usne apna baya hath apni chut se lagaya &
apne dane ko ragadne lagi.inder ne daye se uski choochiyo ko maslana
jari rakha & baye se uski kamar ko tham dhakke lagata raha.uske ande
mano fatne ko taiyyar the magar vo aise nahi jhadna chahta tha.jhadte
waqt use is matlabi,swarthi aurat ka chehra dekhna tha..use dekhna tha
ki kaise..ye dusro ka haq marne vali aurat uske lund ki ghulam ban
gayi hai.
devika ki chut me inder ke lund ne fir se khalbali macha di
thi.rashi-sahi kasar uski ungli puri kar rahi thi ki tabhi iner ne
uski gnad pe 1 thappad mara.."tadak..!"..devika ko dard hua magar us
se bhi zyada maza aaya.inder use chudai ke nayi pehlu dikha raha
tha.inder ke har thappad pe uski gnad laal ho rahi thi & uska dard
badh raha tha magar iske sath hi uski masti ki bhi inteha nahi rahi
thi.jismo ke milan ki khumari 1 bar fir uske upar puri tarah se hawi
ho gayi thi.uske jism me jaise akdan si bhar gayi thi & vo janti thi
ki is akdan se use inder ka lund hi nijat dilayega.inder ke dhakke &
thappad aur tez ho gaye the & devika ki ungli ki ragdan bhi.
"aaannnhhhhhhhhhhh.....!",devika ne bistar se sar utha ke kamar
hilakar inder ke dhakko ka jawab dete hue zor ki aah bhari.inder ke
lund pe devika ki chut thoda aur kas gayi thi.use hairat hui ki is
umar me bhi vo itni haseen & purkashish jism ki mallika kaise
thi!....uski chut kisi kunwari ladki ki chut ki tarah kasi thi &
devika ke jhadne pe vo aur kas gayi thi.badi mushkil se inder ne apne
ko jhadne se roka.
devika hanfte hue bistar pe nidhal ho gir gayi thi & iner ka lund uski
chut se nikal gaya tha magar inder ka kaam abhi pura nahi hua tha.usne
devika ko seedha kiya & uski dayi tang ko utha ke apne abye kandhe pe
rakha,apne ghutni pe baith 1 bar fir usne apna lund devika ki chut me
ghusa diya.devika ke liye ab baat bardasht ke bahar thi.vo 1 baar
jhadti nahi thi ki inder agle humle ke liye taiyyar ho jata tha.usne
sar uthake uske tagde lund ko apni chut me andar-bahar hote dekha & 1
bar fir uska josh badh gaya.apne hatho se apni choochiya dabate hue vo
aahe bharne lagi & inder se minnate karne
lagi,"..haaiiiiiii....oohhh...in..der.....please.......aaannhh......ruk...jao.....aanhh.......aahhhhhhhhh....!",magar
inder jaise behra ho gaya tha.vo bas ghutno pe baitha uski jangho ko
thame dhakke lagaye ja raha tha.uski aankho ke samne uske naam ki mala
japti devika use ab apni aukat pe aati dikh rahi thi.is khayal se uske
dhakke aur tez ho gaye.
devika abhi bhi yehi samajh rahi thi ki inder uske jism ka deewana ho
gaya hai & isliye aisi qatilana chudai kar raha hai.apne sakht nipples
ko ungliyo me masalte hue usne apni bayi tang inder ke kamar pe lapet
di.inder samajh gaya ki vo fir se jhadne wali hai.usne uski dayi tang
ko kandhe se giraya to devika ne sue bhi uski kmara pe kas diya.inder
apne hatho pe jhuk apni tange faila dhakke laga raha tha.devika ne
apne hath apne seene se hataye & uske mazbut bazu pakad bistar se
jaise uthne ki koshish karne lagi.uska chehra dekhne se aisa lagta tha
,mano use bahut taklif ho rahi hai magar inder janta tha ki is waqt vo
maze ke aasman me ud rahi hai.inder jhuka & uske hotho ko apne hotho
se kas liya.devika ne apni bahe uski pith pe dali & fir bechaini se
uski pith pe hath firate hue pane nakhun usme dhansa diye-vo fir se
jhad rahi thi.is baar inder ne abhi apne sabra ka bandh khol diya &
uska jism jhatke khane laga.uska gadha,garm virya devika ki chut me
bhar raha tha.
inder ne use chumna nahi chhoda tha kyuki vo janta tha ki agar usne
apne ho nth alag kiye to is kamzor lamhe me uske munh se vo galiz lafz
nikal jayenge jo vo devika ko asal me kehna chahta tha.use apne upar
kabu rakhna hoga,apne jazbato ko vo aise aazad nahi chhod sakta
tha....varna sare kiye-dhare pe pani fir jayega..vo din ba din manzil
ke karib aa raha tha.itne paas pahunch ke vo sab khona nahi chahta
tha...jhadne ke baad uska jism bhi sukun mehsus kar raha tha & dil
bhi.uske & devika ke honth abhi bhi jude the ki tabhi bijli aa gayi &
sara kamra roshni se naha gaya.inder ne devika ko dekha & jaise use
kuchh yaad aa gaya.
vo 1 jhateke me apne honth alag karta uske upar se lund khinchta utha
& samne rakhe lakdi ke cabinet pe hath rakh sar jhuka ke khada ho
gaya.
"inder,kya hua?",fikramand devika uske karib aayi & uske kandhe pe hath rakha.
"i..i am sorry.",ye inder ke natak ka agla bhag tha.
"koi baat nahi,inder..",devika ne socha ki inder apni junooni chudai
ke bare me sharminda hai,"..jab insan ke arman dil me bahut gehre
paith jate hain to kabhi-kabhar unka gubar aise hi nikalta hai.tum
pehle hi mere paas aa jate to aisa nahi hota.",devika ne sue peechhe
se hi apni baho me bhara & apna daya gaal uski pith se laga
diya,"..vaise sach kahu to mujhe bahut maza aaya....maine tumahre sath
un unchaiyo ko chhua jinke vajood ka mujhe ilm hi nahi tha.",usne pyar
se apne hath inder ke chaude seene pe firaye.
..to ye bechari soch rahi thi ki uska junoon devika ke jism ki vajah
se tha...haah...pagal kahinki!bevkuf!
"baat ye nahi hai..",inder ne use apne jism se alag kiya & dusri taraf
pith karke khada ho gaya.
"to kya baat hai?",devika uske samne aayi.
"ye..ye nahi hona chaiye tha..ye galat hai..",inder abhut pareshan
hone ka natak kar raha tha.
"oh..samjhi..",devika ne usek chehre ko hatho me bhara,"..inder,tum
humare malik-naukar ke rishte ki baat kar rahe ho na."
inder ne haa me sar hilaya.
"inder,tum 1 mard ho & main 1 aurat.hum dono 1 dusre ki or khinch rahe
the & aaj vo hua jo ki kudarti baat hai.agar do log 1 dusre ko chahe
to izhare-mohabbat to hoga hi na!"
"magar ye haqeeqat hai ki aap meri malkin hain."
"aur ye bhi haqiqat hai ki tum mujhe chahte ho.haan ya naa?"
"haan.",inder ne sar jhuka ke kaha.
"fir kya baat hai?"
"pata nahi...ye thik nahi lagta."
"kya thik nahi lagta?"
"darr lagta hai."
"kaisa darr?"
"ki kahi main is rishte ka koi najayaz fayda na utha lu."
"ohh..inder..",devika ne use gale se laga liya,"..humesha aise darte
rehna kabhi kuchh bhi galat nahi hoga."
Inder ne uske kandhe se sar uthake sawaliya nigaho se use dekha.
"haan..",Devika ne uske baalo me hath fera,"..koi aur mard hota na
inder to main abhi bhi us bistar pe padi hoti & vo mere jism se khel
raha hota magar is waqt bhi tum ye nahi bhule.is se to bas tumahri
achhai zahir hoti hai."
"..inder,is baat ka darr ki tum kahi kabhi is rishte ka galat istema
na karo hi tumhe is galti se bachaye rakhega.tum ghabrao mat,mujhe
pura yakin hai ki tum kabhi koi galat kaam nahi karoge..",inder kuchh
bolne ko hua magar devika ne apne komal hath uske hotho pe rakh
diye,"..& agar kabhi aisa kiya to main tumhe rok dungi.ab to tumhare
man me koi shubaha nahi hai na?"
inder ne na me sar hilaya & devika ko apne agosh me liya.devika ne
muskurate hue apna sar uske baye kandhe pe tika use pyar se dekha,"1
baat ka vada kijiye."
"kya inder?",devika uske seene ke balo se khel rahi thi.
"ki aap kabhi is rishte ki hado ko todne ke liye mujhe nahi
kahengi?hum duniya ke samne nahi aa sakte & kabhi aisa kiya to chahe
humare irade kitne hi nek kyu na ho ye duniya kabhi hume sahi nahi
samjhegi.",inder ne badi safai se apne & devika ke rishte ko raaz
rakhne ki baat use keh di.har insan ka koi itna aziz hota hai uske
dilbar ke siwa jis se vo apni sari baate kehta hai.inder ko pata nahi
tha ki devika ka aisa dost kaun hai magar vo koi risk nahi lena chahta
tha.
"vada kiya.",devika ne muskurate hue use dekha,"..magar 1 waqt pe
kabhi koi hadd nahi manungi?"
"kab?"
"jab hum dono tanho ho.",devika ke hath inder ke seene se uske pet tak
gaye magar us se neeche le jane me devika ko jhijhak hui.
"jo aapka hukm,ma'am.",inder ne devika ke jhijhakte hath ko pakad use
apne sikude lund pe rakh diya.devika ko sharm aa gayi & usne inder ke
baye kandhe me apna chehra chhupa liya.inder abhi bhi uska hath vaise
hi lund pe dabaye tha.
thodi hi der me devika ne lund ko tham liya tha & bahut dhire-2 hila
rahi thi.inder ne uske baalo ko chuma to usne apna chehara utha apne
honth inder ke samne pesh kar diye.inder ne uske tohfa apne hotho se
kabula & apna daya hath utha deewar pe lage light switch ko off kiya &
devika ko le 1 bar fir bistar ki or badh gaya.
Panchmahal ka Bahargunj ilaka jaha saste hotels ki bharmar thi.inhi me
se 1 hotel ke 1 kamre me leta Shiva apni zindagi ke bare me soch raha
tha.fauj se Sahay Estate & ab na jane kaha le jane wali thi uski
taqdir use.uske hath me vo dawa ki dibiya thi & use samajh nahi aa
raha tha ki ab aage kya kare.
uske paine dimagh ne itna andaza to laga liya tha ki is dawa ka Suren
Sahay ki maut se kuchh na kuchh talluk to zarur tha & is sabke peechhe
Inder ka hath tha magar inder ye sab kyu kar raha tha..daulat ke
liye?..par is sab me kitna khatra tha..itna khatra daulat ke
liye...lagta to nahi.1 baat to tay thi ki jis tarah se usne suren ji
ko maut ki nind sulaya tha & uske chaukkane hone ke bavjood use devika
ki nazro se gira diya tha uska dimagh bahut tez tha.itna tez dimagh
shakhs is tarah se khatra uthaya sirf daulat ke liye..naa!vo to aur
kayi kam khatre vale tariko se paise kama sakta tha.to fir kya thi
vajah & fir sahay estate hi kyu?panchmahal me daulatmando ki kami nahi
thi fir sahay parivar hi kyu?
shiva ne is saval se jujhna chhoda..abhi sabse zaruri tha is dawa ki
asliyat jaanana lekin kaise?usne dawa ko paas padi apni pant ki jeb me
dala & kamre ki batti bujha di.aankhe mund usne sone ki koshish ki
magar neend uski aankho se koso dur thi.har raat devika ke komal jism
ko baaho me bharke sona uski aadat ban gaya tha & jab se vo estate se
nikala gaya thapura din to kisi tarah kat jata tha magar raate us se
kate nahi katati thi....is sabka zimmedar inder tha....devika se judai
ke dard ne shiva ke gusse ko bhadkaya & uske dil me inder se badla
lene ka jazba & pukhta ho gaya.
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kramashah.............
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
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