बदला पार्ट--47
गतान्क से आगे..
"ये जगन्नाथ जी हैं,कामिनी जी.",शिवा कामिनी को 1 बुज़ुर्ग से मिलवा रहा
था,"ये सहाय एस्टेट के खेतो का काम देखते हैं & मुझे इन्पर उतना ही भरोसा
है जितना खुद पे."
"जगन्नाथ जी,आप जानते हैं ना आपको क्या करना है?"
"जी हां.आप बेफ़िक्र रहें.मैं आपको अपने घर मे जगह दे दूँगा.मेरी बीवी &
बेटी को मैं सब समझा दूँगा.बाहर वालो के लिए आप मेरे भतीजे की बहू
हैं.भतीजा काम से बाहर गया है इसलिए आपको देख भाल के लिए मेरे परिवार के
साथ छ्चोड़ गया है."
"बहुत अच्छे.आपको मुझे एस्टेट के चप्पे-2 के बारे मे बताना है & हो सके
तो आप अपने मनेजर के बारे मे भी कुच्छ पता लगाइए मगर बिना उसे कोई भी शक़
दिलाए."
"ठीक है.अब मैं चलता हू,शाम ठीक 5 बजे मैं आपको लेने आऊंगा.".जगन्नाथ
जाने लगा,"..अरे हां..",वो पलटा जैसे की कुच्छ भूल गया था,"..शिवा
भाई,मेडम को कपड़ो का इंतेज़ाम करने को बोल देना."
"हां-2 ज़रूर.",शिवा मुस्कुराया.
"कपड़े?कैसे कपड़े?",जगन्नाथ के जाते ही कामिनी ने शिवा से पुचछा.
"कामिनी जी,आपको जगन्नाथ जी की बहू का भेस बदलना होगा & उसके लिए कपड़े
चाहिए जोकि मैने सुखी भाई को लाने के लिए बोला है.बस शाम का इंतेज़ार
कीजिए.",शिवा की असलियत जानने के बाद सुखी & उसकी काफ़ी छनने लगी थी.
"..& ये रखिए.",शिवा ने 1 चाभी कामिनी को थमाई,"..ये चाभी बंगले के पीछे
रसोई के दरवाज़े की है."
"थॅंक्स,शिवा मगर अभी भी 1 परेशानी है?"
"क्या?"
"इंदर के घर का ताला कैसे खुलेगा?"
"इस से मेडम.",मोहसिन जमाल & सुखी कमरे मे दाखिल हुए.
"ये लीजिए,कामिनी जी.",मोहसिन ने चाभियो का 1 बड़ा सा गुच्छा कामिनी को
थमाया,"दुनिया का शायद ही कोई ऐसा ताला हो जो इस गुच्छे की चाभियो से ना
खुले."
"मगर मोहसिन इस गुच्छे मे से चाभी ढूढ़ने मे तो बड़ा वक़्त लगेगा?"
"नही कामिनी जी,ये देखिए हर ताले के साइज़ के हिसाब से चाभीया हैं.सुखी
आपको ये बता देगा की कौन सी चाभीया गुच्छे मे कैसे लगी हैं.बस फिर आप
ताला देखिए & फिर गुच्छे मे से उसमे लग सकने वाली चाभीया अलग कीजिए & बस
मुझे 1 मिनिट से भी कम समय लगता है,आपको शायद 5 लगे."
"ओके,मोहसिन.थॅंक्स.",अब इंदर का बचना नामुमकिन था.कामिनी ने चाभीया अपने
बॅग मे डाली & शाम का इंतेज़ार करने लगी.
रात के 10 बजे से कामिनी सहाय एस्टेट के सर्वेंट क्वॉर्टर्स के सामने बनी
पार्किंग मे खड़ी 4 गाडियो मे से 1 मे च्छूपी बैठी थी.उसका इरादा था की
12 बजे के करीब वो कार से निकल के 1 बार बंगल के अंदर जाए.उसे उमीद नही
थी कि बंगल के अंदर से कोई सुराग मिलने वाला था मगर फिर भी वो 1 बार अंदर
जाके देखना चाहती थी.
कार की पिच्छली सीट पे लेटे-2 उसे नींद आ रही थी मगर किसी तरह उसने उसपे
काबू पाया & जैसे ही रात के 12 बजे वो कार से निकलने लगी मगर तभी आँखो के
कोने से उसे कुछ दिखा.उसने गर्दन घुमाई तो देखा इंदर अपने क्वॉर्टर से
निकल के बाहर आ गया था.कामिनी फ़ौरन झुक गयी & कार के शीशे से उसे देखने
लगी.
इधर-उधर देखता इंदर तेज़ी से बंगल की तरफ बढ़ा & थोड़ी ही देर मे वो बंगल
के पीछे था.कामिनी ने 1 पल इंतेज़ार किया & वो भी फुर्ती से कार से उतर
के उसके पीछे हो ली.
जब वो बंगल के पीछे पहुँची तो देखा की पीछे का रसोई का दरवाज़ा जिसकी
चाभी उसकी जेब मे थी बंद हो रहा था..इंदर के पास यहा की चाभी कैसे आई?..&
आख़िर वो इतनी रात गये घर के अंदर किस लिए गया था?..कही वो आज रात फिर
कुच्छ बुरा तो नही करने वाला?!
कामिनी ने किसी तरह 5 मिनिट इंतेज़ार किया & शिवा की दी चाभी से दरवाज़ा
खोल अंदर दाखिल हो गयी.घर मे इस वक़्त 4 लोग थे देविका,रोमा,इंदर & रोमा
का भाई संजय & चारो उपरी मंज़िल के कमरो मे थे. ये सब उसे जगन्नाथ ने
पंचमहल से आते वक़्त बता दिया था.
कामिनी दबे पाँव उपर गयी.वो पहले भी यहा आ चुकी थी & उसे पता था की
देविका का कमरा आख़िरी वाला है....कही इंदर & रोमा का कोई चक्कर तो
नही?..ख़याल आते ही उसने सबसे पहले उसी के कमरे का दरवाज़ा खोलने की
कोशिश की मगर दरवाज़ा अंदर से बंद था & कोई आवाज़ भी नही आ रही थी.अगले
कमरे मे संजय गहरी नींद मे सोया था & तीसरा कमरा खाली था.
चौथे कमरे के पास पहुँचते ही कामिनी ठिठक गयी-अंदर से रोने की आवाज़ आ
रही थी.कामिनी ने दरवाज़े को धकेला तो पाया कि वो खुला था.दरवाज़े को
थोड़ा सा खोल उसने अंदर देखा तो सन्न रह गयी.बिस्तर पे देविका इंदर की
बाहो मे सूबक रही थी & वो उसे दिलासा दे रहा था.
"चुप हो जाओ,देविका.बस..अब और मत रो.मैं हू ना तुम्हारे साथ. इस मनहूस
जगह से बहुत जल्दी छुट कारा दिलाउन्गा मैं तुम्हे."
"मगर कैसे इंदर?ये सब....",देविका रोते हुए कह रही थी,"..इस सारी जयदाद
का क्या होगा?"
"सब रोमा के नाम कर दो & हम दोनो यहा से चलते हैं."
"क्या?",देविका की सिसकिया अभी भी जारी थी,"..वो बेचारी कैसे संभाल पाएगी ये सब."
"संभाल लेगी. इस तरह ए क्यू नही सोचती.उसका गम तुमसे ज़्यादा नही तो कम
भी तो नही है.कारोबार चलाने से वो मसरूफ़ हो जाएगी & उसका मन भी इस हादसे
से उबर जाएगा."
"बात तो तुम्हारी ठीक लगती है.",देविका की रुलाई अब रुक गयी थी,"..मैं
कामिनी शरण से बात करती हू."
"वो तुम्हे मना कर देगी?"
"मगर क्यू?मेरी जयदाद मैं जिसे मर्ज़ी दू."
"वीरेन सहाय भी तो है,उसे कैसे भूल गयी.या तो बँटवारा हो या फिर वो
तुम्हारी बात मान जाए."
"वो क़ातिल है मेरे बच्चे का!",देविका की आवाज़ तेज़ हो गयी थी.
"& कामिनी शरण उसे ज़मानत दिलवा चुकी है.",इंदर ने अपनी बाहो को थोड़ा और
कसा तो देविका अब उस से पूरी तरह से चिपक गयी.काई दीनो बाद देविका को
अपने बदन मे वही सनसनी महसूस हुई जोकि किसी मर्द के करीब आने से होती
थी,"..& सभी जानते हैं की दोनो के बीच क्या रिश्ता है.ऐसे मे वो तुम्हारी
बात क्यू मानने लगी भला?!"
"तो क्या करू?वकील बदल लू?"
"नही मगर वसीयत तुम्हारी मर्ज़ी की चीज़ है.तुम चाहो सब कुच्छ दान कर
दो,चाहो सब बेच दो.अगर अदालत मे ये साबित हो जाए की वीरेन ने प्रसून का
क़त्ल किया है तो फिर उसे जयदाद से बेदखल करना कोई बड़ी बात नही.उसके बाद
तुम सबकुच्छ रोमा को दे देना & हम दोनो यहा से कही दूर चले जाएँगे..ऐसी
जगह जहा इस दुनिया का शोर-शराबा ना हो ना ही उलझने हो."
"ओह्ह,इंदर.",डेविका ने उसे बाहो मे भर लिया & उसके सीने मे अपना चेहरा
च्छूपा लिया.इंदर भी उसके बाल चूम रहा था.
ऐसी जगह तो 1 ही है & वो इस दुनिया मे नही है..कामिनी मन ही मन
बुदबुदाई..देविका,बेवकूफी मत करो..ये तुम्हे सच मे वाहा भेजेगा जहा
दुनिया की कोई तकलीफ़ नही होती-जन्नत!..कामिनी जैसे आई थी वैसे ही वापस
जाने लगी.उसका दिल कर रहा था की अंदर जाके इंदर का मुँह नोच उसे 4-5
तमाचे जड़ दे.उसकी ज़ाति ज़िंदगी मे वो कुच्छ भी करती हो मगर अपने पेशे
मे वो कभी कोई समझौता नही करती थी & ये गलिज़ इंसान वीरेन को क़ातिल &
उसे बेईमान बना रहा था देविका की नज़रो मे!अब तो वो इसे सज़ा दिलवा के ही
रहेगी!
1 बात तो तय थी कि इंदर अभी जल्द ही बंगल से बाहर नही आनेवाला तो ये मौका
अच्छा था की कामिनी उसके क्वॉर्टर को छान मारे.जेब से उसने मोहसिन जमाल
का दिया ड्यूप्लिकेट चाभियो के गुच्छे वाला पाउच निकाला & पहुँच गयी इंदर
के क्वॉर्टर.4 मिनिट मे ही कामिनी क्वार्टरर के अंदर थी मगर अंदर घुसते
ही उसकी सांस अटक गयी.क्वॉर्टर की बाल्कनी का दरवाज़ा खोल कोई अंदर आ रहा
था.
कामिनी झट से मैं दरवाज़े के बाहर हो गयी.अंदर घुप अंधेरा था & उस शख्स
का चेहरा नज़र नही आ रहा था.उसने 1 टॉर्च जलाके क्वॉर्टर की बैठक का
मुआयना किया तो कामिनी ने दरवाज़ा पूरा बंद कर दिया & उसके के होल से
झाँकने लगी.कोई 2 मिनिट बाद उसे अंदर से कोई रोशनी आती नही दिखी तो वो
बड़ी सावधानी से फिर से अंदर घुसी.
वो अजनबी इंदर के सोने के कमरे को खंगाल रहा था.कामिनी ने उस कमरे के
दरवाज़े से झाँका मगर उसे कुच्छ नज़र नही आया.उसका पहला ख़याल था की ये
कोई इंदर का साथी होगा मगर साथी चोरो की तरह क्यू आएगा?..फिर उसे लगा की
ये शिवा है मगर शिवा तो उसके साथ भी आ सकता था & वैसे भी इस शख्स का
डील-डौल शिवा से छ्होटा था. तो फिर ये था कौन?
वो इंदर की अलमारी खोल कुच्छ देख रहा था.थोड़ी ही देर बाद उसने अलमारी
बंद की तो कामिनी दबे पाँव भागती हुई क्वॉर्टर से बाहर आ गयी.उसे हल्की
सी आवाज़ आई तो वो समझ गयी की वो उसी रास्ते वापस गया है जिस रास्ते आया
था.कामिनी फ़ौरन अंदर गयी & भागती हुई बाल्कनी के दरवाज़े पर
आई.लंबे-लंबे डॅग भरता वो साया पेड़ो के झुर्मुट मे गायब हो गया था.
अब क्वॉर्टर की तलाशी की बारी कामिनी की थी.वो आधे घंटे तक लगी रही मगर
उसे कुच्छ ना मिला.मायूस हो वो क्वॉर्टर से निकल गयी & 1 ठंडी सांस
भरी.अब उसे कल रात तक का इंतेज़ार करना था....ऑफ!उसे फिर से कल दिन भर
घाघरा-चोली पहनना पड़ेगा.यही वो लिबास था जिसमे जगन्नाथ के घर की औरते
रहती थी & उसके भतीजे की बीवी को भी वही पहनना था..घाघरा-चोली तो तब भी
ठीक है मगर वो 4 हाथ लूंबा घूँघट!..आज शाम को आते वक़्त वो 4-5 बार
गिरते-2 बची थी.पता नही क्या मज़ा आता था अच्छी-भली औरतो को अँधा बनाने
मे मर्दो को!कामिनी ने अपनी रफ़्तार बढ़ाई & जगन्नाथ के घर की ओर बढ़
गयी.
कामिनी के दिमाग़ मे इथल-पुथल मची हुई थी.इंदर के घर मे वो शख्स कौन
था?..होगा तो कोई इंदर का दुश्मन ही लेकिन शिवा तो मोहसिन जमाल के साथ था
फिर ये कौन था?...वीरेन तो नही?..लेकिन उसकी कद-काठी वीरेन जैसी नही
थी..तो फिर कौन था वो?
तभी उसका मोबाइल बजा & वो ख़यालो से बाहर आई,"हाई!वीरेन कैसे हो?"
"कामिनी,मैं इस तरह से चोरो की तरह नही रह सकता!"
"वीरेन,तुम चोर थोड़े ही हो. ये तो बस तुम्हारे भले के लिए ही है."
"मगर फिर भी कुच्छ तो बताओ आख़िर माजरा क्या है?"
"वीरेन,मैं तुम्हे सारी बात अभी नही बात सकती क्यूकी सारा कुच्छ तो मुझे
भी नही पता अभी तक बस इतना जान लो की शिवा का इसमे कोई हाथ नही."
"क्या?!!फिर कौन है?"
"बस आज भर सब्र रखो,वीरेन.कल सब बताउन्गि तुम्हे."
"जैसा तुम कहो कामिनी."
वीरेन के फोन के फ़ौरन बाद मोहसिन का फोन आया,शिवा उस से बात करना चाहता
था,"क्या?!!",शिवा की आवाज़ मे हैरत,गुस्सा & दर्द के भाव मिले हुए
थे.कामिनी ने उसे इंदर & देविका के बारे मे बता दिया था.
"शिवा,मैं तुम्हारे दिल का हाल समझ रही हू लेकिन तुम जज़्बाती होकर कोई
कदम ना उठा लेना."
"हूँ."
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क्रमशः.......................
बदला पार्ट--47
गतान्क से आगे..
"ye jagannath ji hain,kamini ji.",Shiva kamini ko 1 buzurg se milwa
raha tha,"ye Sahay Estate ke kheto ka kaam dekhte hain & mujhe inpe
utna hi bharosa hai jitna khud pe."
"jagannath ji,aap jante hain na aapko kya karna hai?"
"ji haan.aap befikr rahen.main aapko apne ghar me jagah de dunga.meri
biwi & beti ko main sab samjha dunga.bahar walo ke liye aap mere
bhatije ki bahu hain.bhatija kaam se bahar gaya hai isliye aapko dekhb
hal ke liye mere parivar ke sath chhod gaya hai."
"bahut achhe.aapko mujhe estate ke chappe-2 ke bare me batana hai & ho
sake to aap apne manger ke abre me bhi kuchh pata lagaiye magar bina
use koi bhi shaq dilaye."
"thik hai.ab main chalta hu,sham thik 5 baje main aapko lene
aaoonga.".jagannath jane laga,"..are haan..",vo palta jaise ki kuchh
bhul gaya tha,"..shiva bhai,madam ko kapdo ka intezam karne ko bol
dena."
"haan-2 zarur.",shiva muskuraya.
"kapde?kaise kapde?",jagannath ke jate hi kamini ne shiva se puchha.
"kamini ji,aapko jagannath ji ki bahu ka bhes badalna hoga & uske liye
kapde chahiye joki maine Sukhi bhai ko lane ke liye bola hai.bas sham
ka intezar kijiye.",shiva ki asliyat jaanane ke baad sukhi & uski kafi
chhanane lagi thi.
"..& ye rakhiye.",shiva ne 1 chabhi kamini ko thamai,"..ye chabhi
bungle ke peechhe rasoi ke darwaze ki hai."
"thanx,shiva magar abhi bhi 1 pareshani hai?"
"kya?"
"inder ke ghar ka tala kaise khulega?"
"is se madam.",Mohsin Jamal & Sukhi kamre me dakhil hue.
"ye lijiye,kamini ji.",mohsin ne chabhiyo ka 1 bada sa guchha kamini
ko thamaya,"duniya ka shayad hi koi aisa tala ho jo is guchhe ki
chabhiyo se na khule."
"magar mohsin is guchhe me se chabhi dhundane me to bada waqt lagega?"
"nahi kamini ji,ye dekhiye har tale ke size ke hisab se chabhiya
hain.sukhi aapko ye bata dega ki kaun si chabhiya guchhe me kaise lagi
hain.bas fir aap tala dekhiye & fir gucchhe me se usme lag askne vali
chabhiya alag kijiye & bas mujhe 1 minute se bhi kam samay lagta
hai,aapko shayad 5 lage."
"ok,mohsin.thanx.",ab inder ka bachna namumkin tha.kamini ne chabhiya
apne bag me dali & sham ka intezar karne lagi.
Raat ke 10 baje se Kamini Sahay Estate ke servant quarters ke sane
bani parking me khadi 4 gadiyo me se 1 me chhupi baithi thi.uska irada
tha ki 12 baje ke karib vo car se nikal ke 1 baar bungle ke andar
jaye.use umeed nahi thi ki bungle ke andar se koi surag milne wala tha
magar fir bhi vo 1 baar andar jake dekhna chahti thi.
car ki pichhli seat pe lete-2 use nind aa rahi thi magar kisi tarah
usne uspe kabu paya & jaise hi raat ke 12 baje vo car se nikalne lagi
magar tabhi aankho ke kone se use kcuhh dikha.usne gardan ghumayi to
dekha Inder apne quarter se utar ke bahar aa gaya tha.kamini fauran
jhuk gayi & car ke sheeshe se use dekhne lagi.
idhar-udhar dekhta inder tezi se bungle ki taraf badha & thodi hi der
me vo bungle ke peechhe tha.kamini ne 1 pal intezar kiya & vo bhi
furti se car se utar ke uske peechhe ho li.
jab vo bungle ke peechhe pahunchi to dekha ki peechhe ka rasoi ka
darwaza jiski chabhi uski jeb me thi band ho raha tha..inder ke paas
yaha ki chabhi kaise aayi?..& aakhir vo itni raat gaye ghar ke andar
kis liye gaya tha?..kahi vo aaj raat fir kuchh bura to nahi karne
wala?!
kamini ne kisi tarah 5 minute intezar kiya & Shiva ki di chabhi se
darwaza khol andar dakhil ho gayi.ghar me is waqt 4 log the
devika,Roma,Inder & roma ka bhai Sanjay & charo upari manzil ke kamro
me the. ye sab use Jagannath ne Panchmahal se aate waqt bata diya tha.
kamini dabe panv upar gayi.vo pehle bhi yaha aa chuki thi & use pata
tha ki devika ka kamra aakhiri wala hai....kahi inder & roma ka koi
chakkar to nahi?..khayal aate hi usne sabse pehle usi ke kamre ka
darwaza kholne ki koshish ki magar darwaza andar se band tha & koi
aavaz bhi nahi aa rahi thi.agle kamre me sanjay gehri nind me soya tha
& teesra kamra khali tha.
chauthe kamre ke paas pahunchte hi kamini thithak gayi-andar se rone
ki aavaz aa rahi thi.kamini ne darwaze ko dhakela to paya ki vo khula
tha.darwaze ko thoda sa khol usne andar dekha to sann reh gayi.bistar
pe devika inder ki baaho me subak rahi thi & vo use dilasa de raha
tha.
"chup ho jao,devika.bas..ab aur mat ro.main hu na tumhare sath. is
manhus jagah se bahut jaldi chhutkara dilaunga main tumhe."
"magar kaise inder?ye sab....",devika rote hue keh rahi thi,"..is sari
jaydad ka kya hoga?"
"sab roma ke naam kar do & hum dono yaha se chalte hain."
"kya?",devika ki siskiya abhi bhi jari thi,"..vo bechari kaise asmbhal
payegi ye sab."
"sambhal legi. is tarahs e kyu nahi sochti.uska ghum tumse zyada nahi
to kam bhi to nahi hai.karobar chalane se vo masruf ho jayegi & uska
man bhi is hadse se ubar jayega."
"baat to tumhari thik lagti hai.",devika ki rulai ab ruk gayi
thi,"..main Kamini Sharan se baat karti hu."
"vo tumhe mana kar degi?"
"magar kyu?meri jaydad main jise marzi du."
"Viren Sahay bhi to hai,use kaise bhul gayi.ya to bantwara ho ya fir
vo tumhari baat maan jaye."
"vo qatil hai mere bachche ka!",devika ki aavaz tez ho gayi thi.
"& kamini sharan use zamanat dilwa chuki hai.",inder ne apni baaho ko
thoda aur kasa to devika ab us se puri tarah se chipak gayi.kayi dino
baad devika ko apne badan me vahi sansani mehsus hui joki kisi mard ke
karib aane se hoti thi,"..& sabhi jante hain ki dono ke beech kya
rishta hai.aise me vo tumhari baat kyu maanane lagi bhala?!"
"to kya karu?vakil badal lu?"
"nahi magar vasiyat tumhari marzi ki chiz hai.tum chaho sab kuchh daan
kar do,chahao sab bech do.agar adalat me ye sabit ho jaye ki viren ne
prasun ka qatl kiya hai to fir use jaydad se bedakhal karna koi badi
baat nahi.uske baad tum sabkuchh roma ko de dena & hum dono yaha se
kahi dur chale jayenge..aisi jagah jaha is duniya ka shor-sharaba na
ho na hi uljhane ho."
"ohh,inder.",devika ne use baaho me bhar liya & uske seene me apna
chehra chhupa liya.inder bhi uske baal chum raha tha.
aisi jagah to 1 hi hai & vo is duniya me nahi hai..kamini man hi man
budbudai..devika,bevkufi mat karo..ye tumhe sach me vaha bhejega jaha
duniya ki koi taklif nahi hoti-jannat!..kamini jaise aayi thi vasie hi
vapas jane lagi.uska dil kar raha tha ki andar jake inder ka munh noch
use 4-5 tamache jad de.uski zati zindagi me vo kuchh bhi karti ho
magar apne peshe me vo kabhi koi samjhauta nahi karti thi & ye galiz
insan viren ko qatil & use beiman bana raha tha devika ki nazro me!ab
to vo ise saza dilwa ke hi rahegi!
1 baat to tay thi ki inder abhi jald hi bungle se bahar nahi aanewala
to ye mauka achha tha ki kamini uske quarter ko chhan mare.jeb se usne
Mohsin Jamal ka diya duplicate chabhiyo ke guchhe weala pouch nikala &
pahunch gayi inder ke quarter.4 minute me hi kamini quartyer ke andar
thi magar andar ghuste hi uski sans atak gayi.quarter ki balcony ka
darwaza khol koi andar aa raha tha.
kamini jhat se main darwaze ke bahar ho gayi.andar ghup andhera tha &
us shakhs ka chehra nazar nahi aa raha tha.usne 1 torch jalake quarter
ki baithak ka muayana kiya to kamini ne darwaza pura band kar diya &
uske key hole se jhankne lagi.koi 2 minute baad use andar se koi
roshni aati nahi dikhi to vo badi savdhani se fir se andar ghusi.
vo ajnabi inder ke sone ke kamre ko khangal raha tha.kamini ne us
kamre ke darwaze se jhanka magar use kuchh nazar nahi aaya.uska pehla
khayal tha ki ye koi inder ka sathi hoga magar sathi choro ki tarah
kyu ayega?..fir use laga ki ye shiva hai magar shiva to uske sath bhi
aa sakta tha & vaise bhi is shakhs ka deel-daul shiva se chhota tha.
to fir ye tha kaun?
vo inder ki almari khol kuchh dekh raha tha.thodi hi der baad usne
almari band ki to kamini dabe panv bhagti hui quarter se bahar aa
gayi.use halki si aavaz aayi to vo samajh gayi ki vo usi raste vapas
gaya hai jis raste aaya tha.kamini fauran andar gayi & bhagti hui
balcony ke darwaze par aayi.lambe-lambe dag bharta vo saya pedo ke
jhurmut me gayab ho gaya tha.
ab quarter ki talashi ki bari kamini ki thi.vo aadhe ghante tak lagi
rahi magar use kuchh na mila.mayus ho vo quarter se nikal gayi & 1
thandi sans bhari.ab use kal raat tak ka intezar karna tha....off!use
fir se kal din bhar ghaghra-choli pehanana padega.yehi vo libas tha
jisme jagannath ke ghar ki aurate rehti thi & uske bhatije ki biwi ko
bhi vahi pehanan tha..ghaghra-choli to tab bhi thik hai magar vo 4
hath lumba ghunghat!..aaj sham ko aate waqt vo 4-5 baar girte-2 bachi
thi.pata nahi kya maza aata tha achhi-bhali aurato ko andha banane me
mardo ko!kamini ne apni raftar badhayi & jagannath ke ghar ki or badh
gayi.
Kamini ke dimagh me ithal-puthal machi hui thi.Inder ke ghar me vo
shakhs kaun tha?..hoga to koi inder ka dushman hi lekin Shiva to
Mohsin Jamal ke sath tha fir ye kaun tha?...Viren to nahi?..lekin uski
kad-kathi viren jaisi nahi thi..to fir kaun tha vo?
tabhi uska mobile baja & vo khayalo se bahar aayi,"hi!viren kaise ho?"
"kamini,main is tarah se choro ki tarah nahi reh sakta!"
"viren,tum chor thode hi ho. ye to bas tumhare bhale ke liye hi hai."
"magar fir bhi kuchh to batao aakhir majra kya hai?"
"viren,main tumhe sari baat abhi nahi bat sakti kyuki sara kuchh to
mujhe bhi nahi pata abhi tak bas itna jaan lo ki shiva ka isme koi
hath nahi."
"kya?!!fir kaun hai?"
"bas aaj bhar sabra rakho,viren.kal sab bataungi tumhe."
"jaisa tum kaho kamini."
viren ke fone ke fauran baad mohsin ka fone aaya,shiva us se baat
karna chahta tha,"kya?!!",shiva ki aavaz me hairat,gussa & dard ke
bhav mile hue the.kamini ne use inder & Devika ke bare me bata diya
tha.
"shiva,main tumhare dil ka haal samajh rahi hu lekin tum jazbati hokar
koi kadam na utha lena."
"hun."
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kramashah.
आपका दोस्त राज शर्मा साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,मंदिर जाकर जाप भी कर
लेता हूँ ..मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी
कर लेता हूँआपका दोस्तराज शर्मा(¨`·.·´¨) Always`·.¸(¨`·.·´¨) Keep
Loving &(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !`·.¸.·´ -- raj
--
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