Sunday, October 24, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--35

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--35

गतान्क से आगे...
रोमा ने अभी तक पूरा एस्टेट नही देखा था & इसके लिए देविका ने तय किया था
कि शनिवार को वो उसे प्रसून के साथ एस्टेट घुमाने ले जाएगी लेकिन उसका
इरादा बस बेटे-बहू को ले जाने का नही था उस शख्स को भी साथ ले जाने को था
जिसने उसके दिल मे जगह बना ली थी-इंदर.रात उसके नाम से चूत मे उंगली करने
के बाद देविका नेउसके बारे मे सोचा तो पाया था कि इंदर कोई ग़ज़ब का हसीन
नौजवान नही था मगर कोई बदशक्ल इंसान भी नही था & उसका जिस्म भी गाथा हुआ
था.देविका की सोई हस्रतो को उसकी शराफ़त ने जगा दिया था & उसे लगने लगा
था की शिवा के दिए ज़ख़्मो पे इंदर ही मरहम लगाएगा.

"इंदर.ज़रा मेरे कॅबिन मे आना.",इनर्ट्र्कोम से उसने उसे बुलाया.

"यस मॅ'म.",इंदर उसके कॅबिन मे दाखिल हुआ.

"इंदर,इस शनिवार मैं प्रसून & रोमा को एस्टेट दिखाने ले जा रही हू.मैं
चाहती हू की तुम भी हमारे साथ आओ."

"पर..-"

"पर-वर कुच्छ नही.तुम्हे कही जाना है?"

"नही."

"कोई काम है?"

"नही,मगर..-"

तो फिर 3 बजे के बाद घर मे ही बैठे रहोगे."

"जी."

"तो उस से अच्छा है हमारे साथ चलो."

"मॅ'म."

"इंदर,ऑर्डर नही दे रही गुज़ारिश कर रही हू,प्लीज़.",1 पल को देविका के
चेहरे पे उसके दिल के असली भाव आ गये थे जिन्हे इंदर की पैनी निगाहो ने
पढ़ लिया था.

"मॅ'म,आप तो शर्मिंदा कर रही हैं.मैं ज़रूर चलूँगा."

"थॅंक्स,इंदर."

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"रोमा..ये बिस्कट भी रख लो & ये फ्रूटी भी..ये वाली बॉटल तुम्हारी है &
ये मेरी.",ओपन टॉप जीप की पिच्छली सीट पे बैठ रही रोमा को प्रसून अपना
समान पकड़ा रहा था.जीप बंगल के अहाते मे खड़ी थी.

"और मेरी फ्रूटी प्रसून?",इंदर ने प्रसून को छेड़ा.सब तैय्यार होके आ गये
थे मगर देविका अभी तक नही आई थी.

"वो भी है,इंदर भाय्या.आपकी इस आइस-बॉक्स मे है & आपके लिए चिप्स भी लाया
हू.",प्रसून की मासूम बातो से रोमा & इंदर हंस पड़े.पूरे परिवार मे ये
अकेला था जिस से चाह के भी इंदर नफ़रत नही कर पाया था मगर इसके बावजूद
उसके मन मे ज़रा भी शुबहा नही था की जब वक़्त आएगा तो वो प्रसून को मोहरा
बनाने मे ज़रा भी नही हिचकिचाएगा.

"सॉरी,मेरी वजह से सबको इंतेज़ार करना पड़ा ना.",बंगल से बाहर निकलती
कमीज़ के आस्तीन के बटन लगाती देविका को देख इंदर का मुँह खुला का खुला
रह गया.उसने देविका को हमेशा सारी मे देखा था.आज उसने क्रीम कलर की कसी
शर्ट & बलुए रंग की कसी पॅंट जिन्हे राइडिंग ब्रीचास कहा जाता है पहनी
थी.ये ब्रीचास घुड़सवारी के वक्त पहनी जाती हैं.उन ब्रीचास के उपर से
उसने भूरे रंग के चमड़े के बेहतरीन घुटनो तक के राइडिंग बूट्स पहने थे.

इस कसे लिबास मे देविका के बदन के सभी कटाव सॉफ झलक रहे थे.उसकी चाल मे 1
कुद्रती लोच था जिस से उसकी कमर क़ातिलाना अंदाज़ मे मटकती थी.इस वक़्त
जब वो तेज़ी से चलते हुए इंदर के पास आई & फिर जीप की अगली सीट पे बैठी
तो इंदर उसकी कसी गंद की दिल ही दिल मे तारीफ किए बिना नही रह सका.

"इंदर."

"जी."

"बुरा ना मानो तो आज तुम ही जीप चलाओ."

"ज़रूर मॅ'म.इसमे बुरा मानने की क्या बात है!",इंदर सीट पे बैठ गया &
स्टियरिंग संभाल ली.जीप तेज़ी से बंगल के ड्राइववे से निकल एस्टेट के
खेतो की ओर निकल पड़ी.देविका & इंदर आगे बैठे थे & रोमा & प्रसून
पीछे.देविका & प्रसून रोमा को हर जगह के बारे मे बता रहे थे.

सब्ज़ियो के खेतो के पास से गुज़रते हुए वाहा काम कर रहे आदमियो ने उन्हे
सलाम किया & उनमे से 1 ने प्रसून को ताज़े खीरे पकड़ाए.सभी लोग
ताज़े,रसीले खीरो के ज़ायके का मज़ा उठाते हुए आगे बढ़ गये.एस्टेट के
छ्होटे से जंगल के रास्ते पे दौड़ती जीप अब वाहा की सबसे खूबसूरत जगह की
ओर बढ़ रही थी.

रास्ता थोड़ा उबड़-खाबड़ था & झटका लगता तो देविका की बाँह इंदर से च्छू
जाती.देविका को बहुत अच्छा लग रहा था & उसका दिल कर रहा था की ये असर्त
कभी ख़त्म ही ना हो मगर ये तो नामुमकिन बात थी & कोई 10 मिनिट बाद वो लोग
उसी झील के पास पहुँच गये जहा कुच्छ दिन पहले प्रसून की शादी के वक़्त
इंदर ने कामिनी & वीरेन को 1 दूसरे को चूमते देखा था.

झील पे पहुँचते ही प्रसून जीप से उतर के पानी की तरफ भागा,उसके पीछे-2
उसकी बीवी भी गयी,"अब देखना ये पानी पे पत्थर तराएएगा.",देविका अपने बेटे
को छपते पत्थर ढूंढते देख मुस्कुराइ.

"ये तो बड़ा मज़ेदार खेल है.मैं भी जाता हू.",इंदर ड्राइविंग सीट से उतरा
& उन दोनो के पास पहुँच गया.तीनो पानी पे चपते पत्थर फेंक के ये देखने
लगे की किसका पत्थर देर तक पानी पे उच्छलता है.देविका जीप से उतर उसके
बॉनेट पे बैठ गयी.इंदर ने अपनी कमीज़ की आस्तीने मोड़ ली थी & उसके
मज़बूत बाज़ू सॉफ दिख रहे थे.देविका के दिल मे कसक सी उठी....आख़िर कितना
इंतेज़ार करना पड़ेगा उसे उन बाजुओ मे क़ैद होने के लिए!

इंदर के करीब आने के ख़याल ने उसे फिर से उसके बेवफा आशिक़ की याद दिला
दी & उसके चेहरे पे उदासी की परच्छाई आ गयी..कही वो इंदर के करीब आके
वोही ग़लती तो नही दोहराएगी?....शिवा भी उसका दीवाना था & इतना उसे यकीन
था की उसने शुरू मे उसे सच्चे दिल से चाहा था मगर ना जाने कब वो चाहत
पैसो के आगे फीकी पड़ गयी....कही इंदर भी उसे आगे जाके धोखा तो नही
देगा?....लेकिन इंदर को तो उसका ख़याल ही नही है..शिवा उसकी खूबसूरती का
कायल था,ये बात देविका को उसके इश्क़ के इज़हार के पहले से पता थी,उसने
कयि बार उसे खुद को देखते पाया था मगर इंदर के लिए वो बस उसकी मालकिन थी
& कुच्छ नही....इस बार तो बात उल्टी थी,वो इंदर के करीब आना चाहती
थी....वैसे भी उसे इंदर से इश्क़ नही हुआ था....वो उसकी ईमानदारी &
अच्छाई की कायल थी मगर इश्क़...नही!

इश्क़,प्यार किताबी बाते होती हैं & वही अच्छी लगती हैं.ये बात तो वो
ज़िंदगी मे बहुत पहले समझ चुकी थी.अभी भी इंदर उसे अच्छा लगा था मगर उसके
दिल से ज़्यादा उसके बदन को उस गथिले नौजवान की ज़रूरत थी.उसे नही पता था
की कल क्या होने वाला है..हो सकता है इंदर जैसा आज है वैसा ही कल भी रहे
& हो सकता है वो बदल जाए जैसे शिवा बदला था....मगर वो ये ख़तरा उठाने को
तैय्यार थी.इंदर के करीब उसे जाना ही था आगे क्या होगा वो संभाल
लेगी..इतनी बेवकूफ़ नही थी वो की बार-2 1 ही ग़लती करे.इस बार वो अपने
आशिक़ पे आँख मूंद के भरोसा नही करेगी मगर पहले वो उसका आशिक़ बने तो!

तीनो वापस आ रहे थे,"अब कहा चलना है,मॅ'म?"

"अब टीले पे चलते हैं,इंदर भाय्या.",देयका के बोलने से पहले ही प्रसून बोल उठा.

"हां,वही चलते है नही तो अंधेरा हो जाएगा.",चारो 1 बार फिर जीप मे बैठ
गये & 1 बार फिर देविका की बाँह इंदर की बाँह से च्छू उसे मस्त करने
लगी.एस्टेट मे जो सबसे ऊँची जगह थी उसे ही टीला कहते थे.उसके उपर जाने का
रास्ता सुरेन जी ने ही बनवाया था.वाहा कुच्छ नही था बस कुच्छ पेड़ो के
सिवा मगर वाहा से पूरी एस्टेट दिखती थी & वो नज़ारा बड़ा ही दिलकश होता
था.जब प्रसून छ्होटा था तो सुरेन जी बीवी & बेटे को अक्सर वाहा पिक्निक
मनाने ले जाते थे.

1 बार प्रसून साथ गये नौकर के साथ टीले से नीचे उतर आस-पास के पौधो से
फूल इकठ्ठा करने लगा था.उस रोज़ देविका ने स्कर्ट पहनी थी & कुछ ज़्यादा
ही खूबसूरत लग रही थी.प्रसून के जाते ही सुरेन जी को मौका मिल गया &
उन्होने अपनी हसीन बीवी को गोद मे उठाया & पेड़ो के झुर्मुट के बीच ले
जाके उसे चोद दिया था.देविका को आज भी वो दोपहर याद थी.जीप टीले के उपर
खड़ी थी & उसके बेटे-बहू जीप से नीचे उतर के वाहा से एस्टेट को देख रहे
थे.

देविका पति के साथ बिताए हसीन लम्हो की याद मे खोई जीप की पिच्छली सीट पे
आ गयी थी & खड़ी हो जीप की रेल पकड़ के बेटे-बहू को देख रही थी.उस रोज़
सुरेन जी कुछ ज़्यादा ही जोश मे थे & देविका भी उनके लंड से 2-3 बार झाड़
गयी थी.उन मस्त पॅलो की याद ने देविका के जिस्म मे आग लगा दी & उसने
बेचैन हो अपनी भारी जंघे आपस मे हल्के से रगडी & अपना ध्यान हटाने के लिए
बेटे-बहू के पास जाने की गरज से जीप से उतरने को घूमी & वाहा बैठे इंदर
के घुटनो से टकरा के गिरने लगी.

उसे पता ही नही चला था की इंदर कब आके बैठ गया था.इंदर ने उसे गिरने से
रोका & अपनी बाहो मे संभाला & वो संभालते हुए उसकी गोद मे गिर गयी.इंदर
की बाई बाँह उसकी कमर के गिर्द थी & दाई उसकी बाई बाँह पे.दोनो के चेहरे
1 दूसरे के बिल्कुल करीब थे & दोनो 1 दूसरे की सांसो को महसूस कर रहे
थे.इंदर की नज़रे देविका के चेहरे से नीचे हुई & उसकी शर्ट के गले मे से
झलक रहे उसके क्लीवेज पे गयी & फिर वापस उसके चेहरे पे जिसपे देविका के
जिस्म की प्यास सॉफ दिख रही थी.देविका को अपनी गंद के नीचे दबा इंदर का
कुलबुलाता लंड महसूस हो रहा था....कितना करीब था उसका लंड उसकी प्यासी
चूत के..अफ!देविका को आज यकीन हो गया था की इंदर का लंड बहुत बड़ा
है.उसका दिल बेताब हो उठा था उस लंड से खेलने के लिए मगर अभी उसका वक़्त
नही था.

इंदर के सीने पे & जीप की आगे की सीट पे हाथ रख वो उठी & जीप से उतर
गयी.शाम ढाल चुकी थी & सूरज अब डूबने ही वाला था.उस नारंगी सूरज की रोशनी
मे एस्टेट का नज़ारा और भी दिलकश लग रहा था.नीचे के खेतो से लौटते किसान
& मज़दूर दिख रहे थे.दूर बुंगला भी दिख रहा था & बाकी इमारतें भी मगर जो
नही दिख रहा था वो था क्वॉर्टर्स से बंगले को जाने के रास्ते के किनारे
पर झाड़ियो से कुच्छ दूरी पे पेड़ो के झुर्मुट के बीच कुच्छ ढूनदता हुआ 1
आदमी.

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बहुत अच्छा हुआ की उनलोगो ने उस शख्स को नही देखा.देविका को पता नही था
की कुच्छ ही दिन बाद उसकी ज़िंदगी मे बहुत बड़ा तूफान आने वाला है & उस
तूफान से लड़ने का माद्दा जिस शख्स मे था वो अगर आज पकड़ा जाता तो फिर
देविका को कोई भी नही बचा सकता था.

वो पेड़ो के बीच कुछ ढूनदता हुआ शख्स शिवा था.अपनी महबूबा की बेरूख़ी से
दुखी हो वो एस्टेट से चला गया था मगर उसकी फ़िक्र & इंदर से बदला लेने की
चाह उसे फिर से यहा ले आई थी.वो एस्टेट के चप्पे-2 से वाकिफ़ था & सबकी
नज़र बचाके घुसना उसके बाए हाथ का खेल था.इंदर के बारे मे सोचते हुए उसे
सुरेन जी के मौत के अगले रोज़ का वाक़या याद आया था जब इंदर ने वाहा
कुच्छ फेंका था.उसने दूसरे ही दिन आके ढूँढा था मगर कुच्छ नही मिला था
लेकिन उसने 1 आख़िरी कोशिश करने की सोची थी.पता नही क्यू उसे बार-2 ऐसा
लग रहा था कि वो चीज़ 1 बहुत अहम सुराग थी इंदर के खिलाफ & आज उसे ज़रूर
मिलेगी.

उसका दिमाग़ कहता था की ये बेवकूफी थी,इतने दीनो पहले फेंकी गयी चीज़ आज
मिलने से रही मगर उसका दिल कहता था की उसे वो चीज़ ज़रूर मिलेगी & बस
अपने दिल की आवाज़ को सुनता वो वाहा जुटा था.

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घोड़ो के स्टड फार्म के अहाते मे जली आग के पास बैठे चारो बाते कर रहे
थे.पूरी एस्टेट का चक्कर लगाके जब 8 बजे वो वाहा पहुँचे तो प्रसून ने
ज़िद की यहा आग जलाके पिक्निक मनाई जाए जैसे उसके पापा करते थे & रात को
भी यही फार्म पे रुका जाए.सुरेन जी कभी अमेरिका गये थे & वाहा के टेक्सस
राज्य मे कोई स्टड फार्म देखा था.उन्होने अपना फार्म बिल्कुल उसी अमेरिकन
फार्म की नकल मे बनाया था.घोड़ो के अस्तबल से थोड़ा हट के लकड़ी की
दोमंज़िला इमारत थी जिसमे वाहा काम करने वालो के कमरे थे.कभी-कभार वो यहा
आराम के कुच्छ पल बिताने आ जाया करते थे.आज प्रसून की फरमाइश पे सब वही
रुक गये थे.

स्टड फार्म की उपरी मंज़िल पे 2 कमरे खाली थे,वाहा के केर्टेकर ने 1 कमरा
प्रसून & रोमा के लिए & दूसरा देविका के लिए ठीक कर दिया था.निचली मंज़िल
पे 1 कमरा खाली था जो उसने इंदर के लिए ठीक कर दिया था.इंदर तो वाहा
रुकना नही चाह रहा था या यू कहा जाए की ना रुकना चाहने का नाटक कर रहा था
मगर सभी के इसरार के आगे उसे झुकना ही पड़ा.देविका ने फार्म से 1 लड़के
को बंगले पर भेज दिया था जहा उसकी नौकरानी ने सभी के लिए रात के कपड़े
भेज दिए थे.

काफ़ी देर तक चारो बाते करते रहे.काई दिन बाद देविका को भी इतना हल्का
महसूस हो रहा था.10 बजे के बाद प्रसून जमहाई लेने लगा तो देविका ने उसे &
रोमा को सोने जाने के लिए कहा मगर वो इंदर के साथ वही बैठी बाते करती
रही,"इंदर,1 पर्सनल सवाल पुच्छू तो बुरा तो नही मनोगे?"

"पर्सनल सवाल?"

"हां."

"पुछिये.अब बॉस की बात का बुरा मान के मुझे नौकरी ख़तरे मे थोड़े डालनी
है!",दोनो हंस पड़े.

"तुमने अभी तक शादी क्यू नही की?"

"कभी मौका ही नही मिला."

"ऐसा कैसे हो सकता है?"

"आप तो जानती ही हैं की मैं अनाथ हू तो कोई मा-बाप तो थे नही जोकि ये काम
करवाते & मैं.",इंदर फीकी सी हँसी हंसा,"..मैं अपने पैरो पे खड़ा होने के
चक्कर मे लगा रहा.उस जद्दोजहद मे मुझे कभी ये ख़याल ही नही आया की शादी
भी करनी है & मॅ'म..",उसने देविका की आँखो मे देखा,"..अब तो ज़रूरत महसूस
भी नही होती.मुझे अकेलापन रास आने लगा है शायद."

"ये वेहम है तुम्हारा.फ़िक्र मत करो जब कोई लड़की मिलेगी तो ज़रूरत भी
महसूस होगी & अकेलापन भी बेकार लगेगा.",देविका उठ के खड़ी हो गयी,"अब
चलती हू.गुड नाइट,इंदर."

"मॅ'म..",स्टड फार्म का केर्टेकर उसके कमरे मे खड़ा था,"..और किसी चीज़
की ज़रूरत नही है ना आपको?"

"नही.तुम कहा सोयोगे?"

"मैं तो अस्तबल के उपर वाले कमरो मे से किसी 1 मे.2-4 और वर्कर्स भी वही सोते हैं."

"ठीक है.मॅनेजर साहब के कमरे मे सब ज़रूरत का समान रख दिया ना?"

"जी,मॅ'म.बस मच्छरदानी नही रखी है क्यूकी 2 ही थी सो 1 आपको & 1 भैया को दी है."

"अच्छा.",केर्टेकर के जाते ही देविका ने बती बुझाई & मच्छरदानी उठा अपने
बिस्तर मे घुस गयी.थोड़ी ही देर मे रात का सन्नाटा च्छा गया.अस्तबल की
तरफ से भी कोई आवाज़ नही आ रही थी & बाकी कमरो से भी नही.नीचे इंदर जगा
होगा ये देविका को मालूम था.स्टड फार्म पे इस वक़्त मच्छरो का हमला होता
था & वो किसी भी क्रीम या रिपेलेंट से नही भागते थे.घोड़ो को उनसे बचाने
के लिए 1 रिपेलेंट इस्तेमाल होता था मगर उसकी बदबू ऐसी थी की इंसान उसे
इस्तेमाल नही कर पाते थे & मच्छरदानी के अलावा कोई और उपाय नही था उन खून
के प्यासे कीड़ो से बचने का.

देविका जानती थी की इंदर का उन मच्छरो ने काट-2 के बुरा हाला कर दिया
होगा.वो अपने बिस्तर से उतरी & उसके कमरे की ओर बढ़ गयी.उसने बिल्कुल ठीक
सोचा था इंदर अपने बिस्तर पे बैठा मच्छर मार रहा था,"परेशान हो गये ना?"

देविका की आवाज़ सुन वो चौंक पड़ा & दरवाज़े मे खड़ी देविका को देख वो सब
भूल गया देविका ने आज पूरे बाजुओ की काली नाइटी पहनी थी जोकि उसके सीने
पे बिल्कुल कसी थी & उसके नीचे से ढीली थी.नाइटी का गला थोड़ा बड़ा था &
देविका की बड़ी चूचियो का हिस्सा उस से झलक रहा था.

"हा..हां..बहुत मच्छर हैं."

"हूँ.",देविका मुस्कुराइ,"..मेरे साथ आओ.",इंदर उसके पीछे-2 चल
पड़ा.देविका उसे अपने कमरे मे ले आई.

"यहा सो जाओ."

"जी..मगर आप."

"मैं भी यही सोयूँगी.",देविका का दिल बहुत ज़ोर से धड़क रहा था.

"मॅ'म..ये कैसे हो सकता है?",इंदर घबराया हुआ लग रहा था.

"इंदर,बिस्तर बहुत बड़ा है & मच्छरदानी 1 ही है.अब अगर सोना चाहते हो तो
रास्ता 1 ही है की तुम & मैं ये बिस्तर शेर कर लें."

"नही,मॅ'म.मैं ऐसा नही कर सकता.ये ठीक नही लगता."

"इंदर,तुम किस बात से घबरा रहे हो?तुम्हे मुझपे भरोसा नही ये खुद पे?"

"मॅ'म..समझने की कोशिश कीजिए.बात वो नही है.लोग.."

"अच्छा.लोग!तुम उसकी फ़िक्र मत करो.कोई कुच्छ नही बोलेगा.चलो सोयो अब
मुझे भी नींद आ रही है.",इंदर ने काफ़ी नाटक कर लिया था & अब वो बेमन सा
बिस्तर मे घुस गया.दूसरी तरफ से देविका भी बत्ती बुझा के बिस्तर पे आ
गयी.इंदर उसकी तरफ पीठ करके लेटा था देविका का दिल तो कर रहा था की वो
उसे घुमा उसके उपर टूट पड़े मगर उसने अपने जज़्बातो पे काबू रखा.इंदर
जानता था की बस 1 हाथ बढ़ने की देर है,देविका अपनी टाँगे खोल उसका
इस्तेक्बाल करेगी मगर नही वो ऐसा कुच्छ नही करेगा.

तभी दूसरे कमरे से रोमा की चीख सुनाई दी & दोनो उठ बैठे,"ये क्या था?!"

इंदर बिस्तर से उतरने ही वाला था की अगली आवाज़ से दोनो को सारा माजरा
समझ आ गया,"आहह...आईयईए..आराम से प्रसून....ऊहह..इतना अंदर
नही...हाईईइ....!",देविका के गाल शर्म से लाल हो गये,उसकी बहू उसके बेटे
से चुद रही थी.उसकी हिम्मत नही हुई की वो इंदर की ओर देखे & वो लेट गयी.

रोमा की मस्ती भरी आहो ने इंदर के आज़म को भी हिला दिया था.उसका दिल तो
किया की देविका को बाहो मे भर उसके हलक से भी ऐसी ही आवाज़ा निकलवाए मगर
तभी उसके दिमाग़ ने उसे हिदायत दी..अगर उस कमरे से आवाज़ इस कमरे तक आ
सकती है तो इस कमरे से उस कमरे क्यू नही जा सकती!

उसने अपने दिल पे काबू रखा & लेट गया.प्रसून अपनी बीवी की चूत मे उंगली
घुसा रहा था & उसी के ज़्यादा अंदर जाने से वो कराह उठी थी.रोमा बिस्तर
पे पड़ी उसके लंड को हिला रही थी.पहले प्रसून को अजीब लगता था की वो उसका
लंड पकड़ती है मगर अब उसे इंतेज़ार रहता था की कब रोमा अपने मुलायम हाथो
मे उसके लंड को हिलाए,"ऊव्व....!",रोमा कमर उचकती झाड़ रही थी.प्रसून को
बहुत अच्छा लगता जब उसकी बीवी ऐसी हरकत करती.उस वक़्त उसके चेहरे पे जो
दर्द जैसे भाव आते थे वो उसे अजीब लगते मगर इसके बाद वो उसे बहुत प्यार
करती थी.

अभी भी कुच्छ ऐसा ही हुआ था,रोमा ने उसे अपने उपर खिच लिया & उसे बेतहाशा
चूमने लगी,"..ओह्ह..मी डार्लिंग...प्रसून..आइ लव यू...!"

ये सारी आवाज़े दूसरे कमरे मे सोई देविका & इंदर के कानो मे भी पड़ रही
थी.देविका इंदर की ओर मुँह कर बाई करवट पे सोई थी जबकि इंदर बिल्कुल सीधा
लेटा था.देविका की नाइटी मे 1 स्लिट था & इस वक़्त जब उसका पूरा ध्यान
अपनी बहू की मस्तानी आहो पे था उसे ये होश ही ना रहा की उसकी स्लिट जोकि
जाँघ तक आती थी,उसमे से उसकी दाई जाँघ & गोरी टांग पूरी नुमाया हो रही
है.

कमरे मे अंधेरा था & देविका को लगा की इंदर सो गया है....कुच्छ ज़्यादा
ही शरीफ था वो तो!देविका को लगा की अब उसे ही कुच्छ करना पड़ेगा.उसने
नींद मे होने का नाटक कर अपना दाया हाथ इंदर की बाई बाँह पे रख दिया.उसे
लगा की अब वो ज़रूर कुच्छ करेगा.

"ओवव.....हां....और..अंदर..प्रसून..पूरा
घुसाओ...ऊहह.....डार्लिंगगगगगग...हाऐईयईईईईई..!",सॉफ ज़ाहिर था की प्रसून
अब अपना लंड रोमा की चूत मे घुसा रहा था.इंदर का हाल बुरा था मगर उसने
अपने बदले को याद किया & अपने जज़्बातो को संभालते हुए करवट ली.ऐसा करने
से देविका का हाथ उसकी बाँह से हट गयी.

देविका को बहुत बुरा लगा..कोई लड़की भी नही थी इसकी ज़िंदगी मे फिर ये
क्यू भाग रहा था उस से?..कही गे तो नही?देविका को हँसी आ गयी.दूसरे कमरे
मे प्रसून बीवी के उपर सवार उसकी चुदाई मे लगा ताबड़तोड़ धक्के लगा रहा
था.रोमा के मज़े की तो कोई सीमा ही नही थी!

"आहह....!",लंबी आह से देविका को पता चल गया की रोमा झाड़ चुकी है.उसने
नाइटी की स्लिट को & उपर कर उसमे अपना हाथ घुसाया & अपनी उंगली से अपनी
चूत को शांत करने लगी.थोड़ी देर की खामोशी के बाद 1 बार फिर उसकी बहू की
मस्तानी आहे उसे परेशान करने लगी थी.उसकी उंगली तेज़ी से चूत मे घूम रही
थी.वो इंदर का ख़याल कर अपनी चूत मार रही थी & इस सब से बेपरवाह इंदर
उसकी ओर पीठ किए सो रहा था.

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क्रमशः.............................

बदला पार्ट--35

गतान्क से आगे...
Roma ne abhi tak pura estate nahi dekha tha & iske liye devika ne tay
kiya tha ki shanivar ko vo use Prasun ke sath estate ghumane le jayegi
lekin uska irada bas bete-bahu ko le jane ka nahi tha us shakhs ko bhi
sath le jane ko tha jisne uske dil me jagah bana li thi-Inder.raat
uske naam se chut me ungli karne ke baad devika ne suke bare me socha
to paya tha ki inder koi gazab ka hasin naujawan nahi tha magar koi
badshakl insan bhi nahi tha & uska jism bhi gatha hua tha.devika ki
soyi hasrato ko uski sharafat ne jaga diya tha & use lagne laga tha ki
shiva ke diye zakhmo pe inder hi marham lagayega.

"inder.zara mere cabin me aana.",inetrcom se usne use bulaya.

"yes ma'am.",inder uske cabin me dakhil hua.

"inder,is shanivar main prasun & roma ko estate dikhane le ja rahi
hu.main chahti hu ki tum bhi humare sath aao."

"par..-"

"par-var kuchh nahi.tumhe kahi jana hai?"

"nahi."

"koi kaam hai?"

"nahi,magar..-"

to fir 3 baje ke baad ghar me hi baithe rahoge."

"ji."

"to us se achha hai huamre sath chalo."

"ma'am."

"inder,order nahi de rahi guzarish kar rahi hu,please.",1 pal ko
devika ke chehre pe uske dil ke asli bhav aa gaye the jinhe inder ki
paini nigaho ne padh liya tha.

"ma'am,aap to sharminda kar rahi hain.main zarur chalunga."

"thanx,inder."

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"roma..ye biscuit bhi rakh lo & ye Frooti bhi..ye vali bottle tumhari
hai & ye meri.",open top jeep ki pichhli seat pe baith rahi roma ko
prasun apna saman pakda raha tha.jeep bungle ke ahate me khadi thi.

"aur meri Frooti prasun?",inder ne prasun ko chheda.sab taiyyar hoke
aa gaye the magar devika abhi tak nahi aayi thi.

"vo bhi hai,inder bhaiyya.aapki is ice-box me hai & aapke liye chips
bhi laya hu.",prasun ki masum baato se roma & inder hans pade.pure
parivar me ye akela tha jis se chah ke bhi inder nafrat nahi kar paya
tha magar iske bavjood uske man me zara bhi shubaha nahi tha ki jab
waqt ayega to vo prasun ko mohra banane me zara bhi nahi
hichkichayega.

"sorry,meri vajah se sabko intezar karna pada na.",bungle se bahar
nikalti kamiz ke aastin ke button lagati devika ko dekh Inder ka munh
khula ka khula reh gaya.usne devika ko humesha sari me dekha tha.aaj
usne cream color ki kasi shirt & balue rang ki kasi pant jinhe riding
breeches kaha jata hai pehni thi.ye breeches ghudsawari ke wat pehni
jati hain.un breeches ke upar se usne bhure rang ke chamde ke
behtareen ghutno tak ke riding boots pehne the.

is kase libas me devika ke badan ke sabhi katav saaf jhalak rahe
the.uski chal me 1 kudrati loch tah jis se uski kamar qatilana andaz
me matakti thi.is waqt jab vo tezi se chalte hue inder ke paas aayi &
fir jeep ki agli seat pe baithi to inder uski kasi gand ki dil hi dil
me tareef kiye bina nahi reh saka.

"inder."

"ji."

"bura na mano to aaj tum hi jeep chalao."

"zarur ma'am.isme bura maanane ki kya baat hai!",inder seat pe baith
gaya & steering sambhal li.jeep tezi se bungle ke driveway se nikal
estate ke kheto ki or nikal padi.devika & inder aage baithe the & roma
& prasun peechhe.devika & prasun roma ko har jagah ke bare me bata
rahe the.

sabziyo ke kheto ke paas se guzarte hue vaha kaam kar rahe aadmiyo ne
unhe salam kiya & unme se 1 ne prasun ko taze kheere pakdaye.sabhi log
taze,rasile kheero ke zayke ka maza uthate hue aage badh gaye.estate
ke chhote se jungle ke raste pe daudti jeep ab vaha ki sabse khubsurat
jagah ki or badh rahi thi.

rasta thoda ubad-khabad tha & jhatka lagta to devika ki banh inder se
chhu jati.devika ko bahut achha lag raha tha & uska dil kar raha tha
ki ye asrta kabhi khatm hi na ho magar ye to namumkin baat thi & koi
10 minute baad vo log usi jhil ke paas pahunch gaye jaha kuchh din
pehle prasun ki shadi ke waqt inder ne kamini & viren ko 1 dusre ko
chumte dekha tha.

Jhil pe pahunchte hi Prasun jeep se utar ke pani ki taraf bhaga,uske
peechhe-2 uski biwi bhi gayi,"ab dekhna ye pani pe patthar
taraiyega.",Devika apne bete ko chapte patthar dhondate dekh
muskurayi.

"ye to bada mazedar khel hai.main bhi jata hu.",Inder driving seat se
utara & un dono ke paas pahunch gaya.teeno pani pe chapte patthar fenk
ke ye dekhne lage ki kiska patthar der tak pani pe uchhalta hai.devika
jeep se utar uske bonnet pe baith gayi.inder ne apni kamiz ki aasteene
mod li thi & uske mazbut bazu saaf dikh rahe the.devika ke dil me
kasak si uthi....aakhir kitna intezar karna padega use un bazuo me
qaid hone ke liye!

inder ke karib aane ke khayal ne use fir se uske bewafa aashiq ki yaad
dila di & uske chehre pe udasi ki parchhayi aa gayi..kahi vo inder ke
karib aake vohi galti to nahi dohrayegi?....shiva bhi uska deewana tha
& itna use yakin tha ki usne shuru me use sachhe dil se chaha tha
magar na jane kab vo chahat paiso ke aage phiki pad gayi....kahi inder
bhi use aage jake dhokha to nahi dega?....lekin inder ko to uska
khayal hi nahi hai..shiva uski khubsurti ka kayal tha,ye baat devika
ko uske ishq ke izhar ke pehle se pata thi,usne kayi baar use khud ko
dekhte paya tha magar inder ke liye vo bas uski malkin thi & kuchh
nahi....is baar to baat ulti thi,vo inder ke karib aana chahti
thi....vaise bhi use inder se ishq nahi hua tha....vo uski imandari &
achhai ki kayal thi magar ishq...nahi!

ishq,pyar kitabi baate hoti hain & vahi achhi lagti hain.ye baat to vo
zindagi me bahut pehle samajh chuki thi.abhi bhi inder use achha laga
tha magar uske dil se zyada uske badan ko us gathile naujawan ki
zarurat thi.use nahi pata tha ki kal kya hone wala hai..ho sakta hai
inder jaisa aaj hai vaisa hi kal bhi rahe & ho sakta hai vo badal jaye
jaise shiva badla tha....magar vo ye khatra uthane ko taiyyar
thi.inder ke karib use jana hi tha aage kya hoga vo sambhal legi..itni
bevkuf nahi thi vo ki baar-2 1 hi galti kare.is baar vo apne ashiq pe
aankh mund ke bharosa nahi karegi magar pehle vo uska aashiq bane to!

teeno vapas aa rahe the,"ab kaha chalna hai,ma'am?"

"ab teele pe chalte hain,inder bhaiyya.",deika ke bolne se pehle hi
prasun bol utha.

"haan,vahi chalte hai nahi to andhera ho jayega.",charo 1 baar fir
jeep me baith gaye & 1 bar fir devika ki banh inder ki banh se chhu
use mast karne lagi.estate me jo sabse oonchi jagah thi use hi teela
kehte the.uske uapr jane ka rasta Suren ji ne hi banwaya tha.vaha
kuchh nahi tha bas kuchh pedo ke siwa magar vaha se puri estate dikhti
thi & vo nazara bada hi dilksah hota tha.jab prasun chhota tha to
suren ji biwi & bete ko aksar vaha picnic manane le jate the.

1 baar prasun sath gaye naukar ke sath teele se neeche utar aas-paas
ke paudho se phool ikatha karne laga tha.us roz devika ne skirt pehni
thi & kuch zyada hi khubsurat lag rahi thi.prasun ke jate hi suren ji
ko mauka mil gaya & unhone apni haseen biwi ko god me uthaya & pedo ke
jhurmut ke beech le jake use chod diya tha.devika ko aaj bhi vo
dopahar yaad thi.jeep teele ke upar khadi thi & uske bete-bahu jeep se
neeche utar ke vaha se estate ko dekh rahe the.

devika pati ke sath bitaye hasin lamho ki yaad me khoyi jeep ki
pichhli seat pe aa gayi thi & khadi ho jeep ki rail pakad ke bete-bahu
ko dekh rahi thi.us roz suren ji kuch zyada hi josh me the & devika
bhi unke lund se 2-3 baar jhad gayi thi.un mast palo ki yaad ne devika
ke jism me aag laga di & usne bechain ho apni bhari janghe aapas me
halke se ragdi & apna dhyan hatane ke liye bete-bahu ke paas jane ki
garaj se jeep se utarne ko ghumi & vaha baithe inder ke ghutno se
takra ke girne lagi.

use pata hi nahi chala tha ki inder kab aake baith gaya tha.inder ne
use girne se roka & apni baaho me sambhala & vo sambhalte hue uski god
me gir gayi.inder ki bayi banh uski kamar ke gird thi & dayi uski bayi
banh pe.dono ke chehre 1 dusre ke bilkul karib the & dono 1 dusre ki
sanso ko mehsus kar rahe the.inder ki nazre devika ke chehre se neeche
hui & uski shirt ke gale me se jhalak rahe uske cleavage pe gayi & fir
vapas uske chehre pe jispe devika ke jism ki pyas saaf dikh rahi
thi.devika ko apni gand ke neeche daba inder ka kulbulata lund mehsus
ho raha tha....kitna karib tha uska lund uski pyasi chut
ke..uff!devika ko aaj yakin ho gaya tha ki inder ka lund bahut bada
hai.uska dil betab ho utha tha us lund se khelne ke liye magar abhi
uska waqt nahi tha.

inder ke seene pe & jeep ki aage ki seat pe hath rakh vo uthi & jeep
se utar gayi.sham dhal chuki thi & suraj ab dubne hi wala tha.us
narangi suraj ki roshni me estate ka nazara aur bhi dilkash lag raha
tha.neeche ke khetos e lautate kisan & mazdoor dikh rahe the.door
bungla bhi dikh raha tha & baki imaraten bhi magar jo nahi dikh raha
tha vo tha quarters se bungle ko jane ke raste ke kinare badni jhadiyo
se kuchh duri pe pedo ke jhurmut ke beech kuchh dhoondata hua 1 aadmi.

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bahut achha hua ki unlogo ne us shakhs ko nahi dekha.devika ko pata
nahi tha ki kuchh hi din baad uski zindagi me bahut bada toofan aane
wala hai & us toofan se ladne ka madda jis shakhs me tha vo agar aaj
pakda jata to fir devika ko koi bhi nahi bacha sakta tha.

vo pedo ke beech kuch dhoondata hua shakhs shiva tha.apni mehbooba ki
berukhi se dukhi ho vo estate se chala gaya tha magar uski fikr &
inder se badla lene ki chah use fir se yaha le aayi thi.vo estate ke
chappe-2 se wakif tha & sabki nazar bachake ghusna uske baye hath ka
khel tha.inder ke bare me sochte hue use suren ji ke maut ke agle roz
ka vakya yaad aaya tha jab inder ne vaha kuchh fenka tha.usne dusre hi
din aake dhonda tha magar kuchh nahi mila tha lekin usne 1 aakhiri
koshish karne ki sochi thi.pata nahi kyu use baar-2 aisa lag raha tha
ki vo chiz 1 bahut aham surag thi inder ke khilaf & aaj use zarur
milegi.

uska dimagh kehta tha ki ye bevkufi thi,itne dino pehle fenki gayi
chiz aaj milne se rahi magar uska dil kehta tha ki use vo chiz zarur
milegi & bas apne dil ki aavaz ko sunta vo vaha juta tha.

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ghodo ke stud farm ke ahate me jali aag ke paas baithe charo batten
kar rahe the.puri estate ka chakkar lagake jab 8 baje vo vaha pahunche
to prasun ne zid ki yaha aag jalake picnic manayi jaye jaise uske papa
karte the & raat ko bhi yahi farm pe ruka jaye.suren ji kabhi America
gaye the & vaha ke Texas rajya me koi stud farm dekha tha.unhone apna
farm bilkul usi american farm ki nakal me banaya tha.ghodo ke astabal
se thoda hat ke lakdi ki domanzila imarat thi jisme vaha kaam karne
valo ke kamre the.kabhi-kabhar vo yaha aram ke kuchh pal bitane aa
jaya krte the.aaj prasun ki farmasih pe sab vahi ruk gaye the.

stud farm ki upari manzil pe 2 kamre khali the,vaha ke caretaker ne 1
kamra Prasun & Roma ke liye & dusra devika ke liye thik kar diya
tha.nichli manzil pe 1 kamra khali tha jo usne inder ke liye thik kar
diya tha.inder to vaha rukna nahi chah raha tha ya yu kaha jaye ki na
rukna chahne ka natak kar raha tha magar sabhi ke israr ke aage use
jhukna hi pada.devika ne farm se 1 ladke ko bungle bhej diya tha jaha
uski naukrani ne sabhi ke liye raat ke kapde bhej diye the.

kafi der tak charo baate karte rahe.kayi din baad devika ko bhi itna
halka mehsus ho raha tha.10 baje ke baad prasun jamhai lene laga to
devika ne use & roma ko sone jane ke liye kaha magar vo inder ke sath
vahi baithi baate karti rahi,"inder,1 personal sawal puchhu to bura to
nahi manoge?"

"personal sawal?"

"haan."

"puchhiye.ab boss ki baat ka bura maan ke mujhe naukri khatre me thode
dalni hai!",dono hans pade.

"tumne abhi tak shadi kyu nahi ki?"

"kabhi mauka hi nahi mila."

"aisa kaise ho sakta hai?"

"aap to janti hi hain ki main anath hu to koi maa-baap to the nahi
joki ye kaam karwate & main.",inder fiki si hansi hansa,"..main apnme
pairo pe khada hone ke chakkar me laga raha.us jaddojahad me mujhe
kabhi ye khayal hi nahi aaya ki shadi bhi karni hai & ma'am..",usne
devika ki aankho me dekha,"..ab to zarurat mehsus bhi nahi hoti.mujhe
akelapan raas aane laga hai shayad."

"ye vaham hai tumhara.fikr mat karo jab koi ladki milegi to zarurat
bhi mehsus hogi & akelapan bhi bekar lagega.",devika uth ke khadi ho
gayi,"ab chalti hu.good night,inder."

"ma'am..",stud farm ka caretaker uske kamre me khada tha,"..aur kisi
chiz ki zarurat nahi hai na aapko?"

"nahi.tum kaha soyoge?"

"main to astabal ke upar vale kamro me se kisi 1 me.2-4 aur workers
bhi vahi sote hain."

"thik hai.manager sahab ke kamre me sab zarurat ka saman rakh diya na?"

"ji,ma'am.bas machhardani nahi rakhi hai kyuki 2 hi thi so 1 aapko & 1
bhaiya ko di hai."

"achha.",caretaker ke jaet hi devika ne bati bujhayi & machhardani
utha apne bistar me ghus gayi.thodi hi der me raat ka sannata chha
gaya.astabal ki taraf se bhi koi aavaz nahi aa rahi thi & baki kamro
se bhi nahi.neeche inder jaga hoga ye devika ko malum tha.stud farm pe
is waqt machharo ka humla hota tha & vo kisi bhi cream ya repellent se
nahi bhagte the.ghodo ko unse bachane ke liye 1 repellent istemal hota
tha magar uski badbu aisi thi ki insan use istemal nahi kar pate the &
machhardani ke alawa koi aur upay nahi tha un khoon ke pyase keedo se
bachne ka.

devika janti thi ki inder ka un machharo ne kaat-2 ke bura hala kar
diya hoga.vo apne bistar se utari & uske kamre ki or badh gayi.usne
bilkul thik socha tha inder apne bistar pe baitha machhar maar raha
tha,"pareshan ho gaye na?"

devika ki aavaz sun vo chaunk pada & darwaze me khadi devika ko dekh
vo sab bhul gaya.devika ne aaj pure bazuo ki kali nighty pehni thi
joki uske seene pe bilkul kasi thi & uske neeche se dhili thi.nighty
ka gala thoda bada tha & devika ki badi chhatiyo ka hissa us se jhalak
raha tha.

"ha..haan..bahut amchhar hain."

"hun.",devika muskurayi,"..mere sath aao.",inder uske peechhe-2 chal
pada.devika use apne kamre me le aayi.

"yaha so jao."

"ji..magar aap."

"main bhi yahi soyungi.",devika ka dil bahut zor se dhadak raha tha.

"ma'am..ye kaise ho sakta hai?",inder ghabraya hua lag raha tha.

"inder,bistar bahut bada hai & machhardani 1 hi hai.ab agar sona
chahte ho to rasta 1 hi hai ki tum & main ye bistar share kar len."

"nahi,ma'am.main aisa nahi kar sakta.ye thik nahi lagta."

"inder,tum kis baat se ghabra rahe ho?tumhe mujhpe bharosa nahi ye khud pe?"

"ma'am..samajhne ki koshish kijiye.baat vo nahi hai.log.."

"achha.log!tum uski fikr mat karo.koi kuchh nahi bolega.chalo soyo ab
mujhe bhi nind aa rahi hai.",inder ne kafi natak kar liya tha & ab vo
beman sa bistar me ghus gaya.dusri taraf se devika bhi batti bujha ke
bistar pe aa gayi.inder uski taraf pith karke leta tha.devika dil to
kar raha tha ki vo use ghuma uske uapr tut pade magar usne apne
jazbato pe kabu rakha.inder janta tha ki bas 1 hath badhane ki der
hai,devika apni tange khol uska istekbal karegi magar nahi vo aisa
kuchh nahi karega.

tabhi dusre kamre se roma ki chikh sunai di & dono uth baithe,"ye kya tha?!"

inder bistar se utarne hi wala tha ki agli aavaz se dono ko sara majra
samajh aa gaya,"aahhh...aaiyyeee..aaram se prasun....oohhhh..itna
andar nahi...haiiii....!",devika ke gaal sharm se laal ho gaye,uski
bahu uske bete se chud rahi thi.uski himmat nahi hui ki vo inder ki or
dekhe & vo let gayi.

roma ki masti bhari aaho ne inder ke azm ko bhi hila diya tha.uska dil
to kiya ki devika ko baaho me bhar uske halak se bhi aisi hi aavaza
nikalwaye magar tabhi uske dimagh ne use hidayat di..agar us kamre se
aavaz is kamre tak aa sakti hai to is kamre se us kamre kyu nahi ja
sakti!

usne apne dil pe kabu rakha & let gaya.prasun apni biwi ki chut me
ungli ghusa raha tha & usi ke zyada andar jane se vo karah uthi
thi.roma bistar pe padi uske lund ko hila rahi thi.pehle prasun ko
ajib lagta tha ki vo uska lund pakadti hai magar ab use intezar rehta
tha ki kab roma apne mulayam hatho me uske lund ko
hilati,"ooww....!",kroma kamar uchkati jhad rahi thi.prasun ko bahut
achha lagta jab uski biwi aisi harkat karti.us waqt uske chehre pe jo
dard jaise bhav aate the vo use ajib lagte magar iske baad vo use
bahut pyar karti thi.

Abhi bhi kuchh aisa hi hua tha,Roma ne use apne upar khicnh liya & use
betahasha chumne lagi,"..ohh..my darling...prasun..i love you...!"

ye sari aavaze dusre kamre me soye Devika & Inder ke kano me bhi pad
rahi thi.devika inder ki or munh kar bayi karwat pe soyi thi jabki
iner bilkul seedha leta tha.devika ki nighty me 1 slit tha & is waqt
jab uska pura dhyan apni bahu ki mastani aaho pe tha use ye hosh hi na
raha ki uski slit joki jangh tak aati thi,usme se uski dayi jangh &
gori tang puri numaya ho rahi hai.

kamre me andhera tha & devika ko laga ki inder so gaya hai....kuchh
zyada hi sharif tha vo to!devika ko laga ki ab use hi kuchh karna
padega.usne nind me hone ka natak kar apna daya hath inder ki bayi
banh pe rakh diya.use laga ki ab vo zarur kuchh karega.

"oww.....haan....aur..andar..prasun..pura
ghusao...oohhhhhhh.....darlingggggg...haaaiiiiiiii..!",saaf zahir tha
ki prasun ab apna lund roma ki chut me ghusa raha tha.inder ka haal
bura tha magar usne apnme badle ko yad kiya & apne jazbato ko
sambhalte hue karwat li.aisa karne se devika ka hath uski banh se hat
gayi.

devika ko bahut bura laga..koi ladki bhi nahi thi iski zindagi me fir
ye kyu bhag raha tha us se?..kahi gay to nahi?devika ko hansi aa
gayi.dusre kamre me prasun biwi ke upar sawa uski chudai me laga
tabadtod dhakke laga raha tha.roma ke maze ki to koi seema hi nahi
thi!

"aahhhhhhh....!",lambi aah se devika ko pata chal gaya ki roma jhad
chuki hai.usne nighty ki slit ko & upar kar usme apna hath ghusaya &
apni ungli se apni chut ko shant karne lagi.thodi der ki khamoshi ke
baad 1 baar fir uski bahu ki mastani aahe use pareshan karne lagi
thi.uski ungli tezi se chut me ghum rahi thi.vo inder ka khayal kar
apni chut maar rahi thi & is sab se beparwah inder uski or pith kiye
so raha tha.

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kramashah.........

आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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