Saturday, October 23, 2010

कामुक-कहानियाँ बदला पार्ट--17

कामुक-कहानियाँ

बदला पार्ट--17

गतान्क से आगे...
"उम्म..छ्चोड़ो ना....प्लीज़!!!!...औउ मा...ऊव्व.....!",अंधेरे कमरे मे
रजनी की मस्त आवाज़े गूँज रही थी.वो अपने प्रेमी को बस सतही तौर पे मना
कर रही थी की वो उसके जिस्म से और ना खेले मगर उसका दिल तो चाहता था कि
अब बस पूरी उम्र बस वो ऐसे ही उसके मज़बूत जिस्म की पनाह मे पड़ी
रहे.इंदर & वो बिस्तर पे लेटे थे & इंदर उसकी चूत के दाने को दाए हाथ की
उंगली & अंगूठे से पकड़ के हल्के-2 मसल रहा था & उसकी ये हरकत रजनी को
जोश से पागल कर रही थी.

"तुम तो कहती थी कि तुम्हारे बॉस बीमार हैं मुझे तो बिल्कुल तन्दरुस्त
नज़र आए.",इंदर ने उसके होंठो पे अपनी ज़ुबान फिराई.

"उम्म...",जवाब मे उसने उसकी ज़ुबान को अपने मुँह के अंदर खींच लिया न&
कुछ पल उसे चूमती रही,"..नही इंदर,वो सचमुच बीमार है.यकीन मानो उन्हे दिल
की बीमारी है."

"अच्छा.."..तो फिर मेरी दवा अपना कमाल क्यू नही दिखा रही.कितनी मुश्किल
से उसने उस दवा का नाम & फिर उसकी जगह उस स्लो पॉइजान को ढुंडा था (ये
कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )जो उसने उनकी
दवा की जगह रखा था...कही सहाय ने उसकी रखी डिबिया बदल के नयी डिबिया तो
नही ले ली..अब ये कैसे पता चलेगा?..यानी उसे कुच्छ और तरीका अपनाना
पड़ेगा...,"अहह...ह......ऊहह...ऊहह...!",उसकी उंगलियो की हरकत से झड़ती
रजनी ने उसके ख्यालो को तोड़ा.

वो उसके बाई तरफ लेटी साँसे लेती हुई अपने जिस्म को अभी-2 मिली खुशी का
पूरा लुत्फ़ उठा रही थी.इंदर ने उसे करवट ले अपनी ओर घुमाया फिर उसकी बाई
टाँग हवा मे उठा के खुद भी अपनी बाई करवट पे हुआ & अपना लंड उसकी उसके रस
से भीगी चूत मे पेल दिया,"..ऊव्वववव....!",रजनी अपनी टांग उसकी कमर पे
कसते हुए उसके सीने से लिपट गयी.अपना बाया हाथ इंदर ने रजनी की गर्दन के
नीचे लगाया & दाए से उसकी गंद मसल्ने लगा.

"और तुम्हारे भाईय्या?"

"प्रसून भाय्या...",आज रजनी को इंदर के घर पे बिताई उस दोपहर से भी
ज़्यादा मज़ा आ रहा था,"..उनके बारे मे 1 मज़ेदार बात बताऊं?"

"हूँ.",इंदर के कन खड़े हो गये मगर वो झुक के उसकी ठुड्डी ऐसे चूमने लगा
मानो उसे कोई खास मतलब ना हो इस बात से.

"उम्म्म्म....!",रजनी ने अपना बाया हाथ उसकी पीठ पे फिराते हुए उसकी गंद
को सहलाया,"..मॅ'म उनकी शादी करना चाहती हैं."

"क्या?!",चौंक के इंदर उसकी ठुड्डी छोड़ उसे देखने लगा.

"हां..",& फिर चुद्ते हुए रजनी ने झड़ने तक उसे बताया की कैसे शाम लाल जी
के आने पे उसके कान मे ये बात पड़ी थी & देविका & सुरेन सहाय अपने वकील
से भी इस बारे मे बात कर रहे थे.झड़ने के कुछ देर बाद इंदर ने लंड निकाला
तो रजनी ने थकान से चूर हो आँखे बंद कर ली.उसे सोता देखा इंदर उठा & कमरे
की खिड़की तक चला गया.अभी भी बारिश वैसे ही ताबड़तोड़ हो रही थी....आख़िर
उसे इस बात का पता कैसे नही चला?..ये शादी तो नही हो सकती किसी भी हालत
मे नही!..(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है
)उसका पूरा प्लान चौपट हो जाएगा अगर उस पागल की शादी हो गयी तो.ये शादी
का ख़याल तो पक्का देविका के दिमाग़ की उपज होगा.सुरेन सहाय के बस का नही
था ऐसा सोचन.उसने जितना सोचा था देविका उस से भी कही ज़्यादा चालाक थी.आज
वो बहुत खुश था वो एस्टेट मे घुस जो गया था मगर इस नयी खबर ने उसकी खुशी
काफूर कर दी थी.

उसका दिल बेचैन हो उठा & उसे शराब की तलब लगी मगर यहा शराब थी कहा.वो
मुड़ा & रजनी की ओर देखा.वो बेख़बर सो रही थी.उसने अपने कपड़े पहने & सोई
हुई रजनी के बदन पे चादर डाली & वाहा से निकल उसके क्वॉर्टर के ठीक उपर
अपने क्वॉर्टर मे चला गया.


कामिनी ने आँखे खोल खिड़की के बाहर देखा तो पाया की सुबह हो चुकी थी &
बारिश भी रुक चुकी थी मगर बादल अभी भी छाए थे.रात काफ़ी देर तक वीरेन
सहाय पैंटिंग बनाता रहा था & कोई 1 बजे उसने उसे छ्चोड़ा था.वो उसी के
गेस्ट रूम मे अभी सोकर उठी थी.

बिस्तर से उतरी तो कामिनी ने देखा की उसके कपड़े आइरन करके पास पड़ी
कुर्सी पे रखे थे.घर मे कोई नौकर तो आया नही लगता था फिर इन कपड़ो को
प्रेस किसने किया?कामिनी की ब्रा & पॅंटी भी वाहा रखे थे....यानी की
वीरेन ने ही उसके कपड़े वाहा रखे थे..उसने उसके अंडरगार्मेंट्स भी
छुए..इस ख़याल से कामिनी के गाल शर्म से लाल हो गये.

रात को वो वीरेन की दी सारी पहन के ही सो गयी थी.सारी उतार अपने कपड़े
पहनते हुए उसे रात की बाते याद आ गयी.(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )पैंटिंग बनाते वक़्त दोनो ने 1 दूसरे से
नज़रो का जो खेल खेला था उसने उसके दिल मे अभी फिर से गुदगुदी पैदा कर दी
& उसके होंठो पे मुस्कान फैल गयी.

कपड़े पहन वो बाहर आई,"गुड मॉर्निंग,कामिनी जी!"

"गुड मॉर्निंग."

"आइए चाइ पीजिए.",दोनो बैठ के चाइ पीने लगे.चाइ पीते वक़्त भी कामिनी ने
गौर किया की वीरेन बीच-2 मे उसके चेहरे को देख रहा था.चाइ पीते हुए कोई
खास बातचीत नही हुई & उसके ख़त्म होते ही कामिनी ने चलने की बात की.

"चलिए मैं छ्चोड़ देता हू.",वीरेन उठा & थोड़ी ही देर बाद दोनो उसकी कार
मे कामिनी के घर के लिए रवाना हो गये.घर पहुँचते ही कामिनी ने वीरेन को
उसके घर मे आ साथ नाश्ता करने का न्योता दिया मगर वीरेन ने काम का बहाना
कर उसे शालीनता से मना कर दिया.

कार गियर मे डाल उसने कामिनी की ओर देखा,"तो आज शाम आप आ रही हैं ना?"

"हां.आने के पहले मे आपको फोन कर दूँगी."

"ओके.तो शाम को मिलते हैं.",वीरेन की नज़रे उसके चेहरे से फिसल उसके झीनी
सारी मे से झाँकते उसके क्लीवेज पे आई मगर फ़ौरन सँभाल गयी.उसने क्लच
छ्चोड़ा तो कार आगे बढ़ गयी & वाहा से निकल गयी.

वीरेन ने कहा था की पैंटिंग बनाने मे समय लगता है & अभी कामिनी को उसके
पास कुच्छ दीनो तक आना पड़ेगा.कामिनी इसके लिए तैय्यार हो गयी थी,उसने
कहा की शाम को काम के बाद जो 2-3 घंटे उसके पास बचते थे उसी समय मे वो
उसकी पैंटिंग के लिए आ जाया करेगी.

वीरेन की कार नज़रो से ओझल हुई तो कामिनी ने दरवाज़ा खोला & गुनगुनाते
हुए घर मे दाखिल हुई.वीरेन की दिलचस्पी ने उसके दिल मे भी उमंगे पैदा कर
दी थी.वो अपने कमरे मे गयी & काम के लिए तैय्यार होने लगी.अभी तो उसे
कोर्ट जाना था मगर उसका दिल चाह रहा था (ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )क फ़ौरन शाम हो जाए & वो वीरेन के बंगल पे
पहुँच जाए ये देखने के लिए की आज दोनो का नज़रो का खेल कहा तक पहुँचता
है.

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"तो इंदर जी,समझ मे आ गया आपको सारा काम?",उसकी लाई फाइल पे सुरेन सहाय
ने दस्तख़त किए.

"यस सर.स्टाफ के लोग काफ़ी मदद कर रहे हैं इसलिए कोई परेशानी नही हो रही है."

"बहुत अच्छे लेकिन अगर कोई भी परेशानी हो तो मुझे ज़रूर बताएँ."

"थॅंक यू,सर.",इंदर फाइल ले वाहा से बाहर निकलने लगा.दरवाज़ा खोलते ही
उसने देखा की शिवा वाहा 1 फाइल लिए चला आ रहा था.दोनो ने मुस्कुरा के 1
दूसरे को ग्रीट किया & फिर शिवा अंदर घुस गया & इंदर बाहर चला गया.

"सर,ये उस सेक्यूरिटी सिस्टम्स वाली कंपनी ने अपना कोटेशन दिया है,1 बार
आप इसे चेक कर लीजिएगा."

"ओके.शिवा.1 बात बताओ भाई?"

"पुच्हिए,सर."

"क्या हमे सच मे इन चीज़ो की ज़रूरत है?"

"बिल्कुल है,सर.",शिवा ने उनपे बहुत ज़ोर डाला था की एस्टेट की हिफ़ाज़त
के लिए अब बाडो & तारो से उपर उठना पड़ेगा,"..सर,बाडेन & तार तो ठीक है
मगर इतने बड़े इलाक़े के चप्पे-2 पे हर वक़्त नज़र रखना तो मुश्किल है
चाहे आप कितने भी आदमी क्यू ना भरती कर ले.ये मशीन्स हमारे काम को आसान
करेंगी & हम अपना सेक्यूरिटी स्टाफ भी कोई 20% तक कम कर सकते हैं.."

"..जो पैसे यहा खर्च हो रहे हैं,आप ये सोचिए की वो पैसे सेकर्टी स्टाफ को
कम कर के बचा लिए जाएँगे."

"हूँ,तुम्हारी बात तो ठीक लगती है,फिर भी मैं 1 बार ये कोटेशन & इस मामले
मे तुमने जो मुझे रिपोर्ट मुझे दी थी उसे फिर से पढ़ लेता हू."

"ओके,सर.",शिवा वाहा से चला गया.

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"वाउ!",कामिनी वीरेन के साथ उसके स्टूडियो मे खड़ी उसकी बनाई खुद की
पैंटिंग देख रह थी,"..कितनी सुंदर पैंटीइंग बनाई है वीरेन आपने..मैं ऐसी
दिखती हू क्या?!...यकीन नही होता.ये आपके हाथो का कमाल है!",वीरेन की
पैंटिंग मे कामिनी की शख्सियत पूरी उभर के आई थी.पैंटिग देखने पे ये लगता
था मानो को रानी अपने दीवान पे बैठी हो,उसके चेहरे पे रौब झलक रहा था मगर
वो घमंडी नही लग रही थी बल्कि बड़ी ही अज़ीम लग रही थी.

"जी नही.ये आपकी शख्सियत का कमाल है.आप जैसी हैं वैसे ही मैने उसे इस
काग़ज़ पे उतार दिया है.",वीरेन मुस्कुराते हुए उसे देख रहा था.उसकी
नज़रो मे अपनी तारीफ देख 1 पल को कामिनी जैसी विश्वास से भरी लड़की की
पॅल्को पे भी हया का बोझ आ पड़ा(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है ).नज़रे झुका के वो फिर से अपनी तस्वीर
देखने लगी,वो जानती थी की वीरेन अभी भी उसे देखे जा रहा है.

"पैंटिंग तो बन गयी यानी मेरा काम ख़त्म?",उसने बात बदली.

"ख़त्म!अभी तो आपका काम शुरू हुआ है मोहतार्मा!"

"क्या मतलब?"

"मतलब ये की ये तो पहली तस्वीर है.अभी तो मैं तब तक आपकी तस्वीरे
बनाउन्गा जब तक की मुझे ये ना लगे कि अब आपकी शख्सियत का कोई भी पहलू
दिखाने को बाकी नही रहा है."

"आप भी ना!अब ऐसी भी कोई खास बात नही है मुझमे.",कामिनी ने बोल तो दिया
मगर वीरेन की बातो ने उसके दिल मे बहुत खुशी भर दी थी.

"..जिसका मतलब है की मैं आपकी पेंटिंग्स बनाता रहूँगा.",वीरेन ने जैसे
उसकी बात सुनी ही नही थी.

"प्लीज़!अब और तारीफ मत कीजिए वरना मुझमे गुरूर आ जाएगा."

"बिना गुरूर के तो हुस्न फीका ही लगेगा.",इस आख़िरी बात ने तो कामिनी के
गालो को शर्म से और भी सुर्ख कर दिया.

"अच्छा-2.तो आज कौन सी पेनिंट्ग बनाएँगे मेरी?"

"अभी बताता हू.",वीरेन ने पास का कपबोर्ड खोला.बरसो बाद वो किसी लड़की के
लिए अपने दिल मे ऐसे जज़्बात महसूस कर रहा था.ऐसा नही था कामिनी से मिलने
से पहले उसका किसी लड़की से कोई रिश्ता नही था.कयि लड़किया आई & गयी मगर
कोई भी उसके दिल मे ऐसी जगह नही बना पाई की वीरेन को लगे की वो उसके बगैर
जी नही सकता.बस 1 लड़की थी जिसने उसके दिल मे ये एहसास पैदा किया था मगर
वो..

उसने अपने माज़ी के बारे मे सोचना छ्चोड़ा.वो जो भी था,जैसा भी था,बीत
चुका था & ये खूबसूरत लड़की जो उसके स्टूडियो मे खड़ी थी ये हक़ीक़त थी &
उसे अब बस इसी बात से मतलब था.

"आज आप ये लिबास पहेनिए.",उसने उसे काले रंग का 1 लहंगा-चोली थमाया & 1
छ्होटा सा बॉक्स भी.कामिनी ने उसे खोला तो उसमे कुच्छ चाँदी के ज़वरात
थे.उसने सभी चीज़े ले वीरेन की ओर सवालिया नज़रो से देखा.

"कामिनी,मैं आपको हर इंसानी जज़्बात को महसूस करते हुए दिखाना चाहता
हू..इस तस्वीर मे आप 1 बहुत ही विश्वास से भरी औरत नज़र आ रही हैं जोकि
आप हक़ीक़त मे भी हैं.",उसने अपनी बनाई हुई पैंटिंग की ओर इशारा
किया,"..अब अगली पैंटिंग मे मैं आपको गम महसूस करते हुए दिखाना चाहता
हू-इंतेज़ार का गम.ये लिबास हमारे गाओं की लड़किया अभी भी पहनती हैं.(ये
कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )ये ज़वरात
आपके जिस्म पे सजे ये दिखाएँगे की आपको धन-दौलत की कमी नही है मगर जो
चीज़ आपके लिए सबसे ज़्यादा ज़रूरी है,सबसे खास है आपके लिए वोही आपके
पास मौजूद नही & आप उसी के इंतेज़ार मे हैं."

वीरेन अपनी कला के प्रति पूरी तरह से समर्पित था & इस वक़्त कामिनी 1
कलाकार को ही सुन रही थी.वीरेन की बात पूरी होने पे वो मुस्कुराइ &
बाथरूम की ओर बढ़ गयी.कुच्छ लम्हो बाद जब वो बाहर आई तो उसे देख वीरेन का
मुँह हैरत से खुला रह गया.वो 1 पेंटर था & आम लोगो के मुक़ाबले उसकी
इमॅजिनेशन कुच्छ ज़्यादा सॉफ होती थी.ये लिबास चुनते वक़्त उसके दिमाग़
ने कामिनी की 1 तस्वीर बना ली थी कि वो कैसी दिखेगी मगर इस वक़्त जो
लड़की उसके सामने खड़ी थी वो उस तस्वीर वाली कामिनी से कही ज़्यादा हसीन
& दिलकश लग रही थी.

चोली थोड़ी तंग थी & इस वजह से कामिनी की छातिया आपस मे दब गयी थी & चोली
के गले से उसका क्लीवेज थोड़ा और उभर आया था.हाथो मे चूड़ियाँ खनक रही थी
& चलते हुए पैरो मे पायल.पतली कमर पे वो चाँदी का कमरबन्द झूल रहा था &
उसके उपर उसकी गहरी,गोल नाभि चमक रही थी.वीरेन ने उसके माथे पे चमक रही
बड़ी सी लाल बिंदी को देखा तो उसका दिल किया की इसी वक़्त उसे आगोश मे भर
उसके माथे को चूम ले & अपने जज़्बातो का इज़हार कर दे उस से.

वीरेन की निगाहे लगातार उसे देखे जा रही थी & कामिनी उन नज़रो की तपिश से
शर्मा रही थी & बेचैन भी हो रही थी,"क्या देख रहे हैं?",उसकी खनकती आवाज़
ने वीरेन को जगाया.

"हुन्न...हा-हन...क-कुच्छ नही..आइए यहा खड़े होइए..ऐसे.",वीरेन ने उसे
कमरे की बड़ी खिड़की के पास खड़ा कर के बाहर देखने को कहा.अब कामिनी की
पीठ उसकी तरफ थी.चोली की डोरिया पीठ के आर-पार हो रही थी मगर पीठ कमर तक
लगभग पूरी नुमाया ही थी.वीरेन ने उसकी पीठ से लेके कमर तक निहारा.पतली
कमर के बाहरी कोने फैलते हुए लहँगे मे गायब हो गये
थे....उफफफ्फ़....कितनी चौड़ी गंद थी & कितनी भरी हुई!उसका दिल किया की 1
बार उस दिलकश अंग पे अपने हाथ फिरा ले मगर उसने खुद पे काबू रखा & अपने
ईज़ल के पास खड़ा हो गया.

अब कामिनी अपने हाथ खिड़की के बदन शीशे पे रखे हुए बाहर देख रही थी,उसका
चेहरा थोड़ा सा दाई तरफ घुमा हुआ था & वीरेन भी उसके पीछे उसी तरफ खड़ा
अपनी कूची चला रहा था.कामिनी को ये तो पता चल गया था की उसके रूप ने
वीरेन के दिल को पूरी तरह से घायल कर दिया है & इस वक़्त वो कल की तरह
उसके चेहरे को देख नही पा रही थी इसलिए उसे ऐसा लग रहा था की पैंटिंग
करता वीरेन अपनी आँखो से उसके जवान हुस्न के घूँट पी रहा है.इस ख़याल ने
उसके दिल मे खलबली मचा दी थी.

इन्ही ख़यालो मे गुम वो खिड़की से बाहर बंगल के लॉन को देख रही थी
कि,"हाअ..!",अपनी कमर पे कुच्छ महसूस कर वो चौंक पड़ी.

"मैं हू.आप वैसे ही खड़े रहिए,प्लीज़.बिल्कुल भी मत हीलिएगा.",वीरेन ने
उसकी कमर की बाई ओर बँधी लहँगे की डोरी को ढीला कर दिया.कामिनी को इतनी
हैरानी हुई की पूछो मत..इसका इरादा क्या था?क्या वो उसको.."वीरेन..",उसने
उसे टोका.

"बस 1 मिनिट.",वीरेन के हाथो की लंबी उंगलिया उस डोरी को खोल लहँगे को
थोडा नीचे कर रही थी & फिर कस रही थी.उसके हाथो की कोमल छुअन ने कामिनी
के जिस्म की आग को भड़का दिया.वीरेन ने डोरी कस कर कमर को पकड़ के थोड़ा
सा हिला के सही पोज़िशन मे किया & वापस ईज़ल के पास चला गया.कामिनी की
चूत मे कसक सी उठी & उसका दिल किया की काश वीरेन उसके लहँगे को खोल अपनी
लंबी उंगलिया उसकी चूत मे घुसा देता.(ये कहानी आप राज शर्मा के ब्लॉग
कामुक-कहानियाँ में पढ़ रहे है )इस गुस्ताख ख़याल के आते ही उसकी आँखे बंद
हो गयी & गले से बहुत धीमी सी आह निकली.

"क्या हुआ कामिनी?",वीरेन ने चिंतित हो पुचछा.

"क-कुच्छ नही.",कामिनी ने खुद को संभाला & खिड़की से बाहर देख अपने
दिमाग़ से वीरेन का ख़याल हटाने लगी.

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क्रमशः........


BADLA paart--17

gataank se aage...
"umm..chhodo na....please!!!!...ouuiii maa...ooww.....!",andhere kamre
me Rajni ki mast avaze gunj rahi thi.vo apne premi ko bas satahi taur
pe mana kar rahi thi ki vo uske jism se aur na khele magar uska dil to
chahta tha ki ab bas puri umra bas vo aise hi uske mazboot jism ki
panah me padi rahe.inder & vo bistar pe lete the & inder uski chut ke
dane ko daye hath ki ungli & anguthe se pakad ke halke-2 masal raha
tha & uski ye harkar rajni ko josh se pagal kar rahi thi.

"tum to kehti thi ki tumhare boss bimar hain mujhe to bilkul tandarust
nazar aye.",inder ne uske hontho pe apni zuban firayi.

"umm...",jawab me usne uski zuban ko apne munh ke andar khinch liya n&
kuch pal use chumti rahi,"..nahi inder,vo sachmuch bimar hai.yakin
mano unhe dil ki bimari hai."

"achha.."..to fir meri dawa apna kamal kyu nahi dikha rahi.kitni
mushkil se usne us dawa ka nam & fir uski jagah us slow poison ko
dhoonda tha jo usne unki dawa ki jagah rakha tha...kahi sahay ne uski
rakhi dibiya badal ke nayi dibiya to nahi le li..ab ye kaise pata
chalega?..yani use kuchh aur tareeka apnana
padega...,"ahhhhh...ahhhh......oohhhhhh...oohh...!",uski ungliyo ki
harkat se jhadti rajni ne uske khaylo ko toda.

vo uske bayi taraf leti sanse leti hui apne jism ko abhi-2 mili khushi
ka pura lutf utha rahi thi.inder ne use karwat le apni or ghumaya fir
uski bayi tang hawa me utha ke khud bhi apni bayi karwat pe hua & apna
lund uski uske ras se bhigi chut me pel diya,"..oowwwww....!",rajni
apni tang uski kamar pe kaste hue uske seene se lipat gayi.apna baya
hath inder ne rajni ki gardan ke neeche lagaya & daye se uski gand
masalne laga.

"aur tumhare bhaiyya?"

"Prasun bhaiyya...",aaj rajni ko inder ke ghar pe bitayi us dopahar se
bhi zyada maza aa raha tha,"..unke bare me 1 mazedar bat bataoon?"

"hun.",inder ke kan khade ho gaye magar vo jhuk ke uski thuddi aise
chumne laga mano use koi khas matlab na ho is baat se.

"ummmm....!",rajni ne apna baya hath uski pith pe firate hue uski gand
ko sehlaya,"..ma'am unki shadi karna chahti hain."

"kya?!",chaunk ke inder uski thuddi chod use dekhne laga.

"haan..",& fir chudte hue rajni ne jhadne tak use bataya ki kaise Sham
Lal ji ke aane pe uske kaan me ye baat padi thi & devika & suren sahay
apne vakil se bhi is bare me bat kar rahe the.jhadne ke kuch der baad
inder ne lund nikala to rajni ne thakan se chur ho aankhe band kar
li.use sota dekha inder utha & kamre ki khidki tak chala gaya.abhi bhi
barish vaise hi tabdtod ho rahi thi....akhir use is bat ka pata kaise
nahi chala?..ye shadi to nahi ho sakti kisi bhi halat me nahi!..uska
pura plan chaupat ho jayega agar us pagal ki shadi ho gayi to.ye shadi
ka khayal to pakka devika ke dimagh ki upaj hoga.suren sahay ke bas ka
nahi tha aisa sochan.usne jitna socha tha devika us se bhi kahi zyada
chalak thi.aj vo bahut khush tha vo estate me ghus jo gay tha magar is
nayi khabar ne uski khushi kafur kar di thi.

uska dil bechain ho utha & use sharab ki talab lagi magar yaha sharab
thi kaha.vo muda & rajni ki or dekha.vo bekhabar so rahi thi.usne apne
kapde pehne & soyi hui rajni ke badan pe chadar dali & vaha se nikal
uske quarter ke thik upar apne quarter me chala gaya.


Kamini ne aankhe khol khidki ke bahar dekha to paya ki subah ho chuki
thi & barish bhi ruk chuki thi magar baadal abhi bhi chhaye the.raat
kafi der tak Viren Sahay painting banata raha tha & koi 1 baje usne
use chhoda tha.vo usi ke guest room me abhi sokar uthi thi.

bistar se utri to kamini ne dekha ki uske kapde iron karke paas padi
kursi pe rakhe the.ghar me koi naukar to aaya nahi lagta tha fir in
kapdo ko press kisne kiya?kamini ki bra & panty bhi vaha rakhe
the....yani ki viren ne hi uske kapde vaha rakhe the..usne uske
undergarments bhi chhue..is khayal se kamini ke gaal sharm se laal ho
gaye.

raat ko vo viren ki di sari pehan ke hi so gayi thi.sari utar apne
kapde pehante hue use raat ki baate yaad aa gayi.painting banate waqt
dono ne 1 dusre se nazro ka jo khel khela tha usne uske dil me abhi
fir se gudgudi paida kar di & uske hontho pe muskan fail gayi.

kapde pehan vo bahar aayi,"good morning,kamini ji!"

"good morning."

"aaiye chai pijiye.",dono baith ke chai peene lage.chai peete waqt bhi
kamini ne gaur kiya ki viren beech-2 me uske chere ko dekh raha
tha.chai peete hue koi khas baatchit nahi hui & uske khatm hote hi
kamini ne chalne ki baat ki.

"chaliye main chhod deta hu.",viren utha & thodi hi der baad dono uski
car me kamini ke ghar ke liye ravana ho gaye.ghar pahunchte hi kamini
ne viren ko uske ghar me aa sath nashta karne ka nyota diya mgar viren
ne kaam ka bahana kar use shalinta se mana kar diya.

car gear me daal usne kamini ki or dekha,"to aaj sham aap aa rahi hain na?"

"haan.aane ke pehle me aapko fone kar dungi."

"ok.to sham ko milte hain.",viren ki nazre uske chehre se fisal usk
jhini sari me se jhankte uske cleavage pe aayi magar fauran sambhal
gayi.usne clutch chhoda to car aage badh gayi & vaha se nikal gayi.

viren ne kaha tha ki painting banane me samay lagta hai & abhi kamini
ko uske paas kuchh dino tak aana padega.kamini iske liye taiyyar ho
gayi thi,usne kaha ki sham ko kaam ke baad jo 2-3 ghante uske paas
bachte the usi samay me vo uski painting ke liye aa jaya karegi.

viren ki car nazro se ojhal hui to kamini ne darwaza khola & gungunate
hue ghar me dakhil hui.viren ki dilchaspi ne uske dil me bhi umange
paida kar di thi.vo apne kamre me gayi & kaam ke liye taiyyar hone
lagi.abhi to use court jana tha magar uska dil chah raha tha k fauran
sham ho jaye & vo viren ke bungle pe pahunch jaye ye dekhne ke liye ki
aaj dono ka nazro ka khel kaha tak pahunchta hai.

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"to Inder ji,samajh me aa gay aapko sara kaam?",uski layi file pe
Suren Sahay ne dastkha kiye.

"yes sir.staff ke log kafi madad kar rahe hain isliye koi pareshani
nahi ho rahi hai."

"bahut achhe lekin agar koi bhi pareshani ho to mujhe zarur batayen."

"thank you,sir.",inder file le vaha se bahar nikalne laga.darwaza
kholte hi usne dekha ki Shiva vaha 1 file liye chala aa raha tha.dono
ne muskura ke 1 dusre ko greet kiya & fir shva andar ghus gaya & inder
bahar chala gaya.

"sir,ye us security systems vali company ne apna quotation diya hai,1
baar aap ise check kar lijiyega."

"ok.shiva.1 baat batao bhai?"

"puchhiye,sir."

"kya hume sach me in chizo ki zarurat hai?"

"bilkul hai,sir.",shiva ne unpe bahut zor dala tha ki estate ki
hifazat ke liye ab baado & taaro se upar uthna padega,"..sir,baaden &
taar to thik hai magar itne bade ilake ke chappe-2 pe har waqt nazar
rakhna to mushkil hai chahe aap kitne bhi aadm kyu na bharti kar le.ye
machines humare kaam ko asan karengi & hum apna security staff bhi koi
20% tak kam kar sakte hain.."

"..jo paise yaha kharch ho rahe hain,aap ye sochiye ki vo paise
securtiy staff ko kam kar ke bacha liye jayenge."

"hun,tumhari baat to thik lagti hai,fir bhi main 1 baar ye quotation &
is mamle me tumne jo mujhe report mujhe di thi use fir se padh leta
hu."

"ok,sir.",shiva vaha se chala gaya.

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"wow!",kamini viren ke sath uske studio me khadi usk banayi khud ki
painting dekh rah thi,"..kitni sundar paintiing banayi hai viren
aapne..main aisi dikhti hu kya?!...yakeen nahi hota.ye aapke hatho ka
kamal hai!",viren ki painting me kamin ki shakhsiyat pui ubhar ke aayi
thi.paintng dekhne pe ye lagta tha mano ko rani apne divan pe baithi
ho,uske chehre pe raub jhakal raha tha magar vo ghamandi nahi lag rahi
thi balki badi hi azeem lag rahi thi.

"ji nahi.ye aapki shakhsiyat ka kamal hai.aap jaisi hain vaise hi
maine use is kagaz pe utar diya hai.",viren muskurate hue use dekh
raha tha.uski nazro me apni tareef dekh 1 pal ko kamini jaisi vishvas
se bhari ladki ki palko pe bhi haya ka bojh aa pada.nazre jhuka ke vo
fir se apni tasveer dekhne lagi,vo janti thi ki viren abhi bhi use
dekhe ja raha hai.

"painting to ban gayi yani mera kaam khatm?",usne baat badli.

"khatm!abhi to aapka kaam shuru hua hai mohtarma!"

"kya matlab?"

"matlab ye ki ye to pehli tasveer hai.abhi to main tab tak aapki
tasveere banaunga juab tak ki mujhe ye na lage ki ab aapki shakhsiyat
ka koi bhi pehlu dikhane ko baki nahi raha hai."

"aap bhi na!ab aisi bhi koi khas baat nahi hai mujhme.",kamini ne bol
to diya magar viren ki baato ne uske dil me bahut khushi bhar di thi.

"..jiska matlab hai ki main taumra aapki paintings banata
rahunga.",viren ne jaise uski baat suni hi nahi thi.

"please!ab aur tareef mat kijiye varna mujhme gurur aa jayega."

"bina gurur ke to husn phika hi lagega.",is aakhiri baat ne to kamini
ke gaalo ko sharm se aur bhi surkh kar diya.

"achha-2.to aaj kaun si painintg banayenge meri?"

"abhi batata hu.",viren ne paas ka cupboard khola.barso baad vo kisi
ladki ke liye apne dil me aise jazbat mehsus kar raha tha.aisa nahi
tha kamini se milne se pehle uska kisi ladki se koi rishta nahi
tha.kayi ladkiya aayi & gayi magar koi bhi uske dil me aisi jagah nahi
bana payi ki viren ko lage ki vo uske bagair ji nahi sakta.bas 1 ladki
thi jisne uske dil me ye ehsas paida kiya tha magar vo..

usne apne maazi ke bare me sochna chhoda.vo jo bhi tha,jaisa bhi
tha,beet chuka tha & ye khubsurat ladki jo uske studio me khadi thi ye
haqeeqat thi & use ab bas isi baat se matlab tha.

"aaj aap ye libas peheniye.",usne use kale rang ka 1 lehanga-choli
thamaya & 1 chhota sa box bhi.kamini ne use khola to usme kuchh chandi
ke zevrat the.usne sabhi chize le viren ki or sawaliya nazro se dekha.

"kamini,main aapko har insani jazbaat ko mehsus karte hue dikhana
chahta hu..is tasveer me aap 1 bahut hi vishvas se bhari aurat nazar
aa rahi hain joki aap haqeeqat me bhi hain.",usne apni banayi hui
painting ki or ishara kiya,"..ab agli painting me main aapko gham
mehsus karte hue dikhana chahta hu-intezar ka gham.ye libas humare
gaon ki ladkiya abhi bhi pehanti hain.ye zevrat aapke jism pe saje ye
dikhayenge ki aapko dhan-daulat ki kami nahi hai magar jo chiz aapke
liye sabse zyada zaruri hai,sabse khas ahai aapke liye vohi aapke paas
maujood nahi & aap usi ke intezar me hain."

viren apni kala ke prati puri tarah se samarpit tha & is waqt kamini 1
kalakar ko hi sun rahi thi.viren ki baat puri hone pe vo muskurayi &
bathroom ki or badh gayi.kuchh lamho baad jab vo bahar aayi to use
dekh viren ka munh hairat se khula reh gaya.vo 1 painter tha & aam
logo ke mukable uski imagination kuchh zyada saaf hoti thi.ye libas
chunte waqt uske dimagh ne kamini ki 1 tasveer bana li thi ki vo kaisi
dikhegi magar is waqt jo ladki uske samne khadi thi vo us tassavur
vali kamini se kahi zyada haseen & dilkash lag rahi thi.

choli thodi tang thi & is wajah se kamini ki chhatiya aapas me dab
gayi thi & choli ke gale se uska cleavage thoda aur ubhar aaya
tha.hatho me churiya khanak rahi thi & chalte hue pairo me payal.patli
kamar pe vo chandi ka kamarband jhul raha tha & uske upar uski
gehri,gol nabhi chamak rahi thi.viren ne uske mathe pe chamak rahi
badi si laal bindi ko dekha to uska dil kiya ki isi waqt use agosh me
bhar uske mathe ko chum le & apne jazbato ka izhar kar de us se.

viren ki nigahe lagatar use dekhe ja rahi thi & kamini un nazro ki
tapish se sharma rahi thi & bechain bhi ho rahi thi,"kya dekh rahe
hain?",uski khanakti aavaz ne viren ko jagaya.

"hunn...ha-haan...k-kuchh nahi..aaiye yaha khade hoiye..aise.",viren
ne use kamre ki badi khidki ke paas khada kar ke bahar dekhne ko
kaha.ab kamini ki pith uski taraf thi.choli ki doriya pith ke aar-paar
ho rahi thi magar pith kamar tak lagbhag puri numaya hi thi.viren ne
uski pith se leke kamar tak nihara.patli kamar ke bahri kone failte
hue lehange me gayab ho gaye the....uffff....kitni chaudi gand thi &
kitni bhari hui!uska dil kiya ki 1 baar us dilkash ang pe apne hath
fira le magar usne khud pe kabu rakha & apne easel ke paas khada ho
gaya.

ab kamini apne hath khidki ke badn shishe pe rakhe hue bahar dekh rahi
thi,uska chehra thoda sa daayi taraf ghuma hua tha & viren bhi uske
peechhe usi taraf khada apni kuchi chala raha tha.kamini ko ye top
pata chal gaya tha ki uske roop ne viren ke dil ko puri tarah se
ghayal kar diya hai & is waqt vo kal ki tarah uske chehre ko dekh nahi
pa rahi thi isliye use aisa lag raha tha ki painting karta viren apni
aankho se uske jawan husn ke ghunt pi raha hai.is khayal ne uske dil
me khalbali macha di thi.

inhi khayalo me gum vo khidki se bahar bungle ke lawn ko dekh rahi thi
ki,"haaa..!",apni kamar pe kuchh mehsus kar vo chaumk padi.

"main hu.aap vaise hi khade rahiye,please.bilkul bhi mat
hiliyega.",viren ne uski kamar ki bayi or bandhi lehange ki dorei ko
dhila kar diya.kamini ko itni hairani hui ki puchho mat..iska irada
kya tha?kya vo usko.."viren..",usne use toka.

"bas 1 minute.",viren ke hatho ki lambi ungliya us dori ko khol
lehange ko thoda neeche kar rtahi thyi & fir kas rahi thi.uske hatho
ki komal chhuan ne kamini ke jism ki aag ko bhadka diya.viren ne dori
kas kar kamar ko pakad ke thoda sa hila ke sahi position me kiya &
vapas easel ke paas chala gaya.kamini ki chut me kasak si uthi & uska
dil kiya ki kash viren uske lehange ko khol apni lambi ungliya uski
chut me ghusa deta.is gustakh khayal ke aate hi uski aankhe band ho
gayi & gale se bahut dhimi si aah nikli.

"kya hua kamini?",viren ne chintit ho puchha.

"k-kuchh nahi.",kamini ne khud ko sambhala & khidki se bahar dekh apne
dimagh se viren ka khayal hatane lagi.

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kramashah........


आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj

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